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पारो का अवसान

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पारो का अवसान

पलाश विश्वास

कथा देवदास के आत्मध्वंस केंद्रित है।पुरुषवर्चस्व की कथा में पारो देवदास की छाया है।उसी छाया में ही उसका वजूद है।


देवी चौधुरानी के तौर पर पारो को कभी कभार राज करने का मौका मिलता जरुर है,पर अमोघ पुरुषत्व में उसका आत्मसमर्पण ही कथा का चरमोत्कर्ष है।


सुचित्रा सेन ने  न  सिर्फ परदे पर दिलीपकुमार जैसे किंवदंती के साथ श्वेत श्याम विषाद के अटूट परिवेश में पारो होकर जिया है,बल्कि आजीवन उस पारो के किरदार को जीती रहीं।मरी भी  सुचित्रा सेन का नहीं,पारो का अवसान है यह।


आज अंततः मृत्यु में पारो का अवसान हो गया।देवदास के अंत के बाद पारो का क्या हुआ,किसी को खबर नहीं थी,कम से कम हमें जीती जागती पारो का जीवन संघर्ष मालूम है।यह कथा की विरासत तोड़ने का तात्पर्य है।वह 26 दिन से अस्पताल में भर्ती थीं। उनकी हालत गुरुवार रात को ज्यादा बिगड़ गई थी।


रीति और परंपरा तोड़कर परिजनों और चिकित्सकों के बजाय बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महानायिका के तिरोधान की घोषणा कर दी और वे ही राजकीय अंत्येष्टि का इंतजाम कर रही हैं।लगातार वे पिछले हफ्ते दो दो घंटे राजकाज को तिलांजलि देकर पारो के अवसान की इस घड़ी का इंतजार करती रहीं।पारोकथा का यह राजनीतिक  गिद्ध प्रसंग भी है।


काठ के ताबूत में भले ही जनता अपनी प्रिय महानायिका का दर्शन से वंचित हो और दर्शनार्थियों को भले ही नंदन में जाकर उनके चित्र पर माल्यार्पण करके संतोष करें,सत्ता और राजनीति के इस सदर्प हस्तक्षेप से महानायिका  का कितना सम्मान हुआ और उनकी गोपनीयता व निजता की कितनी रक्षा हो पायी,यह मामला सघन शोक पर्यावरण में अभी से विवादित हो गया।लेकिन सत्ता और राजनीति को अमूमन इसकी कोई परवाह नहीं होती।वह तो विशुद्ध फार्मूलाबद्ध रसायन शास्त्र है दरअसल।


जब तक इस स्मृति तर्पण के मुखातिब होंगे आप जिंदगी की तरह काठ के ताबूत में बंद रक्त मांस की सुंदरतम कलाकृति श्मशानचिता के हवाले हो जायेंगी और मुट्ठी भर राख के अलावा उस अप्रतिम विभाजन पीड़ित सौंदर्यगाथा से कुछ भी हासिल नहीं होगा।


सह कलाकार उत्तम कुमार के अंतिम दर्शन के बाद एक गहरायी शाम को अपनी सार्वजनिक छवि को जिस गोपनीयता और निजता के अंतराल में महानायिका ने छुपा लिया और आजीवन उसका निर्वाह किया,उस गोपनीयता को सर्वशक्तिमान शाश्वत मृत्यु भी अंततः तोड़ नहीं सकी।वह टूट रही है कहीं तो उसकी जिम्मेदार विशुद्ध राजनीति है और सत्ता और राजनीति के समक्ष परिजनों का असहाय आत्मसमर्पण है।


पारो हारकर भी हारती नहीं कभी।


लोग सुचित्रा सेन के अभिनय में सौंदर्यपरिधान के दीवाने हैं,रहेंगे युग युगांतर तक।


मुंबई का बाबू फिल्म में भाई बने देवानंद के साथ गीत दृश्य में सुचित्रा का जो रोमांचक अवतार है,उसकी तुलना सिर्फ आवारा के स्वप्न दृश्य में राजकपूर नरगिस के स्क्रीन साझा या मधुबाला के कुछ विलक्षण पलों से ही की जा सकती है।


हमभी उस सौंदर्यबोध से निश्चय ही मुक्त नहीं है,लेकिन सुचित्रा के कलाजीवन में मुझे भारत विभाजन की शाश्वत पीड़ा की छाया मंडराती नजर आती है और इसलिए चाहे लाख दफा देवदास कथा पर फिल्म सुपर डुपर हजार करोड़िया हिट हो जाये,हमारी पारो वही सुचित्रा ही रहेंगी।


देवदास की वह विषाद कथा भारत विभाजन की कथा का भी सघन परिवेश है,जिसे सोलह साल की उम्र में विभाजन पीड़ित रमा ने उस पार बंगाल के पाबना के दिलालपुर गांव को छोड़ने के बाद कोलकाता पहुंचकर आदिनाथ सेन से सोलह साल की ही उम्र में विवाह हो जाने के बाद अपने सुचित्रा पुनर्जन्म में बार बार जिया है।


आज उनका पैतृक घर जमात के कब्जे में है और इस वक्त जमात के एकाधिकारवादी हमले में बांग्ला देश में अल्पसंख्यक जनजीवन बेदखल है सुचित्रा के पैतृक घर की तरह।


एकतरफा चुनाव जीतकर सत्ता के जोर से सुचित्रा सेन का वह घर दखलमुक्त जरुर हो सकता है,लेकिन विभाजन की त्रासदी से इस उपमहादेश के लोग सीमाओं के आर पार कभी मुक्त हो पायेंगे,ऐसा नहीं लगता।


हाल में हमने आजाद कश्मीर की मांग करने वालों से भी संवाद की कोशिशें की हैं।लेकिन उस संवाद को कायम नहीं रख पाये क्योंकि संवाद के लिए उनकी मांग है कि हम भारत से कश्मीर के अलगाव को पहले स्वीकार कर लें।वे बाकी देश से कोई संवाद इसी शर्त पर ही कर सकते हैं,ऐसा उनका दावा है।


सशस्त्रबल विशेषाधिकार कानून खत्म करने की हमारी मांग बहुत पुरानी है,कश्मीर में भी नागरिक अधिकार,मानवाधिकार और लोकतंत्र की बहाली के हर आंदोलन के साथ हैं और आजाद कश्मीर की मांग करने वालों की हर बात भारतीय जनता तक पहुंचाने के लिए भी हम बिना शर्त तैयार है,लेकिन एक देश भक्त भारतीय के नाते हम एक और विभाजन  को किसी कीमत पर स्वीकार कर नहीं सकते।


विडंबना है कि कश्मीर सिर्फ उस हिमालयी भौगोलिक ईकाई का नाम नहीं है,भारत विभाजन की जो स्थाई समस्या कश्मीर है,वैसा ही एक कश्मीर उस पार बंगाल मैं है।


जैसे कश्मीर के लिए भारतीयसेना को बार बार लड़ना पड़ा,वैसे ङी उसपार बंगाल के कश्मीर को आजादी देने की लड़ाई में शामिल होना पड़ा भारतीय सेना को। लेकिन रक्त की नदियों का बहना न उस पार बंद हुआ और न उसपार।


लेकिन कश्मीर समस्या के समाधान में सत्तावर्ग देशहित और जनहित को हाशिये पर रखकर बार बार हिमालयी भूल दोहराता है,लेकिन उसपार बंगाल के कश्मीर मसले को सुलझाने की पहल न भारत सरकार करती है और न उस कश्मीर में युद्धबंदी जनजीवन की परवाह इसपार बंगाल को है।देश के भीतर जो अनगिनत कश्मीर पैदा कर दिये गये हैं,उनकी चर्चा करके हम तो बार बार आपकी नींद में खलल डालते ही हैं।


उसी रक्त नदी का पर्याय जीती रही सुचित्र सेन।सुचित्रा के चेहरे पर,समूचे शरीर पर उस खून का नामोनिशान नहीं था,लोकिन उनके दिलो दिमाग में लगातार वह रक्त नहीं बहती रही है।शायद मृत्यु के पार भी वह उसी रक्त नदी में समाहित हैं।


सुचित्रा की फिल्में में निष्णात होने का हमारे लिए मतलब है विशुद्ध रक्तस्नान।मनोरंजन तो हर्गिज नहीं।नहीं।नहीं।नहीं।


इस महादेश की महात्रासदी को वे खामोशी से अपनी फिल्म दीप ज्वेले जाई की तरह जीती रहीं,जिस किरदार को खामोशी में जीने के बाद गाइड और तीसरी कसम की वहीदा एक मुकम्मल अभिनेत्री बन पायी।


त्रासदी यह है कि हमें अपने भीतर बाहर बहती उस अनंत रक्त नदी का अहसास तक नहीं है।इसी लिए यह देश न अब हमारे अंदर कहीं है और न बाहर है।जो है वह वंचितों पीड़ितों के अनंत आर्तनाद मध्ये मुक्तबाजार में नवधनाढ्य क्रयशक्ति का शीत्कार है या फिर अबाध एकाधिकारवादी आक्रामक पूंजी का अनंत अश्वमेधी उत्सव है।


सुचित्रा सेन के अवसान का एक मतलब वह कालसर्प अभिशाप भी है,जिसके तहत इस उपमहाद्वीप की नियति हजारों साल से जारी कुरुक्षेत्र युद्ध की निरंतरता है,निरंतर विभाजन है और अपने कश्मीर से लगातार लगातार अलगाव और संवादहीनता है।अपनी अपनी अस्मिता में कैद राष्ट्रद्रोह में निष्णात हो जाना है और फिर भी राष्ट्रगान गाना है।राष्ट्र झंडा को राजनीति में लहराना है।


पारो के अवसान के शोकमुहूर्त पर भी हम इस नियति से जूझने का उपाय करें तो पारो के दिलो दिमाग में बहते विभाजन पीड़िक कश्मीर ,पंजाब और बंगाल के विभाजन पीड़ित अभिज्ञता से गुजरना होगा.जो अंततः अभिनेत्री रमा सुचित्रा सेन की आत्म शक्ति है और बाकी सारी अभिनेत्रियों के मुकाबले वे इस तलस्मी रूपहले पर्दे को अलविदा कहकर गोपनीयता और निजता के साथ बत्तीस साल का एकांत जीवन कहने के बाद उसी उत्तुंग लोकप्रियता और उसी अटूट किंवदंती मध्य समाधिस्थ हो सकीं।


शरणार्थी कालोनी की अपह्रत अणिमा,जिससे हिंदी के दर्शकों का सामना न हुआ जैसे कि सुचित्रा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म सप्तपदी हिंदी में नहीं बनी,इसलिए हमारे लिए सुचित्रा के उस रुप का बखान करना मुश्किल है।


उत्तमकुमार के साथ जिस साढ़े चुआत्तर फिल्म में रमा की अप्रतिद्वंद्वी जोड़ी बनी और आज की हिरोइनों की तुलना में करीब करीब अपने दिलीप कुमार की तर्ज पर महज पैसठ फिल्म करके भारतीय फिल्म इतिहास की वह महानायिका बन गयी,उसमें भी वह शरणागत विभाजन पीड़ित परिवार की संघर्षरत युवती है।


पारो का विषाद और निजी जीवन में चिर गांभीर्य की इस पृष्ठभूमि में हम उन्हें अपने बेहद करीब महसूसते रहे हैं,कभी उनसे मिले बगैर।


শুক্রবার ভোর রাতে ম্যাসিভ হার্ট অ্যাটাকের পর মাল্টি অর্গান ফেলিয়র হয়। ডাক্তারদের হাজার প্রচেষ্টাতেও বাঁচানো যায়নি মহানায়িকাকে। তাঁর অন্তরালে থাকার সিদ্ধান্তকে সম্মান জানিয়ে অন্তেষ্টিক্রিয়ার পরবর্তী কাজ করা হল।


बांग्ला सिनेमा की महानायिका सुचित्रा सेन का कोलकाता के अस्पताल में आज निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थीं।


देर शाम 82 वर्षीय अदाकारा को सांस लेने में तकलीफ बढ़ गई थी। गुजरे जमाने की अदाकारा को श्वसन तंत्र में संक्रमण को लेकर 23 दिसंबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।


सुचित्रा का जन्म आज के बांग्लादेश के पाबना जिले में 1931 में हुआ था। इन्होंने 1952 में पहली फिल्म शेष कथा में अभिनय किया, लेकिन यह फिल्म रिलीज नहीं हुई। इसके अगले साल इनकी फिल्म '7 नंबर क़ैदी' आई। इसके बाद 1955 में विमल रॉय की बांग्ला फिल्म 'देवदास' में पारो का किरदार निभाया।


सुचित्रा सेन बंगाली सिनेमा की एक ऐसी हस्ती थीं, जिन्होंने अपनी अलौकिक सुंदरता और बेहतरीन अभिनय के दम पर लगभग तीन दशक तक दर्शकों के दिलों पर राज किया और 'अग्निपरीक्षा', 'देवदास' तथा 'सात पाके बंधा' जैसी यादगार फिल्में कीं।हिरणी जैसी आंखों वाली सुचित्रा 1970 के दशक के अंत में फिल्म जगत को छोड़कर एकांत जीवन जीने लगीं। उनकी तुलना अक्सर हॉलीवुड की ग्रेटा गाबरे से की जाती थी, जिन्होंने लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया था।


लेकिन अंतराल में जाने का बाद भी सिर्फ एकबार सहकलाकार उत्तम कुमार के निधन के बाद देर शाम अकेले में उनका अंतिम द्रशन करने चली आयी थी,फिर कभी वह सार्वनिक नहीं हुईं।


बॉलीवुड में भी इन्होंने कई फिल्में कीं। इसमें से फिल्म 'आंधी' की खासी चर्चा रही। सुचित्रा सेन को 1972 में पद्मश्री सम्मान मिला। 2012 में इन्हें पश्चिम बंगाल सरकार के सर्वश्रेष्ठ अवार्ड बंग भूषण से सम्मानित किया गया।


उनकी बेटी मुनमुन सेन ने बताया कि आज तड़के कोलकाता के अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।


बालीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने बंगाली सिनेमा की महान अभिनेत्री सुचित्रा सेन को अपनी श्रृद्धांजलि देते हुए कहा कि उन्हें उनकी सुदंरता, प्रतिभा, रहस्यों के लिये हमेशा याद किया जायेगा।


सुचित्रा सेन की नातिन राइमा और रिया सेन भी अभिनेत्री हैं। सुचित्रा बांग्ला और हिंदी फिल्मों में की स्टार अभिनेत्रियों में एक रही हैं। बांग्ला फिल्मों के सुपर स्टार उत्तम कुमार के साथ उनकी रोमांटिक जोड़ी मशहूर रही।


1952 में फिल्म 'शेष कोथाय' से अपना फिल्मी सफर करने वाली सुचित्रा पहली भारतीय अभिनेत्री थीं, जिन्हें अपने अभिनय के लिए किसी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में अवार्ड से नवाजा गया था।

ABP Anand Image

নিভল অগ্নিশিখা, চন্দনের চিতায় শেষকৃত্য সুচিত্রার

বেলা ৩টে: এখনও পর্যন্ত: চির অন্তরালে গেলেন মহানায়িকা। কেওড়াতলা মহাশ্মশানে চলছে তাঁর শেষকৃত্য। CR দাস পার্কে চন্দনের চিতায় দাহ করা হল তাঁকে। মুখাগ্নি করেন তাঁর মেয়ে মুনমুন সেন। তার আগে গান স্যালুটে শেষ শ্রদ্ধা জানানো হয়। তেইশে ডিসেম্বর শ্বাসকষ্ট এবং বুকে সংক্রমণ নিয়ে বেলভিউতে ভর্তি হয়েছিলেন মহানায়িকা। তারপর টানা ছাব্বিশ দিন তাঁকে বাঁচানোর লড়াই চালিয়ে গেছেন চিকিত্সকরা। আজ সকাল আটটা পঁচিশে ম্যাসিভ হার্ট অ্যাটাকে শেষ হয়েছে সব লড়াই। দুপুর সাড়ে বারোটা নাগাদ সুচিত্রা সেনকে নিয়ে বেলভিউ ক্লিনিক থেকে বের হয় শববাহী শকট। মহানায়িকাকে প্রথমে নিয়ে যাওয়া হয় তাঁর বালিগঞ্জ সার্কুলার রোডের বাড়িতে। সেখান থেকে গোলপার্ক রামকৃষ্ণ মিশন ঘুরে দেহ পৌছয় কেওড়াতলা মহাশ্মশানে।


১টা ৪৬: নিভল অগ্নিশিখা, মায়ের মুখাগ্নি করেলেন মেয়ে মুনমুন সেন।


১টা ২৫: কেওড়াতলায় শায়িত রয়েছে মহানানিয়ার দেহ


১টা ২২: গান স্যালুট দেওয়া হচ্ছে মহানায়িকাকে।


১টা ১৫: তাঁর ব্যক্তত্বের জুড়ি মেলা ভার। ওনার জন্য অনেক গান গেয়েছি। মাঝে মাঝে স্টুডিওতে দেখা হয়েছে। যখনই কথা বলতেন খুব ভদ্র ভাবে।


১টা: বাড়ি থেকে রওনা দিল মহানয়িকার শেষযাত্রা। যাবে গোলপার্ক রামকৃষ্ণ মিশনে।


১২টা ৫২: রাজ্যপালের তরফে শেষ শ্রদ্ধা।


১২টা ৫০: দেহ পৌঁছল বালিগঞ্জের বাড়িতে। রয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। বন্ধ করে দেওয়া হয়েছে বাড়ির দরজা। সাধারণ মানুষ অপেক্ষায়।


১২টা ৪৩: রওনা দিল মহানায়িকার শেষ যাত্রা। কালো কাঁচের গাড়িতে মাহানায়িকার দ্দেহ


১২টা: কফিন বন্দী মহানায়িকার দেহ।


১১টা ৩৫- মৃতদেহ বালিগঞ্জের বাড়িতে নিয়ে যাওয়া হবে।


১১টা ৩৫- চন্দন কাঠের চিতায় দাহ করা হবে সুচিত্রা সেনকে


১১টা ৩২- রবীন্দ্রসদনে মহানায়িকার প্রতিকৃতিতে শ্রদ্ধা জানাতে পারবেন সাধারণ মানুষ


১০টা ৩৫- 'আমাদের প্রিয়জনকে হারালাম'- মুখ্যমন্ত্রী


১০টা ৩৫- 'আত্মার শান্তি কামনা করি।' -মুখ্যমন্ত্রী


১০টা ৩০- 'রাজ্যসরকার গান স্যালুট দেবে।'


১০টা ৩০- 'শেষকৃত্য ব্যাপারে পরিবারই সিদ্ধান্ত নেবে।'- মুখ্যমন্ত্রী


১০টা ৩০- 'স্বেচ্ছা নির্বাসনে গিয়েছিলেন, আমরা সেটার সম্মান করব।'- মুখ্যমন্ত্রী'


১০টা ৩০- ক্যাওড়াতলা মহা শ্মশানে শেষকৃত্য সম্পন্ন- ঘোষণা মুখ্যমন্ত্রীর


সকাল ১০টা ১৫- 'বড় মহীরূহের পতন'- মুখ্যমন্ত্রী


সকাল ১০টা ১৫- মৃত্যুর আনুষ্ঠানিক ঘোষণা করলেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়


সকাল ৯টা ৩৫- হাসপাতালে এলেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়


৯টা- মিডিয়ার নজর এড়িয়ে মৃতদেহ বাড় করার পরিকল্পনা।


৮টা ৩৫- মৃত্যু ঘোষণা নিয়ে দ্বিধাবিভক্ত ডাক্তারমহল। এখনই আনুষ্ঠানিক ঘোষণা চায় না পরিবার। কিছু ডাক্তার এই প্রস্তাবে নারাজ।


সকাল ৮টা ২৫- হৃদরোগে আক্রান্ত হয়ে মারা গেলেন মহানায়িকা সুচিত্রা সেন।


বৃহস্পতিবার সন্ধে থেকে শ্বাসকষ্ট শুরু। ফের সুচিত্রা সেনের শারীরিক অবস্থার অবনতি হয়েছে। রক্তে কমে গিয়েছে অক্সিজেনের মাত্রা। শারীরিক অবস্থার অবনতি হওয়ায় মহানায়িকাকে ফের নন ইনভেসিভ ভেন্টিলেশন দেওয়া হয়। বৃহস্পতিবার সন্ধেয় তাঁকে দেখতে হাসপাতালে যান মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়।

http://zeenews.india.com/bengali/kolkata/suchitra-sen-live-update_19483.html

Capturing the public's imagination for three decades through her ethereal beauty and intense celluloid performance, Suchitra Sensymbolized the golden age of Bengali cinema with memorable films like 'Agnipariksha', 'Devdas' and 'Saat Paake Bandha'.


The doe-eyed beauty turned a recluse after bidding adieu to the world of films in the late seventies and was often compared to Hollywoodicon Greta Garbo, who shunned public contact.


No other heroine in Bengal since Kanan Devi caught the public imagination as Sen did. In an era of black and white movies, her intense performances catapulted her to stardom.


Such was the popularity of the Sen that during Durga Puja, idols of Lakshmi and Saraswati were known to have been modelled on her face.


Sen on Friday died at the age of 82 after suffering a heart attack.


Beginning her career with Bengali film 'Shesh Kothai' in 1952, Sen went on to receive a National Award for her performance in Bimal Roy's 1955 Hindi classic 'Devdas', playing the defiant 'Paro' to Dilip Kumar's 'Devdas'.


She formed an unbeatable romantic pair with Bengali cinema legend Uttam Kumar. The duo gave a string of memorable hits such as 'Harano Sur' (1957), 'Agnipariksha' (1954),'Saptapadi' (1961), 'Grihadaha' (1967), 'Indrani' (1958), 'Sagarika' (1956), 'Bipasha' (1962), 'Kamal Lata' (1969), 'Alo Amar Alo' (1972), 'Har Mana Har' (1972) and 'Priyo Bandhabi' (1975).


Sen acted in 52 Bengali and seven Hindi films. 'Champakali', with Bharat Bhushan, 'Sarhhaad' and 'Bommbai Ka Babu' with Dev Anand and 'Mamta' were some of her other notable Hindi films.


However, her most famous Hindi film after 'Devdas' was 1974's 'Aandhi' by Gulzar. She earned wide acclaim for her role opposite Sanjeev Kumar in the film which landed in controversy due to similarities between her character and Indira Gandhi.


After her 1978 movie 'Pronoy Pasha' with Soumitra Chatterjee flopped, Sen quietly left the limelight and even allegedly refused the Dadasaheb Phalke Award in 2005 preferring not to make a public appearance.


As per her wishes, her family maintained secrecy even when she was hospitalized. The reason behind Sen's withdrawal from public life remains a mystery.


A follower of the Ramakrishna Mission order, Sen spent her retired life in meditation and prayer. In 1989, when Bharat Maharaj of the mission passed away, she was seen publicly walking all the way to the crematorium from Belur Math near Kolkata.


Her daughter Moon Moon, though a well-known Bengali actress, could never overcome the large shadow that her mother's beauty and acting prowess cast. Sen's grand-daughters Riya and Raima have also featured in some Bollywood flicks.


In 1963, Sen became the first Indian actress to be honoured at an international film festival - best actress award for 'Saat Paake Bandha' at Moscow film festival.


She was cast opposite matinee idol Uttam Kumar in 30 films from 1953 to 1975. The gossip mills linked Sen to her leading co-stars, Uttam Kumar in particular.


She earned both national and international acclaim for her performances as the quintessential romantic heroine be it in the role of 'Vishnupriya' in the fifties, 'Rina Brown' in the sixties or 'Bijaya' in the seventies.


The actress was born as Rama Dasgupta at Pabna ( Bangladesh) in 1931 to Karunamoy and Indira Dasgupta.


Suchitra married Dibanath Sen from an aristocratic family in 1947 before launching a successful acting career. There were rumours that the marriage suffered due to her successful acting career.


Initially, Sen was more interested in singing than in acting. In 1951, she auditioned as a playback singer, but was instead offered a role by director Sukumar Dasgupta.


Dasgupta's assistant director Nitish Roy named her Suchitra by which name she went on to achieve celebrity status.


Her first film 'Sesh Kothay' (1952) remained unfinished and 'Sat Number Kayedi' with Samar Roy as the hero in 1953 was her first film to hit cinema houses.


That year three other films of hers were also released - Niren Lahiri's 'Kajari', 'Bhagaban Sri Krishna Chaitanya' and Nirmal Dey's 'Sade Chuttar' opposite Uttam Kumar.


In 1954, 'Agnipariksha' played to packed houses for a record 15 weeks and the Suchitra and Uttam were on their way to success.


The pair then had a string of runway successes due to their on-screen chemistry. But Suchitra's talent ensured the success of her films even without Uttam as her co-star.


'Uttar Phalguni', 'Sandhya Deeper Shikha', 'Deep Jeley Jai', with Basanto Chowdhury and 'Hospital' with Ashok Kumar, were also hits.


Legendary actress Suchitra Sen passes away

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Legendary actress Suchitra Sen passes away in Kolkata at 82 today.


See more of: Suchitra Sen

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এই সময় ডিজিটাল ডেস্ক: শুক্রবার সকাল ৮.২৫-এ হৃদরোগে আক্রান্ত হয়ে মারা গেলেন মহানায়িকা সুচিত্রা সেন। টানা ২৬ দিন চিকিত্‍‌সাধীন থাকার পর শেষ নিঃশ্বাস ত্যাগ করেন তিনি। মত্যুকালে তাঁর বয়স হয়েছিল ৮৩ বছর। ইতিমধ্যে হাসপাতালে পৌঁছে গিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। তিনিই আনুষ্ঠানিকভাবে মহানায়িকার মৃত্যুর খবর ঘোষণা করেছেন। তিনি এও জানিয়েছেন যে কেওড়াতলা মহাশশানে মহানায়িকার শেষকৃত্য সম্পন্ন হবে এবং তাঁকে সম্মান জানাতে গান স্যালুট-এর ব্যবস্থাও করা হবে রাজ্য সরকারের তরফ থেকে। তিনি মহানায়িকার সব ভক্তদের অনুরোধ করেছেন যাতে তাঁর অন্তরালে থাকার সিদ্ধান্তকে সবাই সম্মান জানান এবং কোনও রকম বিশৃঙ্খলা যেন সৃষ্টি না হয় সেই দিকেও বিশেষ নজর রাখতে বলেন। সুচিত্রা সেনের পরিবারের প্রতি তিনি সমবেদনা জানিয়েছেন।


বৃহস্পতিবার সন্ধে থেকেই তাঁর অবস্থার অবনতি হতে থাকে। শুক্রবার ভোর রাতে ম্যাসিভ হার্ট অ্যাটাকের পর মাল্টি অর্গান ফেলিয়র হয়। ডাক্তারদের হাজার প্রচেষ্টাতেও বাঁচানো যায়নি মহানায়িকাকে।


ইতিমধ্যে বেল ভিউ হাসপাতালের সামনে জড়ো হতে শুরু করেছে তাঁর গুণমুগ্ধ ভক্তরা। আসতে শুরু করেছেন পুলিশের বড় কর্তারা। এখনও পর্যন্ত অত্যন্ত গোপনীয়তার সঙ্গেই তাঁর সমস্ত চিকিত্‍‌সা হয়ে এসেছে। অনুমান করা হচ্ছে তাঁর অন্তরালে থাকার সিদ্ধান্তকে সম্মান জানিয়ে অন্তেষ্টিক্রিয়ার পরবর্তী কাজ করা হবে।

17 Jan, 2014 , 11.25AM IST

মহানায়িকা সুচিত্রা সেন (১৯৩১- ২০১৪)

12:49 PMনার্সিংহোমের বাইরে মহানায়িকাকে শেষবারের মতো দেখার জন্য ভিড় জমিয়েছেন ভক্তরা।---কুমার শঙ্কর রায়।


12:47 PMদেহ প্রথমে বালিগঞ্জের বাড়িতে নিয়ে যাওয়া হবে। তারপর কেওড়াতলায় তাঁর শেষকৃত্য করা হবে।

12:44 PMশেষবারের মতো দেখার অপেক্ষা। বেলভিউ নার্সিংহোমের ছাদে ভক্তরা।------কুমার শঙ্কর রায়।

12:38 PMঅমিতাভ বচ্চন : 'সুচিত্রা সেনের গ্ল্যামার চিরকাল দর্শকদের মনে থাকবে।'

12:23 PM'যাঁকে ছোঁয়া যায় না, স্পর্শ করা যায় না, শুধু অনুভূতি করা যায়। উনি একজন অসাধারণ মানুষ ছিলেন। ওনার অবসান হলেও আমাদের মধ্যে চিরদিনই থাকবেন।' : ঋতুপর্ণা সেনগুপ্ত।

12:18 PMমমতা বন্দ্যোপাধ্যায় : 'শান্তিতে নায়িকার শেষকৃত্য করতে প্রশাসনকে সাহায্য করুন। পরিবারের ইচ্ছাকে সম্মান জানানো উচিত।'

12:13 PM'মহানায়িকার আত্মার শান্তি কামনা করি' : প্রসেনজিত্‍।

12:12 PMমহানায়িকাকে শেষ সম্মান জানাতে বাড়িতে আসতে শুরু করেছেন টলিউডের অভিনেত্রী-অভিনেতারা। আসছেন বহু গুণীজনরাও।

12:10 PMইতিমধ্যে বেল ভিউ হাসপাতালের সামনে জড়ো হতে শুরু করেছে তাঁর গুণমুগ্ধ ভক্তরা।

12:00 PMমহানায়িকার জীবনাবসান

11:59 AMদুপুর ২টো নাগাদ রবীন্দ্র সদনে নায়িকার ছবিতে শেষ শ্রদ্ধা জানানো হবে : মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়।

11:58 AMবেলভিউ নার্সিংহোম থেকে সুচিত্রা সেনের দেহ নিজের বাড়িতে নিয়ে যাওয়া হতে পারে।

11:57 AMবেলা ১টা নাগাদ কেওড়াতলা মহাশশ্মানে তাঁর শেষকৃত্য সম্পন্ন করা হবে।

11:55 AMপরিবারের তরফে জানানো হয়েছে, তাঁকে কাঠের চুল্লিতে দাহ করা হবে।

11:28 AMসুচিত্রা সেনের পরিবারের প্রতি মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় সমবেদনা জানিয়েছেন।

11:27 AMকেওড়াতলা মহাশশানে মহানায়িকার শেষকৃত্য সম্পন্ন হবে এবং তাঁকে সম্মান জানাতে গান স্যালুট-এর ব্যবস্থাও করা হবে রাজ্য সরকারের তরফ থেকে।

11:27 AMমৃত্যুকালে তাঁর বয়স হয়েছিল ৮৩ বছর। টানা ২৬ দিন চিকিত্‍‌সাধীন থাকার পর শেষ নিঃশ্বাস ত্যাগ করেন তিনি।

11:26 AMশুক্রবার সকাল ৮.২৫-এ হৃদরোগে আক্রান্ত হয়ে মারা গেলেন মহানায়িকা সুচিত্রা সেন।

http://eisamay.indiatimes.com/Legendary%20actress%20Suchitra%20Sen%20passes%20away/liveblog/28937133.cms


এই সময় ডিজিটাল ডেস্ক:শেষ হল পথ। শান্তিতে থাকতে চেয়েছিলেন তিনি। চলেও গেলেন শান্তিতেই। তিন দশক লোকচোক্ষুর আড়ালে থাকার অদম্য শক্তির পরিচয় দিয়েছিলেন মহানায়িকা। তাই তো এত বছর নিজেকে সকলের থেকে বিচ্ছিন্ন রেখেও সকলের কাছের মানুষ হতে পেরেছিলেন তিনি। সকল প্রজন্মের বাঙালির কাছে তাঁর চেয়ে বেশি পরিচিত হয়তো বা কেউ আছে। আজ সেই 'পরিচিতা'ই চিরকালের জন্য চোখ বুজেছেন। মহানায়িকার প্রয়াণে শোকস্তব্ধ চলচ্চিত্রজগত্। শোকাতুর বাংলার আম জনতা থেকে শুরু করে সকলেই। শেষ শ্রদ্ধা জানিয়েছেন অনেকেই--


মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়--মহানায়িকার চলে যাওয়া আমাদের কাছে খুব বড় দুঃসংবাদ। বড় মহীরুহের পতন। আজকের দিন দুঃখের, শোকের। এই খবর আমাদের হৃদয় ভেঙে চুরমার করে দিচ্ছে। তিনি একজন বিস্ময়, গভীর আশ্চর্য। নিজেকে বহুদিন আড়াল করে রেখেছিলেন। কেউ কারও বিকল্প হয় না। তাঁর আত্মার শান্তি কামনা করি।


বিশ্বজিত্--বাংলা ছবির জগতে খুব বড় ক্ষতি।


অপর্ণা সেন--লেজেন্ডারি নায়িকা। উনি চলে যাওয়ার মধ্যে অনেক কিছুর অবসান নিহিত। বিরাট সময়ের অবসান। তাঁর ওপর তথ্যচিত্র করার ইচ্ছে ছিল। কিন্তু তিনি রাজি হননি। জানতাম তিনি রাজি হবেন না। তাঁর মৃত্যু একটি যুগের অবসান।


শাশ্বত বন্দ্যোপাধ্যায়--আপামর বাঙালির মনের মহানায়িকা। সুচিত্রা সেন ছিলেন, সুচিত্রা সেন আছেন, সুচিত্রা থাকবেন। তাঁর চরিত্রের মধ্য দিয়ে বেঁচে থাকবেন তিনি।


হৈমন্তী শুক্ল--এত বড় শিল্পী নিজেকে লুকিয়ে রাখতে পারেন, এটা আমাদের শেখার।


ঋতুপর্ণা সেনগুপ্ত--নায়িকা হয়ে ওঠার দুর্দান্ত দৃষ্টান্ত কেউ দেখাতে পারেননি, পারবেন না। এত বছর লোকচক্ষুর আড়ালে থেকেও সকলের মনে আছেন তিনি। অন্য মাত্রায় নিজেকে নিয়ে যাওয়ার অদম্য প্রয়াস করেছেন। তাঁর কাজ সম্পর্কে কিছু বলার ধৃষ্টতা দেখাতে পারব না। মানুষ হিসেবে অদ্ভূত ক্ষমতা দেখিয়েছেন। তিনি সারাজীবন মহানায়িকা থাকবেন। সেখানে কোনওদিন কারও স্থান হবে বলে মনে করি না। সুচিত্রা সেন এবং রোম্যান্টিসিসমের ইতি কোনও দিন হবে না। তিনি চিরকাল অমর থাকবেন।

Abhishek Srivastava

बिचौलिया पूंजीवाद का साहित्यिक मेला आज से फिर शुरू हो रहा है जयपुर में। इस बार प्रायोजकों में कुछ नए कॉरपोरेट नाम जुड़े हैं। सबसे ऊपर सबसे बड़ा नाम ज़ी टीवी का है। वही ज़ी टीवी, जिसके मालिक और संपादक कोयले की दलाली में पकड़े गए थे। बाकी नाम खुद देख लीजिए। देश भर का भूजल सुखा देने वाले कोका कोला से लेकर शराब की दुनिया के बादशाह किंगफिशर, कर चुराने वाले वोडाफोन से लेकर अमेरिकी साम्राज्‍यवाद के ऑक्‍सीजन सिलिंडर फोर्ड कंपनी तक- हर कोई इस बार साहित्‍य अलापेगा। इस मेले को पब्लिक डिप्‍लोमेसी डिवीज़न का भी वरदहस्‍त प्राप्‍त है। मुझे लगता है कि हमारे समय की सबसे महान अश्‍लीलता का अगर कोई नाम हो सकता है तो वो है जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल। आपका क्‍या खयाल है? मित्र Prakash K Ray, क्‍या हर बार की तरह इस बार भी कोई बयान नहीं जारी किया जाए? गोपाल जी से ज़रा बतियाइए। Paniniग्रू से भी।

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uchitra Sen

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Suchitra Sen
Suchitra Sen as Paro in Bimpal Roy's, Devdas (1955).jpg
Suchitra Sen as Paro in Bimal Roy's Devdas(1955)
BornRama Dasgupta
6 April 1931
PabnaBengal Presidency,British India
(now in Bangladesh)
Died17 January 2014 (aged 82) [1]
KolkataWest Bengal, India
NationalityIndian
Other namesRama (pronounced as Raw-maa)
EthnicityBengali
Years active1953–1979
Notable work(s)Saat Pake Badha
Saptapadi
Shaapmochan
Harano Sur
Deep Jele Jai
ReligionHinduism
Spouse(s)Dibanath Sen
ChildrenMoon Moon Sen
AwardsPadma ShriBanga Bibhushan
SignatureSuchitra Sen English signature.jpg

Suchitra Sen (Bengali pronunciation: [ʃuːtʃiːraː ʃeːn] About this sound listen (help·info)) or Rama Dasgupta (About this sound listen (help·info); 6 April 1931 – 17 January 2014), was an Indian actress who acted in several Hindi and Bengali films. The movies in which she was paired opposite to Uttam Kumar became classics in the history of Bengali Cinema.[2]

She was the first Indian actress to be awarded at an international film festival, when she won the Silver Prize for Best Actress award for Saat Paake Bandha at the 1963 Moscow film festival.[3][4] She was awarded the Padma Shri in 1972 by Government of India.[5] In 2005, she refused the Dadasaheb Phalke Award in order to stay away from the public eye.[6] In 2012, she was conferred West Bengal Government's highest HonorBanga Bibhushan.[7]

Suchitra Sen is also commonly addressed as the 'Mahanayika' (literally meaning in Bengali- 'the great heroine'), signifying her legendary appeal, acting skills, classical grace and beauty and mass popularity down the decades, till modern times.

Personal life and education[edit]

Sen was born in Pabna in present day Pabna District of Bangladesh, on 6 April 1931.[8][9] Her father Karunamoy Dasgupta was the headmaster of the local school and her mother Indira Devi was a homemaker. She was their fifth child and third daughter. She had her formal education in Pabna.

She married Dibanath Sen, son of a wealthy Bengali industrialist, Adinath Sen in 1947[10] and had one daughter, Moon Moon Sen, who is a former actress.

Sen made a successful entry after marriage into Bengali films in 1952 and then a less successful transition to the Bollywood film industry. According to some unconfirmed but persistent reports in the Bengali press, her marriage was severely strained by her success in the film industry.

Career[edit]

Sen made her debut in films with Shesh Kothaay in 1952, but it was never released.[11] The following year saw her act opposite Uttam Kumar in Sharey Chuattor, a film by Nirmal Dey. It was a box-office hit and remembered for launching Uttam-Suchitra as a leading pair. They went on to become the icons for Bengali dramas for more than 20 years, becoming almost a genre to themselves.

She received a Best Actress Award for the film Devdas (1955), which was her first Hindi movie. Her patented Bengali melodramas and romances, especially with Uttam Kumar, made her the most famous Bengali actress ever. Her films ran through the 1960s and the 1970s. Her husband died, but she continued to act in films, such as the Hindi hit Aandhi (1974), where she played a politician. Aandhiwas inspired by India's Prime Minister Indira Gandhi. Sen received a Filmfare Award nomination as Best Actress, while Sanjeev Kumar, who essayed the role of her husband, won the Filmfare as Best Actor.A point to be noted, her husband,who himself was an industrialist, invested a lot in her success, but later a great deal of rift developed among them.

One of Suchitra's best known performances was in Deep Jwele Jaai (1959). She played Radha, a hospital nurse employed by a progressive psychiatrist, Pahadi Sanyal, who is expected to develop a personal relationship with male patients as part of their therapy. Sanyal diagnoses the hero, Basanta Choudhury, as having an unresolved Oedipal dilemma — the inevitable consequence for men denied a nurturing woman. He orders Radha to play the role though she is hesitant as in a similar case she had fallen in love with the patient. She finally agrees and bears up to Choudhury's violence, impersonates his mother, sings his poetic compositions and in the process falls in love again. In the end, even as she brings about his cure, she suffers a nervous breakdown. The film is full of beautiful, often partly lit, close ups of Sen which set the tone of the film and is aided by a mesmerizing performance by her. Asit Sen remade the film in Hindi as Khamoshi (1969) with Waheeda Rehman in the Suchitra Sen role.)

Suchitra's other landmark film with Asit Sen was Uttar Falguni (1963). Suchitra carries the film single-handedly in the dual role of a courtesan Pannabai and her daughter Suparna, a lawyer. In particular, she is brilliant as Pannabai, bringing much poise, grace and dignity in the role of a fallen woman determined to see her daughter grow up in a good, clean environment. Suchitra as Pannabai is able to connect directly with the viewer and make him or her feel deeply for all that she goes through the course of the film thus giving her death at the end a solid, emotional wallop. Her international success came in the year of 1963, when she won the best actress award in Moscow Film Festival for the movie Saat Paake Bandha. In fact, she is the first female to receive an international film award.

She refused Satyajit Ray's offer due to date problem; as a result Ray never made the film Devi Chaudhurani. She also refused Raj Kapoor's offer for a film under the RK banner. She retired from the screen in 1978 after a career of over 25 years to a life of quiet seclusion. She has avoided the public gaze after her retirement and has devoted her time to the Ramakrishna Mission.[8] Suchitra Sen was a contender for the Dadasaheb Phalke Award for the year 2005, provided she was ready to accept it in person. Her refusal to go toNew Delhi and personally receive the award from the President of India deprived her of that award.

Death[edit]

She died at a hospital (Belle Vue Clinic, kolkata) in the morning of the 17th of January, 2014 at 8:25 AM due to a massive heart attack.[12][13] She had been admitted there due to a chronic chest infection 3 weeks ago. The Chief Minister of West BengalMamata Banerjee declared that, Suchitra Sen will be given a gun salute before her cremation[14]. Her Death has been condoled by many leaders including President of India Pranab Mukherjee, Prime Minister Manmohan Singh and BJP's Prime Ministerial CandidateNarendra Modi.[15]

Selected filmography[edit]

YearTitle RoleLanguage Notes
1952Shesh KothayBengaliUnreleased
1953Saat Number Kayedi
1953Bhagaban Srikrishna ChaitanyaBishnupriyaBengali
1953Sharey ChuattorRomolaBengali
1953Kajori
1954Sadanander MelaSheelaBengali
1954AgniparikshaBengali
1954Ora Thaake Odhare
1954GrihaprabeshBengali
1954Atom Bomb
1954DhuliMinati
1954Maraner PareyTanimaBengali
1954Balaygras Manimala
1954Annapurnar MandirBengali
1954Sanjher PradipBengali
1955DevdasParvati (Paro)HindiFirst Hindi film
1955ShapmochanMadhuriBengali
1955Sabar UpareyBengali
1955Snaajhghar
1955Snaajher PradeepBengali
1955Mejo BouBengali
1955BhalabaasaBengali
1956SagarikaSagarika Bengali
1956TrijamaSwarupaBengali
1956Amar BouBengali
1956ShilpiBengali
1956Ekti RaatSwantana Bengali
1956SubharaatriBengali
1957Harano SurDr. Roma BanerjeeBengali
1957Pathe Holo DeriMallika
1957Jeeban Trishna
1957Chandranath Saraju
1957Musafir Shakuntala VermaHindi
1957ChampakaliHindi
1958Rajlakshmi O SrikantaRajlakshmi
1958Surya ToranAunita Chatarjee Bengali
1958IndraniIndrani
1959Deep Jwele JaaiRadhaBengali
1959Chaaowa PawoaBengali
1960HospitalSarbari
1960Smriti Tuku ThaakShobha Bengali
1960Bombai Ka BabooMayaHindi
1960SarhadHindi
1961SaptapadiRina BrownBengali
1961Saathihara
1962Bipasha
1963Saat Paake BadhaArchanaBengali
1963Uttar FhalguniDebjani / Pannabai / SuparnaBengali
1964Sandhya Deeper Sikha Jayanti BannerjeeBengali
1966MamtaDevyani / Pannabai / SuparnaHindi
1967Grihadaha Achala
1969KamallataKamallata
1970Megh KaloDr. Nirmalya RoyBengali
1971Fariyaad
1971Nabaraag
1972Alo Amaar AloAtashiBengali
1972Haar Maana Haar Bengali
1974Devi ChaudhuraniPrafullamukhiBengali
1974Srabana SandhyaBengali
1975Priyo BandhabiBengali
1975AandhiAarti DeviHindi
1976DattaBijoyaBengali
1978Pranoy PashaBengali

Awards and nominations[edit]

YearAward ResultFilm
1963Moscow Film Festival - Best actress awardWonSaat Paake Badha[4]
1963Filmfare Best Actress AwardNominatedMamta
1972Padma ShriFor notable contribution in Arts[5]
1976Filmfare Best Actress Award NominatedAandhi
2012Banga BibhushanWonLifetime Achievement in Film acting

References[edit]

  1. Jump up^ "Actress Suchitra Sen passes away". Filmcircle.com. Retrieved Jan 17, 2014.
  2. Jump up^ Sharma, Vijay Kaushik, Bela Rani (1998). Women's rights and world development. New Delhi: Sarup & Sons. p. 368.ISBN 8176250155http://books.google.co.in/books?id=qnJ9J9UygR0C&pg=PA368 Check |isbn= value (help).
  3. Jump up^ "Suchitra Sen, Bengal's sweetheart". NDTV. 17 January 2014. Retrieved 17 January 2014.
  4. Jump up to:a b "3rd Moscow International Film Festival (1963)"MIFF. Retrieved 2012-12-01.
  5. Jump up to:a b "Padma Awards Directory (1954-2013)"Ministry of Home Affairs. "1972: 130: Smt Suchitra Sen"
  6. Jump up^ "Suchitra Sen awarded Banga-Bibhusan"Zee News India. May 20, 2012. Retrieved 2 June 2012.
  7. Jump up^ Das, Mohua (May 20, 2012). "The perils of a packed prize podium Ravi Shankar declines award"Telegraph, Kolkata (Calcutta, India). Retrieved 2 June 2012.
  8. Jump up to:a b Deb, Alok Kumar. "APRIL BORN a few PERSONALITIES". www.tripurainfo.com. Retrieved 2008-10-23.
  9. Jump up^ "Garbo meets Sen Two women bound by beauty and mystery"Telegraph (Calcutta, India). July 8, 2008. Retrieved 2 June 2012.
  10. Jump up^ Chakraborty, Ajanta (Jun 18, 2011). "Actress Suchitra Sen's secrets out!". TNN (Times of India).
  11. Jump up^ Chatterjee, ed. board Gulzar, Govind Nuhalani, Saibal (2003). Encyclopaedia of Hindi cinema. New Delhi: Encyclopaedia Britannica. pp. PT647. ISBN 8179910660.
  12. Jump up^ "Veteran acctress Suchitra Sen dies in Kolkata hospital after massive heart attack". Financial Express. 2012-06-12. Retrieved 2014-01-17.
  13. Jump up^ "Suchitra Sen suffers massive heart attack, passes away - Entertainment - DNA". Dnaindia.com. 2013-10-22. Retrieved 2014-01-17.
  14. Jump up^ "BBC News - Suchitra Sen: Iconic Indian Bengali actress dies". Bbc.co.uk. Retrieved 2014-01-17.
  15. Jump up^ "Indian Leaders Condole the Sad Demise of Suchitra Sen"Biharprabha News. Retrieved 17 January 2014.

External links[edit]


वीरेन डंगवाल का सोमवार को अपोलो में होगा एक जटिल आपरेशन

Next: जिनसे अमेरिका को कोई खतरा नहीं है,अमेरिकी उनकी जासूसी नहीं करता! ओबामा के भाषण को ध्यान से पढ़ें तो भारतीय सत्तावर्ग का आधार अभियान समझ में आ जाना चाहिए।जाहिर है कि नागरिकों की खुफिया जानकारी का भारत देश की एकता और अखंडता से कोई लेना देना नहीं है।यह खालिस मुक्त बाजार के हित में कारपोरेट सफाया अभियान का एजंडा है।इस एजंडा को पूरा करने में जायनवादी धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद अचूक हथियार है,जिसका इस्तेमाल सभी पक्ष कर रहा है। आदमजाद नंगा होकर अब मुक्त बाजार के महोत्सव में हम जश्न ही मना सकते हैं,अपनी जान माल की हिफाजत नहीं।
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DetailsCategory: [LINK=/article-comment.html]सुख-दुख...[/LINK]Created on Friday, 17 January 2014 19:24Written by B4M
कैंसर से लड़ रहे मशहूर कवि और पत्रकार वीरेन डंगवाल की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं. ताजी सूचना के मुताबिक उनके गले में कैंसर का एक ट्यूमर है जो शुरुआती अवस्था में है. यह ब्रेन की नस के पास है. इसे आपरेट करके निकाला जाना है. इसी मसले पर राय मशविरा के लिए वीरेन डंगवाल को लेकर उनके परिजन मुंबई गए थे और टाटा मेमोरियल के वरिष्ठ डाक्टरों से कनसल्ट किया. मुंबई के डाक्टरों ने आपरेशन कर इसे निकलवाने के दिल्ली के डाक्टरों की सलाह को ही सही बताया और आपरेशन करा डालने को कहा.

दिल्ली लौटे वीरेन डंगवाल ने मुंबई के डाक्टरों के परामर्श पर अपोलो से संपर्क किया और यहां सोमवार को आपरेशन करने पर सहमति बनी. रविवार को वीरेन डंगवाल अपोलो में भर्ती होंगे और सोमवार को आपरेशन किया जाएगा. यह आपरेशन जटिल बताया जा रहा है. इस बीच, वीरेन डंगवाल के परिजनों ने वीरेन डंगवाल के परिचितों, शुभचिंतकों, जानने वालों से अपील की है कि कृपया इन मुश्किल दिनों में फोन करने से बचने की कोशिश करें क्योंकि इससे अव्यवस्था पैदा हो रही है. अपनी बात, अपनी चिंता, सफल आपरेशन के लिए अपनी शुभकामना वीरेन डंगवाल तक पहुंचाना चाहते हैं तो उनके मोबाइल नंबर पर एसएमएस कर सकते हैं.

[B]संबंधित खबरें...[/B]

[LARGE][LINK=http://bhadas4media.com/article-comment/15792-2013-11-14-12-37-49.html]वीरेन डंगवाल की रेडियोथिरेपी का दौर पूरा, कल बरेली जाएंगे[/LINK][/LARGE]

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[LARGE][LINK=http://bhadas4media.com/article-comment/14275-2013-09-04-20-37-46.html]वीरेन छुट्टी पा कर घर आए, दस दिनों तक कंप्लीट बेड रेस्ट की सलाह[/LINK][/LARGE]

[LARGE][B][LINK=http://bhadas4media.com/article-comment/14130-2013-08-28-18-17-36.html]कैंसर से लड़ रहे वीरेन डंगवाल का आपरेशन सफल[/LINK][/B][/LARGE]

[LARGE][LINK=http://bhadas4media.com/article-comment/13565-viren-bday-prog-report.html]आयोजन की कुछ तस्वीरें व कुछ बातें : वीरेन डंगवाल का 66वां जन्मदिन[/LINK][/LARGE]

जिनसे अमेरिका को कोई खतरा नहीं है,अमेरिकी उनकी जासूसी नहीं करता! ओबामा के भाषण को ध्यान से पढ़ें तो भारतीय सत्तावर्ग का आधार अभियान समझ में आ जाना चाहिए।जाहिर है कि नागरिकों की खुफिया जानकारी का भारत देश की एकता और अखंडता से कोई लेना देना नहीं है।यह खालिस मुक्त बाजार के हित में कारपोरेट सफाया अभियान का एजंडा है।इस एजंडा को पूरा करने में जायनवादी धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद अचूक हथियार है,जिसका इस्तेमाल सभी पक्ष कर रहा है। आदमजाद नंगा होकर अब मुक्त बाजार के महोत्सव में हम जश्न ही मना सकते हैं,अपनी जान माल की हिफाजत नहीं।

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जिनसे अमेरिका को कोई खतरा नहीं है,अमेरिकी उनकी जासूसी नहीं करता!


ओबामा के भाषण को ध्यान से पढ़ें तो भारतीय सत्तावर्ग का आधार अभियान समझ में आ जाना चाहिए।जाहिर है कि नागरिकों की खुफिया जानकारी का भारत देश की एकता और अखंडता से कोई लेना देना नहीं है।यह खालिस मुक्त बाजार के हित में कारपोरेट सफाया अभियान का एजंडा है।इस एजंडा को पूरा करने में जायनवादी धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद अचूक हथियार है,जिसका इस्तेमाल सभी पक्ष कर रहा है।

आदमजाद नंगा होकर अब मुक्त बाजार के महोत्सव में हम जश्न ही मना सकते हैं,अपनी जान माल की हिफाजत नहीं।


पलाश विश्वास


खास खबर है,जिनसे अमेरिका को कोई खतरा नहीं है,अमेरिकी उनकी जासूसी नहीं करता।खतरा जिनसे हैं मसलन अमेरिका के मित्र देशों के राष्ट्रध्यक्ष, प्रधानमंत्री से लेकर अमेरिकी नागरिक तक की प्रिज्म जासूसी को अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जायज ठहरा दिया है। सही और गलत का यह जायनवादी सौंदर्यशास्त्र है,जो भारत में भी खूब लागू है।अमेरिकी हितों के खिलाफ जो हैं,भारत सरकार और भारतीय नस्लवादी नवधनाढ्य सत्तावर्ग को उनसे जबर्दस्त खतरा है।उनकी खुफिया निगरानी का भारत में भी चाक चौबंद इंतजाम है और लोकतंत्र का शतनाम जाप करने वाली कारपोरेट राजनीति इस ड्रोन प्रिज्म सीआईए नाटो तंत्र को ही मजबूत करने में लगी है।सर्वशक्तिमान वैश्विक व्यवस्था के शिरोमणि की समझ में नहीं आ रहा है कि अबतक जासूसी से हासिल जानकारी के आचार डालने की वैज्ञानिक पद्धति क्या होगी। अब इस जानकारी को किसी के हवाले करने से भी नहीं हिचकेगी अमेरिकी। भारत में नागरिकों की खुफिया जानकारी का अंतिम हश्र क्या होगा,ओबामा के इस सुधारात्मक कार्यक्रम से उसे लेकर नाना शंकाएं उत्पन्न हो गयी हैं।


गौरतलब है कि देवयानी प्रकरण में भारत अमेरिका राजनय युद्ध के फर्जी घमासान के बावजूद भारत सरकार की ओर से भारतीय नागरिकों की खुफिया निगरानी पर आधिकारिक कोई आपत्ति दूसरे तमाम देशों की तरह अब तक दर्ज नहीं हुई है। खुफिया निगरानी कार्यक्रम में अमेरिका मित्र देशों के प्रबल विरोध की वजह से जो सुधार करने जा रहा है,उससे न भारत और न भारतीय नागरिकों की,न अमेरिका में और न भारत में अमेरिकी खुफिया निगरानी में कोई फ्रक पड़ने वाला है। देवयानी खोपड़ागड़े दलित हैं और उनके साथ हुए अन्याय के विरोध के लिए भारत सरकार के हम आभारी हैं।लेकिन भारतीय अति महत्वपूर्ण नागरिकों की जो अबतक अमेरिका में कूकूरगति होती रही है,वे मामले भी खुलें तो समझ में आये कि यह राजनयिक युद्ध कितना असली है। इसके उलट नाटो की आधारपरियोजना को लागू करते हुए अमेरिका और सीआईए को सारे गोपनीय तथ्य देने वाली अपनी भारत सरकार इन तथ्यों को न केवल बहुराष्ट्रीय कंपनियों,कारपोरेट घरानों के साथ बल्कि माफिया और आपराधिक गिरोह के लिए भी उपलब्ध करा रही है।आदमजाद नंगा होकर अब मुक्त बाजार के महोत्सव में हम जश्न ही मना सकते हैं,अपनी जान माल की हिफाजत नहीं।


आधार विरोधी मोर्चा के सिपाह सालार गोपाल कृष्ण जी ने आज सुबह सुबह फोन किया और बताया कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के तहत जिन राज्यों में आंखों की पुतलियां और दसों उंगलियों की छाप जमा किया जाना है,भारत सरकार की आधिकारिक सूची में पश्चिम बंगाल का नाम नहीं है।उनके लिए पहेली है कि बंगाल के स्थानीय निकायों को सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बावजूद एनपीआर के तहत नागरिकों को आदार बनाने की अनिवार्यता का फतवा क्यों दिया जा रहा है। जबकि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ही पहल पर बंगाल विधानसभा में माकपाइयों के समर्थन से आधार को नकद सब्सिडी से जोड़ने के खिलाफ फतवा जारी हुआ है।


हमारे लिए भी यह पहेली है। जैसे अरविंद केजरीवाल और योगेंद्र यादव नीत खास आदमी ब्रिगेड को असंवैधानिक आधार के तहत नागरिकों की खुफिया निगरानी से कोई ऐतराज नहीं है,उसी तरह सैम पित्रोदा की सलाह पर चलने वाली बंगाल पीपीपी बंगाल सरकार को बुनियादी तौर पर आधार से कोई परेशानी है नहीं। बंगाल विधानसभा में जो सर्वदलीय प्रस्ताव पास हुआ है, वह आधारविरोधी कतई नहीं है और बाकी देश की कारपोरेट राजनीति की तरह बंगाल की कारपोरेट राजनीति को भी भारतीय नागरिकों की निजता और गोपनीयता से कुछ लेना देना नहीं है। वे नकद सब्सिडी को आधार से जोड़ने का विऱोध सिर्फ इसीलिए कर रहे हैं क्योंकि बंगाल में दस फीसदी लोगों के आधार कार्ड भी अबतक बने नहीं हैं और आधार की वजह से अचानक नागरिक सेवाएं स्थगित हो गयी तो इसके राजनीतिक समीकरण पर होने वाले दुष्प्रभाव की दरअसल चिंता है।


फिरभी तेलकंपनियों और खासकर अप्रैल से गैस की कीमत दोगुणा हो जाने की स्थिति में रिलायंस के हितों की चिंता ज्यादा  है,इसीलिए स्थानीय निकायों से वाम बेदखली के बाद सत्ता पक्ष ने सर्वदलीय प्रस्ताव के विपरीत यह पहल कर दी है।


हम बार बार आपका ध्यान दिला रहे हैं कि कारपोरेट कायाकल्प से सारे राजनीतिक विकल्प कारपोरेट है। मुख्य समस्या राजनीतिक विकल्प का नहीं है,बल्कि कारपोरेट युद्धक राज्यतंत्र है जो संविधान,कानून के राज, लोकतंत्र, पर्यावरण,नागरिक अधिकारों,मानवअधिकारों के अलावा प्रकृति और मनुष्यता के विरुद्ध है।अगले बजट में सभी तरह की सब्सिडी खत्म होनी है। कांग्रेस हार गयी तो संघ परिवार की सरकार हो या आप,आम आदमी और अमीरों के बीच की खाई गरीबों का सफाया करके ही खत्म करेगी।समूची कर प्रणाली बदल जायेगी।गाजरों की थोक सप्लाई कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की तरह मुक्त बाजार के हितों के संरक्षण के लिए राजनीतिक समीकरण साधने के लिए ही हैं। रंग बिरंगे राजनीतिक विकल्प से हमारी समस्याओं का समाधान नहीं होगा और न बंद होगा अबाध नरमेध अभियान।


लेकिन ऐन चुनाव से पहले बारह सब्सिडी सिलिंडर की घोषणा से लोग बाग बाग है और किसी को खबर नहीं है कि गैस की कीमतों में दोगुणा इजाफा अप्रैल से ही लागू होना है।विनियंत्रित बाजार में तरह तरह के करतब से हम अपनी क्रयशक्ति बढ़ाने की कवायद में ही जिंदगी गुजार रहे हैं।


इसे इसतरह समझ लें कि सबसे बड़ा भ्रष्टाचार तो बुनियादी संस्थान विवाह में है।सबसे ज्यादा धोखाधड़ी विवाह नामक पवित्रता की आड़ में है। अबाध सेक्स का खुला यह लाइसेंस है पुरुषतंत्र के लिए, जहां काबिल से काबिल लड़की उपभोक्ता वस्तु के अलावा कुछ भी नहीं है।स्त्री अस्मिता का सत्यानाश इसी विवाह संस्थान के जरिये होता है।किसी को जिंदगीभर सुनंदा पुष्कर बन जाने के बाद भी इसका अहसास शायद ही होता है।

जो व्यक्ति जहां है सिर्फ अपनी बेटी के विवाह में दिये जाने वाले दहेज और तत्संबंधी आयोजन के लिए हर सूरत में हर तरह अंधाधुंध कमाई के फिराक में होता है। आप सिर्फ दहेज का लेनदेन बंद कर दें तो तृणमूल स्तर पर जो भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी पैठी हैं,उनका तुरंत सफाया हो जाये। लेकिन कानून और सशक्तीकरण के पाखंड के बावजूद स्त्री निधन का महोत्सव विवाह और दहेज के माध्यम से पूरे राजनीतिक समर्थन से जारी है और इस व्यवस्था के खिलाफ कोई झाड़ू कहीं नहीं है।


अमेरिकी हितों के मद्देनजर प्रबंधकीय दक्षता और तकनीकी चमत्कार की जो  राजनीति कारपोरेट महाविध्वंस के लिए है,उसमें पार्टीबद्ध लोग जाहिर है कि किसी किस्म का परिवर्तन रज्यतंत्र में करने के खिलाफ होंगे। जाहिर है कि नस्ली भेदभाव के तहत सामाजिक अन्याय और असमता का वीभत्स तांडव भी जारी रहना है।

लेकिन सवर्ण असवर्ण विवाह संस्थान में जो स्त्री  विरोधी दहेज वर्चस्व है ,उसके खिलाफ कोई अमेरिका के खिलाफ जंग की जरुरत नहीं है और न कारपोरेट हितों का कोई प्रत्यक्ष लेना देना नहीं है।परिवर्तन के झंडेवरदार अपने प्रभाव क्षेत्र में इस दहेज वर्चस्व विवाह पद्धति को साफ करने के लिए एकबार सपाई तो करके देखें।राज्यतंत्र में बुनियादी परिवर्तन की शुरुआत कम से कम इस तरह अपने ही घर की सफाई से शुरु करने में किसीको कोई दिक्कत नही है।


लेकिन दीवाल पर लिखे आलेख की तरह इस सच से हम मुंह चुराते हैं।उसीतरह बहिस्कार और जनसंहार की नीतियों पर आधारित,बहुसंख्य कृषि समाज के महाविध्वंस को उद्देश्यित खुले बाजार के तंत्र में हम अपना अपना खाता दुरुस्त करने में ही लगे हैं।जमा के बेहिसाब गणित के ही हम सारे भारतीय नागरिक पहरुआ हो गये हैं।इसके लिए निर्वस्त्र हो जाने पर शर्म का अहसास तक नहीं होता।गू में भी पड़ा होगा पैसा तो जीभ से चाटकर निकाल लेंगे लोग।पैसे के अबाध वर्चस्व के खिलाफ चींचीं करने वालों की बलि देते हुए।


कटु सत्य तो यह है कि जाति, धर्म, भाषा, नस्ल, क्षेत्र,रंग की अस्मिताएं तोड़कर हम सामाजिक और पारिवारिक संबंध जोड़ते हुए देश जोड़ने और सामाजिक न्याय और समता के लिए कोई नागरिक पहल करना तो दूर,उस दिशा में सोचने में भी असमर्थ हैं। इससे भी बड़ा शर्त यह है कि इन दायरों में रहकर अस्मिता और पहचान बचाते हुए भी हम कुसंस्कार और कुप्रथा का अंत करके एक स्वच्छ ईमानदार समाज के लक्ष्मणगंडित औपनिवेशिक दौर के नवजागरण सुलभ सीमाबद्ध पहल के लिए तैयार नहीं हो सकते। सोच भी नहीं सकते। देश के लोगों की कोई परवाह किये बिना,खुल बाजार में एक दूसरे के वध को सदैव त्तपर हम लोग देशभक्ति के मिथ्या स्वाभिमान का उत्सव रचते हुए स्वयं को,समाज को और देश को तोड़ने का हरसंभव प्रयत्नकरने में बहुआयामी दक्षता के उत्कर्ष पर है। भ्रष्टाचार मुक्त समाज के लिए बिना आचरण हम राजनीतिक विकल्प में अपनी ही रचे हुए आत्मध्वंस को दोहरा रहे हैं।


अर्थ व्यवस्था और वैश्विक व्यवस्था और राज्य तंत्र में बदलाव की तैयारी की ये बुनियादी और प्राथमिक शर्तें हैं,जन्हें हम कम से कम अपने संदर्भ में लागू करना ही नहीं चाहते। यह ध्यान  देने ग्य है कि औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम आदिवासी और किसान विद्रोहों से हुआ और किसानों और आदिवासी को ही स्वतंत्र देश में हमने तबाही के कगार पर पुंचा दिया है।सत्तापक्ष विपक्ष इसके लिए जितना जिम्मेदार है,अपने बाजारु आचरण से हम सारे भारतीय नागरिक भी उसके लिए कम जिम्मेदर नहीं है।यह भी गौर करने वाली है कि आजादी का अहसास भी नवजागरण से ही होता है। पूरी दुनिया में यह जितना सच है,उतना ही सच भारत के संदर्भ में भी है।भारतीय अस्मिता की बनावट नवजागरण से रची गयी तो नागरिकों के सशक्तीकरण अभिानकी निरंतरता ने ही आजादी का जज्बा पैदा किया। आजादी का वह जज्बा ही सिरे से गायब है और हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारी नागरिकता,हमारी निजता और गोपनीयता हाशिये पर है। मानुष के हक हकूक करने वाले चेहरे के पीछे अमानुष ही है,मानुष नहीं।आधार प्रकल्प को इसलिए हम समझ ही नहीं सकते। डांडी यात्रा या विदेशी कपड़ा के वर्जन के भावावेग को हम समझ ही नही सकते क्योकि हममें से हर कोई अपनी अपनी अस्मिता में कैद है और कहीं कोई सौ टक्का भारतीय है ही नहीं।महज टोपी लगाकर देश की स्वतंत्रता का अंजाम भारत विभाजन हुआ तो हम लोग बार बार उसी अंजाम को दोहराने को नियतिबद्ध इंद्रियों से विकलांग लोग हैं।भोग के अलावा हमारा कोई सरोकार नहीं है और न जीवनदर्शन।दृष्टि अंध है हमारी सारी कुशलता,दक्षता,विधायें,माध्यम और मेधा।


ओबामा के भाषण को ध्यान से पढ़ें तो भारतीय सत्तावर्ग का आधार अभियान समझ में आ जाना चाहिए।जाहिर है कि नागरिकों की खुफिया जानकारी का भारत देश की एकता और अखंडता से कोई लेना देना नहीं है।यह खालिस मुक्त बाजार के हित में कारपोरेट सफाया अभियान का एजंडा है।इस एजंडा को पूरा करने में जायनवादी धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद अचूक हथियार है,जिसका इस्तेमाल सभी पक्ष कर रहा है।


बीबीसी के मुताबिक अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मित्र देशों और उनकी सरकारों की ख़ुफ़िया निगरानीको रोकने का एलान किया है।अमरीकी इलेक्ट्रॉनिक ख़ुफ़िया तंत्र में भारी बदलाव की घोषणा करते हुए ओबामा ने कहा कि अभी जिस तरह से ये कार्यक्रम चलाया जा रहा है, उस पर रोक लग जाएगी।

ओबामा ने ये भी एलान किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) करोड़ों अमरीकियों के फ़ोन रिकॉर्ड से जुटाई गई जानकारी अपने पास नहीं रख सकेगी। ये जानकारी कहां जमा रहेगी, इस पर उन्होंने फ़िलहाल कुछ भी नहीं कहा है। लेकिन खुफ़िया अधिकारियों और अमरीकी एटॉर्नी जनरल को 60 दिनों का समय दिया गया है कि वो इस पर अपनी राय दें। माना जा रहा है कि जिस तरह के सुधार का एलान ओबामा ने किया है, वो कई अमरीकी अधिकारियों की उम्मीद से कहीं ज़्यादा है। अमरीकी ख़ुफ़िया तंत्र से जुड़े कई पूर्व अधिकारियों ने ओबामा के इन कदमों की तीखी आलोचना की है और कहा है कि इससे अमरीका की सुरक्षा को धक्का लगेगा। लीक हुई जानकारी की वजह से अमरीका को देश के अंदर ही नहीं अपने मित्र देशों के सामने भी शर्मिंदगी उठानी पड़ी जब पता चला कि उन देशों के नेताओं पर भी निगरानी रखी जा रही थी। यूरोपीय देशों ख़ासकर जर्मनीके साथ अमरीका के रिश्तों में इस लीक की वजह से काफ़ी तनाव आया।

"मैं दुनिया के लोगों को बताना चाहता हूं कि अमरीका उन आम लोगों की बिल्कुल निगरानी नहीं करता है जिनसे अमरीका को कोई ख़तरा नहीं है."--बराक ओबामा, अमरीकी राष्ट्रपति।


इस भाषण में उन्होंने अपने मित्र देशों के नेताओं की चिंताओं को भी दूर करने की कोशिश की. उनका कहना था, ''मैं अपने मित्र देशों और साझेदार देशों के नेताओं से कहना चाहूंगा कि अगर किसी विषय पर मुझे उनकी सोच के बारे में जानना होगा तो मैं फ़ोन उठाकर उनसे बात कर लूंगा, न कि उनकी ख़ुफ़िया निगरानी करूंगा।''


ओबामा ने अपने भाषण में एनएसए कॉन्ट्रेक्टर एडवर्ड स्नोडेन का भी ज़िक्र किया जिन्होंने रूस में पनाह ले रखी है और जिनकी लीक की हुई जानकारी से ही ये पूरा हंगामा शुरू हुआ। उनका कहना था कि स्नोडेन ने जिन दस्तावेज़ों को सनसनीख़ेज़ तरीके से लीक किया, उनकी वजह से कई अमरीकी कार्यक्रमों पर आने वाले कई सालों तक असर पड़ेगा।

नागरिक अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने जहां इन सुधारों का स्वागत किया है, वहीं उनका कहना है कि कई ऐसे पहलू हैं जिन पर और ठोस सुधार लागू किए जा सकते थे और अगर ऐसा नहीं हुआ तो इस पूरे कार्यक्रम पर ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ेगा।


  1. आधारयोजना का सच हो ही गया उजागर - Janjwar

  2. www.janjwar.comविमर्शविमर्श

  • 10-01-2012 - ब्रिटेन सरकार के हाल के निर्णय के बाद कहीं भारत में भी इस परियोजना को तिलांजलि न दे देनी पड़े... गोपाल कृष्ण...आई.डी./आधारपरियोजना) असंसदीय, गैरकानूनी, दिशाहीन और अस्पष्ट है और राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक अधिकारों के लिए ...

  • आधारकार्ड से राष्ट्र की सुरक्षा को खतरा - Janjwar

  • www.janjwar.comविमर्शविमर्श

  • 08-03-2012 - राहुल गाँधी ने 'आधार' को पार्टी का एजेंडा बनाया था. अब जबकि उन्होंने पार्टी की हार की जिम्मेदारी ले ली है उन्हें चाहिए की वो मतदाताओं द्वारा खारिज 'आधार' परियोजना को रोकने के लिए कदम उठायें ... गोपाल कृष्ण. चुनाव के दौरान ...

  • देशद्रोही पंचमवाहिनी में शामिल हैं आधारसमर्थक ...

  • www.hastakshep.comहस्तक्षेपबहस

  • 03-01-2014 - जाने अनजाने जो लोग सीआईए और नाटो की असम्वैधानिक कॉरपोरेट आधारपरियोजना के पैरोकार हैं, वे तमाम लोग देशद्रोही पंचमवाहिनी में ...गोपाल कृष्णजी की अगुवाई में हमारे अनेक साथी लगातार इस मामले में जनजागरण चला रहे हैं।

  • आधार और जनसंख्या रजिस्टर परियोजना पर संदेह

    नवभारत टाइम्स | Dec 30, 2011, 04.00AM IST

    गोपाल कृष्ण॥

    भारत सरकार की बायोमेट्रिक्स ( जैवमापन ) पर आधारितविशिष्ट पहचान संख्या बताने वाली यूआईडी आधार योजनानागरिक अधिकारों के लिए खतरनाक है। वित्त से संबंधितसंसदीय समिति की जो रिपोर्ट 13 दिसंबर को दोनों सदनोंमें पेश की गई , उसमें यह भी कहा गया है कि इस योजनाको शुरू करते समय सरकार ने दुनिया के दूसरे देशों केअनुभवों की अनदेखी की है।


    संसदीय समिति का मानना है कि यह देशवासियों के निजीजीवन पर एक तरह का हमला है। ब्रिटेन में ऐसे पहचानपत्र कानून को खत्म कर देने का फैसला 2006 में ही कर लिया गया था। वहां सरकार ने घोषणा की है किअगले कदम में पासपोर्ट आदि के लिए जुटाए गए आंकड़े भी खत्म कर दिए जाएंगे।


    भारत सरकार कहती है कि यूआईडी परियोजना गरीबों के लिए चलाई जाने वाली वित्तीय योजनाओं कोसमावेशी बनाएगी और सरकारी सहायता ( सब्सिडी ) असली जरूरतमंदों तक ही पहुंचे - इसके लिए उनकीपहचान को आसान बनाएगी। लेकिन सरकार भविष्य की कोई गारंटी नहीं दे सकती। अगर यहां नाजियोंजैसा कोई दल कभी सत्तारूढ़ हो गया , तो यूआईडी के ये आंकड़े उसे भी प्राप्त होंगे और वह बदले की भावनासे उनका इस्तेमाल नागरिकों के किसी खास तबके के खिलाफ कर सकता है। जर्मनी , रूमानिया तथा यूरोपके कई और जगहों पर पहले ऐसा हो चुका है , जहां वह जनगणना से लेकर नाजियों को यहूदियों की सूचीप्रदान करने का माध्यम बना।


    पिछले साल 18 मई की अपनी प्रेस विज्ञप्ति में भारत सरकार ने बताया था कि कैबिनेट कमेटी ने विशिष्टपहचान प्राधिकरण द्वारा निवासियों के जनसांख्यिकीय और बायोमेट्रिक आंकड़े इकट्ठे करने की पद्धतिसिद्धांतत : स्वीकार कर ली है। इसमें चेहरे तथा आंखों की पुतलियों की तस्वीरें तथा सभी दस उंगलियों केनिशान लेने का प्रावधान है। इन्हीं मानकों और प्रक्रियाओं को जनगणना के लिए रजिस्ट्रार जनरल आफइंडिया और यूआईडी व्यवस्था के अन्य रजिस्ट्रारों को अपनाना पड़ेगा।


    लेकिन संसदीय समिति ने सरकार के इस कदम को असंवैधानिक और कार्यपालिका के अधिकार से बाहरपाया। योजना मंत्रालय की यूआईडी योजना से गृह मंत्रालय का राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( एनपीआरपरियोजना ) शुरू से ही जुड़ा हुआ था , जिसका खुलासा प्रधानमंत्री द्वारा दिसंबर 2006 में गठित शक्ति प्राप्तमंत्रिसमूह की घोषणा से होता है। यह भी पहली बार है कि यहां जनसंख्या रजिस्टर बनाया जा रहा है। इसकेजरिए रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया जो कि सेंसस कमिश्नर भी हैं , देशवासियों से संबंधित आंकड़ों काभंडार तैयार करेंगे।


    यह समझ जरूरी है कि जनगणना और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर अलग - अलग चीजें हैं। जनगणनाहमारी जनसंख्या , साक्षरता , शिक्षा , आवास , घरेलू सुविधाओं , आर्थिक गतिविधियों , शहरीकरण ,प्रजनन दर , मृत्यु दर , भाषा , धर्म और प्रवासन आदि के संबंध में बुनियादी आंकड़ों का सबसे बड़ा स्रोतहै। केंद्र व राज्य सरकारें इसी के आधार पर अपनी योजनाएं बनाती हैं और नीतियों का क्रियान्वयन करतीहैं।


    दूसरी ओर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर , देशवासियों और नागरिकों के पहचान संबंधी आंकड़ों का समग्रभंडार तैयार करने का काम करेगा। इसके तहत व्यक्ति का नाम , उसके माता - पिता , पति - पत्नी का नाम ,लिंग , जन्मस्थान और तारीख , वर्तमान वैवाहिक स्थिति , शिक्षा , राष्ट्रीयता , पेशा , वर्तमान और स्थायीनिवास का पता जैसी तमाम सूचनाओं का संग्रह किया जाएगा। इस आंकड़ा भंडार में 15 साल की उम्र सेऊपर सभी व्यक्तियों की तस्वीरें और उनकी उंगलियों के निशान भी रखे जाएंगे।


    राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के आंकड़े जमा करने के बाद अगला काम होगा - हर नागरिक को विशिष्टपहचान पत्र प्रदान करना। प्रस्तावित यह था कि यह पहचान पत्र एक तरह का स्मार्ट कार्ड होगा , जिसकेऊपर आधार पहचान अंक और फोटो के साथ उस व्यक्ति से संबंधित सभी बुनियादी जानकारियां छपी होंगी।यह सारा विवरण एक चिप में होगा।


    सरकार नागरिकों के आंकड़ा कोष को राष्ट्रीय निधि बताती है। लेकिन यह निधि कब निजी कंपनियों कीनिधि बन जाएगी , यह भी कहा नहीं जा सकता। संसदीय समिति ने संभवत : इसीलिए यह आशंका जताईहै कि ऐसी योजनाएं किन्हीं विशेष स्थितियों में आम नागरिक समाज के खिलाफ हथियार के रूप में भीइस्तेमाल हो सकती हैं।


    Search Results

    1. Boycott UID/Aadhaar Number By Gopal Krishna - Countercurrents.org

    2. www.countercurrents.org/krishna270911.htm

  • Boycott UID/Aadhaar Number. By Gopal Krishna. 27 September, 2011. Countercurrents.org. This is to appeal to you and to draw your most urgent attention ...

  • UID//Aadhaar Scheme Is Against Civil Liberties By Gopal Krishna

  • www.countercurrents.org/krishna231110.htm

  • Nov 23, 2010 - This is with reference to the memorandum of understanding (MoU) between Ministry of Human Resource Development and the Unique ...

  • Delhi Residents, Unorganised And Informal Workers Face Biometric ...

  • www.countercurrents.org/krishna210313.htm

  • Biometric Profiling By Aadhaar/UID. By Gopal Krishna. 21 March, 2013. Countercurrents.org. A Sheila Dikshit's budget speech ignores Punjab & Haryana High ...

  • UID/Aadhar | Bargad... बरगद...

  • bargad.org/category/uidaadhar/

  • Jan 3, 2014 - Posts about UID/Aadhar written by bargad. ...Gopal Krishna, the author of this article, is an activist. He runs ToxicsWatch Alliance, Ban ...

  • Articles Questioning Aadhaar: GOPALA KRISHNA

  • questioningaadhaar.blogspot.com/2010/12/gopala-krishna.html

  • by Ram Krishnaswamy - in 63 Google+ circles

  • Dec 1, 2010 - GOPALA KRISHNA. By Gopal Krishna. 21st Dec 2010. Today I was on Dr. Katherine Albrecht Radio Show, in US at 3 AM early morning for an ...

  • Activists cry foul against Aadhaar - The Telegraph

  • www.telegraphindia.comFront PageJharkhand

  • Jan 12, 2012 - Arguing that the creation of Aadhaar numbers had no legislative base as... of Citizens' Forum for Civil Liberties Gopal Krishna, among others.

  • 'AADHAAR' How a nation is deceived - Page 95 - Google Books Result

  • books.google.co.in/books?id=GQDjWjrSgZ4C

  • Jijeesh p b

  • lI1 Historical Reasons Against UID//Aadhar Project By Gopal Krishna& Prakash Ray, countercurrent.org, 27/09/2010 Money Life.in National Strategy for Trusted ...

  • 'Nandan Nilekani is subverting the Constitution' - Rediff.com News

  • www.rediff.comNews

  • Feb 5, 2011 - Human Rights activist Gopal Krishna speaks at length to Prasanna D Zore on what ails the UID project and why he thinks it should be scrapped ...

  • Gopal Krishna News Photos Videos - Rediff.com

  • www.rediff.comNews

  • Latest news - Gopal Krishna, Photos - Gopal Krishna, Videos - Gopal Krishna.Gopal... How can Aadhaar be deemed 'voluntary' if service delivery is being made ...

  • Aadhaar hide more info under RTI - Moneylife

  • www.moneylife.inLifeUID/Aadhaar

  • Dec 4, 2013 - Aadhaar and transparency are two distinct things. ... as system integrator, said Gopal Krishna, a member of Citizens Forum for Civil Liberties ...





  • America's Secret War In 134 Countries

    By Nick Turse

    18 January, 2014

    TomDispatch.com

    They operate in the green glow of night vision in Southwest Asia and stalk through the jungles of South America. They snatch men from their homes in the Maghreb and shoot it out with heavily armed militants in the Horn of Africa. They feel the salty spray while skimming over the tops of waves from the turquoise Caribbean to the deep blue Pacific. They conduct missions in the oppressive heat of Middle Eastern deserts and the deep freeze of Scandinavia. All over the planet, the Obama administration is waging a secret war whose full extent has never been fully revealed -- until now.

    Since September 11, 2001, U.S. Special Operations forces have grown in every conceivable way, from their numbers to their budget. Most telling, however, has been the exponential rise in special ops deployments globally. This presence -- now, in nearly 70% of the world's nations -- provides new evidence of the size and scope of a secret war being waged from Latin America to the backlands of Afghanistan, from training missions with African allies to information operations launched in cyberspace.

    In the waning days of the Bush presidency, Special Operations forces were reportedly deployed in about 60 countries around the world. By 2010, that number had swelled to 75, according to Karen DeYoung and Greg Jaffe of the Washington Post. In 2011, Special Operations Command (SOCOM) spokesman Colonel Tim Nye told TomDispatch that the total would reach 120. Today, that figure has risen higher still.

    In 2013, elite U.S. forces were deployed in 134 countries around the globe, according to Major Matthew Robert Bockholt of SOCOM Public Affairs. This 123% increase during the Obama years demonstrates how, in addition to conventional wars and a CIA drone campaign, public diplomacy and extensive electronic spying, the U.S. has engaged in still another significant and growing form of overseas power projection. Conducted largely in the shadows by America's most elite troops, the vast majority of these missions take place far from prying eyes, media scrutiny, or any type of outside oversight, increasing the chances of unforeseen blowback and catastrophic consequences.

    Growth Industry

    Formally established in 1987, Special Operations Command has grown steadily in the post-9/11 era. SOCOM is reportedly on track to reach 72,000 personnel in 2014, up from 33,000 in 2001. Funding for the command has also jumped exponentially as its baseline budget, $2.3 billion in 2001, hit $6.9 billion in 2013 ($10.4 billion, if you add in supplemental funding). Personnel deployments abroad have skyrocketed, too, from 4,900 "man-years" in 2001 to 11,500 in 2013.

    A recent investigation by TomDispatch, using open source government documents and news releases as well as press reports, found evidence that U.S. Special Operations forces were deployed in or involved with the militaries of 106 nations around the world in 2012-2013. For more than a month during the preparation of that article, however, SOCOM failed to provide accurate statistics on the total number of countries to which special operators -- Green Berets and Rangers, Navy SEALs and Delta Force commandos, specialized helicopter crews, boat teams, and civil affairs personnel -- were deployed. "We don't just keep it on hand," SOCOM's Bockholt explained in a telephone interview once the article had been filed. "We have to go searching through stuff. It takes a long time to do that." Hours later, just prior to publication, he provided an answer to a question I first asked in November of last year. "SOF [Special Operations forces] were deployed to 134 countries" during fiscal year 2013, Bockholt explained in an email.

    Globalized Special Ops

    Last year, Special Operations Command chief Admiral William McRaven explained his vision for special ops globalization. In a statement to the House Armed Services Committee, he said:

    "USSOCOM is enhancing its global network of SOF to support our interagency and international partners in order to gain expanded situational awareness of emerging threats and opportunities. The network enables small, persistent presence in critical locations, and facilitates engagement where necessary or appropriate..."

    While that "presence" may be small, the reach and influence of those Special Operations forces are another matter. The 12% jump in national deployments -- from 120 to 134 -- during McRaven's tenure reflects his desire to put boots on the ground just about everywhere on Earth. SOCOM will not name the nations involved, citing host nation sensitivities and the safety of American personnel, but the deployments we do know about shed at least some light on the full range of missions being carried out by America's secret military.

    Last April and May, for instance, Special Ops personnel took part in training exercises in Djibouti, Malawi, and the Seychelles Islands in the Indian Ocean. In June, U.S. Navy SEALs joined Iraqi, Jordanian, Lebanese, and other allied Mideast forces for irregular warfare simulations in Aqaba, Jordan. The next month, Green Berets traveled to Trinidad and Tobago to carry out small unit tactical exercises with local forces. In August, Green Berets conducted explosives training with Honduran sailors. In September, according to media reports, U.S. Special Operations forces joined elite troops from the 10 member countries of the Association of Southeast Asian Nations -- Indonesia, Malaysia, the Philippines, Singapore, Thailand, Brunei, Vietnam, Laos, Myanmar (Burma), and Cambodia -- as well as their counterparts from Australia, New Zealand, Japan, South Korea, China, India, and Russia for a US-Indonesian joint-funded coun­terterrorism exercise held at a training center in Sentul, West Java.

    In October, elite U.S. troops carried out commando raids in Libya and Somalia, kidnapping a terror suspect in the former nation while SEALs killed at least one militant in the latter before being driven off under fire. In November, Special Ops troops conducted humanitarian operations in the Philippines to aid survivors of Typhoon Haiyan. The next month, members of the 352nd Special Operations Group conducted a training exercise involving approximately 130 airmen and six aircraft at an airbase in England and Navy SEALs were wounded while undertaking an evacuation mission in South Sudan. Green Berets then rang in the new year with a January 1st combat mission alongside elite Afghan troops in Bahlozi village in Kandahar province.

    Deployments in 134 countries, however, turn out not to be expansive enough for SOCOM. In November 2013, the command announced that it was seeking to identify industry partners who could, under SOCOM's Trans Regional Web Initiative, potentially "develop new websites tailored to foreign audiences." These would join an existing global network of 10 propaganda websites, run by various combatant commands and made to look like legitimate news outlets, including CentralAsiaOnline.com, Sabahi which targets the Horn of Africa; an effort aimed at the Middle East known as Al-Shorfa.com; and another targeting Latin America called Infosurhoy.com.

    SOCOM's push into cyberspace is mirrored by a concerted effort of the command to embed itself ever more deeply inside the Beltway. "I have folks in every agency here in Washington, D.C. -- from the CIA, to the FBI, to the National Security Agency, to the National Geospatial Agency, to the Defense Intelligence Agency," SOCOM chief Admiral McRaven said during a panel discussion at Washington's Wilson Center last year. Speaking at the Ronald Reagan Library in November, he put the number of departments and agencies where SOCOM is now entrenched at 38.

    134 Chances for Blowback

    Although elected in 2008 by many who saw him as an antiwar candidate, President Obama has proved to be a decidedly hawkish commander-in-chief whose policies have already produced notable instances of what in CIA trade-speak has long been called blowback. While the Obama administration oversaw a U.S. withdrawal from Iraq (negotiated by his predecessor), as well as a drawdown of U.S. forces in Afghanistan (after a major military surge in that country), the president has presided over a ramping up of the U.S. military presence in Africa, a reinvigoration of efforts in Latin America, and tough talk about a rebalancing or "pivot to Asia" (even if it has amounted to little as of yet).

    The White House has also overseen an exponential expansion of America's drone war. While President Bush launched 51 such strikes, President Obama has presided over 330, according to research by the London-based Bureau of Investigative Journalism. Last year, alone, the U.S. also engaged in combat operations in Afghanistan, Libya, Pakistan, Somalia, and Yemen. Recent revelations from National Security Agency whistleblower Edward Snowden have demonstrated the tremendous breadth and global reach of U.S. electronic surveillance during the Obama years. And deep in the shadows, Special Operations forces are now annually deployed to more than double the number of nations as at the end of Bush's tenure.

    In recent years, however, the unintended consequences of U.S. military operations have helped to sow outrage and discontent, setting whole regions aflame. More than 10 years after America's "mission accomplished" moment, seven years after its much vaunted surge, the Iraq that America helped make is in flames. A country with no al-Qaeda presence before the U.S. invasion and a government opposed to America's enemies in Tehran now has a central government aligned with Iran and two cities flying al-Qaeda flags.

    A more recent U.S. military intervention to aid the ouster of Libyan dictator Muammar Qaddafi helped send neighboring Mali, a U.S.-supported bulwark against regional terrorism, into a downward spiral, saw a coup there carried out by a U.S.-trained officer, ultimately led to a bloody terror attack on an Algerian gas plant, and helped to unleash nothing short of a terror diaspora in the region.

    And today South Sudan -- a nation the U.S. shepherded into being, has supported economically and militarily (despite its reliance on child soldiers), and has used as a hush-hush base for Special Operations forces -- is being torn apart by violence and sliding toward civil war.

    The Obama presidency has seen the U.S. military's elite tactical forces increasingly used in an attempt to achieve strategic goals. But with Special Operations missions kept under tight wraps, Americans have little understanding of where their troops are deployed, what exactly they are doing, or what the consequences might be down the road. As retired Army Colonel Andrew Bacevich, professor of history and international relations at Boston University, has noted, the utilization of Special Operations forces during the Obama years has decreased military accountability, strengthened the "imperial presidency," and set the stage for a war without end. "In short," he wrote at TomDispatch, "handing war to the special operators severs an already too tenuous link between war and politics; it becomes war for its own sake."

    Secret ops by secret forces have a nasty tendency to produce unintended, unforeseen, and completely disastrous consequences. New Yorkers will remember well the end result of clandestine U.S. support for Islamic militants against the Soviet Union in Afghanistan during the 1980s: 9/11. Strangely enough, those at the other primary attack site that day, the Pentagon, seem not to have learned the obvious lessons from this lethal blowback. Even today in Afghanistan and Pakistan, more than 12 years after the U.S. invaded the former and almost 10 years after it began conducting covert attacks in the latter, the U.S. is still dealing with that Cold War-era fallout: with, for instance, CIA drones conducting missile strikes against an organization (the Haqqani network) that, in the 1980s, the Agency supplied with missiles.

    Without a clear picture of where the military's covert forces are operating and what they are doing, Americans may not even recognize the consequences of and blowback from our expanding secret wars as they wash over the world. But if history is any guide, they will be felt -- from Southwest Asia to the Mahgreb, the Middle East to Central Africa, and, perhaps eventually, in the United States as well.

    In his blueprint for the future, SOCOM 2020, Admiral McRaven has touted the globalization of U.S. special ops as a means to "project power, promote stability, and prevent conflict." Last year, SOCOM may have done just the opposite in 134 places.


    Nick Turse is the associate editor of TomDispatch.com. His latest book is Kill Anything That Moves: The Real American War in Vietnam. He is the author/editor of several other books, including The Changing Face of Empire: Special Ops, Drones, Spies, Proxy Fighters, Secret Bases, and Cyber Warfare, Terminator Planet: The First History of Drone Warfare, 2001-2050 (with Tom Engelhardt), The Complex: How the Military Invades Our Everyday Lives and The Case for Withdrawal from Afghanistan. Turse is currently a fellow at Harvard University's Radcliffe Institute. His website is Nick Turse.com. You can follow him on Twitter @NickTurse, on Tumblr, or Facebook.

    http://www.countercurrents.org/turse180114.htm


    Cultural Organizations or Trojan Horses?

    By George Abraham

    18 January, 2014

    Countercurrents.org

    In ordinary times, a U.S. House resolution ( 417) that calls for 'reaffirming the need to protect the rights and freedom of the religious minorities while praising India's rich religious diversity and commitment to tolerance and equality', may not have ruffled any feathers let alone garnered some media attention. However, in a surprising twist, emotions were flying high over the move by the US lawmakers with some of the national and local Indian organizations that are quite active on the Capitol Hill in lobbying for various causes back in India.

    In particular, the Hindu American Foundation (HAF) and the Indian American Muslim Council (IAMC) are at loggerheads over this resolution that may not bode well for the larger interest of India. There is a potential that the ongoing fight might imperil India's image as well as damage national interests among the US legislators at the Capitol. We have heard of charges and counter-charges by both sides and it is time to examine not only the veracity of these charges but also the propriety of actions undertaken by some of these organizations 'on behalf of the community' and 'for the sake of India'.

    The recent incident involves a Modi supporter and Chicago-based entrepreneur Shalabh "Shalli' Kumar who tried to hijack a carefully planned event by the Republican Party to woo Indian Americans to GOP. Once the story broke, many organizations and individuals like Mr. Juned Qazi, the Executive Committee member and the President of the Madhya Pradesh Chapter of Indian National Overseas Congress(I) USA wrote to the Republican lawmakers stating that the Republican Party was going against its own fundamental principles and traditions of tolerance and dignity by hosting and promoting such an event.

    The leaders of the GOP woke up and learned of the nefarious design by Mr. Kumar under the aegis of the National Indian American Public Policy Institute, to promote Narendra Modi and his candidacy for Prime Minister of India in the upcoming election. Mr. Kumar has committed the egregious error – and is probably in violation of the US ethics rules that prohibit the use of the Congressional seal, stationary and indicia - used the House seal and circulated a flyer that indicated Modi would address the meeting via video link. This action orchestrated by Mr. Kumar probably in collusion with other Modi supporters brought shame and disrepute to our community.

    A simplistic view might be that this is an isolated incident. However, if one examines the growth of the Indian Organizations and their activities under cover, a much clearer picture would seem to emerge. NIAPPI is not the first non-profit organization that engaged in this sort of activity. Many of these organizations are founded to promote cultural or religious activities. To an average Indian American, these are noble objectives and for which they would volunteer their time, efforts and resources to promote the heritage and culture of India in a faraway land. It appears to be rewarding especially when these efforts are directed to educate the younger generations of age-old traditions and customs, and build bridges between the two countries and two cultures.

    However, some of these organizations seem to be operating under dubious objectives. The US India Political Action Committee (USINPAC), an organization that is dedicated to lobby Congress to promote India's interest in the US has generally done a credible job promoting US-India relations. Their recent intervention on behalf of BJP and Narendra Modi exposes their narrow hidden agenda. A newly issued statement says 'USINPAC has successfully led a grassroots lobbying efforts in Washington DC to stop the above Resolution from going to the House Floor for a vote. ' From now until the National elections in India anticipated in mid.2014, USINPAC will spare no effort in making sure the U.S. Congress does not intentionally or unintentionally influence the outcome of India's upcoming elections. India is a sovereign nation and its citizens have a right to choose their leaders' a recent press release stated. Yes, it appears that USINPAC would like to see the election impacted only one way: to assure a Modi victory! Sadly, the organization that is supposed to stand up for the common values and principles both the nations cherish, has decided to throw in their lot with a leader of a party that is no longer welcome in the U.S. That also explains the deafening silence on their part when minorities in India fall victims to human rights violations in places like Gujarat.

    Hindu American Foundation (HAF), is an organization that is said to promote and protect the Hindu philosophy and way of life in U.S. However, lately it has become the lightening rod for the ' Hindutva' agenda. They professes to be ardent supporters of the separation of church and state in US often aligning them with ACLU to fight any Christian symbolism and yet supportive of a supremacist agenda of Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) that has pushed the Narendra Modi candidacy for the Prime Minister in the upcoming election in India. Dr. Raja Swamy, a spokesperson for the 'Coalition Against Genocide' recently commented, "American audiences need to know that HAF and its ilk are rooted in supremacist and majoritarian ideologies. They pay lip service to caste oppression issues and pluralism but have a monoculture and elitist view of the Indian society. They want pluralism and minority rights for themselves here in the US but want minorities, Dalits and women to be second class citizens in India". They ought to examine whether they truly share the same values both these countries are founded upon, freedom, liberty and justice for all.

    Federation of Indian Associations (FIA), the umbrella organization for various cultural and regional outfits in NY Tri-state area was established in 1970's to bring the community together. Their flagship event is the India Day Parade in New York every August to coincide with India's Independence Day. If one carefully analyzes these events, the guest lists often include some of those vehemently anti-Congress leaders from India who would participate in the Parade and then go on to do negative propaganda on the UPA Government led by the Congress Party. This year, one of the invitees made the rounds openly promoting Bharatiya Janata Party (BJP).

    In a nutshell, some of these organizations are carrying on with a stealth agenda to promote the BJP and advance the cause of Narendra Modi. This overt political activity by cultural organizations might be in direct violation of the by-laws or the approved Constitutions and some of them may even be putting their hard-earned tax-exempt status at risk . Another disturbing aspect in the Asian Indian public arena is the notion that like some other communities, we could maneuver through the political process using money power to achieve any narrow political objectives from some of the largely unsuspecting and often naïve political leaders in this country. Shalli Kumar's action is a prime example of such behavior.

    Two top members of a US Congress constituted commission on religious freedom have recently expressed sadness over nomination of Gujarat Chief Minister Narendra Modi as BJP prime ministerial candidate, terming him as the 'poster boy' of India's failure to punish the violent. "It was another son of Gujarat, Mahatma Gandhi, who once offered a broad, tolerant vision for the country and its multi-religious society" wrote Katrina Lantos Swett and Mary Ann Glendon in an Op-ed to CNN.

    It is a known fact the Gujarat's High Court rapped Modi for inaction and ordered compensation for religious structures that suffered damage. In 2005, the U.S. State Department agreed with United States Commission for International Religious Freedom (USCIRF) and others and revoked Modi's visa.

    It is time to ask a pertinent, albeit rhetorical question to many of these organizations that are acting as Trojan Horses on behalf of Modi: would these US-based organizations support for example, a Chris Christie Candidacy for Presidency if he is to show the same 'inaction', as Modi did in 2002 for not protecting the lives and properties of all Indians alike who live in New Jersey?

    George Abraham is Chairman, Indian National Overseas Congress (I), USA

    http://www.countercurrents.org/abraham180114.htm


    Religion, Peace And Violence

    By Ram Puniyani

    18 January, 2014

    Countercurrents.org


    The global scenario is full of violence in the name of religion. The acts of terrorism are attributed to religious teachings at times. The local violence, the attack on religious minorities is also presented as a religious phenomenon. The last three decades have seen this tragic phenomenon where the political agenda of super power on one hand and the agenda of fundamentalist-fascist groups on the other have been given the veneer of religion. The major theory underlying the US policy in the oil zone has derived its legitimacy from Samuel Huntington theory of 'Clash of Civilizations'. In South Asian countries spanning from Pakistan to Myanmar to Sri Lanka, the religious minorities have been on the firing line, have been facing a violence orchestrated by those practicing 'religious nationalism', those who on the pretext of defense of their religion, target the religious minorities. Be it the Hindus and Christians in Pakistan, Christians and Muslims in India, Buddhists and Hindus in Bangla Desh, Muslims in Myanmar or Christians and Muslims in Sri Lanka, the violence has been stalking them in one or the other form. This has increased the feeling of insecurity of religious minorities and also has eroded their rights as citizens.

    What has the moral teachings of religion to do with all this? Nothing whatsoever. Still the popular perceptions and propaganda of the religious nationalist groups has been so pernicious that a 'social common sense' has been created, which gives credence to the role of religion in this violence.

    It is in this light that three major statements from leaders, two of them religious and one political have come as a breath of fresh air, delinking religion from violence and espousing the peace making role of religion. Surely, religion is the most complex social phenomenon. It does encompass the element of moral values, values of humanism, so to say, on one side. At the same time it encompasses more visible facets of identity like rituals, Holy books, places of worship, the clergy and Holy Scriptures. At another level it has the element of faith in the supernatural power, deities. Surely, some of the religions did not talk of the supernatural power. In those religions, the prophets of the religions themselves, in due course have been given the exalted position of the God. This element of faith in supernatural is varying in degrees but is present all the same in different religions. These three statements, which struck the author all, came from people of diverse religious streams.

    The first one came from Pope Francis while deliberating on the future of the church and redefining long-held Catholic doctrines and dogmas. The recently held 'Third Vatican Council' concluded with Pope Francis announcing that Catholicism is now a "modern and reasonable religion, which has undergone evolutionary changes. The time has come to abandon all intolerance. We must recognize that religious truth evolves and changes. Truth is not absolute or set in stone…." In a very profound manner he went on to say that "God is not a judge but a friend and a lover of humanity. God seeks not to condemn but only to embrace… Our church is big enough for heterosexuals and homosexuals, for the pro-life and the pro-choice!"

    He added "because Muslims, Hindus and African Animists are also made in the very likeness and image of God, to hate them is to hate God...Whether we worship at a church, a synagogue, a mosque or a mandir, it does not matter. Whether we call God, Jesus, Adonai, Allah or Krishna, we all worship the same God of love. This truth is self-evident to all who have love and humility in their hearts!""God is changing and evolving as we are, for God lives in us and in our hearts. When we spread love and kindness in the world, we touch our own divinity and recognize it."

    This lengthy quote from his speech demolishes so many of the intolerant attitudes towards, 'others', towards those having different norms, towards those having different sexual orientation as well. We witnessed recently in India that most of the clergy of different religions welcomed the Supreme Court decision whereby same sex relations are regarded as a crime. This quote from Pope also goes against the ideology of "Clash of Civilizations"; and the media propaganda whereby people of other religions are looked down upon, and Muslims in particular are demonized by large section of people. The biggest contribution of Pope is to emphasize on respect-tolerance for those who are different from us. It also outlines that we cannot stick to dogmas which were brought in the name of religion at particular time, in the times gone by. This is an extremely welcome stance taken by the highest authority of Catholic faith, something which can be the role model for clergy of other religions to emulate.


    Not to be left behind, the founding-leader and patron-in-chief of Minhaj-ul-Quran International and author of the acclaimed book Fatwa on Terrorism and Suicide Bombings, Shaykh-ul-Islam Dr. Muhammad Tahir-ul-Qadri condemned all acts of terrorism and said that the concept of "Jihad has been hijacked by terrorists". He is precisely on the dot as the word Jihad has been given the dastardly meaning by the Salafi version of Islam, a version picked up by the US for trainings in especially set up Madrassas, from where the Mujahidin, Taliban, Al Qaeda were brought up. The politics of control on the oil resources took an inhuman form where United States proactively picked up the pervert version of Islam and popularized as 'the Islam', aided and assisted by its minions and large section of World media aping US in most of the matters. Dr. Mohammad, is in line with the Sufi version of Islam, where tolerance for others and celebration of diversity has been the norm. In the name of this Jihad; so much damage has been done to the human race, to redo which massive efforts are needed and one lauds the efforts of those scholars and clerics of Islam who have presented the human, tolerant face of Islam Worldwide. One cannot forget to mention the great Islamic Scholar, Dr. Asghar Ali Engineer, who strove till the end of his life to present the Islam in the proper light, in the light of values of amity and peace. Surely even today there are many who are aggressively promoting the intolerant versions of Islam, the likes of Dr. Zakir Naik, who are doing great disservice to Islam and human society.


    Swami Vivekananda is the latest icon to be hijacked by the politics of intolerance. Those who have spread hatred for religious minorities are projecting him to be their messiah. In this light Indian Prime Minister Dr. Manmohan Singh statement is very praiseworthy. Dr. Singh points out that "true religion cannot be the basis of hatred and division, but of mutual respect and tolerance for faiths and beliefs of all."


    One does note the glaring differences in the interpretation of same religion. One can note the diverse and opposite ways in which political actions take place in the name of same religion. Two or three examples are very obvious. From Hinduism one can see Mahatma Gandhi on one side and Nathuram Godse on the other. In Islam one can see Khan Abdul Gaffar Khan, Maulana Abul Kalam Azad on one side and Osama bin Laden and the Muslim nationalists on the other. Same way one can see Pope Francis on one side and Anders Berling Brevik (Norwegian terrorist who killed 86 youth) on the other. It is the same religion in whose name such opposite stands are taken. We need to wake up to free ourselves from the ossified, intolerant views of religions and stand for humanistic teaching and tolerant traditions of religions.

    Ram Puniyani was a professor in biomedical engineering at the Indian Institute of Technology Bombay, and took voluntary retirement in December 2004 to work full time for communal harmony in India. He is involved with human rights activities from last two decades.He is associated with various secular and democratic initiatives like All India Secular Forum, Center for Study of Society and Secularism and ANHAD.


    http://www.countercurrents.org/puniyani180114.htm



    Shamshad Elahee Shams

    दाऊदी बोहरा समुदाय के नेता सय्य्दना की १०२ साल की उम्र में मौत, जनाजे में हुआ उपद्रव १८ मरे.

    सय्येदना के व्याभिचार के विरुद्ध 'बोहरा समाज सुधार आन्दोलन' के नेता, विश्व प्रसिद्द इस्लामी विद्वान डाक्टर असगर अली इंजीनियर की मृत्यु पिछले साल जब हुई थी, उनकी मैय्यत में गिनती के ढाई दर्जन लोग थे.

    कैसा पाखंडी समाज है ? धूर्तता अपनी पराकाष्ठा पर है...लानत.

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    • You, Himanshu Kumar, Shamshad Elahee Shams, Ramesh Bhangi and 49 others like this.

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    • Swayam Sarvaharaये उपद्रव क्यों हुआ?

    • 6 hours ago· Like

    • Arjun Sharmaशमशाद साहब वैसे मैं पहले से स्व.स्सय्दना बोहराबुद्दीन के बारे में नहीं जानता था इनके मरणोपरांत विकिपीडिया के द्वारा जानकारी पायी.यूट्यूब से इनके किसी धार्मिक प्रवचन सुनने के लिए कोशिस की लेकिन कुछ नहीं मिला ताकि इनके धार्मिक और अध्यात्मिक ज्ञान को समझ ...See More

    • 3 hours ago· Like

    • Ashok Kumar Sharma Syedna is a State within a State. All followers have to pay compulsory taxes to him and have to follow strict code of conduct including a dress code. Those who oppose his archaic and unconstitutional code are excommunicated from society (community) and...See More

    • 2 hours ago· Like· 3

    • Misir Arunमूर्खों का अनुपात हमेशा अधिक रहा है .....विचित्र किन्तु सत्य |

    • about an hour ago· Like· 2

    Navbharat Times Online

    आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर सोशल मीडिया में कई मजेदार कॉमेंट्स और पिक्स शेयर किए जा रहे हैं, देखें...



    फनी पिक्स देखने के लिए क्लिक करें...http://navbharattimes.indiatimes.com/hansi-mazak/funny-photo/hansimazakphotolist/12545581.cms

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    Panini Anand

    सोमवार सुबह 10 बजे तक अरविंद बवाल अपने टूलबॉक्स भारती का इस्तीफा लें अन्यथा इस्तीफा दे दें. और सोमनाथ भारती शर्म करो और डूब मरो चुल्लू भर पानी में.

    Unlike·  · Share· 7 hours ago·

    • You, Abhishek Srivastava, Dilip Khan, Sheeba Aslam Fehmi and 51 otherslike this.

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    • Jyotsna Siddharth horrifying!! AAP will go out of power soon to never come back again!

    • 7 hours ago· Like· 1

    • Kundan Yadavबंदर के हाथ में उस्तुरा मिलने से इस तरह की हरकतें कोई आश्चर्य नहीं।

    • 6 hours ago· Like· 2

    • Lakshman Roy Panini ki baaki baaton se bhale hi kai log sahmat na hon, lekin ye baat bilkul sahi hai ki AAP ne aisa karke khud ko shive sena, ram sena, hindu raksha dal ki category me khada kar liya hai.... ho sakta hai ki wahan galat ho raha ho, jaisa ki harsh bha...See More

    • 3 hours ago· Like

    • Alok Kumar"आप" क्या चाहता है? जन अदालत ! नक्सली स्टाइल.. जिस तरह से उनके स्वयंभू कमांडर (मंत्री) रात बेरात कोर्ट लगाने की कोशिश कर रहे हैं उससे भविष्य अराजक प्रतीत हो रहा है..

    • about an hour ago· Like

    Saradindu Uddipan posted a photo to Nagraj Chandal's timeline.

    AJAY KUMAR DIMPAL===MANDDAL PRESIDENT DESWA

    Unlike·  · Share· 2 hours ago·

    Jitendra Yadav shared Forward Press's photo.

    Bhujan nayak Raja Mahishasur

    साप्‍ताहिक दलित आदिवासी दुनिया के 19-25 जनवरी, 2014 अंक से साभार।

    Unlike·  · Share· about an hour ago·



    Satya Narayan

    एक दमनकारी राज्यसत्ता को चलाने के लिए यह ज़रूरी है कि वे तमाम लोग, जिनका इस व्यवस्था में स्वर्ग है, एक ऐसे दर्शन का प्रचार करें ताकि जनता की सोचने-समझने की शक्ति को ख़त्म किया जा सके। बड़े-बड़े राजनेता से लेकर फिल्मी एक्टर, वैज्ञानिक, प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनियर आदि जो करोड़ों की कमाई कर रहे हैं, ऐसे दर्शन का ख़ूब प्रचार करते दिख जायेंगे। शोषणकारी पूँजीवादी राज्यसत्ता अपने तमाम सत्ता-संस्थानों द्वारा चाहे वह शिक्षा केन्द्र हो, न्यायालय व संविधान हों अथवा तथाकथित लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ मीडिया का टी-वी, रेडियो, अख़बार हो – चारों तरफ कूपमण्डूकता, अन्धविश्वास, अवैज्ञानिकता फैलाते हैं।

    http://ahwanmag.com/Babas-in-India

    तुम राम भजो, हम राज करें।

    ahwanmag.com

    एक दमनकारी राज्यसत्ता को चलाने के लिए यह ज़रूरी है कि वे तमाम लोग, जिनका इस व्यवस्था में स्वर्ग है, एक ऐसे दर्शन का प्रचार करें ताकि जनता की सोचने-समझने की शक्ति को ख़त्म किया जा सके। बड़े-बड़े राज...

    Unlike·  · Share· about an hour ago

    Ujjwal Bhattacharya

    अब रास्ते में कोई काला-कलूटा मिल जाय तो उसे घेर लीजिये. पकड़कर पूछिये - अबे, तेरा वीसा कौन सा है ? इश्टुडेंट है ? किस कालिज का ? बिजनेस करता है साला ? कइसा बिजनेस ? तू अपने को अमरीकी समझता है क्या ? फिर उसके डेरे पर पुलिस का छापा लगवाइये. कोई औरत मिल जाय तो उसे भीड़ के बीच बइठाकर जांच के लिये पेशाब करवाइये. साली जरूर ड्रग्स लेती होगी.

    Like·  · 39 minutes ago

    • 2 people like this.

    • Sujit Ghoshक्या यह सही है कि भारतीय सबसें ज्यादा नस्ली होते हैं । आब तो सुनते है गोरी होने की क्रीम साउथ में भी खुब बिकती है

    • 17 minutes ago· Like

    • Ujjwal Bhattacharyaबिल्कुल होते हैं. और वर्ण व्यवस्था भी नस्लवाद है. म्लेच्छ और यवन Xenophobia के शब्द हैं. अन्य धर्मों के साथ धर्मशास्त्रीय विमर्श के आधार पर विवाद नहीं किया गया है, जातिगत आधार पर उन्हें नीचा माना गया है.

    • 13 minutes ago· Like

    • Palash Biswas It is true.The evil of Indian system lies beneath extreme apartheid practiced with surgical precision.

    • a few seconds ago· Like

    जनज्वार डॉटकॉम

    वर्ष 1932 से 2013 तक लगभग 81 वर्ष की समयावधि के बीच न जाने कितने भू-वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों ने केदारनाथ के आसपास के क्षेत्र को लेकर बौद्धिक बहसें, निरीक्षण-परीक्षण तथा शोध पत्र तैयार किये होंगे, लेकिन अफसोस एक भी फतेह सिंह कण्डारी जी की अनुभवपरक पंक्तियों के समानान्तर नहीं टिकते. समय रहते अगर इस पुस्तक का संज्ञान लिया जाता, तो केदारनाथ की भीषण त्रासदी न झेलनी पड़ती...http://www.janjwar.com/2011-06-03-11-27-26/78-literature/4711-amrit-sanjeevani-ek-shodhparak-dastavej-for-janjwar-by-narendra-kathait-for-janjwar

    'अमृत संजीवनी'एक शोधपरक दस्तावेज

    janjwar.com

    Janjwar

    Abhishek Srivastava via Junputh

    "जैसे वे किसानों को देते हैं, आदिवासियों को देते हैं, ठीक उसी तरह वे विरोधी विचारों को भी मुआवज़ा देने में कोई गुरेज़ नहीं करते। इस तरह वे विरोधी विचार को एक तरह से खरीद लेते हैं और उसकी धार को कुंद कर देते हैं। मुआवज़ा लेने के बाद जिस तरह किसान या आदिवासी अपनी ज़मीन या जंगल की लड़ाई जारी रखने का नैतिक अधिकार खो देता है, उसी तरह लेखक भी अपने विचार की लड़ाई फिर नहीं लड़ पाता।"

    Rangnath SinghAvinash DasPanini AnandAshutosh KumarAnita BhartiAjay Prakash Aflatoon Afloo Atul Ch...See More

    जनपथ : जयपुर साहित्‍य महोत्‍सव के विरुद्ध त्रैमासिक पत्रिका ''भोर'' का वक्‍तव्‍य

    junputh.com

    Like·  · Share· 4 hours ago·


    H L Dusadh Dusadh

    10 hours ago·

    • मित्रों!मेरा विश्व कवि ढसाल पर यह लेख आज,18.1.14 के देशबंधु में प्रकाशित हुआ है.आप इसेwww.deshbandhu.co.inपर भी देख सकते हैं.
    • धरती के नरक से निकला एक अप्रतिम नायक:नामदेव ढसाल
    • एच एल दुसाध
    • 15जनवरी,2014 की मनहूस सुबह.मैं दून एक्सप्रेस से कोलकाता से बनारस जा रहा था.अचानक मोबाइल घनघनाहट सुन कर गहरी नींद से उठ गया.धीरे-धीरे आंखे खोलकर जब मोबाइल के स्क्रीन पर नज़र गड़ाया,सुरेश केदारे के नाम देखकर एक अप्रिय संवाद की आशंका से घिर गया.मैंने मन कड़ा कर मोबाइल ऑन किया.उधर से भाई केदारे के सुबकने की आवाज़ सुनाई पड़ी.उनका सुबकना सुनकर मैंने अनुमान लगा लिया कि ढसाल साहब नहीं रहे.कुछ क्षणों के बाद अपनी रुलाई पर किसी तरह काबू पाते हुए उन्होंने कहा,'भाई साहब दादा नहीं रहे!अभी-अभी उन्होंने आखरी सांस ली है.'मैं स्तब्ध रह गया और मोबाइल काट दिया.
    • 15 जनवरी की सबह साढ़े चार बजे जिस दुखद संवाद का सामना किया उसके लिए लिए विगत एक माह से ही मानसिक प्रस्तुति लेने लगा था.पहले से ही कई बीमारियों से घिरे ढसाल साहब ,जिन्हें उनके अनुसरणकारी प्यार से दादा कहते रहे हैं,पिछले सितम्बर से आंत के कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी से जूझ रहे थे.27 नवम्बर को ही उनका ऑपरेशन होना तय हुआ था,जो उनके रक्त-कणों में कुछ विशेष कमी के कारण टल गया.मैं 27 नवम्बर के पहले ही उनसे मिलने के लिए मुंबई जाना चाहता था.पर, पहुँचा 4 दिसंबर की रात.अगले दिन भाई सुरेश केदारे और लेखक लहू खामकर के साथ उनसे मिलने नरीमन पॉइंट इलाके में अवस्थित 'बॉम्बे हॉस्पिटल'पंहुचा.पता चला तीन डॉक्टरों की टीम उनका कुछ टेस्ट कर रही है जिसमें 3-4घंटे लग सकते हैं.लिहाज़ा उनसे बिना मिले लौटना पड़ा.
    • आईसीइयू में पड़े ढसाल साहब से मिलवाने के लिए सुरेश केदारे जी ने दूसरा प्रयास 7 दिसंबर को किया.किन्तु डॉक्टरों ने मिलने की इज़ाज़त नहीं दी.उनसे न मिलने की निराशा मेरे चेहरे पर गहराते देख भाई सुरेश केदारे और उनके साथ आये एक व्यक्ति ने 'कमाठीपुरा'और 'गोलपीठा'जैसी बस्तियां देख लेने का प्रस्ताव रखा ,जहां वे पले–बढे थे.इन बस्तियों का नाम सुनते ही उनके विषय में पढ़ी बहुत सी बातें जेहन में कौंध गयीं.अतः हम बिना बिलम्ब किये वहां के लिए टैक्सी पकड़ लिए.
    • भाई सुरेश जिन्हें अपने साथ लाये थे ढसाल साहब के बाल सखा वे आत्मा राम भी उस गोलपीठा के ही इलाके के रहनेवाले थे.वे हमें लेकर उस 'गोलपीठा'पहुंचे जहाँ ढसाल साहब बैठकर शुरूआती दिनों में अपनी कवितायेँ लिखा करते थे.मैंने उनकी 'गोलपीठा'पढ़कर इस इलाके के विषय में एक धारणा बना रखा था किन्तु यह साक्षात नरक होगा, इसकी कल्पना नहीं कर पाया था.गोलपीठा से पीबी रोड होते हुए हम 'नवाब चाल'के उस घर की ओर रवाना हुए जहाँ ढसाल साहब पले-बढे.हम जिस रास्ते से गुजर रहे थे उस पर भी ग्लोबलाइजेशन की छाया पड़ी है,ऐसा आत्मा जी ने बताया.सड़कें कच्ची की जगह पक्की हो गयी हैं,चाल भी पक्के मकान में परिवर्तित हो गए हैं.अब बिजली के बल्ब वहां भी रौशनी बिखेर रहे हैं.ढसाल साहब जब युवावस्था की ओर अग्रसर थे तब स्थिति बिलकुल उल्टी थी.बहरहाल बहुत कुछ बदल जाने के बावजूद उस समय के गोलपीठा के विषय में किसी को भी अनुमान लगाने दिक्कत नहीं हो सकती कि वेश्यायों का यह इलाका 30-40 साल पहले साक्षात् नरक रहा होगा.इसका एहसास मुझे रास्ते से गुजरते हुए हुआ.आधे किलोमीटर के सफ़र में मैंने पीबी रोड के दोनों तरफ विभिन्न वय की कम से कम दो सौ वेश्याओं को खड़े पाया,जिनकी आंखों में किसी ग्राहक को पाने के लिए बेचैनी थीं,जो पेट की आग से मजबूर हो कर मुझ जैसे बुजुर्ग को भी बेशर्मी से आमंत्रित कर रहीं थीं.आत्मा जी ने बताया कि भूमाफियाओं और पुलिस की गंठजोड़ से यहाँ की वेश्याओं को भगा दिया गया है किन्तु उन दिनों जब असामाजिक तत्वों और पुलिस की मिलीभगत से यह इलाका वेश्याओं से गुलज़ार रहा करता था, इतनी ही दूरी में सब समय कुछ हज़ार वेश्यायें अपना जिस्म बेंचने के लिए खड़ी मिलती थीं.मानवता के विराट कलंक के रूप में विद्यमान पीबी रोड छोड़कर हम उस 'नवाब चाल'में दाखिल हुए जहाँ ढसाल साहब का परिवार रहता था .
    • ढसाल साहब के पिता एक कसाईखाने में साधारण कर्मचारी थे.उन्ही के आर्थिक-सामाजिक स्तर के दो-तीन परिवारों का उस एक ही कमरे में सहावस्थान था.एक साथ कई चूल्हे जलते थे.आंगननुमा कच्चे नवाब चाल में जल निकासी की कोई व्यवस्था न होने के कारण पास की नाली बजबजाती रहती थी जिससे कीड़े उछल कर भोजन की थाली में आ जाते थे.वहां कमरों में प्राइवेसी और सृजन के लिए शांत वातावरण की कल्पना करना दुष्कर था.ढसाल में सृजन की भूख उन्हें उपयुक्त जगह के तलाश के लिए बाध्य की और उन्होंने वह जगह ढूढ़ निकाली.जगह थी वही गोलपीठा, जहां से वेश्या बाज़ार शुरू होता था;जहाँ दूर-दराज के इलाके से अपना घर-परिवार छोड़कर आये अनपढ़,जाहिल और शराब के नशे में धूत मजदूर जिस्म का सौदा का करने की मानसिक प्रस्तुति लेते थे.ऐसे दम घोटू और अस्वस्थकर जगह पर बैठ कर ढसाल साहब कविता सृजन करते थे.इसी गोलपीठे पर बैठकर लिखी गयी कवितायेँ जब प्रकाशित हुईं,साहित्य की दुनिया स्तब्ध रह गयी.आखिर स्तब्ध क्यों न हो!उन्होंने ने कविता के शास्त्र को ध्वस्त कर दिया था और धरती के नरक के श्याम पक्ष को उसी की भाषा में जिस तरह उकेरा था,वह उसके पहले विश्व कविता जगह में विलुप्त था.यहीं रहकर उन्होंने महज 22-23 साल की युवावस्था में दलित पैंथर जैसे उग्र संगठन को जन्म दिया.यहाँ आते वक्त रास्ते में सुरेश जी ने बहुत दावे के साथ कहा कि गोल पीठा का परिवेश देखने के बाद आप कुछ लिखे बिना नहीं रह पाएंगे.उनका दावा गलत नहीं था.मैंने धरती का नरक देखने के बाद ढसाल साहब की जीवनी लिखने का संकल्प ले लिया था.
    • अगले दिन शाम को हम फिर बॉम्बे हॉस्पिटल पहुंचे.चूँकि मुझे अगले दिन लखनऊ लौटना था इसलिए डॉक्टरों के निर्देश के विपरीत पैन्थरों ने उनसे मिलवाने का विशेष उद्योग लिया और कुछ मिनट के लिए उनका दर्शन करने का अवसर पा गया.मुझे उनसे मिलने के लिए नाक पर मास्क लगा कर अन्दर जाना पड़ा.मैं यही उम्मीद किया था कि उनकी आँखे मुंदी होंगी और मैं उनका चरण स्पर्श कर वापस आ जाऊँगा .किन्तु चमत्कार हुआ.मेरे कदमों की आहट पाते ही उनकी आँखे खुल गयीं.उन्होंने प्यार से मुस्कुराते हुए हालचाल पूछा.उन्हें बोलते देख कुछ जवाब देने की बजाय जल्दी से कमरे से बाहर आया और बैग में पड़ी नई डाइवर्सिटी ईयर बुक लेकर पुनः उनके सामने पहुंचा.मैंने जल्दी –जल्दी इयर बुक में छपे उन पृष्ठों को खोलकर दिखलाना शुरू किया जिनमें उस पिछले 'डाइवर्सिटी डे'के फोटोग्राफ थे जिसका आयोजन स्वयं उनके सौजन्य से हुआ था.अधिकांश तस्वीरों में वे मौजूद थे.तस्वीरे देखकर उनके चेहरे पर मुस्कान खेलने लगी.वहां ज्यादा समय ठहराना उचित नहीं था.लिहाज़ा जल्दी से तस्वीरे दिखा कर चलने लगा.चलने के पहले जब मैंने उन्हें यह बताया कि उनकी जीवनी लिखने जा रहा हूँ ,उनके मुस्कान की लकीर और चौड़ी हो गयी.मैं भाग्यवान रहा कि हर प्रतिकूलता का सदा मुस्कुराते हुए सामना करने वाले ढसाल साहब कैंसर की पीड़ा को छिपा कर मुझ जैसे अपने गुणानुरागी को अंतिम बार भी मुस्कुराहट ही उपहार दिए.धरती के नरक से निकले अप्रतिम पैंथर को शत-शत नमन.
    • दिनांक:17 ,2014.
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    Satya Narayan

    जब क्रान्तियों की धारा बिखराव-ठहराव और पराजय के दौर से गुजरती है, जब क्रान्ति की लहर पर प्रतिक्रान्ति की लहर हावी होती है, जब क्रान्तियाँ रुककर सिंहावलोकन, आत्‍ममंथन और आत्‍मालोचन कर रही होती हैं, उस समय ज्‍़यादातर बुद्धिजीवी क्‍या कर रहे होते हैं? यह जानना दिलचस्‍प होगा।

    http://nightraagas.blogspot.in/2014/01/blog-post_7027.html

    देर रात के राग: एक अंधकार युग में ''महान'' ऐतिहासिक दायित्‍व निभाते बुद्धिजीवियों के बारे में.

    nightraagas.blogspot.com

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    • Harsh Vardhan and 6 others like this.

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    • Mk Azadपूँजी के विरुद्ध मिहनतकस वर्ग के महान संघर्ष में सारे साथी अंत तक नहीं चल पाते, कुछ बीच में ही पूँजी के दबाव के चलते या अपनी निम्न मध्यम वर्गीय चेतना के चलते घुटने टेक देते है. ऐसे में वे समूचे कमुनिस्ट आन्दोलन के बारे में नाकाम और व्यर्थ का संशय और अविश्‍वास का माहौल बनाने की कोशिस करने के सिवाय और कुछ भी कर सकने में अपने को असमर्थ पाते है, इस लिए और भी पतन के दलदल में फंसते जाते है. ऐसे लोग उस अभागे इंसान की तरह होते है जिसका सपना- इस जुल्मी दुनिया को बदलने का सपना, फिर से संगठित होने का और मजदूर वर्ग की लड़ाई में साथ खड़ा होने का सपना - मर गया होता है, विश्वास डीग गया होता है. इनके इस त्रासदपूर्ण पतन पर हम अफसोश ही कर सकते है. आज बुद्धिजीवी साथियो का सर्वहाराकरण और मजदूर साथियो का बुधिजिविकरण सचेतन रूप से हर संगठन को करने की सबसे अधिक आवश्यकता है.

    • about an hour ago· Like· 4

    • Palash Biswasविचारणीय।

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    Abhishek Srivastava shared a link.

    जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल पर विवाद

    raviwar.com

    जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल असल में भारत में लूट का खुला खेल चलाने वाली कंपनियों के प्रायोजन को लेकर बयान शुरु हो गया है

    जनज्वार डॉटकॉम

    आज जब घोटालों से सर्वाधिक कलंकित सरकार की कर्णधार कांग्रेस लगातार अपनी जमीन खोती जा रही है, तो भाजपा फिर से अपनी सांप्रदायिक छवि को मोदी के नेतृत्व में पेश करने की भरपूर कोशिश कर रही है. भ्रष्ट कांग्रेस और साम्प्रदायिक भाजपा के बीच में इस बार कॉर्पोरेट की नजर 'आप' पर है, जिसकी कोई आर्थिक नीति नहीं है…http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-06-02/69-discourse/4709-kranti-koi-numaish-nahi-for-janjwar-by-rupresh-kumar-singh

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    Deven Mewari with Laxman Singh Bisht Batrohi

    कलबिष्ट: एक कथा आख्यान


    कथाकार-उपन्यासकार मित्र डा. बटरोही ने फोन पर बातचीत में बताया है कि वे इन दिनों स्मृतियों की लंबी यात्रा कर रहे हैं और इस यात्रा में लोक कथाओं के नायकों से उनका अंतरंग संवाद हो रहा है। इधर बिनसर के निकट कोट्यूड़ गांव में कलबिष्ट मंदिर की भौतिक यात्रा के बाद वे लोकाख्यान कलबिष्ट की मानसिक यात्रा पर हैं और वहां इस आख्यान के नायक कलबिष्ट, नायिका कमला, खलनायक नौलखिया तथा लछुवा और दूसरे पात्रों के साथ सीधा संवाद कर रहे हैं।

    कल उन्होंने बताया कि उनकी यह मानसिक यात्रा पूर्ण हो चुकी है और यह यात्रावृत्तांत 'मलदेश का खशिया देवताः कलबिष्ट'के नाम से शब्दों में उतर आया है। यह लंबा आख्यान देहरादून से प्रकाशित मासिक 'पर्वतांचल'के मार्च 2014 में प्रकाशित होगा। इस अंक की अतिथि संपादक हैं दिल्ली विश्वविद्यालय की शोधछात्रा रश्मि रावत।

    डा. बटरोही का कहना है कि उन्होंने इस आत्मकथात्मक आख्यान में देश के जाने-माने इतिहासकारों के विचारों के साथ आदिम वीर खश जाति की जड़ों की तलाश की है और अपनी इस तलाश को वर्तमान समय से जोड़ा है।

    'पर्वतांचल'मार्च 2014 अंक में पढ़िएगा यह आख्यान।

    (parvatanchal@gmail.com)

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    Ak Pankaj

    3 hours ago·

    • हां, हमने झारखंड के सृजनरत और संघर्षरत
    • आदिवासी, स्त्री, दलित-पिछड़ी जनता का पक्ष चुना है.
    • साथी Satya Prakash Chaudhary, एक साझा प्रयास 'साल सकम'पर संगीन आरोप लगा कर, एक ही व्यक्ति पर ताबड़तोड़ हमला करते और वैचारिक सवाल को व्यक्तिगत बनाते हुए यह कह कर निकल लेना कि'फेसबुक पर मैं इस विवाद को यहीं विराम देता हूं', आलोचना की ईमानदारी शैली नहीं है. इसलिए इस संदर्भ में हम अपना पक्ष रखना जरूरी समझते हैं.
    • पहली बात तो यह कि आप जिसे दो प्रमुख सदस्यों का व्यक्तिगत टकराव बता रहे हैं, वह साल सकम के साथियो के लिए व्यक्तिगत बिल्कुल नहीं है, जैसा कि हमारे एक साथी विनोद कुमार जी पहले लिख चुके हैं. टकराव बिना शक वैचारिक है.
    • दूसरी बात यह कि आप यही सवाल उस दूसरे व्यक्ति से क्यों नहीं कर रहे हैं और न ही उसका नाम ले रहे हैं, क्यों? ईमानदार आलोचना का तकाजा यही है कि आप दोनों से 'शहर की पूरी प्रगतिशील जमात के विभाजन का एजेंडा'बनाने पर सवाल करते. लेकिन आप ऐसा नहीं करते हुए और पूरी सचेतनता से उस दूसरे व्यक्ति का नाम बचाते हुए सिर्फ एक पर ही हमले कर रहे हैं. क्यों साथी?
    • आग्रह है कि साल सकम में रहे उस दूसरे प्रमुख सदस्य का नाम आप जरूर बताएं जिसने आपके अनुसार 'व्यक्तिगत टकराव'को 'शहर की पूरी प्रगतिशील जमात के विभाजन का एजेंडा'बना दिया.
    • तीसरी बात यह कि 14 जनवरी का आयोजन पिछले दो साल से साल सकम कर रहा था और आप व आपके संगठन के लोग इसमें शामिल होते रहे थे. तो फिर जब संभवतः 8 जनवरी को एटीआई के आयोजन को लेकर बैठक हुई तो पहले से जारी इस सामूहिक प्रयास 'साल सकम'को तोड़ने में आपका संगठन क्यों एक प्रमुख साझीदार बना? आपने और आपके संगठन ने उसी समय एकता के प्रयास क्यों नहीं किए?
    • चौथी बात यह कि साल सकम के पांच संयोजक थे. पांचों अलग-अलग विचारों और संगठनों से जुड़े लोग हैं और अपनी वैचारिक असहमतियों के बावजूद पांचों ने एक साथ 'साल सकम'बनाया था ताकि वैचारिक संघर्ष को सामूहिक जमीन मिले. इनमें तीन Arvind Avinash, Shambhu Mahato, Ranendra Kumar) वामपंथी हैं, एक लोहियावादी Vinod Jharkhand) और आप सबके अनुसार ही हम 'अस्मितावादी'. आप जानते हैं इनमें से चार एकजुट हैं और एक ने अपना वर्गीय चरित्र दिखाते हुए खुद को अलग किया. और उसके इस गैर-जिम्मेदाराना व गैर-बिरादराना रवैए को रांची/झारखंड ईकाई के चार वामपंथी सांस्कृतिक संगठनों ने आगे बढ़कर साथ दिया. क्यों?
    • इस संदर्भ में दोहरा दूं कि 'साल सकम'का उद्देश्य झारखंड में सृजनरत और संषर्घरत व्यक्तियों, बौद्धिक संगठनों व अन्य सभी जमातों (जिनमें दलित, आदिवासी, स्त्री, पिछड़े, गांधीवादी, लोहियावादी, और वामपंथी प्रमुख हैं) में वैचारिक संघर्ष चलाते हुए व्यापक एकता कायम करना और एक साझा मोर्चा बनाना है. ऐसे महत्वपूर्ण प्रयास को मजबूत करने का काम होना चाहिए या फिर पद, पैसा व बौद्धिक लूट के जरिए जनतांत्रिक संगठनों पर एकाधिकार कायम करने वाले वर्चस्ववादी तोड़क प्रवृत्तियों का सहायक बनना चाहिए?
    • साथी, आप कहते हो 'साल सकम में आपसी मतभेद क्यों हुआ, इसमें मेरी रुचि नहीं है'और 'मतभेद' (विचार) को दरकिनार कर 'मतभेद'को व्यक्तिगत बता कर इसमें रुचि लेते हो, उसके साथ सांगठनिक गठजोड़ बनाते हो. यह कैसी 'सांस्कृतिक पहलकदमी'है?
    • और अंततः यह कि हमने 14 जनवरी के विश्वासघात पर या किसी व्यक्ति विशेष पर कोई हमला अभियान नहीं चलाया. किसी व्यक्ति विशेष का नाम लेकर तो हर्गिज नहीं. प्रवृत्तियों और विचार पर लिखा है हमेशा. हां, अस्मितावाद पर जो तथाकथित 'छद्म प्रगतिशील'व सामंती और पूंजीवादी नजरिया है, उसके खिलाफ लगातार सांस्कृतिक-राजनीतिक अभियान चलाता रहा हूं. यह अभियान तब भी चलाता था जब लिबरेशन और जसम में था. और अब भी चला रहा हूं जब साथ नहीं हूं जो आगे भी जारी रहेगा. क्योंकि हमारा स्पष्ट मानना है कि इस नजरिए के कारण दलित, आदिवासी, स्त्री और उत्पीड़ित समुदायों के सृजन और संघर्ष की ऐतिहासिक अनदेखी हो रही है. इस ऐतिहासिक अनदेखी को दुरूस्त करने की आवश्यकता है ताकि मुक्ति संघर्ष और ज्यादा संगठित व मारक बने. शोषणकारी व्यवस्था ध्वस्त हो.
    • साल सकम से अलग होने वाले साथी और तोड़क प्रयासों पर मूल पोस्ट साथी विनोद जी की थी. जिसे हमने शेयर किया. लेकिन आपने विनोद जी से कोई 'पूछताछ'नहीं की, न ही साल सकम से संबंधित अन्य तीन लोगों से आपने कोई संवाद किया. हमला सिर्फ हम पर ही क्यों?
    • Satya Prakash Chaudhary

    • अश्विनी पंकज जी, साल सकम के बारे में जो सूचना आपने दी है, उसे मैं सही मान लेता हूं और 'प्रायोजित पूंजी'वाली बात के लिए खेद प्रगट करता हूं. लेकिन इस बात से कोई कैसे इनकार कर सकता है कि साल सकम के भीतर के दो प्रमुख सदस्यों के टकराव को आपने शहर की पूरी प्रगतिशील जमात के विभाजन का एजेंडा बना दिया. फेसबुक पर अभियान शुरू कर...See More

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      • Ak PankajNadeem Akhtar, Zeb Akhtar, Syed Shahroz Quamar, Sanjay Krishna, Janwadi Lekhak Sangh Ranchi,Gladson Dungdung, Sunil Minj, Sachin Shrivastava

      • 3 hours ago· Like

      • Syed Shahroz Quamar Satya Bhai ke status par bhi kaha tha..punah wahi bat duraunga ki mahaz ek vyakti par dosharopan sahi nahin..teen saal se ek din to sabhi sath hote the..aakhir kyon alag alag huye..iska jawab kaun dega..aur kya karan rahe uske...tamaam Vaicharik matbhedon ke ek din to apan saath hote the...

      • 2 hours ago· Edited· Like· 2

      • Pramod Sharma Ab maamla samajh me aaya....yah sthiti dukhad to hai hi... Is-se hum jaise logon ko bahut takleef hoti hai jo aap sabhi logon se prem aur aasha rakhte hain!

      • 2 hours ago· Like· 1

      • Ak PankajSyed Shahroz Quamarसवाल वैचारिक है. जवाब-बहस साल सकम और उन सभी संगठनों के बीच होना चाहिए था, जो 14 का जनवरी का आयोजन पहले से करता था और जिन्होंने इस 14 जनवरी को गैर-बिरादराना ढंग से हड़पने की कोशिश की. पर टारगेट हमें किया गया. हमें कटघरे में खड़ा किया ग...See More

      • 2 hours ago· Like· 2

      • Satya Prakash Chaudhary Main koi jawab doon, isse pahle agar yah saf kar diya jaye ki Randera Kumar aur Ashwini Pankaj mein takrav kyon hua, to behtar rahega.

      • about an hour ago· Like· 1

      • Janwadi Lekhak Sangh Ranchiपंकज जी आप किन 4 सांस्कृतिक संगठनों की तरफ़ इशारा कर रहे है जिसने वर्गीय चरित्र के एक संयोजक की गैर जिम्मेदाराना हरकत में साथ दिया?

      • about an hour ago· Like

      • Syed Shahroz Quamar Satya ji aapka shukriya ki baqaul aapke is vyaktigat takrao me ab aapne dusre vyakti ka naam liya..ab Pankaj ji Aur Randendr ji ko batana chahiye ki aisa kyon hua..kyonki mujh jaise dheron logon ko ye achcha qatai nahin laga.

      • 50 minutes ago· Edited· Like

      • Satya Prakash Chaudhary Isharon mein bat se achha hai, khul kar bat ho

      • 14 minutes ago· Like

      • Ak Pankajसाथी Satya, चलिए थोड़ी देर के लिए बात मान लेते हैं कि यह मामला व्यक्तिगत है. तो सवाल सिर्फ हमीं से क्यों? पहले तो आपने हरसंभव कोशिश की दूसरे व्यक्ति का नाम न आए. हमें ही टैग कर-कर के कटघरे में खड़े करते रहे. पोस्ट विनोद जी की थी. उनको क्यों नहीं टैग किया...See More

      • 13 minutes ago· Like

      • Ak Pankajआप भी भोले नहीं हैं Janwadi Lekhak Sangh Ranchi. 14 जनवरी के समानांतर आयोजन में आपका संगठन शामिल है तो आप खूब अच्छी तरह से जानते हैं वे चार संगठन कौन हैं. और हां, साल सकम के आयोजन का आमंत्रण आपको हमने दिया था. पर एक साझा प्रयास 'साल सकम'को ध्वस्त करने की योजना और समानांतर आयोजन तय करते वक्त आपने या आपके संगठन के जो प्रतिनिधि 8 जनवरी की बैठक में शामिल हुए थे, उन्होंने इस तोड़क प्रयास पर सवाल क्यों नहीं उठाया?

      • 12 minutes ago· Like

      • Praveer Peterलगे रहो .. साथियो !

    Arvind Kejriwal

    Met the Home Minster, Mr. Shinde today. We have asked him to ensure that action is taken against the Delhi police officers who have been found negligent in their duties. This is to ensure that the police understand their responsibility towards the citizens of Delhi and do not allow negligence to creep in. We will protest along with citizens of Delhi outside his office starting Monday if action against the errant cops is not taken.


    We have also demanded that the Delhi Police be moved under the direct control of the Delhi Govt.


    Instead of hiding behind excuses, we are taking affirmative action to ensure safety & security of the people of Delhi. We will take all necessary steps to ensure that.

    Unlike·  · Share· 57,4357,9293,365· 21 hours ago·

    Satya Narayan posted in 4 groups.

    माँगपत्रक शिक्षणमाला - 6 प्रवासी मज़दूरों की दुरवस्था और उनकी माँगें मज़दूर आन्दोलन के एजेण्�

    mazdoorbigul.net

    काम की तलाश में लगातार नयी जगहों पर भटकते रहने और पूरी ज़िन्दगी अनिश्चितताओं से भरी रहने के कारण प्रवासी मज़दूरों की सौदेबाज़ी करने की ताक़त नगण्य होती है। वे दिहाड़ी, ठेका, कैजुअल या पीसरेट मज़दूर के रूप में सबसे कम मज़दूरी पर काम करते हैं। सामाजिक सुरक्षा का कोई भी क़ानूनी प्रावधान उनके ऊपर लागू नहीं हो…

    • Satya NarayanGround Report India Discussion Forum
    • काम की तलाश में लगातार नयी जगहों पर भटकते रहने और पूरी ज़िन्दगी अनिश्चितताओं से भरी रहने के कारण प्रवासी मज़दूरों की सौदेबाज़ी करने की ताक़त नगण्य होती है। वे दिहाड़ी, ठेका, कैजुअल या पीसरेट मज़दूर के रूप में सबसे कम मज़दूरी पर काम करते हैं। सामाजिक सुरक्षा का कोई भी क़ानूनी प्रावधान उनके ऊपर लागू नहीं हो पाता। कम ही ऐसा हो पाता है कि लगातार सालभर उन्हें काम मिल सके (कभी-कभी किसी निर्माण परियोजना में साल, दो साल, तीन साल वे लगातार काम करते भी हैं तो उसके बाद बेकार हो जाते हैं)। लम्बी-लम्बी अवधियों तक 'बेरोज़गारों की आरक्षित सेना'में शामिल होना या महज पेट भरने के लिए कम से कम मज़दूरी और अपमानजनक शर्तों पर कुछ काम करके अर्द्धबेरोज़गारी में छिपी बेरोज़गारी की स्थिति में दिन बिताना उनकी नियति होती है।

    • http://www.mazdoorbigul.net/Charter-of-demand-education-series-6

    • Like·  · Share· about an hour ago·

    Nityanand Gayen

    पंजे की पकड़ में

    http://khabar.ndtv.com/video/show/special-report/305762

    स्पेशल रिपोर्ट : किसानों की आत्महत्या क्यों... वीडियो - हिन्दी न्यूज़ वीडियो एनडीटीवी ख़बर

    khabar.ndtv.com

    स्पेशल रिपोर्ट : किसानों की आत्महत्या क्यों... हिन्दी न्यूज़ वीडियो। एनडीटीवी खबर पर देखें समाचार वीडियो स्पेशल रिपोर्ट : किसानों की आत्महत्या क्यों... दिल्ली सरकार ने किसानों को कर्ज मुक्त करने का ऐलान किया। घोषणा के बाद लगातार किसानों की आत्महत्या का सिलसिला जारी है। किसानों पर केंद्रित यह स्पेशल…

    Unlike·  · Share· 6 hours ago near Hyderabad· Edited·

    Palash Biswas

    http://raviwar.com/baatcheet/b51_abhay-kumar-dubey-interview-by-alok-putul.shtml

    अभय कुमार दुबे से आलोक प्रकाश पुतुल की बातचीत

    raviwar.com

    लेखक पत्रकार अभय दुबे का मानना है कि भारत में माओवादियों का कोई भविष्य नहीं है.

    Like·  · Share· 3 hours ago·

    आरामतलब साहित्यकारों की फौज का महोत्सव

    यह नवमध्यवर्ग भूमंडलीकरण की देन है

    नई दिल्ली। जयपुर साहित्य महोत्सव के विरुद्ध अकादमिक जगत में विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं। साहित्य के नाम पर कॉरपोरेट तमाशे के खिलाफ हिंदी के गम्भीर और सरोकारी साहित्यकारों के आवाज़ उठाई है और इस महोत्सव की आड़ में कॉरपोरेट षड़यंत्र को बेनकाब किया है। "भोर"पत्रिका की ओर से रंजीत वर्मा और अंजनी कुमार ने इस सम्बंध में एक साझा वक्तव्य जारी किया है जो इस प्रकार है-

    जयपुर साहित्‍य महोत्‍सव के विरुद्ध एक वक्‍तव्‍य

    जयपुर साहित्य महोत्सव महज महोत्सव नहीं है और वे भी इस बात को छिपा नहीं रहे हैं। अगर यह सिर्फ महोत्सव होता तो मौखिक भर्त्‍सना ही काफी होती या महज उपेक्षा ही इनको मार देने के लिये पर्याप्त होती। अगर मकसद सिर्फ दुनिया भर के लेखकों का आपस में मिल कर मानवता के दुख पर बात करना होता तो भला किसे आपत्ति होती। हां, इतना ज़रूर कोई कह उठता कि मानवता के दुख पर बात करने के लिये ये हर बार जयपुर को ही क्यों चुनते हैं। और वहाँ भी बातचीत के लिये महल में क्यों जा बैठते हैं। या इसी तरह के कुछ और सवाल होते जिनसे बचने के लिये हो सकता है वे अपने कार्यक्रम में कुछ तब्दीली भी ले आते, लेकिन मामला सीधे तौर पर देखा जाये तो इतना भर ही नहीं है। यहाँ वे कार्यक्रमों में कुछ बदलाव लाकर कोई सुधार नहीं कर सकते क्योकि मामला बेहद गम्भीर है और लेखकों के हाथ से बाहर है। क्योंकि वे खुद को आयोजकों के हाथों सुपुर्द किये होते हैं और सच पूछा जाये तो आयोजक की भी वहाँ कोई हैसियत नहीं होती बल्कि वह प्रायोजकों का कारिंदा भर होता है।

    दरअसल, यह सारा खेल प्रायोजक का है जिसके पीछे उसकी अपनी सोची-समझी राजनीति है। लेकिन हम यह भी नहीं कह सकते कि जो लेखक वहाँ जाते हैं वे उनकी राजनीति का शिकार होते हैं क्योंकि इनमें से कई लेखकों के लेखन का आधार वही राजनीति होती है। ऐसे लेखक साहित्य में खुद को सही सिद्ध करने के लिये कॉर्पोरेट ताकत का सहारा लेने वहाँ जाते हैं जबकि जो कॉर्पोरेट ताकतें हैं वे विरोध के एकमात्र क्षेत्र साहित्य को अपने अनुकूल करना चाहती हैं, साथ ही अपनी छवि मानवीय और खुद को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रहरी के तौर पर स्थापित करना चाहती हैं। इसके अलावा ये कॉर्पोरेट ताकतें खुद को सही भी साबित करना चाहती हैं क्योंकि उनकी ताकत जिस पूँजी पर टिकी होती है उसका बहुत बड़ा भाग वे लूट, हत्या और दलाली से पैदा करती हैं। उनका तर्क होता है कि जिसका कहीं कोई विरोध नहीं होता वह सही होता है। इसलिये वे तमाम तरह के विरोध को या तो खरीदने की कोशिश करती हैं या उसे हमेशा के लिये खत्म कर देने की।

    बहुत दिनों से जबकि एक ओर लोग इस बात को लेकर परेशान थे कि हिंदी साहित्य में आखिर कोई भी बड़ा साहित्यकार ऐक्टिविस्ट क्यों नहीं हुआ, वहीं दूसरी ओर कॉर्पोरेट ताकतें इस कमजोरी को सेंध लगाने के एक तैयार मौके के रूप में देख रही थीं। आज जो यह जयपुर साहित्य महोत्सव इतना विशाल दिख रहा है, उसके पीछे ऐसे आरामतलब साहित्यकारों की एक पूरी फौज का खड़ा हो जाना है जो नवमध्यवर्ग से आए हैं। यह नवमध्यवर्ग भूमंडलीकरण की देन है, और यह भूमंडलीकरण कॉर्पोरेट ताकतों की मानसिक उपज है जिसे दुनिया भर के शासक सच साबित करने पर न सिर्फ खुद तुले हैं बल्कि उन्हें भी उसने छूट दे रखी है कि वे अपनी ताकत भी अपनी इस मानसिक उपज को सच साबित करने में लगाएं।

    कोई पूछ सकता है कि आखिर इन सबका अभिप्राय क्या है? तो जैसा कि ऊपर कहा गया, इन सबका एकमात्र मतलब अपनी लूट को बेरोकटोक बनाए रखना है, इसलिये वे तमाम सोचने वाले दिमागों को अपनी सोच के अनुकूल बनाना चाहते हैं। हालांकि उन्हें पता होता है कि चाहे वे जितनी भी ताकत लगाएं कई ऐसे लोग होंगे जो तब भी उनका विरोध करेंगे। ये तमाम बड़े कार्यक्रम किये ही इसलिये जाते हैं ताकि ऐसे विरोधियों को हाशिये पर फेंका जा सके, ठीक उसी तरह जैसे ये किसानों को फेंक देते हैं जब गांव के गांव हथियाने निकलते हैं; ठीक उसी तरह जैसे आदिवासियों को धकिया देते हैं जब जंगल के जंगल अपने कब्जे में करने का नक्शा कागज़ पर तैयार करते हैं।साहित्य का असल मकसद क्या है, उसे वे तय करना चाहते हैं जिसे वे स्वान्तः सुखाय से शुरू करते हैं। वे कई बार अपने यहाँ विरोध के स्वर को भी उठने देते हैं ताकि विरोधियों को लगे कि वह एक खुला मंच है और वे वहाँ जाने में कोई पाप न देखें। लेकिन यह मुआवज़े से ज्यादा कुछ नहीं होता है। जैसे वे किसानों को देते हैं, आदिवासियों को देते हैं, ठीक उसी तरह वे विरोधी विचारों को भी मुआवज़ा देने में कोई गुरेज़ नहीं करते। इस तरह वे विरोधी विचार को एक तरह से खरीद लेते हैं और उसकी धार को कुंद कर देते हैं। मुआवज़ा लेने के बाद जिस तरह किसान या आदिवासी अपनी ज़मीन या जंगल की लड़ाई जारी रखने का नैतिक अधिकार खो देता है, उसी तरह लेखक भी अपने विचार की लड़ाई फिर नहीं लड़ पाता।

    ''भोर''पत्रिका ऐसे किसी भी महोत्सव, समारोहों या आयोजनों की भर्त्‍सना करती है और तमाम साहित्यकारों से अपील करती है कि वे जयपुर साहित्य महोत्सव का बहिष्कार करें और अपनी भूमिका पर गम्भीरता से विचार करें।

    "भोर"पत्रिका की ओर से

    रंजीत वर्मा और अंजनी कुमार द्वारा जारी


    Cinema of Resistance reached Kolkata कोलकाता पहुंचा जसम का प्रतिरोध का सिनेमा Kolkata People's Film Festival Entry absolutely FREE. No Sponsor.RUSH.

    Previous: जिनसे अमेरिका को कोई खतरा नहीं है,अमेरिकी उनकी जासूसी नहीं करता! ओबामा के भाषण को ध्यान से पढ़ें तो भारतीय सत्तावर्ग का आधार अभियान समझ में आ जाना चाहिए।जाहिर है कि नागरिकों की खुफिया जानकारी का भारत देश की एकता और अखंडता से कोई लेना देना नहीं है।यह खालिस मुक्त बाजार के हित में कारपोरेट सफाया अभियान का एजंडा है।इस एजंडा को पूरा करने में जायनवादी धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद अचूक हथियार है,जिसका इस्तेमाल सभी पक्ष कर रहा है। आदमजाद नंगा होकर अब मुक्त बाजार के महोत्सव में हम जश्न ही मना सकते हैं,अपनी जान माल की हिफाजत नहीं।
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    Cinema of Resistance reached Kolkata

    कोलकाता पहुंचा जसम का प्रतिरोध का सिनेमा

    Palash Biswas

    Kolkata People's Film Festival

    Entry absolutely FREE. No Sponsor.RUSH.

    A Cinema of Resistance initiative

    Cinema of Resistance reached Kolkata.I have been following the movement since it began. It is personally satisfying that our dear Sanju alias Sanjay Joshi is the Convener, Cinema of Resistance, JSM. I have seen him as a student of class six or seven while I stayed with them at their residence in Allahabad.100,lookerganj is a milestone for me. We are a family which is scattered all over India.


    Kashturi and our old friend Rajiv talked in detail but I was waiting for the detail.I would join them on the second day.


    Nakul kumar Singh would present a show on Matuti strike also.The festival would witness another current film, `Mujaffarnagr Destimonals'.The audiance would also enjoy the punjabi film, `Anne Ghode da dan'


    I appeal all friends in Kolkata and around to participate from the beginning.Cine club movement is an old movement in kolkata. Nevertheless,it is a beginning as the festival is concerned with resistance which is assumed to be quite absent.The festival would help you to land right into the reality of resistance countrywide.


    I hope,no one concerned with Indian reality would afford to miss the most happening event in the city of joy which is also famous as city of resistance.


    Film maker Surya kant Das would be presenting the story of resistance in Orrissa.


    आखिरकार देश के छोटे नगरों में हंगामा बरपाने के बाद प्रतिरोध का सिनेमा कोलकाता पहुंच ही गया। हम सबके प्रिय कथाकार शेखर जोशी जी के सुयोग्य बेटे संजय जोशी,हमारा संजू इस आंदोलन के संयोजक हैं। जो निजी तौर पर शुकुन देता है।


    इस फिल्मोत्सव में जहां आनंद पटवर्धन जैसे प्रतिष्ठित फिल्मकार के सिनेमा से गुजरने का ेक बार फिर मौका मिलेगा कोलकातावासियों कोक्योंकि कोलकाता में आनंदअत्यंत प्रिय फिल्मकार हैं तो नये फिल्मकारों के अति महत्वपूर्ण सामाजिक सरोकार से सरोबार करतब और करिश्मे के भी मुखातिब होंगे आप।मसलन मुजफ्फरपुर के दंगा अनुभव से भी गुजरकर लहूलुहान होना है।


    जनसंस्कृति मंच की ओर से इस तीन दिवसीय फिल्मोत्सव का आयोजन जादवपुर विश्वविद्यालय के त्रिगुमा सेन आडिटोरियम 20 जनवरी से यानि सोमवार से हो रहा है।आगामी 22 जनवरी तक होने वाले इस समारोह में महत्वपूर्ण  फिल्मों के प्रदर्शन के अलावा फिल्म विधा पर सेमिनार,परिचर्चा और संवाद के तहत अन्य गतिविधियों का भी आयोजन है। कस्तूरी और उनकी टीम ऐतिहासिक शुरुआत कर रही हैं।


    इस फिल्मोत्सव के सारे कार्यक्रम सुबह ग्यारह बजे से लेकर रात आठ बजे तक चलेंगे। प्रवेश अबाध है।हाल में जयपुर के कारपोरेट साहित्य उत्सव के मुकाबले इस नगण्य लेकिन अत्यंत संवेदनशील फिल्मोत्सव का कोई प्रायोजक भी नहीं है। किसी महानगर के वाणिज्यिक चरित्र के मद्देनजर यह अतिशय महत्वपूर्ण है।


    इस फिल्मोत्सव में आनंद के अलावा तारिक मसूद,कैथरीन मसूद,मंजिरा दत्त,वसुधा जोशी,रंजना पालित और गुरविंदर सिंह की फिल्में भी दिखायी जायेंगी।मुजफ्फरनगर दंगों पर फिल्म मिस की नहीं जा सकती तो ओड़ीसा के प्रतिरोध संघर्ष की दास्तां भी पेश करेंगेफिल्मकार सूर्यकांत दास।


    सोमवार को सुबह 11 बजे फिल्म व नाट्य समीक्षक शमीक बंद्योपाध्याय समारोह का उद्घाटन करेंगे।इल मौके पर संजय काक,सूर्यकांत दास,संजय जोशी,नकुल सिंह साहनी,रानू घोष,विक्रमजीत गुप्ता, मैनाक विश्वास, मौसमी भौमिक,राजीव कुमार और सूर्यकांत मजुमदार जैसे लोग उपस्थित रहेंगे।




    Cinema of Resistance National Initiative

    Kolkata Chapter

    Address: K-231/4 B. P. Township

    Flat No. 32, Kolkata 700094

    Phone:+91-8902550931

    Email:cor.kolkata@gmail.com

    Website: http://corkolkata.wordpress.com/

    To: the News Editor

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    Press Release

    KOLKATA, 16th January 2014

    During January 20-22, the Kolkata Chapter of 'Cinema of Resistance' national initiative will organize the 1st Kolkata People's Film Festival. This festival is the 35th edition of a series of peoplefunded independent film festivals organized regularly by 'Cinema of Resistance' in cities and towns of north India over the past eight years. This is the first time that such a film festival is being organized in West Bengal. The festival will be attended by a number of filmmakers, including Sanjay Kak, Moinak Biswas, Ranu Ghosh, Bikramjit Gupta, Nakul Singh Sawhney, Surya S Dash and ethnomusicologist Moushumi Bhowmik.


    A pre-festival Press Meet will be held at the Buddhadeb Basu Sabhaghar auditorium (inJadavpur University campus) on Saturday, 18th January 2014 at 2:00 pm. You are cordially invited to attend.


    Kasturi Basu. Convener, Cinema of Resistance (Kolkata Chapter)

    Sanjay Joshi. National Convener, Cinema of Resistance

    1st Kolkata People's Film Festival

    Co-organized by People's Film Collective (Kolkata) and

    The Group (Jan Sanskriti Manch)

    Welcome to Kolkata People's Film Festival 2014  

    Dates: 20-22 January 2014

    Venue: Triguna Sen Auditorium, Jadavpur

    Time: 11 am to 9 pm

    Tickets/passes: None!

    Organized by- Cinema of Resistance (Kolkata Chapter), People's Film Collective and The Group (Jan Sanskriti Manch)

    RSVP at Facebook event page or cor.kolkata@gmail.com


    कोसी घाटी की विरासत

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    कोसी घाटी की विरासत


    पिछले कुछ दिनों से सोमेश्वर की कोसी घाटी लगातार सुर्खियों में है. अल्ट्राटेक कम्पनी की ओर से यहां पर 20 लाख टन उत्पादन क्षमता का एक सीमेंट प्लांट लगाये जाने के प्रस्तावित मामले ने इस घाटी में निवास करने वाले लोगों और पर्यावरण प्रेमियों को भारी चिन्ता में डाल दिया है...

    चंद्रशेखर तिवारी


    'कदाचित पहाड़ी इलाकों में सोमेश्वर के समीप बौरारौ की कौशिला (कोसी) से अधिक सुन्दर और कोई घाटी नहीं है. यहां की नैसर्गिकता, नदी-नाले और जंगल, उपजाऊ खेत, सुन्दर वास्तुकला से युक्त लोगों के घर कुल मिलाकर एक ऐसा दृश्य उत्पन्न करते हैं, जो कि सम्भवत पूरे एशिया में कहीं न हो.'

    someshwar-ghati

    तकरीबन 20 किमी लम्बी व 5 किमी चौड़ी सोमेश्वर की इस अदभुत घाटी पर यह टिप्पणी 1851 में मिस्टर जे0 एच0 बैटन नाम के एक ब्रिटिश अधिकारी द्वारा ऑफिसियल रिपोर्ट ऑन द प्रोविन्स ऑफ कुमांऊ में दी गयी थी.

    पिछले कुछ दिनों से सोमेश्वर की यह कोसी घाटी लगातार सुर्खियों में है. अल्ट्राटेक कम्पनी की ओर से यहां पर 20 लाख टन उत्पादन क्षमता का एक सीमेंट प्लांट लगाये जाने के प्रस्तावित मामले ने इस घाटी में निवास करने वाले लोगों और पर्यावरण प्रेमियों को भारी चिन्ता में डाल दिया है. हालांकि मामला अभी शुरुआती दौर में ही है.

    सामाजिक मुद्दों से सरोकार रखने वाले तमाम लोग सोमेश्वर घाटी के लिए इस प्रस्तावित सींमेंट प्लांट को कतई भी मुफीद नहीं मान रहे. दरअसल, सीमेंट बनाने में चूना पत्थर खडि़या पत्थर, रेत आदि के इस्तेमाल होने के कारण इनका अत्यधिक दोहन होगा, जिससे यहां के पहाड़ छलनी हो जायेंगे.

    सीमेंट निर्माण में अत्यधिक उच्च तापमान की आवश्यकता से वातावरण में तापमान बढ़ने और उत्सर्जित होने वाली हानिकारक गैसों से वनस्पति को नुकसान पहुंचने की आशंका होगी. यही नहीं प्लांट से निकलने वाली धूल के दुष्प्रभाव का असर मानव के स्वास्थ्य पर भी पडे़गा.

    सोमेश्वर क्षेत्र में जहां इस प्लांट को लगाये जाने की बात कही जा रही है, वह अल्मोड़ा जिले की एक अत्यन्त उपजाऊ घाटी में स्थित है. कौसानी के समीपवर्ती उच्च शिखर भटकोट (2400 मीटर) से निकलने वाली कोसी (कौशिकी, कोशिला अथवा कौशल्या नाम भी) इस घाटी के बीच से होकर बहती है.

    अपने मूल स्रोत से तकरीबन 170 किमी की यात्रा पूरी कर कोसी नदी सुल्तानपुर पट्टी के बाद पश्चिमी रामगंगा में मिल जाती है. कुमाऊं में कोसी समेत करीब एक दर्जन से अधिक नदी घाटियां हैं. कुमाउंनी भाषा में इस तरह की सिंचित व चैरस घाटियों को सेरा या बगड़ कहा जाता है. नदियों द्वारा बहाकर लायी मिट्टी-कंकड़ व गोल पत्थरों से निर्मित इस तरह की घाटियां प्रायः नदी तट से लगी हुयीं अथवा उससे कुछ ऊपर होती हैं.

    तकरीबन 150 गांवों को अपने गोद में समेटे सोमेश्वर की यह घाटी अपनी नैसर्गिक सुन्दरता, विपुल प्राकृतिक सम्पदा, उपजाऊ खेती के लिए विख्यात है. इस घाटी में धान, गेहूं, सरसों, अदरक, प्याज व आलू की भरपूर फसल होती है. सामाजिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक संदर्भों में भी यह घाटी विशेष है.

    आजादी के दौर में चनौदा में स्थापित उत्तराखण्ड का पहला गांधी आश्रम, प्रसिद्ध समाज सेविका सरला बहन द्वारा महिला उत्थान व पर्यावरण संरक्षण के लिए खोला गया कौसानी का लक्ष्मी आश्रम, ऐतिहासिक व पुरातत्व की दृष्टि से सोमेश्वर, व गणानाथ के प्राचीन मन्दिर, ऐड़ाद्यौ, पिनाकेश्वर, रुद्रधारी जैसे तपोस्थल... और परम्परा में रची-बसी तमाम लोक गाथाएं, किस्से व कहानियां....यह सब इस घाटी को एक समृद्ध विरासत का स्वरुप प्रदान करती हैं.

    धान की रोपाई के दौरान लगने वाले हुड़किया बौल ( खेती से जुड़ा लोकगीत) यहां की लोक परम्परा का एक जीवन्त उदाहरण है -

    ये सेरी का मोत्यूं तुम भोग लगाला होऽ
    सेवा दिया बड़ा हो ऽ
    ये गौं का भूमिया परो दैणा होया होऽ
    हलिया व बल्दा बरोबरी दिया होऽ
    हाथों दिया छावो हो, बिंया दिया फारो होऽ
    पंचनामो देवा होऽ

    (अर्थात हे देवता! इन खेतों में उगे मोती के समान धान आपको भोग के लिए अर्पित हैं. हे भूमि देवता! हमारी इन फसलों पर अपनी कृपा निरन्तर बनाये रखना. रोपाई लगाने वाले और पाटा फेरने वाले को बराबर मान देना. हलवाहे और बैलों को एक समान गति प्रदान करना. रोपाई लगाने वाले के हाथ अनवरत चलते रहें और रोपाई के ये पौंध सभी खेतों के लिए पूर्ण हों हे पंचनाम देवता!)

    यह वही घाटी है, जिसके चन्द दूरी पर स्थित कौसानी नामक स्थान में महात्मा गांधी ने कुछ दिन प्रवास करने के उपरान्त यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य की तुलना स्विटजरलैण्ड से की थी. धर्मवीर भारती की पुस्तक 'ठेले पर हिमालय'के सभी मनमोहक दृश्यों के वे तमाम रंग -....कल-कल करती हुई कोसी... सुन्दर गांव और हरे मखमली खेत... पहाड़ी डाकखाने, चाय की दुकानें व.....नदी-नालों पर बने हुए पुल... इस घाटी के कैनवास में अब भी मौजूद हैं.

    लद्दू घोडे़ की चाल चलते घराटों की खिचर-खिचर आवाज के बीच कोसी का घटवार (शेखर जोशी की कहानी) के मुख्य पात्र गुसांईं व लछमा के सुख-दुखों को अब भी यहां के जनजीवन में निकट से देखा जा सकता है.

    सही मायने में कोसी घाटी की समृद्ध विरासत से जुड़ा यह प्रश्न पहा़ड़ के संवेदनशीलता और उसके विशिष्ट भौगोलिक परिवेश के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. सरकार को इस प्रकार के त्वरित विकासों के बदले उन दीर्घकालिक विकास परियोजनाओं को वरीयता देने की पहल करनी होगी, जिससे देर-सबेर सीमित मात्रा में ही सही पर उसका लाभ बगैर किसी प्रतिकूल प्रभाव के निरन्तर मिलता रहे.

    बेहतर होगा यदि सरकार इस प्लांट को लगाने के बजाय यहां के जल, जंगल व जमीन के संरक्षण पर अपना ध्यान केन्द्रित करे और स्थानीय खेती-बाड़ी को बढ़ावा देकर उसे रोजगार से जोड़ने का यत्न करे. खैर, अब भी बहुत वक्त है. आखिर हम सभी को इस सुरम्य घाटी को ग्रहण लगने से पूर्व बचाने का यत्न करना ही चाहिए.

    chandrashekhar-tiwariचंद्रशेखर तिवारी दून पुस्तकालय में रिसर्च एसोसिएट हैं.

    माकपाई नेतृत्व पर ऊंची जातियों के वर्चस्व के खिलाफ बंगाल में बगावत तेज ‘উচ্চবর্ণ’ সিপিএম নেতৃত্বের বিরুদ্ধে বিদ্রোহ দাবানল প্রায়

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    माकपाई नेतृत्व पर ऊंची जातियों के वर्चस्व के खिलाफ बंगाल में बगावत तेज


    'উচ্চবর্ণ'সিপিএম নেতৃত্বের বিরুদ্ধে বিদ্রোহ দাবানল প্রায়


    एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

    Read:http://antahasthal.blogspot.in/


    भरतीय ही नहीं,विश्वभर में कम्युनिस्ट आंदलोन में विचारधारा पर सहमति असहमति के मुद्दे पर पार्टी का विभाजन आम है।भारत में ऐसे ही मतभेद की वजह से क्मुनिस्ट पार्टी दो फाड़ हो गयी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का जनम हो गया। साठ के दशक में कामरेड चारु मजुमदार के दस्तावेजों के तहत नक्सल आंदोलन शुरु हुआ जो अब अनेक धड़ों में विभाजित है। हाल में माकपा की जेएनयू शाखा ने भी विचाधारात्मक मुद्दे पर प्रसेनजीत बोस के नेतृत्व में बगावत कर दी। बंगाल में समीर पुतुतुंडु की अगुवाई में पीडीएस पहले से है।


    संगठनात्मक स्तर पर खासकर माकपा बहुत संगठित पार्टी रही है। खासकर बंगाल में पैंतीस साल के वामराज में उसके कैडरतंत्र की देश विदेश में धूम रही है।कामरेड ज्योति बसु ने ऐतिहीसक भूल मानने के बावजूद पार्टी के फैसले के मुताबिक प्रधानमंत्री पद ठुकरा दिया। हाल में लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने बारत अमेरिका परमाणु संधि पर पार्टी फैसले के खिलाफ जाकर बतौर लोकसभाध्यक्ष अपनी भूमिका निभायी तो उन्हें पार्टी ने बाहर का दरवाजा दिखा दिया। फिर बंगाल के नेतृत्व की जबर्दस्त जोर आजमाइश के बावजूद अभी उनकी पार्टी में वापसी हो नहीं सकी है।


    लेकिन केरल में विजयन अच्युत्यानंदन विवाद के बाद दोनों को पार्टी में बनाये रखने के बाद से पार्टी संगठन पर माकपा नेतृत्व का नियंत्रण लगता है कि खत्म ही हो गया है।जिसे जो मन हो रहा है,सार्वजनिक मंच से दूसरी बुर्जुआ पार्टी के आम रिवाज की तर्ज पर बोल रहा है।याद करें कि बंगाल के दिवंगत कामरेड सुभाष चक्रवर्ती अपने विवादास्पद वक्तव्यों के लिए कितनी बार अनुशासित किये गये।


    बंगाल में तख्ता पलट के बाद और केरल में विजयन अच्युत्यानंदन प्रकरण के बाद पार्टी नेतृत्व का अंकुश ढीला पड़ गया है। कामरेड महासचिव प्रकाश कारत ने परेशान होकर सोशल मीडिया पर मतामत को रोकने के लिए फतवा भी जारी कर दिया कि पार्टीजन सोशल नेटवर्किंग का कोई खाता न रखें। बंगाल में माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती और ऋतवर्त जैसे दिग्गज कामरेड बदस्तूर फेसबुक परबने हुए हैं।


    पार्टी नेतृत्व की हुक्म उदुली का सिलसिला हालांकि जनाधार वापस लेने की मुहिम से शुरु हुई। बंगाल राज्य व जिला नेतृत्व में फेरबदल की मांग सभी स्तरों से उठायी गयी,जो सिरे से खारिज करदी गयी। किसान सभा के राष्ट्रीय नेता रज्जाक मोल्ला ने अखबारों में बाकायदा बयान देकर कहा कि माकपा नेतृत्व पर ऊंची जातियों का वर्चस्व है।उनके मुताबिक जब तक अनुसूचितों,पिछड़ों और अल्पसंख्यक समुदायों को संगठन के सभी स्तरो पर नेतृत्व में लाया नहीं जाता,जनाधार वापस नहीं होगा। लेकिन बंगाल में सांगठनिक चुनावों में नेतृत्व के ढांचे में कोई बुनियादी परिवर्तन हुआ नहीं।जबकि रज्जाकमोल्ला का अभियान जारी है।


    वंचित समुदायों की ओर से वामपंथी विचारधारा और आंदोलन पर जाति वर्चस्व और वर्ण वर्चस्व के आरोप लगते रहे हैं।बंगाल में चूंकि बाकी दलों में भी हालत कमोबेश एक सी है। इसलिए ऐसे आरोप को कामरेड नेतृत्व ने कभी तवज्जो नहीं दी है।इसी बीच बंगाल में पैंतीस साल के वाम शासन का सबसे बड़ा आधार अल्पसंख्यक वोट बैंक से ममता बनर्जी ने कामरेडों को बेदखल कर दिया है।कामरेड मोल्ला बंगाल में सबसे ऴजनदार अल्पसंख्यक कामरेड हैं। लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई और न सार्वजनिक मंचों से पार्टी परवर्ण वर्चस्व और जाति वर्चस्व के आरोप लगाने के लिए उन्हें दिवंगत कामरेड सुभाष चक्रवर्ती की तरह अनुशासित किया जा रहा है।


    इस बीच यह विवाद दावानल की तरह भड़कने लगा है। पार्टी संगठन पर ऊंची जातियों के वर्चस्व के खिलाफ नंदीग्राम जनसंहार मामले में मुख्य अभियुक्त पूर्व सांसद लक्ष्मण सेठ भी मुखर हो गये हैं।अल्पसंख्यकों की तरह अनुसूचितों के वोट बैंक से भी ममता दीदी ने कामरेडों को बेदखलकर दिया।सत्ता में रहते हुए जो लोग वर्ण व्यवस्था के मुताबिक सत्ता सुख बोग रहे थे,वे अब एक एक करके मुकर होने लगे हैं।


    लक्ष्मण सेठ के मुताबिक वंचित समुदाय से होने की वजह से ही इस्तेमाल करके पार्टी ने उनको बलि का बकरा बना दिया है।इसके साथ ही उन्होंने चेतावनी भी देदी है कि अगर पार्टी नेतृत्व पर ऊंची जातियों का वर्चस्व इसीतरह बना रहेगा तो जनाधार तो वापस होगा ही नहीं,राजनीति की  मुख्यधारा में पार्टी की वापसी का सपना भी कभी पूरा नही होगा।उन्होंने माकपा के मौजूदा संकट के लिए पार्टी नेतृत्व को ही जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि तृणमूल कांग्रेस की अगुवाई में नंदी ग्राम और सिंगुर से शुरु भूमि आंदोलन का मुकाबला करने में पार्टी नेतृत्व बुरीतरह नाकाम रहा है।


    गौरतलब है कि  प्रकाश कारत को शायद अब यह समझ में नहीं रहा है कि जनसंवाद के जरिये पार्टी के जनाधार को विस्तार दें या बंगाल और केरल में कामरेडों को अनुशासित रखें। जो लोग आप प्रसंग में कामरेड महासचिव के बयानों से उत्साहित होकर सोच रहे थे कियुवाओं की समस्याओं को समझने और उनसे संवाद करने को उन्होंने जरूरी नहीं समझा,वे शायद गलत हैं।आप की टीम में सूचना तकनीक के विशेषज्ञ बेहतरीन लोग हैं और उनके दिल्ली करिश्मे से उत्साहित होकर कारत ने पार्टीजनों को आप  के तौर तरीके से सीखने का सबक दिया,यह बहुत पुराना किस्सा नहीं है।लेकिन अब उन्होंने कोच्चिं से बयान जारी करके फतवा दिया है कि सोशल मीडिया में अपनी राय दर्ज कराना अनुशासन भंग में शामिल है।यह ममला संगीन है क्योंकि लोकसभा चुनाव के पहले माकपा अपने कैडरों को उत्साहित करने के लिए तृणमूल कांग्रेस सरकार के खिलाफ डायरेक्ट एक्शन (सीधा हमला) करने की घोषणा की है। इस नये फतवे से कैडर कितने उत्साहित होंगे ,इसपर ही सवालिया निशान लग गया है।हालांकि माकपाई हमेशा की तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन लगाने से अब भी बच रहे हैं।


    जैसा कि हमने पहले ही लिखा है कि वामदलों को आप के उत्थान में नमोमय भारत निर्माण में उतनी दिलचस्पी नहीं है जितना कि ममता बनर्जी को हाशिये पर रखकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने और खासकर बंगाल और केरल में अपना वजूद कायम रखने की है।हम यह भी लिख चुके है ंकि दीदी एकझटके के साथ एक दो सीटें आप को बंगाल में देकर माकपा का खेल बिगाड़  सकती हैं। मोदी का समर्थन करने पर उनका वोट बैंक समीकरण गड़बड़ा सकता है  लेकिन आप से समझौता करने पर ऐसा कोई खतरा नहीं है।


    आप ने कारत का बयान आते ही वामशासन में वाम के बंगाल में किये कराये के मद्देनजर वाम के साथ तीसरे मोर्चे के गठन की संभावना सिरे से खारिज कर दिया तो दीदी अब आप की तारीफ करने लगी हैं।यानी तीसरे मोर्चे की वाम परियोजना में मुलायम सिंह के अलावा कोई और वामपक्ष में नहीं दीख रहा है।


    कांग्रेस की हालत पतली देखकर पहले ही मुलायम भाजपा की तारीफ कर चुके हैं और मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अल्पसंख्यकों में उनकी साख खराब हो गयी है,इसपर तुर्रा यह कि कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी को उत्तर प्रदेश में  पूरे पचास सीटें देकर उससे महाराष्ट्र,पंजाब और हरियाणा मे ंगठबंधन करने जा रही है।


    बिहार में भी कांग्रेस के साथ राजद और लोजप के गठबंदन के बाद नीतीश कुमार के उस गठबंधन में शामिल होने की संबावना नहीं है। ऐसे में मुलायम और नीतीश के सामने सारे दूसरे विकल्प खुले हैं,ऐसे विकल्प जो वाम दलों को मंजूर होगा नहीं।


    राष्ट्रीय राजनीति में एकदम अकेले हो जाने के सदमे में लगता है कि कामरेड महासचिव को आप की तारीफ में वाम कार्यकर्ताओं को दी गयी नसीहत याद नहीं है।अब वे फेसबुक,ट्विटर और ब्लाग के खाते खोलकर अपनी राय देने वाले माकपाइयों को अनुशासित करने लगे हैं।


    बंगाल में सुजन चक्रवर्ती और ऋतव्रत जैसे तमाम खास कार्यकर्ता सोशल नेटवर्किंग में बेहद सक्रिय हैं। कारत उन सभी पर अंकुश लगायेंगे तो सोशल नेटवर्किंग के जरिये आप की तरह वामदलों का जनादार बनेगा कैसे,इसका कोई खुलासा लेकिनकामरेड ने नहीं किया है।धर्म कर्म की आजादीकी तरह लगता है कि केरल की कट्टर पार्टी लाइन से बाहर निकलने में कामरेड को अब भी दिक्कत हो रही है।गौरतलब है कि बंगाल में माकपाइयों को जनता से जुड़ने के लिए धर्म कर्म की इजाजत दे दी गयी है लेकिन केरल में नहीं।


    गौरतलब है कि करात ने अगरतला में  पहलीबार हुई माकपा की केंद्रीय समिति की बैठक के दौरान संवाददाताओं से कहा, विधानसभा चुनाव में आप कांग्रेस और भाजपा के सामने एक सशक्त विकल्प के रूप में उभरी है। हमें आप को समर्थन देने से पहले उनके राजनीतिक कार्यक्रमों, नीतियों और योजनाओं को देखना है।इसके अलावा मीडिया में उन्होंने आप को वाम विरासत वाली पार्टी भी कह दिया और जनाधार बनाने के लिए कैडरों से आप से सीखने की सलाह भी दे दी।बाद में हालांकि उन्होने अगरतला से कोच्चिं पहुंचकर यह भी कह दिया कि आम आदमी पार्टी बुर्जुआ दलों का विकल्प बन सकती है, लेकिन यह वामपंथी दलों का नहीं। उन्होंने कहा कि 28 दिसंबर को दिल्ली में अल्पमत सरकार बनाने वाली आप पर अभी भी कोई राय बनाना बहुत जल्दबाजी है। करात ने यहां मीडिया से कहा,आप ने दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन किया और यह एक महत्वपूर्ण ताकत है, लेकिन मैं अन्य राज्यों के लिए निश्चिंत नहीं हूं।


    उन्होंने कहा,वे बुर्जुआ दलों के लिए विकल्प हो सकते हैं, वामपंथी दलों के नहीं। यह अच्छी बात है कि उन्होंने मध्य वर्ग से सहयोग लिया है। लेकिन हम उनसे उनके कार्यक्रमों और नीतियों का इंतजार कर रहे हैं। करात ने कहा कि महानगरों में माकपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। हमें मध्य वर्ग की वर्तमान पीढी के साथ समस्या हो रही है और इसलिए माकपा और वामपंथियों ने खुद को अनुकूल बनाना शुरू कर दिया है।


    आप के साथ वामपंथी दलों के गठबंधन के सवाल पर करात ने कहा कि ऎसा लगता है कि उन्हें गठबंधन में कोई दिलचस्पी नहीं है और इस समय वे खुद को स्थापित करने को लेकर चिंतित हैं। करात ने कहा,हमें नव उदारवादी नीतियों और सांप्रदायिकता पर उनका दृष्टिकोण जानने में दिलचस्पी है।


    जाहिर है कि माकपा केरल लाइन के शिकंजे से बाहर निकली नहीं है।कामरेड महासचिव के ताजा फतवे से तो यह साबित हो रहा है।



    'উচ্চবর্ণ'সিপিএম নেতৃত্বের বিরুদ্ধে ক্ষোভ লক্ষ্মণ শেঠের



    তমলুক: রেজ্জাক মোল্লার পর লক্ষ্মণ শেঠ, সিপিএমের বিদ্রোহী তালিকায় নতুন সংযোজন৷ অতীতে তমলুকের দাপুটে সিপিএম নেতা দলের বিরুদ্ধে বিষোদ্গারে গলা মেলালেন৷ কাজ করিয়ে নেওয়ার পর দল তাঁকে ছুড়ে ফেলে দিয়েছে বলে প্রকাশ্যে আক্ষেপ করলেন তিনি৷ জানিয়ে দিলেন, নেতৃত্বে উচ্চ বর্ণের আধিপত্য থাকলে সিপিএমের ঘুরে দাঁড়ানোর স্বপ্ন কোনদিন পুরণ হবে না৷ রাজ্যের ক্ষমতায় থাকার সময় নন্দীগ্রাম, সিঙ্গুর নিয়ে তৃণমূলের মোকাবিলা করতে রাজ্য ও পুর্ব মেদিনীপুর জেলা নেতৃত্ব ব্যর্থ হয়েছিল বলে কড়া সমালোচনা করেন অতীতে হলদিয়া ভবনের অধিকারী৷


    রেজ্জাক মোল্লা যে সংখ্যালঘু মঞ্চ গঠনের চেষ্টা করছেন, তার প্রয়োজন মানছেন লক্ষ্মণ শেঠ৷ সিপিএমের রাজ্য কমিটির প্রাক্তন এই সদস্য নন্দীগ্রাম মামলায় হাজিরা দিতে বৃহস্পতিবার তমলুক জেলা আদালতে এসেছিলেন৷ মামলার পরবর্তী দিন ধার্য হয়েছে ২৪ জানুয়ারি৷ ওই দিন মামলার চার্জ গঠন হতে পারে বলে আদালত সূত্রে জানা গিয়েছে৷ সেক্ষেত্রে তাঁর উপর আইনের রোষ নেমে আসা যে সময়ের অপেক্ষা তা আঁচ করতে পারছেন পুর্ব মেদিনীপুরে সিপিএমের এই দুঁদে নেতা৷


    এমন দুঃসময়ে দলকে তেমন ভাবে পাশে পাচ্ছেন না বলে তিনি অনুভব করছেন৷ আগেই তাঁকে রাজ্য কমিটি থেকে সরিয়ে দিয়েছেন সিপিএম নেতৃত্ব৷ আসন্ন লোকসভা নির্বাচনে তমলুক আসনে দল তাঁকে মনোনয়ন দেবেও না বলে বুঝে গিয়েছেন তিনি৷ ফলে রাগে, ক্ষোভে, হতাশায় সাংবাদিকদের প্রশ্নের উত্তরে আদালত চত্ত্বরে দাঁড়িয়েই দলীয় নেতৃত্বের বিরুদ্ধে ক্ষোভে ফেটে পড়লেন লক্ষ্মণবাবু৷


    নন্দীগ্রামের প্রসঙ্গেই তমলুকের প্রাক্তন সাংসদ বলেন, 'নন্দীগ্রামকে প্রচারে এনে তখনকার বিরোধীরা বাজিমাত করলেও সিপিএম শাসকদলে থেকেও সেই ঘটনাটি থেকে কোনও রাজনৈতিক ফায়দা তুলতে পারেনি৷ সে সময় নন্দীগ্রামে আমাদেরও অনেক কর্মী খুন হয়েছেন৷ অনেক পার্টি অফিস ভেঙে বা পুড়িয়ে দেওয়া হয়েছে৷ কিন্ত্ত তা নিয়ে রাজ্য বা জেলা নেতৃত্ব প্রচারে ব্যর্থতা দেখিয়েছেন৷ তৃণমূল ফায়দা তুলতে পারার জন্য দায়ী আমাদের নেতাদের ব্যর্থতা৷'


    তা হলে রাজ্য নেতৃত্বের উপর কি আপনার ক্ষোভ আছে? লক্ষ্মণবাবু উত্তর দেন, 'আমার ক্ষোভ থাকবে কেন? আমার উপর দলীয় নেতৃত্বের ক্ষোভ আছে৷ তাই আমি যখন একটার পর একটা মামলায় জর্জড়িত, তখন আমাকে রাজ্য কমিটি থেকে বাদ দেওয়া হয়েছিল৷' এরপরই ক্ষোভ উগরে তিনি বলেন, 'দলে এমন ভাবে উচ্চ বর্ণের সংখ্যাগরিষ্ঠতা চলতে থাকলে বামপন্থা ধুলিস্যাত্‍ হয়ে যাবে৷ যতদিন নেতৃত্বে আদিবাসী, তপশিলি বা সংখ্যালঘুদের প্রাধান্য থাকবে না, ততদিন বামপন্থার উন্নতি হবে না৷'


    অস্বস্তিতে পড়ে প্রতিক্রিয়ায় সাবধানী সিপিএম নেতারা৷ দলের পুর্ব মেদিনীপুর জেলা সম্পাদক কানু সাহু বলেন, 'লক্ষ্মণবাবুর বক্তব্য না শুনে আমি কিছু বলতে পারব না৷'


    1st Kolkata People's Film Festival By Sanjay Joshi

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    1st Kolkata People's Film Festival
    By Sanjay Joshi
    Cinema of Resistance: 1st People's Film Festival Kolkata

    In memory of Zainul Abedin
    Celebrating 'Resistance and People's Movements'

    20 Jan, 2014 Kolkata...See More
    Photo: Shamik Bandhyopadhay speaking in the inaugural session of 1st KPFF
    Photo: Mrityuanjay  in preparation
    Photo: Kasturi, Convener,  Kokata chapter of Cinema of Resistance addressing the inaugural session
    Photo: Kolata audience

    Cinema of Resistance: 1st People's Film Festival Kolkata

    In memory of Zainul Abedin
    Celebrating 'Resistance and People's Movements'

    20 Jan, 2014 Kolkata

    The 1st People's film Festival of Kolkata, organized by Jan Sanskriti Manch & People's Film Collective, was inaugurated today at Triguna Sen Auditorium, Kolkata today and is scheduled to run till 22nd January. The film festival celebrates 'Resistance & People's Movements' in the memory of Zainul Abedin, the revolutionary artist, in the year of his birth centenary. Within the next two days, the film festival will present several films & documentaries focusing upon people's struggle across the world and country. These films are testimonies of the valiant resistance of people against corporate fascism and communalism. Filmmakers like Sanjay Kak, Moinak Biswas, Ranu Ghosh, Suryashankar Dash, Nakul Singh Shawney, Bikramjit Gupta, Moshumi Bhowmick and Sukant Majumdar were present at the film festival for discussions.

    At the inauguration of the festival the renowned film critic Shamik Bandopadhyay stated that the arts & culture are under an 'undeclared censorship'. The state does not allow for the people to be informed about people's struggle, democratic voices are being silenced. In such times the use of new technology by this initiative to disseminate the voices of resistance marks the beginning of a new chapter. The birth of Cinema of Resistance in Gorakhpur, infamous as a laboratory of communalism, has immense significance. He compared mainstream cinema to what the poet Mayakovsky's referred to as 'sick cinema', and expressed hope that the Cinema of Resistance would effectively counter it and further the cause of people's struggle far and wide. 

    Poet Sabyasachi Dev wished the festival would meet success and emphasized upon the power of cinema. Such initiatives would strengthen the resistance of the people. Nakul Singh Shawney, who has made a film on the recent pogrom in Muzzafarnagar, claimed that he was not a guest but a comrade of the festival. He said such festivals brought forth an unseen world to audiences as well as enable filmmakers like him to engage and learn from audiences. He emphasized that making and screening documentaries was extremely important today; and there should be many more such initiatives. 

    The national convener of Cinema of Resistance, Sanjay Joshi, in his welcome speech narrated the story of the festival and how it began in a small town of Uttar Pradesh, Gorakhpur, and has since travelled to various parts of Uttar Pradesh, Bihar, Uttarakhand, Rajasthan, Delhi, and other places. He claimed that the real strength of the festival were common people who have been marginalized by the propaganda of the state, corporate media and mainstream cinema. This festival has not sought patronage from any Govt. organization or multi-national corporations, rather has thrived upon people's participation and financial contributions. He stressed that this was the 'Cinema of Resistant and not Cinema of Revenge'. In a time where corporate and communal fascism is marching ahead rapidly, people's cinema can be torchbearer of people's struggle. Also present on the dais were filmmaker Surya Shankar Dash, film critic Vidyarthi Chatterjee and Amit Dasgupta, Jt. Secy Gana Sanskruti Parishad (West Bengal). 

    A souvenir featuring summaries of the films featured in the festival as well as articles by filmmakers like Sanjay Kak, Surya Shankar Dash, Nakul Singh Shawney, Bikramjit Gupta, Moinak Biswas and film critics like Biren Dasgupta and Sanjay Mukhopadhyay was released at the inauguration. Along with, a fact finding report by CPI-ML Liberation on the communal violence in Muzzafarnagar titled 'Ek Rajnitik-Apradhik Sazish' was released. Also to celeberate the birth centenary year of Zainul Abedin four posters designed by renowned artist Ashok Bhowmick were released. The session was conducted by Kasturi, the Convener of People's Film Collective Kolkata. 

    In the following session, 'Anhey Ghore Da Daan' by Gurvinder Singh was screened. The film not only depicts the trials & tribulations of Dalits with a sharp class critique in the rural milieu of Punjab, but also merges questions of land & dignity very effectively. The film also addresses the tragic consequences of displacement of Dalits in urban areas. Noted film critic Vidyarthi Chatterji appreciated the 'minimalist style' of the film and its effectiveness in presenting ground realities. The second film to be screened was 'Voices from Baliapal' by Ranjan Palit and Basudha Joshi. Made in 1989 this acclaimed film won the National Award for Best Documentary and captures the spirited non-violent resistance of more than 70,000 peasants & fishing communities in coastal Odisha resisting land grab for a missile testing center.

    After tea break the festival resumed with a presentation by filmmaker Surya Shankar Dash, titled 'Repression Diary: The Case of Odisha'. It included an evocative montage of short videos which narrate unheard tales of the ongoing loot of mineral resources and brutal state repression. The presentation portrayed the valiant struggle of Adivasis and peasants for 'jal, jangal, jameen' and weaved together the necessity and perseverance of ordinary people to fight against the humiliation & repression of the corporate ruling class. In the discussion with the audience, the filmmaker claimed that big media houses & newspapers had become agents for corporates and in such times the Cinema of Resistance initiative is an ideal platform for people like him. He emphasized on the importance of videos emerging from people's struggles and said wherever there was repression and resistance we all need to participate in these struggles with our cameras. 

    In the next session acclaimed filmmaker Sanjay Kak, whose earlier work Jashn-e-Azadi remains to be one of the finest documentaries on the issues of Kashmir, presented his latest documentary 'Red Ant Dreams'. The film interweaves stories of people's struggle from Punjab, Chattisgarh & Odisha into one narrative while exploring different forms of resistance in these areas. The film exposes the brutal reality of Indian democracy, presents a nuanced analysis of the war being waged against the people by the state and underlines the dreams of the people for change. While answering questions from the audience, Sanjay Kak said that the Govt. and the ruling class was waging a war against Adivasis, workers and peasants. He said that the forms of resistance would be decided by the people themselves. 

    The last film of the day, 'Muzzafarnagar Testimonies', by young filmmaker Nakul Singh Shawney is a reportage of the pogrom against Muslims in Uttar Pradesh that erupted on 7th Sep 2013 and claimed several lives and displaced thousands from their villages. The displaced were further removed from relief camps by the Govt. to cater to vote banks in the upcoming Parliamentary elections. Nakul Singh's camera shows us the harsh & cruel realities that the mainstream media has totally censored. While more than 95% of the victims were Muslims the media portrayed it as a two-sided riot. The film exposed campaigns by the Sangh parivar like 'Bahu Bachao Beti Bachao' to fuel communal strife while revealing the real face of the Samjwadi Party Govt and its police. In the discussion following the screening, Nakul Singh elaborated upon the experiments in communalism in Muzzafarnagar and across Uttar Pradesh.


    The festival also included an exhibition of sketches and artworks by revolutionary artists Chittoprasad and Zainul Abedin. These artworks depict the everyday struggle of peasants and workers as well as the horrors of the Bengal famine, and left a deep impact on the viewers. Another attraction for the audience was an exhibition of photographs by young photographers of Kolkata. 

    1st Kolkata People's Film Festival
    By Kasturi, Convener, Cinema of Resistance, Kolkata
    Tel: +91-9163736863 Mail: cor.kolkata@gmail.com

    जायनवादी वैश्विक अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीरें और गरीबों के सफाये में भारत पर निशाना दुनिया में अमीर और गरीब के बीच का फासला इस कदर बढ़ा है कि दुनिया की आधी आबादी के पास जितनी संपत्ति है उतनी संपत्ति दुनियाभर के केवल 85 धनी व्यक्तियों के पास है। Elec

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    जायनवादी वैश्विक अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीरें और गरीबों के सफाये में भारत पर निशाना


    दुनिया में अमीर और गरीब के बीच का फासला इस कदर बढ़ा है कि दुनिया की आधी आबादी के पास जितनी संपत्ति है उतनी संपत्ति दुनियाभर के केवल 85 धनी व्यक्तियों के पास है।

    Election results could impact growth prospects, says Moody's


    पलाश विश्वास


    The Economic Times

    4 hours ago

    Hole in the employees' pension scheme rises to Rs 62,000 crore

    http://ow.ly/sP0fm

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    चुनाव सर्वेक्षण की दुकानें महकने लगी हैं।जनादेश निर्माण की वैज्ञानिक पद्धति में मीडिया वर्चस्व का अनिवार्य अंग।अब ममता बनर्जी,मायावती और जयललिता के त्रिकोण को भारत का भविष्य बताया जा रहा है।


    ममता बनर्जी और मायावती अपने अपने तरीके से प्रधानमंत्रित्व की प्रबल दावेदार हैं।खास बात है कि निर्णायक गायपट्टी में काबिज पुरुष वर्चस्व को ये दोनों विकल्प मंजूर नहीं है।


    इसी से सीख लेकर संघ परिवार ने लगभग निर्विवाद स्वच्छ छवि की सुषमा स्वराज को प्रधानमंत्रित्व का दावेदार बनाने से साफ इंकार कर दिया और महिला के बजाय ओबीसी पांसा फेंका है।


    अब आधिकारिक तौर पर जयललिता ने भारतीय राजनीति में आर्य वर्चस्व और नरसिंह राव व देवे गौड़ा के अपवादों को छोड़कर उत्तर भारत के वर्चस्व के मद्देनजर प्रधानमंत्रित्व पर जयललिता की सुदूर दक्षिणात्य से यह दावेदारी अंततः भारत में पुरुषतंत्र पर कारगर आघात होगा,हम ऐसी उम्मीद कर भी सकते हैं।जैसे कि टीवी पर अवतरित होकर वरिष्ट पत्रकार प्रभु चावला ने कह दिया कि भारत का प्रधानमंत्री कौन होगा ,यह ये तीनों महिलाएं तय करेंगी।तीनों मिलकर सौ सीटें भी हासिल कर लें तो एकजुट होकर तीनों बहुत कुछ कर सकती हैं।सहमत।


    टीवी खबरों की माने तो जयललिता के प्रधानमंत्रित्व को ममतादीदी और मायावती का समरथन भी बताया जाता है।


    तीनों महिलाओं ने समय समय पर भारतीय राजनीति और संसद के अलावा अपने अपने राज्य में लगातार घमासान किया हुआ है।


    वे तीनों एकजुट हो जायें,देश की गुलाम आधी आबादी के लिए इस अबाध नरसंहार काल में बचाव का सबसे खुला राजमार्ग हो सकता है।


    लेकिन तीनों की व्यक्तिवादी राजनीति,तीनों की उत्कट महत्वाकांक्षाएं और तीवनों के तानाशाह तौर तरीके से फिलहाल यह असंभव है।लेकिन टीवी सर्वेक्षणों और पैनलों के डिस्कसन से लगता है कि कारपोरेट राज का ताजातरीन लोकलुभावन विकल्प यह भी है।


    26 जनवरी के राष्ट्रवादी महोत्सव से पहले संवैधानिक संकट जैसा पैदा करते हुए अरविंद केजरीवाल की अराजकता का जो महाविस्फोट हो गया,उसके मद्देनजर कारपोरेट मीडिया का तेवर भी बदला है।आप को आसमान पर चढ़ाने वाले लोग अब आप के विरोध में हैं।


    इसी बीच वैश्विक जायनवादी अर्थव्यवस्था के शीर्ष संस्थान अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष,रेटिंग संस्थाओं ने अगले चुनाव परिणामों के मद्देनजर तरह तरह की शंकाएं भी डाल रखी है।विकास दर के शीर्षासन से,सेनसेक्स की उछल कूद और विदेशी विनिवेशकों की कठपुतलियों के जरिये जनादेश साधने का प्रयास चल रहा है तो तकनीक ईश्वर बिल गेट्स ने मुक्त बाजार की अब तक की सबसे गुलाबी तस्वीर पेश कर दी है कि 2035 तक दुनिया में गरीबी का सफाया हो जायेगा।


    जबकि तथ्य यह है कि दुनिया में अमीर और गरीब के बीच का फासला इस कदर बढ़ा है कि दुनिया की आधी आबादी के पास जितनी संपत्ति है उतनी संपत्ति दुनियाभर के केवल 85 धनी व्यक्तियों के पास है।


    भुखमरी विशेषज्ञ और राथचाइल्ड्स घराने के दामाद के जयपुर अवतार से साहित्य,कला विधाओं और माध्यमों मे राथचाइल्ड्स छाया का विस्तार भी होने लगा है।इसी छाया मध्य छनछनाती विकास रोशनी के जरिये अगले इक्कीस लाल में दुनियाभर में गरीबी हटाने की यह युद्धगोषमा मुक्त बाजार का अबतक का सबसे बड़ा दांव है और मुझे कोई शक नहीं है कि गरीबों के खात्मे का सबसे बड़ा निशाना भारत ही है।


    आगामी लोकसभा चुनाव में राजनीतिक शतरंज की जो बिसात बिछायी गयी है,वह अब तक की सबसे भयंकर पहेली है,जो किसी विषकन्या से कम आकर्षक नहीं है और देवमंडल के सारे आयुधों से उस विषकन्या को तिलोत्तमा बनाने की कवायद हो रही है।


    कल दिनभर प्रतिरोध के सिनेमा के तहत बेदखली और विस्थापन के यथार्थ से मुठबेड़ होती रही।यादवपुर विश्वविद्यालय कैंपस में त्रिगुणासेन आडिटोरियम में साउथसिटी माल में बेदखली और बेदखली के खिलाफ लड़ रहे उषा मार्टिन श्रमिक शंभुनाथ सिंह की अथक लड़ाई और रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत पर 2011 में बनी रानू घोष निर्देशित फिल्म क्वार्टर नंबर 4/11,जिसमें अपनी मौत से पहले की पूरी भूमिका बेदखली विरोधी योद्धा शंभुनाथ सिंह ने निभायी है ,के बाद दर्शकासन से आडोटोरियम और निर्देशक को संबोधित करते हुए मेंने इस फिल्म को मुक्त बाजार भारत का सर्वव्यापी  प्रतिबिंब बताते हुए करमुक्त भारत और भावी फ्रधानमंत्री के एजंडे के विमर्श को शहरों और देहात में सर्वत्र जमीन लूटो के नये अशनिसंकेत बतौर चिन्हित किया।


    आज सुबह हमारे विद्वान मित्र आनंद तेलतुंबड़े से बात हुई लंबी।हम दोनों इस मुद्दे पर सहमत हैं और सांस्कृतिक क्षेत्र में अर्थसास्त्र की दखलंदाजी से हम दोनों समान रुप से आशंकित हैं। ईपीडब्लू में अपने कालम में आनंद ने आप पर लिखा भी है।हमारी अति प्रिय लेखिका अरुंधति राय की मां भी अब आप में शामिल हैं।


    देशभर के जनसरोकार के लोग जिस तेजी से आप से जुड़ रहे हैं,उससे कारपोरेट राज भी हिल गया है और इसकी अराजकता के महाविस्फोट से मुक्त बाजार के एजंडे के तहत उसकी आगामी भूमिका पर सवालिया निशान लग गये हैं।प्रथम वरीयता से खिसक गया है आप और महिला सशक्तीकरण को जनादेश का नया विकल्प बतौर पेश किया जा रहा है।


    विदेशी निवेशकों की लक्ष्मी सुलभ चंचल मति के मद्देनजर कारपोरेट विकल्प के जनादेश में ताबड़तोड़ बदलाव हो सकते हैं।आप के जरिये सामाजिक शक्तियों की जो गोलबंदी हो रही है,उसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते।


    इस वर्ग से हमें निरंतर संवाद करने की जरुरत है और इस बदलाव को हमें अस्मिताओं के चश्मे से देखने यानी सीधे उन्हें अंबेडकर या आरक्षणविरोधी बता देने के विकल्प से बचना चाहिए।


    बहुत संभव है कि बाकी विकल्पों की अराजकता के मद्देनजर फिर वरीयता पर सर्वोच्च हो जाये नमोमय भारत।तो उस दशा में नरसंहार के अगले अध्याय के मुकाबले सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी ही हमारे सबसे काम की चीज होंगी और तेलतुंबड़े और मेरा मानना है कि हमें दुसाध जी की तरह अरविंद केजरीवाल को कवई मछली तक बता देने के फतवे से बचना चाहिए।


    नमोमय भारत का परिदृश्य बना तो उसके मुकाबले हमें हो सकता है कि फिर इसी अरविंद केजरीवाल की अपने मोर्चे पर सबसे ज्यादा जरुरत होगी,जो अपनी अराजकता से कभी भी सत्ता से बाहर किये जा सकते हैं।उनके साथ जुड़ती सामाजिक शक्तियों और अपने पुराने साथियों,मित्रों पर हमलावर रुख अपनाकर हम लोग कारपोरेट राज को ही उनका अपना विकल्प चुन लेने में मदद कर सकते हैं और वह विकल्प नरेंद्र मोदी भी हो सकते हैं।राहुल गांधी नहीं।


    कल ही हमने हारकर दिलीप मंडल के रवैये पर लिखा।लिखा पोस्ट करने के बाद फिर फेसबुक पर उनका मंतव्य आया कि संविधान और आरक्षण के कारण सुधारों की वजह से बहुजन मध्यवर्ग का उत्थान हुआ है और इसे रोकने के लिए ही आप का उत्थान है।यह अति सरलीकरण है।


    बहुजन मध्यवर्ग का बहुजन हित से कोई लेना देना नहीं है । होता तो भारत में अब तक समता और सामाजिक न्याय का लक्ष्य हासिल हो गया होता।दरअसल यह बहुजन मध्यवर्ग ही नरमेध अभियान की सबसे बड़ी पैदल सेना है।चंद्रभान प्रसाद और दिलीप मंडल जैसे लोग इसी पैदल सेना के सिपाहसालार हैं।


    गौरतलब है कि बिल गेट्स ने कहा है कि आने वाले कुछ सालों के बाद दुनिया में कोई भी देश गरीब देश की श्रेणी में नहीं रहेगा। माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक और दुनिया के सबसे धनी लोगों में शुमार बिल गेट्स का दावा है कि 2035 तक कोई गरीब देश नहीं होगा। बिल गेट्स का कहना है कि धनी देश जिन तकनीक और सुविधाओं का इजाद कर रहे हैं, उसका लाभ इन गरीब देशों को भी मिलेगा और ऐसा होने पर ये देश इससे उबर जाएंगे.।


    बिल गेट्स ने हाल ही में बिल एवं मिलिन्डा गेट्स फाउंडेशन के वार्षिक पत्र में कहा कि मैं अनुमान लगा रहा हूं कि 2035 तक दुनिया में लगभग कोई भी देश गरीब नहीं रह जाएगा। उन्होंने कहा कि लगभग सभी देश उस स्थिति में होंगे, जिसे हम अभी धनी देश कहते हैं। देशों को अपने सबसे ज्यादा उत्पादक पड़ोसी देशों से सीखने को मिलेगा और वे नए टीका, अच्छे बीज और डिजिटल क्रांति जैसी खोजों से लाभान्वित होंगे. इसका लाभ हर देश को मिलेगा।


    बिल गेट्स ने कहा कि शिक्षा के विस्तार के साथ उनकी श्रम शक्तियां नए निवेशों को आकर्षित करेंगी। 2035 तक अधिकांश देशों में चीन के मौजूदा स्तर के मुकाबले कहीं अधिक प्रति व्यक्ति आय होगी। गेट्स ने कहा कि अमीर और गरीब के बीच की खाई को चीन, भारत, ब्राजील और अन्य देश दूर कर लेंगे. वर्ष 1960 के बाद से चीन की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय आठ गुना बढ़ी है। भारत की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय चार गुना और ब्राजील की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय पांच गुना बढ़ी है।


    बिल गेट्स ने अपने इसमें लिखा कि यह मानना कि दुनिया बद से बदतर हुई है, जो अत्यधिक निर्धनता एवं रोगों को ठीक नहीं कर सकती, केवल गलत ही नहीं है, यह नुकसानदेह भी है। किसी भी पैमाने से जो दुनिया पहले थी, वह उससे कहीं बेहतर हुई हैं। दो दशक में यह कहीं और बेहतर होगी। हालांकि बिल गेट्स ने यह बात भी साफ की है कि उन्होंने गरीबी को लेकर जो कुछ कहा है, वह वर्तमान परिभाषा के अनुसार है।


    भारतीय यथार्थ के उलट पुराण की रचना स्वयं बिल गेट्स कर रहे हैं तो समझ जाइये कि आगे क्या क्या होने वाले है।


    कोई गरीब देश 2035 के बाद रहेगा नहीं तो क्या हम मान लें कि 2035 तक भारत अमेरिका हो जायेगा और अमेरिका के उपनिवेश की हैसियत से मुक्त हो जायेगा,यह विचारणीय है।


    दुनिया में अमीर और गरीब के बीच का फासला इस कदर बढ़ा है कि दुनिया की आधी आबादी के पास जितनी संपत्ति है उतनी संपत्ति दुनियाभर के केवल 85 धनी व्यक्तियों के पास है। दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक से पहले आक्सफैम की वर्किंगग फार द फ्यू शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में यह बात कही गई है।


    इसमें विकसित एवं विकासशील दोनों तरह के देशों में बढ़ती असमानता का विस्तार से उल्लेख किया गया है। आक्सफैम का दावा है कि धनाढ्यों ने आर्थिक खेल के नियम अपने हित में करने तथा लोकतंत्र को कमजोर करने के इरादे से राजनीतिक रास्ता भी अख्तियार किया है। दुनिया के सर्वाधिक 85 धनाढ्यों के पास इतनी संपत्ति है जो दुनिया की आधी आबादी की संपत्ति के बराबर है।


    रिपोर्ट के अनुसार 1970 के दशक में धनवानों के मामले में कर की दरें 30 देशों में से 29 में कम हुई हैं। ये वे देश हैं जिनके बारे में आंकड़ें उपलब्ध हैं। इसका मतलब है कि कई जगहों पर धनवान न केवल खूब धन अर्जित कर रहे हैं बल्कि उस पर कर भी कम दे रहे हैं।


    इसमें कहा गया है कि पिछले 25 साल में धन कुछ लोगों तक केंद्रित हुआ है और यह दुनिया के एक प्रतिशत परिवार के पास इतनी संपत्ति है जो दुनिया की करीब आधी आबादी (46 प्रतिशत) के बराबर है। आक्सफैम चाहती है कि सरकार इस प्रवत्ति को बदलने के लिये तत्काल कदम उठाये। विश्व आर्थिक मंच में भाग लेने वाले लोगों से इस समस्या से निपटने के लिये व्यक्गित संकल्प लेने को कहा गया है।


    ओक्सफैम के कार्यकारी निदेशक विनी बयानयिमा ने कहा कि यह चौंकाने वाला है कि 21वीं सदी में दुनिया की आधी आबादी के पास इतनी संपत्ति नहीं है जितनी कि 85 लोगों के पास। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि धनाढ्य व्यक्तियों तथा कंपनियां कर अधिकारियों से खरबों डॉलर छिपाती हैं। एक अनुमान के अनुसार 21,000 अरब डॉलर बिना रिकॉर्ड के हैं और राशि विदेशों में पड़ी है।


    इसमें कहा गया है कि पिछले दशक में भारत में अरबपतियों की संख्या दस गुणा बढ़ी है। प्रतिगामी कर ढांचा तथा सरकारी तंत्र में पैठ का लाभ उठाते हुये उनकी संपत्ति बढ़ती जा रही है। वहीं दूसरी तरफ गरीबों पर होने वाला खर्च उल्लेखनीय रूप से कम है।


    रिपोर्ट के अनुसार दस में से सात लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहां पिछले 30 वर्षों के दौरान असमानता बढ़ी है। दूसरी तरफ 26 में से 24 देशों में सबसे धनी लोगों ने अपनी आय में एक प्रतिशत वृद्धि की है। ये आंकड़े उन देशों के हैं जिनके बारे में 1980 से 2012 के आंकड़े उपलब्ध हैं।


    इसी बीच ध्यान दें कि रेल भवन के बाहर आम आदमी पार्टी के धरने के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है। संसद मार्ग थाने में धारा 144 का उल्लंघन, पुलिस से भिड़ंत और बिना अनुमति के लाउड स्पीकर के प्रयोग का मामला दर्ज किया गया है। इस बीच, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तबीयत खराब हो गई। केजरीवाल को कौशांबी स्थिति यशोदा अस्पताल ले जाया गया। हालांकि कुछ देर बाद उन्हें छुट्टी भी दे दी गई। इस बारे में आप नेता संजय सिंह ने कहा है कि घबराने की कोई बात नहीं है। तबीयत खराब होने की वजह से केजरीवाल आज दिल्ली सचिवालय नहीं जाएंगे।


    इसी बीच दिल्ली के कानून मंत्री सोमनाथ भारती की दिक्कतें कम होती नजर नहीं आ रही है और मालवीय नगर के खिड़की एक्सटेंशन में रात को छापा मारने के मामले में उन पर इस्तीफे का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है।

          

    पंद्रह जनवरी की रात को खिड़की में रात को छापा मारने गए भारती को उस समय वहां मौजूद युगांडा की एक महिला ने पहचाना है। साकेत स्थित अदालत में मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज बयान में महिला ने टेलीविजन और प्रिंट मीडिया की फुटेज देखने के बाद भारती की पहचान की है।  

          

    साकेत मजिस्ट्रेट की अदालत में दो महिलाओं ने बयान दर्ज कराये हैं। इनमें से एक युगांडा की है, जबकि दूसरी महिला की राष्ट्रीयता का अभी पता नहीं चल पाया है। युगांडा की महिला ने दर्ज कराये अपने बयान में कहा है कि बुधवारकी रात को भारती की अगुवाई में भारतीयों ने हम पर हमला किया। महिला ने कहा कि हमला करने वाले दावा कर रहे थे कि हम काले हैं और हमें देश छोड़ देना चाहिए। हमें प्रताड़ित किया गया, मारा गया।


    हमलावरों के हाथ में लंबी छड़ी थी, उनका कहना था कि हम यहां से चले जायें अथवा वह हमें मार देंगे। मैंने उन्हें पहचाना है, क्योंकि वह रात में आये थे और अगले दिन उनकी तस्वीर देखी और वह उन्हीं कपड़ों में थे, जो रात को पहने हुए थे। पुलिस ने समय पर आकर हमें भीड़ से बचाया।  

        

    उधर दिल्ली महिला आयोग ने भारती को युगांडा की महिला की र्दुव्‍यवहार की शिकायत पर पुलिस के जरिये दूसरा सम्मन भेजा है। उधर आप सूत्रों के अनुसार भारती को चेतावनी दी है कि वह संभलकर बोलें।



    इसी बीच आईएमएफ का ग्लोबल और भारत की ग्रोथ पर भरोसा कुछ बढ़ता हुआ दिख रहा है। आईएमएफ ने वित्त वर्ष 2015 के लिए भारत का जीडीपी अनुमान 5 फीसदी से बढ़ाकर 5.4 फीसदी कर दिया है। वहीं 2014 के लिए ग्लोबल जीडीपी ग्रोथ अनुमान 3.6 फीसदी से बढ़ाकर 3.7 फीसदी किया है। साल 2015 में ग्लोबल इकोनॉमी 3.9 फीसदी की रफ्तार से बढ़ सकती है।


    हालांकि आईएमएफ ने वित्त वर्ष 2014 में भारत की जीडीपी ग्रोथ 4.6 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। वहीं आईएमएफ के मुताबिक वित्त वर्ष 2016 में भारत की जीडीपी ग्रोथ 6.4 फीसदी रह सकती है।


    साल 2015 में अमेरिकी इकोनॉमी के 3 फीसदी की दर से विकास करने की संभावना है। वहीं 204 में यूरोपीय क्षेत्र की ग्रोथ 1 फीसदी रहने का अनुमान है जो पहले अनुमान के बराबर ही है। हालांकि यूरोप एरिया की जीडीपी ग्रोथ 1.4 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। आईएमएफ ने चीन का जीडीपी ग्रोथ अनुमान 7.3 फीसदी से बढ़ाकर 7.5 फीसदी किया है। वहीं साल 2015 में चीन की जीडीपी ग्रोथ 7.3 फीसदी रह सकती है।


    आईएमएफ ने साल 2015 के लिए इमर्जिंग मार्केट्स के ग्रोथ का पूर्वानुमान बिना किसी बदलाव के 5.1 फीसदी पर स्थिर रखा है। वहीं साल 2014 के लिए विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए ग्रोथ का अनुमान 2.2 फीसदी तय किया है।


    गौरतलब है कि अफरातफरी के 32 घंटों के बाद दिल्ली पुलिस के तीन अफसरों के निलंबन की मांग कर रही केजरीवाल सरकार ने अपना धरना मंगलवार शाम वापस ले लिया। उपराज्यपाल की ओर से दो अफसरों को छुट्टी पर भेजने का आश्वासन देने पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने धरना खत्म करने का ऐलान किया।


    रेल भवन के बाहर सोमवार दोपहर से अपने नेताओं के साथ धरने पर बैठे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उपराज्यपाल ने हमें 26 जनवरी और सुरक्षा का हवाला दिया। उन्होंने मालवीय नगर थाने के एसएचओ और पहाड़गंज के पीसीआर इंचार्ज को छुट्टी पर भेजने का आश्वासन दिया है। सागरपुर में महिला को जिंदा जलाने के मामले में भी पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार किया।


    आफत बन गया था धरना

    सोमवार सुबह 12 बजे से मंगलवार रात 8 बजे तक चला धरना लोगों के लिए आफत बन गया था। इसके चलते सड़कों पर लोग जाम से जूझते रहे। चार मेट्रो स्टेशनों को बंद करने के आफत और बढ़ गई। केजरीवाल सरकार के रवैये के प्रति उनके कई समर्थक भारी नाराज भी दिखे।


    उग्र हो गया था धरना

    खराब मौसम और बारिश के बीच आप समर्थक बैरिकेड तोड़कर धरनास्थल की ओर बढ़े। पुलिस ने उन्हें रोका तो कुछ लोगों ने पथराव कर दिया। जवाब में पुलिसकर्मियों ने जमकर लाठियां चलाईं। इसमें 12 लोग व 2 पुलिसकर्मी घायल हो गए। बाद में भी झड़पों को सिलसिला जारी रहा।


    भाजपा ने भी किया प्रदर्शन

    भाजपा नेता विजय गोयल की अगुवाई में युवा मोर्चा कार्यकर्ताओं ने मंत्री सौरभ भारद्वाज और सोमनाथ भारती के इस्तीफे की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। इस बीच पुलिस ने विजय गोयल को हिरासत में भी लिया।


    बातचीत से निकाला रास्ता

    शाम को आप के एक वरिष्ठ नेता ने उपराज्यपाल से बात की। इसके बाद पार्टी के शीर्ष नेताओं की बैठक हुई। एलजी से आश्वासन मिलने पर धरना खत्म किया गया।


    खुल जाएंगे सभी मेट्रो स्टेशन

    धरना खत्म होने पर बुधवार से सभी मेट्रो स्टेशन खुलेंगे। सारी व्यवस्था पहले जैसी रहेगी।

    फर्टिलाइजर कंपनियों को सरकार ने दी बड़ी राहत

    फर्टिलाइजर कंपनियों को बड़ी राहत मिलती दिख रही है। वित्त मंत्रालय ने फर्टिलाइजर कंपनियों को करीब 9,000 करोड़ रुपये की राहत दी है। सोमवार को वित्त मंत्रालय की ओर से फर्टिलाइजर कंपनियों को 9,000 करोड़ रुपये की रकम जारी की गई है।


    वित्त मंत्रालय की ओर से जारी 9,000 करोड़ रुपये की रकम में से सबसे ज्यादा 2,000 करोड़ रुपये नेशनल फर्टिलाजर (एनएफएल)को दिए जाएंगे। एनएफएल के अलावा राष्ट्रीय केमिकल फर्टिलाजर्स (आरसीएफ), इफ्को समेत 40 फर्टिलाइजर कंपनियों में 9,000 करोड़ रुपये की रकम बांटी जाएगी।


    वित्त मंत्रालय की ओर से जारी 9,000 करोड़ रुपये की रकम से फर्टिलाइजर कंपनियों को 15 नवंबर तक की पूरी सब्सिडी का भुगतान कर दिया जाएगा। वित्त मंत्रालय ने फर्टिलाइजर कंपनियों को 9,000 करोड़ रुपये की रकम सॉफ्ट बैंकिंग लोन अरेजमेंट के तहत दी है।

    आज से देश भर में लागू हुई एलपीजी पोर्टेबिलिटी

    आज से आपको अपना एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर बदलने की आजादी मिल जाएगी। पायलट प्रोजेक्ट की कामयाबी के बाद सरकार ने आज से एलपीजी पोर्टेबिलिटी को देश भर में लागू करने का फैसला किया है। एलपीजी पोर्टेबिलिटी के तहत कोई भी ग्राहक एलपीजी पोर्टल पर जा कर अपनी पसंद का डिस्ट्रीब्यूटर चुन सकेगा।


    एलपीजी पोर्टेबिलिटी के तहत ग्राहकों को अपनी पसंद का एलपीजी डीलर चुनने की आजादी होगी। एलपीजी डिस्ट्रिब्यूटर के साथ-साथ ग्राहक कंपनी भी बदल सकेंगे। mylpg.inके जरिए एलपीजी पोर्टेबिलिटी लागू होगी। वहीं एलपीजी पोर्टेबिलिटी के लिए कोई कागजी प्रक्रिया नहीं होगी।


    गौरतलब है कि एलपीजी डिस्ट्रिब्यूटरों की रेटिंग की प्रक्रिया पहले ही शुरू की गई है। डिलीवरी के आधार पर डिस्ट्रिब्यूटर को 5 स्टार तक रेटिंग मिलती है। लिहाजा ग्राहक रेटिंग और डिलीवरी रिकॉर्ड को देखकर डिस्ट्रिब्यूटर चुन सकते हैं।

    प्रॉविडेंट फंड की पेंशन स्कीम में 62000 करोड़ का घाटा

    ईटी | Jan 22, 2014, 02.43PM IST


    विकास धूत, नई दिल्ली

    एम्प्लॉयीज पेंशन स्कीम का घाटा साल 2009 में बढ़कर 62,000 करोड़ रुपये हो गया। साल 2008 में यह 54,200 करोड़ रुपये था। इस स्कीम की काफी देर से आई वैल्यूएशन रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।


    यह स्कीम साल 1995 में प्रॉविडेंट फंड एकाउंट होल्डर्स के लिए लॉन्च की गई थी, जब मनमोन सिंह फाइनेंस मिनिस्टर थे। वैल्यूएशन रिपोर्ट पिछले साल सरकार को सौंपी गई थी, लेकिन पीएफ के ट्रस्टियों को यह पिछले हफ्ते ही मिली। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पेंशन स्कीम का फंड 'पूरी तरह फिक्स्ड इंटरेस्ट इंस्ट्रूमेंट्स में इनवेस्ट करने'के बजाय इसका एक हिस्सा 'इक्विटीज जैसी रियल एसेट्स'में लगाया जाए।

    इसमें यह सुझाव भी दिया गया है कि स्कीम के तहत रिटायरमेंट एज 58 साल से बढ़ाकर 60 साल कर दी जाए। साल 2013-14 के अंत तक पेंशन स्कीम में करीब 8 करोड़ मेंबर्स और इसमें 2 लाख 20 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।


    पेंशन स्कीम के तहत सभी रिटायर्ड मेंबर्स को मिनिमम 1,000 रुपये की मंथली पेंशन देने का प्रस्ताव यूपीए सरकार लंबे समय से दबाए हुए है क्योंकि फाइनेंस मिनिस्ट्री ने इसे लागू करने पर चिंता जताई है। प्रॉविडेंट फंड के वही मेंबर इस पेंशन स्कीम का हिस्सा हो सकते हैं, जिनकी मंथली सैलरी 6,500 रुपये हो। इसे बढ़ाकर 15,000 करने का प्रस्ताव भी चार साल से लटका हुआ है।


    इसमें डर यह है कि इसके चलते पेंशन स्कीम की देनदारी बहुत बढ़ जाएगी। साल 2001 में जब सैलरी लिमिट 5,000 से बढ़ाकर 6,500 रुपये की गई थी तो पेंशन स्कीम की देनदारी में 10,000 करोड़ रुपये का इजाफा हुआ था। 6,500 रुपये की सैलरी वाले कर्मचारी के वेतन का जितना हिस्सा पीएफ में जाता है, उसकी एक तिहाई से कुछ ज्यादा रकम पेंशन स्कीम में जाता है। सेंट्रल गवर्नमेंट पेंशन स्कीम पर 1.16 पर्सेंट की सब्सिडी देती है। इस तरह इसमें कंट्रीब्यूशन बढ़कर सैलरी का 9.49 पर्सेंट हो जाता है।


    इस स्कीम के तहत एक्टिव मेंबर्स और पेंशनर्स के लिहाज से कुल देनदारी 31 मार्च 2009 तक 1.71 लाख करोड़ रुपये थी। हालांकि, उस वक्त उसके पास 1.1 लाख करोड़ रुपये की ही एसेट्स थीं। वैल्यूएशन रिपोर्ट में एक्चुअरी पी ए बालासुब्रमण्यन ने कहा है कि इसके चलते 61,608 करोड़ रुपये का डेफिसिट दिख रहा है, जो एक साल पहले 54,203 करोड़ रुपये था। इस स्कीम के घाटे पर काबू पाने के लिए एक सुझाव यह दिया गया है कि भविष्य में 9 पर्सेंट एन्युअल रिटर्न हासिल करने का इंतजाम हो और मेंबर्स के लिए कंट्रीब्यूशन रेट बढ़ाकर सैलरी का कम से कम 12.49 पर्सेंट कर दिया जाएगा। 2009-10 से 2011-12 तक के तीन वर्षों की वैल्यूएशन रिपोर्ट्स अभी पेंडिंग हैं।


    The Economic Times

    32 minutes ago

    To professionals, entrepreneurs in #AAP, why are you silent? Read this Opinion column by Saubhik Chakrabarti & tell us your viewshttp://ow.ly/sPicz

    The Economic Times

    about an hour ago

    Finance Minister Chidambaram attacks Modi from Davos; says BJP has a blood-eyed economics model http://ow.ly/sPbfb

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    India Today

    Delhi govt should have been dismissed for violating law, says Kiran Bedihttp://indiatoday.intoday.in/story/delhi-govt-should-have-been-dismissed-for-violating-law-says-kiran-bedi/1/339113.html

    Delhi govt should have been dismissed for violating law, says Kiran Bedi : Delhi, News - India Today

    indiatoday.intoday.in

    Talking to Headlines Today the former IPS officer said the Delhi government should have been dismissed for violating law rather than being appealed to for ending the dharna outside Rail Bhavan.

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    Priya Ranjan

    http://apnaskool-kanpur.blogspot.in/2014/01/blog-post.html

    Apna Skool: प्रवासी मजदूरों का बंधुआ मजदूरी से मुक्ति का आगाज

    apnaskool-kanpur.blogspot.com

    Satya Narayan

    एक ऐसे समय में जब दिल्‍ली में आयी फर्जी क्रान्ति से जनता का मोहभंग हो रहा है, आइये जानते हैं कि क्‍या होता है जब किसी समाज में असली क्रान्‍ति होती है:


    अक्टूबर क्रान्ति के कुछ ही दिनों के भीतर नवनिर्मित सोवियत सरकार ने रूस की जनता की बुनियादी माँगों को पूरा करने के मद्देनज़र कुछ अहम आज्ञप्तियाँ जारी कीं। क्रान्ति के अगले ही दिन यानी 26 अक्टूबर ( नये कैलेण्डर के अनुसार 8 नवंबर) सोवियतों की दूसरी अखिल रूसी कांग्रेस ने ऐतिहासिक महत्व की शान्ति आज्ञप्ति अंगीकार की जिसमें सोवियत सरकार ने प्रथम विश्वयुद्ध में शामिल सभी देशों और उनकी सरकारों के सामने प्रस्ताव रखा कि न्यायसंगत और जनवादी शान्ति के लिए तुरन्त वार्तायें आरम्भ की जायें। उसी दिन कांग्रेस ने भूमि आज्ञप्ति भी जारी की, जिसके अनुसार सभी जमींदारों, मठों और गिरजों की भूमि और उससे संलग्न चल व अचल सम्पत्ति को बिना मुआवजा ज़ब्त कर लिया गया। किसानों को 15 करोड़ हेक्टेयर भूमि मुफ़्त में आवंटित की। अपनी स्थापना के चौथे दिन सोवियत सरकार ने एक आज्ञप्ति जारी करके 8 घण्टे का कार्य-दिवस निर्धारित कर दिया (जिसको कुछ वर्षों बाद 7 घण्टे कर दिया गया)। इसके बाद मज़दूरों और कर्मचारियों के लिए निःशुल्क राज्य बेरोज़गारी तथा स्वास्थ्य बीमा प्रणाली भी लागू की गयी।


    राष्ट्रीयताओं के मसले पर भी सोवियत सरकार ने मानव सभ्यता के इतिहास में पहली बार उत्पीड़न रहित संघ बनाने की दिशा में ठोस क़दम उठाये। ज़ारशाही के दौर में समूचे रूसी साम्राज्य को राष्ट्रीयताओं का जेलखाना कहा जाता था। नये कैलेंडर के अनुसार 15 नवंबर 1917 को सोवियत सरकार ने ''रूस की जनता के अधिकारों का घोषणापत्र''प्रकाशित किया, जिसमें जातीय उत्पीड़न का अन्त, रूस की सभी जातियों की समानता, सर्वमत्ता, अलग होने के अधिकार समेत आत्मनिर्णय के अधिकार, स्थापित करने का अधिकार भी शामिल था, और सभी जातीय व धार्मिक विशेषाधिकारों व प्रतिबंधों के उन्मूलन की उद्घोषणा की गयी थी। इस घोषणापत्र पर अमल करते हुए दिसंबर 1917 में सोवियत सरकार ने फिनलैण्ड की स्वतन्त्रता को मान्यता दे दी, जो अब तक रूस का हिस्सा था। इसी तरह उक्रइना की स्वाधीनता, आर्मीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार, आदि को भी मान्यता दी गयी। इसके फलस्वरूप उक्रइनी, बेलोरूसी, एस्तोनियाई, लातवियाई, लिथुआनियाई, आज़रबैजानी, आरमीनियाई और जार्जियाई जनों ने अपने को स्वतन्त्र सोवियत गणराज्य घोषित किया जिन्हें रूसी सोवियत सरकार ने तुरन्त मान्यता प्रदान की। जनवरी, 1918 में रूसी गणराज्य ने अपने आप को संघात्मक गणराज्य घोषित कर दिया, जिसके अस्तित्व के आरम्भिक वर्षों में उसके अन्तर्गत अनेक स्वायत्त गणराज्य और प्रदेश पैदा हुए, जैसे तातार, बश्कीर, तुर्कीस्तान आदि।


    पूरा लेख यहां पढिये : http://www.mazdoorbigul.net/archives/2662

    कैसा है यह लोकतन्त्र और यह संविधान किनकी सेवा करता है? (पच्चीसवीं किस्त) - मज़दूर बिगुल

    mazdoorbigul.net

    समाजवादी क्रान्ति की वजह से सोवियत संघ की महिलाओं की स्थिति में जबर्दस्त सुधार आया। सोवियत संघ उन पहले देशों में एक था जिसने महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया। सोवियत सरकार ने ऐसी नीतियाँ बनायी जिससे महिलायें अपने घर की चारदिवारी को लाँघकर सामाजिक उत्पादन के क्षेत्र में बढ़चढ़ कर हिसा लेने लगीं। बड़े…

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    Economic and Political Weekly

    Temperatures are rising in Kullu in Himachal Pradesh where farmers are dependent on the rains for agriculture. This article uses meteorological data to provide evidence of gradual climate change in the region that might affect livelihoods.


    Read: http://www.epw.in/commentary/climate-change-himachal.html

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    सर्वेः दक्षिणी राज्यों में कैसी रहेगी चुनावी बयार!

    प्रकाशित Tue, जनवरी 21, 2014 पर 20:46  |  स्रोत : CNBC-Awaaz

    जैसे-जैसे आम चुनाव की तारीख करीब आ रही है, राजनीतिक सरगर्मी तेज होती जा रही है। हर पार्टी वोटर को अपनी ओर खींचने के लिए तरह-तरह के हथकंड़े अपना रही है। ऐसे में लोगों को मूड क्या है, एक वोटर क्या चाहता है ये जानने के लिए लोकनीति और नेटवर्क18 ने एक देशव्यापी सर्वे किया है। आज इस सर्वे में हम बात करेंगे दक्षिण भारत के 4 राज्यों कर्नाटक, तमिलनाडू, केरल और आंध्र प्रदेश की।


    पूरे देश में नरेंद्र मोदी का जादू चल रहा है, लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस ने अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखी है। तमाम बुरी खबरों के बावजूद कर्नाटक का वोटर कांग्रेस पार्टी से खुश है। लोकनीति आईबीएन नेशनल ट्रैकर के पोल के मुताबिक कर्नाटक में 42 फीसदी वोट के साथ कांग्रेस सबसे आगे है। वहीं बीजेपी का वोट प्रतिशत 42 फीसदी से घटकर 32 फीसदी हो सकता है। साथ ही कर्नाटक में जेडीएस का वोट शेयर 13 फीसदी से बढ़कर 18 फीसदी होने का अनुमान है।


    सर्वे के मुताबिक कर्नाटक में आज चुनाव हुए तो कांग्रेस को 10-18 सीटें, बीजेपी को 6-10 सीटें और जेडीएस को 4-8 सीटें मिलने के आसार हैं। दिलचस्प ये है कि कर्नाटक में प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी 28 फीसदी लोगों की पसंद हैं, जबकि 19 फीसदी लोग राहुल गांधी को पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं।


    सर्वे के तहत तमिलनाडू में एआईडीएमके गठबंधन को 15-23 सीटें मिलने के आसार हैं, जबकि डीएमके को 7-13 सीटें मिल सकती हैं। तमिलनाडू में कांग्रेस को 1-5 सीटें मिल सकती हैं और अन्य को 4-10 सीटें मिलने के आसार हैं। तमिलनाडू में बीजेपी को फायदा होने का अनुमान है। तमिलनाडू में बीजेपी का वोट शेयर 2 फीसदी से बढ़कर 16 फीसदी होने के आसार हैं।


    तमिलनाडू में एआईडीएमके का वोट शेयर 23 फीसदी से बढ़कर 27 फीसदी, जबकि डीएमके का वोट शेयर 25 फीसदी से घटकर 18 फीसदी हो सकता है। लेकिन कांग्रेस का वोट शेयर 15 फीसदी से बढ़कर 17 फीसदी हो सकता है। सर्वे में सामने आया है कि तमिलनाडू में 17 फीसदी लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनता हुआ देखना चाहते हैं। तमिलनाडू में 11 फीसदी लोग राहुल गांधी को पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं।


    वहीं केरल में कांग्रेस की गठबंधन वाली यूडीएफ को सबसे ज्यादा फायदा होने की तस्वीर सामने आ रही है। सर्वे के मुताबिक केरल में यूडीएफ का वोट शेयर 48 फीसदी से बढ़कर 50 फीसदी होने के आसार हैं, जबकि लेफ्ट पार्टियों के गठबंधन वाले एलडीएफ के वोट शेयर में 11 फीसदी की कमी संभव है। केरल में बीजेपी का वोट शेयर 6 फीसदी से बढ़कर 9 फीसदी होने का अनुमान है।


    सर्वे के मुताबिक केरल में यूडीएफ को 12-18 और एलडीएफ को 2-8 सीटें मिलने का अनुमान है। केरल में प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी 7 फीसदी लोगों की पसंद हैं, जबकि राहुल गांधी को 21 फीसदी लोग पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं।


    आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस को सबसे ज्यादा फायदा होने की तस्वीर सामने आ रही है। सर्वे के मुताबिक आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस का वोट शेयर 22 फीसदी होने के आसार हैं, जबकि कांग्रेस के वोट शेयर में 14 फीसदी की कमी संभव है। आंध्र प्रदेश में बीजेपी का वोट शेयर 4 फीसदी से बढ़कर 10 फीसदी होने का अनुमान है। आंध्र प्रदेश में टीडीपी का वोट शेयर 25 फीसदी से घटकर 21 फीसदी, जबकि टीआरएस का वोट शेयर 6 फीसदी से बढ़कर 11 फीसदी रह सकता है।


    सर्वे के मुताबिक आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस को 11-19 और कांग्रेस को 5-9 सीटें मिलने का अनुमान है। आंध्र प्रदेश में टीडीपी को 9-15 सीटें और अन्य को 0-4 सीटें मिलने के संकेत हैं। आंध्र प्रदेश के तेलंगाना क्षेत्र में प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी 20 फीसदी लोगों की पसंद हैं, जबकि राहुल गांधी को 22 फीसदी लोग पीएम के तौर पर देखना चाहते हैं। वहीं सीमांध्र में 23 फीसदी लोगों की पसंद नरेंद्र मोदी, जबकि 9 फीसदी लोगों की पसंद राहुल गांधी हैं।

    The Economic Times shared ETWealth's photo.

    5 hours ago

    As with anything related to the business, there are many caveats, but this could still end up being the next big thing in health insurance — cashless OPD.

    Insurance companies line up cashless OPD plans to make life easier

    http://ow.ly/sOWX1

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    The Economic Times

    18 hours ago

    Interesting images of AAP's dharna in Central Delhihttp://ow.ly/sNDff

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    The Economic Times

    20 hours ago

    Eight 'khaas' cartoons: Check it out & tell us which one you like best http://ow.ly/sMRLn

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    The Economic Times

    Yesterday

    It's now three years since 2011, Infosys is not the company it was and its leadership is: NRN is executive chairman, Shibulal is CEO and the COO post is vacant. Here's why Narayana Murthy should hire a foreign CEO http://ow.ly/sMwLn

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    The Economic Times

    Yesterday

    Interest rates may come down without Raghuram Rajan's helphttp://ow.ly/sMeeM

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    The Economic Times

    January 20

    BJP has made Narendra Modi bigger than party; we failed to market UPA: Digivijaya Singh. Read full interview at ET Opinion& tell us your views.

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    The Economic Times

    January 20

    Double-digit returns seen from IT stocks http://ow.ly/sKqVE | 5 tech stocks to buy http://ow.ly/sKqX5

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    The Economic Times

    January 20

    Kiran Bedi slams AAP govt, says Delhi is under 'unruly political leadership.' Do you agree/disagree? http://ow.ly/sKhHS

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    Aam Aadmi Party

    19 minutes ago

    Yogendra Yadav: What appears to be a partial success today might prove to be a turning point in the history of Delhi's governance.


    This is just the beginning of delivering what we had promised. Our words will never change.


    "We were fighting for Aam Aadmi, We are fighting for Aam Aadmi, We will fight for Aam Aadmi".


    Jai Hind.— with Sarabjot Singh Dilli and 3 others.

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    Aam Aadmi Party

    3 hours ago

    We are not afraid of any hurdles in our way. We knew that this fight against corruption would not be easy.


    Our determination is our strength.


    Jai Hind.— with Nirmal Singh and 6 others.

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    Aam Aadmi Party shared a link.

    5 hours ago

    Yesterday's protest was seeking justice for Neha too!


    TOI: "The day chief minister Arvind Kejriwal began his dharna outside Rail Bhavan, demanding that some policemen, including one dealing with an alleged dowry burning case in Sagarpur, be suspended, the victim, Neha, would have celebrated her 29th birthday. However, she was fighting for her life at Safdarjung Hospital with 45% burns.


    Within 24 hours of the CM voicing his demand, Neha's mother-in-law, Sumitra, sister-in-l...See More

    Sagarpur dowry victim gets some justice after a week - The Times of India

    timesofindia.indiatimes.com

    Within 24 hours of the CM voicing his demand, Neha's mother-in-law, Sumitra, sister-in-law Reena and brother-in-law Rajbir were arrested from their hideout in Dwarka.The father-in-law, Abhay, is already in custody.

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    Aam Aadmi Party

    18 hours ago

    सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

    मेरी कोशिश ये है के सूरत बदलनी चाहये|


    Arvind Kejriwal calls off protest after Delhi Lieutenant Governor sends errant S.H.O's on leave. First step towards police accountability to people.


    We won't stop our fight against corruption. We are here to change the system. We will deliver what we had promised.


    Jai Hind.— with Jarnail Singh Aap and 7 others.

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    Panini Anand

    कल तक वो गांधी थे. फिर मंडेला की चमड़ी को गाली दी और अराजक हो गए. कुछ को इसमें भगत सिंह नज़र आ रहे हैं. वैसे एक और दावेदार पिछले दिनों प्रशांत भूषण के चैंबर में चला गया था. अब दावा तो वो भी कर रहा है. मुझे दोनों दावों पर संदेह है. दिल्ली पुलिस सांडर्स है. बनी रहेगी. पहले भी थी. लेकिन ये गांधी उर्फ़ जेपी उर्फ़ अन्ना उर्फ़ भगत सिंह अभी आगे-आगे क्या बनते हैं, पता नहीं. इनके बनने के चक्कर में बकिया लोग (माने लेफ्ट से झटके हुए, व्यवस्था में अटके हुए, अपना थूक सटके हुए और इस मृतनगर में लटके हुए) क्या क्या बन गए हैं और बनेंगे, यह भी नज़र आने लगा है. और हम, हम देखेंगे, लाज़िम है भई.

    Like·  · Share· 21 hours ago near New Delhi·


    Dilip C Mandal

    अपनी सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखकर सोचिए कि क्या हिंसा के द्वारा आपको कभी कुछ मिला है. क्या SC-ST आरक्षण हिंसा से मिला है? क्या OBC कोटा हिंसा में हासिल हुआ था? क्या SC-ST छात्रों की फेलोशिप हिंसा, उत्पात या अराजकता से मिली है?


    सामाजिक न्याय, शिक्षा, नौकरी और विकास की आवाज बुलंद हो, इसके लिए शांतिकाल चाहिए.


    इस समय संविधान समीक्षा आयोग-2 का दिल्ली में जो आंदोलन चल रहा है, वह राम जन्मभूमि आंदोलन, 1990 के आरक्षण विरोधी आंदोलन और 2006 के OBC आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान हुए उत्पात का दोहराव है.


    सामाजिक न्याय का कोई भी आंदोलन संवैधानिक और शांतिपूर्ण तरीके से चलता है. उत्पात, अराजकता और हिंसा सामाजिक न्याय विरोधियों का रास्ता है.

    Like·  · Share· Yesterday at 4:17pm·

    Uday Prakash

    'Political parties are necessary evils of modern democracy...' ... 'The word 'party' derives its meaning from Latin verb meaning 'to part' or 'to divide'

    --- Giovanni Sartori

    Like·  · Share· 7 hours ago·

    • Koyamparambath Satchidanandan, Manoj Chhabra, Ashutosh Singh and 99 others like this.

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    • Ritu Raj Misra my and your's life is necessary evil ...Budhha has said it earlier than this name ... all other statement is subset of same ...

    • 5 hours ago· Like· 2

    • Uday Prakash Every tale has been told Ritu Raj Misra ji...and every tale has always been Re-told ....! (Like each story had been narrated in spite being re-narrated repeatedly...) So nothing is maiden and original..

    • 3 hours ago· Like· 4

    • Dinesh Sharma state itself is a necesary evil, so is democracy with so many limitations. matter of consensus, existing values. what does hindi word dal means? perhaps same.

    • 2 hours ago· Like

    • Manoj Khareसंगठन उन विचारों को खा जाता है जिनके कार्यान्वयन के लिए वह गठित हुआ था। बुद्ध का संघ भी इसका सटीक उदाहरण है। राजनीतिक पार्टियों पर यह और भी शिद्दत से लागू होता है क्योंकि वे सत्ता के इर्दगिर्द रहती हैं। आप इससे बचते हुए कितने सुधार कर पाती है, यही देखना है।

    • about an hour ago· Like

    Jagadishwar Chaturvedi

    हेडलाइन टुडे टीवी चैनल का कहना है कि केजरीवाल का धरना खत्म कराने के लिए योगेन्द्र यादव की पर्दे के पीछे की राजनीति काम आई। केजरीवाल के लिए सबसे अपमानजनक क्षण यह था कि वे कल से धरना दे रहे थे लेकिन न तो पीएम ने बुलाया न गृहमंत्री ने बात करने के लिए बुलाया। इस तरह की सख्ती पहले कभी कांग्रेस ने नहीं दिखायी थी।

    कांग्रेस की सख्ती देखकर योगेन्द्र यादव दिल्ली के उपराज्यपाल के पास दौड़े गए और उनसे अनुरोध किया कि वे कुछ मदद करें जिससे केजरीवाल को सम्मानजनक ढ़ंग से धरने से उठाया जा सके। उप राज्यपाल ने साफ कर दिया कि उनकी किसी केन्द्रीय नेता से धरने पर बात नहीं हुई है अतःवे कोई मदद नहीं कर सकते।

    अंत में काफी कहने-सुनने के बाद उपराज्यपाल ने कहा केजरीवाल जिद्दी है वह नहीं मानता, अतःपहले यह सुनिश्चित करो कि यहां पर जो तय होगा उसे वह मानेगा। यादव ने भरोसा दिया और इसके बाद संबंधित 3पुलिसवालों को जांच होने तक छुट्टी पर जाने देने पर राज्यपाल राजी हो गए।बाद में केजरीवाल ने जो कुछ कहा उसे सब जानते हैं । यानी केजरीवाल की नाक बचाने के लिए उप राज्यपाल से अपील जारी करायी गयी। यह केजरीवाल की महान पराक्रमी इमेज में आया परिवर्तन है। पहलीबार वे धरने से बिना जिद किए उठे हैं ।

    Like·  · Share· 18 hours ago near Calcutta·

    Satya Narayan

    चेतन भगत स्वयं को कितना ही ज्ञानी प्रदर्शित करें पर इनके तमाम स्तम्भ लेखन में मूर्खतापूर्ण दम्भ अपना सिर उठा ही देता है। स्थानाभाव के कारण हम इनके अर्थशास्त्रीय ज्ञान के एक और नमूने को देखकर आगे बढ़ेंगे। चेतन भगत अपने राजनीतिक दिवालियेपन के कारण धुरन्धर एन.जी.ओ.-पन्थी अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी 'आप'पर ऐसा आरोप लगाते हैं कि "सन्त पूँजीवाद"के बेचारे भक्त केजरीवाल भी स्तब्ध रह जायेंगे! भगत जी कहते हैं, "उन्हें नयी वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था की ज़्यादा समझ नहीं है। उनकी विचारधारा विकास-विरोधी वामपन्थी विचारों के ज़्यादा क़रीब लगती है, जहाँ पर तमाम विदेशियों, बड़ी-बड़ी कम्पनियों और अमीर लोगों को बुरा और भ्रष्ट समझा जाता है, जबकि छोटे कारोबार तथा ग़रीब लोग अच्छे माने जाते हैं। यह सोच भाषणों में तालियाँ बटोरने के लिहाज़ से तो ख़ूब कारगर हो सकती है लेकिन राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए ज़्यादा नहीं। भले ही भारत आज भ्रष्टाचार-मुक्त देश हो जाये, लेकिन तब भी हम एक अमीर देश नहीं होंगे। सुनियंत्रित पूँजीवाद, खुली अर्थव्यवस्थाओं और मुक्त बाज़ारों ने दुनिया भर में धन-सम्पति निर्मित की है। हमें इन्हें मंजूर करना चाहिए, ताकि भारत में भी ऐसा हो।"साम्राज्यवादी कम्पनियों के फाउण्डेशनों से लाखों डॉलर उठाने वाले और पूँजीवाद के टुकड़खोर केजरीवाल साहब ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कोई उनकी नज़दीकी वामपन्थ से भी बिठा सकता है! इतनी बार "भ्रष्टाचार मुक्त पूँजीवाद"(?) में अपनी निष्ठा जताने के बावजूद कोई सूरदास ही केजरीवाल साहब पर ऐसा आरोप लगा सकता है!

    http://ahwanmag.com/Chetan-Bhagat-and-his-communal-thoughts

    चेतन भगत: बड़बोलेपन और कूपमण्डूकता का एक साम्प्रदायिक संस्करण

    ahwanmag.com

    चेतन भगत जैसे भाड़े के कलमघसीट जिन्हें समाज, विज्ञान, इतिहास के बारे में ज़रा भी ज्ञान नहीं होता केवल अपने मूर्खतापूर्ण बड़बोलेपन के बूते ही अपनी बौद्धिक दुकानदारी खड़ी कर लेते हैं। महानगरों में मध...

    Like·  · Share· 4 hours ago·

    Alok Putul

    http://raviwar.com/news/973_arvind-kejriwal-aap-party-moment-kanak-tiwari.shtml

    तंग पांयचे में फंसी टांगें

    raviwar.com

    दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के धरने पर सवाल खड़े करने वालों से पूछने का मन करता है कि दो थानेदारों को छुट्टी पर भिजवाने के लिए दिल्ली की सड़कों पर जनअसुविधाओं का इतना बड़ा तांडव करना पड़े-यह कैसा लोकतंत्र है?

    Like·  · Share· 2 hours ago·

    Mohan Shrotriya

    अब कुछ दिन तो सिर्फ़ सरकार चलाओ, अरविंद केजरीवाल !


    अपने लहज़े के मोह से बाहर निकलने की कोशिश करना आखिरकार बुरा साबित नहीं होगा. यह सब कुछ का मखौल उड़ाने वाला जो लहज़ा है न, ज़्यादा दिन लोगों को उम्मीदों से बांधे नहीं रख पाएगा !


    पार्टी और सरकार में फ़र्क़ करना शुरू कर देना भी अच्छा रहेगा. दोनों अपना काम करती रहेंगी. मुख्यमंत्री दो पुलिस अधिकारियों को छुट्टी पर भिजवाने भर के लिए यह सब करे, तो लोग इसे नौटंकी क्यों नहीं कहेंगे? बताओ, और क्या कहें !


    यह मत समझना कि लोग उपराज्यपाल के संदेश के निहितार्थ नहीं समझते हैं ! मुख्यमंत्री को तो पूर्वानुमान होना चाहिए कि उसके क़दम उसे कहां ले जाकर पटकेंगे !


    छोटी-छोटी भूलें मिलकर बड़ी बन जाती हैं, और ‪#‎अर्श‬से ‪#‎फ़र्श‬तक का ‪#‎बुलेट‬गति से ‪#‎सफ़र‬आसान बना देती हैं !


    कम कहे को बहुत समझना !

    Like·  · Share· 19 hours ago near Jaipur·

    • Uday Prakash, Virendra Yadav, Ashutosh Kumar and 72 others like this.

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    • Neeraj Diwanहटा दिए देता हूं महोदय। क्षमा बड़न को चाहिए। माफ़ करेंगे। लाभ हो जाएगा।

    • 5 hours ago· Edited· Like

    • Neeraj Diwanधन्यवाद हितेंद्र भाई। आपने आंखे खोल दी।

    • 5 hours ago· Like

    • हितेन्द्र अनंतमेरे कुछ सुझाव:

    • (क) पूरी दिल्ली में उचित मूल्य की दुकानों पर रेड मारो, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरूस्त करो ताकि गरीब तक सस्ता राशन पहुँचे। यह काम दो महीनों में अच्छा खासा हो सकता है

    • (ख) सड़क, नालियाँ और पेयजल वितरण आदि पर ध्यान दो, इसके लिये यदि नये...See More

    • 5 hours ago· Like· 2

    • Durga Singhलोकतंत्र मे सरकार को अलग से परिभाषित करना लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है अनजाने ही सही।'आप'की आलोचना उनके भीतर कार्यरत राइटविन्ग सोच(सचेतन हो या अनजाने)पर हो सकती है जो सोमनाथ भारती की हरकत मे दिखा।ध्यान देने की बात है कि कान्ग्रेस-भाजपा को मंत्री की हरकत पर ऐतराज नही इसलिए वे पुलिस के बचाव मे उतर पड़े जबकि जरूरत तो रेसिज्म हरकत पर ऐतराज की थी

    • 3 hours ago· Edited· Like

    Alok Putul

    http://raviwar.com/news/974_modi-hindutva-agenada-and-dalit-anil-chamadia.shtml

    नमो को पिछड़ा बताने के मायने

    raviwar.com

    यह आश्चर्यजनक है कि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी का प्रचार पिछड़ा प्रतिनिधि के रूप में ज्यादा से ज्यादा तो किया जा रहा है लेकिन नरेन्द्र मोदी और संघ द्वारा पिछड़े वर्ग के साथ की जाने वाली गैर बराबरी और पिछड़े वर्गों के आरक्षण का समर्थन और आर्थिक आधार पर आरक्षण का विरोध जैसा को...

    Like·  · Share· 2 hours ago·

    Satya Narayan

    कॉमरेड लेनिन की 90वीं पुण्‍यति‍थि(21जनवरी) के अवसर पर


    http://www.mazdoorbigul.net/Lenin-story-of-his-life

    लेनिन कथा के दो अंश... - मज़दूर बिगुल

    mazdoorbigul.net

    लेनिन मज़दूरों के और पास खिसक आये और समझाने लगे कि यह सही है कि मज़दूरों को जानकारी, अनुभव के बग़ैर जन-कमिसारियतों में कठिनाई हो रही है मगर सर्वहारा के पास एक तरह की जन्मजात समझ-बूझ है। जन-कमिसारियतों में हमारी अपनी, पार्टी की, सोवियतों की नीति पर अमल करवाने की ज़रूरत है। यह काम अगर मज़दूर नहीं करें...

    Like·  · Share· about an hour ago·


    बर्फीले तूफान से फिर ठप हुआ अमेरिका, तीन हजार उड़ानें रद्द

    वाशिंगटन। कड़ाके की ठंड और बर्फीले तूफान ने उत्तरी-पूर्वी अमेरिका को जबरदस्त झटका दिया है। खराब मौसम की वजह से अब तक तीन हज़ार उड़ानें रद्द करनी पड़ी। वहीं, सरकारी दफ्तरों से लेकर स्कूल तक सभी बंद कर दिए गए। इस दौरान सफर पर निकले लाखों लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा रहा है। ख़राब हालत को देखते हुए न्यूजर्सी गर्वनर क्रिस क्रिस्टी ने अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ लेने के कुछ घंटों बाद राज्य में आपातकाल की घोषणा कर दी।

    वहीं, वर्जिनिया और कनेक्टिकट में रहवासियों को यात्रा न करने की चेतावनी जारी कर दी है। उत्तरी कैरोलिना में कुछ स्कूलों को समय से पहले बंद करने और वर्जिनिया में सभी स्कूलों पर ताले लगाने की खबरें हैं। पश्चिमी वर्जिनिया और प्रिंसटन के गैस स्टेशनों पर लोगों की लाइन लगना शुरू हो गई है। यहां लोग खराब मौसम को देखते हुए प्रोपेन गैस और खाने की चीजों को जमा कर रहे हैं। लोगों को मौसम बिगड़ने के साथ बिजली जाने का अंदेशा है। बताया जा रहा है कि कई इलाकों का तापमान सामान्य से 17 डिग्री सेल्सियस नीचे चला गया है।

    आई-95 हाईवे पर बोस्टन से लेकर वाशिंगटन तक बुरी तरह जाम लगा रहा। फ्लाइटअवेअर.कॉम के मुताबिक, पूरे अमेरिका में करीब तीन हजार से ज्यादा उड़ानें रद्द कर दी गई हैं। हजारों यात्री खराब मौसम के कारण एयरपोर्ट पर फंसे हुए हैं।



    Election results could impact growth prospects, says Moody's

    The World Bank has projected that India's economy will grow at over 6% in 2014-15 and 7.1% by 2016-17 as global demand recovers and domestic investment increases



    Reuters

    New Delhi: Global ratings agency Moody's on Thursday said India's economic recovery is likely to be slow in the second half of 2014, but the outcome of general elections could have an impact on the growth prospects. Without specifically mentioning about India, Moody's Investors Service also said that sovereign ratings in South and Southeast Asia will be largely stable in 2014.

    This, the agency said, reflects its expectation that global growth prospects will improve while global risks will decline. On India, it said: "We expect a slow economic recovery in the second half of this year, if global growth increases."

    Moody's Sovereign Risk Group Senior VP and Manager Tom Byrne said however that "the outcome of national elections this year could also affect growth, depending on how it impacts sentiment and policies".

    General elections are scheduled to be completed by May-end. The World Bank has projected that India's economy will grow at over 6% in 2014-15 and 7.1% by 2016-17 as global demand recovers and domestic investment increases. India's economic growth slipped to a decade's low of 5% in 2012-13.

    Growth in the first half of 2013-14 is 4.6 per cent, but the government expects the growth for the entire fiscal ending March 2014 to be at 5 per cent. A further pick up is also expected in the coming months.

    Moody's further projected India's inflation and interest rates to decline during the year.

    The agency has assigned 'Baa3' rating on India with a stable outlook. 'Baa3' means medium grade with moderate credit risk.

    The rating agency said the fiscal deficit would remain higher than those of similarly rated countries in 2014.

    "Social welfare measures, for instance, such as the Food Security Act passed last year, will raise the government's medium-term expenditure commitment," Byrne added.

    The Food Security Bill was passed by the Lok Sabha in August. The annual financial burden after its implementation is estimated to be about Rs 1.30 lakh crore at current cost.

    The government hopes to contain fiscal deficit at 4.8% of GDP in the current fiscal and reduce it further to 3% by 2016-17.

    Moody's further said the structure of India's government debt — which is owed mostly domestically, in domestic currency, at relatively low real rates, and at relatively long tenors — has mitigated stress on the government's fiscal position.


    India faces 'slow recovery year' in 2014: Citigroup

    The global financial services major adds the priority for the markets will be a single-party-led and stable alliance, with acceleration in economic policy making

    New Delhi: The year 2014 is likely to be a "slow recovery year" for India, with economic growth rising, inflation easing and currency and rates largely stable, Citigroup said.

    The global financial services major also said that while the emergence of the Aam Aadmi Party may change the political landscape in India, the priority for the markets will be a single-party-led and stable alliance, with acceleration in economic policy making.

    "India should start recovering in 2014 — slowly, but likely steadily", Citigroup said in a research note today. "We see growth up, inflation down, the currency and rates largely stable".

    The economy may expand by 5.1 per cent in the second half of FY14, led by agriculture and exports, following four consecutive quarters of sub-5 per cent growth and a 4.6 per cent rate in the first half of FY14, Citigroup said.

    Moreover, investments may also "surprise" in FY15.

    "While we expect improvement on the investment horizon, we recognise that it will be more evident post the general elections," according to the research note.

    "Diminishing global tail risks" are also contributing to the recovery of the Indian economy.

    "As we head into 2014, the global story is a bit clearer. Taper has begun and, while our team expects it to conclude by September 2014, it expects US monetary policy to continue being highly accommodative," Citigroup said.

    Global real GDP growth measured at market exchange rates is expected to rise to 3.1 per cent in 2014 from 2.4 per cent in 2013, Citigroup said.

    Citigroup maintained its estimate of a modest upturn in India's GDP growth from 4.8 per cent in FY14 to 5.6 per cent in FY15.

    Wholesale and retail inflation are expected to head lower and average 6 per cent and 8.3 per cent, respectively, in FY15 compared with 6.5 per cent and 10 per cent in FY14.

    The current account deficit may be contained at 2.3 per cent of GDP in FY14, according to Citigroup.

    Four domestic factors to "look out" for in 2014 are politics, inflation, the external sector rebalancing and investments.

    The emergence of the Aam Aadmi Party (AAP) is likely to change the political landscape of India, it said.

    "With the AAP now likely to contest the general elections, earlier political arithmetic on likely election outcomes would need to be re-visited," Citigroup said.

    IMF predicts higher global growth but warns of risks

    International Monetary Fund expects global growth to pick up in 2014 though deflation is a "rising risk"

    Reuters

    Washington: The International Monetary Fund expects global growth to pick up this year, though deflation is a "rising risk" as long as economic growth stays below what policy-makers believe is optimal, the head of the Fund said on Wednesday.

    IMF managing director Christine Lagarde expressed concern about price growth remaining below the target of many central banks, which could hurt the nascent recovery.

    "If inflation is the genie, then deflation is the ogre that must be fought decisively," Lagarde said at the National Press Club in Washington.

    An inflation rate that is well below the 2 per cent targeted by some of the world's major central banks carries risks in the longer term because it can deflate wages and demand, depressing the economy.

    In the United States, Federal Reserve officials are stumped about why inflation has stayed so low for so long, and some worry it could be a sign the U.S. recovery is not as strong as some other economic data might indicate. In theory, inflation should rise as the job market heals.

    However, disappointing data on U.S. nonfarm payrolls last week offered a cautionary note after a string of data - from consumer spending and trade to industrial production - had suggested the U.S. economy ended 2013 on strong footing and was positioned to strengthen further this year.

    While December's unemployment rate fell 0.3 percentage point to 6.7 per cent, its lowest level since October 2008, the decline mostly reflected people leaving the labor force.

    Lagarde said central banks should be careful to withdraw monetary stimulus only once the economy is clearly on a firm footing.

    The Fed last month decided to trim its monthly bond purchases to $75 billion from $85 billion, and two of the U.S. central bank's most hawkish policymakers said this week that it should bring its bond-buying program to a swift close.

    Lagarde said the so-called "taper" of the Fed's bond buying was not expected to roil markets as long as it was gradual.

    "We don't anticipate massive, heavy and serious consequences," she said.

    However, she said more rapid adjustments could cause sharp market gyrations and volatile capital flows, which would hit some emerging markets in particular.

    Developing economies, which had been the engine of the global recovery after the 2008 financial crisis, are now slowing due to cyclical factors, Lagarde said.

    "Overall, the direction is positive, but global growth is still too low, too fragile, and too uneven," she said.

    India likely to grow at 4.6%: IMF

    Growth in India has picked up in the last few months and is expected to firm further on strong structural policies supporting investment, says IMF report

    Reuters

    Washington: India is likely to clock an economic growth rate of 4.6 per cent this financial year and the expansion may improve to 5.4 per cent in 2014-15, the International Monetary Fund (IMF) said on Tuesday in a report.

    "Growth in India picked up after a favourable monsoon season and a higher export growth and is expected to firm further on strong structural policies supporting investment," IMF said in its World Economic Outlook update.

    The growth rate in 2015-16, at factor prices (excluding taxes), is likely to be 6.4 per cent, it added.

    At market prices (basic prices plus taxes but less subsidies), India's growth rate in 2013-14 is likely to be 4.4 per cent, IMF said. Its earlier estimate in October was 3.8 per cent.

    For the next two financial years, IMF projected a growth rate of 5.4 and 6.4 per cent respectively.

    India's economy slowed to a decade low of 5 per cent in the last fiscal due to global slowdown and domestic factors, like high interest rates.

    Growth rate during April-September of 2013-14 slipped to 4.6 per cent from 5.3 per cent in the same period last financial year.

    The report also said global activity strengthened during the second half of 2013 and is expected to improve further in 2014-15, largely on account of recovery in the advanced economies.

    "Global growth is now projected to be slightly higher in 2014, at around 3.7 per cent, rising to 3.9 per cent in 2015...," the report said.

    BRICS pack a good initiative by emerging nations: Stiglitz

    BRICS which is a grouping of five developing or newly industrialised countries are distinguished by their large and fast-growing or emerging market economies

    Reuters

    New Delhi: Nobel laureate Joseph Stiglitz today said the creation of BRICS (Brazil, Russia, India, China and South Africa) was a good initiative by emerging market economies as they have resources to have better economic growth.

    "The one good news is the BRICS pack. That is the one initiative that has come from the emerging markets....The BRICS, their GDP is today better than the advanced world, they have the resources to do it and also there is a need (for them to grow)," said Stiglitz.

    Stiglitz, who is also a professor at the Columbia University, was addressing a seminar on 'Global Financial Crisis: Implications for Developing Economies' organised by the United Nations ESCAP (Economic and Social Commission for Asia and the Pacific).

    BRICS which is a grouping of five developing or newly industrialised countries are distinguished by their large and fast-growing or emerging market economies.

    However, he said that the emerging countries should rely on each other and internal demand for their growth to keep going as the world economy is not growing well.

    "Europe and America were the centres of Lehman Brothers collapse five years back. People in Europe are celebrating the fact that next year the growth is likely to be positive."

    "In India, an average growth of 5-6 per cent shows that these economies are not performing well...The emerging countries cannot rely on the developed countries as a source of economic growth. They have to rely on each other and on internal demand," he added.

    He also said that the creation of euro was a big mistake and there is a need to restructure the euro zone.

    "In Europe the fundamental problem is that the euro was a mistake. And the leaders of Europe have not figured out what to do with this big mistake. What is needed is to restructure the euro-zone and that is very difficult."

    Stiglitz also said that the single-minded focus by the western countries on the inflation was wrong and there should be more focus on employment creation and generation of growth.

    Also, the Deputy Chairman of the Planning Commission Montek Singh Ahluwalia who also addressed the seminar said India's fundamentals are strong and it will not be much affected by global factors.

    "For India, the fundamentals are strong and savings rate are high...so our investment rate should be about 38 per cent".

    "So somewhere between 2-2.5 per cent is the Current Account Deficit (CAD) that needs to be fair....the percentage of the resources in terms of investment that is going to come from internal sources is very very high".

    "So whatever happens on the global front don't make much difference (for India)," Ahluwalia said.

    No poor country in world by 2035, says Bill Gates

    World's richest man Bill Gates says the divide between rich and poor countries has been filled in by China, India, Brazil, and others

    Reuters

    New Delhi: There will be no poor countries in this world by 2035 as these nations will benefit from innovations of their rich counterparts, world's richest man Bill Gates has said.

    "I am optimistic enough about this that I am willing to make a prediction. By 2035, there will be almost no poor countries (as per the current definition) left in the world," Gates said in the Bill & Melinda Gates Foundation's annual letter published today.

    "Almost all countries will be what we now call lower- middle income or richer. Countries will learn from their most productive neighbours and benefit from innovations like new vaccines, better seeds, and the digital revolution. Their labour forces, buoyed by expanded education, will attract new investments," he said.

    By 2035 most countries will have higher per-capita income than what China has right now. "More than 70 per cent of countries will have a higher per-person income than China does today. Nearly 90 per cent will have a higher income than India does today," he said.

    Bill Gates said that the divide between rich and poor countries has been filled in by China, India, Brazil, and others. Since 1960, China's real income per person has gone up eight-fold. India's has quadrupled and Brazil's has almost quintupled, he said.

    He voted against the "three myths" that block progress for the poor -- poor countries are doomed to stay poor, foreign aid is a big waste; and saving lives leads to over-population.

    "The belief that the world is getting worse, that we can't solve extreme poverty and disease, isn't just mistaken. It is harmful," Gates wrote. "By almost any measure, the world is better than it has ever been. In two decades it will be better still." 



    बड़-बड़ बहाइल जाए, गदहवा कहे केतना पानी…!

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    बड़-बड़ बहाइल जाए, गदहवा कहे केतना पानी…!

    बड़-बड़ बहाइल जाए, गदहवा कहे केतना पानी…!

    HASTAKSHEP

    खुल्ला बाजार में सारे लोग पाँत में खड़े अपनी-अपनी क्रयशक्ति तौल रहे हैं ताकि विकास के नाम पर भरपेट तबाही खरीद सकें।

    पलाश विश्वास

    अपना अतुल्य भारत अब बिकाऊ है। जिस तरह देश भर में बेदखली मुहिम पीड़ितों के अलावा बाकी जनता तमाशबीन की तरह देखती रहती है, जिस तरह आहिस्ते-आहिस्ते राथचाइल्डस घराने के लोग आर्थिक सुधारों के नाम बपर निनानब्वे फीसद लोगों का गली पूरे दो दशक से रेंत रहे हैं, जैसे रक्षा, मीडिया और खुदरा बाजार तक मेंप्रत्यक्ष विदेशी निवेश है, जैसे अबाध पूँजी प्रवाह के नाम पर कालाधन का निरंकुश राज है, जैसे खास-खास कम्पनी के हितों के मद्देनजर सारे कायदे कानून सर्वदलीय सहमति से बनाये बिगाड़े जा रहे हैं, जैसे देश में कहीं भी न संविधान लागू है, न लोकतंत्र है और न कानून का राज, किसी को डंके की चोट पर हो रही इस नीलामी से कोई ऐतराज नहीं है। खुल्ला बाजार में सारे लोग पाँत में खड़े अपनी-अपनी क्रयशक्ति तौल रहे हैं ताकि विकास के नाम पर भरपेट तबाही खरीद सकें।

    अब इस देश में देशभक्ति का हर स्वाँग बेमतलब है। नाना दिवसों पर सैन्य राष्ट्र के शक्ति प्रदर्शन में राष्ट्र कहीं नहीं है।

    शुरु होने से पहले ही लगता है कि दूसरी सम्पूर्ण क्रांति की भ्रांति का पटाक्षेप हो गया और देश में अस्मिताओं के टूटने का भ्रम भी आखिर बाजार का ही करिश्मा साबित होने लगा है। इसी के मध्य विदेशी निवेशकों ने भारत में विस्तार की योजना बनायी है। वे इस साल होने वाले आम चुनाव के बाद बेहतर कारोबारी माहौल और सुधार प्रक्रिया आगे बढ़ते रहने की उम्मीद कर रहे हैं। यह बात एक सर्वेक्षण में कही गयी।

    अर्न्‍स्ट एंड यंग इंडिया के एक सर्वेक्षण में कहा गया कि पूछे गये सवालों के जवाब में आधे से अधिक (53.2 प्रतिशत) का मानना है कि वह भारत में अपनी उपस्थिति बढ़ाने पर पर विचार कर रहे हें और 57.9 प्रतिशत निवेशक अपने कामकाज के विस्तार की योजना बना रहे हैं।

    विनाश कार्यक्रम में विनिर्माण को सर्वोच्च वरीयता का खुलासा इस तरह हो रहा है कि भारत सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र की भागीदारी 16 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 25 प्रतिशत तक पहुँचायेगा और 10 करोड़ लोगों के लिये रोजगार के अवसर पैदा करेगा। यह बात वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कही।

     नेताजी जयंती की सबसे बड़ी खबर शायद यह है कि कोलकाता में इस मौके पर पराधीन भारत को आजाद करने के लिये आजाद हिंद फौज बनाने वाले और ब्रिटिश साम्राज्य के लिये बाकायदा युद्ध करने वाले उसी आजाद हिंद फौज के सर्वाधिनायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजनों और रिश्तेदारों ने केंद्र और राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। नेताजी मृत्यु रहस्य की राजनीति करने वाले सत्ता के खेल से नेताजी के परिजन बेहद परेशान हैं

    उत्तराखंड की तराई में मेरे गांव बसंतीपुर में राज्य का मुख्य नेताजी जयंती समारोह हर साल की तरह भव्य तरीके से सम्पन्न हो गया। भाई पद्दोलोचन ने सविता को कार्यक्रम का आँखों देखा हाल भी सुनाया। हर साल स्वतंत्रता सेनानियों को इस मौके पर हमने रोते हुये देखा है।

    आजाद भारत को देश बेचो ब्रिगेड कंपनी राज में बदलने की तैयारी में है, यह देखकर उनको क्या लगता होगा,उससे बड़ा सवाल है कि देश को गुलाम बनाने वाली राजनीति को नेताजी जयंती मनाने का हक है या नहीं।

    पद्दो ने अपनी भाभी को बताया कि बसंतीपुर में नेताजी जयंती समारोह में मुख्य अतिथि थे उत्तराखंड के भाजपायी पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, जिनकी सरकार ने बंगाली शरणार्थियों को विदेशी घुसपैठिया करार दिया था, जिसके खिलाफ उत्तराखंड की जनता ने अस्मिताओं का दायरा तोड़कर जनांदोलन किया था। उन्हीं कोश्यारी जी का स्वागत हमारे गाँव वाले और दूसरे लोग कैसे कर रहे होंगे और उनकी मौजूदगी में क्या नेताजी जयंती मना रहे होंगे, मैं सोच नहीं सकता। बसंतीपुर वालों से बात होगी तो पूछुँगा जरूर।

    पूरा देश आज बसंतीपुर है और इस देशव्यापी बसंतीपुर में नेताजी जयंती इसी तरह मनायी गयी गुलामी की गगन घटा गहरानी मध्य, हमें इसका अहसास तक नहीं है।

    डोवास में देश बेचो ब्रिगेड का जमावड़ा लगा है। ग्लोबल इमर्जिंग मार्केट के दुनियाभर के एजेंट और दल्ला जमा हैं वहाँ। जिन्हें नीति निर्धारण और राजकाज के पाठ पढ़ा रही है जायनवादी वैश्विक एक ध्रुवीय व्यवस्था।

    भारतीय नीति निर्धारकों और मुक्त बाजार के राजकाज कारिंदों के लिये ताजातरीन पाठ यही है कि भारत में विकास की बुलेट मिसाइली ट्रेन को समूचे देहात को रौंदने लायक पटरी पर लाने की गरज से राजकाज व्यवसायिक होना चाहिए और सरकार वाणिज्यिक कम्पनी की तरह चलनी चाहिेए।

    बिल गेट्स बाबू ने कह ही दिया है कि 2035 तक दुनिया में कोई गरीब देश रहेगा नहीं। जबकि यह आंकड़ा भी बहुत पुराना नहीं है कि दुनिया भर की कुल सम्पत्ति सिर्फ पचासी लोगों के पास है। यानी अगले इक्कीस साल में संपत्ति और संसाधनों, अवसरों पर इस एकाधिकारवादी कारपोरेट वर्चस्व खत्म होने के कोई आसार नहीं है।

    गरीब देशों का या दुनियाभर के गरीबों का वजूद मिटाकर ही यह करिश्मा सम्भव है। कहना न होगा कि त्रिइब्लिशी वैश्विक व्यवस्था के मातहत दुनिया भर की सरकारें इस एजेडे को अंजाम देने के लिये एड़ी चोटी का जोर लगा रहीं हैं।

    अपने यहाँ टीवी विज्ञापनों में देश का कायाकल्प जो किया जा रहा है, वह दरअसल राजकाज के वाणिज्यीकरण का ज्वलंत दस्तावेज है, जिसे या तो हम पढ़ ही नहीं सकते या पढ़ना नहीं चाहते क्योंकि पढ़ा लिखा मध्यमवर्ग इस भारत निर्माण परिकल्पना की मलाई की हिस्सेदारी में ही कृतकृतार्थ है।

    वैसे कम्पनी का राज क्या हो सकता है, भविष्य के मुखातिब उसका अतीत और वर्तमान हमारे पास बाकायदा है। हमारी प्रिय लेखिका अरुंधति ने तो साफ-साफ कह ही दिया है कि जनादेश का मतलब राजनीतिक रंग चुनना नहीं है, हमें सीधे यह तय करना है कि हम अंबानी के राज में रहना चाहते हैं या टाटा के राज में।

    बहरहाल कम्पनीराज में जनता की जो दुर्गति होती है, उससे एकाधिकार कंपनियों को छोड़ बाकी कारोबारियों की हालत ज्यादा खराब होने की गुंजाइश ज्यादा है।

    स्वदेशी आन्दोलन में भारतीय सामन्तों और भारतीय कम्पनियों के बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के इतिहास की चीरफाड़ करें तो सच सामने आयेगा।

    ग्लोबीकरण, उदारीकरण और निजीकरण के पीछे विनियंत्रित बाजार में उन्मुक्त प्रतिद्वंद्विता का सिद्धान्त है।

    भारत में कारपोरेट कम्पनियों के आगे परम्परागत गैरकारपोरेट कारोबारी खस्ताहाल हैं। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से ये कारोबारी अब बाजार से भी बाहर होने को हैं।

    इकानामिक टाइम्स में छपे एक लेख के मुताबिक वैश्विक कारपोरेट पूँजी के मुकाबले इंडिया इनकारपोरेशन की औकात पिग्मी से ज्यादा नहीं है।

    इसका सीधा मतलब तो यह हुआ कि तत्काल विदेशी कम्पनियों के फेंके टुकड़ों से मुटिया रही भारतीय कम्पनियों और कारोबरी वर्ग और उनके कारिंदे छनछनाते विकास के मलाईदार हिस्सेदार फिलहाल है, लेकिन कम्पनी राज पूरी तरह बहाल हो जाने के बाद जहाँ उत्पादक समुदायों, किसानों, मजदूरों, वंचितों समेत तमाम किस्म के गरीबों का सफाया तय है वहाँ बाहुबलि जैसे पेशियों की प्रदर्शनी कर रहे मध्यवर्ग और उनके आका भारतीय कारपोरेट यानी टाटा बिड़ला अंबानी मित्तल जिंदल गोदरेज वगैरह-वगैरह की भी खैर नहीं है।

    देश बेचो ब्रिगेड की अगुवाई में मध्यवर्ग के जश्नी समर्थन से इंडिया इनकापोरेशन भी आत्मध्वंस पर आमादा है।

     विषय विस्तार से पहले एक अच्छी खबर यह कि हमारे प्रिय कवि  कैसर पीड़ित वीरेन डंगवाल का जो जटिल असम्भव सा ऑपरेशन होना था, टलते-टलते वह सकुशल सम्पन्न हो गया है। वीरेनदा अब आराम कर रहे हैं दूसरा जटिल आपरेशन के बाद।

    लेकिन कोलकाता से एक बुरी खबर भी है। मेरे लिये यह खबर हमारी असमर्थता की शर्मनाक नजीर है। हम मीडिया के बीचोंबीच हैं, लेकिन हमें आज कोलकाता में प्रतिरोध के सिनेमा की संयोजक कस्तूरी के फोन से संजोगवश यह खबर मालूम हुयी। कस्तूरी को भी तमाम मित्रों की तरह वीरेनदा की सेहत की फिक्र लगी थी। बरेली से रोहित ने फिल्मकार राजीव को आज सुबह ही वीरेनदा के ऑपरेशन के बारे में बता दिया थी लेकिन संजय जोशी और कस्तूरी को खबर नहीं मिली थी। हमने बताया तो उसने जवाब में कहा कि वीरेनदा का आपरेशन तो हो गया, अब नवारुण दा की चिंता है।

    नवारुण दा यानी, यह मृत्यु उपत्यका मेरा देश नहीं के कवि, कंगाल मालसाट के उपन्यासकार और भाषाबंधन के संपादक नवारुण भट्टाचार्य भी कैंसर पीड़ित हैं और इलाज के लिये मुंबई में है। कोलकाता में यह खबर कहीं नहीं है।

    महाश्वेता दी के परिवर्तनपंथी बन जाने के बाद मीडिया का फोकस उन्हीं पर है, उनसे अलग-थलग रह रहे और परिवर्तनपंथियों के बजाय अब भी जनपक्षधर मोर्चे से जुड़े होने की वजह से नवारुण दा मीडिया के लिये महत्वपूर्ण नहीं है।

    बांग्ला में हिंदी की तरह सोशल मीडिया भी अनुपस्थित है। मैं भी कोलकाता आता जाता नहीं हूँ।

    अब यह खबर जानकर जोर का झटका लगा है। सविता को बताया तो वह और नाराज हो गयी इसलिये कि नवारुण दा की हालचाल हम लेने से क्यों चूक गये।

    सविता सही कह रही है। हम लोग जो जनपक्षधरता का दावा करते हैं, साथ तो चल ही नहीं सकते। न हमारे बीच सत्तावर्ग की तरह कोई संवाद की नदियाँ बहती हैं। उससे भी बड़ी विडंबना है कि हमें आपस में कुशल क्षेम पूछने का भी अभ्यास नहीं है।

    हमारे छनछनाते विकास के विज्ञापन के लिये काल्पनिक यथार्थ का बखूब इस्तेमाल किया जा रहा है। जो इनफ्रास्ट्रक्चर का विकास हुआ है, उसी को शोकेस किया जा रहा है। बाकी जो विस्थापन है, जो तबाही है, जो अविराम बेदखली है, जो प्रकृति से निरंतर बलात्कार है, जो प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट है, जो नरमेध यज्ञ है, उसकी कोई चर्चा नहीं हो रही है।

    छनछनाते विकास के आंकड़े हर जुबान पर है। परिभाषाओं के तहत समावेशी विकास की मृगमरीचिका भी खूब है। बाजार के विस्तार के लिये कारपोरेट उत्तरदायित्व की धूम है। तकनीक और सेवाओं की शेयरी धूम है। लेकिन कोई छनछनाता अर्थशास्त्री उत्पादन प्रणाली, उत्पादन, उत्पादन सम्बंधों, श्रम के हश्र और खेत खलिहान देहात की कोई बात नहीं कर रहा है।

    धर्मोन्मादी सुनामी का असर यह है कि भारतीय बाज़ार में तेजी का माहौल लगातार दूसरे दिन भी बना रहा और सेंसेक्स-निफ्टी रेकॉर्ड ऊँचाई पर बन्द हुये। बीएसई का 30 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स सेंसेक्स अब तक के अपने सबसे ऊपरी स्तरों पर बन्द हुआ।

    बलात्कार सुनामी पर स्त्री विमर्श की धूम है जो देहमुक्ति से शुरु होकर देह मुक्ति में खत्म होती है, पुरुषतंत्र से कहीं टकराती नहीं है। बुनियादी जो बात है कि यह मुक्त बाजार का उपभोक्ता वाद दरअसल पुरुषतंत्रिक है और स्त्री भी खुल्ला बाजार में विमर्श है। बाजार में स्त्री आखेट के सारे साधन रात दिन चौबीसों घंटे साल भर तरह तरह के मुलम्मे में उचित विनिमय मूल्य पर विज्ञापित हो रहे हैं और बिक भी रहे हैं, तो कहीं भी सुगंधित काफी कंडोम में मजा लेने के जमाने में स्त्री सुरक्षा की कैसे सोच सकते हैं, इस पर बहस कोई नहीं हो रही है। जो स्त्री बाजार में खड़ी है, जिसके श्रम और देह का धर्मोन्मादी शोषण हो रहा है और हर सामजिक हलचल में जिस स्त्री की अस्मिता को समाज, अर्थव्यवस्था और राष्ट्र के साझे उपक्रम के तहत मिटाने का चाकचौबंद इंतजाम है, उसको तोड़ने की कोशिश नहीं हो रही।

    गौर करें कि मुक्त बाजार में आखिर क्या होता है, भारत को अमेरिका बनाने की हर सम्भव कोशिश हो रही है जबकि अमेरिका में 2 करोड़ 20 लाख महिलाएं रेप पीड़ित हैं यानि हर पांचवीं महिला के साथ रेप होता है। ये चौंकाने वाले आंकड़े व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में सामने आये हैं। बुधवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक लगभग आधी रेप पीड़ित महिलाएं 18 साल से कम उम्र में ही यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं।

    करमुक्त ख्वाब के तहत सारे लोग अपना अपना टैक्स बचाने का हिसाब जोड़ रहे हैं लेकिन कोई नहीं सोच रहा है कि जो गरीबी रेखा के आर पार के लोग हैं, उन पर टैक्स लगाकर किस तरह समर्थों को लाखों लाखों करोड़ की टैक्स छूट दने की तैयारी है। हम दरअसल किसी नदी, किसी घाटी, किसी वन क्षेत्र, किसी गांव या किसी जनपद को अपने दृष्टिपथ पर पाते ही नहीं है। इस महाभोग के तिलिस्म में हम अपने मौत का सामान ही समेटने में लगे हैं, अपने घर लगी आग पर नजर नहीं किसी की। जल जंगल जमीन की बेदखली के सारे विमर्श कारपोरेट राजनीति के विमर्श में हैं, हम उन्हें नजरअंदाज करते जा रहे हैं।

    पहले दस साल तक कांग्रेस के राज को जिन शक्तियों ने भरपूर समर्थन दिया,वे आखिर नमोमय भारत बनाने के मुहिम में क्यों हैं, इस पहेली को बूझने की किसी ने कोई जरुरत नहीं समझी। बाजार के समूची प्रबंधकीय दक्षता और अत्याधुनिक तकनीक से लैस राजनीति जब जनादेश का निर्माण धर्मोन्मादी सुनामी और अस्मिता की मृग मरीचिका के तहत करने लगी, तो अंतराल में घात लगाकर बैठी मौत के चेहरे पर हमारी नजर ही नहीं जाती। फिर मोदी को रोकने का क्या घणित हुआ कि सीधे रजनीति में प्रत्यक्ष विदेशी विनिवेश और सामाजिक क्षेत्र में विदेशी पूँजी के पांख लगाकर नया विकल्प पेश किया गया। जनपथ पर उस विकल्प की अराजकता के महाविस्फोट के बाद कैसे फिर नमोमय भारत के शंखनाद के मध्य स्त्री सशक्तीकरण के विकल्प बतौर मायावती ममता जयललिता के त्रिभुज को पेश किया जा रहा है, राथचाइल्डस के इस अर्थ शास्त्र को हम समझने में सिरे से असमर्थ हैं और बाकायदा धर्मोन्मादी पैदल सेनाएं एक दूसरे के विरुद्ध रंग बिरंगी अस्मिताओं और पहचानों के झंडे लहराते हुये धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे महाविनाश के लिये लामबंद हो गये हैं।

    यह सारा युद्ध उपक्रम दरअसल कंपनी राज के लिये है। एकाधिकारवादी बहुराष्ट्रीय कम्पनी राज के लिये बंधु, हम सारे लोग एक दूसरे पर घातक से घातक, मारक से मारक वार कर रहे हैं और अपने ही रक्त से पवित्र स्नान कर रहे हैं मिथ्या मिथकों के लिये।

    याद करें, पिछले सितंबर में ही भारत के करीब तीन चौथाई बिजनेस लीडर्स (इंडिया इंक) ने देश की खस्ता आर्थिक हालात के लिये मनमोहन सरकार को जिम्मेदार ठहराया है और वो चाहते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बने।

    शुक्रवार को प्रकाशित इकोनॉमिक टाइम्स/नेल्सन के सीईओ कॉन्फिडेंस सर्वे में शामिल 100 में तीन चौथाई मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) नरेंद्र मोदी को पीएम की कुर्सी पर देखना चाहते हैं। सिर्फ 7 प्रतिशत लोगों ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को प्रधानमंत्री प्रत्याशी के तौर पर समर्थन किया है।

    About The Author

    पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना।

    लेकिन तनिक विचार जरुर करें कि यह वैमनस्य से लबालब भेदभाव कोई मुद्दा है या नहीं। उत्तराखंड में हम लोग अब भी साझा चूल्हा के हिस्सेदार हैं,मुझे मरते हुए इसीलिए भेदभाव के बंगाल के बजाय उत्तराखंड में जनमने का गर्व रहेगा।

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    लेकिन तनिक विचार जरुर करें कि यह वैमनस्य से लबालब भेदभाव कोई मुद्दा है या नहीं।



    उत्तराखंड में हम लोग अब भी साझा चूल्हा के हिस्सेदार हैं,मुझे मरते हुए इसीलिए भेदभाव के बंगाल के बजाय उत्तराखंड में जनमने का गर्व रहेगा।

    पलाश विश्वास


    सिखों की राजनीति लिखकर मित्रों को भेजते भेजते कल रात भोर में तब्दील हो गयी। रिजर्व बैंक की ओर से 2005 के करंसी नोटों को खारिज करने की कार्रवाई का खुलासा करने के मकसद से तैयारी कर रहा हूं जबसे यह घोषणा हुई तबसे। आज लिखने का इरादा था।


    लेकिन मार्च से पहले अभी काफी वक्त है । इस पर हम लोग बाद में भी चर्चा कर सकते हैं।इसलिए फिलहाल यह संवाद विषय स्थगित है।


    बसंतीपुर के नेताजी जयंती समारोह की चर्चा करते हुए हमने उत्तराखंड की पहली केशरिया सरकार की ओर से वहां 1952 से पुनर्वासित सभी बंगाली शरणार्थियों को विदेशी घुसपैठिया करार दिये जाने की चर्चा की थी।


    इन्हीं बंगाली शरणार्थियों की नागरिकता के सवाल पर साम्यवादी साथियों की चुप्पी की वजह से पहलीबार हमें अंबेडकरी आंदोलन में खुलकर शामिल होना पड़ा है।


    हम बार बार विभाजन कीत्रासदी पर हिंदी,बांग्ला और अंग्रेजी में लिखते रहे हैं,क्योंकि भारत में बसे विभाजनपीड़ितों की कथा व्यथा यह है।


    इस विभाजन में केंद्रीय नेताओं के मुकाबले बंगाल के सत्तावर्ग की निर्णायक भूमिका का खुलासा भी हमने बार बार किया है।


    इसी सिलसिले में शरणार्थियों के प्रति सत्तावर्ग के शत्रुतापूर्ण रवैये के सिलसिले में हमने बार बार मरीचझांपी जनसंहार की कथा सुनायी है।


    जिसपर आज भी भद्रलोक बंगाल सिरे से खामोश हैं।


    यही नहीं, विभाजनपीड़ित बंगाली दलित शरणार्थियों के देश निकाले अभियान की शुरुआत जिस नागरिकता संशोधन कानून से हुई ,उसे पास कराने में बंगाल के सारे राजनीतिक दलों की सहमति थी।


    हमने उत्तराखंड, ओड़ीशा, महाराष्ट्र से लेकर देशभर में चितरा दिये गये बंगाली दलित शरणार्थियों के बंगाल से बाहर स्थानीय लोगों के बिना शर्त समर्थन के बारे में भी बार बार लिखा है।


    असम में भी जहां विदेशी घुसपैठियों के खिलाप आंदोलन होते रहते हैं,वहां गुवाहाटी में दलित बंगाली शरणार्थियों को नागरिकता देने की मांग लेकर सभी समुदायों की लाखों की रैली होती है।


    हमने इस सिलसिले में उत्तराखंड में होने वाले जनांदोलनों में तराई और पहाड़ के सभी समुदायों की हिस्सेदारी की रपटें 1973 से लगातार लिखी है।


    1973 से देश भर में मेरा लिखा प्रकाशित होता रहा तो अंग्रेजी में जब लिखना शुरु किया तो बांग्लादेश, पाकिस्तान,क्यूबा,म्यांमार और चीन देशों में वे लेख तब तक छपते रहे जबतक हम छपने के ही मकसद से प्रिंट फार्मेट में लिखते रहे।


    लेकिन बंगाल में तेईस साल से रहने के बावजूद बांग्लादेश में खूब छपने के बावजूद मेरा बांग्ला लिखा भी बंगाल  में नहीं छपा। अंग्रेजी और हिंदी में लिखा भी नहीं।


    हम देशभर के लोगों से बिना किसी भेदभाव के कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी, पूर्वोत्तर लेकर कच्छ तक, मध्यभारत  और हिमालय के अस्पृश्य डूब बेदखल जमीन के लोगों को बिना भेदभाव संबोधित करते रहे हैं और उनसे निरंतर संवाद करते रहे हैं।


    बाकी देश में मुझे लिखने से किसी ने आज तक रोका नहीं है।


    कल जो सिखों की राजनीति पर लिखा,जैसा कि सिख संहार को मैं हमेशा हरित क्रांति के अर्थशास्त्र और ग्लोबीकरण एकाधिकारवादी कारोपोरेट राज के तहत भोपाल गैस त्रासदी और बाबरी विध्वंस के साथ जोड़कर हमेशा लिखता रहा हूं और पंजाबियत के बंटवारे पर भारत विभाजन के बारे में लिखा है,अकाली राजनीति के भगवेकरण की तीखी आलोचना की है। लेकिन किसी सिख या अकाली ने मुझसे कभी नहीं कहा कि मत लिखो।



    इसी लेख पर बंगाल से किन्हीं सव्यसाची चक्रवर्ती ने मंतव्य कर दिया कि किसी बांग्लादेशी शरणार्थी को भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करने की जरुरत नहीं है।


    इससे पहले नामदेव धसाल पर मेरे आलेख का लिंक देने पर भद्रलोक फेसबुक मंडली  से चेतावनी जारी होने पर मैं खुद उस ग्रुप से बाहर  हो गया।नामदेव धसाल पर लिखने की यह प्रतिक्रिया है।


    हिंदी और मराठी के अलावा बाकी भारतीय भाषाओं में दलित,आदिवासी और पिछड़ा साहित्य को स्वीकृति मिली हुई है। लेकिन बांग्ला वर्ण वर्चस्वी समाज ने न दलित,न आदिवासी और न पिछड़ा कोई साहित्य किसी को मंजूर है।


    परिवर्तन राज में हुआ यह है कि वाम शासन के जमाने से कोलकाता पुस्तक मेले के लघु पत्रिका मंडप में बांग्ला दलित साहित्य को जो मेज मिलती थी,इसबार उसकी भी इजाजत नहीं दी गयी।


    बांग्ला दलित साहित्य के संस्थापक व अध्यक्ष मनोहर मौलि विश्वास ने अफसोस जताते हुए कि बांग्ला में कहीं भी दलित साहित्यकार ओमप्रकाश बाल्मीकि या कवि नामदेव धसाल के निधन पर कुछ भी नहीं छपा।जब पेसबुक लिंक पर हो लोगों को ऐतराज हो तो इसकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती।


    मनोहर दा ने कहा कि पुस्तकमेले के व्यवस्थापकों को दलित शब्द से ऐतराज है।


    उन्होंने बताया कि हारकर उन्होंने अपनी अंग्रेजी पत्रिका दलित मिरर के लिए अलग टेबिल की इजाजत मांगी और उससे भी सिरे से दलित शब्द के लिए मना कर दिया गया।


    प्रगतिशील क्रांतिकारी उदार आंदोलनकारी बंगाल की छवि लेकिन अब भी देश में सबसे चालू सिक्का है।उसीका खोट उजागर करने के लिए निहायत निजी बातों का भी खुलासा मुझे भुक्तभोगी बाहैसियत करना पड़ा।


    प्रासंगिक मुद्दे से भटकाव के लिए हमारे पाठक हमें माफ करें।

    लेकिन तनिक विचार करे कि यह वैमनस्य से लबालब भेदभाव कोई मुद्दा है या नहीं।


    मेरे पिता 1947 के बाद इस पार चले आये, पूर्वी बंगाल से लेकर उत्तर प्रदेश की तराई में 1958 के ढिमरी ब्लाक तक भूमि आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1969 में ही दिनेशपुर के लोगों को भूमिधारी हक मिल गया था। हम तराई में जनमे और पहाड़ में पले बढ़े। हमें किस आधार पर बांग्ला देशी शरणार्थी कहा जा रहा है।इसी सिलसिले में आपको बता दूं कि मेरे बेटे को 2012 में एक बहुत बड़े एनजीओ से सांप्रदायिकता पर फैलोशिप मंजूर हुई थी। दिल्ली में उस एनजीओ की महिला मुख्याधिकारी जो संजोगसे चक्रवर्ती ही थीं, ने उसे देखते ही बांग्लादेशी करार दिया और कहा कि सारे पूर्वी बंगाल मूल के लोग विदेशी हैं।तुम विदेशी हो और तुम्हें हम काम नहीं करने देंगे।आननफानन में उसकी फैलोशिप रद्द कर दी गयी।आदरणीय राम पुनियानी जो को यह कथा मालूम है।बस,हमने इसे अपवाद मानते हुए आपसे साझा नहीं किया था।पुनियानी जी ने तब अनहद में उसके काम करने का प्रस्ताव किया था। लेकिन वह एकबार दूध से जलने के बाद छाछ भी पीने को तैयार नहीं हुआ।


    मैं उत्तराखंड,झारखंड और छत्तीसगढ़ के आंदोलनो से छात्रजीवन से जुड़ा था। किसीने इसपर कोई ऐतराज नहीं किया। गैरआदिवासी होते हुए मैं हमेशा आदिवासी आयोजनों में शामिल होता रहा हूं,देश के किसी आदिवासी ने मुझसे नहीं कहा कि तुम गैर आदिवासी और दिकू हो। पूर्वोत्तर और दक्षिणभारत में भी ऐसा कोई अनुभव नहीं है।


    हमारे पुरातन मित्रों की तरह न मैं कामयाब पत्रकार हूं न कोई कालजयी साहित्यकार हूं।मुझे इसका अफसोस नहीं है बल्कि संतोष है कि अब भी पिता की ही विरासत जी रहा हूं। जनपक्षधर संस्कृतिकर्म के लिए तो अगर पुनर्जन्म के सिद्धांत को सही मान लें,लगातार सक्रियता के लिए सौ सौ जनम लेने पड़ते हैं। हम अपनी दी हुई स्थितियों में जो कर सकते थे,हमेशा करने की कोशिश करते रहे हैं।इस सिलसिले में जब प्रभाष जोशी जी जनसत्ता के प्रधानसंपादक थे,तभी हंस में मेरा आलेख छप गया था कि कैसे बंगाल के  सवर्ण वर्चस्व के चलते हमें किनारे कर दिया गया।हमें जो लोग विदेशी बांगलादेशी बताकर लिखने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं,उन्हीं के भाईबंधु मीडिया में सर्वेसर्वा हैं। बंगाल में तो जीवन के हर क्षेत्र में। हमने उनको कोई रियायत नहीं दी है।इतिहास,साहित्य और संस्कृति के मुद्दों पर उनके एकाधिकार को हमेशा चुनौती दी है। गौरतलब है कि उन मुद्दों पर इन लोगों ने  कभी प्रतिवाद करनाभी जरुरी नहीं समझा। सिखों के मुद्दे पर सिखों की ओर से हस्तक्षेप का आरोप नहीं लग रहा है,आरोप लगाया जा रहा है तो बंगाल के वर्णवर्चस्वी सत्ता वर्ग से।


    इससे आगे हमें खुलासा नहीं करना है। लेकिन उत्तराखंड और देश के दूसरे हिस्सों में गैर बंगाली आम जनता का रवैया हमारे प्रति कितना पारिवारिक है,सिर्फ उसके खुलासे से निजी संकट के इस रोजनमचा को भी साझा कर रहा हूं। उत्तराखंड में हम लोग अब भी साझा चूल्हा के हिस्सेदार हैं,मुझे मरते हुए इसीलिए भेदभाव के बंगाल के बजाय उत्तराखंड में जनमने का गर्व रहेगा।

    आज तड़केदिनेशपुर से पंकज का फोन आया सविता को।तब मैं सो रहा था।सविता ने जगाकर कहा कि उसकी मंझली भाभी को दिमाग की नस फट जाने की वजह से हल्द्वानी कृष्मा नर्सिंग होम में भरती किया गया है परसो रात और वह कोमा में है।सविता ने मेरे जागने से पहले ही बसंतीपुर में पद्दोलोचन को फोन कर दिया और वह ढाई घंटे के बीतर हल्द्वानी पहुंच गया।दिनेशपुर में हसविता के मायकेवाले सारे लोग जमा हो गये।उसे बड़े भाई अस्वस्थ्य बिजनौर के धर्मनगरी गांव में हैं।भकी सारे लोग दिनेशपुर और दुर्गापुर में पम्मी और उमा के यहां डेरा डाले हुए हैं और बारी बारी से अस्पताल आ जा रहे हैं।


    हल्द्वानी में न्यूरो सर्जरी का कोई इंतजाम नहीं है।नर्सिंग होम में इलाज संभव नहीं है और वहां रोजाना बीस हजार का बिल है।इसी बीच दिल्ली से दुसाध जी का फोन आया और उन्होंने लखनऊ में स्वास्थ्य निदेशक से बात की।फिर उनसे हमारी बात हुई। इसी बीच रुद्रपुर से तिलक राज बेहड़ जी भी कृष्मा नर्सिंग होम पहुंच गये। सविता के भतीजे रथींद्र,दामाद सुभाष और कृष्ण के साथ पद्दो ने तमाम लोगों से परामर्श करके मरीज को देहरादून ज्योली ग्रांट मेडिकल कालेज में स्थानांतरित करने का फैसला लिया।क्योंकि वे लोग दिल्ली में सर्जरी कराने का खर्च उढा नहीं सकते।देहरादून में उन्हें स्थानीय मदद की भी उम्मीद है।वे लोग कल भोर तड़के तक देहरादून पहुंच जाएंगे घोर कुहासे के मध्य,ऐसी उम्मीद है।


    अभी अभी पद्दो ने हल्द्वानी से फोन करके बताया कि मरीज को नर्सिंग होम से डिस्चार्ज करवा देहरादून रवाना हो चुके हैं। आगे कठिन समय है। देहरादून में जिन मित्रों की ज्योली ग्रांट मेडिकल कालेज अस्पताल तक पहुंच हैं वे अगर न्यूरोलोजी विभाग में श्रीमती पद्दो विश्वास और उनके परिजनों की कोई मदद इलाज के सिलसिले में कर सकें,तो मौके पर हमारे न पहुंच पाने की कमी पूरी हो सकती है।मेरे भाई का नाम पद्दो है तो सविता की बाभी का नाम बी पद्दो है।बेहद खुशमिजाज पचास साल की इस महिला के लिए हम सारे लोग बेहद चिंतित है।


    आजकल दिल की बीमारियों का इलाज और आपरेशन कहीं भी कभी भी संभव है,लेकिन मस्तिष्काघात से हमारे मित्र फुटेला जी तक अभी उबर नहीं सके हैं और हमारे अपने ही लोग दिल्ली तक पहुंचने लायक हालत में नहीं है।फिरभी उत्तराखंड में हमारे परिचितों का दायरा इतना बड़ा है कि हमारे लोग दिल्ली जाने का जोखिम उटाये बगैर उत्तराकंडी विकल्प ही चुनते हैं।बाकी देश में बाकी आम लोगों के साथ क्या बीतती होगी,अपनों पर जब बन आती है ,तभी इसका अहसास हो पाता है।



    Mahesh Joshi commented on your post.

    Mahesh wrote: "देहरादून के मित्रों से नैनीताल समाचार की अपील है कृपया पीड़ित परिवार की मदद करैं. पलास दाज्यू पद्योलोचन वा अन्य लोगों का सम्पर्क नंबर भी लिखें."



    प्रभू से हृदय से प्रार्थना है रुग्ण साथी को शीघ्रातिशीघ्र स्वास्थ्य लाभ दें


    Sabyasachi Chakravarty commented on your post in Narendra Modi Sena West Bengal.
    *
    Bd refugee der indiar politics e nak golanor dorkar nei
    Original Post
    *
    Palash Biswas
    3:04am Jan 25
    http://antahasthal.blogspot.in/2014/01/sikh-politics-worldwide-should-be-aware.html
    *
    अंतःस्थल - कविताभूमि: Sikh Politics worldwide should be aware of USA and UK सिखों को अमेरिका और...
    जैसे भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए अब भी अपना खून बहाने में सिख ही सबसे आगे हैं,उसी तरह कारपोरेट अश...

    • Indranil Chowdhuri Who is savyasachi chakravarty
    • 13 minutes ago· Edited· Like
    • Palash Biswas Probably some RSS activist based in Kokata.I know not him.But it is the psyche we partition victims from East Bengal face since 1947.Those who want to make Narendra Modi the next Primeminister,hate the refugees so much so.It is revival of parttion stroies yet again.
    • a few seconds ago· Like
    • 3 hours ago· Like· 1
    • Indranil Chowdhuri Ohhhh... I thot he was either the internationally famous designer or our locally famous bengsli actor. More over it were the cross overs who were running Bengal politics for 3 decades and more, as almost. repeat almost all in the Left Front to the man were from "Opaar Bangla". Me 2 Bangaal. Pist oartition kid, but never came across such blatant crude a statement.
    • 2 hours ago· Like
    • Abhik MajumdarPalash Biswas: You could point out to him the RSS ideals of Akhand Bharat  Whenever someone rants about (Muslim) Bangladeshi refugees I keep raising this point, and also that the Sanghi conception of Hindutva is allegedly broad enough to encompass Islam and Christianity as well. If then they talk about how those guys separated from and thus betrayed India, I raise the ideal of Ghar Wapasi. That usually has them spluttering  
    • about an hour ago· Like· 1


    Mandar Mukherjee
    11:14pm Jan 25
    Sabyasachi Chakravarty
    9:35am Jan 25
    Bd refugee der indiar politics e nak golanor dorkar nei...

    Vidya Bhushan Rawat
    हिंदुत्व की जातिवादी मानसिकता का शिकार व्यक्ति चाहे वो 'आम आदमी' हो या ख़ास हमेशा दलित महिला विरोधी, पूर्वाग्रहों का शिकार, मेरिट नाम कि बीमारी से ग्रस्त, कामचोर, दम्भी, नसलवादी सोच वाला होगा। पार्टियां इसमें मायने नहीं रखती क्योंकि मध्यवर्ग भारत में इसी सोच पे आश्रित है और इनके साथ अराजनैतिक दिखने वाले अन्य लोगो यथा बाबा, पाखंडी, ढोंगी सभी का एक ही अजेंडा है के बदलाव के नाम पर देश में आ रहे बदलाव को रोकना। दुसरो से अलग दिखने वाले ये सभी लोगो जाति और सोच में सामंती चरित्र का शिकार हैं और उनकी दबी भावनाएं साफ तौर पर अब जाहिर होने लगी हैं? कुमार विश्वास तो ट्रेलर है और खुला खेल है बाकि सब अंदर से कुछ और और बाहर कुछ और नज़र आते हैं..
    Like·  · Share· 18 hours ago·



    ​Both Ambedkar and British recommended separate states for BC/SC/ST/FC/Muslim/Sikh/Christian/Parsi/Jain in 1932 itself.
    You should live on H1B type visa in those separate states as perhttps://en.m.wikipedia.org/wiki/Communal_Award

    10:09 PM (1 hour ago)

    *







    MANY QUESTIONS

    Panic Gains Currency Over Note Swap

    SHILPY SINHA & ANITA BHOIR MUMBAI


    The central bank did specifically say there was no reason to get into a panic about bank notes printed before 2005 getting phased out. So naturally, a lot of people have done exactly that. That's an exaggeration of course, but it has to be said that there is consternation among some sections.
    The Bharatiya Janata Party fumed that the poor and the illiterate will be badly hit by the move. Meanwhile, some shopkeepers and cab drivers are looking askance at notes without the year of printing on the back. Experts said gold and real estate prices may rise, while individuals could face difficulty making transactions, leading to the mushrooming of agents to facilitate note swaps. All these could be among the unintended consequences of RBI's decision to swap pre-2005 currency notes with new ones.





    Economic Times


    Navbharat Times Online

    2005 के पहले जारी नोट वापस लेने के फैसले का असर आपके घर से लेकर बाहर तक हो सकता है! पत्नी की सालों की मेहनत हो सकती है बर्बाद तो...


    देखिए कुछ मजेदार कार्टून

    http://navbharattimes.indiatimes.com/hansi-mazak/hansimazakphotoshow/29280676.cms

    Like·  · Share· 5,786851,799· 18 hours ago·


    Economic Times


    Economic and Political Weekly

    "If the political achievements were so remarkable why did Maoists face such an embarrassing defeat in the second CA elections? It is clear that the Nepali Maoists could not properly explain their achievements – their remarkable and revolutionary nature and what it could mean for livelihoods – to the electorate."


    http://www.epw.in/commentary/maoist-defeat-nepal.html

    Economic and Political Weekly

    "Jhumpa Lahiri's The Lowland can be read as a narrative about what life could be in the absence of the ideological movements of the 1960s and the 1970s shaping the personal (and the political). I particularly aim to read it as a comment on the psychology of the hyper-individualistic self emerging in the post-ideological era and its likely implications for the democratic politics."


    http://www.epw.in/commentary/self-and-political.html

    India Today

    The India Today Group-CVoter Mood of the Nation poll confirms the consistency with which the Modi juggernaut has been conquering the mind space of India and the Manmohan-led UPA regime has been undergoing the most devastating political atrophy of our time.


    Do you see BJP gaining further ground before the 2014 elections?

    Like·  · Share· 1,811449284· 10 hours ago·

    BBC Hindi

    आम आदमी पार्टी ने अपने अधिकारिक फ़ेसबुक पेज पर एक वीडियो पोस्ट किया. वीडियो दिल्ली पुलिस के जवानों से संबंधित है और इस वीडियो के सामने आने के बाद पुलिस तुरत-फुरत हरकत में आ गई है. जानिए क्या है पूरा मामला.

    http://bbc.in/1jIPki4

    Like·  · Share· 932162191· 8 hours ago·

    Lenin Raghuvanshi

    'मेरे बेटे को फांसी मत देना, एक बार उसको मेरे सामने खड़ा कर दो'1998 से मानवाधिकार जननिगरानी समिति ने इस मामले को उठाया था। कई बार राष्ट्रपति से सजा माफ़ी की गुहार भी लगाई गई। जननिगरानी समिति के सचिव डॉ लेलिन ने बताया कि 19 दिसंबर 1997 से सजा काट रहे सुरेश और रामजी को वाराणसी के सेशन कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। अब कई वर्षों की लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस परिवार को राहत दी है।

    http://www.bhaskar.com/article/UP-VAR-supreme-court-converted-death-sentence-to-life-imprisonment-4502163-PHO.html

    'मेरे बेटे को फांसी मत देना, एक बार उसको मेरे सामने खड़ा कर दो'

    bhaskar.com

    सर्वोच्च न्यायालय ने 15 लोगों की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है।

    Like·  · Share· 5 hours ago·

    The Economic Times

    IN PICS: ‪#‎Amul‬ launches India's first milk ATM http://ow.ly/sTUJv

    Like·  · Share· 14,1532523,555· 12 hours ago·

    BBC World News

    "The more I see of how Brazil is preparing to host the tournament, the more I am convinced the country as a whole will not reap much benefit."http://bbc.in/1mDibEe


    Wyre Davies, BBC's Rio de Janeiro correspondent, takes a closer look at the construction delays that have some people questioning whether‪#‎Brazil‬ will be ready to host the World Cup this summer.


    Photo courtesy of Shaun Botterill/Getty Images.

    Like·  · Share· 36279113· about an hour ago·

    Jassi Jasraj

    Brutality of Delhi Police....This is insane and inhuman !!


    Tuhada ki kehna ess baare?? Kya eh theek hai??


    https://www.youtube.com/watch?v=cYuwW6UuaQM

    Brutality of Delhi Police near Lal Qila on 12-01-14

    youtube.com

    This video shows the Inhumane act of Police in Delhi on sunday evening (12-01-14).Expect some action

    Unlike·  · Share· 9827198· 6 hours ago·

    Vivek Nirala posted a photo to Kranti Bodh's timeline— withMangalesh Dabral and 45 others.

    Aamantran-

    Unlike·  · Share· 4 hours ago·

    ibnlive.com

    Election tracker: Modi top choice, widens lead over Rahul in PM racehttp://ow.ly/sUQBV


    Bharatiya Janata Party (BJP) prime ministerial candidate Narendra Modi is the most preferred choice of the voters for the post of PM in 18 states across India. He has got the backing of 34 per cent respondents while Congress Vice President Rahul Gandhi has got the support of 15 per cent.


    ‪#‎ElectionTracker‬‪#‎2014LokSabhaElections‬‪#‎NarendraModi‬‪#‎BJP‬‪#‎Congress‬

    Like·  · Share· 1,057175146· 5 hours ago·

    Vidya Bhushan Rawat likes an article on Indiatimes.

    The world is much beyond internet and AAP will realise it soon. The middle class do gooders have not been able to handle Delhi. It is not enough to abuse but prove that you have ideas to change. All their life, these 'revolutionaries' enjoyed the patronage and now want to claim the space meant for those who are fighting the battle. So far 168 deaths due to cold have been reported from Delhi in past 23 days. What has the government done so far ? To hide his inefficiency, Kejriwal is doing this drama. He will have to respond to Supreme Court about his 'dharna'. 'jinke ghar sheeshe ke bane hote hain woh dusro ke gharon pe pathar nahi fankte....

    Rahul, Sonia, Modi are new AAP members - The Times of India

    Indiatimes

    Aam Aadmi Party has among its latest online recruits some very big names like Rahul Gandhi, Sonia Gandhi, Mohandas Karamchand Gandhi and Angelina Jolie.But the party is not celebrating.

    Like·  · Share· 7 hours ago via Indiatimes·

    Malayalam

    MalayalamKerala

    Like·  · Share· 8658184· 4 hours ago·

    Aam Aadmi Party

    8 hours ago

    #TheAAPEffect


    Three policemen suspended due to shocking police brutality video posted by us on FB.


    This is the kind of difference we want to bring in the society.


    From the next time any policeman should be afraid while showing such atrocity to anybody.


    If you come across any such incident don't be afraid to raise your voice or collect proof by recording the incident or taking pictures and mailing to AAP at <SocialMedia@AamAadmiParty.org>...See More— with Priyakant Kapoor and 47 others.

    3,669Unlike·  · Share

    Aam Aadmi Party

    10 hours ago

    A Delhi High Court on Friday declined stay on the Delhi government's order calling for an audit of power distribution companies. The court asked the Comptroller and Auditor General (CAG) to not submit its final report till the case is heard. The apex court also directed the power companies to cooperate fully with the audit.


    However, the power companies allege that the audit is a political ploy and that the order was passed with 'malice on law' without giving the DistComs an ...See More— with Pramod Narayan and 7 others.

    Aam Aadmi Party

    Yesterday at 3:30pm· Edited

    The Aam Aadmi effect is visible in many government offices dealing directly with the public. The crowd of touts waiting outside government offices has suddenly vanished.


    The clerks manning the counters are reaching the office before time for fear of stern action following complaints on the Delhi government helpline.


    An official said earlier the clerks used to make money from the touts by rejecting applications, but now they are helping the applicants forward their pleas.— with Amit Mishra and 6 others.

    3,101Like·  · Share

    Aam Aadmi Party

    13 hours ago· Edited

    "Jan Lokpal Bills broad contours have been finalized, and will be taken up in the cabinet early next week. The Chief Minister office will be under the Jan Lokapal Bill," Arvind Kejriwal.


    Read more at:

    http://economictimes.indiatimes.com/articleshow/29262851.cms— with Rahul Rathore and 15 others.



    Arun Maheshwari

    45 seconds ago near Calcutta·

    • फिर एक बार 'अन्तर्वर्ती वर्ग'और आज के राजनीतिक संक्रमण पर कुछ सोच :
    • कल एक पोस्ट में हमने प्रभात पटनायक के लेख 'अन्तवर्ती वर्गों'पर टिप्पणी की थी। 'अन्तर्वर्ती वर्गों'का शासन - दो शिविरों में बंटी दुनिया की खास परिस्थिति में नव-स्वाधीन देशों में विकास का एक गैर-पूंजीवादी रास्ता।
    • नेहरूवियन सोशलिज्म, पंचवर्षीय योजनाएं, कमांडिंग हाइट आफ पब्लिक सेक्टर, जमींदारी प्रथा की समाप्ति से लेकर इंदिरा गांधी के जमाने में बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रिविपर्स की समाप्ति, कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण से लेकर 1991 के पहले तक चला आरहा कथित लाइसेंस राज इसी 'गैर-पूंजीवादी विकास'के आख्यान की कथाएं हैं। ये कथाएं अन्य बातों के साथ ही भारत के पूंजीपति वर्ग की वास्तविक स्थिति की सचाई का बयान भी है। भारत की नीतियों के निर्धारण में इसकी अशक्तता, शासन के सैद्धांतिक प्रश्नों पर इसकी अक्षमता भी इस आख्यान से व्यक्त होती है जिसे प्रभात के लेख में भी औपनिवेशिक परिस्थितियों का एक अनिवार्य परिणाम बताया गया है।
    • बहरहाल, अभी हम पंडित नेहरू और उस पीढ़ी के नेताओं की बात छोड़ भी देते हैं, लेकिन केंद्र में इंदिरा गांधी से आज तक, सिर्फ चंद सालों के अटल बिहारी वाजपेयी के शासन को छोड़ दिया जाए, और राज्यों में ज्योति बसु, मुलायम सिंह, लालू प्रसाद, मायावती, जयललिता, नवीन पटनायक आदि-आदि का पूंजीपतियों के साथ जिसप्रकार का एक दूरी रख कर चलने का व्यवहार रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है, और वह भी इस सचाई की पुष्टि करता है कि भारतीय राजनीति को कठपुतली की तरह सीधे अपने इशारों पर नचाने की कूव्वत भारत के पूंजीपतियों में आज भी उतनी नहीं है।
    • क्या मनमोहन सिंह को एक अक्षम और निर्णयहीनता का शिकार प्रधानमंत्री बताने की टीवी चैनलों की चिल्लाहटों के पीछे भी आर्थिक शक्ति के समानुपात में राजनीतिक शक्ति हासिल न कर पाने की उनकी इसी वेदना का आर्तनाद नहीं है?
    • यह सच है कि वाजपेयी के शासन में प्रशासनिक सैद्धांतिक प्रश्नों पर प्रत्यक्ष पूंजीपतियों के हस्तक्षेप के कुछ दृश्य दिखाई दिये थे, जब देश के शिक्षामंत्रियों के एक सम्मेलन में भारत की भावी शिक्षा-व्यवस्था का एक ब्लूप्रिंट तक कोलकाता के एक छुटभैये पूंजीपति पी.डी.चितलांगिया से रखवाने की पेशकश की गयी थी। आज जिन टेलिकॉम क्षेत्र और कोयला खानों के आबंटन के क्षेत्र में इतने भारी नीतिगत-निर्णयों से जुड़े भ्रष्टाचार के अभियोग सामने आ रहे हैं, वे सारी नीतियां एनडीए सरकार के समय में ही अपनायी गयी थी।
    • जो भी हो, अभी देश में एक प्रकार के परिवर्तन की जो लहर सी दिखाई दे रही है, हमें उसपर थोड़ी गंभीरता से सोचने की जरूरत है। हमारा मानना है कि वे दिन लद चुके हैं जब किसी व्यक्ति की इच्छा-अनिच्छा से, उसकी सद्भावना-दुर्भावना मात्र से अब ऐसी कोई लहर पैदा हो सकती है। न राहुल गांधी से, न नरेंद्र मोदी से और न ही अरविंद केजरीवाल से। यह समय व्यक्तित्वों का नहीं, व्यक्तित्वों के विलोपन का समय है।
    • अपनी सीमाओं के प्रति सचेत, कोरा दिखावा करने में असमर्थ, भोली सूरत का, हकलाहटों से भरा राहुल गांधी अपने पारिवारिक राजनीतिक प्रशिक्षण से बनी आदतों के अनुरूप शासन चलाने की एक परिपाटी का प्रतीक है, तो दूसरी ओर नरेन्द्र मोदी तमाम चारित्रिक कमजोरियों के मामले में हर राजनीतिज्ञ को मात देने वाला, फिर भी आरएसएस की पाठशाला में इतिहास से लेकर तमाम विषयों का अधकचरा ज्ञान रखने वाला एक ऐसा व्यक्ति है जो मानता है कि उसके पास दुनिया के सभी विषयों पर अंतिम राय सुनाने की योग्यता है। एक ओर हकलाहट और दूसरी ओर अनर्गल लफ्फाजी। एक ओर अपनी सीमाओं के अहसास का दबाव और दूसरी ओर सर्वज्ञता के अहंकार की निरंकुशता।
    • और, इन दोनों के दायरे से बाहर, उदय हो रहा है - आम आदमी पार्टी (आप) का। इस ऐतिहासिक नियम का प्रमाण कि जब स्थापित व्यवस्था की जीर्ण संस्थाएं जरूरी बदलाव की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ होती है, तभी सामाजिक परिवर्तन की लहरें पैदा होती है। भ्रष्टाचार, राजनीतिज्ञों-नौकरशाही-पुलिस और न्यायतंत्र की बदनाम धुरी से निपटने में अशक्त साबित हो रहे वर्तमान व्यवस्थागत संस्थानों में भारी परिवर्तन की जरूरतों का प्रतिफलन।
    • नरेन्द्र मोदी भी एक परिवर्तन की मांग के साथ आए हैं। कांग्रेस के लंबे शासन में परिवर्तन की मांग के साथ। लेकिन आज की व्यवस्था से उनकी यदि कोई शिकायत है तो इसलिये नहीं कि आम आदमी का जीवन तमाम प्रताड़नाओं का शिकार है बल्कि इसलिये क्योंकि उनकी सारी सहानुभूति देश के बड़े-बड़े पूंजीवादी घरानों के साथ है। उसी प्रकार, जिसकी एक झलक एनडीए के वाजपेयी शासन में देखने को मिली थी और जिसकी तमाम परिणतियों को आज हमारा देश भोग रहा है।
    • आम आदमी पार्टी को दिल्ली के चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली है। इस सफलता को इस आंदोलन के एक अंक का पटाक्षेप कहा जा सकता है। आगामी लोकसभा चुनाव इस आंदोलन का दूसरा काफी महत्वपूर्ण अंक होगा। पहले अंक के अंत और उसके बाद के नये अंक के प्रारंभ के बीच, फुर्सत के इस 'गहमागहमी'वाले समय में आज की सामजिक-राजनीतिक परिस्थिति का ठोस जायजा लेते हुए इस आंदोलन के नेतृत्व को सम्भाव्य की सीमाओं को अच्छी तरह समझना होगा, अपने दोस्तों और दुश्मनों के बारे में एक साफ समझ के आधार पर इस नये अंक के पात्रों की भूमिकाओं को तय करना होगा।
    • 'आप'के पीछे बदलाव की ऐतिहासिक-सामाजिक जरूरतें काम कर रही हैं। इसे कोई कोरा लफ्फाज भुनाने न पायें, इस ओर खास तौर पर सचेत रहने की जरूरत है।— with Jagadishwar Chaturvedi and 5 others.
    Navbharat Times Online

    मोदी के '56 इंच सीने' पर चुटकी


    गोरखपुर रैली में नरेंद्र मोदी के '56 इंच सीना' वाले बयान पर खूब चुटकियां ली जा रही हैं। देखिए क्या कर रहे हैं लोग... http://nbt.in/Yrb7qb

    Like·  · Share· 9 seconds ago·

    Arumita Mitra updated her cover photo.

    : The spirit and the effort lies in working together hand in hand. And yes 1st Kolkata People's Film festival was a grand success.

    People from other states came to visit us and we are endowed with such love and affection.

    Yes, we will keep on fighting and we will keep on supporting those director who take the risk of their life to make such movies.


    Thanks a lot for your effort to make such movies.


    And all the volunteers, spot boys and hall keeper. Thanks to each one of you.

    Unlike·  · Share· about a minute ago· Edited·


    Aam Aadmi Party

    Yesterday at 10:40am

    Brutality of Delhi police!

    Delhi police is known to be brutal. Every now and then we hear of stories about Delhi police's brutality.


    Here is another such video. Not only does the video clearly show Delhi police's inhuman behavior but also the urban legend of police extorting money is caught on camera.


    This video was shot by a vigilante near Lal Quila and will the home minister, under whom Delhi police comes, make sure that action is taken against these policemen?


    Original video link: https://www.youtube.com/watch?v=cYuwW6UuaQM— with Altaf Siddiqui and 46 others.

    29,370Like·  · Share

    Aam Aadmi Party shared a link via Yogendra Yadav.

    18 hours ago

    Social scientist Shiv Vishwanath articulates AAP's quest for full participatory democracy in this opinion piece: "When the citizens of Khirkee objected to its transformation into a red light area, the police and the politicians were indifferent. What Kejriwal argued was that in a democracy where police and Parliament disempower people, a chief minister's place is with the people. Democracy then moves from being representational to becoming direct. Empowerment goes beyond participation and consultation and asks people to decide about their lives.


    Decision making is direct. It needs no letters to editor, or permissions from the politician. A locality no longer feels helpless because police is indifferent or a legislator is absent. Kejriwal is also challenging frozen dualisms, questing categories which we have almost rendered sacred."

    AAP's battle hymns | Deccan Chronicle

    www.deccanchronicle.com

    I must confess that the AAP?s actions are often superior to its own explanations of them. A picture of AAP in action often speaks better than a thousand clarifications from some of its spokesmen.

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    Vidya Bhushan Rawat

    7 hours ago·

    • खास आदमी आम टोपी और हासिये के लोग
    • विद्या भूषण रावत
    • दिल्ली में ठण्ड से इतनी मौते मैंने पिछले बीस सालो में तो नहीं सुनी जितनी इस बार हुई हैं. बताते हैं के २३ दिनों में अभी तक १७० से अधिक लोग मर चुके हैं. अरविन्द केजरीवाल ने तो पहले ही दिल्ली के हरेक नागरिक को आम आदमी बता दिया इसलिए ये भूख और ठण्ड से मरने वाले लोग तो निस्चय ही आम आदमी नहीं थे. वे वी आई पी भी नहीं थी क्योंकि अगर होते तो खुली सड़क पे न मरते। मंत्री गण जो रात भर लोगो के घरों पर छापे मारी कर रहे थे वे भी इन लोगो को नहीं बचा सके. कहाँ हैं वो ४७ शेल्टर होम्स जो मुख्यमंत्री ने पद ग्रहण करने के तुरंत बाद आर्डर किये थे ? मामला साफ़ है आप का कोई काम बिना मीडिया के नहीं होता और अगर मीडिया इनकी रिपोर्टिंग बंद कर दे सो शायद बहुत से नेता तो बीमार हो जाएँ।
    • प्रश्न इस बात का नहीं है के ये मौतें कैसी हुई क्योंकि मात्र एक माह में हम सरकार का आंकलन नहीं कर सकते लेकिन सरकार को चलाने वाले यदि अभी भी उसी मोड में हैं जो रामलीला मैदान में हुआ करता था तो फिर हमें गम्भीरता से सोचना पड़ेगा। मेरे जैसे लोग तो रामलीला मैदान के घटनाक्रम से ही मानते हैं कि आप एक तानशाही वाला फासीवादी लोगो का गुट है जो संसद की सर्वोच्चता को नहीं मानता और स्वतंत्र भारत के सभी संस्थानो को ध्वस्त करना चाहता है. ये वे ही लोग है जो हमारे संविधान से बहुत परेशान है और उसको बदलना चाहते हैं. मुझसे समझ नहीं आता के आखिर हमारे संविधान में ऐसे क्या ख़राब बात है जो बदली नहीं जा सकती आखिर संविधान सभा ने तो संसद को हक़ दिया के वो संविधान में संशोधन कर सकती है और आज़ादी के बाद अभी तक तीन सौ से ऊपर संशोधन हो चुके हैं जो इस संविधान की ज्वलंतता की कहानी कहते हैं. अगर बिजली पानी ही हमारे देश का मुद्दा हैं तो दिल्ली उसे लागु करने का सबसे घटिया उदहारण क्योंकि दिल्ली की मध्यमवर्गीय सवरण जनता तो वैसे भी ज्यादा मुंहलगी है. सरकारी कानून तो लोगो को तमीज सिखाते नहीं इसलिए अगर दिल्ली को महिलाओ की दृष्टि से सबसे घटिया शहर माना जाता है तो इसलिए नहीं के दिल्ली पुलिस के जवान कम हैं अपितु इसलिए के हमारा सामाजिक ढांचा निहायत ही सामंतवादी और जातिवादी है तथा उसको ख़त्म करने के लिए हमारे 'क्रांतिकारियों' ने कभी कोई पहल नहीं की.
    • मुझे बहुत बार लोग कहते हैं के तुम्हे संविधान से बहुत प्यार है आखिर इस संविधान ने हमें दिया क्या ? मैंने कहा सबसे पहली बात तो यह है के संविधान से नाराज़ लोग कौन कौन है ? जिन लोगो ने मलाई खाई वोही शिकायती भी बन गए ? दलित, पिछड़ो, आदिवासियों को संविधान से शिकायत नहीं है क्योंकि अगर ये संविधान नहीं होता तो वो कहाँ होते ? इस संविधान कि शिकायत करने वाले क्रांतिकारी मनुवादी संविधान पे चुप रहते हैं ? आखिर हमारा संविधान तो मात्र राजनैतिक तौर पर लागु होता है क्योंकि उसके लागु करने वाले तो खाप वाड़ी हैं और यदि जातिवादियों के हाथ में संविधान होगा तो वो क्या होगा ? हमारे सामाजिक ढांचे में जो मनु का विधान चल रहा है उसके लिए हमारे कितने 'क्रांतिकारी' धरना, प्रदर्शन, भूख हड़ताल कर रहे हैं ? क्या हम गीता, कुरआन, बाइबल, रामायण की एक भी पक्ति बदल सकते हैं जो इंसानियत के विरुद्ध हो ? नहीं क्योंकि हमारा इसी बात में फायदा है. जिस संविधान ने भारत के संविधान को ख़ारिज किया है वो मनुवाद हमारे समाज में भयानक तौर पर व्याप्त है और नैतिकता की बाते करने वाले तमाम पुजारी उस पर बात भी नहीं करना चाहते ?
    • आखिर क्यों हरयाणा में दलितो पर हमला करने वाले लोगो पर कार्यवाही नहीं होती ? क्यों अभी तक मुजफ्फरनगर के आतताई खुले में घूम रहे हैं ? गुजरात, मुम्बई, दिल्ली के दंगो के बादशाह क्यों सत्ता के नशे में हैं ? क्यों अभी तक एक भी नरसंहार के करता धर्ता हमारी न्याय प्रक्रिया से बाइज्जत बरी हो जाते हैं ? केजरीवाल और उनके लोगो ने जब भी दिल्ली में धरना प्रदर्शन किये हैं वो देश के संविधान को चुनौती दिए हैं और सरकार ने उनकी आवा भगत अच्छे से की है. मैं पूछना चाहता हूँ के सरकार से हिसाब पूछने का अगर ऐसा ही प्रदर्शन और मेरे हिसाब से इनसे लाख गुना बड़े प्रदर्शन यदि कश्मीर, उत्तरपूर्व और छत्तीशगढ़ में होते हैं या हो जाएँ तो क्या पुलिस वाले इतने प्यार से पेस आयेंगे ? अगर मुस्लिम संघठन रामलीला मैदान में बेमियादी धरने पर बैठ जाएँ और कहें के गुजरात और मुज्जफ्फरनगर के लोगो को न्याय दिलये बगैर वे उठेंगे नहीं और रास्ता जाम कर देंगे तो पुलिस का रवैया कैसे रहेगा ?
    • हम सभी जानते हैं अरविन्द केजरिवाल और यूथ फॉर इक्वलिटी अभियान को ? ये मनीष कुमार शर्मा नामक तत्त्व अज्ञानता में ही आप में नहीं आ गए ? ये किरण बेदी और अन्य महारथी यू ही अन्ना आंदोलन से नहीं जुड़े ? असल में ये सभी देश में आने वाले बदलाव से परेशान थे ? ये बदलाव दलित बहुजन ताकते ही ला सकती थे और इसलिए मंडल की प्रतिक्रांति की जरुरत थी और आप उसका सबसे बड़ा हथियार बना. अगर अन्ना आंदोलन से आम आदमी पार्टी की सरकारी यात्रा को देखें तो पता चलेगा के धुर आरक्षण विरोधी और दलितो को हिकारत भरी नज़र से देखने वाले लोगो का जमावड़ा है आप. और मंडल आंदोलन के दौरान जैसे हमारे मध्यवर्गीय सवर्ण वामपंथियों का चरित्र साफ़ दिखाई दिया था वो आज फिर से वैसे ही नज़र आ गया और वे सभी लोगो जो राजनैतिक मज़बूरियों के आरक्षण का विरोध नहीं कर सकते लेकिन आप के जरिये प्रतिबद्धता का पता चल चूका है।
    • वाल्मीकि समाज की राखी बिरला ने बिना किसी सोच के ही नहीं कह दिया के आरक्षण से कुछ नहीं होता। राखी को इतना भी ख्याल नहीं के उसकी माँ जो सफाई का काम कर रही है वो भी सामाजिक आरक्षण है जिसके खिलाफ आज तक कोई धरना और प्रदर्शन नहीं हुआ, न ही ये क्रांतिकारी उसके विरुद्ध कुछ कहेंगे। केजरीवाल तो सभी को आम आदमी कहता है / इसका मतलब यह के इन 'आम आदमियों' के घरो के लैट्रिन साफ़ करने वाला भी 'आम आदमी' है और उसके उतनी ही औकात है जितनी इन 'आम आदमियों' की है.
    • अफ्रीकन मूल के लोगो के साथ 'इन आम आदमियों' की घृणा वैसी है जैसे आरक्षण के विरुद्ध इनका दलित पिछड़ो के प्रति नफरत . इतना बड़प्पन, इतना दम्भ, इतना नाटक और कही नहीं होता और आज प्रगतिशील दिखने वाले वामपंथी भी उनके झांसे में फंसे हैं. आज भारत के अंदर छुपे रंगभेद का पर्दाफास हो रहा है. अफ्रीकी मूल के लोग हो या उत्तर पूर्व के लोग, दलित हो या पिछड़े, आदिवासी और मुसलमान, अरविन्द केजरीवाल के आम आदमी महा जातिवादी, दम्भी और नसलभेदी हैं और जिस प्रकार से रात्रिकालीन घटनाक्रम को सही साबित करने की कोशिश हो रही है वो शर्मनाक है ? ये वो लोग हैं जो दूसरे को एक मिनट का समय देने को तैयार नहीं ? नैतिकता जैसी इनके आलावा और कही नहीं और यह इम्मानदारी का सर्टिफिकेट देते रहेंगे। अपने मंत्री को पूरा समय देंगे लेकिन पुलिस अधिकारी को नहीं ? पुलिस यदि ख़राब है तो उसको सही बनाया जाए लेकिन अगर मंत्री अपनी मर्जी से छापे मारी करने लगे तो क्या होगा ? लेकिन केजरीवाल का डायरेक्ट डेमोक्रेसी भीड़ का शाशन ही तो है जिसे आंबेडकर ने ख़ारिज कर दिया था. गांधी के ग्राम स्वराज्य में जातीय दम्भ और पूर्वाग्रहों पर आधारित जो लोकतंत्र बनेगा वोही सपना केजरीवाल देखते हैं क्योंकि ऐसी डायरेक्ट डेमोक्रेसी में सारी बाते वैसे ही मैनेज होंगी जैसे आप का मीडिया मैनेजमेंट है. हमें ऐसा लोकतंत्र नहीं चाहिए जो देश और संसद को खाप पंचयात में तब्दील कर दे और देश में मनुवादी न्यायव्यवस्था लागू करवाये जहाँ एक ही आरोप पर जाति के अनुसार दंड की व्यवस्था हो।
    • केजरीवाल ने जातिवादी सामंती लोगो को आम आदमी कि टोपी पहनाकर आम आदमी को बहस से ही गायब कर दिया है क्योंकि उसके मुद्दे और नेतृत्व तो उनलोगो के हाथ में है जो व्यवस्था के मज़े लूटकर अब टोपी पहनकर 'आम' दिखने कि कोशिश कर रहा है लेकिन ये लोगो को गुमराह करने राजनीती है. आम आदमी तो और भी हासिये पे चला गया है क्योंकि जिस बिरादरी को केजरीवाल इतना ईमानदार बना रहे हैं उनके दूकान पर काम करने वाले उस अनाम आदमी का ख्याल कौन करेगा जिसको न न्यूनतम मजदुरी है , न कोई छट्टी, न मेडिकल और न अन्य कोई सामाजिक योजना। केजरीवाल के पास तो सरकारी नौकरी को बिना छोड़े अमेरिका जा कर लाखो कमाने कि छूट थी लेकिन उस अनाम आदमी के पास ये कोई आप्शन आज भी नहीं है के वह बनिया की दूकान से आधे घंटे पहले अपने घर जा सकता है या नहीं।
    • दिल्ली की सड़को पर ठण्ड से मरने वाले अनाम लोगो की तादाद बढ़ रही है और कडुवी हकीकत यह है के दिल्ली का बदमिजाज और बदतमीज 'आम आदमी' को इसकी कोई परवाह भी नहीं है और न ही इससे कोई मतलब। दिल्ली को दुनिया में महिलाओ के लिए सबसे असुरक्षित जगह इसलिए नहीं कहते के गृह मंत्रालय दिल्ली सरकार के पास नहीं है. दिल्ली को जरुरत है सभ्य बनाने की और उसके लिए आत्मचिंतन की जरुरत होती है। अपनी खामियों को स्वीकारना पड़ता है. हमेशा दुसरो को कोस कर हम अपनी कमी को नहीं छुपा सकते। व्यवस्था परिवर्तन सरकार बदलने और दो चार कानून बनाने से नहीं आने वाला। हमारे सामाजिक ताने बाने को जब तक हम हिलाएंगे नहीं तब तक अनाम आदमी ऐसे ही मरता रहेगा और ये खास लोगो आम आदमी के नाम से मनुवादी व्यवस्था के सबसे सरक्षक बने रहेंगे।
    • मनुवाद और प्रगतिशील गणतंत्र के बीच ये युद्ध चलता रहेगा जब तक पुरे समाज का गणतन्त्रिकरण ना हो जाए. हमें उसी दिशा में चलना है नहीं तो ये सभी ताकते गणतंत्र को बदनाम कर मनुतंत्र के मुंह में धकेलने की पूरी साजिश कर रही हैं. हमारा यकीं है हम अपने उन पुरखो की क़ुरबानी को बर्बाद नहीं करेंगे जिनके संघर्षो और विचारो की बदौलत हम आज यहाँ खड़े हैं. एक लोकतान्त्रिक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य ही हमारे अधिकारो और भागीदारी कि गारंटी है और उसको बचाने के लिए हमें हर संघर्ष के लिए तैयार रहना है।
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    H L Dusadh Dusadh

    53 minutes ago·

    • राहुल-अरविन्द और सतशिवम जी शक्ति के सभी स्रोतों में लैंगिक विविधता लागू किये बिना :नहीं हो सकता महिला समस्याओं का समाधान
    • एच एल दुसाध
    • मित्रों !भारत जैसा समस्याग्रस्त मुल्क विश्व में और कोई नहीं है.इसका तो एक अन्यतम कारण यह है कि विश्व के एक मात्र जाति समाज में बड़े-बड़े साधू-संत,लेखक-कवि से लेकर राजा-महाराजा तक समग्र वर्ग की चेतना से दरिद्र रहे .इसीलिए यहाँ के शासक और योजनाकार सभी वर्गों की समस्यायों के निर्मूलन के प्रति समान रूप से संवेदनशील नहीं रहे.किन्तु इस जन्मगत मानसिक-व्याधि से ये थोड़ा-बहुत उबरे भी तो समस्या की उत्पत्ति के कारणों की तह में जाने की जहमत नहीं उठाये,इसलिए आज भी वे किसी भी समस्या ठोस समाधान देने में पूरी तरह,व्यर्थ हैं .यह विरक्तिकर भूमिका मैंने हाल ही में महिला समस्या लेकर बुद्धिजीवियों,नेताओं और न्यायधीशों द्वारा व्यक्त की गयी चिंता के आईने में बांधी है.
    • मित्रों!कुछ दिन पूर्व एनजीओ के सरताज ने रायसीना हिल्स पर कब्ज़ा जमाकर भारतीय लोकतंत्र के महान वार्षिक पर्व, गणतंत्र दिवस परेड को बाधित करने की चेष्टा की.अपने अभूतपूर्व अपकर्म (धरने-प्रदर्शन) के माध्यम से राजपथ पर कब्ज़ा ज़माने के प्रयास के पीछे उसका तर्क यह था कि महिलाओं की सुरक्षा उसके लिए सर्वोपरि है.उधर कल राहुल गाँधी ने महाराष्ट्र के सेवासदन से राष्ट्र को यह सन्देश दिया -'महिला सशक्तिकरण के बिना देश नहीं बन सकता महाशक्ति.भारत में 50 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है.यदि हम इस 50 प्रतिशत जनसँख्या का सशक्तिकरण नहीं करेंगे तो भारत आधा ही मजबूत,आधा गौरवान्वित,आधा ही शक्तिशाली होगा'.इधर आज के अधिकांश अखबारों के मुखपृष्ठ पर बंगाल का सामूहिक दुष्कर्म छाया हुआ है.सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी.सतशिवम ने इस घटना पर गंभीर चिंता जताते हुए इसे परेशान करने वाली खबर बताया तथा उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने घटना के बारे में मीडिया में आई खबरों का स्वतः संज्ञान लेते हुए.बीरभूम जिला जज को मौका मुयायना कर जल्द रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दे दिया है.
    • मित्रों क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि महिलाओं की समस्यायों को लेकर जो उपरोक्त बातें कही गयी हैं,वह एक दम रूटीन टाइप की हैं.ऐसी बातें वर्षो से ही ढेरों लेखक-कवि,नेता-समाज सुधारक,कानूनविद ,महिला एक्टिविस्ट इत्यादि रह-रह कर उठाते उठाते रहे हैं? किन्तु महिलाओं की समस्या जहाँ की तहां है.ऐसा इसलिए कि महिलाओं की समस्या के समाधान की दिशा में अब तक ठोस नहीं,निहायत ही सतही समाधान किये गए हैं.आप चाहें तो इसे दुसाध का अहंकार कह सकते हैं किन्तु सच्ची बात यह है,जोकि कई बार आपके सामने रख चुनक हूँ, कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया आधी आबादी की समस्या का मूल कारण,जिसमे दुष्कर्मभी शामिल है, मुख्यतः शक्ति के स्रोतों(आर्थिक-राजनीतिक और धार्मिक) में लैंगिक विविधता(gender diversity) की अनदेखी है.अर्थात पूरी दुनिया की पुरुष प्रधान सत्ता ने ही आधी आबादी को समस्त आर्थिक गतिविधियों,राज सत्ता की सभी संस्थाओं के धर्म-सत्ता(पौरोहित्य)से प्रायः पूरी तरह वंचित रखकर ही अशक्त बनाया.इस अशक्ति के कारण ही महिलाएं तमाम तरह के शोषण- उत्पीडन का शिकार हुईं.किन्तु आधुनिक मानवतावाद के उदय के साथ पश्चिम की दुनिया ने,जिसका हर तरह से नक़ल भारत के हुक्मरान,एक्टिविस्ट,लेखक-कवि करने के लिए आज भी अभिशप्त हैं,महिला अशक्तिकरण के कारणों के पृष्ठ में जेंडर डाइवर्सिटी की अनदेखी की उपलब्धि किया इसलिए उसने शक्ति के स्रोतों में जेंडर डाइवर्सिटी के प्रतिबिम्बन पर जोर दिया.इसके फलस्वरूप वहां महिलाओं को शक्ति के अधिकांश क्षेत्रों में वाजिब शेयर मिला जिससे वे सशक्त हुईं ,जिसके फलस्वरूप वहां उनका शोषण का ग्राफ काफी हद तक कम हो गया .किन्तु बात –बात में पश्चिम की नक़ल करने वाले राजा राम मोहन राय –पंडित विद्या सागर के वंशधरों ने उनसे शक्ति के स्रोतों में जेंडर डाइवर्सिटी को सम्मान देने का गुण उधार नहीं लिया.हिन्दू प्रधान प्रधान भारत के शासक ऐसा कर भी नहीं सकते क्योंकि यह देश तो आज भी मानव सभ्यता की दौड़ में कुछ सौ साल पीछे है.इसलिए दलित-आदिवासी-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की भांति ही इस बर्बर देश के शासक महिलाओं को शक्ति के क्षेत्रों में वाजिब शेयर देने की मानसिकता विकसित नहीं कर पा रहे हैं.अब जहाँ तक महिला सशक्तिकरण के लिए काम कर रही नारिवादिनों का सवाल है,वे भी महा जातिवादी हैं.शक्ति के स्रोतों में लैंगिक विविधता लागू करने पर दलित-पिछड़े समाज की महिलाएं भी सशक्त हो सकती हैं इसलिए महिला आन्दोलन को नेतृत्व दे रहीं सुविधासंपन्न वर्ग की महिलाएं भी अपना एजेंडा महज अपनी देह के स्वतंत्र इस्तेमाल तक सीमित रखी हैं.बहरहाल मित्रों यदि आप महिला समस्या के प्रति थोडा भी संवेदनशील हैं तथा आपको भी केजरीवाल,राहुल गाँधी इत्यादि की स्टिरियो टाइप बातों से थोड़ी भी उब हो रही है तो इन लोगों पर इस तरह दबाव बनायें की आधी आबादी का वोट लेने के लिए उनको मुर्ख बनाने की बजाय ये उनको(महिलाओं) अर्थ-राज और धर्म सत्ता में 50%हिस्सेदारी देने की घोषणा करने के लिए बाध्य हो जाएँ.
    Dalit Mat with Dev Pratap Singh and Ashok Das

    नरेंद्र मोदी इन दिनों खुद को पिछड़ा बताते घूम रहे हैं। तो इस हिन्दू राष्ट्रवादी पिछड़े के गुजरात से एक खबर है। खबर यह है कि मोदी के राज्य गुजरात में दलितों के लिए अलग से श्मशान है। वहां मरने के बाद भी दलितों से अछूतपन का व्यवहार होता है। तुर्रा यह कि इन श्मशानों को बनाने के पैसा गुजरात सरकार देती है। वहां के सामाजिक संगठनों का कहना है कि दलितों के हित के लिए आवंटित राशि का एक बड़ा हिस्सा इन 'श्मशान' के निर्माण में खर्च होता है।

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    हम वाकई एक असभ्य समाज हैं, क्रूर हैं

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    हम वाकई एक असभ्य समाज हैं, क्रूर हैं

    हम वाकई एक असभ्य समाज हैं, क्रूर हैं

    HASTAKSHEP

    दिल्ली नस्लभेदी है और नस्लभेदी दिल्ली की प्रजा है बाकी देश

    पलाश विश्वास

    दिल्ली नस्लभेदी है और नस्लभेदी दिल्ली की प्रजा है बाकी देश। इसी नस्लभेद की उपज है जाति व्यवस्था और जातिव्यवस्था से बाहर इस देश की निनानब्वे फीसद जनता को वध्य बना देने का यह निरंकुश राज्यतन्त्र। मामला सिर्फ अरुणाचल का नहीं है और न पूर्वोत्तर का। यह नस्लभेद मुसलमानों के नागरिक न मानने और हिंदू राष्ट्र की मुहिम भी है। यह कश्मीर समेत तमाम हिमालयी लोगों की तबाही का आलम है। इसी नस्ल भेद के कारण बांग्ला में बोलने वाला हर आम व खास आदमी बाकी देश की नजर में बांग्लादेशी घुसपैठिया है। इसी वजह से काला हर आदमी अशुद्ध है और अस्पृश्य महिषासुर या वानर है तमिलनाडु समेत पूरा दक्षिण भारत। इसी नस्लभेद की वजह से देश हर आदिवासी को नक्सली, माओवादी और हर मुसलमान को दहशतगर्द मानता है। मणिपुर, असम, त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, नगालैंड, अरुणाचल की क्या कहें, पूरे हिमालयी क्षेत्र का हिन्दुत्व और सवर्णत्व इस नस्ली भेदभाव के आगे उन्हें गोरखा या पहाड़ी बना देता है।

    सिखोंके नरसंहार का तीस साल बाद भी अभी न्याय नहीं हुआ। इस देश में किसी भी दंगे का आज तक कोई न्याय नहीं हुआ। पैंतीस साल हो गये मरीचझांपी नरसंहार के, न्याय की माँग करने वाले ही सिरे से गायब हैं। आदिवासियों के विनाश पर विकास गाथा की बहुमंजिली इमारत है तो कश्मीर,समूचे हिमालयी क्षेत्र, मध्यभारत और पूर्वोत्तर के अलावा जाति हिंसा के तहत पूरे देश में वैज्ञानिक तकीनीकी समृद्ध पद्धति से अविराम नरसंहार की संस्कृति है। अंध राष्ट्रवाद की यह फसल नस्ली दिल्ली के राष्ट्रगान और भव्य परेड का स्थायी भाव है।

    हमारे आदरणीय मित्र विद्याभूषण रावत जी ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा हैः

    दिल्ली के 'गरीब', 'जातिवादी' और 'नस्लवादी' लोगों ने अरुणाचल प्रदेश के एक लड़के को पीट-पीट के मार डाला। ये घटना दिल्ली के प्रतिष्टित ग्रीन पार्क इलाके में हुयी है। ये राष्ट्रीय शर्म है। दिल्ली की घटना अकेली नहीं है, हैदरबाद, बेंगलुरू, मुम्बई आदि शहरो में वाले उत्तर पूर्व के छात्रों को नसलवादी घटनाओं का शिकार होना पड़ता है। भारत को सोचना पड़ेगा कि क्या ऐसी हालातों में देश की एकता रह पायेगी। क्या हम अपने उत्तर पूर्व के मित्रों, भाई बहिनों को उनके अधिकारो की साथ नहीं रहने देंगे। इस देश पर उत्तर पूर्व के लोगों का उतना ही हक़ है जितना किसी और का। एक बात स्वीकारनी पड़ेगी कि हम वाकई एक असभ्य समाज हैंक्रूर हैं। हमारी राजनीति के लिये ये प्रश्न जरुरी नहीं है। भ्रष्टाचार के नाम पर केवल उत्तर भारतीय प्रभुत्वाद को देश पर थोपने की हर कोशिश की जा रही है लेकिन देश की विविधता, उसके अन्दर रह रहे उत्तर पूर्व के लोगों को देश में उनके अधिकार नहीं मिल पा रहे। दिल्ली में नस्लवादी और जातिवादी नजरिया भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा है और अब समय आ गया है हम सब इसके खिलाफ खड़े हों और अपना विरोध दर्ज करें और दोगली राजनीति का पर्दाफाश करें।

    विद्याभूषण जी के इस मंतव्य से मैं सहमत हूँ।

    दिल्ली नस्लभेदी है और नस्लभेदी दिल्ली की प्रजा है बाकी देश। यही नस्ली वर्णवर्चस्वी राज्यतन्त्र इस देश की बुनियादी समस्य़ाओं की जड़ है। चूँकि दिल्ली में मीडिया को पल दर पल टीआरपी की जंग लड़नी होती है तो यह उसके लिये महज नया मसाला है,कोई मुद्दा-वुद्दा नहीं है। पैनलों मे जो लोग बैठकर बतियाते हैं और जो लोग टनों कागद इस एक प्रकरण पर खर्च करेंगे, उन्हें दरअसल इसी नस्लभेदी वर्णवर्चस्वी सैन्य राज्यतन्त्र ने हर सुविधा दी हुयी है कि वे ऐसी बहसें चलाते रहें, लेकिन इस इंतजाम में कोई खलल न पड़ने दें। जो दिल्ली में हुआ, वह सिर्फ पूर्वोत्तर में या कश्मीर में या दंडकारण्य में ही नहींपूरे देश में रोजमर्रे का रोजनामचा है अंध राष्ट्रवादी धर्मोन्माद के नस्ली आवेग से अँधी आँखों को इरोम शर्मिला का आमरण अनशन साल दर साल चलते रहने का सच दिखायी नहीं देता।

    इसी नस्ली भेदभाव की वजह से सिखों को तीस साल से अभी न्याय नहीं मिला और न इस जनसंहार संस्कृति के निर्माता लोग सत्ता से बाहर हुये। उस तन्त्र के लोग हमें बेवकूफ बनाने के लिये कुछ लोगों के अपराध का स्वीकार तो करते हैं, लेकिन न्याय करना तो दूर, इस देश व्यापी जनसंहार के लिये माफी माँगने के लिये भी तैयार नहीं हैं। क्या सिखों की नियति सर्वश्रेष्ठ खेती से देश को अन्न देने और जिस देश में उन्हें नागरिक और मानवाधिकार तक से वंचित किया जाता है, उसी देश लिये सीमा के भीतर बाहर अपने ताजा जवानों की शहादत देते रहने की है। जिन लोगों ने शहीदेआजम भगत सिंह की कुर्बानी तक को मटिया दिया, उन्हें आम सिखों की कितनी परवाह होगी,समझने वाली बात है। इस पर सिख जो तीस साल से लगातार न्याय की माँग कर रहे हैं, भारत राष्ट्र के धर्मोन्मादी अंध राष्ट्रभक्त अपनी अंतरात्मा से पूछकर देखें, उसके पक्ष में बाकी देश कब और कितना खड़ा रह पाया।

    मैं विभाजन पीड़ित बंगाली शरणार्थी हूँ और मेरे पिता आजादी के पहले से इस देश में विभाजनपीड़ितों का नेतृत्व करते रहे हैं देशभर में। वे तेभागा से लेकर ढिमरी ब्लाक तक के किसान आंदोलनों के नेतृत्व में भी रहे हैं। मेरा जन्म, पढ़ाई लिखाई उत्तराखंड में हुआ। मैं लगातार 1973 में भारतीय भाषाओं में जनपक्षधर लेखन में जुटा हूँ,लेकिन असहमति के किसी भी बिंदु पर मुझे कोई भी बांग्लादेशी शरणार्थी कहकर गाली दे देता है। गाली देने वालों में सबसे आगे हैं बंगाली सत्तावर्ग के लोग जो नस्ली भेदभाव के सबसे बड़े वैज्ञानिक हैं।

    विभाजनपीड़ितों के देशनिकाले के लिये जो सर्वदलीय अभियान चल रहा है, वह नस्लभेद के सिवाय और कुछ भी नहीं है। बहरहाल मुझे अपने शरणार्थी होने का गर्व है। गर्व है कि मैं बंगाल के बजाय उत्तराखंड में जन्मा हूँ और इस देश के चप्पेचप्पे की माटी की सुगंध मेरे दिलोदिमाग में है। मैं विश्वप्रसिद्ध बंगालियों की तरह बाकी देश से न कटा हूँ और न अपने लोगों के अलावा दूसरों को अपने से कमतर समझता हूँ।

    हम देश के इतिहास में शंहशाह अकबर का महिमामंडन करने से चूकते नहीं हैं। जोधा अकबर की प्रेमकथा हर माध्यम में हमें उद्वेलित करती है। दिलीपकुमार नर्गिस मधुबाला से लेकर आज के खान बंधुओं को हम पलक पाँवड़े पर बैठाये हुये रहते हैं। बहादुरशाह ज़फ़र को हम आजादी की पहली लड़ाई का शहीद मानते हैं और ताजमहल को अपनी विरासत। फिर भी आज तक हमने मुसलमानों को अपना भाई नहीं माना। जो अरब या मंगोलिया या तुर्की से आये होंगे, उनकी बात रही अलग, जो धर्मांतरित मुसलमान हैं देशज जैसे समूचे दक्षिण भारत में, पूर्व और पूर्वोत्तर में, उन्हें हम लगातार भारतीय मानने से इंकार कर रहे हैं। मुगलों-पठानों की हर विरासत पर केसरिया लहराने के एजंडे के साथ ही नमोमय है भारत। गुजरात नरसंहार और बाबरी विध्वंस के मानवता के विरुद्ध युद्ध अपराधियों को हम राष्ट्र की बागडोर सौंपना चाहते हैं। क्या यह हमारी युद्धक नस्ली सोच की वीभत्स अभिव्यक्ति नहीं है, सोचें दोस्त।

    गुजरात से लेकर मुजफ्परनगर तक के दंगे इसी नस्ली भेदभाव की लहलहाती फसल है, जिसकी खेती आधुनिक भारत का सबसे फायदेमन्द कॉरपोरेट कारोबार और राजकाज है।

    हर कोई चिल्लाता है, दूध मांगोगे तो खीर देंगे, कशमीर मांगोगे तो चीर देंगे लेकिन कश्मीर में दिल्ली की जो सैन्यतांत्रिक दमन उत्पीड़न जारी है, उसके खिलाफ किसी की आवाज तो निकली ही नहीं, लेकिन जो कश्मीरियों को भी इस देश का नागरिक मानकर उनके मानवाधिकार और नागरिक हक हकूक की बात करते हैं, सशस्त्र सैन्य बल अधिनियम के खिलाफ बोलते हैं, हम सारे लोग गोलबंद होकर उसे राष्ट्रद्रोही करार देने में एक क्षण की देरी नहीं लगाते, भले ही वे लोग इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत कश्मीरियों के चुने हुये जनप्रतिनिधि, यहाँ तक कि कश्मीर का मुख्यमन्त्री ही क्यों नहीं हो।

    हमें पूरा का पूरा कशमीर चाहिए, लेकिन कश्मीरी गैरनस्ली विधर्मी जनता के कत्लेआम को हम राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिये निहायत जरूरी मानते हैं। इस देश के बाकी नागरिक आदिवासियों को अब भी असुर, राक्षस, दैत्य, दानव, वानर जैसा ही कुछ समझते हैं। बस, संवैधानिक मजबूरी है कि उनके हक हकूक की भी चर्चा हो जाती है। हमारी तरह समान नागरिक न हुये तो क्या उनका भी वोट बैंक है, आदिवासियों के वोट भी जनादेश के लिये जरूरी है। लेकिन जल जंगल जमीन आजीविका और नागरिकता से आदिवासी आवाम की निरंकुश बेदखली को हम भारत की अर्थव्यवस्था और विकास के लिये अनिवार्य मानते हैं।

    पढ़े लिखे मध्य वर्ग, जिसे मुक्त बाजार के विस्तार के लिये प्रधानमंत्रित्व के अहम दावेदार सत्तर फीसद तक कर देना चाहते हैं, उसके नजरिये से आदिवासियों के सफाये से ही देश का विकास सम्भव है।

    वैसे भी मुक्त बाजार का आधार यही है, आधार प्रकल्प यही है, ज्यादा से ज्यादा क्रयशक्ति सम्पन्न वर्ग की गोलबन्दी बाकी आधारविहीन जनता के खिलाफ। सत्तावर्ग के वर्णवर्चस्वी नस्ली सैन्यतन्त्र को बहाल करने के लिये नस्लीभेदभाव के तहत बाकी, राहुल गांधी के लक्ष्य के मुताबिक तीस फीसद का सफाया तो तय है। इस नस्ली भेदभाव के बारे में भी विचार करें मित्र।

    हमें देश का मुकम्मल एक भूगोल चाहिए और उसके लिये हथियारों के जखीरा खड़ा करने के नाम पर पारमाणविक होड़ के तहत महाविध्वँस का आवाहन हम करते हैं पल-पल। रक्षा सौदों पर उंगली नहीं उठाते, उठाते हैं तो पवित्र रक्षाकवचों के अंतराल में कालाधन और अबाध विदेशी पूँजी प्रवाह के विनियन्त्रित मुक्त बाजार बने देश में नस्ली भेदभाव के तहत अस्पृश्य भूगोल के इंच-इंच में जनगण के विरुद्ध, प्रकृति के विरुद्ध और मनुष्यता के विरुद्ध जारी युद्ध गृहयुद्ध के औचित्य पर हम सवाल खड़े नहीं कर सकते।

    सशस्त्र सैन्यबल विशेषाधिकार कानून को खत्म करने की कोई भी माँग हमें देशद्रोह लगता है। जबकि सलवाजुड़ुम में, देश के तमाम आदिवासी इलाकों में संविधान, कानून के राज और लोकतन्त्र की गैरमौजूदगी हमें सामाजिक समरसता लगती है।

    दक्षिण के लोग काले हैं तो हम चाहते हैं कि वे तो हमारी हिंदी को सीख कर बलरोज मधोक की दलील की तर्ज पर अपना भारतीयकरण कर लें, लेकिन हम हर्गिज उनकी कोई भाषा नहीं सीखेंगे। हम तमाम आदिवासियों में प्रचलित गोंड, कुर्माली, संथाली जैसी भाषाओं क अपनी भाषा नहीं मान सकते और न हम उनकी संस्कृति, उनके रंग रूप, उनकी देशज जीवन शैली का सम्मान करना जानते हैं। औपनिवेशिक शासन के खिलाफ, विदेशी हमलावरों के खिलाफ आदिवासी हजारों साल से लड़ रहे हैं अलग-थलग। बाकी देश उनकी लड़ाई में कभी शामिल ही नहीं हुआ।

    आज भी वही स्थिति है जस का तस।

    उनके हक हकूक की हर लड़ाई को बाकी देश सत्ताभाषा के मुताबिक राष्ट्र के समक्ष सबसे बड़ी माओवादी चुनौती मानता है तो हर मुसलमान संदिग्ध दहशत गर्द है और बांगाल में बोलने वाला हर कोई विदेशी घुसपैठिया। और तो और, मुंबई में तो हिंदुत्व के झंडेवरदारों को उत्तर भारत के लोगों के खदेड़े बिना चैन नहीं है।

    मुक्तबाजार के नोबेल गरिमामंडित राथचाइल्डस दामाद प्रवक्ता को भी बहुआयामी ज्ञान के लिये संस्कृत को पुनर्जीवित करने की जरूरत महसूस होती है, जिस भाषा में बोलने वाले कुल जमा पन्द्रह सौ लोग भी नहीं है। संस्कृत से बेहद पुरानी शास्त्रीय भाषा तमिल है, लेकिन वह सत्तावर्गीय विशुद्धरक्त आर्यों की भाषा नहीं है और भारत की प्राचीनतम द्रविड़ संस्कृति की धारक वाहक है। तमिल भी शास्त्रीयभाषा है। लेकिन डॉ. अमर्त्य सेन देश भर में तमिल या दूसरी दक्षिण भारतीय भाषाओं को सिखाने या गोंड या कोई आदिवासी भाषा सीखने की सलाह नहीं देते।

    About The Author

     पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना ।


    बंगाल में मोदी का विजय रथ थाम लेने का करिश्माई टोटका,लेकिन केशरिया लहर जोरों पर

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    बंगाल में मोदी का विजय रथ थाम लेने का करिश्माई टोटका,लेकिन केशरिया लहर जोरों पर


    एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


    वसंत पंचमी के अगले दिन कोलकाता में भाजपाई प्रधानमंत्रित्व के महाबलि दावेदार नरेंद्र मोदी की ब्रिगेड रैली है।31 जनवरी को सत्तादल तृणमूल कांग्रेस की रैली में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिल्ली दखल की अपील करते हुए साफ कर ही दिया कि वे कम से कम भाजपा के साथ किसी कीमत पर खड़ी नहीं होंगी।जाहिर है कि भाजपा नेतृत्व को यह संदेश पहुंच ही गया है और भाजपी अब राज्य में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए एढ़ी चोटी का जोर लगाने लगी है।


    अब पांच फरवरी को मोदी की रैली में भीड़ चाहे सत्तादल या वामपक्ष के मुकाबले कम ही जुटे,लेकिन बंगाल में हिंदुत्व की लहर तेजी से बनने लगी है। माकपा ने पहले ही कामरेडों को बंगाल में धर्म कर्म की अनुमति दे दी है तो सत्तादल हर धर्म के पुरोहितों के मुताबिक आयोजनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही है।


    अब लोग यह कहने भी लगे हैं खुलकर कि कांग्रेस को हटाकर भाजपा को लाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। इसे आप विशुद्ध राजनीतिक समीकरण कह सकते हैं।


    लेकिन केशरिया लहर से इंकार किया नहीं जा सकता।कोलकाता पुस्तक मेले में पहलीबार सरस्वती पूजा के आयोजन को इस बदलते हुए माहौल का संकेत माना जा सकता है।


    भाजपा की बात छोड़ें,वामपंथी नेता कार्यकर्ताओं को भी अपने हिंदुत्व का सबूद पेश करना पड़ रहा है। कभी सरस्वती वंदना को लेकर बवाल करने वाले लोग कोलकाता के सबसे बड़े सांस्कृतिक उत्सव पुस्तक मेला में भी सरस्वती पूजा का आयोजन करने लगे हैं।


    निर्माणाधीन नमोमय भारत की प्रक्रिया ंबगाल में भीतर ही भीतर जोर पकड़ने लगी है। सर्वेक्षणों में लगातार भाजपा मतों में इजाफा दीख रहा है जो सत्तादल और विपक्ष के लिए तीसरे पक्ष की चुनौती के मद्देनजर सरदर्द का सबब बन गया है।


    भाजपा भले ही सीटों के लिहाज से कोई दावा अभी करने की हालत में नहीं है, दीदी से सुलह के आसार टूटने पर बंगाल के सभी सीटों पर अगर भाजपा के उम्मीदवार खड़े हो गये ,तो मजबूत से मजबूत उम्मीदवार की किस्मत बन बिगड़ सकती है।


    तृणमूल माकपा विभाजन में कांग्रेस का वजूद भी उसके गढ़ों में खतरे में हैं।


    करीब करीब सभी सीटों में मतों का अंतर बहुत कम होता है और वाम शासन के दौरान भी मतों का अंतर चार पांच फीसद से ज्यादा नहीं होता था।अब जैसे कि भाजपा मतों का प्रतिशत दोगुणा तक हो जाने की संभावना प्रबल है तो कहना मुश्किल है कि किसको मनुकसान कितना होगा।


    हिंदुत्व की चादर ओढ़े बिना बहुसंख्यकों के वोटों पर कब्जा बंगाल में भी अब मुश्किल दीख रहा है। इसी को समझते हुए माकपा ने विचारधारा को तिलांजलि देकर कर्मकांडी बन जाने का विकल्प चुनाव रणभेरी बजने से काफी पहले अपना लिया है तो सत्तादल के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं है।


    दोनों पक्ष प्रकाश्य में बंगाल में मोदी का असर न होने का दावा करते तो हैं लेकिन यह भी भूलना नहीं चाहिए कि वाम शासन के दौरान ही दमदम जैसे लालकिले में दो दो बार केशरिया झंडा लहराया।


    अब ठीक से कोई यह दावा कर भी नही ंसकता कि मतों का प्रतिशत दोगुणा हो जाने के बावजूद बंगाल में केशरिया झंडा लापता क्यों रहेगा।


    बहरहाल कोलकाता पुस्तक मेले में मोदी की ब्रिगेड रैली की पूर्वसंध्या पर बाकायदा मंडप सजाकर पुस्तमेला आयोजक गिल्ड ,जो कि पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में है,की ओर से सरस्वती वंदनाका आयोजन है।यही नहीं,पुस्तकप्रेमियों को पुस्तकों के साथ वसंत पंचमी पर  मुफ्त मां सरस्वती का प्रसाद बांटने की तैयारी भी जोरों पर है।


    यह भी कहा जा रहा है कि वसंत पंचमी को नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी की ब्रिगेड रैली के ही दिन यानी पांच फरवरी को ही पुस्तक मेले में सरस्वती पूजा होगी। कुछ लोग तो यह भी बता रहे हैं कि हो सकता है कि बंगाल में मोदी का विजय रथ थाम लेने का ही यह कोई करिश्माई टोटका हो।


    That Bullet ridden bloody Day in Nandigram

    Pl join Samayantar Debate

    गोरे दोस्त नहीं हैं सिखों के,शहीदआजम के वंशजों से ब्रिटिश हुकूमत के बदले का खुलासा।अब जागो वाहे गुरु के खालसा। देश जोड़ो,देश को लीड करो और करारा जवाब दो गोरों के कारपोरेट राज का। Britain says it advised India on 1984 Operation Blue Star

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    गोरे दोस्त नहीं हैं सिखों के,शहीदआजम के वंशजों से ब्रिटिश हुकूमत के बदले का खुलासा।अब जागो वाहे गुरु के खालसा। देश जोड़ो,देश को लीड करो और करारा जवाब दो गोरों के कारपोरेट राज का।

    Britain says it advised India on 1984 Operation Blue Star


    पलाश विश्वास

    आज का संवाद

    गोरे दोस्त नहीं हैं सिखों के,शहीदआजम के वंशजों से ब्रिटिश हुकूमत के बदले का खुलासा।अब जागो वाहे गुरु के खालसा। देश जोड़ो,देश को लीड करो और करारा जवाब दो गोरों का कारपोरेट राज का।

    अब इस खबर पर गौर करें और याद करें कि हम लगातार सिखों से गुजारिश करते रहे हैं कि अंध धर्मोन्मादी राष्ट्रवादी जनसंहार के शिकार वे आखिरकार इसीलिए हुए कि वे भी दलितों, मुसलमानों, आदिवासियों, पूर्वोत्तरनिवासियों की तरह अलगाव में हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के भरोसे चल रही सिख राजनीति ने सिखों को देश की सबसे मजबूद सबसे देशभक्त कौम को देश में ही अलग थलग कर दिया है।ब्रिटिश हुकूमत को सबसे ज्यादा परेशानी बंगालियों और सिखों से थीं।विभाजन के बावजूद सिखों का कुछ नहीं बिगाड़ सके जबकि बंगाल को पूरी तरह तहस नहस कर दिया गया तो सिकों से बदला लेने का सबसे बड़ा आपरेशन ब्लू स्टार अंग्रेजी प्लान मुताबिक हो गया। देश में अपनी पुश्तैनी बढ़त छोड़कर सिखों की आत्मघाती गोरागुलामी ने नस्ली भेदभाव वाले वर्ण वर्चस्वी सत्तावर्ग को उनके जनसंहार का मौका दिया।अब बाकी देश को साथ लेकर गोरों के इस कारपोरेट राज का खात्मा करके ही सिख ही हिसाब बराबर कर सकते हैं।


    नयी दिल्ली. ब्रिटेन ने आज स्वीकार किया कि उसने 1984 में अमृतसर के स्वर्णमंदिर में आतंकवादियों को निकालने के लिये रणनीति में बनाने में भारत की सहायता के लिये एक सैन्य सलाहकार भेजा था लेकिन तीन माह बाद कार्यान्वित की गई रणनीति ब्रिटिश सैन्य सलाहकार की सलाह से बिल्कुल भिन्न थी जिसमें सैकडों लोगों की जानें गईं थीं.

    ब्रिटेन ने विदेश मंत्री विलियम्स हेग ने आज अपनी संसद में दिये एक वक्तव्य में प्रधानमंत्री डेविड केमरन के निर्देश पर कैबिनेट सचिव द्वारा पुराने दस्तावेजों की जांच के नतीजों का खुलासा करते हुए यह जानकारी दी. श्री हेग ने बताया कि कैबिनेट सचिव ने चार बिन्दुओं पर जांच करने को कहा गया था कि भारत को क्या सलाह दी गई थी सलाह का प्रकार क्या था आपरेशन ब्ल्यू स्टार पर इस सलाह का क्या प्रभाव पडा तथा क्या ब्रिटिश संसद को इस बारे में गुमराह किया गया था

    उन्होंने बताया कि करीब 200 फाइलों एवं 23 हजार से ज्यादा दस्तावेजों की गहन छानबीन से पता चला है कि फरवरी 1984 में भारत सरकार से ब्रिटेन की सरकार को एक आवश्यक पत्र मिला था जिसमें स्वर्ण मंदिर परिसर से आतंकवादियों को बाहर निकालने की रणनीति बनाने में तुरंत सहायता मांगी गई थी. ब्रिटिश उच्चायोग ने भी सकारात्मक कदम उठाने की सिफारिश की थी. जिसे तत्कालीन सरकार ने स्वीकार कर लिया था तथा 8 से 17 फरवरी के बीच एक सैन्य सलाहकार भारत गया था जिसने भारतीय गुप्तचर एजेंसियों एवं विशेष समूह को आवश्यक सलाह दी थी. .

    श्री हेग ने कहा कि सलाहकार ने यह साफ कर दिया था कि बातचीत के सभी प्रयास विफल होने की दशा में सैन्य कार्रवाई अंतिम विकल्प के तौर पर ही होना चाहिये. सलाह में कहा गया था कि सैन्य कार्रवाई में चौंकाने वाला तत्व होना जरू री है तथा इसमें हेलीकॉप्टर वाली टुकडियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिये ताकि कम से कम जानें जायें और जल्दी परिणाम मिल सके. उन्होंने कहा कि दस्तावेजों के अनुसार सरकार का साफ तौर पर मानना था कि इस मामले में सैन्य सलाह से अधिक कोई मदद नहीं दी जाए और यह सलाह भी आरंिभक चरण तक ही सीमित रहे. उन्होंने भारतीय बलों को प्रशिक्षण और उपकरण देने की बात का सिरे से खंडन किया.

    श्री हेग ने कैबिनेट सचिव की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पांच से सात जून के बीच हुए आपरेशन ब्लू स्टार के कार्यान्वयन को देखा तो पाया गया कि ब्रिटिश सैन्य सलाहकार की सलाह से िभन्न रणनीति पर काम हुआ तथा में चौंकाने वाला तत्व और हेलीकाप्टर वाली टुकडियों का प्रयोग नहीं किया गया था. उन्होंने बताया कि इस प्रकार ब्रिटिश सैन्य सलाह का इस अिभयान पर बहुत सीमित प्रभाव था. जहां तक संसद को गुमराह करने के आरोप का सवाल है तो ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले हैं जिनमें इस आरोप की पुष्टि होती है. ब्रिटिश विदेश मंत्री ने बताया कि उनकी सरकार सिख समुदायों की चिंताओं को लेकर बेहद संजीदा है और सांसद ईस्ट डेवान सिख समुदाय के लोगों से मिलकर उनकी चिंताओं पर बात करेगें. उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिटिश सरकार ने कानूनी बदलाव करके 2022 के बाद तीस की बजाय बीस साल पुराने दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का कदम उठाया है.

    इधर नयी दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसे ब्रिटिश सरकार ने जांच रिपोर्ट के बारे में पूरी जानकारी दे दी है और उसने विदेश मंत्री के बयान को भी देख लिया है.



    पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने आज कहा कि स्वणर मंदिर परिसर से आतंकवादियो को बाहर निकालने की कार्रवाई मे कांग्रेसी सरकार के ब्रिटेन की सरकार से सलाह लिये जाने संबंधी ब्रिटेन के खुलासे से पूरा देश सकते मे है।      श्री बादल ने यहां जारी बयान मे कहा..मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा कि किसी संप्रभु देश की प्रधानमंत्री अपने ही लोगों को इस तरह अपमानित करेंगी।अपने ही लोगो के खिलाफ सैन्य विकल्प का इस्तेमाल करेगी।यह सिखों.पंजाबियो और देश के लोगो के खिलाफ किया गया एक घोर पाप था।..


    शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने भी इस संबंध मे किये गये ब्रिटिश सरकार के ख्ुालासे के बाद कांग्रेस को आडे हाथो लेते हुए कहा कि इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल मे किया गया आपरेशन ब्लू स्टार पंजाबियो के खिलाफ जघन्य कृत्य था।


    शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि देश मे अंदरूनी मामले मे विदेशी सलाह लेकर पूर्व प्रधानमंत्री ने आंतरिक सुरक्षा के साथ खिलवाड किया और लोगों को धोखा दिया।ऐसा करके श्रीमती गांधी ने स्पष्ट रूप से देश की संप्रभुता के साथ समझौते का एक उदाहरण पेश किया।


    शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़ ने कहा है कि 1984 में श्री हरमंदिर साहिब में आपरेशन ब्लू स्टार के लिए ब्रिटेन सरकार द्वारा भारत सरकार को सलाह देना और हमले की योजना बनाने में मदद करना शर्मनाक और अति निंदनीय है। सिख कौम ब्रिटेन सरकार की इस कार्रवाई की सख्त शब्दों में निंदा करती है।


    मक्कड़ ने कहा कि सिख जिस देश में भी गए, वहां अथक मेहनत करके उन्होंने उस देश की आर्थिक खुशहाली में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ब्रिटेन में भी सिखों ने वहां की तरक्की में बड़ा योगदान दिया।


    बावजूद इसके ब्रिटेन सरकार ने अगर श्री हरमंदिर साहिब पर हमला करने के लिए भारत सरकार की मदद की है तो यह सिखों के साथ धोखा है।


    मक्कड़ ने कहा कि ब्रिटेन जैसा देश जो मानवीय अधिकारों के हनन के खिलाफ आवाज उठाता रहा है, उसकी ओर से सिखों के धार्मिक स्थान पर हमले के लिए मदद करना साबित करता है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा मानवीय अधिकारों के लिए आवाज उठाना भी धोखा है।


    ब्रिटेन सरकार की इस कार्रवाई से दुनिया भर में बैठे सिखों के मन में ब्रिटेन के खिलाफ रोष पैदा हुआ है। गुप्त पत्र से उन ब्रिटेन के लोगों के चेहरे भी बेनकाब हो गए है जिन्होंने सिखों को मारने और दबाकर राज करने की साजिश में हिस्सेदारी की है।

    Britain says it advised India on 1984 Operation Blue Star

    LONDON: British military's role in the 1984Operation Blue Star was "limited" and "purely advisory", UK's foreign secretaryWilliam Hague told parliament on Tuesday.


    Hague said the UK played no role in the actual operation that took place at the Golden Temple in Amritsar.


    In a statement on the conclusion of an inquiry into alleged British assistance provided by then British Prime MinisterMargaret Thatcher, Hague said, "The report concludes that the nature of the UK's assistance was purely advisory, limited and provided to the Indian government at an early stage in their planning."


    An analysis of nearly 200 files and 23,000 documents has confirmed that a "single British military adviser" travelled to India between February 8 and 19, 1984, to advice Indian intelligence services on contingency plans that they were drawing up for operations in the temple complex, including ground reconnaissance of the site.


    "The cabinet secretary's report includes an analysis by current military staff of the extent to which the actual operation in June 1984 differed from the approach recommended in February by the UK military adviser. Operation Bluestar was a ground assault, without the element of surprise, and without a helicopter-borne element," Hague said.


    "The cabinet secretary's report concludes that the UK military officer's advice had limited impact on Operation Blue Star. This is consistent with the public statement on 15th January this year by the operation commander, Lt Gen Brar, who said that 'no one helped us in our planning or in the execution of the planning'," he said.


    Hague said this conclusion is also consistent with an exchange of letters between former Indian Prime Minister Indira Gandhi and Thatcher on June 14 and 29, 1984, discussing the operation.


    While admitting that some military files covering various operations were destroyed in November 2009, as part of a routine process undertaken by the ministry of defence at the 25-year review point, copies of at least some of the documents in the destroyed files were also in other departmental files.


    The report by cabinet secretary Jeremy Heywood includes the publication of the relevant sections of five extra documents that shed light on this period, but which would not normally have been published, the minister told MPs.


    "The adviser had made clear that a military operation should be put into effect only as a last resort when all attempts of negotiation had failed. It recommended the inclusion in any operation an element of surprise and the use of helicopter forces in the interests of reducing casualties and bringing about a swift resolution," Hague said.


    "This giving of military advice was not repeated...and the cabinet secretary found no evidence of any other assistance such as equipment or training," he added.


    British Prime MinisterDavid Cameron had ordered the inquiry after documents released under the 30-year declassification rule here implied British SAS commanders had advised the Indian government as it drew up plans for Operatio Blue Star in February 1984.


    Sikh groups in the UK have criticised the scope of the inquiry and claim it focuses on a very "narrow period".


    Britain's only Sikh MP, Paul Uppal, spoke in the Commons on Tuesday to stress that the report makes clear that the UK played no "malicious" role in Operation Blue Star and called on the government to work with Sikh groups and the Indian High Commission in the UK to work towards a "process of truth and reconciliation so that the community can finally begin to feel a sense of justice".


    A few months after Operation Blue Star, then Indian Prime Minister Gandhi was assassinated by her Sikh bodyguards in an apparent revenge attack.


    The row over how much the British knew and helped in the incidents 30 years ago threatens to derail Conservative party attempts to attract Sikh voters, who could play a major role in marginal seats in London and Leicester in any election.


    Hague updated MPs on the extent of Thatcher's involvement in helping plan the operation.


    Sikh groups in the UK criticised the scope of the inquiry into Britain's role in the operation.


    In a letter to Cameron, Sikh Federation UK chairman Bhai Amrik Singh said: "We are dismayed the terms of the review were only formally made available almost three weeks after the review was announced and only days before an announcement of the results of the review are expected in parliament.

    Friday, January 24, 2014

    Sikh Politics worldwide should be aware of USA and UK

    सिखों को अमेरिका और ब्रिटेन के बजाय भारत देश से न्याय मांगने की जरुरत है


    जैसे भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए अब भी अपना खून बहाने में सिख ही सबसे आगे हैं,उसी तरह कारपोरेट अश्वमेध को रोकने में निर्णायक भूमिका भी हो सकती है सिखों की,दरअसल पश्चिम को सिखों से यही सबसे बड़ा खतरा है और सिखों के दमन में इसीलिए वह धर्मोन्मादी भारतीय सत्ता वर्ग का साथ निभाता रहा है।


    पलाश विश्वास

    आज का संवाद

    भारतवर्ष के स्वतंत्रता संग्राम में सिख धर्म की भूमिका उसके जनम से लेकर हमेशा निर्णायक रही है।


    हम यह इतिहास भूल गये हैं कि भारत में अस्सी के दशक से पहले सिखों की राजनीति पूरे देश को जोड़ रही थी और अस्सी के दशक से अमेरिका,ब्रिटेन और पश्चिम से सिख नेताओं का टांका भिड़ने के बाद ही सिखों का अलगाव हुआ और इसी अलगाव की वजह से हूबहू इस देश के आदिवासियों और दलितों की तरह अस्सी के दशक में धर्मोन्मादी सत्ता ने सिखों का जनसंहार किया।


    दरअसल स्वतंत्रता प्रेमी सिख राष्ट्रीयता का समर्थक पश्चिम हो ही नहीं सकता जिसने  कुल मिलाकर बाजार और कारपोरेट साम्राज्यवाद के खिलाफ भारत की सबसे बड़ी सामाजिक शक्ति बतौर बार बार अपने को साबित किया।


    हरित क्रांति के जरिये भारतीय कृषि के महाध्वंस के प्रतिरोध की पंजाबी पहल को धर्मोन्माद के दुश्चक्र में फंसाकर कारोपेरेट सम्राज्यवादी पूंजीवाद पश्चिम ने भारत की धर्मोन्मादी सत्ता वर्ग के साथ मिलकर सिख जनसंहार को अंजाम दिया।


    आज भी दुनियाभर में अपनी पहचान के लिए सिख ही सबसे ज्यादा निशाने पर हैं।


    अमेरिका और यूरोप में ये हमले निरंतर तेज हो रहे हैं।


    भारत सरकार ने जिस तरह एक देवयानी खोपड़ागड़े के मामले राजनयिक युद्ध की घोषणा कर दी,उस हिसाब से भारत ने सिखों के पक्ष में कोई बड़ी राजनयिक पहल अभीतक नहीं की है।


    भारतीय सत्तावर्ग में सिख नहीं हैं और इसीलिए अमेरिका,इजराइल और ब्रिटेन के हितों के मुताबिक वे वैसे भी नहीं हो सकते जैसे इस देश के आदिवासी और बहुसंख्य उत्पीड़ित आम लोग।


    भारतीय सत्ता वर्चस्व के विरुद्ध सिख अस्मिता की लड़ाई इसीलिए भारतीय जनपक्षधर मोर्चे से ही लड़ी जा सकती है।अमेरिका,कनाडा या ब्रिटेन से नहीं क्योंकि सिखों के खून से उनके हाथ भी उसीतरह रंगे हैं जैसे भारतीय धर्मोन्मादी सत्तावर्ग के।


    जब देश बेचो ब्रिगेड पूरे देश की नीलामी कर रहा है और कंपनी राज की पूरी तैयारी है तो देशभक्त सिखों को सिख धर्म,परंपरा और इतिहास से सबक लेकर भारतीय जन गण के प्रतिरोध संघर्ष में फिर सामने आना चाहिए।


    यह इतिहास का तकाजा है।


    जैसे भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए अब भी अपना खून बहाने में सिख ही सबसे आगे हैं,उसी तरह कारपोरेट अश्वमेध को रोकने में निर्णायक भूमिका भी हो सकती है सिखों की,दरअसल पश्चिम को सिखों से यही सबसे बड़ा खतरा है और सिखों के दमन में इसीलिए वह धर्मोन्मादी भारतीय सत्ता वर्ग का साथ निभाता रहा है।


    हमारा बचपन सीमा के उस पार रह गये पंजाब के सबसे बेहतरीन कृषि पंडितों के बच्चों के साथ उत्तराखंड की तराई में बीता है और हम जनमजात उनकी कृषिजीवी जिंदगी के हिस्सा रहे हैं। साठ और सत्तर दशक में भी अति संपन्न सिख,जाट और पंजाबी परिवारों के बच्चे पढ़ लिखकर अंततः अपने खेतों और खिलहानों के मध्य ही लौटकर आते रहे हैं। पंजाब में हरित क्रांति से जो कायाकाल्प हुआ,हम देहरादून से लेकर पीलीभीत बरेली रामपुर जिलों तक फैली उत्तर प्रदेश की दिवंगत तराई पट्टी में उसके साझेदार रहे हैं।हरित क्रांति के दु्ष्परिणामों को भी हमने साथ साथ झेला है।


    हमारे परिवार में पुराने स्वतंत्रता सेनानियों का आना जाना रहा है। हमने बहुत नजदीक से उन्हें देखा है। बनारस में स्वतंत्रता सेनानी परिवार बनर्जी परिवार के बसंत कुमार बनर्जी पिताजी के खास मित्र थे तो बलिया के रामजी राय पिता के अवसान के बाद भी हमारे परिवार से जुड़़े रहे। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहासकार सुधीर विद्यार्थी को हम बरेली से जानते रहे हैं।तो स्वतंत्रतासंग्राम के इतिहासकार मन्मथ नाथ गुप्त भी बसंतीपुर आये और डा. अशोक सेन भी।


    नेताजी के रहस्यमय तरीके से भारत से बाहर जाकर आजाद हिंद फौज के निर्माण की शुरुआती यात्रा में उनके साथी भगतराम तलवार भी पीलीभीत में बस गये थे।


    मुंबई में नौसैनिक विद्रोह में शामिल सरदार अजित सिंह खटीमा के पास रहते थे। कब तक सहती रहेगी तराई,शीर्षक से 1978 में नैनीताल पर  एक धारावाहिक छप रहा था,उसी दौरान खटीमा में मैं उनसे टकरा गया।वे पकड़कर मुझे अपने घर ले गये और नौसेना विद्रोह का रोजनामचा लिखवाया। नैनीताल समाचार में जिसका थोड़ा इस्तेमाल मैं कर सका,बाद में पेशेवर पत्रकारिता की दौड़ में वह रोजनामचा गायब  हो गया।


    सरदार अजित सिंह ने सिख गावों के अलावा खटीमा इलाके के थारु गांव में हमारे साथ घर घर गये।


    1969 के मध्वावधि चुनाव में काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से नारायणदत्त तिवारी उम्मीदवार थे। उनके मुकाबले भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार थे शहीदेआजम सरदार भगत सिंह के छोटे भाई।तब शहीदेआजम की मां पंजाबमाता हमारे घर बसंतीपुर आयी थी और उन्होंने पिताजी को देखकर कहा था कि तुम तो ेकदम बटुकेश्वर दत्त लगते हो।उस चुनाव में नारायण दत्त तिवारी ने हमारे घर से चुनाव प्रचार अभियान शुरु किया था,लेकिन पिताजी शहीदेआजम के भाई के साथ खड़े थे। हमें शहीदेाजम की मां का भी आशीर्वाद मिला तब।


    बंगाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के उतने भक्त नहीं होंगे, जितने अब भी पंजाब में हैं।आजाद हिंद फौज में भी बंगालियों की तुलना में सिख और पंजाबी ज्यादा थे। ऐसे लोगों से साठ और सत्तर के दशक में हमारा समना बार बार हुआ है।अब भी उत्तराखंड बनने के बाद जबसे राज्य का मुख्य नेताजी जयंती समारोह बसंतीपुर में होने लगा है,भूल भटके स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी और नेताजी के साथी भी बसंतीपुर पहंचते रहे हैं।


    हम पंजाबी,सिख और जाटों की पंजाबी बिरादरी का साझा चूल्हा देख चुके हैं जो विभाजन के बाद अस्सी के दशक तक अटूट रहा है।तराई में तो उस साझे चूल्हे में हमारा भी हिस्सा था।हमारे पड़ोसी गांव में हर साल मनाये जाने वाले गुरुपर्व में हम उसी तरह हिस्सेदार रहे हैं ,जैसे वे हमारी पूजा में।ननकमत्ता गुरुद्वारा में मेरे छोटे भाई पंचानन को शरोपा तो नब्वे दशक के अंत में दिया गया।पत्रकारिता के लिए।तब वह पत्रकारिता कर रहा था,लेकिन बसंतीपुर के घर में वह तलवार अभी मौजूद है।


    अस्सी के दशक के सिखनिधन अभियान ने न केवल पंजाब,न केवल तराई बल्कि पूरे भारत का तानाबाना सामाजिक बिगाड़ दिया,जिसे बुनने में शायद सिखों की सबसे बड़ी भूमिका रही है।


    भारत देश के लिए कुर्बान हो जाने का जज्बा क्या होता है,यह हमने सिखों से ही सिखा है।


    अस्सी के दशक के सिख संहार ने सिखों को इस देश से काटकर रख दिया है।तबसे लेकर अब तक न हुए न्याय की वजह से भी सिखों का अलगाव अब भी बदस्तूर जारी है। हमारे हिसाब से भारत देश के लिए यह बेहद खतरनाक है।सिखों के मुकाबले दुनियाभर में दूसरी योद्धा कौम खोजना कसरतका काम है।सत्तावर्ग की धर्मोन्मादी राजनीति ने उस योद्धा कौम को अपनी समस्याओं से निजात दिलाने के लिए अमेरिका,ब्रिटेन और पश्चिम की ओर देखने का जो सिलसिला शुरु करवा दिया है, वह अब भी खत्म नहीं हुआ क्योंकि सिखों के जख्म अब भी हरे हैं औरन राष्ट्र ने और न बाकी देश वासियों ने उस जख्म को भरने का कोई जतन किया है।


    आपरेशन ब्लू स्टार में ब्रिटिश सरकार की भूमिका के खुलासे से पता चल ही गया कि पश्चिम आखिरकार सिखों का उतना मित्र है नहीं,जितना सिख समुदाय को लगता है। अमेरिका और यूरोप में सिखों की भावनाओं को बार बार चोट पहुंचायी जाती है और बाद में थोड़ा बहुत मलहम लगा दिया जाता है , जैसे पेंटागन ने सिखों,मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों की धार्मिक पहचान की बहाली के नये नियम जारी कर दिये हैं।


    मौका है कि हमारे ही परिवार के अभिन्न अंग सिख समुदाय के लोग अब अपने अलगाव  को तोड़कर फिर पहले की तरह पूरे जज्बे के साथ भारत देश की आम जनता के रोजमर्रे के संघर्षों की अगुवाई करे। न्याय भारत में ही होना है और यह न्याय तब मिलेगा जब सिखों के अलावा पूरी पंजाबी बिरादरी विभाजन की त्रासदी के वक्त दिखायी एकजुटता को फिर हासिल करें और बाकी देश भी अपने उत्पीड़ित सिख भाइयों के साथ खड़े हों।


    गौरतलब है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़ ने कहा है कि 1984 में श्री हरमंदिर साहिब में आपरेशन ब्लू स्टार के लिए ब्रिटेन सरकार द्वारा भारत सरकार को सलाह देना और हमले की योजना बनाने में मदद करना शर्मनाक और अति निंदनीय है। सिख कौम ब्रिटेन सरकार की इस कार्रवाई की सख्त शब्दों में निंदा करती है।


    मक्कड़ ने कहा कि सिख जिस देश में भी गए, वहां अथक मेहनत करके उन्होंने उस देश की आर्थिक खुशहाली में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ब्रिटेन में भी सिखों ने वहां की तरक्की में बड़ा योगदान दिया।


    बावजूद इसके ब्रिटेन सरकार ने अगर श्री हरमंदिर साहिब पर हमला करने के लिए भारत सरकार की मदद की है तो यह सिखों के साथ धोखा है।


    मक्कड़ ने कहा कि ब्रिटेन जैसा देश जो मानवीय अधिकारों के हनन के खिलाफ आवाज उठाता रहा है, उसकी ओर से सिखों के धार्मिक स्थान पर हमले के लिए मदद करना साबित करता है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा मानवीय अधिकारों के लिए आवाज उठाना भी धोखा है।


    ब्रिटेन सरकार की इस कार्रवाई से दुनिया भर में बैठे सिखों के मन में ब्रिटेन के खिलाफ रोष पैदा हुआ है। गुप्त पत्र से उन ब्रिटेन के लोगों के चेहरे भी बेनकाब हो गए है जिन्होंने सिखों को मारने और दबाकर राज करने की साजिश में हिस्सेदारी की है।


    इसी बीच अमेरिकी सेना ने नये दिशानिर्देश जारी करते हुए कुछ मानकों में ढील दे दी है ताकि सैनिकों को उनके धर्म के मुताबिक आभूषण और परिधान पहनने की इजाजत हो। सेना के इस अहम फैसले का दूरगामी असर उन सिखों पर पड़ सकता है जो अमेरिकी सेना में भर्ती हुए हैं।


    बहरहाल, नए दिशानिर्देशों में सुरक्षात्मक उपकरण जैसे हेलमेट आदि पहनने पर अब भी जोर दिया गया है। मानकों में दी गई छूट अब भी इतनी नहीं है कि सिख समुदाय के लोग बड़ी संख्या में अमेरिकी सशस्त्र बलों में शामिल हो सकें। सिख अमेरिकी समुदाय की यह मांग पुरानी है।


    पेंटागन के प्रवक्ता नौसेना के लेफ्टिनेंट कमांडर नैटहैन जे. क्रिस्टेन्सन ने एक बयान में बताया कि नई नीति में कहा गया है कि सैन्य विभाग सर्विस सदस्यों के धार्मिक अनुरोध पर तब ही विचार करेगा जब उस अनुरोध का सेना की तैयारी पर, मिशन पूरा करने में, एकजुटता और अनुशासन पर प्रतिकूल असर न पड़े। उन्होंने कहा कि धार्मिक चलन अपनाने के लिए सभी अनुरोधों पर मामला दर मामला विचार किया जाएगा।


    क्रिस्टेन्सन ने कहा कि कमांडर ऐसी स्थिति में धार्मिक परिधान या प्रतीकों को पहनने की अनुमति दे सकते हैं जब कि उसमें सैन्य विभाग या उन सर्विस नीतियों की छूट की जरूरत न हो जो कि सैन्य वर्दी और धार्मिक परिधान आदि के बारे में हो।


    उन्होंने कहा कि इन बातों पर विचार किया जाएगा कि धार्मिक परिधानों से कहीं सैन्य दायित्व निर्वाह में बाधा न आए, स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी खतरा न हो। क्रिस्टेन्सन के अनुसार, पेंटागन का मानना है कि नए दिशानिर्देशों से कमांडरों और सुपरवाइजरों की व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने की क्षमता बढ़ेगी तथा सेना में भेदभाव होने की धारणा दूर होगी।

    31 Jan. Morichjhanpi Day. Mass demo. In front of GjandhiMurti.Park St.Kolkata.From 12 noon .

    31 January Morichjhanpi Day. Mass demonstration in front of Gandhi Murti, Park St.Kolkata.12 noon to 6 pm.      The Morichjhanpi incident is one of the darkest episode of CPI(M) led Government of West Bengal.The Refugees who were raped by the CPI(M) were betrayed after the Elections.The settlement established by Refugees in the Morichjhapi island of Sundarban was dealt with iron fists by the Left front Govt. of West Bengal who deemed it  " illegal ". Subsequently they were brutally evicted by the Police and hired Mercenaries who butchered the Resisting People ,fired and killed Refugees, raped the Women,burnt down entire settlements. Please come and join.  Thanks.        Prof.Sunanda Sanyal, Prof.Ashokendu Sengupta, Dhiraj Sengupta ( sec APDR),Jagadishchandra Mondal(Researcher),Sibnath Chowdhury(Writer), Dr.Subodh Biswas (Refugee leader, Maharashtra),Nemai Sarkar ( Odisha ), Prasen Raftan ( Refugee leader, Karnatak ), Dr.Sanmathanath Ghosh ( Great Refugee leader), Nalini Mandal (Refugee leader,W.B.),Radhikaranjan Biswas (Refugee leader, Morichjhanpi),Debabrata Biswas (Refugee leader, Morichjhanpi), Narayan Mondal ( Refugee leader, Morocjjhanpi ),Mrityunjoy Mallik ( Respected Refugee leader),  Tushar Bhattacharjee ( Journalist, Docu.film maker).

    New US rules on beards, turbans for Sikh, Muslim soldiers

    Requests for wearing items of one's faith by Sikhs, Muslims and other religious-minority service members will be decided on a case by case basis


    AP

    Washington: The US defence department has clarified rules allowing Sikhs, Muslims and other religious-minority service members to wear a turban, scarf or beard as long as the practices do not interfere with military discipline, order or readiness.


    However, requests for wearing items of one's faith by way of religious accommodation will still be decided on a case by case basis, but will generally be denied only if the item poses a safety hazard, interferes with wearing a uniform, a helmet or other military gear or "impairs the accomplishment of the military mission", Pentagon said.


    "The new policy states that military departments will accommodate religious requests of service members unless a request would have an adverse effect on military readiness, mission accomplishment, unit cohesion and good order and discipline," Pentagon spokesman Navy Lt. Cmdr. Nathan J. Christensen announced on Wednesday.


    Immediate commanders may resolve religious accommodation requests that don't require a waiver of military department or service policies that address wearing of military uniforms and religious apparel, grooming, appearance or body-art standards, he said.


    The spokesman said department officials believe the new instruction will enhance commanders' and supervisors' ability to promote the climate needed to maintain good order and discipline, and will reduce the instances and perception of discrimination toward those whose religious expressions are less familiar to the command.


    The Defense Department "places a high value on the rights of members of the military services to observe the tenets of their respective religions and the rights of others to their own religious beliefs", "including the right to hold no beliefs", the spokesman said.


    Sikh American organisations criticised the new rules for not going far enough, but acknowledged they were a "stepping stone" in a long process of prodding the Pentagon to ease restrictions on wearing or showing their "articles of faith".


    The Sikh American Legal Defence and Education Fund (SALDEF) called the rules an expansion of current policies rather than a meaningful overall change in policy. "Unfortunately, this continues to make us have to choose between our faith and serving our country," said SALDEF executive director Jasjit Singh.


    "This is an expansion of the waiver policy that is decided person by person. It does not open doors and say you can apply as a Sikh American and serve your country fully," he said.


    Responding to new Pentagon rules that permit limited religious accommodation, Democratic House member Joe Crowley, reiterated his call for an end to the presumptive ban on Sikh articles of faith, including turbans and beards, in the US military.


    Crowley, vice chair of the Democratic Caucus and a leader on Sikh American issues in Congress, is currently spearheading a bipartisan letter signed by 20 members of Congress on both sides of the aisle requesting that the US Armed Forces update their appearance regulations to allow Sikh Americans to serve while abiding by their articles of faith.


    "Depending on how they are implemented, some aspects of the new Department of Defense rules may be a step in the right direction," said Crowley.


    "But more needs to be done to end the underlying presumptive ban on service by patriotic Sikh Americans. Sikh Americans love this country and want a fair chance to serve in our nation's military."

    Probe ordered into Thatcher link to Operation Bluestar

    Explanations have been sought after recent documents stated that SAS officials had been dispatched to help in Operation Bluestar

    Reuters

    London: British Prime Minister David Cameron has directed his Cabinet Secretary to establish the facts behind claims that Margaret Thatcher's government may have helped Indira Gandhi plan Operation Bluestar in 1984.

    Labour MP Tom Watson and Lord Indarjit Singh had demanded an explanation after recently declassified documents indicated that Britain's Special Air Service (SAS) officials had been dispatched to help India on the planning on the raid of the Golden Temple to flush out militants from the shrine, an operation left more than 1,000 people dead.

    "These events led to a tragic loss of life and we understand the very legitimate concerns that these papers will raise. The Prime Minister has asked the Cabinet Secretary to look into this case urgently and establish the facts," a UK government spokesperson said in a statement issued here yesterday night.

    "The PM and the Foreign Secretary were unaware of these papers prior to publication. Any requests today for advice from foreign governments are always evaluated carefully with full Ministerial oversight and appropriate legal advice," he added.

    The documents being referenced were released by the National Archives in London under the 30-year declassification rule as part of a series over the New Year. A letter marked "top secret and personal" dated February 23, 1984, nearly four months before the incident in Amritsar, titled 'Sikh Community', reads: "The Indian authorities recently sought British advice over a plan to remove Sikh extremists from the Golden Temple in Amritsar.

    "The Foreign Secretary decided to respond favourably to the Indian request and, with the Prime Minister's agreement, an SAD (sic) officer has visited India and drawn up a plan which has been approved by Mrs Gandhi. The Foreign Secretary believes that the Indian Government may put the plan into operation shortly."

    "These documents prove what Sikhs have suspected all along, that plans to invade the Golden Temple went back months even though the Indian government was claiming even weeks before that there were no such plans," Lord Singh, also the director of the Network of Sikh Organisations in the UK, told PTI.

    "I have already approached the Indian government through the High Commission of India for the need of an independent international enquiry to establish the exact facts. I will now raise the issue in the House of Lords," he added.

    Some of the documents have been reproduced on the 'Stop Deportations' blog which focuses on Britain's immigration policy and claim Thatcher sent SAS officials to advise Mrs Gandhi on the operation.

    "I've only seen the documents this morning (Monday) and am told there are others that have been withheld. This is not good enough. It is not unreasonable to ask for an explanation about the extent of British military collusion with the government of Indira Gandhi," Watson, an MP for West Bromwich East, said.

    He has written to UK foreign secretary William Hague and plans to raise the issue in the House of Commons.

    "I think British Sikhs and all those concerned about human rights will want to know exactly the extent of Britain's collusion with this period and this episode and will expect some answers from the Foreign Secretary.

    "But trying to hide what we did, not coming clean, I think would be a very grave error and I very much hope that the foreign secretary will...Reveal the documents that exist and give us an explanation to the House of Commons and to the country about the role of Britain at that very difficult time for Sikhism and Sikhs," he added.

    Five months after Operation Bluestar, Gandhi was assassinated by her Sikh bodyguards in retaliation for the raid on the Golden Temple.

    'Thatcher colluded with Indira for Operation Bluestar'

    Documents released under Britain's 30-year rule included papers from Thatcher authorising the SAS to collude with the Indian government on the planning on the raid of the Golden Temple

    Reuters

    London: A British MP today claimed that top secret documents suggested Prime Minister Margaret Thatcher's government helped Indira Gandhi plan the storming of the Golden Temple in 1984 to flush out militants from the shrine, an operation that left more than 1,000 people dead.

    Tom Watson, the Labour lawmaker from West Bromwich East, said the documents released under Britain's 30-year rule included "papers from Mrs Thatcher authorising the SAS (Special Air Service) to collude with the Indian government on the planning on the raid of the Golden Temple".

    The government apparently "held back" some more documents and "I don't think that's going to wash", he told BBC Asian Network.

    "I think British Sikhs and all those concerned about human rights will want to know exactly the extent of Britain's collusion with this period and this episode and will expect some answers from the Foreign Secretary," Watson said.

    He wrote on his website that he would write to the Foreign Secretary and raise the issue in the House of Commons to get a "full explanation".

    Man who led Operation Bluestar trashes talk of UK help

    Lt Gen (retd) K S Brar, who led offensive in 1984, says it was planned and executed by Indian commanders

    Reuters

    Mumbai: Amid the raging row over claims that Margaret Thatcher's government had aided India in the Operation Bluestar to flush out militants from the Golden Temple in 1984, Lt Gen (retd) K S Brar, who led the offensive, on Tuesday said it was planned and executed by Indian military commanders.

    "I am quite dumbfounded because the operation was planned and executed by military commanders in India. There is no question ... we never saw anyone from UK coming in here and telling us how to plan the operation," Brar told a TV news channel.

    Maintaining that there was no involvement of British agencies in the operation that left over 1000 dead and led to the revenge assassination of Prime Minister Indira Gandhi, he said the authenticity of the documents that have surfaced suggesting England's assistance should be checked.

    "I am not a politician. I don't know what are the political motives of these letters coming out. I am a straightforward soldier and therefore cannot give any view besides the soldier's view.

    "I conducted the operation and no aid came in. This is the first time I am hearing all this. It is obviously some mischief at some stage or the other. There was no aid given to us, no advice given to us, there was no representative from the UK government who came and met us to help us plan the operation," the 79-year-old former general said.

    A controversy has broken out after a British MP claimed he had seen declassified documents suggesting Britain's Special Air Service (SAS) officials had been despatched to help India plan the military offensive at the Golden Temple.

    Labour MP Tom Watson and Lord Indarjit Singh had on Monday demanded an explanation from British government after the documents, declassified under Britain's 30-year rule, said Thatcher had authorised SAS to collude with Indian government to plan the operation.

    There was a murderous attack on Brar by a group of Sikhs in London in 2012.

    Three Sikh men and a woman were last year convicted of carrying out the revenge attack on Brar and sentenced to undergo imprisonment from 10 and half years to 14 years by a British court.

    British Prime Minister David Cameron has directed his Cabinet Secretary to establish the facts behind claims that Thatcher's government may have helped Indira Gandhi plan Operation Bluestar.

    'British help' for Operation Blue Star stirs Punjab parties

    Dal Khalsa wrote to British PM David Cameroon expressing 'pain, concern and anguish' over the revelations that British govt under Margaret Thatcher helped Indian govt attack Golden Temple


    *

    AP

    Chandigarh: Radical Sikh organizations as well as Punjab's ruling Akali Dal on Tuesday came out against revelations that Britain had helped the Indian government in plans to launch Operation Blue Star on the Golden Temple complex, home to the holiest of Sikh shrines Harmandar Sahib, in June 1984.

    Radical Sikh organization Dal Khalsa on Tuesday shot off a letter to British Prime Minister David Cameroon through the British high commission in India expressing its "pain, concern and anguish over the startling revelations as to how the then British government under Margaret Thatcher helped Indian government to attack the Golden Temple in June 1984".

    Another radical body, the All India Sikh Students Federation (AISSF) will hold a rally outside British high commissioner's office in New Delhi January 17, its president Karnail Singh Peermohammed told IANS.

    "The aim of the rally is to demand that British Parliament should immediately pass a resolution that action of PM Margret Thatcher of colluding with Indira Gandhi to attack the holiest Sikh shrine was wrong," he said.

    Dal Khalsa spokesperson Kanwar Pal Singh, quoting the letter, said: "The news report about the secret document from British National Archives revealing the UK government collaborating with Indian government to plan the attack has shattered the Sikhs from within. The Sikh diaspora is deeply hurt and the news has left them numbed."

    He said the document revealed that India sought support and the British government obliged.

    "However it is silent as to what extent and in what shape the support and succour was provided," the letter said, seeking these details.

    Britain is home to tens of thousands of Sikhs who have settled there in the past nearly 100 years.

    The controversy erupted after documents of that period went public in Britain and Liberal MP Tom Watson procured documents showing that Britain's elite Special Air Service (SAS) was involved in planning the attack on the Golden Temple.

    The Akali Dal in Punjab on Tuesday blamed the Congress party for its "nefarious designs against the Sikh community".

    In a statement here, Akali Dal spokesman Daljit Singh Cheema said that the top secret British documents had exposed the real conspiracy behind Operation Blue Star.

    "The media reports published today (Tuesday) have unearthed a major conspiracy of the Congress party which even went to the extent of compromising the national sovereignty for its political gains," he said.

    Terming it shocking to see that to solve an issue of internal security of Punjab state, Mrs Gandhi took the services of British forces, he said the Congress-led union government must come clean on the "unknown compulsions under which it had to take the help of forces from such a country against whom the nation had fought a battle of freedom for more than 200 years".

    Cheema said that the only justification of colluding with British forces could be that they had the expertise to kill thousands of freedom fighters as in the 1919 Jallianwala Bagh massacre.

    Heavily armed terrorists, led by separatist leader Jarnail Singh Bhindranwale, were flushed out by the Indian Army in its Operation Blue Star on the Golden Temple complex in June 1984. The then Prime Minister Indira Gandhi had ordered the Army operation in which hundreds were killed.

    Punjab had witnessed a bloody phase of terrorism between 1981 to 1992 as separatists demanded a separate Sikh homeland — Khalistan (land of the pure). The terrorism phase left over 25,000 people dead, including hundreds of security force personnel.

    1984 के लिये इंसाफ अभियान : गुनहगारों को सज़ा दो! पीडि़तों को बदनाम करना बंद करो!

    1984 में सिखों के कत्लेआम के पीडि़तों के लिये इंसाफ की मांग करते हुये, एक गंभीर व जोशपूर्ण अभियान 21 अक्तूबर, 2012 को अमृतसर में जलियांवाला बाग से, एक दिल दहलाने वाली चित्र प्रदर्शनी के साथ शुरू हुआ।

    1984 के जन संहार, जिसके दौरान दिल्ली, कानपुर और अन्य जगहों पर 7000 से अधिक लोग मारे गये थे, उसके पीडि़तों के लिये इंसाफ की मांग करने वाले इस अभियान के संदर्भ में, कई संगठनों और व्यक्तियों ने उसी दिन एक प्रेस वार्ता आयोजित की। प्रेस वार्ता को संबोधित करने वाले संगठनों में बचपन बचाओ आन्दोलन, लोक राज संगठन, सिख फोरम और सोशलिस्ट युवजन भी शामिल थे।

    जैसे-जैसे यह कारवां अनेक शहरों से गुज़रते हुये दिल्ली की ओर चला, हजारों-हजारों लोग इसके समर्थन में आगे आये। दिल्ली में इस अभियान के तहत, अक्तूबर के अंत व नवम्बर के आरंभ में कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।

    पीडि़तों को बदनाम करना

    पंजाब में कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने विभिन्न जन संगठनों द्वारा जून 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार में मारे गये लोगों की याद में एक स्मारक स्थापति करने के फैसले को बदनाम किया है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं के अनुसार, यह "आतंकवादियों को सम्मानित करना"है। यह सरासर झूठ है।

    80 के दशक से पंजाब में आतंक फैलाने के लिये कौन जिम्मेदार है? केन्द्रीय राज्य और नई दिल्ली में शासक पार्टी इसके लिये जिम्मेदार है। इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी नीत सरकार ने सिख समुदाय के खिलाफ़ राजकीय आतंक लागू करने, उन पर वहशी हमला करने तथा उनके सबसे पवित्र धर्म स्थल को नष्ट करने की नीति शुरू की थी। अब वे अपने अपराधों पर पर्दा डालने के लिये, पीडि़तों पर इल्ज़ाम लगाना चाहते हैं।

    आपरेशन ब्लू स्टार

    "आपरेशन ब्लू स्टार" - सिखों के सबसे पवित्र धर्म स्थल, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर सशस्त्र हमला, "आतंकवादियों का सफाया करने"के नाम पर, 6 जून, 1984 को किया गया था। आपरेशन ब्लू स्टार सिख गुरु अर्जुन देव के शहादत दिवस पर किया गया था, जिसे सिख धर्म के स्त्रियों व पुरुषों के लिये पवित्र दिन माना जाता है, जब हजारों-हजारों लोग स्वर्ण मंदिर पर इकट्ठे होते हैं। तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने सेना को भारी टैंकों व बंदूकों से स्वर्ण मंदिर पर हमला करने का आदेश दिया था, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग मारे गये और सिखों के पवित्र धर्म स्थल, अकाल तख्त को बहुत हानि हुई।

    स्वर्ण मंदिर पर हमले के बाद, कई वर्षों तक पंजाब, दिल्ली और देश के दूसरे भागों में राजकीय आतंकवाद आयोजित किया गया, जिसके चलते हजारों लोगों, खास तौर पर नौजवानों को मार डाला गया, पीडि़त किया गया और लापता घोषित कर दिया गया। पंजाब और अन्य जगहों पर मजदूरों और किसानों की बगावत और राष्ट्रीय अधिकारों की मांग को कुचलने के लिये यह आतंक की मुहिम चलाई गई। लोगों के जायज़ प्रतिरोध और राजनीतिक मांगों के आन्दोलन को बांटने और गुमराह करने के उद्देश्य से, शासक पार्टी और केंद्र सरकार के संस्थानों ने जानबूझकर हिन्दुओं और सिखों के बीच में बंटवारा करने की कोशिश की। सिख धर्म के लोगों को राष्ट्र विरोधी, राष्ट्रीय एकता और अखंडता के दुश्मन, करार दिया गया।

    पंजाब के लोगों की राजनीतिक मांगों के साथ ऐसा बर्ताव किया गया जैसे कि वे "कानून और व्यवस्था की समस्यायें"थीं। "हिन्दोस्तान की एकता और अखंडता के दुश्मनों"को कुचलने के नाम पर, मजदूर वर्ग और किसानों को राजकीय आतंकवाद की नीति के समर्थन में लामबंध किया गया।

    सिखों का कत्लेआम

    इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली, कानपुर और उत्तरी हिन्दोस्तान के अन्य मुख्य शहरों में सिखों का कत्लेआम आयोजित किया। कई हजारों सिखों को बेरहमी से मार डाला गया, हजारों महिलाओं का बलात्कार किया गया, सिखों के घरों, दुकानों व कारोबारों को जला दिया गया। सभी प्राप्त सबूतों से यह स्पष्ट होता है कि यह एक पूर्व नियोजित जन संहार था। तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी के उकसाने वाले कथनों से प्रेरित, कांग्रेस पार्टी के सांसदों की अगुवाई में, वोटर लिस्ट और आगजनी के सामान लिये हुये गुंडों ने सिख धर्म के लोगों को जिन्दा जलाया और मार डाला। तत्कालीन गृह मंत्री पी.वी. नरसिंह राव की अगुवाई में पुलिस ने कातिलों को पूरा समर्थन दिया।

    गुनहगारों को सज़ा दो - कमान की जिम्मेदारी निभाओ

    "गुनहगारों को सज़ा दो!" - उस जनसंहार से बचने वाले लोग तथा देश भर के इंसाफ पसंद लोग बीते 28 वर्षों से डटकर यह मांग उठाते आ रहे हैं। 1984 के पीडि़तों के लिये इंसाफ़ के इस अभियान के समर्थन में हज़ारों-हज़ारों लोगों का आगे आना यह दिखाता है कि लोग 28 वर्ष पहले किये गये भयानक अपराध को आज तक नहीं भूले हैं।

    कमान की जिम्मेदारी निभाने के असूल को स्थापित करना ज़रूरी है, यानि मानव जाति के खिलाफ़ इस प्रकार के अपराधों व हत्याकांडों के लिये, सिर्फ इन्हें अंजाम देने वाले गुंडों को ही नहीं बल्कि इन्हें निर्देश देने, आयोजित करने व अगुवाई देने वालों को भी सज़ा दिलाने की सख्त ज़रूरत है।

    हमारी मांग है कि पीडि़तों को बदनाम करना फौरन रोका जाये और गुनहगारों को फौरन सज़ा दी जाये!

    http://www.cgpi.org/hi/mel/voice-party/2652-1984-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%87-%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AB-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8



    ऑपरेशन ब्लू स्टार की जांच करेगा ब्रिटेन

    (03:14:48 AM)15, Jan, 2014, Wednesday

    कैमरन ने दिए ब्रिटश मदद की जांच के आदेश

    थैचर सरकार ने की थी भारत की मदद !

    स्वर्ण मंदिर पर सैन्य कार्रवाई के लिए चलाया गया था ऑपरेशन ब्लू स्टार

    ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान सैनिक कार्रवाई करती भारतीय सेना

    लंदन !  ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने 1984 में भारत में अमृतसर के प्रसिध्द स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को खदेड़ने की योजना 'आपरेशन ब्लू स्टार'में मारग्रेट थैचर की सरकार द्वारा तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मदद किए जाने के दावे की जांच का आदेश दिया गया है।

    ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सांसद टाम वाटसन और हाउस आफ लार्ड्स के सिख सदस्य इंदरजीत सिंह ने इस साल सार्वजनिक किए गए गोपनीय दस्तावेजों में ऑपरेशन ब्लू स्टार में ब्रिटेन की ओर मदद पहुंचाने के दावे की जांच की मांग की थी। दस्तावेजों के मुताबिक मारग्रेट थैचर की सरकार ने ब्रिटेन के स्पेशल एयर सर्विस के अधिकारियों को इस ऑपरेशन में मदद पहुंचाने के लिये भारत भेजा था। इस ऑपरेशन के दौरान 1000 लोग मारे गए थे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने देर रात जारी विज्ञप्ति में बताया, कैमरन ने कैबिनेट सचिव को इस मामले की जांच करके सच्चाई सामने लाने का आदेश दिया है।

    सरकारी प्रवक्ता ने कहा, इस ऑपरेशन में कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था और सरकार इन दस्तावेजों के प्रकाशित होने से उठे मुद्दों की गंभीरता समझती है। प्रधानमंत्री ने इसी वजह से कैबिनेट सचिव को तत्काल इसकी जांच करने का आदेश दिया है।

    ब्रिटेन के नियमों के मुताबिक गोपनीय दस्तावेजो को 30 साल के बाद सार्वजनिक किया जाता है। इस महीने सार्वजनिक किए दस्तावेजों में एक पत्र भी शामिल है जिस पर 23 फरवरी 1984 की तारीख और सिख कम्युनिटी अर्थात सिख समुदाय शीर्षक अंकित है। यह पत्र आपरेशन ब्लू स्टार के क्रियान्वन के चार महीने पहले लिखा गया है।

    पत्र में लिखा है, भारतीय सरकार ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को निकाल भगाने की योजना में ब्रिटेन की सलाह मांगी है। उस समय तत्कालीन विदेश सचिव ने भारत सरकार के आग्रह को माना और तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर की सहमति से ब्रिटिश वायुसेना के एक अधिकारी को श्रीमती गांधी से मिलने भारत भेजा। इस अधिकारी ने ही ऑपरेशन की सारी योजनाएं बनाईं जिसे श्रीमती गांधी ने मंजूर किया। ब्रिटिश सरकार को तब ही पता चला था कि श्रीमती गांधी जल्द ही ऑपरेशन ब्लू स्टार को अमल में लाएगीं। वाटसन ने कहा, मैंने सोमवार सुबह को ही यह दस्तावेज देखे हैं और मुझे जानकारी मिली है कि अभी ऐसे कई दस्तावेज गोपनीय हैं। यह समझा जा सकता है कि  मानवाधिकारों और ब्रिटिश सिखों की सुरक्षा को लेकर चिंतित सभी लोग जानना चाहेंगे कि इस अवधि में और इस घटनाक्रम में ब्रिटेन की सहभागिता किस स्तर तक थी। हम विदेश मंत्री से इस विषय पर उनका जवाब चाहते है।

    लार्ड सिंह ने कहा, श्रीमती गांधी की सरकार इस ऑपरेशन के कुछ सप्ताह पहले तक इस बात का दावा करती रही थी कि उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर कार्रवाई करने की कोई योजना नहीं बनाई लेकिन इन गोपनीय दस्तावेजों के जारी होने से उस दावे की पोल खुल गई है। इस दस्तावेज से पता चलता है सिख हमेशा से कटघरे में खड़े थे और स्वर्ण मंदिर पर की जाने वाली कार्रवाई की योजना महीनों पहले बन गई थी।

    ऑपरेशन ब्लू स्टार के घाव को कुरेदना ठीक नहीं

    नवभारत टाइम्स | Jan 24, 2014, 01.00AM IST

    अवधेश कुमार करीब तीस वर्ष बाद 'ऑपरेशन ब्लू स्टार'का भूत फिर सामने आ खड़ा हुआ है, लेकिन राजनीतिक पार्टियां इस मामले में धैर्य दिखाने की जगह उस पर सियासत कर रही हैं। ब्रिटेन में कथित रूप से एक दस्तावेज सामने आया है जिससे संकेत मिलता है कि तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ब्रिटेन की पीएम मारग्रेट थैचर से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य ऑपरेशन में मदद मांगी थी। ब्रिटेन में भी यह मुद्दा बन गया है और प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इसकी जांच के आदेश दे दिए हैं। निश्चय ही जांच के बाद सच सामने आ जाएगा पर भारत में जिस तरह से इस सूचना मात्र पर तूफान खड़ा कर दिया गया है वह खतरनाक है।

    ब्रिटेन के नियमों के मुताबिक गोपनीय दस्तावेज 30 साल के बाद सार्वजनिक किए जाते हैं। कहा जा रहा है कि इस महीने सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों में 23 फरवरी 1984 की तारीख और 'सिख कम्यूनिटी'शीर्षक अंकित किया गया एक पत्र है, जिसमें लिखा है कि भारत सरकार ने श्री दरबार साहिब से उग्रवादियों को निकालने की योजना में ब्रिटेन की सलाह मांगी। ऑपरेशन ब्लू स्टार से चार महीने पहले 6 फरवरी 1984 को लिखे पत्र के मुताबिक भारत सरकार की ओर से स्वर्ण मंदिर से अलगाववादियों को निकालने की योजना में मदद मांगी गई थी। अगर इसे सही मान लिया जाए तो स्वर्ण मंदिर पर हुई भारतीय सेना की कार्रवाई में ब्रिटेन की स्पेशल एयर सर्विस (एसएएस) ने मदद की थी। अति गोपनीय व व्यक्तिगत शीर्षक वाले इन दस्तावेजों के मुताबिक थैचर के निर्देश पर ऐसा हुआ था। यानी हमला सुनियोजित था। हालात बिगड़ने के बाद मजबूरी में ऐसा किए जाने का तर्क गलत था।

    ब्रिटेन में सिखों की संख्या अच्छी-खासी है। वे वहां 30 से अधिक सीटों पर प्रभाव डालते हैं। ऐसे में वहां इस मामले का गरमाना स्वाभाविक है। इससे सत्ताधारी कंजर्वेटिव पार्टी की समस्या बढ़ी है। सिख नेताओं की प्रतिक्रियाएं काफी तीखी हैं। शिरोमणि अकाली दल ने कहा है कि कांग्रेस ने अपने सियासी हितों के चलते देश की प्रभुसत्ता से भी समझौता कर लिया। बीजेपी नेता अरुण जेटली ने कहा कि समय आ गया है जब भारत के लोग निष्कर्ष निकालें कि कहीं ऑपरेशन ब्लू स्टार रणनीतिक चूक तो नहीं था? सवाल है कि स्वर्ण मंदिर को जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों के चंगुल से छुड़ाने का दूसरा विकल्प ही क्या था? वे बातचीत से हथियार डालने और मंदिर को मुक्त करने के लिए तैयार नहीं थे। गौरतलब है कि आपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा 3 से 6 जून 1984 तक चलाया गया। लेकिन सेना ने मार्च में ही स्वर्ण मंदिर को चारों ओर से घेर लिया था और मंदिर परिसर के बाहर दोनों ओर से रुक-रुक कर गोलियां चल रही थीं। संभव है इंदिरा गांधी ने मार्गरेट थैचर से सलाह के लिए पत्र लिखा हो, क्योंकि थैचर ने उत्तरी आयरलैंड के पृथकतावादियों के खिलाफ 'रक्त और लौह'की नीति अपनाई थी। आतंकवाद के खिलाफ सहयोग एक स्वाभाविक बात है। पर यह मानने का कोई कारण नहीं है कि इसमें ब्रिटेन की बड़ी भूमिका रही होगी।

    हम यह तो मानते हैं कि आरंभ में भिंडरावाले को कांग्रेस की ओर से ही शह मिली, अन्यथा वह इतना ताकतवर नहीं होता। लेकिन अलग पंजाब की मांग और उसके लिए प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन देने वाले हर दल में मौजूद थे। उन सब कारणों से पंजाब के आतंकवाद ने ऐसा भीषण रूप लिया कि पूरा देश उससे थर्राता था। ऐसे में हमारे राष्ट्र-राज्य की एकता, अखंडता तथा सरकार की अथॉरिटी स्थापित करने के लिए स्वर्ण मंदिर और आसपास के भवनों को आतंकवादियों से मुक्त कराना ही एकमात्र विकल्प था। वैसे पंजाब एवं सिख समुदाय के लिए वह संवेदनशील मामला है और आज करीब तीस साल बाद उसे कुरेदकर हम अपना ही नुकसान करेंगे। बेहतर है इस पर कोई राजनीति न हो और उसे इतिहास के पन्नों में ही रहने दिया जाए।

    दल खालसा ने कहा, गणतंत्र दिवस कार्यक्रमों से दूर रहें सिख

    Fri, 24 Jan 2014 10:34 PM (IST)

    दल खालसा ने कहा, गणतंत्र दिवस कार्यक्रमों से दूर रहें सिख

    जागरण संवाददाता, अमृतसर। अलगाववादी संगठन दल खालसा ने शुक्रवार को फरमान जारी कर सिखों को 26 जनवरी के कार्यक्रमों से तब तक दूर रहने की अपील की है, जब तक सिखों के प्रति संवैधानिक नाइंसाफी समाप्त नहीं की जाती। साथ ही, कहा कि सिख की वफादारी व आस्था श्री अकाल तख्त साहिब व सिखी सिद्धांतों के साथ है।

    शुक्रवार बाद दोपहर दल खालसा ने दमदमी टकसाल, शिरोमणि अकाली दल पंजप्रधानी व सिख यूथ ऑफ पंजाब के साथ मिलकर नाइंसाफी व ज्यादतियों के विरुद्ध रोष-प्रदर्शन किया। इसमें सैकड़ों सिख नौजवान हाथों में काले झंडे व बैनर पकड़े हुए थे। बैनरों पर लिखा था कि जब संविधान में सिखों की अलग पहचान से इन्कार कर रहा है तो फिर 26 जनवरी का जश्न सिख क्यों मनाएं।

    दल खालसा के मुखिया हरचरणजीत सिंह धामी ने कहा कि सिख एक अलग कौम है। हिंदुस्तान में सिखों के साथ दु‌र्व्यवहार किया गया है। दमदमी टकसाल के बाबा हरनाम सिंह खालसा ने कहा कि भारतीय संविधान सिखों से एक धोखा है।

    http://www.jagran.com/news/national-dal-khalsa-sikh-outfits-demand-sikh-personal-law-11037699.html

    अभी भी हरे हैं ऑपरेशन ब्लू स्टार के जख्म- दलजीत सिंह मट्टू

    Byअनिल पाण्डेय06/06/2009 16:40:00



    दलजीत सिंह बिट्टू पंजाब के उन प्रभावी अलगाववादी नेताओं मे से हैं जिनका युवाओं पर काफी प्रभाव है. अस्सी और नब्बे के दशक में वे करीब 10 साल भूमिगत रह कर अलग सिख राष्ट्र आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाते रहे. अप्रैल 1996 में गिरफ्तार होने के के बाद वे करीब 10 साल तक नाभा और तिहाड़ जेल में रहे. जेल से बाहर आने के बाद दलजीत सिंह फिर से युवाओं को एकजुट कर लोकतांत्रिक तरीके से अलग सिख राष्ट्र की मांग कर हैं. आपरेशन ब्लू स्टार से लेकर मौजूदा आंदोलन के बारे में अनिल पांडेय ने उनसे बातचीत की.

    सवाल- आपरेशन ब्लू स्टार पर आप की क्या प्रतिक्रिया है?

    जवाब- हम इसे "आपरेशन"नहीं दरबार साहिब पर "अटैक"कहते हैं. यह हमारे गुरु ग्रंथ साहिब, सिख आइडेंटटी और सिख नेशन पर हमला था. इस हमले को हम कभी भूल नहीं सकते.  आपरेशन ब्लू स्टार ने हमें जो जख्म दिया है उसे हम सिख राष्ट्र की मांग की प्रेरणा के रूप में रखना चाहते हैं. अकाल तख्त और दरबार साहिब पर पहले भी मुगलो द्वारा हमले किए गए. सिखों ने इसे कभी भुलाया नहीं, बल्कि इसका बदला भी लिया.


    सवाल- लेकिन सरकार और सेना का कहना था कि स्वर्ण मंदिर में आतंकवादी छिपे थे, इसलिए कार्रवाई करनी पड़ी.

    जवाब- जनरैल सिंह भिंडरवाला आतंकवादी नहीं, महान सिख थे. उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की नए सिरे से व्याख्या की. स्टेट सोचता है कि भिंडरवाला टेरिरिस्ट थे, लेकिन आम सिख मानता है कि वे एक ऐसे संत योद्दा थे, जिन्होंने सिख ग्लोरी को रिवाइज किया. भिंडरवाला हमारे सिखों के हीरों हैं और रहेंगे.  


    सवाल- फिर आप आपरेशन ब्लू स्टार की क्या वजह मानते हैं?

    जवाब- इतिहास गवाह है कि दिल्ली की गद्दी पर जो भी बैठा उसे गुरु ग्रंथ साहिब और सिख विचारधारा से हमेशा डर लगता रहा है. दरबार साहिब पर जितने हमले हुए वह इसी वजह से हुए.


    सवाल- आखिर दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला व्यक्ति गुरु ग्रंथ साहिब से क्यों डरता है?

    जवाब- हमारे गुरुद्वारे केवल प्लेस आफ वर्सिप नहीं हैं. यह हमारी पहचान और अस्मिता से जुडा है. अकाल तख्त केवल सिखों की एक सर्वोच्च संस्था भर नहीं है, बल्कि एक अलग सिख राष्ट्र बनाने की विचारधारा भी है. इसीलिए दिल्ली की सरकार इससे डरती है.


    सवाल- कभी अलग सिख राष्ट्र की मांग को भारी जनसमर्थन था, अब वह नहीं दिखाई देता. इसका मतलब अब यह मांग खत्म हो गई है?

    जवाब- नहीं, यह आंदोलन खत्म नहीं हुआ है. बल्कि अभी यह दबा है. आज भी हर सिख रोज अरदास करता है, "राज करेगा खालसा". अगर आप को इस आंदोलन की सच्चाई जाननी है तो युवाओं के बीच जाइए. कालेज में पढ़ने वाले युवकों के मोबाइल स्क्रीन पर संत भिंडरवाले की तस्वीर लगी मिलेगी. उनकी रिंगटोन के रूप में भिंडरावाले के प्रेरणावाले भाषण और गाने मिलेंगे. आज पंजाब में भगत सिंह से ज्यादा भिंडरावाले की तस्वीर बिक रही है.


    सवाल- क्या खालसा राज की स्थापना भारतीय राष्ट्र राज्य के खिलाफ नहीं है?

    जवाब- यह मांग हिंदू या स्टेट के खिलाफ नहीं है. इसे गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. खालसा राज की स्थापना तो हर सिख की तमन्ना है. हमारा तो अपना साम्राज्य भी था. खालसा राज यानी सिख धर्म के अनुसार जीवन पद्धति. लेकिन सरकार हमें हमारा अधिकार देने की बजाए हम पर जुल्म करती है. आंदोलन के दौरान भूमिगत रहने के क्रम में मैं जिन घरों में रहा पुलिस ने उन लोगों की नृशंस तरीके से हत्या कर दी.


    सवाल- क्या आप लोग अपनी मांगे मनवाले के लिए फिर से हथियार उठा सकते है?

    जवाब- देखिए, लड़ाई का तरीका समय पर निर्भर करता है. अभी तो हम लोकतांत्रिक तरीके से अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं. लेकिन हालात अगर 1984 जैसा होता है तो तरीका बदल सकता है.


    सवाल- क्या आप को लगता है कि भारत सरकार आप की मांग मान लेगी?

    जवाब- सिख राष्ट्र का निर्माण कठिन जरूर है,लेकिन हम इसे हासिल करके ही रहेंगे.


    सवाल- अपनी मांगे मनवाने के लिए जो आप लोग हथियार उठाते हैं, वह कितना जायज है?

    जवाब- हमारे सिख धर्म में शस्त्र धारण करने की बात है. लेकिन हम शस्त्र अन्याय के विरुद्ध उठाते हैं, किसी के शोषण के लिए नहीं. हमारे गुरु ग्रंथ साहिब के सामने हथियार यानी कृपाण रखा जाता है. हमारे यहां तो परंपरा है कि "राज करैं या लड़ मरैं".


    सवाल- कहा जाता है कि भिंडरवाला ने स्वर्ण मंदिर को अपने छुपने का माध्यम बनाया?

    जवाब- मुगलों से युद्ध के दौरान गुरु घरों यानी गुरुद्वारों में ही शरण लेकर सिखों ने लड़ाई लड़ी. भिड़रवाले भी स्वर्ण मंदिर में आकर तब रहने लगे जब दो महीने के दौरान उन पर छह हमले हुए. उन्हें डर था कि पुलिस और सुरक्षा बल उन्हें फर्जी इनकांउंटर में मार देंगे.

    http://visfot.com/index.php/interview/3494-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%91%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%82-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%9C%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AE-%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%A4-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9-%E0%A4%AE%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%82.html




    লন্ডন:'অপারেশন ব্লু স্টার'নিয়ে আবার বেকায়দায় কংগ্রেস৷ এবং এই ক্ষেত্রেও বিতর্ক উস্কে দিয়েছে ব্রিটেনের সদ্য প্রকাশিত 'গোপন'নথি৷ ব্রিটিশ বিদেশসচিব উইলিয়ম হগ এ দিন সরকারের একটি অভ্যন্তরীণ তদন্তের রিপোর্ট পেশ করে জানান, মার্গারেট থ্যাচারের প্রধানমন্ত্রিত্বকালে তাঁর সরকারের 'পরামর্শে'ই অমৃতসরের স্বর্ণমন্দিরে সেনা অভিযান চালিয়েছিল ইন্দিরা গান্ধীর সরকার৷ তবে একই সঙ্গে তিনি দাবি করেছেন, ওই অভিযানের পিছনে ব্রিটেনের পরামর্শের খুব একটা প্রভাব ছিল না৷ এমনকি, অভিযান চালানোর আগে এ ব্যাপারে থ্যাচার প্রশাসনকে কিছু জানানোও হয়নি৷


    ব্রিটেনের কিছু অপ্রকাশিত সরকারি নথি থেকে সম্প্রতি জানা যায়, ১৯৮৪ সালে স্বর্ণমন্দিরে খালিস্তানি জঙ্গিদের হটাতে গিয়ে শতাধিক শিখ হত্যার কুখ্যাত সামরিক অভিযানটির আগে ব্রিটেনের সাহায্য চেয়েছিল ভারত, এবং মার্গারেট থ্যাচার সরকারের তরফে সে অনুরোধ রাখাও হয়৷ উইলিয়াম হগ এ দিন জানান, ওই ঘটনা সম্পর্কিত ২০০টি ফাইল এবং ২৩ হাজার নথির পর্যালোচনা করে তদন্ত কমিটি জানিয়েছে, ভারত সরকারের অনুরোধে ১৯৮৪ সালের ৮-১৯ ফেব্রুয়ারির মধ্যে ব্রিটেনের এক সামরিক উপদেষ্টা সে দেশে গিয়েছিলেন৷ সেই উপদেষ্টা সাফ জানান, আলোচনার মাধ্যমে সমস্যা মেটার সব রাস্তা বন্ধ হলে একমাত্র তবেই সামরিক অভিযানের কথা ভাবুক ভারত৷ সে ক্ষেত্রে হেলিকপ্টারের মাধ্যমে আক্রমণ করলে হতাহতের সংখ্যা যথাসম্ভব কম হতে পারে বলেও জানানো হয়৷ তবে ৩ থেকে ৮ জুন অপারেশন ব্লু স্টারে শেষ পর্যন্ত যে ছক অনুসরণ করা হয় তার সঙ্গে এই পরামর্শের কোনও মিল নেই৷ অভিযানের আগে ব্রিটেনকে কিছু জানানো হয়েছিল বলেও কোনও সাক্ষ্য পাওয়া যায়নি৷


    কিন্ত্ত গোটা ঘটনায় ব্রিটেনের সরাসরি 'হাত'না থাকলেও এই নথিতে চাপে পড়েছে কংগ্রেস৷ অপারেশন ব্লু স্টার-এর এর তিন মাস পরেই শিখ জঙ্গিদের হাতে প্রাণ হারান ইন্দিরা গান্ধী৷ অভিযোগ, এর প্রতিক্রিয়ায় দিল্লি জুড়ে শিখনিধন যজ্ঞ চালায় শাসকদল কংগ্রেসের কর্মীরা৷ শিখ অধিকার সংগঠনগুলি এই ঘটনার বিচার চাইছে বহু দিন ধরে৷ সম্প্রতি একটি টেলিভিশন সাক্ষাত্‍কারে ১৯৮৪ সালের শিখ দাঙ্গার জন্য ক্ষমা চাইতে অস্বীকার করে সমালোচনার মুখোমুখি হয়েছেন রাহুল গান্ধীও৷ এখন ব্রিটেনের তরফে এই স্বীকারোক্তিতে সেই বিতর্কে আরও অনেকটা ইন্ধন পড়তে চলেছে বলেই মনে করা হচ্ছে৷ - পিটিআই


    ব্লুস্টারে সাহায্যের কথা মেনে নিল ব্রিটেন

    নিজস্ব প্রতিবেদন

    ৪ ফেব্রুয়ারি

    গুজরাত দাঙ্গায় নরেন্দ্র মোদীর সরকারের ভূমিকা বনাম শিখ-বিরোধী দাঙ্গায় কংগ্রেসের ভূমিকা নিয়ে রাজনৈতিক চাপানউতোরের মধ্যেই নতুন সংযোজন। লোকসভা ভোটের আগে কংগ্রেসের অস্বস্তি এক ধাক্কায় অনেকটা বাড়িয়ে দিয়ে ১৯৮৪ সালে অমৃতসরের স্বর্ণমন্দিরে সেনা অভিযানে ভারতকে পরামর্শ দিয়ে সাহায্য করার কথা মেনে নিল ব্রিটিশ সরকার। ব্রিটিশ বিদেশমন্ত্রী উইলিয়াম হেগ মঙ্গলবার জানিয়েছেন, ভারতের সঙ্গে ভাল সম্পর্কের কথা ভেবেই ইন্দিরা গাঁধী সরকারকে ওই অভিযানে সাহায্যের সিদ্ধান্ত নিয়েছিল মার্গারেট থ্যাচারের সরকার।

    সম্প্রতি ব্রিটেনের জাতীয় মহাফেজখানা থেকে প্রকাশিত দু'টি নথির কথা উল্লেখ করে সরব হয়েছিলেন ব্রিটিশ পার্লামেন্টের দুই সদস্য। তাঁরা জানান, 'অপারেশন ব্লুস্টারে'র আগে ব্রিটিশ সরকারের সাহায্য চেয়েছিল ইন্দিরা-সরকার। সাহায্যে রাজিও হন তৎকালীন ব্রিটিশ প্রধানমন্ত্রী মার্গারেট থ্যাচার। ভারতীয় সেনাবাহিনী ও গোয়েন্দা সংস্থাগুলিকে পরামর্শ দিতে বিশেষ কম্যান্ডো বাহিনী 'স্যাস'-এর এক অফিসার ভারতেও যান। প্রকাশিত ওই সরকারি নথিতে তার প্রমাণ রয়েছে।

    দুই ব্রিটিশ এমপি-র এই দাবি নিয়ে রীতিমতো আলোড়ন শুরু হয় ব্রিটিশ পার্লামেন্টে। ভারতে হেলিকপ্টার বিক্রির জন্যই থ্যাচার-সরকার ইন্দিরাকে সাহায্য করেছিল বলেও অভিযোগ ওঠে। চাপে পড়ে বিষয়টি নিয়ে তদন্তের নির্দেশ দেন ব্রিটিশ প্রধানমন্ত্রী ডেভিড ক্যামেরন। আজ সেই তদন্তের রিপোর্টই পার্লামেন্টে পেশ করেছেন বিদেশমন্ত্রী উইলিয়াম হেগ।

    *

    ব্লুস্টার নিয়ে ভারত-ব্রিটেনের এই কথা চালাচালির ইতিহাস অবশ্য এই মুহূর্তে দু'দেশের কোনও সরকারের পক্ষেই স্বস্তির নয়। ব্রিটেন দাবি করছে, তারা শুধুই পরামর্শ দিয়েছিল এবং ভারত আদৌ ব্রিটেনের কথা মতো কাজ করেনি। বিষয়টি নিয়ে এখনও সরকারি ভাবে মুখ খোলেনি কেন্দ্রে কংগ্রেসের নেতৃত্বাধীন সরকার।

    শিখদের ধর্মস্থান স্বর্ণমন্দিরে ঘাঁটি গেড়ে বসে থাকা খলিস্তানি জঙ্গি নেতা জার্নেল সিংহ ভিন্দ্রানওয়ালে ও তাঁর সশস্ত্র সঙ্গীদের হটাতে ১৯৮৪ সালের ৩ থেকে ৮ জুন অভিযান চালিয়েছিল ভারতীয় সেনা। সেই অভিযানই 'অপারেশন ব্লুস্টার'নামে পরিচিত। সেই সংঘর্ষে ভিন্দ্রানওয়ালে-সহ জঙ্গিদের খতম করা গেলেও সেনার গুলিতে ক্ষতিগ্রস্ত হয় স্বর্ণমন্দির। এই ঘটনায় তীব্র প্রতিক্রিয়া হয় শিখদের মধ্যে। এই সেনা অভিযানের কয়েক মাসের মধ্যেই ৩১ অক্টোবর, নিজের দুই শিখ দেহরক্ষীর গুলিতে নিহত হন ইন্দিরা। ইন্দিরা-হত্যার পরে রাজধানী দিল্লি এবং লাগোয়া এলাকায় প্রবল শিখ-বিরোধী দাঙ্গায় মৃত্যু হয় কয়েক হাজার মানুষের। এই দাঙ্গায় একাধিক কংগ্রেস নেতার জড়িত থাকার অভিযোগও ওঠে।

    স্বর্ণমন্দিরে সেনা অভিযান এবং পরবর্তী সময়ে শিখ-বিরোধী দাঙ্গার ঘটনা আজও কংগ্রেসের কাছে প্রবল অস্বস্তির। সনিয়া গাঁধী এবং মনমোহন সিংহ আগেই প্রকাশ্যে এ নিয়ে ক্ষমা চেয়েছেন। তবু বিতর্ক পিছু ছাড়েনি। টেলিভিশনে প্রথম পূর্ণাঙ্গ সাক্ষাৎকারেও রাহুল গাঁধীকে এই প্রশ্নের সামনে যথেষ্ট বিব্রত দেখিয়েছে।

    এই আবহেই ব্রিটিশ পার্লামেন্টে হেগ জানালেন, ব্রিটেন যে 'অপারেশন ব্লুস্টার'নিয়ে ভারতকে পরামর্শ দিয়েছিল, তা ঠিক। ভারতের সঙ্গে ভাল সম্পর্কের কথা ভেবেই ইন্দিরা গাঁধীর সরকারকে ওই ঘটনার সময় সাহায্যের সিদ্ধান্ত নেয় থ্যাচার-সরকার। তার ভিত্তিতেই ১৯৮৪ সালের ফেব্রুয়ারিতে এক ব্রিটিশ সামরিক পরামর্শদাতা ভারতে যান। সরকারি স্তরে আলোচনায় তিনি জানিয়েছিলেন, জঙ্গিদের সঙ্গে আলোচনা একেবারে ব্যর্থ হলে তবেই সামরিক অভিযানের কথা ভাবা যেতে পারে। একই সঙ্গে তাঁর পরামর্শ ছিল, জঙ্গিদের হতচকিত করে হঠাৎ হামলা চালাতে হবে। হেলিকপ্টারে বাহিনী পাঠানোও প্রয়োজন। হেগ জানিয়েছেন, ওই অফিসার ব্রিটেনে ফিরে যাওয়ার পরে জঙ্গিদের হটাতে সেনা অভিযানের পরিকল্পনা ও তা কার্যকর করার পুরো ভার হাতে তুলে নেয় ভারতীয় সেনা। ব্রিটিশ পরামর্শ খুব সীমিত প্রভাব ফেলেছিল। কারণ, ভারতীয় সেনা আচমকা হানা দেয়নি। হেলিকপ্টারে বাহিনীও পাঠানো হয়নি।


    *

    স্বর্ণমন্দির থেকে জঙ্গি নেতা জার্নেল সিংহ ভিন্দ্রানওয়ালেকে

    হটাতে সেনা নামানোর সিদ্ধান্ত ইন্দিরা গাঁধীর। দায়িত্ব কে এস ব্রার-কে।

    অপারেশন ব্লুস্টার ১৯৮৪


    ৩ জুন

    পঞ্জাব জুড়ে কার্ফু। স্বর্ণমন্দিরে ঢোকা-বেরোনোর

    সব পথ আটকে দিল সেনা।

    ৪ জুন

    সেনা-জঙ্গি গুলির লড়াই শুরু।

    ৫ জুন

    স্বর্ণমন্দির চত্বরে ঢুকতে গিয়ে জঙ্গিদের প্রতিরোধে

    থমকাল সেনা। কৌশলে বদল। রাতভর যুদ্ধ।

    ৬ জুন

    ভিতরে ঢুকল সেনা। ভিন্দ্রানওয়ালের দেহ উদ্ধার।

    গোলায় বিধ্বস্ত অকাল তখ্ত।

    ৮ জুন

    অভিযান শেষ।


    হেগ এ-ও জানিয়েছেন যে, ব্রিটিশ হেলিকপ্টার বা অস্ত্র ভারতকে বিক্রির সঙ্গে এই পরামর্শ দেওয়ার যোগ খুঁজে পাওয়া যায়নি। ভারতীয় সেনাকে স্বর্ণমন্দির অভিযানের জন্য কোনও প্রশিক্ষণ দেয়নি ব্রিটেন। কোনও উপকরণও সরবরাহ করা হয়নি।

    কিন্তু বিতর্কিত 'অপারেশন ব্লুস্টারে'ব্রিটিশ-যোগ প্রকাশ্যে আসার পরে ফের এক দফা ঝড়ের জন্যই তৈরি হচ্ছে নয়াদিল্লি ও লন্ডন। ইতিমধ্যেই টেলিভিশনে ১৯৮৪-র দাঙ্গায় কিছু কংগ্রেস নেতা-কর্মী জড়িত থাকার সম্ভাবনার কথা মেনে নিয়ে কংগ্রেসকে অস্বস্তিতে ফেলেছেন রাহুল।

    গোধরা-পরবর্তী দাঙ্গার স্মৃতি নিয়ে বিব্রত মোদী তথা বিজেপি যাকে কাজে লাগিয়ে কংগ্রেসকে আক্রমণের সুযোগ পেয়ে গিয়েছে। এ কাজে এখনও তারা মূলত ব্যবহার করেছে এনডিএ-র শরিক অকালি দলকে। শিখ-বিরোধী দাঙ্গায় রাজীব গাঁধীর ভূমিকা নিয়ে তদন্তের দাবি তুলেছে পঞ্জাবের বর্তমান শাসক অকালি দল। অকালি-সহ কংগ্রেস-বিরোধী দলগুলির আক্রমণ আরও বাড়বে বলেই মনে করা হচ্ছে।

    বিজেপি মুখপাত্র নির্মলা সীতারামনের কথায় তারই ইঙ্গিত, "ইন্দিরার সরকার দাবি করেছিল, আলোচনা ব্যর্থ হওয়ায় স্বর্ণমন্দিরে অভিযান চালিয়েছিল সেনা। কিন্তু ব্রিটেনের সঙ্গে আগে পরামর্শের কথা থেকেই বোঝা যাচ্ছে, আলোচনায় আদৌ আগ্রহী ছিল না সরকার।"

    http://www.anandabazar.com/5desh1.html



    ब्रिगेड रैली से नमो सुनामी का अंदाजा लगाइये लेकिन मोदी मिसाइलों का दूरगामी असर तय

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    ब्रिगेड रैली से नमो सुनामी का अंदाजा लगाइये लेकिन मोदी मिसाइलों का दूरगामी असर तय

    एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


    बंगाल में न भाजपा की सरकार है और न सत्तादल से उसका कोई गठबंधन है। संगठन के लिहाज से भी बंगाल में भाजपा की ताकत नगण्य है। बुधवार को कोलकाता में प्रधानमंत्रित्व के दावेदार नरेंद्र मोदी की ब्रिगेड रैली की भीड़ की तुलना निश्चय ही हाल में 31 जनवी को ममता बनर्जी की रैली से कतई नहीं की जा सकती। नहीं की जानी चाहिए। लेकिन बंगाल में अपनी ताकत के हिसाब से यह ऐतिहासिक रैली है,जिसमें सड़कों से बसें हटाये बिना टाटा सुमो, मैटाडोर से दूर दूर से लोग सिर्फ नरेद्र मोदी को सुनने हाजिर हो गये। ऐसा भी नहीं है कि बाहरी राज्यों से लोग ट्रेनों में भरकर लाये गये हैं। इससे चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों का आकलन सही साबित हो रहा है कि बंगाल में गुपचुप केशरिया लहर है और भाजपा के वोटों में भारी इजाफा तय है।


    कोलकाता ब्रिगेड रैली को प्रतिमान मानें तो बाकी देश में जहां नमोमय माहौल है,सत्ता है,सहयोग है और संगठन भी वहां नमो सुनामी का असर क्या होने वाला है,इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।कांग्रेस की सीटें सैकड़े तक पहुंचेगी या नहीं, शक है।आप फिर सड़क पर लौटने की हालत में दीख रही है। क्षत्रपों का जो तीसरा विकल्प है ,उसमें सबसे मजबूत क्षत्रप यानी ममता बनर्जी है ही नहीं। जो दल और नेता वाम अगुवाई में नमो तूपान रोकने को संकल्पबद्ध है, उनका जनाधार और राजनीतिक भविष्य दोनों दांव पर है।


    गुजरात के मुख्यमंत्री ने आर्थिक तौर पर खतस्ताहाल बंगाल में गुजरात माडल की बहुत अच्छी मार्केटिंग की, परिवर्तन का हिसाब मांगा तो बंगाली राष्ट्रीयता का आवाहन भी खूब कायदे से कर डाला। दिल्ली की गतिविधियों पर तीखी नजर रखने वाले मोदी ने बाकी दलों से, गठबंदनों से एकम अलग खड़ी ममता बनर्जी के प्रति बंगाल के भाजपा नेताओं की तरह आक्रामक रवैया न अपनाकर बेहद रणनीतिक भाषण दिया है। तृणमूल से टरकराने के बजाय तृणमूल समर्थकों के परिवर्तन के हक में तारीफों के पुल बांधते हुए,वाम व धर्म निरपेशक्ष ताकतों पर पुरजोर प्रहार करते हुए बंगाल को वंचित करने के सबूत बतौर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्रित्व से दूर रखने के लिए सीधे तौर पर कांग्रेस को जिम्मदार ठहराने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। इससे भाजपा को कोई फायदा हो या न हो,कांग्रेस के लिए भारी मुश्किल हो गयी है।


    दीदी को मुख्यमंत्री बनाये रखते हुए अपने प्रधानमंत्रित्व में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के अभिभावकत्व में बंगाल के विकास का जो त्रिभुज नरेंद्र मोदी ने रच दिया,उसके दूरगामी नतीजे होने हैं।आम तृणमूल मतदाताओं को संधेस गया कि केंद्र में कांग्रेस के सफाये के लिए मोदी ही एकमात्र विकल्प हैं। वहीं इसी फार्मूला के जरिये उन्होंने लोकसभा के आगामी चुनावों में एकमुश्त ममता बनर्जी और प्रणव मुखर्जी दोनों की भूमिका संदिग्ध बना दी है।वामपक्ष और धर्मनिरपेक्षता पर खुल्ला हमले से उन्होंने विपक्ष को यह मौका दे दिया है कि ममता दीदी की नीति ौर रणनीति दोनों की आलोचना कर सकें और खासतौर परअल्पसंखकों में दीदी की साख पर सवाल उठा सकें। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र की राजनीति में भी प्रणव मुखर्जी की संभावित भूमिका को लेकर भूचाल खड़ा कर दिया है।


    बंगाल पर लक्ष्मी और सरस्वती की कृपा के अतीत के महिमामंडन से उन्होंने वामशासन की जहां धुलाी कर दी,वहां दीदी के परिवर्तन के औचित्य पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिये ।


    वे बांग्ला में गुजराती उच्चारण से खूब बोले ौर बांगाल राष्ट्रीयता कोवंचना के सवाल पर केंद्र में परिवर्तन के लिए खूब उकसाया।विवेकानंद,टैगोर और नेताजी के साथ श्यामाप्रसाद मुखर्जी के अवदान की चर्चा भी उन्होंने निश्चित रणनीति के साथ की।


    मोदी ने बंगाल पर केंद्रित भाषण के मार्फत दिल्ली की सत्ता पर मिसाइली निशाने साधे,जो बंगाली मतदाताओं के लोकप्रिय मुद्दे हैं।गाय पट्टी के ध्रूवीकरण समीकरण के विपरीत अपनी धर्मनिरपेक्षता बतौर राष्ट्रहित के देश भक्त एजंडा पेश किया और उसकी पुष्टि के लिए कविगुरु की चित्त जेथा भयहीन का पाट भी किया।


    मध्य वर्ग को खैरात बाँटो और देश बेचो धंधा बेलगाम

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    मध्य वर्ग को खैरात बाँटो और देश बेचो धंधा बेलगाम

    मध्य वर्ग को खैरात बाँटो और देश बेचो धंधा बेलगाम

    HASTAKSHEP

    पलाश विश्वास

    अन्तरिम बजट 2014-14: वित्त मंत्री की सौगात

    देश का प्रधानमंत्री अर्थशास्त्री है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष अर्थशास्त्री हैं। सारे नीति निर्धारक कॉरपोरेट अर्थशास्त्री हैं, जिनके तार सीधे विश्व व्यवस्था के नियन्त्रक संस्थानों से हैं। लेकिन जायनवादी ग्लोबीकरण महाविध्वँस अभियान के लिये वित्तप्रबंधन का मानवीय चेहरा हमेशा राजनीतिक रहा है। चिदंबरम कुशल राजनेता हैं और पेशे से वकील हैं। उनके अन्तरिम बजट का कुल जमा सार यही है कि मध्य वर्ग को खैरात बाँटकर देश बेचो धंधा बेलगाम। राष्ट्रपति बनने से पहले प्रणव मुखर्जी ठीक यही भूमिका निभाते रहे हैं। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने आम चुनाव से पहले कार, मोटरसाइकिल, टीवी-फ्रिज और मोबाइल सस्ते कर आम मध्यम वर्ग को लुभाने का प्रयास किया और भूतपूर्व सैनिकों को खुश करने वाले फैसले के तहत सेना में एक रेंक एक पेंशन की लम्बे समय से चली आ रही माँग को स्वीकार करने की घोषणा की।

    आर्थिक घोटालों के महाभियोग को रफा दफा करने के लिये वित्तमंत्री ने कोयला, तेल व संचार क्षेत्रों में विकास के बढ़ चढ़कर दावे पेश किये जबकि इन्हीं सेक्टर में राष्ट्रीय संसाधनों की कॉरपोरेट हित में सबसे ज्यादा बंदरबाँट हुयी है। अंध राष्ट्रवाद के चलते रक्षा क्षेत्र को विदेशी निवेशकों को खोल देने के यथार्थ के बावजूद रक्षा घोटालों पर पर्दा पड़ा रहता है और रक्षा कारोबार आधारित कालाधन की महिमा इतनी कि अन्तरिम बजट में भी रक्षा व्यय में दस फीसद इजाफा कर दिया गया है। अगले वित्त वर्ष के लिये रक्षा क्षेत्र का बजट 10 प्रतिशत बढ़ाकर 2,24,000 करोड़ रुपये कर दिया गया। गैर..योजना व्यय 12,07,892 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है। इसमें खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम पदार्थों की सब्सिडी के लिये 2,46,397 करोड़ रच्च्पये का प्रावधान किया गया जो कि चालू वित्त वर्ष के 2,45,452 करोड़ रुपये की सब्सिडी से मामूली अधिक है।

    चिदंबरम ने कहा ''मौजूदा आर्थिक स्थिति हस्तक्षेप की माँग करती है और इसके लिये पूर्ण बजट आने का इन्तजार नहीं किया जा सकता। विशेषतौर पर विनिर्माण क्षेत्र को तुरन्त प्रोत्साहन की जरूरत है।''

    पहले यह समझ लीजिये कि अन्तरिम बजट का प्रयोजन क्यों है। आसन्न लोकसभा चुनाव के लिये अल्पमत भारत सरकार को जनादेश नहीं है कि वे वित्तीय या राजस्व प्रबंधन के फैसले लें। नयी सरकार बनने या चालू सरकार के दोबारा जनादेश लेकर लौटने पर ही बजट पेश किया जा सकता है। इसीलिये अन्तरिम बजट। क्योंकि बिना बजट सरकारी खर्च असंवैधानिक है। योजनाओं के कार्यान्वयन और वेतन भुगतान जैसे काम बिना बजट रुक न जाये, इसलिये तकनीकी तौर पर संसद से नई सरकार के बजट पेश करने तक सरकारी खर्च का प्रथागत अनुमोदन का अवसर है अन्तरिम बजट।

    आर्थिक सुधारों के सिपाहसालार चिदंबरम ने अन्तरिम बजट पेश करने के बजाय दरअसल सत्तादल कांग्रेस का चुनाव घोषणापत्र पेश करके संसद और देश को गुमराह किया है। प्रधानमंत्रित्व के प्रबल दावेदार नरेंद्र मोदी के भगवे अर्थशास्त्री और अन्ना ब्रिगेड के प्रधनमंत्रित्व के दावेदार ममता बनर्जी के विकास का मॉडल पीपीपी है। केशरिया टैक्स फ्री इंडिया का एजेण्डा है, जिसके तहत मध्यवर्ग को कुछ रियायतें देकर पूंजी को करमुक्त करने का निर्लज्ज कारोबार है। जिसके तहत ट्रैंजक्शन टैक्स लगना है समान दर पर। गंदी बस्ती और आदिवासी दलित गरीबी रेखा के नीचे जो लोग हैं, उनको टैक्स नेट में लाकर उन पर जो कर जिस दर से लगेगा, उसी दर पर रिलायंस, टाटा, बिड़ला, जिंदल, मित्तल वगैरह वगैरह पर भी टैक्स लगाने का प्रावधान है। यानी जो अब सालाना पाँच-सात लाख करोड़ का टैक्स फोरगान है, वह लाखों करोड़ की रकम होगी और यह रकम देश के बहुसंख्य टैक्स देने में असमर्थ लोगों से वसूला जायेगा। पँजी को जब टैक्स छूट मिलेगी तो प्रत्यक्ष कर खत्म हो जाने से मध्य वर्ग को भी बड़ी राहत मिलेगी। केशरिया मीडिया मुहिम में इस एजेण्डा के पक्ष में जनमत प्रबल है। यानी फील गुड इंडिया के ओपन मार्केट में क्रयशक्ति से लैस मध्य वर्ग और उच्च मध्यवर्ग को अपनी जेबें बचने की हालत इस जनसंहारक प्रस्तावित अर्थतन्त्र से कोई ऐतराज नहीं है।

    जमीनी हकीकत लेकिन यही है कि उल्लेखनीय है कि औद्योगिक उत्पादन में पिछले तीन महीने से गिरावट का रुख बना हुआ है। दिसंबर में आईआईपी में 0.6 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गयी। इस समय कारों का बाजार भी मंदा है। फिर भी देश उद्योग जगत ने बजट को उम्मीद से बेहतर बताया और कहा कि परिस्थिति के लिहाज से यह काफी संतुलित बजट है। इसी से साफ जाहिर है कि अन्तरिम बजट के दीर्घकालीन लक्ष्य कॉरपोरेट हितों के अनुकूल ही हैं।

    चिदंबरम के पेश अन्तरिम बजट को देखने से साफ जाहिर है कि आगे क्या होने वाला है। उपभोक्ता सामग्री में टैक्स रियायतें देकर समाजवादी तेवर दिखाकर दरअसल वित्तमंत्री ने कर सुधार के व्याकरण का ही उल्लंघन किया है। कर सुधार का बुनियादी सिद्धांत करों का सरलीकरण है और करों को एक रूप बनाना उसका मुख्य मकसद है। आप मद छाँटकर अलग-अलग छूट या टैक्स लागू कर ही नहीं सकते। चिदंबरम ने दरअसल ऐसा ही किया है मोबाइलें, फ्रीज, कारें जैसी उपभोक्ता सामग्री को सस्ता करके मध्य वर्ग और उच्च मध्यवर्ग को खुश करने की कवायद। बजट चूंकि चुनावी है, इसलिये बजट भाषण में पंडित जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गांधी,  मुक्त बाजार के सबसे बड़े प्रवक्ता अमर्त्य सेन से लेकर द्रविड़ संत को भी उद्धृत कर दिया गया। तमिलनाडु के चावल कारोबारी चावल के कारोबार में छूट माँग रहे थे, तो तमिलनाडु में अपना राजनीतिक भविष्य सुधारने की गरज से चावल पर छूट दे दी गयी। लेकिन गेंहू, चीनी, अनाज, तिलहन, दलहन पर अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है। कारें सस्ती कर दी गयी हैं मध्यवर्ग को खुश करने के लिये लेकिन परिवहन उद्योग के लिये और ऑटो इण्डस्ट्री को कोई राहत नहीं मिली है।

    इसी तरह बार-बार अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों का उल्लेख करते हुये वोट बैंक गणित के तहत अलग अलग सत्ता समीकरण को साधने का काम किया है, जिसका न अर्थशास्त्र से सम्बंध है और न वित्तीय प्रबंधन से। किसानों को रियायती ब्याज दर पर कृषि रिण की सुविधा भी जारी रहेगी। शिक्षा ऋण पर छात्रों को 31 मार्च 2009 से पहले लिये गये कर्ज पर ब्याज अदायगी में रोक अवधि का लाभ मिलेगा।

    यहीं नहीं, जिस अंसवैधानिक गैरकानूनी राष्ट्रविरोधी नागरिकों की खुफिया निगरानी की कॉरपोरेट योजना से इंफोसिस नंदन निलेकणि के जरिये इंफोसिस को लगातार मार्केट लीडर बनाने का ही काम हुआ, उसके बचाव में बाकायदा सुप्रीम कोर्ट की अवमानना संसदीय विशेषाधिकार की आड़ में पेशेवर वकील चिदंबरम ने कर दी। अपनी इस वकालत में नकद सब्सिडी और जरूरी सेवाओं से आधार को लिंक करने पर सुप्रीम कोर्ट के निषेधाज्ञा के बावजूद उन्होंने गरीबों के हितों का हवाला देकर डिजिटल बायोमेट्रिक रोबोटिक खुफिया निगरानी को जायाज बताने का कमा किया। इसी तरह उन्होंने ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के विकास के पीपीपी माडल का एजेण्डा भी पेश किया बाकी देश के लिये। सात परमाणु संयंत्रों की घोषणा के साथ-साथ पर्वतीय राज्यों को केंद्रीय मदद के बहाने पूरे हिमालय को ऊर्जा उद्योग का खुलाआखेट गाह बनाते हुये भावी केदार आपदाओं की तैयारी कर दी।

    अन्तरिम बजट में करों को छूने की जरुरत ही नहीं थी। नयी सरकार नई दरें लागू कर  के सकती हैं। यहाँ तक कि अगर कांग्रेस फिर चुनाव जीत जाती है या जोड़-तोड़ की राजनीति में फिर चिदंबरम वित्तमंत्री बन जाते हैं, तो ये तात्कालिक रियायतें जो पहली अप्रैल से लागू होनी है, अगर सरकार अलग से अधिसूचना जारी करती है, तो अलग बात है, कभी भी वापस हो सकती हैं। बहरहाल वित्त मंत्री ने एक करोड़ रुपए से अधिक की सालाना आमदनी वाले धनाढ्यों पर पिछले साल सुपर रिच कर के तौर पर लागू दस प्रतिशत का अधिभार जारी रखा है। कंपनियों पर पिछले बजट में लागू आयकर अधिभार भी बरकरार रखे गये हैं।

    वित्तीय नीतियों से छेड़छाड़ करने की कोई जरुरत ही नहीं थी। लेकिन चालू वित्त वर्ष के दौरान चालू खाते का घाटा अनुमान से काफी कम होने के मद्देनजर वित्त मंत्री ने सोने के आयात पर लागू प्रतिबंधों और आयात शुल्क पर गौर करने का वादा किया।

    लेकिन वित्तमंत्री ने सातवें वेतन आयोग के गठन के बावजूद राजीव गांधी की मर्जी के मुताबिक सेना के लिये एक रैंक एक वेतन की घोषणा कर दी है। तो अब सातवाँ वेतन आयोग क्या झुनझुना बजायेगा और वेतन सम्बंधी इस नीतिगत घोषणा के बाद सातवें वेतन आयोग की क्या वैधता रह जाती है।

    परंपरा तोड़कर वित्तमंत्री ने यूपीए सरकारों के एक दशक की उपलब्धियां चुनाव घोषणापत्र की तर्ज पर गिना दीं और आंकड़ों से मनचाहा खेल किया।जाहिर है कि यह तमाशा वैश्विक अर्ततन्त्र या रेटिंग एजंसियों को खुश करने के लिये सिरे से नाकाफी हैं। विकास दर और राजस्व घाटे में कटौती के क्या आयोजन है,उसपर मौन साधते हुये जनता को अर्तव्यवस्था पटरी पर होने का भरोसा दिलाने की कोशिश करते हुये अर्थव्यवस्था चौपट करने के आरोपों का खंडन करने का प्रयास है यह।

    नवउदारवादी नीतियों और उत्पादन प्रणाली के विध्वंस,श्रम के विसर्जन और मुनाफाखोर दलाल सेवाक्षेत्र के जरिये प्रोमोटर बिल्डर राज के तहत भारतीय कृषि,कृषिजीवी बहुसंख्य जनगण और जनपदों के विध्वंस की मुक्त बाजारी अर्थव्यवस्था के वित्तमंत्री ने औद्योगिक उत्पादन और कृषि उत्पादन शून्य के आसपास होने के बावजूद आर्थिक विकास के मिथ्या दावों का लाइव प्रसारण के लिये इस अन्तरिम बजट का दुरुपयोग किया है। जैसे हरित क्रांति के कारीगरों को महिमामंडित किया जाता है,जैसे मुक्त बाजार के प्रवक्ता राष्ट्रविरोधी अर्थशास्त्रियों का महिमा मंडन किया जाता है,उसी तरह आईपीएल विशेषज्ञ कृषिकत्ल मंत्री शरद पवार जिनके गृहराज्य और गृहक्षेत्र में विषम कृषि संकट के लिये या तो दुष्काल है या हर साल थोक दरों पर किसानबिना नागा खुदकशी का एकमात्र अनिवार्य विकल्प चुनने को मजबूर है,भारत के सबसे सफल कृषि मंत्री बतौर महिमामंडित किया जा रहा है। इस मिथ्या से बड़ी मिथ्या संसद में अन्तरिम बजट पेश करते हुये कहने का करतब किया है पेशेवर वकील चिदंबरम ने। दो फीसद से कम कृषि विकास दर चारम हीने की अल्पावधि में कैसे चार फीसद से ज्यादा होने वाली है,यह समझ से परे है।

    उलटे अन्तरिम बजट में भी परिपाटी तोड़ते हुये देश बेचो ब्रिगेड के महासिपाहसालार ने पहले से मंजूर मुंबई ऩई दिल्ली सत्यानाशी औद्योगिक गलियारे और अमृतसर कोलकाता सत्यानाशी औदोगिक गलियोरे के अलावा  चेनन्ई बेंगलरु, बेंगलुरु मुबंई दो और सत्यानाशी औद्योगिक गलियारे की घोषणा कर दी।जिससे उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारों दिशाओं  में जनपदों और खेती के श्मशान घाट पर महासेज और मेगी सिटीज के निर्माण के जरिये देश के भीतर भारतीय सविधान और कायदे कानून के कार्यक्षेत्र से बाहर अनेक रंगबिरंगी संप्रभू अमेरिका बनाने की योजना है। देश बेचो ब्रिगेड की दृष्टि से यह कृषि विकास है और खाद्य सुरक्षा भी। ये महासेज दरअसल विदेशी शक्तियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सैन्य केंद्र होंगे जो राष्ट्रीय सुरक्षा,एकता  और अखंडता के लिये उग्रवादियों,आतंकवादियों और माओवादियों से कहीं बड़ी चुनौती साबित होंगे।

    कृपया अब इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुये अन्तरिम बजट पर नजर डालें तो देश बेचो ब्रिगेड के राष्ट्रविरोधी जनविरोधी चुनावी एजेण्डे का खुलासा हो जायेगा।

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    इन चीखों का जवाब चाहिए हमें

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    इन चीखों का जवाब चाहिए हमें

    इन चीखों का जवाब चाहिए हमें


    क्रान्ति का स्वर हाशिये पर है, भ्रांतियाँ वर्चस्व को मजबूती दे रही हैं

    पलाश विश्वास

    उत्तराखण्ड स‌े अबकी स‌ुधा राजे ने आवाज दी है, जो बहस तलब है

    जब गली में चीखती आवाज़ें गूँजी तुम नहीं उठे।

    जब घर में सिसकने की आवाजें गूँजी तुम नहीं उठे।।

    जब खुद तुम्हारे हृदय में चीखने के स्वर गूँजे तब भी तुम नहीं उठे!!!!!!

    तो सुनो मेरी कोई पुकार तुम्हारे लिये नहीं है क्योंकि पुकारा सिर्फ़ जीवितों को जाता है और सुनकर सिर्फ वे ही दौड़ कर आते हैं जो हाथ पाँव कान और आवाज रखते हैं दिमाग और दिल की धधक धड़क के साथ जाओ तुम सो जाओ मैं तुम्हें नहीं किसी और को बुला रही हूँ अगर मेरी आवाज वहाँ तक पहुँचेगी तो वह जरूर उठेगा और मेरी आवाज थक गयी तो तो भी जिंदा लोग मेरी बात वहाँ तक पहुँचाते रहोगे।

    धन्यवाद सुधा। इस बीच तमाम घटनाक्रम इतने तेज हो गये कि इस जरूरी बहस को समेट ही नहीं सके। कोलकाता से बाहर होने के कारण यह देरी हो गयी है।इसी बीच पहाड़ में हमारे सबसे प्रिय लोग शेखर पाठक,राजीव लोचन साह,शमशेर सिंह बिष्ट, कमला पंत, उमेश तिवारी और चिपको आन्दोलन, उत्तराखण्ड आन्दोलन समेत तमाम जनान्दोलनों के साथी आप के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के बहाने राजनीति में शामिल हो गये हैं।

    परिप्रेक्ष्य तेजी से बदल रहे हैं, मगर जिन सिसकियों की चर्चा इन पंक्तियों में हैं, जिन चीखों की गूँज है, उसके जवाब में सिर्फ सन्नाटा और सन्नाटा ही दर्ज है और कुछ भी तो नहीं। मेरी एक लंबी कहानी डीएसबी की पत्रिका में 1978 में छपी थी, जिसकी प्रतिक्रिया में समाजशास्त्र की मैडम दीपा खुलबे ने अपने घर बुलाकर कहा था कि तुम्हारी हिंदी और अंग्रेजी दोनों अच्छी है। तुम लिखते रहो। उन्होंने कहा था, मैं तुम्हारे लिये कुछ भी कर सकती हूँ। तब मैं एमए अंग्रेजी का प्रथम वर्ष का छात्र था। कितनी ही यादें हैं, नैनीताल से और पहाड़ों से। हम तो तब से इन्हीं सिसकियों और चीखों के जवाब तलाशते हुये भटक रहा हूँ।

    एक तरफ अरविंद केजरीवाल हैं जिन्होंने रिलायंस साम्राज्य को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में पहली बार कामयाबी हासिल की है और हमारे सारे पुराने साथी एक के बाद एक देश भर में उनके आन्दोलन के साथ जुड़ रहे हैं।

    दूसरी तरफ अपने इंडियन पीपुल्स फ्रंट के संयोजक पुरातन मित्र अखिलेंद्र प्रताप सिंह का जंतर- मंतर पर अनशनहै,जिसके मार्फत वे कॉरपोरेट और एनजीओ के भ्रष्टाचार पर सवाल दागते हुये तमाम जरूरी मुद्दों को फोकस करने में कामयाब रहे।

     इसी के मध्य कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश भर में विभिन्न अंबेडकरी संगठनों से जुड़े वे लोग हैं, जो अब कॉरपोरेट साम्राज्यवाद के खिलाफ अस्मिता, पहचान और सत्ता के दायरे से बाहर राष्ट्रव्यापी जनान्दोलन की बात कर रहे हैं तो जमीन पर लड़ने वाले तमाम लोग हैं, जैसे देश भर के आदिवासी, मारुति उद्योग के मजदूर, शहरीकरण और औद्योगीकरण से बेदखल लोग, डूब में शामिल तमाम जनपद, कुड़नकुलम के ग्रामीण, कश्मीर और पूर्वोत्तर में सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार के विरुद्ध मानवाधिकार और लोकतंत्र की बहाली के लिये लड़ रहे लोग, इरोम शर्मिला हैं, सोना सोरी हैं, हिमांशु कुमार हैं, गोपालकृष्ण हैं।

    दूसरे हजारों लाखों सक्रिय जाने अनजाने मशहूर गुमनाम लोग अपने अपने तरीके से जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता और मानवाधिकार की लड़ाई में पूरी ईमानदारी, आस्था और प्रतिबद्धता के साथ लड़ रहे हैं। इतने सारे लोग।

    सत्ता वर्ग में चट्टानी एकता है। उनका एजेण्डा एक है। उनमें नूरा कुश्ती के निरन्तर प्रदर्शन के बावजूद अद्भुत अटूट समन्वय, संयोजन और रणनीतिक एकता है। उनकी सेनाएं, निजी सेनाएं तकनीक विशेषज्ञ हैं। मारक हथियारों से लैस हैं। वे जनसंहार के विशेषज्ञ हैं तो मनोरंजन और विवाद परोसकर मस्तिष्क नियन्त्रण के निराले कारीगर भी।

    दूसरी तरफ हम सभी लोग अलग-अलग झंडों, अलग-अलग पहचान, अलग-अलग अस्मिता के दायरे में लड़ रहे हैं। पार्टीबद्ध पैदल सेनाएं हैं हम धर्मोन्मादी। हम वार करते हैं तो अपने ही लोग जख्मी होते हैं। हम हमला करते हैं तो अपनो के खिलाफ ही। हमारी सारी रणनीतियाँ नीतियाँ हमारे अपनों के विरुद्ध हैं। हम पर्दाफाश करते हैं तो सिर्फ अपनों का। हम मुद्दों और समस्याओं को स्पर्श भी नहीं करते। अपनी अपनी बूंदी सजाकर हम नकली किले की हिफाजत में नकली शहादत की आत्मरति मग्न लोग हैं निःशस्त्र। शत्रुपक्ष को हमारे विरुद्ध लड़ने की कोई जरूरत ही नहीं है क्योंकि हमारे शत्रु हम स्वयं हैं और अपने ही विरुद्ध युद्ध से हमें फुरसत नहीं है।

    बस्तियों और मोहल्लों  से प्रमोटर बिल्डर राज की वजह से बेदखल होते लोग, नागरिकता वंचित तमाम लोग, मातृभाषाओं से बेदखल लोग, रोज फर्जी मुटभेड़ों, दंगों और संघर्षों में सलवाजुड़ुम जैसे नाना अभियानों, गृहयुद्ध में मारे जा रहे लोग और उनके लहूलुहान परिजन, बेरोजगार छात्र युवाजन, उपभोक्ता बना दी जा रही स्त्रियाँ और जातीय,वर्गीय नस्ली व भौगोलिक बेदभाव के शिकार लोग जो अपने हक हकूक के लिये देश भर में अलग अलग लड़ रहे हैं, अराजनीतिक राजनीति के तहत। लेकिन इस राष्ट्रव्यापी जनआन्दोलन के खण्डित चेहरे का कोई मुकम्मल चरित्र नहीं है।

    चीखें बदस्तूर जारी हैं। सिसकियाँ अनन्त हैं।

    यातनाओं के महासमुंदर में गोताखोरी कर रहे हैं हम लोग।

    दमनतन्त्र के औजार में तब्दील हैं हम लोग।

    उत्पीड़न, अत्याचार के पक्ष में खड़े है हम लोग धर्मोन्मादी अंध राष्ट्रभक्त। जबकि देश बेचो महाब्रिगेड का किसी भी स्तर पर कोई प्रतिरोध हो ही नहीं रहा है।

    इनके मध्य हम कहां हैं, मुझे अपना अवस्थान सही-सही मालूम ही नहीं पड़ रहा है। आपको अपना अवस्थान और परिप्रेक्ष्य साफ-साफ मालूम हो तो हमारी मदद जरूर करें। क्या यह असम्भव है कि ये तमाम लोग एक साथ संगठित करके इस देश की व्यवस्था ही बदल दें।

    हम अपने मित्र आनंद तेलतुंबड़े से सहमत हैं जो लिखते हैं :

    एक तरफ दलित आन्दोलन को जाति के मसलों पर संघर्ष करते हुये खुद को वर्ग की लाइन पर लाना होगा तो दूसरी ओर वाम आन्दोलन को इस तरह से निर्देशित किया जाना होगा कि वह जाति के यथार्थ को पहचान सके और संघर्षरत दलितों के साथ एकजुटता कायम करने की जरूरत को महसूस कर सके। यह पहल हालांकि वाम आन्दोलन की ओर से ही पूरे वैचारिक संकल्प के साथ की जानी होगी जो उसकी ओर से अब तक बकाया है तथा इस क्रम में खुद को सही मानने की अपनी प्रवृत्ति को उसे छोड़ना होगा। जैसा कि मैंने अपनी पुस्तक एंटी इम्पीरियलिज्म एंड एनिहिलेशन ऑफ कास्ट्स में लिखा थाएक बार इस प्रक्रिया की शुरुआत हो गयी तो यह एक ऐसे सिलसिले में तब्दील हो जाएगी जिसका अंत बहुप्रतीक्षित भारतीय क्रान्ति में ही होगा। मुझे कोई और विकल्प नहीं दिखाई देता।

    हमने आन्दोलन कम नहीं देखे हैं।

    ढिमरी ब्लॉक आन्दोलन के मध्य हम आन्दोलनकारियों के घर और गांव में जनमे। कैशोर्य में नक्सली आन्दोलनके मुखातिब हुये और सम्पूर्ण क्रान्ति की आग से भी झुलसे। छात्र जीवन में ही चिपको में निष्णात हुये और फिर झारखण्ड और छत्तीसगढ़ तक विस्तृत भी हो गये। पेशेवर पत्रकारिता कोयलांचल से शुरु किया तो झारखण्ड आन्दोलन की तीव्रता और कोयलाखानों की भूमिगत आग के मध्य जन संस्कृति मंच से लेकर इंडियन पीपुल्स फ्रंट का सफर देखा। बिहार के मुक्तांचलों को भी देखा। फिर मंडल-कमंडल की जंग भी।

    सम्पूर्ण क्रान्ति की कोख से जनता पार्टी की गैर कांग्रेसी सरकार निकली तो भ्रष्टाचार विरोधी युद्ध के सिपाहसालार को प्रधानमंत्री बनते और मंडल में विसर्जित होते देखा। उत्तर प्रदेश की युद्ध भूमि से कमंडल से निकली खून की महागंगा को भी देख लिया। सिखों का जनसंहार देखा। देखी भोपाल गैस त्रासदी और गुजरात के नरसंहार से लहूलुहान भी हुये। माओवादी चुनौती के मुकाबले युद्धक्षेत्र बना दिये गये मध्यभारत के युद्धबंदी भूगोल और सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून के शिकंजे में कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर में नस्ली भेदभाव के तहत कत्ल की जाती मानवता और मणिपुर के नग्न मातृत्व का दर्शन भी किया।

    आतंक के विरुद्ध युद्धऔर हिन्दुत्व के पुनरुत्थान के दंश तो झेल ही रहे हैं लेकिन पिछले बीस साल से इस मुक्त बाजार में कॉरपोरेट अश्वमेध के खिलाफ नपुंसक आक्रोश के अलावा हमारा कोई जवाब नहीं है।

    चीखें और सिसकियाँ रोज ब रोज तेज होती जा रही हैं और तेज होती जा रही हैं,हिमालय से कन्याकुमारी तक विस्तृत केदार आपदाओं की बारम्बारता पुनरावृत्त हो रही हैं।

    दसों दिशाओं में विकास के नाम तबाही का आलम है। देश मृत्युउपत्यका है और यह महादेश एक अखण्ड अनन्त वधस्थल।

    हम खुल्ला बाजार में नंगे खड़े हैं और अपने रिसते जख्म को चाट रहे हैं। अपना खून पी रहे हैं। अपनी ही हड्डियाँ चबा रहे हैं। इस स्वादिष्ट जायकेदार जश्न में दिलोदिमाग और इंद्रियाँ पूरी तरह विकल हैं।

    हर बार यही हो रहा है। तेलंगना, ढिमरी ब्लॉक नक्सलबाड़ी में जो हुआ। उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड में जो हो रहा है। सम्पूर्ण क्रान्ति का हश्र वहीं हुआ। विश्वनाथ प्रताप सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी महाविद्रोह का भी वही हुआ। ममता बनर्जी के भूमि आन्दोलन ताजा नजीर है। इनके साथ खड़े हो गये हैं अरविंद केजरीवाल। अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी, आरक्षण विरोधी आन्दोलन तीन धड़ों में बँटकर अलग-अलग विकल्प पेश कर रहे हैं। तीनों विकल्प लेकिन कॉरपोरेट विकल्प हैं। मजा तो यह है कि सियासी बिसात में मेधा पाटेकर और अरविंद केजरीवाल एक तरफ हैं तो दूसरी तरफ है ममता बनर्जी।

    सर्वहारा और सर्वस्वहारा के बीच घमासान है।

    क्रान्ति का स्वर हाशिये पर है। भ्रांतियाँ वर्चस्व को मजबूती दे रही हैं।

    हर बार जनता क्रान्ति के लिये उठ खड़ी होती है और हर बार प्रतिक्रान्ति हो जाती है।

    हर बार मोहभंग होने तक हम स्वर्ण मृग के पीछे भागते रहते हैं। लक्ष्मणरेखा का उल्लंघन हो जाता है अनायास और सीता अपह्रत हो जाती है। लंकाकांड के बावजूद हाथ में मृगमरीचिका के अलावा कुछ नहीं आता।

    हमारी सत्तर दशक की पीढ़ी आन्दोलन की पीढ़ी रही है। जो आन्दोलनकारी शहीद हो गये, अब हमें उनकी कुर्बानियाँ तक याद नहीं हैं। जो बच गये, उनमें सबसे ज्यादा तेज लोग न जाने कब व्यवस्था का विरोध करते-करते व्यवस्था के अंग बन गये हैं। हम जैसे लोग जो न शहीद हो सकें और न व्यवस्था में कहीं अपने को समायोजित कर पाये, पुरातन आन्दोलनों और विचारधाराओं की जुगाली करते रहते हैं। जबकि राष्ट्रविरोधी तत्व रोज इस देश को खण्डित कर रहे हैं। सन् सैंतालीस से चालू देश विभाजन की इस प्रक्रिया को रिवर्स गीयर में डालने की तकनीक हम अब भी ईजाद नहीं कर पा रहे हैं। हम देश जोड़ नहीं पा रहे हैं। हमारी हर गतिविधि देश तोड़ने समाज बिखेरने जनता का सत्यानाश करने और जनपदों को श्मसान में तब्दील करने के लिये इस्तेमाल होती रही है और हमें इसका पता भी नहीं चल रहा है। कोई आत्मालोचना के लिये तैयार नहीं है।

    आपातकाल के विरोध में देश एकजुट था। नक्सलबाड़ी आन्दोलन के समान्तर शांति पूर्ण तरीके से देश और व्यवस्था को बदलने के लिये छात्र युवाओं के उस जनान्दोलन की पुनरावृत्ति अब भी होनी है। लेकिन नतीजा निकला, लोककल्याणकारी राज्य के अवसान और खुल्ला बाजार में तब्दील अमेरिकी उपनिवेश का निरंकुश जश्न। डिजिटल रोबोटिक बायोमेट्रिक यन्त्रमानव में तब्दील होते होते हमने दिलोदिमाग को भी तिलांजलि दे दी और तब से लगातार देश धनपशुओं और बाहुबलियों के हवाले करते जा रहे हैं। तबसे लगातार अबाध विदेशी पूँजी प्रवाह है। कालाधन है। भ्रष्टाचार है। कॉरपोरेट राज है। विकास और कायाकल्प के नाम जनसंहार का निरंकुश लाइसेंस है।

    फिर भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारतीय इतिहास के सबसे बड़े ईश्वर का अवतरण हुआ। सत्ता में आते ही वे भ्रष्टाचार का राग अलापना भूल गये। वोट बैंक साधने लग गये। मंडल कमीशन लागू करने के कारण बाबासाहेब अंबेडकर के बाद सामाजिक परिवर्तन के मसीहा बनने के बजाय अपनी अदूरदर्शिता की वजह से अब तक खारिज हिंदू राष्ट्र की नींव उन्होंने डाल दी। तब से यह देश हिंदू राष्ट्र है। हिन्दुत्व की अस्मिता के सिवाय सारी पहचान बेकार है। पक्ष-विपक्ष से लेकर सारे विकल्प हिन्दुत्व के हैं। नरम या गरम या छद्म हिन्दुत्व के कॉरपोरेट विकल्प।

    दूध का जला छाछ भी फूँककर पीता है। लेकिन बिना जाँच पड़ताल के हम लोग अगिनखोर हैं।

    जेएनयू में सन अस्सी में इलाहाबाद से निकलकर बजरिये उर्मिलेश हम पेरियर हास्टल में कवि गोरख पांडेय के कमरे में दाखिल हो गये थे। उस कवि के ख्वाबों को हमने दिलोदिमाग में खूब महसूस किया। पाश और अमरजीत सिंह चंदन से मिले बगैर उनकी कविताएं हमारे दिलों की धड़कनों में तब्दील हुयी। कविता में तब हम लोग हर पौधे को बंदूक की ऊँचाई दे रहे थे।

    गोरख जनता के आने के इंतजार में खुद ही दुनिया छोड़कर चले गये। क्यों गये, उस पर बहुत चर्चा हो चुकी है। जन संस्कृति मंच और इंडियन पीपुल्स फ्रंट के गठन में गोरख पांडेय का अवदान भी बड़ा था। लेकिन गोरख पांडेय के अवसान के बाद उनके साथी, जिनमें अपने शमशेरदाज्यू भी थे,कौन कहाँ छिटक गये, क्यों बिखर गये बामसेफ की तरह किसी ने खबर तक नहीं ली।

    हम तो हर वक्त जनता के लिये सिंहासन खाली बताते हैं और जुगाड़ लगाकर खुद उसपर काबिज होने की कवायद में स्मृतिभ्रंश के शिकार हो जाते हैं।

    और नतीजतन फिर वहीं नजारा।

    जैसा कि सुधा ने लिखा हैः

    जब गली में चीखती आवाज़ें गूँजी तुम नहीं उठे ।

    जब घर में सिसकने की आवाजें गूँजी तुम नहीं उठे

    जब खुद तुम्हारे हृदय में चीखने के स्वर गूँजे तब भी तुम नहीं उठे!!!!!!

    तो सुनो मेरी कोई पुकार तुम्हारे लिये नहीं है क्योंकि पुकारा सिर्फ़ जीवितों को जाता है और सुनकर सिर्फ वे ही दौड़ कर आते हैं जो हाथ पाँव कान और आवाज रखते हैं दिमाग और दिल की धधक धड़क के साथ जाओ तुम सो जाओ मैं तुम्हें नहीं किसी और को बुला रही हूँ अगर मेरी आवाज वहाँ तक पहुँचेगी तो वह जरूर उठेगा और मेरी आवाज थक गयी तो तो भी जिंदा लोग मेरी बात वहाँ तक पहुँचाते रहोगे ।

    कोलकाता में भी पहाड़ी लोग बसते हैं। इनमें से एक विजय गौड़ कोलकाता में सिनेमा आफ रेसीसटेंस फेस्टिविल के मौके पर सपरिवार मिले तो पूछा उन्होंने कि कोलकाता में कब आये। जब मैंने कहा कि मैं तो तेईस साल से कोलकाता में हूँ, उन्हें यकीन नहीं आया। बोले, हम तो आपको अब भी पहाड़ में रहते हुये मान रहे हैं।

    सही मायने में 1979 से पहाड़ छोड़े हुये होने के बावजूद अब भी मैं पहाड़ों, घाटियों,  नदियों से घिरा हुआ हूँ और मैदानों के रंग बिरंगे तिलिस्मों से बाहर हूँ। लेकिन मैं न तो खांटी बंगाली हूँ और न खांटी पहाड़ी।

    हम नैनीताल में बृजमोहन शाह के नाटक त्रिशंकु का मंचन करते रहे हैं और हो सकते हैं तबसे अबतक खांटी त्रिशंकु ही बने हुये हैं।

    कोलकाता में मैं और राजीव शायद ऐसे दो पहाड़ी रहते हैं जिन्हें पहाड़ में कोई पहाड़ी मानने को तैयार ही न हों। नागपुर से लौटते हुये मैं सविता के साथ घर पहुँचने के बजाये, नये कोलकाता में राजीव के घर चला गया।

      

    About The Author

    पलाश विश्वास। लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। "अमेरिका से सावधान "उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना ।

    दीदी अपनी केशरिया हुई जाई रे।

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    दीदी अपनी केशरिया हुई जाई रे।


    एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

    दीदी अपनी केशरिया हुई जाई रे।


    चंचलमति लक्ष्मी की तरह दीदी ममता बनर्जी की राजनीति बड़ी अस्थिर है।उनके राजनीतिक दर्शन का एकमात्र स्थाई भाव है कट्टर माकपा विरोध।जो दरअसल उनकी पूंजी है और सफलता की कुंजी है।दीदी अपने राजनीतिक वक्तव्यों में कट्टर वामपंथी तेवर की जनपक्षधरता को शोकेस करती रही हैं और उनके मौजूदा अपराजेय प्रतिपक्षविहीन जनाधार का निराधार आधार भी यही है।बाकी विचारधारा और सिद्धांत से दीदी का लेना देना कोई नहीं है।इस्तीफा से लेकर आत्महत्या तक की राजनीति करने वाली दीदी जंगी भूमि आंदोलन के मार्फत सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने की तैयारी में राजनीति की मजबूत खिलाड़ी बन गयी हैं और अरविंद केजरीवाल की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद सत्ता में मोदी विकल्प बनने की अंधी दौड़ में अपनी बढ़त बनाये हुई हैं।


    बंगाल विधानसभा में पेश मां माटी मानुष सरकार का बजट पूरी तरह कारपोरेट बजट निकला।वित्तमंत्री अमित मित्र ने खैरात बांटने का सिलसिला जरुर जारी रखा है लेकिन विकास का माडल निजी पूंजी केंद्रित है।कर्ज के बोझ और खस्ताहाल राजकोष के बहाने बाजार के पैसे से विकास की रुपरेखा तैयार की गयी है जो डिटो गुजरात के मोदी का पीपीपी माडल है।


    खबरों के मुताबिक पश्चिम बंगाली की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आज नई दिल्ली में अन्ना से मिलकर बेहद खुश थीं । आदर में अन्ना के पैर छूने पहुंची ममता को अन्ना रोकते रहे लेकिन ममता ने 4 बार पैर छुए और सत्कार की पूरी तसल्ली होने पर रुकीं।

    समाजसेवी अन्ना हजारे आज दिल्ली के टीएमसी दफ्तर पर ममता से मिलने पहुंचे थे। अन्ना के आने पर ममता आफिस के बाहर अगवानी के लिए आ गईं। अन्ना की गाड़ी ज्यों रुकी ममता गाड़ी के दरवाजे पर जा पहुंची, अन्ना ने ममता को नमस्कार किया तभी ममता अन्ना का पैर छूने झुक गईं।

    आखिरकार चार कोशिशों के बाद ममता को पूरी तसल्ली हुई की उन्होंने अन्ना का चरण स्पर्श कर लिया है।हाल ही में अन्ना ने कहा कि आम आदमी पार्टी के मंत्रियों को ममता से सादगी सीखनी चाहिए।

    अबकी दफा दिल्ली जाते हुए दीदी ने दिल्ली में सत्तादखल करने की हांक नहीं लगायी,यह महत्वपूर्ण है।उलट इसके वे अब केंद्र में स्थाई सरकार की वकालत कर रही हैं।जाहिर है कि कांग्रेस अब स्थाई सरकार दे नहीं सकती और न उस स्थिति में दीदी अब कांग्रेसी गठबंधन का हिस्सा बन सकती हैं। तीसरे मोर्चे में माकपाई बढ़त के बावजूद उससे दीदी स्थाई सरकार की उम्मीद रख ही नहीं सकतीं।जाहिर है कि उनका आशय मोदी और भाजपा से है।


    कांग्रेस और माकपा पर तीखे प्रहार का सिलसिला जारी रखने के बावजूद दीदी ने नरेंद्र मोदी और भाजपा के बारे में कुछ भी टिप्पणी नहीं की है।


    देशभर में अन्ना दीदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए प्रचार अभियान  शुरु करने वाले हैं।इस मुलाकात में इसकी ही तैयारियों को फाइनल किया गया।दीदी के साथ साझा प्रेस कांप्रेस करके अन्ना इसकी औपचारिक घोषणा करने वाले हैं।



    समझा जा रहा था कि बंगाल में अल्पसंख्यक वोट बैंक के सहारे पैतीस साल के वाम शासन का अवसान करने वाली अग्निकन्या अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल की रेलमंत्री बनने के अतीत और बंगाल में भाजपा को दमदम और कृष्णनगर लोकसभा सीटें राजग गठबंधन  के तहत देने के अतीत के बावजूद नये सिरे से केशरिया रंग से होली नहीं खेलने वाली हैं। लेकिन सामने वसंत है और बंगाल से जाते जाते शीत अभी विदा नहीं हुआ है।लेकिन जब शीत है तो वसंत भी आखिर आना है।


    लाल रंग से घृणा और एलर्जी है दीदी को,इसीलिए राइटर्स उठाकर हुगलीपार ले गयी दीदी।केशरिया से दीदी की कोई तबीयत खराब होती है या किसी तरह की एलर्जी है,इसका कोई सबूत मिला नहीं है।


    बंगाल में मां माटी सरकार के सामने शारदा फर्जीवाड़ा प्रकरण से लेकर तमाम बलात्कारकांडों,मानवतस्करी,राजनीतिक हत्याकांड और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिर जाने के बावजूद दीदी ने कामयाबी से विपक्ष के तमाम तोपखाने खामोश कर दिये हैं।

    वोटबैंक साधने और चुनाव मशीनरी बनाने की कला में अब दीदी वामपंथियों से ज्यादा पारंगत हैं।आम जनता की स्मृति बहुत कमजोर है।


    अगला विधानसभा वोट जबतक आयेगा,दीदी की सरकार गिरने की कोई आशंका है नहीं।इसलिए लोकसभा चुनाव में दीदी का फौरी लक्ष्य माकपा के साथ साथ कांग्रेस का नामोनिशान भी बंगाल से मिटाने का है।


    उनके समर्थक भी यही चाहते हैं,जिनमें अल्पसंख्यक नेता भी है।


    हावड़ा संसदीय उपचुनाव में जब भाजपा के साथ गुप्त समझौता दीदी ने किया तो बड़ी संख्या वाले हावड़ा के अल्पसंख्यक मतदाताओं ने उनका साथ नहीं छोड़ा।


    अब हिंदुत्व का वोट बैंक अपनी झोली में डालने के लिए दीदी अगर केशरिया भी दीखने लगे तो शायद उनके अल्पसंख्यक वोटबैंक को कोई फर्क नहीं पड़ेगा,बशर्ते कि मां माटी मानुष की सरकार अल्पसंख्यकों के हितों की योजनाओं का कार्यन्वयन करती रहे।


    दीदी कुल मिलाकर इसी रणनीति से चल रही हैं।


    अरविंद केजरीवाल से संघ परिवार को अपने भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अश्वमेध अभियान में समुंदर और हिमालय जैसी अड़चने नजर आ रही हैं।मोदी की चाय चर्चा और उनकी अछूत ओबीसी पहचान उकेरने के बावजूद उत्तरभारत की गाय पट्टी में भी केशरिया सुनामी न बन पाने के जमीनी हकीकत से अमेरिकी समर्थन,कारपोरेट बेताबी और मीडिया मुहिम के बावजूद संघ परिवाक की नींद हराम है।


    दूसरी ओर,क्षेत्रीयदलों के फेडरल फ्रंट भी आकार लेता नहीं दिख रहा है। दीदी क्षत्रपों के महामंच से बाहर हो गयी हैं क्योंकि वहां उनके कट्टर दुसमन वामपंथी नेता ही मंचासीन हैं और तीसरे विकल्प के प्रवक्ता भी।


    जय ललिता से गठजोड़ बनाकर बाकी क्षत्रपों को साध लेने,केरल में स्थिति बेहतर होने और त्रिपुरा में यथास्तिति बनी रहने,व्यापक वाम मोर्चे के गठन होने के आसार से वाम को मिटाना अब दीदी के बस में नहीं है बल्कि आप के उत्थान और नजरुल इस्लाम की अगुवाई में दलित मुसलमान मोर्चे के आकार लेने के कारण ध्रूवीकृत बंगाल में अनेक सीटों पर दो चार सौ वोटों के इधर उधर होने से नतीजे पलट सकते हैं।


    इसलिये हिंदुत्व के स्थाई वोटबैंक को साथ लेने का मौका गवांना दीदी का लिए भारी पड़ सकता है।


    बंगाल के वोटबैंक समीकरण के मद्देनजर अल्पसंख्यकों की प्रतिक्रिया की आशंका से ही प्रबल कांग्रेस विरोधी जिहाद के बावजूद,कांग्रेस के सौ सीटें जीत न पाने की प्रबल संभावना के बावजूद दीदी संघ परिवार के साथ खड़ा होते दिखना नहीं चाह रही थीं।जबकि केंद्रीय संघी नेतृत्व के अलावा खास तौर पर नरेंद्र मोदी ने दीदी के प्रति बेहद समर्थक रवैया बंगाल भाजपा के नेताओं की मर्जी के खिलाफ अपनाया हुआ है।


    अब राहुल गांधी ने बंगाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य की जगह धुर ममता विरोधी अधीर चौधरी को अध्यक्ष बनाते हुए कांग्रेस तृणमूल गठजोड़ की संभावना सिरे से खत्म कर दी है।


    अब चाहे तृणमूल समर्थकों को कितनी ही खुशफहमी हो बिना कांग्रेस या भाजपा के समर्थन के दीदी के लिए अन्ना हजारे के समर्थन के बावजूद विधानसभा की कामयाबी लोकसभा में दोहराना मुश्किल है।


    कांग्रेस की डूबती नैय्या में सवार होना मंहगा भी साबित हो सकता है।इसलिए दीदी के पास केशरिया चुनरी ओढ़कर इज्जत बचाने का सबसे बेहतर मौका है क्योंकि हर हाल में भाजपा वोट दस से लेकर पंद्रह प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है।


    एक दो सीटें भाजपा को तोहफे में देकर दीदी वामपंथियों को वापसी का कोई मौका देना नहीं चाहतीं।



    बदलते हालात में देशभर के अल्पसंख्यक संघी सरकार की हालत में समायोजन और समरस भाव में हैं।


    अल्पसंख्यकों की मजबूरी सुरक्षा के लिहाज से सत्ता के साथ रहने में ही है।


    बंगाल में भी अल्पसंख्यक नेताओं के तेवर बदलने लगे हैं।इसके मद्देनजर दीदी के इस दांव में ज्यादा जोखिम है ही नहीं।


    खासतौर पर पैंतीस साल तक वादलं का समर्थन कर रहे अल्पसंख्यकों का मोहभंग इतना ज्यादा है कि वे फिलहाल वामदलों के साथ चले जायेंगे,ऐसी आशंका दीदी को नहीं है।


    अब अन्ना हजारे का खेल भी समझ लीजिये। अन्ना ब्रिगेड की किरण बेदी और दूसरे लोग नमोमय भारत निर्माण में लगे हैं।अन्ना कांग्रेस के समरथन में नहीं हैं और न वे तीसरेमोर्चे के हक में हैं।अरविंद केजरीवाल को नंगा करने में भी वे जनता की अदालत में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।


    अपनी फार्मूलाबद्ध आर्थिक नीतियों को चुनाव घोषणापत्र में शामिल करने के दीदी के वायदे से ही अन्ना उन्हें जिसतरह प्रधानमंत्रित्व के लिए सर्वत्तम प्रत्याशी बताने लगे और उनकी आईटी विशेषज्ञ टीम जैसे दीदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए युद्धस्तर पर जुट गयी है,वह अरविंद केजरीवाल के उत्थान से कम हैरतअंगेज नहीं है।


    अब साफ जाहिर है कि दीदी और तृणमूल सांसदों के तार वैसे ही संघ परिवार के साथ जुड़े रहे हैं जैसे शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल के।


    मुजफ्परनगर दंगों के बाद अल्पसंख्यकों के वोटबैंक में संभावित धंसान एक मद्देनजर उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ पिता पुत्र के तार संघ से कितने जुड़े हैं और यूपी में सरकार बचाने के लिए वे और यूपी से उन्हें बेदखल करने के लिए बहन मायावती कब केशरिया खेमे में शामिल हों न हों ,कहना मुश्किल है।


    इसीतरह दीदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए संघ परिवार के अपूर्ण बहुमत के जरिये एक मुश्त कांग्रेस,आप और तीसरे मोर्चे को चारों खाने चित्त करने की अन्ना की इस केशरिया योजना के तहत केशरिया में कितनी फबेंगी दीदी,यह भी कहना मुश्किल है।


    वैसे भी पेक्षागृह के व्याकरण के मुताबिक परदे के आगे जो होता है,परदे के पीछे हूबहू वही हो,ऐसा कतई जरुरी नहीं है।फिर नेपथ्य की हर आवाज अमोघ आकाशवाणी भी नहीं है।


    जाहिर है कि दीदी के प्रधानमंत्रित्व का अन्नाई खेल नमोअश्व के लड़खडा़ जाने की हालत में संघ परिवार और उनके धुर समर्थक अमेरिका,विदेशी निवेशकों,बाजार , कारपोरेट इंडिया और कारपरेट मीडिया का अत्यंत सुनियोजित आपातकालीन प्लान बी है,जिससे एकमुश्त अरविंद केजरीवाल और तीसरे मोर्चे को रोक दिया जा सकें।


    नई दिल्ली से ताजा खबर तो यही है कि सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी से मुलाकात की। इस बीच अटकलें हैं कि हजारे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर ममता का समर्थन करेंगे।


    तृणमूल कांग्रेस के महासचिव मुकुल रॉय आज नव महाराष्ट्र सदन पहुंचे और यहां ठहरे हुए हजारे को अपने आवास पर ले गये जहां उनकी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की मुलाकात हुई। हालांकि रॉय और हजारे ने बैठक में हुई बातचीत का ब्योरा नहीं दिया। इस संबंध में घोषणा करने के लिए कल यहां एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन आयोजित करने की योजना है।


    हजारे पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वह ममता को अपना समर्थन दे सकते हैं और लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी के लिए प्रचार भी कर सकते हैं।


    आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्र ने 2014-15 के लिए लोक लुभावन बजट पेश किया है। राज्य सरकार ने इस बार किसी प्रकार के कर में कोई वृद्धि नहीं की है, बल्कि प्रोफेशनल टैक्स व स्टैंप ड्यूटी को राज्य सरकार ने कम कर दिया है। रियल एस्टेट उद्योग की मांग को देखते हुए राज्य सरकार ने यहां के स्टैंप ड्यूटी में एक फीसदी की कटौती करने का फैसला किया है।


    राज्य सरकार द्वारा स्टैंप डय़ूटी में छूट देने के प्रस्ताव से अब घर व फ्लैट सस्ता हो जायेगा। 25 लाख रुपये से अधिक कीमत वाली प्रोपर्टी पर राज्य सरकार की ओर से एक फीसदी अतिरिक्त स्टैंप ड्यूटी ली जाती है। इस राशि की मात्र को राज्य सरकार ने बढ़ा कर 30 लाख रुपये कर दी है। इसके साथ ही 30 लाख रुपये तक कीमत वाली प्रोपर्टी के लिए राज्य सरकार सात फीसदी स्टैंप ड्यूटी लेती थी, इसे कम करके छह फीसदी कर दिया गया है। इसके साथ मोर्टगेज लोन पर भी राज्य सरकार ने रियायत देने का फैसला किया है। किसी भी संपत्ति पर दूसरी बार मोर्टगेज लोन लेने पर चार फीसदी स्टैंप ड्यूटी देनी पड़ती थी, लेकिन अब से एक लाख रुपये तक के दूसरे मोर्टगेज लोन पर किसी प्रकार की स्टैंप ड्यूटी नहीं ली जायेगी। इसके साथ ही राज्य सरकार ने प्रोपर्टी रजिस्ट्रेशन के लिए ई-स्टैंपिंग सिस्टम शुरू करने का फैसला किया है, जिसे आगामी एक वर्ष के अंदर सभी 246 रजिस्ट्रेशन कार्यालय में लागू किया जायेगा।


    प्रोफेशनल टैक्स का दायरा बढ़ा:   प्रोफेशनल टैक्स के दायरे को 7000 रुपये से बढ़ा कर 8500 रुपये कर दिया गया है। अर्थात् एक लाख रुपये वार्षिक आमदनी करनेवाले लोगों को अब किसी प्रकार का कर नहीं चुकाना होगा। इसके साथ ही राज्य सरकार ने यहां के विभिन्न क्षेत्रों में प्रोफेशनल के लिए भी कर में छूट देने का फैसला किया है। पहले 18,000 रुपये वार्षिक कुल आमदनी करनेवाले को प्रोफेशनल टैक्स देना पड़ता था, लेकिन इसकी मात्र को अब बढ़ाते हुए 60 हजार रुपये कर दिया गया है। अर्थात् 60 हजार रुपये तक कुल वार्षिक आमदनी करनेवाले को किसी प्रकार का प्रोफेशनल टैक्स नहीं देना होगा। इसके साथ ही छोटे उद्यमी अर्थात् पांच लाख रुपये तक वार्षिक कारोबार करनेवाले उद्यमियों को कोई प्रोफेशनल टैक्स नहीं देना होगा।

    वैट प्रक्रिया को और सरल करने पर जोर : वैल्यू एडेड टैक्स (वैट) के अंतर्गत पंजीकरण प्रक्रिया को और सरल करने के लिए राज्य सरकार ने नया सिस्टम शुरू करने का फैसला किया है। इसके माध्यम से लोग स्वयं ही वैट के लिए पंजीकरण करा पायेंगे. इसके साथ ही वैट पंजीकरण के समय न्यूनतम 50 हजार रुपये के सेल इंवॉयस जमा करने के नियम को भी हटा दिया गया है। अब पंजीकरण के समय यह इंवॉयस जरूरी नहीं होगा। इसके साथ ही राज्य में मैनुफैरिंग यूनिटों के विकास के लिए राज्य सरकार ने पुराने प्लांट व मशीनरी के लिए इंपुट टैक्स क्रेडिट शुरू करने का फैसला किया है। इसके अलावा सभी डीलरों को इंटर-स्टेट्स सेल्स पर प्रि-एसेसमेंट रिफंड दिया जायेगा, इससे यहां के निर्माणकर्ताओं को काफी लाभ होगा।


    सिलीगुड़ी में स्थापित होगा एप्पेलेट एंड रिविजनल बोर्ड : उत्तर बंगाल के लोगों की सहुलियत के लिए राज्य सरकार ने सिलीगुड़ी में एप्पेलेट एंड रिविजनल बोर्ड का गठन करने का फैसला किया है, इससे अब उत्तर बंगाल में स्थित छह जिले के लोगों को इससे संबंधित मामलों के लिए कोलकाता आने की जरूरत नहीं होगी।


    बड़े टैक्स-पेइंग डीलरों के लिए अलग यूनिट :राज्य के बड़े टैक्स-भुगतान करनेवाले डीलरों की सुविधा के लिए राज्य सरकार ने अलग से वृहद टैक्स पेयर यूनिट स्थापित करने का फैसला किया है। इसके तहत यहां एकल नोडल अधिकारी के रूप में कार्य करेगा, जहां कारोबारी एक जगह पर ही वैट, सेल्स टैक्स, सीएसटी, प्रोफेशनल टैक्स व एंट्री टैक्स जमा और इसके बारे में सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।


    महिलाओं के लिए विशेष छूट : राज्य सरकार ने महिलाओं के विभिन्न उत्पादों पर विशेष छूट देने का फैसला किया है। 25 रुपये तक के सैनिटरी नैपकिन, हेयर बैंड, हेयर क्लिप के लिए लगनेवाले कर को 14.5 फीसदी से कम करके पांच फीसदी कर दिया गया है। इसके अलावा एलपीजी स्टोव की कीमत किसी भी सूरत में 1000 रुपये से अधिक नहीं होगी।


    आर्थिक समीक्षा में विकास का दावा : विधानसभा में पेश किये गये आर्थिक समीक्षा 2013-14 में विभिन्न क्षेत्रों में विकास का दावा किया गया है। राज्य सकल घरेलू उत्पाद की दर 7.71 फीसदी रही, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 4.9 फीसदी है। इसके साथ ही योगदान, निर्माण, कृषि व सेवा के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर से राज्य स्तर में ज्यादा विकास हुआ है। राज्य के लोगों को प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है. इसके साथ ही रोजगार सृजन में भी सफलता हासिल की गयी है।


    Anna Hazare chooses Mamata over Kejriwal to support in Lok Sabha elections

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    Anna Hazare chooses Mamata over Kejriwal to support in Lok Sabha elections

    SUMMARY

    Anna said that he was supporting Mamata as she responded to his 17-point agenda.
    Social activist Anna Hazare says he backs Mamata Banerjee for her ideas. (PTI Photo)Social activist Anna Hazare says he backs Mamata Banerjee for her ideas. (PTI Photo)

    Social activist Anna Hazare on Wednesday declared his support to West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee, who apparently has ambitions outside the state in the coming Lok Sabha election, and snubbed his one-time protege by saying that he will not support Arvind Kejriwal.

    The anti-graft leader said that he was supporting Banerjee as she responded to his 17-point agenda and agreed to implement it.

    “I had written a letter with my 17-point demands to political parties. Didi (Banerjee) responded to it and agreed to implement it. I had also sent a letter to Arvind Kejriwal, but he did not respond to it. So there is no question of supporting him,” Hazare said at a joint press conference with Banerjee.

    His support to Banerjee comes at a time when his relations with his one-time aide Kejriwal has strained. He had also criticised Kejriwal for taking government accomodation after becoming the Chief Minister.

    Hazare said that he supported Banerjee not as a party, but as an individual he admired and that he also backed her views on society and country.

    “As the Chief Minister, she could have spent a luxurious life like others. But she stays in a small house, uses no government car. This is sacrifice without which the country and the society cannot progress,” Hazare said, adding that four months back he had written to all political parties about his 17-point agenda and Banerjee responded to it positively.

    The 17-point agenda included important legislations like protection to whistle-blowers. It also demanded to make government decisions taken in all matters, except defence and foreign affairs, public after two months to bring in more transparency.

    He demanded making villages as the nucleus before chalking out policies, land acquisition from farmers without their approval, major electoral changes like Right to Recall and Right to Reject, opposition to privatisation of rivers and reservoirs, ending disparity between the rich and the poor, bring back black money and have a new taxation policy.

    When asked whether he would oppose Kejriwal and BJP’s Prime Ministerial candidate Narendra Modi, Hazare said he would neither support nor oppose them.

    The anti-graft activist, who had led a movement for Lokpal, said he would campaign for “clean” candidates fielded by Banerjee.

    “In 2014 (Lok Sabha) elections, whichever candidate Didi fields, I will support them,” Hazare said.

    Advocating for a change in the political system, he said that even if Banerjee wins 100 seats, the task of bringing in change will be much easier under her leadership.

    Banerjee, on her part, said that most of the points have already been implemented by her party in her state after Trinamool Congress formed the government.

    “There are issues over 2-3 points like the point on Land Acquisition, but we will discuss on these issues,” she said.

    When asked from where will the party get 100 MPs, she said, “We have 42 seats in Bengal, but we will contest from Assam, Tripura, Arunachal Pradesh and Manipur. In North and South India, we will talk to Anna and contest after taking his advice,” Banerjee said.

    Banerjee also said that she will not support UPA or the NDA in the upcoming election.

    Hazare said that he would travel across the country from March and mobilise people for a clean government so that a pressure is built.

    “In 2019 elections we will have independent candidates across the country and I work on it,” he said.

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