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किसी को पुरस्कार लौटाने तक का हक़ नहीं है?उन्हें भी कुछ पुरस्कार मिले होंगे। लौटा दें।

Next: विष्णु खरे जबरन विवाद को बढ़ा रहे हैं यह किसी लेखक की स्वतन्त्रता है कि वह किस क्षण कोई फैसला ले. उदय ने पुरस्कार तब लौटाया जब देख लिया लेखकों की हत्या लगातार बढ़ रही है. यह ह्त्या जिन कारणों से हुई वह भी सामने है, वो लोग भी पकडे गये जिन्होंने हत्या श्रीराम सेना की विचारधारा क्या है ये बात हम सभी जानते हैं. कोई भी संस्था जो लेखकों से जुडी हैं उन्हें अपने समामानित लेखकों की हत्या पर विरोध करना नैतिक दायित्व है. अगर ऐसा नहीं होता तो ये संस्थाएं भी व्ही काम कर रही हैं जो हत्यारे कर रहे हैं. संस्थाओं का चुप रहना हत्या करने वालों के पक्ष में उन्हें खड़ा करती है ऐसे में अगर उदय ने पुरस्कार लौटाया है तो क्या गलत किया? विष्णु खरे किसी पूर्वाग्रह से ये बातें कह रहे हैं. जोकि लेखकों के बीच गलत असर दाल सकती हैं ऐसे समय में सच्चे और जनवादी लेखक की पहचान करना जनता का दायित्व है.
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Ashutosh Kumar
September 5 at 12:35am
 
जाहिर है , भेजा है तो छापने के लिए भेजा होगा।लेकिन छापने न छापने का अंतिम निर्णय सम्पादक को करना होता है। हैरत है कि हम अब भी आपसी रंजिशों में बेसुध हैं । क्या हर आदमी गोली खाने के बाद ही समझेगा कि फासीवाद आ चुका है। सिचुएशन को एक्सप्लॉयट करने का काम खरे जी भी कर सकते हैं। उन्हें भी कुछ पुरस्कार मिले होंगे। लौटा दें। कब तक यह तर्क दिया जाता रहेगा कि साहित्य अकादमी सरकार की नहीं है , कि सरकार भी सरकार की नहीं है जनता की है , कि पुरस्कार जनता देती है - सरकार या उसका कोई नुमाइंदा नहीं।हद है। यानी कि लेने की छोड़िए , किसी को पुरस्कार लौटाने तक का हक़ नहीं है? अगर वह किसी भी स्थिति का विरोध करना चाहे। अगर अकादमी इतनी ही आज़ाद है तो वह क्लबर्गी पर एक शोकप्रस्ताव तक पास करने से क्यों मना कर रही है , जो खुद अभिषेक जी ने हमें बताया है। मैं उदय प्रकाश के फैसले का स्वागत करता हूँ।
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