वामपक्ष और अंबेडकरवादियों कीआपसी दुश्मनीखत्म किये बिना कयामत का यह मंजर बदलेगा नहीं
इस केसरिया फासीवाद के लिए जिम्मेदार वाम पक्ष भी है,फासीवाद के खिलाफ लड़ाई से पहले यह आत्मालोचना कामरेड पहले कर लें।
फिर बहुजनों और वाम पक्ष के परस्पर विरोधी अवस्थान की वजह से फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध असंभव है तो इस रसायन को तोड़े।
इसीलिए मई दिवस पर केसरिया के खिलाफ तमाम रंगों का इंद्रधनुष चाहिए,तकि पहचानों की तिलिस्म से निकलकर भारतीय मेहनतकश आवाम लामबंद हो जनसंहार संस्कृति के विरुद्ध,बेदखली के विरुद्ध।
फासीवादी केसरिया कारपोरेट सुनामी के विरुद्ध।
पलाश विश्वास
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Graphics:Hindustan Times
फासीवादी केसरिया कारपोरेट सुनामी के विरुद्ध।
हम माकपा पोलित ब्यूरो में कामरेड मोहम्मद सलीम और कामरेड सुभाषिनी अली के जरिये हिंदी प्रदेशों को प्रतिनिधित्व दिये जाने से बेहद खुश हैं और उम्मीद करते हैं कि वर्गीय सत्ता को उखाड़ फेंकने की जो नये कामरेड महासचिव सीताराम येचुरी ने घोषणा की है,उसके तहत सबसे पहले वामपक्ष को बहुजनों से जोड़ने का काम वे करें और अंबेडकरी आंदोलन का मतलब भी समझें।
हमारी समझ से भारत में नस्ली कारपोरेट केसरिया की वर्गीय फासिस्ट सत्ता को उखाड़ फेंकने के रास्ते सबसे बडा़ अवरोध लाल और नीले झंडे का विरोध है।
वामपक्ष और अंबेडकरवादियों की आपसी दुश्मनी खत्म किये बिना कयामत का यह मंजर बदलेगा नहीं।
इस केसरिया फासीवाद के लिए जिम्मेदार वाम पक्ष भी है,फासीवद के खिलाफ लड़ाई से पहले यह आत्मालोचना कामरेड पहले कर लें।
फिर बहुजनों और वाम पक्ष के परस्पर विरोधी अवस्थान की वजह से फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध असंभव है तो इस रसायन को तोड़े।
इसीलिए मई दिवस पर केसरिया के खिलाफ तमाम रंगों का इंद्रधनुष चाहिए,तकि पहचानों की तिल्सिम से निकलकर भारतीय मेहनतकश आवाम लामबंद हो जनसंहार संस्कृति के विरुद्ध,बेदखली के विरुद्ध।
इसीलिए हम चाहते हैं कि मई दिवस सिर्फ वामपंथी नहीं,बढ़ चढ़कर बहुजन अंबेडकरवादी भी मनायें।
हमने मई दिवस की तैयारियां शुरु कर दी है।
कोलकाता में खास तैयारी है।
दक्षिण भारत से लेकर कश्मीर तक के साथी,जो देशभर में बामसेफ में हमारे साथ थे और अब बामसेफ में नहीं हैं,वे भी तैयारी में हैं।
बंगलुरु के जो साथी बामसेफ एकीकरण की हमारी शुरुआती मुहिम से नाराज थे और बामसेफ के विसर्जन के पक्ष में थे,उनने भी कल तमाम मुद्दों पर फोन पर लंबी बातचीत की।प्रभाकर ने अंबेडकरी आंदोलन की दशा दिशा, बाबासाहेब, नेताजी और संघ परिवार से जुड़े मुद्दों पर बातें कीं तो संगठन के बारे में सवालात भी बहुत किये।
हमने प्रभाकर और दूसरे साथियों से साफ साफ कहा है कि पहले पहचान राजनीति के तिलिस्म तोडना का काम है तो जाति उन्मूलन के एजंडे को हम नये सिरे से अंबेडकरी आंदोलन की दिशा बना सकतेहैं।जोराज्यतंत्र बदलने की बुनियादी शर्त है।
हमने प्रभाकर और दूसरे साथियों से साफ साफ कहा है कि पहले भारतीय आवाम को जोड़ने की चुनौती है,देश बेचो ब्रिगेड के हाथों हलाल हो रही सोने की चिड़िया को रिहा करने की चुनौती है और हर सूचना जानकारी से जनता को आगाह करने की जिम्मेदारी है।संगठन तो हमने सारे देख लिए,अब मेहनतकश आवाम को लामबंद करने की बारी है।
दक्षिणात्य के साथियों ने जब हमने उनसे कहा कि हम तमिल तेलुगु मलयालम और कन्नड़ में लिख नहीं सकते तो बोल भी नहीं सकते,हमसे वायदा किया है कि वे अपनी अपनी भाषाओं में संवाद जारी रखेंगे और परचा,बुलेटिन वगैरह के साथ जनता के बीच जायेंगे।बाकी देश से भी हम ऐसा वायदा चाहते हैं।
एक बात साफ करने की बेहद जरुरत है कि बाबासाहेब साम्यवाद के खिलाफ नहीं थे।शुरु आत उन्होंंने वर्कर्स पार्टी बनाकर की।वे भारतयी साम्यवादी आंदोलन में नस्ली जाति वर्ण वर्चस्व के खिलाफ थे,जिसे बहाल रखने की गरज से वामपक्ष के नेताओं ने अंबेडकर पर वामपक्ष के मंच से किसी संवाद की गुंजाइश ही पैदा नहीं होने दी और वामपक्ष ने हमेशा के लिए बहुजनों को हिंदुत्व के शिकंजे में फंसे फासीवादी हिंदू जनसंहारी नस्ली साम्राज्यवाद की पैदल सेना बनने की राह बना दी।
बाहैसियत ब्रिटिश राज के लेबर मनिस्टर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने सबसे पहले तबतक गैरकानूनी हड़ताल और आंदोलन के ट्रेड यूनियनों के अधिकार को वैध बनाया और श्रमिकों के काम के घंटे,मातृत्व अवकाश से लेकर स्थाई नौकरी की गारंटी जैसे कानून उनने ब्रिटिश सरकार के लेबर मिनिस्टर की हैसियत से ही बनवाये।
बाबासाहेब वंचितों को पहचान की दृष्टि से न देखकर वर्गीय दृष्टिकोण से देखते थे और न सिर्फ जाति उन्मूलन का एजंडा उनकी राजनीति और आंदोलन का प्रस्थानबिंदू रहा है,वे वंचित वर्ग कहकर बहुजनों को संबोधित करते थे।बहुजन शब्द तो मान्यवर कांशीराम जी का है।
वंचितों को जातिनाम से अंबेडकर ने संबोधित नहीं किया और न जात पांत की राजनीति उनकी देन है जैसा कि वामपक्ष के कैडरों और समर्थकों में आम गलतफहमी है और जैसे की इस देश के सवर्णों और पिछड़ों को भी गलतफहमी है कि बाबासाहेब सिर्फ दलितों के नेता रहे हैं।
संघ परिवार का एक हिसाब से धन्यवाद करना चाहिए कि पिछड़ों और सवर्णों में बाबासाहेब के प्रति घृणा भाव खत्म करने की पहल उसने की लेकिन विधर्मियों के खिलाफ उससे भी भयंकर घृणा अभियान चलाकर अंबेडकर को गलवलकर,गोडसे और वीरसावरकर बनाने के हिंदुत्व के समावेशी साफाया एजंडे के तहत।
दूसरी तरफ हकीकत यह है कि बहुजन पक्ष ने अंबेडकरी आंदोलन को पहचान में सीमाबद्ध करके जाति उन्मूलन एजंडे के बजाय अपनी अपनी जाति मजबूत करने की राजनीति से इस गलतफहमी को वैध शिकायत बना दिया है।विडंबना है कि जाति व्यवस्था में नरक जी रहेबहुजन ही बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे के खिलाफ अपनी अपनी जाति को मजबूत करके बहुजनों के सारे हक हकूक कब्जाने का गृहयुद्ध लडने में इतने मशगुल हैं कि मनुस्मृति वर्ण वर्चस्वी सत्ता को बदलने का उनका कोई इरादा नही है।जो बाबासाहेब का अंतिम लक्ष्य रहा है।
यह भी ध्यान देने का मामला है कि जाति पहचान के आधार पर आरक्षण का श्रेय बाबासाहेब को नहीं है।जैसा कि सबसे बड़ा मिथ है। जिस कारण बाबासाहेब का समर्थन और विरोध की यह अंध राजनीति आत्मघाती है।
बाबासाहेब ने दलितों के लिए अपने प्रतिनिधि चुनने का स्वतंत्र मताधिकार मांगा था।जिसपर सुनवाई के लिए साइमन कमीशन भारत आया तो कांग्रेस ने प्रचंड आंदोलन करके पहले तो साइमन कमिशन को खदेड़ दिया और फिर अंबेडकर की स्वतंत्र मताधिकार की मांग को हिंदू समाज के विभाजन की साजिश बताकर गांधी इसके खिलाफ आमरण अनशन पर बैठ गये।
तो उनका अनशन खत्म करने के लिए जो माहौल बना उसमें बाबासाहेब को पुण करार पर दस्तखत करना पड़ा,जिसकी उपज आरक्षण है स्वतंत्र मताधिकार के बदले।
भारतीय संविधान सभा ने पुणे करार को ही बहाल रखा और आरक्षण के गर्भ से अनुसूचितों की नई पहचान मिली।लेकिन वह आरक्षण अब संपूर्ण विनिवेश,संपूर्ण निजीकरण के रोजगार छीनो परिवेश में सिर्फ राजनीतिक आरक्षण तक सीमाबद्ध है,जिसके तहत वर्ण वर्चस्वी नस्ली वर्गीय सत्ता बहुजनों के उम्मीदवार तय करके अपने राजकाज के लिए बहुजनों के नुमाइंदे चुनते हैं।बहुजनों को अपने नुमाइंदे चुनने का मताधिकार तो है लेकिन वे सत्ता तबके के हितों के मुताबिक उन्हींके पक्ष के,उन्हींके हितों के उम्मीदवारों में से किसी को चुनने को मजबूर है।जो बहुजनों के सफाये में स्तावर्ग से ज्यादा सक्रिय नवब्राह्मण केसरिया बजरंगी हैं इन दिनों।
कल प्रभाकर ने मुझसे सीधे पूछा कि क्या नेताजी सुभाषचंद्र बोस फासिस्ट थे जो फासिस्ट हिंदू साम्राज्यवादी संघ परिवार उनको ईश्वर बना रहा है और उनके अंतर्धान रहस्य का खुलासा करने पर तुला हुआ है। नेहरुवंश के सफाये के लिए।
हमने कहा कि वे नेताजी को वैसे ही ईश्वर बना रहे हैं जैसे वे बाबासाहेब को ईश्वर बना रहे हैं शत प्रतिशत हिंदुत्व के एजंडे के तहत।
हमने अपनी समझ उनसे साझा किया कि नेताजी फासिस्ट हरगिज नहीं थे। हिटलर से नेताजी की मुलाकात और जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज के गठन के जरिये ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जो खुले युद्ध की शुरुआत की तो वामपक्ष ने उन्हें जो गद्दार घोषित कर दिया,उसे हमारे कामरेड भी अब ऐतिहासिक भूल मानने लगे हैं।
यह समझने वाली बात है कि नेताजी कुल मिलाकर गांधीवादी थे।जैसे वे कम्युनिस्ट नहीं थे वैसे ही वे फासिस्ट भी नहीं थे।
यह अब साबित हो चुका है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद से गांधी के नेताजी की जीत को अपनी हार बताये जाने से उनके इस्तीफे की दुर्घटना के बावजूद गांधी से नेताजी के संबंध नेहरु और पटेल से कम मधुर नहीं थे और नेताजी ने गांधी का कभी कोई विरोध नहीं किया।
गांधी भारत का प्रधानमंत्री नेहरु को बनाना चाहते थे और इसके लिए ऐन मौके पर उनने पटेल को भी मैदान से हटा दिया तो जाहिर है कि नेताजी को वे नेहरु के मुकाबले समांतर सत्ता केंद्र बनने देने के खिलाफ थे।बात इतनी सी है और इससे नेताजी या पटेल का गांधीवादी अवस्थान बदला नहीं।
नेताजी के लिए देश की आजादी सर्वोच्च प्राथमिकता थी और उन्हें इसका अहसास हो गया था कि बिना युद्ध के यह आजादी मिलने वाली नहीं है।तो अंग्रेजों के प्रबलतम शत्रु हिटलर से मदद लेने की उनने कोशिश की।
हिटलर से उनकी मुलाकात सुखद नहीं रही क्योंकि वैचारिक तौर पर नेताजी फासिस्ट नहीं थे। हिटलर ने उनकी किसी भी तरह की मदद नहीं की ,सिर्फ उनने नेताजी को सुरक्षित जर्मनी से जापान निकल जाने की इजाजत दी।
नेताजी और हिटलर में कोई समझौता नहीं हुआ।न ही आजाद हिंद और भारत की संप्रभुता दांव पर लगाकर नेताजी ने जापान से कोई समझौता किया।
हाल में जब हम निसार अली और रवि जी के साथ सेवाग्राम गये तो हमें नेताजी का वह संदेश दिखाया गया जो भारत में आजाद हिंद फौज के प्रवेश की अनुमति के लिए गांधी को नेताजी ने भेजा था। नेताजी के गांधीवादी होने और फासिस्ट न होने का इससे बड़ा कोई सबूत हो नहीं सकता।
नेताजी गांधी को भारत देश का प्रथम नागरिक मानते थे और बर्मा सीमा होकर भारत में प्रवेश के लिए बाहैसियत आजाद हिंद के सर्वाधिनायक उनने गाधी जी से अनुमति मांगी।उनके गांधीवादी होने का यह जीता जागता प्रमाण है। फासिस्ट न होने का भी।
प्रभाकर ने फिर पूछा कि क्या नेताजी बंगाल के मौजूदा सत्तावर्ग की तरह ब्राह्मणवादी थे।
हमने कहा,नहीं।उस वक्त तो बंगाल में 1905 के बंग विभाजन के विरोध की बांग्ला राष्ट्रीयता की हवा थी। भारत विभाजन से पहले बंगाल के विभाजन का फैसला लेकर ही बंगाल में ब्राह्मणवादी सत्ता का जन्म हुआ और नेताजी उससे पहले भारत की राजनीति से बाहर हो चुके थे।
प्रभाकर का अगला सवाल था कि क्या नेताजी अंबेडकर के संपर्क में थे।
हमारी जानकारी के मुताबिक हमने कहा, नहीं।लेकिन हमने कहा कि बाबासाहेब के बंगाल में सबसे बड़े अनुयायी जोगेंद्र नाथ मंडल,जिन्होंने पाकिस्तान का संविधान लिखा,जिन्होंने बंगाल से जितवाकर अंबेडकर को संविधान सभा में भेजा, नेताजी ने कोलकाता नगरनिगम के मेयर बनने के बाद उन जोगेंद्र नाथ मंडल को पूर्वी बंगाल के बरिशाल से बुलाकर अछूतों को कोलकाता नगर निगम के कामकाज में प्रतिनिधित्व देने की गरज से परिषद मनोनीत किया।
हमने प्रभाकर से कहा कि राजनीतिक सामाजिक यथार्थ बहुआयामी होते हैं,उन्हें सपाट सरलीकरण वर्गीकरण के रास्ते परखा नहीं जा सकता।
गांधी के साथ मतविरोध होने के बावजूद अंबेडकर से उनका निरंतर संवाद रहा है।
अंबेडकर को हर संभव तरीके से संविधानसभा में न पहुंचने देने के प्रयासों के बाद जब वे संविधानसभा में बंगाल से पहुंच गये तो उन्हीं अंबेडकर को कांग्रेस ने संविधान मसविदा कमेटी का चेयरमैन बनवाया। तो अंबेडकर भारत के कानून मंत्री भी बने नेहरु मंत्रिमंडल में।हिंदू कोड बिल पर नेहरु के विरोध के चलते फिर उन्हीं अंबेडकर ने नेहरु मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया।
जाहिर है कि यह संवाद एकपक्षीय नहीं रहा है।गांधी और नेहरु के साथ साथ अंबेडकर की भी पहल रही है।
विडंबना यह है कि मेहनतकश आवाम के सबसे बड़े मसीहा से वामपक्ष के किसी संवाद का कोई लेखा जोखा कम से कम मेरे सामने नहीं आया।
यह सच है कि बाबासाहेब साम्यवाद का विरोध न करने के बावजूद भारतीय साम्यवादी आंदोलन के नेतृत्व को ब्राह्मणवादी मानते रहे हैं।सो, बाबासाहेब अंबेडकर तो गांधी और नेहरु समेत समूचे कांग्रेस नेतृत्व को भी ब्राह्मणवादी मानते रहे हैं। कांग्रेस से संवाद निरंतर जारी रहा लेकिन बाबासाहेब से क्यों वामपक्ष का संवाद नहीं हो सका.यह नेताजी के अंतर्धान रहस्य से बड़ा रहस्यहै कमसकम मेरे लिए।
हकीकत यह है कि कांग्रेस ने सत्ता समीकरण के मुताबिक बहुजनों को साधने के लिए निरंतर बाबासाहेब से संवाद जारी रखा और उनके साथ सत्ता शेयर करने की कोशिशें भी जारी रखीं।
उसी रणनीति को नयेतरीके से आजमा रहा है संघ परिवार।लेकिन वामपक्ष को बहुजनों की कोई परवाह ही नहीं है।
जाहिर है,वामपक्ष निरंतर बहुजनों को उपेक्षित करता गया और अंबेडकर को कोई भाव हीं नहीं दिया।
कामरेडों ने बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे को भारतीय आवाम के वर्गीय ध्रूवीकरण के नजरिये से देखा ही नहीं क्योंकि वे जाति व्यवस्था को राजनीतिक परिवर्तन और राज्यतंत्र में बदलाव के लिए सबसे बड़ा अवरोध बतौर चिन्हित करने में सिरे से फेल रहे हैं वामपंथी।
दूसरी ओर,वामपक्ष ने बहुजनों को पार्टी संगठन और नेतृत्व में उचित प्रतिनिधित्व देने से साफ इंकार करता रहा है।इसके विपरीत संघ परिवार ऐसा ही करके बहुजनों को जीत लिया है और मोदी को प्रधानमंत्री बनाकर संघ हिंदू राष्ट्र बना ही चुका है भारत को।हमारे वामपक्षीय नेतृत्व के अंधत्व पर आज का फासीवाद मुकम्मल सामाजिक यथार्थ है।
हाल में बहुजनों के प्रतिनिधित्व की मांग मांग करने वाले तमाम पुरातन कम्युनिस्ट मसलन रेज्जाक मोल्ला जैसे तेबागा समय से दशकों के किसान आंदोलन के राष्ट्रीय सिपाहसालार को पार्टी ने दूध में से मक्खी की तरह निकाल बाहर किया।फिर पूछा तक नहीं।कामरेड सोमनाथ चटर्जी का किस्सा आंतरिक लाकतंत्र का हाल बयां करता है।
इसी तरह से वामपक्ष ने गायपट्टी कहकर हिंदी प्रदेशों की घनघोर उपेक्षा लगातार की और हिंदी प्रदेशों के परंपरागत वाम जनाधार एक के बाद एक टूटते चले गये।
येचुरी से पहले माकपा के कामरेड महासचिववृंद हिंदी में संवाद करने को अभ्यस्त न थे और पोलित ब्यूरो से लेकर केंद्रीय कमेटी तक में हिंदी सिरे से अनुपस्थित रही है।
हिंदी प्रदेशों में वाम निष्क्रियता हमारी समझ से राम रथयात्रा का राजमार्ग बनाने में सबसे बड़ा कारक है और इस पर हमारे कामरेडों को आत्मालोचना करनी चाहिए कि हिंदी और बहुजनों से संवादहीनता की वजह से इन तबकों का हिंदूकरण निर्विरोध हो गया और भारतीय जनता कांग्रेस के हिंदुत्व से मोहभंग की स्थिति में कोई दूसरा विकल्प न मिलने की वजह से संघ परिवार के फासीवादी हिंदू सम्राज्यवाद की शरण में चली गयी।
कल ही विशाखापत्तनम कांग्रेस के आखिरी दिन जेएनय़ू पलट सीताराम येचुरी जेएनयूपलट प्रकाश कारत के स्थान पर नये कामरेड महासचिव निर्विरोध चुने गये बुद्धदेव विमान बोस की अगुवाई में बंगाल के कामरेडों और केरल के बागी पूर्व मुख्यमंत्री कामरेड वीएस अच्युत्यानंदन के सक्रिय समर्थन से।कामरेड प्रकाश कारत कामरेड रामचंद्र पिल्ले के साथ थे और उन्होंने ही कामरेड पिल्लै को मैदान से हटाकर खुद येचुरी को महासचिव बनाने की पेशकश कर दी।
बहरहाल कारपोरेट मीडिया बेहद खुश है येचुरी के महासचिव बनने से ।बंगाल के कामरेडों से कम या ज्यादा कहा नहीं जा सकता।उनकी प्रोफाइल पर हेडलाईन यह बना दी गयी कि वे विचारधारा किसी के माथे पर पटककर नहीं मारते।
गौरतलब है कि कामरेड सुरजीत किसान नेता थे और जब महासचिव बने तो वे भी कामरेड नंबूदरीपाद की तरह कट्टर विचारधारा वाले माने जाते रहे हैं।
कामरेड नंबूदरीपाद से धनबाद में हमारी लंबी बहस हुई थी आठवें दशक की शुरुआत में।तब न भोपाल गैस त्रासदी हुई थी,न सिखों का संहार हुआ था।रामलीला भी कायदे से शुरु नहीं हुई थी।
तब भाकपा के आपातकालीन भूमिका से कामरेड नंबूदरीपाद बेहद नाराज थे और उनके मुताबिक संघ परिवार और कांग्रेस दोनों समान रुप से सर्वहारा तबके के दुश्मन थे।जबकि सुरजीत और येचुरी भी कांग्रेस को धर्मनिरपेक्ष मानकर उनके साथ हानीमूल के पक्ष में हैं।
कामरेड नंबूदरीपाद हम जैसे अभी अभी विश्वविद्यालय से निकले नये पत्रकार के साथ बहस में भी वैचारिक और रणनीतिक सवालों पर बेहद उत्तेजित थे और उत्तेजना में खूब तुतला भी रहे थे।लेकिन पार्टी लाइन पर उनकी खूब स्पष्टता थी जो एक युवा पत्रकार के सामने रखने से वे हिचके नहीं।हर सवाल का उनने जवाब दिया।बल्कि हमारे सवालों से झारखंडी कामरेडवृंद ज्यादा परेशान थे।
उसके बाद किसी कामरेड महासचिव से आमना सामना नहीं हुआ।
बंगाल के शीर्षस्थानीय कामरेडों से बातचीत तो खूब होती रही है।लेकिन वैचारिक बहसें नहीं हुई कभी।
कायदे से कामरेड कारत और कामरेड येचुरी के साथ बातें करने की हमारे लिए गुंजाइश बहुत ज्यादा थीं।लेकिन वे बातें हुई नहीं।
ऐसा भी नहीं लगा कि जबसे नवउदारवाद की संतानों ने सत्ता पर अपना वर्चस्व कायम किया है,तबसे लेकर वामपक्ष में कोई वैचारिक बहस कहीं चल रही है।वापक्ष में मुकम्मल सन्नाटा है।
गौरतलब है कि कामरेड सुरजीत के कार्यकाल से जो सत्ता समीकरण तक वाम जनपक्षधरता सिमट गयी तो भूमि सुधार का उनका एजंडा हाशिये पर चला गया और देशभर में क्षत्रपों से समझौते की कीमत पर वाम जनाधार घटते घटते हाशिये पर चला गया।
फिरभी अब भी उत्पादक और सामाजिक संगठनों में वाम सक्रियता संघ परिवार के मुकाबले भी बहुत ज्यादा है।
कामरेड येचुरी निःसंदेह संसदीय राजनीति में कामरेड सोमनाथ चटर्जी की तरह परिपक्व हैं ,जिनने सबसे पहले येचुरी के महासचिव बनने के बाद इसका स्वागत करते हए वाम राजनीति के कायाकल्प होने की उम्मीद जतायी है।
हमें पक्का यकीन है कि येचुरी संसदीय राजनीति में कामयाब होगे और जो उनकी सबसे बड़ी चुनौती बतायी जा रही है,बंगाल और केरल में जनाधार की वापसी,वह करिश्मा कर दिखाने में भी वे सक्षम है।
हम तो यह देखना चाहते हैं कि भारतीय मेहनतकश वाम अवाम मेहनतकश आवाम का रहनुमा बनने की चुनौती कामरेड महासचिव मंजूर करते हैं या नहीं।
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Navshakti-5 घंटे पहले
विशाखापट्टणम, दि. 19 (वृत्तसंस्था) - संसदेतील प्रभावी वक्ते आणि डाव्या विचारसरणीचा `बुलंद' आवाज असलेले कम्युनिस्ट नेते सीताराम येचुरीयांची मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पक्षाच्या सरचिटणीस या सर्वोच्चपदी आज एकमताने निवड करण्यात ...
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दैनिक जागरण-16/04/2015
महाभियोग चलाने के प्रस्ताव का समर्थन करने वाले सांसदों में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, माकपा नेता सीतारामयेचुरी, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, समाजवादी पार्टी के राम गोपाल यादव और जया बच्चन शामिल हैं। प्रस्ताव ...
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देशबन्धु-16/04/2015
विशाखापत्तनम। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने जनता दल परिवार के विलय का स्वागत किया है और विपक्ष की एकता की दिशा में एक अच्छा कदम बताया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरीने एक चैनल को दी गई भेंटवार्ता में कहा कि ...
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Nai Dunia-15/04/2015
... सम्मेलन मंगलवार को यहां शुरू हुआ। दस साल तक पार्टी महासचिव के पद पर रहने के बाद प्रकाश करात सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उनके उत्तराधिकारी के तौर पर पोलित ब्यूरो सदस्य और राज्यसभा सदस्य सीताराम येचुरीका नाम सबसे आगे चल रहा है।
अब माकपा ऊंची जातियों का क्लब नहीं रहेगी
Oneindia Hindi-15/04/2015
विस्तृत रूप से एक्सप्लोर करें (3 और लेख)
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Sahara Samay-17/04/2015
इसके लिए हिंदी क्षेत्र में एकीकृत जनता-परिवार से मोर्चा बनाने की जरूरत होगी. खुद आगामी महासचिव सीताराम येचुरीने कहा है कि ऐसा मोर्चा बनाने की संभावना खोजी जाएगी. लेकिन अब तक का अनुभव बताता है कि अपनी स्वतंत्र ताकत के ...
दैनिक जागरण-02/04/2015
यह बात सीपीआइ (एम) पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरीने कही। वे स्थानीय सीपीआइ (एम) के राज्य मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। येचुरी ने कहा कि इसी तरह जमीन अधिग्रहण बिल का बीजद समर्थन करेगी या विरोध ...
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Loksatta-12 घंटे पहले
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पक्षाच्या सरचिटणीसपदी ज्येष्ठ नेते सीताराम येचुरीयांची निवड झाली. माकपचे एकविसावे ... अधिवेशन म्हणजे भविष्य आहे व पक्षाचे व देशाचे भवितव्य आहे असे येचुरी यांनी सांगितले. आपले काम डाव्या व ...
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Nai Dunia-05/04/2015
उन्होंने अपने संबोधन के दौरान कामरेड सीताराम येचुरीका चार-पांच बार जिक्र किया, साथ ही बताया कि संघ को लेकर प्राय: उनके पेट में दर्द होने लगता है। समन्वय भवन के खचाखच भरे हाल में सिन्हा का संबोधन करीब पौने दो घंटे चला।
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दैनिक जागरण-28/03/2015
जागरण संवाददाता, जम्मू : माकपा सांसद सीताराम येचुरीने भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सत्ता के लालच में आकर ये अलग-अलग विचारधाराओं वाले इन दलों ने गठबंधन किया है, जो राज्य के लोगों के हित में ...
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Zee News हिन्दी-28/03/2015
राज्यसभा सदस्य सीताराम येचुरीने संवाददाताओं से कहा, 'हम मौजूदा प्रारूप में विधेयक का समर्थन नहीं करेंगे, लेकिन अगर हमारी सभी चिंताओं का ख्याल रखा जाता है तो उसके बाद ही हम इस पर विचार करेंगे।' माकपा पोलितब्यूरो सदस्य ने ...
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आज तक-24/03/2015
देश के सियासी नक्शे पर सबसे ऊंची हैसियत रखने वाली रायसीना पहाड़ी पर सोनिया के साथ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जेडी (यू) अध्यक्ष शरद यादव, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी, सपा महासचिव रामगोपाल यादव और एनसीपी के प्रफुल्ल ...
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Pradesh Today
दैनिक भास्कर-25/03/2015
नोटिस पर दस्तखत करने वालों में दिग्विजय सिंह (कांग्रेस), सीताराम येचुरी(माकपा), डेरेक ओ-ब्रॉयन (तृणमूल कांग्रेस), राम गोपाल यादव व जया बच्चन (सपा), सतीश मिश्रा (बसपा) अनु आगा और एचके दुआ शामिल हैं। क्या है मामला? सेशन कोर्ट ...
सेक्सी डांस की डिमांड पर अब जवाब देंगे जस्टिस ...
Pradesh Today-25/03/2015
विस्तृत रूप से एक्सप्लोर करें (4 और लेख)
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आईबीएन-7-28/03/2015
सीपीएम नेता सीताराम येचुरीके मुताबिक आम आदमी पार्टी में मचे घमासान को लेकर सोशल मीडिया में भी खूब टीका टिप्पणी हो रही है। बीजेपी की यूपी इकाई ने एक ट्वीट में लिखा है। जिस तरह कांग्रेस में कोई गांधी परिवार के खिलाफ ...
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प्रभात खबर
Zee News हिन्दी-23/03/2015
माकपा नेता सीताराम येचुरीके अनुसार पाकिस्तान की ओर से दिए जा रहे 'संकेतों' तथा जिस प्रकार केंद्र प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है, स्थिति 'और बिगड़' सकती है। नेशनल कांफ्रेंस ने कहा कि बातचीत सुलह के लिए है लेकिन केंद्र को यह ...
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Zee News हिन्दी-24/03/2015
माकपा नेता सीताराम येचुरीने फैसले को 'बड़ी राहत' करार देते हुए कहा कि इस प्रावधान का गलत इस्तेमाल कुछ लोगों से राजनीतिक बदला लेने के लिए किया गया जिसे कतई सही नहीं ठहराया जा सकता। इस बीच, जानेमाने फिल्म अभिनेता कमल ...
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दैनिक जागरण-28/03/2015
माकपा के पोलित ब्यूरो के सदस्य और राज्यसभा के सदस्य सीताराम येचुरीने संवाददाताओं से जम्मू में कहा कि आप में चल रही लड़ाई अंदरूनी है और पार्टी को हर हाल में उन्हें समाधान करना होगा ताकि दिल्ली की जनता का नुकसान न हो।
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maharashtra times-7 घंटे पहले
सीताराम येचुरीहे मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पक्षात सक्रीय झाले ते विद्यार्थी चळवळीतून. मूळचे आंध्र प्रदेशचे असलेले येचुरी यांचे शालेय व महाविद्यालयीन शिक्षण हे काकीनाडा व हैदराबाद येथे झाले. पुढे पदव्युत्तर ...
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Lokmat-10 घंटे पहले
विशाखापट्टणम : भविष्यात माकप व भाकप या दोन पक्षांचे विलीनीकरण नक्की होईल; परंतु हे विलीनीकरण नेमके केव्हा होईल, हे मात्र सांगता येणार नाही, असे माकपचे नवनिर्वाचित सरचिटणीस व ज्येष्ठ नेते सीताराम येचुरीयांनी म्हटले ...
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आर्यावर्त-09/03/2015
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरीने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यंग्य पर पलटवार कर उन्हें आईना दिखा दिया. येचुरी ने दिल्ली विधानसभा के हाल ही में हुए चुनाव में बीजेपी की करारी हार और संसद ...
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देशबन्धु-07/11/2014
पटना ! माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) पोलित ब्यूरो के सदस्य और सांसदसीताराम येचुरीने कहा, देश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए समाजवादी दलों में एकता प्रयास सराहनीय है लेकिन वामपंथी दलों के बिना ...
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Webdunia Hindi-05/09/2013
सीपीआई नेता और पार्टी के ससंदीय ग्रुप के नेता सीतारामयेचुरीका जन्म 12 अगस्त 1952 को तमिलनाडु के चेन्नई में हुआ था। जन्म के तुरंत बाद वे हैदराबाद चले गए, जहां से उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वे आगे की ...
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एनडीटीवी खबर-26/10/2014
पार्टी महासचिव प्रकाश करात और वरिष्ठ पोलित ब्यूरो नेता सीताराम येचुरीके बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं। दिल्ली में सीपीएम की सेंट्रल कमेटी की बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरीने बहस के लिए एक दस्तावेज़ अलग ...
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आईबीएन-7-26/02/2015
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नेता सीताराम येचुरीने नरेंद्र मोदी की सरकार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सरकार करार दिया और भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर उस पर निजी व्यापार के हितों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
आज तक-11/12/2014
इसी सवाल पर सीताराम येचुरीने कहा कि जो लोग जबरदस्ती धर्मांतरण करवा रहे हैं वे ही कह रहे हैं कि इसके खिलाफ कानून लाना चाहिए. मैं कम्युनिस्ट हूं, नास्तिक नहीं. धर्म आत्मा और परमात्मा के बीच का संबंध है. इसके चुनाव का अधिकार ...
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आईबीएन-7
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दैनिक जागरण
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Zee News हिन्दी
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अमर उजाला
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Rajasthan Patrika
विस्तृत रूप से एक्सप्लोर करें (45 और लेख)
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Oneindia Hindi-16/03/2015
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) एक दौर में जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी स्टुडेंट यूनियन (जेएनयू) के अध्यक्ष रहे सीताराम येचुरीमार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव बनने जा रहे हैं। हालांकि वर्तमान महासचिव प्रकाश करात ...
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आज तक-03/03/2015
प्रधानमंत्री के इस बयान पर सीपीआई(एम) के सीताराम येचुरीने घोर आपत्ति जताई. 9. प्रधानमंत्री ने कहा कि 'मेक इन इंडिया' से रोजगार बढ़ेगा. पिछली सरकार की नीतियों के चलते चेन्नई में नोकिया फैक्ट्री बंद हो गई. हमारी सरकार इस मसले ...
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Patrika-13/03/2015
जयपुर। राजधानी समेत प्रदेशभर में संचालित निजी छात्रावासों को महंगी दर पर बिजली देने के लिए राजस्थान डिस्कॉम ने तैयारियां शुरू कर दी है। राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग के आदेश का हवाला देते हुए डिस्कॉम ने सभी फील्ड ...
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Rajasthan Patrika-16/03/2015
केजरीवाल ने अस्पताल के कत्र्ताधत्र्ता सीतारामजी को बधाई देते हुए कहा कि उन्होंने इतना बढिया संस्थान स्थापित किया और यहां बहुत बेहतर ढंग से इलाज किया जाता है। भारत मैट्रीमोनी - भारत की सबसे भरोसेमंद मैट्रीमोनी सेवा।
केजरीवाल की खांसी और शुगर में सुधार, जल्द ...
दैनिक जागरण-13/03/2015
विस्तृत रूप से एक्सप्लोर करें (149 और लेख)
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Patrika-10/03/2015
जयपुर। भाजपा विधायक दल की विधानसभा में मंगलवार को हुई बैठक में दो विधायकों ने खुलकर नाराजगी जताई। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की अध्यक्षता में हुई बैठक में एक विधायक ने नगरीय विकास मंत्री की शिकायत की तो दूसरे ने बिजली की ...
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आज तक-03/03/2015
राष्ट्रपति के अभिभाषण में संशोधन का प्रस्ताव राज्यसभा से पास हो गया है. कालेधन पर सीताराम येचुरीने संशोधन प्रस्ताव रखा था. इस प्रस्ताव के पक्ष 118 वोट पड़े, जबकि विपक्ष में 57 वोट पड़े. इससे पहले विवादास्पद भूमि अधिग्रहण ...
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दैनिक जागरण-14/03/2015
ठाणे। सरकार और पुलिस प्रशासन के लाख प्रयासों के बाद भी जिस्मफरोशी का धंधा जोरों से रचबस रहा है। मुंबई के डांस बार चलन से तो आप वाकिफ ही होंगे। डांस बारों पर प्रतिबंध लगने के बाद से इस धंधे से जुड़े लोगों ने अपने धंधे की जमीन ...
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Rajasthan Patrika-19/03/2015
... मगर उन्हें देखना खूबसूरती का सम्मान' · देश का किसान और गरीब डरा हुआ है: राहुल · महासम्मेलन: सीताराम येचुरीबने CPM के नए महासचिव · अन्नदाता की दुर्गति, हर रोज 7 किसान कर रहे आत्महत्या · भाजपा सांसदों की क्लास में बोले मोदी, ...
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Patrika-19/03/2015
सीताराम येचुरीचुने गए माकपा के नए महासचिव प्रकाश करात पार्टी के महासचिव के रूप में अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं. Political ». Staring woman is a crime, but to watch them is a appreciation of beauty: त्यागी का विवादित बयान, महिलाओं ...