How the government would ensure consumer protection?
बेहतर हो कि ऐसा कोई चाकचौबंद प्रशासनिक इंतजाम हो जिससे उपभोक्ता ठगे ही न जाये!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
Excalibur Stevens Biswas
Government of West Bengal,the Maa Maati Manush sarkar has launched consumer awareness campaign afresh amidst Loksabha Election campaign.It claimed that consumers had been betrayed during all the years of left rule.The Chief minister Mamata Banerjee launched consumer safety project in 2012 which remained idle hitherto.
Consumer safety being almost absent the emphasis is to redress grievances which seldom lodged.No administrative initiatve has been taken to ensure consumer safety by default.
The question remains unanswered how the government would ensure consumer protection?
What is Consumer Rights ?
Right to Safety
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Means right to be protected against the marketing of goods and services, which are hazardous to life and property. The purchased goods and services availed of should not only meet their immediate needs, but also fulfill long term interests. Before purchasing, consumers should insist on the quality of the products as well as on the guarantee of the products and services. They should preferably purchase quality marked products such as ISI, AGMARK, etc
Right to be Informed
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Means right to be informed about the quality, quantity, potency, purity, standard and price of goods so as to protect the consumer against unfair trade practices. Consumer should insist on getting all the information about the product or service before making a choice or a decision. This will enable him to act wisely and responsibly and also enable him to desist from falling prey to high pressure selling techniques.
Right to Choose
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Means right to be assured, wherever possible of access to variety of goods and services at competitive price. In case of monopolies, it means right to be assured of satisfactory quality and service at a fair price. It also includes right to basic goods and services. This is because unrestricted right of the minority to choose can mean a denial for the majority of its fair share. This right can be better exercised in a competitive market where a variety of goods are available at competitive prices
Right to be Heard
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Means that consumer's interests will receive due consideration at appropriate forums. It also includes right to be represented in various forums formed to consider the consumer's welfare. The Consumers should form non-political and non-commercial consumer organizations which can be given representation in various committees formed by the Government and other bodies in matters relating to consumers
Right to Seek Redressal
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Means right to seek redressal against unfair trade practices or unscrupulous exploitation of consumers. It also includes right to fair settlement of the genuine grievances of the consumer. Consumers must make complaint for their genuine grievances.Many a times their complaint may be of small value but its impact on the society as a whole may be very large. They can also take the help of consumer organisations in seeking redressal of their grievances.
Right to Consumer Education
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Means the right to acquire the knowledge and skill to be an informed consumer throughout life.Ignorance of consumers, particularly of rural consumers, is mainly responsible for their exploitation. They should know their rights and must exercise them. Only then real consumer protection can be achieved with success.
पश्चिम बंगाल सरकार ने इस बीच उपभोक्ता फोरम के तहत ग्राहकों को जगाने का अभियान चलाया हुआ है।वैसे राज्य में पहले से उपभोक्ता फोरम बना हुआ है और उपभोक्ताओं की सामग्री और सेवा संबंधी शिकायतों के निवारण के लिए जिलों में उपभोक्ता अदालतों का गठन भी हो गया है।
मां माटी मानुष की सरकार ने तो सत्ता संभालते ही उपभोक्ता पोरम के पुनर्गठन के साथ ही समाधान प्रकल्प की शुरुआत कर दी थी।लेकिन नतीजे वही ढाक के तीन पात।
ग्राहकों को अपने अधिकारों के बारे में जानकारी न होने से शिकायते इक्का दुक्का ही दर्ज होती है और ग्राहकों की सुरक्षा के लिए जो प्रशासनिक तंत्र बनना अनिवार्य है,वह अभी बन नहीं सका है।
ग्राहक ठगे जाने पर अदालतों की शरण में जाने के बारे में सोचते हैं।ज्यादातर तो कानूनी पचड़े में पड़ते ही नहीं है।
बिना रसीद खरीददारी के रिवाज के चलते शिकायत दर्ज करने का आधार भी अमूमन होता नहीं है।
बेहतर हो कि ऐसा कोई चाकचौबंद प्रशासनिक इंतजाम हो जिससे उपभोक्ता ठगे ही न जाये।
अगर अर्थ व्यवस्था मुक्त बाजार है तो इस मुक्त बाजार में सेवाओं की भूमिका सबसे ज्यादा है।भारत में कृषि के अवसान के बाद और औद्योगिक उत्पादन प्रणाली चौपट हो जाने के बाद सेवाक्षेत्र का ही विकास दर में सबसे ज्यादा योगदान है।
इसके मद्देनजर अर्थ व्यवस्था की सेहत के लिए उपभोक्ता संरक्षण अनिवार्य है।
ग्राहकों को जगाने का काम 1986 में कानून बनने के बाद लगातार जारी है लेकिन ग्राहक जाग ही नहीं रहे हैं।अपनी आय के हिसाब से ज्यादातर लोग खरीददारी में सौदेबाजी से कम खर्च करने के फिराक में होते हैं और वैधानिकता की परवाह नहीं करते ,खुद तमाम औपचारिकताएं भी नहीं पूरी करते।
यह अभ्यास उनके गले में फंदा बना हुआ है।बाजार और सेवाओं में अपर्याप्त निगरानी के कारण विक्रेता और सेवादाता ग्राहकों और उपभोक्ताओं की इस कमजोरी का फायदा उठाते हैं।
उपभोक्ता सलाहकार केन्द्र का उद्देश्य उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों के प्रति जागरूक कराते हुए उनकी समस्याओं को क्रमबध्द निवारण करवाने में सहयोग देना है जो प्रमुखत: इस प्रकार हैं:-
1. खरीदी गई वस्तुओं एवं उनसे संबंधित सेवाओं के बारे में उचित जानकारी से उपभोक्ताओं को अवगत कराना।
2. संबंधित विभाग के या कंपनी के निवारण अधिकारी के बारे में जानकारी प्रदान करना।
3. जिला उपभोक्ता फोरम एवं राज्य उपभोक्ता फोरम की प्रक्रिया की जानकारी प्रदान करना।
बाकी राज्यों की तरह बंगाल में भी ये प्रावधान हैं,लेकिन उन्हें जमीनी हकीकत में बदलना असंभव है।महानगर कोलकाता में बाकायदा गैरकानूनी मिलावटी नकली सामग्रियों के बाजार प्रशासन और पुलिस की नजरदारी के तहत सजे हुए हैं।देहात में तो आधी कीमत पर ब्रांडेड हर चीज उपलब्ध है,जो जाहिर है असली और शुद्ध होती नहीं है।
उपनगरों में तो खाद्यतेल और खाद्यसामग्री के तमाम केंद्रों में दिनदहाड़े फर्जीवाड़ा हो रहा है,जिनपर कोई कार्रवाई नहीं होती।प्रशासन को शिकायत का इंतजार होता है और लोग आसानी से तमाम जोखिम उठाकर शिकायत नहीं करते।उपभोक्ता जागरुकता मुहिम जवाबदेही से बचने और इस गोरखधंदे को चालू रखने का अच्चा बहाना हो गया है।
उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए बंगाल में मां माटी मानुष की सरकार ने 2012 में ही राज्य स्तर में 'कंज्यूमर अफेयर्स फोरम' बनाने एवं 'समाधान' नामक प्रोजेक्ट की शुरुआत करने की योजना बना दी थी। इसका उद्घाटन पुरुलिया में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा किया गया था।
इसकी जानकारी राज्य सरकार के उपभोक्ता विभाग के मंत्री साधन पांडे ने विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस 2012 के उद्घाटन के मौके पर दी।
तब उन्होंने कहा भी था कि विगत 30 वर्षो में उपभोक्ता विभाग को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया था। जिसके कारण उपभोक्ताओं को लगातार ठगी का सामना करना पड़ा ।
पभोक्ता विभाग के मंत्री ने दावा भी किया कि नई सरकार के सत्ता में आने के बाद इस विभाग को काफी उन्नत किया गया है।
इसके लिए एक टोल फ्री नंबर का भी उद्घाटन किया गया था। जिसके माध्यम से गरिया एवं दमदम के कई बाजारों को लेकर शिकायत दर्ज कराई गई थी।
मंत्री के मुताबिक विभाग की ओर से समाधान निकाला गया है।उन्होंने कहा कि जिला स्तर पर बनाए जाने वाले इस फोरम में 90 दिनों के अंदर समस्या का समाधान निकाला जाएगा। आम जनता मे जागरुकता फैलाकर इस कार्य को उन्नत किया जा सकता है। जनता को जागरुक करने के लिए बहुत ही जल्द सरकार एवं संवाद माध्यम की सहायता से अभियान चलाया जाएगा। इसके साथ ही पुलिस एवं स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सहयोग से इस कार्य को किया जाएगा।
मंत्री ने तब ऐलान किया कि कार्य को सही ढ़ंग से करने के लिए कंज्यूमर वेलफेयर आफिसर की संख्या में भी बढ़ोत्तरी की जाएगी।
गौरतलब है कि राज्य सरकार के उपभोक्ता विषयक विभाग की ओर से स्टार थियेटर में विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस 2012 पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जिसका उद्घाटन आलम बाजार के स्वामी जीतात्मानंद जी महाराज ने किया। इस मौके पर उपभोक्ता विषयक विभाग के राज्य मंत्री सुनिल चंद्र तिर्की, कलाकार सनातन दिंदा, कोलकाता नगर निगम की उपमेयर फरजाना आलम एवं कालीपद दास समेत अन्य भी मौजूद थे।
उसके बाद गंगा में बहुत पानी बह चुका है और लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मां माटी मानुष की सरकार को उपभोक्ता संरक्षण की याद आयी है।
गौरतलब है कि देश के प्रत्येक राज्य/जिले में उपभोक्ता में जागरूकता बढ़ाने के लिए और उपभोक्ता शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में उपभोक्ता कार्य विभाग, खाद्य, सिविल आपूर्ति और उपभोक्ता कल्याण विभाग आदि गठित किए गए हैं।
राज्यों/संघ क्षेत्रों में विभिन्न उपभोक्ता मामलों में कार्यवाही करने के लिए राज्य उपभोक्ता विवा निपटान आयोग और किसी विशेष राज्य के सभी या कुछ जिलों में जिला फोरम राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद आदि का भी गठन किया गया है।
इनमें से कुछ निम्नानुसार हैं :
खाद्य सिविल आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग, मध्य प्रदेश सरकार
खाद्य, सिविल आपूर्ति और उपभोक्ता कार्य विभाग, हिमाचल प्रदेश सकरार
ये विभाग और फोरम, उपभोक्ताओं के हितों की संरक्षा करने और उन्हें उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता बनाने के लिए समय समय पर कार्यशालाएं, संगोष्ठियां और सम्मेलन आयोजित करते रहते हैं। ये प्रचार और विज्ञापन अभियान भी चलाते हैं और उपभोक्ता के कल्याण और शिक्षा के लिए पत्रिकाएं / दैनिकियां / अन्य दस्तावेज भी प्रकाशित करते हैं।
इसके अतिरिक्त, देश भर में उपभोक्ता आंदोलन को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकारें और संघ राज्य क्षेत्र के प्रशासन अपनी उपभोक्ता कल्याण निधि का सृजन भी करते हैं। अब तक, राज्य स्तरीय उपभोक्ता कल्याण निधि का सृजन, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, जम्मू और कश्मीर, मिज़ोरम, सिक्किम और त्रिपुरा में किया गया है।
उपभोक्ता क्लबों की योजना को विकेन्द्रित किया गया है और इसे दिनांक 1.04.2004 से राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों की सरकारों को अंतरित किया गया है। सभी संबद्ध गैर सरकारी संगठन/वीसीओ, अपने - अपने राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के खाद्य, सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता कल्याण विभागों के नोडल अधिकारियों को आवेदन भेजें। मार्च 2006 तक, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, जम्मू और कश्मीर, हरियाणा, दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, पंजाब, सिक्किम, लक्षद्वीप हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के राज्यों में 4661 उपभोक्ता क्लबों को संस्वीकृति दी गई है।
राज्य सरकारों और संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों द्वारा किए गए ये सभी प्रयास उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता लाने और उन्हें वस्तुओं के अधिकतम खुदरा मूल्य, उनकी समाप्ति तिथि, स्वर्ण आभूषणों की हालमार्किंग, भार और माप के संबंध में प्रावधान आदि जैसे विभिन्न पहलुओं के बारे में प्रदान करने के सही मार्ग पर बढ़ रहे हैं।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (1986) पर बी गौर करें
धारा 1 : संक्षिप्त नाम, विस्तार, प्रारम्भ और लागू होना-
भारतीय संसद द्वारा विनियमित इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986है, जिसकी अधिकारिकता जम्मू-कश्मीर को छोड कर समस्त भारतवर्ष है। केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित तिथि के उपंरात यथा उपरोक्त यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत वर्ष में प्रभावी है।
धारा 2 : परिभाषाएं- अधिनियम के अन्तर्गत निम्नवत परिभाषाएं उल्लेखित है :
1 समुचित प्रयोगशाला से अभिप्राय केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से है।
2 शाखा कार्यालय का तात्पर्य विपरीत पक्ष द्वारा शाखा के रूप में वर्णित संस्थान से है।
3 परिवादी से तात्पर्य उपभोक्ता अथवा केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार से अभिप्रेत तथा समान हित वाले बहुसंख्यक उपभोक्ताओं में से एक या अधिक उपभोक्तागण से है। उपभोक्ता की मृत्यु की दशा में उसका कानूनी शिकायत करने व कोई अनुतोष प्राप्त करने की दृष्टि से लिखित में प्रस्तुत किया गया शिकायती पत्र, जो निम्नलिखित से सम्बधित होगा :
(अ) जब किसी व्यापारी अथवा सेवा प्रदाता द्वारा अनुचित व्यापारिक व्यवहार किया गया हों।
(ब) क्रय किये गये अथवा क्रय के लिए सहमत माल में त्रुटियां आना।
(स) क्र्रय किये गये पदार्थ अथवा भाड़ें पर लिये गई सेवाओं में किसी प्रकार की कमी ।
(द) किसी व्यापारी अथवा सेवा प्रदाता द्वारा माल या सेवाओं में अधिक कीमत ली गई हो।
(ध) किसी भी माल अथवा पदार्थ का निर्धारित मानक के उल्लघंन की स्थिति में तथा जीवन और सुरक्षा के लिए परिसंकट में होने की स्थिति में जो जीवन और सुरक्षा के लिए हानिकारक है।
5 उपभोक्ता से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जिसने किसी भी वस्तु पदार्थ तथा सेवा को प्राप्त करने के लिए भुगतान किया हो अथवा अशतः भुगतान किया हो या भुगतान करने का वचन दिया हो। उपभोक्ता का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से भी है, जो सेवाओं का भाडे पर लेता है या उपयोग करता है। प्रतिबंध यह हैं कि वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए सेवाऐं लेनेवाला व्यक्ति उपभोक्ता की श्रेणी में नही आता है। किन्तु स्वनियोजन द्वारा अपनी जीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिए ली गई सेवाऐं अथवा क्र्रय कि गई वस्तुएं इससे भिन्न सम>ी जायेंगी।
6 त्रुटि से तात्पर्य गुणवत्ता, मात्र माप-तोल, शुद्धता अथवा मानक आदि में कोई दोष, कमी अथवा अपूर्णता आना है।
7 जिला पीठ से तात्पर्य जिला उपभोक्ता संरक्षण न्यायालय से है।
8 सहकारी सोसायटी से तात्पर्य सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1860 के अधीन रजिस्टर्ड संस्था है।
9 सेवा से तात्पर्य प्रयोगकर्ता को उपलब्ध कराई गई सेवा तथा सुविधाओं का प्रबधं भी है। भुगतान करने पर प्राप्त होती है। किन्तु इसके अन्तर्गत निशुल्क अथवा व्यक्तिगत सेवाऐं नही आती ।
10 अनुचित व्यापारिक व्यवहार किसी माल की बिक्री ,प्रयोग या आपूर्ति अथवा सेवाओं को प्रदान करने में अनुचित आचरण एवं व्यवहार से है।
धारा 3- अधिनियम का किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में न होना : तात्पर्य यह है इस अधिनियम की व्यवस्था वर्तमान में अन्य विधि की व्यवस्थाओं की अतिरिक्त व्यवस्था के रूप में होगें अर्थात सम्बंधित अधिनियमों में अनुुतोष उपलब्ध होने की स्थिति में भी इस अधिनियम की व्यवस्थाओं का उपयोग किया जा सकता है।
धारा 4- केन्द्रीय उपभोक्ता परिषद का गठन : अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार उपभोक्ता मामलों के मंत्री की अध्यक्षता में एक केन्द्रीय परिषद का गठन किया जायेगा जिसमें सरकारी व गैर सरकारी सदस्य प्रतिनिधि होगें।
धारा 5- केन्द्रीय परिषद की प्रक्रिया : केन्द्रीय परिषद की बैठक वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य होगी तथा अध्यक्ष के विवेकानुसार बैठक निर्धारित स्थान व समय पर निश्चित किये गये एजेंडे पर होगी।
धारा 6- केन्द्रीय परिषद के उद्धेश्य : (क) जीवन एवं सम्पति को हानि पहुँचाने वाले माल, पदार्थ एवं सेवाओं से सम्बंधित अधिकारों के प्रति सुरक्षा।
(ख) उपभोक्ताओं को पदार्थ की गुणवत्ता ,मात्र,शुद्धता, मानक एवं मूल्य के प्रति संरक्षण सुनिश्चित करना तथा अनुचित व्यापारिक व्यवहार से सुरक्षा।
(ग) प्रतियोगी मूल्यों पर वस्तुओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था ।
(घ) उचित फोरम पर उपभोक्ताओं के हितों का सरंक्षण।
(च) अनुचित व्यापारिक व्यवहार एवं उपभोक्ताओं के उत्पीडन से सम्बंधित प्रतितोष दिलाना।
धारा 7- राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद : प्रत्येक राज्य में उपभोक्ता मामलों के मंत्री की अध्यक्षता में एक राज्य कांउसिल का गठन किया जायेगा जिसमें परिषद राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार वर्ष में कम से कम दो बार अवश्य बैठक करेगी।
धारा 8- राज्य परिषद के उद्धेश्य - उपरोक्तलिखित केन्द्रीय परिषद की भांति राज्य परिषद का उद्धेश्य भी राज्य के क्षेत्र में उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण करना होगा ।
धारा 8i - प्रत्येक जनपद में जिला कलेक्ट्रर की अध्यक्षता में परिषद का गठन राज्य सरकार द्वारा किया जायेगा जिसमें अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी सदस्य होगें तथा परिषद की बैठक राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होगी।
धारा 8ii - जिला उपभोक्ता परिषद के उद्धेश्य : केन्द्रीय एवं राज्य परिषद की भांति जनपद की सीमा क्षेत्र में उपभोक्ताओं के हितो का सरंक्षण, इस परिषद द्वारा सुनिशि्ंचत किया जायेगा।
धारा 9- जिला उपभोक्ता फोरम का गठन : प्रत्येक जनपद में राज्य सरकार द्वारा एक या अधिक जिला फोरम का गठन किया जायेगा।
धारा 10- जिला फोरम का स्वरूप : प्रत्येक जनपद में जिला जज की योग्यता रखने वाले व्यक्ति की अध्यक्षता में जिला फोरम का गठन किया जायेगा जिनमें अन्य दो सदस्य होगेंं और उनमें से एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य होगा। प्रत्येक सदस्य की नियुक्ति अध्यक्ष सहित पॉंच वर्ष की अवधि के लिए की जायेगी।
धारा 11- जिला फोरम की अधिकारिता : अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार जिला फोरम की जनपदीय सीमा अधिकारिता के अन्तर्गत उपभोक्ता द्वारा निम्न स्थितियों में शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी-
(अ) विपक्षी अथवा विपक्षीगण शिकायत दर्ज कराने के समय उक्त जिला फोरम के सीमा क्षेत्र में निवास करते हों, उनका कार्यालय व्यापारिक संस्थान हो अथवा उसकी शाखा हो।
(ब) जहां पर एक से अधिक विपक्षी हों वहां पर उनमें से कोई एक उपरोक्तानुसार स्थित हों। (स) पूर्ण रूप अथवा अांशिक रूप से कार्य का कारण उत्पन्न होता हो।
यह उल्लेखनीय है कि शिकायतकर्ता के निवास स्थान के आधार पर अधिकारिकता नही बनती है और इस सम्बंध में कोई भ्रम नही रहना चाहिए।
धारा 12- शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया : किसी भी उपभोक्ता अथवा पंजीकृत उपभोक्ता संगठन द्वारा अथवा जहां पर अनेकों उपभोक्ताओं का समान हित सम्बद्ध हों, एक या एक से अधिक उपभोक्ता द्वारा अथवा केन्द्रीय एवं राज्य सरकार द्वारा शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। शिकायत के साथ शुल्क की राशि क्रमशः एक लाख पर सौ रूपये, पांच लाख तक की राशि पर दो सौ रूपये, दस लाख तक की धनराशि पर चार सौ रूपये तथा बीस लाख रूपये तक की धनराशि पर पांच सौ रूपये का बैंक ड्रा्ट अथवा पोस्टल आर्डर द्वारा जो अध्यक्ष जिला फोरम के नाम देय होगा, जमा करानी होगी। शिकायत सादे कागज पर विपक्षी गण के नाम व पते सहित शिकायत का विवरण देते हुए जो अनुतोष मांगा गया है उसके उल्लेख के साथ सम्बंधित साक्ष्य की फोटो प्रतियां संलग्न करके तीन प्रतियों में जिला फोरम में प्रस्तुत की जानी चाहिए। शिकायत के लिए वकील की अनिर्वायता नही है और शिकायत स्वयं अथवा अपने प्रतिनिधि द्वारा दर्ज कराई जा सकती है। प्रारम्भ में शिकायत को सुनवाई हेतु स्वीकार करने पर विचार किया जा सकेगा और 21 दिन की अवधि में इस सम्बध्ां में आदेश पारित किये जायेगें। कोई भी शिकायत बिना शिकायतकर्ता को सुनें अस्वीकृत नही की जायेगी।
धारा 13- शिकायत दर्ज होने के उपरांत की प्रक्रिया : शिकायत प्राप्त होने पर विपक्षी को शिकायत की प्रति भेजते हुए एक माह की अवधि में अपना उत्तर प्रस्तुत करने के निर्देश दिये जायेगें। इस अवधि में केेवल 15 दिन की सीमा और ब<ाई जा सकेगीं। दोनेा पक्षों को सुनवाई का समुचित अवसर देने के उपरांत जिला फोरम द्वारा शिकायत का निस्तारण यथासम्भव तीन माह की अवधि में किया जायेगा । यदि शिकायत के आधार पर किसी वस्तु पदार्थ या माल के तकनीकी अथवा लेबोरट्री परीक्षण की आवश्यकता अनुभव होती है तो सम्बंधित मान्यता प्राप्त लेबोरट्री को सम्बंधित वस्तु/पदार्थ भेजा जायेगा ऐसे मामलों में शिकायत का निस्तारण पांच महिने की अवधि में होगा तथा सामान्यतः शिकायत का निस्तारण तीन महिने में किये जाने की अधिनियम में व्यवस्था है।
भारत सरकार द्वारा तीस मई 2005 को निर्गत विनियमों के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि शिकायतों की सुनवाई में सामान्यतः स्थगन न दिया जाये तथा केवल अति आवश्यक मामलों में यदि स्थगन देना पडे तो द्वितीय पक्ष को व्यय के रूप में कम से कम 500 रू0 की धनराशि प्रति स्थगन दिलाने की अपेक्षा की गई है। इस प्रकार उपभोक्ता शिकायतों के त्वरित निस्तांरण के प्रति पर्याप्त बल दिया गया है।
धारा 14- इस धारा के अन्तर्गत जिला फोरम के निर्णय के स्वरूप एवं विवरण की व्याख्या की गई है। जिसके द्वारा त्रुटियों के निवारण, माल को बदलने, मूल्य की वापसी तथा क्षतिपूर्ति के भुगतान का विवरण दर्शाया गया है।
धारा 15- जिला फोरम के आदेश की तिथि से एक माह की अवधि में राज्य आयोग में प्रभावित पक्ष द्वारा अपील की जा सकेगी किन्तु आदेशित धनराशि का 50 प्रतिशत अथवा 25000/- की धनराशि जो भी कम हो जमा करनी होगी।
धारा 16- राज्य आयोगपीठ का गठन किया जा सकेगा जिसके अध्यक्ष उच्च न्यायालय सेवानिवृत्त जज होगें।
धारा 17- राज्य की सीमा की अधिकारिता के अन्तर्गत एक करोड की धनराशि तक की शिकायतें राज्य आयोग के समक्ष दर्ज कराई जा सकेगी ।
धारा 18- राज्य आयोग द्वारा जिला फोरम की भांति, वादों का निस्तारण यथाविधि किया जायेगा।
धारा 19- राज्य आयोग द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध अपील एक माह की अवधि में कि जा सकेगी किन्तु आदेशित धनराशि का 50 प्रतिशत भाग अथवा 35000/- जो भी कम हो, जमा करनी होगी।
धारा 20- राष्ट्रीय आयोगपीठ का गठन किया जायेगा, जिसके अध्यक्ष उच्च्तम न्यायालय के सेवानिर्वत्त न्यायाधीश होगें।
धारा 21- राष्ट्रीय आयोग की अधिकारिकता एक करोड से अधिक धनराशि की शिकायत होगी ।
धारा 22- राज्य आयोग की भांति राष्ट्रीय आयोग की वादों निस्तारण की प्रक्रिया होगी। उपभोक्ता अदालतों के अध्यक्ष के अनुपस्थिति में वरिष्ठ सदस्य पीठ की अध्यक्षता का कार्य करेगें।
धारा 23- राष्ट्रीय आयोग के आदेश के विरूद्ध एक माह की अवधि में उच्चतम न्यायालय में अपील कि जा सकेगी किन्तु आदेशित धनराशि का 50 प्रतिशत अथवा 50000/- जो भी कम हो जमा कराने होगें।
धारा 24- अपील न होने की स्थिति में पारित आदेश अन्तिम होगा। कार्य के कारण प्रारम्भ होने के समय से दो वर्ष की अवधि में शिकायत दर्ज कराये जाने की समय सीमा निर्धारित है।
धारा 25- उपभोक्ता अदालत द्वारा पारित आदेश अनुपालन कराने की व्यवस्था : (अ) अन्तरित आदेशों के अनुपालन न होने पर सम्पति कुर्क किये जाने की व्यवस्था। (ब) आदेशित धनराशि की वसूली भू राजस्व की वसूली की भांति जिला कलेक्ट्रर द्वारा कराई जा सकेगी
धारा 26- भ्रामक व झूठे तथ्यों पर आधारित शिकायतों के प्रति दस हजार रू0 तक के अर्थदण्ड की व्यवस्था ।
धारा 27- उपभोक्ता अदालतों के आदेशों के अनुपालन न करने पर एक माह से तीन वर्ष तक की अवधि के कारावास की व्यवस्था अथवा 2000 से 10000 तक के आर्थिक दंड की व्यवस्था है।
धारा 27ii - उपरोक्त के प्रति अपील एक माह की अवधि में केवल राज्य आयोग, राष्ट्रीय एवं सुप्रीम कोर्ट में की जा सकेगी।
धारा 28 - फोरम व उपभोक्ता न्यायालय किसी भी न्यायिक प्रक्रिया कि भांति व्यक्तिगत दायित्व से मुक्त होगा और जिला फोरम, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग के सदस्य के विरद्ध निर्णय सम्बंधी किसी भी कार्य एवं कृत्य के प्रति किसी प्रकार की वैधानिक कार्यवाही अथवा वाद दायर करना वर्जित होगा।
धारा 29 : प्रश्नगत अधिनियम में प्रकियाओं के क्रियान्वन में आने वाली कठिनाइयोें को केन्द्रीय सरकार द्वारा दूर किया जा सकेगा।
धारा 30 : केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारें अधिनियम से सम्बंधित विनियमों का गठन अधिसूचना द्वारा कर सकेगें ।
धारा 30iii - राष्ट्रीय आयोग केन्द्रीय सरकार की अनुमति से प्रश्नगत से सम्बंधित विनियमों का गठन अधिसूचना द्वारा कर सकेगा।
धारा 31 : इस अधिनियम से सम्बंधित नियम एवं विनियमों को संसद के समक्ष विचारार्थ रखा जायेगा।
इसी भांति राज्य सरकार द्वारा उक्त अधिनियम के अन्तर्गत नियमों को प्रदेश विधायिका के समक्ष विचारार्थ रखा जायेगा।
The state is again canpaigning for consumer forum and customer satisfaction but is the state govt. has the capability to protect the consumer rights???
amari case its not solved yet. Neither the hooch victims yet reccieved compensesion and latest is sudipto sen's scam so many failures but still claiming a success. Now the question is are consumers secure?????
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033-2680-4768
Jalpaiguri
PO Jalpaiguri, Old Court, Near D. M. Office, District Jalpaiguri,
03561-225395
Maldah CDF
Maldah Sevaniketan, Atul Ch. Kr. Market, PO & Distt. Maldah-732101.
03512-251472
Murshidabad CDF
Murshidabad Cantonment Road, Behrampur, Murshidabad
03482-253207
Midhnapore CDF
At the house of Nemia Kundu, Mohatabpur, PO & Dt. Midnapore
03222-266694
Nadia CDF
170, Don Bosco Road, Austin Memorial House, P.O. Krishnanagar, Nadia
953472-257788
Purulia CDF
Collectorate Compound, P. O. & Distt. Purulia.
03252-224001
Purba Mednipore
President, DCDRF A. Abasbari, PO Tamluk, Purba Mednipore
953228-270125
Siliguri CDF
Kshudiram Basu Bipanan Kendra, (2nd Floor), Hill Cart Road, Pradhannaar, Siliguri-724403.
0353-2517190
U. Dinajpur CDF
PO Raigunj, (Super Market Complex), Block – I, First Floor
U. Dinajpur
03523-252006
Consumer Protection Act, 1986
Consumer Protection Act, 1986 | |
---|---|
An Act to provide for better protection of the interests of consumers and for that purpose to make provision for the establishment of consumer councils and other authorities for the settlement of consumers' disputes and for matters connected therewith. | |
Citation | Act No. 68 of 1986 |
Enacted by | Parliament of India |
Date commenced | 24 December 1986 |
Consumer Protection Act, 1986 is an act of Parliament of India enacted in 1986 to protect interests of consumers in India. It makes provision for the establishment of consumer councils and other authorities for the settlement of consumers' disputes and for matters connected therewith.
Contents
[hide]Consumer Protection Council[edit]
Consumer Protection Councils are established at the national, state and district level to increase consumer awareness.[1]
Central Consumer Protection Council[edit]
It is established by the Central Government which consists of the following members:
- The Minister of Consumer Affairs, – Chairman, and
- Such number of other official or non-official members representing such interests as may be prescribed.
State Consumer Protection Council[edit]
It is established by the State Government which consists of the following members:
- The Minister in charge of consumer affairs in the State Government – Chairman.
- Such number of other official or non-official members representing such interests as may be prescribed by the State Government.
- such number of other official or non-official members, not exceeding ten, as may be nominated by the Central Government.
The State Council is required to meet as and when necessary but not less than two meetings every year.
Consumer Disputes Redressal Agencies[edit]
- District Consumer Disputes Redressal Forum (DCDRF): Also known as the "District Forum" established by the State Government in each district of the State. The State Government may establish more than one District Forum in a district. It is a district level court that deals with cases valuing up to 2 million (US$33,000).[1]
- State Consumer Disputes Redressal Commission (SCDRC): Also known as the "State Commission" established by the State Government in the State. It is a state level court that takes up cases valuing less than 10 million (US$160,000)[1]
- National Consumer Disputes Redressal Commission (NCDRC): Established by the Central Government. It is a national level court that works for the whole country and deals with amount more than 10 million (US$160,000).[1]
Objectives[edit]
Objectives of Central Council[edit]
The objectives of the Central Council is to promote and protect the rights of the consumers such as:-
- the right to be protected against the marketing of goods and services which are hazardous to life and property.
- the right to be informed about the quality, quantity, potency, purity, standard and price of goods or services, as the case may be so as to protect the consumer against unfair trade practices.
- the right to be assured, wherever possible, access to a variety of goods and services at competitive prices.
- the right to be heard and to be assured that consumer's interests will receive due consideration at appropriate forums.
- the right to seek redressal against unfair trade practices or restrictive trade practices or unscrupulous exploitation of consumers; and
- the right to consumer education.
- the right against consumer exploitation.
Objectives of State Council[edit]
The objects of every State Council shall be to promote and protect within the State the rights of the consumers laid down in clauses 1 to 7 in central council objectives.
Jurisdiction[edit]
Jurisdiction of District Forum[edit]
- Subject to the other provisions of this Act, the District Forum shall have jurisdiction to entertain complaints where the value of the goods or services and the compensation, if any, claimed does not exceed rupees twenty lakhs.
- A complaint shall be instituted in a District Forum within the local limits of whose jurisdiction:-
- a) – the opposite party or each of the opposite parties, where there are more than one, at the time of the institution of the complaint, actually and voluntarily resides or carries on business or has a branch office or personally works for gain, or
- b) – any of the opposite parties, where there are more than one, at the time of the institution of the complaint, actually and voluntarily resides, or carries on business or has a branch office, or personally works for gain, provided that in such case either the permission of the District Forum is given, or the opposite parties who do not reside, or carry on business or have a branch office, or personally work for gain, as the case may be, acquiesce in such institution; or
- c) – the cause of action, wholly or in part, arises.
Jurisdiction of state commission[edit]
- Subject to the other provisions of this Act, the State Commission shall have jurisdiction:-
- a) – to entertain
- i) – complaints where the value of the goods or services and compensation, if any, claimed exceeds rupees twenty lakhs but does not exceed rupees one crore; and
- ii) – appeals against the orders of any District Forum within the State; and
- b) – to call for the records and pass appropriate orders in any consumer dispute which is pending before or has been decided by any District Forum within the State, where it appears to the State Commission that such District Forum has exercised a jurisdiction not vested in it by law, or has failed to exercise a jurisdiction so vested or has acted in exercise of its jurisdiction illegally or with material irregularity.
- a) – to entertain
Jurisdiction of National Commission[edit]
a) - Subject to the other provisions of this Act, the National Commission shall have jurisdiction—
- i) complaints where the value of the goods or services and compensation, if any, claimed exceeds rupees one crore; and
- ii) appeals against the orders of any State Commission
b) – to call for the records and pass appropriate orders in any consumer dispute which is pending before or has been decided by any State Commission where it appears to the National Commission that such State Commission has exercised a jurisdiction not vested in it by law, or has failed to exercise a jurisdiction so vested, or has acted in the exercise of its jurisdiction illegally or with material irregularity.
- The District Forum, the State Commission or the National Commission shall not admit a complaint unless it is filed within two years from the date on which the cause of action has arisen.
- Notwithstanding anything contained in sub-section (1), a complaint may be entertained after the period specified in sub-section (1), if the complainant satisfies the District Forum, the State Commission or the National Commission, as the case may be, that he had sufficient cause for not filing the complaint within such period:
Provided that no such complaint shall be entertained unless the National Commission, the State Commission or the District Forum, as the case may be, records its reasons for condoning such delay.
See also[edit]
References[edit]
- ^ ab c d "CONSUMER PROTECTION AND NATIONAL CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION". NCDRC. Archived from the original on 21 July 2011. Retrieved 18 December 2012.