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उदयप्रकाश ने अपने उपन्यासिका ’पीली छतरी वाली लड़की’ में बड़ी शिद्दत से यह वर्णन किया है कि कैसे भारत में ’ब्राह्मणों’ ने हिन्दी की ठेकेदारी अपने नाम कर रखी है। भारत के ज़्यादातर विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागों पर इन्हीं शुक्लाओं, मिश्रों, तिवारियों, पाण्ड

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उदयप्रकाश ने अपने उपन्यासिका 'पीली छतरी वाली लड़की'में बड़ी शिद्दत से यह वर्णन किया है कि कैसे भारत में 'ब्राह्मणों'ने हिन्दी की ठेकेदारी अपने नाम कर रखी है। भारत के ज़्यादातर विश्वविद्यालयों के हिन्दी विभागों पर इन्हीं शुक्लाओं, मिश्रों, तिवारियों, पाण्डेयों और शर्माओं का कब्ज़ा है। मास्को में क्षेत्रीय हिन्दी सम्मेलन हो रहा है। उसमें भाग लेने के लिए भी सरकारी खर्चे पर जो प्रतिनिधिमण्डल भारत से आ रहा है, उसके सभी दस सदस्य ब्राह्मण हैं। ऐसा लग रहा है जैसे हिन्दी सिर्फ़ ब्राह्मणों की भाषा है।

From the face book wall of the eminent Hindi Poet based in Moscow


Government of India announced our native village as the Eco-tourism of Sundarvan. It will be the rescue center of wild life. And this rescue center is quite near of our Amala Farm. You can see the panoramic sun set from the bank of Herobhanga river.

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Government of India announced our native village as the Eco-tourism of Sundarvan. It will be the rescue center of wild life. And this rescue center is quite near of our Amala Farm. You can see the panoramic sun set from the bank of Herobhanga river.






अब यह अमन चैन और वतन रिलायंस के हवाले लोगों मुक्त बाजार का युद्धक अर्थव्यवस्था में कायाकल्प ही मेकिंग इन अमेरिका कारपोरेट हित में भारत पाक युद्ध और सीमा आर पार जनविरोधी कट्टरपंथ का आयोजन यह पलाश विश्वास

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अब यह अमन चैन और वतन रिलायंस के हवाले लोगों

मुक्त बाजार का युद्धक अर्थव्यवस्था में कायाकल्प ही मेकिंग इन अमेरिका

कारपोरेट हित में भारत पाक युद्ध और सीमा आर पार जनविरोधी कट्टरपंथ का आयोजन यह

पलाश विश्वास


कारपोरेट हित में भारत पाक युद्ध और सीमा आर पार जनविरोधी कट्टरपंथ का आयोजन यह।


अब यह अमन चैन और वतन रिलायंस के हवाले लोगों।


मुक्त बाजार का युद्धक अर्थव्यवस्था में कायाकल्प ही मेकिंग इन अमेरिका।


भारत सरकार ने लंबे समय से अटकी पड़ीं रक्षा क्षेत्र की 33 परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। जिन कंपनियों के प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है, उसमें रिलायंसएयरोस्पेस टेक्नॉलजीज, भारत फोर्ज, महिंद्रा टेलिफोनिक इंटिग्रेटेड सिस्टम तथा टाटा ऐडवांस्ड मटीरियल्स शामिल हैं। इन प्रस्तावों को मंजूरी मिलने से रक्षा क्षेत्र में आधुनिक विनिर्माण को बढ़ावा मिलने तथा बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित होने की उम्मीद है।


इसी के साथ भारत पाक सीमा पर युद्ध की रणभेरी भी बज चुकी है।


गौरतलब है कि जिन कंपनियों के प्रस्तावों को मंजूरी दी गयी है, उसमें रिलायंसएयरोस्पेस टेक्नोलाजीज, भारत फोर्ज, महिंद्रा टेलीफोनिक इंटीग्रेटेड सिस्टम तथा टाटा एडवांस्ड मैटेरियल्स शामिल हैं।


गौरतलब है कि  इन प्रस्तावों को मंजूरी मिलने से क्षेत्र में आधुनिक विनिर्माण को बढ़ावा मिलने तथा बड़े पैमाने पर निवेश आकषिर्त होने की उम्मीद है।


एक आधिकारिक बयान के अनुसार औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के सचिव की अध्यक्षता वाली लाइसेंसिंग समिति ने पिछले सप्ताह लंबे समय से अटके पड़े आवेदनों का निपटान किया और उन्हें औद्योगिक लाइसेंस की स्वीकृति दी।


वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) ने 33 बड़े रक्षा सौदों को मंजूरी दे दी, इनमें से 19 प्रस्ताव प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से जुड़े थे। एफडीआई की नोडल एजेंसी डीआईपीपी द्वारा जिन बड़े रक्षा सौदों को मंजूरी दी गई है उनमें रिलायंस एयरोस्पेस, भारत फोर्ज, महिंद्रा टेलीफोनिक इंटीग्रेटेड सिस्टम्स, पुंज लॉयड इंडस्ट्रीज, महिंद्रा एयरो स्ट्रक्चर और टाटा एडवांस्ड मैटेरियल्स के प्रस्ताव शामिल थे।


यह फैसला डीआईपीपी सचिव अमिताभ कांत की अध्यक्षता में लाइसेंसिंग समिति की एक बैठक के दौरान लिया गया। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक, 'ये सभी प्रस्ताव पिछले कई सालों से सरकार के पास लंबित थे। रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी किए जाने, ऑटोमेटिक रुट के जरिये पोर्टफोलियो निवेश की सीमा 24 फीसदी करने और किसी अकेली भारतीय कंपनी द्वारा 51 फीसदी इक्विटी हिस्सेदारी की शर्त को हटाने के बाद ही इन प्रस्तावों को मंजूरी दी जा सकी है।'


मंत्रालय ने यह भी कहा कि यह फैसला देसी विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया पहल 'मेक इन इंडिया' के मद्देनजर लिया गया है। लंबित पड़े कुल 33 रक्षा आवेदनों में से 14 प्रस्ताव लाइसेंसिंग के मामलों में अटके पड़े थे।



गौर तलब है कि अमेरिका में हथियारों के अलावा कुछ भी नहीं बनता।पूंजी के वर्चस्व के कारण सस्ते श्रम की गरज से अमेरिका के अंदर और बाहर विदेशियों को हायर करती है कंपनिया,लेकिन अमेरिकी नागरिकों के लिए नौकरियां नही है।


गौर तलब है कि महाशक्ति बनकर दुनिया परराज करने का असली मकसद अमेरिकी युद्धक व्यवस्था में लगी पूंजी के हित साधना है।


गौर तलब है कि अमेरिकी उपभोक्ता बाजार पर चीनी,कोरियाई और जापान जैसे देशों का कब्जा है।


गौर तलब है कि बिना युद्ध के अमेरिकी सांस भी नहं ले सकते।अमेरिका की पुलिसिया राजनय और विदेशनीति दरअसल युद्ध और गृहयुद्ध का कारोबार है।


गौर तलब है कि आतंक के खिलाफ अमेरिका का युद्ध भी दुनियाभर के संसाधनों पर कब्जे का खेल है जिसके तहत अमेरिका तीसरे तेलयुद्ध में फिर मरुआंधी में फंस चुका है।


रिलायंस जैसी कंपनियां ध्वस्त उत्पादन प्रणाली,चौपट कृषि और खत्म कारबार के बेरोजगार इस देश में हथियारों का निर्माण करती रहेंगी तो युद्धक अर्थव्यवस्था में निष्णात ही हो जाना है भारतीय मुक्त बाजार,जहां सरकार न्यूनतम है और पूंजी अबाध है।जनहित में कुछ भी नहीं है।


आपके प्रधान स्यंसेवक ने जाकर अमेरिका की सरजमीं पर भारतीय कायदे कानून को खराब कानून बताते हुए अंतररष्ट्रीय लंपट पूंजी के हित में सारे कानून बदलने का ऐलान कर चुके हैं।


इससे पहले बाजार को विनियमित विनियमित और सार्वजनिक क्षेत्रों के निजीकरण के तहत विकास का जो समावेशी पीपीपी गुजराती कामसूत्र के तहत उ्होंने मेड इन के समापन के साथ मेक इन का नारा दिया,वह पिछले सात दशकों से अमेरिका परस्त रूस परस्त सैन्य राष्ट्र की राम रचि राखा नियति ही है, जिसके मुताबिक मुक्त बाजार का अंततः युद्धक अर्थव्यवस्था में कायाकल्प होना है।


धीरु भाई अंबानी ने कपड़ा उद्योग का समापन करके जो कृत्तिम रेशां का साम्राज्य खड़ा किया श्रीमती इंदिरा गांधी के संरक्षण प्रोत्साहन में,उस साम्राज्य की प्रजा हैं हम और सारे संसाधन रिलायंस हवाले है।


लोकसभा चुनाव से पहले स्वर्ग राज्य में मोदी का राजतिलक जो मुकेश अनिल भाइयों ने किया,वह ग्लोबल हिंदुत्व के जरिये ग्लोबल कारोबार ही है,जिसके तहत रिलायंस ने कांग्रेस का दशकों का साथ छोड़ा है।


बात शुरु करने से पहले इस पोस्ट पर गौर करें,ऐसे अनंत सुभाषित सोशल मीडिया पर केदार जलप्रलय है,जिसमें कितने लोग मारे जायेंगे,कोई अंदाजा नहीं हैः

घुसकर मारो और ऐसा मारो कि उनके आकाओं की रूह काॅप जाए - प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी


पाकिस्तान को करारा जवाब :-भारतीय सेना के हमले में 37 पाकिस्तानी ढेर 78 घायल पकिस्तान ने युद्ध विराम के लिए दिखाया सफ़ेद झंडा लेकिन भारतीय सेना ने नकारा |


ना हम शैतान से हारे, ना हम हैवान से हारे

कश्मीर में जो आया तूफान, ना हम उस तूफान से हारे

यही सोच कर ऐ पाकिस्तान, हमने तेरी जान बक्शी है

शिकारी तो हम हैं मगर, हमने कभी कुत्ते नहीं मारे


हमने अपने मित्रों से पूछा कि क्या उन्हें 62 और 65 के बीच बाजार भाव के बारे में कोई आइडिया है।बंगाल में जो मध्य साठ में तेभागा के साथ साथ खाद्य आंदोलन चल रहा था और वसंत का वज्रनिर्घोष समांतर चल रहा था,जब कोलकाता महानगर के राजपथ और गांवों में खेंतों की मेढ़े रक्तनदियों में थे तब्दील,उस वक्त भी यूपी में चावल,दाल,आटा का भाव अठन्नी से कम था। घी एक रुपये किल में मिलता था और गांवों में सब्जी,फल और दूध का कारोबर नहीं होता था।नमक एक पैसा भाव था।



जो हम दूध घी की नदियों की बात करते हैं,राष्ट्र के सैन्यीकरण से पहले यकीनन वे यहां बहती थीं और हम उसमें नहाते भी थे।तब न हरित क्रांति मुकम्मल थी और न श्वेत क्रांति हो चुकी थी।


मुक्त पूंजी ने हमें बाबरी विध्वंस,भोपाल गैस त्रासदी,सिखों के नरसंहार,पूर्वोत्तर में उग्रवाद,मध्यभारत और संपूर्म आदिवासी भूगोल में सलवा जुड़ुम,कश्मीर और पूर्वोत्तर में मानवाधिकार हनन और प्राकृतिक आपदाओं का सिलसिला उपहार में दिया है।


हम जल जंगल जमीन से बेदखल हैं।नदियां सारी बिक गयीं।हिमालय पूरा का पूरा बिक गया।सारे अरण्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले हैं।


और यही बुलेट विकास है।


हीरक चतुर्भुज है।


62 से 65 के बीच मंहगाई के बारे में शिकायतें कम थीं,शिकायत थी कालाबजार और जमाखोरी के बारे में बहुत ज्यादा और पंडित जवाहर लाल नेहरु ने भी कह दिया था कि कालाबाजारियों और जमाखोरों को लैंप पोस्ट पर टांग दिया जायेगा।जो अब तक हुआ नहीं है।



मेरे पिता पुलिनबाबू सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता थे और बारहों महीने कहीं न कहीं किसी जनांदोलन में जुते होते थे।मेरे चाचा पचासों मील के इलाके में अकेले डाक्टर थे जो देहातियों का इलाज करते थे रातदिन। मेरे ताउजी खेती बाड़ी देखते थे।लेकिन वे भी संगीत मास्टर थे।मेरी तहेरी दीदी के बाद उस साझा परिवार में मैं सबसे बड़ा बच्चा था।


बसंतीपुर से दिनेशपुर 6 किमी दूर था और यातायात का साधन न था।निहायत शैसवावस्था में परिवार के लिए राशन पानी लाने का इंतजाम मेरी जिम्मेदारी थी।इसलिए मेरे मित्रों को भाव मलूम हो न हो,मुझे मालूम है।फिर भी मैं तब मिट्टी के तेल का क्या भाव था,नहीं याद कर पा रहा।


सोने का भरी भाव मुरादाबाद सर्राफा में इतना कम था कि गांव में किसी लड़की के गहने के बाबत हजार रुपये खर्च हुए हो उसकी व्याह में,ऐसा मुझे याद नहीं है।


पेट्रोल डीजल की दुनिया के बाहर थे हम,इसलिए उसके भाव के बारे में कुछ भी याद नहीं है।




मेरे घर में हिंदी,बांग्ला और अंग्रेजी के अखबार नियमित आते थे।पिताजी जब तब दूसरी तमाम भाषाओं के अखबार लाते थे जिन्हें मैं देवनागरी अक्षर ज्ञान के तहत तब भी बांच लिया करता था।


हमारे लिए तब सबसे बड़ी पहेली थी कि जो चावल यूपी में अठन्नी भाव है,वह बंगाल में तीन रुपये किलो कैसे है और भोजन के लिए क्या आंदोलन हो सकता है।


बंगाल में भारत के दूसरे हिस्सों की तरह अस्पृश्यता कभी नहीं थी जो सामाजिक भेदभाव रहा है,उससे हम तराई में मुक्त रहे हैं।वाम पृष्ठभूमि की निरंतरता की वजह से सामाजिक सरोकार और अस्मिता के आर पार उत्पादन संबंधों के सामाजिक यथार्थ से ही हमारी दृष्टि का विकास होता रहा है।


इस प्रस्तावना का मकसद यह है कि भारत चीन सीमित सीमा संघर्ष ने भारत का जैसा सैन्यीकरण करना शुरु किया,उसका कमाल सन 65 के युद्ध में देखने को मिला तो चरमोत्कर्ष सन् 71 में।


तनिक उस विजयोल्लास को याद करें जब संघ परिवार तक ने इंदिरा गांधी के महिषमर्दिनी दुर्गावतार का आवाहन किया था और कांग्रेस की राजनीति संघी राजनीति में समाहित हो गयी।ग्लोबल हिंदुत्व का नवनिर्माण हुआ तो पाप का घड़ा पूरा हो गया।


संसद में नेहरु ने घोषणा की थी कि हमने अपनी सेना को चीनियों को खदेड़ने का आदेस दे दिया है।


पूरे पांच दशक बाद महाराष्ट्र और हरियाणा जीतने के लिए धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की सुनामी बनाते हुए वे भारतीय सेना से कह रहे हैं कि पाकिस्तानियों को घुसकर मारो।


यह युद्धघोषणा तो है ही।इसके साथ ही भारतीय मुक्ताबाजार के युद्धक अर्तव्यवस्था में रुपांतरण,कायाकल्प का उदात्त उद्घोष भी है।

जनाब नवाज शरीफ की गद्दी बेदखल होनी वाली है और अंदरुनी हालात उनके नियंत्रण में नहीं है।पाकिस्तान अमेरिकी वसंत की जद में है और सैन्य अभ्युत्थान की तैयारी में हैं।इन तत्वों के लिए भारत पाक युद्ध से बहतर कोई दूसरा अवसर नहीं बनता है।तो दूसरी ओर निजी क्षेत्र के लिए रक्षा उत्पादन और कारोबार के जो तमाम दरवाजे खोल दिये गये हैं,तो उन कंपनियों के निरंकुश मुनाफे का भी यह स्थाई बंदोबस्त है।


मारे तो जायेंगे सीमा के आर पार लोग और दशकों तक युद्ध गृहयुद्ध के इस राष्ट्रद्रोही कारोबार में मुकम्मल अमेरिका बनकर हम अमेरिकी नागरिकों की तरह नरकयंत्रणा को झेलते रेंगे जैस सन बासठ के बाद इन पांच दशकों तक हम झेलते रहे हैं।


गौरतलब है कि मोदी सरकार के आने के बाद से भारत पर सबका भरोसा बढ़ता जा रहा है। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स के आउटलुक बढ़ाने के बाद आईएमएफ से भी अच्छी खबर आई है।


मौजूदा कारोबारी साल के लिए आईएमएफ ने भारत का जीडीपी अनुमान बढ़ाकर 5.6 फीसदी कर दिया है जो कि जुलाई के अनुमान से 0.2 फीसदी ज्यादा है। वहीं आईएमएफ को लग रहा है कि वित्त वर्ष 2016 में भारत की जीडीपी 6.4 फीसदी की रफ्तार से बढ़ेगी। 2014 में महंगाई दर 7.8 फीसदी के करीब रहेगी और अगले साल ये घटकर 7.5 फीसदी पर आ सकती है।


हालांकि, आईएमएफ ने ग्लोबल ग्रोथ का अनुमान घटाकर 3.3 फीसदी कर दिया है जो अप्रैल में जारी हुए अनुमान से करीब 0.5 फीसदी कम है।


इधर, एचएसबीसी सर्विस पीएमआई के भी अच्छे आंकड़े आए हैं। सितंबर में भारत की सर्विस पीएमआई 50.6 से बढ़कर 51.6 हो गई है जिसका मतलब साफ है कि देश के सर्विस सेक्टर में भी ग्रोथ हो रही है।

सौजन्यः


नई दिल्ली।सीमा पर पाकिस्तान की तरफ से लगातार फायरिंग पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। मोदी ने ये बात समाचार एजेंसी पीटीसी को कही। इससे पहले आज दिन में मोदी ने सुरक्षाबलों को दो टूक निर्देश दिया था कि बिना दबाव में आए पाकिस्तान की फायरिंग का मुंहतोड़ जवाब दिया जाए।


सूत्रों की मानें तो मोदी ने पाकिस्तान से निपटने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को खुली छूट दे दी है। वहीं ताजा खबर है कि भारत के आक्रामक रुख के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक बुला ली है। इस बैठक में तीनों सेना के मुखिया भी शामिल होंगे।


मोदी ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्ती की बात सरकारी बैठक में कही। जबकि हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विपक्ष इसे लगातार मुद्दा बना रहा है। ऐसे में आज प्रश्नकाल का सवाल यही था कि क्या मोदी को चुनावी सभाओं में पाकिस्तान पर जवाब देना चाहिए। चर्चा में हिस्सा लिया बीजेपी नेता सुधांशु मित्तल, कांग्रेस प्रवक्ता आलोक शर्मा, रिटायर्ड मेजर जनरल सतबीर सिंह और स्काइप के जरिए पाकिस्तान से जुड़े पत्रकार और लेखक बाबर अयाज। देखें वीडियो।


प्रेस विज्ञप्ति:जेएनयू में महिषासुर शहादत दिवस 9 अक्‍टूबर को

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By Jitendra Yadav

प्रेस विज्ञप्ति:जेएनयू में महिषासुर शहादत दिवस 9 अक्‍टूबर को

8 अक्‍टूबर 2014, नई दिल्‍ली। जवाहरलाल नेहरु विश्‍वविद्यालय में ऑल इंडिया बैकवर्ड स्‍टूडेंट्स फोरम के तत्‍वाधान में 9 अक्‍टूबर, शरद पूर्णिमा के अवसर पर महिषासुर शहादत दिवस का आयोजन किया जाएगा। संगठन के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जितेंद्र यादव ने इस दिन का महत्‍व बताते हुए कहा कि दुर्गा द्वारा छलपूर्वक बहुजन राजा महिषासुर की हत्‍या के बाद असुर समाज ने अपने नायक की याद में पूर्णिमा की चांदनी रात में शोक सभा की थी। श्री यादव का कहना है कि महिषासुर बंग प्रदेश (जिसे आज बंगाल, बिहार, उडीसा और झारखंड के नाम से जानते है) के प्रतापी, न्‍यायप्रिय और वलशाली राजा थे। आर्य जब इस प्रदेश पर हमला किए तो उन्‍हें महिषासुर की संगठित सेना के सामने कई बार परास्‍त होना पडा। अंत में आर्यों ने छलपूर्वक दुर्गा के द्वारा राजा महिषासुर की हत्‍या करवा दी। किसी भी सभ्‍य समाज में हत्‍याओं का जश्‍न नहीं मनाया जाता। महिषासुर शहादत दिवस बहुजन तबकों के इतिहास और नायकों को जानने की कोशिश है। यह ब्राम्‍हणवादी सांस्‍कृतिक वर्चस्‍व के प्रतिरोध में बहुजनों की सांस्‍कृतिक मुक्ति का आंदोलन है।
जेएनयू में आयोजित महिषासुर शहादत दिवस में इतिहासकार ब्रजरंजन मणि, वरिष्‍ठ पत्रकार अनिल चमडिया, हंस के संपादक संजय सहाय, जेएनयू के प्रोफेसर प्रमोद यादव, दलित लेखिका अनिता भारती, स्‍त्रीकाल पत्रिका के संपादक संजीव चंदन, दलित-आदिवासी दुनिया के मुक्ति तिर्की, कौशलेन्द्र यादव समेत अन्‍य गणमान्‍य व्‍‍यक्ति शामिल होंगे। इस अवसर पर युवा पत्रकार प्रमोद रंजन द्वारा महिषासुर के जीवन पर एक पुस्तिका का विमोचन भी किया जाएगा। 9 अक्‍टूबर को आयोजित इस कार्यक्रम में सबसे पहले राजा महिषासुर की स्‍मृति को नमन करते हुए उनकी याद में 1 मिनट का मौन रखा जाता है। इसके बाद उपस्थित वक्‍ता महिषासुर और बहुजनों की संस्‍कृति और इतिहास के संबंध में अपने-अपने विचार रखते है। इस अवसर पर राजा महिषासुर के जीवन पर आधारित प्रसिद्ध चित्रकार लाल रत्‍नाकर के चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी।

বাংলাদেশে নির্যাতিতা নারীদের জন্য় এক ফোঁটা চোখের জল কি ফেলবেন না?

''মুলনিবাসী সামিতির''পরিচালনায় 'অসুর সম্রাট স্বরন সভা'৩/১০/১৪, দঃ বারাসাত(দঃ ২৪ পরগনা)। অসুর উৎসব (আত্ম মর্যাদার লড়াই )--উদ্যোগে মুলনিবাসী সমিতি ও অন্যান্য আম্বেদকরবাদী সংগঠন ।। বাংলার মুলনিবাসী এক হও, সামনে রাজনৈতিক স্বাধীনতার লড়াই আসছে।।

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''মুলনিবাসী সামিতির'' পরিচালনায় 'অসুর সম্রাট স্বরন সভা' ৩/১০/১৪, দঃ বারাসাত(দঃ ২৪ পরগনা)।
অসুর উৎসব (আত্ম মর্যাদার লড়াই )--উদ্যোগে মুলনিবাসী সমিতি ও অন্যান্য আম্বেদকরবাদী সংগঠন ।। বাংলার মুলনিবাসী এক হও, সামনে রাজনৈতিক স্বাধীনতার লড়াই আসছে।।





aapni ki Assur(Hudur Durga) panthi na devi(Uma) panthi ??? deshi na bideshi??? mulnibasi na aryan euresian???????

Next: फारवर्ड प्रेस कार्यालय में आज सुबह पुलिस ने छापा मारा।फारवर्ड प्रेस पर पुलिस छापे की निंदा करते हैं हम।सहमति असहमति के प्रसंग संगर्भ भिन्न है।लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष समाज में विचार विमर्श के लिए,सभ्यता ,विकास और प्रगति के लिए सबसे जरुरी है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता।उस पर कुठाराघात के किसी भी कदम का हर भारतीय नागरिक को विरोध करना चाहिए।किसी पत्रिका का अंक जब्त करके आप किसी विमर्श को ख्तम तो नहीं ही कर सकते हैं। पलाश विश्वास

फारवर्ड प्रेस कार्यालय में आज सुबह पुलिस ने छापा मारा।फारवर्ड प्रेस पर पुलिस छापे की निंदा करते हैं हम।सहमति असहमति के प्रसंग संगर्भ भिन्न है।लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष समाज में विचार विमर्श के लिए,सभ्यता ,विकास और प्रगति के लिए सबसे जरुरी है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता।उस पर कुठाराघात के किसी भी कदम का हर भारतीय नागरिक को विरोध करना चाहिए।किसी पत्रिका का अंक जब्त करके आप किसी विमर्श को ख्तम तो नहीं ही कर सकते हैं। पलाश विश्वास

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फारवर्ड प्रेस पर पुलिस छापे की निंदा करते हैं हम।सहमति असहमति के प्रसंग संगर्भ भिन्न है।लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष समाज में विचार विमर्श के लिए,सभ्यता ,विकास और प्रगति के लिए सबसे जरुरी है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता।उस पर कुठाराघात के किसी भी कदम का हर भारतीय नागरिक को विरोध करना चाहिए।किसी पत्रिका का अंक जब्त करके आप किसी विमर्श को ख्तम तो नहीं ही कर सकते हैं।

पलाश विश्वास

फारवर्ड प्रेस के प्रमोद रंजनजी ने जो मेल भेजा है,हुबहू पेश है।

फारवर्ड प्रेस कार्यालय में आज सुबह पुलिस ने छापा मारा तथा हमारा 'बहुजन-श्रमण परंपरा विशेषांक' (अक्‍टूबर, 2014) के अंक जब्‍त करके ले गयी। हमारे ऑफिस के ड्राइवर प्रकाश व मार्केटिंग एक्‍सक्‍यूटिव हाशिम हुसैन को भी अवैध रूप से उठा लिया गया है। मुझे भूमिगत होना पडा है। मैं जहा हूं, वहां मेरे होने की आशंका पुलिस को है। इस जगह के सभी गेटों पर गिरफ्तारी के लिए पुलिस तैनात कर दी गयी है। शायाद वे जितेंद्र यादव को भी गिरफ्तार करना चाहते हैं ताकि आज (9 अक्‍टूबर) रात जेएनयू में आयोजित महिषासुर दिवस को रोका जा सके। हमें अभी तक किसी भी प्रकार के एफआइअार की कॉपी भी नहीं मिल पायी है। लेकिन जाहिर है कि यह कार्रवाई 'महिषासुर' के संबंध में फारवर्ड प्रेस द्वारा लिये गये स्‍टैंड के कारण कार्रवाई की गयी है।

मैं इस संबंध में अपना पक्ष मैं प्रेमकुमार मणि के शब्‍दों में रखना चाहूंगा। प्रेमकुमार मणि की यह निम्‍नांकित टिप्‍पणी 'महिषासुर' नामक पुस्‍तक में संकलित है। इस पुस्‍तक का भी विमोचन आज रात जेएनयू में आयो‍जित 'महिषासुर दिवस' पर किया जाना था/ है। इस आपधापी के सिर्फ इतना कहूंगा कि आप इसे पढें और अपना पक्ष चुनें। हमें आपसे नैतिक बल की उम्‍मीद है।

हत्‍याओं का जश्‍न क्‍यो? 
प्रेमकुमार मणि
जब असुर एक प्रजाति है तो उसके हार या उसके नायक की हत्या का उत्सव किस सांस्कृतिक मनोवृति का परिचायक है? अगर कोई गुजरात नरसंहार का उत्सव मनाए या सेनारी में दलितों की हत्या का उत्सव, भूमिहारों की हत्या का उत्सव तो कैसा लगेगा? माना कि असुरों के नायक महिषासुर की हत्या दुर्गा ने की और असुर परास्त हो गए तो इसे प्रत्येक वर्ष उत्सव मनाने की क्या जरूरत है। आप इसके माध्यम से अपमानित ही तो कर रहे हैं।

महिषासुर की शहादत दिवस के पीछे किसी के अपमान की मानसिकता नहीं है। इसके बहाने हम चिंतन कर रहे हैं आखिर हम क्यों हारे? इतिहास में तो हमारे नायक की छलपूर्वक हत्या हुई, परंतु हम आज भी छले जा रहे हैं। दरअसल, हम इतिहास से सबक लेकर वर्तमान अपने को उठाना चाहते हैं। महिषासुर शहादत दिवस के पीछे किसी के अपमानित करने का लक्ष्य नहीं हैं।
हमारे सारे प्रतीकों को लुप्त किया जा रहा है। यह तो इन्हीं कि स्रोतों से पता चला है कि एकलव्य अर्जुन से ज्यदा धनुर्धर था। तो अर्जुन के नाम पर ही पुरस्कार क्यों दिए जा रहे हैं एकलव्‍य के नाम पर क्यों नहीं? इतिहास में हमारे नायकों को पीछे कर दिया गया। हमारे प्रतीकों को अपमानित किया जा रहा है। हमारे नायकों के छलपूर्वक अंगूठा और सर काट लेने की प्रथा से हम सवाल करना चाहते हैं। इन नायकों का अपमान हमारा अपमान है। किसी समाज, विचारधारा, राष्‍ट्र का। वह मात्र कपड़े का टुकड़ा नहीं होता।

गंगा को बचाने की बात हो रही है। तो इसका तात्पर्य यह थोड़े ही है कि नर्मदा, गंडक या अन्य नदियों को तबाह किया जाय। अगर गंगा के किनारे जीवन बसता है तो नर्मदा, गंडक आदि नदियों के किनारे भी तो उसी तरह जीवन है। गंगा को स्वच्छ करना है तो इसका तात्पर्य थोडे हुआ कि नर्मदा को गंदा कर देना है। हम तो एक पोखर को भी उतना ही जरूरी मानते हैं जितना कि गंगा। गाय की पूजनीय है तो इसका अर्थ यह थोडे निकला कि भैस को मारो। जितना महत्वपूर्ण गाय है उतनी ही महत्वपूर्ण भैंस भी है। हालांकि भैंस का भारतीय समाज में कुछ ज्यादा ही योगदान है। भौगोलिक कारणों से भैस से ज्यादा परिवारों का जीवन चलता है। अगर गाय की पूजा हो सकती है तो उससे ज्यादा महत्वपूर्ण भैंस की पूजा क्यों नहीं? भैंस को शेर मार रहा है और उसे देखकर उत्सव मना रहे हैं। क्या कोई शेर का दूध पीता है। शेर को तो बाडे में ही रखना होगा। नहीं तो आबादी तबाह होगी। आपका यह कैसा प्रतीक है? प्रतीकों के रूप में क्या कर रहे हैं आप?

यह किस संस्कृतिक की निशानी है। पारिस्थितिकी संतुलन के लिए प्रकृति में उसकी भी जरूरत है परंतु खुले आबादी में उसे खुला छोड दिया तो तबाही मचा देगा।

हम अपने मिथकीय नायकों में माध्यम से अपने पौराणिक इतिहास से जुड़ रहे हैं। हमारे नायकों के अवशेषों को नष्‍ट किया गया है। बुद्ध ने क्या किया था कि उन्हें भारत से भगा दिया। अगर राहुल सांकृत्यायन और डॉ अम्बेडकर उन्हें जीवित करते हैं तो यह अनायास तो नहीं ही है।महिषासुर के बहाने हम और इसके भीतर जा रहे हैं। अगर महिषासुर लोगों के दिलों को छू रहा है तो इसमें जरूर कोई बात तो होगी। यह पिछडे तबकों का नवजागरण है। हम अपने आप को जगा रहे हैं। हम अपने प्रतीकों के साथ उठ खड़ा होना चाहते हैं। दूसरे को तबाह करना हमारा लक्ष्य नहीं हैं। हमारा कोई संकीर्ण दृष्टिकोण नहीं है। यह एक राष्‍ट्रभक्ति और देश भक्ति का काम है। एक महत्वपूर्ण मानवीय काम।

महिषासुर दिवस मनाने से अगर आपकी धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं तो हों। आपकी इस धार्मिक तुष्टि के लिए हम शुद्रों का अछूत, स्त्रियों को सती प्रथा में नहीं झोंकना चाहते। हम आपकी इस तुच्छ धार्मिकता विरोध करेंगे। ब्राम्हण को मारने से दंड और दलित को मारने से मुक्ति यह कहां का धर्म है? यह आपका धर्म हो सकता है हमारा नहीं। हमें तो जिस प्रकार गाय में जीवन दिखाई देता है उसी प्रकार सुअर में भी। हम धर्म को बड़ा रूप देना चाहते हैं। इसे गाय से भैंस तक ले जाना चाहते हैं। हम तो चाहते हैं कि एक मुसहर के सूअर भी न मरे। हम आपसे ज्यादा धार्मिक हैं।

आपका धर्म तो पिछड़ों को अछूत मानने में हैं तो क्या हम आपकी धार्मिक तुष्टि लिए अपने आप को अछूत मानते रहे। संविधान सभा में ज्यादातर जमींदार कह रहे थे कि जमींदारी प्रथा समाप्त हो जाने से हमारी जमींने चली जाएगीं तो हम मारे जाएंगे। तो क्या इसका तात्पर्य कि जमींदारी प्रथा जारी रखाना चाहिए। दरअसल, आपका निहित स्वार्थ हमारे स्वार्थों से टकरा रहा है। वह हमारे नैसर्गिक स्वार्थों को भी लील रहा है। आपका स्वार्थ और हमारा स्वार्थ अलग रहा है, हम इसमें संगति बैठाना चाहते हैं।

दुर्गा का अभिनंदन और हमारे हार का उत्सव आपके सांस्कृतिक सुख के लिए है। लेकिन आपका सांस्कृतिक सुख तो सती प्रथा, वर्ण व्यवस्था, छूआछूत, कर्मकाण्ड आदि में है तो क्या हम आपकी संतुष्टि के लिए अपना शोषण होंने दें। आपकी धार्मिकता में खोट है।

महिष का तात्पर्य भैंस। असुर एक प्रजाति है। असुर से अहुर और फिर अहिर बना होगा। जब सिंधु से हिन्दु बन सकता है तो असुर से अहुर क्यों नहीं। आपका भाषा विज्ञान क्यों यहां चूक जा रहा है। हम तो जानना चाहते है कि हमारा इतिहास हो क्या गया? हम इतने दरिद्र क्यों पड़े हुए हैं।

मौजूदा प्रधानमंत्री गीता को भेट में देते हैं। गीता वर्णव्यवस्था को मान्यता देती है। हमारे पास तो बुद्धचरित और त्रिपिटक भी है। हम सम्यक समाज की बात कर रहे हैं। आप धर्म के नाम पर वर्चस्व और असमानता की राजनीति कर रहे हैं जबकि हमारा यह संघर्ष बराबरी के लिए है।

(अगर आप फारवर्ड प्रेस का पुलिस द्वारा उठाया गया अंक पढना चाहते हैंं तो इस लिंक पर जाएं - https://www.scribd.com/doc/242378128/2014-October-Forward-Press-PDF

​- प्रमोद रंजन, सलाहकार संपादक फारवर्ड प्रेस 

Whose Development Mr Modi ?

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Whose Development Mr Modi ?

By Irfan Engineer


Prime Minister Narendra Modi often tells his audience that he is working for the development of 1.25 billion Indians. The sub-text is that he would work for development of all Indian regardless of their religion, caste, ethnicity, and regardless of their accident of birth and their cultural heritage. The idea is noble and needs to be fully supported.

However, if we apply a bit of our mind to the contention, two questions would come to mind – 1) Are the resources for development unlimited for the desired development of all 1.25 billion Indians? Given the extremely limited resources, irrespective of the appealing slogans, there cannot be development that is going to benefit all. There would be contested claims on development. Those who are more organized and rich in resources to lobby with the state machinery and have easy access to bureaucracy would exclude those who can't make their voice heard. To expect the government to be blind and neutral to interest groups, communities, castes, gender, cultural factors and to rise above their own prejudices is contrary to lived human experience. Slogan of benefits of development for all is either noble declaration of intents at best and often to fool the gullible.

2) Are we doing justice when we talk of development of all 1.25 billion Indians, given the levels of inequalities? While increasing number of Indians are joining the club of richest 100 in the world and even richest 50, the number of Indians surviving on income of less than Rs. 20/- a day is staggering 836 million! 200 million Indians sleep hungry every night! 212 million Indians are undernourished and 7000 Indians die of hunger every year, and if we add hunger related diseases to the cause of death, there are 10 million deaths every year!

Increasing number of Indians joining the richest 50 and 100 in the world makes some Indians, particularly the urban middle class, proud.  They have ostrich like approach towards increasing inequalities and India being almost at the bottom of all human development indices which include illiteracy, lack of access to health facilities, infant mortality rate, etc. They wished nobody talked about the issues that could trouble their conscience. When Prime Minister Modi talks of development of all 1.25 billion Indians, he is technically talking of development of the poor also. But, given that the resources are limited, the moot questions are, what is the strategy for development of all Indians? And, what are the priorities of the Government? Where is the tax payers money going to be utilized?

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Razia, a Muslim woman, cries while praying near her destroyed home near Ahmadabad, on Saturday, March 02, 2002. Photo courtesy AP

One strategy could be to build infrastructure and create assets in the backward regions through the labour of the people of the region ensuring inclusion of all castes, gender and communities – both as beneficiaries of the development and inclusion in contribution of their labour. Infrastructure like irrigation facilities in the hands of the village communities, roads, electricity, health centres, educational institutions, toilets, easy access to markets, common spaces for community gathering etc. That would create opportunities for those who need them most, put income in the hands of hungry and malnourished. Income in their pockets would create demand for industrial goods and the industrialists would be indirect beneficiaries. When Prime Minister Modi talks of development of all, this is obviously not the strategy he has in his mind.

The second strategy could be to spend tax payers money and common resources of the country (including environment, land, water, forests and other natural resources) to create huge assets and public spectacles, from which only a countable few benefit. The proponents of this strategy tell us that poor – labourers, farmers, artisans and small entrepreneurs – will fritter away opportunities and would not lead to faster growth as, say, those having access to huge capital and finance would. Faster growth would create job opportunities and indirectly benefit the poor. The foreign investors do sense the opportunities to make huge profits but they do so by spending as little on labour as possible and by appropriating common resources of the country like land, labour, spectrum and natural resources. In order to maximize profits, spending on labour has to be minimized. That is achieved by automizing technologies that greatly reduces need of human resources. This growth is therefore also called as jobless growth. The second strategy to reduce spending on labour is to keep wages as low as possible, in fact reducing the labour to slave labour. Workers can organize themselves and act concertedly to protect and further their interests and demand their just share for their contribution to the surplus being created in the economy. Labour laws in a democracy should protect and facilitate the workers to organize themselves and enter into collective bargaining for their share in the surplus they are helping create.

The state in the second strategy for 'development' makes available land, natural resources at cheapest possible cost to the controllers of huge capital and invests tax payers money in creating few islands of 'world class' infrastructure for the entrepreneurs controlling capital, e.g. ports, roads, flyovers, rail links, energy supply etc. The state facilitates coercive land acquisition from the poor without letting them get organized and bargain collectively the price or even to hold on to their asset as of right. The poor are told to buy their needs like fertilizers, pesticides, food grains, from the market and subsidy is bad for the economy but when it comes to selling their assets, the investors are not told to buy from the market. The second strategy therefore benefits those who have access to huge financial capital as the state works for them by allowing them to exploit land and natural resources of the country on the one hand and help keep the wages low by reforming labour laws to make it more difficult for the trade unions to organize the workers. The poor lose their asset to the industries at less than market price on one hand and fewer jobs created with slave labour wages. Hence, increasing inequalities in the country. Prime Minister Modi is offering precisely that to the international capital in his foreign tours under the slogan "make in India". And this is being called working for the development of all1.25 billion Indians.

II The development in Gujarat

Let us see the development in some villages in Kachchh District of Gujarat during the years Narendra Modi was the Chief Minister of Gujarat. Our interaction with people and observations persuaded us to conclude that dalits and Muslims were left out of even the extremely little developmental benefits reaching the rural areas. Communal issues were time and again concocted by the local elite affiliated to the BJP and the Sangh Parivar in order to divert the attention from the issues of lack of development and to make one section of the development deprived fight another.

On 24/2/14, a Hanuman Temple burnt along with the idols. There was tension and Muslims were suspected. However, the local Hindus did not give any memorandum to the Police station which they were earlier planning, as Muslims also condemned the incident strongly and promised all cooperation. We had earlier elaborately written on how cow transportation is misused to feed to the media as if the bovines were being taken to slaughter house to whip up anti-Muslim feelings.

Bani-Pachchham area is demanding Taluka status. With a population of 60,000 and 85 villages (40 in Pachchham area and the rest in Bani area), the area which is now part of Bhuj Taluka. Khavda is biggest village and central location, a border village. All security agency offices are located in Khavda, like the RAW, LIB, BSF, etc. Bhuj is more than 54 Kms away from Khavda and for villagers have to travel to far for administrative services and applications to the Govt. Even the SSC students till recently had to go to Bhuj to appear for their final Board exams and that was one of the factors deterring students from completing their schooling. This year Khavda was made centre for SSC Board exams and 164 students appeared. The villagers feel discriminated as there is a proper case made out for Bani-Pachchham area to be declared Taluka and the case is long pending whereas Gandhidham with only 10 villages has been declared a Taluka. Bani-Pachchham area is largely inhabited by Muslims – about 85%. The area is not being made a Taluka only because of Muslim majority and because of suspicion against them. During the 1965 and 1971 wars with Pakistan, the local Muslim population fully assisted the India Army in every way, including, accompanying them right upto the Pakistani bunkers. Among the Muslim communities inhabiting the Khavda-Bhirandiyara area are the Samas, Sumaras and Nodhis. The Hindu castes include the Kolis, Sodha Rajputs and Suhana dalits. The Bani area is inhabited by Hali Potras, Mutuwas, Raisi Potras, and Hingoras, all Muslims.

Primary Education in Bani Pachchham Area:

There are only 72 schools. 350 teachers posts are vacant. Most schools are single teacher schools with one teacher teaching 1st to 8th Std. classes. Every school under RTE has to have minimum 5½ teachers (half teacher because s/he is supposed to supervise over the rest and step in when other teachers are absent). In three villages – Udai, Jhamri Vat and Lakhabo, there is no school. They are Muslim only villages. There are several petitions demanding school in the villages but the Govt. is not heeding. However, the Luhanas get schools for asking. In Muslim schools, the results are very poor. There is no Govt. supervision. The schools for dalits and Muslims have been separated as those from upper castes. As a result, these schools are worst off.

Met one teacher – Muhammed Khalid in Tuga Village. This village had primary as well as High School still 10th std. This was one of the better run schools. In the primary school where Khalid taught, there were 225 students and 6 teachers for 1 to 8th class. This was possible only because 1st and 2nd class were merged and looked after by the same teacher, as also 3rd and 4th class was taught by the same teacher. They required spl. teachers to teach English, mathematics, social sciences and sciences. If the special teachers were made available to the school, they would be able to introduce teaching period-wise (at present single class teacher taught everything). Khalid agreed that the standards were poor and the schools were neglected but he attributed it to lack of awareness within the community. If the community would have been aware, they would have supervised and the school run more efficiently and effectively. He did not attribute to discrimination against Muslims. The village being remote, teachers would try and get themselves transferred to villages which were nearer their residence and easily accessible. In Tuga village, the educational standards were a little better on account of awareness. There was one graduate from the village, and one or two government employees. Seeing them, others wanted to get educated as well.

In Jam Kunariya village too, Bijal Dungaliya informed us that schools were not working properly. There was no drinking water, let alone toilets.

In Sinogra Village (Anjar Block) there were two schools. One built by Krishna Parinam temple after the old building collapsed during the earthquake in 2001 and the other Kanya Shala (for girls). Muslims constituted about 20% of the village about 100 out of 500 houses were that of Muslims. The schools were situated in the Hindu locality, but not far from Muslim neighbourhood. The upper caste children went to private schools in Anjar (about 7 Kms away) and the only children who attended the village schools were dalits and Muslims. The condition of the schools was little better off than that of Tuga Village as it was constructed by private organization out of the funds collected for rehabilitation of earthquake survivors. There was drinking water tap and toilet. There were benches for the students in one or two classrooms. Only 83 of the 220 students were Muslims. There was a high rate of drop out among Muslims. While there were 16 students in class three, there were only 5 in class 8. Some of those who were enrolled were either did not attend at all or were irregular. The teachers opined that there was lack of awareness among the Muslim parents. Girls worked on the "bandhani" work and boys did odd labour jobs. There were only few pucca houses of Muslims and over a period of time, their land ownership has gone down. Muslims in the village were involved in animal husbandry from Miyana and Jat community. Dalits were more aware of their rights and therefore their attendance in school was much better. Among those Muslim boys who attended were clever. Dropout rate in the girls was less and attendance rate too was better than boys. There were less teachers and vacant posts in both schools. There were 7 teachers in boys schools and 6 teachers in girls school. In both schools, classes would be combined to cope with the shortage of teachers.

The health services too are poor. The Muslim villagers feel that the area is neglected only because they are Muslim majority areas. Agriculture is dependent on rain and only a tiny small patch is irrigated. The local population has to migrate if rainfall is deficient, and it often is

বিএনপি তাকিয়ে দিল্লির দিকে

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বিএনপি তাকিয়ে দিল্লির দিকে



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সরকারের প্রধান প্রতিপক্ষ বিএনপি থেকে নানাভাবে আন্দোলনের কথা বলা হলেও দলটি এখন অপেক্ষায় রয়েছে বাংলাদেশের ব্যাপারে প্রতিবেশী দেশ ভারতের 'প্রকৃত অবস্থান'দেখার জন্য। বিএনপির নীতিনির্ধারকদের বিশ্বাস, বাংলাদেশ প্রশ্নে একটু সময় নিয়ে হলেও ভারতের বর্তমান বিজেপি নেতৃত্বাধীন সরকার 'নিরপেক্ষ'অবস্থানই নেবে। আর এ ধরনের পরিস্থিতি নিশ্চিত হলেই কেবল সরকারের বিরুদ্ধে বিএনপি সত্যিকারের কঠোর আন্দোলন শুরু করবে। কয়েক দিন ধরে বিএনপির নীতিনির্ধারক পর্যায়ের একাধিক নেতার সঙ্গে আলাপ করে দলের এ অবস্থানের কথা জানা গেছে।

ওই নেতারা জানান, এর আগ পর্যন্ত সভা-সমাবেশের মাধ্যমে এক ধরনের 'আন্দোলন আন্দোলন'পরিস্থিতি সৃষ্টি করা হলেও কঠোর আন্দোলনে যাবে না বিএনপি। আর গিয়েও লাভ হবে বলে তাঁরা মনে করেন না। কেননা ৫ জানুয়ারির নির্বাচনের পর উদ্ভূত পরিস্থিতির কারণে দলটির সর্বস্তরের নেতা-কর্মীরা এখন বিশ্বাস করে, জনগণের ব্যাপক সমর্থন থাকলেও দিল্লির দিক থেকে এক ধরনের 'নিরপেক্ষ'বার্তা স্পষ্ট না হলে সরকার পতন দূরে থাক, নতুন নির্বাচনে আনার মতো চাপটুকুওই সৃষ্টি করা যাবে না। তাদের মতে, ভারতের সমর্থন এখন আর একতরফাভাবে মহাজোট সরকারের প্রতি নেই- এমন একটি বার্তা আগে দেশের সামরিক ও বেসামরিক প্রশাসনের মধ্যে স্পষ্ট হতে হবে। আর কেবল সেটা হলেই তখন আর আন্দোলন দমনে আইনশৃঙ্খলা রক্ষাকারী বাহিনী কঠোর হতে পারবে না। ফলে আন্দোলনের মাধ্যমে সরকারকে বেকায়দায় ফেলা যাবে। অন্যথায় বিএনপির আন্দোলনে যুক্তরাষ্ট্রসহ পশ্চিমা বিশ্বের সমর্থন থাকলেও সরকারকে টলানো যাবে না।   

নাম প্রকাশ না করার শর্তে বিএনপি চেয়ারপারসনের একজন উপদেষ্টা কালের কণ্ঠকে বলেন, ভারতের ক্ষমতাসীন বিজেপির দুই সদস্যের একটি প্রতিনিধিদলের সঙ্গে সম্প্রতি ঢাকায় তাঁর সাক্ষাৎ হয়েছে। এ ছাড়া দলগতভাবেও বিজেপির সঙ্গে বিএনপির বিভিন্ন বার্তা আদান-প্রদান হচ্ছে। বাংলাদেশ বিষয়ে ভারতের নীতির পরিবর্তন আস্তে আস্তে হচ্ছে বলে ওই নেতা দাবি করেন।

বিএনপির স্থায়ী কমিটির প্রভাবশালী আরেক নেতা কালের কণ্ঠকে বলেন, ভারতে নির্বাচনের অন্তত ছয় মাস আগ থেকে বিজেপির সঙ্গে বিএনপি যোগাযোগ শুরু করে। ফলে এখন তাদের সঙ্গে অত্যন্ত সুসম্পর্ক বিদ্যমান। তবে বড় দেশ ভারতের শক্তিশালী বেসামরিক প্রশাসনসহ ক্ষমতার বিভিন্ন বিকল্প কেন্দ্রের গণ্ডি পেরিয়ে রাজনৈতিক সম্পর্কের ফল পেতে কিছুটা সময় লাগবে। তিনি জানান, বিএনপির পক্ষ থেকে এ ব্যাপারে সব ধরনের উদ্যোগ ও কাজ চলছে। 

বিএনপির ভারপ্রাপ্ত মহাসচিব মির্জা ফখরুল ইসলাম আলমগীর অবশ্য কোনো বিশেষ দেশের হস্তক্ষেপে যে আন্দোলন ব্যর্থ হয়েছে, এ কথা মানতে নারাজ। তাঁর মতে, যেকোনো আন্দোলন একবারে চূড়ান্ত সফল নাও হতে পারে। তবে ৫ জানুয়ারির আগের আন্দোলন ব্যর্থ হয়েছে- এ কথা বলা যাবে না। কারণ ওই নির্বাচন শতকরা ৯৫ ভাগ মানুষ বর্জন করেছে। সবার অংশগ্রহণে একটি সুষ্ঠু নির্বাচনের জন্য আন্দোলনের কথা জানিয়ে তিনি বলেন, 'আশা করি, আন্তর্জাতিক সম্প্রদায় এবার নিরপেক্ষ থাকবে।'

বিএনপি চেয়ারপারসনের উপদেষ্টা ড. ওসমান ফারুক কালের কণ্ঠকে বলেন, 'বর্তমান অবৈধ সরকারকে ভারতের বিজেপি যে কংগ্রেসের মতো এখনো অন্ধভাবে সমর্থন দিয়ে যাবে তা মনে করি না। অবশ্যই তাদের নীতির পরিবর্তন হবে। কারণ এখানকার রাজনৈতিক ও অর্থনৈতিক স্থিতিশীলতার ওপর ভারত নির্ভরশীল। বাংলাদেশে নাজুক পরিস্থিতি সৃষ্টি হোক তা তারা চাইবে না। তারা নিশ্চয়ই এ দেশের জনগণের দাবির প্রতি সমর্থন জানাবে।'

এক প্রশ্নের জবাবে ড. ওসমান ফারুক বলেন, ভারতের দিকে তাকিয়ে বিএনপি আন্দোলন করবে, বিষয়টি ঠিক তা নয়। তবে বিশ্ব রাজনীতি তথা বৃহৎ প্রতিবেশী দেশ ভারতের রাজনীতির গতি-প্রকৃতি অবশ্যই বিএনপির বিবেচ্য বিষয়।
রাজনৈতিক বিশ্লেষক ড. আমেনা মহসিনের মতে, বাংলাদেশ প্রশ্নে ভারতের মোদি সরকার নিরপেক্ষ অবস্থান নেবে বলে মনে হয়। কারণ বাংলাদেশ সফরের সময় সে দেশের পররাষ্ট্রমন্ত্রী সুষমা স্বরাজ তাঁর বক্তৃতায় 'ইনক্লুসিভ ইলেকশন'এবং গণতন্ত্র সমুন্নত রাখার কথা বলেছেন।
এক প্রশ্নের জবাবে তিনি বলেন, বিএনপিকে ভারত ক্ষমতায় এনে দেবে- এটা মনে করলে তারা ভুল করবে। বরং বিএনপির উচিত, সঠিক এজেন্ডা ঠিক করে নিজেদের সংগঠিত করা।     
   
রাজনৈতিক বিশ্লেষকদের মতে, ৫ জানুয়ারির নির্বাচনের আগেও জনগণের ব্যাপক অংশের সমর্থন বিএনপির প্রতি ছিল বলে মনে করা হয়। বিশেষ করে পাঁচটি সিটি করপোরেশন নির্বাচনের ফলাফল এবং সর্বশেষ উপজেলা নির্বাচনের প্রথম ধাপের ফলাফলেও এ ধারণার প্রতিফলন স্পষ্ট দেখা গেছে। পাশাপাশি অংশীদারত্বমূলক নির্বাচনের প্রতি সমর্থন জানানোর মধ্য দিয়ে যুক্তরাষ্ট্রসহ পশ্চিমা বিশ্বের অবস্থানও ছিল বিএনপির পক্ষে। কিন্তু একমাত্র ভারতের 'সমর্থন'না থাকায় নির্দলীয় নিরপেক্ষ সরকার ব্যবস্থা পুনঃপ্রবর্তনের দাবির আন্দোলন যৌক্তিক পরিণতি পায়নি, যদিও ওই সময় সারা দেশে আন্দোলনের ব্যাপকতা ছড়িয়ে পড়েছিল। শুধু ঢাকায় ব্যাপকতার অভাবে ওই আন্দোলন ব্যর্থতায় পর্যবসিত হয়।

বিএনপির বড় একটি অংশের ধারণা, ঢাকার আন্দোলন, বিশেষ করে ২৯ ডিসেম্বরের 'গণতন্ত্রের জন্য অভিযাত্রা'কর্মসূচি ভণ্ডুল এবং ওই দিন খালেদা জিয়াকে গুলশানের বাসায় অবরুদ্ধ করাসহ সার্বিকভাবে আন্দোলন মোকাবিলার সুনিপুণ কৌশল প্রণয়নের নেপথ্যে বড় দু-একটি দেশের হাত ছিল। ফলে দক্ষতার সঙ্গে ওই আন্দোলন দমন করে একতরফা হলেও একটি নির্বাচন সম্পন্ন করে তার সুফল ভোগ করেছে মহজোট সরকার; আর রাজনৈতিকভাবে বেকায়দায় পড়েছে বিএনপি নেতৃত্বাধীন জোট।

খোদ বিএনপির অনেক নেতাও মানেন, আট মাস পর এখন নতুনভাবে শুরু করে আন্দোলনের ব্যাপকতা সৃষ্টি করা ভীষণ কঠিন কাজ। শত শত মামলা মাথায় নিয়ে নেতা-কর্মীরা দ্বিতীয়বারের ঝুঁকি নিতে চাইবে কি না তা নিয়ে দলের ভেতরে ও বাইরে সংশয় রয়েছে। তা ছাড়া নেতা-কর্মীদেরও বদ্ধমূল ধারণা, ভৌগোলিক অবস্থানের কারণেই যুক্তরাষ্ট্রসহ পশ্চিমা শক্তির সমর্থন দিয়েও বিএনপির জন্য কার্যকর কিছু হবে না; ভারতের সমর্থন লাগবেই।

http://www.kalerkantho.com/print-edition/first-page/2014/10/09/137502

ক্ষমতার তেলমাখা বাঁশে কত রাজা আসে ! জনতার কান্নায় কত বুক ভাসে ! কলরবের হদহুদ হুন্কারের দশা দিশা একইরকম। এক্কেবারে হক কথা কইছেন মতুয়া তপনঃস্বপ্ন ভঙ্গ পরিবর্তনকামী সাধারণ মানুষের। সরকার ক্রমাগত অসহিষ্ণুতা দেখাচ্ছে। পূর্বতন সরকারের অগণতান্ত্রিক সিদ্ধান্তের বিরুদ্ধে লড়াই করেছিলাম। আশা ছিল, নতুন সরকার গণতন্ত্র রক্ষা করবে।সেগুড়ে বালি।এক রোখা জেদে চলছে সরকার,সংলাপহীন আধিপাত্যে,উচ্শৃঙ্খল বর্ণ বেষম্যের নৈরাজ্য এই মগের মুল্লুক। পলাশ বিশ্বাস

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ক্ষমতার তেলমাখা বাঁশে

কত রাজা আসে !

জনতার কান্নায়

কত বুক ভাসে !

কলরবের হদহুদ হুন্কারের দশা দিশা একইরকম।


এক্কেবারে হক কথা কইছেন মতুয়া তপনঃস্বপ্ন ভঙ্গ পরিবর্তনকামী সাধারণ মানুষের।

সরকার ক্রমাগত অসহিষ্ণুতা দেখাচ্ছে। পূর্বতন সরকারের অগণতান্ত্রিক সিদ্ধান্তের বিরুদ্ধে লড়াই করেছিলাম। আশা ছিল, নতুন সরকার গণতন্ত্র রক্ষা করবে।সেগুড়ে বালি।এক রোখা জেদে চলছে সরকার,সংলাপহীন আধিপাত্যে,উচ্শৃঙ্খল বর্ণ বেষম্যের নৈরাজ্য এই মগের মুল্লুক।


পলাশ বিশ্বাস

বিদেশের মাটিতে কলরব।

বিদেশের মাটিতে কলরব।



ফুলগুলো সব লাল না হয়ে নীল হলো ক্যান অসম্ভবে কখন কবে মেঘের সাথে মিল হলো ক্যান হোক অযথা এসব কথা তাল না হয়ে তিল হলো ক্যান কুয়োর তলে ভীষণ জলে খাল না হয়ে ঝিল হলো ক্যান ধুত্তরি ছাই মাছগুলো তাই ফুল না হয়ে চিল হলো ক্যান …

শাসকের একরোখা জেদ,তাই শত বিতর্কের পরও যাদবপুর বিশ্ববিদ্যালয়ের স্থায়ী উপাচার্য অভিজিৎ চক্রবর্তী।

শক্তি সঞ্চয় করে হুদহুদের হুঙ্কার, ধেয়ে আসছে অন্ধ্র-ওড়িশা উপকূলের দিকে  

শেষ মুহূর্তে অভিমুখ বদল। তাতে আন্দামান বেঁচে গেল। অন্য দিকে ডাঙার ছোঁয়া এড়ানোয় শক্তি অটুট রইল ঘূর্ণিঝড় হুদহুদের। ফলে অন্ধ্র-ওড়িশার আশঙ্কা বাড়ল।

কলরবের হদহুদ হুন্কারের দশা দিশা একইরকম।

যাদবপুর-কাণ্ডে লাবণীতে পড়ুয়াদের অবস্থান বিক্ষোভব চলছিল৷ সেই সময় বিক্ষোভকারী ছাত্র-ছাত্রীদের ওপর হামলা চালায় পুলিশ৷ সেই ঘটনার প্রতিবাদেই বুধবার বিধাননগর কমিশনারেটের সামনে বিক্ষোভ দেখান একদল পড়ুয়া৷ এদিনও তাদের মুখে শোনা গেল একই স্লোগান৷ উপাচার্য অভিজিৎ চক্রবর্তীর পদত্যাগ৷ ও পুলিশের স্বেচ্ছাচারিতা বন্ধের দাবি জানান তাঁরা৷

প্রসঙ্গত, হোক কলরবের সমর্থনে নবমীর দিন কলকাতার উপকণ্ঠে বিধাননগরের লাবণীতে পোস্টার লিখছিলেন বেশ কয়েকজন স্থানীয় ছাত্র-যুব৷ খবর পেয়ে সেখানে পৌঁছে যায় স্থানীয় থানার পুলিশ৷ ছাত্র-ছাত্রীদের কাছে গোটা খবর নেওয়ার পরে প্রথমে পুলিশ কর্মীরা ফিরে গেলেও কিছুক্ষণের মধ্যে দলটি ফের ফিরে আসে৷ এর পরই পোস্টার লেখার অপরাধে বেশ কয়েকজনকে পুলিশ গাড়িতে তুলি নিয়ে চলে যায়৷



সরকার ক্রমাগত অসহিষ্ণুতা দেখাচ্ছে। পূর্বতন সরকারের অগণতান্ত্রিক সিদ্ধান্তের বিরুদ্ধে লড়াই করেছিলাম। আশা ছিল, নতুন সরকার গণতন্ত্র রক্ষা করবে।সেগুড়ে বালি।এক রোখা জেদে চলছে সরকার,সংলাপহীন আধিপাত্যে,উচ্শৃঙ্খল বর্ণ বেষম্যের নৈরাজ্য এই মগের মুল্লুক।


এই গণতন্ত্রের ধারণা অনুসারে সমাজের এলিটবর্গই রাষ্ট্র, সমাজ ও প্রশাসনিক কাজের পরিকল্পনা ও বাস্তবায়ন করে আর সাধারণ মানুষেরকাজ হচ্ছে শুধু দর্শক হয়ে রাষ্ট্রের সমস্ত কাজের বাধ্য বলিপ্রদত্থ ছাগশিশুর মত কাঠগড়ায় বিনা প্রতিবাদে,বিনা প্রতিরোধে বলি হতে থাকা।


এক্কেবারে হক কথা কইছেন মতুয়া তপনঃ



লক্ষ কোটি টাকার আর্থিক ঋণ মাথায় নিয়ে রাজ্যের অর্থনীতির আমূল পরিবর্তন করা সত্যিই কষ্টসাধ্য এ ব্যাপারে বর্তমান রাজ্য সরকারের কোন দোষ আমি দেখিনা অন্তত এই ব্যাপারে সত্যি তাঁরা নির্দোষ, তবে তাঁদের যেটা করার উপায় ছিল তা হল রাজ্যের প্রশাসন এবং আইনশৃঙ্খলার প্রভূত উন্নতিসাধন, যাকে এক কথায় বলা যায় "গুড গভর্নেন্স"। যে ক্ষেত্রে একদমই যত্নবান হয়নি তৃণমূলের বর্তমান সরকার, ফলে বামজামানার অপশাসন বা কুশাসনের প্রকৃতার্থে কোন পরিবর্তন হয়নি। রাজ্যের সাম্প্রতিক ঘটে যাওয়া বিচ্ছিন্ন কয়েকটি ঘটনার সূত্র ধরে অন্তত এতটুকু দাবী করা যায়।

আর একবার স্বপ্ন ভঙ্গ হয়েছে পরিবর্তনকামী সাধারণ মানুষের।


হক কথা।

সবাই জানে কিন্তু বলতে ভয় পান,পাছি কি থেকে কি হইয়া যায়।


কমছে কেবল টাকার দাম, আর মানুষেরজীবনের দাম। প্রতিদিন খুন হচ্ছেন সাধারণমানুষ। 'পরিবর্তন' এর মাসুল সাধারণমানুষকেই দিতে হচ্ছে।


উপজাতি আদিবাসী সম্প্রদায়ের মানুষেরসাথে শ্রেণিবৈষম্য ও নির্যাতনের একটি পাকাপোক্ত অসাম্যের,অন্যায়ের,মহিষাসুর বধের অবিরাম ব্যবস্খা হিসেবে চালু আছে। ভারতীয় বুর্জোয়া গণতন্ত্র সাধারণ মানুষেরকাছে কোনো সুখবার্তা নিয়ে যায়নি। বর্ণ ও শ্রেণিবিভক্ত রাষ্ট্রের সেই ... তাহলে জনগণের সামনে পরিবর্তনকামীহওয়া ছাড়া আর উপায় কী? সংসদে বিরোধী দল উপেক্ষিত হবে। রাজপথেও তাদের গণত্ন্ত্র অধিকার নেই,সর্বত্রই অবাধ সলোয়া জুড়ুম,অবাধ সশস্ত্র সৈন্যবিশেষাধিকার আইনের মহাঅরণ্য।



ক্ষমতার তেলমাখা বাঁশে

.. ... মু হা ম্ম দ ই উ সু ফ



ক্ষমতার তেলমাখা বাঁশে

কত রাজা আসে !

জনতার কান্নায়

কত বুক ভাসে !


কত রাজা যায়

সময় গড়ায় ...


তেলমাখা বাঁশ  বেয়ে

সব্বাই উঠে না ...

কেউ যায় হাবিয়ায়

জান্নাত জুটে না !!


০৫-১০-২০১৪

ঢাকা, বাংলাদেশ ।

অভিজিত্ নন্দী লিখেছেন যথাযথ তাঁর দেওয়ালেঃ


ভাবাচ্ছে যা -


বিকল্প রাজনৈতিক চেতনা – বিকল্প রাজনৈতিক কর্মসূচী? সে তৃতীয় ধারার, না চতূর্থ, নাকি পঞ্চম ধারার তা বলতে পারব না! বারবার যেটা ঘটতে দেখেছি তা হল, কোন একটা আঘাত বা হিংস্রতা নেমে আসে, তার প্রতিবাদ করা হয় – কখনও মিনমিনে গলায়, আবার কখনও বা শত-সহস্র মানুষের কলরবে। কিন্তু এই যে, ক্রমাগত: ঘটনার পেছনে ছোটা, এর কোনও অন্যথা হতে পারে না? অন্যদিকে, দেখেছি পার্টি রাজনীতি, যার নিজস্ব ধারা থাকে, কিন্তু সে অন্য ধারাকে জায়গা দিতে পারে না, না পেরে কখনও খণ্ড-বিখণ্ড হয়ে পড়ে, কখনও বা অন্য মতের বিরুদ্ধে কথা বলতে গিয়ে হিংস্রতাই হয়ে পড়ে তার সম্বল।

কিন্তু যাদবপুরের ছাত্র-ছাত্রীদের আন্দোলনের প্রেক্ষিতে গড়ে ওঠা 'হোককলরব'আজকের সাধারণ মানুষের রাজনৈতিক সংস্কৃতির নিস্তব্ধতায় কিছুটা হলেও ভাষা দিয়েছে, হয়ে উঠেছে আজকের দিনের গ্রহণযোগ্য স্লোগান, তাকেও তো অস্বীকার করতে পারি না। প্রত্যেকবারের মত একেও যদি আর কিছুদিনের মধ্যে 'স্বাভাবিক'মৃত্যুবরণ করতে দিই, তা কি আমাদের সামাজিক, রাজনৈতিক বা সাংস্কৃতিক দায়িত্বহীনতা হয়ে যাবে না?

জানি, কোনও রাজনৈতিক পথপ্রদর্শন করা এই মূহুর্তে সম্ভব নয়। সম্ভব নয় বলে ফেলা – 'এটাই আমাদের দর্শন'। সে তৈরী হোক চলার পথ ধরে, অনেকের হাত ধরে। তা হোক গতিশীল।

শুধুমাত্র সামনের দিকে এগুনো মানে কিছু লোককে পেছনে ফেলে রাখা। মানতে পারি না আধুনিকতার সব কিছুই সুন্দর। আবার উন্নয়নের হিংস্রতাও চোখ এড়িয়ে যায় না। তাই প্রগতিশীলতা, আধুনিকতা বা উন্নয়ন এসব কথাগুলোও দ্বন্দ্ববিহীনভাবে উচ্চারণ করতে পারি না নিজেদের ভাবনা বা চরিত্র বর্ণনা করতে গিয়ে।

তাই কথা বলতে চাই, বুঝতে চাই - কি করতে পারি? তাই, কথা বলতে চাই তাঁদের সাথে, যাঁরা পার্টি রাজনীতির একমুখী দর্শন বা মতামতের প্রাধান্যে নিজেদের নিজস্ব বৈচিত্রকে খুইয়ে ফেলেননি, যাঁরা চান এই রাজনৈতিক সাংস্কৃতির নৈ:শব্দের এবং হিংস্রতার অবসান, যাঁরা চান হোক-কলরব।

পার্টি গড়তে চাইছি না। কোনও পার্টির বিরোধিতা-মূলক রাজনীতিও নয়। বুঝতে চাইছি, এমন কোন রাজনৈতিক সংস্কৃতি গড়ে তোলা সম্ভব কিনা, যে রাজনীতিকে সাধারণ মানুষ ভয় পাবে না এবং ঘৃণা করবে না। সংসদীয় রাজনীতির বাইরেও যে সব রাজনীতির রেশ ওঠে মাঝে মাঝে, কোন কোন মুহূর্তে তাতে মানুষের ঢল নামে স্বতস্ফুর্তভাবে, বিশেষ বিশেষ পরিস্থিতিতে। এখন প্রশ্ন হচ্ছে, আমাদের রাজনীতির ধরণকে একই রকম রেখে, আমরা কি বারংবার অপেক্ষা করে যাব, কবে আবার বিশেষ পরিস্থিতির উদয়ে সাধারণ মানুষের জমায়েত বাড়বে? নাকি ভাববো, আমাদের রাজনীতির ধরণটাকেই পালটানোর কথা, রাজনীতির ভাষা ও স্লোগানগুলো পালটানোর কথা, যাতে সাধারণ মানুষের কাছে তা সহজবোধ্য ও গ্রহণযোগ্য হয়। অবশ্যই এ ক্ষেত্রে populist politics এর সমস্যাগুলোও মাথায় রাখতে হবে।

প্রশ্নগুলো সহজ, কিন্তু উত্তর জানা নেই সেভাবে!

হক কথা!

যাদবপুরের গণ্ডি ছাড়িয়ে এবার 'হোক কলরবে'র ডাক রাজ্যের অন্যান্য কলেজ এবং বিশ্ববিদ্যালয়ের ক্যাম্পাসেও। শুধুমাত্র যাদবপুরে ঘটনায় নয়, এবার কলেজে কলেজে বিভিন্ন হয়রানির বিরুদ্ধেও কলরব তোলার আহ্বান জানানো হল৷সব ক্ষেত্রেই পাশে থাকার বার্তা যাদবপুরের আন্দোলনকারীদের। আন্দোলনকারী এক ছাত্রের কথায়, মাঝে মধ্যেই কলেজ ক্যাম্পাসে ইউনিয়নের দাদাগিরির শিকার হন ছাত্রছাত্রীরা। এমনকী, বিভিন্ন ইস্যুতে কলেজ কর্তৃপক্ষের হেনস্তার শিকার হতে হয় পড়ুয়াদের। কিন্তু, রোষের মুখে পড়ার ভয়ে প্রতিবাদ করতে পারে না পড়ুয়ারা। তাদের পাশে দাঁড়ানোর জন্যই এই পদক্ষেপ বলে জানিয়েছে ওই ছাত্র। ইতিমধ্যে এই বিষয়ে 'হোক কলরব'ফেসবুক পেজেও সাধারণ পড়ুয়াদের পাশে থাকার বার্তা জানিয়েছে যাদবপুর আন্দোলনরত ছাত্রছাত্রীরা। পুজোর ছুটির পরেই এই বিষয়ে জোরদার প্রচার চালানো হবে বলে জানা গিয়েছে। পড়ুয়াদের কথায়, হোক কলরবের ফেসবুকে পেজে সাধারণ ছাত্রছাত্রীরা তাদের সমস্যার কথা জানালেই নির্দিষ্ট কর্তৃপক্ষের বিরুদ্ধে হক কলরবের আওয়াজ তুলবে যাদবপুর। kolorob

অন্যদিকে, ইতিমধ্যে আন্দোলনকারীদের দাবি না মেনে অভিজিৎ চক্রবর্তীকে স্থায়ী উপাচার্য হিসাবে নিযুক্ত করেছেন রাজ্যপাল কেশরীনাথ ত্রিপাঠী। আচার্যের এই সিদ্ধান্তে ইতিমধ্যে ক্ষোভের আগুন ফুটছে আন্দোলনকারীদের মধ্যে। পরবর্তী আন্দোলনের রূপরেখা কী হবে তা নিয়ে প্রাথমিক আলোচনা সেরে ফেলেছেন আন্দোলনকারীরা। বিশেষ সূত্রে খবর, নতুন করে ফের আরও একবার পথে নামার সিদ্ধান্ত প্রতিবাদীদের। জানা গিয়েছে, পুজো মিটে গেলেই পথে নামতে পারে যাদবপুর।


'হুদহুদে'র ঝাপটায় বিপর্যস্ত হতে পারে ওড়িশা উপকূল

ওয়েব খবর: বঙ্গোপসাগর উপকূলে আসতে চলেছে 'হুদহুদ' নামক ঘূর্ণিঝড়। সূত্রের খবর, ১২ অক্টোবরের মধ্যে ওড়িশা উপকূল আছড়ে পড়বে এই বিধ্বংসী ঝড়। ওমানের অ্যাফ্রো-ইউরেসিয়ান এক পাখির নামে 'হুদহুদে'র নামকরণ হয়েছে।

আবহাওয়া দফতর থেকে জানা যাচ্ছে, সোমবার থেকে দক্ষিণ মায়ানমার উপকূল সংলগ্ন নিম্নচাপ সৃষ্টি হয়েছে। আন্দামান সাগরের কাছে সরে শক্তিশালী ঘূর্ণাবর্ত তৈরি হয়। আশঙ্কা করা হচ্ছে দু-তিন দিনের মধ্যে ঘন্টায় ৬০ থেকে ৭০ কিলোমিটার বেগে হুদহুদ আছড়ে পড়বে ওড়িশা উপকূলে।

আবহাওয়া দফতরের ভবিষ্যতবাণী যদি সত্যি হয়, তাহলে 'হুদহুদ' ঘূর্ণিঝড় এই প্রথম বঙ্গোপসাগরে আছড়ে পড়বে।  প্রভাব পড়তে পারে অন্ধ্রপ্রদেশের বেশ কিছু জায়গায় ও বিশাখাপত্তনম সংলগ্ন। তবে 'হুদহুদে'র হাতছানি থেকে বেঁচে যেতে পারে পশ্চিমবঙ্গ। এই ক'দিন মেঘলা আকাশ ও ভারী বৃষ্টির সম্ভাবনা রয়েছে বলে জানিয়েছেন আবহাওয়া দফতর।





আজকালের প্রতিবেদন: 'কলরব'এবার বিধাননগর পুলিস কমিশনারেটের দপ্তরে৷‌ যাদবপুর বিশ্ববিদ্যালয়ের পড়ুয়াদের ওপর পুলিসি হামলার প্রতিবাদে পুজোর সময় বিধাননগরে লাবণি আবাসনের সামনে অবস্হান বিক্ষোভে বসেছিলেন ছাত্রছাত্রীরা৷‌ কলরব ঠেকাতে ১৩ জনকে গ্রেপ্তার করে পুলিস৷‌ এবার সেই গ্রেপ্তারির জবাব দিতে বুধবার কমিশনারেটের দপ্তরের সামনে পাল্টা বিক্ষোভ কর্মসূচিতে সামিল হলেন পড়ুয়ারা৷‌ গান, স্নোগান, পোস্টারে পুলিসের 'অতি সক্রিয়তা'র নিন্দা জানাল জমায়েত৷‌ যাদবপুর বিশ্ববিদ্যালয়ের পাশাপাশি অন্য কলেজ, বিশ্ববিদ্যালয়ের কিছু পড়ুয়াও এই কর্মসূচিতে ছিলেন৷‌ গ্রেপ্তারির প্রতিবাদে বিধাননগরের নগরপাল রাজীব কুমারকে স্মারকলিপি দেওয়া হয়৷‌ একই সঙ্গে এদিন পড়ুয়ারা মেয়েদের পোশাক নিয়ে বিধাননগর কমিশনারেটের ফতোয়ারও প্রতিবাদ জানান৷‌ যাদবপুর বিশ্ববিদ্যালয়ে পুলিসি হামলার প্রতিবাদ ও উপাচার্য অভিজিৎ চক্রবর্তীর পদত্যাগের দাবিতে পুজোর সময় নানা কর্মসূচি নিয়েছিলেন পড়ুয়ারা৷‌ নবমীর দিন লাবণি আবাসনের পুজোমণ্ডপের বাইরে বিক্ষোভ কর্মসূচি ছিল৷‌ অভিযোগ, শাম্তিপূর্ণ বিক্ষোভ কর্মসূচিতে হস্তক্ষেপ করে বিধাননগর সিটি পুলিস৷‌ টেনেহিঁচড়ে প্রতিবাদীদের পুলিসের গাড়িতে তোলা হয়৷‌ গ্রেপ্তার করা হয় ১৩ জনকে৷‌ পড়ুয়াদের দাবি, এদিন নগরপাল রাজীব কুমারকে স্মারকলিপি জমা দেওয়ার সময় তিনি বলেছিলেন, ওই ঘটনা অপ্রত্যাশিত৷‌ পরবর্তীকালে পড়ুয়ারা পুলিসকে জানিয়ে কর্মসূচি নিলে এ ধরনের ঘটনার সামনে পড়তে হবে না বলেও নগরপাল আশ্বাস দিয়েছেন বলে দাবি পড়ুয়াদের৷‌ পড়ুয়াদের এই বিক্ষোভ কর্মসূচি সামাল দিতে বিশাল পুলিস বাহিনী মোতায়েন ছিল কমিশনারেটের দপ্তরের সামনে৷‌ এদিকে এদিন যাদবপুরের ছাত্রছাত্রীরা ফের জানান, উপাচার্যের পদত্যাগের দাবি থেকে তাঁরা সরছেন না৷‌ পুজোর ছুটির পর এ নিয়ে আরও জোরদার আন্দোলন হবে৷‌


বিধাননগরে হোক কলরব...

Updated 17 hours ago · Taken at Bidhannagar, Kolkata
আজকের প্রতিবাদ সভা... বিধাননগর পুলিশ কমিশনারের অফিসের সামনে... জমা দেওয়া হল ডেপুটেশান...

Opposition died! Long live the Opposition! We are amidst war situation and the ruling parties across the political borders have made us warring nations.

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Opposition died! Long live the Opposition!


We are amidst war situation and the ruling parties across the political borders have made us warring nations.


Palash Biswas


$100 bn foreign investments knocking at India`s doors: Narendra Modi

$100 bn foreign investments knocking at India`s doors: Narendra Modi

Prime Minister Narendra Modi on Thursday said $100 billion worth of foreign investments is knocking at the doors of India and it is up to the states to lap up as much as they can.


Parliamentary democracy may not survive without opposition.In India,the Opposition is  died! Long live the Opposition!


We are amidst war situation and the ruling parties across the political borders have made us warring nations.


In the wake of intensifying ceasefire violations along the border in Jammu and Kashmir, India has cleared that talks with Islamabad will not be possible unless Pakistan stops cross-border firing.  

According to reports, New Delhi has responded strongly, conveying the Indian leadership's resolve and ability to deal with Pakistan.  

Escalating their operation, the Pakistani troops on Wednesday continued to target security outposts along the entire 192-km International Border in Jammu and Kashmir.



Parliament has become quite irrelevant as the Opposition exists no more.Scams are dismissed one after one without any storm whatsoever.Reforms activated without parliamentary clearance.


Legislation executed without any debate and the government declares policies on foreign land to protect foreign interests.The Prime Minister announces in America to throw all laws hitherto into the dustbin as it no mere suits free low of foreign capital.


Policy making is wholesale affair concerned to expert committees represented by the private sector subjective to corporate lobbying and it is endorsed by the parliament without disturbing the government without mandate.


It is free market economy and it is minimum governance.

Promising Bullet train,the government decontrols Railway fare having privatised the greatest Railway network just introducing premium trains.


Ninety percent of forest land has to be gifted away to multinational national companies without hearing whatsoever,without environment clearance,violating supreme court orders, killing fifth and sixth schedules of the constitution and finally displacing the nature associated people enacting racial ethnic cleansing and waging a constant salawa judum war against the people.No one dares to protest as the act is branded to be cidition, a war aginst the governement.


We have not seen any opposition whatsoever which deals with public issues and always in a default mode of identity based vote bank equations.

The Ruling party and the opposition seem to be just two sides of the same coin in the states and in the center.All representatives suddenly get rich and have to become billionaires.


All political parties have to be funded by corporate houses.Itis consensus overwhelming killing the opposition.


Suddenly we have enhanced our latest status as we have elevated ourselves as a war economy and making in America.


The opposition sacrificed opposition to achieve the goal and the mandate is manipulated accordingly as opposition is doing everything for the win of a specific set of rulers who may serve their interests.


It is a WWF scenario as Congress quite willingly handed power to Shaffron Modi brigade as it could not launch second generation of ethnic cleansing which is called reforms.


No issue related to agrarian,professional,business communities have to be addressed at all.


No issues relating labour, women, students and children are addressed.


No issues related to civic and human rights are addressed.

It is blind communal religious identity nationalism which is the politics of modern India.


For instance, National security and internal security is handed over to Reliance and other private companies making Indian emerging market an emerging war economy americansed.

Nevertheless,Under fire, Prime Minister Narendra Modi on Thursday launched a counter offensive against Congress and NCP on ceasefire violations by Pakistan, saying such issues should not be dragged into political discourse as he hauled them over the coals over corruption in Maharashtra.

NCP boss and former Defence MinisterSharad Pawar was the butt of Modi's criticism as he continued to hit the campaign trail for Maharashtra Assembly poll with a vengeance despite being dubbed an "absentee" Prime Minister by Congress.

"When you were the defence minister, there were problems with Pakistan and China on the border. Did you ever bother to go to the border then?"

"There have been terror strikes in Maharashtra during your tenure... Mumbai, Malegaon, Pune. You could not even reach the terrorists, leave alone catching them. In the spirit of patriotism, we never politicised the issue," he told an election rally at Baramati, Pawar's pocket borough.

Modi was responding to Pawar's criticism for holding a string of election meetings despite the tension on the border following repeated ceasefire violations by Pakistan that have caused civilian casualties.



The latest developments should be noted!


Chopper scam: Finmeccanica ex-heads cleared of graft charge, get 2 yrs in jail


Indian express reports:An Italian court on Thursday acquitted former Finmeccanica CEO Giuseppe Orsi and former AgustaWestland head Bruno Spagnolini of "charges of international corruption" in the Rs 3,600 crore VVIP chopper deal with India. The court, however, convicted and sentenced them to two years in prison on the lesser charge of "false invoicing" in the case.


"Former Finmeccannica CEO Giuseppe Orsi and ex-AgustaWestland head Bruno Spagnolini were acquitted of charges of international corruption in relation to alleged bribes paid to land a contract to sell 12 helicopters to the Indian government," Italian news agency Ansa reported. It said Orsi "was convicted of false invoicing… and sentenced to two years in prison, along with Spagnolini."


On July 29, the prosecution had "shelved proceedings against Finmeccanica for alleged corruption in the sale to the Indian government of 12 AW-101 helicopters made by its AgustaWestland subsidiary".


Ansa had then reported that "the prosecution found the company had nothing to do with the alleged corruption". Quoting a statement by Finmeccanica, it said, "AgustaWestland has agreed to pay a fine, while reiterating it knew nothing about the alleged bribery."



Reuters - ‎3 hours ago‎
MUMBAI (Reuters) - The BSE Sensex rose 1.5 percent on Thursday, snapping a three-day losing streak, as hopes the U.S. Federal Reserve would not rush into raising interest rates boosted heavyweight banks and blue chips such as Bharat Heavy Electricals ...
NDTV - ‎18 minutes ago‎
Mumbai: Indian pharmaceutical companies need to focus on the Latin American markets namely Brazil and Mexico, British brokerage firm Barclays has said.
Reuters India - ‎5 hours ago‎
... * Rupee ends at 61.04/05 per dlr vs 61.3950/4050 on Wednesday. * Dollar takes a beating broadly after Fed Sept meet minutes. * INR may now move in 60.80 to 61.40 range, say traders.
Business Today - ‎2 hours ago‎
Reliance Industries Ltd (RIL) has approached the Securities Appellate Tribunal (SAT) against a penalty of Rs 13 crore imposed on it by markets regulator Sebi in a case related to disclosure of a key earnings ratio of the company.
Times of India - ‎2 hours ago‎
CHENNAI: CignaTTK Health Insurance has signed a distribution tie-up with Aditya Birla Money Insurance Advisory Services, a wholly owned subsidiary of Aditya Birla Money Mart, part of the Aditya Birla Group.
Hindu Business Line - ‎39 minutes ago‎
Anita Arjundas, MD & CEO, Mahindra Lifespace Developers Ltd and Sriram Mahadevan, Business Head, Happinest at a press conference while launching the second Happinest Project in Boisar suburb in Mumbai on Thursday.
Northern Voices Online - ‎2 hours ago‎
Mumbai, Oct 9 (IANS) India will receive the highest-ever inflow of foreign direct investment (FDI) in the current financial year, attracted by the policy reforms announced by the National Democratic Alliance (NDA) government, a senior official said here.
Business Today - ‎1 hour ago‎
Microlender Bandhan Financial Services plans to launch its full-fledged bank by early 2015 with 600 branches, its technology partner Fidelity Information Services (FIS) said on Thursday.
Economic Times - ‎2 hours ago‎
NEW DELHI: The S&P BSE Sensex galloped by as much as 442 points in trade on Thursday to snap its three-day fall, after the US Federal Reserve in its latest policy meet last night reassured investors that the central bank is in no hurry to raise interest rates.
Firstpost - ‎6 hours ago‎
As I write this piece, news has just come in that after receiving "many complaints" from traders on Flipkart's massive discount sale, the government has said that it will look into the concerns and take a call on whether more clarity is required on e-commerce ...
NDTV - ‎1 hour ago‎
New Delhi: State-owned financial institution IFCI on Thursday said it has sold its 1.64 per cent stake in Welspun Syntex Ltd for about Rs 1.6 crore.
Business Today - ‎1 hour ago‎
In a move to boost tourism, nine airports equipped with e-visa facilities will be operational for 13 countries including USA and South Korea and Prime Minister Narendra Modi is likely to launch it this month.
Times of India - ‎1 hour ago‎
NEW DELHI: Indian companies have mopped-up more than Rs 4,500 crore through issuing 'Rights' shares till August this year to meet working capital requirement.
Reuters - ‎3 hours ago‎
MUMBAI (Reuters) - The Reserve Bank of India (RBI) has finally made progress in taming the country's volatile money markets, displaying two traits it has been rarely associated with in the past: flexibility and a willingness to correct course mid-way.
Hindustan Times - ‎3 hours ago‎
Rising for the fourth straight session, the rupee on Thursday rose by 35 paise to end at over one-week high of 61.05 against the dollar on persistent selling of the US currency from banks and exporters tracking global cues amid a surge in local equities.
Hindu Business Line - ‎52 minutes ago‎
The Government may do away with a single definition of MSMEs and is considering defining these units on the basis of different verticals, a long-standing demand by a section of the industry.
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A passenger cruise service connecting Ennore in north Chennai with tourist destinations such as Mahabalipuram, Puducherry, Kanyakumari and Rameswaram is being conceptualised, according to MA Bhaskarachar, Chairman and Managing Director, ...
mydigitalfc.com - ‎25 minutes ago‎
IDFC Alternatives, a wholly owned subsidiary of IDFC, has said that its India Infrastructure Fund (IIF II) has raised around Rs 5,500 crore or $900 million from various global institutional investors.
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Sunil Kanoria, president elect, Assocham flanked by Shaktikanta Das, Revenue Secretary, Ministry of Finance (left) and K. V. Chowdary, Chairman, CBDT, during the 11th International Tax Conference, in New Delhi on Thursday.

I am proud of Sania and Mary Kom! I am proud of our women who broke the shackles of a domestic help and played a role to build up the human society in new format. Palash Biswas

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I am proud of Sania and Mary Kom!

I am proud of our women who broke the shackles of a domestic help and played a role to build up the human society in new format.



Palash Biswas


It is rather very very late that I dare to understand the opposite sex,our fair ladies in a patriarchal society of male dominance.I am sorry,very very sorry that I could not become a complete human being beyond my gender hitherto.The most elegant,intelligent,conscious young ladies of modern times have opened my eyes as I never knew them.


I personally do not know Priyanka Chopra,Sania Mirza or Mary Kom, and not even Irom Sharmila,the iron lady.But I may feel them within me.Priyanka is playing the roles for which Smita and Shabana had been our darling for years.I would have loved to direct Priyanka in a film if given an opportunity.


I am proud the daughter in law of Pakistan,our sweet girlie,the most beautiful sports icon of India Sania Mirza won Gold for India,not bothering a little bit about her volatile ranking which detached Liander Paes and Mahesh Bhupati from the national color.


At the end they proved to be selfish male,not so pure Indian citizen as Sania Mirza happens to be despite the shafron blitz against her Pak link under high voltage blind communal nationalism full of war cry.


No one dares to feel how difficult should be the ways of life to become a Sania Mirza or a Taslima Nasrin.


It is my pleasure that I know personally Taslima Nasrin and Mahashweta Devi for decades.


Taslima never changed her stance against the patriarchal society whatever might come to her way.


Mahashweta Di sacrificed so many things,including her family and relationship to become a woman committed to social realism and to continue her activism life long.


I know Manipur and I know the Himalayas,where the society remains more or less matriarchal and I feel the difference.


I live in Bengal who worship all kinds of Gods and semigods who happen to be elegant ladies and ironically,the land of Sati has not changed a little despite boasting progress.


The darkness of feudal middle period of history looms around bay of Bengal just like the HUD HUD cyclone.


Just see, the film Mary Kom was on screen,doing handsome business and the lady,Mary Kom, mother of two children ignored the glittering Bollywood glamour, skipped all kinds of promos, concentrated and won a Gold for the nation.


In this context, Priyanka Chopra deserved a little appreciation as she played Mary Kom beyond the big screen.


In fact,we never dare to feel a woman beyond bed.


In fact,We,the people,the citizens of shafron Tsunami, never tolerate a woman out of the kitchen.


However,the empowered women are coming out of kitchen, the patriarchal society may not tolerate this.


Fierce bull run is the culture of our male dominated nation,the emerging market reduced to a war economy, today and the jealous gender bias is translated in Rapist culture in a free market consumer society uprooted from agrarian productive nature and environment.


Personally,I must confess,I could not feel or understand my wife for decades because we never learnt to respect independent personality of a woman.She is as much as educated as I am. But I could not help her to assert her a status and it is my greatest failure.She underwent open heart surgery in 1995 and I could not help her to regain the wanted medical fitness most wanted.I could not afford.But it should not be an excuse.Perhaps ,I could not try a little bit more just because of gender bias psyche predominant prevailing all the way.


I have clarified to our children that no woman in our family would be imprisoned in the kitchen henceforth and being a part of the family means a definite social role and an active professional life.


I have been talking to the lovely girl whom my nephew likes most.I advised her to get her education optimum and prepare for future as she has not to reduce herself to the status of domestic help.


I would like rather a professional young lady as life partner of my son who could guide him and reconstruct him as a human being which I failed to become.


Very very late it is as I have a little better connectivity with women folk these days thanks to linkedin as I am better equipped to  read the heart and mind of the generation next women who seem to be as much concerned as I am.


I am sorry that I may not say the same thing about our boys.


I belong to a humble origin and had little opportunity to know women beyond my family and my village. But I enjoyed the most beloved support of my lady teachers right from the primary school to the university.


I am a bloody fool that I never could realize the difference.


I never could feel them within me in real time.


I would like to live the life afresh just because of the much needed vision free from gender bias.

It is late.

Very late.


But,I am proud of our women who broke the shackles of a domestic help and play a role to build up the human society in new format.


ওদের ভীত কণ্ঠস্বরই আমাকে বলে দিল, আমরা খুব দুঃসময়ের মধ্য দিয়ে যাচ্ছি। Nasreen Taslima তসলিমা নাসরিন

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ওদের ভীত কণ্ঠস্বরই আমাকে বলে দিল, আমরা খুব দুঃসময়ের মধ্য দিয়ে যাচ্ছি।
তসলিমা নাসরিন

আজ মত প্রকাশের অধিকার নিয়ে একটি কলাম লিখলাম। বাংলাদেশের মন্ত্রী লতিফ সিদ্দিকীর মত প্রকাশের বিরুদ্ধে যে সব লজ্জাজনক ঘটনা ঘটেছে, সেসবও উল্লেখ করছি। যে আগুন আমার লেখায় সাধারণত থাকে, তাকে এক পুকুর জলে নিভিয়ে, তবেই লেখাটি সম্পূর্ণ করেছি। লেখাটি বাংলাদেশের এবং পশ্চিমবঙ্গের বেশ ক'টি নামী বাংলা পত্রিকায় পাঠালাম। ওসব পত্রিকা থেকে অনেকদিন যাবৎ আমার লেখা চাওয়া হচ্ছিল। কিন্তু আজকের লেখাটি পাওয়ার পর সকলেই আমাকে বললো, 'অন্য লেখা দিন, এই লেখা ছাপাতে আমরা ভয় পাচ্ছি'। ভারতীয় উপমহাদেশে ইসলামী মৌলবাদ এখন কত শক্তিশালী তা আমাকে আর রাত্রিদিন গবেষণা করে জানতে হলো না। ওদের ভীত কণ্ঠস্বরই আমাকে বলে দিল, আমরা খুব দুঃসময়ের মধ্য দিয়ে যাচ্ছি।


फाॅरवर्ड प्रेस पर दिल्ली पुलिस का छापा मोदी सरकार का फासीवादी कदम-जेयूसीएस यह छापा लोकतंत्र के मूल अधिकार ’अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ पर खुला हमला है-जेयूसीएस

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फाॅरवर्ड प्रेस पर दिल्ली पुलिस का छापा मोदी सरकार का फासीवादी कदम-जेयूसीएस
यह छापा लोकतंत्र के मूल अधिकार 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता'पर खुला हमला
है-जेयूसीएस

फारवर्ड प्रेस पर छापा ब्राह्मणवादी ताकतों के इशारे पर-जेयूसीएस

लखनऊ, 10 अक्टूबर, 2014। जर्नलिस्टस् यूनियन फाॅर सिविल सोसाईटी
(जेयूसीएस) ने फॅारवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय पर दिल्ली की बसंतनगर
थाना पुलिस द्वारा 8 अक्टूबर को छापा मारने तथा उसके चार कर्मचारियों को
अवैध रूप से हिरासत में लिए जाने की घटना की कठोर निंदा की है। जेयूसीएस
ने दिल्ली पुलिस की इस कारवाई को फाॅसीवादी हिन्दुत्व के दबाव में आकर
उठाया गया कदम बताते हुए इसके लिए नरेन्द्र मोदी सरकार को जिम्मेदार
ठहराया है। इसके साथ ही फाॅरवर्ड प्रेस की मासिक पत्रिका के अक्टूबर-2014
के अंक 'बहुजन श्रमण परंपरा विशेषांक'को भी पुलिस द्वारा जब्त करने को
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए इसे मुल्क में फासीवाद के
आगमन की आहट कहा है।

फारवर्ड प्रेस के दिल्ली कार्यालय पर छापे का विरोध करते हुए जेयूसीएस के
नेता लक्ष्मण प्रसाद और अनिल कुमार यादव ने कहा कि देश का संविधान किसी
भी नागरिक को उसके न्यूनतम मूल अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की
गारंटी देता है। संघ के साहित्यों में बेहद शातिराना तरीके से मुसलमानों
के खिलाफ जहर उगला जाता है और वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर
छपते हैं। ठीक उसी तरह, दलित समाज को भी अपनी बात कहने का लोकतांत्रिक और
संविधान प्रदत्त हक है। उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस की यह कार्यवाही
मोदी सरकार के दबाव में तथा हिन्दुत्ववादी ताकतों के हाथों खेलते हुए
संविधान और देश के धर्म निरपेक्ष ताने बाने के खिलाफ जाकर की गई है।

इस अवसर पर जेयूसीएस के नेता तथा वरिष्ठ पत्रकार राघवेन्द्र प्रताप सिंह
ने कहा कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में 'ऑल इंडिया बैकवर्ड
स्टूडेंट्स फोरम'के तत्वाधान में 9 अक्टूबर, को महिषासुर शहादत दिवस के
आयोजन स्थल पर जिस तरह से एबीवीपी के गंुडों द्वारा मापीट और तोड़फोड़ की
गई, उससे यह साबित होता है कि अब संघ अपने बौद्धिक विरोधियों से तर्कों
से निपटने में एकदम असहाय हो चुका है। अब वह झुंझलाहट में सीधे मारपीट पर
उतर आया है। उन्होंने कहा कि भारत एक मिली जुली संस्कृतियों वाला देश रहा
है। हर संस्कृति की अपनी एक प्रतीकात्मक पहचान रही है तथा उसका समाज उस
संस्कृति की अस्मिता को अगर अपने स्तर पर लोकतांत्रिक तरीके से पूजना
चाहता है तो किसी को क्या दिक्कत हो सकती है? उन्होंने कहा कि यह घटना
नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा देश को फासीवाद के रास्ते पर धकेलने की खुली
कोशिश है और लोकतंत्र के हित में पूरी ताकत के साथ इसका प्रतिकार किया
जाएगा।

                                                                द्वारा जारी

राघवेंद्र प्रताप सिंह
                                                        प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य
                                      जर्नलिस्ट्स यूनियन फाॅर सिविल सोसाइटी,
                                                   लखनऊ उत्तर प्रदेश
                                                  संपर्क- 09696545861
______________________________________________________________
110/60, Harinath Banerjee Street, Naya Gaaon East, Latouche Road, Lucknow
Journalist's Union For Civil Society
            Email- jucsup@gmail.com

পরাধীন বহুজনঃ শরদিন্দু উদ্দীপন

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এ কোন গণতন্ত্র যেখানে ৮৫% শতাংশ মানুষের সংস্কৃতি রাষ্ট্রের কাছে গ্রহণযোগ্য নয়?

এ কোন গণতন্ত্র যেখানে মত প্রকাশের অধিকার থাকবে না?

এ কোন গণতন্ত্র যেখানে প্রকৃত ইতিহাসের চর্চা করা যাবে না?

এ কোন গণতন্ত্র যেখানে স্বাধীন ভাবে ধর্ম পালন করা যাবে না?


শরদিন্দু উদ্দীপন

অল ইন্ডিয়া স্টুডেন্টস ফোরামের নেতৃত্বে গত কয়েক বছরের মত এবারেও মহিষাসুর সাহদত দিবস পালন করার সিদ্ধান্ত নেওয়া হয় দিল্লীর জহরলাল নেহেরু বিশ্ববিদ্যালয়ে। সেই উপলক্ষে বিশ্ববিদ্যালয়ের কাবেরী  ছাত্রাবাসের সামনে চলে এই অনুষ্ঠান পালনের আয়োজন। ফরওয়ার্ড প্রেসের সম্পাদক আইবন কোস্টের সম্পাদনায় ঐতিহাসিক তথ্য সহ প্রকাশিত হয় মহিষাসুর সাহদাত(বহুজন) সংখ্যা। কিন্তু গত ৯ই অক্টোবরে ভোর ৪টের সময় দিল্লী পুলিশ ফরওয়ার্ড প্রেসের দপ্তরে হানা দিয়ে সমস্ত পত্রিকা বাজেয়াপ্ত করে এবং জহরলাল নেহেরু বিশ্ববিদ্যালয়ের সামনে বিশেষ পিকেটিং শুরু করে।  ফরওয়ার্ড প্রেসের গাড়ির চালক সহ দুইজন কর্মচারীকে গ্রেপ্তার করে পুলিশ। ফোরামের বিশিষ্ট নেতা জিতেন্দ্র যাদব ও ফরওয়ার্ড প্রেসের অন্যতম পরামর্শ দাতা প্রমোদ রঞ্জনকেও গ্রেপ্তার করার হুমকি দেওয়া হয়।

এই ঘটনায়  অল ইন্ডিয়া স্টুডেন্টস ফোরাম ও বহু বিশিষ্ট নিমন্ত্রিত অতিথিদের মধ্যে চাঞ্চল্য দেখা দেয়। অনুষ্ঠানের আয়োজন ঘিরে ঘোর অনিশ্চয়তা সৃষ্টি হয়। অসন্তোষ সৃষ্টি হয় ছাত্রছাত্রীদের মধ্যে। এই অবস্থায় স্বাভাবিক ভাবেই প্রশ্ন উঠতে শুরু করে যে ভারতে এ কোন গণতন্ত্র চলছে যেখানে ধর্মের নামে নরহত্যাকে প্রত্যক্ষ রাষ্ট্রীয় মর্যাদায় প্রোজেক্ট করা হচ্ছে? অশুভ শক্তি বিনাশের নামে ৮৫% মানুষের গণনায়কদের পুত্তলিকা জ্বালানো হচ্ছে? অন্যদিকে মূলনিবাসীরা তাদের সাংস্কৃতিক মর্যাদা, আত্ত নিয়ন্ত্রণের অধিকার, মত প্রকাশের অধিকার, স্বধম্ম পালনের ওধিকারের আয়োজন করলেই তার পিছনে পুলিশ লেলিয়ে দেওয়া হচ্ছে! হুলিগানদের নামিয়ে দিয়ে মঞ্চ ভেঙে দেওয়া হচ্ছে?

এ কোন গণতন্ত্র যেখানে ৮৫% শতাংশ মানুষের সংস্কৃতি রাষ্ট্রের কাছে গ্রহণযোগ্য নয়?

এ কোন গণতন্ত্র যেখানে মত প্রকাশের অধিকার থাকবে না?

এ কোন গণতন্ত্র যেখানে প্রকৃত ইতিহাসের চর্চা করা যাবে না?

এ কোন গণতন্ত্র যেখানে স্বাধীন ভাবে ধর্ম পালন করা যাবে না?

রাষ্ট্র পরিচালনার এই ঝোঁক থেকে কি মনে হয় না যে ভারত এখনো মনুবাদীদের কলোনি? মূলনিবাসীরা এখনো ১৫% মানুষের গোলাম? সাম- দাম- দন্ড- ভেদের নীতি এখনো সমানভাবে কার্যকর?

আশার কথা এই যে মনুবাদীদের ব্যপক ষড়যন্ত্র সত্ত্বেও নানা রাজ্য থেকে মহিষাসুর পরব উদযাপনের খবর আসছে। যথোচিত মর্যাদায় পালন হচ্ছে মহিষাসুর স্মরণ সভা ও "ধম্মবিজয়"র অনুষ্ঠান।    

      

আম্মা হারানো ভগ্ন হৃদয়ের জ্বালা জুড়াতে একটু স্বস্তির বাতাস মতুয়া তপন

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আম্মা হারানো ভগ্ন হৃদয়ের জ্বালা জুড়াতে একটু স্বস্তির বাতাস
মতুয়া তপন


আম্মা ব্যাঙ্গালোরের জেলে বন্দি হওয়ার পর প্রায় ১৫দিন কেটে গেছে, তামিলনাড়ুর নতুন মুখ্যমন্ত্রী হয়েছেন ও.পনিরসেলভম। আম্মার মুক্তির দাবীতে জনসাধারণের আক্রোশ, মোড়ে মোড়ে অনশন, ধর্না, বিক্ষোভ লেগেই আছে এই কয়টা দিন। 

এমনই এক রাজনৈক দোলাচালিতার মধ্যে আজ আরও ৭% মহার্ঘভাতা বৃদ্ধির ঘোষাণা করল তামিলনাড়ু সরকার। এই নিয়ে রাজ্যের সরকারি কর্মচারীদের মহার্ঘভাতা বেড়ে দাঁড়ালো ১০৭%।
দীপাবলির আগে মহার্ঘভাতা বৃদ্ধির এই খবর তামিলনাড়ু সরকারী কর্মচারীদের আম্মা হারানো ভগ্ন হৃদয়ের জ্বালা জুড়াতে একটু স্বস্তিরর বাতাস দেবে।

હાલમા ધો-5મા ભણતા વિદ્યાર્થીઓ માટે નવોદય વિદ્યાલયની પરીક્ષા જોગ.

Next: যুদ্ধের দামামা থামা নরাধাম, বুদ্ধম্ শরণম্! যুদ্ধবাজ অন্ধ জাতীয়তাবাদের মুখে ছাই,শান্তিতে যৌথ জয় ভারত-পাকের তবে কি গান্ধীকে বর্ণ বৈষম্যের অভিযোগে নোবেল না দেওয়ার প্রয়শ্চিত্ত করা হল এবার? মালালার সঙ্গে এবারের নোবেল শান্তি পুরস্কার পাচ্ছেন ভারতের কৈলাশ সত্যার্থী নুসরাত জাহান নদী ঠিকই লিখেছেনমেয়েরা যে জগতে শান্তি প্রতিষ্ঠা করতে পারে মালালা তার জীবন্ত উদাহরণ। পলাশ বিশ্বাস
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હાલમા ધો-5મા ભણતા વિદ્યાર્થીઓ માટે નવોદય વિદ્યાલયની પરીક્ષા જોગ.

 જવાહર નવોદય વિદ્યાલય એ કેન્દ્ર સરકારની છાત્રાવાસ સાથેની CBSE કૉર્સ ભણાવતી શાળા છે. આ શાળામા ધો-6થી ધો-12 સુધીના વર્ગો હોય છે. કેન્દ્ર સરકારે દરેક જિલ્લામા આવી એક શાળા શરૂ કરેલી છે. અહી રહેવા-જમવાનુ, ગણવેશ,પાથ્યપુસ્તકો,નોટો, ભણવાનુ તેમ જ બીજી તમામ સુવિધાઓ ફ્રી હોય છે. ધો-6થી તેમા પ્રવેશ આપવામા આવે છે. આ માટે એક પ્રવેશ પરીક્ષા લેવામા આવે છે. પ્રવેશ પરીક્ષા પાસ કરનારને જ પ્રવેશ મળે છે. આ માટે બાળક પાંચમા ધોરણમા હોય ત્યારે જ પ્રવેશ પરીક્ષામા બેસવા માટેનુ ફોર્મ ભરવાનુ હોય છે. ચાલુ વરસ માટેના પ્રવેશ ફોર્મ બહાર પડી ગયા છે. ફોર્મ ભરવાની અંતિમ તારીખ 30-10-2014  છે. પ્રવેશ પરીક્ષા માટેના ફોર્મ સહિતની માહિતી પુસ્તિકા દરેક તાલુકા પંચાયતમા આવેલ શિક્ષણ વિભાગની તાલુકા કેળવણી નિરીક્ષકના કાર્યાલયમાથી વિના મૂલ્યે મળી શકશે. પ્રવેશ પરીક્ષા જે તે તાલુકા મથકે 7 ફેબ્રુઆરી 2015ના રોજ લેવામા આવશે. પરીક્ષા પાસ કરનારને જૂન 2015થી ધોરણ 6થી પ્રવેશ આપવામા આવશે. 
  મિત્રો, આ પોસ્ટ આપને ગમી હોય તો આપ તેમજ આપના મિત્રમંડળ,સગાસમ્બન્ધીઓને જણાવશો. તેમ જ આ પોસ્ટ share કરશો તેવી નમ્ર વિનંતિ છે. વધુ માહિતિ માટે www.navodaya.nic.in તેમ જ પ્રવેશ ફોર્મ ડાઉનલોડ કરવા માટે www.nvsropune.gov.in ઉપર તપાસ કરશો. 

যুদ্ধের দামামা থামা নরাধাম, বুদ্ধম্ শরণম্! যুদ্ধবাজ অন্ধ জাতীয়তাবাদের মুখে ছাই,শান্তিতে যৌথ জয় ভারত-পাকের তবে কি গান্ধীকে বর্ণ বৈষম্যের অভিযোগে নোবেল না দেওয়ার প্রয়শ্চিত্ত করা হল এবার? মালালার সঙ্গে এবারের নোবেল শান্তি পুরস্কার পাচ্ছেন ভারতের কৈলাশ সত্যার্থী নুসরাত জাহান নদী ঠিকই লিখেছেনমেয়েরা যে জগতে শান্তি প্রতিষ্ঠা করতে পারে মালালা তার জীবন্ত উদাহরণ। পলাশ বিশ্বাস

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যুদ্ধের দামামা থামা নরাধাম,

বুদ্ধম্ শরণম্!

যুদ্ধবাজ অন্ধ জাতীয়তাবাদের মুখে ছাই,শান্তিতে যৌথ জয় ভারত-পাকের


তবে কি গান্ধীকে বর্ণ বৈষম্যের অভিযোগে নোবেল না দেওয়ার প্রয়শ্চিত্ত করা হল এবার?

মালালার সঙ্গে এবারের নোবেল শান্তি পুরস্কার পাচ্ছেন ভারতের কৈলাশ সত্যার্থী


নুসরাত জাহান নদীঠিকই লিখেছেনমেয়েরা যে জগতে শান্তি প্রতিষ্ঠা করতে পারে মালালা তার জীবন্ত উদাহরণ।

পলাশ বিশ্বাস

যুদ্ধবাজ অন্ধ জাতীয়তাবাদের মুখে ছাই,শান্তিতে যৌথ জয় ভারত-পাকের

শান্তিতে যৌথ জয় ভারত-পাকের


যুদ্ধের দামামা থামা নরাধাম

মালালার সঙ্গে এবারের নোবেল শান্তি পুরস্কার পাচ্ছেন ভারতের কৈলাশ সত্যার্থী

যৌথভাবে নোবেল শান্তি পুরস্কার পেল ভারত-পাকিস্তান। ভারতীয় সমাজকর্মী কৈলাশ সত্যার্থী পাচ্ছেন এ বছরের নোবেল শান্তি পুরস্কার।  শিশু অধিকার রক্ষা নিয়ে দীর্ঘদিন ধরেই কাজ করে চলেছেন দিল্লির কৈলাশ সত্যার্থী। নিজের সংগঠন 'বচপন বাঁচাও আন্দোলন' নিয়ে ১৯৯০  সাল থেকে শিশুশ্রমের বিরুদ্ধে সক্রিয় কৈলাশ। এখনও পর্যন্ত প্রায় ৮০ হাজার শিশু শ্রমিককে পুনর্বাসিত করেছেন তিনি।


তবে কি গান্ধীকে বর্ণ বৈষম্যের অভিযোগে নোবেল না দেওয়ার প্রয়শ্চিত্ত করা হল এবার?



নুসরাত জাহান নদীঠিকই লিখেছেনমেয়েরা যে জগতে শান্তি প্রতিষ্ঠা করতে পারে মালালা তার জীবন্ত উদাহরণ।


নোবেল শান্তি পুরস্কার এবার ভারতে। এবারের নোবেল শান্তি পুরস্কার পাচ্ছেন কৈলাস সত্যার্থী। শিশু ও কিশোরদের অধিকার রক্ষা ও শিশুদের শিক্ষার অধিকারের জন্য তাঁর কাজের স্বীকৃতি স্বরূপ এই পুরস্কার। ভারতের কৈলাস সত্যার্থীর পাশাপাশি পাকিস্তানের মালালা ইউসুফজাইকেও এবারের নোবেল শান্তি পুরস্কারের জন্য বেছে নেওয়া হয়েছে।

অন্যদিকে,বিভিন্ন সূত্রের খবর,ত রবিবার থেকে শুরু হয়েছে। এখনও কাটেনি আতঙ্কের প্রহর। বারেবারেই সীমান্তের ওপার থেকে ধেয়ে আসছে গোলাগুলি। আতঙ্কে এলাকা ছেড়ে পালিয়েছেন বহু মানুষ। যারা রয়ে গিয়েছেন, তারাও বাড়ির বাইরে বেরনোর সাহস করছেন না। আর ছেলেমেয়েদের স্কুলে পাঠানো? পুঞ্ছ, রাজৌড়ির বাসিন্দারা দুঃস্বপ্নেও তা ভাবতে পারেন না।

গোলাগুলি আর ভারী বুটের আওয়াজ শুনে ওরা অভ্যস্ত। কিন্তু, সীমান্তের ওপার থেকে লাগাতার হামলা? বহুদিন হয়ে গিয়েছে এরকম পরিস্থিতির মুখোমুখি হতে হয়নি ওদের। তাই আতঙ্কে কার্যত সিঁটিয়ে গিয়েছেন পুঞ্ছ, রাজৌড়ির বাসিন্দারা। ঘর ছেড়ে অনেকেই পালিয়েছেন। যারা এখনও ভিটেমাটি আঁকড়ে পড়ে রয়েছেন, বাড়ি থেকে খুব একটা বেরনোর সাহস করতে পারছেন না। আর ছেলেমেয়েদের স্কুল? সেই পাট সেই সোমবার থেকেই পুরোপুরি বন্ধ। একসময় এই স্কুল চত্বরেই হৈ হৈ করত পড়ুয়ার দল। এখন এক্কেবারে শুনশান। কোনও কোনও ছাত্র অবশ্য সাহস করে উঁকি দিয়ে যাচ্ছে। যদি খোলে স্কুলের দরজা।



আমি কৈলাস সত্যার্থী

আমি কৈলাস সত্যার্থী

নরওয়ের নোবেল কমিটির চেয়ারম্যান থরবিয়ন জাগল্যান্ড শুক্রবার এক সংবাদ সম্মেলনে চলতি বছরের নোবেল শান্তি পুরস্কারের জন্য যৌথভাবে তাদের নাম ঘোষণা করেন।

১৭ বছর বয়সী মালালা ইতিহাসের সর্বকনিষ্ঠ নোবেলজয়ী, যিনি মেয়েদের শিক্ষা বন্ধ করে দেয়ার প্রতিবাদ করে তালেবান হামলার মুখে পড়েন এবং গুলিবিদ্ধ হয়েও বেঁচে ফিরে এসে নারী শিক্ষার জন্যই কাজ করে চলেছেন।

আর ৬০ বছর বয়সী কৈলাস গত দুই দশকেরও বেশি সময় ধরে ভারতে শিশু শ্রমের বিরুদ্ধে লড়াই চালিয়ে আসছেন, গড়ে তুলেছেন 'বাচপান বাঁচাও'আন্দোলন।

শান্তিতে নোবেল জয়ী এই দুইজন এমন দুটি প্রতিবেশী দেশের প্রতিনিধি, যে দেশগুলো ১৯৪৭ সালে স্বাধীন হওয়ার পর থেকে চারবার যুদ্ধে জড়িয়েছে; কাশ্মির সীমান্তে দুদিন আগেও দুই দেশের সীমান্তরক্ষীদের মধ্যে গোলাগুলি হয়েছে।   

নোবেল কমিটির চেয়ারম্যান বলেন, "একজন হিন্দু, অন্যজন মুসলমান; একদিকে একজন ভারতীয়, অন্যদিকে একজন পাকিস্তানি; একই লক্ষ্য নিয়ে, শিক্ষার অধিকারের দাবিতে এবং উগ্রবাদের বিরুদ্ধে সংগ্রাম চালিয়ে যাচ্ছেন- যা নোবেল কমিটির কাছে গুরুত্বপূর্ণ বলে মনে হয়েছে।"

কৈলাস সত্যার্থী তার নোবেল পুরস্কারকে উৎসর্গ করেছেন সেই শিশুদের জন্য, দারিদ্র্যের কারণে যাদের দাসত্বের জীবন কাটাতে হচ্ছে।  

নোবেল জয়ের খবরে সিএনএন-আইবিএনকে তাৎক্ষণিক প্রতিক্রিয়ায় তিনি বলেন, "যে শিশুরা আজো দাসত্বের জীবন কাটাচ্ছে, শ্রম দিতে বাধ্য হচ্ছে, অথবা পাচারের শিকার হচ্ছে-এই সম্মান তাদের সবার জন্য।"

নোবেল কমিটির বিবৃতিতে বলা হয়, "শিশুদের অবশ্যই স্কুলে যাওয়ার সুযোগ দিতে হবে এবং অবশ্যই তাদের শ্রমিক হিসাবে ব্যবহার করা যাবে না। বিশ্বের দরিদ্র দেশগুলোর মোট জনগোষ্ঠীর ৬০ শতাংশের বয়স ২৫ বছরের কম। বিশ্বের শান্তিপূর্ণ উন্নয়নের স্বার্থেই শিশু ও তরুণদের অধিকারকে সম্মান দেখাতে হবে।"

কৈলাস সম্পর্কে নোবেল কমিটির মূল্যায়ন, তিনি গান্ধীর আদর্শে উদ্বুদ্ধ হয়ে সম্পূর্ণ শান্তিপূর্ণাভাবে শিশুশ্রম বন্ধের দাবিতে এবং আর্থিক লাভের জন্য শিশুদের ব্যবহারের বিরুদ্ধে প্রতিবাদ ও আন্দোলন চালিয়ে আসছেন অসম সাহসের সঙ্গে।

"শিশু অধিকার নিয়ে বিভিন্ন আন্তর্জাতিক কনভেনশনেও তার গুরুত্বপূর্ণ অবদান রয়েছে।"

মালালা সম্পর্কে নোবেল কমিটি লিখেছে, "বয়সে তরুণ হলেও গত কয়েক বছর ধরে তিনি নারী শিক্ষার অধিকার আদায়ে লড়াই চালিয়ে আসছেন। শিশু ও তরুণদের সামনে তিনি এই নজির গড়েছেন, যে নিজেদের অবস্থার উন্নয়নের চেষ্টায় তারাও অবদান রাখতে পারে। আর এই লড়াই তিনি চালিয়ে যাচ্ছেন সবচেয়ে বেশি বিপদসঙ্কুল পরিস্থিতির মধ্যে থেকে।"

এ বছর নোবেল শান্তি পুরস্কারের মনোনয়নে মোট ২৭৮ জনের নাম আসে, যাদের মধ্যে যুক্তরাষ্ট্রের গোপন নজরদারির খবর ফাঁস করে দেওয়া এডওয়ার্ড স্নোডেন, পোপ ফ্রান্সিস, জাতিসংঘ মহাসচিব বান কি মুন, কঙ্গোর চিকিৎসক ডেনিস মাকোয়েজ ও রাশিয়ার সংবাদপত্র নভোয়া গেজেটার নামও ছিল।

রাসায়নিক অস্ত্রমুক্ত বিশ্ব গড়ার চেষ্টার স্বীকৃতি হিসাবে গত বছর নোবেল শান্তি পুরস্কার পায় আন্তর্জাতিক সংস্থা 'অর্গানাইজেশন ফর দ্য প্রোহিবিশন অফ কেমিক্যাল উইপনস (ওপিসিডব্লিউ)। গতবারের মনোনয়নের তালিকাতেও মালালার নাম ছিল।

গত বছর নোবেল না পেলেও জাতিসংঘ মানবাধিকার পুরস্কার, ইউরোপীয় ইউনিয়নের 'শাখারভ'মানবাধিকার পুরস্কারসহ বেশ কয়েকটি সম্মাননা পান এই পাকিস্তানি কিশোরী।

পুরস্কার বাবদ একটি সোনার মেডেল ও ৮০ লাখ সুইডিশ ক্রোনার (১২ লাখ ৫০ হাজার ডলার) পাবেন মালালা ও কৈলাস। আগামী ১০ ডিসেম্বর অসলোতে আনুষ্ঠানিকভাবে তাদের হাতে তুলে দেওয়া হবে এ পুরস্কার।

মালালা ইউসুফজাই হলেন পাকিস্তানে জন্ম নেয়া তৃতীয় নোবেলজয়ী এবং এ পুরস্কার পাওয়া ৪৭তম নারী। আর কৈলাসের সত্যার্থীর আগে মোট সাতজন ভারতীয় নোবেল পেয়েছেন।

মালালা ইউসুফজাই

পাকিস্তানের সোয়াত উপত্যকার মেয়ে মালালা ইউসুফজাইয়ের জন্ম ১৯৯৭ সালের ১২ জুলাই।

নারী শিক্ষার বিরোধী তালেবান জঙ্গিদের এলাকায় বসে মেয়েদের স্কুলে যাওয়ার পক্ষে বিবিসি ব্লগে লেখালেখি করে তিনি যখন পশ্চিমা বিশ্বের নজর কাড়েন, তখন তার বয়স মাত্র ১১। কিন্তু নারী শিক্ষার পক্ষে কথা বলায় তাকে পড়তে হয় প্রাণনাশের হুমকির মুখে।

২০১২ সালের ৯ অক্টোবর সোয়াত উপত্যকার মিনগোরাত এলাকায় ১৪ বছর বয়সী মালালা ও তার দুই বান্ধবীকে স্কুলের সামনেই গুলি করে তালেবান জঙ্গিরা।

পাকিস্তানে তার মাথায় অস্ত্রোপচার করে বুলেট সরিয়ে নেওয়া সম্ভব হলেও পরে যুক্তরাজ্যের কুইন এলিজাবেথ হাসপাতালে তাকে উন্নত চিকিৎসা দেওয়া হয়।

ওই ঘটনা বিশ্বেজুড়ে আলোড়ন তোলে, মালালর স্বপ্ন সফল করতে ২০১২ সালের ১০ নভেম্বরকে 'মালালা দিবস'ঘোষণা করে জাতিসংঘ।

তাৎক্ষণিকভাবে পাকিস্তানে ফিরতে না পারলেও মালালা যুক্তরাজ্যে থেকে তার লড়াই চালিয়ে যেতে থাকেন। পাকিস্তান, নাইজেরিয়া, জর্ডান, সিরিয়া ও কেনিয়ার মেয়েদের শিক্ষার সহায়তায় গঠন করেন মালালা ফান্ড।

গত বছর জাতিসংঘ সাধারণ অধিবেশনে অংশ নিয়ে বিশ্ব নেতৃবৃন্দের উপস্থিতিতে এক বক্তৃতায় মালালা বলেন, "চরমপন্থিরা বই আর কলমকে ভয় পায়।তারা নারীদেরকে ভয় পায়।… তালেবানরা ভেবেছিল বুলেট দিয়ে আমাদের স্তব্ধ করে দেবে। কিন্তু তারা ব্যর্থ হয়েছে।"

প্রতিটি শিশুর স্কুলে যাওয়া নিশ্চিত করতে বিশ্ব নেতাদের জরুরি পদক্ষেপ নেয়ার আহ্বান জানান তিনি।

মালালা বলেন, "আসুন আমরা খাতা কলম হাতে তুলে নেই। এগুলোই আমাদের সবচেয়ে বড় অস্ত্র। সবার আগে শিক্ষা, শিক্ষাই সমস্যার একমাত্র সমাধান। একজন শিশু, একজন শিক্ষক, একটি কলম ও বই গোটা বিশ্বকে পরিবর্তন করে দিতে পারে।"

কৈলাস সত্যার্থী

সাম্প্রতিক এক নিবন্ধে কৈলাস সত্যার্থী লিখেছেন, কেবল বাবা-মায়ের দারিদ্র্য, নিরক্ষরতা, অজ্ঞানতা বা শিক্ষা ব্যবস্থার অনগ্রসরতার কারণেই যে শিশুরা শ্রম দিতে বাধ্য হচ্ছে- তা নয়। আসল বিষয় হচ্ছে, বহু ব্যবসায়ী সস্তা শ্রম খাটিয়ে বেশি লাভের জন্য শিশুদের শ্রমিক হিসাবে ব্যবহার করছে।

ভারতে যারা শিশু অধিকার আন্দোলনের নেতৃত্ব দিচ্ছেন, ১৯৫৪ সালের ১১ জানুয়ারি মধ্যপ্রদেশে জন্ম নেওয়া কৈলাস তাদেরই একজন।

১৯৯০ এর দশক থেকে শিশু অধিকার প্র্রতিষ্ঠার আন্দোলনে ব্যাপকভাবে সক্রিয় হলেও কৈলাস সত্যার্থীকে বিষয়টি প্রথম নাড়া দেয় মাত্র ৬ বছর বয়সে।

স্কুলে আসা-যাওয়ার পথে প্রতিদিনই তার চেয়েও কম বয়সী এক শিশুকে দিনি দেখতেন বাবার সঙ্গে জুতা পলিশ করতে। বিষয়টি তাকে এতোটাই নাড়া দিয়েছিল যে, প্রতিদিনই তিনি লজ্জিত হতেন।

সেই তাড়নায় ১১ বছর বয়স থেকেই শুরু হয় কৈলাসের চেষ্টা। দরিদ্র পরিবারের সন্তানদের বই বা অর্থ দিয়ে সহায়তা করতে সমবয়সীদেরও উৎসাহ যোগাতে থাকেন ওই বয়সেই।

১৯৮০ এর দশকে ইলেক্ট্রিক্যাল ইঞ্জিনিয়ারের চাকরি ছেড়ে পুরোদমে শিশু অধিকারের আন্দোলনে সম্পৃক্ত হন কৈলাস। গড়ে তোলেন 'বাচপান বাঁচাও'আন্দোলন, যে সংগঠনটি সারা ভারতে এ পর্যন্ত ৮০ হাজারেরও বেশি শিশুকে শ্রমের দাসত্ব থেকে মুক্ত করেছে। এসব শিশুর পুনর্বাসন আর শিক্ষাও নিশ্চিত করেছে 'বাচপান বাঁচাও'।

শুধু ভারত নয়, কৈলাস বিশ্বব্যাপী নানা সামাজিক কর্মকাণ্ডেও নিজেকে জড়িয়েছেন। গ্লোবাল মার্চ অ্যাগেইনস্ট চাইল্ড লেবার, ইন্টারন্যাশনাল সেন্টার অন চাইল্ড লেবার অ্যান্ড এডুকেশনের পাশাপাশি গ্লোবাল ক্যাম্পেইন ফর এডুকেশনের সঙ্গেও কাজ করে যাচ্ছেন।

কম্বল ও কার্পেট প্রস্তুতকারক প্রতিষ্ঠানগুলোতে শিশুদের শ্রমিক হিসাবে ব্যবহার করা হচ্ছে কি-না তা পর্যবেক্ষণ করে সনদ দেওয়ার জন্য কৈলাস গড়ে তোলেন 'রাগমার্ক'নামে একটি স্বেচ্ছাসেবী সংগঠন, যা বর্তমানে 'গুডউয়েভ নামে পরিচিত।"

তার এই সংগঠন ১৯৮০ এবং ৯০-এর দশকে ইউরোপ ও যুক্তরাষ্ট্রে কারখানায় শিশুশ্রম ব্যবহারের বিষয়ে ক্রেতাদের মধ্যে সচেতনতা বাড়াতে প্রচার চালায়। এর ফলে বিশ্বজুড়ে কার্পেট প্রস্তুত ও সরবরাহে বড় ধরনের প্রভাব পড়ে।

শিশুশ্রমকে একটি মানবাধিকার 'ইস্যু'হিসাবে প্রতিষ্ঠা করার পাশাপাশি একে কল্যাণ ও সেবামূলক বিষয় হিসেবে তুলে ধরতেও সক্ষম হন কৈলাস।

তিনি দেখিয়েছেন, দারিদ্র, কর্মহীনতা, অশিক্ষা, জনসংখ্যা বৃদ্ধি এবং সামাজিক সমস্যা সমাজে শিশুশ্রম বাড়িয়ে দেয়। শিশুশ্রমের বিরুদ্ধে আন্দোলনকে 'সবার জন্য শিক্ষা'আন্দোলনের সঙ্গে একীভূত করতেও ভূমিকা রাখেন এই ভারতীয়।

শিশুশ্রম রোধ এবং শিশুদের শিক্ষা নিশ্চিত করতে জাতীয় ও আন্তর্জাতিক পর্যায়ে বিভিন্ন আইন প্রণয়ন, চুক্তি স্বাক্ষরের পেছনেও  তার অবদান রয়েছে।

এসব কাজের স্বীকৃতি হিসেবে যুক্তরাষ্ট্রের 'ডিফেন্ডার অফ ডেমোক্রেসি অ্যাওয়ার্ড (২০০৯), স্পেনের আলফনসো কোমিন ইন্টারন্যাশনাল অ্যাওয়ার্ড (২০০৮), মেডেল অফ দ্য ইটালিয়ান সিনেটসহ (২০০৭) বিভিন্ন পুরস্কার আর খেতাবে ভূষিত হয়েছেন কৈলাস সত্যার্থী।


বর্ণ বিদ্বেষ অভিযোগে নোবেল বন্চিত গান্ধী

বিতর্ক।। নোবেল পুরস্কার বনাম গান্ধী ।।

তরুণ কান্তি ঠাকুর


ভারতের ম-হা-ন নেতা মোহন দাস করমচন্দ গান্ধী, শান্তির জলন্ত প্রতিক ,সারা বিশ্বকে শান্তির পাঠ পড়ানেবালা অথচ শান্তির জন্য নোবেল পুরস্কার পেলেন না । এই রকম বৈষম্য মূলক ও অন্যায় কেন হল গান্ধীজী প্রতি।আপনার বিচারে কি সেই কারন যার জন্য নোবেল থেকে বঞ্চিত হয়েছেন তিনি ???


গতকাল উপরের প্রশ্ন গুলো করেছিলাম।কিন্তু কেউই উত্তর দিতে পারেননি।কেন জানিনা।তাই আজ গান্ধীজী কেন শান্তির জন্য নোবেল পুরস্কার পেলেন না সেই সত্য উদ্ঘাটন করছি।


গান্ধীজী ইংল্যান্ডে আইনের পড়াশোনা শেষ করার পর প্রত্যক্ষ ভাবে আদালতে দাঁড়িয়ে ওকালতি করার সাহস পাচ্ছিলেন না।শেষ পর্যন্ত সাহস সঞ্চয় করে আদালতে গিয়ে দাঁড়ালেন কিন্তু প্রথম দিনই আদালতের মধ্যে অজ্ঞান হয়ে পড়ে যান।পরে এরকম আরো দুই বার হয়েছিল।

থাক সে কথা, আসল কথায় ফিরে আসি।


গান্ধী 1893 সালে দক্ষিণ আফ্রিকার ডরবন শহরে পৌছান ,উদ্দেশ্য সেখানে ওকালতি ব্যাবসা করবেন।সেখানে গিয়ে তিনি একটা জিনিস লক্ষ্য করলেন যে সেখানকার পোস্ট অফিসের দুটো দরওয়াজা।একটা দরওয়াজা শাসক জাতি অর্থাৎ গোরা ইংরেজদের জন্য এবং অপরটি আফ্রিকান কালো মানুষ ও ভাভারতীয়দের জন্য।অপরাপর ভারতীয়রা কালো আফ্রিকান দের সাথে দরওয়াজা ভাগাভাগি করতে কোন সমস্যা হচ্ছিল না, কিন্তু গান্ধীজীর ভিতরকার জাত্যাভিমান জেগে উঠলো, ইংরেজদের মত এত গোরা না হলেও নিগ্রোদের মত এত কালোও তো নয়।তাই গান্ধীজী ঠিক করলেন তিনি গোরা ইংরেজদের দরওয়াজা দিয়েই পোস্ট অফিসে যাতায়াত করবেন।কিন্তু সমস্যা হল যখনই দরওয়াজা পর্যন্ত পৌছালেন ইংরেজ দারওয়ান বাধা দিল।বলল তোমার জন্য এটা নয়, তুমি কালো নিগ্রোদের সঙ্গে ঐ দরওয়াজা দিয়ে যাবে।

ব্যাস আর যায় কোথায়? শুরু হল আন্দোলন। অস্বীকার করলেন Blak আফ্রিকানদের সাথে দরওয়াজা ভাগাভাগি করতে।আফ্রিকান কালো মানুষের সাথে একই দরওয়াজা দিয়ে তিনি যাতায়াত করবেন বলে ঠিক করলেন। শুরু করেন জাতিয় ভেদভাব।শুরু করলেন বর্ণ ভেদ বা রং ভেদ।

ফলশ্রুতিতে 1896 সালে পোস্ট অফিসের দুটো দরওয়াজার জায়গায় তিনটি দরওয়াজা করা হয়।

আর এই কারণেই নোবেল কমিটি গান্ধীজী কে শান্তির জন্য নোবেল পুরস্কার অযোগ্য সাব্যস্ত করেন।

তাছাড়া নোবেল কমিটি ও ব্রিটিশ সরকার গান্ধীজী কে পৃথিবীর সব থেকে হিংসক ব্যাক্তি মনে করতেন।কারন গান্ধীজী Do or die ; করেঙ্গে এয়া মরেঙ্গে নারা দিয়ে শান্তির সমস্ত সিমা পার করে দিয়েছিলেন ।ব্রিটিশ সরকার বুঝতে পেরেছিল শুধু ভারতের নয় ইংল্যান্ডের থেকে সমস্ত পুলিশ এবং সেনা বাহিনী আনলেও এতবড় হিংসক আন্দোলন থামানো সম্ভব নয়।উপরন্তু দ্বিতীয় বিশ্বযুদ্ধের কারনে ব্রিটিশ সরকার ব্যাতিব্যস্ত হয়েছিল ।সেই মূহুর্তে গান্ধীর হিংসক আন্দোলনে ইংরেজ সরকার হতবল হয়ে পড়ে।


Gandhi Creates Racial Segregation in South Africa লিখে Google search করলে আরো বিস্তারিত জানতে পারবেন।



देश का संघीय ढांचा टूटने के लिए केंद्र से ज्यादा जिम्मेदार राज्यों के आत्मघाती क्षत्रप। एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

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देश का संघीय ढांचा टूटने के लिए केंद्र से ज्यादा जिम्मेदार राज्यों के आत्मघाती क्षत्रप।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

यह बिल्कुल सही है कि भारतीय संविधान के मुताबिक बहुल संस्कृति के देश में संघीय ढांचा बेहद जरुरी है।संसदीय लोकतंत्र के लिए ही नहीं,अमेरिका जैसे सर्वशक्तिमान राष्ट्रपति के देश में राज्यों के मामलों में केंद्रीय सरकार के हस्तक्षेप की परंपरा नहीं है।


समझने वाली बात तो यह है कि भारत भारत के संविधान में राज्यों और केंद्र के अधिकार क्षेत्र स्पष्ट तौर पर परिभाषित होने के बावजूद केंद्र में सत्ता जो लगातार केंद्रीकृत होती रही है,उसके लिए क्या सिर्फ कंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है या राजनीतिक समीकरण साधने की गरज से राज्यों में राजकाज चलाने वाले क्षत्रपों का स्वार्थ और उनकी अयोग्यता भी इसके लिए जिम्मेदार है।


केंद्र सरकार को बिना शर्त समर्थन देकर राज्यों के जो क्षत्रप लगातार केंद्र को सत्ता केंद्र बानते रहे हैं,उनका अपराध कम नहीं है।


बल्कि सच तो यही है कि देश का संघीय ढांचा टूटने के लिए केंद्र से ज्यादा जिम्मेदार राज्यों के आत्मघाती क्षत्रप ही हैं।


ऐसा पहलीबार नहीं हो रहा है कि राज्यों की कानून व्यवस्था के मामलों में केद्र सरकार हस्तक्षेप कर रही है।


इससे पहले नेहरु इंदिरा जमाने से यह रघुकुलरीति चला आयी है कि संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए केंद्र स्वार्थी क्षत्रपों के कंधों पर बंदूक रखकर राज्यों में कामकाज चलाती रही है।


जिन क्षत्रपों ने बगावत कर दी,उनकी सरकार गिराने की परंपरा भी केरल में देश की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट राज्य सरकार नंबूदरीपाद सरकार को बर्खास्त कर नेहरु ने ही डाली है।


फिर केंद्र में सत्ता परिवर्तन होने के साथ साथ क्षत्रपों के पाला बदल के साथ राज्यों में सत्ता परिवर्तन का अनंत सिलसिला भी याद किया जा सका है।


किसी क्षत्रप के अपनी गद्दी बचाने के लिए,या आपराधिक मामले में अपनी खाल बचाने के लिए राज्य और जनता के अधिकारों को केंद्र को समर्पित करने के उदाहरण बेहद कम भी नहीं हैं।हर राज्य का इतिहास कमोबेश यही है।


गौरतब है कि बंगाल,केरल और त्रिपुरा में वाम शासन के दौरान कामरेड ज्योति बसु और बाद में कामरेड बुद्धदेव भट्टाचार्य की अगुवाई में राज्यों के हक हकूक के लिए आवाज उठती रही है।केरल और बंगाल में वाम अवसान के बाद त्रिपुरा की सीमाबद्ध ताकत के बूते माणिक सरकार के लिए वह करिश्मा दोहराते रहना कतई संभव नहीं है।


तमिलनाडु,असम,महाराष्ट्र,उत्तरप्रदेश,बंगाल,पंजाब,असम जैसे राज्यों में सत्ता के लिए जो मारामारी है और केंद्र की सत्ता के सात जो तालमेल का सिलसिला जारी है,उसमें संघीय ढांचा को तो टूटना ही था।


सरकारिया आयोग तो बना लेकिन संघीय ढांचे के संरक्षणके लिए क्षत्रपों की गोलबंदी कभी हो नहीं सकी।नतीजतन केंद्र सरकार निरंतर निरंकुश होती जा रही है।


मुक्त बाजार के पीपीपी माडल के मुताबिक देशी विदेशी पूंजी की जो लूटखसोट है और जो दश बेचो अभियान सर्वव्यापी है और जिस तरह से रोजाना केंद्र और राज्य सरकारों की मिलीभगत से देश के आइन कायदे बदल दिये जा रहे हैं,जिस तरह नागरिक और मानवाधिकारों का हनन हो रहा है,जो जल जंगल जमीन से बेदखली की निरंतरता है,उसके पद्म प्रलय मध्ये देश के संघीय ढांचा बच पाना असंभव है।


देश का संघीय ढांचा बरकरार रखने के लिए भारतीय संविधान और संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक केंद्र और राज्यसरकारों के राजकाज होने चाहिए,जो दरअसल विदेशी हितों के लिए कारपोरेट लाबिइंग मार्फत चल रहे हैं।


ऐसे में संघीय ढांच का रोना अजब भी है और गजब भी है।

बड़ी निराली है यह प्रेमकथा।बेहद बेढब है जानी दुश्मनी।


बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राष्ट्रीय नेता हैं और वे भी जयललिता के साथ पिछले लोकसभा चुनावों में नरेंद्र भाई मोदी के मुकाबले प्रधानमंत्रित्व की दौड़ में थीं।


अब सुश्री जयललिता जेल में हैं तो ममता बनर्जी कठघरे में हैं।


कानून व्यवस्था को पार्टीबद्ध सत्ता हित के राजकाज में तब्दील करके अपने लिए गड्ढा उन्होंने ही खोदी है।


झैसा कि उनका आरोप है कि तमाम घोटालों के लिए पूरववर्ती वाम शासन जिम्मेदार है और बंगाल मे कथित आतंकवादी नेटवर्क के लिए भी वाम हरमाद ही जिम्मेदार हैं,तो उन्होंने इस सिलसिले में अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की और अपने दागियों को,सत्ता से जुड़े अपराधी तबके को बचाने के लिए कानून के राज में व्यवधान क्यों खडे़ किये कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट क आदशानुसार छोटे बड़े मामलों की सीबीआई जांच होने लगी है। सवाल यह भी है कि पुलिस पूरी तरह पार्टीबद्ध,प्रशासन पूरीतरह पार्टीबद्ध,राज्य की कानून व्यवस्था से आम लोगों का भरोसा उठ गया,ऐसी नौबत क्यों आने दी।


यह मौका तो दीदी ने ही बना दिया।बंगाल में आतंकवादी नटवर्किंग के भंडाफोड़ के बाद शारदा अनुभव के बावजूद केंद्र सरकार हाथ में हाथ रखे तमाशा देखती रहेगी,खासकर तब जबकि बंगाल में संघ परिवार अगले विधानसभा चुनावों में उनके तख्ता पलट के लिए पूरी तैयारी में है,ऐसी समझ बंगाल की मुख्यमंत्री की न हो तो अब संघीय ढाचे का रोना रोकर कुछ होना जाना नहीं है।


केंद्र विरोधी मौकापरस्त जिहाद से भावनाओं को भड़काया जा सकता है,लेकिन इससे कुछ हासिल हो पायेगा,ऐसी कोई उम्मीद नहीं है।


गौरतलब है कि महिषासुर मर्दिनी देवी दुर्गा को चक्षुदान करने के बाद राज्य सरकार दुर्गोत्सव के राजकाज में ही निष्णात रही है।


बेहद जरुरी मुद्दों पर राज्यसरकार ने बयानबाजी के अलावा कुछ किया नहीं है और हालात लगातार बिगड़ते चले गये और हालात राज्य सरकार के  नियंत्रण में भी नही है और न भारी बहुमत से जीती मां माटी मानुष की पार्टी की कोई साख बची है।


महालया के बाद तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी  ने मौन व्रत धारणकर रखा था,जो उनकी सड़कू राजनीति के खिलाफ है।


अब उफेस बुक पर बिना किसी का नाम लिए राज्यों के हक हकूक छीनने के लिए केंद्र सरकार विरुद्धे गोलाबीरी शुरु की है।


ऐसा इसलिए हुआ कि केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के वर्द्धमान में दो अक्तूबर को हुए दोहरे बम विस्फोट की जांच को गुरुवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपने का निर्णय किया। राज्य सरकार द्वारा सिद्धांत: मंजूरी दिए जाने के बाद यह निर्णय किया गया।


आधिकारिक सूत्रों ने नई दिल्ली में बताया बताया कि मामले के अंतरराष्ट्रीय तार जुड़े होने को देखते हुए इसकी जांच एनआईए को सौंपने का निर्णय किया गया। इसमें पड़ोसी देश बांग्लादेश के कुछ नागरिक भी कथित रूप से संलिप्त हैं। सूत्रों ने कहा कि एनआईए अधिनियम के तहत एक अधिसूचना जारी की गई और एजेंसी कल प्राथमिकी दर्ज करेगी।


केंद्रीय गृह मंत्रालय को केंद्रीय एजेंसियों और राज्य सरकार से घटना के बारे में रिपोर्ट मिली थी जिसमें एक घर में हुए विस्फोट में दो संदिग्ध आतंकवादी शकील अहमद और सोवन मंडल मारे गए थे और एक अन्य व्यक्ति हसन साहेब जख्मी हो गया था।


घर से सीआईडी की टीम ने ग्रेनेड, विस्फोटक बनाने में प्रयुक्त होने वाले रसायन, विस्फोट करने के तरीकों पर एक किताब, जिहादी साहित्य, जिहादी प्रशिक्षण पर एक वीडियो और वर्द्धमान जिले के महत्वपूर्ण स्थानों के मानचित्र जब्त किए थे।


बड़ी संख्या में घड़ियों के डायल, सिम कार्ड और परिष्कृत विस्फोटक उपकरण बनाने में इस्तेमाल होने वाले अन्य उपकरण भी घर से जब्त किए गए थे। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार शुरू में यह स्वीकार करने को तैयार नहीं थी कि वर्द्धमान की घटना के आतंकवाद से जुड़े होने का संदेह है। घटनास्थल से एकत्रित सामग्री से यह पता चलने के बाद कि कोई आतंकवादी समूह घर में बम बना रहा था और हमले की योजना बना रहा था, मामला सीआईडी को सौंपा गया। मामले में दो महिलाओं सहित चार लोगों को अभी तक गिरफ्तार किया जा चुका है।


धुर राजनीतिक विरोधी भाजपा और माकपा केंद्र से मांग करते रहे हैं कि जांच एनआईए को सौंपी जाए क्योंकि उनका मानना है कि राज्य सरकार मामले को रफा दफा करने का प्रयास कर रही है।


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