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देखिये फसिस्ट ताकतो - खासकर सवर्णो के खिलाफ इस लड़ाई को हिंदी के लेखको के आपसी झंझटो से से दूर रखंगे तो बेहतर होगा. राजेंद्र यादव और शानी को छोड़ कर सभी डगमगाये हैं या उस वक्त चुप रहे जब बोलने की ज़रूरत थी. अरुंधत्ती रॉय का सौवां हिस्सा भी नही हैं ये सरकारी नौकर.

Previous: यार बड़ा घनचक्कर है. पुरस्कार लेने पर विवाद, न लेने पर विवाद. लौटाने पर विवाद, न लौटाने पर विवाद. विरोध करने पर विवाद, चुप रहने पर विवाद. एक फेसबुकिया फूहड़ कामरेड थानवी जी के पक्ष में झंडा उठाए घूम रहे हैं कि पुरस्कार ले लिया, अब कोई कुछ तो वह संदिग्ध है. यदि विरोध की राजनीति इतनी कन्फ्यूज और इतनी अश्लील है तो अतिवादियों की हर कार्रवाई सही है. कठमुल्लों में एका है. विरोध करने वाले अपनी क्षुद्रता से ही दबे एक दूसरे की लंगोट खींच रहे हैं. चौरासी हुआ था तो गुजरात अनिवार्य है. तब विरोध नहीं किया था तो अब नहीं करना है चाहे आईएस मार्का संहार ही क्यों न हों. अबके पहले दोनों हत्याओं के समय खरे जी क्या कर रहे थे? उन्होंने कोई पहलकदमी क्यों नहीं की? उन मुसलसल हो रही हत्याओं पर कुछ नहीं कहना था. इस विरोध पर बहुत कुछ कहना है.
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Prashant Tandon
September 5 at 12:42am
 
देखिये फसिस्ट ताकतो - खासकर सवर्णो के खिलाफ इस लड़ाई को हिंदी के लेखको के आपसी झंझटो से से दूर रखंगे तो बेहतर होगा. राजेंद्र यादव और शानी को छोड़ कर सभी डगमगाये हैं या उस वक्त चुप रहे जब बोलने की ज़रूरत थी. अरुंधत्ती रॉय का सौवां हिस्सा भी नही हैं ये सरकारी नौकर.

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