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निरंकुश सत्ता के चक्रव्यूह में हम निःशस्त्र अभिमन्युओं की जमात हैं और भस्मासुर का जलवा अभी बाकी है! पलाश विश्वास

Next: हवा खराब है तो वोटरों से माफी मांगने लगी दीदी! हवा क्रमशः वाम कांग्रेस गठबंधन की मजबूत होते देखकर,रोज रोज के मीडिया धमाकों और मुसलिम वोट बैंक के टूटने से दीदी की भाषा बदल गयी है। बंगाल में हिंदुत्व एजंडा के हक में कोई खड़ा नहीं है और न ही फिजा में दंगाई आगजनी है,इसकी खास वजह है बाकी देश के मीडिया के विपरीत हिंदुत्व को बंगाल में मीडिया का कोई समर्थन नहीं है। जाहिर है कि जनमत का आइना भले मीडिया को आप न कहे,न जनसुनवाई का कोई मच आप इसे माने,इस मुक्तबाजार में मीडियाबहुत बड़ी ताकत है और वह चाहे तो निरंकुश सत्ता की भी चूलें हिला कर रख दें। एकसकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप
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निरंकुश सत्ता के चक्रव्यूह में हम निःशस्त्र अभिमन्युओं की जमात हैं और भस्मासुर का जलवा अभी बाकी है!

पलाश विश्वास

झारखंड के हमारे प्रिय फिल्मकार मेघनाद की एक बेहतरीन फिल्म हैःDevelopment flows from the Barrel of Gun.

कृपया मोका लगे तो यह फिल्म जरुर देक लीजिये तो आपको पता लगेगा कि देश में लोकतंत्र का किस्सा कुल क्या है और कानून का राज,संविधान वगैरह वगैरह का मतलब जल जंगल जमीन से निरंतर उजाड़े जा रहे लोगोम के लिए क्या है।


हमने पालमपुर प्रवास के दौरान संजोग से मशहूर वकील प्रशांत भूषण से हुी अचानक मुलाकात में उनसे यही निवेदन किया था कि इस अभूतपूर्व संकट में रंगभेदी निरंकुश सत्ता के खिलाफ किसी विरोध,प्रतिरोध,आंदोलन की जब गुंजाइश नहीं है तो राजनीतिक विकल्प से कुछ बदलने वाला नहीं है।


इसी सिलसिले में हमने उनसे पूछा भी था कि आपने पार्टी बनेने की हड़बड़ी में जो भस्मासुर पैदा कर दिया है,उसे फायदा क्या हुआ।


प्रशांत जी जवाब देने वाले नहीं थे लेकिन इस सिलसिले में उनसे लंबी बातचीत हुई थी और हमने यह भी निवेदन किया था कि अलग अलग लड़कर हमें अब जीने की मोहलत भी नहीं मिलने वाली है।


जैसा कि हम सबसे कह रहे हैं ,हमने उनसे भी कहा कि जाति धर्म की छोड़िये,विचारधारा के स्तर पर भी अगर ग्लोबल हिंदुत्व के खिलाफ तमाम शक्तियां लोमबंद न हुई तो कुछ भी नहीं बचेगा।


गौरतलब है कि अब भी हम सबके प्रिय प्रशांत भूषण और उनके सहयोगी स्वराज अभियान चला रहे हैं।उनका यह स्वराज हमारी समझ से गांधीवाद की जमीन पर है,जिसका बड़ा हिस्सा अन्ना ब्रिगेड और अरविंद केजरीवाल ने संघ परिवार के खाते में डाल दिया है।बाकी हिस्सा कहां जायेगा,यह कोई नहीं जानता।


जाहिर है कि अब बाकी बचे खुचे स्वराजवालों को तय करना है कि वे खालिस गांधीवाद की जमीन पर खड़े होकर लडेंगे या खुद को संघ परिवार के साथ नत्थी कर देंगे।


क्योंकि अब यह भी संभव है कि संघ परिवार का अगला प्रधानमंत्रित्व का उम्मीदवार नरेंद्र भाई मोदी के बजाय धुर आरक्षण विरोधी अरविंद केजरीवाल हैं,जो मोदी से कहीं ज्यादा तानाशाह और लोकतंतात्रिक हैं।


नेतृत्व के संकट में संघ परिवार का इकलौता विकल्प हैं अरविंद केजरीवाल,कमसकम प्रशांत भूषण जी औययोगेंद्र यादव जी को इस बारे में ज्यादा ही पता होगा।


आज के अंग्रेजी दैनिक इकोनामिक टाइम्स में एक सर्वे छपा है,जिसके तहत नरेंद्र भाई मोदी के पक्ष में सात बड़े शहरों के पढ़े लिखे मध्यव्रग और उच्च मध्यवर्ग के लोग,जो मुट्ठीभर हैं,लेकिन उनका इतना सशक्तीकरण हो गया है कि जीवन के हर क्षेत्र में उन्हीका वर्चस्व है।मुक्तबाजार की अर्थ व्यवस्था और राजनीति,गलोबल हिंदुत्व का एजंडा और निरंकुश सत्ता की बुनियाद ये ही लोग हैं।


इसी के साथ इसी अखबार में अरविंद केजरीवाल का एक पूरा पेज इंटरव्यू छपा है,जिसका शीर्षक हैः

`WE ARE NOT AGAINST PRIVATE SECTOR,BUT CRONY CAPITALISM'

इसके अलावा उनका एक बयान भी अलग से खास खबर हैः

ONLY BJP Errors Keeping Congress Alive:Kejriwal


कांग्रेस का अंत चाहने वाले केजरीवाल को संघ परिवार से कोई ऐतराज नहीं है और न निजीकरण और गुजरात के विकास माडल से उन्हें खास परहेज है।


गौर करें कि केजरीवाल कांग्रेस को जिंदा रखने की भाजपा की गलतियों की बात कर रहे हैं तो ये गलतियां किसकी हैं जबकि दुनिया जानती है कि इस वक्त भाजपा में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के अलावा कोई तीसरा ऐसा शख्स नहीं है,जिसकी किसी भी स्तर पर चलती हो।


तो इन दोनों के नेतृत्व पर सवालिया निशान खड़ा करने और कांग्रेस के अंत के साथ निजीकरण के पक्षधर धुर आरक्षण विरोधी अरविंद केजरीवाल का इरादा क्या है,यह समझने वाली बात है।


इसके साथ ही यह समझना चाहिए कि वे मोदी को,संघ परिवार को और देश को क्या संदेश दे रहे हैं।


पंजाब में अगर आम आदमी पार्टी की जीत हो जाती है।तो संघ परिवार  केजरीवाल के बारे में क्या रुख अपनायेगा,इससे साफ हो जायेगा कि केजरीवाल की अलग दुकान कब तक चलेगी और वे किस हैसियत के साथ घर वापसी करेंगे।या क्या करेंगे।


खास बात यह भी है कि मोदी के बाद केजरीवाल ही इस देश के सत्तावर्ग और संपन्न नवधनाढ्य मध्यवर्ग का सबसे चहेता राजनेता है तो बाजार के लिए भी मोदी का विकल्प केजरीवाल है,कोई दूसरा नहीं।


निरंकुश सत्ता के चक्रव्यूह में हम निःशस्त्र अभिमन्युओं की जमात हैं और भस्मासुर का जलवा अभी बाकी है।


हमारे विद्वान मित्र आनंद तेलतुंबड़े का साफ तौर पर मानना है कि आरक्षण खत्म करने के सारे इंतजाम हो चुके हैं और अंधाधुंध निजीकरण उदारीकरण ग्लोगबीकरण के मुक्त बाजार में आरक्षण और कोटे से किसी को न नौकरी मिलने वाली है और न आजीविका चलने वाली है।


आरक्षण की लड़ाई लेकिन तेज हो गयी है क्योंकि आरक्षण की बुनियाद पर जाति व्यवस्था को कायम रखा जा सकता है।लोग आरक्षण हासिल करने के लिए जाति के नाम पर गोलबंद होते रहेंगे और जाति उन्मूलन इसतरह असंभव ही रहेगा।


संजोग से बाबासाहेब क एकमात्र पोती रमा बाई के पति आनंद ने आरक्षण के बिना इस मुकाम पर पहुंचे है कि सत्ता वर्ग भी उनकी अनसुना नहीं करता।आनंद और रमाजी दोनों मानते हैं कि अंबेडकर की भूमिका की हमें वस्तुनिष्ठ तरीके से समीक्षा करनी चाहिए और अंध भक्ति के बजाये बाबासाहेब के बुनियादी कार्यक्रम जाति उन्मूलन को बदलाव का प्रस्थानबिंदू मानकर देश को,दुनिया को गोलबंद करना चाहिए।आनंद यह भी मानते हैं कि बाबासाहेब के नाम पर धंधा करने वाले आरक्षण की सारी मलाई चाखने वाले राजनेता और सत्ता वर्ग में अपनी हैसियत बना चुके जातियों के सिपाहसालार से सिपाही लोग हरगिज यह होने नहीं देगे और जाति उन्मलन की चुनौती बाबासाहेब के समय की तुलना में आज ज्यादा कठिन है क्योंकि सवर्ण जातियां भी आरक्षण की आड़ में राजनैतिक वर्चस्व में हिस्सेदारी की जबर्दस्त लड़ाई लड़ रहे हैं।


हमारे युवा मित्र ज्ञानशील, अशोक बसोतरा, अभिराम मल्लिक, संजीव रामटेके, संजय सोमकुंवर,शरदिंदु विश्वास,प्रमोद कांवड़े जैसे लोग नंद की तरह मशहूर नहीं हैं।वे उतने भी मशहूर नहीं हैं जितना मेरे भाई दिलीपमंडल,मित्र उर्मिलेश या महानायक के संपादक सुनील खोपड़गड़े।इन तमाम लोगों की समानता यह है कि ये लोग बाबासाहेब के मिशन के लिए राष्ट्रव्यापी समामाजिक आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता हैं और देश के हर हिस्से मेें ऐसे तमाम युवा साथी हैं जो जाति और मजहब के दायरे से बाहर बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे को लागू करना चाहते हैं।

मसलन छत्तीसगढ़ के प्रमोद कांवड़े कह रहे थे कि यह अजीब है कि देश के बहुजनों को न देश से कोई लेना देना है और न देश की हलचलों से,मुद्दों,मसलों से।वे आरक्षण और जांत पांत के अवलावा कुछ भी नहीं सोचते।


छत्तीसगढ़ के प्रमोद कांवड़े कह रहे थे किअत्याचार और उत्पीड़न उनके लोगों के ाशत होता है तो उनकी प्रतिक्रया देशव्यापी होती है लेकिन आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, हिमालयी लोगों ,कश्मीर और मणिपुर के भारतीय नागरिकों पर टूटते कहर के खिलाफ उनकी कभी कोई प्रतक्रिया नहीं होती।


छत्तीसगढ़ के प्रमोद कांवड़े कह रहे थे कि जबतक ऐसा होता रहेगा,सत्ता की राजनीति की पैदल फौज बने रहने के सिवाय़उनकी गुलामी के ्ंत का कोई रास्ता नहीं है।


यह बदलती हुई सोच जमीन के पकते रहने का सबूत है और पकी हुई जमीन की खुशबू हम न महसूस कर सकें तो हम लोगों की जड़ों का ही दोष है।


देश के विश्वविद्यालयों में जिस तेजी से बाबासाहेब का मिशन वायरल हो रहा है,वह देश में जनपक्षधर ताकतों की नयी गोलबंदी के केत तैयार कर रहा है।अब हमें तय करना है कि हम किसके हक में खड़े हैं और आखिरकार हम लड़ाई करने को तैयार हैं या मेरे जाने का इंतजार करते हुए नर्क जीते रहेंगे।


Development flows from the Barrel of Gun.

Police repression and administrative high-handedness is becoming a common phenomenon in the country today, when the project-affected people protest against development-induced displacement and demand justice on account the serious consequences. It's but an irony that instead of ameliorating the sufferings of the displaced and the project affected people and working for their humane and just resettlement and rehabilitation, the Government machinery resorts to brutal violence on them whose lives are already at stake on account of the development projects. This is a clear case of human rights violation. While such acts of the state sponsored barbarism are to be condemned and the guilty punished by the court of law, one must understand how such crimes are committed by the law enforcing authorities on the just demands and rights of the people so that public opinion is created against such oppression.


In a recent orientation programme to the Govt. officials from various Ministries on resettlement and rehabilitation of the project displaced and affected people, organized by Council for Social Development and held at Indian nternational Centre, New Delhi, the author was asked to present some case studies on the phenomenon and impact of displacement. He showed the participants a video film on human rights violation at the behest of development projects, entitled "When people assert their rights over land, water and forest DEVELOPMENT FLOWS FROM THE BARREL OF THE GUN". It was a video clipping of five cases of police tyranny on the displaced and the project affected people in five different states. They were the Bauxite Mining at Kashipur in Orissa, the Commercial Harbour at Umbergaon in Gujarat, the Steel Plant at Nagarnar in Chhattisgarh, the World Bank Forestry Project at Mehendikhera in Madhya Pradesh and the Koel-Karo Hydel Power Project in Jharkhand. Ten minutes of each video clipping was so powerful that the viewers were moved nearly to tears. There was a good discussion on the film at the end and a desire was expressed that greater awareness to such realities be brought about in the civil society for appropriate action. It indeed was an eye opener to all the present.


An effort is made here to present these case studies in the written form to understand how the state repression is same all over the country in displacement situations. The content of the presentation is taken almost verbatim from the script of the film to make it more real and effective. But certainly nothing like viewing the film itself to understand the extent and nature of human rights violation all in the name of national development. This video film is directed and produced by Biju Toppo and Meghnath of AKHRA, Jharkhand. Dr. Ram Dayal Munda is the overall narrator. He describes and comments on each of the cases briefly. The rest of the story is told by a number of social activists, professionals and the victims themselves.

Apr 07 2016 : The Economic Times (Kolkata)

ET EXCLUSIVE - AAP LEADER DENIES BIG POLITICAL AMBITIONS - Only BJP Errors Keeping Congress Alive: Kejriwal


New Delhi:

Rohini Singh & Akshay Deshmane





Delhi CM says BJP frittering away mandate, that voters see no hope in GOP

Congress is becoming redundant in national politics and is being only kept alive thanks to the many mistakes of the Bharatiya Janata Party government, Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal told ET in an exclusive interview where he was severely critical of the Narendra Modi-led saffron party and almost dismissive of the Sonia-Rahul Gandhi-led Congress.

"People don't see hope in Congress...whatever votes they will get will be from blunders by BJP...maybe BJP can provide a future to Congress...otherwise I don't see a futu re," Kejriwal said.

In a candid and exhaustive interaction with ET, Kejriwal strongly critiqued both the national parties -BJP and Congress -but insisted he has no bigger political ambitions now.

He said BJP was never serious about economic progress and that "promoting divisiveness" is its biggest agenda. "Vikas was a jumla," Kejriwal said, referring to BJP's general elections campaign that was centred around the message of development.

Kejriwal told ET that the many schemes promoted by the prime minister are "not succeeding".



Apr 07 2016 : The Economic Times (Kolkata)

ET TNS SURVEY - Modi Still Topper Among the Indian Middle Class


New Delhi:

Our Bureau





The urban salaried between the ages of 24 and 50 in India's seven biggest cities still believe in Modi, the BJP government and their dreams of achhe din

Prime Minister Na rendra Modi still holds sway over members of his core constituency -the urban salaried, especially those living in India's seven biggest cities. The government's overall approval ratings are still running high almost two years after the Modi-led Bharatiya Janata Party (BJP) swept to power at the head of a robust majority , according to the findings of an ET-TNS survey .That's despite getting caught up in various controversies and the failure to make progress on key elements of its reform agenda.

The government has an overall approval rating of 86% on economic performance, while 62% say that it has delivered on job creation and 58% ex pect the future to be better. In other words, they still believe that `ach he din aaney la hain'. wala hain'.

Perhaps the fin ding that reveals the most about those surveyed is their response to questions about the controversy over nationalism and sedition as exemplified by the Jawaharlal Nehru University protests. Half of them (46%) believe that the controversy is the Congress' fault and more of them (52%) hold the view that the government has taken the right action in the matter.

It's important to note that the findings don't reflect sentiment across the country or among different population segments, particularly during the current election season. It should be read for what it is -a sense of the government's popularity across a segment that's seen as be ing strong suppor ing strong supporters of Modi and the BJP . To that end, our surveyors fanned out across Delhi, Mumbai, Chennai, Bengaluru, Kolkata, Hyderabad and Ahmedabad, covering a sample size of more than 2,000 people between the ages of 24 and 50 with an annual family income between ` . 3 lakh and `. 20 lakh. About a fifth of those surveyed were women.. ` One key finding: Modi is vastly more popular than Congress VicePresident Rahul Gandhi. On a scale of one to 10, Modi gets a score of 7.68 against a lowly 3.61 for Gandhi. Finance Minister Arun Jaitley does better than him at 5.86. As much as 41% of those surveyed gave the PM a rating of 9 or 10.

Among the seven cities, there is a split. Ahmedabad is most wholehearted in support of the government led by Modi, the former Gujarat chief minister for whom the state was a launch pad onto the national stage.




Apr 07 2016 : The Economic Times (Kolkata)

ET EXCLUSIVE Q&A - `We Are Not Against Private Sector, But Crony Capitalism'

ARVIND KEJRIWAL CHIEF MINISTER, DELHI






Delhi CM Arvind Kejriwal sounds hopeful of Punjab election as he feels people are giving extraordinary mandate when they have an alternative. In a chat with Rohini Singh & Akshay Deshmane, the CM talks about the key difference between PM Modi's Gujarat model and the Delhi model, along with good governance, role of private sector, JNU controversy and Congress, BJP's role in politics. Excerpts:

Are you confident of a sweeping victory for the Aam Aadmi Party in Punjab as polls have predicted?

People are sick of the political system and the players in the system ­ BJP, Congress, Akalis. They want a good alternative and those who can deliver. People have seen the governance in Delhi. Now that people have an alternative they are giving an extraordinary mandate. First, it was in Delhi. Now, in Punjab, the latest survey shows 100 out of 117 seats (for AAP). In elections so far anti-incumbency used to play a big role. People were not voting for a party, people were always voting against a party. Samajwadi Party came to power with a massive mandate...about 240-250 seats. Now people will vote to oust it. They won't vote in favour of anybody.

Will you be the chief ministerial candidate in Punjab?

That's a hypothetical question. We are not going to project anyone as the chief ministerial candidate.This issue hasn't been discussed in our party.

What are the key differences between your Delhi model and the Gujarat model of governance?

Modiji's Gujarat model is more PR-driven. You people are now only writing about the holes in the Gujarat model. Ab toh us mein kai saari gadbadiyan nazar aa rahi hain (Now it seems to be full of flaws).The Delhi model is transparent. We aren't selling it, but it's visible to all.

Apart from transparency, what is the difference between the way you're governing Delhi and the way Narendra Modi governed Gujarat as chief minister?

If you look at our budget, everyone is completely surprised. We have reduced electricity tariffs, made water free, given the highest compensation to farmers. So there is massive expenditure on subsidy and investments. One would assume taxes would increase, but taxes are going down. We are saving money elsewhere and spending on people-friendly schemes. This is the biggest difference between the Gujarat model and the Delhi model.The Gujarat model is predominantly dependent on crony capitalism. They have made five-seven people very rich...such as Ambani-Adani. We are investing in human capital. We are focusing on education. If we educate our people we can wipe out poverty in one generation. Education will also change the politics of this country in a major way. The third factor is participatory governance. Accessibility and participation of people in governance, decisionmaking is the key feature.

Is Arvind Kejriwal against Ambani, Adani?

We are against crony capitalism. Whether it is Congress or BJP, businesses of Adani or Ambani run.Their businesses don't run on account of giving good products, but because of collusion with government.To get profits by wrong means. We are against that.We are not against private sector. So many benefits we have given to traders. What is the private sector? It is the people of this country. We want to do good for the people, so how can there be any animosity towards the people.

What role do you see for the private sector?

We feel that the government should not interfere too much in private sector. It should be clear as to what work the government should do and what private sector should do. Everything was mixed up by them. Like transport, for instance. There is absolutely no reason why DTC (state-run Delhi Transport Corporation) should be a predominant player. After our government was formed, bureaucrats in this building said purchase 2,000-4,000 more buses. I said encourage private sector into this. Now all of this is going to the private sector. Why should the government be involved in running buses?

At your talk at CII, you had said private sector creates jobs. So you are not against capitalism, but crony capitalism...

Obviously not. Who can be?

What do you think about the Congress? Is it an effective opposition to the BJP?

I think the Congress is steadily becoming redundant in politics. There are two things. People's faith in the existing political set-up has finished. So when they vote, they do it for defeating (incumbents).Second, from who do people feel hopeful? People are not feeling hope from Congress. The second thing is very clear. Today the condition of Congress is such that it is not visible anywhere. Their house is in disorder. Whatever votes they may get, that's because of blunders being committed by the BJP.Congress is bad, but divisive politics played by BJP is not being liked by people. I was reading a story on some website which said students in Assam's colleges are not liking BJP's politics ­ they (BJP leaders) raise issues about cow, Bharat Mata and not the country or development. They don't have a blueprint for taking the country forward. Congress' arrogance had come in 10 years, BJP took two years. If BJP keeps going this way, then maybe BJP can provide a future to Congress, otherwise I don't see any future.

Do you think Congress has been unusually timid in its response to the fall of two of its governments?

Even I found that. I was thinking ki Congress ko kya ho gaya (what has happened to the Congress)?

Arunachal ki sarkar tod di, Uttarakhand ki sarkar gira di (Arunachal, Uttarakhand governments were pulled down), then why isn't Congress protesting as much as they should have? Only BJP can provide oxygen to Congress because of its misdeeds. BJP's divisive politics has put off people. Of its 31% vote share, there are only 10-15% who might subscribe to its divisive politics. But the rest did not vote for BJP's divisive politics. The rest were sold on Gujarat model. They are disappointed.

You seem to be taking an ultra-nationalist stance on Pathankot, whereas the BJP appears to be taking a reasonable one...

We are not against cooperation, we want engagement. This should not be treated as we are against engagement. Talk to them (Pakistan). But calling Pakistan's investigative agency for probing terror here means aap unke saamne let gaye ho (you have capitulated to them). There is a difference. Talks happened at secretary, foreign minister and Prime Minister levels. I want to say that engage in talks, but when you're saying that ISI is doing all this, you are calling them here to probe. You gave them access to the airbase! This is not engagement, this is subservience.

What is so wrong in letting them (the Pakistan team) investigate?

Tell me, when the team arrived, was there a possibility that after seeing all that the team will say that India has given us so much of evidence that now we are convinced that we were involved. So what are you doing...are you foolish or is there another agenda?

What do you think is the agenda?

I really don't know. I am completely flabbergasted. So you think there is something bigger behind this?

I think there is something much bigger behind this.Something transpired between Nawaz Sharif and the Prime Minister when they met in Lahore. Vo kewal Happy Birthday bolne ke liye nahin jaayenge (The PM wouldn't have gone just to say Happy Birthday).Because it's a sensitive matter I don't want to say more than this. Par dono ke beech main kuchh toh deal hui hai (But the two have surely struck some deal).

Are you interested in becoming the PM candidate in 2019?

(Laughs) I have no such ambitions and intentions. I did not have ambitions of becoming the CM either.As you all know we had started an agitation and had they passed our Jan Lokpal bill they wouldn't have had to deal with the Aam Admi Party or us. We have no such ambitions.

But if you have some ambitions, what is wrong in stating that?

But I don't have ambitions. If I had ambitions I would state that upfront...as you rightly said I am very frank. (laughs)

Yet, some people who claim to know you say you are intensely ambitious...

(Laughs) That must have been said by Yogendra Yadav, etc. There is nothing wrong with being ambitious. Par jab nahin hain toh nahin hain (But when I am not, I am not).

Your party is seeking votes in your name in Punjab, but can a non-Sikh person become the CM of Punjab?

It's a hypothetical question. My commitment is to Delhi.

But the votes are being sought in your name in Punjab.

See, leadership is important. There is absolutely no doubt. Like, in Delhi everyone works...Manish (Sisodia), Satyendar Jain...our officers are all working 247 but people recognise the face. To that extent people have hopes from the leadership.

What do you think are the mistakes Modi has made after a fantastic mandate?

I broadly think that within two years they have turned farmers, traders, students, teaching community, Dalits against them. Minorities were anyway against them from the beginning.

There is strong hatred they have sown in the hearts of these communities. Industry is speaking against them privately. Industry keh rahi hai yaar inhone economy ka kabaada kar ke rakh diya (Industry is saying they have wrecked the economy).The speed at which they are making enemies...Second, their politics is opportunistic and full of contradictions. Vo kehte hain ki Jammu Kashmir main jo Bharat Mata ki jai bolega uski pitai hogi aur Jammu Kashmir ke bahar jo nahin bolega uski pitai hoga (They say in Jammu & Kashmir whoever says `Bharat Mata ki Jai' will be thrashed, and in the rest of the country whoever doesn't will be thrashed).In Jammu, BJP believes Afzal Guru is a patriot and in JNU it thinks Afzal Guru is anti-national. In JNU, those who raised those slogans ­ those boys from Kashmir ­ who were they? Vo ladke kaun the (Who were those boys)? It's a mystery. Vo ladke pakde kyun nahin gaye (Why weren't those boys nabbed)?

It's a mystery. Vo ladkon ko kisne bheja tha (Who sent those boys)? It's a mystery. Central government has RAW, IB, Delhi Police, army, CBI but the entire machinery has not been able to catch those boys.So obviously there is suspicion that BJP sent those boys who raised anti-India slogans. They were set up by IB to create chaos in Delhi.

Why would the BJP do so?

To polarise. To divide the society. Vo jaanboojh ke zabardasti Bharat ke khilaaf naare lagwati hai BJP (BJP orchestrates anti-national slogans). Delhi Police has the photographs of these boys. Why haven't they been caught?

Are you saying that the entire JNU controversy was set up by the BJP?

Yes. I am saying this on record.

Will you take action since your report has named news channels and social media users?

Yes, we will take action. It's just that we want the case to be foolproof so we are collecting evidence from everywhere, getting more videos forensically examined. Maybe in a week or ten days the cases will be filed.

What is your view on all these schemes that the central government has announced ­ Make in India, Digital India, Start Up India, Stand Up India?

(Interjects) Sit down India, Sleep India (laughs)

Well, do you think these are good initiatives? Or do you think these are good ideas but badly implemented?

It will be difficult for me to get into their intentions but obviously nothing has taken off and they are just talking. People are fed up of this talk. People are looking for results and there are none. It won't be right of me to say they had no intention to deliver but there is no result. Swachh Bharat mein agar ek gali bhi saaf ho gayi ho to dikha do humein (Show me if even one lane has been cleaned under Swachh Bharat programme).

What do you think is the reason? Why is the execution poor?

I think here one starts doubting their intention. Why is everything failing? It was a historic chance for them and even now everything isn't finished. Abhi bhi sudhar jaayein, raaste par aa jayein (At least now they should reform themselves and come back on track). No one has got such a big mandate post Rajiv Gandhi and they have frittered away their mandate. They have so many governments in states and they could have done much more. BJP keeps thinking how do we polarise, how do we create vote banks. Kabhi `Bharat Mata ki Jai' par divide karte hain, kabhi gai par divide karte hain (Sometimes they divide people on `Bharat Mata ki Jai', sometimes on cow). They never think they have to deliver. They only want to fool. Beyond a point you cannot fool everyone through PR and media.

Do you mean that their whole campaign was based on false promises?

Yes. I was coming to that. Amit Shah spoke of jumla which spoke of their intention. Vikas ek jumla thha (Development was just an election promise). What is said before elections isn't said to be implemented. It is widespread agreement within their party that you can say whatever you want before elections but it is not meant to be implemented.

Do you think the atmosphere has been vitiated since the BJP came to power?

Very vitiated. Not just vitiated, even institutions are in danger. If you are not with us you are against us. There is no middle space left anywhere. There are a large number of institutions in this country which we should not politicise. They have vitiated the whole atmosphere on social media. There are no platforms of engagement and dialogue left. I may not like all your stories but there is a way to disagree. During the Anna andolan (movement), social media played a huge role and we were the ones who first used social media for political activism. But it was not vitiated.

What is your relationship with the central government now? Which are the departments that are cooperating?

Actually, Modi Sahab is not cooperating in effect.(laughs).

But are there people in the central government who are cooperating?

I know many of their ministers would be willing to cooperate if there was right signal from Mr Modi. I have been told that even if some minister interacts with me, he is dealt severely with by Mr Modi. After the CBI raid the Centre has stopped talking to us.And Nripendra Mishra is the person in PMO who is directly in touch with the honourable LG to create obstructions for us.

Isn't the LG less obstructive these days?

(Thinks) Pichhle kuchh dinon main aisa kuchh khaas nahin hua hai (Nothing much has happened in the past few days). There has been some peace in the past few days.

Does BJP not understand politics? The kind of language they use on social media and elsewhere.They think people do not know it is them. A regular person can differ with you but when someone starts to abuse and especially women you know that these are motivated people.

Delhi is a world city. What is your vision for Delhi?

First, we have to create Delhi for people living here.People here do not have basic facilities. We have prioritised seven-eight things ­ education, health, electricity, water, cleanliness, JJ clusters, among others. Today it's a shame that Delhi is the capital and there are homes that do not have clean drinking water...15-20 per cent of Delhi uses tankers. If in 65 years you cannot give water in Delhi, then how will you give water in Maharashtra? We are doing it on a war footing.

Turning to Punjab, what is your opinion on the Prashant Kishor-led Congress campaign?

I think Captain Amarinder has sunk the Congress.He wakes up at 11 in the morning and is not available after 6 in the evening. He gets busy in other activities. And he is extremely lazy and does not have time. I believe he is going off for a month-long vacation to the US. So Prashant Kishor is young, dynamic and he should be projected as the face by Congress for Punjab. (Laughs). Instead of Captain Amarinder, Congress should project him. And I won't be surprised if Prashant Kishor replaces Rahul Gandhi after some time. (Smiles). Please print it.













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हवा खराब है तो वोटरों से माफी मांगने लगी दीदी! हवा क्रमशः वाम कांग्रेस गठबंधन की मजबूत होते देखकर,रोज रोज के मीडिया धमाकों और मुसलिम वोट बैंक के टूटने से दीदी की भाषा बदल गयी है। बंगाल में हिंदुत्व एजंडा के हक में कोई खड़ा नहीं है और न ही फिजा में दंगाई आगजनी है,इसकी खास वजह है बाकी देश के मीडिया के विपरीत हिंदुत्व को बंगाल में मीडिया का कोई समर्थन नहीं है। जाहिर है कि जनमत का आइना भले मीडिया को आप न कहे,न जनसुनवाई का कोई मच आप इसे माने,इस मुक्तबाजार में मीडियाबहुत बड़ी ताकत है और वह चाहे तो निरंकुश सत्ता की भी चूलें हिला कर रख दें। एकसकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

Next: मोदी के खुल्ला हमलों के बावजूद दीदी क्यों खामोश हैं?खामोशी की वजह क्या हैं? मुख्यचुनाव आयुक्त कल तक हिसाब दे रहे थे कि पहले चरण में मतदान 81 फीसद हुआ और 48 घंटे में मतदान फीसद 84 फीसद हो गया है।इस पर सवाल सीधे यही उठ रहा है कि ये वोट बूथों के हैं या भूतों के।विशेषज्ञ आंकड़ों की इस बाजीगरी को हैरतअंगेज मान रहे हैं।वैसे तीन फीसद ज्यादा वोट चुनाव नतीजे बदलने के लिए काफी होने चाहिेए। एक्सकैलिबर स्टीवेस विश्वास
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हवा खराब है तो वोटरों से माफी मांगने लगी दीदी!

हवा क्रमशः वाम कांग्रेस गठबंधन की मजबूत होते देखकर,रोज रोज के मीडिया धमाकों और मुसलिम वोट बैंक के टूटने से दीदी की भाषा बदल गयी है।


बंगाल में हिंदुत्व एजंडा के हक में कोई खड़ा नहीं है और न ही फिजा में दंगाई आगजनी है,इसकी खास वजह है बाकी देश के मीडिया के विपरीत हिंदुत्व को बंगाल में मीडिया का कोई समर्थन नहीं है।

जाहिर है कि जनमत का आइना भले मीडिया को आप न कहे,न जनसुनवाई का कोई मच आप इसे माने,इस मुक्तबाजार में मीडियाबहुत बड़ी ताकत है और वह चाहे तो निरंकुश सत्ता की भी चूलें हिला कर रख दें।

एकसकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप

आज ही परिवर्तन जमाने में दीदी की हवा बनाने वाले बंगाल के सबसे बड़े अखबार में ब्यौरे वार यह खुलासा हुआ है कि सिर्फ प्रोमोटर बिल्डर राज के तहत मार्फत सत्तादल का अन्नदाता बना हुआ है सिंडिकेट और कैसे सत्तादल को सालाना कमसकम डेढ़ सौ करोड़ रुपये की आमदनी लोगों की जान माल से खिलवाड़ करने की वजह से होती है तो दूसरी तरफ सत्ता के प्रति अनास्था का आलम यह है कि सत्तादल के सबसे बड़े किले कोलकाता के बड़ाबाजार में ध्वस्त अधबने फ्लाईओवर को पूरा का पूरा ढहाने के लिए ांदोलन शुरु हो गया है।


कोलकाता और विधाननगर के मेयरों के स्टिंग के जवाब में सत्तदल के पास अब शारदा मामले की तरह कोई सफाई नहीं है।


बंगाल में हिंदुत्व एजंडा के हक में कोई खड़ा नहीं है और न ही फिजा में दंगाई आगजनी है,इसकी खास वजह है बाकी देश के मीडिया के विपरीत हिंदुत्व को बंगाल में मीडिया का कोई समर्थन नहीं है।


जाहिर है कि जनमत का आइना भले मीडिया को आप न कहे,न जनसुनवाई का कोई मच आप इसे माने,इस मुक्तबाजार में मीडियाबहुत बड़ी ताकत है और वह चाहे तो निरंकुश सत्ता की भी चूलें हिला कर रख दें।


कल तक इंच इंच का बदला लेने की धमकी देकर शेरनी की तरह दहाड़ने वाली ममता बनर्जी के बोल बदल गये हैं और वे कहने लगी हैं कि घूस जो लेते हैं,उनसे कम बड़ा अपराध उनका नहीं है जो घूस देते हैं।


नारद स्टिंग में रोज नये नये धमाकों के जवाब में दीदी की यह सफाई है जिसमें अब वह ताल ठोंककर दावा कतई नहीं कर रही हैं कि घूसखोरी कोरी गप्प है या उनकी पार्ची के लोग बेदाग हैं जैसे वे शारदा चिटफंड घोटाले के मामले में चीख चीखकर कह रही थीं।बल्कि उनकी इस सफाई से दाल में काला जरुर कुछ है,ऐसा ही साबित होने लगा है।


कामरेड बुद्धदेव भट्टाचार्यको भारी बहुमत की वजह से सबकुचहरा ही हरा नजर आ रहा था और वे न विपक्ष को और न मीडिया को और न जनमत को कौड़ी का भाव दे रहे थे।


तब समूचा मीडिया सिविल सोसाइटी के साथ वाम शासन को उखाड़ने में लग गया।बाजार की तमाम शक्तियां उनके साथ थी तो दीदी को जंगल महल के माओवादियों का खुल्ला समर्थन था।


अब हूबहू वही दुहराया जा रहा है और फर्क यह है कि मुख्यमंत्री बुद्धदेव नहीं ममता बनर्जी हैं और उन्हें भी प्रबल जनसमर्थन और बहुमत के दम पर न मीडिया,न जनमत और जनता की कोई परवाह है।वे मानकर चल रही है कि हिजाब की तरह ओढ़नी ओढ़कर,दुआ सलाम अल्ला हाफिज करने से संघ परिवार के साथ उनके गठबंधन का खुलासा हो जाने के बावजूद बंगाल में करीब हर तीसरे सीट पर निर्णायक मुसलमान वोट बैंक उनके सात होगा।


यह गलतफहमी सच्चार आयोग के रपटआ जाने के बाद कामरेडों को भी थी।नतीजा सामने है।


शारदा फर्जीवाड़ा में सफाई में दीदी कांग्रेस और वामदलों को लपेटती रही हैं और बड़ाबाजार फ्लाईओवर कांड के बाद मौके पर पहुंचकर तत्काल उनकी पहली टिप्पणी यही थी कि यह परियोजना ुनकी नहीं है ,बल्कि सीपीएम की है।अब नारद स्टिंग के रोज रोज के खुलासे में मंत्री सांसद मेयर के फंसे होने के मौके पर दीदी कांग्रेस और सीपीएम को घेरने में नाकाम हैं।


संघपरिवार का वरद हस्त भले जितना उदार हो,केद्र की सरकाकर और केंद्रीय एजंसियां भले ही दीदी के हक में हों,बंगाल के भाजपा नेता अपनी छवि और राजनीति खराब करने में मूड में नहीं हैं और रोजाना वे कोी नकोी ऐसा मामला सामने ला रहे हैं कि दीदी को पलटकर जवाब देने का मौका ही नहीं मिल रहा है।


हारकर दीदी ने कल आसनसोल के कुल्टी में जनता से बाकायदा माफी मांग ली और कहा कि सारी गलतियां उन्हीं की हैं और मतदाता उन्हें जरुर माफ करें।


उन्होंने मतदाताओं से बाकायदा गिड़गिड़ाकर तृणमूल को समर्थन जारी रखने की अपील की है।


पहले चरण का ही मतदान हुआ है और खबरों के मुताबिक केंद्रीय वाहिनी के छाता बन जाने से तृणमूल वाहिनी ने मेदिनीपुर में कई इलाकों मे अपने मन की कर ली ,लेकिन पुरुलिया और बांकुड़ा में ऐसा करने का मौका ही नहीं मिला।


मालदह बीरभूम और मध्य बंगाल में हमलावर रवैया अपनाने के बावजूद हवा क्रमशः वाम कांग्रेस गठबंधन की मजबूत होते देखकर,रोज रोज के मीडिया धमाकों और मुसलिम वोट बैंक के टूटने से दीदी की भाषा बदल गयी है।


बहरहाल तृणमूल सुप्रीमो व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जीने मंगलवार को माकपा-कांग्रेस के चुनावी गठबंधन पर कड़ा प्रहार करते हुए मुर्शिदाबाद की जनता से तृणमूल के पक्ष में मतदान करने की अपील की। एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए ममता बनर्जीने कहा कि कांग्रेस ने खुद को माकपा के हाथों बेच दिया है। वर्तमान में माकपा और कांग्रेस एक हो गई है। जिस माकपा ने 55 हजार कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हत्या कराई। कांग्रेस ने उसी के साथ हाथ मिला लिया। कांग्रेस कह रही है माकपा जिन्दाबाद और माकपा कह रही है कांग्रेस जिन्दाबाद। अब कांग्रेस वो कांग्रेस नहीं रह गई है।


तृणमूल सुप्रीमो ने मालदा जिले के सुजापुर में एक जनसभा में किसी का नाम लिए बगैर कहा, ''मालदा से दो और मुर्शिदाबाद से एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने माकपा के सामने अपना सिर झुकाया जिसने कभी राजीवजी के खिलाफ गाली-गलौज वाले शब्दों का इस्तेमाल किया था और अपनी रैलियों में एक नारा बनाया था। क्या वे कांग्रेसजन कहे जाने लायक हैं। ऐसा जान पड़ता है कि इन नेताओं ने अपने निजी हित के लिए वस्तुत: कांग्रेस का झंडा बेच दिया।''


दीदी को सत्ता में बहाली का खेल कराब न हो इसलिए आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मदारीहाट में रैली कर सीएम ममता बनर्जी पर जमकर हमला बोला। मोदी ने अपने भाषण में पुल हादसे और शारदा घोटाले का भी जिक्र किया।


ममता को निशाने पर लेते हुए पीएम ने कहा, मोदी जब से प्रधानमंत्री बने हैं और मीटिंग बुलाते हैं तो दीदी उसका बहिष्कार करती हैं और इसके साथ आपसे भी धोखा करती हैं। दीदी दिल्ली आती हैं तो सोनिया जी का आशीर्वाद जरूर लेती हैं पर गठबंधन तो लेफ्ट-दीदी का है। इनको बंगाल की चिंता नहीं है, गठबंधन की चिंता है।

मोदी का हमला,

प. बंगाल में चुनावी मौसम में रैलियों का दौर तेज हो गया है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मदारीहाट में रैली कर सीएम 



ममता बनर्जी पर जमकर हमला बोला।



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मोदी के खुल्ला हमलों के बावजूद दीदी क्यों खामोश हैं?खामोशी की वजह क्या हैं? मुख्यचुनाव आयुक्त कल तक हिसाब दे रहे थे कि पहले चरण में मतदान 81 फीसद हुआ और 48 घंटे में मतदान फीसद 84 फीसद हो गया है।इस पर सवाल सीधे यही उठ रहा है कि ये वोट बूथों के हैं या भूतों के।विशेषज्ञ आंकड़ों की इस बाजीगरी को हैरतअंगेज मान रहे हैं।वैसे तीन फीसद ज्यादा वोट चुनाव नतीजे बदलने के लिए काफी होने चाहिेए। एक्सकैलिबर स्टीवेस विश्वास

Next: बंगाल हारे तो दांव पर देश,सो भूतों का नाच दिनदहाड़े जंगल महल में सौ फीसद मतदान का रिकार्ड चुनावों में आरोप लगते रहे हैं लेकिन केंद्र में जब तक संग बिरादरी है,तब तक दीदी सुरक्षित है और बंगाल के लिहाज से भाजपा काहौवा खड़ा करना भी मुसलमान वोटों की असुरक्षा को जनादेश में तब्दील करने का कायदा कानून है।इसलिए दीदी संघ परिवार को खुल्ला मैदान छोड़कर वाम लोकतांत्रिक गठबंधन के खिलाप खुद को लामबंद करके संघपरिवार के एजंडे को ही आगे बढ़ाने का काम कर रही है। दीदी ना हारे,इसके लिए केंद्रीय वाहिनी को तृणूल के भूतों की फौज का छाता बना दिया गया है।जिस जंगल महल के पहले चरण के मतदान में माकपा प्रत्याशी की पिटाई हो गयी और मीडिया कर्मी से लेकर भाजपा और माकपा के वोटर तक धुन डाले गये वहां शत प्रतिशत वोट का रिकार्ड कायम हुआ है। एक्सेकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप
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मोदी के खुल्ला हमलों के बावजूद दीदी क्यों खामोश हैं?खामोशी की वजह क्या हैं?


मुख्यचुनाव आयुक्त कल तक हिसाब दे रहे थे कि पहले चरण में मतदान 81 फीसद हुआ और 48 घंटे में  मतदान फीसद 84 फीसद हो गया है।इस पर सवाल सीधे यही उठ रहा है कि ये वोट बूथों के हैं या भूतों के।विशेषज्ञ आंकड़ों की इस बाजीगरी को हैरतअंगेज मान रहे हैं।वैसे तीन फीसद ज्यादा वोट चुनाव नतीजे बदलने के लिए काफी होने चाहिेए।

एक्सकैलिबर स्टीवेस विश्वास

उत्तराखंड जीतने के लिए बेहद खास है।बंगाल का चुनाव संघ परिवार के लिए आगे पंजाब,यूपी और उत्तराखंड जीतने के लिए संघ परिवार हर कीमत पर वाम कांग्रेस गठबंधन को रोकनेके लिए काम कर रहा है और दीदी की भूमिका इसमें खास है।


मोदी के खुल्ला हमलों के बावजूद दीदी क्यों खामोश हैं,खामोशी की वजह क्या हैं,यह अबूझ पहेली है।


जाहिर है कि पहले चरण के मतदान के बाद केसरिया फौजों की कमान संभाले सर्वोच्च सिपाहसालार मैदाने जंग में कूद पड़े हैं और संघ परिवार के तमाम रथी महारथी बंगाल में वाम लोकतांत्रिक गठबंधन को रोकने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे।


विकास के मुद्दे को लेकर ममता बनर्जी ने जो अखबारी तैयारी की थी,भ्रष्टाचार के खुलासे के मीडिया के चौबीसों घंटे की मुहिम के चलते उसका बंटाधार हो गया है।


इसी बीच पहले चरण के मतदान के बाद वाम,कांग्रेस और भाजपा तीनों पक्ष की शिकायतों के बाद केंद्रीय वीहिनी को मतदान में वोटों की पहरेदारी में लगाने के लिए चुनाव आयोग के जो फरमन जारी हुए हैं,उसके बाद सत्ता दल के भूत बिरादरी का नया कारनामे का खुलासा हुआ है।


मुख्यचुनाव आयुक्त कल तक हिसाब दे रहे थे कि पहले चरण में मतदान 81 फीसद हुआ और 48 घंटे में  मतदान फीसद 84 फीसद हो गया है।इस पर सवाल सीधे यही उठ रहा है कि ये वोट बूथों के हैं या भूतों के।विशेषज्ञ आंकड़ों की इस बाजीगरी को हैरत्ंगेज मान रहे हैं।वैसे तीन फीसद ज्यादा वोट चुनाव नतीजे बदलने के लिए काफी होने चाहिेए।


इससे पहले ऐसा किसी चुनाव में हुआ हो या नहीं मालूम लेकिन ईवीएम मशीन के जमाने में मतदान के आंकड़ों में यह संशोधन बताता है कि चुनाव परिणाम आने तक बहुत कुछ बदल सकता है यानी जनादेश तक बदल सकता है।


सबसे मजेदार बात तो यह है कि बंगाल में पहली चुनाव सभा में ही मोदी महाशय ने मां माटी मानुष सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेर लिया और शारदा चिटफंड से लेकर बड़ाबाजार के फ्लाई ओवर ,नारद स्टिंग में उजागर घूसखोरी से लेकर सिंडिकेट मार्फत सत्तादल की अंधाधुंध काली कमाई,हर मुद्दे पर उन्होंने सिलसिलेवार ममता बनर्जी पर हमले किये।


इसके उलट  ममता बनर्जी ने न मोदी पर और न भाजपा पर पलटवार किये।ऐसा ईंट का जवाब पत्थर से देने वाली दीदी के चरित्र के विपरीत है तो दीदी के वाम कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ हमले लगातार तेज होते जा रहे हैं और उनकी एकमात्र फिक्र यह है कि इस गठबंधन के खिलाफ जीत कैसे हासिल की जाये।


देखकर ऐसा लगता है कि भाजपा या तो चुनाव में है ही नहीं,न केंद्र और राज्य के नेता उन्हें घेर रहे हैं या फिर भाजपा से दीदी का गुपचुप तकोई समझौता है जिसके तहत वे बोल ही नहीं रही हैं।


दीदी के चुनावक्षेत्र भवानीपुर में भाजपा के तमाम लाउडस्पीकर बंद हैं जहां कल तक भाजपा को बढ़त मिली हुई थी।जबकि वहां भाजपा ने नेताजी फाइलों के जरिये नेताजी की विरासत दखल करने के फिराक में नेताजी परिवार के चंद्र कुमार बोस को उम्मीदवार बनाया है,जो अबतक भूमिगत ही हैं।


बल्कि मोदी ने मदरीहाट की चुनाव सभा में सीधे आरोप लगाया कि कोलकाता के केंद्र स्थल में हुए फ्लाईओवर हादसे में पीड़ितों के बचाव व राहतअभियान पर ध्यान देने के बजाय दीदी ने हादसे की जिम्मेदारी वामदलों पर चालने की कोशिश की है।


 गौरतलब है कि कोलकाता में मतदान से पहले मलबा हटाये जाने की कोई संभावना नहीं है।


गौरतलब है कि उस इलाके में जोड़ासांको की विधायक स्मिता बख्शी के रिश्तेदार फंसे हुए हैं और वहां भाजपा का पूर्व अध्यक्ष राहुल सिन्हा मैदान में हैं।वहां तीन तीन वार्डों में भाजपा के काउंसिलर भी हैं।


इसी सिलसिले में यह भी बता दें कि मोदी ने जो कहा नहीं है,वह यह है कि वाम कार्यकर्ताओं को हादसे के वक्त बचाव व राहत के बहाने मौके पर पहुंचने ही नहीं दिया गया और उनकी तरफ से जो रक्तदान किया गया,उसे घायलों की रगों में पहुंचने ही नहीं दिया गया।यह अमानवीय कृत्य भी बंगाल में बड़ा मुद्दा है।

सिंडिकेट की चर्चा करते हुए उत्तर बंगाल में चंदन तस्करी के मामले में भी मोदी ने दीदी को घेरा और दीदी खामोश हैं।


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बंगाल हारे तो दांव पर देश,सो भूतों का नाच दिनदहाड़े जंगल महल में सौ फीसद मतदान का रिकार्ड चुनावों में आरोप लगते रहे हैं लेकिन केंद्र में जब तक संग बिरादरी है,तब तक दीदी सुरक्षित है और बंगाल के लिहाज से भाजपा काहौवा खड़ा करना भी मुसलमान वोटों की असुरक्षा को जनादेश में तब्दील करने का कायदा कानून है।इसलिए दीदी संघ परिवार को खुल्ला मैदान छोड़कर वाम लोकतांत्रिक गठबंधन के खिलाप खुद को लामबंद करके संघपरिवार के एजंडे को ही आगे बढ़ाने का काम कर रही है। दीदी ना हारे,इसके लिए केंद्रीय वाहिनी को तृणूल के भूतों की फौज का छाता बना दिया गया है।जिस जंगल महल के पहले चरण के मतदान में माकपा प्रत्याशी की पिटाई हो गयी और मीडिया कर्मी से लेकर भाजपा और माकपा के वोटर तक धुन डाले गये वहां शत प्रतिशत वोट का रिकार्ड कायम हुआ है। एक्सेकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

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बंगाल हारे तो दांव पर देश,सो भूतों का नाच दिनदहाड़े

जंगल महल में सौ फीसद मतदान का रिकार्ड

चुनावों में आरोप लगते रहे हैं लेकिन केंद्र में जब तक संग बिरादरी है,तब तक दीदी सुरक्षित है और बंगाल के लिहाज से भाजपा काहौवा खड़ा करना भी मुसलमान वोटों की असुरक्षा को जनादेश में तब्दील करने का कायदा कानून है।इसलिए दीदी संघ परिवार को खुल्ला मैदान छोड़कर वाम लोकतांत्रिक गठबंधन के खिलाप खुद को लामबंद करके संघपरिवार के एजंडे को ही आगे बढ़ाने का काम कर रही है।


दीदी ना हारे,इसके लिए केंद्रीय वाहिनी को तृणूल के भूतों की फौज का छाता बना दिया गया है।जिस जंगल महल के पहले चरण के मतदान में माकपा प्रत्याशी की पिटाई हो गयी और मीडिया कर्मी से लेकर भाजपा और माकपा के वोटर तक धुन डाले गये वहां शत प्रतिशत वोट का रिकार्ड कायम हुआ है।

एक्सेकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप

चुनाव आयोग ने 81 पीसद से मतदान का जो 84 फीसद संशोधित आंकड़ा जारी किया है,उसने बंगाल में दिनदहाड़े भूतों के नाच समां बांध दिया है।


बिनपुर विधानसभा क्षेत्र के 18 नंबर लालजला विद्यालय में सौ फीसद वोट पड़े तो शालबनी के 82नंबर कियामाछा बूथ पर निनानब्वे फीसद वोट दर्ज किये गये।शालबनी के ही 14 नंबर हातिमशानु बूथ में 97 फीसद मतादान हुआ।


पहले चरण के मतदान के दौरान वोटरों.मीडिया कर्मियों से और यहां तक कि वहां के माकपा प्रत्याशी से इसी शालबनी में मारपीट सबसे ज्यादा हुई और केंद्रीय वाहिनी तमाबीन बनी रही।वहीं मतदान शत प्रतिशत है तो चुनाव आयोग और केंद्रीय वाहिनी की भूमिका आप खुद समझ लें।


वैसे भी मुख्य चुनाव आयुक्त ने बंगाल में मतदान के अगले चरणों में वोटरों से शत प्रतिशत मतदान करने की अपील जंगल महल में कथित शांतिपूर्ण मतदान के बाद मतदान 81 फीसद होने की घोषणा के साथ कर दी है।


इस लिहाज से चुनाव आयोग को बाकी बंगाल में इसी तरह शत प्रतिशत मतदान होने पर गड़बड़ी कुछ नजर नहीं आने वाली है।


बहरहाल,मेदिनीपुर के 108 नंबर बूथपर 98.48 प्रतिशत,तालडांगरा विधानसभा क्षेत्र के 84 नंबर बूथ पर 96 प्रतिशत और बांदोवान के पाटापहाड़ी प्राथमिक विद्यालय बूथ पर 94-78 प्रतिशत मतदान का आंकड़ा बना है।


यही सिलसिला अगले चरणों में जारी रहा तो दीदी की सत्ता बहाल रहने में कोई ज्यादा दिक्कत होनी नहीं चाहिए।ऐेसे में सारा का सारा चुनाव किसी प्रहसन से कम नहीं होगा।

इसी बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने ईवीएम मशीन में खराबी की शिकायत के आधार पर मेदिनीपुर व रानीबाग विधानसभा क्षेत्रों के दो बूथों पर पुनर्मतदान कराने की घोषणा की है। मेदिनीपुर 237 विधान सभा क्षेत्र संख्या के विवेकानंद शिक्षा निकेतन  240 नंबर बूथ  व 249 रानीबाग विधानसभा केंद्र के रानीबाग उच्च बालिका विद्यालय के230 नंबर बूथ पर 11 अप्रैल को फिर से मतदान कराया जायेगा।


शालबनी में पुनर्मतदान शिकायतों के बावजूद नहीं कराया जा रहा है।

बहरहाल संवाददाताओं को मतदान के प्रतिशत में गड़बड़ी की शिकायत के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी अमित ज्योति भट्टाचार्य ने बताया कि वह आकड़े मतदान केंद्र से मिली जानकारी के आधार पर ही अपलोड किये जाते हैं।

निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि कांग्रेस प्रत्याशी मानस भुंइया ने खड़गपुर के एएसपी अभिषेक गुप्ता पर नारायण गढ़ व सबंग के थाना प्रभारी को शासक दल के पक्ष में मतदान करवाने के लिए दबाव देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि एसपी भारती घोष के इशारे पर इस कार्य को उन्होंने अंजाम दिया है।


कोलकाता के आस पास के राजनीतिक कार्यकर्ता हस्तक्षेप से लगातार संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं।


हमने उन्हें साफ कर दिया है कि हम सच ही लिखेंगे।


उनका सच भी हम साझा करेंगे।

यह जनसुनवाई का मंच है और हम किसी के पक्ष में नहीं हैं सच के सिवाय।


बहरहाल बंगाल में संघ परिवार का दांव बहुत बड़ा हो गया है।गुपचुप गठजोड़ का किस्सा खुला होते न होते दीदी और ममता की ओर से लुकाछिपी की होड़ मची है।


मोदी ने दीदी को बंगाल के चुनाव प्रचार अभियान में सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया है।जबकि केंद्र सरकार नारद स्टिंग के वीडियो का सच जानने की कोई पहल भी नहीं कर रही है।


मोदी ने पश्चिम बंगालकी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर मौत की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए गुरुवार को कहा कि कोलकाता में हुआ फ्लाईओवर हादसा 'दैविक संदेश' है कि लोग बंगालको तृणमूल कांग्रेस से बचाएं। यह एक्ट ऑफ गॉड नहीं एक्ट ऑफ फ्रॉड है। प्रधानमंत्री ने कहा कि फ्लाईओवर गिर गया, यदि गणमान्य लोग वहां जाते तो क्या करते। वे कुछ लोगों को बचाने का प्रयास करते और बचाव अभियान में सहायता करते। लेकिन दीदी (ममता बनर्जी) ने क्या किया?


मोदी ने दीदी पर हमले के लिए इसी नारद स्टिंग के आरोपों को ही दोहराया है।यह सरासर गलत है क्योंकि वे प्रधानमंत्री हैं और किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोपों को दोहराने से पहले सच को जांच लेना उनकी जिम्मेदारी बनती है।




प. बंगाल में दूसरे चरण के मतदान के लिए प्रचार करने अलीपुर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को ममता सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि ममता जब दिल्ली आती हैं, तो सोनिया गांधी से जरूर मिलती हैं, लेकिन उनकी मीटिंग में आने से कतराती हैं। मोदी ने तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और वामदलों के बीच मिलीभगत का आरोप लगाया। उन्होंने दीदी पर सोनिया गांधी से मिले होने का आरोप लगाया। मेरी मीटिंग में नहीं आती हैं दीदी... -मोदी ने कहा, ''मेरी मीटिंग में दीदी नहीं आती हैं, लेकिन जब भी दिल्ली आती हैं सोनिया जी से आशीर्वाद जरूर लेती हैं''। - ''अगर आपको केंद्र सरकार से कोई शिकायत है तो हमें भी बताइए। लेकिन नहीं कुछ भी हो मीटिंग में नहीं जाएंगी।''


अपने भाषण के दौरान मोदी राज्य सरकार पर जमकर बरसे। ममता दीदी पर करारा हमला करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा की उन्हें राज्य की जनता की चिंता नहीं हैं। कहा कि यह सरकार मां, माटी और मानुष को लेकर बनी थी लेकिन अब ये मनी मतलब पैसे पर केंद्रीत हो गए हैं। नरेंद्र मोदी ने इस दौरान लेफ्ट पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा की 2011 में लोगों ने ममता बनर्जी को बड़ी उम्मीदों के साथ राज्य की कमान सौंपी थी मगर ममता दीदी ने लेफ्ट के ही काम को आगे बढ़ाने का काम किया।


मोदी ने ममता और वाममोर्चा पर आरोप लगाया कि ममता और वाममोर्चा की दिलचस्पी बंगाल के कल्याण या भविष्य में नहीं है। उन्होंने लोगों से तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए वोट देने और राज्य में विकास के लिए भाजपा को मौका देने की अपील की। पश्चिम बंगाल के गौरवमयी इतिहास को याद करते हुए मोदी ने कहा, स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस, वाम मोर्चा और अब दीदी (ममता) सभी ने बंगाल की बर्बादी की तस्वीर पेश की। चाहे वाम हो या दीदी हो, ये दोनों आपके भविष्य को सुरक्षित नहीं कर सकते हैं।


पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तीखा प्रहार करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आरोप लगाया कि वह रिश्वत के साथ तालमेल कर रहीं हैं और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस 'आतंक, मौत तथा भ्रष्टाचार' का पर्याय बन गई है। उन्होंने कांग्रेस पर भी राजनीतिक फायदे के लिए राज्य में 'वामपंथियों के पैरों में गिरने' का आरोप लगाया। मोदी ने आसनसोल में एक चुनावी सभा में कहा कि तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ टीवी पर नारद का स्टिंग ऑपरेशन दिखाया गया। यह बड़ा स्कैंडल था लेकिन क्या दीदी ने उनके खिलाफ कोई कदम उठाया या उन्हें पार्टी से निकाला?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर राज्य में भ्रष्टाचार और हिंसा फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि अगर बंगाल में भाजपा की सरकार बनी तो बांग्लादेश से लगातार आ रहे घुसपैठियों को बंगाल छोड़ना ही होगा क्योंकि रोजगार के हकदार यहां के युवा हैं।


पीएम ने कहा बंगाल में मां, माटी, मानुष की जगह मौत ने ली. अलीपुरद्वार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार जिले में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए ममता सरकार पर जमकर हमला बोला। पीएम ने कहा कि पिछले चुनाव में हम सुनते थे मां, माटी और मानुष और पिछले पांच सालों में लोगों को सिर्फ मौत, मौत और मौत ही सुनाई दी। नारदा स्टिंग ऑपरेशन का जिक्र छेड़ते हुए पीएम ने लोगों से कहा कि नारदा याद है ना, जो लोग मां, माटी, मानुष की बात करते थे वो मनी ले रहे थे।


जो आरोप मोदी दीदी के खिलाफ लगाये हैं,उन्हें बहरहाल वैधता मिल गयी है उनके राजकाज का मुखिया होने की वजह से।


अब केंद्रीय सरकार और केंद्रीय एजंसियों की जवाबदेही बनती है कि इन आरोपों का सचजनता के सामने जल्द से जल्द उजागर करें।दीदी को ऐसा कहना चाहिए था।लेकिन वे जबाव में भाजपा को तो दंगाबाज सरकार कह रही है लेकिन केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कह रही है जौसा उनने पिछले लोकसभा चुनावों में कहा था।


दूसरी ओर मोदी के इस बार के चुनाव अभियान में धर्मोन्माद और कट्टर हिदुत्व के बजाय दीदी और उनकी सरकार के भ्रष्टाचार के मुद्दे खास अहम है।


जाहिर है कि पिछले लोकसभा चुनावों के अनुभवों के मद्देनजर और मनुस्मृति की ओर से दुर्गा के आवाहन के फेल हो जाने के मद्देनजर संघ परिवार को मालूम हो गया है कि बंगाल में कमसकम फौरन धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण असंभव है।


इसके उलट दीदी मुसलिम बहुल क्षेत्रों में भाजपा को दंगाबाज कह जरुर रही हैं लेकिन उनके हमले के निशाने पर वाम और कांग्रेस हैं।


जाहिर है कि निशाना कहीं है और वार कहीं कर रहे हैं मोदी।दीदी के किलाफ न बोलने पर संघपरिवार मैदान से बाहर है और बंगाल के सभी सीचों पर जमानत जब्त हो जाने की हालत में केरल तमिलनाडु और पुडुचेरी में सिफर के साथ असम में भी शिकस्त की पूंजी लेकर हिंदुत्व का एजंडा बाकी राज्यों के चुनाव में संघ परिवार को कहीं का नहीं छोड़ेगा।


इसलिए मजबूरी का नाम बाबासाहेब अंबेडकर है।


जाति उन्मूलन के बाबासाहेब के मिशन के खिलाफ रंगभेदी वर्चस्व बनायेरखने और आरक्षण को खत्म करने के हर इंतजाम के बावजूद जैसे बाबासाहेब को ईश्वर बनाने पर तुला है संघपिरवार ,ठीक वैसे ही बंगाल से खाली हाथ लौटना ना पड़े इसके लिए दीदी को जिताने की गरज और एजंडे के बावजूद संघ परिवार के सिपाहसालारों को झख मारकर दीदी के खिलाफ हमलावर रवैया अपनाना पड़ रहा है।

दीदी भली भांति जानती है कि उनका रक्षा कवच संघ परिवार है और दोनों का साझा दुश्मन वाम लोकतांत्रिक गठबंधन है,जिसके बंगाल के नतीजे के बाद वायरल हो जाने का अंदेशा है।


चुनावों में आरोप लगते रहे हैं लेकिन केंद्र में जब तक संग बिरादरी है,तब तक दीदी सुरक्षित है और बंगाल के लिहाज से भाजपा काहौवा खड़ा करना भी मुसलमान वोटों की असुरक्षा को जनादेश में तब्दील करने का कायदा कानून है।


इसलिए दीदी संघ परिवार को खुल्ला मैदान छोड़कर वाम लोकतांत्रिक गठबंधन के खिलाफ खुद को लामबंद करके संघ परिवार के एजंडे को ही आगे बढ़ाने का काम कर रही है।


जाहिर है कि दीदी ना हारे,इसके लिए केंद्रीय वाहिनी को तृणूल के भूतों की फौज का छाता बना दिया गया है।जिस जंगल महल के पहले चरण के मतदान में माकपा प्रत्याशी की पिटाई हो गयी और मीडिया कर्मी से लेकर भाजपा और माकपा के वोटर तक धुन डाले गये वहां शत प्रतिशत वोट का रिकार्ड कायम हुआ है।


इसी बीच  मुख्यमंत्री व भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार ममता बनर्जी ने शुक्रवार को अलीपुर स्थित  ट्रेजरी कार्यालय में नामांकन पत्र दाखिल किया। इस अवसर पर उनके साथ प्रदेश तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष सुब्रत बक्शी, तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष व सांसद मुकुल राय व अन्य उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि सुश्री बनर्जी दूसरी बार भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से प्रतिद्वंद्विता कर रही हैं।


गौरतलब है कि भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की दीपा दासमुंशी व सुभाष चंद्र बोस के परपौत्र चंद्र बोस प्रतिद्वंद्विता कर रहे हैं। इस अवसर पर तृणमूल समर्थकों की भारी भीड़ थी तथा वे मां, माटी, मानुष व ममता बनर्जी जिंदावाद के नारे लगा रहे थे। शुक्रवार को ही कोलकाता पोर्ट विधानसभा क्षेत्र से शहरी विकास मामलों के मंत्री फिरहाद हकीम, बेहला पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार व राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी, रासबिहारी विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार व विधानसभा में सत्तारूढ़ दल के मुख्य सचेतक शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने भी नामांकन पत्र जमा दिया।


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दीदी के मुकाबले खड़ी दीपा दासमुंशी के साथ पर्चा दाखिल करते वक्त बदसलूकी! नेताजी वंशज चंद्र कुमार बोस नामांकन दाखिल करने गये तो दीदी की पुलिस ने भाजपाइयों को धुन डाला चुनाव आयोग और केंद्रीय वाहिनी का अता पता नहीं है,बंगाल में हिंसा जारी एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

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दीदी के मुकाबले खड़ी दीपा दासमुंशी के साथ पर्चा दाखिल करते वक्त बदसलूकी!

नेताजी वंशज चंद्र कुमार बोस नामांकन दाखिल करने गये तो दीदी की पुलिस ने भाजपाइयों को धुन डाला

चुनाव आयोग और केंद्रीय वाहिनी का अता पता नहीं है,बंगाल में हिंसा जारी

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप

बंगाल में सबसे खास चुनाव क्षेत्र कोलकाता है जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सत्तादल की उम्मीदवार है।


जाहिर है कि सत्तादल को यह सीट जीतने का भरोसा रहा होगा तभी उन्हें वहां से शत्ता में वापसी का रास्ता तैयार करने का विकल्प चुना गया है।लेकिन लगता है कि सत्तादल का आत्मविश्वास जीत के पक्के यकीन के बराबर नहीं है।


आज कोलकाता में अलीपुर द्वार में अजब गजब नजारा पेश आया जब नामांकन दाखिल करने वहां पहुंची वाम कांग्रेस गठबंधन की उम्मीदवार दीपा दासमुंशी के साथ बदसलूकी की गयी तो भाजपा उम्मीदवार नेताजी के वंशधर चंद्र कुमर बोस जब अपना पर्चा दाखिल कराने पहुंचे तो तृणूलियों की क्या कहें बिना बात पुलसकर्मियों ने भाजपाइयों को धुन डाला


दीपा दासमुंसी की शिकायत है कि चुनाव आयोग नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया में भी विपक्षी  उम्मीदवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम है और सौ मीटर के भीतर तृणमूलियों की भीड़ में उनसे बदसलूकी भी हो गया है।


मतदान के पहले चरण में जंगल महल के शालबनी से हिसां की लहरें उठीं और मतदान के दिन बूथ दखल कर लिये गये।


गठबंधन के वोटरों के अलावा भाजपा के वोटरों से मारपीट की गयी।माकपा उम्मीदवार और मीडियाकर्मी भी बख्शे नही गये।एक मीडियाकर्मी का अपहरण भी हो गया।


इसकी रपट आप हस्तक्षेप पर पहले ही पढ़ चुके होंगे।

उसी शालबनी में सौ फीसद तक मतदान हुआ और हिंसा के बावजूद चुनाव आयोग ने संज्ञान नहीं लिया।


दूसरी तरफ वीरभूम,मुर्शिदाबाद,नदिया और वर्दमान जिले तक से छिटपुट हिंसा की खबरें आ रही हैं।


चुनाव आयोग अगर निष्पक्ष न हुआ औरकेंद्रीय वाहिनी अगर तमाशबीन रही और भूतों के नाच के साथ साथ ममता बनर्जी की पुलिस वोटरों और एजंटों को बूथों से दूर खने में कामयाब रहे तो बंगल में दीदी अपराजेय है।


इसीका ड्रेस रिहर्सल कोलकाता में मीडिया के कैमरे के सामने हो गया।केंद्रीय वाहिनी कोलकाता में नजर नहीं आ रही और चुनाव आयोग कहां है,पता नहीं चल रहा।



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Let us count the numbers at home as sixth secularist blogger,writer,publisher has been killed in Bangladesh! Palash Biswas

Next: जब तक धर्म है,तब तक स्त्री का उत्पीड़न चलता रहेगा क्योंकि सारे पवित्र ग्रंथों में स्त्री के उत्पीड़न का न्याय है ,जिसमें स्त्री के लिए समानता और अधिकार कहीं नहीं है। दुस्समय में पितृसत्ता के विरुद्ध, मनुस्मृति के खिलाफ स्त्री चेतना बदलाव की आहट है तो शनिदेवता की वक्रदृष्टि से भी सावधान! अब राममंदिर अभियान की तर्ज पर स्त्रियों का मंदिर प्रवेश का राष्ट्रव्यापी आंदोलन होगा और जो सभी स्त्रियों के हिंदुत्वकरण का सबसे कारगर कार्यक्रम होगा। महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में शुक्रवार को 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई। तो इसका मुआवजा स्त्री चेतना के हिंदुत्वकरण से ही भरना होगा। देश भर में तमाम फौरी और बुनियादी मुद्दों को पीछे छोड़कर धर्मांध स्त्रियां देव देवी की शरणागत बनने के लिए बाकायदा जुलूस निकालकर मंदिरों के गर्भगृह में जाने लगे तो इससे देश का केसरिया राष्ट्रवाद ही मजबूत होगा। स्री की बुनियादी समस्यायें और हिंदू समाज,हिंदू परिवार और हिंदू राष्ट्र में स्त्री की दशा दिशा जस की तस बनी रहेंगी।
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Let us count the numbers at home as sixth secularist blogger,writer,publisher has been killed in Bangladesh!

Palash Biswas


Free market economy has merged the nation states and it banks on hatred and violence,war and civil war.The forces against humanity and nature align worldwide irrespective of color, identity, religion,race and nationalism.


We should first learn this lesson in objective perspective.

Only then we may be able where the mafia network of murderers and rapists base within the nation and beyond.


What is happening in Bangladesh is a reflection within our borders and we fail to see the rivers full of blood flowing every where every time and the killers are feel to kill any one who stands for humanity and nature.


Thus,Nazimuddin Samad -- the sixth secularist writer or publisher to have been killed in Dhaka in the last 14 months.


It reflects the truth that secularism is not an ideological discourse only as we treat it In India.Rather we have to yet prove our commitment to secularism as Indian nation as well as the idea of India are enveloped with intolerance injected with unprecedented violence and we could not stand united,we the so called democrat and secular forces.


Thus,secularism is reduced to appeasement of certain sections to make them mobile vote bank so that the hegemony of apartheid could bloom harvesting lotus.


Mind you,last year, suspected militants killed five secular writers and a publisher, including a Bangladeshi-American activist. A banned Islamist militant group, Ansarullah Bangla Team, claimed responsibility for some of the attacks.Just count the numbers at home.


Those killed in caste communal clash or simply killed,or killed in persecuted zone where rule of law means nothing and civic and human rights remain suspended as eternal deprivement and repression.


Those killers belong to the same class which want to capture this world and its resources all on the name of nationalism, religion,caste,race,development and even politics.


We have recognized it as essential evils of democracy.


It is the tolerance which makes us the soft scapegoats and we never feel anything while other are victimized and we are simply spared.


We may not be disturbed by civil war like condition in most part of the nation,military rule in some part of the country, persecution of indigenous and agrarian communities including the dalits,backwards,tribals and minorities.


It is a global phenomenon that free speech always invites the anger of the ruling hegemony and it is killed on the name of nationalism and religion,vedic violence.


Just see, attackers in Bangladesh wielding machetes killed a liberal blogger, police said on Thursday, the latest in series of murders of secular activists by suspected Islamist militants.


News from Bangladesh might not have any impact on us as we are engaged to save our skin in comfort zone and fail to understand the global phenomenon of the game which has a global network and we may not resist it without a vision which is free in its conscience.The conscience seems to be dead.


We are engaged in religious identities resulting in blind nationalism which targets every second citizen on the name of some false myths, symbols,identities with immense hatred and love is missing in day to day life.So missing is humanity.If it is a democracy then it is inhuman.


Postgraduate law student Nazimuddin Samad, 28, was attacked as he was returning from a class at his university in the capital, Dhaka, late on Wednesday, police said.



Police officer Tapan Chandra Shaha said three or four men attacked Samad with machetes and then shot him after he fell to the ground.


People heard the attackers shouting "Allahu akbar" (God is Greatest) as they fled, he said.


Imran H. Sarker, convener of the BOAN online activist group, said Samad was an outspoken critic of injustice and militancy.


"We found him always a loud voice against all injustice and also a great supporter of secularism," Sarker told Reuters.


Bangladesh has seen a wave of militant violence over the past year or so, including a series of bomb attacks on mosques and Hindu temples.


Some attacks have been claimed by Islamic State, including the killing of Hindu priest, a Japanese citizen, an Italian aid worker and a policeman.


The government denies that Islamic State has a presence in the Muslim-majority country of 160 million people.


Hundreds of students from the Jagannath University where Samad studied protested against his murder and demanded the prompt arrest of the killers.


They blocked roads in and around the university and told reporters that if those behind the earlier murders of bloggers had been punished then Samad would not have been attacked.


"Talented youths are killed one after another, but there are no visible measures against these heinous acts," said Kabir Chowdhury Tanmoy, president of the Online Activist Forum, which advocates secularism.


EU Ambassador to Bangladesh Pierre Mayaudon condemned the killing, saying freedom of expression was a fundamental human right.

Gaffar Khan Cowdhari ,the eminent Bangladeshi writer and Hasan Imam Sagar reports in Bangladeshi mainstream daily JANAKANTHA:

নাজিম হত্যার প্রতিবাদে রাস্তা অবরোধ বিক্ষোভ জবি শিক্ষার্থীদের

  • জড়িত কেউ শনাক্ত হয়নি
  • দায় স্বীকার করেনি কেউ
  • রবিবার থেকে লাগাতার ধর্মঘটের ডাক


গাফফার খান চৌধুরী/হাসান ইমাম সাগর ॥ জঙ্গীদের হাতে খুন হওয়া মুক্তমনা লেখকদের কাতারে যোগ হলো আরেকটি নাম। তিনি জগন্নাথ বিশ্ববিদ্যালয়ের ছাত্র ও অনলাইন এ্যাক্টিভিস্ট নাজিম উদ্দিন সামাদ। তার গ্রামের বাড়ি সিলেটে চলছে শোকের মাতম। নাজিম হত্যায় বৃহস্পতিবার সন্ধ্যা পর্যন্ত কেউ গ্রেফতার হয়নি। তবে ঘটনার সময় নাজিমের সঙ্গে থাকা বন্ধু সোহেলকে খুঁজছে আইনশৃঙ্খলা রক্ষাকারী বাহিনী। ব্যক্তিগত বা প্রেমঘটিত কারণ ছাড়াও হত্যাকা-ের সঙ্গে কোন উগ্র মৌলবাদী বা জঙ্গী সংগঠন বা জামায়াত-শিবির জড়িত থাকতে পারে বলে তদন্ত সংশ্লিষ্টদের ধারণা।

পহেলা বৈশাখ ও যুদ্ধাপরাধ মামলায় জামায়াতে ইসলামীর আমির মতিউর রহমান নিজামীর মৃত্যুদ- কার্যকরের আগে নাজিমকে অত্যন্ত পরিকল্পিতভাবে হত্যা করা হতে পারে। যদিও বৃহস্পতিবার সন্ধ্যা পর্যন্ত নাজিম হত্যার সঙ্গে কারা জড়িত তা নিশ্চিত হওয়া যায়নি। এবারই প্রথম কোন অনলাইন এ্যাক্টিভিস্টকে হত্যার পর দায় স্বীকারের ঘটনা ঘটেনি। এটি হত্যাকারী বা হত্যাকারী সংগঠনের নতুন কৌশল কি-না, সে বিষয়ে বিস্তর পর্যালোচনা চলছে। নাজিমকে হত্যার প্রতিবাদে জগন্নাথ বিশ্ববিদ্যালয়ের সামনে ছাত্ররা রাস্তা অবরোধ করে আগুন জ্বেলে বিক্ষোভ দেখিয়েছে। প্রতিবাদ সমাবেশ থেকে শনিবার রাত বারোটার মধ্যে হত্যাকারীদের গ্রেফতার করতে না পারলে রবিবার থেকে লাগাতার ধর্মঘটের ডাক দিয়েছেন আন্দোলনরত শিক্ষার্থীরা। এ ঘটনায় প্রতিবাদ জানিয়েছে জাতিসংঘ।

যেভাবে হত্যা করা হয় ॥ গত ৬ এপ্রিল বুধবার রাত নয়টার দিকে রাজধানীর সূত্রাপুর থানাধীন একরামপুর মোড়ে পৌঁছে নাজিম উদ্দিন ও তার বন্ধু সোহেল এবং রাজীব। এ সময় দুটি মোটরসাইকেলে চোখের পলকে সেখানে হাজির হয় ৪-৫ জন। পেছন থেকে তিনজন নেমে যায়। নেমেই দুইজন নাজিমের মাথায় ধারালো অস্ত্র দিয়ে কুপিয়ে জখম করে। ধারালো অস্ত্রের আঘাতে নাজিমের মাথার মগজ বেরিয়ে পড়ে। এরপর মৃত্যু নিশ্চিত করতে মাথায় গুলি চালায়। মাত্র এক থেকে দেড় মিনিটের মধ্যেই নাজিমকে হত্যার পর দ্রুত মোটরসাইকেলে করে ঘটনাস্থল ত্যাগ করে। হত্যার সময় হত্যাকারীরা আল্লাহু আকবর ধ্বনি দিয়ে নাজিমকে এলোপাতাড়ি কোপানো শুরু করে। সোহেল ও রাজীব এ সময় কৌশলে পালিয়ে যায়। তাদের খুঁজছে আইনশৃঙ্খলা রক্ষাকারী বাহিনী।

নাজিমের পরিচিতি ॥ নিহতের ভাতিজা সুমন জনকণ্ঠকে বলেন, নাজিম (২৬) বঙ্গবন্ধু জাতীয় যুব পরিষদের সিলেট জেলা শাখার তথ্য ও গবেষণা সম্পাদক ছিলেন। এছাড়া নাজিম সিলেটে গণজাগরণ আন্দোলনের সংগঠক ছিলেন। সিলেটের বিয়ানীবাজার উপজেলার তিলপাড়া ইউনিয়নের টোকাভড়াউট গ্রামের মরহুম আব্দুস সামাদের ছেলে ছিলেন তিনি। পাঁচ ভাই দুই বোনের মধ্যে নাজিম পঞ্চম ছিলেন। আর ভাইদের মধ্যে চতুর্থ। বড়ভাই জুলহাস উদ্দিন মারা গেছেন। ভাইদের মধ্যে শামীম আহমদ ও সবার ছোট জসিম উদ্দিন যুক্তরাজ্য এবং সুনাম উদ্দিন ফ্রান্স প্রবাসী। নিহতের মায়ের নাম তৈরনেচ্ছা। বোন পারুল বেগম ও নাসিমা বেগম বিয়ানীবাজারে নিজবাড়িতে বসবাস করেন। বড় বোন পারুল বেগমের বিয়ে হয়েছে কয়েক বছর আগে। মা ও বোন বিয়ানীবাজারে থাকলেও লেখাপড়া করার জন্য দীর্ঘদিন ধরে নাজিম সিলেট নগরীতে বসবাস করেছেন।

নাজিমের লেখাপড়া ॥ সিলেটের বিয়ানীবাজারের আসিরগঞ্জ দিশারী প্রিক্যাডেট স্কুল থেকে প্রাইমারি, আসিরগঞ্জ উচ্চ বিদ্যালয় থেকে এসএসসি এবং সিলেটের স্কলার্স হোম স্কুল এ্যান্ড কলেজ থেকে এইচএসসি পাস করেন নাজিম। পরে তিনি সিলেট লিডিং ইউনিভার্সিটি থেকে এলএলবি অনার্স পাস করেন। সিলেটে পড়াশোনাকালীন নগরীর মজুমদারপাড়া এলাকায় একটি মেসে থাকতেন। পরবর্তীতে তিনি একাধিক মেস পরিবর্তন করেছেন। এরপর ঢাকায় জগন্নাথ বিশ্ববিদ্যালয়ে এলএলএম-এ ভর্তি হন। তিনি জগন্নাথ বিশ্ববিদ্যালয়ের আইন বিভাগের ষষ্ঠ ব্যাচের সান্ধ্যকালীন সেশনের শিক্ষার্থী ছিলেন। নাজিম পঞ্চম শ্রেণীতে বৃত্তি পেয়েছেন। তার একাডেমিক রেজাল্ট ভাল। নাজিমের গ্রামের বাড়িতে শোকের মাতম চলছে। শত শত মানুষ ভিড় করেছেন নাজিমদের বাড়িতে। সবাই হত্যাকারীদের দৃষ্টান্তমূলক শাস্তি দাবি করেছেন।

নাজিমের আশঙ্কাই সত্যি হলো ॥ গণজাগরণ মঞ্চের পক্ষে ও যুদ্ধাপরাধীদের বিচারের দাবিতে সোচ্চার থাকায় হামলার আশঙ্কা করেছিলেন নাজিম উদ্দিন সামাদ। শিক্ষক, বন্ধু ও প্রিয়জনদের কাছে আশঙ্কার কথা জানালেও নিজের অবস্থান থেকে সরে আসেননি নাজিম। আজহারুল ইসলাম নামে নাজিমের এক স্যার ফেসবুকে লিখেছেনÑ 'তোমার জন্য ভয় হয় নাজিম। একটু সাবধানে থাকো। দেখতেই তো পাচ্ছ কি হচ্ছে। সাবধানে থেকো।'

জবাবে নাজিম লিখেছিলÑ 'ভয় আমার নিজেরও হয় স্যার। অকালে মরে যাওয়ার ভয়। কিন্তু কি করবো স্যার। মাথা নত করে চুপ হয়ে বেঁচে থাকার চেয়ে এ মরণই বোধ হয় ভালো।'

ফেসবুকে আইনশৃঙ্খলা অবনতির বিষয়ে সরকারের কঠোর পদক্ষেপ চেয়ে স্ট্যাটাস দেয়ার ২৪ ঘণ্টা না পেরুতেই খুন হতে হলো নাজিমকে। তার খুন হওয়ার খবর শুনে স্ট্যাটাসে অগ্নিসারথি নামে একজন ফেসবুক বন্ধু লিখেছেনÑ 'নাজিম উদ্দিন ভাইয়ের সঙ্গে গত কয়েক দিন আগে চ্যাটিং হলো। উনার আশঙ্কাই আজ নির্মমভাবে সত্যি হলো।'

থানা পুলিশের বক্তব্য ॥ বৃহস্পতিবার সন্ধ্যায় সূত্রাপুর থানার ওসি তপন চন্দ্র সাহা জনকণ্ঠকে বলেন, নাজিমের লাশ তার ভাতিজার কাছে হস্তান্তর করা হয়েছে। লাশটি বর্তমানে ঢাকা মেডিক্যাল কলেজ হাসপাতালের হিমঘরে রয়েছে। এ ঘটনায় কোন মামলা হয়নি। তবে মামলা দায়েরের প্রস্তুতি চলছে। ঘটনার সময় নাজিমের সঙ্গে সোহেল ও বেসরকারী বিশ্ববিদ্যালয় সাউথ ইস্টের শিক্ষার্থী নাজিব ছিলেন বলে জানা গেছে। তাদের খোঁজা হচ্ছে।

সড়ক অবরোধ করে ছাত্রদের বিক্ষোভ ॥ নাজিম হত্যার প্রতিবাদে জগন্নাথ বিশ্ববিদ্যালয়ের সামনের সড়ক অবরোধ করে রাস্তায় আগুন জ্বেলে বিক্ষোভ করেছে ছাত্ররা। সকাল দশটা থেকে শুরু করে দুপুর পর্যন্ত রাস্তা অবরোধ ও বিক্ষোভ চলে। এ সময় প্রায় চার ঘণ্টা বিশ্ববিদ্যালয়ের সামনের রাস্তা বন্ধ ছিল। বিশ্ববিদ্যালয়ের শিক্ষার্থীরা প্রতিবাদে বিক্ষোভ মিছিল করে। মিছিলটি ক্যাম্পাস ঘুরে প্রশাসনিক ভবনে গিয়ে অবস্থান নেয়। সমাবেশ থেকে হত্যাকারীদের দ্রুত গ্রেফতার ও বিচারের দাবি জানানো হয়।

ঢাকা মহানগর গোয়েন্দা পুলিশের (ডিবি) ধারণা ॥ পুলিশের পাশাপাশি মহানগর গোয়েন্দা পুলিশের পূর্ব বিভাগ নাজিম হত্যার ঘটনাটি গুরুত্বের সঙ্গে ছায়া তদন্ত শুরু করেছে। তদন্ত সংশ্লিষ্ট সূত্রে জানা গেছে, নাজিম আইনজীবী হওয়ার স্বপ্ন নিয়েই চলতি বছরের জানুয়ারিতে ঢাকায় এসেছিলেন। ঢাকায় আসার পর পরই নাজিমকে খুন হতে হলো।

ডিবির একজন উর্ধতন কর্মকর্তা নাম প্রকাশ না করার শর্তে জানিয়েছেন, নাজিম হত্যার ঘটনায় নানা বিষয় সামনে রেখে তদন্ত চলছে। তদন্তে ব্যক্তিগত শত্রুতার বিষয়টিও প্রাধান্য পাচ্ছে। সিলেটে বসবাসকালে নাজিমের কোন শত্রু সৃষ্টি হয়েছিল কি-না, তা গুরুত্বের সঙ্গে খতিয়ে দেখা হচ্ছে। যদিও এখন পর্যন্ত তদন্তে সেরকম কোন সম্ভাবনার তথ্য জানা যায়নি। কারণ সিলেটে শত্রুতা হলে নাজিমকে সিলেটেই হত্যা করার কথা। হত্যা করা সম্ভব না হলেও অন্তত নাজিম এক বা একাধিকবার আক্রমণের শিকার হতে পারত। কিন্তু তার কিছুই হয়নি। এ কারণে ব্যক্তিগত শত্রুতার তেমন কোন আলামত মিলছে না।

নাজিম ফেসবুকে খুবই সক্রিয় ছিলেন। ফেসবুকে তার একজন মেয়ে বন্ধুর সঙ্গে বিশেষ সখ্যতার তথ্য পাওয়া গেছে। যদিও সেই ফেসবুক বন্ধু নিয়েও বির্তক আছে। কোন গোষ্ঠী পরিকল্পিতভাবে নাজিমকে হত্যার পরিকল্পনা বাস্তবায়ন করতে ওই মেয়েকে কাজে লাগাতে পারে। আবার ওই মেয়ের ছবি বা ফেসবুকের তথ্য সঠিক কি-না, তা নিয়েও সন্দেহ আছে। ধারণা করা হচ্ছে, পরিকল্পিতভাবে নাজিমের অবস্থান ও তার সার্বিক কর্মকা- জানার জন্য মেয়ে বন্ধুকে কাজে লাগানো হতে পারে। ফেসবুকের ওই মেয়ে বন্ধুরও সন্ধান চলছে।

তবে নাজিমকে যে মুহূর্তে হত্যা করা হয়েছে, তা বিশেষ ইঙ্গিত বহন করছে। কারণ নাজিম যুদ্ধাপরাধীদের সর্বোচ্চ শাস্তির বিষয়ে সোচ্চার ছিলেন। সামনে যুদ্ধাপরাধ মামলায় জামায়াতে ইসলামীর আমির মতিউর রহমান নিজামীর ফাঁসির রায় কার্যকরের কথা রয়েছে। এছাড়া আগামী ১৪ এপ্রিল বাংলা নববর্ষ। নববর্ষে জঙ্গী সংগঠনগুলো নানাভাবেই নাশকতা চালানোর চেষ্টা করছে। এজন্য পহেলা বৈশাখের অনুষ্ঠান পালনে বিশেষ কড়াকড়ি আরোপ করা হয়েছে। ঠিক এমন একটি সময়ে অনেকটা ফিল্মি স্টাইলে চোরাগোপ্তা হামলা করে নাজিমকে হত্যা করা হলো। নাজিম হত্যার ধরনের সঙ্গে আগে ব্লগার ও মুক্তমনা লেখক হত্যার ধরনের হুবহু মিল রয়েছে।

এজন্য নাজিম হত্যার সঙ্গে উগ্র মৌলবাদী বা জঙ্গী সংগঠন জড়িত বলে ধারণা জোরালো হচ্ছে। সাধারণত এ ধরনের হত্যাকা- নিষিদ্ধ জঙ্গী সংগঠন আনসারুল্লাহ বাংলা টিম করে থাকে। জঙ্গী সংগঠনটির সিøপার সেলের সদস্যদের এ ধরনের হত্যাকা-ের নজির আছে। সিøপার সেলের কর্মকা-ের সঙ্গে নাজিম হত্যার ধরণ মিলে যাচ্ছে।

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जब तक धर्म है,तब तक स्त्री का उत्पीड़न चलता रहेगा क्योंकि सारे पवित्र ग्रंथों में स्त्री के उत्पीड़न का न्याय है ,जिसमें स्त्री के लिए समानता और अधिकार कहीं नहीं है। दुस्समय में पितृसत्ता के विरुद्ध, मनुस्मृति के खिलाफ स्त्री चेतना बदलाव की आहट है तो शनिदेवता की वक्रदृष्टि से भी सावधान! अब राममंदिर अभियान की तर्ज पर स्त्रियों का मंदिर प्रवेश का राष्ट्रव्यापी आंदोलन होगा और जो सभी स्त्रियों के हिंदुत्वकरण का सबसे कारगर कार्यक्रम होगा। महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में शुक्रवार को 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई। तो इसका मुआवजा स्त्री चेतना के हिंदुत्वकरण से ही भरना होगा। देश भर में तमाम फौरी और बुनियादी मुद्दों को पीछे छोड़कर धर्मांध स्त्रियां देव देवी की शरणागत बनने के लिए बाकायदा जुलूस निकालकर मंदिरों के गर्भगृह में जाने लगे तो इससे देश का केसरिया राष्ट्रवाद ही मजबूत होगा। स्री की बुनियादी समस्यायें और हिंदू समाज,हिंदू परिवार और हिंदू राष्ट्र में स्त्री की दशा दिशा जस की तस बनी रहेंगी।

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जब तक धर्म है,तब तक स्त्री का उत्पीड़न चलता रहेगा क्योंकि सारे पवित्र ग्रंथों में स्त्री के उत्पीड़न का न्याय है ,जिसमें स्त्री के लिए समानता और अधिकार कहीं नहीं है।


दुस्समय में पितृसत्ता के विरुद्ध, मनुस्मृति के खिलाफ स्त्री चेतना बदलाव की आहट है तो शनिदेवता की वक्रदृष्टि से भी सावधान!

अब राममंदिर अभियान की तर्ज पर स्त्रियों का मंदिर प्रवेश का राष्ट्रव्यापी आंदोलन होगा और जो सभी स्त्रियों के हिंदुत्वकरण का सबसे कारगर कार्यक्रम होगा।


महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में शुक्रवार को 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई। तो इसका मुआवजा स्त्री चेतना के हिंदुत्वकरण से ही भरना होगा।


देश भर में तमाम फौरी और बुनियादी मुद्दों को पीछे छोड़कर धर्मांध स्त्रियां देव देवी की शरणागत बनने के लिए बाकायदा जुलूस निकालकर मंदिरों के गर्भगृह में जाने लगे तो इससे देश का केसरिया राष्ट्रवाद ही मजबूत होगा।


स्री की बुनियादी समस्यायें और हिंदू समाज,हिंदू परिवार और हिंदू राष्ट्र में स्त्री की दशा दिशा जस की तस बनी रहेंगी।



पलाश विश्वास

AZADI SONG _Composed & Sung by Pushpavathy

शनिमंदिर में स्त्री के प्रवेशाधिकार का हम स्वागत करते हैं लेकिन स्त्री की समानता की दृष्टि से स्त्री संघर्ष की इस बड़ी उपलब्धि के हिंदूत्वकरण के खतरे से भी हम आगाह करते हैं।शनि का मिथक भय का वह असीम साम्राज्य है,जहां हमारी आस्था कैद है।


गौरतलब है किपहली नवरात्री पर शिंगणापुर के शनि मंदिर में इतिहास रचा गया और चार सौ साल में पहली बार पवित्र चबूतरे पर महिलाओं को पूजा करने का अधिकार मिला है।जिसका किसी तरह के धर्मन्माद ने विरोध नहीं किया और न इस ऐतिहासिक मंदिर प्रवेश का किसी भी स्तर पर कोी विरोद हुआ।इसका सीधा मतलब यह हुआ कि जो लोग विरोध में थे वे सीधे समर्थन में आ गये।तो यह बिना किसी मकसद के,बिना किसी योजना के हुआ होगा,ऐसा नहीं है।


जाहिर है कि अब राममंदिर अभियान की तर्ज पर स्त्रियों का मंदिर प्रवेस का राष्ट्रव्यापी आंदोलन होगा और जो सभी स्त्रियों के हिंदुत्वकरण का सबसे कारगर कार्यक्रम होगा।


गौरतलब है कि चार दशकों से महिलाओं को यहां काले पत्थर पर कदम रखने की अनुमति नहीं थीं, जो कि शनिदेव का प्रतीक है।

गौरतलब है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस फैसले का तत्काल स्वागत किया है।

गौर कीजिये कि इससे पहले 2 अप्रैल को बंबई उच्च न्यायालय ने एक दिन पहले दिए गए फैसले कि कोई भी कानून पूजास्थलों में महिलाओं को प्रवेश करने से नहीं रोकता, के बावजूद शनि शिंगणापुर मंदिर में महिला कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की गई और ग्रामीणों ने उन्हें पूजा करने से रोक दिया गया था।

उस समय 'भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड'की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने लगभग 200 महिला समर्थकों के साथ जब शनि मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की तो गांव के सैकड़ों लोगों ने मानव श्रृंखला बनाकर महिलाओं को शनि मंदिर में जाने से रोक दिया. ग्रामीणों में 300 से ज्यादा महिलाएं भी शामिल थीं।

उल्लेखनीय है कि बंबई उच्च न्यायालय ने एक दूरगामी फैसले में कहा था कि कोई भी कानून पूजास्थलों में महिलाओं को प्रवेश करने से नहीं रोकता। इस मामले में लैंगिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.एच.वाघेला और न्यायमूर्ति एम.एस.सोनक की पीठ ने यह फैसला एक जनहित याचिका पर दिया था. याचिका सामाजिक कार्यकर्ता विद्या बल और वरिष्ठ वकील नीलिमा वर्तक ने दायर की थी।


अब मीडिया का कहना है कि  इस हक के लिए महिला एक्‍टिविस्‍ट तृप्‍ति देसाई ने लंबे समय से संघर्ष किया है। अब तृप्‍ति का इरादा देश के बाकी कुछ और मंदिरों में प्रवेश के लिए संघर्ष करने का है।


जाहिर है कि महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनिशिंगणापुर मंदिरमें शुक्रवार को 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई। तो इसका मुआवजा स्त्री चेतना के हिंदुत्वकरण से ही भरना होगा।


अंततःमहिलाओं ने मंदिरके चबूतरे पर चढ़कर पूजा अर्चना की।


अब महिलाओं को मंदिरों में प्रवेशके अधिकार की लड़ाई लड़ रहीं तृप्ति देसाई ने कहा है कि यह तो केवल अभी शुरुआत है।


भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख देसाई ने कहा कि जिन-जिन मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है उनके खिलाफ उनका संघर्ष जारी रहेगा।


उन्होंने बताया कि 13 अप्रैल को कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिरमें वे लोग प्रवेश के लिए संघर्ष करेंगी।


अंदेशा इसी खतरे को लेकर है कि स्त्री मुक्ता का आंदोलन कहीं मंदिर प्रवेश आंदोलन में विसर्जित न हो जाये और यह स्त्री अस्मिता के हिंदुत्वकरण का सबसे सहज उपाय न बन जाये।


प्रसिद्ध शनिशिंगणापुरमंदिरट्रस्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि शुक्रवार से महिलाएं मंदिर में प्रवेशकर पूजा-याचना कर सकेंगी।


साफ जाहिर है कि इस आकस्मिक उदारता के पीछे खुला राजड यही है कि  धर्म में आस्था के सवाल पर पितृसत्ता को स्त्री को मंदिर में प्रवेशाधिकार देने में दरअसल कोई परेशानी नहीं है और देश भर में तमाम फौरी और बुनियादी मुद्दों को पीछे छोड़कर धर्मांध स्त्रियां देव देवी की शरणागत बनने के लिए बाकायदा जुलूस निकालकर मंदिकरों के गर्भगृह में जाने लगे तो इससे देश का केसरिया राष्ट्रवाद ही मजबूत होगा।


स्री की बुनियादी समस्यायें और हिंदू समाज,हिंदू परिवार और हिंदू राष्ट्र में स्त्री की दशा दिशा जस की तस बनी रहेंगी।


स्त्री समानता के सवाल पर हम उस आस्था के तिलिस्म में स्त्री अस्मिता को कैद नहीं देखना चाहते।


शनि की वक्र दृष्टि से सावधान होने की जरुरत है।

गौरतलब है कि हम मंदिर प्रवेश के किसी भी आंदोलन का समर्थन नहीं करते।


धर्म के गोरखधंधे में फंसी स्त्री के लिए यह संसार जो नर्क बना है और उसके हाथों,पांवों,दिलोदिमाग में जो बेड़िया बंधी हैं,उसकी सबसे बड़ी वजह उसकी अंध आस्था है,जो पितृसत्ता के लिए स्त्री के उत्पीड़न और दमन का सबसे अचूक रामवाण है।


स्त्री के सतीत्व और पुरुषों को अबाध भोग के असमान तंत्र मंत्र यंत्र में ही शूद्र बना दी गयी स्त्री की स्वतंत्रता,समानता और मनुष्यता कैद है।


अब स्त्री का समानता का सवाल कही धर्मस्थलं में प्रवेशाधिकार का मामला बनकर निबट न जाये,खतरा यही है।


इसी सिलसिले में बरसों पहले तसलिमा नसरीन ने जो हमसे समयांतर के लिए इंटरब्यू में कहा था ,उसे उद्धृत करना प्रासंगिक मानता हूं।तब तसलिमा ने कहा था कि वे धर्म का विरोध इसलिए करती हैं कि धर्म लिंगभेद पर टिका है जो स्त्री को यौनदासी बना देता है।


तब कोलकाता में रह रही तसलिमा नसरीन ने कहा था कि जब तक धर्म है,तब तक स्त्री का उत्पीड़न चलता रहेगा क्योंकि सारे पवित्र ग्रंथों में स्त्री के उत्पीड़न का न्याय है ,जिसमें स्त्री के लिए समानता और अधिकार कहीं नहीं है।


हमने उनसे पूछा था कि वे सिर्फ इस्लामी कट्टरपंथ पर हमला करती है और लज्जा के जरिये उनके विचारों और लिखे का हिंदूत्वकरण हो रहा है,तो जवाब में उन्होंने कहा कि वे किसी धर्म के समर्थन में नहीं है बल्कि धर्म के खिलाफ हैं।क्योंकि पितृसत्ता का मूल आदार धर्म है जहां स्त्री के लिए सारे मानव और नागरिक अधिकार निषिद्ध हैं।


तब कोलकाता में रह रही तसलिमा नसरीन ने कहा था कि जब तक धर्म है,दलितों,पिछड़ों,आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार और नागरिक अधिकार नहीं हैं।


तसलिमा कोलकाता से निर्वासित हैं इस वक्त और बांग्लादेश में उनकी गर वापसी के कोई आसार नहीं है।


इस इकलौते इंटरब्यू में तसलिमा ने स्त्री के समानता के सवाल,पितृसत्ता के वजूद और धर्म को दलितों,पिछड़ों और अल्पसंक्यकों के नागरिक और मानवाधिकारों के साथ जोड़ा था।तब से तसलिमा ने बहुत कुछ लिखा बोला है,लेकिन इन पंक्तियों को फिर कहीं दोहराया हो.ऐसा मालूम नहीं पड़ता।


बहरहाल ये पंक्तियां मौजूदा मुक्तबाजार समय में हमारे लिए बेहद प्रासंगिक हैं क्योंकि मुक्त बाजार में धर्म और बाजार अब पर्यायवाची शब्द हैं और दोनों इकने हिल मिलकर अंध राष्ट्रवाद में इसतरह एकाकार है कि यह अखंड पितृसत्ता का समय है और इसके खिलाफ किसी भी प्रतिरोध के लिए स्त्री चेतनी की नेतृत्वकारी भूमिका न हुई तो हम लड़ाई के मोर्चे पर सिर्फ निमित्त मात्र हैं और मारे जाने के इंतजार में हैं।


स्त्री के मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों से दलितों,पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के नागरिक और मानवाधिकार नत्थी हैं और इसीलिए इन तमाम शक्तियों को एक मंच पर एकसात खड़ा किये बिना मुक्ति का कोई रास्ता कहीं नहीं खुलता।


हम आगाह करते हैं कि मुक्ति का वह रास्ता यकीनन किसी धर्मस्थल का सिंहद्वार नहीं है जहां गर्भ गृह में दाखिले के बाद देवता या देवी की अंधभक्ति में निष्णात हो जाने के अलावा कोई और विकल्प बचता नहीं है।


ये शक्तियां बदलाव की शक्तियां हैं और येही शक्तियां अंद राष्ट्रवाद की पैदल फौजें हैं क्योंकि सबसे ज्यादा धर्मोन्मादी ये हैं।


इस बीज गणित का हल मुश्किल है लेकिननामुमकिन नहीं है और समाधान सूत्र फिर वही स्त्री चेतना है जो लिंगभेद के खिलाफ,मनुस्मृति के खिलाफ और असमानता के किलाफ विद्रोह कर ही है।हम उस स्त्र चेतना को सलाम करते हैं।


यह इंटरव्यू तब लिटरेट डाट कम और वेब दुनिया के वेब पर प्रसारित हुआ था,जिसके लिंक अब उपलब्ध नहीं है या कमसकम हमें नहीं मिल रहे हैं।


हम इधर सड़क का सामना करने के लिए तैयारियों में जुटे हैं और मुद्दे और मसले इतने उलझे हुए हैं,फिर उन्हें फौरी तौर पर संबोधित करने की जरुरत भी है,इसलिए फिलहाल हम वीडियो पर नहीं है।शायद उसकी जरुरतभी नहीं है।


पुष्पवती का यह वीडियो देख लें तो मौजूदा स्त्री चेतना और स्त्री काल के मनुस्मृति के विरुद्ध लामबंदी का नजारा साफ नजर आयेगा।


चार सौ साल की परंपरा तोड़कर शनिमंदिर में स्त्री प्रवेश का एक पहलू बेहद खतरनाक भी है,उसे रेखांकित करने के लिए वर्तमानसमय में स्त्री चेतना का सही अवस्थान जानना,समझना और पितृसत्ता के रंगभेदी मुक्तबाजार के खिलाफ वर्गीय ध्रूवीकरण के बारे में आज हमारा रोजनामचा है।


राजस्थान के दलित बच्चों के उत्पीड़न के मार्फत हिंदू राष्ट्र की जो असली तस्वीर हमने हस्तक्षेप के जरिये शेयर की है,उसे बहुजनों ने भारी पैमाने पर शेयर किया है।सिर्फ फेसबुक लाइक बारह हजार के करीब है।


हम बहुजनों से अपेक्षा करते हैं कि देश दुनिया के बाकी मुद्दों पर भी हमारे पोस्ट साझा करने में और जड़ों तक जमीन को पकाने और बदलाव के खेत तैयार करने में वे सहयोग करें।

हमने दलित बच्चों वाले पोस्ट के साथ हमारे मित्र पत्रकार उर्मिलेश और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता नूतन यादव के फेसबुक वाल की पंक्तियों को भी जोड़ा है।


तकनीकी कारणों से हम खुद इसे आगे शेयर नहीं कर सके हैं और नूतन जी को देहरादून में हमारी दीदी गीता गैरोला से इस स्टोरी के बारे में पता चला है।


अमूमन हम प्रासंगिक किसी भी मंतव्य को शेयर करते हैं और जिन्हें हम जानते हैं या जो हमारे मित्र हैं,उन्हें अक्सर मालूम भी नहीं होता कि हम उनकी पंक्तियों का इस्तेमाल करते हैं।


हम हर वक्त लिंक भी साझा नहीं कर पाते हालांकि यथासंभव शेयर कर देते हैं,कृपाय वे इसे तकनीकी चूक मानकर हमारा सहयोग जारी रखें।


नासिक और कोल्‍हापुर में जारी रहेगा संघर्ष

शनि शिंगणापुर में प्रवेश कर पूजा अर्चना की छूट मिलने से खुश भूमाता ब्रिगेट की तृप्‍ति देसाई का कहना है कि अब महाराष्ट्र के नासिक त्रयम्बकेश्वर और कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर में भी महिला श्रद्धालुओं के खिलाफ अन्याय को समाप्त करते हुए इसी प्रकार का संघर्ष प्रारंभ करने का निर्णय किया जाएगा। इस क्रम में 13 अप्रैल को कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर में वे लोग प्रवेश के लिए संघर्ष करेंगी।

महिलाओं ने की पूजा

चैत्र नवरात्र के पहले दिन शनि शिंगणापुर मंदिर में लगभग चार सौ साल पुरानी परंपरा टूट गई। शुक्रवार को पुरुषों से साथ-साथ महिलाओं ने भी शनि मंदिर के चबूतरे पर जाकर शनिदेव को तेल चढ़ाया। महिलाओं का एक समूह पिछले कुछ माह से यह अधिकार पाने के लिए संघर्ष कर रहा था। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन महाराष्ट्र में गुड़ी पाड़वा का उत्सव मनाया जाता है। भारतीय नव वर्ष के पहले दिन शनि शिंगणापुर मंदिर में पुरुषों द्वारा शनि प्रतिमा का जलाभिषेक करने की परंपरा रही है। लेकिन विवादों के चलते पिछले कुछ माह से चबूतरे पर पुरुषों के भी जाने की मनाही कर दी गई थी। शुक्रवार सुबह करीब 250 पुरुष श्रद्धालुओं का समूह शनि चबूतरे पर चढ़कर शनिदेव की मूर्ति का जलाभिषेक करने में सफल हो गया।


400 साल का इतिहास बदला

इसके बाद आनन-फानन में बुलाई गई शनि मंदिर ट्रस्ट की बैठक में करीब 400 साल पुरानी परंपरा को तोड़ते का फैसला किया गया। ट्रस्ट ने पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी शनि प्रतिमा (जिसे मंदिर का गर्भगृह कहा जा सकता है) तक जाने की अनुमति दे दी। ट्रस्ट ने यह फैसला स्थानीय ग्रामवासियों से चर्चा के बाद किया। इसकी घोषणा ट्रस्ट की महिला सदस्य शालिनी लांडे द्वारा की गई। ट्रस्ट के इस फैसले के बाद चबूतरे पर जाने के लिए संघर्ष करती आ रही भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने भी शनिदेव की पूजा-अर्चना की। पिछले सप्ताह हाई कोर्ट का फैसला आने के बावजूद स्थानीय लोगों ने देसाई को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया था।


इस तरह चला संघर्ष

इस विवाद की शुरुआत 29 नवंबर, 2015 को एक महिला के शनि चबूतरे पर जबरन चढ़ जाने से हुई थी। उसके बाद मंदिर के पुजारियों ने शनि प्रतिमा का अभिषेक कर उसकी शुद्धि की थी। इससे नाराज भूमाता ब्रिगेड ने शनि चबूतरे तक महिलाओं को प्रवेश की इजाजत के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने 26 जनवरी, 2016 को शनि मंदिर में जबरन प्रवेश करना चाहा, लेकिन उन्हें रोक दिया गया। 28 जनवरी, 2016 को बांबे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ में एक याचिका दायर कर महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति मांगी गई थी। एक अप्रैल, 2016 को हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि जाति और लिंग के आधार पर मंदिर में प्रवेश रोकने वाले पर वह कानूनी कार्रवाई करे।


शनि शिंगणापुर में टूटी चार सौ साल की परंपरा, महिलाओं ने की पूजा अर्चना

दैनिक जागरण - ‎16 hours ago‎

... में बुलाई गई शनि मंदिर ट्रस्ट की बैठक में करीब 400 साल पुरानी परंपरा को तोड़ते का फैसला किया गया। ट्रस्ट ने पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी शनि प्रतिमा (जिसे मंदिर का गर्भगृह कहा जा सकता है) तक जाने की अनुमति दे दी। ट्रस्ट ने यह फैसला स्थानीय ग्रामवासियों से चर्चा के बाद किया। इसकी घोषणा ट्रस्ट की महिला सदस्य शालिनी लांडे द्वारा की गई। ट्रस्ट के इस फैसले के बाद चबूतरे पर जाने के लिए संघर्ष करती आ रही भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने भी शनिदेव की पूजा-अर्चना की। पिछले सप्ताह हाई कोर्ट का फैसला आने के बावजूद स्थानीय लोगों ने देसाई को मंदिर में प्रवेश ...

महिलायें शनि मंदिर में जा सकेंगी

Chhattisgarh Khabar - ‎20 hours ago‎

अहमदनगर | समाचार डेस्क: करीब 400 साल बाद महिलाओँ को शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी गई है. इसे लिये कुछ समय से विशेष रूप से महिलाओं द्वारा प्रयास किया जा रहा था. प्रसिद्ध शनि शिंगणापुरमंदिर ट्रस्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि शुक्रवार से महिलाएं मंदिर में प्रवेश कर पूजा-याचना कर सकेंगी. यह निर्णय ट्रस्ट की एक बैठक में लिया गया और इसकी घोषणा ट्रस्टी शालिनी लांडे ने की. उल्लेखनीय है कि चार दशकों से महिलाओं को यहां काले पत्थर पर कदम रखने की अनुमति नहीं थीं, जो कि शनिदेव का प्रतीक है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस फैसले का ...

शनि शिंगणापुर की 400 साल पुरानी परंपरा टूटी, अब दूसरे मंदिरों में भी एंट्री की तैयारी

आईबीएन-7 - ‎4 hours ago‎

अहमदनगर। स्त्री-पुरूष समानता के अभियान में मिली एक बडी जीत में महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर मेंमुख्य पूजा स्थल पर महिलाओं के प्रवेश पर सदियों से चली आ रही पाबंदी को शुक्रवार को हटा लिया गया। यह कदम कार्यकर्ताओं के लंबे संघर्ष और अदालत के निर्देशों के बाद उठाया गया है। मंदिर के न्यास द्वारा पश्चिम महाराष्ट्र के इस मंदिर के मुख्य क्षेत्र में सभी श्रद्धालुओं को अबाधित प्रवेश की सुविधा देने के निर्णय के कुछ ही समय बाद कुछ महिलाओं ने पवित्र स्थल पर प्रवेश किया और पूजा की। निर्णय की घोषणा के कुछ घंटे बाद भूमाता ब्रिगेड की नेता तृप्ति देसाई अहमदनगर के शनि ...

शनि शिंगणापुर मंदिर: टूटी सालों पुरानी परंपरा, महिलाओं को पूजा की इजाजत

Rajasthan Patrika - ‎Apr 8, 2016‎

ट्रस्ट ने तृप्ति देसाई को मंदिर में पूजा करने के लिए आमंत्रित किया है। इससे पहले सुबह बड़ी संख्या में पुरुष श्रद्धालु मंदिर में घुसे और पुलिस चुपचाप तमाशा देखती रही। पुलिस ने किसी को भी रोक पाने में नाकाम रही। तृप्ति देसाई भी शनि मंदिर के लिए रवाना. इसके बाद मंदिर में पूजा को लेकर महिलाओं के अधिकार की आवाज उठाने वाली तृप्ति देसाई भी शनि शिंगणापुर मंदिर के लिए पुणे से रवाना हुईं। वह महिलाओं को शनि मंदिर में प्रवेश और पूजा का अधिकार देने की लड़ाई लड़ रही हैं। उनकी अपील पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि देश का कानून सभी के लिए बराबर है और किसी को भी मंदिर ...

शनि शिंगणापुर मंदिर में टूटी 400 साल पुरानी परम्परा, पुरुषों ने तोडा नियम, महिलाओं को भी एंट्री

Sanjeevni Today - ‎Apr 8, 2016‎

मंदिर ट्रस्ट ने तृप्ति देसाई को मंदिर में पूजा करने के लिए आमंत्रित किया है। इससे पहले सुबह बड़ी संख्या में पुरुष श्रद्धालु मंदिर में घुसे और पुलिस चुपचाप तमाशा देखती रही। पुलिस द्वारा किसी को भी रोक पाने में नाकाम रही। शनि मंदिर के लिए तृप्ति देसाई भी रवाना इसके बाद ही शनि शिंगणापुर मंदिर में पूजा को लेकर महिलाओं के अधिकार की आवाज उठाने वाली एक्टिविस्ट तृप्ति देसाई भी मंदिर के लिए पुणे से रवाना हुईं। तृप्ति देसाई महिलाओं को शनि मंदिर में प्रवेश और पूजा का अधिकार देने की लड़ाई लड़ रही हैं। बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी अपील पर आदेश दिया था कि देश का कानून सभी के ...

शनि शिंगणापुर में महिलाओं को मिला पूजा का अधिकार

Catch हिन्दी - ‎21 hours ago‎

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं को पूजा करने का अधिकार मिल गया. बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी मंदिर ट्रस्ट महिलाओं को पूजा करने के अधिकार के खिलाफ अड़ा हुआ था, लेकिन शुक्रवार को पुरुष श्रद्धालुओं के जबरन घुसने के थोड़ी देर बाद ही महिलाओं को भी पूजा करने की इजाजत ट्रस्ट ने दे दी. ट्रस्ट ने तृप्ति देसाई को मंदिर में पूजा करने के लिए आमंत्रित किया है. इसके बाद मंदिर में पूजा को लेकर महिलाओं के अधिकार की आवाज उठाने वाली तृप्ति देसाई भी शनि शिंगणापुर मंदिर के लिए पुणे से रवाना हुईं. वह महिलाओं को शनि मंदिर में प्रवेश और ...

अब महालक्ष्मी मंदिर में प्रवेश की बारी: तृप्ति देसाई

पंजाब केसरी - ‎26 minutes ago‎

नई दिल्ली: शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाअों को मिले प्रवेश से जहां 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई और महिलाओं ने मंदिर के चबूतरे पर चढ़कर पूजा अर्चना की। वहीं महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश के अधिकार की लड़ाई लड़ रहीं भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई ने कहा है कि यह तो केवल अभी शुरुआत है। देसाई ने कहा कि जिन-जिन मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है उनके खिलाफ उनका संघर्ष जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि 13 अप्रैल को कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर में वे लोग प्रवेश के लिए संघर्ष करेंगी। महिलाओं के मंदिर में प्रवेश को लेकरशनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट ने शुक्रवार ...

शनि शिंगणापुर में 400 साल पुरानी परंपरा टूटी, सभी भक्त कर पाएंगे पूजा

पलपल इंडिया - ‎Apr 8, 2016‎

महाराष्‍ट्र के अहमदनगर में बने शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर चले लंबे विवाद के बाद अब नया मामला गर्मा गया है. मंदिर के मुख्‍य चबूतरे पर चढ़कर पूजा करने पर लगी रोक के बावजूद शुक्रवार को पुरुषों ने जबरन यहां चढ़कर पूजा की. इसके बाद से मंदिर में तनाव का महौल बन गया है. इसके बाद मंदिर ट्रस्‍ट ने ग्रामीणों के साथ मिलकर निर्णय लिया है कि चबूतरे पर जाकर पूजा करने से अब किसी को भी नहीं रोका जाएगा और अब आम भक्‍त भी वहां जाकर पूजा कर सकेंगे. मालूम हो कि हर साल गुड़ी पड़वा पर शनि शिंगणापुरमंदिर में देवता को नहलाया जाता है जिसमें अब तक केवल पुरुष ही शामिल होते थे.

शनि शिंगणापुर में टूटी 400 साल पुरानी परंपरा, चबूतरे पर चढ़ महिलाओं ने की पूजा

आईबीएन-7 - ‎19 hours ago‎

अहमदनगर। अहमदनगर में मौजूद शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट ने 400 साल पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए महिलाओं को मंदिर के चबूतरे पर चढ़ने की इजाजत दे दी। इजाजत मिलने के बाद दो महिलाए शनि मंदिर के चबूतरे पर गईं और पूजा अर्चना की। इससे पहले ट्रस्ट ने महिलाओं को मंदिर में पूजा करने से नहीं रोकने का फैसला किया था। शनि शिंगणापुर ट्रस्ट ने कहा कि हमने रोज ही महिलाओं को चबूतरे तक जाने की इजाजत दे दी है। आज गुड़ी पड़वा के मौके पर बड़ी संख्या में पुरुष श्रद्धालु मंदिर के गर्भ में प्रवेश कर गए और जबरदस्ती जल चढ़ा दिया। बता दें कि मंदिर के गर्भ गृह में महिलाओं के प्रवेश के बाद पुरुषों के ...

महिलाओं को मिली शनि शिंगणापुर में चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत, टूटी परंपरा

एनडीटीवी खबर - ‎12 hours ago‎

पिछले साल शनि शिंगणापुर मंदिर में शनि की मूर्ति पर एक महिला द्वारा तेल चढ़ाने पर यह विवाद शुरू हुआ था। महिला के तेल चढ़ाने के बाद मंदिर का शुद्धिकरण किया गया था। इसके बाद भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड की महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश की कोशिश भी की, लेकिन पुलिस ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए उन्हें मंदिरपहुंचने से पहले ही रोक लिया। तब से अब तक वह कई कोशिश कर चुकी हैं। इसके बाद महिलाओं को शनिशिंगणापुर मंदिर में प्रवेश के अधिकार पर बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका भी दायर हुई थी। बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने कहा था कि पूजास्थलों पर जाना उनका मौलिक अधिकार है और इसकी रक्षा करना ...

शनि शिंगणापुर विवाद से जुड़ी 10 खास बातें

आज तक - ‎22 hours ago‎

महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में आखिरकार 400 साल बाद महिलाओं को प्रवेश की अनुमति मिल गई. मंदिर में प्रवेश के अधिकार के लिए महिलाओं ने न सिर्फ सड़क पर उतर कर आंदोलन किया बल्कि कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया. आखिरकार महिलाओं का आंदोलन सफल रहा. ये हैं शनि शिंगणापुर मंदिर जुड़ी खास बातें-. 1. शनिशिंगणापुर मंदिर में 400 साल से किसी महिला को शनिदेव के चबूतरे पर जाकर तेल चढ़ाने की इजाजत नहीं थी. 2. 19 दिसंबर को भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई ने चबूतरे पर जाने की कोशिश की, जिसका गांव के लोगों ने विरोध किया. 3. तृप्ति देसाई ने 26 जनवरी 2016 को मंदिर के चबूतरे पर जाकर ...

अब औरतें भी शनि देव पर तेल चढ़ा सकेंगी

बीबीसी हिन्दी - ‎22 hours ago‎

अदालत के हुक्म के बावजूद महिलाओं को मुख्य चबूतरे पर न जाने देने की ज़िद पर अड़े शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट ने कहा है कि अब औरतें भीं मुख्य शिला पूजन कर सकती हैं. इसके साथ ही मंदिर में पूजन की 400 पुरानी मान्यता समाप्त हो गईं जिसमें औरतों को शनि मंदिर के मुख्य चबूतरे पर प्रवेश का अधिकार नहीं था. मुंबई हाई कोर्ट ने चंद दिनों पहले फ़ैसला दिया था कि मंदिर में प्रवेश को लेकर स्त्री-पुरुष में फ़र्क़ नही किया जा सकता है. लेकिन जब औरतों के एक समूह ने इसकी कोशिश की तो पुलिस ने उन्हें रोक दिया था. Image copyright. शुक्रवार को गुड़ी पाड़वा के मौक़े पर परम्परा के मुताबिक़ लोग वहां ...

शनि शिंगणापुर मंदिरः महिलाओं की पूजा पर लगी रोक हटायी गई

दैनिक जागरण - ‎Apr 8, 2016‎

महाराष्ट्र के अहमदनगर में बने शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर चले लंबे विवाद के बाद अब नया मामला गर्मा गया है। मंदिर के मुख्य चबूतरे पर चढ़कर पूजा करने पर लगी रोक के बावजूद शुक्रवार को पुरुषों ने जबरन यहां चढ़कर पूजा की। इसके बाद से मंदिर में तनाव का महौल बन गया है। इसके बाद मंदिर ट्रस्ट ने ग्रामीणों के साथ मिलकर निर्णय लिया है कि चबूतरे पर जाकर पूजा करने से अब किसी को भी नहीं रोका जाएगा और अब आम भक्त भी वहां जाकर पूजा कर सकेंगे। शनि शिंगनापुर मंदिर के ट्रस्टी नानासाहेब बनकर ने अपने बयान में कहा कि शनि शिंगनापुर ट्रस्ट ने तय किया है कि मंदिर का चबुतरा ...

शनि शिंगणापुर मंदिर में 400 साल पुरानी परंपरा टूटी, महिलाओं को मिली पूजा की इजाजत

पंजाब केसरी - ‎Apr 8, 2016‎

यानिकी अब महिलाअाें काे मंदिर में स्थित मुख्य शिला की पूजा की इजाजत हाेगी। बता दें कि इससे पहले मंदिर में पूजा को लेकर बड़ी संख्या में पुरुष श्रद्धालुओं ने मंदिर में धावा बोला और मुख्यशिला तक पहुंच गए, जहां पूजा पर रोक लगी हुई है।इसके बाद मंदिर के ट्रस्ट ने ये एेताहासिक फैसला सुनाया। बताया जा रहा है कि बड़ी संख्या मेंपुरुष श्रद्धालु मंदिर में घुसे और पुलिस किसी को भी रोक पाने में नाकाम रही। गाैरतलब है कि एक्टिविस्ट तृप्ति देसाई शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाअाें काे प्रवेश और पूजा का अधिकार दिए जाने के लिए लड़ाई लड़ रही थी। उनकी अपील पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने ...

शनि मंदिर: टूट गई 400 साल पुरानी परंपरा

नवभारत टाइम्स - ‎19 hours ago‎

महाराष्ट्र के अहमद नगर के प्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के पवित्र चूबतरे की पूजा नहीं करने की 400 साल पुरानी परंपरा शुक्रवार को टूट गई। शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट द्वारा मंदिर के पवित्र स्थान पर पूजा करने की इजाजत मिलने के बाद शुक्रवार से महिलाओं ने वहां पूजा शुरू कर दी। सालों पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए पहले दो महिलाओं ने वहां पूजा की। इसके बाद भू माता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने चबूतरे में प्रवेश कर शनिकी पूजा की। पूजा करने के बाद तृप्ति देसाई ने कहा कि 13 अप्रैल को कोल्हापुर स्थित महालक्ष्मी मंदिर के गर्भगृह में 500 महिलाओं के साथ हमारा ...

शिंगणापुर: 400 साल की परंपरा ढाई घंटे में यूं हुई खत्म, महिलाओं ने की पूजा

दैनिक भास्कर - ‎19 hours ago‎

दरअसल, बॉम्बे हाईकाेर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मंदिरों में पूजा बुनियादी हक है। इससे महिलाओं को नहीं रोका जा सकता। - इसी फैसले के बाद मांग उठी थी कि जब पुरुषों को पूजा की इजाजत है तो महिलाओं को क्यों न हो? - विवाद से बचने के लिए शनि शिंगणापुर और बाद में नासिक त्र्यंबकेश्वर मंदिर ट्रस्ट ने पुरुषों की भी गर्भगृह तक एंट्री रोक दी थी। - जब शुक्रवार सुबह पुरुषों ने बैरिकेड तोड़कर पूजा की तो महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ रहीं भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई ने कहा कि हम भी मंदिर में जाकर पूजन करेंगे। जब पुरुषों को इजाजत दी गई तो महिलाओं को भी हक मिलना चाहिए क्योंकि ...

महिलाओं को नहीं आना चाहिए शनि के सामने : शंकराचार्य

Patrika - ‎4 hours ago‎

हरद्विार। महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले के प्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर में शुक्रवार को महिलाओं को प्रवेशमिलने से जहां एक तरफ 400 साल पुरानी परंपरा टूटी वहीं दूसरी तरफ साधु संतों ने इस पर मिली जुली प्रतिक्रिया दी है। ज्योतिष और द्वारिका पीठ के पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वरुपानंद सरस्वती ने महिलाओं के पवित्र चबूतरे पर चढ़कर पूजा करने और तेल चढ़ाने की अनुमति मिलने का स्वागत तो किया, लेकिन चेताया भी कि महिलाओं कोशनि के सामने नहीं पडऩा चाहिए, शनि की पूजा से अनिष्ट हो सकता है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए शनिकी पूजा वर्जित है। दूसरी ओर जूना अखाड़े के ...

परंपरा के पार कदम, मिला अधिकार

The Patrika - ‎12 hours ago‎

हम महिलाओं को मंदिर में घुसने की मंजूरी दे रहे हैं।"यहां बता दें कि बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने पिछले बुधवार को अपने फैसले में कहा था कि महिलाओं को मंदिर में घुसने से नहीं रोका जा सकता। भूमाता बिग्रेड इस मंदिर में महिलाओं को प्रवेश कराने की मांग के साथ अभियान चला रहा था। इसके बाद ही यह मामला सुर्खियों में आया। मंदिर ट्रस्‍ट के फैसले का स्‍वागत करते हुए तृप्ति देसाई ने कहा, "यह महिला शक्‍त‍ि की जीत है। हम बहुत खुश हैं कि हमारी कोशिशें कामयाब रहीं।"स्मरण रहे कि शनि शिंगणापुर मंदिर शनिदेव को समर्पित है। शनिदेव हिंदू मान्यता में शनि ग्रह हैं। इस मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा ...

टूटी 400 साल पुरानी परंपरा : शनि शिंगणापुर में महिलाओं को मिली पूजा करने की अनुमति

News Track - ‎Apr 8, 2016‎

न्यास द्वारा इस मामले में बैठक का आयोजन किया गया जिसमें यह कहा गया कि महिलाओं को चबूतरे तक पूजन करने की अनुमति दी जाएगी। इस निर्णय के बाद भूमाता रण रागिनी समूह की अध्यक्ष तृप्ति देसाई को मंदिर में पूजन करने के लिए आमंत्रित किया गया। इसके पूर्व पुरूष श्रद्धालु मंदिर में दाखिल हुए और उन्होंने मंदिर में पूजन किया। महिलाओं को शनि मंदिर में प्रवेश और पूजन का अधिकार देने के लिए उनके द्वारा लड़ाईयां लड़ी जा रही हैं। इस मामले में एक अपील मुंबई उच्च न्यायाल में दायर की गई थी। जिसमें यह आदेश दिया गया था कि देश का कानून सभी के लिए समान है और किसी को भी मंदिर में प्रवेश ...

शनि शिंगणापुर मंदिर पर महिलाओं की एंट्री

देशबन्धु - ‎7 hours ago‎

अहमदनगर (महाराष्ट्र) ! प्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि शुक्रवार से महिलाएं मंदिर में प्रवेश कर पूजा-अर्चना कर सकेंगी। यह महत्वपूर्ण निर्णय ट्रस्ट की एक बैठक में ऐसे समय में लिया गया, जब एक सप्ताह पहले बम्बई उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा था कि किसी भी पूजास्थल में महिलाओं को प्रवेश करने से रोकने का कोई कानून नहीं है। ट्रस्ट के निर्णय की घोषणा बाद में ट्रस्टी शालिनी लांडे ने की। ट्रस्ट की अध्यक्ष अनिता शेट्ये ने शुक्रवार को आईएएनएस को बताया, "हां, हमने निर्णय ले लिया है। और अब हम अन्य बातों को तय करेंगे, जैसे कि महिलाएं कब ...

शनि शिंगणापुर में 400 साल पुरानी परंपरा टूटी, महिलाएं करेंगी पूजा

Live हिन्दुस्तान - ‎19 hours ago‎

महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई। यहां महिलाओं ... महिलाओं को इस पूजन का अधिकार दिए जाने की लड़ाई लड़ रहीं तृप्ति देसाई भी कुछ ही देर में मंदिर पहुंचने वाली हैं। आज इस सफलता से ... गौरतलब हो कि महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में आज सुबह उस समय स्थित नियंत्रण से बाहर हो गई जब बड़ी संख्या में पुरुषों ने बैरिकेडिंग तोड़ते हुए शिवलिंग के पास पहुंच गए जहां पूजा की जाती है। उन्होंने वहां ... इस तरह सुप्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर के 400 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब महिलाओं को पूजा करने की इजाजत मिली है। गौरतलब है कि ...

इन 7 बातों से जानें, कौन हैं तृप्ति देसाई?

आज तक - ‎21 hours ago‎

शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने और पूजा करने की अनुमति मिलने के पीछे सबसे अहम योगदान भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड और उसकी संस्थापक तृप्ति देसाई का है. इन्होंने बिना रुके ये लड़ाई जारी रखी और आखिरकार जीत मिली. पढ़ें- शनि शिंगणापुर मंदिर विवाद से जुड़ी 10 खास बातें. महिलाओं के अधिकार के लिए तृप्ति देसाई न सिर्फ ट्रस्ट के फरमान के खिलाफ उतरीं, बल्कि हवालात में भी गईं. ये हैं तृप्ति देसाई के बारेमें अहम बातें-. 1. मुंबई की SNDT महिला यूनिवर्सिटी से स्नातक की पढ़ाई की. 2. 2010 में भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड की स्थापना की. 3. भूमाता ब्रिगेड की मौजूदा ...

शनि शिंगणापुर मंदिर की 400 साल पुराने Tradition अंत

Legend News - ‎22 hours ago‎

ट्रस्ट के इस निर्णय के बाद अब महिलायें भी मंदिर में स्थित मुख्य शिला की पूजा कर सकेंगी. इससे पहले मंदिरमें पूजा को लेकर बड़ी संख्या में पुरुष श्रद्धालु मंदिर पहुंचे और जबरन मंदिर के चबूतरे पर खड़े होकर पूजा की. रोक के वावजूद बड़ी संख्या में पुरुष श्रद्धालु मंदिर में घुसे इस दौरान पुलिस चुपचाप तमाशा देखती रही. तलब है कि एक्टिविस्ट तृप्ति देसाई शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश और पूजा का अधिकार दिए जाने के लिए संघर्षरत थीं. उनकी अपील पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि देश का कानून सभी के लिए बराबर है और किसी को भी मंदिर में प्रवेश से रोका नहीं जा सकता है.

शनि शिंगणापुर मंदिर में टूटी 400 साल पुरानी परंपरा, मंदिर ट्रस्ट ने महिलाओं को भी दी इजाजत

Special Coverage News (कटूपहास) (प्रेस विज्ञप्ति) (सदस्यता) (ब्लॉग) - ‎Apr 8, 2016‎

मुंबई: महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में 400 साल पुरानी परंपरा अाज टूट गई। 400 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब महिलाओं को पूजा करने की इजाजत मिली है। जानकारी के मुताबिक, मंदिर ट्रस्ट ने तृप्ति देसाई काे पूजा के लिए न्याैता भेजा है। अब महिलाअाें काे मंदिर में स्थित मुख्य शिला की पूजा की इजाजत हाेगी। आपको बता दें कि बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी मंदिर ट्रस्ट महिलाओं को पूजा करने के अधिकार के खिलाफ अड़ा हुआ था। बताया जा रहा है कि बड़ी संख्या में शुक्रवार को मंदिर में पूजा को लेकर पुरुष श्रद्धालुओं ने मंदिर में धावा बोला और मुख्यशिला तक पहुंच ...

मंदिर में महिलाएं

Live हिन्दुस्तान - ‎7 hours ago‎

शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट ने आखिरकार मंदिर के मुख्य स्थान तक महिलाओं के प्रवेश को मान्यता दे दी है, हालांकि अब भी महिलाओं की राह पूरी तरह आसान नहीं हुई है, क्योंकि शिंगणापुर गांव का नेतृत्व महिलाओं के प्रवेश के अब भी खिलाफ है और उसने 'शिंगणापुर' बंद का आह्वान किया है। इससे यह आशंका पैदा होती है कि जो महिलाएं मंदिर में शनि की प्रस्तर प्रतिमा तक जाने की कोशिश करेंगी, उनका वहां विरोध हो सकता है। गांव की पंचायत का विशेष गुस्सा भूमाता रणरागिणी ब्रिगेड नाम की संस्था के खिलाफ है, जिसने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के लिए आंदोलन चलाया है। मगर अब पुलिस व प्रशासन ...

बड़ा फैसला! शनि शिंगणापुर में महिलाएं भी करेंगी पूजा...

Webdunia Hindi - ‎Apr 8, 2016‎

अहमदनगर (महाराष्ट्र)। शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर लंबे समय तक कार्यकर्ताओं द्वारा चलाए गए अभियान के बाद शुक्रवार को मंदिर के ट्रस्ट ने दशकों पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए महिलाओं को मंदिरके गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति दे दी। मंदिर के इस भाग में प्रवेश करने के सारे लैंगिक प्रतिबंधों को हटाने की यह खुशखबरी भी महाराष्ट्र के लोगों को 'गु़ड़ी पड़वा' जैसे पवित्र दिन पर मिली है। इस दिन राज्य में लोग नए साल की खुशियां मनाते हैं। मंदिर के एक ट्रस्टी सियाराम बांकर ने कहा कि शुक्रवार को ट्रस्टियों ने बैठक की और उच्च न्यायालय के निर्णय को ध्यान में रखते ...

जानिए किसने चलाई महिलाओं को मंदिर में प्रवेश दिलाने की मुहीम? कौन है तृप्ति देसाई?

दैनिक जागरण - ‎22 hours ago‎

जानिए किसने चलाई महिलाओं को मंदिर में प्रवेश दिलाने की मुहीम? कौन है तृप्ति देसाई? शनि शिंगनापुर मंदिरमें महिलाओं को प्रवेश दिलाने के लिए भूमिता ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई ने मुहीम शुरू की हुई थी। उन्होंने कई बार मंदिर में प्रवेश की कोशिश लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया गया। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में अर्जी दायर की जिसके बाद कोर्ट ने भी उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि स्त्री पुरूष को लकर समाज में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। कौन हैं तृप्ति देसाई? - पुणे की रहने वाली तृप्ति देसाई पिछले कई सालों से महिलाओं के हितों के लिए काम कर रही हैं।

400 वर्ष बाद शनि शिंगणापुर में महिलाओं ने की पूजा

Dainiktribune - ‎13 hours ago‎

10804cd _trupti शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के पवित्र चूबतरे की पूजा नहीं करने की 400 साल पुरानी परंपरा शुक्रवार को टूट गयी। ट्रस्ट की ओर से महिलाओं को भी मंदिर के पवित्र स्थान पर पूजा करने की इजाजत मिलने के बाद 2 महिलाओं ने वहां पूजा की। इसके बाद भू माता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने चबूतरे में प्रवेशकर शनि की पूजा की। अब त्र्यंबकेश्वर, महालक्ष्मी मंदिर की बारी : ट्रस्ट के इस फैसले का तृप्ति देसाई ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा, ''देर से आए लेकिन दुरुस्त आए।'' उन्होंने उम्मीद जतायी नासिक के त्र्यंबकेश्वर और कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर भी महिलाओं के ...



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दूसरे चरण के मतदान में फिर वही भूतों का नाच जारी रहने का अंदेशा क्योंकि शिकायत दर्ज कराने में वाम कांग्रेस गठबंधनन ने कर दी देरी प्रधानमंत्री को औकात भी बताने लगीं मुख्यमंत्री,लोकतंत्र का नजारा यह भी। दीदी ने भाजपा को भयानक जाली पार्टी भी कहा। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

Previous: जब तक धर्म है,तब तक स्त्री का उत्पीड़न चलता रहेगा क्योंकि सारे पवित्र ग्रंथों में स्त्री के उत्पीड़न का न्याय है ,जिसमें स्त्री के लिए समानता और अधिकार कहीं नहीं है। दुस्समय में पितृसत्ता के विरुद्ध, मनुस्मृति के खिलाफ स्त्री चेतना बदलाव की आहट है तो शनिदेवता की वक्रदृष्टि से भी सावधान! अब राममंदिर अभियान की तर्ज पर स्त्रियों का मंदिर प्रवेश का राष्ट्रव्यापी आंदोलन होगा और जो सभी स्त्रियों के हिंदुत्वकरण का सबसे कारगर कार्यक्रम होगा। महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में शुक्रवार को 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई। तो इसका मुआवजा स्त्री चेतना के हिंदुत्वकरण से ही भरना होगा। देश भर में तमाम फौरी और बुनियादी मुद्दों को पीछे छोड़कर धर्मांध स्त्रियां देव देवी की शरणागत बनने के लिए बाकायदा जुलूस निकालकर मंदिरों के गर्भगृह में जाने लगे तो इससे देश का केसरिया राष्ट्रवाद ही मजबूत होगा। स्री की बुनियादी समस्यायें और हिंदू समाज,हिंदू परिवार और हिंदू राष्ट्र में स्त्री की दशा दिशा जस की तस बनी रहेंगी।
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दूसरे चरण के मतदान में फिर वही भूतों का नाच जारी रहने का अंदेशा

क्योंकि शिकायत दर्ज कराने में वाम कांग्रेस गठबंधनन ने कर दी देरी

प्रधानमंत्री को औकात भी बताने लगीं मुख्यमंत्री,लोकतंत्र का नजारा यह भी।

दीदी ने भाजपा को भयानक जाली पार्टी भी कहा।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप

दूसरे चरण के मतदान में फिर वही भूतों का नाच जारी रहने का अंदेशा है क्योंकि शिकायत दर्ज कराने में वाम कांग्रेस गठबंधन ने कर दी देरी कर दी है।चुनाव आयोग की भूमिका दीदी मोदी गठबंधन के बंदोबस्त के मुताबिक है।अफसरान धांधली के लिए तैनात कर दिये गये हैं और वे बेखौफ अपना काम कर रहे हैं।जबकि भूत बिरादरी दूसरे चरण में जिन 31 सीटों पर मतदान होने जा रहा है,वहां बेहद मजबूत है।गौरतलब है कि माकपा के राज्य सचिव डॉ सूर्यकांत मिश्रा ने मांग की है कि इस मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग जांच करे। मिश्रा ने कहा कि प्रथम चरण के मतदान के दौरान कई बूथों के अंदर राज्य पुलिसकर्मियों को देखा गया।


इसी बीच चिटपुट हिसां की वारदातों के जरिये दहशत का माहौल दमघोंटू बनता जा रहा है।वर्दमान के जिस मंगलकोट में तत्कालीम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सत्तादलके हमले से जान बचाकर धोती उठाये जान बचाने के लिए भागते नजर आये थे, वहां फिर तृणमूली और माकपाई समर्थक भिड़ गये।


वहां आकतुल गांव में शुक्रवार की रात हुई हिसां में आधा दर्जन लोग जख्मी हो गये हैं।ऐसे मंगलकोट बंगाल के कोने कोने में दहक रहे हैं और पुलिस प्रशासन कानून व्यवस्था को नियंत्रण करने के बजाय दीदी की जीत तय करने में लगा है और चुनाव आयोग और केंद्रीय वाहिनी सिर्फ तमाशबीन है।

अभी भूत बिरादरी के कारण एडवेंटेज ममता बनर्जी है।वाम कांग्रेस गठबंधन ने चुनाव आयोग से जंगल महल में दिनदहाड़े भूतों के नाच के बारे में शिकायत दर्ज कराने में काफी देर कर दी है,जबकि मतदान के दिन ही हस्तक्षेप ने मतदान में धांधली और जबरदस्ती का खुलासा कर दिया था और संशोधित मतदान आंकड़े जारी होते न होते रपट टांग दी थी।


अब इस देरी की वजह से कमसकम दूसरे चरण के मतदान में फिर वही भूतों का नाच जारी रहने का अंदेशा है।


गठबंधन के मुख्यमंत्री प्रत्याशी सूर्यकांत मिश्र और कांग्रेस के कमसकम दो बड़े नेता मानस भुइयां और ज्ञानसिंह सोहनपाल को हराने के लिए सत्ता गठजोड़ ने मोर्चाबंदी कर ली है।


11 अप्रैल को जंगल महल के ही पश्चिम मेदिनीपुर की तेरह,बांकुड़ा की 9 और बर्दवान की नौ सीटों पर मतदान होना है जहांपहले चरण की तरह धांधली रोकने का कोई पुख्ता इंतजाम न चुनाव आयोग का है और न वाम कांग्रेस गठबंधन का।


इन दो चरणों में हिसाब बराबार हो जाने का अंदेशा भी है लेकिन केंद्र सरकार के मातहत काम करने वाले चुनाव आयोग का रवैया तो समझ में आता है,वाम कांग्रेस गठबंधन की इस चूक का मतलब समझना मुश्किल है


इसी बीच बंगाल के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को चुनौती दी है कि उनकी हिम्मत है तो वे उन्हें गिरप्तार करके दिखा दें।


जाहिर है कि बंगाल के चुनाव प्रचार अभियान में प्रधानमतंत्री के एकतरफा आरोपों का जावब दिये बिना उनकी साख बचेगी नहीं और गुपचुप गठबंधन का खेल अब उतना छुपा नहीं है तो उन्हें यह चुनौती देनी ही थी।


यह कुल किस्सा गली मोहल्ले में या बस ट्रेन में आम नोंक झोंक का मामला है जिससे कुछ बनता बिगड़ता है नहीं।यह लोकतंत्र के गिरते हुए स्तर का नजारा है,जिसपर अफसोस होना चाहिए।


पहली बात तो यह है कि अगर सचमुच ममता बनर्जी के खिलाफ प्रधानमंत्री जो आरोप लगा रहे हैं,उनमें सच है तो केंद्र सरकार और केंद्रीय एजंसियों के पास उसके सबूत भी होंगे।ऐसे में बेहतर होता तो कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार इतने गंभीर आरोपों के मद्देनजर ममता बनर्जी के खिलाप प्रशासनकि स्तर पर कोई कार्रवाई करती।ऐसा न करके उन्होंने ममता बनर्जी को उनकी औकात बताने का मौका दिया है।


मोदी के ारोपों के जबाव में अपने चुनावी भाषण में  ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी पर करारे वार किये। उन्होंने भाजपा को 'भयानक जाली पार्टी'का नया नाम देते हुए प्रधानमंत्री पर भी निशाना साधा और चुनौती दी है कि उनकी अगर औकात है तो वे उन्हें गिरप्तार करके दिखायें।

आसनसोल में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए दीदी ने कहा,'मैं सिर ऊंचा करके लड़ती हूं। अब तक किसी के सामने नहीं झुकी। प्रधानमंत्री अगर गिरफ्तार करना चाहते हैं तो कर सकते हैं, मुझे इसकी परवाह नहीं।

दीदी ने कहा कि भाजपा बड़ी बड़ी बातें करती है। बात करना आसान होता है पर लोगों के लिए काम करना कठिन। उन्होंने आगे कहा कि भाजपा व प्रधानमंत्री जब भी यहां आए हैं ,मुझ पर आरोप लगाते हैं, पर मैं ऐसा नहीं करती हूं। विपक्ष में होते हुए मैं व्यक्तिगत रूप से न तो प्रधानमंत्री की आलोचना करूंगी और न ही बुद्धदेब भट्टाचार्य की।

प्रधानमंत्री पर निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, 'प्रधानमंत्री मोदी को अपने पद की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए। उन्हें संघीय वयवस्था की उचित रूप से रक्षा करनी चाहिए।'


इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी के रेडियो शो 'मन की बात'का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा कि रेडियो पर केवल मोदी के मन की बात सुनना ऐसे लगता है कि मानो, वह कोई भगवान हैं।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा तृणमूल कांग्रेस पार्टी को टेरर, मौत और करप्शन कहे जाने के जवाब में बनर्जी ने भाजपा को भयानक जाली पार्टी का संबोधन किया।


दूसरी तरफ,वाम लोकतांत्रिक गठबंधन को लगता है कि चुनाव आसानी से जीत जाने की खुशफहमी हो गयी है।जबकि ऐसा कतई नहीं है।गठबंधन होने से जमीनी हालात रातोंरात बदल नहीं गये हैं।वैसे भी बंगाल में हर चुनाव क्षेत्र में सीधी मुकाबला होता है और हद से हद मुकाबला तिकोणा होता है।बाकी उम्मीदवारों को फालतू वोट नहीं मिलते।वोट बंटने का सवाल ही नहीं होता।वोटबैंक का गणित भी बहुत बदला नहीं है।


इसके बावजूद जैसे आज सुबह हस्तक्षेप पर शेष नारायण जी ने लिखा है,हालात ममता बनर्जी के खिलाफ है और हवा भी उन्हींके खिलाफ है।इस बरा सारे आरोप शारदा चिटफंड की तरह रफा दफा नहीं होंगे।क्योंकि जनता के समाने एक विकल्प है और वोटरों को साफ साफ लगता है कि ममता बनर्जी अपराजेय नहीं हैं।इसका मतलब यह नहीं है कि मुकाबला कहीं कांटे का नहीं है।


बहरहाल प्रथम चरण के तहत चार अप्रैल को 18 विधानसभा सीटों के लिए हुए मतदान के दौरान सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और चुनाव आयोग की भूमिका पर माकपा ने एक बार फिर सवाल उठाया है। माकपा के राज्य सचिव डॉ सूर्यकांत मिश्रा ने आरोप लगाया है कि तृणमूल कांग्रेस ने वोट लूट का नया तरीका ढूंढ़ निकाला है।

माकपा का आरोप है कि कई केंद्रीय बल के जवानों का यूनिफार्म पहन कई सिविक वोलेंटियर मतदान के दौरान सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस कार्म करते देखे गये।


18 सीटों पर हुए मतदान के प्रतिशत में इजाफे को लेकर मिश्रा ने दावा किया कि पहले चरण के तहत हुए मतदान में तृणमूल का सूपड़ा साफ हो गया है। हालांकि शेष मतदान शांतिपूर्ण और निष्पक्ष हो, यह बात चुनाव आयोग सुनिश्चित करे। करोड़ों रुपये सारधा चिटफंड घोटाले और नारद स्टिंग ऑपरेशन का जिक्र करते हुए माकपा के राज्य सचिव डॉ सूर्यकांत मिश्रा ने आरोप लगाया है कि राज्य में इससे पहले इस तरह की भ्रष्ट सरकार सत्ता में नहीं आयी थी।

सारधा चिटफंड घोटाले से नारद  स्टिंग ऑपरेशन तक इस चुनाव में भ्रष्टाचार अन्य प्रमुख मुद्दों में से एक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तृणमूल सरकार पर कटाक्ष किये जाने के मसले पर पूछे जाने पर माकपा नेता ने आरोप लगाया कि तृणमूल और भाजपा की नीति समान है।


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बाबा साहेब के सवालों का जवाब अंग्रेजों को नहीं, भाजपा सरकार को देना है

Next: भूतों का नाच काफी नहीं,जीत के लिए जनता की अदालत में दीदी,मान भी लिय़ा कि घूसखोरी हुई है और जांच का वादा भी कर दिया! भूतों का क्या है,जब तक चुनाव आयोग और केंद्र सरकार और उनकी एजंसियां मेहरबान है,बांस के जंगल में खिलेंगे फूल वरना हालात खराब इतने हैं कि साफ हो जायेगा तृणमूल! बाहर वालों को घर आंगन साफ सुफरा करने के लिए झाड़ु हाथ में अवतरित हैं और बाजार में खड़ा होकर हांक लगा रही हैं कि घूसखोरी तो हुई है क्योंकि घूस दी गयी है।लेकिन तृणमूल किसी को बख्शेगी नहीं। केंद्र सरकार भले जांच न करायें,यह उसकी राजनीति है।दीदी अपने ही मंत्रियों,सांसदों और मेयरों की जांच कराने लगी है।नारद स्टिंग को सच मानकर अब तृणमूल तृणमूल की जांच करा रही है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप
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बाबा साहेब के सवालों का जवाब अंग्रेजों को नहीं, भाजपा सरकार को देना है


बाबा साहेब की प्रासंगिकता

– संजय पराते

डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर भारतीय समाज के दलित-शोषित-उत्पीड़ित तबकों के विलक्षण प्रतिनिधि थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म में जन्म तो लिया, लेकिन एक हिन्दू के रूप में उनका निधन नहीं हुआ। एक हिन्दू से गैर-हिन्दू बनने की उनकी यात्रा उनकी स्थापित मूर्तियों में साकार होती हैं, जिसमें वे पश्चिमी पोशाक के साथ संविधान हाथ में लेकर, आधुनिक भारतीय समाज का दिशा-निर्देशन करते दिखते हैं। लेकिन उनकी यह यात्रा महज उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि वे समूचे भारतीय दलित-वंचित तबकों के दमन के विरूद्ध संघर्षों के नायक के रूप में सामने आते हैं। दलित-वंचित तबकों का यह संघर्ष केवल जातिवाद की बेड़ियों से मुक्ति के लिए नहीं है, इस संघर्ष में केवल आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने का सवाल ही निहित नहीं हैं; बल्कि यह संघर्ष एक ऐसी समाज-व्यवस्था के निर्माण का संघर्ष हैं, जहां मनुष्य को मनुष्य के रूप में सम्मान और इज्जत मिले, जहां पददलित-वंचित तबके के लोगों को मानवीय गरिमा के साथ जीने और अपना समग्र विकास करने का अधिकार मिले। ऐसी व्यवस्था के निर्माण के संघर्ष के सामाजिक-राजनैतिक-आर्थिक और सांस्कृतिक आयाम होते हैं।

इस दृष्टि से बाबा साहेब ने जिस संघर्ष की शुरूआत की थी, वह संघर्ष आज भी अधूरा है और अपनी मंजिल पाने को लड़ रहा है। देश की राजनैतिक आज़ादी के बाद भी वह संघर्ष अधूरा है, तो इसलिए कि हमारे शासक वर्ग ने "गोबर के ढेर पर महल का निर्माण"करने की कोशिश की। नतीजा, आज़ादी के बाद और संविधान के दिशा-निर्देशन के बाद भी, एक ऐसे समतावादी समाज के निर्माण में हम असफल रहे हैं, जो सामाजिक न्याय और दलित-वंचित तबकों की मानवीय गरिमा को सुनिश्चित कर सके।

20 नवम्बर, 1930 को गोलमेज अधिवेशन में बाबा साहेब ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद की इन शब्दों में मुखालफत करते हुए 'राजसत्ता'पर अधिकार की मांग की थी —

"… अंग्रेजों के आने के पहले हमारी दलितों की जो स्थिति थी, उसकी तुलना यदि हम आज की परिस्थितियों से करते हैं, तो हम पाते हैं कि आगे बढ़ने के बजाये हम एक स्थान पर कदमताल कर रहे हैं। अंग्रेजों के आने के पहले छुआछूत की भावना के चलते हमारी सामाजिक स्थिति घृणास्पद थी। उसे दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कुछ किया क्या? अंग्रेजों के आने से पहले हमें मंदिरों में प्रवेश नहीं मिला था। वह हमें आज मिल रहा है क्या?…"

अम्बेडकर आज जीवित होते, तो फिर यही सवाल करते कि आज़ादी से पहले जो स्थिति दलित-वंचितों की थी, आज भी वह जस-की-तस है, तो क्यों? क्यों आज रोहित वेमुला आत्म-हत्या कर रहे हैं और क्यों दलित-दमन के अपराधी अदालतों से बाइज्जत बरी हो रहे हैं?? क्यों आज भी दलित और महिलायें मंदिर प्रवेश के लिए संघर्ष कर रही हैं और क्यों संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद आज नौकरियों में आरक्षित सीटें खाली है???

संविधान की जगह मनुस्मृति को स्थापित करने की कोशिशें क्यों चल रही हैं

वे यह भी पूछते कि आज संविधान की जगह मनुस्मृति को स्थापित करने की कोशिशें क्यों चल रही हैं और क्यों आज भी जनता का बहुमत तबका आर्थिक न्याय और न्यूनतम वेतन तक से वंचित हैं????

आज बाबा साहेब नहीं हैं, लेकिन इन सवालों का जवाब अब अंग्रेजों को नहीं, संघ-निर्देशित भाजपा सरकार को देना है, जिसके मुखिया नरेन्द्र मोदी हैं। यही वह संघी गिरोह हैं, जो 'फेंकने'में तो आगे हैं, लेकिन वास्तविकता यही है कि बाबा साहेब के 'धर्म-निरपेक्ष भारत 'को, 'हिंदू राष्ट्र 'में बदलने के लिए ज़हरीला अभियान चला रही है, जिसके बारे में बाबा साहेब ने कहा था —

"अगर इस देश में हिन्दू राज स्थापित होता है, तो यह एक बहुत बड़ी आपदा होगी। … हिन्दू धर्म स्वतंत्रता का दुश्मन है। हिंदूराज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।"

जो चुनौती बाबा साहेब के सामने थी, वही चुनौती अपने आकार में कई गुना बढ़कर आज हमारे सामने उपस्थित हैं। बकौल, के सी सुदर्शन (संघ के पूर्व सरसंघचालक) — "भारत का संविधान हिन्दूविरोधी है। … इसलिए इसको उठाकर फेंक देना चाहिए और हिन्दू ग्रंथों के पवित्र ग्रंथों पर आधारित संविधान को लागू किया जाना चाहिए।"

इसीलिए संघी गिरोह गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने का अभियान चलाता है, जिसे अम्बेडकर ने 'प्रतिक्रांति का दर्शन'कहा था। इसीलिए जब-जब संविधान पर संघी गिरोह हमला करता है और उसकी समीक्षा करने की बात करता है, इस देश के दलित-उत्पीड़ित-वंचित तबके 'मनुस्मृति'को जलाने के लिए आगे आते हैं। प्रकारांतर से यह लड़ाई एक पुरातनपंथी वर्ण व्यवस्था को स्थापित करने के प्रयत्नों के खिलाफ एक वैज्ञानिक-चेतना संपन्न समतावादी आधुनिक भारत के निर्माण के प्रयास के लिए संघर्ष में तब्दील हो जाती है।

यह संघर्ष कितना कटु है, इसका अंदाज़ केवल इस तथ्य से लगा सकते हैं कि संघी गिरोह भारतीय जन-मानस में आये किसी भी प्रगतिशील-वैज्ञानिक चेतना के अंश को मिटा देना चाहता है। 6 दिसंबर, जो कि बाबा साहेब का निर्वाण दिवस भी है, को बाबरी मस्जिद का विध्वंस कोई आकस्मिक कार्य नहीं, बल्कि सुनियोजित षडयंत्र था। यह संघी कुकृत्य बाबा साहेब के संविधान पर हमला भी था और उनकी स्मृति को जनमानस से पोंछने का प्रयास भी। आज वे बाबा साहेब की समूची विचारधारा को हड़पने का अभियान चला रहे हैं और इस क्रम में हास्यास्पदता की हद तक जाकर वे उन्हें संघ-संस्थापक डॉ. हेडगेवार के 'सहयोगी'के रूप में चित्रित कर रहे हैं तथा दुष्प्रचार कर रहे हैं कि उन्हें संघ की विचारधारा में विश्वास था। जबकि बाबा साहेब के किसी भी सामाजिक-राजनैतिक अभियान/संघर्षों में 'काली टोपी, खाकी निक्कर'-वालों की कोई भागीदारी नहीं मिलती। अम्बेडकर तो क्या, देश के किसी भी स्वाधीनता संग्राम सेनानी से साथ संघियों का कभी कोई इन संबंध ही नहीं रहा हैं, क्योंकि इस समूची अवधि में 1925 से लेकर 1947 तक वे अंग्रेजों के साथ ही खड़े रहे और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ अंग्रेजों की मुखबिरी करते रहे। आज़ादी के बाद भी, हिन्दू कोड बिल के मामले में उन्होंने बाबा साहेब के पुतले जलाने तथा उन्हें धिक्कारने का ही काम किया था।

इस प्रकार, बाबा साहेब की विचारधारा का संघी गिरोह की 'वर्णाश्रमी समाज-व्यवस्था और हिन्दू-राष्ट्र के निर्माण की कल्पना'-वाली विचारधारा से सीधा टकराव है। दलित-शोषित-उत्पीड़ित व वंचितों का अपने अधिकारों के लिए संघर्ष जितना तेज होगा, यह टकराव भी उतना ही बढ़ेगा।

इस संघर्ष को तेज करने और आगे बढ़ने के लिए मनुष्य को शोषण से मुक्त करने की चाहत रखने वाली सभी ताकतों को एक साथ आना होगा। अपने जीवन काल में ही अम्बेडकर ने इसे समझ लिया था। 1927 में महाड़ के तालाबों के पानी के लिए जो विशाल सत्याग्रह हुआ और जिसमें 'मनुस्मृति'को जलाया गया, उस आंदोलन में ब्राह्मणों के शामिल होने के बारे में बाबा साहेब ने कहा था —

"जन्म से ऊंची और नीची भावनाओं का बना रहना ही ब्राह्मणवाद है। … हम ब्राह्मणों के खिलाफ नहीं हैं। हम ब्राह्मणवाद के विरोधी हैं। …हमारे इस आंदोलन में कोई भी, किसी भी जाति का व्यक्ति भाग ले सकता है।"

उल्लेखनीय है कि बाबा साहेब के जीवन में उदार और ब्राह्मण समाज-सुधारकों का भी बहुत योगदान रहा था। स्वयं बाबा साहेब ने'अम्बेडकर'सरनेम एक ब्राह्मण शिक्षक से लिया था, जो एक नेक दिल इंसान थे और जिन्होंने उनकी पढ़ाई में काफी मदद की थी।

बाबा साहेब के चिंतन का दायरा केवल जाति-दायरे तक सीमित नहीं था। अपने सामाजिक चिंतन को उन्होंने अर्थनीति और राजनीति से भी जोड़ा। उन्होंने किसानों व मजदूरों का मुद्दा उठाया, कम्युनिस्टों द्वारा हडताल का समर्थन किया तथा कोंकण में जमींदारी प्रथा का विरोध किया। उन्होंने जिस पहली राजनैतिक पार्टी – इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी – का गठन किया, उसका झंडा कम्युनिस्ट पार्टी के झंडे की तरह ही लाल रंग का था। उन्होंने कहा,

"राजनीति वर्ग चेतना पर आधारित होनी चाहिए। जिस राजनीति में वर्ग चेतना ही न होवह राजनीति तो महज ढोंग है। इसलिए आपको ऐसी राजनैतिक पार्टी से जुड़ना चाहिएजो वर्गीय हितों व वर्गीय चेतना पर आधारित हो।"

13 फरवरी, 1938 को नासिक में रेलवे दलित वर्ग कामगार सम्मलेन में बोलते हुए उन्होंने कहा –

-"मेरे ख्याल से ऐसे दो

संजय पराते, माकपा की छत्तीसगढ़ इकाई के सचिव हैं।संजय पराते, माकपा की छत्तीसगढ़ इकाई के सचिव हैं।

शत्रु हैं, जिनसे इस देश के मजदूरों को निपटना ही होगा। वे दो शत्रु हैं — ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद। … यदि समाजवाद लाना है, तो इसे लाने का सही तरीका है — इसे जन-जन तक प्रचारित करना और आमजनों को इस उद्देश्य के लिए संगठित करना। समाजवाद गिने-चुने कुलीन वर्गों या भद्रजनों को रिझाने-फुसलाने से तो नहीं आयेगा।"

1937-38 में बाबा साहेब ने कम्युनिस्टों के साथ मिलकर किसानों की बड़ी-बड़ी रैलियां की। इन रैलियों में प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता  शामलाल परूलेकर, बी टी रणदिवे, जी एस सरदेसाई तथा एस ए डांगे ने भी हिस्सा लिया। खोट प्रथा को समाप्त करने तथा साहूकारी शासन को हटाने की मांग को लेकर 12 मार्च, 1938 को बंबई में 20000 किसानों ने पदयात्रा की। कम्युनिस्टों व क्रांतिकारियों के प्रभाव को रोकने के लिए बंबई प्रांत के कांग्रेस मंत्रालय ने औद्योगिक विवाद विधेयक पेश किया। इसके खिलाफ व्यापक अभियान चलाया गया। 7 नवम्बर को हड़ताल आयोजित की गई और इसके आयोजन के लिए आईएलपी, कम्युनिस्टों तथा उदारवादियों की संयुक्त समिति गठित की गई। हड़ताल जबरदस्त रूप से सफल रही। एक लाख लोगों की सार्वजनिक रैली आयोजित हुई, जिसे अम्बेडकर व डांगे ने संबोधित किया। इस रैली में दलित कामगारों ने पूरी तरह से भाग लिया। रैली में पुलिस के साथ हुई झड़प में 683 मजदूर घायल हुए थे। बंबई में मृत कामगारों की स्मृति में कम्युनिस्टों के नेतृत्व वाली मजदूर यूनियन द्वारा आयोजित जुलूस और सभा में अम्बेडकर भी शामिल हुए।

इस प्रकारइतिहास में बाबा साहेब के संघियों के साथ नहींबल्कि कम्युनिस्टों के साथ संबंधों के ही पुष्ट प्रमाण मिलते हैं।

लेकिन फिर भी यह स्पष्ट है कि बाबा साहेब मार्क्सवादी नहीं थे और कम्युनिस्ट भी अम्बेडकर की विचारधारा के अनुयायी नहीं है। शोषण से मानवता की मुक्ति की चाहत रखने वाली ये दोनों धाराएं कालांतर में समानांतर और सशक्त रूप से विकसित हुई। पहले के लिए जातिप्रथा का उन्मूलन सर्वोच्च था, दूसरे के लिए वर्गीय शोषण के खिलाफ संघर्ष का महत्त्व था। लेकिन स्वतंत्रता के बाद का अनुभव बताता है कि दोनों संघर्ष एक-दूसरे के पूरक हैं और संघर्ष की इन दोनों धाराओं में समन्वय आज सबसे बड़ी जरूरत है। जातिवाद के खिलाफ लड़ाई छेड़े बिना मजदूर के दिल में बैठे "ब्राह्मणवाद"को मारा नहीं जा सकेगा। यह 'ब्राह्मणवाद'वर्गीय एकता का सबसे बड़ा दुश्मन है, जो एक मेहनतकश को दूसरे मेहनतकश से अलग करता है। इसी प्रकार, वर्ग संघर्ष को तेज किये बिना संपत्ति के असमान वितरण की समस्या से नहीं जूझा जा सकता, क्योंकि वर्गीय शोषण जातीय भाईचारा नहीं देखता और अपने आर्थिक प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए एक धनी दलित दूसरे गरीब दलित के शोषण से भी नहीं हिचकता। इसलिए वर्गीय दृष्टि से शोषित वर्ग की सामाजिक दृष्टि से दलित-वंचित-उत्पीड़ित तबकों के साथ एकता समाज के रूपांतरण के लिए बहुत जरूरी है — एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए जहां सामाजिक न्याय, आर्थिक स्वतंत्रता व राजनैतिक अधिकार सुनिश्चित किये जा सके।

1890 में ज्योतिबा फुले ने कहा था –

"शिक्षा के अभाव में ज्ञान का लोप हो जाता हैज्ञान के अभाव में विकास का लोप हो जाता है,विकास के अभाव में धन का लोप हो जाता हैधन के अभाव में शूद्रों का विनाश हो जाता है।"

ज्योतिबा का यह कथन आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को जोड़ने की राह दिखाता है।

आज ये दलित-उत्पीड़ित-वंचित तबके उत्पादन के साधनों व क्रय-शक्ति की सामर्थ्य – दोनों से वंचित हैं। जमीन पर अधिकार का मुद्दा इस तबके को एकजुट करता है और उसे वर्गीय शोषण और जातीय उत्पीड़न से लड़ने के लिए प्रेरित करता है। जल, जंगल, जमीन, खनिज व अन्य प्राकृतिक संसाधनों को जिस प्रकार कार्पोरेट लूट के हवाले किया जा रहा है और इस लूट को सुनिश्चित करने के लिए जिस प्रकार संविधान के बुनियादी आधारों पर हमला किया जा रहा है, उसके खिलाफ संघर्ष केवल वामपंथी तथा अम्बेडकर की विचारधारा से प्रतिबद्ध ताकतें ही चला सकती हैं। लाल रंग वर्ग संघर्ष का और नीला रंग सामाजिक न्याय का प्रतीक है। लाल और नीले की एकता – कुंओं और कारखानों, खेतों व मंदिरों पर लाल व नीले झंडे की फरफराहट – ही इस देश में बुनियादी परिवर्तन के संघर्ष को आगे बढ़ा सकती हैं। यही समय की मांग है। इसी मायने में बाबा साहेब आज भी प्रासंगिक हैं।

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भूतों का नाच काफी नहीं,जीत के लिए जनता की अदालत में दीदी,मान भी लिय़ा कि घूसखोरी हुई है और जांच का वादा भी कर दिया! भूतों का क्या है,जब तक चुनाव आयोग और केंद्र सरकार और उनकी एजंसियां मेहरबान है,बांस के जंगल में खिलेंगे फूल वरना हालात खराब इतने हैं कि साफ हो जायेगा तृणमूल! बाहर वालों को घर आंगन साफ सुफरा करने के लिए झाड़ु हाथ में अवतरित हैं और बाजार में खड़ा होकर हांक लगा रही हैं कि घूसखोरी तो हुई है क्योंकि घूस दी गयी है।लेकिन तृणमूल किसी को बख्शेगी नहीं। केंद्र सरकार भले जांच न करायें,यह उसकी राजनीति है।दीदी अपने ही मंत्रियों,सांसदों और मेयरों की जांच कराने लगी है।नारद स्टिंग को सच मानकर अब तृणमूल तृणमूल की जांच करा रही है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

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भूतों का नाच काफी नहीं,जीत के लिए जनता की अदालत में दीदी,मान भी लिय़ा कि घूसखोरी हुई है और जांच का वादा भी कर दिया!

भूतों का क्या है,जब तक चुनाव आयोग और केंद्र सरकार और उनकी एजंसियां मेहरबान है,बांस के जंगल में खिलेंगे फूल वरना हालात खराब इतने हैं कि साफ हो जायेगा तृणमूल!

बाहर वालों को घर आंगन साफ सुफरा करने के लिए झाड़ु हाथ में अवतरित हैं और बाजार में खड़ा होकर हांक लगा रही हैं कि घूसखोरी तो हुई है क्योंकि घूस दी गयी है।लेकिन तृणमूल किसी को बख्शेगी नहीं।


केंद्र सरकार भले जांच न करायें,यह उसकी राजनीति है।दीदी अपने ही मंत्रियों,सांसदों और मेयरों की जांच कराने लगी है।नारद स्टिंग को सच मानकर अब तृणमूल तृणमूल की जांच करा रही है।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप

क्योंकि हवाएं बदल गयी है।अब भूतों के नाच का भी कुछ ज्यादा भरोसा नहीं है।माकपा नेतृत्व के रवैये से सांप सूंग गया है तृणमूल कांग्रेस को।अगर जंगल महल में शत फीसद वोट तृणमूल कांग्रेस को गिरे हैं,तो वाम और कांग्रेस बेचैन क्यों नहीं हैं,सत्तादल के चुनावी हिसाब किताब की सबसे बड़ी पहेली यही है कि वाम कांग्रेस गठबंधन ने जंगल महल में चुनाव रद्द करने की मांग अभी तक नहीं की है।तो क्याभूतों की वफादारी भी शक के घेरे में हैं।खासकर जंगल महल में आखिरी फैसला माओवादी करते हैं जेसे पिछले चुनावों में खुल्ला माओवादी समर्थन से दीदी सड़क से उठकर सीधे सत्ता में आ गयी।

अबकि दफा माओवादी फतवा दीदी के खिलाफ है।

सत्ता पक्ष को इसका कोई भरोसा नहीं है कि भूत किसके हक में नाच रहे हैं और भूतों का वोट किसे मिला है।

जंगल महल के पूरे 49 विधानसभा क्षेत्रों में शत फीसद वोट भूत भी डालें तो भी दीदी की जीत तय नहीं है क्योंकि अबकी दफा माओवादी दीदी को हराने की कसम खाये बैठे हैं।

इसी वजह खासे बेकायदे में  दीदी जैसी जिद्दी शख्सियत ने कहने को तो प्रधानमंत्री तक को अपनी औकात बता देने में कोताही नहीं की संघ परिवार के साथ नूरा कुश्ती के मैदान में अपने जिहादी तेवर के तहत।लेकिन तेवर उनके ढीले पड़ रहे हैं।


देश देख रहा है तमाशा और केंद्र सरकार और केंद्रीय एजंसियां घूसखोरी के रोज रोज के कुलासे के बावजूद खामोश है क्योंकि दीदी को कटघरे में खड़ा करने या दीदी को पाक साफ साबित करने में उसकी दिलचस्पी नहीं है।


धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण से बंगाल में कोई फायदा नहीं है,सिर्फ इसलिए जुबानी गोलीबारी के तहत भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दीदी पह हमला करते हुए बंगाल में अपने उम्मीदवारों की जमानत बचाने की कवायद कर रहा है संघ परिवार।


"नारद स्टिंग ऑपरेशन वीडियो में अपने कुछ नेताओं के कथित रूप से रिश्वत लेते हुए दिखने के करीब एक महीने बाद तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस, माकपा और भाजपा पर पार्टी को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए शनिवार को मामले की आतंरिक जांच कराने की घोषणा की। पार्टी ने दावा किया कि अगर पार्टी का कोई सदस्य दोषी पाया गया तो कार्रवाई की जाएगी।"


केंद्र जांच कराये या न करायें,दीदी की साख दांव पर है।उनकी साड़ी की नफासत उनकी हवाई चप्पल की सादगी से बेमेल है और उनकी तस्वीर में ईमानदारी पर धब्बे बहुत मुखर ।


भूतों का क्या है,जब तक चुनाव आयोग और केंद्र सरकार और उनकी एजंसियां मेहरबान है,बांस के जंगल में खिलेंगे फूल वरना हालात खराब इतने हैं कि साफ हो जायेगा तृणमूल।


पहले पहल दीदी ने नारद के दंश को गुपचुप झेल लिया और फिर सारधा मार्का तेवर दिखाने शुरु किये।


फिर देखा कि सारा का सारा मीडिया रोज रोज भंडाफोड़ करने लगा है तो दीदी ने देखा कि हमलावर तेवर से काम चलेगा नहीं तो उनने सफाई देने की कोशिश की कि घूस जो दे रहे हैं,उनका अपराध भारी है।


जमीन की हलचलों से फिजां ही बदल जाने की खुफिया जानकारी मिलने लगी तो दीदी ने वोटरों से माफी मांगना शुरु किया।


अब गुपचुप गठबंधन के तहत चुनाव आयोग और केंद्रीय वाहिनी के सहयोग के बावजूद दीदी की जैसी मजबूरी है कि वे खुलकर मोदी और संघ परिवार के साथ खड़ी नहीं हो सकती तो संघ परिवाार की मजबूरी है कि उसे भी बंगाल और पूर्वी भारत में अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए दीदी के किलाफ राजनीतिक विरोध की भाषा के तहत हमले जरुर करने हैं।


अब एकतरफ वाम कांग्रेस गठबंधन और दूसरी तरफ,भाजपा के तीखे हमले के सामने दीदी के लिए एक ही रास्ता खुला है कि वे हर हाल में अपनी ईमानदारी की पोटली बचा लें और जी जान से वे ऐसा ही कर रही है।इसीलिए खुद अपनी जांच कराने का यह हैरतअंगेज फैसला कितना अटपटा लगे,दीदी का यह आखिरी दांव है।


केंद्र सरकार सीबीआई जांच वगैरह करा देती तो दीदी के पास कहने को था कि देखो,सारधा मामले में कुछ भी नहीं निकला और यह मां माटी मानुष के किलाप गहरी साजिश है।


केंद्र सरकार के रवैये,केंद्रीय एजंसियों की नौटंकी और चुनाव आयोग की मेहरबानी और तमाशबीन केंद्रीय वाहिनी ने दीदी की ईमानदारी और साख के लिए गहरा संकट खड़ा कर दिया है।


बाहर वालों को घर आंगन साफ सुफरा करने के लिए झाड़ु हाथ में अवतरित हैं और बाजार में खड़ा होकर हांक लगा रही हैं कि घूसखोरी तो हुई है क्योंकि घूस दी गयी है।लेकिन तृणमूल किसी को बख्शेगी नहीं।


केंद्र सरकार भले जांच न करायें,यह उसकी राजनीति है।दीदी अपने ही मंत्रियों,सांसदों और मेयरों की जांच कराने लगी है।


नारद स्टिंग को सच मानकर अब तृणमूल तृणमूल की जांच करा रही है।


गौरतलब है कि तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी ने कहा, पार्टी इस स्टिंग ऑपरेशन की आतंरिक जांच कराएगी।


यह बचाव का आखिरी रास्ता है क्योंकि हवाएं बदल गयी है।अब बूतों के नाच का भी कुछज्यादा भरोसा नहीं है।

जाहिर है कि केंद्र सरकार के भरोसे न रहकर और संघ परिवार की रणनीति के भरोसे बैटे न रहकर तृणमूल कांग्रेस का ऐलान है कि  यदि कोई दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।


तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी ने कहा कि इस बात की भी जांच की जाएगी कि क्या अन्य दलों के नेताओं ने भी यह स्टिंग ऑपरेशन कराने में मदद की थी। जीहिर है कि रस्मअदायगी बतौर उन्होंने आरोप भी लगाया कि कांग्रेस, माकपा और भाजपा के नेता तृणमूल को बदनाम करने में लगे हैं।

गौरतलब है कि तृणमूल ने पहले उन टेपों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वह असली नहीं हैं और इन्हें छेडछाड़ कर बनाया गया है। उसने कहा था कि छवि खराब करने वाले इस अभियान के पीछे राजनीतिक विरोधियों का हाथ है।


अब मजा देखिये कि चटर्जी ने कहा, हमारे पास भी विपक्षी दलों के विरूद्ध कई स्टिंग हैं। लेकिन हम ऐसे गंदे खेल खेलने में यकीन नहीं करते।इतनी पाक साफ राजनीति तो भारत में कहीं हो भी नहीं रही है।

बहरहाल चटर्जी ने एक वरिष्ठ माकपा नेता पर आईवीआरसीएल में शामिल होने का आरोप लगाया, इसी कंपनी ने उस फ्लाईओवर का निर्माण कराया जो हाल ही में गिर गया।

तृणमूल की आतंरिक जांच पर पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने कहा, यह लोगों का दवाब ही है कि उसने मामले की जांच करने का फैसला किया है। लेकिन वह इसकी सीबीआई जांच से क्यों भयभीत है।


तृणमूल की आतंरिक जांच पर इसी तरह  भाजपा विधायक शामिक भट्टाचार्य ने कहा कि इस मामले की आतंरिक जांच का फैसला कुछ नहीं बल्कि आंख में धूल झोंकने जैसा है।


माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य मोहम्मद सलीम ने ट्वीट किया कि बनर्जी के ड्रामे और बाद के हमले सारदा घोटाले से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए किए गए थे।



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मुसलमानों और बंगाली दलित शरणार्थियों को घुसपैठिया करार हिंदू राष्ट्र से खदेड़ने की मुहिम संघ परिवार की! आसू और उल्फा के नक्शेकदम पर फिर भारत की नागरिकता के लिए आधार वर्ष 1951 का भाजपाई अलाप और असम पर मंडराने लगा फिर नेल्ली नरसंहार का काला साया। पलाश विश्वास

Next: लू की मार और बाल्टियों की बहार,खून की धार! इसी के मध्य दोपहर एक बजे तक रिकार्ड साठ फीसद वोट पड़ गये। जेटली ने नारद स्टिंग की जांचे से किया इंकार। सबसे बड़े बांग्ला दैनिक में बैनर छपा है कि दीदी ने फरमान जारी किया है कि सारी सीटें चाहिए और दीदी के तमाम भाई बूथों पर बाल्टी लेकर मुश्तैद लामबंद हैं।मतदान के शुरुआती आंकड़ों से साफ है कि बाल्टियों का जमकर इस्तेमाल हुआ और दूध के बदले लोकतंत्र पानी पानी है।मतदान अबकी दफा भी अनेक बूथों पर सौ फीसद हो जाने का नजारा बहार है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप
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मुसलमानों और बंगाली दलित शरणार्थियों को घुसपैठिया करार हिंदू राष्ट्र से खदेड़ने की मुहिम संघ परिवार की!

आसू और उल्फा के नक्शेकदम पर फिर भारत की नागरिकता के लिए आधार वर्ष 1951 का भाजपाई अलाप और असम पर मंडराने लगा फिर नेल्ली नरसंहार का काला साया।

पलाश विश्वास


असम में तो अंतिम चरण का मतदान कल ही होने वाला है लेकिन बंगाल में जंगल महल में ही कल दूसरे चरण का मतदान है और बाकी बंगाल में जहां बड़े पैमाने पर संघ परिवार के समर्थक हिंदू शरणार्थी हैं,उन्हें मालूम भी नहीं है कि संघ परिवार के हिंदुत्व एजंडे में उनके लिए देश निकाले का पुख्ता इंतजाम है।


गौरतलब है कि संघ परिवार ने असम जीतने के लिए  ने हाल ही में असम चात्र आंदोलन और उल्फा की पृष्ठभूमि में बने असम गण परिषद के साथ गठबंधन बनाया है।मुसलमानों और दलित बंगाली शरणार्थियों के खलाप घृणा अभियान ही नहीं बाकायदा युद्ध जैसी परिस्थितियां बनाकर संघ परिवार  की कोशिश असम को फिर गुजरात बना देने की है।इसी रणनीति के तहत केंद्रीय मंत्री और असम में बीजेपी का प्रमुख चेहरा रहे सर्वानंद सोनवाल विधानसभा चुनाव से पहले अवैध घुसपैठ का मामला उठाते रहे हैं। चुनाव से पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि बीजेपी और अमस गण परिषद का गठबंधन बांग्लादेशी  घुसपैठियों को मदद पहुंचाने वाले राजनीतिक ताकतों का मुकाबला करेगा।


गौर करें कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान असम और बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा जोऱ शोर से उठाया था नरेंद्र मोदी और अमित साह ने।तब ममता बनर्जी ने इसका मुंहतोड़ जवाब जरुर दिया था लेकिन इस इकलौते मुद्दे के दम पर बंगाल और असम के बंगाली हिंदू शरणार्थियों का एक बड़ा हिस्सा संघ समर्थक हो गयाथा जिसके नतीजतन बंगाल में भाजपा को तब सत्रह फीसद वोट मिले।


तब संघ परिवार हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए कानून बदलने का वायदा कर रहा था और सीधे शब्दों में मुसलमानों को घुसपैठिया बता रहा था।


गौरतलब है कि नागरिकता कानून में भी इस बीच संशोधन हुए तो पूर्वी बंगाल से आये शरणार्थियों को नागरिकता देने का कोई प्रावधान नहीं हुआ।


हिंदू दलित बंगाली शरणार्थी भाजपाई गाजर चबाते हुए अब भी 2003 और 2005 में नागरिकता से वंचित होने के बाद नागरिकता दोबारा मिलने का इंतजार कर रहे हैं।


जैसा कि संशोधित नागरिकता कानून में आधार वर्ष 1948 माना गया है और उसके बाद बिना वैध कागजात के भारत आने वाले सारे लोग घुसपैठिया माने जायेंगे,उसी के मुताबिक संघ परिवार बंगाल में इस मुद्दे को उठाये बिना असम में नागरिकता के लिए आधार वर्ष 1951 बताने लगा है।


भाजपा के आरोप कि असम की कांग्रेस सरकार घुसपैठियों का संरक्षण कर रही है, पर पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने बुधवार (6 अप्रैल) को आश्चर्य जताया कि केन्द्र की राजग सरकार ने उन्हें कोई कारण बताओ नोटिस क्यों नहीं जारी किया।


गोगोई ने पलटकर सवाल किया कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने पिछले दो वर्षों में उनसे घुसपैठ के मुद्दे पर चर्चा क्यों नहीं की और सीमा पार से अवैध आव्रजन को अनुमति देने तथा घुसपैठियों को बचाने के मामले में कारण बताओ नोटिस क्यों नहीं भेजा।


उन्होंने कहा, ''जब मामला इतना गंभीर है, फिर सिर्फ चुनाव के वक्त इसे बाहर क्यों लाना है? यह आपके हिमंत बिस्वास शर्मा, जो मेरी सरकार में असम समझौता क्रियान्वयन मंत्री थे, कि जिम्मेदारी थी कि वह सभी अवैध अव्रजकों को वापस भेंगे। यदि असम में इतने विदेशी हैं तो, बतौर मंत्री हिमंत ने उन्हें संरक्षण क्यों दिया?''


उन्होंने कहा, ''मैंने किसी बांग्लादेशी को शरण नहीं दिया है। मुझे उनके वोटों की जरूरत नहीं है। भारतीय नागरिकों की रक्षा करना मेरा संवैधानिक कर्तव्य है। वह मैं था जिसने अवैध आव्रजकों की पहचान करने के लिए राष्ट्रीय नागरिक पंजीयन में सुधार किया।''


गोगोई ने दावा किया कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर कंटीले तारों का बाड़ा लगाने और घुसपैठ रोकने के लिए नदी पुलिस शुरू करना उनके 15 वर्षों के कार्यकाल में हुआ, ना कि तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने कराया।


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए गोगोई ने कहा कि प्रधानमंत्री ने ''अच्छे दिन''का राग अलापना बंद कर दिया है क्योंकि वह अच्छे दिन लाने के लिए कुछ भी करने में असफल रहे हैं।


गौरतलब है कि 1979 में जब असम में विदेशी घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ तब "आल असम स्टूडेन्ट्स यूनियन' (आसू) के नेता यही कहते थे कि वे इस आंदोलन को, चाहे जो हो, अहिंसक ही रखेंगे।लेकिन तब नेल्ली जैसा नरसंहार भी हुआ।


बाद में आसू में विभाजन हो गया, क्योंकि उसमें कई लोग ऐसे थे जो मानते थे कि अहिंसा पर चलकर यह उद्देश्य प्राप्त नहीं होगा, इसलिए हथियार उठाने होंगे। नतीजतन उल्फा का जन्म हुआ।


उल्फा को 1985 में असम गण परिषद् (अगप) सरकार के गठन के समय काफी जनसमर्थन मिला था। अगप सरकार दरअसल इन्हीं छात्र नेताओं से बनी थी।


बहरहाल अस्सी के दशक में घुसपैठियों के खिलाफ हुए आंदोलन के बाद आंदोलनकारियों के साथ हुए समझौते में नागरिकता के लिए आधार वर्ष 1971 माना गया और इसके बाद भी संघ परिवार की पहल पर 2003 में पास नागरिकता संशोधन कानून के लागू हो जाने के बावजूद 1971 तक आये बंगाली शरणार्थियों को नागरिकता दिये जाने का वायदा किया जा रहा था जबकि बंगाली शरणार्थी 1971 के बाद आये शरणार्थियों को भी नागरिकता देने की मांग लेकर देशभर में आंदोलन कर रहे है ंऔर उनके मंचों पर संघ परिवार के शीर्ष नेता जब तब शरणार्थी नेताओं के साथ नजर आते रहे हैं।


दरअसल श्रीमती इंदिरा गांधी तब प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने प्रणव मुखर्जी के जरिए यह पेशकश की थी कि 1966 को भारत सरकार आधार वर्ष के रूप में मानकर उसके बाद के वर्षों से विदेशी नागरिकों का आकलन करेंगे।


तब "आसू' ने कहा कि "नहीं, 1951 को आधार वर्ष माना जाए'।


बहरहाल असम समझौते के तहत 1971 को आधार वर्ष माना गया है। इसमें एक अजीब बात यह हुई कि शेष भारत के लिए यह वर्ष जुलाई, 1948 और असम के लिए 1971 तय हुआ।


अब देखिए, एक ही देश में दो तरह के आप्रवास कानून बन गए-एक कानून है शेष देश के लिए और एक अलग ही आप्रवास कानून है सिर्फ असम के लिए, जिसे "आई.एम.डी.टी. एक्ट' कहते हैं।


इस मसले का हल निकालने के लिए कोई पहल आज तक नहीं हुई और अब संघ परिवार फिर वही 1951 को आधार वर्ष मानकर मुसलमानों और दलित हिंदू शरणार्थियों को देश भर से निकालने की तैयारी कर रहा है और असम के चुनाव अभियान में धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण के तहत गैर हिंदू मुसलमानों और संघ परिवार के नजरिये से अंबेडकर और समरसता के अखंड जाप के बावजूद अब भी गैरहिंदू दलितों को देश निकाला देने के लिए सीमा सील करने से लेकर कानून तक बदलकर पूरा हिसाब बराबर करने की युद्ध घोषमा कर दी गयी है।


पश्चिम पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्ताने से हाल फिलहाल बारत आये शरणार्थियों को नागरिकता देने का कानून में प्रावधान जुरुर किया गया लेकिन बंगाली हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए संघ परिवार ने कोई पहल नहीं की है।


अब असम में फिर 1951 को आधार वर्ष बताते हुए पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों के खिलाफ जो घृणा अभियान छेड़ा गया है,उससे साफ है कि मुसलमानों के साथ साथ देश भर में दलित बंगाली शरणार्थियों तक को खदेड़ना संघ परिवार का असली एजंडा है।


मसलनःमैं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चुनौती देता हूं कि वह कहें कि वह बांग्लादेशी घुसपैठको रोकेंगी…वह यह नहीं कहेंगी।' शाह ने यहां एक चुनाव रैली में कहा, 'कांग्रेस बांग्लादेशीघुसपैठियों को अपने वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर रही है।' उन्होंने कहा कि यदि एक बार यहां भाजपा की सरकार आ जाए तो घुसपैठकी समस्या खत्म हो जाएगी। शाह ने कहा, 'हम बांग्लादेशसीमा को सील कर देंगे और कोई भी घुसपैठियायहां आने में सफल नहीं होगा ।''


गौरतलब है कि  असम में  चुनावी रैली को संबोधित करते हुए राजनाथ ने कहा, ' बांग्लादेशके बनने के बाद से ही घुसपैठिये लगातार भारत में प्रवेश कर रहे हैं। बांग्लादेशीघुसपैठिये भारत-बांग्लादेशसीमा के जरिये भारत में प्रवेश कर रहे हैं । इसका क्या कारण है ? आपने (कांग्रेस) उन्हें क्यों नहीं रोका ? आपने भारत.बांग्लादेशसीमा को पूरी तरह से सील क्यों नहीं किया? ' इस दिशा में अपनी सरकार की ओर से उठाये गए कदमों को रेखांकित करते हुए सिंह ने कहा कि कुछ महीने पहले वह भारत-बांग्लादेशसीमा पर गए थे और उन्होंने बांग्लादेशसरकार के साथ भी इस बारे में चर्चा की ।



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लू की मार और बाल्टियों की बहार,खून की धार! इसी के मध्य दोपहर एक बजे तक रिकार्ड साठ फीसद वोट पड़ गये। जेटली ने नारद स्टिंग की जांचे से किया इंकार। सबसे बड़े बांग्ला दैनिक में बैनर छपा है कि दीदी ने फरमान जारी किया है कि सारी सीटें चाहिए और दीदी के तमाम भाई बूथों पर बाल्टी लेकर मुश्तैद लामबंद हैं।मतदान के शुरुआती आंकड़ों से साफ है कि बाल्टियों का जमकर इस्तेमाल हुआ और दूध के बदले लोकतंत्र पानी पानी है।मतदान अबकी दफा भी अनेक बूथों पर सौ फीसद हो जाने का नजारा बहार है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

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लू की मार और बाल्टियों की बहार,खून की धार!


इसी के मध्य दोपहर एक बजे तक रिकार्ड साठ फीसद वोट पड़ गये।

जेटली ने नारद स्टिंग की जांचे से किया इंकार।


सबसे बड़े बांग्ला दैनिक में बैनर छपा है कि दीदी ने फरमान जारी किया है कि सारी सीटें चाहिए और दीदी के तमाम भाई बूथों पर बाल्टी लेकर मुश्तैद लामबंद हैं।मतदान के शुरुआती आंकड़ों से साफ है कि बाल्टियों का जमकर इस्तेमाल हुआ और दूध के बदले लोकतंत्र पानी पानी है।मतदान अबकी दफा भी अनेक बूथों पर सौ फीसद हो जाने का नजारा बहार है।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप

विधानसभा चुनाव 2016:  पश्चिम बंगाल में हिंसा, मतदान केंद्र के नजदीक बम बरामद

फोटो साभार- ANI


खास कोलकाता में तापमान 40.6 डिग्री सेल्सियस है।आसनसोल में 43.बांकुड़ा में 45. वर्धमान में 42.5 और मेदिनीपुर में 41.7 है।

इसी के मध्य दोपहर एक बजे तक रिकार्ड साठ फीसद वोट पड़ गये।यही नहीं,सुबह नौबजे तक 22 फ़ीसद मतदानहोने की ख़बर है।आज ही सबसे बड़े बांग्ला दैनिक में बैनर छपा है कि दीदी ने फरमान जारी किया है कि सारी सीटें चाहिए और दीदी के तमाम भाई बूथों पर बाल्टी लेकर मुश्तैद लामबंद हैं।


मतदान के शुरुआती आंकड़ों से साफ है कि बाल्टियों का जमकर इस्तेमाल हुआ और दूद के बदले लोकतंत्र पानी पानी है।


मतदान अबकी दफा भी अनेक बूथों पर सौ फीसद हो जाने का नजारा बहार है।


इसी बीच नारद स्टिंग की जांच कराने की तृणमूली घोषणा के बीच भाजपा के नेता और केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने किसी भी तरह की जांच कराने की संभावना से इंकार कर दिया है।जेटली ने बंगाल में भाजपा को एकमात्र विकल्प भी कहा है।


अब बांकुड़ा,फश्चिम मेदिनीपुर और वर्धमान जिले में इस दहकते मौसम में लोकतंत्र की कैसी बहार है,इसका अंदाजा इससे पहले हस्तक्षेप पर मतदान के वीडियो से साफ न हुआ हो तो बांग्ला टीवी चैनलों के फुटेज,लाइव कवरेज और अखबारों के शीर्षकों से समझ लीजिये।


चुनाव आयोग ने बूथों के बीतर पुलिस के घुसने पर रोक लगा दी लेकिन सर्वर्त्र वही बंगाल पुलिस के जवान बूथों का बंदोबस्त संभालते नजर आये और केंद्रीय वाहिनी काअता पता नहीं है।


सुबह सुबह बांकुड़ा के सोनामुखी में खुलेआम पिस्तौल लेकर चलने का फुटेज आया और परदे पर बमों की बहार हो गयी।


बाद में प्रशासन की रपट का हवाला देते हुए चुनाव आयोग की सफाी आ गयी कि इस फुटेज में कोई तथ्य नहीं है और जो बम मिले हैं,वे हाथी खदेड़ने के काम आते हैं।


बहरहाल किसी बूथ पर हाथियों का कोई झुंड नजर नहीं आया।

इसके उलट दिनदहाड़े मुंह पर कपड़ा बांधे मस्तान लोगों को गांवों में घूमते हुए वोटरों को डराते धमकाते देखे गये।केंद्रीय वाहिनी का अता पता नहीं है।


हाल तो यह रही कि नारायण गढ़ चुनाव क्षेत्र में सत्तादल के फर्जी वोटर वोटरों की लाइन में वाम लोकतांत्रिक गठबंधन के मुख्यमंत्री प्रत्याशी सूर्यकांत मिश्र को धमकाते देखे गये वहां फ्रेम में न पुलिस है और न केंद्रीय वाहिनी।


पत्रकारों ने जब उनसे मतदाता परिचय पत्र दिखाने को कहा तो वे मीडियाकर्मियों से उलझ पड़े।तभी वहां खड़े दूसरे लोगों ने कहा कि ये लोग रात में गांव में घरों में आगजनी और लूटपाट कर रहे थे।


वोटरों और विपक्ष के एजंटों से मारपीट,छाप्पा वोट और वोटरं को डराने धमकाने का काम जमकर हुआ और इसके बावजूद लू की दुपहरी को सत्तादल की हरियाली में बदलने वाला भारी मतदान हो गया।



निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने बताया कि पश्चिम मिदनापुर, बांकुरा और वर्धमान जिलों में दोपहर 1 बजे तक औसतन 60 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। लोगों को सुबह से मताधिकार का प्रयोग करने के लिए मतदान केंद्रों के बाहर कतारों में खड़े देखा गया।


अधिकारियों ने बताया कि पश्चिम मेदिनीपुर में 65 प्रतिशत, बांकुड़ा में 57.6 प्रतिशत और वर्धमान में 56.7 प्रतिशत मतदान हुआ। बड़ी संख्या में मतदाता सुबह सात बजे से मतदान केंद्रों के बाहर पंक्तिबद्ध खड़े देखे गये ताकि वे दिन की गर्मी से बच सकें।


मतदान के बीच तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने एक माकपा एजेंट को कथित रूप से पीटा और उसे एक मतदान केंद्र पर प्रवेश करने से रोका जबकि वर्धमान जिले के जमुड़िया विधानसभा क्षेत्र में एक अन्य मतदान केंद्र के निकट मिले दो बैग में बम बरामद किए गए। इस बीच वर्धमान जिले में एक चुनाव अधिकारी की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।


निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने बताया, "सुबह सात बजे शुरू हुए मतदानमें पूर्वाह्न 11 बजे तक मतदाताओं ने 38.65 प्रतिशत वोट डाले।इस दरम्यान पश्चिम मेदिनापुर जिले में 48 प्रतिशत, बांकुड़ा जिले में 32.51 प्रतिशत और बर्दवान जिले में 35.45 प्रतिशत वोट पड़े।" निर्वाचन अधिकारी ने मतदानके शांतिपूर्ण होने का दावा किया है, हालांकि अनेक स्थानों से हिंसा की खबरें हैं।


गौरतलब है कि पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के तहत सोमवार को पश्चिम बंगाल में पहले चरण के दूसरे हिस्से और असम में दूसरे और अंतिम चरण का मतदान हो गया।असम में दोपहर तीन बजे तक 60 सीटों पर 69.50 फीसद मतदान हुए जबकि बंगाल में 71.60 फीसद मतदान हुए।


रस्म अदायगी बतौर निर्वाचन आयोग ने अत्यधिक संवेदनशील मतदानकेंद्रों की जानकारी मुहैया नहीं कराई है और साथ ही उसने सुरक्षा बलों की तैनात की गईं कंपनियों की संख्या बताने से इनकार कर दिया. केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों कोमतदानकेंद्रों के भीतर स्थिति संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जबकि कतारों को व्यवस्थित रखने और भीड़ को संभालने का काम राज्य पुलिस बल कर रहा है। इस चरण में करीब 1500 माइक्रो पर्यवेक्षक, 23 आम पर्यवेक्षक और 36,600 से अधिक चुनाव कर्मी तैनात किए गए हैं।


नतीजा इस एहतियात का जो निकला ,वह चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी है।


एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि माकपा के दो एजेंटों को सुबह सात बजे चुनाव शुरू होते ही जमुड़िया सीट के संख्या 76 एवं 77 मतदान केंद्रों में प्रवेश करने से रोका गया। इनमें से एक चुनाव एजेंट को तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने पीटा। उसके सिर में गंभीर चोटें आई हैं। घायल माकपा कार्यकर्ता को निकटवर्ती प्राइमरी हेल्थ सेंटर ले जाया गया।


अधिकारी ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता शेख शमशेर को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है।


इस बीच जमुड़िया सीट के तहत मतदान केंद्र संख्या 35 के निकट दो बैग मिले जिनमें बम रखे हुए थे। पुलिसकर्मी इन बमों को निष्क्रिय करने के प्रबंध कर रहे हैं।


वर्धमान जिले में पांडवेश्वर विधानसभा सीट के तहत मतदान केंद्र संख्या 234 पर एक चुनाव अधिकारी की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। पहले चरण के पहले भाग के दौरान भी दो अधिकारियों की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी।


जिला निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि चुनाव अधिकारी परिमल बौरी की मतदान केंद्र के भीतर मौत हो गई जिसके कारण कुछ देर के लिए मतदान बाधित हुआ। किसी अन्य अधिकारी के कार्यभार संभालने के बाद मतदान दोबारा शुरू हुआ। बौरी वर्धमान जिले के जमुरिया का निवासी थे।


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CPIM Secretary Mishra was hackled in Nayagram as Bengal witnessed large scale violence and irregularities. Nilotpal Basu met Chief Election Commissioner in New Delhi. Excalibur Stevens Biswas Hastakshep

Next: दो हजार शिकायतें धांधली और हिंसा की,लेकिन चुनाव आयोग के मुताबिक सबकुछ ठीकठाक! माकपा दोबारा मतदान की मांग नहीं कर रही है क्योंकि चुनाव आयोग से उसका भरोसा उठ गया है! मतदान शुरु होते ही भूतों का नाच बेशर्म की हदें पार कर चुका है,लेकिन चुनाव आयोग लोकतंत्र की हत्या पर शर्मिंदा नहीं है! बहरहाल कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार हटाये गये एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप
Previous: लू की मार और बाल्टियों की बहार,खून की धार! इसी के मध्य दोपहर एक बजे तक रिकार्ड साठ फीसद वोट पड़ गये। जेटली ने नारद स्टिंग की जांचे से किया इंकार। सबसे बड़े बांग्ला दैनिक में बैनर छपा है कि दीदी ने फरमान जारी किया है कि सारी सीटें चाहिए और दीदी के तमाम भाई बूथों पर बाल्टी लेकर मुश्तैद लामबंद हैं।मतदान के शुरुआती आंकड़ों से साफ है कि बाल्टियों का जमकर इस्तेमाल हुआ और दूध के बदले लोकतंत्र पानी पानी है।मतदान अबकी दफा भी अनेक बूथों पर सौ फीसद हो जाने का नजारा बहार है। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप
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CPIM Secretary Mishra was hackled in Nayagram as Bengal witnessed large scale violence and irregularities. 
Nilotpal Basu met Chief Election Commissioner in New Delhi.
Excalibur Stevens Biswas
Hastakshep

Bengal witnessed large scale violence and irregularities during polling today despite Election Commission calim that voting has been peaceful all the way.

Even the CM candidate,state CPIM secretary Dr. Suryakanta Mishra was hackled in Nayagram. Despite repeated assurance from ECI, central forces were not used for area domination before the polling day and were virtually kept idle during the polling.

However, Mishra claimed that the masses resisted the terror and voted decisively to end Mamata Raj.Central forces were not physically present in terror zone and the West Bengal police was managing the booths for the ruling party.

Rather Election Commision worked as the umbrella of Ruling party Voting machine of rigging and terror.

However,Mishra claimed that the alliance has massive support and despite the violence,terror and rigging it would romp home and  he repeated that Mamata Banerjee would not remain the Chief Minister of West Bengal after the results are declared.


Most of the mainstream media, both electronic and print, have come out with graphic  coverage of these extremely unseemly spectacle.The violence  has been live as the  most of the mainstream media, both electronic and print, have come out with graphic  coverage of these extremely unseemly spectacle.But the Election commission failed to act.



 Nilotpal Basu, Central Secretariat member of Communist Party of India
(Marxist) met the Chief Election Commissioner today in New Delhi and submitted the
 memorandum regarding the violence and irregularities in some
Assembly Constituencies where polling was held today in West Bengal.
  There have been widespread  intimidation of voters,
violence, obstructing voters from going to the polling booths, mounting
attacks on opposition polling agents. .



The memorandum expressed pain as the opposition have experienced that the voters of West Bengal suffered in
course of elections to 31 Assembly Constituencies which went to polls for
West Bengal Assembly. Even the leader of the opposition of
the current Assembly and Secretary of the CPI(M) West Bengal State
Committee, Dr. Suryakanta Mishra was hackled in his Assembly Constituency
Narayangarh. 


The memorandum said taht one of the major reasons that these disturbances could take place is
inactivity and deliberate misuse of central forces. Despite repeated
assurance from ECI, central forces were not used for area domination before
the polling day and were virtually kept idle during the polling. It is
unfortunate that there reports that central forces failed to intervene even
when violence and attacks occurred in their presence.



It said that,however, what was most unacceptable was the attitude of the officials
manning the electoral machinery. Despite repeated complaints, they were not
responding; often switching off their mobile phones.  There have been few
instances where even central observers would not be contacted.  But the most
monumental lapse was on the question of deployment and disability of Central
Forces for building confidence of the voters so that they could exercise
their franchise in a free and fair manner.  This is notwithstanding the
consistent position of the ECI that there will be adequate deployment  and
no  miscreant  will be able to disrupt the free and fair polls.



In Paschim Midnapore, the role of observers was surprising particularly in
Keshpur, Garbeta, Chandrakona, Dantan. They were unavailable in mobiles, or
failed to respond to calls. Sector officers were brushed away complaints
with a predetermined answer that 'no such incident took place'.



Paschim Midnapore

Widespread violence and booth capturing took place in 235-KeshpurAC. AITC
created an atmosphere of terror in villages for last two-three days. This
was reported to CEO office but no intervention was witnessed. Today
(11.4.2016) CPI(M)polling  agents were not allowed to seat in 110 booths
from the beginning. They were forcefully evicted from most of the others
after few hours. Bike-borne AITC gangs roamed freely and attacked CPI(M)
polling agents, threatened voters, restrained villagers from coming to
booths. More than 146 booths were fully captured till 13-30 PM, the list of
which has been already sent to your office. There was no semblance of free
and fair elections in the entire constituency.



In 232- Chandrakona AC, AITC gangs brought criminals from outside and
threatened and chased away voters in nearly 60 booths. They have attacked
CPI(M) polling agents, injuring some of them. Large areas of the
constituency were terrorized and voters could not proceed to polling booths
at all.



In 233- Garbeta AC, AITC created terror to restrain CPI(M) polling agents to
reach to booths. In 109 booths, opposition polling agents were not allowed
to enter at all. Series of booths were captured and villagers were forced to
stay indoors.



In 228-Kharagpur AC, CPI(M) candidate Sajahan Ali was repeatedly cordoned by
AITC activists, wherever he went. Ali was forced to sit back in CPI(M)
office.



In 227 Pingla AC, at least 14 booths were captured by AITC gangs.



In 231 Ghatal AC, outsiders were mobilized by AITC, mainly in villages in
Hooghly border. They created terror in 34 booths in border areas. Booth no
9,10,11, 12 were badly affected.



Reports of violence and attack on voters have come from226- Sabang AC, 225-
Narayangarh AC, 223-Keshiary AC. There is considerable apprehension that
AITC will try to disturb many booths in last few hours of polling.



Bankura

Nearly 30 booths in 258- Sonamukhi (SC) AC  and 20 booths in 257-Indas (SC)
AC were either captured or disturbed by AITC activists. Villagers were
restrained from approaching booths. CPI(M) polling agents were threatened
and attacked in some areas.



Burdwan

In 275 Pandaveswar AC, at least 10 booths were disturbed. AITC gangs
threatened voters. In 283 Barabani AC, outsiders were mobilized and
restrained voters in some places. In 289 JamuriaAC, CPI(M) candidate
Jahanara Khan was threatened by AITC.  In 276 Durgapur Purba, normal voting
process was disturbed after 12 PM in 15 booths, the list has been sent to
your office.



We are also appending a gist of  incidents which took place Assembly
constituencywise and boothwise in a tabular form (Annexure I).



We are also appending all the complaints received from our different Party
committees for your perusal and necessary action (Annexure II).  Each of
these are self contained and self explanatory.  We want justice for the
people and we want remedial action for incidents which had undermined the
right to exercise their voting rights without fear or intimidation.  Not to
speak of, where actual booth capturing has taken place.  We will definitely
furnish a comprehensive list of the booths  where a re-poll is warranted
once the polling is closed.
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दो हजार शिकायतें धांधली और हिंसा की,लेकिन चुनाव आयोग के मुताबिक सबकुछ ठीकठाक! माकपा दोबारा मतदान की मांग नहीं कर रही है क्योंकि चुनाव आयोग से उसका भरोसा उठ गया है! मतदान शुरु होते ही भूतों का नाच बेशर्म की हदें पार कर चुका है,लेकिन चुनाव आयोग लोकतंत्र की हत्या पर शर्मिंदा नहीं है! बहरहाल कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार हटाये गये एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

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दो हजार शिकायतें धांधली और हिंसा की,लेकिन चुनाव आयोग के मुताबिक सबकुछ ठीकठाक!

माकपा दोबारा मतदान की मांग नहीं कर रही है क्योंकि चुनाव आयोग से उसका भरोसा उठ गया है!

मतदान शुरु होते ही भूतों का नाच बेशर्म की हदें पार कर चुका है,लेकिन चुनाव आयोग लोकतंत्र की हत्या पर शर्मिंदा नहीं है!


बहरहाल कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार हटाये गये


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप

दूसरे चरण के मतदान में भी भूतों का नाच खूब हुआ और फिलहाल मतान 82 फीसद बताया जा रहा है।विपक्ष ने करीब दो हजार शिकायतें धांधली और हिसा की दर्ज करायी है औच चुनाव आयोग ने किसी भी मामले में संज्ञान नहीं लिया।सीसीटीवी और कैमरा के अलावा लाइव टीवी प्रसारण के फुटेज उपलब्ध हैं,जो बूथों के भीतर हुी हिंसा का ब्यौरा देते हैं,लेकिन चुनाव आयोग अबाध और शांतिपूर्म मतदान का राग अलाप रहा है।


इसी बीच प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राहुल सिन्हा के स्टिंग के मामले में फंसे कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को चुनाव आयोग कोलकाता पुलिस आयुक्त के पद से हटाने का निर्देश दिया।  उनकी जगह एडीजी डीआइजी सोमेन मित्रा कोलकाता के नये पुलिस आयुक्त होंगे। इस बाबत चुनाव आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव इतिहास में यह पहली घटना है, जब चुनाव आयोग ने कोलकाता पुलिस आयुक्त को चुनाव चलने के दौरान उनके पद से हटा दिया हो।


पहले चरण की तरह अनेक बूथों पर 95 फीसद से ज्यादा वोट पडज़े और कमसकम 45 डिग्री सेल्सियस के तापमान के मध्य इतना भारी मतदान बिल्कुल असंभव है क्योंकि हर बूथ पर कुछ लोग तो दिवंगतहुए ही होगे और कुछ लोग आजीविका के खातिर बाहर होंगे और कुछ लोग उम्र और बीमारी की वजह से बूथों पर पहुंचने की हालत में न होंगे।


इसके विपरीत चुनाव आयोग शत प्रतिशत मतदान वाले बूथों के बारे में भी किसी भी तरह की शिकायत सुनने को तैयार नहीं है।


इस बीच माकपा लगातार चुनाव आयोग को ज्ञापने देकर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की मांग करती रही है।


मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में कल विधानसभा चुनाव के दौरान हिंसा और मतदान में बाधा पहुंचाने की जो घटनाएं हुई है, उससे स्पष्ट हुआ है कि चुनाव आयोग ने राज्य में शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव का जो वादा किया था वह विफल साबित हुआ है ।


माकपा पोलित ब्यूरो की ओर से आज जारी बयान के अनुसार सत्तारूढ तृणमूल कांग्रेस समर्थक उपद्रवियों ने जिस प्रकार से चुनाव में बाधा पहुंचाया उससे वह स्तब्ध है। पार्टी ने कहा है कि इस दौरान न केवल विपक्ष पर हमला किया गया बल्कि पोलिंग एजेंटों को मतदान केन्द्र में उपस्थित होने से रोका गया जो उम्मीदवारों के लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है।


गौरतलब है कि मतदान शुरु होने से पहले इस बार मतदाताओं के मन में भय इसलिए भी नहीं था, क्योंकि मुख्य चुनावआयुक्त नसीम जैदी ने चुनावतिथि की घोषणा के पहले ही राज्य में केंद्रीय बल तैनात कर दिया था। इसके बाद आयोगबंगाल में छह चरण में सात दिन मतदान कराने का फैसला किया, ताकि वैज्ञानिक धांधली या अन्य प्रकार की गड़बड़ी की बात सामने नहीं आए। तैयारी भी उसी तरह से शुरू हुई।


मतदान शुरु होते ही भूतों का नाच बेशर्म की हदें पार कर चुका है,लेकिन चुनाव आयोग लोकतंत्र की हत्या पर शर्मिंदा नहीं है।


गौरतलब है कि चुनाव आयोगके प्रवक्ता  अधिकारी ने कहा कि मतदान संबंधी गड़बड़ी की वजह से कहीं से कोई भी गिरफ्तारी नहीं हुई है। बूथ पर कब्जे की भी कोई शिकायत नहीं मिली है। कहीं से किसी गंभीर मामले की शिकायत नहीं मिली है।


बर्दवान जिले के आसनसोल स्थित जमुड़िया में एक मतदान केंद्र के नजदीक से कच्चे बमों से भरा एक बैग बरामद किया गया। पश्चिम मेदिनीपुर जिले के चंद्रकोना में एक मतदान केंद्र पर मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के एजेंट पर हमले के बाद उसे अस्पताल में वयहां माकपाके एक एजेंट पर हमला किया गया।


जंगल महल में माकपा की महिला बूथ एजंट को बूथ के भीतर कपड़े उतारकर नीलाम करने की धमकी दी गयी केंद्रीय वाहिनी की मौजूदगी में।मतदान के दौरान ये वारदाते लाइव रहीं।


सूर्यकांत मिश्र से लेकर दीपा दासमुंसी से बदसलूकी हुीई और वोटरों के अलावा उम्मीदवारों को भी पीटा गया।मीडियाकर्मी भी बख्शे नहीं गये।फिरभी चुनाव आयोग को कहीं गड़बड़ी नजर नहीं आयी और न हिंसा के संगीन मामलों में कोई गिरफ्तारी हुई।जबकि  प्रमुख विपक्ष वाममोर्चा, कांग्रेस और भाजपा ने इस चरण के मतदान में बड़े पैमाने पर हिंसा और मतदान में धांधली होने का आरोप लगाया है।


दूसरे चरण के मतदान के तुरंत बाद माकपा नेता नीलोत्पल बसु ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मिलकर लिखित तौर पर मतदान में जिलेवार धांधली और हिंसा के ब्यौरे दिये तो आज फिर माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और नीलोत्पल बसु मुख्य चुनाव आयुक्त से मिले।


कामरेड सीताराम येचुरी ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मिलकर जो बयान दिया,उसका आशय समझना लोकतंत्र को बहाल रखने के लिए बेहद जरुरी है।येचुरी ने कहा कि चुनाव आयोग पर अब विश्वास नहीं है और माकपा कहीं भी मतदान रद्द करने या पुनर्मतदान की मांग नहीं कर रहा है।क्योंकि मौजूदा हालत में चुनाव आयोग का रवैया पक्षपातपूर्ण है और दोबारा मतदान में बी धांधली और हिंसा की आशंका है।

वहीं भाजपा ने उन तमाम बूथों पर दोबारा मतदान कराने की चुनाव आयोग से मांग की है जहां 95 फीसद से ज्यादा वोट पड़े।

कांग्रेस की ओर से भी शिकायतें की गयी हैं।


राजीव कुमार इसके पहले कोलकाता पुलिस में स्पेशल सीपी के पद पर कार्यरत थे। सुरजित कर पुरकायस्थ के कोलकाता पुलिस आयुक्त पद से हटने के बाद राजीव कुमार ने फरवरी में कोलकाता पुलिस आयुक्त पद का भार ग्रहण किया था।


गौरतलब  है कि इसके पहले चुनाव आयोग ने पक्षपातपूर्ण रवैये के आरोप के तहत पांच जिला पुलिस अधीक्षकों व कई एसडीओ को चुनाव ड्यूटी से हटा दिया था।


गौरतलब  है कि प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने आरोप लगाया था कि कोलकाता खुफिया पुलिस के इंस्पेक्टर व कांस्टेबल के माध्यम से उनका स्टिंग करने की कोशिश की गयी थी। इसकी साजिश कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार रची थी।

स्टिंग कांड के आरोप के बाद भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह  से लेकर कांग्रेस व वाममोरचा के नेताओं ने श्री कुमार को हटाने की मांग की थी।


मार्च के अंतिम सप्ताह में कुमार को सीपी पद से हटाने का निर्णय हो भी गया था, लेकिन विवेकानंद फ्लाईओवर दुर्घटना के बाद यह तबादला कुछ दिनों के लिए स्थगित हो गया था, लेकिन मंगलवार को चुनाव आयोग ने कुमार को हटाने का निर्देश दे डाला।

प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने  कुमार को हटाये जाने का चुनाव आयोग के निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि आयोग का यह बहुत ही सटीक कदम है। इससे कोलकाता में शांतिपूर्ण व पक्षपातरहित चुनाव कराने में मदद मिलेगी। माकपा के सांसद मोहम्मद सलीम ने भी अायोग के निर्णय का स्वागत किया है।



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वैशाली डालमिया के हक में तृणमूल का चुनाव प्रचार करेंगे सौरभ गांगुली! एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

Next: शनि शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेश से बढ़ेंगे बलात्कार? दरअसल आतंकवाद है मुक्तबाजारी धर्मोन्मादी पितृसत्ता का यह अंध राष्ट्रवाद! बहुजन आंदोलन का कुल मिलाकर सार यही है कि स्त्री मुक्ति के बिना न दलितों,न पिछड़ों और न अल्पसंख्योंकी की मुक्ति संभव है और न लोकतंत्र का वजूद आधी आबादी को गुलाम रखने के बावजूद हो सकता है। हमारे लिए हिंदुत्व एजंडे को मजबूत करते हुए जाति के अलावा न कोई मसला है और न मुद्दा।अपनी जाति के बाहर हमारी दृष्टि कहीं पहुंचती ही नहीं है।चूंकि कमसकम जातियां छह हजार हैं जो जन्मजात कैदगाह हैं और तजिंदगी उसी कैदगाह की दीवारें मजबूत बनाने का काम करते हैं।यह बाबासाहेब का मिशन नहीं है। प्रकृति, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बारे में हम चर्चा तक नहीं करते,तो कयामत का यह मंजर बदलेगा नहीं। पलाश विश्वास
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वैशाली डालमिया के हक में तृणमूल का चुनाव प्रचार करेंगे सौरभ गांगुली!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप

वैशाली डालमिया के हक में तृणमूल का चुनाव प्रचार करेंगे सौरभ गांगुली।जाहिर है कि निरपेक्ष माने जाने वाले दादा के इस कदम को सत्ता से नत्थी हो जाना मान रहे हैं बंगाल में लोग।


सचिन तेंदुलकर के राज्यसभा सांसद बनने के बाद दादा को हमेशा लुभावने राजनीतिक प्रस्ताव मिले हैं और उनने हर बार बापि बाड़ी जा स्टाइल से छक्का दागकर राजनीति को अपने मैदान से बाहर किया है।अबकी दफा दादा धर्मसंकट में हैं।


Sourav Ganguly will take part in an exhibition match © IANS

Sourav Ganguly will take part in an exhibition match © IANS

Former India captain Sourav Ganguly, after a lot of ifs-and-buts, will now be seen campaigning forJagmohan Dalmiya's daughter Vaishali Dalmiya. Ganguly, who was known to be apolitical so far, will for the first time do something like this for family-friend Dalmiyas. Vaishali is the Trina Mool Congress (TMC) candidate contending from Bali, Howrah and Ganguly, taking out time from her busy schedule, will visit the polling campaign and lend his support to her. Apart from Ganguly, the cricketers of Bengal Ranji Team and stars from the Bengali film industry are expected to turn up for the event scheduled for Sunday.


जाहिर है कि देशभर के क्रिकेटप्रेमियों को एक जोर का झटका आहिस्ते से लगने वाला है।


देश विदेश सार्वभौमिक दादा का रंग भी बदलने जा रहा है।राजनीति ने लंबे अरसे से उन्हें दलदल में धकेलने की कोशिश की है लेकिन वे इससे बचते रहे हैं।हालांकि पूर्ववर्ती वाम जमाने में उनके मुख्यमंत्री से लेकर तमाम लोगों से मधुर संबंध रहे हैं।


अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी उनके संबंध बेहतर हैं।खासकर जगमोहन डालमिया के अवसान के बाद दीदी के ही हस्तक्षेप से दादा बंगाल क्रिकेट के सर्वेसर्वा बन गये ।


जगजाहिर है कि दिवंगत जगमोहन डालमियां से दादा के संबंध निजी संबंध की गहराइयों में थे।उन्हीं डालमियां की बेटी वैशाली डालमिया चुनाव मैदान में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर हावड़ा जिले के बाली से चुनाव लड़ रही हैं और निजी संबंध बेहतर निभाने वाले दादा के लिए वैशाली की मदद न करना असंभव है।


देखना तो यह है कि दादा क्या दूसरे चुनावक्षेत्रों में भी तृणमूल कांग्रेस का प्रचारक बनकर अवतरित होते है या नहीं।


इसवक्त दीदी को सत्ता में वापसी के लिए कांटे के मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है और दादा बंगाल के हर घर में लोकप्रिय है।कोलकाता और उपनगरों में वैशाली डालमियां के बहाने ही दादा के दीदी के समर्थन में सड़क पर उतरने का राजनीतिक नतीजा कहने की जरुरत नहीं है दीदी के लिए वरदान होगा।


गौरतलब है कि खून में प्रशासनिक कुशलता होने और गाइड के रूप में पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली जैसे मित्र के बल पर पूर्व और दिवंगत खेल प्रशासक जगमोहन डालमिया की बेटी वैशाली डालमिया ममता बनर्जी की तरह जन सेवक बनना चाहती हैं।

तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर पहली बार हावड़ा जिले के पड़ोसी बाली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहीं वैशाली ने कहा है, "मैं चौदह वर्ष की उम्र से ही सामाज सेवा कर रही हूं। राजनीति में आना मेरे लिए स्वाभाविक तरक्की है। इसके जरिए मुझको दूसरे स्तर की सामाजिक सेवा करने का अवसर मिलेगा।"

वैशाली ने जोर देकर कहा कि उनके पिता ने जीवन भर राजनेताओं को पसंद नहीं किया। लेकिन अगर वे आज जीवित होते तो न केवल खुश होते बल्कि उनका हौसला भी बढ़ाते।

पिता की छत्रछाया में पली बढ़ी वैशाली ने अब पारिवारिक व्यावसायिक विरासत को संभाल लिया है। वह दावा करती हैं कि उनमें पिता के सारे प्रशासनिक गुण हैं।

वैशाली कहती हैं, "आप कह सकते हैं कि मेरा यूएसपी है कि मैं ऐसे व्यक्ति की बेटी हूं जो प्रशासनिक योग्यता, कड़ी मेहनत और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध थे। वह कभी दरकिनार नहीं किए जा सके। ये सारे गुण मेरे जीन में हैं। और पिता की तरह ही मैं भी प्रतिकूल परिस्थिति से लड़ने की क्षमता मुझमें भी है। "

जब उनसे पूछा गया कि भव्य जीवन शैली में जीवन बिताने और राजनीति में नौसिखिया होने पर भी आपने बाली जैसे गरीब और ग्रामीण क्षेत्र को चुनाव लड़ने के लिए क्यों चुना तो उन्होंने कहा, "लोग मुझको वोट नहीं देंगे, बल्कि तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी को वोट देंगे। ममता बनर्जी ने राज्य का कायाकल्प कर दिया है। सभी जिलों और सभी प्रखंडों में हुए विकास इसका जीता जागता सबूत है।"

वैशली ने कहा, "वह ममता बनर्जी हैं जिनके चलते मैंने राजनीति में आने को सोचा। वह जो वादा करती हैं उसे पूरा भी करती हैं। सबसे बड़ी बात है कि वह मानव होने में विश्वास करती हैं।"

डालमिया कहती हैं कि ममता बनर्जी लोगों की आवाज हैं। वह लोगों की शिकायतें सुनती हैं और उसका निवारण भी करती हैं। "यह दीदी का व्यक्तित्व है जिसका मैं अनुकरण करना चाहती हूं। "

उन्होंने कहा कि ममता दीदी के पद चिन्हों पर चलने की प्रेरणा मुझे किसी और से नहीं घनिष्ठ पारिवारिक मित्र पूर्व क्रिकेटर सौरव गांगुली से मिली।

वैशाली कहती हैं, "राजनीतिक सफर पर हमलोगों की चर्चा हुई तो सौरव ने मुझे ममता दी के पद चिन्हों पर चलकर आमलोगों का आदमी बनने को कहा। उन्होंने मुझे आमलोगों के बीच जाकर उनकी समस्याएं से रू-ब-रू होने को कहा।"

डालमिया ने क्षेत्र में अपना चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। वह घर-घर जाकर वोट मांग रही हैं। वह अपने क्षेत्र में एक क्रिकेट अकादमी स्थापित करना चाहती हैं। वह कहती हैं कि सौरव गांगुली भी उनके लिए चुनाव प्रचार करेंगे।

वैशाली को भरोसा है कि वह परिवार और राजनीति के बीच संतुलन बनाने में कामयाब रहेंगी। पिछले 2011 के विधानसभा चुनाव में बाली विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस के सुल्तान सिंह 6000 मतों के अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे थे।


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शनि शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेश से बढ़ेंगे बलात्कार? दरअसल आतंकवाद है मुक्तबाजारी धर्मोन्मादी पितृसत्ता का यह अंध राष्ट्रवाद! बहुजन आंदोलन का कुल मिलाकर सार यही है कि स्त्री मुक्ति के बिना न दलितों,न पिछड़ों और न अल्पसंख्योंकी की मुक्ति संभव है और न लोकतंत्र का वजूद आधी आबादी को गुलाम रखने के बावजूद हो सकता है। हमारे लिए हिंदुत्व एजंडे को मजबूत करते हुए जाति के अलावा न कोई मसला है और न मुद्दा।अपनी जाति के बाहर हमारी दृष्टि कहीं पहुंचती ही नहीं है।चूंकि कमसकम जातियां छह हजार हैं जो जन्मजात कैदगाह हैं और तजिंदगी उसी कैदगाह की दीवारें मजबूत बनाने का काम करते हैं।यह बाबासाहेब का मिशन नहीं है। प्रकृति, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बारे में हम चर्चा तक नहीं करते,तो कयामत का यह मंजर बदलेगा नहीं। पलाश विश्वास

Next: बंगाल पहुंच रही है चुनाव आयोग की टीम,इसीलिए भूकंप? असम के मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर लेकिन बंगाल में गैरभाजपाई शिकायतों की सुनवाई नहीं! भाजपा की शिकायत पर ही कोलकाता के पुलिस कमिश्नर हटाये गये और कांग्रेस वाम की शिकायतों पर आयोग शांतिपूर्ण मतदान की रट लगा रहा! भूकंप से विकास की टल्ली बेपर्दा,बाकी मतदान से पहले हर इलाके में बिना भूकंप दहशत जारी! एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप
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शनि शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेश से बढ़ेंगे बलात्कार?

दरअसल आतंकवाद है मुक्तबाजारी धर्मोन्मादी पितृसत्ता का  यह अंध राष्ट्रवाद!


बहुजन आंदोलन का कुल मिलाकर सार यही है कि स्त्री मुक्ति के बिना न दलितों,न पिछड़ों और न अल्पसंख्योंकी की मुक्ति संभव है और न लोकतंत्र का वजूद आधी आबादी को गुलाम रखने के बावजूद हो सकता है।


हमारे लिए हिंदुत्व एजंडे को मजबूत करते हुए जाति के अलावा न कोई मसला है और न मुद्दा।अपनी जाति के बाहर हमारी दृष्टि कहीं पहुंचती ही नहीं है।चूंकि कमसकम जातियां छह हजार हैं जो जन्मजात कैदगाह हैं और तजिंदगी उसी कैदगाह की दीवारें मजबूत बनाने का काम करते हैं।यह बाबासाहेब का मिशन नहीं है।


प्रकृति, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बारे में हम चर्चा तक नहीं करते,तो कयामत का यह मंजर बदलेगा नहीं।

पलाश विश्वास

आज ग्यारह अप्रैल २०१६ को ज्योति बा फुले की जयंती के अवसर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा केन्द्र में आयोजित कार्यक्रम में तीन रचनाकारों - हेमलता महिश्वर, रजतरानी मीनू और रजनी तिलक की कविताओं पर बोलना था। उसी कार्यक्रम की तस्वीरें।

Sudha Singh's photo.


प्रकृति, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के बारे में हम चर्चा तक नहीं करते,तो कयामत का यह मंजर बदलेगा नहीं।


हर साल की तरह इस बार भी महात्मा ज्योतिबा फूले का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया है।इससे पहले जनवरी में माता सावित्री बाई फूले का जन्मदिन भी हमने मना लिया है.अबकी दफा बाबासाहेब की 15वीं जयंती है जिसे बहुजनों के अलावा सत्तापक्ष की ओर से भी धूमधाम से मनाने की तैयारी है।


माफ कीजिये,अंबेडकरी आंदोलन की दशा दिशा के मद्देनजर हमें यह कहना पड़ रहा है कि अगर आरक्षण बहाल न रहा और सत्ता की चाबी अगर अंबेडकर की छवि न हो,तो कमसकम पढ़े लिखे बहुजन न अंबेडकर का नाम लेंगे और न फूले का।


क्योंकि हम बाबासाहेब के जाति उन्मूलन के एजंडे के खिलाफ हैं और जाति तोड़ने के बजाय जाति को ही मजबूत करते हुए हिंदुत्व का नर्क जी रहे हैं।


हमारे लिए हिंदुत्व एजंडे को मजबूत करते हुए जाति के अलावा न कोई मसला है और न मुद्दा।अपनी जाति के बाहर हमारी दृष्टि कहीं पहुंचती ही नहीं है।


चूंकि कमसकम जातियां छह हजार हैंजो जन्मजात कैदगाह है और तजिंदगी उसी कैदगाह की दीवारें मजबूत बनाने का काम करते हैं।


यह बाबासाहेब का मिशन नहीं है।

दिलीप मंडल का ताजा स्टेटस हैः

जब देश और समाज से जुड़ी किसी बात को समझने में दिक्कत हो तो मैं बोधिसत्व बाबा साहेब की किताब खोल लेता हूं.

राष्ट्र और राष्ट्र विरोधी कौन, यह समझने के लिए पढ़िए बाबा साहेब का संविधान सभा का अंतिम भाषण, 25 नवंबर, 1949.

उसमें उन्होंने लिखा है जाति है राष्ट्रविरोधी.

इतिहास बोध अनपढ़ संघियों से मत सीखिए, वह भी तब जब आपके पास देश के सर्वाधिक शिक्षित बाबा साहेब की किताबें मौजूद हैं.

हालांकि सरकारी पब्लिकेशन से बाबा साहेब की किताबों को गायब करने का एक खतरनाक षड़यंत्र भी इन दिनों चल रहा है. एनिहिलेशन ऑफ कास्ट सरकारी प्रकाशन से गायब है.


बाबासाहेब ने अपनी दृष्टि के मुताबिक हर भारतीय नागरिक के हितों,हक हकूक के बारे में सोचा है और देश के हर हिस्से ,हर समस्या पर उनका पक्ष रहा है और हिंदू कोड  लागू कराने में उनकी सबसे बड़ी भूमिका है,जिसे हम नजरअंदज करते हैं।


हम सिर्फ दलितों और बहुजनों के मुद्दे पर बोलेंगे मौका देखकर और बाकी मुद्दों पर खामोश रहेंगे।


हम सिर्फ जाति देखकर सच और झूठ का फैसला करेंगे और पूरे समाज का नेतृत्व करने के लिए बाबासाहेब की तरह उठ खड़ा होने की सपने में भी नहीं सोचेंगे लेकिन बाबा साहेब की जय जयकार करेंगे और रस्म अदायगी के बाद हम वही करेंगे जैसा हिंदुत्व का एजंडा है।हमारी गुलामी कभी खत्म नहीं होने वाली है।


बहुजन आंदोलन का कुल मिलाकर सार यही है कि स्त्री मुक्ति के बिना न दलितों,न पिछड़ों और न अल्पसंख्योंकी की मुक्ति संभव है और न लोकतंत्र का वजूद आधी आबादी को गुलाम रखने के बावजूद हो सकता है।


हर पोस्ट में बाबासाहेब,महात्मा फूले,माता सावित्री बाई फूले और हरिचांद गुरुचांद ठाकुर की तस्वीर के साथ बुद्धं शरण् गच्छामि का जाप करने वाले लोग समझ लें कि गौतम बुद्ध की क्रांति की प्रेरण फिर वही पीड़ित मनुष्यता है।कष्ट है तो उसका निवारण है,यह वैज्ञानिक सोच है और समाधान पंचशील है।


गौतम बुद्ध की क्रांति,अंबेडकरी आंदोलन और कुल मिलाकर इस देश के किसान आदिवासी और बहुजन आंदोलन की परंपरा में सर्वजनहिताय का स्थाई भाव रहा है क्योंकि ये तमाम आंदोलन विशुद्धता या रंगभेद की पितृसत्ता के खिलाफ हजारों साल से जारी हैं और इन आंदोलन का खास मुद्दा हमेशा स्त्री की स्वतंत्रता का मुद्दा है,उसके और  मेहनकशों के हक हकूक का मुद्दा है।


यही वजह है कि अंबेडकर ने स्त्री के पक्ष में संवैधानिक प्रावधान बनाये तो महात्मा फूले और सावित्र बाई फूले ने स्त्री शिक्षा की ज्योति जलाई।बंगाल में भी मतुआ आंदोलन विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा के दो अहम मुद्दों को लेकर चल रहा था।


जाहिर है कि सत्ता पक्ष के लिए तो स्त्री भोग का सामान से बेहतर कोई चीज नहीं है।उसका धर्म,उसकी संस्कृति,उसकी राजनीति और अर्थव्यवस्था में स्त्री की सबसे बेहतर  हैसियत स्त्री की गोरी सुंदर से देह है।


अपनी उस देह पर स्त्री का कोई हक नहीं है।उस देह के वैध अवैध सौदे पर निर्भर है स्त्री का वजूद।


यही पितृसत्ता है।इस पितृसत्ता के विरोध के बिना स्वतंत्रता, मनुष्यता और सभ्यता के सारे आदर्श खोखले पाखंड हैं।


गौतम बु्द्ध की क्रांति,बाबासाहेब और महात्मा फूले ,माता सावित्री बाई और हरिचांद गुरुचांद के मतुआ आंदोलन के बावजूद सच यही है कि बहुजनों का हिंदुत्व भी स्त्री के विरुद्ध है।बहुजनों की मुक्ति की परिकल्पना में स्त्री का कोई स्थान है ही नहीं और हिंदुत्व एजंडा के स्त्रीकाल से भिन्न बहुजनों का कोई स्त्रीकाल नहीं है।


फिरभी गनीमत है कि बहुजनों में जिन आदिवासियों की गिनती करते नहीं अघाते बाबासाहेब के मिशन के नेता कार्यकर्ता ,वे आदिवासी बहुजन समाज में अपने को मानें या न माने,लेकिन आदिवासी समाज में स्त्री अब भी आजाद है।न दासी है और न शूद्र।


हिमांशु कुमार जी का स्टेटस देख लेंः


क्या आप अपनी मां से प्यार करते हैं ၊ सच बताइये क्या आपने जिंदगी में कभी अपनी मां की जय बोली है ၊ अगर अपनी मां से प्यार करने के लिये उसकी जय बोलने की ज़रूरत नहीं है तो अपने देश के लोंगों से प्यार करने के लिये भी किसी की जय बोलने की कोई ज़रूरत नहीं है ၊ देश का एक महिला और मां के रूप में चित्रण करना और देश के करोड़ों आदिवासियों , दलितों और अल्पसंख्यकों को इंसान की बजाय एक संख्या और मृत वस्तु में बदल देना , असल में एक ही खेल का हिस्सा है ၊ ज़ोरदार तरीके से इन खूंखार भेड़ियों की हकीकत जनता को बताने का वख्त है ၊ अपने आस पास के स्कूल कालेजों , गावों में जाइये और भारत माता की आड़ में माल्या अदानी बच्चन और जिंदलों की सेवा करने वालो दलालों की हकीकत बताईये ၊ किसी भी कीमत पर ये लोग अब किसी भी चुनाव में जीतने नहीं चाहियें ၊


कोलकाता में अब लू चल रही है।तापमान 42 डिग्री के आसपास है और बाकी बंगल में तापमान 45 पार है।पचास तक जब यह तापमान होगा तो आसमान कितना धुंआ धुंआ होगा,यह देखने के लिए शायद ही हम जीवित रहे।


यहां इन दिनों लोकतंत्र का महोत्सव भी चल रहा है।राजनीतिक दलों का महाभारत जारी है और इंसान का बहता हुआ गर्म लहू बंजर होती जा रही जमीन का प्यास बुझाने लगा है।


करीब दो हजार शिकायतें हिंसा और चुनावों में धांधली के बावजूद चुनाव आयोग में कोई सुनवाई नहीं है और मतदान शांतिपूर्ण है।


जाहिर है कि जनादेश भी सत्तापक्ष का ही होगा।हमारे लिए तो खून का गंगास्नान है।स्वजनों के वध के लिए अश्वमेध है।महाभारत।


सुंदर लाल बहुगुणा ने अन्न छोड़ दिया है,पहाड़ों में जाना छोड़ दिया है गोमुख को रेगिस्तान में तब्दील होते देखकर।


कोलकाता के मुकाबले जैसलमेर का मरुस्थल भी इस व्कत ठंडा है।विकास का जो माडल मुनाफावसूली के लिए अबाध पूंजी है,उसे मनुष्यता और सभ्यता ,प्रकृति और पर्यावरण की कोई चिंता नहीं है।यह विकास निरंकुश आतंकवाद है।जिसमें गंगा यमुना के मैदान को रेगिस्तान में तब्दील होने में शायद देर नहीं लगेगी।


नगरों और महानगरों का यह विकास असली भारत को रेगिस्तान में तब्दील करने लगा है और इसीलिए जलवायु मौसम सबकुछ बदलने लगा है।भूकंप के झटकों के जरिये प्रकृति की चेतावनी रोज रोज,सूखा और बाढ़,प्राकृतिक आपदाओं से घिरे हुए हैं हम।फिरभी सबकुछ खत्म हो जाने से पहले नींद में खलल नहीं पड़नी चाहिए।


पिछले साल भारत में पर्यावरण आंदोलन के नेता सुंदर लाल बहुगुणा से मुलाकात की थी हमने देहरादून जाकर।क्योंकि पर्यावरण वह मुद्दा है,जिसे तत्काल संबोधित किया जाना हमें बेहद जरुरी लगता है।पर्यावरण को दांव पर लगा दिया है मुक्तबाजार ने।


धर्म मनुष्यता और प्रकृति के विरुद्ध नहीं होता।


विडंबना यह है कि धर्म के बुनियाद पर सत्ता का सारा तिसिस्म है,जो इस मुक्त बाजार के लिए मनुष्यता और प्रकृति के विरुद्ध आपराधिक गतिविधियों को राजकाज और राष्ट्रवाद साबित करने लगा है जो दरअसल आतंकवाद है।


इसे समझने के लिए हिमांशु कुमार जी का यह ताजा स्टेटस जरुर पढ़ेः

आप मेहनत करने वालों को नीच जात मानते हों . आपके भगवानों में विश्वास ना करने वाले अपने ही देशवासियों को आप हीन और विधर्मी मान कर उनसे नफरत करते हों .

आप अपने देश के करोड़ों गरीबों की ज़मीने सरकारी सुरक्षा बलों के दम पर छीनने को जायज़ भी मानते हों . और राष्ट्र के आर्थिक विकास का मतलब आपके लिये बस अपनी बढ़िया गाड़ी , महंगे मकान और क्रिकेट मैच ही हो .

इसके बाद आप एक क्रूर आतंकवादी हत्यारे मोदी को अपना नेता भी चुन लें .

तो ऐसा कर के आप इस देश के अस्सी प्रतिशत आदिवासियों, दलितों और गाँव के गरीबों को क्या संदेश दे रहे हैं ? कभी सोचा है ?

यही है आपकी राष्ट्र में शन्ति रखने की योजना . यही है आपका राष्ट्रीय विकास क्यों ?

अगर आप आतंकवादी को अपना नेता चुनेंगे और आतंकवादी तरीकों से अपना विकास करेंगे तो बदले में आपको क्या मिलेगा आप ही मुझे समझा दीजिए ?

शनिमंदिर प्रवेश का मुद्दा स्त्री मुक्ति स्त्री विमर्श का फोकस बन गया है तो मंदिर प्रवेश आंदोलन अब स्त्री मुक्ति की दिशा तय करने वाला है जिससे विशुद्धता की धर्मरक्षा के लिए दुर्गावाहिनी और स्त्री मुक्त आंदोलन के एकाकर हो जाने की आशंका है।


तो दूसरी तरफ धर्मोन्माद का यह माहौल स्त्री के लिए कितना सुरक्षित है,उस पर शंकराचार्य की अभूतपूर्व टिप्पणी है।


गौरतलब है कि  शनि शिंगणापुर में महिलाओं के प्रवेशको लेकर शंकराचार्यस्वरूपानंद सरस्वती ने विवादित बयान दिया है। उनका कहना है कि इससे महिलाओं के साथ रेप की घटनाएं बढ़ेंगी। उन्होंने कहा कि शनि की दृष्टि अगर महिलाओं पर पड़ेगी तो रेप की घटनाएं और बढ़ेंगी। शंकराचार्यका यह बयान शनि मंदिरमें महिलाओं के प्रवेशकी छूट मिलने के दो दिन बाद आया है।


स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि मंदिर के गर्भगृह में प्रवेशको लेकर खुशियां मनाने के बजाय महिलाओं को पुरुषों को नशीले पदार्थों के सेवन से रोकने के लिए कुछ करना चाहिए, जिसके कारण वे उनके खिलाफ बलात्कार तथा अन्य अपराध करते हैं।


यह इतना मूर्खता पूर्ण वक्तव्य है लेकिन इसका आशय मुकम्मल हिंदुत्व का एजंडा है।जो दुर्गावाहिनी घर घर से निकल रही है,उसमें शामिल हो रही स्त्री को अंततः समझना ही चाहिए कि पितृसत्ता के इस हिंदुत्व में उसके सतीत्व पर एकाधिकार के अलावा उसकी अस्मिता और उसके अस्तित्व की कितनी चिंता इस हिंदुत्व समय को है।


भारतीय समाज में स्त्री का सारा मूल्यांकन उसकी सती छवि के आधार पर है जबकि वही स्त्री मुक्त बाजार में खरीदी और बेची जानी वाली वस्तु के सिवाय कुछ भी नहीं है।


शंकराचार्य के कहे का जो आशय है,उसे थोड़ा विस्तार से समझने की जरुरत है।


कितना वीभत्स है स्त्री के बारे में बहुमत का मतामत,इसका एक नजारा अजय प्रकास ने अपने फेसबुक वाल पर पेश किया हैः

कल मैं सुप्रीम कोर्ट के वकील और मित्र रविंद्र गढ़िया के साथ एक बलात्कार पीड़िता से मिलने गया था। गांव में उसके घर पहुंचने से ठीक पहले रास्ते में मैंने महिला को लेकर कुछ लोगों से बात की...

1. एक अखबार का स्थानीय स्ट्रिंगर — वह कैरेक्टरलेस महिला है...बहुत ही ज्यादा...बहुत ही ज्यादा कैरेक्टरलेस...5—10 रुपए में किसी के साथ सो जाती है...आप किसी से पूछ लीजिए...एक—दो आदमी नहीं पूरा गांव इस सच का जानता है...बाजार वाले भी जानते हैं।

2. जिस बाजार में बलात्कार हुआ वहां का एक दूकानदार — पैसे के लिए वह करती रहती है गलत काम। उस दिन उसके साथ हो गया तो हल्ला हो गया, इसीलिए तो दरोगा जी ने मुकदमा नहीं दर्ज किया था। बाद में बड़े अधिकारी आए तो दर्ज हुआ।

3. पीड़िता के गांव में मिला ड्राईवर — वह गलत काम करने वाली महिला है। बलात्कार हो गया तो क्या हो गया।

4. पीड़िता की पड़ोसी महिला हंसते हुए — यह सच है कि इसके साथ गलत काम हुआ है पर मैं यहीं पली—बढ़ी लेकिन मैंने गलत काम होते किसी के साथ नहीं सुना। पता नहीं इसके साथ कैसे हुआ।

5. स्थानीय पुलिसकर्मी — आपने पूछा लोगों से। धंधा करने वाली की मदद सरकार करती फिरे क्या? उसके साथ जो अपराध हुआ मुकदमा दर्ज कर दिया गया है, अब उसको राशन कौन देगा हमें क्या पता।

और भी बहुत बातें लोगों से हुईं लेकिन इस बहुमत को समझने से पहले एक बार नीचे की तस्वीर देखिए। फिर फैसला कीजिए कि स्कील इंडिया, मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया के बीच विकसित हो रहे भारत में सक्षम हो रही यह कौन सी भारत माता है जिसका किचन देह बेचने के बाद भी हमारे नेताओं के जूठन के बराबर भी नहीं है। अधिकारियों के एक चाय के प्याली की कीमत भी नहीं है, यहां तक कि सबसे सस्ते रिचार्ज पैक के बराबर भी नहीं है।

सामने दिख रहे आटे और मिर्चे की चटनी से आज रात घर के पांच लोगों का पेट भरेगा। तो सवाल यह कि हम कैसे महान भारत में रह रहे हैं जहां इस भारत माता को सिर्फ 5—10 रुपए के लिए, सिर्फ इस चटनी और आटे के लिए अपने देह को बेचना पड़ रहा है और तंत्र है कि इस गुनाह की सजा भी उसी पर मुकर्रर कर रहा है।

और भी बहुत बातें हैं इस बारे में कहने के लिए जो किसी अगली रिपोर्ट में लिखूंगा पर अभी बस इतना कि जनमत बनाने के इस तरीके पर तगड़ी चोट करनी होगी। अन्यथा तंत्र तो पहले से फेल है, हम इंसानियत को भी फेल कर देंगे।

Ajay Prakash's photo.



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बंगाल पहुंच रही है चुनाव आयोग की टीम,इसीलिए भूकंप? असम के मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर लेकिन बंगाल में गैरभाजपाई शिकायतों की सुनवाई नहीं! भाजपा की शिकायत पर ही कोलकाता के पुलिस कमिश्नर हटाये गये और कांग्रेस वाम की शिकायतों पर आयोग शांतिपूर्ण मतदान की रट लगा रहा! भूकंप से विकास की टल्ली बेपर्दा,बाकी मतदान से पहले हर इलाके में बिना भूकंप दहशत जारी! एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

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हस्तक्षेप
बंगाल में लगातार हिंसा और धांधली की खबरें हम मतदान के पहले चरण की शुरुआत से दे रहे हैं हस्तक्षेप पर।लोकतंत्र की हत्या पर चुनाव आयोग शर्मिंदा नहीं है,कल हमने लिखा था।मालूम नहीं चला है कि दो हजार शिकायतों के बावजूद जिस आयोग को शांतिपूर्ण मतदान का दावा करने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई,उसकी नींद में खलल कैसे पड़ी।हम नहीं जानते कि उन्हें शर्म भी आती है या नहीं।


बहरहाल अब खबर है कि चुनाव आयोग की पूरी टीम माननीय मुख्य चुनाव आयुक्त कीअगुवाई में कोलकाता आ रही है ताकि बाकी चरणों में अमन चैन बना रहे और लोकतंत्र के उत्सव पर सत्ता पक्ष की भूमिका के बारे में कोई उंगली न उठे।हो सकता है कि थोड़ी बहुत शर्म बी आ रही होगी।चुनाव आयोग की टीम सचमुच क्या गुल खिलाती है या आती भी है क्या,इसे लेकर असमंजस की स्थिति है क्योंकि इस खबर की पुष्टि हो नहीं पा रही है।

गौरतलब है कि भाजपा ने उन सभी बूथों पर पुनर्मतदान कराने की मांग की है.जहां वोट 95 फीसद से ज्यादा पड़े।लगता तो यही है कि भाजपा की इसी मांग के मद्देनजर अचानक चुनाव आयोग की बेकार इंद्रियां काम करने लगी हैं।

गौरतलब है कि भाजपा नेता राहुल सिन्हा की शिकायत के बाद कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को चुनाव आयोग ने कल ही हटा दिया है,लेकिन माकपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों से बदसलूकी और मारपीट,मीडियाकर्मियों से मारपीट,वोटरों को डराने धमकाने,बूथों के  अंदर बाहर हिंसा,लूटपाट और आगजनी की वारदातों और शत फीसद मतदान में धांधली की गैर भाजपाई शिकायतों का चुनाव आयोग ने संज्ञान नहीं लिया है।

जबकि माकपा महासचिव कामरेड सीताराम येचुरी समेत माकपा के नेता रोज रोज चुनाव आयोग जा जाकर निष्पक्ष और स्वत्त्र चुनाव सुनिश्चित कराने की मांग कर रहे हैं।कांग्रेस की तरफ से बी चुनाव आयोग की शिकायत की जा रही है।

लगता है कि आयोग गैरभाजपाई किसी शिकायत पर सुनवाई नहीं करेगा।जबकि असम की कथा दूसरी है क्योंकि बंगाल में वाम लोकतांत्रिक गठजोड़ को हराने का संघ परिवार का एजंडा है तो गंभीर से गंभीर आरोपों की सुनवाई नहीं हो रही है।दूसरी ओर संघ परिवार को अगप और उल्फा के सहारे असम को गुजरात बना देने का भरोसा है।तो वहां चुनाव आयोग सक्रिय है और  चुनाव आयोग ने असम के मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी, डीएम ने इसको सुनिश्चित कर बताया कि एफआईआर दर्ज कर ली गई है। यहीं नहीं,दिल्ली में चुनाव आयोग सूत्रों ने बताया कि गोगोई के ऊपर चुनाव के दौरान संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर जन प्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप है।

इसी तरह कामरूप में चायगांव में एक मतदान केन्द्र पर वोट डालने आई एक गर्भवती महिला वापस जाते समय अपने बच्चे को वहीं भूल गई और जब वह बच्चा वापस लेने आई तो सीआरपीएफ के एक कांस्टेबल ने उसके साथ कथित रूप से 'बदसलूकी' की, जिसका वहां मौजूद लोगों ने विरोध किया और हालात काबू में करने के लिए पुलिस को हवा में गोलियां चलानी पड़ीं।

इसी के मद्देनजर पश्चिम बंगालमें मतदान के दौरान चुनाव आयोगऔर केंद्रीय बलों के कार्य निष्पादन पर नाखुशी जाहिर करते हुए विपक्षी पार्टियों ने सोमवार को बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच 'मैच फिक्सिंग' का आरोप लगाया तथा सत्तारूढ़ पार्टी को मदद मिलने की बात कही। पश्चिम बंगालवाम मोर्चा अध्यक्ष बिमान बोस ने कहा कि कुछ स्थानों पर लोगों ने स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से मतदान किया। कुछ स्थानों पर लोग तृणमूल कांग्रेस के गुंडों के आतंक के चलते ऐसा नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बल 'मैच फिक्सिंग' के चलते निष्क्रिय हैं।


मतदान के दौरान हुई गड़बड़ी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि छह घंटे में ही चुनाव आयोगके समक्ष 1878 शिकायतें पहुंच गईं। उधर, असम में भी सोमवार को दूसरे और अंतिम चरण का मतदान हुआ।

अधिकारियों ने बताया कि असम के बरपेटा जिले में सोरभोग विधानसभा क्षेत्र में एक मतदान केंद्र पर कतार बनाने को लेकर सीआरपीएफ कर्मियों और स्थानीय लोगों के झगड़े में एक 80 वर्षीय मतदाता की मौत हो गई।

इस घटना में तीन लोग घायल हो गए जिसमें सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट और एक कांस्टेबल भी शामिल है।

वहीं एक सीआरपीएफ कांस्टेबल द्वारा कथित रूप से गर्भवती मतदाता के साथ दुर्व्यवहार  करने का आरोप है।

बंगाल में जंगल महाल में अमूमन निष्क्रिय सीआरपी के जवान वोटरों और आम नागरिकों को बिना बात धुनते हुए देखे गये और यह सबकुऎछ लाइव है जिसपर आयोग ने कोई सुनवाई नहीं की।बूथ के बीतर माकपा की महिला एजंट को नंगा कर देने औरनीलाम कर देने की सत्ता पक्ष की धमकी को भी आयोग ने नजअंदाज कर दिया।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगालमें पहले दो चरणों के चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर अपराध और आतंक का सहारा लेने का आरोप लगाते हुए भाजपा ने मंगलवार को चुनाव आयोगसे आने वाले चरणों के चुनाव को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष बनाना सुनिश्चित करने की मांग की है। पार्टी ने दावा किया कि उसके पूर्व के ऐसे आग्रह पर कदम नहीं उठाया गया। पार्टी के एक शिष्टमंडल ने मंगलवार को चुनाव आयोगके शीर्ष अधिकारियों से मुलाकात की और एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में कहा गया है कि अधिकांश पर्यवेक्षक दिखाई नहीं देते और उपलब्ध नहीं रहते लिहाजा उनसे संवाद स्थापित नहीं हो पाता है।

बाद में जावड़ेकर ने संवाददताओं से कहा कि प्रतिनिधिमंडल ने पश्चिम बंगालमें शांतिपूर्ण, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के संबंध में चुनाव आयोगके अधिकारियों के साथ विस्तार से चर्चा की और कुछ सुझाव भी दिये। चुनाव आयोगने इन सुझावों का स्वागत करते हुये इन पर विचार करने का आश्वासन दिया है। जावड़ेकर ने कहा, "पश्चिमबंगालमें तृणमूल कांग्रेस की राजनीतिक जमीन खिसक रही है जिससे उसके 'गुंडे' हिंसा पर उतर आये हैं और मतदाताओं को डरा धमका रहे हैं।"

हालांकि पश्चिम बंगालमें कांग्रेस नेताओं ने विधानसभा चुनावके पहले चरण के दूसर भाग के तहत सोमवार को हो रहे मतदान के दौरान कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान में गड़बड़ी का आरोप लगाया और निर्वाचन आयोगसे 'सुरक्षात्मक कदम' उठाने की मांग की। पार्टी नेताओं ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त नसीम जैदी से अलग-अलग मुलाकात कर हस्तक्षेप करने की मांग की, ताकि शांतिपूर्ण और निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित हो सके।

हो सकता है कि आज शाम आये भूकंप के पीछे बंगाल की राजनीति में चुनाव आयोग के इस अप्रत्याशित हस्तक्षेप की भी कोई भूमिका हो क्योंकि कांपा तो दिल्ली से लेकर बंगाल तक है।

म्यांमार में करीब सात रेक्टर स्केल के भूकंप से कोलकाता में दो बार जबर्दस्त कंपन महसूस हुआ और आईपीएल मैच शुरु होने से पहले खलबली भी मची।मेट्रो सेवा बंद कर दी गयी और देर तक मेट्रो से घर लौटते लोग सुरंग में फंसे रहे।

उनके लिए अंधेरे में जो दहशत है,रोशनी में वापसी के बाद वह कम नहीं होने वाली है क्योंकि टीवी के परदे पर म्यांमार में जमीन की गहराई में हुई हलचल की वजह से निर्माणाधीन मैट्रों के पुलों में दरारें दिखायी जा रही है और विकास का टल्ला खिलखिलाने लगा है।

हाल में बड़ा बाजार में जो अधबना पुल ध्वस्त हुआ,उसका मलबा अभी हटा नहीं है और अभी वहां से खबर नहीं आयी है कि भूकंप के बाद मलबे की सेहत क्या है।

कोलकाता में सविनय निवेदन के साथ वोटरों को मतदान से रोकने की रघुकुल रीति चली आ रही है।बूथों के अंदर पहुंच गये वोटरों को सत्ता पक्ष के लिए उंगली पकड़कर वोट डलवाने की वैज्ञानिक विधि भी जनगण को मालूम है।

जंगल महल के दो चरणों में सभी संवेदनशील सीटों के लिए मसलन सूर्यकांत मिश्र के नारायण गढ़ और मानस भुइयां के सबंग में नब्वे फीसद से ज्यादा वोट पड़े हैं।

दोनों ही सीटें पश्चिम मेदिनीपुर में हैं।

तो खास जंगल महल में बिन वोटर बूथों में भारी मतदान हुआ और वोटर जान बचाते भागते रहे।फरमान के मुताबिक बाल्टी भर भर कर दूध में पानी मिलाया जाता रहा और उसी दूध को पतंजलि का विशुद दूध बता रहा है चुनाव आयोग।

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आईआईटी खड़गपुर के छात्र फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन की राह पर! गुड़गांव को गुरुग्राम बनाकर देश के तमाम एकलव्यों की अंगूठी काट लेने की मुहिम के खिलाफ बगावत! एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

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आईआईटी खड़गपुर के छात्र फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन की राह पर!
गुड़गांव को गुरुग्राम बनाकर देश के तमाम एकलव्यों की अंगूठी काट लेने की मुहिम के खिलाफ बगावत!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
हस्तक्षेप
भले ही नये वर्गीकरण के संशोधित पैमाने में आईआईटी खड़गपुर अव्वल नहीं है,लेकिन दुनियाभर में उसकी साख जस की तस है।फीस वृद्धि के खिलाफ कल उसी आईआईटी में करीब चार सौ छात्रों ने प्रदर्शन किया है।

हालांकि आईआईटी खड़गपुर के कार्यकारी अधीक्षक अजय राय ने छात्रों से कहा है कि उन्हें फीस में बढ़ोतरी के सिलसिले में कोई आधिकारिक पत्र नहीं मिला है और छात्र अफवाहों से उत्तेजित न हों।फिरभी आंदोलन जारी है।छात्रो का कहना है कि फीस अचानक नब्वे हजार से बढ़ाकर तीन लाख तक बढ़ाने की तैयारी है,जिसे वे हरगिज मानेंगे नहीं।

खबर पहले से जगजाहिर है कि आईआईटीमें पढ़ने वाले छात्रों को अब दोगुना फीसदेनी होगी जो 90 हजार से बढ़कर दो लाख हो जाएगी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने यह फैसला आईआईटीकाउंसिल के सिफारिश पर लिया है।

गुड़गांव को गुरुग्राम बनाकर देश के तमाम एकलव्यों की अंगूठी काट लेने की मुहिम के खिलाफ बगावत कर दी है आईआईटी खड़गपुर ने।अब बंगाल के दूसरे मशहूर इंजीनियरिंग संस्थान शिवपुर विश्वविद्यालय में भी आंदोलन की तैयारी है।

फीस में दो सौ फीसद वृद्धि के खिलाफ जुलुस निकालकर चारसौ छात्र प्रशासनिक भवन में हिजली बैरक के पास हिजली भवन के सामने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पूरी विरासत की भावभूमि में धरने पर बैढ गये ,जिसे लेकर द्रोणाचार्यों और मनु्मृति के वरदपुत्रों में खलबली मची है।

बंगाल के तमाम इंजीनियरिंग कालेजों में फीस में भारी वृद्धि कर दी गयी है।जादवपुर,कोलकाता,विश्वभारती के बाद अब खड़गपुर के आंदोलन का केंद्र बन जाने से बंगाल में छात्र ांदोलन और तेज होनेवाला है।हालांकि फिलहाल बंगाल पर देश की नजर लोकतंत्र महोत्सव के नाम भूतों के नाच पर ज्यादा है।

आज ही नागपुर में बाबासाहेब की 125 वीं जयंती के मौके पर दीक्षाभूमि के रास्ते पर बजरंगियों ने जेएनयू के छात्र नेका कन्हैया कुमार का रास्ता रोकने की कोशिश से मनुस्मृति के राजधर्म और हिंदुत्व के अंबेडकर महोत्सव का खुलासा कर दिया है।

बहरहाल आज का छात्र युवा आंदोलन किसी व्यक्ति की छवि लेकर नहीं है।यूजीसी की ओर से शोध छात्रों को छात्रवृत्ति रोकने से लेकर जेएनयू,जादवपुर हैदराबाद इलाहाबाद विश्वविद्यालयों में छात्रों के दमन के जरिये विश्वविद्यालयों को बंद कराने का जो अभियान चल रहा है,उसका असली मकसद कमजोर तबके के गीब बच्चों की शिक्षा का निषेध है।

शिक्षा को पूरीतरह बाजार में तब्दील करने के लिए आईआईएम और आईआईटी की फीस डबल कर दिया गया है ताकि आरक्षण के जरिये जो इक्का दुक्का छात्र इन संस्थानों में पहुंचकर विशुद्ध मनुस्मृति अनुशासन तोड़ते हैं,उनका संपूर्ण बहिस्कार हो जाये।

हैदराबाद से लेकर जेएनयू तक छात्र लामबंद हैं और रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या के बाद छात्र लगातार आंदोलन कर रहे हैं और मुद्दों से अभी तक नहीं भटके हैं।

गौरतलब है कि फीस में बढ़ोतरी की दलील पेश करते हुए  केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि केंद्र सरकार एससी, एसटी के साथ-साथ दिव्यांग छात्रों के लिए सभी 23 आईआईटी में मुफ्त शिक्षा दिए जाने की योजना बना रही है।


उधर, सरकार ने मौजूदा 90,000 रूपए की फीस में बढ़ाकर 2 लाख रूपए सालाना करने की घोषणा कर दी है।

इसपर मानव संसाधन मंत्री ने यह भी कहा है कि इसके साथ ही 5 लाख रूपए से कम आमदनी वाले परिवारों के बच्चों की फीस में 66 फीसद की छूट भी दी जाएगी।

मंत्री ने यह भी कहा है कि 5 लाख रूपए से कम सालाना आय वाले परिवार के बच्चों की दो तिहाई फीस माफ होगी। पांच लाख रूपए से अधिक सालाना आय वाले परिवार के बच्चों को आईआईटी में पढऩे के लिए 8 लाख रूपए खर्च करने होंगे।

मनुस्मडति की दलील है कि इससे देशभर की आईआईटी में पढ़ रहे कुल 60,471 स्टूडेंट्स में करीब-करीब 50 फीसद छात्रों को फायदा होगा।


गौरतलब है कि आईआईटी में एससी के लिए 15 फीसद, एसटी के लिए 7.5 फीसद और ओबीसी के लिए 27 फीसद आरक्षण लागू है।

इस पर आखिरी फैसला मंत्री स्मृति ईरानी को ही लेना है।

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शैतानों का खुला खेल: आनंद तेलतुंबड़े

Next: अब दे दिये सैनिक अड्डे अमेरिकी फौज के हवाले, आप क्या उखाड़ लेंगे? रूस अमरीका का सट्टा / हम तुम साल उल्लूपट्ठा / आओ खेलें कट्टम कट्टा । संपूर्ण निजीकरण,प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और अबाध पूंजी के तहत भारत में जो अमेरिकी हित हैं,उसके मद्देनजर यह उम्मीद करना सरासर मूर्खता है कि पांच पांच पृथ्वी के बराबर संसाधन खर्च करने वाला अमेरिका भारतीय प्राकृतिक संसाधनों को बख्शेगा । भारत के प्राकृतिक संसाधन दखल करने के लिए उसकी लंबी तैयारियां रही हैं,हमने कभी उन तैयारियों पर और भारत के खिलाफ अमेरिका की मोर्चाबंदी पर नजर रखी ही नहीं है।अब देशभक्ति बघार रहे हैं। विशुध हिंदुत्व के एजंडे को लागू करते रहिये।मंकी बातें सुनते रहें और अपने स्वजनों के खून से नहाते रहिये,रामायण महाभारत के किस्से कहानियां जीते हुए विकास की उड़ान भरते रहिये,सैनिक अड्डे गोरी फौजों के हवाले हैं तो क्या फर्क पड़ा,समूचा देश उनके हवाले हैं।हम काले लोग,गुलाम लोग आजादी के काबिल कभी बन सकें,मूक वधिर लोगों को मां सरस्वती वाणी दें तो भी हम भारत माता की ज. ही बोलेंगे और राष्ट्रविरोधियों के पाले में खड़े हो जायेंगे क्योंकि इसी मुक्त बाजार में
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शैतानों का खुला खेल: आनंद तेलतुंबड़े

Posted by Reyaz-ul-haque on 4/14/2016 08:11:00 AM

मौजूदा फासीवादी राज्य, सत्ताधारी पार्टी और आरएसएस में बाबासाहेब आंबेडकर को अपना बताने और उन्हें अपनाने की सोची-समझी और एक शातिर बेचैनी दिख रही है. इसके लिए झूठ पर झूठ रचे जा रहे हैं. लेकिन आनंद तेलतुंबड़े बता रहे हैं कि कैसे बाबासाहेब आंबेडकर इस राज्य, भाजपा और आरएसएस का प्रतिनिधित्व करने वाली हर चीज के खिलाफ खड़े होते हैं. अनुवाद: रेयाज उल हक

खुद को संविधान का निर्माता कहे जाने के खिलाफ राज्य सभा में अपने गुस्से पर बाद में बोलते हुए बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था, 'हमने भगवान के लिए एक मंदिर बनाया...लेकिन उसमें भगवान की स्थापना हो पाती, इसके पहले ही शैतान ने आकर उस पर कब्जा कर लिया.'कांग्रेस पर इस बात का इल्जाम लगाते हुए कि उसने उन्हें किराए के लेखक के रूप में इस्तेमाल किया था, उन्होंने न सिर्फ संविधान से खुद को अलग कर लिया था बल्कि इसे बेकार बता कर खारिज भी कर दिया था. तब से लेकर अब तक शासकों की शैतानियत में इजाफा ही हुआ है. अगर पिछले कुछ महीनों की घटनाओं को देखने के लिए आंबेडकर जिंदा होते, तो या तो वे हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू) के रोहिथ वेमुला बन गए होते और गुस्से में खुदकुशी कर ली होती, या फिर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के कन्हैया कुमार, उमर खालिद या अनिर्बाण भट्टाचार्य हो गए होते और उन पर राजद्रोह और राष्ट्र-विरोधी होने का इल्जाम लग गया होता.

कहने का मतलब ये नहीं है कि कुछ महीने पहले तक चीजें बहुत अलग थीं. यह तथ्य कि आंबेडकर का भ्रम टूटने में तीन साल भी नहीं लगे, जिन्हें अपनी उपलब्धियों को लेकर इतनी उम्मीदें थीं कि उन्होंने अपने अनुयायियों से गुजारिश की थी वे विरोध के तरीके छोड़ दें और अपने खिलाफ नाइंसाफियों को खत्म करने के लिए सिर्फ संवैधानिक तरीके ही अपनाएं, दिखाता है कि चीजें तब से ही इस कदर खराब थीं जब से देशी लोगों ने सत्ता की लगाम अपने हाथ में ली थी. उन्होंने औपनिवेशिक शासन को एक शैतानी चेहरा दिया, जिसने पहली बार जातियों के नासूर वाली इस जमीन पर वह चीज स्थापित की थी, जिसे कानून का शासन कहते हैं और अवाम में अधिकारों को लेकर सजगता और लोकतंत्र के बीज बोए थे. नए शासकों ने औपनिवेशिक शासन के ऊपरी ढांचे को बुनियादी रूप से अपना लिया, जिसमें अच्छी लगने वाली संवैधानिक बातों की सजावट की गई थी, लेकिन उन्होंने इसके पश्चिमी उदारवादी मर्म की जगह अपनी ब्राह्मणवादी मक्कारी को लाकर बिठा दिया, जिसने कारगर तरीके से हर चीज का मतलब बदल दिया: लोकतंत्र मुट्ठी भर लोगों का शासन हो गया; पूंजीवाद, समाजवाद बन गई; आजादी गुलामी में तब्दील हो गई; धर्मनिरपेक्षता, हिंदुत्व में और इसी तरह दूसरी तमाम चीजें. उपनिवेशवाद के बाद के बरसों में यह सब कुछ जहां ढंके-छिपे तरीके से हो रहा था, केंद्र की सत्ता में भाजपा के उभार के साथ और इस बार साफ बहुमत के साथ आते ही, सारे मुखौटों को उतार फेंका गया है ताकि अवाम को सत्ता का नंगा चेहरा दिखाया जा सके.

झूठ बोलने की कला
 

11 से 13 मार्च तक चली स्वयंभू गुरु श्री श्री रवि शंकर के तीन दिनों की बेतुकी सांस्कृतिक तड़क-भड़क बिना किसी रुकावट के आखिरकार समापन को पहुंची और इसका समापन किसी और के नहीं बल्कि खुद धर्मनिरपेक्ष भारत के प्रधानमंत्री के हाथों हुआ, जिन्होंने यहां आकर इसे अपना समर्थन दिया और सरेआम उन आलोचकों को फटकारा जिन्होंने इस आयोजन से यमुना पुश्ता को होने वाले पर्यावरणीय नुकसानों और दूसरे अनुचित कामों के बारे में गंभीर सवाल उठाए थे. यह पर्यावरण को लेकर उत्साही कुछ लोगों द्वारा खड़ा किया गया कोई विवाद भर नहीं था बल्कि कानून का एक खुल्लमखुल्ला उल्लंघन था और यहां तक कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की संवैधानिक सत्ता की नाफरमानी भी थी जिसने सत्ता के करीब रहने के इस गंदे प्रदर्शन पर सवाल उठाए थे. जब विवाद खड़ा हुआ, अनेक तथ्य अवाम के सामने उजागर हुए: कि कैसे आयोजकों की हरेक मांग को सरकारी अधिकारियों द्वारा मान लिया गया था. शहरी विकास मंत्रालय के तहत दिल्ली विकास प्राधिकरण ने एक अधूरी दरख्वास्त के आधार पर आयोजन की मंजूरी दी थी, जिसमें तथ्यों को बड़े पैमाने पर छुपाया गया था. एनजीटी पारिस्थितिकी के लिहाज से नाजुक यमुना पुश्ता के इलाके में किसी भी आयोजन के खिलाफ रहा है. उसने आईआईटी दिल्ली के एके गोसाईं की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट के आधार पर आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन से मांग की कि वो नुकसानों की भरपाई के लिए 120 करोड़ रुपए जमा करे. आयोजकों ने इसकी अनदेखी कर दी. अगली दफे एनजीटी ने रकम को बेहद कम करते हुए महज 5 करोड़ कर दिया, लेकिन श्री श्री ने इसको देने से भी इन्कार कर दिया और धमकी दी कि वे एक पैसा भी चुकाने के बजाए वे जेल जाना पसंद करेंगे. हालांकि बाबा ने अपनी बात वापस ली और 25 लाख रुपए चुकाए जिसे एनजीटी ने अपना मान रखने के लिए कबूल कर लिया. एनजीटी के पास इस मामले में काफी ताकत हासिल थी और उसके द्वारा अपना रुख बदलते जाना यह दिखाता है कि शैतान से आपकी करीबी आपको किस तरह किसी भी तरह की परेशानी से बचा सकती है.

उतना ही गंभीर मुद्दा और शायद उससे ज्यादा बुरे संकेतों वाली बात इस आयोजन के लिए  पीपा पुल बनाने के लिए फौज को बुलाया जाना है, जो असल में एक निजी आयोजन था. सेवारत और रिटायर हो चुके फौजी जनरलों तथा नागरिकों ने इस तरह फौजी इंजीनियरों और जंगी साज-सामान के दुरूपयोग के खिलाफ विरोध किया, लेकिन शैतानों पर इसका कोई असर नहीं हुआ. रूलबुक (रेगुलेशंस फॉर द आर्मी, पैराग्राफ 301, पेज 100) उन्हें इस बात का अधिकार देती है कि वो नागरिक अधिकारियों की मदद के लिए सेना को बुला सकें, लेकिन उनमें उन हालात का साफ साफ ब्योरा दिया गया है, जिनमें ऐसा किया जा सकता है, जैसे कि कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए; बुनियादी सेवाओं को कायम रखने के लिए; भूकंप और बाढ़ जैसी कुदरती आपदाओं के दौरान; और किसी भी दूसरी तरह की मदद जिसकी जरूरत नागरिक पदाधिकारियों को पड़ सकती है. इसमें से कुछ भी श्री श्री के सांस्कृतिक तमाशे पर लागू नहीं होता था, बस आखिरी वाली स्थिति को छोड़ कर जिसमें लगभग हर तरह की आकस्मिक स्थिति शामिल है और जिसे बजाहिर तौर पर रक्षा मंत्री द्वारा इस्तेमाल किया गया. हालांकि रूलबुक की ओट में मुंह छुपाए जाने के बावजूद अवाम की निगाहों से यह बात छिपी नहीं रह सकी कि यह एक सियासी उपकार था. श्री श्री संघ परिवार के घरेलु गुरु के रूप में सामने आए हैं और उन्होंने पिछले चुनावों में मोदी के लिए अपने समर्थन को कोई राज नहीं रहने दिया था. हालांकि फौजी जनरल (मिसाल के लिए वी.के. सिंह) हिंदुत्व के समर्थक रहे हैं, लेकिन इसके पहले कभी किसी राजनीतिक सत्ता ने सेना को एक राजनीतिक औजार के रूप में इस तरह खुल्लमखुल्ला उसका दुरुपयोग नहीं किया था. यहां तक कि भारतीय लोकतंत्र का यह आखिरी हथियार भी अनछुआ नहीं रह गया!

शैतान के लंगोटिए यार
 

बेशक रवि शंकर हिंदुत्व गिरोह से ताल्लुक रखते हैं. उनका आर्ट ऑफ लिविंग एक कारोबारी संगठन है जो हिंदू धर्म से ली गई कच्ची सामग्री से बने आध्यात्मिक उत्पादों को दुनिया में बेचता है. यमुना का मेला हिंदू धर्म की ताकत को दिखाने का ऐसा ही एक बाजारी आयोजन था. ऐसे एक आयोजन को राज्य की मदद अगर और कुछ नहीं तो कम से कम संविधान का उल्लंघन तो थी ही. प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के दुराचारों को छुपाने के लिए इसकी तुलना कुंभ मेले से कर दी, मानो एक गलती को दूसरी गलती से ढंका जा सकता है. जहां तक कुंभ मेले को कानून-व्यवस्था से परे जाकर राज्य द्वारा मदद दिए जाने की बात है, वह भी संवैधानिक रूप से निंदनीय है, इस अहंकारी मेले की तो कुंभ मेले से किसी भी तरह तुलना नहीं हो सकती थी. कुंभ मेला भोली-भाली जनता की धार्मिक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है जिसको सरकार संविधान में बताए गए तरीके से वैज्ञानिक चेतना को बढ़ावा देकर कमजोर कर सकती थी. लेकिन इसके बजाए, इसने उसके लिए सुविधाओं में इजाफा करके उन्हें मजबूत ही किया है. शैतान लोग संविधान की धर्मनिरपेक्ष आत्मा की हत्या करने के गुनहगार रहे हैं और ये हत्या उन्होंने बाबाओं और गुरुओं, साध्वियों और संतों की फौज के जरिए रूढ़िवाद को बढ़ावा देते हुए की है.

शैतानों के लंगोटिए यारों के एक दूसरे किस्म के गिरोह के नुमाइंदे विजय माल्या हैं: जनता के पैसे पर सुख भोगने वाले परम सुखवादी. माल्या के कर्जे 2011 में नन परफॉर्मिंग असेट्स बन गए थे, उन्हें पहले कोलकाता स्थिति यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया द्वारा सितंबर 2014 में इरादतन दिवालिया घोषित किया गया लेकिन ये बहुत दिनों तक नहीं कायम रह सका क्योंकि कोलकाता उच्च न्यायालय ने बैंक की इस घोषणा को अवैध ठहरा दिया. यह साहसिक कदम उठाने वाले बैंक के उस ईमानदार कार्यकारी निदेशक पर विभिन्न कार्यालयों ने आरोपों की बौछार कर दी और उसे तंग किया जाता रहा और मार्च 2015 में उसके रिटायर होने पर उसकी पेंशन तक रोक दी गई. बाद में भारतीय स्टेट बैंक और पंजाब नेशनल बैंक ने भी माल्या को इरादतन दिवालिया घोषित कर दिया. रवि शंकर की ही तरह, माल्या पर भी न सिर्फ बैंक कर्जों और कर्मचारियों के वेतन के भुगतान का बकाया था, बल्कि आयकर, सेवा कर और भविष्य निधि की रकमों का वैधानिक बकाया भी था, जिनके लिए उसे आसानी से गिरफ्तार किया जा सकता था. लेकिन शैतानों ने न सिर्फ उसे आम राय का उल्लंघन करते हुए खुला छोड़ रखा था, बल्कि उसे राज्य सभा का सदस्य भी बन जाने दिया. उसके देश छोड़ कर चले जाने के बाद जो नाटक हुआ, वो अप्रासंगिक ब्योरे को लेकर था और इसने इस बुनियादी तथ्य को दबा दिया कि क्यों सरकार ने उसके द्वारा अंजाम दिए गए ठोस अपराधों के लिए उसे पहले ही गिरफ्तार नहीं कर लिया था. इत्तेफाक से माल्या न तो अकेला ऐसा दिवालिया था न ही वह उनमें से सबसे बड़ा है, और न ही सरकारों के साथ गलबंहिया करने वाले पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज्म) की सड़ांध पहली बार उजागर हुई है. भारत में, पूंजीपति लोग उत्पादक पूंजी में निवेश नहीं करते; वे शैतान के साथ रिश्तों में पैसा लगाते हैं जिससे उन्हें जनता का पैसा बेधड़क लूटने की छूट मिल जाती है. आईसीआईसीआई सेक्योरिटीज की 16 मार्च 2015 की एक रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों की कुल समस्याग्रस्त परिसंपत्ति 10.31 लाख करोड़ है और इनमें सबसे ज्यादा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों की परिसंपत्तियां हैं. एसबीआई उनमें से सबसे बड़ी है, जिसकी कुल कीमत का 60 फीसदी और इंडियन ओवरसीज़ बैंक की कुल कीमत का 221 फीसदी समस्याग्रस्त परिसंपत्तियों में शामिल है.

शैतान बनाम अवाम
 

रवि शंकर और माल्य उस शैतानियत के महज चेहरे हैं, जिसके बारे में आंबेडकर ने आधी सदी पहले बात की थी. असली तकलीफें अवाम सहती है जिसके बारे में माना जाता है कि वो इस मुल्क की संप्रभु सत्ता है लेकिन जिसे एक ऐसा लाचार जीव बना कर छोड़ दिया गया है जो बस शैतान के रहमोकरम पर ही जिंदा रह सकती है. अवाम की मुसीबतों की सबसे सटीक झलक उन घटनाओं में देखी जा सकती है, जो अभी छत्तीसगढ़ में घट रही हैं. यहां राज्य और माओवादी करार दिए गए आदिवासियों के बीच एक तरह की जंग चल रही है.

शैतानों ने माओवादियों की इतनी बुरी सूरत पेश की है कि उन्हें आम अवाम के नुमाइंदे के बारे में कबूल करना तो दूर, उन्हें इंसानों के रूप में भी नहीं लिया जा सके. बस्तर की एक आदिवासी शिक्षिका सोनी सोरी की दास्तान ऐसी ही एक दास्तान है जो एक माओवादी समर्थक नहीं बल्कि पिछले चुनावों में आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार थीं. उनका अकेला अपराध ये था कि उन्होंने अपने जैसी आदिवासी जनता पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई. पहले उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें यौन यातनाएं दी गईं. अब वे एक जानी-मानी शख्सियत हैं और हाल ही में उनके चेहरे पर कोई केमिकल फेंक कर उनके चेहरे को बिगाड़ दिया गया. उनके बुजुर्ग पिता, उनकी बहन और उनके पूरे परिवार को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें इस कदर परेशान किया गया है कि उनके पत्रकार भतीजे को सरेआम खुदकुशी करने की धमकी देनी पड़ी.

महिला वकीलों के एक संगठन जगदलपुर लीगल एड ग्रुप का मामला भी शैतानियत की इस हुकूमत की एक निशानी है, जो जुलाई 2013 से लगातार आदिवासों को मुफ्त में कानूनी मदद मुहैया कराता आ रहा है. प्रशासन ने इसके बारे में प्रचार किया कि यह एक 'नक्सली संगठन'है. इसकी वकीलों को पुलिस के एक हत्यारे समूह सामाजिक एकता मंच द्वारा 'खून के प्यासे नक्सलियों'को बचानेवाली वकीलों के रूप में सरेआम पीटा गया. यह मंच बदनाम सलवा जुडूम का एक और भी खतरनाक रूप है. उनके खिलाफ बेनाम शिकायतें करके उन्हें परेशान किया गया. स्थानीय बार असोसिएशन ने उन्हें बाहरी बता कर प्रैक्टिस करने पर पाबंदी लगा दी. वे प्रैक्टिस करने के लिए राज्य बार काउंसिल से एक अंतरिम आदेश हासिल करने में कामयाब रहीं. लेकिन इस साल फरवरी से पुलिस ने उनके मकान मालिकों पर दबाव डालने और उनकी मदद करने वाले लोगों को तंग करने की एक नई तरकीब अपनाई है जिसकी वजह से उन्हें जगदलपुर छोड़ देने पर मजबूर होना पड़ा. संविधान (अनुच्छे 39ए) राज्य को इसकी जिम्मेदारी देता है कि वो अपने नागरिकों के लिए कानूनी मदद को यकीनी बनाए, लेकिन शैतान इसकी इजाजत नहीं देगा. एक और बाहरी, स्क्रॉल डॉट इन के एक पत्रकार को भी इसी तरह परेशान किया गया और उसे बस्तर छोड़ने पर मजबूर किया गया, जिसने आदिवासियों के मुद्दों, पुलिस की बेरहमी, हाल में इलाके में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासी औरतों के खिलाफ की गई यौन हिंसा की व्यापक रूप से खबरें दी थीं.

और यह सब आंबेडकर के संविधान के नाम पर हो रहा है!

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