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अमरीकी विस्थापितों की स्थिति में जो सबसे बड़ा परिवर्तन घटित हुआ वह था 1864 में दास प्रथा का उन्मूलन

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अमरीकी विस्थापितों की स्थिति में जो सबसे बड़ा परिवर्तन घटित हुआ वह था 1864 में दास प्रथा का उन्मूलन

नीलाभ का मोर्चा neelabh ka morcha


Sunday, May 10, 2015

ग़ुलाम सबसे ज़्यादा तब गाते हैं जब वे दुखी और ग़मज़दा होते हैं - फ़्रेड्रिक डगलस

नीलाभ का मोर्चा neelabh ka morcha


ग़ुलाम सबसे ज़्यादा तब गाते हैं जब वे दुखी और 


ग़मज़दा होते हैं 


- फ़्रेड्रिक डगलस

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नीलाभ अश्क जी मंगलेश डबराल और वीरेन डंगवाल के खास दोस्त रहे हैं और इसी सिलसिले में उनसे इलाहाबाद में 1979 में परिचय हुआ।वे बेहतरीन कवि रहे हैं।लेकिन कला माध्यमों के बारे में उनकी समझ का मैं शुरु से कायल रहा हूं।अपने ब्लाग नीलाभ का मोर्चा में इसी नाम से उन्होंने जैज पर एक लंबा आलेख लिखा है,जो आधुनिक संगीत और समता के लिए अश्वेतों के निरंतर संघर्ष के साथ साथ आधुनिक जीवन में बदलाव की पूरी प्रक्रिया को समझने में मददगार है।नीलाभ जी की दृष्टि सामाजािक यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में कला माध्यमों की पड़ताल करने में प्रखर है।हमें ताज्जुब होता है कि वे इतने कम क्यों लिखते हैं।वे फिल्में बी बना सकते हैं,लेकिन इस सिलसिले में भी मुझे उनसे और सक्रियता की उम्मीद है।

नीलाभ जी से हमने अपने ब्लागों में इस आलेख को पुनः प्रकाशित करने 

की इजाजत मांगी थी।उन्होने यह इजाजत दे दी है।

  • आलेख सचमुच लंबा है।लेकिन हम इसे हमारी समझ बेहतर बनाने के मकसद से सिलसिलेवार दोबारा प्रकाशित करेंगे।
  • पाठकों से निवेदन है कि वे कृपया इस आलेख को सिलसिलेवार पढ़े।


चट्टानी जीवन का संगीत


जैज़ पर एक लम्बे आलेख की छठी कड़ी



6.


अमरीकी विस्थापितों की स्थिति में जो सबसे बड़ा परिवर्तन घटित हुआ वह था 1864 में दास प्रथा का उन्मूलन. वैसे तो अमरीकी गोरों में बहुत-से लोग दास-प्रथा और मनुष्य को मनुष्य से एक दर्जा नीचे रखने के विरोधी थे, लेकिन एक बहुत बड़ा समुदाय कई कारणों से दास-प्रथा के पक्ष में था. एक कारण तो था नस्लवादी सोच. सदियों से यूरोपीय और अमरीकी गोरे यह मानते आये थे कि अफ़्रीकी लोग गोरी जातियों से हीनतर हैं. दूसरा कारण आर्थिक था. अमरीका के दक्षिणी हिस्से की अर्थ-व्यवस्था काले ग़ुलामों पर टिकी हुई थी जो तम्बाकू, कपास, मक्का, केला और दूसरी फ़सलों की खेती के काम में सबसे अनिवार्य तत्व --  श्रम -- उपलब्ध कराते थे और साथ ही घरेलू कामगरों की एक फ़ौज भी. यह सस्ता श्रम अमरीका के दक्षिणी क्षेत्र की अर्थ-व्यवस्था का आधार था. लेकिन इस बीच अमरीका के उत्तरी क्षेत्र में कल-कारख़ानों और उद्योग-धन्धों के विकास ने औद्योगिक मज़दूरों की एक अच्छी-ख़ासी मांग पैदा कर दी थी. इसी का नतीजा था 1862-63 का अमरीकी गृह-युद्ध, जिसने पूरे देश को दो विरोधी ख़ेमों में बांट कर रख दिया था. हालांकि गृह-युद्ध में जीत का सेहरा अमरीका के उत्तरी हिस्से के सिर बंधा और क़ानूनी तौर पर दास-प्रथा रद्द कर दी गयी, मगर नीग्रो समुदाय की स्थिति बहुत करके पहले जैसे ही रही. जो उत्पीड़न खुल्लम-खुल्ला होता था, वह अब छिपे तौर पर होने लगा.

आम तौर पर अनुमान है कि अमरीकी नीग्रो संगीत अमरीकी गृहयुद्ध (1861-64) के बाद के अर्से में अमरीका के दक्षिणी हिस्से के अन्दरूनी इलाक़े में, उसके मुफ़स्सिल में ब्लूज़ के रूप में उभर कर सामने आया और इसकी जड़ें खेत-मजूरों की टिटकारियों, गुहार और जवाब, काम के समय गाये जाने वाले गीतों, तुकबन्दियों और सरल आख्यानपरक छन्दों में खोजी जा सकती हैं। ये गीत अक्सर जीवन की कठोरता अथवा विरह-विछोह और खोये हुए प्यार के इर्द-गिर्द बुने जाते थे। थे गायक-गायिकाएं अक्सर कड़वी हक़ीक़तों वाली दुनिया में अपने निजी दुखों को  व्यक्त करते थे -- प्रेम में निराशा, ज़िन्दगी की मुसीबतें और उसकी कठोरता, पुलिस के सिपाहियों की क्रूरता, गोरों का बेरहम सुलूक़ और बदक़िस्मती के थपेड़े . लेकिन ऐसा नहीं है कि उनमें हमेशा उदासी और विषाद ही व्यक्त होता था। सीधी, सरल और अकृत्रिम -- यहाँ तक कि भोलेपन को छूती हुई -- अभिव्यक्तियों से ले कर जटिल और संश्लिष्ट भावनाओं तक -- ब्लूज़ के गीत एक व्यापक दायरे में फैले हुए हैं। लोक-गायकों की प्रस्तुतियों में उनकी लम्बाई भी छोटी-बड़ी हो सकती थी, मगर विशुद्ध ब्लूज़ की एक अपनी ख़ास बिनावट है और इसी के आधार पर आज ब्लूज़ को पहचाना जाता है।

जैज़ की बुनियादी विशेषता -- गुहार और जवाब -- ब्लूज़ में भी अनिवार्य रूप से मौजूद थी और इसमें मात्राएं ख़ास तरह से आगे को बढ़ती थीं. साथ ही एक अजीब-सी समाधि वाला असर भी मौजूद रहता था जो अक्सर पैरों की हरकत में भी नज़र आता था, जहां शरीर बड़े धीमे-धीमे, लय-भरे अन्दाज़ में लहराते हुए आगे-पीछे सरकता रहता था. विशुद्ध ब्लूज़ में बारह मात्राओं की बिनावट होती है और उसके गीतों में तीन-तीन पंक्तियों के टुकड़े होते हैं। पहली पंक्ति गाने के बाद उसी पंक्ति को दोहराया जाता है और फिर तीसरी पंक्ति गायी जाती है। मिसाल के तौर पर प्रसिद्ध 'सेंट लूइज़ ब्लूज़'जिसे वैसे तो शायद हर बड़े जैज़-फ़नकार ने गाया और बजाया, मगर जिसकी सर्वोत्तम प्रस्तुतियों में से एक बेसी स्मिथ (1894-1937) ने पेश की। ब्लूज़ की गायिकाओं में बेसी स्मिथ की एक अपनी ही जगह थी, जिसे उन्होंने अपनी शानदार आवाज़ और तपी हुई अदाकारी के बल पर हासिल किया था। बोल थे -- 'आई हेट यू सी द ईवनिंग सन गो डाउन।'इस पंक्ति को दोहराया जाता था और फिर अगली पंक्ति -- 'इट मेक्स मी थिंक ऑफ़ लास्ट गो राउण्ड' -- गायी जाती थी।



जैसा कि हमने कहा है, जैज़ की ऐसी बहुत-सी धुनें और गीत हैं जिन्हें उनके रचने वालों के अलावा भी बहुत-से गयकों और वादकों ने पेश किया है. 'सेंट लूइज़ ब्लूज़'ऐसी ही रचनाओं में शुमार किया जा सकता है. बेसी स्मिथ के बहुत बाद सुप्रसिद्ध अभिनेत्री और गयिका अर्था किट ने भी इसकी एक अदायगी अपने ख़ास अन्दाज़ में पेश की :


http://youtu.be/GPYVlUV_xk4 (अर्था किट-- आई हेट यू सी द ईवनिंग सन गो डाउन)


ब्लूज़ में बारह मात्राओं की यह बिनावट कैसे विकसित हुई, यह तो बताना मुश्किल है, लेकिन इसमें निश्चय ही नीग्रो संगीत-विशेषज्ञ डब्ल्यू. सी. हैंडी की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही होगी, जिन्होंने बड़ी संख्या में ब्लूज़ इकट्ठे करके उन्हें प्रकाशित कराया था। यह बात पहले महायुद्ध से कुछ पहले की है. 

विलियम क्रिस्टोफ़र हैंडी (1873-1958) अमरीका के ठेठ दक्षिणी इलाक़े में फ़्लोरेन्स (ऐलाबामा) के रहने वाले थे. रोज़ी-रोटी कमाने के लिए उन्होंने बढ़ई, मोची और राज-मिस्त्री का काम सीख रखा था ताकि जब वे संगीत से अपना ख़र्च न चला पायें तो इन पेशों में से किसी को अपना सकें. संगीत का शौक़ हैंडी को लड़कपन ही से था जब वे गिरजे में जा कर भजन गाया करते या और्गन बजाया करते. बाद में उन्होंने बताया था कि उन्हें अपने चारों तरफ़ फैली प्रकृति से भी संगीत की बहुत-सी प्रेरणा मिली थी,"पक्षियों, चमगादड़ों और उल्लुओं की पुकारों और उनकी अजीबो-ग़रीब आवाज़ों से."

हैंडी की पहली नौकरी इस्पात के कारख़ाने में भट्ठी में कोयला झोंकने वाले मज़दूर की थी. यहां उन्होंने पाया कि भट्ठी में कोयला या कच्चा लोहा झोंकने वाले मज़दूर अपने बेलचों से तरह-तरह की आवाज़ें निकालते और "जब दस-बारह लोग ऐसा कर रहे होते तो असर अद्भुत होता. किसी फ़ौजी बैण्ड में बजाये जा रहे ढोल-नगाड़ों से बेहतर." उन्होंने यह भी देखा कि दक्षिणी अमरीका के नीग्रो मज़दूरों में किसी भी चीज़ से लय-ताल पैदा करने की कुदरती कूवत थी.

1900 के आस-पास जब हैंडी सत्ताईस साल के थे, तब नीग्रो लोगों के लिए बने ऐलाबामा के कृषि विश्वविद्यालय ने उन्हें संगीत शिक्षक नियुक्त कर दिया., लेकिन हैंडी की दिलचस्पी पश्चिमी शास्त्रीय संगीत से ज़्यादा अपने अनोखे अफ़्रीकी अमरीकी संगीत में थी. लिहाज़ा वेसंगीत शिक्षक की नौकरी छोड़ कर एक घुमन्तू बैण्ड  में शामिल हो गये और जल्दी ही अश्वेत संगीतकारों की एक मण्डली के निर्देशक बन गये. इस बीच अलग-अलग जगहों पर घूमते हुए धीरे-धीरे हैंडी को उस नीग्रो संगीत को सुनने के ढेरों मौके मिले जो अमरीका के दक्षिणी हिस्से के गांव-देहात में और कारख़ानों में गाया-बजाया जाता था. ये सभी लोग गुमनाम संगीतकार थे और अपनी फ़ुर्सत की घड़ियों में दिल बहलाने के लिए गाया-बजाया करते थे. इनमें से बहुत-से लोग ऐसे भी थे जो आम कस्बों और गांवों के चौराहों या नुक्कड़ों पर खड़े हो कर अपने गीत गाते और इसी से खर्चा चलाते. इनमें से बहुत-से लोग घुमन्तू गायक होते जो गांव-गांव, शहर-शहर घूम कर अपनी अपनी फ़नकारी से पैसे कमाते. यह सारा अनुभव विलियम हैंडी के अन्दर दर्ज होता जा रहा था और जब वे 1909 में टेनेसी प्रान्त के मेम्फ़िस शहर आ बसे तो पहली बार उनकी अपनी रचना "मेम्फ़िस ब्लूज़" के रूप में व्यक्त हुआ. नीचे हैंडी वाले प्रारूप के लिंक के साथ साथ दो और लिंक दिये जा रहे हैं :


http://youtu.be/ZGqBmlZR3dc  (मेम्फ़िस ब्लूज़  -- विलियम क्रिस्टोफ़र हैंडी)

http://youtu.be/PEHLK0TKln0    (          "        ड्यूक एलिंग्टन)

http://youtu.be/3ZkdRjAWR6g  ("जिम हेसियन)


"मेम्फ़िस ब्लूज़" दरअसल मेम्फ़िस के नगर प्रमुख पद के लिए खड़े होने वाले उम्मीदवार एड्वर्ड क्रम्प के चुनाव अभियान के लिए लिखा गया था. बाद में हैंडी ने इस धुन को संवार-सुधार कर इसका नाम "मिस्टर क्रम्प" की बजाय "मेम्फ़िस ब्लूज़" रख दिया. 1912 में इस धुन के प्रकाशित होते ही ब्लूज़ की 12 मात्राओं वाली शैली मानो तय हो गयी और उनकी इस पहली कामयाबी ने आगे के गीतों और धुनों के रास्ते खोल दिये. हैंडी ने "मेम्फ़िस ब्लूज़" के दो साल बाद "सेंट लुइज़ ब्लूज़" की रचना की और ब्लूज़ की बुनियाद पक्की कर दी. 


http://youtu.be/dmFUXYaZIMk ( सेंट लुइज़ ब्लूज़  W C Handy)


अब तक वे संगीत को ही रोज़ी-रोटी के साधन के रूप में अपना चुके थे और न सिर्फ़ संगीत रचने तक सीमित थे, बल्कि इस ख़ास क़िस्म के अफ़्रीकी अमरीकी संगीत के नमूने खोजने, उनकी स्वर-लिपि तैयार करने और इन स्वर-लिपियों को बाज़ार में अन्य गायकों वादकों को उपलब्ध कराने में भी जुट गये थे, जो काम कि वे अपने जीवन के अन्त तक करते रहे.

1917 में हैंडी न्यू यौर्क आ गये और वहां सुप्रसिद्ध गेइटी थिएटर में एक दफ़्तर खोल कर अपने रचे संगीत की स्वर-लिपोइयों के प्रकाशन का काम करने लगे. न्यू यौर्क में ज़्यादा गुंजाइशें थीं और यहां हैंडी के जौहर सही तौर पर उजागर हुए. उन्होंने ब्लूज़ की 53 रचनाओं की स्वर-लिपियों के साथ उनके बोल भी एक संकलन की शक्ल में प्रकाशित किये और अफ़्रीकी अमरीकी संगीत को लोगों के बीच फैलाने के लिए एक बेहद ज़रूरी भूमिका अदा की. यह शायद पहली पुस्तक थी जो ब्लूज़ को अमरीका के दक्षिणी इलाक़े की संस्कृति और उसके इतिहास के अखण्ड हिस्से के रूप में स्थापित करती है.  लेकिन यह दिलचस्प है कि उन्होंने पाया कि उस समय के ज़्यादातर नीग्रो बैण्ड और गायक-वादक अपनी जड़ों की तरफ़ जाने की बजाय पश्चिमी शैली के प्रचलित गीतों को ही गाते-बजाते. शायद वे डरते थे कि अगर वे "कालों का संगीत" गायेंगे-बजायेंगे तो आम सुनने वाले उनकी तरफ़ तवज्जो नहीं देंगे. मगर यह भी एक मज़ेदार बात थी कि गोरे लोगों के बैण्ड और उनके फ़नकार नयी-नयी शैलियों की तलाश में रहते थे और वे विलियम हैंडी की रची धुनों और गीतों को पेश करने के लिए हमेशा तैयार रहते. इसके साथ-साथ जो नीग्रो फ़नकार मंचीय कार्यक्रम पेश करते हुए अभिनय के साथ-साथ गाने भी गाते थे उन्होंने भी हैंडी के गीत इस्तेमाल करने शुरू कर दिये थे ताकि गोरे फ़नकारों के प्रदर्शन में कोई अड़ंगा न पैदा हो. फिर जैसे इतना ही काफ़ी न हो, हैंडी ने फ़िल्मों में भी दिलचस्पी लेनी शुरू की और दूसरे रचनाकारों की रचनाओं को भी पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया. अपने समय से बहुत पहले हैंडी ने ऐसे गोरे गायकों को प्रोत्साहित किया जिनके स्वर अफ़्रीकी-अमरीकी संगीत की इस ख़ास शैली के अनुकूल पड़ते थे. 1958 में जब 85 साल की उमर में विलियम हैंडी का निधन हुआ तो वे अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर न केवल "ब्लूज़ के जनक" माने जा चुके थे, बल्कि संगीत की इस विधा को अमरीकी समाज और संस्कृति के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार भी करा चुके थे.

शुरू-शुरू के ब्लूज़ में चार-चार पंक्तियां होती थीं जिन्हें दोहराया जाता था, लेकिन डब्ल्यू. सी. हैंडी के संकलन करने तक नमूना बदल चुका था और तीन-तीन पंक्तियों की बिनावट सामने आयी थी. इन गीतों में से जो सबसे ज़्यादा मशहूर हुए -- जैसे 'सेंट लूइज़ ब्लूज़' --उनमें बारह मात्राओं की यही बिनावट थी। फिर शायद इन्हीं नमूनों को सामने रख कर अन्य ब्लूज़ की रचना हुई होगी।

बेसी स्मिथ की रिकॉर्डिंग में कॉर्नेट पर उनकी संगत की थी जैज़ के महान संगीतकार लुई आर्मस्ट्रौंग ने, जिन्होंने बीसवीं सदी में जैज़ को दुनिया के कोने-कोने में फैलाने के सिलसिले में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी कि उन्हें 'जैज़ का राजदूत'कहा जाने लगा। 'सेंट लूइज़ ब्लूज़'के इस रिकॉर्ड की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसमें लुई आर्मस्ट्रौंग द्वारा कॉर्नेट पर की गयी संगत बड़ी ख़ूबी के साथ गायिका के स्वरों की प्रतिगूँज पैदा करती है। 


http://youtu.be/hpu14BRmvGA?list=PL28D01AC6950859CA (बेसी स्मिथ और लूई आर्मस्ट्रौंग) http://youtu.be/3rd9IaA_uJI (बेसी स्मिथ और लूई आर्मस्ट्रौंग) 

http://youtu.be/D2TUlUwa3_o (लूई आर्मस्ट्रौंग और वेल्मा मिडलटन -- सेंट लूइज़ ब्लूज़)


वाद्य-यन्त्रों द्वारा मानवीय स्वरों का यह अनुकरण जैज़ संगीत की एक और ख़ासियत है और जिन संगीत-प्रेमियों ने उस्ताद विलायत खाँ का सितार-वादन सुना है -- ख़ास तौर पर 'बाट चलत नयी चुनरी रंग डारी'वाली सिन्धी भैरवी -- वे सहज ही जैज़-संगीत की इस विशेषता को समझ सकते हैं।

ब्लूज़ गायकी और उसके वादन के बहुत-से तत्व अफ़्रीकी संगीत से आये थे, जिनमें लगातार यूरोपीय तत्वों की मिलावट होती रही थी. इस गायकी का नाम ब्लूज़ कैसे पड़ा, इसके बारे में कई विचार प्रकट किये गये हैं. एक ख़याल यह है कि इस का ताल्लुक़ नील और उससे जुड़े रहस्यवाद से है. बहुत-से अफ़्रीकी समुदायों में मृत्यु और शोक के साथ नील का गहरा सम्बन्ध था जहां मातम करने वालों के सारे कपड़े नील से रंगे होते थे और इस तरह नीला रंग दुख और पीड़ा को व्यक्त करने लगा. चूंकि नील की खेती अमरीका के दक्षिणी हिस्से के बहुत से इलाक़ों में होती थी और उसका इस्तेमाल कपास को रंगने के लिए होता था, ख़ास तौर पर इन विस्थापित लोगों के बीच शोक के अवसरों पर, चुनांचे उनकी पीड़ा को व्यक्त करने वाले गीतों को भी ब्लूज़ कहा जाने लगा. वैसे यह नाम "नीले प्रेत" से भी आया हो सकता है जो जौर्ज कोलमैन के एकांकी प्रहसन "ब्लू डेविल्स" (१७९८) का शीर्षक है और अवसाद और उदासी के अर्थों में इस्तेमाल हुआ है.  ब्लूज़ का नाम चाहे जैसे पड़ा हो, इसमें किसी को शक नहीं है कि उसके स्रोत जितने अमरीका में ग़ुलाम बना कर लाये गये अफ़्रीकियों के दुख और दुर्दशा में थे, उतने ही इग्बो, योरुबा और पश्चिमी अफ़्रीका के स्थानीय समुदायों के रीति-रिवाजों, कर्म-काण्डों और अभिव्यक्ति के तरीक़ों में.

समय के साथ ब्लूज़ के बोल ही नहीं बदले, उनकी अदायगी भी बदली. हालांकि ब्लूज़ का बुनियादी स्वर पीड़ा और उत्पीड़न का ही रहा, उसके बोल कई बार हास्य, व्यंग्य और छेड़-छाड़ वाले भी होते. मसलन बिग जो टरनर की रचना "रिबेका" को लीजिये -- 


http://youtu.be/Bx937X08iO8 ( रिबेका - बिग जो टर्नर)


जैसे-जैसे ब्लूज़ की लोकप्रियता बढ़ी, उनके विषयों का दायरा भी फैलता गया. कई बार अश्लीलता को छूने वाले और दो अर्थों वाले शब्द भी इस्तेमाल होने लगे, हालांकि इन "गन्दे ब्लूज़" को अपवाद ही कहा जा सकता है, क्योंकि 1908 में पहले-पहले ब्लूज़ गीतों के प्रकाशन के बाद जो ब्लूज़ प्रमुखता से सामने आये उनमें पुरानी परम्परागत भावनाएं ही व्यक्त हुई थीं और यही ब्लूज़ का आधार बना रहा. इसी तरह हालांकि ब्लूज़ की मात्राओं की गिनती 12 ही रही लेकिन प्रयोग के तौर पर 16 मात्राओं का प्रयोग भी हुआ जैसे रे चार्ल्स के "स्वीट सिक्स्टीन बार्ज़" में --


http://youtu.be/Y3_vM6GNrY8 (रे चार्ल्स -- स्वीट सिक्स्टीन बार्ज़)


या  हर्बी हैनकौक के "वौटरमेलन मैन" में --


http://youtu.be/RzPZvKSdN7g (हर्बी हैनकौक -- "वौटरमेलन मैन")


इसी तरह 8 मात्राओं में भी कई रचनाएं मिलती हैं, जैसे "ट्रबल इन माइण्ड" और बिग बिल ब्रून्ज़ी के "की टू द हाइवे" में --


http://youtu.be/KN_f0WVsHuw (बिग बिल ब्रून्ज़ी -- टू द हाइवे)


कभी-कभार विषम मात्राओं वाली रचनाएं भी देखने को मिल जाती हैं जैसे वौल्टर विन्सन की रचना "सिटिंग औन टौप औफ़ द वर्ल्ड" में -- 

http://youtu.be/RqeW7-tmVU4 (वौल्टर विन्सन -- सिटिंग औन टौप औफ़ द वर्ल्ड )


(जारी)



राहत वितरणमा दुई उपप्रधानमन्त्रीबीच चर्काे आरोप–प्रत्यारोप WHETHER TRUE OR FALSE, IT IS ALSO DEPRESSINGLY UNFUNNY TO HAVE TO READ FROM HALFWAY AROUND THE GLOBE ! JAY HOS !

Next: पहाडी बस्ती मधेशमा सारे गृहयुद्ध ********************************** एक माथि अर्को सुनियोजित षड्यन्त्रद्वारा पहाडीहरूलाई मधेशमा बसाउनाले २००८ साल देखि २०५८ सालको ५० वर्षको अवधिमा मात्रै मधेशमा पहाडीहरूको जनसंख्या ६% बाट बढेर ३३% हुन पुग्यो। २०६३-६४ को मधेश आन्दोलन पछि नेपालीहरूले एउटा डिस्कोर्स नै क्रिएट गरे कि सबै पहाडीहरूलाई मधेशबाट धपाइएको छ, जुन डिसकोर्स चलाउनका लागि केही मधेशी लेखक, पत्रकार र बुद्धिजीवीलाई समेत अगाडि सारियो, र उनीहरुलाई बैंकको चेक मात्र हैन, राष्ट्रिय सम्मान नै दिइयो।तर २०६८ सालको जनसंख्यामा देखियो ठीक उल्टो, २०५८ सालमा नेपाली साम्राज्यको केवल ४८.८% जनसंख्या मधेशमा रहेकोमा त्यो झन बढेर १० वर्षको अवधिमा नै ५०.३% हुन पुग्यो, र पहाडको जनसंख्या त्यति नै मात्रामा उल्टो घटेको पाइयो। कहिले थारुलाई दारु पिलाएर, राजवंशीसँग मितेरी लाएर, संथाललाई नागरिकतामा फँसाएर यी पहाडीहरूले मधेशको भूमि कब्जा गर्दै मधेशमा जमीन्दार बन्दै गए, र मधेशी मूलबासी आदिवासीहरूलाई आफ्नै भूमिमा घरबार बिहीन बनाएर, भूमिहीन बनाएर, दास बनाएर, कमैया-कमलरी बनाएर बस्न बाध्य गरे, भने लाखौं मधेशी मूलबासीहरू
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राहत वितरणमा दुई उपप्रधानमन्त्रीबीच चर्काे आरोप–प्रत्यारोप


WHETHER TRUE OR FALSE, IT IS ALSO DEPRESSINGLY UNFUNNY TO HAVE TO READ FROM HALFWAY AROUND THE GLOBE !

JAY HOS !

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काठमाडौं । विनाशकारी भूकम्पबाट पीडित भएका परिवारलाई राहत दिने विषयलाई लिएर नेपाल सरकारका दुई उपप्रधानन्त्री आरोप प्रत्यारोपमा उत्रेका छन् । उपप्रधान तथा गृहमन्त्री बामदेव गौतले पीडितको पीडामा राजनीति गरेको आरोप अर्का उपप्रधान तथा स्थानीय विकासमन्त्री प्रकाशमान सिंहले आरोप लगाए छन् । ब्यवस्थापिका संसद विकास समितिको बैठकमा गौतमको खुलेर आलोचना गर्दै सिंहले भने उहाकै कारण राहतमा ढिलाई भइरहेको छ त्यो हामीलाई सह्य छैन । केन्द्रीय दैविक प्रकोप उद्धार तथा राहत समितिको प्रमुख गौतम भएका र उनले आफ्नो दलसँग नजिक भएका पीडितप्रति बढि राहत केन्द्रीत गरेको आरोप लगाए । मैले केही ठाउँको भ्रमण गरेँ, त्यहाँ कसैले धेरै राहत पाएका छन्, कतिपयले हालसम्म राहतको एक टुक्रा पनि पाउन सकेका छैनन् । यसले झन समस्या ल्याएको छ । उनले मेरो मन्त्रालयबाट गएका राहतमा राजनीति कतै भएको छैन ।


उनले जिल्ला दैविक प्रकोप उद्धार तथा राहत समिति मार्फत गएका केही ठाउँमा निस्पक्ष भएपनि धेरै ठाउँमा राजनीतिक आस्थाले काम गरेको बताए । आफू निकटका प्रमुख जिल्ला अधिकारीलाई आदेशै दिएर गौतमले राजनीति गरेको उनले आरोप लगाए । गृहमन्त्री गौतमले राहतमै राजनीति गर्न थालेपछि आफ्नो दल नेपाली कांग्रेसबाट सरकारमा गएका मन्त्रीहरु दैनिक गृहमन्त्रालयमा बाच गर्न पुग्ने गरेको बताए ।


उता गृहमन्त्री गौतमले राहतमा राजनीतिक गरेको प्रमाणित गर्न सिंहलाई चुनौति दिएका छन् । राप्ती काठमाडौं सम्पर्क मञ्चले गरेको रक्तदान कार्यक्रममा गृहमन्त्री गौतमले राहतमा राजनीति गरेको प्रमाणित भए देखाउन अन्यथा जथाभावी नवोल्न सिंहलाई चेतावनी दिए । मैले कुन जिल्लाका कुन स्थानमा बस्ने पीडितलाई राजनीतिक आस्थाका आधारमा राहत वितरण गरेँ, प्रमाण देखाउनु परयो फाल्तु कुरा गर्न मिल्दैन ।
गृहमन्त्री गौतमले उल्टै स्थानीय विकासमन्त्री सिंहले राजनीति गरेको प्रतिआरोप लगाएका छन् । राज्यको गएको राहतलाई प्रकाशमान दाईले पठाउनु भएको हो भन्दै उनका कार्यकर्ताले वितरण गरेको सुचना बरु मैले पाएको छु, गृहमन्त्री गौतमले भने । स्थानीय विकास मन्त्रालयबाट गएका राहतमा सिंहले राजनीति गरेको उनले प्रतिआरोप लगाए ।

Kalyan Bhattarai <kdbhattarai2009@gmail.com>
friend i see nothing to be shy or sorry or unfunny/funny  when two dogs are eying to lo loot the relief fund it is quite natural they will bark at each other after all you can not avoid the barking of two dogs for the piece of bone. It is proven fact that Nepalese politician are far far below the standard of dogs and it will be insult to dogs to copmpare the nepalese politicians with dogs .

पहाडी बस्ती मधेशमा सारे गृहयुद्ध ********************************** एक माथि अर्को सुनियोजित षड्यन्त्रद्वारा पहाडीहरूलाई मधेशमा बसाउनाले २००८ साल देखि २०५८ सालको ५० वर्षको अवधिमा मात्रै मधेशमा पहाडीहरूको जनसंख्या ६% बाट बढेर ३३% हुन पुग्यो। २०६३-६४ को मधेश आन्दोलन पछि नेपालीहरूले एउटा डिस्कोर्स नै क्रिएट गरे कि सबै पहाडीहरूलाई मधेशबाट धपाइएको छ, जुन डिसकोर्स चलाउनका लागि केही मधेशी लेखक, पत्रकार र बुद्धिजीवीलाई समेत अगाडि सारियो, र उनीहरुलाई बैंकको चेक मात्र हैन, राष्ट्रिय सम्मान नै दिइयो।तर २०६८ सालको जनसंख्यामा देखियो ठीक उल्टो, २०५८ सालमा नेपाली साम्राज्यको केवल ४८.८% जनसंख्या मधेशमा रहेकोमा त्यो झन बढेर १० वर्षको अवधिमा नै ५०.३% हुन पुग्यो, र पहाडको जनसंख्या त्यति नै मात्रामा उल्टो घटेको पाइयो। कहिले थारुलाई दारु पिलाएर, राजवंशीसँग मितेरी लाएर, संथाललाई नागरिकतामा फँसाएर यी पहाडीहरूले मधेशको भूमि कब्जा गर्दै मधेशमा जमीन्दार बन्दै गए, र मधेशी मूलबासी आदिवासीहरूलाई आफ्नै भूमिमा घरबार बिहीन बनाएर, भूमिहीन बनाएर, दास बनाएर, कमैया-कमलरी बनाएर बस्न बाध्य गरे, भने लाखौं मधेशी मूलबासीहरू

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पहाडी बस्ती मधेशमा सारे गृहयुद्ध 
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एक माथि अर्को सुनियोजित षड्यन्त्रद्वारा पहाडीहरूलाई मधेशमा बसाउनाले २००८ साल देखि २०५८ सालको ५० वर्षको अवधिमा मात्रै मधेशमा पहाडीहरूको जनसंख्या ६% बाट बढेर ३३% हुन पुग्यो। २०६३-६४ को मधेश आन्दोलन पछि नेपालीहरूले एउटा डिस्कोर्स नै क्रिएट गरे कि सबै पहाडीहरूलाई मधेशबाट धपाइएको छ, जुन डिसकोर्स चलाउनका लागि केही मधेशी लेखक, पत्रकार र बुद्धिजीवीलाई समेत अगाडि सारियो, र उनीहरुलाई बैंकको चेक मात्र हैन, राष्ट्रिय सम्मान नै दिइयो।तर २०६८ सालको जनसंख्यामा देखियो ठीक उल्टो, २०५८ सालमा नेपाली साम्राज्यको केवल ४८.८% जनसंख्या मधेशमा रहेकोमा त्यो झन बढेर १० वर्षको अवधिमा नै ५०.३% हुन पुग्यो, र पहाडको जनसंख्या त्यति नै मात्रामा उल्टो घटेको पाइयो। 

कहिले थारुलाई दारु पिलाएर, राजवंशीसँग मितेरी लाएर, संथाललाई नागरिकतामा फँसाएर यी पहाडीहरूले मधेशको भूमि कब्जा गर्दै मधेशमा जमीन्दार बन्दै गए, र मधेशी मूलबासी आदिवासीहरूलाई आफ्नै भूमिमा घरबार बिहीन बनाएर, भूमिहीन बनाएर, दास बनाएर, कमैया-कमलरी बनाएर बस्न बाध्य गरे, भने लाखौं मधेशी मूलबासीहरू विस्थापित भए। 

पहाडीहरूको आप्रवासनले मधेशको जनघनत्व थेग्नै नसक्ने हुन पुगेको छम, अहिले नै पहाडको जनघनत्व १८६ व्यक्ति प्रति वर्ग किमी मात्रै छ भने मधेशको त्यो भन्दा दुईगुणा भन्दा बढी ३९२ छ। अझ सुनियोजित षडयन्त्रद्वारा पहाडीहरूलाई बसाएका झापा, चितवन, कंचनपुर जस्ता जिल्लाहरूमा त जनघनत्व कहालीलाग्दो तरीकाले विष्फोट भएको छ। उदाहरणका लागि कंचनपुर जिल्लाको जनघनत्व २०१८ सालमा केवल १२ थियो भने २०६८ सालमा पहाडीहरूको आप्रवासनले बढेर २८० हुन पुग्यो (२५ गुणा !) जबकि सँगैको पहाडी जिल्ला डडेल्धुरामा ५७ बाट बढेर केवल ९२ भयो। यसरी जनघनत्व बढिरहदा सन् १९५४ मैं UN ले तराईमा वन विनाश र आप्रवासनका कारणले उर्वरता घटदै जानी, पानी सुक्दै जाने र जलवायु नै परिवर्तन हुने चेतावनी दिएको थियो। तैपनि पहाडीहरूले मधेशमा बसाउने षडयन्त्र गरिरहे। 

पहाडीहरू मधेशमा  बसाइनाले मधेशको जनघनत्व मात्रै बढेको छैन, मधेशीहरूको जमीन मात्रै खोसिएको छैन्, मधेशीहरू विस्थापित मात्रै भएका छैनन्, उनीहरूको सम्पूर्ण अस्तित्व नै संकटमा छ। नेपाली प्रशासनको आडमा यी आप्रवासी पहाडीहरू मधेशीहरूलाई घर-घरमा घुस्दै कुटपीट मात्रै गर्दैनन्, मधेशीहरूको सविनाशलाई (annihilation) नै मूर्तरूप दिन खोजिरहेका छन्। विराटनगरमा  खुकुरी ग्यांगहरूको यति त्रास छ कि मधेशीहरू एक-आपसमा कानेखुसी गर्दै डरले बाँचिरहेका छन्, नेपालगंज र लहानमा मुठ्ठी भर पहाडीहरूले नेपाल प्रहरीको आडमा दंगा फैलाएर कसरी मधेशीहरूको आफ्नै घर र पसलमा आगो लगाइ दिए, र खोजीखोजी पिटे, भनि राख्नु पर्दैन।

र यो भूकम्प पछाडि नेपाल सशस्त्र प्रहरीले मधेशीहरूलाई हप्काउदै आफ्नो घरमा राख्न भनिरहेका छन्, मधेशीसँग भएको १-२ कठ्ठा जमीनमा पहाडीहरूलाई घर बनाउन दिन बन्दुकको कुन्दा देखाउँदै पिट्दै छन्। केही समय अगाडी मात्र सप्तरीको राजविराजको दक्षिण तिरका गाउँहरु नजीक सशस्त्र प्रहरी आएर पहिला क्याम्प राख्ने सुरसार कसे, र अहिले त्यहाँ पहाडबाट हजारौं मान्छेहरू ल्याएर टोल नै बसाउन लागेका छन्, मधेशीहरूको घर-घरमा राख्न दबाब दिइरहेका छन्, आफ्नो महिलाहरूको लागि मात्रै भएको शौचालय दर्जनौं पहाडीहरू जबरदस्ती आँगनमा पसेर प्रयोग गर्दैछन, र त्यसो नगर्न अनुरोध गर्दा सशस्त्र प्रहरीले मधेशीलाई कुटपीट गरेर एस.पी. कार्यालयको हिरासत मै थुनेका छन। 

यस्तो परिस्थितिमा (सबै हैन तर) अधिकांश मधेशी लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवीहरू पहाडीबाट मोटो रकमको चेक पाउने वा अवार्ड पाउने आशामा उल्टा डिसकोर्स क्रिएट गर्दै आएका छन्, "हामी त एक हौं" भन्दै भ्रम छर्दै पहाडीहरूलाई मधेशमा घुसाउने वातावरण सिर्जना गर्नमा लागेका छन्,  भने संसदवादी मधेशी पार्टीहरू नेपालमा ठूलो मात्रामा भित्रिएको राहतमा आफूले पनि केही % पाउन, र राष्ट्रिय सरकारमा जानका लागि चुप्पी साधेर बसेका छन्। उनीहरूलाई मधेशमाथि सशस्त्र प्रहरीले गर्दै आएको दमन देखिन्न, फिरंगीहरूले मधेशमा गरिरहेको अत्याचार देखिन्न, उनीहरू त काठमांडू र पहाडमा सेल्फी खिच्न, आफ्नो मालिकहरूको 'गूडबूक'मा रहन मैं व्यस्त छन्। ४५% मधेशी दलितहरू, ४१% मुस्लिमहरू, लाखौं थारू, संथाल, राजवंशीलगायत का आदिवासीहरू, कमैया कमलरीहरू, बाढी र अग्निपीडितहरू अझै भूमिहीन छन्, तिनीहरूलाई बसाउने, भूमि दिने कुरो उठदैन, तर चुरिया फडानी गरेर भएपनि, मधेशीलाई आफ्नै घरबाट धपाएर भएपनि सद्भावको नाममा मधेशमा बसाउने र  बांकी मधेशीलाई पनि भूमिहीन बानउने, विस्थापित गर्ने षडयंत्र हुँदैछ। 

तर चाहे त्यो ऋतिक रोशन कांड, नेपालगंज कांड, कपिलवस्तु कांड जस्तो होस्, कि बारा र रौतहटमा पहाडीहरूले भर्खरै गरेको अत्याचार, घर-घरमा घुसेर मधेशी महिलाहरूलाई समेत पिटने काम, त्यो आउने दिनमा निकै नै बढदै जाने कुरा प्रष्ट हुँदैछ। पहाडीहरूलाई मधेशमा बसाउन देशी-विदेशीहरूले अनेकौं षडयन्त्र गर्ने नै छन्। यस्तोमा आफ्नो अस्मिता, आफ्नो आमा-बहिनी, छोरी-बुहारीको ईज्जत बचाउनका लागि पनि आज न भोलि मधेशीहरूले ज्यानको बाजी थाप्ने नै छन्, र भूकम्प प्रभावितको नाममा पहाडीहरूलाई मधेशमा बसाउने क्रम जारी रहयो भने आउँदा दिनमा गृहयुद्ध सुनिश्चित नै छ। र त्यो कुनै पार्टी, संगठन वा नेतृत्व विशेषको आह्वानमा होइन, मधेशीहरूको कारणले पनि होइन, बरु पहाडीहरूको अत्याचार र दादागिरीबाट नै स्वस्फूर्त रूपमा शुरु हुनेछ। त्यो घोर गृहयुद्ध "मरता क्या नहीं करता!" को परिस्थितिबाट उब्जिनेछ। 

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C. K. Raut, PhD (Cambridge)
Author of 'A History of Madhesh'

http://ckraut.com 



On 11 May 2015 at 06:34, Tej Kumar Karki <tejkarki@gmail.com> wrote:
DEAR ALL,

THOSE OF YOU WHO ARE CLOSE TO THE GOVERNMENT AND WORKING WITH THE VILLAGERS

PLEASE INFORM THEM THAT THIS TIME MASSIVE MOUNTAIN EARTH MASS IS SHAKEN BY EARTHQUAKE IN THE AFFECTED DISTRICTS

THOSE MOUNTAIN EARTH MASS MAY BE IN LOOSE FORM

COMING MONSOON AND CONTINUOUS RAIN MIGHT TRIGGER MASSIVE LANDSLIDES

THOSE LIVING IN THE MOUNTAINS IN FRAGILE SOILS MIGHT BE IN EXTREME DANGER

MANY ROADS MIGHT BE BLOCKED BY LANDSLIDES

THE LANDSLIDE MIGHT BLOCK RIVERS AND CREATE FLASH FLOOD

ALREADY EARTHQUAKE DAMAGED HOMES MAY FALL

PEOPLE MIGHT HAVE TO LIVE ROOFLESS


NOW THE GOVERNMENT AND CITIZEN ARE OVERWHELMED WITH RELIEF AND RESETTLEMENT TASKS

THEY MIGHT BE COMPLETELY FOCUSED ON THAT BUT MIGHT NOT BE MINDFUL OF THE NEXT POSSIBLE LAND SLIDE DISASTER AHEAD 

WE ARE NOT STRONG TO DEAL ABOUT LANDSLIDE BUT STILL IF WE ARE AWARE WE CAN DO SOMETHING TO MINIMIZE HARM

WE CAN RESETTLE THOSE PEOPLE IN THE FRAGILE HILL TO SAFE FLAT LAND IN GROUP IN TARAI AT LEAST FOR THIS MONSOON SEASON

A TIMELY THOUGHT AND ACTION CAN SAVE MANY LIVES ( A STITCH ON TIME SAVES NINE)

I KNOW WHAT I AM SAYING IS COMMON SENSE----AND EXPERTS OUT THERE MIGHT
HAVE KNOWN THIS AND GOVERNMENT IS PREPARED

BUT AS A CITIZEN I WANTED TO PUT THIS---WHISTLE BLOWING TASK---JUST IN CASE IF THEY HAD NOT THOUGHT THIS THROUGH

THIS IS ALSO BECAUSE OF LACK OF CONFIDENCE OF THE SNAIL LEADERSHIPS

চট্টগ্রাম বন্দর ব্যবহারের সুযোগ চাইছে ত্রিপুরা

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চট্টগ্রাম বন্দর ব্যবহারের সুযোগ চাইছে ত্রিপুরা

শুভজ্যোতি ঘোষ বিবিসি বাংলা, দিল্লি

Indo-Bangla-transit-route


ভারতের উত্তর-পূর্বাঞ্চলীয় রাজ্য ত্রিপুরার মুখ্যমন্ত্রী মানিক সরকার প্রতিবেশী বাংলাদেশের কাছ থেকে চট্টগ্রাম বন্দর ব্যবহারের সুযোগ এবং সড়কপথে ট্রানজিটের সুবিধা চেয়েছেন।বিবিসিকে তিনি বলেছেন, ভারতের পার্লামেন্টে স্থল সীমান্ত বিল পাস হওয়ার পর দ্বিপাক্ষিক সম্পর্কে যে আস্থা তৈরি হয়েছে তাতে তিনি আশা করছেন যে দিল্লি এবার এই বিষয়গুলোও ঢাকার কাছে উত্থাপন করবে।

ত্রিপুরার পালাটানা বিদ্যুৎ-কেন্দ্র থেকে চলতি বছরেই বাংলাদেশে বিদ্যুৎ সরবরাহ শুরু হবার কথা রয়েছে, প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদির আসন্ন বাংলাদেশ সফরে মি. সরকারও তার সঙ্গী হবেন – আর এই পটভূমিতে ত্রিপুরার দাবিকে ভারতের কেন্দ্রীয় সরকারও বিশেষ গুরুত্ব দিচ্ছে বলে জানা যাচ্ছে।

বাংলাদেশ সীমান্তবর্তী ভারতের চারটি রাজ্য – পশ্চিমবঙ্গ, আসাম, মেঘালয় ও ত্রিপুরার মধ্যে নিঃসন্দেহে বাংলাদেশ সরকারের সবচেয়ে ভাল সম্পর্ক ত্রিপুরার সঙ্গেই।

ত্রিপুরার গত সতেরো বছরের মুখ্যমন্ত্রী মানিক সরকারের সঙ্গে বাংলাদেশের প্রধানমন্ত্রী শেখ হাসিনার ব্যক্তিগত হৃদ্যতার কথাও সুবিদিত।

চট্টগ্রাম বন্দর ব্যবহারের সুযোগ

মি. সরকার জানান, বাংলাদেশের কাছে তাদের প্রথম চাওয়া হবে চট্টগ্রাম সমুদ্রবন্দর ব্যবহারের সুযোগ। তাঁর কথায়, 'ত্রিপুরা-সহ ভারতের উত্তর-পূর্বাঞ্চলের রাজ্যগুলো যদি চট্টগ্রাম বন্দর ব্যবহার করতে পারে, সেখান থেকে মালামাল পরিবহনের সুযোগ পায় তাহলে লাভ হবে দু'দেশেরই'।তিনি বলেন, 'এই প্রস্তাবটি বাংলাদেশের বিবেচনায় আছে বলেই আমি জানি। তারা সরাসরি এটি কখনও নাকচ করে দেননি, আবার পরিষ্কার করে ছাড়পত্রও দেননি।'

জুন মাসে প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদির প্রথম বাংলাদেশ সফরে যাওয়ার কথা, সেই সফরের দিনক্ষণ চূড়ান্ত না-হলেও ত্রিপুরার মুখ্যমন্ত্রী যে তার সফরসঙ্গী হবেন তা মোটামুটি নিশ্চিত।ধারণা করা হচ্ছে, সেই সফরে মি সরকার নিজেই এই দাবিগুলোর পক্ষে সওয়াল করবেন, আর তাতে সমর্থন থাকবে ভারতের কেন্দ্রীয় সরকারেরও।

সড়কপথেও ট্রানজিট

ত্রিপুরার প্রয়োজনে বাংলাদেশ এর আগে একাধিকবার তাদের নদীপথ ও আশুগঞ্জ বন্দর ব্যবহার করতে দিয়েছে, এখন মি সরকার সড়কপথেও বাংলাদেশের ভেতর দিয়ে যোগাযোগের সুবিধা চাইছেন।বাংলাদেশে রাজনৈতিক অস্থিরতার জন্য ইদানীংকালে আগরতলা-ঢাকা বাস পরিষেবা বারবার ব্যাহত হয়েছে, কিন্তু ত্রিপুরা সরকার বলছে এই পরিষেবা কলকাতা অবধি সম্প্রসারিত করলে সমস্যা অনেকটা মেটে।মানিক সরকার বিবিসিকে বলছিলেন, 'সময় সময় এই পরিষেবা চলে, আবার থমকে যায়। এই মুহূর্তে ত্রিপুরার লোকজনকে আগরতলা থেকে ঢাকায় গিয়ে আবার কলকাতার বাস ধরার জন্য অপেক্ষা করতে হয় – এভাবেই চলে আসছে।'

'আমরা চাইছি বাংলাদেশ যেন আমাদের বাসকে আগরতলা থেকে ঢাকা হয়ে সরাসরি পশ্চিমবঙ্গ সীমান্ত অবধি যাওয়ার অনুমতি দেয়। এতে আমাদের অনেক সুবিধে হবে', তিনি আরও যোগ করেন।

ত্রিপুরার বাস যদি আগরতলা থেকে ঢাকা হয়ে সরাসরি পশ্চিমবঙ্গ যাবার অনুমতি পায় – তাহলে সেটা হবে বাংলাদেশের কাছ থেকে ভারতের সড়কপথে ট্রানজিট পাওয়ারই সামিল।

এই মুহূর্তে ঢাকা তা দিতে পারবে কি না সেটা অন্য প্রশ্ন, কিন্তু সম্ভবত শেখ হাসিনার সঙ্গে ব্যক্তিগত সম্পর্কের সুবাদেই মানিক সরকার এ বিষয়ে যথেষ্টই আশাবাদী।

http://www.bbc.co.uk/bengali/news/2015/05/150517_mrk_india_bangladesh_transit_tripura


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টেন্ডার বাণিজ্যে এমপি নেতারা

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টেন্ডার বাণিজ্যে এমপি নেতারা

টেন্ডার বাণিজ্যের সঙ্গে সরাসরি জড়িয়ে পড়ছেন সরকারি দলের এমপি ও জেলা-উপজেলার নেতারা। ভাগবাটোয়ারা নিয়ে দল-উপদল, কোন্দলও হচ্ছে বিভিন্ন এলাকায়। এমনকি হানাহানি ও সংঘাত এবং খুনাখুনির ঘটনাও ঘটছে। সর্বক্ষেত্রে ই-টেন্ডার চালু না হওয়ায় জেলা ও উপজেলা পর্যায়ে সমস্যা হচ্ছে সবচেয়ে বেশি। সরকারি দলের এই অভ্যন্তরীণ বিরোধের সবচেয়ে বড় কারণ হচ্ছে টেন্ডার বা বিভিন্ন বৈধ-অবৈধ বাণিজ্য। আওয়ামী লীগের সহযোগী সংগঠনগুলোর মধ্যে সংঘাত হয় চাঁদাবাজির ভাগাভাগি নিয়ে। 

জানা গেছে, দেশের সিটি করপোরেশন ও পৌরসভাগুলোতে সবচেয়ে বেশি উন্নয়ন কাজ হয়ে থাকে। এর পাশাপাশি স্থানীয় সরকার প্রকৌশল অধিদফতর, পানি উন্নয়ন বোর্ড, গণপূর্ত বিভাগসহ সরকারি বিভিন্ন বড় প্রতিষ্ঠানের উন্নয়ন কাজের নিয়ন্ত্রণ নিতে কোনো রকম রাখঢাক না রেখেই সরকারি দলের মাঠপর্যায়ে প্রভাবশালী নেতারা এবং তাদের অনুসারীরা দাপট খাটান। শুধু তাই নয়, তাদের ইচ্ছার বিরুদ্ধে সংশ্লিষ্ট প্রতিষ্ঠানের কোনো কর্মকর্তার পক্ষেই অবস্থান নেওয়া সম্ভব নয়।

জানা গেছে, ঢাকা সিটি করপোরেশনের টেন্ডার নিয়ন্ত্রণ করেন নির্দিষ্টসংখ্যক যুবলীগ নেতা। তাদের ইচ্ছা-অনিচ্ছায় ঢাকা উত্তর ও দক্ষিণ সিটি করপোরেশনের উন্নয়ন কাজসহ সব ধরনের কাজ নিয়ন্ত্রিত হয়। সিটি করপোরেশনের এমন কোনো কাজ নেই যেখানে এই নেতারা হস্তক্ষেপ করেন না। চিহ্নিত এই যুবলীগ নেতাদের নিয়ে রীতিমতো ঝামেলায় আছেন দুই সিটি করপোরেশনের নবনির্বাচিত দুই নগর পিতা। সংশ্লিষ্টরা বলছেন, এই যুবলীগ নেতাদের নিয়ন্ত্রণ থেকে নগর ভবনকে উদ্ধার করা না গেলে কোনোভাবেই স্বাভাবিক কাজ করতে পারবেন না দুই নগর পিতা। 

রাজধানীর বাইরে জেলায় জেলায় গড়ে উঠেছে ছাত্রলীগ-যুবলীগের অপ্রতিরোধ্য সিন্ডিকেট। ঝিনাইদহে জেলা আওয়ামী লীগের সভাপতি ও সাধারণ সম্পাদক মিলে গড়ে তুলেছেন একটি শক্তিশালী সিন্ডিকেট। আবার তাদের প্রতিদ্বন্দ্বী হিসেবে জেলা যুবলীগ ও ছাত্রলীগ যৌথভাবে গড়ে তুলেছেন আরেকটি সিন্ডিকেট। এই দুই সিন্ডিকেটই নিয়ন্ত্রণ করে জেলার সব উন্নয়ন কর্মকাণ্ডের টেন্ডার। জানা গেছে, এ নিয়ে দুই পক্ষের মধ্যে মাঝে মাঝেই সহিংস ঘটনা ঘটে। প্রায় একই চিত্র কুমিল্লা জেলা ও সিটি করপোরেশনের উন্নয়ন কর্মকাণ্ড ঘিরে। এখানে অবশ্য জেলার সব উন্নয়ন কর্মকাণ্ডের টেন্ডার এককভাবে নিয়ন্ত্রিত হয়।

জানা গেছে, টেন্ডারকে ঘিরে সরকারের গত মেয়াদে এ ধরনের পরিস্থিতি অনেক বেশি ছিল। ওই সময়ে টেন্ডারবাজি নিয়ে দেশের বিভিন্ন এলাকায় প্রায়ই সহিংস ঘটনা ঘটত। কিন্তু ৫ জানুয়ারির নির্বাচনের পর কিছুটা পরিবর্তন আসে এই চিত্রে। তবে সেটি বেশি দিন টিকেনি। প্রথম দিকে এসব বিষয় সরকারের যথেষ্ট নিয়ন্ত্রণে থাকলেও ক্রমান্বয়ে পরিস্থিতি অবনতির দিকে যাচ্ছে। টেন্ডারের নিয়ন্ত্রণ নিয়ে ধীরে ধীরে দেশের বিভিন্ন জেলায় সহিংস ঘটনা ঘটছে। আর এমন পরিস্থিতি মোকাবিলা করতে গিয়ে রীতিমতো বেকায়দায় সরকারের আইনশৃঙ্খলা বাহিনী। দেশের বিভিন্ন এলাকায় টেন্ডারের নিয়ন্ত্রণ নিয়ে সরকারি দলের একাধিক গ্রুপ মুখোমুখি অবস্থানে দাঁড়ালে আইনপ্রয়োগকারী সংস্থা বিব্রতকর পরিস্থিতিতে পড়ে। আবার অনেক সময় দেখা যায়, যে গ্রুপ শক্তিশালী আইনপ্রয়োগকারী সংস্থা সেই গ্রুপের পক্ষাবলম্বন করে। এতে পরিস্থিতি আরও ঘোলাটে হয়ে ওঠে। এ বিষয়ে জানতে চাইলে আওয়ামী লীগের প্রেসিডিয়াম সদস্য কাজী জাফর উল্লাহ বাংলাদেশ প্রতিদিনকে বলেন, টেন্ডারের সঙ্গে আমাদের দলের কেউ জড়িত আছে বলে জানা নেই। যদি এরকম কোনো তথ্য আমরা পাই তাহলে অবশ্যই সাংগঠনিকভাবে ব্যবস্থা নেওয়া হবে।


ই-টেন্ডার চালু স্বল্প পরিসরে : বিগত মহাজোট সরকারের প্রথম দিকেই অর্থমন্ত্রী আবুল মাল আবদুল মুহিত বলেছিলেন, টেন্ডারবাজি এবং টেন্ডারকে ঘিরে সব ধরনের সহিংসতা বন্ধে সর্বক্ষেত্রে ই-টেন্ডার ব্যবস্থা চালু করা হবে। তারপর এ নিয়ে কাজও শুরু করে সরকার। সংশ্লিষ্ট সূত্র জানায়, প্রথম দিকে পরীক্ষামূলকভাবে চালু করা হয় ই-টেন্ডারিং ব্যবস্থা। পরবর্তীতে বিগত কয়েক বছরে সরকারের অন্তত ১৭ মন্ত্রণালয়ের অধীন বিভিন্ন দফতরে কেনাকাটা ও উন্নয়ন কাজের দরপত্র বা টেন্ডার আহ্বান করা হয় ই-টেন্ডারের মাধ্যমে। তবে সমস্যা অন্য জায়গায়, ই-টেন্ডার চালু হলেও তা হয়েছে সীমিত আকারে। 

পরিকল্পনা মন্ত্রণালয় সূত্র জানায়, ইতিমধ্যে ১৭টি মন্ত্রণালয়ের অধীন পানি উন্নয়ন বোর্ড, গৃহায়ন ও গণপূর্ত অধিদফতর, স্থানীয় সরকার প্রকৌশল বিভাগ, বিদ্যুৎ বিভাগ, সমাজকল্যাণ মন্ত্রণালয়, সড়ক বিভাগ, ওয়াসা, শিক্ষা মন্ত্রণালয়ের অধীন বিভিন্ন দফতরের ৫০ কোটি টাকার নিচের কেনাকাটা ও উন্নয়ন কাজের দরপত্র আহ্বান করা হয় ই-টেন্ডারের মাধ্যমে। সূত্র জানায়, ই-টেন্ডার বিষয়ে অভিজ্ঞতা না থাকায় অর্থাৎ যারা ই-টেন্ডারে অংশ নেবেন, যারা এ কাজ করবেন তাদের অনভিজ্ঞতার কারণে পুরোদমে সর্বক্ষেত্রে ই-টেন্ডার ব্যবস্থা চালু করা যাচ্ছে না।এসব বিষয়ে জানতে চাইলে তত্ত্বাবধায়ক সরকারের সাবেক উপদেষ্টা এম হাফিজ উদ্দিন খান বাংলাদেশ প্রতিদিনকে বলেন, টেন্ডারবাজি, চাঁদাবাজির ঘটনা আগেও হয়েছে, এখনো হচ্ছে। তবে সরকার ইচ্ছা করলে টেন্ডারবাজি নিয়ে ঘটা সহিংসতা, চাঁদাবাজি একদিনেই বন্ধ করে দিতে পারে। নিজেদের নেতা-কর্মীদের খুশি রাখার জন্য সরকার টেন্ডারবাজি, চাঁদাবাজি ঠেকানোর পদক্ষেপ নিচ্ছে না। নিয়ন্ত্রণ নিয়ে নানা উদ্যোগের কথা তারা বললেও বাস্তবে কিছুই করছে না। 

টিআইবির নির্বাহী পরিচালক ড. ইফতেখারুজ্জামান বলেন, রাজনৈতিক দলগুলো এখন রাজনীতিকেন্দ্রিক না হয়ে ক্ষমতাকেন্দ্রিক হয়ে পড়েছে। তারা মনে করেন, ক্ষমতায় থাকলে সম্পদ বাড়ানো যাবে। সাংগঠনিক কর্মকাণ্ডের বালাই নেই। আমাদের দেশের দলগুলো রাজনীতিকে সম্পদ আহরণের উপায় হিসেবে মনে করে। ক্ষমতাকে কেন্দ্র করে সম্পদ বাড়াতে আগ্রহ দেখা যায়। তিনি বলেন, যখন কেউ কম পান আর কেউ বেশি পান তখন তারা সংঘর্ষে জড়িয়ে পড়েন। টেন্ডারবাজি বন্ধে ই-টেন্ডার পদ্ধতি 'পরীক্ষামূলক'ই রয়ে গেছে। প্রযুক্তিগত দুর্বলতা ও যারা এসব পরিচালনা করবেন তাদের সক্ষমতার অভাবেই এ প্রক্রিয়া আটকে আছে।


http://www.bd-pratidin.com/lead-news/2015/05/18/81915

খুনের ঘটনায় লেবাননে আটকা পড়েছেন মমতাজ

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খুনের ঘটনায় লেবাননে আটকা পড়েছেন মমতাজ

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লেবাননে একটি সাংস্কৃতিক অনুষ্ঠানে অংশ নিতে গিয়েছিলেন সরকার দলীয় সাংসদ ও সংগীতশিল্পী মমতাজ। কিন্তু অনুষ্ঠানস্থলে আওয়ামীলীগের দুই গ্রুপের মধ্যে সংর্ঘষের ঘটনায় একজন নিহত হওয়ার প্রেক্ষিতে দেশটির নিরাপত্তা বাহিনী মমতাজসহ প্রবাসী বাংলাদেশিদের কাউকেই দেশে ফিরতে দিচ্ছে না।

লেবাননে বাংলাদেশের শিল্পী ও আওয়ামী লীগের এমপি মমতাজের সাংস্কৃতিক অনুষ্ঠানে সেখানকার আওয়ামী লীগের রাজনৈতিক কোন্দলকে কেন্দ্র করে দলের এক কর্মী খুনের ঘটনায় লেবানন থেকে দেশে ফিরতে চাওয়া সব বাংলাদেশিকেই বিমানবন্দর থেকে ফেরত পাঠাচ্ছে দেশটির সরকার।

http://www.bangladeshshomoy.com/news.php?id=8692#sthash.xhXiqR0W.dpbs

http://www.kalerkantho.com/online/national/2015/05/17/223090

The U.S. incarcerates more people than any other country in the world. With 2.2 million people behind bars, and millions more on probation or parole, 1 in 35 American adults is caught up in the prison system. AJ+ teamed up with The Marshall Project to examine why.

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Why Does The U.S. Jail So Many People?

​The U.S. incarcerates more people than any other country in the world. With 2.2 million people behind bars, and millions more on probation or parole, 1 in 35 American adults is caught up in the prison system. AJ+ teamed up with The Marshall Project to examine why.

https://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=uzxTaRkY6z4

The sixty-years'-celebration of Israel By Raja Chemayel

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The sixty-years'-celebration of Israel 

By Raja Chemayel

[60 Years After Israel's Founding, Many Are Not in the Mood for a Party]
 
 
 Qana.........no comments !
What is there to celebrate ??
the 6 wars ??
the 4 million refugees ??
the 3 million occupied ??
the 1,5 million abducted-hostages ??
the 254 km of an Apartheid- Wall ??
the 562 humiliation-check-points ??
the 20.000 Political-prisoners ??
468.831 new settlers on an occupied land ??
 
the disappearance of Palestine ??
 
the denial of any human-rights ,
any national-rights
any historical-rights ,
any political-rights to the Palestinians ??
 
the import of 4 million impostors
into a stolen land, that was never theirs ??
 
60 years of misery ,
of deprivation and or ethnic-cleansing ??
 
what are they celebrating ??
the event of a one United Nation Resolution
which was not anyhow binding , which allowed them to stay
or 
the refusal of about 40 other resolutions
which were indeed binding ,
but asking them to leave ??
 
what are they celebrating ??
the massacres of
Deir Yasssin ,
Sabra and Chatilla ,
Jennin and Gaza ??
 
 
Who else but criminals celebrate a crime ??
 
60 Years of a constantly revolving crime ,
is no  reason to a celebration
but rather a reason to be ashamed
and to repent .
 
60 Years ago ,
we were farmers , teachers, workers ,
shop-keepers, carpenters , drivers and poets.........
now they made "Terrorists " out of us.
But at least , we the "terrorist"  are fighting against a crime
while those blue-eyed-Zionists  are ,themselves , the crime ,
that 60 years old Crime !
 
 
 
Raja Chemayel
six weeks older than Israel
the seventh day of May 60 years later

(हस्तक्षेप.कॉम) जैज़ – ग़ुलाम सबसे ज़्यादा तब गाते हैं जब वे दुखी और ग़मज़दा होते हैं

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(हस्तक्षेप.कॉम) जैज़ – ग़ुलाम सबसे ज़्यादा तब गाते हैं जब वे दुखी और ग़मज़दा होते हैं


ताज़ा आलेख/ समाचार

शत्य र वास्तबिकता त यहिनै हो।महिनाको ५०/६० हजारको औषधी खानुपर्ने ओलीले राष्ट्रिय सरकारको नेतृत्व गर्न सक्दैनन्

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Kapil Shrestha_article
कपिल श्रेष्ठ

हामीले २५ वर्षयता यता देश बनाउन जानेनौं नेताहरुले बुझेनन् । गर्नुपर्ने काम नै गरेनौं । देशलाई अग्रगतितिर लान सुरक्षित बस्ती विकास गर्न नसक्दा हामीले अहिले विपत्तिको सामना गर्नुपरेको छ । स्थानीय निकाय नभएकोले राहत पुर्याउनका लागि सम्न्वय गर्न सकिएको छैन । यस्तै बेलामा जिम्मेवार दलका नेताहरुले राष्ट्रिय सहमतिको सरकारको नाममा 'सत्ताको भाग खाने'सोचमात्र बनाएका छन् ।

नेताहरुको यो सत्तारोग हुँदा–हुँदा पद्यरत्न तुलाधारदेखि ओम गुरुङसम्ममा सरिसक्यो । नेताहरुलाई झैं उनीहरुलाई पनि सत्ता चाहिएको छ ।

अहिले भएको सरकार त काम लागेको छैन विपत्तिको बेला अर्को सरकार बनाउनुको अर्थ र सन्देश के ? एउटा संविधान बनाउन त नेताहरुले गरिखाएनन् । सबै मिलेर गछौं विपत्ति समाधान गछौं र देशको पुनर्निर्माण गर्छौ भन्ने स्वार्थ लिंदै शक्तिमा पुग्ने दाउ मात्र हो ।

कोइरालालाई सहमतीय नेतृत्व सुहाउँदैन
प्रधानमन्त्री सुशील कोइराला र बाहुनको प्रधानमन्त्री भए । उनका वरिपरीको घेराले त्यसैलाई चरितार्थ गर्छ । यी मान्छे जिन्दगीभर सादगी र इमान्दार देखिए, इतिहास पनि त्यस्तै छ । तर, सक्षम देखिएनन् ।

सक्षम र दृष्टिकोण भएको मान्छे होइनन् । प्रधानमन्त्रीका रुपमा भूकम्पपछि अन्तर्राष्ट्रिय सहयोग परिचालन गर्न सकेनन् । यस्ता व्यक्तिले सहमतीय प्रधानमन्त्री मै हुन्छु भन्न सुहाउँदैन ।

औषधी खाने र अस्पताल जाने ओलीले चलाउन सक्दैनन्
महिनाको ५०/६० हजारको औषधी खानुपर्ने र निरन्तर अस्तापल जानुपर्ने व्यक्तिबाट सरकार चल्दैन । प्रजातन्त्रको लागि उनको योगदान छ । माओवादी अतिवाद रोक्न ओलीको बोलीले सहयोग गरेको छ । तर, ७० र ८० वर्ष पुग्न लागेका व्यक्ति उपचार गराइरहेका व्यक्तिले मुलुक चलाउने दिन गए ।

प्रधानमन्त्री बन्थे, अरुले बन्न दिएनन् भन्ने विषयलाई अब ओलीजीले आत्मकथामा लेख्नुपर्छ । उनका वरिपरि देखिएका नेता गु्रपिज्जमा छन् । भारत र चीनलाई खुशी पारेर शक्तिमा पुग्ने सोचदेखि केही देखिन्न ।

आफ्नो राजनीतिक करिअरमा ओली अहिलेसम्म प्रधानमन्त्री बन्न सकेका छैनन् । त्यसैले ओली सिंहदरबारबा एकपटक फोटो टागेर बिदा हुने दाउमा छन् । सोही कारण भूकम्पपछिको संकटमा आफूले निकास दिन सक्ने भन्दै नेतृतवमा दाबी गरिरहेका छन् । ओलीले प्रचण्डसँग सत्ताकै लागि दिनको दुईपटक भेट गर्नु पद र सत्तालोलुपताको पराकाष्ठा हो ।

प्रचण्डलाई सानो स्वार्थका लागि ढाँटेको आरोप
जनताले दोस्रो निर्वाचनबाट प्रचण्ड मोडलको राजनीतिक काम लाग्दैन भनेर अस्वीकार गरेका छन् । आन्दोलनका उनले सही नेतृत्व दिएका छन् तर, मुलुक चलाउने र आन्दोलनको नेतृत्व फरक कुरा विषय हुन् ।

सरकार चलाउने ठाउँमा प्रचण्ड नपुगेका होइनन् तर, मुलुक चलाउने सक्षमता देखाउन सकेनन् । जनताको विश्वास देखिएन । जनताले जहिल्यै प्रचण्डको इमान्दारीमाथि शंका गरे । सानो स्वार्थको लागि पनि प्रचण्डले ढाट्ने गरेको आरोप लागिरहेको छ ।

त्यसैले अहिलेको संकटमा अरु जस्तै प्रचण्डले पनि सत्ताको सही नेतृत्व गर्न सक्दैनन् । विपत्ति समाधानका लागि भन्दै  स्वार्थ सत्ताले मात्र राष्ट्रिय सरकारको कुरा आएका हुन् ।

बाबुरामलाई बाहिरै बसेर बुद्धिमता देखाउने अवसर
एमाओवादी नेता डा. बाबुराम भट्टराईले पनि सत्ता चलाइसके । जनादेशबाट माओवादीप्रति आस्था र विश्वास देखिइसकेको छ । बाबुरामहरुको राजनीति यतिखेर 'ट्रान्जिसन'मा छ ।

बाबुराममा साँच्चै खुबी छ भने विलक्षण प्रतिभा देखाउने बेला आएको छ । प्रधानमन्त्री भन्दा उहाँ विशेष मन्त्री वा सल्लाहकार बनेर विपत्तिमा योगदान र सहयोग गर्न सक्नुहुन्छ । यसका लागि प्रधानमन्त्री नै किन बन्नुपर्यो ? प्रधानमन्त्रीभन्दा अरु पदबाट योगदान गर्ने, हिम्मत, आँट र बुद्धिमता देखाउने बेला हो ।

प्रधानमन्त्री बनेको संख्या बढाउन उद्यत देउवा
कांग्रेस नेता शेरबहादुर देउवा पनि पटकपटक प्रधानमन्त्री भइसके । फेरि पनि कसरत गर्दैछन् भन्ने सुनिन्छ । यस्तो हेर्दा लाग्छ यी नेताहरुको जन्म नै प्रधानमन्त्री बन्नका लागि भएको हो । अरु अस्वस्थ र वृद्ध नेता जस्तै देउवाले पनि अहिलेको मुलुकको चुनौति, संकटलाई बुझेका छैनन्

विकल्प :  भिजनरी योङ पर्सन, जसले २० घण्टा काम गरोस्
अहिलेको  राजनीतिक नेतृत्वले आफ्नो सकेको र स्वार्थको सक्षमता वा असक्षमता देखाइसक्यो । यिनीहरुको भूमिका हेर्दा अहिलेको अनुहारले प्रजातन्त्र र संकटको चुनौति बुझेका छैनन् ।

त्यसैले, नयाँ जेनेरेसशनले नेतृत्वल पाउने गरी 'ग्रुम'गर्न थाल्नुपर्छ । अब क्याविनेट भनेको 'एक्स म्यान'र 'एक्स विमेन'थुपार्ने ठाउँ होइन । बेलायत अमेरिकामा ४० र ४२ वर्षका नेताहरु प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति हुन सक्ने यहाँ किन हुन नसक्ने ?
पुरानो सोच र विचारबाट देश अल्झियो । बुढाहरुमा 'इगो'धेरै हुन्छ । हिजो किसुनजी, गिरिजाबाबु, गणेशमानजीहरुको द्धन्द्ध यस्तै देखाएको छ ।

विनाशकारी भूकम्पपछि जनताको घर आँगनमा पुग्नेले व्यक्तिले नेतृत्व लिनुपर्ने बेला आएको छ । मुटुमा आँट र चुनौतिलाई सामना गर्ने कल्पनाशीलता भएको नेतृत्व अब आउनुपर्छ । त्यसैले २४ घण्टामा २० घण्टा गर्ने काम प्रधानमन्त्री मुलुकले खोजेको छ ।

भूकम्प आएको क्षेत्रमा धनी र नवधनीको घर मात्र बचेका छन् । पछि धन कमाएकाहरु र पहिले धनी भएकाहरुको मात्र बच्नुले यही सन्देश दिन्छ । भष्टाचार गरेर, एनजिओलाई पेशा बनाएकाहरुको घर भत्किएको छैन । तर, गा्रमीण बस्ती नै नचिनिने अवस्थामा छन् । यस्तो बेलामा आएका  राहतलाई प्रभावकारी बनाउन नसक्ने

द्धन्द्ध सकिएपछि अफगानिस्तानमा अरबौ डलर आयो । यहा छुच्छोपनले वैदेशिक शक्ति आएन ।

टेस्टेड पूर्व प्रधानमन्त्री विकल्प होइनन:
संकटलाई एकातिर छोडेर पूर्व प्रधानमन्त्रीहरुले एकै स्वरमा राष्ट्रिय सहमतिको सरकारले मात्र भूकम्पछिको संकटलाई समाधान गर्ने बताए । यो भनेको जन्मेकै प्धानमन्त्री बन्न जस्तो देखियो । 'टेस्टेड'यी व्यक्तिहरु संकटको बेलामा विकल्प बन्न सक्दैनन् । चरम सत्ता स्वार्थले घेरिएर मात्र उनीहरुले यस्तो बोलेका हुन् । सत्तामा छँदा यिनीहरुले के गरे ? संविाधन बनाए ? देशलाई निकास दिए ? अब विपत्ति व्यवस्थापन गर्छन् भन्ने ग्यारेन्टी के ?

लेखक प्रध्यापन तथा मानवअधिकारको क्षेत्रमा सक्रिय छन् ।

rabi raj thapa <thapa.rabiraj@gmail.com>
शत्य र वास्तबिकता त यहिनै हो। तर दम्भ र पाखण्डिपन, क्रोध र अभिमान, निष्ठुर, सम्बेदनहिनता ले भरिएका आशुरी प्रवृत्तीले भरिएका र शत्ता, भोग गर्न जन्मिएका मानिशको रुपमा जन्म लिएकाहरुले, रामर्ो र जनताको राम्रो र भलाईको लागी त्याग गर्ने कुरा गोरु पनि ब्याउंन सक्छ भन्ने कुरा पत्याउनु जस्तै हुन्छ। यस्ता व्यकतीहरुलाई प्रवृत्ती र निर्वृत्तिको बिन्नता जान्दैनन, ईश्वर लाई मान्धेनन, यो बिश्वमा " जिसका लाठी उसकी भैस " भन्ने मन्तमा मात्र विश्वास गर्छन भने यििनीहरु सत्ता शक्ती र सुखभोगको लागी  क्रुर भन्दा क्रुर कर्म गर्न पनि पछि पर्दैनन, र यस्ता व्यक्तीहरु जगतकै बिनाशकोलागी नै उत्पन्न भएका हुन्छन (श्री मद्भग्वत गिता १६ अध्याय श्लोक १ देखी १६ हेर्नुहोस)।
अब हामी सभे नेपाली हरुले कहांबाट कसरी उन्मुक्ती पाउन सकिन्छ। यस्ता काम र प्रबृत्तीलाई कपिल सरले त चिन्न यत्रो बर्षलाग्यो बने हामी जस्ता सोझा  साझा जनताको लागी त यो संभव नै छैन। तर यो कुरा लाई दुधको दुध पानिीको पानिी हुनेगरी जनतालाई को कती पानीमा छन भनेर नेपाली लाई जगाउन महा-भुकम्पा आयो । मानिसलाई प्रकृतीले नै बनायो भने न्याय अन्याय पनि अब धरती माता (प्रकृती) ले नै देखाउदै छिन।  देश लुटुंदा, धर्म लुटिंदा, संस्कृती लुटिदा  समेत बोल्न नसक्नेले भुकम्पलाई मात्र के दोष दिनु, जब यहा अझ कती कती राजनैतिक, शारिरिक र मानशिक भुकम्प त आउन बांकी नै छ।   

পুলিশ তাঁকে ধরে বলে, ‘তুই আগুন ধরাইছস। তুই শিবির করস।’ তখন নয়ন পুলিশকে জানান, তিনি হিন্দু

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এবার পুলিশ শুনেছে, নয়ন বিএনপির কর্মী


নিজস্ব প্রতিবেদক | আপডেট: ০২:১৪, মে ১৭, ২০১৫ | প্রিন্ট সংস্করণ

প্রায় তিন মাস ধরে জাতীয় অর্থোপেডিক হাসপাতাল ও পুনর্বাসন কেন্দ্রে (পঙ্গু হাসপাতাল) পুলিশি পাহারায় চলছে নয়ন বাছারের (২২) চিকিৎসা। গত ৪ ফেব্রুয়ারি রাতে পুরান ঢাকায় বাসে আগুনের ঘটনার পর পুলিশের গুলিতে গুরুতর আহত হন তিনি। এরপর পুলিশ তাঁর বিরুদ্ধে মামলা করে।
নয়ন জগন্নাথ বিশ্ববিদ্যালয়ের দর্শন বিভাগের তৃতীয় বর্ষের ছাত্র। তাঁর পরিবারের অভিযোগ, পুলিশ নয়নকে শিবিরের কর্মী বানিয়ে পায়ে অস্ত্র ঠেকিয়ে গুলি করেছে। পুলিশকে বারবার নয়ন হিন্দু সম্প্রদায়ের লোক বললেও পুলিশ বিশ্বাস করেনি।
গত ৫ ফেব্রুয়ারি রাজধানীর সূত্রাপুর থানায় নয়নের বিরুদ্ধে মামলা করেন কোতোয়ালি থানার উপপরিদর্শক (এসআই) এরশাদ হোসেন। এজাহারে তিনি উল্লেখ করেন, গত ৪ ফেব্রুয়ারি কোতোয়ালি থানার শাঁখারীবাজার মোড়ে একটি বাস থেকে যাত্রী নামছিল। এ সময় বাসটির মধ্যে দেশলাই দিয়ে আগুন ধরিয়ে দেওয়া হয়। যাত্রীদের চিৎকার-চেঁচামেচি শুনে তিনিসহ কয়েকজন পুলিশ সদস্য ঘটনাস্থলে দৌড়ে যান। তখন দুষ্কৃতকারীরা পালানোর চেষ্টা করে এবং এক যুবক তাঁদের লক্ষ্য করে ককটেল ছোড়ার চেষ্টা করে। তখন সঙ্গে থাকা কনস্টেবল কামাল হোসেন শটগান দিয়ে দুটি গুলি করে। এতে ওই যুবকের পায়ে লেগে সে জখমপ্রাপ্ত হন। পরে জানা যায়, ওই যুবকের নাম নয়ন বাছার।
তবে নয়নের স্বজনেরা জানান, নয়ন দয়াগঞ্জ এলাকায় একটি মেসে থাকেন। লক্ষ্মীবাজারে টিউশনি করতে যাচ্ছিলেন তিনি। বাসে আগুন লাগলে সবার সঙ্গে তিনিও নেমে দৌড়াতে থাকেন। তখন পুলিশ তাঁকে ধরে বলে, 'তুই আগুন ধরাইছস। তুই শিবির করস।'তখন নয়ন পুলিশকে জানান, তিনি হিন্দু সম্প্রদায়ের। পুলিশ নাম জানতে চাইলে তিনি নয়ন বাছার বলে জানান। তখন পুলিশ বলে, 'নয়ন বাশার কোনো হিন্দু লোকের নাম হইল।'এই বলে কিছুদূর নিয়ে গিয়ে তাঁর পায়ে অস্ত্র ঠেকিয়ে গুলি করা হয়।
ঘটনার পর থেকেই নয়ন পঙ্গু হাসপাতালে চিকিৎসাধীন। গতকাল বেলা তিনটার দিকে হাসপাতালে গিয়ে দেখা যায়, একটি কক্ষে একটি বেডে হেলান দিয়ে বসে এক স্বজনের সঙ্গে কথা বলছিলেন তিনি। বাঁ পায়ে ব্যান্ডেজ। ওই কক্ষে সাত-আটজন পুলিশ। এদের মধ্যে ঢাকা কেন্দ্রীয় কারাগারের দায়িত্বরত কয়েকজন পুলিশও ছিল।
ভেতরে গিয়ে পরিচয় দিয়ে কথা বলতে চাইলে নয়ন প্রথম আলোকে বলেন, 'আমি টিউশনি করতে যাচ্ছিলাম। আমি বারবার পুলিশকে বলেছি, আমি হিন্দু, আমি শিবির নই, কোনো রাজনীতি করি না। তবু তারা কথা শোনেনি। পত্রিকায় পড়েছি, পুলিশ বলেছে আমার কাছে নাকি অস্ত্র পাওয়া গেছে। পুলিশকে জিজ্ঞেস করেন, এখন ওই অস্ত্রটা কোথায়?'
পায়ের অবস্থা সম্পর্কে জানতে চাইলে এক পুলিশ এসে বাধা দেন। বলেন, 'এভাবে তথ্য নেওয়ার কোনো নিয়ম নেই।'
পঙ্গু হাসপাতালের চিকিৎসকেরা প্রথম আলোকে বলেন, নয়নের বাঁ হাঁটুর ওপর দুটি গুলির ছিদ্র পাওয়া গেছে। তাঁর পায়ের হাড় ভেঙে গেছে। এখন তিনি মোটামুটি সুস্থ। তবে সম্পূর্ণ সুস্থ হতে সময় লাগবে। জানতে চাইলে একজন চিকিৎসক জানান, অবস্থাদৃষ্টে মনে হয়েছে, গুলি কাছ থেকেই করা হয়েছে।
যোগাযোগ করা হলে মামলার তদন্ত কর্মকর্তা সূত্রাপুর থানার উপপরিদর্শক (এসআই) আমানুল্লাহ প্রথম আলোকে বলেন, 'আসলে নয়নকে পাবলিকই ধরেছিল। কোতোয়ালি থানা এলাকায় ঘটনা হলেও টানা-হেঁচড়া করতে করতে সূত্রাপুর থানা এলাকায় চলে যায়। এ কারণে সূত্রাপুর থানায় মামলা হয়েছে।'
'কিন্তু এজাহারে তো পাবলিক ধরার কথা নেই'—প্রশ্ন করলে আমানুল্লাহ বলেন, 'আপনি বাদীর সঙ্গে কথা বলেন। তবে নয়ন ছাত্রদল কর্মী।'কোনো প্রমাণ আছে কি না এবং তদন্তে তার দোষ পাওয়া গেছে কি না—প্রশ্ন করলে আমানুল্লাহ বলেন, 'কাগজে-কলমে পাই নাই। তবে শুনেছি। আর সে দোষী না নির্দোষ তা তদন্তের এ পর্যায়ে বলতে চাচ্ছি না।'
যোগাযোগ করা হলে মামলার বাদী কোতোয়ালি থানার এসআই এরশাদ বলেন, 'আমি সব এজাহারে উল্লেখ করেছি।'
জানা গেছে, নয়ন বাছারের গ্রামের বাড়ি বাগেরহাটের মোড়লগঞ্জের গোবিন্দপুরে। মা-বাবার একমাত্র সন্তান তিনি। তবে তার বয়স যখন ছয় মাস, তখন তার বাবা তাকে ও তার মাকে ছেড়ে ভারতে চলে যান। মা শিখা রানী মজুমদার গোবিন্দপুর একটি প্রাথমিক বিদ্যালয়ের শিক্ষক। নয়ন পিরোজপুরে একটি স্কুল থেকে এসএসসিতে এ প্লাস এবং একই এলাকার একটি কলেজ থেকে এ গ্রেডে পাস করে জগন্নাথে ভর্তি হন। টিউশনি ও মায়ের পাঠানো কিছু টাকা দিয়েই চলছিল তাঁর লেখাপড়া। তবে ছেলের এ অবস্থার কথা শুনে গ্রামের বাড়ি থেকে ঢাকায় ছুটে এসেছেন মা শিখা রানী। তিন মাস ধরে তিনি হাসপাতালে ছেলের সঙ্গেই থাকছেন।
মা শিখা রানী কাঁদতে কাঁদতে প্রথম আলোকে বলেন, 'বাছার হচ্ছে আমাদের বংশীয় উপাধি। নয়ন পুলিশকে নাম বলার পর বাছার শুনে মনে করেছিল বাশার। তাই তারে শিবির বলে সন্দেহ করে। আবার এখন বলছে ছাত্রদল। আমার ছেলেটা নির্দোষ। সে কোনো রাজনীতির সঙ্গে জড়িত না। পুলিশ যদি অন্যায় করে ভগবানই তাদের বিচার করবে। আমার একটাই দাবি, আমরা মুক্তি চাই।'

উন্নয়নের যোআরে জনতা ভেসে যাচ্ছে বিশ্ব দরবারে ইমেজ সংকটে বাংলাদেশ, দারিদ্র হ্রাসের ফাঁকাবুলি দেশে

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 উন্নয়নের যোআরে জনতা ভেসে যাচ্ছে 

বিশ্ব দরবারে ইমেজ সংকটে বাংলাদেশ, দারিদ্র হ্রাসের ফাঁকাবুলি দেশে









আড়াই দশক আগে স্বৈরশাসক এইচ এম এরশাদের পতনের পর অর্থনৈতিক ও সামাজিক ক্ষেত্রে বাংলাদেশ তাৎপর্যপূর্ণ অগ্রগতি লাভ করেছে। এক সময় হতদরিদ্র বাংলাদেশ এখন বিশ্বসভায় বহু ক্ষেত্রে অনুকরণীয় দৃষ্টান্ত হিসেবে উপস্থাপিত হচ্ছে। আন্তর্জাতিক গণমাধ্যমগুলোও বাংলাদেশ নিয়ে শুধু নেতিবাচক সংবাদ প্রকাশের ধারাবাহিকতা বাদ দিয়ে বহু ইতিবাচক বিষয় তুলে ধরছে। 

তবে সর্বগ্রাসী দুর্নীতি, প্রাকৃতিক দুর্যোগ, জলবায়ু পরিবর্তনের প্রভাব, রাজনৈতিক হানাহানি আর গার্মেন্ট ধসে পড়ার খবরও এ সময় শিরোনাম হয়েছে বিশ্ব গণমাধ্যমে। কিন্তু চলমান দক্ষিণ এশীয় অভিবাসী সংকট দৃশ্যত বাংলাদেশের সব অর্জনকে ম্লান করে দিয়ে দেশের ইমেজকে বড় চ্যালেঞ্জের মুখে ফেলেছে বলে মনে করছেন বিশেষজ্ঞরা। বিশেষভাবে, দারিদ্র্য বিমোচনে বর্তমান সরকারের 'সফলতা'র আন্তর্জাতিক 'স্বীকৃতি'মেলার মধ্যেই বাংলাদেশে দারিদ্র এবং বেকারত্ব চরম পর্যায়ে চলে যাওয়া সংক্রান্ত খবর বর্তমানে বিশ্বমিডিয়ায় ব্যাপকহারে প্রচারের ফলে ইমেজ সংকট তীব্র হয়েছে। 

এই মুহূর্তে বিশ্বের সবচেয়ে আলোচিত একটি ইস্যু হচ্ছে বাংলাদেশ এবং মিয়ানমারের অভিবাসী সংকট। জাতিসংঘ থেকে শুরু করে বিশ্বের বড় বড় মানবাধিকার সংস্থাগুলো এখন এই ইস্যু নিয়ে উদ্বিগ্ন। প্রতিদিন বিবৃতি দিচ্ছে। সমস্যা সমাধানে বিভিন্ন তৎপরতাও চালাচ্ছে তারা। আন্তর্জাতিক গণমাধ্যমে প্রতিদিন সমুদ্রে ভাসমান ক্ষুধার্ত-বস্ত্রহীন ও ক্রন্দরত রোহিঙ্গাদের সাথে বাংলাদেশিদের ছবি প্রকাশিত হচ্ছে। এসব বাংলাদেশি এবং তাদের সাথে থাকা মিয়ানমারের রোহিঙ্গা উদ্বাস্তুদেরকে আশ্রয় দিতে মালয়েশিয়া, ইন্দোনেশিয়া এবং থাইল্যান্ডকে চাপ দিচ্ছে জাতিসংঘ। বিশেষজ্ঞরা বলছেন, এর অন্য অর্থ হচ্ছে, নিজের দেশের এই ক্ষুধার্ত নিরুপায় মানুষদের আশ্রয় দেয়ার ক্ষমতা যে বাংলাদেশের নেই এটা তার আন্তর্জাতিক স্বীকৃতি । 

যেখানে বাংলাদেশের বর্তমান সরকার 'গণতন্ত্রের'চেয়ে 'উন্নয়নকে'প্রাধান্য দেয়ার স্লোগান নিয়ে এগোচ্ছে, এবং বহির্বিশ্বে বাংলাদেশকে 'উন্নয়নের মডেল'হিসেবে প্রচার করছে সেখানে 'বিশ্বের সবচেয়ে নিপীড়িত জাতিগোষ্ঠী'হিসেবে পরিচিত রোহিঙ্গা মুসলিমদের মতোই কাজের সন্ধানে বের হয়ে অসহায়ভাবে হাজার হাজার বাংলাদেশি নাগরিকের সাগরে ভেসে থাকার ব্যাপারটি মারাত্মক নেতিবাচক ইমেজ তৈরি করছে। সমুদ্রে ভাসমান কয়েক হাজার মানুষের প্রায় অর্ধেক বাংলাদেশি বলে আন্তর্জাতিক গণমাধ্যম জানাচ্ছে। বাকিরা মিয়ানমার থেকে বিতাড়িত রোহিঙ্গা মুসলিম। রোহিঙ্গাদের ব্যাপারটি আলাদা। জাতিগত পরিচয়ের কারণে তাদের ঘরবাড়ি পুড়িয়ে বা দখল করে ছেলে-বুড়ো-নারী-শিশু নির্বিশেষে সবাইকে হত্যা করা কিংবা সাগরে তাড়িয়ে দেয়া হয়। নৌকাগুলোতেও তা-ই দেখা যাচ্ছে- সব বয়সী মানুষই রয়েছেন। 

কিন্তু ভাসমান বাংলাদেশি নাগরিকদের বিষয়টি পুরোপুরি ভিন্ন। এরা সবাই গিয়েছেন কাজ খুঁজতে। দেশে কাজ নেই, অথবা ছোটখাটো ব্যবসাপাতি যা ছিল সব খুইয়ে বসেছেন দেশের অর্থনীতির দুরাবস্থার কারণে। তাই বাধ্য হয়ে পেটের তাগিদে অন্যদেশে কাজ খোঁজার জন্য সাগরে ভাসতে হয়েছে তাদের। বেকার বা অর্ধবেকার জীবনে অসহায়ের মতো বসে থেকে ছেলে-মেয়েদের ক্ষুধা-অসহায়ত্বের যন্ত্রণা চোখে দেখার চেয়ে তাদেরকে কাছে অনন্তের পথে যাত্রাই শ্রেয়। ভাগ্য ভাল থাকলে কাজ ঝুটে যাবে, না হলে অন্তত নিজের চোখে পরিবারের অন্যদের কষ্ট দেখতে হবে না! অনিশ্চিত ভবিষ্যত জেনেও এইসব মানুষ শুধু কাজের সন্ধানে দালালদের মাধ্যমে অবৈধভাবে ভিন দেশে প্রবেশ করতে যায়।

জাহাঙ্গীরনগর বিশ্ববিদ্যালয়ের আন্তর্জাতিক সম্পর্ক বিভাগের অধ্যাপক তারেক শামসুর রেহমান মনে করেন, অভিবাসী ইস্যুতে বাংলাদেশের ভাবমূর্তি বহির্বিশ্বে মারাত্মকভাবে ক্ষতিগ্রস্ত হচ্ছে। এর বেশ কিছু নেতিবাচক ফলাফলও আছে বলেও মনে করছেন তিনি। অধ্যাপক তারেক বলেন, সংকটটির দুইটা দিক রয়েছে। 

এক. একটা অংশ অভিবাসী মিয়ানমার থেকে বিতাড়িত হয়ে মূলত বাংলাদেশে ঢুকতে চাচ্ছে। এখানে না পেরে তারা পার্শ্ববর্তী অন্য দেশে আশ্রয় নেয়ার চেষ্টা করছে। দুই. অন্য অংশটি বাংলাদেশের নাগরিক। তারা কাজের জন্য বিদেশে যেতে বের হয়েছে। 'দ্বিতীয় বিষয়টি বাংলাদেশকে বিশ্বের দরবারে প্রশ্নের সম্মুখীন করবে। বাইরের লোকজন মনে করবে দেশটিতে বেকারত্ব ভয়াবহ আকার ধারণ করেছে। এটা সরকারের জন্য নেতিবাচক। আবার অনেকে ধরে নিতে পারে এসব দেশছাড়া লোকজন সরকারের নিপীড়নের শিকার হয়েও দেশ ছাড়তে পারে। যেহেতু তাদের সঙ্গে থাকা মিয়ানমারের রোহিঙ্গারা এই ধরনের নিপীড়নের শিকার বলে সবাই জানে। ফলে বাংলাদেশের ক্ষেত্রেও এটা মনে হওয়া অস্বাভাবিক নয়,'বলেন তারেক শামসুর রেহমান।

তিনি আরো বলেন, 'বাংলাদেশে নিপীড়নের বিষয়টি বাইরে প্রতিষ্ঠিত হলে এখানকার অস্থিতিশীলতারই বার্তা যাবে বহির্বিশ্বে। এর একটা অর্থনৈতিক দিকও আছে- বিদেশি বিনিয়োগকারীরা আরো নিরুৎসাহিত হবেন।'কোস্ট গার্ড থাকা অবস্থায় বাংলাদেশের সীমানা পার হয়ে এত সংখ্যক নাগরিক কিভাবে অন্যদেশের সীমান্তে যায়, এই প্রশ্ন তুলে বাংলাদেশ সরকারের বর্তমান করণীয় সম্পর্কে অধ্যাপক তারেক বলেন, এখন উচিত নতুন করে কেউ যাতে সমুদ্রে ভাসতে না পারে সেটা নিশ্চিত করা। তিনি বলেন, রোহিঙ্গাদের বাংলাদেশে পুশ করার চেষ্টার বিষয়ে মিয়ানমারের বিরুদ্ধে দ্রুত আসিয়ান ফোরাম এবং জাতিসংঘে বাংলাদেশের পক্ষ থেকে অভিযোগ উত্থাপন করলে দেশটি এই ইস্যুতে চাপের মুখে পড়বে। 

উখিয়ার তিন গ্রামে নিখোঁজ ৫০০ জনঃ কক্সবাজার থেকে ৫৪ কিলোমিটার দূরে উখিয়া সমুদ্র উপকূলের পাহাড়ি গ্রাম পিনজিরকুল। গত তিন মাসে এই গ্রাম থেকে সমুদ্রপথে থাইল্যান্ড ও মালয়েশিয়া পাচার হয়েছে আট শতাধিক মানুষ। এদের মধ্যে নিখোঁজ রয়েছেন অন্তত ২২০ জন। পুলিশ, মানব পাচার রোধে কাজ করা বেসরকারি সংস্থা ও স্থানীয় লোকজনের সঙ্গে কথা বলে এ তথ্য জানা গেছে। পিনজিরকুলের পাশের দুই গ্রাম সোনাইছড়ি ও পশ্চিম দরগাহবিল থেকেও একই সময়ে পাচার হয়েছে দেড় হাজারের বেশি মানুষ। নিখোঁজ রয়েছেন অন্তত ২৭৭ জন। 

মানব পাচার প্রতিরোধ নিয়ে উখিয়া উপজেলায় কাজ করা বেসরকারি সংস্থা হেলপ কক্সবাজারের নির্বাহী পরিচালক আবুল কাশেম জানান, পিনজিরকুল, দরগাহবিল ও সোনারপাড়া—এই তিন গ্রাম থেকে পাচার হওয়া অন্তত ৫০০ জন নিখোঁজ রয়েছেন। এছাড়া থাইল্যান্ড, মিয়ানমার ও মালয়েশিয়ার কারাগারে বন্দিজীবন কাটাচ্ছেন এখানকার প্রায় ৩০০ মানুষ। গত মার্চ ও এপ্রিল মাসে এই তিন গ্রামের ভুক্তভোগী পরিবারগুলোর সঙ্গে কথা বলে পাচার হওয়ার পর নিখোঁজ ১২০ জনের একটি তালিকা তৈরি করেছে সংস্থাটি। কর্মকর্তারা জানান, নিখোঁজ ব্যক্তিরা থাইল্যান্ড ও মিয়ানমারের কারাগারে বন্দী রয়েছেন। হেলপ কক্সবাজারের নির্বাহী পরিচালক জানান, বন্দী ১২০ জনকে উদ্ধারের জন্য গত ৩০ এপ্রিল তালিকাটি স্বরাষ্ট্র ও পররাষ্ট্র মন্ত্রণালয়ে পাঠানো হয়েছে।

শুধু একটি উপজেলায় এত সংখ্যক মানুষ নিখোঁজ থাকলে সারাদেশ থেকে কত মানুষ নিখোঁজ তার কোনো পরিসংখ্যান নেই। সরকারের ফাঁকা বুলি? ২০১৩ সালে জাতিসংঘের অধিবেশনে যোগ দেয়ার জন্য নিউইয়র্ক সফরকালে প্রধানমন্ত্রী শেখ হাসিনা একটি পুরস্কার পেয়েছিলেন। 'সাউথ সাউথ অ্যাওয়ার্ড'নামক ওই পুরস্কারটি 'দারিদ্র বিমোচনে বিশেষ ভূমিকা রাখার জন্য'বাংলাদেশের প্রধানমন্ত্রীকে দেয়া হয়েছিল বলে খবরে প্রকাশ হয়েছিল তখন। প্রধানমন্ত্রী শেখ হাসিনা পুরস্কার নিয়ে দেশে ফেরার পর বিমানবন্দরে আওয়ামী লীগের গণসংবর্ধনায় বলেছিলেন, 'বাংলাদেশ এখন উন্নয়নের মডেল। দারিদ্র বিমোচনে বিশেষ ভূমিকা রাখার জন্য বাংলাদেশ সাউথ সাউথ অ্যাওয়ার্ড পেয়েছে। সন্ত্রাস-জঙ্গিবাদের পরিবর্তে উন্নয়নে রোল মডেল হিসেবে বিশ্বে স্বীকৃতি পেয়েছে বাংলাদেশ। 

আন্তর্জাতিক সম্মানের এ ধারাবাহিকতা বজায় রাখতে হবে।'সরকারের পক্ষ থেকে দেশে কর্মসংস্থান সৃষ্টি নিয়ে নানা সময়ে নানা কথা বলা হলেও বাস্তব পরিস্থিতি যে সসম্পূর্ণ ভিন্ন তা সমুদ্রে ভাসমান বাংলাদেশিরা চোখে আঙ্গুল দিয়ে দেখিয়ে দিচ্ছেন। সরকারের মন্ত্রীরা নানা সময়ে দাবি করেছেন ২০০৯ সাল থেকে বর্তমান পর্যন্ত ১ কোটির কাছাকাছি কর্মসংস্থান সৃষ্টি করা হয়েছে। 

প্রধানমন্ত্রী শেখ হাসিনা শনিবার চাঁপাইনবাবগঞ্জেও একই কথা বলেছেন। কিছুদিন আগে আওয়ামী লীগের সভাপতিমণ্ডলির সদস্য এবং কৃষিমন্ত্রী মতিয়া চৌধুরী দাবি করেছিলেন ১৯৯৬ ও ২০০৮ সালের আওয়ামী লীগ শাসনামলে ১ কোটি করে মোট ২ কোটি লোকের চাকরির ব্যবস্থা করেছে। প্রধান কিন্তু গত বছরের আগস্টে অর্থমন্ত্রী আবুল মাল আবদুল মুহিতের একটি বক্তব্য ছিল মতিয়া চৌধুরীর বক্তব্যের বিপরীত। অর্থমন্ত্রী বলেছিলেন, 'কর্মসংস্থান সৃষ্টির ক্ষেত্রে বাংলাদেশ এখনো অনেক পিছিয়ে রয়েছে। ঢাকা বিশ্ববিদ্যালয়ে উন্নয়ন বিষয়ক সামাজিক সংগঠন (এমিনেন্স) আয়োজিত অনুষ্ঠানে তিনি আরো বলেন, মাথাপিছু জাতীয় আয় বাড়লেও, মাথাপিছু ক্রয়ক্ষমতা সেভাবে বাড়েনি। দেশে প্রায় ৭ কোটি ৮০ লাখ শ্রমশক্তি রয়েছে। 

তবে এর মধ্যে শতকরা ২০ ভাগের কম মানুষের আনুষ্ঠানিক কর্মসংস্থানের সুযোগ রয়েছে। বাকি শ্রমশক্তি প্রত্যক্ষ বা পরোক্ষভাবে বেকার। অর্থমন্ত্রীর এই তথ্য থেকে দেশের সক্ষম মানুষদের বেশিরভাগই যে প্রত্যক্ষ বা পরোক্ষভাবে বেকার তা জানা যায়। আর গণমাধ্যমে প্রকাশিত বিভিন্ন প্রতিবেদন থেকে বুঝা যাচ্ছে, এই বেকারত্ব দিন দিন বেড়েই চলেছে। ২০১৪ সালের অক্টোবরে দৈনিক কালের কণ্ঠের 'কর্মসংস্থান নেই চলছে ছাঁটাই'শিরোনামের একটি প্রতিবেদনে বলা হয়, 'ছোট ও মাঝারি প্রতিষ্ঠানগুলোর গল্প মোটামুটি একই রকম- বিক্রি নেই, টাকা নেই, নতুন নিয়োগ নেই। উল্টো পুরনো কর্মীদের বিদায় করে টিকে থাকার চেষ্টায় আছে অনেক প্রতিষ্ঠান। বেশির ভাগ প্রতিষ্ঠানেই বেতন অনিয়মিত হয়ে গেছে। অনেক প্রতিষ্ঠানে গত কোরবানির ঈদে বোনাস হয়নি। প্রতিষ্ঠানের করুণ দশা দেখে কর্মীরাও মালিকের কাছে বোনাস চায়নি। তারা সবাই আবার সুদিনের অপেক্ষায় আছে। ওদিকে বড় প্রতিষ্ঠানগুলো টিকে আছে তাদের অন্য ব্যবসার ওপর ভর করে। চার-পাঁচটি খাতে যাদের ব্যবসা আছে তারা একটি-দুটি খাতে ভালো ব্যবসা করে সেই টাকা ভর্তুকি হিসেবে দিচ্ছে নিজেদের আবাসন ব্যবসায়। তবে তাদের মনেও প্রশ্ন- এ অবস্থা আর কতকাল?' 

এদিকে বিদ্যুৎ সংকট, গ্যাস সংযোগ বন্ধ করে দেয়া, রাজনৈতিক অস্থিতিশীলতাসহ নানা কারণে নতুন বিনোয়োগ হচ্ছে না দেশে। ফলে কর্মসংস্থান সৃষ্টি হচ্ছে না। মূলধনী যন্ত্রপাতির পাশাপাশি বিভিন্ন কারখানার কাঁচামাল আমদানি কমে যাওয়ায় কেন্দ্রীয় ব্যাংকের রিজার্ভ হু হু করে বাড়ছে। ব্যাংকে জমেছে অলস টাকার পাহাড়। নতুন বিনিয়োগ না আসার পাশাপাশি বন্ধ হয়েছে শত শত গার্মেন্টসহ অন্যান্য কারাখানা। সারাদেশে ছড়িয়ে থাকা বিভিন্ন ধরনের কুটির শিল্প মালিকরাও পরিবহন সমস্যা, দ্রব্যমূল্যের উর্ধ্বগতির বিপরীতে সঠিক মূল্য না পাওয়া, সরকারি দলের ক্যাডার এবং পুলিশের চাঁদাবাজির কারণে ব্যবসা গুটাতে বাধ্য হচ্ছেন।

এভাবে প্রায় প্রতিটি সেক্টরে কমবেশি কর্মসংস্থান কমছে। দেশ ছাড়ার উতস খুঁজতে চাপ দেবে জাতিসংঘঃ দক্ষিণ-পূর্ব এশিয়ার বিভিন্ন দেশের মানুষ কেন দেশ ছাড়ছে, তার উৎস অনুসন্ধানের মাধ্যমে সমাধান করা প্রয়োজন বলে মনে করে জাতিসংঘ। শনিবার জাতিসংঘ সদর দপ্তরে নিয়মিত মধ্যাহ্ন ব্রিফিংয়ে মহাসচিবের উপমুখপাত্র ফারহান হক এ কথা জানান। বাংলাদেশ, মিয়ানমারসহ দক্ষিণ-পূর্ব এশিয়ার বিভিন্ন দেশের কয়েক হাজার মানুষ পাচারকারীদের শিকার হয়ে গভীর সাগরে অভুক্ত অবস্থায় মৃত্যুর সঙ্গে লড়াই করে জীবন কাটাচ্ছে। গত কয়েক দিন ইন্দোনেশিয়া ও মালয়েশিয়ায় পৃষ্ঠপোষকতায় কয়েক হাজার মানুষকে উদ্ধার করা হয়েছে। শনিবারও ২০০ অভিবাসী উদ্ধার হয়েছে। তাদের অর্ধেকের বেশি বাংলাদেশি ও বাকিরা রোহিঙ্গা। তাদের চিকিৎসার ব্যবস্থা করা হয়েছে। 

এই মর্মান্তিক পরিস্থিতিতে সমস্যার মূলের খোঁজ নিতে জাতিসংঘ থেকে বাংলাদেশ ও মিয়ানমারের সরকারকে কোনো চাপ দেওয়া হবে কি না, যেখানে মানুষ নিপীড়ন থেকে রেহাই পাওয়ার চেষ্টা করছে—এ প্রশ্নের জবাবে ফারহান বলেন, 'হ্যাঁ, আমাদের গতকালের বিবৃতিতে এ ধরনের বিষয় উল্লেখ করা ছিল, আপনারা দেখে থাকতে পারেন। জাতিসংঘের মহাসচিব বলেছেন, যেসব জায়গায় অতিমাত্রায় মানবাধিকার লঙ্ঘিত হচ্ছে, সেখানে সমস্যার উৎসের বিহিত করা প্রয়োজন। তাহলে বোঝা যাবে, আসলে কী কারণে মানুষগুলো সাগরে ভেসে বেড়াচ্ছে।

http://www.amardeshonline.com/pages/details/2015/05/17/284580#.VVipRvBc2OA

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Just a few words of explanation about the innovation of forest user groups and mothers' groups in Nepal.

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Just a few words of explanation about the innovation of forest user
groups and mothers' groups in Nepal.


As a trained anthropologist and a section officer in the government I
had the rare and distinct opportunity to do an ethnographic study in a
Jumla village, HaadSinja, now a part of Kanika Sundari VDC, back in
1969-70 as a member of a multi-disciplinary team for the then Royal
Nepal Academy under the leadership of Mr. Satya Mohan Joshi, now the
Satabdi Purush of the country. At that time I came across a
traditional irrigation system, the Jachauri Kulo, dating back to
centuries, at least six hundred years old according to late Dr. Harka
Gurung. It was an extraordinary example of the efficacy of user
management of rural infrastructures. Since I was a civil servant in
the government, what I wrote became the policy of the government,
nearly literally. So, based on the Jachauri Kulo, I , as an
undersecretary in 1976, conceived the institution of user groups and
introduced them in a World Bank rural development project, and later,
as joint secretary, was able to enshrine the institution in the
Decentralization Act of 1982. Later in 1986/87, as an official in the
National Planning Commission, I was able to create conditions for the
innovation and introduction of forest user groups by the Forest
Ministry that happened in 1988. That was the turning point for Nepal's
totally dilapidated forests. The FUGs that now number 18,000 in the
country,  went on to restore Nepal's forest wealth that had come under
the rampage of the people following its nationalization in 1957.  In
1988 too, I as the additional secretary responsible for primary health
care in the Health Ministry, had the opportunity to innovate and
introduce Mothers' Groups and their Female Community Health
Volunteers, each of which now number 52,000 in the country and have
been the main institution that put Nepal on the health map of the
world by installing it as one of the top performers in achieving MDGs
in child survival and maternal mortality rate reduction. The one
lesson I learned over the years is that change-making involves a great
persistence spanning several years in the process.

The reason I consider user group approach indispensable also for
earthquake relief, rebuilding and rehabilitation is that it is only at
that level at the grassroots we can assure good governance conditions
that are essential for making proper use of resources and respond
adequately to the deprivations of the victims, which, by their very
nature, happen to be location, community and individual specific.
Since these are inclusive groups, they provide necessary political
space even to the weakest woman and man in the communities and they
get to protect their stakes in them. Therefore, most of these
institutions are also very equitable in the distribution of
development benefits in the communities. Given the fact that our
society remains persistently feudal in its character, patronization
remains the rule of the game of politics, and that makes just about
every single politician in Nepal a necessarily corrupt man.

If you go through this week's issue of Himal Khabar Patrika, once
again, they are talking about so many Kharab (trillion) rupees for
earthquake rebuilding. The fact that Nepal has been the recipient of
foreign aid starting 1949, billions of dollars have passed through the
country and that there is very little to show for them in the country
has clearly escaped the editors of the magazine and the wise-guy
economists profusely quoted in it. Nepal has benefitted from and
remains internationally respected for two innovations only mentioned
above, and both of them have been domestic innovations, not foreign
aid. Therefore, as suggested by Greta jee, for once, the donor
community must feel humbled by their chronic history of failures and
lend themselves to the efficacy of the Nepali institutions. It is for
these reasons that we should be talking more about the institutional
arrangement that is capable to reach out to all the EQ victims living
far and near, and put them in command of their own destiny, including
post-quake rebuilding of their lives. In order to provide a properly
streamlined support to that end, I find it necessary that the
country's President should take over, and use our 100,000 strong army
(and the private sector) to bring necessary technical and material
support to the victims' user groups in all the 30 plus
earthquake-affected districts in the country. Anything else would be
wastage of time and resources, huge misappropriation of international
aid--every known celebrity in the world seems to be raising funds for
Nepal--at the hands of these corrupt politicians and their similarly
qualified henchmen in the bureaucracy. All these would be the perfect
recipe for the perpetuation of the untold suffering of the Nepali
humanity that has always been poor and deprived and is now much worse
off due to the massive quake.

Bihari Krishna Shrestha

दलित महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया जाना, प्रदेश में दलित उत्पीड़न की पराकाष्ठा ‘लोकतंत्र और इंसाफ का सवाल‘ पर हुई परिचर्चा

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RIHAI MANCH
For Resistance Against Repression
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इंसाफ मुहिम का अगुवाई करे युवा- मुहम्मद शुऐब
दलित महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया जाना, प्रदेश में दलित उत्पीड़न की पराकाष्ठा
'लोकतंत्र और इंसाफ का सवाल'पर हुई परिचर्चा

इलाहाबाद 17 मई 2015। 'लोकतंत्र और इंसाफ का सवाल'विषय पर इलाहाबाद
विश्वविद्यालय के मुस्लिम बोर्डिंग छात्रावास में परिचर्चा का आयोजन हुआ।
परिचर्चा में मुख्य वक्ता रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि जिस
तरह से पिछले दिनों हाशिमपुरा, गुजरात के दंगाईयों से लेकर बाथे-बथानी
टोला से लेकर जगह-जगह फैसले आए उन्होंने साफ किया कि मुस्लिमों,
दलितों-आदिवासियों को इंसाफ न देने के सवाल पर सभी सरकार एक मत हैं। जिस
तरीके से आरडी निमेष आयोग द्वारा तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद को
निर्दोष बताने के बाद भी तारिक कासमी को आजीवन कारावास दिया गया है उससे
इंसाफ और लोकतंत्र का सवाल अहम हो जाता है कि क्या सरकार के लिए जनता के
मनोबल के बरअक्स पुलिस का मनोबल ज्यादा अहम है। उन्होंने युवाओं से अपील
करते हुए कहा कि केन्द्र व राज्य सरकारों की विकास के नाम पर की जा रही
नाइंसाफी के खिलाफ रिहाई मंच की मुहिम में नेतृत्व युवाओं का होगा, जो इस
मुिहम को समाज के व्यापक मुद्दों के साथ प्रदेश भर में चलाएगा।

सामाजिक न्याय मंच अध्यक्ष राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि रिहाई मंच
की इंसाफ मुहीम में प्रदेश में छात्रों-युवाओं की शिक्षा-रोजगार जैसे
मुद्दे अहम होंगे। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से पदों की नियुक्तियों व
आयोगों में धांधली हो रही है उससे न केवल युवाओं का मनोबल टूटा है बल्कि
इससे बढ़कर यह हमारे समूचे लोकतंत्र पर एक संगठित हमला है। आज जिस तरीके
से सरकार और प्रशासन किसानों की आत्महत्या जैसे गंभीर मसले को दबाने का
हर संभव प्रयास कर रहे हैं वह इसी प्रकार के भ्रष्ट गठजोड़ का नतीजा है।
इंसाफ मुहीम में आयोगों की नियुक्ति प्रक्रिया में धांधली, अरबी-फारसी
भाषा को यूपीएससी से हटाया जाना, राज्य विश्वविद्यालयों में उर्दू
अध्यापकों की नियुक्ति न करना, उर्दू-अरबी-फारसी विश्वविद्यालय से इन
तीनों भाषाओं की अनिवार्यता समाप्त करना, पीएचडी प्रवेश में धांधली,
सरकारी सेवाओं में रोजगार की भारी कटौती जैसे मुद्दे अहम होंगे।

रिहाई मंच नेता राजीव यादव ने कहा कि शाहजहांपुर जिले में जलालाबाद के
गांव बड़े हरेवा में पांच दलित महिलाओं को दंबगों द्वारा गांव में
निर्वस्त्र कर घुमाया गया और सुबह की घटना के बाद जिस तरीके से देर शाम
पुलिस गई वह साफ करता है कि प्रदेश में दलित उत्पीड़न को रोकने में न
सिर्फ सरकार विफल है बल्कि वह इसमें संलिप्त भी है। दंबगों व पुलिस
प्रषासन के दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि
रिहाई मंच का एक जांच दल घटना स्थल का दौरा करेगा। इंसाफ मुहिम के बारे
में बताते हुए उन्होंने कहा कि इसके तहत प्रथम चरण में पूरे प्रदेष में
जिले व कस्बों स्तर पर बैठकों के माध्यम से बिगड़ती कानून व्यवस्था,
प्रशासनिक उत्पीड़न, किसान आत्महत्या, भूमि अधिग्रहण, भ्रष्टाचार, अवैध
खनन, कृषि विरोधी सरकारी नीतियों, सांप्रदायिक-जातीय आधार पर हिंसा,
मंहगी शिक्षा व चिकित्सा जैसे सवाल जिस पर आम व्यक्ति जीना मुहाल हो गया
है सवालों को लेकर यह मुहिम चलाई जाएगी।

परिचर्चा में मुस्लिम हास्टल के सामजिक सचिव तबरेज खान, मोहम्मद आरिफ,
अनिल यादव, लक्ष्मण प्रसाद, दरीद नवाज, राधेश्याम यादव, मो जावेद, दिनेश
चैधरी, अबु सुफियान, डा0 लईक अहमद, आनंद यादव, जहरुल इस्लाम, मुन्ना
मजदूर, इरशाद अहमद, मो0 जावेद, रेहान आजमी आदि शामिल हुए। परिचर्चा का
संचालन डा0 नफीस अहमद ने किया।

द्वारा जारी
मोहम्मद आरिफ
09807743675
------------------------------------------------------------------------------
Office - 110/46, Harinath Banerjee Street, Naya Gaaon Poorv, Laatoosh
Road, Lucknow
E-mail: rihaimanch@india.com
https://www.facebook.com/rihaimanch

Juvenile Justice Act – makes children vulnerable

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A Law Lurking In The Grey

As the Lok Sabha passes a new Act, the position of juveniles, especially those from marginalised sections of the society, becomes vulnerable
2015-05-23 , Issue 21 Volume 12ASAD ASHRAF

Juvenile Justice Illustration : Mayanglambam Dinesh

With the  passing the Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2014, the question agitating the minds of civil  activists and organisations alike is the following: Will children aged between 16 and 18 not get a chance to reform and return to the mainstream? The Union Ministry of Women and Child Development (WED) showed haste in piloting the new Act to replace the existing Juvenile Justice Act, 2000 in spite of reservations expressed by a parliamentary committee. Yet, the amendents made to the Act are not being advocated for the first time.  of the BJP had approached the court in 2013 with a petition to lower the age of a juvenile in the Act. The petition was rejected, with the Supreme Court holding that there was no need to amend the law.

Now, the new Act has pitted civil  organisations against the government. According to them, lowering the age would inject morecriminals into the than solving the problem of crime.

Ashish Asthana, an advocate, argues that the existing law on juvenile justice has many discrepancies and enacting a new Act to replace the old one would only worsen the problem.

"Every child under the age of 18 should get the opportunity to reform. It is important to understand that when children commit a crime, they do it under certain influences. Circumstances drive them to commit an offence. The new amendments will ignore these factors and deny most underprivileged kids their right to reform," Asthana told Tehelka.

The ministry, on the other hand, has cited the increasing number of crimes committed by juveniles as a precedent for the need to bring in the amendments to the existing law.

The debate around juveniles began after the 'Nirbhaya rape' case of December 2012. It was widely reported at the time that the most brutal of those involved in the crime was a juvenile who, by virtue of his age, could be sentenced only for a period of up to three years in a remand home, as per the Section 15 of the Juvenile Justice Act, 2000; consequently, he would escape the gallows.

The American experience with juvenile justice is being argued by those pitching for changes to the law. In America, at any given point of time, if a juvenile above a certain age committed a crime, the case was automatically transferred to an adult court. This was so because a series of campaigns in the early '90s in the US had forced the  to bring in archaic and oppressive amendments to their juvenile laws. One of the chief architects of the campaign was John Dilulio, a professor at Princeton University.

Asthana says about the American experience: "The campaign led to the doctrine of adult time and as a result even children aged 12 could be tried under adult courts. But what happened later must be taken as an experience for us in India. John later regretted being a part of the campaign but it was too late and American prisons were swelling with young kids who would not get a chance to correct their wrongs."

According to the data available with Prayas, an organisation working for child rights, 5,901 cases out of the 1,69,376 ipc crimes recorded in 2013 involved juveniles; this amounts to a mere 3.48 percent. Amod Kanth, general secretary of Prayas, says that it is a small number and is something which can be controlled. He cites 2012 figures to argue that the "majority of crimes committed [in that year] were by children living in acute poverty." Furthermore, "out of 39,822 children apprehended, the huge majority i.e. 20,685 were found to be illiterate or less than primary educated and at least 8,183 were found to be either homeless or living without parents."

The data suggests that stark inequality in the  is one of the primary driving factors for pushing children into crime. It would appear sensible, therefore, to begin to address the issue of juvenile offenders by working on reducing these inequalities, rather than branding them as criminals.

In addition to lowering the age from 18 to 16, there are some other contentious changes, too, such as the circumstances of offence, determination of age on the basis of physical appearance and the usage of bone ossification test for medical age determination.

The new amendments would not give an offender a chance to prove their age in a court of law; the only authority that can decide on the matter is the Juvenile Justice Board. The abstract nature of deciding one's age by one's physical appearance is another cause of concern. Juvenile Justice Centres are already swelling with young offenders undergoing reform; therefore, accommodating more juveniles is a constant worry for the authorities concerned.

However, some activists reason that what is missing from the current debate on juvenile justice is the potential to victimise people from the marginalised sections of the  on charges of terrorism and anti-State activities.

Tomes have been written by activists, academics and mediapersons alike on how the anti-terrorism laws have been used to frame people from the marginalised communities.

In her book Kafkaland, Manisha Sethi cites instances of state agencies fabricating evidence to implicate youths from a particular community on charges of terrorism. Her report on the special cell of the Delhi Police, titled "Framed, Damned, Acquitted," contains some accounts of such cases. The list of many youths acquitted on charges of terrorism and similar activities has also been rising suggesting inadequacy on the part of the state agencies to deal with the problem.

Mohammad Amir Khan, who had just turned 18 in the winter of 1998, was picked up by the personnel of the Delhi Police's special cell on charges of terrorism and more than a dozen cases, which he was unaware of, were slapped on him. However, he was acquitted 14 years later and all charges against him were dropped. During his long stay in different jails, he recalls stories of individuals, including minors, who were arrested on charges of terrorism and were later let off by the courts when a case could not be framed against them.

He recounted the tale of one Rashid, a juvenile from Kashmir. "Rashid," he recalls, "was booked on charges of waging a war against the State. It took him three years to prove to the courts that he was a juvenile and many more years to finally prove his innocence and get relief from the courts in all the cases against him." Khan asserts that when the new Act replaces the erstwhile Juvenile Justice Act, 2000, there is every possibility that more kids such as Rashid would be implicated by the state machinery.

On 27 April last month, according to a statement issued by the People's Union for Democratic Rights (pudr), three minor girls, aged between 15 and 17, were picked up by the Special Task Force (stf) of Chhattisgarh Police, from Kormagundi village in Sukuma district. The girls were out to graze buffaloes when they came across around 25 stf personnel emerging from the forest. Out of fear, they began to run away from the spot only to be apprehended by the stf personnel; they were beaten up along with their family members and later taken to the Kukanar police station on the suspicion that they were Maoists. The next morning, they were produced before a magistrate and subsequently shifted to an observation home, about 400 km away, in Rajnandgaon. According to an official narrative, the three were suspected to be Maoists because they were caught fleeing from the site where a skirmish had broken out between the police and the Maoists. The Jagdalpur Legal Aid Group helped the girls' parents file a petition for bail. The lawyers of the group pointed out that the police action was in total violation of the Juvenile Justice Act, 2000 whereby a juvenile could not be detained in a police lock-up.

The abovementioned cases give rise to genuine fears that the Justice (Care and Protection of Children) Act, 2014 could be misused.Rebecca John, a senior Advocate who has dealt with similar cases in the past, claims that there might be a hidden agenda behind the new amendments to the erstwhile Juvenile Justice Act, 2000. "It is true that the State has picked up youths in the past by fabricating cases against them, and with these new amendments, they will get a free hand in picking up even minors from the marginalised communities," she says but qualifies it by saying that in the absence of any significant data and evidence, nothing could be concluded just yet.

http://www.tehelka.com/a-law-lurking-in-the-grey/#.VVcZjpL1a70.mailto


Some wishes and some thanks

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Happy Birthday for Hastakshep EditorAmalendu Upadhyaya

Wish him to continue the excellent work! 

Wish to continue the smile with which he accomplishes the most urgent task of our mission Alternative Media.

Wishes him to get the most necessary support from all directions!

This time I have got Birthday wishes from my cousin Chandrashekhar.

I also got a wish from my childhood oldest friend Nityanand Tekka.Thanks to facebook.Though at home,Sabita Babu just forgot the date with her intensive engagement with her cultural team,I got the cake from Google Doodle and floods of Birthday wishes from friends worldwide.

I am not that important.

Those who consider me,I am very very grateful to all of them.

Thanks friends,I would try my best that you should not be ashamed of my friendship.

I am also grateful to all those friends who opt for abusive language in case of dissent.At least they consider me!

Please spare the ladies while someone misuse the feminine gender to lodge their protest in X language.

You may use slang directly with your own ID and name and I am not going to defriend you nor I am going to court against you.

I respect your dissent and your freedom of Expression.It is up to you what language you chose.

I am habitual to be abused.

Palash Biswas

भूगोल के खिलाफ,प्रकृति और मनुष्यता के खिलाफ है केसरिया कारपोरेट जिहाद इसीलिए भूकंप के झटके थम नहीं रहे और जख्मी हिमालय ज्वालामुखी की तरह दहकने लगा है और बिहार यूपी वालों की नींद भी हराम कि मंगोलिया से तीरंदाजी के निशाने पर हिमालय। अबकी दफा उत्तराखंड में

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भूगोलके खिलाफ,प्रकृति और मनुष्यता के खिलाफ है केसरियाकारपोरेट जिहाद

इसीलिए भूकंप के झटके थम नहीं रहे और जख्मी हिमालय ज्वालामुखी की तरह दहकने लगा है और बिहार यूपी वालों की नींद भी हराम कि मंगोलिया से तीरंदाजी के निशाने पर हिमालय।

अबकी दफा उत्तराखंड में भूकंप आया तो न जाने क्या होगा!

पलाश विश्वास


भूगोल के खिलाफ,प्रकृति और मनुष्यता के खिलाफ है केसरिया कारपोरेट जिहाद।


इसीलिए भूकंप के झटके थम नहीं रहे और जख्मी हिमालय ज्वालामुखी की तरह दहकने लगा है और बिहार यूपी वालों की नींद भी हराम कि मंगोलिया से तीरंदाजी के निशाने पर हिमालय।



अबकी दफा उत्तराखंड में भूकंप आया तो न जाने क्या होगा?

अपने राजीव लोचन साहज्यू ने मौके की नजाकत समझते हुए अपना प्रोफइल फोटो बदल दिया हैः

1899 में आज के फ्लैट्स (हमारी आमा के अनुसार तब 'किरकिट') में खेले जाने वाला यह टेनिस मैच हमारे आज लगाये प्रोफाइल फोटो के साथ ठीक-ठीक मैच करेगा.

'1899 में आज के फ्लैट्स (हमारी आमा के अनुसार तब 'किरकिट') में खेले जाने वाला यह टेनिस मैच हमारे आज लगाये प्रोफाइल फोटो के साथ ठीक-ठीक मैच करेगा.'

बेहतर हो कि हिमालय के तमाम उत्तुंग शिखरों,खूबसूरत घाटियों,पवित्र अपवित्र नदियों ,झरनों,शहरों ,कस्बों ,गांवों और झीलों की तस्वीरें भी आज के नैनीताल के साथ जहां संभव तहां लगाकर इतिहास में दर्ज करा दी  जायें।



भूगर्भ विशेषज्ञ ही विश्लेषण कर सकते हैं कि भूंकप के झटके क्यों नहीं थम रहे हैं और पचास हजार करोड़ सालों के बाद नवउदारवाद की संतानों के राजकाज समय में ही वह सबकुछ उलट पलट कर देने के तेवर में क्यों है।


अर्थशास्त्री और राजनय के विशेषज्ञ बखूब हमें सविस्तार बता सकते हैं कि कैसे रेशम पथ खोलने लगा है संघ परिवार हिमालय के आर पार।


हम विशेषज्ञ नहीं है।हम मूलतः गायपट्टी के ही वाशिंदे हैं और भूकंप,भूस्खल,बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेलने वाले उत्तराखंड में पले बढ़े हैं।


हम इससे परेशान हैं कि उत्तराखंड,नेपाल,उत्तरी बंगाल,सिक्किम और यूपी बिहार के लोग रात को चैन की नींद नहीं सो सकते कि न जाने कब भूकंप आ जाये।


बहुमंजिली सीमेंट के जंगल की राजधानियों में झटके महसूस किये जाते हैं लेकिन वहां धनवर्षा इतनी घनघोर है और राजनीतिक हलचले इतनी तेज हैं कि दोनों हाथों से बटोरने की आपाधापी में जड जमीन से कटे लोग बेपवाह हैं।होने भी चाहिए।वे तब तक ऐसा करने को आजाद है जबतक न बार बार के झटकों से दीवारे दरकने लगें और किरचों की तरह बिखर जाये तमाम ताश के महल।


हमारी चिंता है कि अगली दफा उत्तराखंड में भूकंप आया  तो क्या होने वाला है क्योंकि हमारे पास नेपाल से डरावनी तस्वीरें बहुत आ रही हैं।महाभूकंप और लगातार जारी सैकड़ों झटकों से जानमाल के नुकसान की तस्वीरें भयावह है तो सबसे चिंता की बात यह है कि नेपाल में हिमालय के आंतरिक संरचना  उथल पुथल हो गयी है।


शनिवार को आये भूकंप की यह तस्वीर देख लेंः

दोलखा केन्द्रविन्दु बनाएर ५.५ को भूकम्प, दुई ठाउँमा ठूलो पहिरो


पहिलोपोस्ट - | 16th May 2015 | २ जेठ २०७२ | Read count :14261


२९ गतेको भूकम्पपछि दोलखाको सिंगटी बजारको एक छेउ।

काठमाडौं : दोलखा केन्द्रविन्दु बनाएर शनिबार साँझ अर्को ठूलो भुकम्प गएको छ। साँझ करिब ५ बजेर २० मिनेट जाँदा ५.५ रेक्टर स्केलको भुकम्प गएको राष्ट्रिय भुकम्प मापन केन्द्रले जानकारी दिएको छ । भूकम्पको धक्का काठमाडौंमा पनि महसुस भएको छ। भूकम्पका कारण दोलखाको भीरकोट र घ्याङ सुकाठोकरमा पहिरो गएको छ। भीरकोटको माझीगाउँ नजिक भीर र जंगल रहेको क्षेत्रमा ठूलो पहिरो गएको जफे गाविसका सुशील काफ्लेले जानकारी दिएका छन्। त्यस्तै घ्याङ सुकाठोकरमा पनि पहिरो गएको छ। दुबै ठाउँको सुख्खा पहिरोपछि धेरै धुलो उडेको देखिएको उनले बताए। - See more at: http://www.pahilopost.com/content/-4193.html#sthash.dtjeOsa1.dpuf


काठमांडु से यह चेतावनी जारी की है  Tej Kumar Karki <tejkarki@gmail.com> ने,जो पूरे हिमालयी भूगोल के लिए प्रासंगिक है,जिसे सबसे ज्यादा खतरा संघ परिवार की बिजनेस फ्रेंडली बुलेट पीपीपी राजनीति और राजनय  से है,जिससे रिलायंस,अडानी है समेत गुजराती कंपनियों को फायदा ही फायदा है लेकिन इंडिया इंक समेत बाकी भारत,बाकी महादेश के नागरिकों और नागरिकाओं के अस्तित्व पर प्रशनचिह्न लगाते हुए इस कायनात को कयामत का मजर बनाने का चाकचौबंद स्थाई मनुस्मृति बंदोबस्त है यह।कार्की जी की इस चेतावनी पर गौर करेंः


PLEASE INFORM THEM THAT THIS TIME MASSIVE MOUNTAIN EARTH MASS IS SHAKEN BY EARTHQUAKE IN THE AFFECTED DISTRICTS


THOSE MOUNTAIN EARTH MASS MAY BE IN LOOSE FORM


COMING MONSOON AND CONTINUOUS RAIN MIGHT TRIGGER MASSIVE LANDSLIDES


THOSE LIVING IN THE MOUNTAINS IN FRAGILE SOILS MIGHT BE IN EXTREME DANGER


MANY ROADS MIGHT BE BLOCKED BY LANDSLIDES


THE LANDSLIDE MIGHT BLOCK RIVERS AND CREATE FLASH FLOOD


ALREADY EARTHQUAKE DAMAGED HOMES MAY FALL


PEOPLE MIGHT HAVE TO LIVE ROOFLESS



NOW THE GOVERNMENT AND CITIZEN ARE OVERWHELMED WITH RELIEF AND RESETTLEMENT TASKS


THEY MIGHT BE COMPLETELY FOCUSED ON THAT BUT MIGHT NOT BE MINDFUL OF THE NEXT POSSIBLE LAND SLIDE DISASTER AHEAD


WE ARE NOT STRONG TO DEAL ABOUT LANDSLIDE BUT STILL IF WE ARE AWARE WE CAN DO SOMETHING TO MINIMIZE HARM


WE CAN RESETTLE THOSE PEOPLE IN THE FRAGILE HILL TO SAFE FLAT LAND IN GROUP IN TARAI AT LEAST FOR THIS MONSOON SEASON


A TIMELY THOUGHT AND ACTION CAN SAVE MANY LIVES ( A STITCH ON TIME SAVES NINE)


I KNOW WHAT I AM SAYING IS COMMON SENSE----AND EXPERTS OUT THERE MIGHT

HAVE KNOWN THIS AND GOVERNMENT IS PREPARED


BUT AS A CITIZEN I WANTED TO PUT THIS---WHISTLE BLOWING TASK---JUST IN CASE IF THEY HAD NOT THOUGHT THIS THROUGH


THIS IS ALSO BECAUSE OF LACK OF CONFIDENCE OF THE SNAIL LEADERSHIPS


गुगल और फेसबुक के सौजन्य से अब जन्मदिन सार्वजनिक हो गया है वरना यकीन मानिये हमें भी अमूमन याद नहीं रहता अपना जन्मदिन।


इसबार लेकिन सविताबाबू ने सुबह सुबह मिठाई तो बांट दी ,लेकिन जन्मदिन मुबारक दोपहर बाद कहा क्योंकि उसे मालूम है कि ठीक 365 दिन बाद हमें सड़क पर आ जाना है।


फेसबुक के सौजन्य से बसंतीपुर में मेरे बचपन के सबसे पुरातान मित्र नित्यानंद मंडल,टेक्का जो मुझसे तीन महीने छोटा है,उसका संदेश मिला पहलीबार तो चचेरे बाई चंद्रशेखर ने भी इस बार जन्मदिन मुबारक कह डाला।


इससे पहले सविता बाबू और बेटे टुसु के अलावा हमें कभी किसी ने जन्मदिन की बधाई कहा नहीं है।


गांव बसंतीपुर अब वैसा नहीं रहा जैसा हमने उसे छोड़ा है।करीब चार दशकों से मेरा गांव बेहद बदल गया है और लोग भी जाहिर हैं कि बदल गये हैं।वहां अब नई पीढ़ी आनलाइन है,जिसने हमें न देखा है और न पहचाना है।


बसंतीपुर को बसाने वाले तमाम लोग अब स्वर्गीय हैं।बसंतीपुर से कभी किसी जन्मदिन के मौके पर कोई शुभकामना संदेश आता नहीं है।


बहरहाल एक दिन पहले से ही शुभकामनाओं का  का तांता लग गया है।हम आभारी हैं इलन शुभकामनाओं के लिए।इसी के साथ हमारे सड़क पर आने का काउंट डाउन भी शुरु हो गया है।हमारी सेवा जारी रहने के फिलहाल आसार नहीं है और सेवाबाहर होने में ठीक 365 दिन बाकी रह गये हैं।


इसी बीच सविता ने उस रामकृष्ण मिशन से दीक्षा ले ली है,जिसने न रानी रासमणि के व्यक्तित्व कृतित्व की कभी चर्चा नहीं कि और न ही संघ परिवार के हिंदू प्रधानमंत्री हिंदू ह्रदय सम्राट को दीक्षित किया।


सविता बाबू का परलोक सुधर गया है लेकिन हम तो सिरे से नास्तिक हैं और धर्म कर्म के पचड़े में मैं पड़ता नहीं।हमें नहीं मालूम कि सैकड़ों जो शुभकामनाएं मिल रही हैं,उनसे हमारा क्या भला होने वाला है।


हमारी मानिये कि दरअसल शुभकामनाओं का यह समय है ही नहीं है।


यह समय चेतावनियों का है।


प्रकृति मनुष्यता और सभ्यता को अपनी भाषा में चेतावनी जारी करती जा रही है और जड़ों से कटे दुःसमय के लिए वह भाषा अबूझ है।तो हिंदुत्व ब्रिगेड की शत प्रतिशत चेतावनियों का रंग ही इंद्रधनुषी है।


हिदू प्रधानमंत्री के गौरव काल में हिंदुत्व के एजंडे के खिलाफ बोलने लिखने वालों के लिए साधु संतों की जमात लगातार चेतावनियां जारी कर रही है।बजरंगी जो पैदल बहुजन सेना है,जिनमें से तमाम राम हनुमान बना दिये गये हैं और बाकी जो छंटे हुए हैं,वे दलित महादलित कैडर बन जायेंगे बहुत जल्द।


खुदरा क्षेत्र में एफडीआई का सवाल जिससे 5 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी जाने का संकट है, हमारी राजनीति में एक सामान्य सा सवाल है। भाजपा ने कांग्रेस के इस कदम का विरोध करते हुए राजनीतिक लाभ तो ले लिया और आज वह खुद उसी रास्ते पर बढ़ रही है। http://ow.ly/N1PYZ


आरक्षण के बारे में गोलवरकर का कहना था कि यह हिन्दुओं की सामाजिक एकता पर कुठाराघात है और उसने आपस में सद्भाव पर टिके सदियों पुराने रिश्ते तार-तार होंगे। http://ow.ly/N1Q4o


इस बीच हमारे मित्र आदरणीय आनंद तेलतुंबड़े को धमकियां मिलने लगी हैं तो हम तमाम लोगों को थोक भाव से गालियां मिल रही हैं।


महिला नाम से फर्जी आईडी से यौनगंधी चेतावनियां जो जारी की जा रही हैं, उससे हमारी सेहत पर खास असर नहीं पड़नेवाला और न हम मौके पर लिखने बोलने से चूकने वाले हैं जो मुझे जानते हैं वे बेहद अच्छी तरह जानते हैं।आनंद ने तो लिख ही दिया है कि कोई छू तो लें।


शिखंडियों की यह अजब गजब बारात है तो जो सीधे सामने से आकर वार नहीं कर सकते तो महिला नाम की आड़ से वार करने लगे हैं।


वे सीधे गाली गलौज करें तो हमें कोई ऐतराज नहीं है क्योंकि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं और अरविंद केजरीवाल की तरह कोई सेंसर नहीं लागू करते और न ही गाली गलौज करने वालों को डीफ्रेंड करते हैं।जिसकी जैसी भाषा,जिसकी जैसी परंपरा,उसका आचरण वहीं होता है।


हम अपने देश की मां बहनों को अच्छी तरह जानते समझते हैं।निजी यंत्रणाओं और निरंतर उत्पीड़न से वे गालीगलौज जरुर करती होंगी,लेकिन मतभेद के चलते वे मर्दवादी धर्माधों की तरह गालियों की यौनता फैलाने से तो रहीं।


कृपया उन्हें बख्श दीजिये और अपने ही आईडी से जो मूसलाधार कर सकते हैं,कीजिये।


दरअसल हिंदुत्व के एजंडे के लगातार हो रहे पर्दाफाश से बजरंगी सेना में खलबली है और अंबेडकर या गौतम बुद्ध या गांधी का अपहरण असंभव है।


उनके पास कोई तर्क है ही नहीं।इतिहास कोई भी लिख दें,कोई भी इतिहास बदल दें,जैसा कि हिटलर ने भी किया है और तानाशाह हर देश में हर काल में करते रहते हैं,मनुष्यता के इतिहास में युद्ध अपराधियों के लिए अंततः कोई जगह बचती नहीं है।


इसलिए इतिहास से छेड़छाड़ को हम कोई गंभीर मसला नहीं मानते क्योंकि वक्त बदलते देर नहीं लगती और वक्त इतिहास का हिसाब किताब बराबर कर देता है।


संघ परिवार जो भूगोल के साथ छेड़छाड़ कर रहा है,वह मनुष्यता और सभ्यता के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है और दरअसल हिंदू साम्राज्यवादी एजंडा इतिहास बदलने के बहाने भूगोल बदलने में लगा है।


रविवारी जनसत्ता में आनंद पटवर्धन का भाषण छपा है और मूल अंग्रेजी में पूरा भाषण हमने अपने ब्लागों पर लगाया है।जहां सुविधा हो इसे पढ़ जरुर लें।आनंद की फिल्में लगातार हिंदू साम्राज्यवाद के फासीवादी चेहरे को बेनकाब करती रही हैं।राम के नाम हो या जयभीम कामरेड,उनकी सारी फिल्में संघ परिवार के केसरियाकरण के खिलाफ है।आनंद ने कहा है कि योजनाबद्ध तरीके से भारत राष्ट्र का नामोनिशान मिटाने लगा है संघ परिवार।


दरअसल विधर्मियों के खिलाफ नहीं,संघ परिवार का यह केसरिया कारपोरेट जिहाद भारत राष्ट्र के खिलाफ है,इस महादेश के खिलाफ है,प्रकृति पर्यावरण और मनुष्यता के खिलाफ है।


कल तक हिंदू राष्ट्र रहे नेपाल ने दोबारा हिंदू राष्ट्र बनने से इंकार करते हुए राजतंत्र को फिर गले लगाने से भी इंकार कर दिया है और नेपाल की जनता ने हिंदुत्व ब्रिगेड को धकिया कर बाहर निकाला है।हम लागातार लगातार हस्तक्षेप पर नेपाल के कोने कोने से अपडेट इसीलिए दे रहे हैं कि हिंदुत्व एजंडा का अंजाम देख लें कि आज नेपाल भारत का दुश्मन नजर आने लगा है।


  1. Researchers decode the science behind earthquakes

  2. Hindustan Times-12-May-2015

  3. Jagtap's research area is earthquake engineering, in which he is ... "The Garhwal-Kumaun region in CSG has experienced a number of ...

  4. 'Great Himalayan Quake' may occur in India

  5. Deccan Herald-26-Apr-2015

  6. Saturday's devastating Nepal earthquake, though a big one, may ... the Nepal quake—an area covering the Kumaon-Garhwal region in India.

  7. Severe quake likely in Uttarakhand: expert

  8. The Hindu-11-May-2015

  9. In the wake of the recent Nepal earthquake, the possibility of ... in the Department of Geology of HNB Garhwal University, Srinagar, told The ...

  10. CM asks Garhwal, Kumaon DMs to ensure no loss of property in quake

  11. Times of India-12-May-2015

  12. ... Rawat on Tuesday asked Garhwal and Kumaon divisional commissioners ... in different earthquake-prone districts in case of any eventuality.

  13. Char Dham, tourist spots in U'khand safe: Minister

  14. Press Trust of India-13-May-2015

  15. ... for Uttarakhand in the wake of the latest earthquake in Nepal, the state ... Yatra to the famous Sikh shrine of Hemkund Sahib in Garhwal ...

  16. 1000-yr-old Uttarkashi structure is 'quake-proof'

  17. Chandigarh Tribune-28-Apr-2015

  18. The 1991 Uttarkashi and 1999 Chamoli earthquakes that led to the ... Kumaon earthquake of 1720 and the Garhwal earthquake of 1803.

  19. IAS academy breach: Harish Rawat turns down request for CBI probe

  20. India.com-16-May-2015

  21. (Also Read:Earthquake in Nepal & northern India: 'Chardham Yatra not ... Earlier this month, Garhwal Range IG Sanjay Gunjyal, on the basis of ...

  22. Char Dham, tourist spots in Uttarakhand safe: State Tourism Minister

  23. HospitalityBizIndia-16-May-2015

  24. ... of the latest earthquake in Nepal, the state government has said Char ... Yatra to the Sikh shrine of Hemkund Sahib in Garhwal Himalayas ...

  25. Ticking time bomb: The catastrophe that awaits Uttarakhand

  26. Hindustan Times-10-May-2015

  27. SP Sati of the department of geology, HNB Garhwal University, Srinagar, ... Geologists also argue that the risks of building dams inearthquake ...

  28. The harsh lessons of Nepal's quake disaster

  29. The Japan Times-03-May-2015

  30. NEW YORK – In October 1991 I was in the Garhwal Himalayas when an earthquake measuring 6.1 on the Richter scale killed more than a ...


F]1803 EARTHQUAKE IN GARHWAL HIMALAYA ...

www.insa.nic.in/writereaddata/.../IJHS/Vol49_1_3_Sdasgupta.pdf

by S DASGUPTA - ‎2014 - ‎Related articles

Garhwal earthquake constitute the basic theme of this paper. ... nineteenth century was the 1st September 1803 Garhwal Himalaya earthquake, descriptions for.

1991 Uttarkashi earthquake - Wikipedia, the free encyclopedia

en.wikipedia.org/wiki/1991_Uttarkashi_earthquake

1991 Uttarkashi earthquake is located in India ... Thakur, V. C.; Sushil, K. (1994), "Seismotectonics of the 20 October 1991 Uttarkashi earthquake in Garhwal, ...

[PDF]Garhwal Earthquake of Oct. 20, 1991 - National Information ...

www.nicee.org/eqe-iitk/uploads/EQR_Uttarkashi.pdf

Oct 20, 1991 - Garhwal Earthquake of Oct. 20, 1991. EERI Special Earthquake Report, EERI Newsletter, Vol.26, No.2, February 1992. Sudhir. K. Jain, Ramesh ...

Garhwal Earthquake of 1991 - MCEER Information Service ...

ftp://mceer.buffalo.edu/pub/searches/09/02/090206.html

Chamoli earthquake, March 28, 1999. S- wave site response. AB: Site response in theGarhwal Himalaya is studied using digital seismograms recorded by a ...

Seismotectonics of the 20 October 1991 Uttarkashi ...

onlinelibrary.wiley.com › ... › Terra Nova › Vol 6 Issue 1

by VC Thakur - ‎1994 - ‎Cited by 5 - ‎Related articles

Jul 1, 2007 - The 20 October 1991 Uttarkashi earthquake killed over a thousand people and caused extensive damage to property in the Garhwal Himalaya ...

[PDF]Seismic hazard scenario and attenuation model of the ...

www.ias.ac.in/jess/nov2008/jess114.pdf

by SK Nath - ‎Cited by 8 - ‎Related articles

In this paper, we present a seismic hazard scenario for the Garhwal region of the north- ... Garhwal Himalaya; maximum credible earthquake; site amplification; ...

[PDF]here - Seismological Society of America

www.seismosoc.org/publications/srl/SRL_84/srl.../srl_84-6_hs_II.pdf

by CP Rajendran - ‎2013 - ‎Cited by 2 - ‎Related articles

earthquake (Mw 8.0), there has been quiescence, with the gap in time and space ... of the Kumaun–Garhwal Himalaya as archeological seismic sensors that can ...

[PDF]The Mw 5.0 Kharsali, Garhwal Himalayan earthquake of 23 ...

www.currentscience.ac.in/Volumes/102/12/1674.pdf

by N Kumar - ‎2012 - ‎Cited by 5 - ‎Related articles

Jun 25, 2012 - earthquake occurred in the Garhwal Himalaya near. Kharsali, about 50 km ... the strong (M 6.4) Uttarkashi earthquake of 20 Octo- ber 1991.

History of Seismic Events in Garhwal Himalaya, India

www.iupindia.in/1201/.../History_of_Seismic_Events.html

The studies on the history of the seismic events in the part of Garhwal, Himalaya has been carried out. On the basis of the seismic records of seismic events n ...

History of Seismic Events in Garhwal Himalaya, India - SSRN

ssrn.com/abstract=2145320

by AK Shandilya - ‎2012 - ‎Related articles

Sep 13, 2012 - The studies on the history of the seismic events in the part of Garhwal, Himalaya has been carried out. On the basis of the seismic records of ...



  1. Earthquake zones of India - Wikipedia, the free encyclopedia

  2. en.wikipedia.org/wiki/Earthquake_zones_of_India

  • The latest version of seismic zoning map of India given in the earthquake resistant ... The region of Kashmir, the western and central Himalayas, North Bihar, the ...

  • Zone 5 - ‎Zone 4 - ‎Zone 3 - ‎Zone 2

  • [PDF]Estimation of Seismic Hazard Parameters in the Himalayas ...

  • home.iitk.ac.in/~vinaykg/Iset413.pdf

  • by ML Sharma - ‎Cited by 8 - ‎Related articles

  • The seismic hazard parameter estimation using Maximum Likelihood Method .... 1 Seismicity map of the Himalayas and its vicinity for the period 1720-1990 (the ...

  • [PDF]Where are the Seismic Zones in India? - IIT Kanpur

  • www.iitk.ac.in/nicee/EQTips/EQTip04.pdf

  • mighty Himalayas along the north, the plains of the ... Most earthquakes occur along the Himalayan ... seismic zone map in 1962, which was later revised in.

  • In the jigsaw of Himalayan risk, climate change and ...

  • www.thethirdpole.net › Articles

  • Feb 6, 2014 - Seismologists and geologists studying the Himalayas have been trying update the seismic map of the mountain belt for several years now.

  • M6.6 - 49km E of Lamjung, Nepal - Earthquake Hazards ...

  • earthquake.usgs.gov/earthquakes/eventpage/us2000292y

  • Apr 25, 2015 - 28.193°N 84.865°E depth=14.6 km (9.1 mi)View interactive map ... The largest instrumentally recorded Himalaya earthquake occurred on 15th ...

  • Long-Predicted Death Toll in Nepal Earthquake Reflects ...

  • dotearth.blogs.nytimes.com/.../long-predicted-death-toll-in-nepal-earthq...

  • Apr 25, 2015 - Various Updates | The Himalayas are one of the world's most ... A U.S. Geological Survey map of the earthquake zone (yellow and red bands ...

  • Was this the big earthquake that was predicted in the ...

  • www.thehindu.com › News › National

  • Apr 25, 2015 - The 1934 earthquake broke the surface over a length of more than 150 km ... Keywords: Nepal earthquake, earthquake, Himalayas earthquake, ...

  • [PDF]Earthquake hazard in Northeast India - Indian Academy of ...

  • www.ias.ac.in/jess/nov2008/jess132.pdf

  • by SK Nath - ‎Cited by 28 - ‎Related articles

  • the seismic hazard microzonation map of the Sikkim Himalaya. On the other ... Figure 1. A seismic microzonation framework for earthquake hazard mapping.

  • Seismic Hazard Map of India, the Himalaya and Bangladesh

  • geology.about.com › ... › Seismic Hazard Maps of the World's Nations

  • The United Nations'map of seismic hazard for India, Bangladesh and the countries of the Himalaya.


  • Sangh hails 'proud Hindu' PM

    Radhika Ramaseshan

    New Delhi, May 16: Purists and reformists of theology would debate whether the Dakshineswar Kali temple and Belur Math were ever perceived as symbols and instruments to propagate the genre of political Hindutva conceptualised by the Rashtriya Swayamsevak Sangh.

    Without delving into the history and subtleties of the myriad strands of Hinduism and its off-shoots, the RSS's English weekly, Organiser, has celebrated Prime Minister Narendra Modi's recent visits to these iconic sites in Calcutta as a manifestation of his ease with his Hindu religious identity.

    An authorless piece, titled West Bengal visit: finally, a PM not shamed of his Hindu identity, that appears in the latest issue of the Organiser (May 24), claims that unlike "several other political leaders of India", Modi "wore his religious identity without shame" when he visited Dakshineswar and the Belur monastery.


    "Prime Minister Modi is proud of being a Hindu which every Hindu should be. Modi never goes out of his way to flaunt 'secularism'....," the article says.

    The implication is that the BJP's first Prime Minister, Atal Bihari Vajpayee, did not qualify for the honour that the Organiser bestows on Modi.

    "Without being a hypocrite, the PM exhibited his joy and happiness without any inhibition in the company of the monks of the Ramakrishna order," it says and claims he is the first Prime Minister to have visited the Dakshineswar temple.

    The Organiser piece says that Modi's detractors might rap him for trying to "appease Bengalis" by praying to Kali. But what of his call on Belur Math? "It was not a public function, so the strongest critics of Modi should not attempt to claim that Modi had tried to woo the residents of Kolkata by displaying his love and respect for Swami Atmasthananda (at the Ramakrishna Mission hospital where the monk was admitted)," it says.

    Modi's visit to Belur Math, it adds, was "not a clever move to gain political mileage" but represented the "guru-shishya" (teacher-disciple) tradition, intrinsic to Hindu culture. In his youth, Modi had wanted to join the Ramakrishna Mission but was dissuaded then by the ailing Swami, now 97.

    The Mission was set up by Swami Vivekananda, whom Modi describes as his spiritual guide and who was the protagonist of a long-drawn "Yuva Yatra" (road journey for youths) that the Prime Minister rolled out in Gujarat before the 2012 elections when he was chief minister.

    Whether Modi intended it or not, the month-long "yatra", that passed through every district, was interpreted by BJP cadres as a re-affirmation of his "Hindu nationalist" image.

    Modi has always extolled Swami Vivekananda as India's first nationalist icon, although a "Bharat Darshan yatra" the Swami himself went on in the early 1890s was said to have enlarged his vision about India's religious pluralism.

    http://www.telegraphindia.com/1150517/jsp/nation/story_20532.jsp#.VVnBObmqqko

    Protesting teachers brutally beaten up by police in Haryana | Workers Resistance

    Haryana police today brutally lathicharged contractual teachers in Karnal , in the state of Haryana. The teachers under the banner of Naujawan Bharat Sabha...

    WORKERSRESIST.NET


    The world's perception of India has changed, says Prime MinisterNarendra Modi

    PM Narendra Modi's three-nation tour to China, Mongolia, South Korea - The Economic Times

    During his three-nation tour, Prime Minister Narendra Modi will visit Xian, Beijing and Shanghai in China pushing bilateral, diplomatic and economic issues along...

    ECONOMICTIMES.INDIATIMES.COM



    दक्षिण कोरिया में प्रधानमंत्री Narendra Modiने और क्या-क्या कहा, फोटो पर क्लिक करके जानें...

    पत्थर पर लकीर खींचना जानता हूंः PM मोदी

    NAVBHARATTIMES.INDIATIMES.COM



    असली अजेंडा क्या था, जिसे नरेंद्र मोदी भूल गए हैं, फोटो पर क्लिक करके जानिए सुब्रण्यन स्वामी के नकली इंटरव्यू में। यह इंटरव्यू भले नकली हो, लेकिन आपको मजा असली आएगा...

    नकली इंटरव्यू - यह आदमी असली अजेंडा भूल गया है: स्वामी

    BLOGS.NAVBHARATTIMES.INDIATIMES.COM|BY मुकेश कुमार



    17 मई, 2015. नई दिल्ली

    Panini Anand's photo.

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    Himanshu Kumar

    Yesterday at 9:41am· Edited·

    मैं आपके ईश्वर से नाराज़ नही हूँ

    आपके नेता से भी मेरी कोई व्यक्तिगत रंजिश नहीं है

    ना ही आपकी राजनैतिक और धार्मिक आस्थाएं मेरी चिढ़ की वजह हैं

    असल में तो मैं आपसे नाराज़ हूँ .

    आप जब अपने सामने भूख से मरते बच्चे की भूख पर सवाल नहीं उठाते

    और ईश्वर की पूजा का बहाना कर आँखें बंद कर लेते हैं

    उस समय मुझे आपका ईश्वर दुनिया की सबसे धूर्त चीज़ लगता है .

    असल में मैं आपके ईश्वर के नहीं आपकी चालाकी के खिलाफ हूँ

    आपका नेता क्रूर है

    वो अपने लालच के लिए लाखों लोगों की जान लेने के लिए प्रसिद्ध है

    जब आप उसे अपना प्रिय नेता कहते हैं

    तब आपके सामने मैं पूरी ताकत से उसके खिलाफ बोलने लगता हूँ .

    असल में मैं आपके नेता के नहीं आपके लालच के खिलाफ हूँ .

    जब आपकी सेना कुचलती है निर्दोष औरतों और बच्चों को

    और आप गुण गाते हैं अपनी सेना के

    तब मुझे सेना पर नहीं

    आप पर चिल्लाने का मन करता है

    इसलिए जब मैं सेना के खिलाफ बोलता हूँ

    तो दरअसल मैं आपकी क्रूरता के विरुद्ध बोल रहा होता हूँ .

    मेरी लड़ाई आप सब से है

    मुझे पता है

    आप फिर एक स्वार्थी ईश्वर

    फिर एक लालची नेता

    और फिर से एक क्रूर सेना बना लेंगे

    क्योंकि ये सब आप ही की पैदाइश हैं

    इसलिए मैं हमेशा आप से लड़ता रहूँगा .

    आप भी हमेशा से थे

    मैं भी हमेशा से था .

    न आप कभी मरे

    न मैं कभी मरा .


    Jagadishwar Chaturvedi

    Yesterday at 7:20am·

    भारत में विगत एक साल से दूध-घी की नदियां बह रही हैं ! कोई खानेवाला नहीं है! लाखों एकड़ जमीन कारखानों के लिए फालतू पड़ी है कोई पैसा लगाने वाला नहीं है! सारे चैनल मोदी मोदी कर रहे हैं,कोई वैविध्यपूर्ण कार्यक्रम देने वाला नहीं है! गुजरात में तो पैसे के निवेश से लेकर आदमी के निवेश की अनंत संभावनाएं हैं,कुछ साल तो गुजारो गुजरात में !!

    सच्चे मोदीभक्त हो तो लौटो भारत ,यहां नौकरियां हैं, बैंक लोन है,कौशल के विकास के अनेक संस्थान हैं, वे तमाम अमीर हैं जो मोदी के साथ विदेशयात्रा में जा रहे हैं,यह जान लो भारत में अब गरीबी नहीं है, आम लोग स्वस्थ रहते हैं,प्रदूषण नाम की चीज का स्वच्छता अभियान के द्वारा एक साल में अंत कर दिया गया है !!

    सारे मंत्रालय ईमानदारी से काम कर रहे हैं! धड़ाधड़ प्रकल्पों को मंजूरी दी जा रही है!कौशलपूर्ण भारतीयों का अकाल है !नौकरियां हैं लेकिन लोग नहीं हैं!कम से कम अब तो मान लो,पीएम मोदी आपके पास विदेश में जाकर अनुरोध कर रहे हैं,लौटो देश को,देखो पीएम मोदी बिना सोए काम कर रहे हैं !! हम आपको सोते हुए काम का अवसर देने का वायदा करते हैं! एकबार भारत आकर तो देखो अच्छा लगेगा!! मौका चूक गए और चीन की जनता ने भारत की ओर प्रयाण शुरु कर दिया तो संभवतः रहने के लिए घर भी न मिलें,नौकरी भी न मिले,बेहतर है चीनियों के आने के पहले चले आओ और काम-धंधा गुजरात से ही आरंभ करो,गुजरात को हब बनाओ और जीवन का आनंदमय समय दांडियां करते हुए गुजारो !!


    अयोध्‍या में राममंदिर के लिए पटेल जैसा मनोबल चाहिए : शंकराचार्य

    भोपाल। 'यदि भारत के प्रधानमंत्री का मनोबल प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल जैसा मजबूत है, तो अयोध्या में रामलला जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण हो सकता है। पटेल ने सोमनाथ मंदिर का निर्माण कराया था। वहां के मुस्लिम परिवारों को स्नेहपूर्वक अन्य स्थान पर बसाया था।

    उनकी दूरदर्शिता से न तो रक्त बहा, न ही विवाद हुआ और मंदिर भी बन गया। बीजेपी हिंदुत्व के बल पर ही सत्ता में आई और यदि उसे न्यायालय और मुस्लिम तंत्र के भरोसे रहना है, तो वह चुनाव के समय हिंदुत्व का नाम न ले।

    यह बात शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने पत्रकारों से चर्चा में कही। वे बुधवार को भोपाल में दो दिवसीय प्रवास में थे। हाल में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि मामला न्यायालय में है और राज्यसभा में बहुमत नहीं है, इसलिए राम मंदिर निर्माण नहीं हो सकता है।

    इस पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए स्वामीजी ने कहा कि यह सत्ता लोलुपता की पराकाष्ठा है। लाखों वर्ष से वाल्मीकि रामायण, महाभारत सहित विभिन्न् पुराणों ग्रंथों में अयोध्या में रामलला जन्म भूमि होने का इतिहास है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि जिस तरह मक्का मदीना में कोई अन्य उपासना स्थल देखना नहीं चाहते उसी तरह अयोध्या राममंदिर के पास अन्य समाज का उपासना स्थल न हो।

    मुस्लिम तंत्र और कांग्रेस करे पहल

    शंकराचार्य ने सुझाव देते हुए कहा कि न्यायालय में लंबा समय लग रहा है। ऐसे में आदेश आने के बाद क्रियान्वयन में भी समय लगेगा। इसलिए इंतजार करना उचित नहीं है, सद्भाव पूर्वक मानव अधिकारों की सीमा में राम मंदिर मुद्दे का हल निकालना चाहिए। महाराज ने मुस्लिम तंत्र को पहल करने और कांग्रेस को भी इस मुद्दे पर प्रस्ताव पेश करने की सलाह दी। इसमें बीजेपी सहित सभी दल समर्थन करें। महाराज ने पूर्व राष्ट्रपति कलाम के एक कथन का उदाहरण देते हुए बताया कि वे मुस्लिम होते हुए भी राम सेतू के विखंडित होने की चर्चा से दुखी थे।

    नेपाल के मुस्लिम हिंदू राष्ट्र के पक्षधर

    नेपाल का उदाहरण देते हुए शंकराचार्य ने कहा वहां 2.5 प्रतिशत मुस्लिम हैं और वे हिंदू राष्ट्र के पक्षधर हैं। इसी तरह अयोध्या में मंदिर बनने से वहां रहने वाले मुस्लिम परिवारों को ही आमदनी होगी।

    भक्तों का मार्गदर्शन किया

    बुधवार को शंकराचार्य ने रेलवे स्टेशन के सामने न्यू विजय होटल में शाम को सनातन संस्कृति के संरक्षण पर विचार गोष्ठी में भक्तों का मार्गदर्शन किया। हिमालय शर्मा ने बताया कि गुस्र्वार को सुबह 11 से दोपहर 1 बजे तक दर्शन, दीक्षा, गोष्ठी, पादुका पूजन आदि का कार्यक्रम होगा। शाम को अमरकंटक एक्स से रायपुर के लिए प्रस्थान होगा।

    - See more at: http://naidunia.jagran.com/madhya-pradesh/bhopal-do-not-take-the-name-of-hindutva-bjp-in-the-elections-367511#sthash.yJsPQCaI.dpuf

    खोज परिणाम

    1. नेपाल में राहत व बचाव कार्य चलाएगा संघ

    2. Nai Dunia-26/04/2015

    3. यह अभियान नेपाल में संघ की समकक्ष हिंदूस्वयंसेवक संघ के साथ मिलकर चलाया जाएगा। नेपाल में राहत और पुनर्वास के लिए शिवसेना के सांसद एक महीने का वेतन देंगे। यह रकम प्रधानमंत्रीराहत कोष में जमा कराई जाएगी। युवा सेना प्रमुख ...

    4. भारत को 'इंडिया मुक्त'बनाना चाहता है संघ

    5. अमर उजाला-25/04/2015

    6. यहां तक कि हिंदी, हिंदू, हिंदुस्थान का नारा बुलंद करने वाले संघ को हिंदुस्थान का उर्दू तर्जुमा हिंदुस्तान भी रास ... इस आशय का प्रस्ताव संसद में लाने का सुझाव भी संघ नेताओं ने प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी के पास भी भेजा है।

    7. संघ के कौन से अम्बेडकर !

    8. hastakshep-21/04/2015

    9. ... गहलोत ने की। http://timesofindia.indiatimes.com/india/IIPA-invites-RSS-leader-Krishna-Gopal-to-speak-on-Ambedkar/articleshow/45682953.cms ... दफा संघ के किसी प्रचारक /पूर्णकालिक कार्यकर्ता/ ने भारत के प्रधानमंत्रीके पद की कमान सम्भाली थी जिन्होंने ...

    10. मुस्लिम लीग की तरह हुई RSSकी स्थापना : जस्टिस ...

    11. News Track-03/05/2015

    12. मुस्लिम लीग की तरह हुई RSSकी स्थापना : जस्टिस काटजू ... प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के विकास के सभी दावे खोखले हैं, उन्होंने कहा कि हिंदूगाय को माता तो मानते हैं लेकिन जब गाय बूढ़ी हो जाती है और दूध ...

    13. Sahara Samay

    14. पाकिस्तान के एकमात्र हिंदूचीफ जस्टिस भगवानदास ...

    15. एनडीटीवी खबर-24/02/2015

    16. भगवानदास पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख के तौर पर काम करने वाले पहलेहिंदूऔर दूसरे गैर-मुस्लिम ... राष्ट्रपति ममनून हुसैन और प्रधानमंत्रीनवाज शरीफ ने भगवानदास के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए शोक संदेश जारी किए हैं ...

    17. 2050 तक भारत दुनिया की सबसे ज्यादा मुस्लिम ...

    18. एनडीटीवी खबर-03/04/2015

    19. नई दिल्ली: साल 2050 तक भारत दुनिया की सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाला देश बन जाएगा हालांकि भारत में हिन्दू ही बहुसंख्यक होंगे, लेकिन मुस्लिम आबादी के मामले में भारत इंडोनेशिया को पछाड़ देगा। इसके साथ ही तब तक दुनिया ...

    20. 2050 तक आबादी के हिसाब से तीसरे नंबर पर होंगे हिंदू...

    21. Patrika-02/04/2015

    22. विस्तृत रूप से एक्सप्लोर करें (87 और लेख)

    23. क्यों नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत हिंदूसिक्के के ...

    24. Jansatta-18/02/2015

    25. सत्ता और सत्ता के बाहर के स्वयंसेवकों के बीच सामजंस्य हो नहीं पाता क्योंकिहिंदूराष्ट्र का वाकई कोई खाका तो है नहीं। दुत्व या ... सवाल प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी या सरसंघचालक मोहन भागवत के अलग-अलग बयान भर का नहीं है। सवाल ...

    26. प्रधानमंत्रीके संसदीय क्षेत्र से 'मिशन अंबेडकर ...

    27. दैनिक जागरण-12/04/2015

    28. इसकी अनौपचारिक शुरुआत अंबेडकर जयंती के दो दिन बाद प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से होने जा रही है। संघ और उससे जुड़े संगठनों के बुद्धिजीवियों ने काशी हिंदूविश्वविद्यालय में 16 व 17 अप्रैल को दो दिवसीय ...



    मुस्लिम नाम वाली सड़कों के बोर्ड पर काला रंग पोतकर लगाए हिंदू संगठन के पोस्टर

    • dainikbhaskar.com

    • May 15, 2015, 16:11 PM IST

    मुस्लिम नाम वाली सड़कों के बोर्ड पर काला रंग पोतकर लगाए हिंदू संगठन के पोस्टर

    नई दिल्ली. दिल्ली में बुधवार रात मुस्लिम नामों वाली कुछ सड़कों के बोर्ड काले रंग से पोत दिए गए। एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, साइन बोर्ड पर काला पेंट करने के बाद इन पर 'शिवसेना हिंदुस्तान'नामक संगठन के पोस्टर भी लगा दिए गए। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि वह इस मामले की जांच करेगी।

    क्या लिखा है पोस्टर्स पर

    साइन बोर्ड पर लगाए गए पोस्टर्स पर लिखा था, 'भारत का इस्लामीकरण मंजूर नहीं, सफर में मुश्किलें आएं हिम्मत और बढ़ती है, कोई अगर रास्ता रोके तो जरूरत और बढ़ती है। जय हिंद! जय भारत!'पोस्टर्स पर संगठन के कुछ नेताओं के नाम भी लिखे गए थे।

    पोस्टर्स लगाने वाले सजा भुगतने को तैयार

    संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजिंदर सिंह ने माना है कि यह काम उनके ही संगठन की तीन टीमों ने किया है। उन्होंने कहा, "अगर पुलिस के पास इस मामले की शिकायत जाती है और हम दोषी पाए जाते हैं, तो कोई भी सजा भुगतने तैयार हैं। हमने हिंदुस्तान में मुस्लिम नामों वाली सड़कों के खिलाफ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी लिखा था। अब सभी हिंदू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ देख रहे हैं। हमें उम्मीद है कि वह हमारी चिंताओं पर ध्यान देंगे।"

    'शिवसेना से अलग होकर बना है संगठन'

    संगठन के सचिव विजय सोनकर ने बताया कि उनका संगठन शिवसेना से अलग होकर बना है। उन्होंने कहा, "शिवसेना सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित है, लेकिन हमने 12 राज्यों में अपना बेस बना लिया है।"सोनकर ने कहा, "हमें शिकायत है कि सड़कों के नाम हमारे उन नेताओं के नाम पर नहीं हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी। देशद्रोहियों के नाम हमारी सड़कों की शोभा बढ़ा रहे हैं।"



    सामाजिक प्रतिरोधक क्षमता पर ध्यान देना होगा

    ---------------------------------------------------------

    आज दलित उत्पीड़न की दो घटनाएँ प्रकाश में आयीं हैं एक नागौर राजस्थान की है जहाँ तीन दलितों की ट्रेक्टर से कुचल कर हत्या करदी।बताया जा रहा है कि कोई जमीनी विवाद था इसी की पंचायत में रामपाल गुसाई के दलित पक्ष की ओर से गोली लग गयी जिससे उसकी मौत हो गयी।इससे जाटों का खून खौल गया और तीन दलितों की ट्रेक्टर से कुचल कर जघन्य हत्या करदी और एक महिला की आंख भी फोड़ दी।दूसरी घटना शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश की है जहाँ पांच दलित महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाया गया।इसकी वजह प्रेम प्रसंग बताया जा रहा है कि एक धानुक (दलित)जाति का लड़का एक कश्यप लड़की को भगा ले गया था जिससे क्रुद्ध होकर लड़के के परिवार की महिलाओं मां चाची ताई को निर्वस्त्र कर घुमाया गया।

    उक्त दोनों घटनाएँ दलित पिछड़ों के मध्य घटी हैं और दोनों ही बेहद अमानवीय और क्रूर तरीके से घटी हैं।जिनकी जितनी निन्दा की जाय कम है और निन्दा ही क्यों दोषियों को कठोरतम सज़ा सुनिश्चित की जानी चाहिए।ताकि दलितों के विरुद्ध जातिय दुराग्रहियों को सबक मिल सके।बेहद दुखद है कि एक मामूली सी बात पर दलितों को सामूहिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है जबकि सभी दलितों का कोई दोष भी नहीं होता।अगर कोई मुद्दा है विवाद है तो उसे कानूनी प्रक्रिया के तहत निपटाना चाहिए मगर अफसोस कि कानून से इतर अपने आप ही दाण्डिक कार्यवाही करने लगते हैं।कानून का शासन यहाँ विकलांग नजर आता है और उसकी मौजूदगी बहुत खलती है उसके होने का क्या मतलब?क्या वह वास्तव में है भी या उसके पुतले भर ऐश कर रहे हैं? दुख तो तब और बढ़ जाता है जब शासन प्रशासन में भी उनके ही सहोदर मिलते हैं जो उन दरिन्दों का ही मार्ग प्रशस्त करते हैं उतने ही अपराधी जितने समाज के छुट्टे सांड़।ऐसे सांडों को बधिया किया जाना ही चाहिए तभी कानून के शासन का कोई मतलब होगा।

    दरअसल दुखद तो यह है कि हम सरकार और मनुवाद को कोसकर अपने कर्तव्य की पूर्ति मान लेते हैं और कोई दायित्व नहीं समझ पाते जबकि समय की मांग है कि हम इस स्थिति का सामना करने को खुद को संगठित करें और अपनी "सामाजिक प्रतिरोधक क्षमता"मजबूत करें।लेकिन दिक्कत यह है कि हम संगठन की बात आते ही सत्ता के जाल में उलझ जाते हैं जबकि "सामाजिक प्रतिरोधक क्षमता"सत्ता के जरिये मजबूत नहीं हो सकती।सत्ता तो अपने ही खेल में व्यस्त हो जाती है और सत्ता चले जाने पर मुर्दा बन जाती है।जबतक हम राजनीति को "अपना"मानते रहेंगे तबतक ऐसी नजीर मिलती रहेंगी।जिस दिन हम समाज को अपना मान लेंगे उसी दिन ये अतीत की बातें हो जायेंगी।अभी हमने समाज के लिए मरना नहीं सीखा है बल्कि राजनीति के लिए तैयार हो जाते हैं। जबकि सत्ता ही सबकुछ होती तो बाबा साहेब डॉ० अम्बेडकर मंत्री रहते ही मरते और मा०कांशीराम भी मंत्री बनने से नहीं चूकते।


    -----भास्कर-----

    Dk Bhaskar's photo.

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    संघ परिवार पर उमड़ रहा है चीन का प्यार

    अर्चिस मोहन /  May 14, 2015

    पिछले मई में जब से नरेंद्र मोदी सरकार ने पदभार संभाला है तब से चीन ने संघ परिवार के प्रति एक बेहतर और नरम कूटनीति अख्तियार की है। नतीजतन चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के नास्तिक नेताओं और आस्तिक संघ परिवार से जुड़े सदस्यों के बीच एक नए तरह का संपर्क कायम हो रहा है। अब कोशिश एक नई पहल की है जिसमें दोनों देशों के संबंधों को 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध, औपनिवेशिक दौर के प्रभाव या शीत युद्ध के दौर के नजरिये से बिल्कुल नहीं देखा जाएगा। बल्कि इसके इसके बजाय भारत-चीन के संबंधों को दोनों देशों की 2,500 साल की सभ्यता से जुड़ी कडिय़ों के संदर्भ में समझने की कोशिश की जाएगी। संघ परिवार के सूत्रों के मुताबिक पिछले एक साल में चीन ने कम से कम भारत से 70 प्रतिनिधिमंडलों की मेजबानी की ताकि चीन भारत के कारोबारी समुदाय, युवा नेताओं और संघ परिवार के सहयोगियों तक अपनी पहुंच बना सके। इन प्रतिनिधिमंडलों में हिस्सा लेने वाले या तो संघ परिवार द्वारा नामित थे या वैसे लोग थे जो भारत-चीन संबंधों पर संघ के राष्ट्रवादी नजरिये से इत्तफाक रखते हैं। जून 2014 से चीन की यात्रा पर जाने वाले कई प्रतिनिधिमंडलों में विशेषतौर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) या संघ परिवार के वरिष्ठ सदस्य शामिल थे। पार्टी के महासचिव राम माधव और सचिव सिद्धार्थ नाथ सिंह भी इनमें शामिल थे। माधव ने एक ऐसे प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया जिसने सीपीसी द्वारा अपने काडर के लिए चलाए जा रहे स्कूल का दौरा किया। चीन से वापस आए लोगों ने भारत-चीन संबंधों को सभ्यता की कड़ी से जोड़कर देखने की चीन की कोशिशों की तारीफ की। साथ ही उन लोगों ने यहां के लोगों से आग्रह किया कि भारत-चीन के द्विपक्षीय संबंध को 'अमेरिका के नजरिये से देखने'की कोशिश बंद होनी चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि शिक्षित भारतीय भी चीन के बारे में काफी कम जानते हैं।


    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की साप्ताहिक पत्रिका ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने भी 2012 में चीन की यात्रा की थी। उन्होंने बताया, 'अपनी यात्रा के दौरान मुझे यह जानकर बेहद हैरानी हुई कि चीन के सामान्य लोगों को भी न केवल बुद्ध और डॉ. (द्वारकानाथ) कोटनिस के बारे में पता है बल्कि उन्हें रवींद्रनाथ ठाकुर और अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में भी जानकारी थी। भारतीय लोगों में काफी कम लोग ही होंगे जिन्हें माओ त्से तुंग के बारे में पता होगा, चीन के सुधारक और क्रांतिकारी राजनेता तंग श्याओं फिंग की बात तो छोड़ ही दें।'दिलचस्प बात है कि संघ परिवार के नेताओं ने 1998 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को अपना समर्थन दिया था जिन्होंने कहा था कि चीन भारत के लिए पाकिस्तान से भी बड़ा खतरा साबित हो सकता है। हालांकि हाल की इस नई पहल से संघ परिवार के नेताओं को प्राचीन भारत का दौरा करने वाले कई चीनी यात्रियों की पहचान करने में मदद मिलेगी। इन चीनी यात्रियों के कुछ ही ऐतिहासिक मूलग्रंथ हैं जो उस दौर में भारत के धार्मिक और सामाजिक रीति-रिवाजों का वर्णन करते हैं। संघ परिवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया है कि वह चीन के लोगों को बताएं कि भारतीय चीन की नई 'सिल्क रूट'योजना में सक्रिय भूमिका निभाना चाहते हैं। साथ ही यह भी बताएं कि बेहतर चिकित्सा सेवाओं के लिहाज से भारत हॉन्ग कॉन्ग की तुलना में चीन के लोगों के लिए कम खर्चीला साबित होगा। दोनों देश एक समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं जिसके मुताबिक चीन के छात्रों को अंग्रेजी भाषा में दक्ष करने के लिए भारतीय शिक्षकों से मदद ली जाएगी। संघ परिवार लघु अवधि में विवादास्पद सीमा विवाद  से जुड़े किसी भी प्रस्ताव को लेकर सतर्क है।

    http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=102595

    मंदिर निर्माण के कार्य में सहयोग करे सरकार : बजरंग दल

    जागरण संवाददाता, कपूरथला। विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल के कार्यकर्ताओं की बैठक आयोजित की गई। बैठक के दौरान राम जन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ ¨सह की ओर से सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा का सुझाव देने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बजरंग दल के प्रदेश अध्यक्ष व मुख्य प्रवक्ता नरेश पंडित के कहा कि गृहमंत्री का यह सुझाव पर्याप्त नहीं है। राम मंदिर के निर्माण के लिए केंद्र सरकार को दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देना होगा। केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि सुप्रीम कोर्ट में विशेष बेंच का गठन कर मामले का जल्द निपटारा करवाया जाए।

    नरेश पंडित ने कहा कि भाजपा के पास राज्यसभा में भले ही बहुमत नहीं है पर लोकसभा में तो है। उन्होंने कहा कि भाजपा नेतृत्व को चाहिए कि वह मंदिर निर्माण के लिए पहले लोकसभा में प्रस्ताव पेश करे। जहां तक राज्यसभा में मंदिर के लिए अपेक्षित समर्थन का सवाल है तो इसके लिए विहिप के विशेष संपर्क सेल का उसे समर्थन मिलेगा। यह सेल मंदिर के लिए विभिन्न दलों के सांसदों से समर्थन हासिल करने की कोशिश में है। उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास के नेतृत्व में संतों का एक प्रतिनिधि मंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की तैयारी में है। यह दल प्रधानमंत्री से मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने की मांग करेगा।

    उन्होंने स्पष्ट किया कि मंदिर का सवाल खड़ा कर हम सरकार के कामकाज में कोई व्यवधान नहीं खड़ा करना चाहते पर सरकार को भी चाहिए कि वह मंदिर निर्माण में सहयोग करे।

    अयोध्या में रामलला के मंदिर पर नरेश पंडित का कहना है कि राम मंदिर बनाने का वादा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के पास इसके लिए इच्छाशक्ति का अभाव है। उन्होंने कहा कि राम मंदिर निर्माण का मामला कोर्ट के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। जबकि तीन सुझाव में से किसी एक पर भी अमल किया जाए तो मंदिर बन सकता है। पहला सुझाव यह है कि मंदिर निर्माण का प्रस्ताव कांग्रेस लाए और भाजपा व अन्य दल उसका समर्थन करे। दूसरे सुझाव के तहत आपसी समन्वय व संवाद के जरिए राजनैतिक दल इस मसले को हल कर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें। तीसरा मुस्लिम समुदाय यह सच्चाई स्वीकार करे कि उन्हें ¨हदुओं से भी ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं, इसलिए वे स्वयं मंदिर निर्माण के लिए पहल करे।

    इस अवसर पर र¨वदर अरोड़ा, प्रदीप जैन, ओम प्रकाश कटारिया, संजय शर्मा बोबी, रमेश बजाज, राजेश गुप्ता, संजीव बजाज, धीरज बजाज, हर¨वदेर ¨सह लवली, चेतन सूरी, चंदर मोहन भोला, अश्वनी कुमार गुप्ता, विजय ग्रोवर, हरदीप पंडित बावा, राकेश ग्रोवर, राजेश वर्मा, जीवन वालिया, राजकुमार अरोड़ा, राजू सूद, राजकुमार राजू, अमित कुमार शर्मा व अन्य सदस्य उपस्थित थे।

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    जैज़ - ग़ुलाम सबसे ज़्यादा तब गाते हैं जब वे दुखी और ग़मज़दा होते हैं

    जैज़ -मैंने कभी-कभी सोचा है कि ग़ुलामी के बारे में फलसफ़े की पूरी-पूरी किताबों को पढ़ने की बनिस्बत महज़ इन गीतों को सुनना कुछ लोगों के दिमागों पर ग़ुलामी की भयानक फ़ितरत के...

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    Massive protest go on in China every day but we get very little news or pictures. See this

    'China: Massive Protest in Linshui Intense Repression and Resistance  Tens of Thousands of residents of the southwestern county of Linshui gathered in the morning and marched about 3km. Photos posted by the protesters on social media also showed violent attacks by a police tactical team(SWAT)and the resistance that followed lasted all day and well into the night.  http://revolution-news.com/china-massive-protest-in-linshui-intense-repression-and-resistance/'

    'China: Massive Protest in Linshui Intense Repression and Resistance  Tens of Thousands of residents of the southwestern county of Linshui gathered in the morning and marched about 3km. Photos posted by the protesters on social media also showed violent attacks by a police tactical team(SWAT)and the resistance that followed lasted all day and well into the night.  http://revolution-news.com/china-massive-protest-in-linshui-intense-repression-and-resistance/'

    'China: Massive Protest in Linshui Intense Repression and Resistance  Tens of Thousands of residents of the southwestern county of Linshui gathered in the morning and marched about 3km. Photos posted by the protesters on social media also showed violent attacks by a police tactical team(SWAT)and the resistance that followed lasted all day and well into the night.  http://revolution-news.com/china-massive-protest-in-linshui-intense-repression-and-resistance/'

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    China: Massive Protest in Linshui Intense Repression and Resistance

    Tens of Thousands of residents of the southwestern county of Linshui gathered in the morning and marched about 3km. Photos posted by the protesters on social media also showed violent attacks by a police tactical team(SWAT)and the resistance that followed lasted all day and well into the night.

    http://revolution-news.com/china-massive-protest-in-linshu…/

    Devanik Saha writes: "Since ‪#‎Greenpeace‬ has a strong outreach, their propaganda against the ‪#‎BJP‬ government on contentious environmental issues would hurt India's image and put a dent to‪#‎Modi‬'s painstaking efforts."

    Five reasons why Modi government is afraid of Greenpeace

    Their propaganda against the BJP government on contentious environmental issues would hurt India's image and put a dent to Modi's painstaking efforts.

    DAILYO.IN

    राहुल गांधी ने Narendra Modiसरकार को 10 में 0 नंबर दिए हैं। कॉमेंट करके बताइए कि आप कितने नंबर देते हैं...

    मोदी सरकार को दिए 10 में 0 नंबर

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    मोदी सरकार की अटल पेंशन योजना में ऐसी कमियां हैं जो इसके मकसद का मजाक उड़ाती हैं...

    खबर में जानें उन कमियों के बारे में...

    मोदी सरकार की अटल पेंशन योजना में हैं कई कमियां

    NAVBHARATTIMES.INDIATIMES.COM




    Abhishek Srivastava added 33 new photos to the album:'कविता: 16 मई के बाद'की राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी— with Mangalesh Dabral.

    Abhishek Srivastava's photo.

    Abhishek Srivastava's photo.

    Abhishek Srivastava's photo.

    Abhishek Srivastava's photo.

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    चीनी कंपनियों संग 26 समझौतों में से ज्यादातर अडानी और भारती ने झटके

    भारत और चीन के कारोबारियों के बीच शनिवार को 22 अरब डॉलर मूल्य के 26 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इन समझौतों से अडानी और भारती समूह को सबसे ज्यादा लाभ होगा।

    KHABAR.NDTV.COM




    It seems to never end...

    ‪#‎Gangrape‬‪#‎Delhi‬

    Woman gang-raped in Delhi. When will the city learn?

    A woman was allegedly gang-raped by five men at a flat on Saturday-Sunday night. Police have arrested four of the accused, one is absconding.

    DAILYO.IN


    पूूूँजीपति‍यों के सबसे अच्‍छे दि‍न, मजदूरों के सबसे बुरे दि‍न।

    खट्टर-मोदी सरकार मुर्दाबाद।

    नौजवान भारत सभा's photo.

    नौजवान भारत सभा's photo.

    नौजवान भारत सभा's photo.

    नौजवान भारत सभा added 3 new photos.

    पूूूँजीपति‍यों के सबसे अच्‍छे दि‍न, मजदूरों के सबसे बुरे दि‍न।

    खट्टर-मोदी सरकार मुर्दाबाद।

    महिलाओं को भी नहीं बख्शा और बात करते हैं बेटी बचाओ। ये बचाऐंगे बेटी क्या?

    आज करनाल में गेस्ट अध्यापकों के शान्तिपूर्ण प्रदर्शन पर जो बर्बरता दिखाई है इस बर्बरता ने जलियांवाला बाग़ में डायर ने गुलामी के दिनों की याद दिला दी। लेकिन उस वक़्त भारत गुलाम था। लेकिन आज भारत एक आज़ाद लोकतांत्रिक देश है। क्या आज़ाद देश में भी कोई अपनी आवाज नहीं उठा सकता। मैं आज हमारे देश के विदेशी प्रधानमन्त्री मोदी जी से पूछना चाहता हूँ की वो चुनाव से पहले इन्ही अच्छे दिनों की बात करते थे? इससे तो यही लगता है की इस देश में लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाहों का राज है।

    जिन-2 साथियो को चोट लगी है वो किसी भी हालत में हॉस्पिटल पहुंचे और MLR कटवाए और जिन महिला अध्यापिकाओं को चोट लगी है और पुलिस ने जिनके साथ पुलिस ने दुर्व्यवहार किया वो करनाल के बाहर किसी भी पुलिस स्टेशन में जाकर FIR दर्ज करवाये ।

    क्या यही अच्छे दिन हैं।

    कल सभी यूनियन मिलकर हरियाणा बंद करेंगी।

    (Raj Singh Godara की वाॅल से साभार)

    अवश्य पढ़ें शेयर करे KANHAR DAM – NGT Order –Government exposed but order contradictory http://ow.ly/2YJxYh


    Kamayani Bali Mahabal updated her cover photo.

    4 hrs· Edited·

    Modi ‪#‎Unescospeech‬

    'Modi  #Unescospeech'

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    Bhanwar Meghwanshi

    डांगावास नरसंहार में जिंदा बच गये पीड़ित दलितों से मिलने के लिए कल जा रहा हूँ ,वहां से लौट कर डांगावास में हुए भयंकर जुल्म की असलियत पर लिखुंगा .नागौर जिले में दलितों का उत्पीड़न सबसे भयानक और हिंसक रूप ले चुका है .बर्दाश्त के बाहर है यह अन्याय ..



    "For years, Indian political leaders have gone to China and said what the Chinese wanted to hear," writes Harsh V Pant. ‪#‎ModiInChina‬‪#‎SilkRoad‬

    In Modi, India has a PM who can look China in the eye

    The dragon has entrenched itself firmly in New Delhi's backyard and the latter's hold on South Asia is weakening.

    DAILYO.IN



    मोदी की बस्तर रैली के दौरान उनकी आगवानी में नीली कमीज और धूप का चश्मा पहन कर विवादों के घेरे में आए बस्तर के जिलाधिकारी अमित कटारिया ने इस मसले पर अपनी सफाई दी...

    navbharattimes.indiatimes.com

    प्रधानमंत्री के सामने सनग्लास पहनने वाले DM अमित कटारिया ने...

    NAVBHARATTIMES.INDIATIMES.COM


    पढ़ें क्यों राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने कहा, वेलफेयर स्कीम के अच्छे मकसद का गला दबाने का प्रयास करती हैं प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियां...

    बिजनस की काम की खबरों के लिए हमारे फेसबुक पेज Economic Times Hindiको लाइक करें।

    'वेलफेयर स्कीम के मकसद को बेकार कर देती हैं निजी बीमा कंपनियां'

    शीर्ष उपभोक्ता आयोग ने पब्लिक सेक्टर की एक इंश्योरेंस कंपनी पर कई लोगों को गलत तरीके से क्लेम देने...

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    The Economic Times

    23 hrs·

    Sweden is keen on partnering with Indian companies to build ‪#‎SmartCities‬through the public private partnership (PPP) mode in states like Karnataka, Telangana and Maharashtra, a senior Swedish official said.http://ow.ly/N33YE

    Sweden keen to build smart cities in India via PPP mode - The Economic Times

    Sweden, which has expertise in urban planning, power, sustainable transport and waste management, sees business opportunities with Indian partners.

    ECONOMICTIMES.INDIATIMES.COM



    ভারতের ইতিহাস সংশোধন করতে চান রাজনাথ

    Next: ১৯শে মে আমরা পালন কেন করব ? আমাদের কি অধিকার আছে ? কতটা সাহসী, নিবেদিতপ্রাণ, নির্ভীক হলে ১৯শে মে তারিখে শাসকের পুলিশের, বন্দুকের গুলির মুখোমুখি হওয়া গিয়েছিল ? আমরা কি তা কল্পনা করতে পারি ? কতটা মরিয়া তারা হয়ে উঠেছিল মাতৃভাষার মর্যাদাহানিতে, আমরা অনুভব করতে পারি ? তাদের ও মা বাবা ছিল, কারো ঘরে তরুণী পত্নী ছিল, যেমনই হোক ঘর ছিল, ঘরে রান্নাকরা ভাতের থালা ছিল । তবুও তারা কেন সেদিন তারাপুর এর দিকে দৌড়ে গেল ?...শিবানী দের নিবন্ধ...বাকিটা পড়ুন..
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    ভারতের ইতিহাস সংশোধন করতে চান রাজনাথ

    'ইতিহাসবিদেরা "আকবর দ্য গ্রেট"লেখায় আমার কোনো আপত্তি নেই। কিন্তু "প্রতাপ দ্য গ্রেট"হবে না কেন? আমি ব্যক্তিগতভাবে মুঘল আমলে ভারতের মেওয়ারের শাসক মহারানা প্রতাপ সিংকে মহান হিসেবে বিবেচনা করি। ইতিহাসবিদদের উদ্দেশে রাজনাথের আহ্বান, 'সঠিকভাবে ইতিহাস উপস্থাপন করা উচিত। পরবর্তী...www.prothom-alo.com/international/article/531064

    ভারতের কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্রমন্ত্রী রাজনাথ সিং দেশটির ইতিহাসবিদদের নতুন করে ইতিহাস রচনার বিষয়টি বিবেচনা করতে বলেছেন। নতুন ইতিহাসে মুঘল আমলে ভারতের মেওয়ারের শাসক মহারানা প্রতাপ সিংকে অধিক মূল্যায়ন করতে বলেছেন তিনি।আজ সোমবার টাইমস অব ইন্ডিয়া অনলাইনের...

    ১৯শে মে আমরা পালন কেন করব ? আমাদের কি অধিকার আছে ? কতটা সাহসী, নিবেদিতপ্রাণ, নির্ভীক হলে ১৯শে মে তারিখে শাসকের পুলিশের, বন্দুকের গুলির মুখোমুখি হওয়া গিয়েছিল ? আমরা কি তা কল্পনা করতে পারি ? কতটা মরিয়া তারা হয়ে উঠেছিল মাতৃভাষার মর্যাদাহানিতে, আমরা অনুভব করতে পারি ? তাদের ও মা বাবা ছিল, কারো ঘরে তরুণী পত্নী ছিল, যেমনই হোক ঘর ছিল, ঘরে রান্নাকরা ভাতের থালা ছিল । তবুও তারা কেন সেদিন তারাপুর এর দিকে দৌড়ে গেল ?...শিবানী দের নিবন্ধ...বাকিটা পড়ুন..

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    ১৯শে মে আমরা পালন কেন করব ? আমাদের কি অধিকার আছে ? কতটা সাহসী, নিবেদিতপ্রাণ, নির্ভীক হলে ১৯শে মে তারিখে শাসকের পুলিশের, বন্দুকের গুলির মুখোমুখি হওয়া গিয়েছিল ? আমরা কি তা কল্পনা করতে পারি ? কতটা মরিয়া তারা হয়ে উঠেছিল মাতৃভাষার মর্যাদাহানিতে, আমরা অনুভব করতে পারি ? তাদের ও মা বাবা ছিল, কারো ঘরে তরুণী পত্নী ছিল, যেমনই হোক ঘর ছিল, ঘরে রান্নাকরা ভাতের থালা ছিল । তবুও তারা কেন সেদিন তারাপুর এর দিকে দৌড়ে গেল ?...শিবানী দের নিবন্ধ...বাকিটা পড়ুন...

    বৈবাহিক ধর্ষণ পঙ্কজ

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    বৈবাহিক ধর্ষণ
    পঙ্কজ


    ধর্ষণের সংজ্ঞা থেকে 'বৈবাহিক ধর্ষণ'মুছে ফেলার জন্য ইন্ডিয়া পেনাল কোডে সংশোধনী বিল আনতে হবে কিনা- এই ছিল কানীমোঝির প্রশ্ন। উত্তরে বর্তমান কেন্দ্রীয় প্রতিমন্ত্রী হরিভাই পরতীভাই চৌধুরী রাজ্যসভায় ঘোষণা করেছেন, ভারতে 'বৈবাহিক ধর্ষণ'অপরাধ বলে পরিগণিত হবে না। কারণ ভারতে 'বিবাহ'হল অতি পবিত্র। 'বৈবাহিক ধর্ষণ'ভারতীয় সংস্কৃতির ক্ষেত্রে প্রযোজ্য নয়।
    ভারতে বিভিন্ন সংস্কৃতির মানুষ বাস করে- সেটা কি জানেন কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্র প্রতিমন্ত্রী? ওনার হিন্দু সংস্কৃতি যে মূলত ধর্ষণ সংস্কৃতি, নারীদের অবদমন করে রাখার সংস্কৃতি- এটা কি RSS আপনাকে বলেনি। কোনও পুরুষ যদি তার বউয়ের অনিচ্ছা সত্ত্বেও তাকে জোর করে সঙ্গম করে, ভারতীয় আইন বলে এটা ধর্ষণ। আপনার ভারতীয় সংস্কৃতি বিবাহিতা নারীকে পুরুষের দাসী, ভোগ্য বস্তু রূপেই দেখতে অভ্যস্ত। এজন্যেই কি আপনি মনে করেন নারীরা পুরুষের খেলার পুতুল! (তাই) 'বৈবাহিক ধর্ষণ ভারতীয় সংস্কৃতিতে প্রযোজ্য নয়'।
    রাষ্ট্রপুঞ্জের মানবাধিকার হাইকমিশনার ১১৯৩-এর ডিসেম্বরে ঘোষণা করেন 'বৈবাহিক ধর্ষণ'মানবাধিকারকে লঙ্খন করে। বিশ্বের প্রায় সব দেশেই বৈবাহিক ধর্ষণকে অপরাধ হিসেবে দেখা হয়।
    ২০১৩-র ১৬ ডিসেম্বরের দিল্লীর গণধর্ষণের পর J.S. Verma কমিটি ভারতে বৈবাহিক ধর্ষণকে অপরাধ হিসেবে আইনের আওতায় আনার কথা বলেছিলেন।
    রাষ্ট্রপুঞ্জের পরিসংখ্যান মতে বিবাহিতা ভারতীয় নারীদের ৭৫ শতাংশই বৈবাহিক ধর্ষণের শিকার।
    এই ধর্ষণ প্রতিদিনই ঘটে চলে। তবে তারা সেই ধর্ষণের বিরুদ্ধে থানায় বা আদালতে জানাতে ভয় পায় সমাজ কী বলবে সে কারণে।
    প্রাতিষ্ঠানিক বিয়ের ক্ষেত্রে এখানে পাত্র-পাত্রীরা একে অপরের 'স্ট্যাটাস সিম্বল'দেখে বিয়ে করে। গভীর বন্ধুত্ব, প্রেম থাকে অনুপস্থিত। তাই তাদের মধ্যে শুধুমাত্র যৌন স্বত্বাধিকার প্রতিষ্ঠিত হয়। 'মাতৃত্বেই নারীদের চরম সার্থকতা'এমন লাগাতার প্রচার চালিয়ে নারীকে শুধু সন্তান উৎপাদনকারী এবং যৌন উত্তেজনা-ভোগকারী যন্ত্র হিসেবেই কাজে লাগাতে চেয়েছে এবং চাইছে পুরুষশাসিত এই সমাজ।
    কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্র প্রতিমন্ত্রী কোনও উত্তর দেওয়ার আগে ভেবে দেখুন কি পরিপ্রেক্ষিতে তা বলছেন। আপনি স্বৈরাচারী মন্তব্য করা বন্ধ করুন। আপনার মন্তব্য অত্যাচারী পুরুষদের আরও উৎসাহিত করবে এবং নারীদের যৌন নিপীড়ন করার সাহস যোগাতে পারে। আপনার এই বেকুব মন্তব্যের জন্য আপনাকে তীব্র ধিক্কার জানাই।
    http://www.srai.org/%E0%A6%AC%E0%A7%88%E0%A6%AC%E0%A6%BE%E…/
    পঙ্কজ ধর্ষণের সংজ্ঞা থেকে 'বৈবাহিক ধর্ষণ'মুছে ফেলার জন্য ইন্ডিয়া পেনাল কোডে সংশোধনী বিল আনতে হবে কিনা- এই ছিল কানীমোঝির প্রশ্ন।
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