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ढाई युद्ध लड़ने की तैयारी राष्ट्रहित में या कारपोरेट हित में? क्या हम युद्धविरोधी आंदोलन के लिए कभी तैयार होंगे ? रक्षा क्षेत्र के विनिवेश के बाद युद्ध से किन कंपनियों को फायदा कि प्रधान स्वयंसेवक और विदेश मंत्री की जगह वित्तमंत्री चीन को करार जबाव देने लगे? गोरखालैंड मसला को सुलझाये बिना पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध की तैयारी का दावा और चीन की मोर्चाबंदी बेहद खतरनाक हालात। कश्�

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ढाई युद्ध लड़ने की तैयारी राष्ट्रहित में या कारपोरेट हित में?

क्या हम युद्धविरोधी आंदोलन के लिए कभी तैयार होंगे ?

रक्षा क्षेत्र के विनिवेश के बाद युद्ध से किन कंपनियों को फायदा कि प्रधान स्वयंसेवक और विदेश मंत्री की जगह वित्तमंत्री चीन को करार जबाव देने लगे?

गोरखालैंड मसला को सुलझाये बिना पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध की तैयारी का दावा और चीन की मोर्चाबंदी बेहद खतरनाक हालात।

कश्मीर से लेकर दार्जिलिंग और पूर्वोत्तर में भारत में जहां आंतरिक सुरक्षा भारी खतरे में है,वहीं तिब्बत में हालात पूरी तरह चीन के नियंत्रण में है।

 

पलाश विश्वास

 

सिक्किम में सीमा पर गहराते युद्ध के संकट के मध्य दार्जिलिंग के पहाड़ों में रातभर हिंसा का तांडव,आगजनी,संघर्ष में तृमणूल नेता जख्मी।गोरखालैंड मसला को सुलझाये बिना पाकिस्तान और चीन के साथ युद्ध की तैयारी का दावा और चीन की मोर्चाबंदी बेहद खतरनाक हालात।

 

इसी बीच सेनाअध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने  कहा कि सेना एक समय में पाकिस्तान, चीन और आतंकियों के साथ ढाई युद्ध लड़ सकती है।

 

सेनाध्यक्ष के बयान का नेवी के चीफ एडमिरल सुनील लांबा ने भी समर्थन किया है। सुनील लांबा ने कहा कि भारतीय सशस्त्र सुरक्षा बल किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

 

बहरहाल  चीन ने भारत को चेतावनी दी है कि भारतीय सेना को इतिहास से मिले सबक यानी 1962 की लड़ाई में मिली हार से सीख लेनी चाहिए।

 

इस चेतावनी को बंदरघुड़की न समझें तो बेहतर है क्योंकि तिब्बत में सिक्किम से लेकर उत्तराखंड होकर तिब्बत और अक्साई चीन तक 1962 से लेकर अबतक चीन की सैन्य तैयारियां भारत के मुकाबले कम नहीं है।

 

कश्मीर से लेकर दार्जिलिंग और पूर्वोत्तर में भारत में जहां आंतरिक सुरक्षा भारी खतरे में है,वहीं तिब्बत में हालात पूरी तरह चीन के नियंत्रण में है।

 

न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए जनरल रावत ने कहा कि सेना के पास इतनी क्षमता है कि वो आसानी से युद्ध करके जीत भी सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार के साथ सेना को मॉर्डन साजो सामान से लैस करने के लिए हमारी बातचीत चल रही है, जिससे सरकार भी पूरी तरह से राजी है। जल्दी ही सेना के पास कई तरह के आधुनिक हथियार लाने के प्रयास किए जाएंगे।

 

गौरतलब है कि प्रधान स्वयंसेवक और विदेश मंत्री की खामोशी के मध्य सेनाध्यक्ष के सुर में सुर मिलाते हुए सिक्किम में सड़क निर्माण को लेकर भारत और चीन के बीच चल रही तनातनी के बीच रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने चीन को करारा जवाब दिया है। उन्होंने एक कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि 1962 के हालात और अब के हालात में बहुत अंतर है।

 

संघ परिवार की विचारधारा और अंध हिंदुत्व राष्ट्रवाद के नजरिये से ही नहीं गोदी कारपोरेटमीडिया के मुताबिक यह चीन को करारा जबाव है।जबाव हो सकता है कि काफी करारा ही होगा लेकिन विदेश नीति या राजनय का क्या हुआ,यह हमें समझ में नहीं आ रहा है।

 

जेटली के इस कारपोरेट युद्धोन्मादी बयान के उलट गौरतलब है कि पिछले दिनों रूस में आयोजित एक कांफ्रेंस में बोलते हुए भारत के पीएम मोदी ने कहा था कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद होने के बावजूद पिछले 40-50  साल से बॉर्डर पर एक भी गोली नहीं चली है।

 

मोदी के इस बयान की चीन में भी काफी सराहना हुई थी। और दुनिया भर में माना जा रहा था कि भारत और चीन अपने सीमा विवाद को बातचीत से निपटाने में सक्षम हैं।

अब जो हो रहा है ,वह मोदी के बयान के मुताबिक है,ऐसा दावा भक्तजन ही कर सकते हैं।सचेत नागरिक नहीं।

 

गौरतलब है कि 40-50 साल पहले यानी सितंबर 1967 में भारत और चीन के बीच सीमा पर आखिरी बार जिस इलाके में जोरदार फायरिंग हुई थी, सिक्किम के बॉर्डर का वही इलाका इस वक्त दोनों देशों के की सेनाओं के बीच जोर आजमाइश का केंद्र बन गया है।

 

इस बीच बाकी देश से कटे हुए दार्जिलंग और सिक्किम के साथ गोरखालैंड आंदोलन के चपेट में सिलीगुड़ी,जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर के आ जाने के बाद सिक्किम ही नहीं समूचा पूर्वोत्तर बाकी भारत से अलग थलग हो रहा है और भारत की सुरक्षा के लिए यह गंभीर चुनौती है।

 

विडंबना यह है कि इस समस्या को सुलझाने की कोई कोशिश किये बिना  सत्ता की राजनीति की वजह से दार्जिलिंग में हिसा की आग में ईंधन देकर चीन को सबक सिखाने और पाकिस्तान का नामोनिशान मिटाने को धर्मोन्माद राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए बहुत भारी खतरा है।

 

चीन भीड़ में फंसा कोई निहत्था भारतीय नागरिक नहीं है,जिसका वध कर दिया जाये।वह एक बड़ी सैन्यशक्ति है।भारत से बड़ी।

 

कृपया गौर करें कि 1962 के बाद छिटपुट विवादों के अलावा भारत चीन सीमा पर कोई खास हलचल नहीं होने से भारत को बांगद्लादेश युद्ध में अमेरिकी चुनौती को भी मात देने में मदद मिली थी।

 

यह भी गौरतलब है कि इससे पहले किसी भारत सरकार ने एक साथ पाकिस्तान और चीन में युद्ध छेड़ने की तैयारी नहीं की थी।की भी होगा तो राजनीतिक या सैन्यस्तर पर ऐसा कोई दावा नहीं किया था।

 

सचमुच युद्ध छिड़ा तो दुनिया की नजर में इस बयानबाजी को 1962 की तरह भारत की चीन के खिलाफ युद्धघोषणा मान लिया जाये,तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

 

अंध राष्ट्रवाद के नजरिये से हटकर इस युद्धोन्माद को हाल में भारत में रक्षा क्षेत्र को निजी क्षेत्र के हवाले करने के बाद युद्ध गृहयुद्ध की अमेरिकी अर्थव्यवस्था की जैसी मजबूरी के नजरिये से देखना जरुरी है।हमारा मुक्तबाजार युद्ध का सौदागर भी है।

 

सत्ता वर्गी की चहेती कंपनियां एफ 16 जैसे युद्धक विमान तैयार कर रही हैं।अमेरिका से प्रधान स्वयंसेवक ने बाकी तमाम मुद्दों पर सन्नाटा बुनते हुए पचहत्तर हजार करोड़ के ड्रोन का सौदा किया है तो सात परमाणु रिएक्टर भी खरीदे जा रहे हैं।

 

हथियारों के सौदे की लंबी चौड़ी लिस्ट है,जो सार्वजनिक नहीं हुई है।

 

इजराइल की यात्रा अभी बाकी है।

 

अमेरिका और इजराइल की युद्धक अर्थव्यवस्था से नत्थी होकर हम भी तेजी से युद्धक अर्थव्यवस्था में तब्दील हो रहे हैं और अब निजी कंपनियों के तैयार हथियारों और युद्ध सामग्री के बाजार के लिए धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की सुनामी में अभूतपूर्व कृषि संकट,कारोबार और उद्योग के सफाया के साथ देश और आम जनता पर युद्ध थोंपने का यह कारपोरेट उपक्रम है।

 

अमेरिका और दूसरे देशों में नागरिक युद्धविरोधी आंदोलन करते रहे हैं लेकिन बारत में वियतनाम युद्ध से लेकर इराक और सीरिया के युद्ध के खिलाफ साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलन होते रहने के बाद आंतरिक साम्राज्यवाद के खिलाफ आजतक कोई युद्धविरोधी आंदोलन नहीं हुआ है।

 

जीएसटी के तहत हलवाई या किराने की दुकानों में बेरोजगार आईटी इंजीनियरों को खपाने से शायद तकनीक से अनजान कारोबरियों की मदद के वास्ते अनिवार्य डिजिटल लेनदेन से उनके तकनीक न जानने की वजह से कुछ समय के लिए युवाओं को थोड़ा बहुत रोजगार मिलेगा।लेकिन सारा समीकरण एकाधिकार कारपोरेट कंपनियों के हक में है।

 

बड़ी और कारपोरेट पूंजी के एकाधिकार हमलों के मुकाबले छोडे और मंझौले कारोबारियों और उद्यमियों के लिए बाजार में बने रहना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

 

देश अभूतपूर्व आर्थिक संकट में है और ऐसे में पाकिस्तान और चीन के साथ एकमुश्त युद्ध की तैयारी किसके हित में है,इसकी पड़ताल होना राष्ट्रहित में जरुरी है।

 

1948 में हममें से ज्यादातर लोग पैदा ही नहीं हुए थे।1948 के बाद 1962 के भारत चीन युद्ध बेहद सीमित था,जिसका खास असर अर्थव्यवस्था पर नहीं हुआ।लेकिन 1965 से पहले मंहगाई और मुद्रास्फीति के आंकड़ों को देख लें या अपनी यादों को अगर तब आप समझने लायक रहे होंगे,को खंगालकर देख लें कि 1965 और 1971 के भारत पाक युद्धों के नतीजतन देश और जनता पर आर्थिक बोझ और क्रज कितना गुणा बढ़ा है।

 

1971 से लेकर कारगिल जैसे सीमित युद्ध के अलावा सीमाओं पर अमन चैन आमतौर पर कायम रहने की वजह से कश्मीर विवाद के बावजूद,अंधाधुंध सैन्यीकरण और हिथियारों की होड़ के बावजूद भारत को किसी व्यापक युद्ध का सामना नहीं करना पड़ा।

 

अस्सी के दशक में पंजाब और असम समेत विभिन्न हिस्सों में आंतरिक संकट के बावजूद भारत की एकता,सुरक्षा और अखंड़ता पर आंच नहीं आयी है क्यंकि भारत ने सीमा संघर्ष से भरसक परहेज किया है।

 

मुक्तबाजार और आर्थिक विकास के बारे में विवादों के बावजूद कहना ही होगा कि साठ और सत्तर ेक दशक के मुकाबले आज जो भारत लगभग विकसित देशों के बराबर आ गया है,वह विदेश नीति और अयुद्ध नीति की कामयाबी की वजह से है।

 

हम आपको आगाह करते हुए याद करते हैं कि पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान के दमन का रास्ता न अपनाया होता और भारत को जबरन युद्ध में न घसीटा होता तो पाकिस्तान का विभाजन नहीं होता।

 

सेनाध्यक्ष रावत सिक्किम से एकसाथ पाकिस्तान और

के साथ युद्ध की तैयारियों का जो दावा कर रहे हैं,दार्जिलिंग,असम और समूचे पूर्वोत्र के संवेदनशील हालात के मुताबिक सारे समीकरण भारत के खिलाफ हैं।

यूं तो भारत और चीन के बीच सीमा पर वक्त-वक्त पर अतिक्रमण की खबरें आती रहती हैं। लेकिन मीडिया की खबरों का विश्लेषण निरपेक्ष दृष्टि से करें तो इस बार यह घटना इतनी बड़ी है कि इसे साल 2013 दौलतबेग ओल्डी सेक्टर के मामले से भी ज्यादा गंभीर माना जा रहा है। गौरतलब है कि पिछले मामलों के उलट इस बार चीनी मीडिया भारत के प्रति बेहद सख्त भाषा का इस्तेमाल कर रहा है । और ग्लोबल टाइम्स ने तो भारत को सबक सिखाने की चुनौती भी दे डाली है।

चीन ने इस बार की घटना के विरोध में कूटनीतिक कदम उठाते हुए कैलाश मानसरोवर की तीर्थ यात्रा तक को रोक दिया है। यानी इस बार यह मामला चुमार, डेमचौक और चेपसांग के इलाकों में चीनी सैनिकों की घुसपैठ की पिछली घटनाओं से अलग है और बेहद खतरनाक है।

 

मध्यएशिया में हुए हाल के युद्ध और भारत ,चीन,पाकिस्तान की परमाणु युद्ध तैयारियों के मद्देनजर जाहिर सी बात है कि अबकी दफा कोई पारंपारिक युद्ध नहीं होने वाला है।

 

परमाणु प्रक्षेपास्त्र के जमाने में सेनाध्यक्ष के इस युद्धोन्मादी बयान के बाद प्रधानस्वयंसेवक और देश की विदेश मंत्री की चुप्पी और राजनीतिक बौद्धिक गलियारे में सन्नाटा बेहद खतरनाक है।

 

मीडिया के मुताबिक चीन की सेना ने गुरुवार को भूटान के इस आरोप से इंकार किया कि उसके सैनिक भूटान की सीमा में घुसे और कहा कि उसके सैनिक 'चीन के क्षेत्र' में ही तैनात रहते हैं। साथ ही चीन ने भारत से उसकी 'गड़बड़ियों' को भी 'ठीक करने' को कहा।

 

चीन के रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने मीडिया से कहा, 'मुझे इस बात को ठीक करना है कि जब आप कहते हैं कि चीन के सैनिक भूटान की सीमा में घुसे. चीन के सैनिक चीन की सीमा में ही तैनात रहते हैं'। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के प्रवक्ता ने भारतीय सैनिकों पर सिक्किम सेक्टर के डोंगलोंग क्षेत्र में चीन की सीमा में घुसने का आरोप भी लगाया।

 

प्रवक्ता ने कहा, 'उन्होंने सामान्य क्रियाकलापों को रोकने का प्रयास किया. चीन ने संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की सुरक्षा के लिए इन क्रियाकलापों पर उचित प्रतिक्रिया दी'.।उन्होंने कहा, 'हमने भारतीय पक्ष को साफ कर दिया है कि वह अपनी गड़बड़ियां ठीक करे और चीन की सीमा से अपने सभी जवानों को वापस बुलाएं'।

 

भूटान ने बुधवार को कहा था कि उसने डोकलाम के जोमपलरी क्षेत्र में उसके सेना शिविर की तरफ एक सड़क के निर्माण पर चीन को 'डिमार्शे' (शिकायती पत्र) जारी किया है और बीजिंग से काम तत्काल रोककर यथास्थिति बहाल करने को कहा।

 

दरअसल  चीन का दावा है कि भारत ने डोकलाम सेक्टर के जोम्पलरी इलाके में 4 जून को सड़क निर्माण कर रहे उसके सैनिकों को रोक दिया। और उनके साथ हाथापाई भी की। इसके बाद अगले दिन चीनी सैनिकों ने भूटान की सीमा में स्थित भारत के दो अस्थाई बंकर गिरा दिए।

गौरतलब है कि 269 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल का यह इलाका भारत,चीन और भूटान की सीमाओं के पास है। यही वह इलाका है जहां तीनों देशों की सीमाएं मिलती हैं।

1914 की मैकमोहन रेखा के मुताबिक यह इलाका भूटान के अधिकार में है। जबकि चीन इस लाइन को मानने से ही इनकार करता है। और वक्त-वक्त पर उसके सैनिक भूटान की सीमा का अतिक्रमण करते रहते हैं।

गौरतलब है चीन के 1914 की मैकमोहन रेखा न मानने की वजह से 1962 में भारत चीन युद्ध हुआ था।तब भी इस युद्ध को टालने के बजाय भारत की तरफ से संसद में ही युद्ध घोषमा कर देने की भयंकर ऐतिहासिक भूल हो गयी थी और उस युद्ध में हार के बाद तमाम सेनापतियों के ब्यारे भारत की तत्कालीन सरकार को ही कटघरे में खड़ा करते हैं।लगता है कि इतिहास की पुनरावृत्ति बेहद खतरनाक तरीके से हो रही है।इस बार बी युद्ध टालने की भारत सरकारी की कोई मंशा अभी तक जाहिर नहीं हुई है।

 

डोकलाम के पठार की रणनीतिक रूप से इस इलाके में बेहद अहमियत है. चंबी घाटी से सटा हुआ होने के चलते चीन इस पठार पर अपनी सैन्य पोजीशन को मजबूत करना चाहता है.

चीन की कोशिश है कि इस इलाके में सड़कों का जाल बिछाया जाए ताकि भारत के साथ युद्ध की स्थिति में जल्द से जल्द इस इलाके में सैन्य मदद पहुंचाई जा सके. डोकलाम के पठार पर चीन की इसी मंशा ने भारत को सख्त रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया है.

 

 



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हम जिस कमल जोशी को जानते पहचानते हैं,उसके ऐसे दुःखद अंत की कोई आशंका कभी नहीं थी।

गिर्दा जब चले गये, वीरेनदा ने भी जब सांसें तोड़ी,तो इस आशंकित अंत के लिए हम लंबे अरसे से तैयार थे।लेकिन इस हादसे के मुखातिब हो सकने की कोई तैयारी नहीं थी।

पर्यावरण का मुद्दा जन प्रतिरोध का एक मात्र रास्ता है और इस सिलसिले में मैं सविता के साथ 2014 में देहरादून गया था। हमारे आदरणीय मित्र राजीव नयन बहुगुणा हमारे मेजबान थे और चूंकि हमें उनके पिता सुंदर लाल बहुगुणा से मिलना था तो राजीव दाज्यू से ही ठहरने के इंतजाम के लिए कहा था।

कोलकाता से रवानगी से पहले कोटद्वार में कमल दाज्यू को फोन कर दिया था कि आ जाओ,देहरादून। अरसे से नहीं मिले।

इससे करीब दस साल पहले सविता और मैं दिल्ली में बीमार ताउजी को देखने के बाद उधम सिंह नगर में अपने गांव बसंतीपुर के रास्ते  बिजनौर में सविता के मायके में ठहरे थे और कमल दाज्यू का आदेश हुआ था, कोटद्वार आ जाओ।हम रवाना होने ही वाले थे कि दिल्ली से भाई ने ताउजी के निधन का समाचार दिया।उऩका पार्थिव शरीर दिल्ली से बसंतीपुर रवाना हो चुका था,तो हम तब कोद्वार जा नहीं सके थे।फिर कभी कोटद्वार जाना नहीं हो सका।सचमुच,हिमालय से कोलकाता की दूरी बहुत ज्यादा है और हम अब भी कोटद्वार पहुंच नहीं सकते।

सविता ने उन्हें देखा तक नहीं था।हम नैनीताल जब भी हम गये, कमल जोशी आगे पीछे निकलते रहे थे।

राजीव नयन दाज्यू और किशोरी उपाध्याय ने गोलकुंडा हाउस में हमारे ठहरने का इंतजाम किया।

रात को दस बजे के करीब भारी बारिश के बीच कमल जोशी हाजिर हो गये।कहा कि राजस्थान के लिए ट्रेन पकड़नी है।

हमने कहा कि कैसे यहां तक पहुंचे।बोले किसी की बाइक ले आया हूं।देर रात तक खूब गप्पे हुईं,,पुराने दिन और पुराने साथियों को याद किया।

सविता से कमल दाज्यू की यह पहली और आखिरी मुलाकात थी।

वे जाने लगे तो मैंने यूंही पूछ लिया, इतने बरस हो गये,  इतने बड़े फोटोकार हो,तुमने हमारी कोई तस्वीर नहीं खींची और आज भी कैमरा लेकर नहीं आये।

गर्मजोशी के साथ कमल जोशी बोले,फिर मिलेंगे न,तभी खींचेंगे फोटो।

हमारी कोई तस्वीर खींचे बिना हमारे सबसे प्रिय फोटो कलाकार इस तरह चले गये,यह भी यकीन करना होगा।

विपिन चचा,निर्मल जोशी,निर्मल पांडे का निधन भी असमय हुआ और झटका भी तगड़ा लगा लेकिन उऩमें से किसी ने इसतरह खुदकशी नहीं की थी।

हमारे प्रिय कवि गोरख पांडेय ने भी खुदकशी की थी और हम सभी कमोबेश यह जानते थे कि किन कारणों से ,किन परिस्थितियों में उन्होंने खुदकशी की।

कमल दाज्यू के इस तरह पंखे से लटक जाने की कोई वजह समझ में नहीं आ रही है।

हम जब एमए कर रहे थे,तो कमल जोशी रसायन शास्त्र में शोध कर रहे थे।यूं तो वे शेखर दाज्यू और उमा भाभी के दोस्त थे, लेकिन हम लोगों से दोस्ती करने में उन्होंने कोई देर नहीं लगायी। डीएसबी के कैमिस्ट्री लैब में वे हमेशा दूध चीनी रखते थे।

सर्दी की वजह से हम नैनीताल में गुड़ के साथ चाय पीते थे।लेकिन कैमिस्ट्री लैब में कमल जोशी बीकर को बर्नर पर रखकर चाय बनाते थे और वह चाय हम परखनली में पीते थे।

ऐसी चाय फिर हमने जिंदगी भर नहीं पी।

गिरदा बेहद मस्त और मनमौजी थे।

कमल जोशी की तुलना उन्हीं से की जा सकती है।

दोनों खालिस कलाकार थे।

दोनों पहाड़ का चप्पा चप्पा जानते थे।

फिरभी गिरदा को नापसंद करने वाले लोग कम नहीं थे।लेकिन कमल जोशी को नापसंदकरने वाला कोई शख्स मुझे आज तक नहीं मिला।

अपनी सोच, अपनी सक्रियता और अपनी समझ में भी कमल दाज्यू की तुलना सिर्फ गिर्दा से की जा सकती है।

बरसों पहले उनके पिता घर से निकलकर लापता हो गये और कभी नहीं लौटे।पहाड़ को छानते रहने के बावजूद कमल जोशी की उनसे दोबारा मुलाकात हुई नहीं।

वे नैनीताल छोड़ने के बाद पूरी तरह यायावरी जीवन जी रहे थे और उनकी हर तस्वीर में मुकम्मल पहाड़ नजर आता था।

दुर्गम पहाड़ों के पहाड़ से भी मुश्किल जिंदगी गुजर बसर करने वालों के साथ वे एकात्म हो गये थे।

उनके ख्वाबों,उनकी आकांक्षाओं और उनके संघर्षों के वो जैसे अपने चित्रों में सहेज रहे थे,उन्हें देखकर हम अंदाजा लगाया करते थे कि बंगाल की भुखमरी में चित्र कला मार्फत इतिहास लिखने वाले सोमनाथ होड़ और चित्तप्रसाद जैसे लोग किस तरह चित्र बनाते होंगे।

दिशाएं खोने की वजह से ही शायद ऐसा विक्लप चुनने की सोची होगी कमल दाज्यू ने।

दिशाएं हम लोगों ने भी खो दी हैं।

अब नहीं मालूम कब कहां से इस तरह की खबरें हमारा इंतजार कर रही हैं और पता नहीं ,दिशाएं खो देने की स्थिति में हममें से कितने लोग इस तरह की त्रासदी से अपना जीवन का अंत कर देंगे।

जगमोहन रौतेला ने लिखा हैः

 

 

*** दुखद खबर ****

..............................

बड़े दुख और पीड़ा के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि घुमक्कड़ छायाकार , प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी जी का आकस्मिक निधन आज 3 जुलाई 2017 को कोटद्वार में हो गया है . वे अपने घर में पंखे से लटके मिले ! एक घुमक्कड़ , यायावर , पहाड़ को बहुत ही नजदीक से जानने समझने , उसके लिए हमेशा चिंतित रहने वाले व्यक्ति का यूँ अचानक से चला जाना बहुत ही पीड़ादायक है . कल ही उन्होंने देर रात को इतिहासकार डॉ. शेखर पाठक से फोन पर बात की थी . पर कहीं से भी कोई तनाव उनकी बातों में नहीं था . फिर अचानक आज क्या हो गया ? किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा है .

ये क्या किया कमल दा आपने ? क्या कोई भी ऐसा नहीं था जिसे आप अपने मन की कह सकते थे ? क्या इतने सारे मित्रों व शुभचिंतकों के बाद भी आप इतने अकेले थे ? जो पूरे उत्तराखण्ड में हमेशा घुमक्कड़ी करता रहता हो , वह इतना अकेला , बेबस कैसे हो सकता है कमल दा ! क्या कहूँ ? क्या लिखूँ ? समझ नहीं आ रहा है . आप हमेशा याद आवोगे कमल दा !

अलविदा कमल दा ! अलविदा !! और क्या कहूँ ? आखिरी विदाई तो मन मारकर देनी ही पड़ेगी ना आपको !


Now communal riots in Bengal! Palash Biswas

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Now communal riots in Bengal!
Palash Biswas

We should unite for peace,law and order.It is anarchy in Bengal.The rioting elements in political dress must be curbed to save Bengal as well as India.If Bengal is set on fire it might inflict the borders and furthe refugee influx would complicate the already worse situation.
Sikkim is already cut off and Darjeeling continues to be burning.Violence unabated amidst Sikkim border stand off which threats national security and integrity.
 Now it is riot in West Bengal.Communal polarization politics created the chaos. Votebank politics supported,protected communalism is full bloom in Bengal added with Cow Politics.
RSS is distributing Cows in bengal free of cost.
Racial divide is complete.Bengal has been the target and the government as well as secular and democrate politics failed miserably.Not only Darjeeling,Benagl is set on fire.Communal polarization with racial repression sets Hell losing.
Just go trough the media coverage!
media reports:

An 'objectionable' Facebook post about a religious site has triggered communal clashes in West Bengal's North 24 Parganas district, prompting the Centre to rush 300 paramilitary personnel on Tuesday to bring the situation under control.

West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee said the clashes broke out between two communities in Baduria of the Basirhat sub-division over the "objectionable" post.

The clashes led to a war of words between the chief minister and Governor Keshari Nath Tripathi. Briefing the media at the state secretariat, Banerjee accused Tripathi of threatening her over phone and alleged that he was acting like a "BJP block president".

"He (Governor) threatened me over phone. The way he spoke, taking the side of BJP, I felt insulted. I have told him that he cannot talk like this," Banerjee told reporters.

"He (the governor) is behaving like a block president of BJP. He should understand that he has been nominated to the post…," she said. "He talked big on law and order. I am not here at the mercy of anyone. The way he spoke to me, I once thought of leaving (the chair)."

Meanwhile, the BJP alleged that over 2000 Muslims attacked Hindu families in the North 24 Parganas district of West Bengal and its offices at several places were set on fire. Accusing the state police of failing to control the situation, party general secretary Kailash Vijayvargiya, who is also in charge of the state, urged Home Minister Rajnath Singh to intervene in the matter.

Several shops were torched and houses ransacked in Baduria, Tentulia and Golabari. On Monday night, a mob attacked Baduria police station and set ablaze several police vehicles.

আহত পুলিশ সুপার, বাদুড়িয়ায় গেল বিএসএফ, আসছে আধা সেনাও

Story image for bengal communal riots from The Indian Express

Communal violence in West Bengal over 'objectionable' Facebook ...

The Indian Express-3 hours ago

Communal violence broke out in North 24 Parganas district of West Bengal on Tuesday over a Facebook post prompting Centre to rush 300 ...

Communal riots in Baduria, West Bengal over objectionable ...

Financial Express-1 hour ago

West Bengal: Communal violence in Baduria over objectionable FB ...

Daily News & Analysis-2 hours ago

Communal riots turn Bengal's Baduria into battlefield, Central forces ...

indiablooms-2 hours ago

Mamata Banerjee says communal violence breaks out in West ...

Zee News-3 hours ago

Mob goes on rampage in Bengal over blasphemous FB post ...

In-Depth-Hindustan Times-2 hours ago

আহত পুলিশ সুপার, বাদুড়িয়ায় গেল বিএসএফ, আসছে আধা সেনাও

ABP Anand Reports

কলকাতা: সাংবিধানিক প্রধানের সঙ্গে রাজ্যের প্রশাসনিক প্রধানের সরাসরি সংঘাত!


যা ঘিরে রাজ্য রাজনীতিতে শোরগোল। চরমে তৃণমূল-বিজেপি চাপানউতোর।


উত্তর ২৪ পরগনার বাদুড়িয়ার একটি ঘটনাকে কেন্দ্র করে ঘটনার সূত্রপাত। পুলিশ সূত্রে খবর, সম্প্রতি ফেসবুকে একটি পোস্ট করে একাদশ শ্রেণির এক ছাত্র। পোস্টে তাদের ভাবাবেগে আঘাত লেগেছে, এই অভিযোগ তুলে রবিবার ওই ছাত্রের বাড়ির সামনে জমায়েত হয় একটি গোষ্ঠী। পুলিশ পদক্ষেপের আশ্বাস দিলে তারা সরে যায়।


৩ জুলাই ভোরে ওই স্কুলছাত্রকে গ্রেফতার করে পুলিশ।


কিন্তু ওইদিনই বাদুড়িয়ার মোড়ে-মোড়ে অবরোধ শুরু করে অপর গোষ্ঠীর লোকজন। দুপুর পর্যন্ত পরিস্থিতি স্বাভাবিক ছিল। কিন্তু বিকেলের দিকে বেশ কিছু জায়গায় দুই গোষ্ঠীর মধ্যে সংঘর্ষ বাধে। অশান্তি ছড়ায় বসিরহাট ও দেগঙ্গার একাংশে।


মঙ্গলবার সকাল থেকে অনন্তপুর, মালতিপুর-সহ একাধিক স্টেশনে অবরোধ শুরু করে একটি গোষ্ঠী। এদিনই, সশস্ত্র মিছিলের অভিযোগকে কেন্দ্র করে উত্তপ্ত হয়ে ওঠে বসিরহাট শহর। সূত্রের খবর, পুলিশের একাধিক গাড়িতে ভাঙচুর করা হয়। অপর গোষ্ঠীর কয়েকজনকে মারধরেরও অভিযোগ উঠেছে।এরপর পরিস্থিতি আরও অশান্ত হয়ে ওঠে। কয়েকটি জায়গায় গুলি-বোমা নিয়ে দুই গোষ্ঠীর সংঘর্ষ হয়। অশান্তির জেরে দীর্ঘক্ষণ থানা থেকে বেরোতে পারেনি বাদুড়িয়ার পুলিশকর্মীরা। ঘটনা সামলাতে গিয়ে উত্তর ২৪ পরগনার পুলিশ সুপার আহত হন।


এই পরিস্থিতিতে, মধ্যমগ্রামের ক্যাম্প থেকে থেকে বাদুড়িয়ায় পৌঁছেছে বিএসএফ।


নবান্ন সূত্রে খবর, কলকাতা পুলিশের একটি টিমও বাদুড়িয়া যাচ্ছে।


হাওড়ার পুলিশের কমিশনারের নেতৃত্বেও একটি দল বাদুড়িয়ার উদ্দেশ্যে রওনা দিয়েছে।


সূত্রের খবর, কেন্দ্র ৩ কোম্পানি আধা সামরিক বাহিনী পাঠাচ্ছে।

गोडसे भक्तों को गांधी का वास्ता : ये मजाक सिर्फ मोदी ही कर सकते हैं

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समान नागरिक संहिता से पहले पूरे देश में गौहत्या तो रोकें
समान नागरिक संहिता से पहले पूरे देश में गौहत्या तो रोकें

भाजपा गौ रक्षा जैसे अति संवेदनशील तथा धार्मिक भावनाओं से सीधे तौर पर जुड़े हुए विषय पर पूरे देश में समान कानून बनाए जाने का साहस क्यों नहीं कर पाती?

तनवीर जाफ़री
2017-07-04 19:55:31
घुमक्कड़ छायाकार प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी अपने घर में पंखे से लटके मिले भयंकर त्रासदी हम तमाम लोगों के लिए
घुमक्कड़ छायाकार, प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी अपने घर में पंखे से लटके मिले, भयंकर त्रासदी हम तमाम लोगों के लिए!

वे नैनीताल छोड़ने के बाद पूरी तरह यायावरी जीवन जी रहे थे और उनकी हर तस्वीर में मुकम्मल पहाड़ नजर आता था। दुर्गम पहाड़ों के पहाड़ से भी मुश्किल ज...

पलाश विश्वास
2017-07-03 22:31:36
वे मुसोलिनी के दीवाने थे हिटलर उनकी धड़कनों का राजा था उन्हें तो गांधीजी को मारना ही था
वे मुसोलिनी के दीवाने थे. हिटलर उनकी धड़कनों का राजा था. उन्हें तो गांधीजी को मारना ही था.

उन्हें तो गांधीजी को मारना ही था. उनके सामने सवाल एक व्यक्ति का नहीं एक विचारधारा का था. उन्हें भारत की मेलजोल की संस्कृति से नफ़रत थी. उन्हें गंग...

अतिथि लेखक
2017-07-03 22:13:36
ट्यूबलाइट  सलमान को महंगी पड़ी इस बार राष्ट्रभक्ति
ट्यूबलाइट : सलमान को महंगी पड़ी इस बार राष्ट्रभक्ति

ट्यूबलाइट आज के सीएफएल के जमाने में चल ही नहीं पाएगी। उम्मीद है सलमान आगे से विषय चयन पर गंभीरता बरतेंगे।

अतिथि लेखक
2017-07-03 18:57:57
राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव क्यों
राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव क्यों?

राष्ट्रपति पद पर आने वाले व्यक्ति की आरएसएस के प्रति अटूट वफादारी बहुत ही समस्यापूर्ण है।

राजेंद्र शर्मा
2017-07-03 18:33:43
नवउदारवादी नीतियों के समर्थक भीड़ हत्याएं नहीं रोक सकते
नवउदारवादी नीतियों के समर्थक भीड़ हत्याएं नहीं रोक सकते

नवउदारवादी नीतियों के समर्थक, चाहे वे नेता हों या सिविल सोसाइटी एक्टिविस्ट, भीड़ हत्याएं नहीं रोक सकते. साम्प्रदायिकता शुरू से ही पूंजीवादी कब्जे ...

डॉ. प्रेम सिंह
2017-07-03 11:51:44
मोदीजी कॉमनसेंस और भीड़ संस्कृति  वे पहले भी बुद्धिजीवी नहीं थे
मोदीजी कॉमनसेंस और भीड़ संस्कृति : वे पहले भी बुद्धिजीवी नहीं थे

​​​​​​​मोदीजी पहले भी बुद्धिजीवी नहीं थे, उनकी विशेषता यह है कि उनके जैसा अनपढ़ और संस्कृतिविहीन व्यक्ति अब बुर्जुआजी की पहचान है।

जगदीश्वर चतुर्वेदी
2017-07-03 09:53:19
संघ की पालकी ढो रहे नीतीश
संघ की पालकी ढो रहे नीतीश

नीतीश को दूसरे सोशलिस्टों ने ही सिरे से खारिज कर दिया है और कई गम्भीर सवाल उठाये हैं। सोशलिस्ट पार्टी के डॉ. प्रेम सिंह ने कहा है कि जद(यू) ने अप...

अमलेन्दु उपाध्याय
2017-07-02 19:14:55
जीएसटी  भाजपा और आरएसएस के लोग मरते लोगों को फिर से एक बार लड्डू खिलायेंगे
जीएसटी : भाजपा और आरएसएस के लोग मरते लोगों को फिर से एक बार लड्डू खिलायेंगे

यह पूँजीवाद का वही विजय रथ है जो अपने पीछे न जाने कितनी लाशों, कितनी बर्बादियों और मनुष्य के ख़ून और पसीने का कीचड़ छोड़ता जाता है। सर्वनाशी साबि...

हस्तक्षेप डेस्क
2017-07-02 00:39:26
तद्भव का नया अंक  इतिहास के त्रिभागी काल विभाजन पर हरबंस मुखिया
तद्भव का नया अंक : इतिहास के त्रिभागी काल विभाजन पर हरबंस मुखिया

आने वाली पीढ़ी हमारे वर्तमान युग को मध्ययुग कहे या न कहे, कोई मायने नहीं रखता। लेकिन यह तय है कि हम अपने वर्तमान को जिस रूप में देखते है, आगत पीढ़ि...

अतिथि लेखक
2017-07-02 00:26:10
मुसलमानों को जेएनयू या कश्मीर पर बयान नहीं देना चाहिए पुलिस से ज्यादा भय गोरक्षकों का है
मुसलमानों को जेएनयू या कश्मीर पर बयान नहीं देना चाहिए, पुलिस से ज्यादा भय गोरक्षकों का है

आधुनिक राष्ट्र-राज्य का यह वीभत्सतम रूप है। आप मुझसे अनिर्बन के 'देशद्रोह'का हिसाब क्यों नहीं मांगते, उमर का ही क्यों?... ​​​​​​​बहुसंख्यक तुष्ट...

अतिथि लेखक
2017-07-02 00:11:47
फर्जी सेकुलरों के राज्य का भगवाकरण जारी है यह नीतीश से ज्यादा लालू के चेतने का वक्त है
फर्जी सेकुलरों के राज्य का भगवाकरण जारी है, यह नीतीश से ज्यादा लालू के चेतने का वक्त है

तो क्या अब बिहार भी 'जय श्रीराम' की आग में जलने वाला है? क्या बजरंग दल वालों को नीतीश कुमार के रुख का अंदाजा हो गया है?

अतिथि लेखक
2017-07-01 23:49:36
कोविन्द दलित राजनीति और हिन्दू राष्ट्रवाद  आरएसएस की राजनीति भारतीय राष्ट्रवाद की विरोधी है
कोविन्द, दलित राजनीति और हिन्दू राष्ट्रवाद : आरएसएस की राजनीति भारतीय राष्ट्रवाद की विरोधी है

क्या कोविन्द और पासवान जैसे लोग - जो दलितों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के बारे में एक शब्द भी नहीं बोलते - दलित नेता कहे जा सकते हैं? इस समय देश का द...

राम पुनियानी
2017-07-01 23:04:41
सलाहुद्दीन के बहाने अमेरिका कश्मीर में हस्तक्षेप करने की भूमिका तो नहीं बना रहा
सलाहुद्दीन के बहाने अमेरिका कश्मीर में हस्तक्षेप करने की भूमिका तो नहीं बना रहा ?

जब भी धर्म को राज-काज में दखल देने की आज़ादी दी जायेगी राष्ट्र का वही हाल होगा जो आज पाकिस्तान का हो रहा। गाय के नाम पर चल रहे खूनी खेल की अनदेखी...

शेष नारायण सिंह
2017-06-30 18:44:49
चिंता भीड़तंत्र की
चिंता भीड़तंत्र की

हिंदुस्तान की बहुसंख्यक जनता मिल-जुलकर, शांति से रहने में ही भरोसा रखती है। वह किसी भी कारण से कानून हाथ में लेने की विरोधी है और अपने नाम पर तो,...

देशबन्धु
2017-06-30 16:07:10
ढाई युद्ध लड़ने की तैयारी राष्ट्रहित में या कारपोरेट हित में
ढाई युद्ध लड़ने की तैयारी राष्ट्रहित में या कारपोरेट हित में?

रक्षा क्षेत्र के विनिवेश के बाद युद्ध से किन कंपनियों को फायदा कि प्रधान स्वयंसेवक और विदेश मंत्री की जगह वित्तमंत्री चीन को करारा जबाव देने लगे?

पलाश विश्वास
2017-06-30 15:56:04
notinmyname  इस इंसान मोदी की एक डेमोक्रेसी में कोई जगह नहीं
#NotInMyName : इस इंसान (मोदी) की एक डेमोक्रेसी में कोई जगह नहीं

#NotInMyName आप किसमें अपना भविष्य ढ़ूंढ़ रहे हैं, जिन्ना के पाकिस्तान में, हिटलर के जर्मनी में या आज के सीरिया में? तय आपको ही करना है, क्योंकि ...

अतिथि लेखक
2017-06-30 15:12:49
नए दौर के आंदोलनों में मार्क्‍सवाद के अवशेषों की तलाश
नए दौर के आंदोलनों में मार्क्‍सवाद के अवशेषों की तलाश

एक मार्क्‍सवादी का काम उदारवाद से हासिल उपलब्धियों का इस्‍तेमाल करते हुए सैद्धांतिकी को व्‍यवहार में उतारना है, नकि दुश्‍मन का दुश्‍मन दोस्‍त वाल...



RSS is all set to push for President`s rule in West Bengal with full bloom Cow Politics.CPIM opposes. Mamata deploys sixty thousand peacekeeping committee civilians to counter RSS Game plan of communal violence.Should be replicated elsewhere. Palash Bisw

Next: बंगाल के बेकाबू हालात राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखडंता के लिए बेहद खतरनाक, चीनी हस्तक्षेप से बिगड़ सकते हैं हालात। इजराइल से दोस्ती की प्रतिक्रिया में इस्लामी कटट्रपंथी भी अब हर मायने में गोरक्षकों के बराबर खतरनाक। अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है। पलाश विश्वास
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RSS is all set to push for President`s rule in West Bengal with full bloom Cow Politics.CPIM opposes.
Mamata deploys sixty thousand peacekeeping committee civilians to counter RSS Game plan of communal violence.Should be replicated elsewhere.
Palash Biswas
RSS is all set to push for President`s rule in West Bengal with full bloom Cow Politics.Mamta Banerjee is appealing for peace and decided to create sixty thousand booth level peace committes to counter RSS provoked violence.She has got an unexpected but very welcomesupport from the archrival Left as CPIM has opposed BJP demand for President Rule.
Mamata Banerjee has explained that the police and administration tried its best to control the rioting mob as for three days,Kolkata adjoing Muslim dominated North 24 pgs district is inflicted with communal violence.Had police opened fire to control or disperse the mob,hundreds would have been killed,it is her point.
Mamata`s peace committes to counter communal violence at grass root level is rather a very strong initiative as rumour monger mmachinery active in social media creating Hindutva wave and breaking news that temples are attacked by Muslims and Hindus are not safe in Bengal.It is now very clear that RSS is behind Gorkhaland movement as it openly supports partition of Bengal.At the same time ,different branches of RSS have been organizing cadre camps to capture Bengal and cows are being distibuted free of cost.
It is perhaps first time that the left has openly supported Mamata Banerjee as the CPI-M on Wednesday said that the situation prevailing in West Bengal does not call for imposition of President's rule, but demanded immediate restoration of peace in the troubled areas of North 24-Parganas district. 
President of BJP's West Bengal wing, Dilip Ghosh, has demanded that the Centre impose President's rule in West Bengal and send central observers to assess the deteriorating law and order situation in the state.
Chief Minister Mamata Banerjee, however, proposed the deployment of peacekeeping forces, or a 'Shanti Vahini' on Wednesday evening, to maintain communal harmony.
Banerjee said that this 'Shanti Vahini' would be formed in 15 days in collaboration with youth and peaceful citizens and the local police stations. It would be stationed in 60,000-odd booths across the state to maintain communal harmony.
West Bengal Left Front chairman Biman Bose said that by demanding President' rule in Bengal, the BJP and the RSS were only laying bare their game plan.
"Steps should be taken to immediately restore peace in areas of North 24-Parganas district. But we don't agree with what BJP has demanded regarding imposition of President's rule in Bengal. The situation doesn't call for President's rule. Such demands only show the game plan of BJP and RSS," Bose told reporters.
Earlier today, BJP's Bengal president Dilip Ghosh demanded that President's rule be imposed in the state fortwith and that central observers be sent to assess the "worsening law and order" situation in the aftermath of communal clashes in North 24-Parganas district.
Meanwhile, BJP state in charge Kailash Vijayvargia alleged that over 2,000 Muslims attacked Hindu families in the North 24 Parganas district of West Bengal and its offices at several places were set on fire. 
Accusing the state government of failing to tackle the situation, BJP State President Dilip Ghosh demanded President rule in the state. Kailash Vijayvargiya, BJP general secretary urged Home Minister Rajnath Singh for his intervention.
The CPI(M) had yesterday demanded that an all-party meeting be convened to chalk a strategy to contain the explosive situation.
The Ministry of Home Affairs has meanwhile, asked the state government to submit a report on the situation. Rajnath Singh was also apprised by the governor about the clashes. The Home Minister has also reportedly asked the Chief Minister and Governor to resolve their difference and control law and order in the state.
Mamta Banerjee, meanwhile, has promised strict action against those who indulged in the violence. She also appealed to the citizens to maintain peace. "I condemn such violence. Despite the person (who made the Facebook post) being arrested, some people are still spreading violence. I appeal to both sides, please don't do politics of riot."
The communal clashes snowballed into a spat between Mamta Banerjee and Keshari Nath Tripathi. Banerjee alleged that she was threatened and "insulted" by the governor. She also accused him of acting in a partisan manner. "He is speaking like a block president of BJP," Banerjee alleged. The TMC supremo also said that she even thought of quitting office over this "humiliation." Criticising the governor for crossing the constitutional line, TMC spokesperson Derek O'Brien compared the Raj Bhawan to 'RSS Shaakha.' He also demanded action against the governor.
Mind you,as the West Bengal government struggles to restore peace in Darjeeling, violent clashes between two communities in North 24 Parganas district has put the state once again on boil. The clashes that broke out on Monday night prompted the Centre to rush 300 paramilitary personnel to the spot to pacify the situation. As a precautionary measure, section 144 was imposed in Basirhat and the state government was asked to submit a detailed report to the Ministry of Home Affairs on the violence. However, the war of words between Chief Minister Mamta Banerjee and Governor Keshari Nath Tripathi has worsened the situation.
Media reports,an objectionable Facebook post allegedly shared by a class X student on Monday is said to have triggered the communal clashes in West Bengal's North 24 Parganas district. While the police arrested the accused on the same day, dozens of shops and houses were vandalised by a mob. They also blocked roads and demonstrated in front of Baduria police station.
Protesters also torched police and government vehicles. North 24 Parganas Superintendent of Police Bhaskar Mukherjee was injured when a mob attacked him, according to a report in PTI. Announcements were being made using the public address system asking people to refrain from resorting to violence. Train services were also disrupted in several areas.
The violence which started in Baduria, around 70 kms from Kolkata, later spread to the other districts in the state. Schools and colleges were shut following the riots. Internet services were suspended in Baduria on Wednesday and section 144 was imposed.

बंगाल के बेकाबू हालात राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखडंता के लिए बेहद खतरनाक, चीनी हस्तक्षेप से बिगड़ सकते हैं हालात। इजराइल से दोस्ती की प्रतिक्रिया में इस्लामी कटट्रपंथी भी अब हर मायने में गोरक्षकों के बराबर खतरनाक। अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है। पलाश विश्वास

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बंगाल के बेकाबू  हालात राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखडंता के लिए बेहद खतरनाक, चीनी हस्तक्षेप से बिगड़ सकते हैं हालात।
इजराइल से दोस्ती की प्रतिक्रिया में इस्लामी कटट्रपंथी भी अब हर मायने में गोरक्षकों के बराबर खतरनाक।
अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है।
पलाश विश्वास
बंगाल में जो बेलगाम हिंसा भड़क गयी है,राजनीतिक दलों की सत्ता की लड़ाई में उसके खतरे पक्ष विपक्ष में राजनीतिक तौर पर बंट जाने से बाकी देश को शायद नजर नहीं आ रहे हैं।
कोलकाता से लगे समूचे उत्तर 24 परगना जिला हिंसा की चपेट में है और पहाड़ में दार्जिंलिग में बंद और हिंसा का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा है।गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने  अंतिम लड़ाई का ऐलान कर दिया है और पहाड़ों में बरसात और भूस्खलन के मौसम में जनजीवन अस्तव्यस्त है।
दार्जिलिंग के बाद सिक्किम के नजदीक कलिंगपोंग में भी हिंसा और आगजनी की वारदातें तेज हो गयी है।
सिक्किम सही मायने में दार्जिलिंग जिला होकर वहां तक पहुंचने वाले रास्ते के अवरुद्ध हो जाने की वजह से बाकी देश से अलग थलग पखवाड़े भर से है जबकि सिक्किम सीमा पर युद्ध के बादल उमड़ घुमड़ रहे हैं।
इसी बीच चीन ने मोदी के साथ जी 20 बैठक में बहुप्रचारित शीर्ष बैठक से मना कर दिया है और इसके साथ कश्मीर की तरह सिक्किम में भी अलगाववादियों को समर्थन देने की धमकी दी है।
सिक्किम ही नहीं, गोरखालैंड आंदोलनकारियों को भी अलगाव के लिए चीन समर्थन कर सकता है।
मैदानों में जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर जिले के आदिवासी बहुल इलाके भी आंदोलन के चपेट में आ जाने से उत्तर पूर्व भारत को जोड़ने वाला कुल 18 किमी का कारीडोर के भी टूट जाने का खतरा है जबकि असम और पूर्वोत्तर में अलगाववादी उग्रवादी तत्व भारत से अलगाव के लिए निरंतर सक्रिय है।उत्रपूर्वमें आजादी के बाद केंद्र सरकार की सारी राजनीति इन्हीं तत्वों के समर्थन से चलती है।
असम में जो सरकार बनी है,वह भी अल्फा के समर्थन से है और यह सरकार अल्फाई एजंडा के तहत राजकाज चला रही है।
बंगाल के हालात इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा,एकता और अखंड़ता के लिए बेहद खतरनाक होते जा रहे हैं।जिसे नजरअंदाज करके संघ परिवार बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने के हालात बनाने में लगा है और गोरखालैंड आंदोलन को भी उसका खुल्ला समर्थन है।
कल हस्तक्षेप पर लगे हमारे पोस्ट पर हिंदी के जाने माने कथाकार कर्मेंदु शिशिर ने टिप्पणी की है कि मैंं ममता बनर्जी को क्लीन चिट दे रहा हूं जो खुद दंगा भड़काती हैं।
कृपया हस्तक्षेप के तमाम पुराने आलेख देख लें,हमने कभी ममता बनर्जी का समर्थन नहीं किया है।
हमारे लिए मसला ममता बनर्जी या वामपक्ष का नहीं है।यह सीधे तौर पर भारत की सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा का मामला है।
लगातार तीन चार दिनों से उत्तर चब्बीस परगना में हिंसा भड़की हुई है।संघ परिवारे के लोग सोशल मीडिया में उग्र हिंदुत्व के एजंडा के मद्देनजर धार्मिक ध्रूवीकरण के लिए भड़काऊ अफवाहें फैला रहे हैं।बंगाल में हिंदुओ पर अत्याचार हो रहे हैं और बंगाल में हिंदू सुरक्षित नहीं है,यह थीम सांग है।
फोटोशाप का खुलकर इस्तेमाल दंगा भड़काने के लिए हो रहा है।ऐसे पोस्ट विदेशी जमीन से बी हो रहे हैं,जिनपर नियंत्रण लगभग असंभव है।
ताजा पोस्ट एक फिल्म के दृश्य को उत्तर 24 परगना में हिंदू औरतों पर अत्याचार के आरोप के साथ फिल्मकार अपर्णा सेन को संबोधित है।
तो दूसरी तरफ मुस्लिम कट्टरपंथी संगठित तरीके से हिंसा भड़काने में सक्रिय हैं,जिनपर वोटबैंक की राजनीति की वजह से पहले 35 साल तक वाम शासन ने कोई नियंत्रण नहीं किया और तृणमूल जमाने में उनके संरक्षण का हाल यह है कि उत्तर 24 परगना में हिंसा पर सफाई देते हुए इन कट्टरपंथियों को चेताननी देकर मुख्यमंत्री ने कहा है कि आपको हमने बहुत संरक्षण दिया हुआ है और अब हम इस दंगाई तेवर को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
ममता के बयान के मुताबिक सड़कों पर दंगाई भीड़ इतनी बड़ी तादाद में उमड़ रही है कि उन्हें तितर बितर करने के लिए पुलिस गोली चलाये तो सैकड़ों बेगुनाह मारे जायेंगे और इसलिए पुलिस प्रशासन लाठी गोली की बजाय बातचीत से भीड़ को शांत करने की कोशिश कर रही है।
दूसरी ओर दार्जिलिंग के पहाड़ों में गोरखा आंदोलनकारियों के साथ बातचीत की कोई पहल नहीं हो रही है।
पहाड़ और मैदान में विभाजन हो गया है।
चाय बागानों में मौत का उत्सव शुरु हो गया है।
गौरतलब है कि पहाड़ की गोरखा आबादी की रोजमर्रे की जिंदगी इन्हीं चायबागानों से जुड़ी हैं।सुबास घीसिंग से लेकर विमल गुरुंग तक तमाम नेता चाय बागानों से हैं।
गोरखालैंड के जवाब में सिलीगुड़ी में भी हिंसा हो रही है।इसके साथ ही बंगाल अब पूरी तरह हिंदू और मुस्लिम उग्रवाद के शिकंजे में हैं,जिनपर सरकार,प्रशासन और पुलिस का कोई नियंत्रण नहीं है।
हिंसा पर नियंत्रण के लिए अर्धसैनिक बलों की कंपनियां भेजने की मांग केंद्र सरकार खारिज कर रही है।
जाहिर है कि इसमें राजनीति हो रही है।
बाकी देश में आतंकी हमला होने के बावजूद बंगाल आतंकवादी हमलों से अब तक बचा रहा है।
क्योंकि बंगाल का आतंकवादी और कट्टरपंथी मुसलमान सुरक्षित कारीडोर की तरह इस्तेमाल कर रहे थे।
इन तत्वों पर पिछले चालीस सालों में कोई नियंत्रण खालिस वोटबैंक की राजनीति की वजह से नहीं हुआ है तो अब उन पर काबू पाना या उनका मुकाबला करना बेहद मुश्किल है।उत्तर 24 परगना के हालात इसीलिए बेकाबू है।जल्दी इस आत्मघाती हिंसा पर काबू पाने की केंद्र और राज्य सरकार और सभी राजनीतिक दल मिलकर पहल न करें तो पूरे बंगाल और पूरे पूर्वोत्तर भारत से लेकर बिहार में भी यह बेलगाम हिंसा संक्रमित हो सकती है।
इस बीच अमेरिका के बाद भारत इजराइल का भी रणनीतिक साझेदार बन गया है।पाकिस्तानी आईएसआई नेटवर्क को छोड़कर  भारत को अंतरराष्ट्रीय इस्लामी आतंकवादी समूहों ने निशाना बनाने से परहेज किया है।लेकिन इजराइल से मुस्लिम और अरब देशों और इस्लाम के खिलाफ अमेरिकी युद्ध में इजराइल की सक्रिय और निर्णायक भूमिका के मद्देनजर यह समीकरण गड़बड़ाया हुआ नजर आ रहा है।
इस्लामी आंतकवादी समूह के स्लीपिंग सेल हमेशा दुनियाभर में सक्रिय हैं और भारत में भी वे बहुत बड़े पैमाने पर घुसपैठ कर गये हैं।इन तमाम तत्वों की भारतविरोधी गतिविधियां तेज होने की आशंका है।
पिछले कई बरस से दुर्गापूजा और मुहर्म पर बंगाल में चिटफुट सांप्रदायिक हिंसा होती रही है।लेकिन बंगाल में साहित्य और कला माध्यमों,लोकसंस्कृति,बाउल फकीर संत परंपरा के तहत भारत विभाजन के बावजूद गांव देहात में हिंदू और मुसलमान अमन चैन से रहते आये हैं और वे किसी तरह के उकसावे में नहीं आते और उन्हें अलग अलग पहचाना भी नहीं जाता।
मालदह और मुर्शिदाबाद जिलों में जनसंख्या लगभग बराबर होने के बावजूद इधर के वर्षों की छिटपुट वारदातों के अलावा सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास नहीं है।
कोलकाता में बड़ी संख्या में मुसलमान हैं और उत्तर और दक्षिण 24 परगना,हावड़ा,नदिया और हुदगली में बहुत सारे इलाकों में मुसलमानों की तादाद हिंदुओ के मुकाबले ज्यादा हैं।
फिरभी अमन चैन और साझा सांस्कृतिक विरासत और मातृभाषा बांग्ला की वजह से कोई बड़ी सांप्रदायिक वारदात नहीं हुई हैं।भारत विभाजन और शरणार्थी समस्या के शिकार देश के इस हिस्से में अमन चैन का माहौल काबिले  तारीफ रहा है।
उत्तर भारत,बाकी देश और बांग्लादेश में भी मंदिर मस्जिद विवाद की वजह से बार बार व्यापक पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हाल के दशकों में होती रही है।
वाम शासन के 35 सालों में वैसी हिंसा की कोई वारदात बंगाल में नहीं हुई है।हाल के वर्षों में जो छिटपुट हिंसा होती रही है,उसपर पुलिस प्रशासन ने तुंरत काबू  पा लिया।
लेकिन पिछले तीन चार दिनों से उत्तर 24 परगना में हिंसा का तांडव मचा हुआ है।इस बीच कोलकाता में भी गड़बजड़ी फैलाने की कोशिश हुई,कटट्रपंथियों को तुरंत गिरफ्तार करके कोलकाता में हालात नियंत्रित कर लिया गया।
अब तक उत्तर 24 परगना के सीमावर्ती मुस्लिम बहुल इलाकों में सुंदरवन से सटे हिंगलगंज,बशीरहाट,बादुड़िया से लेकर सीमावर्ती वनगांव के देगंगा इलाकों तक हालात बेकाबू रहे हैं।
बादुड़िया में कर्फ्यू लगा है।
मुख्यमंत्री और राज्यपाल में टकराव होने के बाद भाजपा ने जोर शोर से बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है।केंद्र ने राज्यपाल से रपट मांगी है और राज्यपाल ने वह रपट भी भेज दी है।
ममता बनर्जी के कट्टर विरोधी वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बोस ने यह मांग उठते ही बाकायदा संवादाताओं को संबोधित करते हुए बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने का पुरजोर विरोध किया है। इसके साथ ही विमान बोस ने बंगाल में हाल की हिसां की वारदातों के संघ परिवार का गेमप्लान बताया है।
दार्जिलिंग में हिंसा भड़कने के तुरंत बाद हमने एक घंटे के वीडियो में बांग्ला में विस्तार से इस गेमप्लान के बारे में बताया है और सभी राजनीतिक दलों को सचेत रहने की चेतावनी दी है।
हमने ममता बनर्जी से विभाजन की राजनीति से बाज आने की अपील की थी और मौजूदा हालात को विपक्ष के सफाये और पहाड़ पर राजनीतिक कब्जे की उनकी महत्वाकांक्षा का परिणाम बताया था।इस वीडियो को अबतक करीब इक्कीस हजार से ज्यादा लोगों ने देखा है।
हस्तक्षेप पर लगे आलेखों में आप देख सकते हैं कि हम बंगाल में जाति,धर्म,भाषा,नस्ले के सभी क्षेत्रों में वर्चस्व के खिलाफ हमेशा मुखर रहे हैं।
महाश्वेता देवी से हमने दशकों पुराना अंतरंग रिश्ता सिर्फ इसलिए तोड़ दिया क्योंकि वे ममता बनर्जी की सरकार से नत्थी हो गयीं।उनकी वजह से नवारुण दा से भी हमारा संप्रक टूटा,जिसका हमें अफसोस है।
जाहिर सी बात है कि हमारे लिए यह सत्ता की राजनीति नहीं है और न यह ममता बनर्जी का मामला है।
हम इसे संघ परिवार का मामला भी नहीं मानते।हम शुरु से इसे राष्ट्रीय सुरक्षा,एकता और अखंडता का मामला मानते रहे हैं।
खासकर सिक्किम के हालात के मद्देनजर।चीन को भारत में हस्तक्षेप का अब तक कोई मौका नहीं मिला है।लेकिन सिक्किम में हस्तक्षेप करने की उसने खुल्ला ऐलान कर दिया है।
नेपाल और बांगलादेश के साथ भारत के संबंध अब वैसे नहीं रह गये हैं।खासकर नेपाल के रास्ते दार्जिलंग के पहाड़ों को सिक्किम के साथ अलग करने की गतिविधियों को चीन से हर तरह की मदद मिलने की आशंका है।ममता ने ऐसा आरोप लगाया भी है।
दूसरी ओर,अरुणाचल प्रदेश पर चीन ने अपना दावा नहीं छोड़ा।उस मोर्चे पर तनाव लगातार बना हुआ है।
उत्तराखंड में भी चीनी घुसपैठ होती रहती है।
हिमालय 1962 की लड़ाई में जख्मी हुआ है और अभ भी युद्ध हुआ तो हिमालय और हिमालयी जनता पर इसका सीधा असर है। उत्तराखंड में जमे,पले बढ़े होने की वजह से हमें सबसे ज्यादा फिक्र हिमालय की सेहत,जल संसाधन और पर्यावरण की है चाहे लोग हमें राष्ट्रद्रोही का तमगा देते रहे।
अगर बंगाल की हिंसक वारदातों को जल्द से जल्द नियंत्रित नहीं किया गया तो उत्तर पूर्व के अलग थलग पड़ने के नतीजे भारत की सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं।
ममता बनर्जी की सरकार गिराकर या बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने से हालात पर राजनीतिक नियंत्रण रखना भी मुश्किल हो जायेगा।केंद्र सरकार इस पर गौर करें तो बेहतर।
हमारे ख्याल से वाम मोर्चा ने इसीलिए राष्ट्रपति शासन का विरोध किया है,जो इन हालात में एकदम सही है।
बाकी राजनीतिक दलों को भी अपने राजनीतिक हित के बजाये दार्जिलिंग के साथ बाकी बंगाल और समूचे पुर्वोत्तर में खतरे में पड़ी सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर कदम उठाने चाहिए। यह ममता का समर्थन नहीं है,राष्ट्रहित में ऐसा जरुरी है।
ममता बनर्जी ने संघ परिवार के दंगाई एजंडा के मुकाबले शांतिवाहिनी हर बूथ के स्तर पर बनाने का ऐलान किया है।
उन्होंने पंद्रह दिनों के भीतर साठ हजार शांति कमिटियां गैरराजनीतिक लोगों को लेकर बनाने का ऐलान किया है।
गोरक्षकों के तांडव के साथ साथ देश में मुस्लिम कट्टर पंथ के आक्रामक तेवर के मद्देनजर ऐसी शांति कमिटियां पूरे देश में बनें तो बेहतर।भाजपा की सरकारे भी ऐसी शांति कमिटियां बनायें तो और बेहतर है क्योंकि भाजपा शासित राज्यों से सांप्रदायिक हिंसा पूरे देश में संक्रमित हो रही है।
इस बीच आज बशीरहाट में दोबारा  हिंसा भड़क गयी है।जिसका सीधा मतलब है कि जुबानी जमाखर्च के अलावा जमीन पर शांति प्रक्रिया शुरु ही नहीं हो सकी है,जबकि पुलिस और प्रशासन की तरह से उत्तर 24 परगना में हिंदुओं और मुसलमानों को लेकर शांति बैठकें शुरु करने का दावा किया गया है।
अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है।कितने खतरे में है ,उसे समझने के लिए इस रपट पर गौर करें।
कोलकाता के बांग्ला दैनिक 'एई समय' (टाइम्स ऑफ इण्डिया ग्रुप) के पत्रकार ने बसिरहाट के मागुरखाली गाँव से रपट दी है - इस गाँव में हिन्दू-मुसलमान सैकड़ों साल से एक साथ रहते आ रहे हैं।
भजन-कीर्तन गाने वाले दल, हिन्दू -मुसलमान दोनों के घर-आँगन में गाते हैं। मस्जिद के सामने देवी-देवताओं की जय के नारे लगाते हैं।
इसी गाँव का 18 साल का युवा है - सौभिक सरकार, जिसकी एक धार्मिक घृणात्मक फेसबुक टिप्पणी ने आसपास के इलाकों में उत्तेजना फैला दी।
कुछ युवकों ने सौभिक के घर में आग लगाने की कोशिश की। मस्जिद कमिटि के अध्यक्ष अमीरुल इस्लाम ने उन्हें रोका।
बाद में बाहर से आये ढेरों युवाओं ने सरकार के घर पर हमला किया, जिसे गाँव के हिन्दूओं-मुसलमानों ने मिल कर रोका। मकसूद ने दमकल को खबर दे कर बुलाया।
बाहरी लोग आएं और गाँव के एक व्यक्ति के घर को आग लगा जाएँ, ऐसा कभी नहीं हुआ, कहा गाँव की गौरी मंडल ने।
कौन थे ये बाहरी हमलावर ...। "
(प्रसेनजित बेरा की रपट पर आधारित)

#नाॅट_इन_माई_नेम_अगेन

Previous: बंगाल के बेकाबू हालात राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखडंता के लिए बेहद खतरनाक, चीनी हस्तक्षेप से बिगड़ सकते हैं हालात। इजराइल से दोस्ती की प्रतिक्रिया में इस्लामी कटट्रपंथी भी अब हर मायने में गोरक्षकों के बराबर खतरनाक। अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है। पलाश विश्वास
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This FB post raises solid and valid question to be answered by Secular and democratic forces if they seriously want to resist racist fascist institutional Hindutva agenda.Muslim community is misused by political parties irrelevant of their ideology just to reduce them in Vote Bank. Aggressive Islamic identity provokes majority Hindu population,it should be understood.Why they should react so violently?If they behave like this,it is just cake walk for cow politics!It is happening in Bengal and trending in rest of India.It would further strengthen Islamophobia as Islamic terror organized and aligned Anti Islam forces world wide.

Majority of Hindus tend to be secular and democratic and majority of Muslims are also secular and democratic.Majority people of India irrespective of caste,class,religion,language and race are also secular and democrate.

If we happen to be secular and democrat and want peace and fraternity,resistance of Islamic terror is as much as necessary as the resistance against cow politics.

I am sharing a FB post already shared by Gandhian Activist Himanshu Kumar ji.A muslim brother has raised very justified questions for Muslim community and these questions must be addressed by all secular,democrat and peace loving patriotic citizens  irespective of identity if we seriously want to resist institutional fascist ethnic cleansing !

#नाॅट_इन_माई_नेम_अगेन

तनिक भी भ्रमित मत होइयेगा कि अब क्यों नाॅट इन माई नेम... अब तो बंगाल में मियाँ भाई भी गदर काट दिये। हाँ काट दिये तो... इसीलिये तो शायद अब ऐसे बैनर की जरूरत और प्रासंगिक हो उठी है, क्योंकि अब वह हिंदू, जो इस अभियान में हमारे साथ हमारी आवाज उठाने आया था, वह कशमकश में पड़ा हमें देख रहा है।

क्या था औचित्य इस अभियान का... यही न कि धर्म या आस्था के नाम पर हिंसक होती भीड़ का विरोध। सड़क पर होते इंसाफ के नंगे प्रदर्शन के खिलाफ एकजुट कोशिश... लेकिन बंगाल में तो इसी कोशिश को पलीता लगा दिया गया। साबित कर दिया कि धर्म या आस्था के नाम पे हिंसक होने वाली भीड़ भगवा ही नहीं हरी भी होती है।

चालीस पचास साल के मर्द अधेड़ मशाले लिये एक लड़के का घर फूंकने चल पड़े... खुद आपने मैच्योरिटी दिखाई न और उस सोलह-सत्रह साल के लड़के से मैच्योरिटी की उम्मीद कर रहे थे? इस बात का कोई मतलब नहीं कि यह संघ या भाजपा की साजिश है... हाँ है तो? नाक से खाना तो नहीं खाते होंगे न आप, तो कैसे सब जानते हुए संघ/भाजपा की साजिश में फंस जाते हैं।

नाॅट इन माई नेम के बैनर तले आपका प्रतिकार इसलिये भी तो था कि अगर कोई गौकशी या गौमांस भक्षण का दोषी भी है तो उसे पुलिस के हवाले कीजिये, और कानून जो भी उचित कार्रवाई समझे, करे... लेकिन जैसी ही चोट अपनी आस्था पर आयी तो कानून पर से विश्वास डिग गया और निकल पड़े सड़कों पर भीड़ बनके इंसाफ करने।

पहले कमलेश तिवारी ने और फिर सौविक सरकार ने जो किया वह फेसबुक पर हर रोज होता है और सैकड़ों बार होता है, लेकिन खैर बाकियों की तरफ से आंखें मूंद कर आप जिसे 'चिन्हित' कर पायें, उसके खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई करवाइये और उस पर संतुष्ट होना सीखिये।

यह क्या कि भीड़ बन के सड़कों पर आतंक फैला कर दोषी के लिये फांसी की मांग करना... इस्लामिक हुकूमत है भारत में? शरिया लागू है कि ईशनिंदा कानून के तहत पैगम्बर पर उंगली उठाने वाले को फांसी पर लटका दिया जाये? आप अपने लिये तो सेकुलर मुल्क चाहते हैं, जहां एक अल्पसंख्यक के बावजूद आपको सारे अधिकार और सुरक्षा मिले, लेकिन दूसरों को सेकुलर मुल्क देने में क्यों पीछे हट जाते हैं? क्यों आपका धर्म घर से निकल कर सड़कों पर उतर आता है?

जिन्होंने बंगाल में यह हिंसक भीड़ बनाई, जितने वे दोषी हैं, उतने ही दोषी वे भी हैं जो एसी हरकतों को अपने कुतर्कों से जस्टिफाई करते हैं... बजाय खुल कर, मुखर हो के विरोध करने के। बजाय आगे आ कर लोगों को यह बताने के... कि हम बंगाल में आस्था को लेकर दंगा करने वाली भीड़ के भी उतने ही खिलाफ हैं, जितने अखलाक या जुनैद को मारने वाली भीड़ के हैं।

नाॅट इन माई नेम के तहत आपके हक की आवाज उठाने वाले और आपकी तकलीफ पर आपके साथ खड़े होने वाले हिंदू देख रहे हैं आपकी तरफ... खुद से आगे बढ़िये और उन्हें यकीन दिलाइये कि गलत बात पर अपने धर्म के लोगों का भी समर्थन हम नहीं करते।

देश सबका है, समस्यायें भी सबकी हैं और उनसे लड़ने के लिये साथ भी सबका चाहिये... मेरा तेरा करके लड़ाइयां नहीं लड़ी जातीं। गलत को हर हाल में मुखर हो के, बआवाजे बुलंद गलत कहने की आदत बनानी होगी।

आपको खुल के कहना होगा कि मजहब या आस्था के नाम पे हिंसक होने वाली किसी भी भीड़ का समर्थन हम नहीं करेंगे, फिर चाहे वह भीड़ हमारे अपने ही लोगों की क्यों न हो।

नाॅट इन माई नेम सबके लिये है... और हर हिंसक भीड़ के खिलाफ एक कोशिश है।

~ Ashfaq Ahmad


GIRISH SEN: THE MAN WHO TRANSLATED " THE QURAN "INTO BENGALI

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Bhaskar Sur

GIRISH SEN: THE MAN WHO TRANSLATED " THE QURAN "INTO BENGALI
West Bengal in recent past has witnessed sporadic sectarian violence chiefly owing to power games between the ruling Trinamul Congress and Hindu rightist BJP ,desperate to carve a place in the state.In Bengal Muslims account for about 27% of the population and despite Hindu influx(15 million) from Bangladesh( erstwhile East Pakistan)it has been an exemplarily tolerant society.The Left has unjustly taken the entire credit for that which ought to go to the syncretic tradition and the reformist Brahmo movement initiated by Raja Rammohun Roy,the first modern man of India.Girish Sen ( 1836- 1910),the first translator of the Quran in Bengali belonged to this movement whose noble aim it was to bring Hinduism closer to reason and ' universal religious harmony' through mutual understanding.
It was Keshab Sen ,the great religious reformer who asked him to undertake the project with love and respect.Sen was humble enough to admit that he was ' uneducated and unworthy of the onerous responsibly." With a rare dedication and zeal ,he began to learn Arabic,a semitic language,at the age 42 and soon made great progress. In 1876,he travelled to Lucknow ,then a great seat of Islamic learning.He stayed there for a full year and after returning Bengal spent another four years diving deep in the Islamic lore.Besides Arabic ,he mastered Persian and Urdu.He had to face unexpected difficulties in procuring a copy of the Quran.A Muslim book seller declined to let him touch the book,let alone sell it.However ,Mia Zalaluddin ,a liberal Muslim.eagerly supported him with the necessary books from his library.Sen proved himself equal to the task and brought out a scholarly and accurate translation in two thick volumes.While it was highly acclaimed by the wide reading public,some fanatical Muslims were infuriated that a kafir should translate their holy book and issued a ' fatwah' to behead him.Sen faced the situation bravely and was able to win support from most of the educated Muslims who called it ' an unparalled and wonderful achievement of textual accuracy and Islamic scholarship."Sen altogether wrote twenty three books on Islam,mostly translations from Arabic and Persian as well as exegesis..A grateful Muslim community honoured him with the epithet 'Maulana' which he gracefully accepted.
Sen was basically a pious scholar living a life of voluntary poverty.However ,he took political position during the first Partition of Bengal (1905)by Lord Curzon.Going against the strong current of Hindu nationalism,he supported the new political arrangement as the new province would create some space for Muslims and Hindu lower castes.Had the Hindu elite,the dominanant minority ,been more sensitive to the just demands of Muslims ,perhaps the Partition of 1947 could have been averted.Today ,in an atmosphere of hatred and mutual distrust,we need to remember persons like Girish Sen and the rich legacy they left.

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आखिरकार दार्जिलिंग को कश्मीर बनाने पर तुले क्यों है देश चलाने वाले लोग? पलाश विश्वास

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आखिरकार दार्जिलिंग को कश्मीर बनाने पर तुले क्यों है देश चलाने वाले लोग?

पलाश विश्वास

दार्जिंलिंग में हिंसा दावानल की तरह भड़क उठी है।


कल चार लोग इस हिंसा के शिकार हो गये।लाशें लेकर दार्जिलिंग के चौक बाजार में फिर जुलूस निकला है।


बहुत देरी से ममता बनर्जी ने इस मसले को सुलझाने के लिए पहाड़ के राजनीतिक दलों से बातचीत करने की पेशकश की है। लेकिन गोरखा आंदोलनकारियों ने राज्य सरकार से कोई बातचीत करने से मना कर दिया है।


कल और आज दार्जिलंग पहाड़ का चप्पा चप्पा सुलग रहा है।दार्जिलिंग में फिर सेना लगा दी गयी है।लेकिन कार्शियांग से लेकर कलिंगपोंग तक जैसे हर कहीं हिंसा भड़क रही है,जैसे उग्र आंदोलनकारी और उनके समर्थक मरने मारने की शहादत मुद्रा में आ गये हैंं और रेलवे स्टेशन,पंचायत भवन,पुस्तकालय,सरकारी दफ्तर,पुलिस चौकी और वन दफ्तर थोक भाव से फूंके जा रहे हैं।उससे सेना शायद दार्जिलिंग जिले में सर्वत्र लगानी पड़ जाये।केंद्र की ओर से अभीतक बातचीत की पहल शुरु ही नहीं हुई है।


आखिरकार दार्जिलिंग को कश्मीर बनाने पर तुले क्यों है देश चलाने वाले लोग?


चीन से निबटने के लिए सेना और सरकार दोनों तैयार हैं।यह कैसी तैयारी है कि सिक्किम का मुख्यमंत्री पूछने लगे हैं कि क्या भारत में सिक्किम का विलय चीन और बंगाल के बीच सैंडविच बनने के लिए हुआ है?पवन चामलिंग के इस बयान का मौजूदा हालात के मुताबिक बहुत खतरनाक मतलब है क्योंकि चान ने सिक्किम को भी कश्मीर बना देने की धमकी दी है।


भारत चीन सीमा विवाद से गहराते युद्ध के बादल के मद्देनजर हालात का खुलासा हमने हस्तक्षेप पर किया तो लोगों ने हम पर राष्ट्रद्रोह का आरोप भी लगा दिया।अब देखिये,राष्ट्रभक्तों का राजकाज क्या है और राजनय क्या है।


हमने पहले ही लिखा है कि बंगाल के बेकाबू  हालात राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखडंता के लिए बेहद खतरनाक, चीनी हस्तक्षेप से बिगड़ सकते हैं हालात।


हम पहले ही चेता चुके हैं कि बंगाल में जो बेलगाम हिंसा भड़क गयी है,राजनीतिक दलों की सत्ता की लड़ाई में उसके खतरे पक्ष विपक्ष में राजनीतिक तौर पर बंट जाने से बाकी देश को शायद नजर नहीं आ रहे हैं।

जिस दिन ममता बनर्जी अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ दार्जिलिंग में घिर गयी थी,उसीदिन हमने खासकर बंगालियों को वीडियो मार्फत बता दिया था कि सत्ता की राजनीति के आक्रामक रवैये और नस्ली अल्पसंख्यकों के दमन के उग्र बंगाली राष्ट्रवाद के नतीजतन बंगाल का फिर एक विभाजन होने वाला है और यही संघपरिवार का गेमप्लान है।बंगाल, पंजाब,बिहार,यूपी,महाराष्ट्र और उन सभी राज्यों से जहां से भी केंद्र की सत्ता को चुनौती मिलती है,उन्हें तोड़कर सत्ता के नस्ली वर्चस्व को निरंकुस बनाने के संस्थागत फासिज्म से देश का संघीय ढांचा चरमरा गया है।आधार से जहां नागरिकों की निजता,गोपनीयता और स्वतंत्रता का हनन हो रहा है,वहीं डिजिटल इंडिया में खेती और कारोबार में नरसंहार संस्कृति है।तो जीएसटी और नोटबंदी से अर्थव्यवस्था कारपोरेट पूंजी के हवाले हैं।


हम रोजाना दार्जिलिंग के अपडेट सोशल मीडिया में लगातार डाल रहे हैं और बार बार चेता रहे हैं कि हिंदुत्व के कारपोरेट एजंडा से धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतें सचेत रहें।


बशीरहाट में दंगा भड़काने के लिए ममता बनर्जी के मुताबिक भारत बांग्लादेश सीमा खोल दी गयी हैं,जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र की है।


बशीरहाट में बाहरी और विदेशियों के व्यापक दंगा भड़काने की सािश अब बेनकाब हो गयी है।भोजपुरी फिल्म ही नहीं,बजरंगी सेना बांग्लादेश और गुजरात की हिंसा के दृस्य पोस्ट करके बंगाल में धार्मिक ध्रूवीकरण की कोशिश करते रहे हैं।


इस पूरे परिदृश्य में बंगाल में मीडिया ने बेहद सकारात्मक रवैया अपनाया है और रोजाना पेज के पेज साझा चूल्हे की विरासत के मुताबिक दोनों समुदायों के आपसी और निजी रिश्तों को लेकर लिखा गया है,टीवी पर दिखाया गया है।


अब यह संजोग ही कहा जायेगा कि दंगाई सियासत बेपर्दा होने के साथ उत्तर 24 परगना में जब अमन चैन का माहोल फिर बनने लगा है,तभी पहाडो़ं में नये सिरे से आग भड़क उठी है।


केंद्रीय गृहमंत्री ने सिक्किम के मुख्यमंत्री को आज फोन पर कहा है कि दार्जिंलिंग के हालात का सिक्किम पर कोई असर नहीं होगा।सिलिगुड़ी से दार्जिलंग जिला पार करके ही सिक्किम जाना है और पहाड़ों में हिसा के साथ प्रतिक्रिया में मैदानों में भी हिंसा भड़कने लगी है और जब दार्जिंलिंग में चायबागानों में मृत्यु जुलूस का अनंत सिलसिला है,पर्यटन खत्म है और राशन पानी खत्म है,तो शुरु के दिन से ही सिक्किम की अघोषित आर्थिक नाकेबंदी चल रही है।


गोरखा आंदोलनकारियों का कहना है कि वे अलग राज्य मांग रहे हैं और उनकी मांग राज्य सरकार पूरी नहीं कर सकती।केंद्र सरकार ही यह समस्या सुलझायें तो ऐसे हालात में सभी पक्षों को बातचीत के लिए तैयार करने की कोई पहल केंद्र सरकार क्यों नहीं कर रही है?


दार्जिलिंग से भाजपा सांसद और बंगाल प्रदेश बाभाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष बार बार कहते रहे हैं कि वे छोटे राज्य का समर्थन करते हैं लेकिन भाजपा यह नहीं मानती कि वह गोरखालैंड का समर्थन करती है और वह यह दावा भी नहीं करती कि भाजपा गोरखालैंड का विरोध करती है।इसका मतलब क्या है।


कोलकाता से लगे समूचे उत्तर 24 परगना जिला हिंसा की चपेट में है और पहाड़ में दार्जिंलिग में बंद और हिंसा का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा है।गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने  अंतिम लड़ाई का ऐलान कर दिया है और पहाड़ों में बरसात और भूस्खलन के मौसम में जनजीवन अस्तव्यस्त है।


 इस बीच खबरों के मुताबिक गोरखालैंड समर्थक आंदोलन के 25वें दिनरविवार को दार्जिलिंग में फिर से हिंसा भड़क गई। आंदोलनकारियों ने एक पुलिस शिविर को आग के हवाले कर दिया, जिसमें चार पुलिसकर्मी घायल हो गए। वहीं पोकरीबोंग में एक बीडीओ कार्यालय पर भी हमला किया गया।


जीजेएम कार्यकर्ताओंने सूरज सुंदास और समीर सुब्बा के शवों के साथ चौकबाज़ार में एक रैली भी निकाली. ये लोग पुलिस गोलीबारी में मारे गए थे।


जीएनएलएफ ने ताशी भूटिया के शव के साथ सोनादा में एक जुलूस भी निकाला. वह भ। पुलिस गोलीबारी में मारा गया था।


प्रदर्शनकारियों ने सोनादा पुलिस थाना पर भी हमला किया और इसका एक हिस्सा फूंक दिया. पिछले दो दिनों में इस तरह का यह दूसरा हमला था।


सोनादा पुलिस थाना पर शनिवार को भी प्रदर्शनकारियों ने हमला किया था। प्रदर्शनकारियों ने दार्जिलिंगमें एक पुलिस बूथ को आग के हवाले कर दिया।


पोकरीबोंग में रविवार दोपहर एक बड़ी भीड़ ने एक बीडीओ कार्यालय और एक पुलिस शिविर पर हमला किया। कई पुलिसकर्मियों की पिटाई भी की गई।


इस बीच 18 जुलाई को होने वाली पर्वतीय पार्टियों की एक सर्वदलीय बैठक की तारीख 11 जुलाई कर दी गई है।


जीजेएम ने दावा किया है कि गोरखालैंड समर्थकोंऔर पुलिस के बीच शनिवार को पर्वतीय क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में हुई झड़पों के बाद पुलिस गोलीबारी में चार लोग मारे गए हैं। उधर पुलिस ने गोलीबारी की खबरों से इनकार किया है और कहा कि इसने कोई गोली नहीं चलाई।


विकास बोर्ड के अध्यक्ष एमएस राय ने कथित हत्याओं के खिलाफ विरोध दर्ज़ कराते हुए बीती रात इस्तीफा दे दिया। जीजेएम ने भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की वार्ता की पेशकश खारिज़ कर दी।


Bengal united for peace in Bashirhat but neither Bengal nor India seem to care for Darjeeling and Sikkim people! Sikkim CM Pawan Chamling today demanded urgent intervention of the Centre for early settlement of the Gorkhaland issue! পাহাড়ে বন্‌ধ চলবে, চাপ বাড়াতে এ বার আমরণ অনশন, ঘেরাও Palash Biswas

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Bengal united for peace in Bashirhat but neither Bengal nor India seem to care for Darjeeling and Sikkim people!
Sikkim CM Pawan Chamling today demanded urgent intervention of the Centre for early settlement of the Gorkhaland issue!

পাহাড়ে বন্‌ধ চলবে, চাপ বাড়াতে এ বার আমরণ অনশন, ঘেরাও

 Palash Biswas
Darjeeling stand off takes a very serious turn as represenatives of all hill parties decided to go on fast unto death to push their demand for Gorkhaland.Mamata Banerjee`s belated call for peace and talks jejected and hithertoo no intiative fom the centre to sesolve the issue.Hills parties also decided tio gherao all SDO offices and have warned that the preople from every corner of the Hills would come down to Siliguri with bags to get ration!Particularly this decision if translated in act might create quite an anarchy as Anti Gorkhaland movement in plains has been launched whcih means economic blockade of Darjeeling as well as Sikkim.Heavy rain in hills have worsened day to day life in hills and hell losing as tea gardens might not feed the people
The chairman and vice chairman of the development boards set up by the State government has been asked to resign at 6pm on July 14.

Meanwhile, Chief Minister Mamata Banerjee who addressed a public gathering at Digha in Purba Medinipur assured people that her government would restore peace in the hills.While she urged the people in the hills to give peace a chance and not play with fire, she accused the Centre of creating tension in the Darjeeling hills.

Shamsul Haq rightly pointed out in detail in his article published in Indian Express that Baduria and Bashirhat have no history of communal clash or riots even in prepartition days.Mamata Banerjee is framing government of India alleging that the centre has been behind the riots in Bashirhat and it opened the border with Bangladesh wherefrom Bangladeshi nationals came over to Bashirhat and Baduria who were indulged in communal violence.Bashirhat is returning to normalcy and the media based in Kolkata played a very positive role to sustain peace.RSS leaders based in Bengal and rest of India misused social media to proveke hindutva with false scenes posted,copied and pasted from films,Gujarat killings and Bangladesh communal clash.
Bengal united for peace in Bashirhat but neither Bengal nor India seem to care for Darjeeling and Sikkim people!
But Darjeeling seems to be quite a different issue and media is not playing that positive role as far as Darjeeling and Sikkim are concerned.Mamata Banerjee sees RSS hand in Gorkhaland movement and lost the opportunity to resolve the problem taking peace initiative earlier.
Now as it happened ,an all-party meeting in Darjeeling on Tuesday concluded that one representative of each political party in the hills will undertake a fast unto death from July 15 to take forward the demand of Gorkhaland.Announcing the decision, Benoy Tamang, Assistant General Secretary of Gorkha Janmukti Morcha (GJM), said the ongoing indefinite strike that began on June 15 will continue.

In addition, the parties also decided to lay seige to the offices of the District Magistrate and Sub Divisional Officers with the help of Gorkhaland supporters from July 14.Keeping in mind that political parties have lost control over their supporters indulging in violence and arson,the administration would have to face tougher weather in Hills and army might be deployed in every corner of the hills without any peace initiative from either the government of India or government of West Bengal.

The Gorkhaland Movement Coordination Committee (GMCC), convened by the representatives of all the political parties in the hills, decided that all awards received from West Bengal Government would be returned on July 13.

Meanwhile ,Sikkim Chief Minister Pawan Chamling today demanded urgent intervention of the Centre for early settlement of the Gorkhaland issue to safeguard the interest of Sikkim. He said in case the issue was not addressed on priority basis, the Sikkim government might approach the top court of India. "I seek urgent intervention of Government of India and all the authorities concerned for early settlement of the situation to safeguard the interest of Sikkim from these hazards and constraints on priority," Mr Chamling said through a press statement issued by the Information and Public Relations department of the state.

Chamling already supported the demand of Gorkhaland,Moreover,Sikkim assembly passed aresolution supporting the demand.West Bengal goverment lodged a formal protest aginst Chmaling.

"In case of not addressing this issue on priority, the state government may have to approach the apex court of India in the larger interest of Sikkimese people for justice," the statement said.Stating that the inter-state ramifications of the Gorkhaland agitation and treating it "merely as a West Bengal issue" was not adequate, the chief minister noted that the present situation in Darjeeling Hills has had a direct impact on life of the people of Sikkim and that this issue must be looked into with utmost seriousness.

"Sikkim's geographical location having international boundaries with three countries - China in the North, Bhutan in the East and Nepal in the West, and the potential threat to the national security is a matter of supreme importance," the statement said.

"The only access to the rest of the country is through the state of West Bengal. Sikkim is sandwiched due to the agitation and prevailing law and order situation."

"As far as the national security is concerned, Government of India is appropriately handling the matter. We fully support Government of India's effort, which is addressing the national security in the best interest of our country," the statement said.

The Sikkim Chief Minister also said that the law and order being a matter of the government of West Bengal, the loss and misery suffered by Sikkim could have been avoided. "The Gorkhaland agitation-related anguish of Sikkim is as old as the agitation itself. Sikkim bound vehicles have been targeted by fringe groups in Siliguri," it said.


"Trucks carrying essential goods, commodities and petroleum products are being ransacked right in the presence of the West Bengal Police, and it has been learnt that in some cases, the West Bengal police itself is overseeing the situation," it said.

The statement also said that people in need of immediate advanced medical care were affected. In addition, the economic development of Sikkim has also been affected.

The CM's statement also said that due to the unrest in the neighbouring state of Bengal, "Sikkim has already borne the loss of over Rs. 60,000 crore."

"In the agitation related violence on NH10, Sikkim's only road link with the rest of the nation, over 5,000 vehicles have been vandalised and around 1,300 people (drivers and passengers) killed in the last 32 years of Gorkhaland agitation," it said.

Anand Bazar Patrika reports:

পাহাড়ে বন্‌ধ চলবে, চাপ বাড়াতে এ বার আমরণ অনশন, ঘেরাও

ভেতরে কট্টরপন্থীদের চাপ আর বাইরে কেন্দ্র ও রাজ্য সরকারের চাপের মোকাবিলায় এ বার পাল্টা চাপের রাস্তা নিল পাহাড়ের সর্বদলীয় কমিটি।

মঙ্গলবারের বৈঠকে কমিটি সিদ্ধান্ত নিল, পাহাড়ে বন্‌ধ চলবে। কোনও ভাবেই তা প্রত্যাহার করা হবে না। বিমল গুরুঙ্গ, বিনয় তামাঙ্গ, নীরজ জিম্বা সহ কমিটির প্রতিনিধিরা সিদ্ধান্ত নিয়েছেন, ১৫ জুলাই থেকে তাঁরা ম্যালে শুরু করবেন আমরণ অনশন। অনশনের পাশাপাশি থাকবে ঘেরাওয়ের কর্মসূচিও। ১৪ জুলাই শিলিগুড়ি সহ পাহাড়, তরাই ও ডুয়ার্সের এসডিও অফিসগুলিও ঘেরাও করা হবে।

কমিটির অভিযোগ, পাহাড়গামী গাড়িগুলি থেকে জিএসটি বিল আদায় করা হচ্ছে যথেচ্ছ। তা বন্ধ করতে এ দিনের বৈঠকে সিদ্ধান্ত নেওয়া হয়েছে, ২৫ জুলাই থেকে ঝোলা নিয়ে পাহাড় থেকে শিলিগুড়ি পর্যন্ত পদযাত্রা শুরু হবে।

পাহাড়ে কট্টরপন্থীরা বলতে শুরু করেছিলেন, কেন্দ্র ও রাজ্যের চাপের কাছে উত্তরোত্তর গলার সুর নরম করে ফেলছেন আন্দোলনকারীরা। সেই সুযোগে কেন্দ্র ও রাজ্য সরকারের চাপও বাড়তে শুরু করেছে।

অনেকেই মনে করছেন, 'ঘর'কে কিছুটা শান্ত রাখতে আর 'বাইরে'র চাপের বোঝাটা কাঁধ থেকে কিছুটা নামাতেই এই পাল্টা চাপের রাস্তায় হাঁটল কমিটি।


Just Hell losing in Darjeeling Hills. Ten vehicles destroyed in Teesta Bazar on Sikkim Road,minister`s convoy attacked,Power production stopped!

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Just Hell losing in Darjeeling Hills.

Ten vehicles destroyed in Teesta Bazar on Sikkim Road,minister`s convoy attacked,Power production stopped!

Palash Biswas

Now it is peace time in 24 pgs as Communal agenda is exposed but the politics of racist communal violence is playing havoc in Bengal hills which also burns Sikkim herading serious strategic calamity keeping in mind Chinese threat to make a Kashmir in Sikkim and the Sikkkim stand off itself.Both  governments of Bengal and India have miserably failed to initiate peace talks in burning Darjeeling while the people of India seem to have no idea about the crisis.

The most dangerous implications of Darjeeling unrest seem to be emerging now.Ten vehicles on Sikkim Road at Teesta Bazar which connects darjeeling,have been destroyed.Power plants have stopped production and the convoy of WB minister of tourism Gatam Dev has been attcked in Panihata amidst fresh incidents of arson and violence.Bengal and Sikkim have to suffer from power deficit now while tea industry and tourims lost almost everything and every home seem to be out of ration in this rainy season.


Gorkhaland mevement seems to be beyond the control of its leaders now.State administration  and police seem to be absent and it is anarchy in full bloom while CM of west Bengal Mamata Banerjee is claiming to restore peace very soon.


From tomorrow it would be fast unto death with resignation of all political representatives from every level.It is perhaps no point of return in darjeeling Hills.Just hell losing!Mind you,July 15 will mark one month of the indefinite strike in Darjeeling as the protesters continue to demand a separate state of Gorkhaland. On this day, leaders from all parties, including the BJP and Congress, will go on an indefinite hunger strike at Chowrasta in Darjeeling. While party spokesperson Neeraj Zimba will represent GNLF in the hunger strike, GJM will be represented by assistant general secretary Binay Tamang and Akhil Bharatiya Gorkha League by Pratap Kerri. All other parties will nominate representatives over the next two days.


Meanwhile,in another incident of mob violence in Darjeeling, a group of people set fire to a Gorkhaland Territorial Administration Tourist Information office on Wednesday night. According to reports, supporters of Gorkha Janmukti Morcha (GJM), which spearheads the agitation, took out a rally at Chowkbazar in Darjeeling on Wednesday with the body of Ashok Tamang, the man who was killed in alleged police firing. The agitation then took a violent turn and the angry protesters torched the office building late at night.


Tamang, a janitor for the Darjeeling municipality, had suffered injuries in police firing during an agitation on Saturday. He succumbed to his injuries on Tuesday morning at Manipal hospital in the neighbouring Sikkim. He is survived by two children.

The National Hydroelectric Power Corporation (NHPC) has shut down its hydel power plant at Ramdi in Darjeeling hills after a mob of over 600 people began agitation outside the plant site, a NHPC official said on Thursday.


"We had shut down operations of Teesta Low Dam-III plan of 132 MW as a precaution after a mob of over 600 people gheraoed the site and began agitation," the NHPC official told PTI.

The official said the regional head of NHPC is slated to meet the West Bengal power secretary later in the day to discuss the issue.


"We had already written to state power secretary, chief secretary and district magistrate to beef up security at the NHPC installations in Darjeeling district," the official said.


NHPC will resume power generation at the Ramdi plant once it gets assurance of security of the unit, officials said. NHPC has another unit Teesta Low dam-IV of 160MW in Darjeeling hills.


Pro-Gorkhaland supporters had on Wednesday set ablaze a panchayat office and damaged a few government vehicles in Darjeeling on the 28th day of the indefinite shutdown.

ABP anad reports:

পানিহাটায় পর্যটনমন্ত্রী গৌতম দেবের গাড়িতে হামলা, পুলিশের গাড়িতেও ভাঙচুর মোর্চার

দার্জিলিং: পাহাড়ে ফের তাণ্ডব চালাল গোর্খা জনমুক্তি মোর্চা।


শিলিগুড়ির কাছে পানিঘাটায় আক্রান্ত হয়েছেন পর্যটনমন্ত্রী গৌতম দেব। নেপালি কবি ভানুভক্তের জন্মজয়ন্তী অনুষ্ঠানে যোগ দিতে পানিঘাটায় যান পর্যটনমন্ত্রী। গৌতমের অভিযোগ, পানিঘাটায় ঢুকতেই কুকরি নিয়ে হামলা চালায় মোর্চা সমর্থকরা। মন্ত্রীর গাড়ি আটকে বিক্ষোভ দেখায় তারা। চলে ইটবৃষ্টিও। কোনওক্রমে ব্যাঙডুবির সেনা ছাউনিতে আশ্রয় নেন পর্যটনমন্ত্রী। তিনি এলাকা ছাড়ার পর পুলিশের একটি গাড়িতেও ভাঙচুর চালানো হয়।


এছাড়া তিস্তা বাজারে সিকিমগামী ১০টি গাড়িতে হামলা চালিয়েছে মোর্চা। কালিম্পঙে তামাং বোর্ডের চেয়ারম্যানের বাড়িতে ভাঙচুর করে আগুন ধরিয়ে দেওয়া হয়েছে। সান্দাকফু যাওয়ার পথে দার্জিলিঙের ধত্রেয় বনবাংলো ও কালিম্পঙের তিস্তা বন বাংলোতেও আগুন লাগানো হয়।


এর আগে গতকাল মাঝ রাতে দার্জিলিং ম্যালে ট্যুরিস্ট ইনফরমেশন সেন্টার ও রাত ৮টা নাগাদ সুকনায় রেভিনিউ ইন্সপেক্টরের অফিসেও অগ্নিসংযোগ ঘটে। যদিও গোর্খা জনমুক্তি মোর্চা অস্বীকার করেছে যাবতীয় অভিযোগ। ম্যালে কাঠের তৈরি ট্যুরিস্ট ইনফরমেশন সেন্টারে আগুন লাগানোর ঘটনা নতুন নয়। পাহাড়ে যতবার আন্দোলন হয়েছে, ততবারই অশান্তির আগুনে পুড়েছে এই অফিস। গতকালের আগুনে ভস্মীভূত হয়ে যায় ট্যুরিস্ট ইনফরমেশন সেন্টার। সকালে দমকলের একটি ইঞ্জিন এসে আগুন নিয়ন্ত্রণে আনে। রাত ৮টা নাগাদ সুকনায় রেভিনিউ ইন্সপেক্টরের অফিসে আগুন লাগানো হয়। গোটা অফিস পুড়ে ছাই। পুড়ে গিয়েছে বহু গুরুত্বপূর্ণ নথি।

http://abpananda.abplive.in/state/goutam-debs-car-attacked-in-panihata-darjeeling-tense-360528

शैलेश, हिन्दी साहित्य के भंडार को भर कर चले गये. पर्वतीय अंचल के जनजीवन के अभावों, सुख­दुख, संघर्षों, और जिजीविषा को जीवन्त रूप में उभार कर चले गये. पर हमने, हमारी व्यवस्था ने उनके नाम से एक दो पुरस्कार घोषित कर जैसे छुट्टी पाली. ताराचंद्र त्रिपाठी

Next: खेती की तरह आईटी सेक्टर में भी खुदकशी का मौसम गोरक्षा समय में पहले करोड़ नौकरियां पैदा करने के सुनहले दिनों के ख्वाब दिखाये गये और अब जीएसटी के जरिये रोजगार सृजन की बात की जा रही है।सुनहले दिनों के ख्वाब में युवाओं का न रोजगार है और न कोई भविष्य।जीवन साथी चुनना भी मुश्किल है।फर्जी तकनीकी शिक्षा के दुश्चक्र में परंपरागत शिक्षा से वंचित इस युवा पीढ़ी के हिस्से में अंधेरा ही अंधेरा
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शैलेश, हिन्दी साहित्य के भंडार को भर कर चले गये. पर्वतीय अंचल के जनजीवन के अभावों, सुख­दुख, संघर्षों, और जिजीविषा को जीवन्त रूप में उभार कर चले गये. पर हमने, हमारी व्यवस्था ने उनके नाम से एक दो पुरस्कार घोषित कर जैसे छुट्टी पाली. 
ताराचंद्र त्रिपाठी

शैलेश मटियानी पर गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी ने अपने फेस बुक वाल पर यह बेहद प्रासंगिक,मार्मिक और वैचारिक आलेख पोस्ट किया है।पहाड़ में बटरोही के अलावा बाकी किसी साहित्यकार ने अबतक शैलेश जी के कृतित्व पर कोई खास टिप्पणी नहीं की है।

हम जब जीआईसी में गुरुजी के छात्र थे,तभी उन्होंने हमें शैलेश जी की कहानियों और उपन्यासों के जरिये पहाड़ के सामाजिक यथार्थ को समझने के लिए कहा था।लेकिन अब तक उनका शैलेश जी पर लिखा कोई आलेख देखने को नहीं मिला,जबकि वे हमेशा शैलेश जी के जीवन संघर्ष,उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को बहुत महत्व दिया करते थे।उन्हींके सान्निध्य में कपिलेश भोज और मुझे सबसे पहले शैलेश मटियानी की रचनाओं के मार्फत पहाड़ और बाकी दुनिया को समझने की दृष्टि मिली थी।
यह आलेख शैलेश जी के अवसान के बाद उनकी समाज और सत्ता की ओर से घोर उपेक्षा और उनकी स्मृति अवशेष के निरादर पर यह बेहद विचारोत्तेजक टिप्पणी है।बेटे की मृत्यु के बाद आजीवन प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के लड़ने वाले मटियानी जी में थोड़ा वैचारिक परिवर्तन आया,जिस अपराध में हिंदी के प्रगतिशील तत्वों ने उन्हे और उनके योगदान को सिरे सेखारिज कर दिया।लेकिन देखनेवाली बात यह है कि जो सामाजिक यथार्थ और उससे जुड़े अस्पृश्यता के दंश से लहूलुहान पहाड़ और बाकी देश का साक्षी है उनका रचनासमग्र ,वह कुलमिलाकर नस्ली फासिज्म की विचारधारा के खिलाफ ही है ,जिसका इस्तेमाल अन्याय और असमता की मनुस्मृति व्यवस्था के हित में कतई नहीं हो सकता और न सत्ता की राजनीति में शैलेश जी का दुरुपयोग संभव है।
नतीजतन वामपक्ष की तरह दक्षिणपंथी हिंदुत्ववाजियों ने भी शैलेश जी की कोई सुधि नहीं ली,जिनके साथ शैलेशजी को नत्थी कर देने की कोशिशें लगातार हो ती रही है।
शैलेश मटियानी और उनके कृतित्व को समझने के लिए हमारे हिसाब से हिंदी और भारतीय साहित्य के हर पाठक को ताराचंद्र त्रिपाठी का यह आलेख अवश्य पढ़ना चाहिए।
हम चूंकि साहित्यिक बिरादरी में नहीं हैं,इसलिए कवियों,साहित्यकारों और संपादकों और आलोचकों के लिए मेरा यह बयान नहीं है।मेरे हिमालय के लोग और मरे बारत के आम लोग शैलेश जी की भूमिका के बारे में तनिक विवेचना करें,इसके लिए गुरुजी की यह टिपप्णी शेयर कर रहा हूं।
पलाश विश्वास

आदरणीय गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी के फेसबुक वाल से 

विधाता. जब किसी को भरपूर प्रतिभा देता है तो उसके साथ ऐसी विसंगतियाँ भी जोड़ देता है कि उसके लिए जीना दूभर हो जाता है. इस विसंगति के चक्रव्यूह से वही निकल पाते हैं जिनमें संघर्ष करने की अपार क्षमता होती है. इसी को चाल्र्स डार्विन ने प्राकृतिक चयन या योग्यतम की उत्तरजीविता की प्रकृतिक प्रक्रिया कहा है.
शैलेश मटियानी का जीवन भी इसका एक जीता­जागता नमूना है. वे आजादी से सोलह साल पहले एक पिछड़ेे पर्वतीय गाँव के बेहद गरीब परिवार में जन्मे और बारह वर्ष की अवस्था में अनाथ हो गये. दो जून रोटी के लिए न केवल अपने चाचा की मांस की दूकान में काम करना पड़ा, अपितु कलम संभालते ही अपने गरीब और पिछड़ेे परिवेश से उठने के प्रयास में एक बोचड़ की दूकान में काम करने वाला छोकरा इलाचन्द जोशी और सुमित्रानन्दन पन्त से टक्कर लेना चाहता है. जैसे व्यंग बाण भी सहे.
उनको तपा­तपा कर सोना बनाने की प्रक्रिया में काल भी जैसे क्रूरता की हदें पार कर गया. अपने पापी पेट की भूख को शान्त करने के लिए होटल में जूठे बरतन माँजने से लेकर अनेक छोटे­मोटे काम करने पडे. दिल्ली, मुजफ्फर नगर, फिर कुछ दिन अल्मोड़ा, और अन्ततः इलाहाबाद आ गये. इतनी भटकन और अभावों से उनके जीवन पथ को कंटकाकीर्ण बनाने के बाद भी जैसे काल संतुष्ट नहीं हुआ, और उनके मासूम छोटे पुत्र की हत्या के प्रहार ने उन्हें बुरी तरह तोड दिया. मौत भी ऐसी दी कि क्रूर से क्रूर व्यक्ति को रोना आ जाय.
इतने कठिन जीवन संघर्ष के बीच उन्होंने न केवल हिन्दी साहित्य को दर्जनों अमर कृतियों की सौगात दी अपितु अपने अंचल के जीवन को भी अपनी रचनाओं में जीवन्त रूप से उभारा. सच पूछें तो कुमाऊँ की पृष्ठभूमि, उसके सुख दुख, अभावों और संघर्ष के बीच भी जनजीवन के मुस्कुराने के पल दो पल खोजने के प्रयासों को भी उनके अलावा पर्वतीय अंचल का कोई अन्य कथाकार उतनी शिद्दत के साथ नहीं उभर पाया है.
उन्होंने अनेक उपन्यास लिखे, दर्जनों कहनियाँ लिखीं, 'पितुआ पोस्टमैन'के सामान्य धरातल से उठ कर वे 'प्रेतमुक्ति'के जाति, वर्ग, सामाजिक विडंबनाओं से मुक्त मानवत्व की महान ऊँचाइयों पर पहुँचे. जब कि उनका सहारा लेकर उठे, और लक्ष्मी के वरद्पुत्र बने तथाकथित रचनाकार समाज में सामन्ती युग के प्रेतों को जगाने में लगे हुए हैं.
शैलेश, हिन्दी साहित्य के भंडार को भर कर चले गये. पर्वतीय अंचल के जनजीवन के अभावों, सुख­दुख, संघर्षों, और जिजीविषा को जीवन्त रूप में उभार कर चले गये. पर हमने, हमारी व्यवस्था ने उनके नाम से एक दो पुरस्कार घोषित कर जैसे छुट्टी पाली. हल्द्वानी में उनके आवास को जाने वाले मार्ग का नामकरण 'शैलेश मटियानी मार्ग, का शिला पट्ट लगाकर, जैसे उन पर एहसान कर दिया. उस शिला पट्ट की हालत यह है कि, उस पर परत­दर­परत कितने व्यावसायिक विज्ञापन चिपकते जा रहे हैं इस पर ध्यान देने की किसी को फुर्सत नहीं है.
उनका आवास जीर्ण­शीर्ण हो चुका है, टपकते घर के बीच उनका परिवार जैसे­तैसे दिन काट रहा है, अपने पिता की थात को फिर से लोगों के सामने लाने के लिए उनके ज्येष्ठ पुत्र राकेश, रात­दिन अकेले लगे हुए हैं. सत्ता और पद के मद में आकंठ निमग्न, जुगाड़­धर्मी अन्धी व्यवस्था में ही नहीं अपने आप को रचनाधर्मी कहने वाले हम लोगों में भी मौखिक सहानुभूति के अलावा उनकी स्मृति को सुरक्षित करने और नयी पीढी को अभावों से लोहा लेते हुए अपने अस्तित्व को प्रमाणित करने की प्रेरणा देने के लिए कोई विचार नहीं है.
कितने कृतघ्न हैं हम लोग! यह इस देश में नहीं पता चलता, विदेशों में जाने पर पता चलता है. मुझे 2011 तथा 2013 में छः मास लन्दन में बिताने का अवसर मिला. अपनी यायावरी की आदत से लाचार मैंने लन्दन का कोना­कोना छान मारा. वैभव और उपलब्धियों से भरे इस महानगर में सबसे ध्यानाकर्षक बात लगी 'अपने कृती पुरखों के याद को बनाये रखने की प्रवृत्ति. अकेले लन्दन में कीट्स, सेमुअल जोन्सन, चाल्र्स डिकिंस, चाल्र्स डार्विन, जैसे उनसठ रचनाधर्मियों के आवासों को उनके कृतित्व का संग्रहालय बना दिया गया है. इस श्रद्धापर्व में उनके अपने लोग ही शामिल नहीं है. नाजी जर्मनी के उत्पीड़न से बचने के लिए लन्दन में शरण लेने वाले फ्रायड जैसे अनेक विदेशी मूल के कृती भी विद्यमान हैं. यही नहीं आज के रसेल स्क्वायर के जिस आवास में चाल्र्स डिकिन्स आठ वर्ष रहे और अपने कृतित्व को उभारा, आज पाँच सितारा होटल में रूपान्तरित होने पर भी, उसके मालिक अपनी दीवार पर यह लिखना नहीं भूले कि इस आवास में चाल्र्स डिकिंस आठ वर्ष रहे थे. ब्रिटिश पुस्तकालय के प्रांगण में आइजेक न्यूटन आज भी अपना परकार (कंपास) लेकर अन्वेषण में लगे हुए हैं. बैंक आफ इंग्लैंड वाले मार्ग पर 1808 मे जेलों में सुधार करने के लिए संघर्ष करने वाली महिला ऐलिजाबेथ के आवास पर, जो आज एक विशाल भवन में रूपान्तरित हो चुका है, उनके नाम और कृतित्व को सूचित करने वाली पट्टिका लगी हुई है. किसी भी सड़क पर चले जाइये, आपको अपने पूर्वजों के कृतित्व के प्रति आभार व्यक्त करने वाली पट्टिकाएँ मिल जायेंगी. और हमने अपने लोक जीवन को साहित्य के शिखर पर उत्कीर्ण करने वाले कथाकार के नाम पर एक मार्ग पट्टिका लगाई भी तो उसे अंट­शंट विज्ञापनों के तले पाताल में दफना दिया.
दो सौ साल जिनकी गुलामी में रहे, जिनकी भाषा, वेश­भूषा, बाहरी ताम­झाम को, अपनी परंपराओं को दुत्कारते हुए हमने अंगीकार किया, उनके आन्तरिक गुणों और अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता बोध को हम ग्रहण नहीं कर सके. आज भी हम वहीं पर हैं. पंजाब से आये लोगों की कर्मठता को अंगीकार करने के स्थान पर हम उनके नव धनिक वर्ग के तमाशों और तड़क­भड़क के सामने अपनी हजारों वर्ष के अन्तराल में विकसित सरल और प्राकृ्तिक रूप से अनुकूलित परंपराओं को ठुकराते जा रहे हैं.
तब और भी दुख होता है कि जहाँ प्रदेश की सत्ता के शीर्ष पर उनके ही जनपद का व्यक्ति आसीन है, उनके पुत्र को अपने कृती पिता की स्मृति को धूमिल होने और अपने बीमार घर को धराशायी होने से बचाने के लिए दर­दर भटकना पड रहा है.
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खेती की तरह आईटी सेक्टर में भी खुदकशी का मौसम गोरक्षा समय में पहले करोड़ नौकरियां पैदा करने के सुनहले दिनों के ख्वाब दिखाये गये और अब जीएसटी के जरिये रोजगार सृजन की बात की जा रही है।सुनहले दिनों के ख्वाब में युवाओं का न रोजगार है और न कोई भविष्य।जीवन साथी चुनना भी मुश्किल है।फर्जी तकनीकी शिक्षा के दुश्चक्र में परंपरागत शिक्षा से वंचित इस युवा पीढ़ी के हिस्से में अंधेरा ही अंधेरा

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खेती की तरह आईटी सेक्टर में भी खुदकशी का मौसम

गोरक्षा समय में पहले करोड़ नौकरियां पैदा करने के सुनहले दिनों के ख्वाब दिखाये गये और अब जीएसटी के जरिये रोजगार सृजन की बात की जा रही है।सुनहले दिनों के ख्वाब में युवाओं का न रोजगार है और न कोई भविष्य।जीवन साथी चुनना भी मुश्किल है।फर्जी तकनीकी शिक्षा के दुश्चक्र में परंपरागत शिक्षा से वंचित इस युवा पीढ़ी के हिस्से में अंधेरा ही अंधेरा है।

पलाश विश्वास

नोटबंदी और जीएसटी के निराधार आधार चमत्कारों के मध्य अब किसानों मजदूरों के अलावा इंजीनियरों की खुदकशी की सुर्खियां बनने लगी है।प्रधान सेवक अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान महाबलि ट्रंप से हथियारों और परमाणु चूल्हों का सौदा तो कर आये लेकिन अमेरिकी नीतियों की वजह से खतरे में फंसे आईटी क्षेत्र में लगे लाखों युवाओं के लिए एक शब्द भी खर्च नही किया।अभी पिछले  गुरुवार को पुणे की एक होटल की बिल्डिंग से कूदकर एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी जान दे दी। कमरे में मिले सुसाइड नोट में मृतक इंजीनियर ने आईटी क्षेत्र में जॉब सिक्योरिटी नहीं होने की वजह से खुदकशी  कर ली।

यह आईटी सेक्टर में गहराते संकट के बादलों का सच है,जिससे भारत सरकार सिरे से इंकार कर रही है।

गोरक्षा समय में पहले करोड़ नौकरियां पैदा करने के सुनहले दिनों के ख्वाब दिखाये गये और अब जीएसटी के जरिये रोजगार सृजन की बात की जा रही है।सुनहले दिनों के ख्वाब में युवाओं का न रोजगार है और न कोई भविष्य।जीवन साथी चुनना भी मुश्किल है।फर्जी तकनीकी शिक्षा के दुश्चक्र में परंपरागत शिक्षा से वंचित इस युवा पीढ़ी के हिस्से में अंधेरा ही अंधेरा है।

यह सिर्फ एक आत्महत्या का मामला नहीं है कि आप राहत की सांस लें कि बारह हजार खेत मजदूरों और किसानों की खुदकशी के मुकाबले एक खुदकशी  के मामले से बदलता कुछ नहीं है।

गौरतलब है कि पिछले कई दिनों से आईटी सेक्टर में छाई मंदी को लेकर इस प्रोफेशन से जुड़े लोग अपने करियर को लेकर बेहद चिंतित हैं। आईटी प्रोफेशनल्स को कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा है। बीते महीनों आई एक खबर के मुताबिक, इन्फोसिस कर्मचारियों को नौकरी से निकालने वाली थी। इससे पहले भी दूसरी कंपनियां जैसे विप्रो, टीसीएस और कॉगनिजेंट भी अपने यहां कर्मियों की छंटनी कर चुकी हैं। इसी बात से चिंतित होकर गुरुप्रसाद ने आत्महत्या कर ली।


आईटी सेक्टर में भारी छंटनी के सिलसिले में कंपनियों ने कार्यदक्षता के मुताबिक नवीकरण की बात की तो भारत सरकार की ओर से कह दिया गया कि आईटी सेक्टर में कोई खतरा है ही नहीं।क्योंकि कंपनियां किसी की छंटनी नहीं कर रही है,सिर्फ कुछ लोगों के ठेके का नवीकरण नहीं किया जा रहा है।

मानव संसाधन से जुड़ी फर्म हेड हंटर्स इंडिया ने हाल में कहा है कि कि नई प्रौद्योगिकियों के अनुरूप खुद को ढालने में आधी अधूरी तैयारी के कारण भारतीय आईटी क्षेत्र में अगले तीन साल तक हर साल 1.75-2 लाख इंजीनियरों की सलाना छंटनी होगी। हेड हंटर्स इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के लक्ष्मीकांत ने मैककिंसे एंड कंपनी द्वारा 17 फरवरी को भारतीय सॉफ्टवेयर सेवा कंपनियों के मंच नासकाम इंडिया लीडरशिप फोरम को सौंपी गई रिपोर्ट का विश्लेषण करते हुए कहा, "मीडिया में खबर आई है कि इस साल 56,000 आईटी पेशेवरों की छंटनी होगी, लेकिन नई प्रौद्योगिकियों के अनुरूप खुद को ढालने में आधी अधूरी तैयारी के चलते तीन साल तक हर साल वास्तव में 1.75-2 लाख आईटी पेशेवरों की छंटनी हो सकती है।"




श्रमकानूनों में सुधार की वजह से श्रम विभाग और लेबर कोर्ट की कोई भूमिका नहीं रह गयी है।ठेके पर नोकरियां तो मालिकान और प्रबंधकों की मर्जी है।वे अपने पैमाने खुद तय करते हैं और उसी हिसाब से कर्मचारियों की छंटनी कर सकते हैं ।कर्मचारियों की ओर से इसके संगठित विरोध की संभावना भी कम है।क्योंकि निजीकरण,विनिवेश और आटोमेशन के खिलाफ अभी तक मजदूर यूनियनों ने कोई प्रतिरोध नहीं किया है।नये आर्तिक सुधारों की वजह से ऐसे प्रतिरोध लगभग असंभव है।


डिजिटल इंडिया में सरकारी क्षेत्र में नौकरियां हैं नहीं और सरकारी क्षेत्र का तेजी से विनिवेश हो रहा है।आधार परियोजना से वर्षों से बेहिसाब मुनाफा कमाने वाली कंपनी इंफोसिस भी अब रोबोटिक्स पर फोकस कर रही है।सभी क्षेत्रों में शत प्रतिशत आटोमेशन का लक्ष्य है क्योंकि कंपनियों को कर्मचारियों पर होने वाले खर्च में कटौती करके ही ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हो सकता है।


दूसरी ओर मार्केटिंग और आईटी सेक्टर के अलावा पढ़े लिखे युवाओं के रोजगार किसी दूसरे क्षेत्र में होना मुश्किल है।बाजार में मंदी के संकट और कारपोरेट एकाधिकार वर्चस्व,खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी,ईटेलिंग इत्यादि वजह से मार्केंटिंग में भी नौकरियां मिलनी मुश्किल है।


नालेज इकोनामी में ज्ञान विज्ञान की पढ़ाई,उच्च शिक्षा और शोध का कोई महत्व न होने से सारा जोर तकनीकी ज्ञान पर है और मुक्तबाजार में आईटी इंजीनियरिंग ही युवाओं की पिछले कई दशकों से सर्वोच्च प्राथमिकता बन गयी है।विदेश यात्रा और बहुत भारी वेतनमान की वजह से आईटी सेक्टर में भारतीय युवाओं का भविष्य कैद हो गया है।


मुक्तबाजार से पहले कृषि इस हद तक चौपट नहीं हुई थी।नौकरी न मिले तो खेती या कारोबार का विकल्प था।लेकिन आईटी इंजीनियरों के सामने जीएसटी के जरिये हलवाई की दुकान या किराने की दुकान में आईटी सहायक के सिवाय कोई विकल्प बचा नहीं है।ऐसी नौकरी मिल भी जाये तो वह आईटी सेक्टर के भारी भरकम पगार के मुकाबले कुछ भी नहीं है।


हालत यह है कि मीडिया के मुताबिक आईटी कर्मचारियों के लिए यूनियन बनाने की कोशिश में जुटा द फोरम फॉर आईटी एम्पलॉयीज (एफआईटीई) ने कहा है कि आईटी व अन्य बड़ी कंपनियों की तरफ से  छंटनी के खिलाफ विभिन्न राज्यों में श्रम विभाग के पास करीब 85 याचिका दाखिल की गई है। चेन्नई में संवाददाताओं से बातचीत में फोरम के महासचिव विनोद ए जे ने कहा, अगले छह हफ्तों में हमारे दिशानिर्देश के तहत अपनी-अपनी कंपनियों के खिलाफ करीब 100 कर्मचारी शिकायत दाखिल करेंगे।

फोरम का दावा है कि कॉग्निजेंट, विप्रो, वोडाफोन, सिनटेल और टेक महिंद्रा जैसे संगठनों के 47 कर्मचारियों ने श्रम विभाग पुणे में याचिका दाखिल की है, वहीं 13 याचिकाएं कॉग्निजेंट व टेक महिंद्रा के कर्मचारियों ने हैदराबाद में दाखिल की है। ये याचिकाएं औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 2 ए के तहत दाखिल की गई है, जो वैयक्तिक याचिकाओं के लिए है। उन्होंने कहा, इस अधिनियम की धारा 2के सामूहिक याचिका के लिए है। कॉग्निजेंट व अन्य कंपनियों ने इन आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि वे कर्मचारियों की छंटनी नहीं कर रहे हैं। फोरम का दावा है कि करीब 3,000 कर्मचारियों ने उनसे संपर्क किया है। इसकी योजना समर्थन के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से संपर्क की भी है।


खबरों के मुताबिक पुणे में एक इंजीनियर ने केवल इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसके फील्ड में जॉब सिक्योरिटी नहीं थी। मृतक गोपीकृष्ण गुरुप्रसाद (25) आंध्र प्रदेश का निवासी था। कुछ दिनों पहले ही मृतक ने पुणे में नई कंपनी जॉइन की थी। पुणे के विमानगर इलाके स्थित एक होटल के ऊपर वाली मंजिल से गुरुप्रसाद ने छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने से पहले मृतक ने अपना हाथ काटने की  कोशिश की। गुरुप्रसाद इससे पहले दिल्ली और हैदराबाद में भी नौकरी कर चुका था। मौके से पुलिस ने एक सुसाइड नोट भी बरामद किया।


नोट में मृतक ने लिखा, 'आईटी में कोई जॉब सिक्योरिटी नहीं है। मुझे अपने परिवार को लेकर चिंता होती है।' शव को पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया है। पुलिस मामले की जाँच कर रही है।


खुदकशी की इस घटना को नजर्ंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि मैककिंसे एंड कंपनी की रिपोर्ट में कहा गया था कि आईटी सेवा कंपनियों में अगले 3-4 सालों में आधे कर्मचारी अप्रासंगिक हो जाएंगे। मैककिंसे एंड कंपनी के निदेशक नोशिर काका ने भी कहा था कि इस उद्योग के सम्मुख बड़ी चुनौती 50-60 फीसदी कर्मचारी को पुन: प्रशिक्षित करना होगा क्योंकि प्रौद्योगिकियों में बड़ा बदलाव आएगा। इस उद्योग में 39 लाख लोग कार्यरत हैं और उनमें से ज्यादातर को फिर से प्रशिक्षण देने की जरूरत होगी।


बड़ी संख्या में आईटी इंजीनियरों के बेरोजगार होने या उनकी नौकरियां असुरक्षित हो जाने की स्थिति खेतों की तरह आईटी सेक्टर के बी कब्रिस्तान में तब्दील हो जाने का खतरा है।

अमेरिका, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में वर्क वीजा पर कड़ाई की वजह से भारतीय सॉफ्टवेयर निर्यातक पर विशेष रूप से मार पड़ी है। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस  में नई प्रौद्योगिकी, रोबोटिक प्रक्रिया ऑटोमेशन और क्लाउड कंप्यूटिंग की वजह से कंपनियों अब कोई कार्य कम श्रमबल से कर सकती हैं। इसकी वजह से सॉफ्टवेयर कंपनियों को अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना पड़ रहा है।


भारतीय आईटी सेक्टर के प्रोफेशनल्स के छंटनी की टेंशन बाद एक और समस्या का पहाड़ उन लोगों पर टूटने लगा है। आईटी प्रोफेशनल्स को पहले अपनी जॉब तो अब अपने जीवनसाथी ढ़ढने में दिक्क्तें आ रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईटी प्रोफेशनल्स से लोग शादी करने से अब कतरा रहे हैं।


मैट्रीमोनियल वेबसाइट के ट्रेंड और पारंपरिक तौर पर 'रिश्ते मिलाने वालों'को देखा जाए तो मालूम होता है कि समय बदल चुका है| 'साफ्टवेयर इंजीनियर'दूल्हों की डिमांड अब पहले के मुकाबले बहुत कम हो गई है। सूत्रों के मुताबिक सामने आया है कि इसकी मुख्य वजह है आईटी सेक्टर में अनिश्चतता और छंटनी, ऑटोमेशन से नौकरियों पर मंडराता खतरा। इसके पीछे एक बड़ी वजह मानी जा रही है अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के तहत संरक्षणवादी भावना का बढ़ना। इस वजह कई भारतीय को अमेरिका से भारत लौटना पड़ा हैं।


सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल्स पर जो आदर्श वर का ठप्पा लगा था वह अब कम होने लग गया है, खासतौर पर जब अरेंज मैरिज की बात हो।

एक अंग्रेजी पेपर में छपी खबर के मुताबिक एक मेट्रीमोनियल एड का जिक्र है जिसमें तमिल के रहने वाले माता-पिता ने अपनी बेटी के लिए दूल्हे का ऐड छपवाया जिसके अंत में लिखा था हमें आईएएम, आईपीएस, डॉक्टर और बिजनेस मेन की तलाश है, कृपया सॉफ्टवेयर इंजीनियर कॉल न करें। शादी डॉट कॉम के सीईओ गौरव ने बताया कि, इस साल की शुरूआत से ही आईटी प्रोफेशनल्स तलाशने वाली लड़कियों की संख्या में कमी दर्ज की है।


Anatomy of Basirhat (West Bengal) Violence Ram Puniyani

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Anatomy of Basirhat (West Bengal) Violence

 

Ram Puniyani

 

In an insane act of violence two people lost their lives in Basirhat (West Bengal, 04 07 2017). From last quite some time the social media is abuzz that WB is turning Islamist, Hindus are under great threat, their condition is becoming like that of Pundits in Kashmir. The section of TV media projected the view that WB is not safe for Hindus but is a heaven for Muslims. Angry posts are also declaring that Mamata is appeasing Muslims, Islamist Radicals are growing in Bengal with support from the Mamata Government etc.

This act of violence was provoked by a facebook post. (July 04, 2017) Once it was known in the area as to who has done the posting, they surrounded the house where the 17 year old boylived. The posting was derogatory to Muslims. As the atmosphere was building up the state machinery kept silent, till the aggressive mob of Muslims surrounded the house. Police intervention was too late. While the boy was saved despite the angry mob which was demanding that boy handed over to them

BJP leaders got hyperactive and visited the area as a delegation. They tried to enter the hospital to see the dead body of Kartik Chandra Ghosh (Age 65). Muslim attackers had killed him. This attempt of the BJP leaders was to derive political mileage from the situation as BJP claimed that Ghosh was President of one of the units of BJP, while Ghosh's son denied it.

 The Governor of West Bengal, K.N. Tripathi, reprimanded Mamata Bannerjee for the violence. Seeing his attitude Mamata got upset and called him as the one belonging to BJP block level leader. Same Governor has been called as a 'dedicated soldier of Modi Vahini' by one BJP leader Rahul Sinha. The communal violence has taken a political color, BJP accusing chief minister Mamata Banerjee of appeasement of Muslims while the ruling Trinamool Congress is alleging that BJP is out for inciting communal passions to benefit electorally. Surprisingly with this violence, where two people have lost their life, BJP is demanding the President's rule in the state, while the law and order has already been restored within a week's time.

The picture in Bengal is very complex. A section of Muslim leadership is repeatedly doing violence in response to 'hurt sentiments'. Earlier also violence was unleashed by Muslims in Kaliachak, when one Kamlesh Tiwari had posted something offensive against Prophet Mohammad. The feeling of impunity enjoyed by this section of Muslim leadership is giving a big handle in the hands of Hindutva forces, for which this yet again is opportunity to polarize the society along religious lines. Here in Bengal they don't have to create the issue of 'Holy Cow' or 'Ram Temple', it is being provided by this misguided section of Muslim leadership.  

The picture is being created that Bengal is in the grip of Islamization as earlier Kaliachak violence and now this violence are being cited to show that Hindus are unsafe here. There was no loss of life in Kaliachak incident but yes there was loss of property, though. The core theme of BJP-RSS propaganda is built around Hindu victimization.

The role of government has been far from satisfactory in this violence, as it had time enough to control the situation but it did not. The law and order machinery must ensure prevention of the buildup of such incidents. By and large one can say that effective system can prevent most of the riots, irrespective of who is the offender. Here the Government should have acted in time.

Surely, Mamata's alleged appeasement of Muslims does not apply in economic matters. The fact is that the economic conditions of Muslims of Bengal are among the worst in the country. The budgetary allocation for minorities in Bengal is much less than in many other states.

At the same time the communal polarization by the BJP is coming up with the menacing speed. In a state where Ram Navami (Lord Ram's birth day celebration) was practically unheard of, this year around the Ram Navami procession was taken out with frightening swords in hands. Lord Ganesh festival is also being promoted in the state where Ma Durga had been the main deity so far.

Finally, who benefits from the violence? The studies of different scholars on communal violence in India like those by Paul Brass point out that there is an institutional riot mechanism, the core part of which is the impunity enjoyed by the offenders, the abysmal role of justice delivery system as a whole. Another significant study from Yale University tells us that in the places where communal violence takes place, in the long run at electoral level, it is BJP which stands to benefit. Those who appease the Muslim fundamentalists should note this and see to it that that, to discharge the constitutionally assigned duties are the essence of governance, irrespective of the community involved in the violence.

Let's summarize the anatomy of violence in Bashirghat. Stage one, the offensive post on face book, two fundamentalist radical sections of Muslims unleash violence, number three the approach of the state government fails in preventing the violence. Number four BJP carries on from there and worsens the atmosphere by playing out videos which showed that Muslims were attacking Hindus in Basirhat. It turned out that videos were not from Bashirhat at all. They were taken from Gujarat violence of 2002. Also clips of a Bhojpuri films showing the molestation of Hindu women were recklessly circulated, the impression being given that this is happening in Basirhat. The same was claimed by BJP's national general secretary Kailash Vijayvargiya, who said that he had news of Hindu women being raped in the affected area. And lastly drums are beaten about victimization of Hindus in Bengal. One just hopes it will not lead to polarization of communities leading in a state where so far communal violence had been reasonably under check.


उनके पास साहित्यकार नहीं हैं तो हमारे पास कितने साहित्यकार बचे हैं? शिक्षा व्यवस्था आखिर क्या है?

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उनके पास साहित्यकार नहीं हैं तो हमारे पास कितने साहित्यकार बचे हैं? शिक्षा व्यवस्था आखिर क्या है?
पलाश विश्वास
हमारे आदरणीय जगदीश्वर चतुर्वेदी ने फेसबुक वाल पर सवाल किया है कि पांच ऐसे उपन्यासों के नाम बतायें,जो संघ परिवार की विचारधारा से प्रेरित है।इसकी प्रतिक्रिया में दावा यही है कि संघ परिवार के पास कोई साहित्यकार नहीं है।
लगता है कि बंकिम वंशजों को पहचानने में लोग चूक रहे हैं।गुरुदत्त का किसी आलोचक ने नोटिस नहीं लिया,लेकिन वे दर्जनों उपन्यास संघी विचारधारा के पक्ष में लिकते रहे हैं।
आचार्य चतुरसेन और नरेंद्रकोहली के मिथकीय आख्यान से लेकर उत्तर आधुनिक विमर्श का लंबा चौड़ा इतिहास है।
इलाहाबादी परिमल को लोग भूल गये।
सामंती मूल्यों के प्रबल पक्षधर ताराशंकर बंद्योपाध्याय जैसे ज्ञानपीठ,साहित्य अकादमी विजेता दर्जनों हैं।
कांग्रेस जमाने के नर्म हिंदुत्व वाले मानवतावादी साहित्यकार और संस्कृतिकर्म भी हिंदुत्व की विचारधारा को पुष्ट करते रहे हैं।
जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद आपातकाल के अवसान के बाद मीडिया के केसरियाकरण को सिरे से नजरअंदाज करने का नतीजा सामने है।
समूचा मीडिया केसरिया हो गया है।
भारतीय भाषाओं के साहित्य,माध्यमों और विधाओं, सिनेमा, संगीत,मनोरंजन,सोशल मीडिया में जो बजरंगी सुनामी जारी है,उसे नजरअंदाज करना बहुत गलता होगा।
उनके पास साहित्यकार नहीं है,यह दावा सरासर गलत है।नस्ली,सामंती,जाति वर्चस्व से मुक्त साहित्य क्या लिखा जा रहा है और ऐसा साहित्य क्या लिखा जा रहा है,जो रंगभेदी शुद्धतावादी हिंदुत्व की विचारधारा के प्रतिरोध में है,यह कहना मुश्किल है।
मानवतावादी साहित्य के नामपर सामंती मूल्यों को मजबूत करने वाले साहित्यकारों की लंबी सूची है।
बंकिम के आनंदमठ से चर्चा की शुरुआत करे तो सूची बहुत लंबी हो जायेगी।
संघ परिवार के संस्थानों,उनकी सरकारों से सम्मानित,पुरस्कृत साहित्यकारों, संपादकों,आलोचकों की पहले गिनती कर लीजिये।बहुजन विमर्श के अंबेडकरी घराने के अनेक मसीहावृंद के नाभिनाल भी संघ परिवार से जुड़े हैं।नई दिल्ली न सही, नागपुर, जयपुर, लखनऊ,गोरखपुर,भोपाल,कोलकाता,चंडीगठ से लेकर शिमला और गुवाहाटी से लेकर बेंगलूर तक तमाम रंग बिरंगे साहित्यकार संघ परिवार की संस्थाओं से नत्थी है।
हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की तर्ज पर उग्र बंगाली,असमिया,तमिल सिख राष्ट्रवादी की तरह हिंदी जाति का विमर्श भी प्रगतिशील विमर्श का हिस्सा रहा है,जो संघ परिवार की नस्ली रंगभेदी विचारधारा के मुताबिक है।
हिंदी क्षेत्र के साहित्यकार संस्कृतिकर्मी हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान के बहुजन विरोधी विचारधारा से अपने को किस हद तक मुक्त रख पाये हैं और उनके कृतित्व में कितनी वैज्ञानिक दृष्टि,कितनी प्रतिबद्धता और कितना सामाजिक यथार्थ है,आलोचकों ने उसकी निरपेक्ष जांच कर ली है तो मुझे मालूम नहीं है।
हम नामों की चर्चा नहीं करना चाहते लेकिन बुनियादी मुद्दों, समाज,जल.जंगल,जमीन,उत्पादन प्रणाली और आम जनता के खिलाफ एकाधिकार कारपोरेट हिंदुत्व के अस्श्वमेधी नरसंहार अभियान के पक्ष में यथास्थितिवाद, आध्यात्म, मिथक, उपभोक्तावादी ,बहुजन विरोधी,स्त्री विरोधी साहित्य सही मायनों में संघ परिवार की विचारधारा से ही प्रेरित है।
असमता और अन्याय की सामंती व्यवस्था के पक्ष में  मुख्यधारा का समूचा साहित्य है, मीडिया है, माध्यम और विधाएं हैं।यह सबसे बड़ा खतरा है।
आजादी से पहले और आजादी के बाद भारतीय भाषाओं हिंदुत्व की विचारधार की जो सुनामी चल रही है,वह साहित्य और संस्कृति,माध्यमों और विधाओं के गांव,देहात,जनपद,कृषि से कटकर महाजनी सभ्यता के मुक्तबाजार हिंदू राष्ट्र में समाहित होने की कथा है।
समूची शिक्षा व्यवस्था हिंदुत्व के एजंडे के मुताबिक है,जिसका मूल स्वर सरस्वती वंदना है।जहां विविधत और सहिष्णुता जैसी कोई बात नहीं है।साहित्य के अध्यापकों और प्राध्यापकों का केसरिया कायाकल्प तो हिंदुत्व के पुनरूत्थान से पहले ही हो गया था कांग्रेसी नर्म हिंदुत्व के जमाने में,इसलिए बजरंगी अब रक्तबीज हैं।
भारतीय भाषाओं में चूंकि आलोचकों और संपादकों की भूमिका निर्णायक है और प्रकाशकों का समर्थन भी जरुरी है,उसके समीकरण अलग हैं,इसलिए संघ समर्थक साहित्य की चीरफाड़ कायदे से नहीं हुई।
अनेक प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष आदरणीय आदतन बहुजनविरोधी,आध्यात्मवादी,सामंती मल्यों के प्रवक्ता,सवर्ण वर्चस्ववादी नायक अधिनायक के सर्जक,सामंती प्रेतों को जगानेवाले,जाति व्यवस्था,शुद्धतावाद,पितृसत्ता,नस्ली वर्चस्व के पैरोकार हैं,जिनकी व्यक्तित्व कृतित्व की हमारे जातिसमृद्ध आलोचकों ने नहीं की है।
इनमें से ज्यादातर प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष लबादे में संघ परिवार के एजंडे को ही मजबूत करते रहे हैं,कर रहे हैं।
उनके पास साहित्यकार नहीं हैं तो हमारे पास कितने साहित्यकार बचे हैं?

क्लासिक साहित्य जनपक्षधर होता तो हिंदी में अज्ञेय से बड़ा जनपक्षधर कोई नहीं होता। संघी विचारधारा और एजंडे के लिए काम करनेवाले शाखाओं में निक्कर पहनकर प्रशिक्षित हों,यह जरुरी नहीं।आयातित हाइब्रिड जल जगंल जमीन से कटी प्रजाति के साहित्यकार बुद्धि्जीवी शाखाओं में गये बिना ही मुक्तबाजारी हिंदुत्व एजंडे के तहत साहित्य संस्कृति पर सवर्ण एकाधिकार वर्चस्व बनाये हुए हैं।ये लोग ही स

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क्लासिक साहित्य जनपक्षधर होता तो हिंदी में अज्ञेय से बड़ा जनपक्षधर कोई नहीं होता।

संघी विचारधारा और एजंडे के लिए काम करनेवाले शाखाओं में निक्कर पहनकर प्रशिक्षित हों,यह जरुरी नहीं।आयातित हाइब्रिड जल जगंल जमीन से कटी प्रजाति के साहित्यकार बुद्धि्जीवी शाखाओं में गये बिना ही मुक्तबाजारी हिंदुत्व एजंडे के तहत साहित्य संस्कृति पर सवर्ण एकाधिकार वर्चस्व बनाये हुए हैं।ये लोग ही संघ परिवार के केसरिया अश्वमेध के गुप्त, घातक सिपाहसालार हैं। जो राजनेताओं से ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि ये ब्रेनवाशिंग रंगरेज हैं।


पलाश विश्वास

संदर्भः


  


Anil Janvijay

July 17 at 3:26am





तारा बाबू का कुछ पढ़ा हो किसी ने तब तो कुछ कहेंगे। पलाश विश्वास ने बिना पढ़े ही सबको संघी घोषित कर दिया, इसीलिए मैंने इनके इस लेख पर कोई जवाब देना ज़रूरी नहीं समझा। इन्होंने गुरुदत्त को भी नहीं पढ़ा है। बस, नाम लिख दिया है

कर्मेंदु शिशिर बंकिम चंद्र के आनंदमठ का हिंदुत्व से कुछ लेना देना नहीं मानते और वे ताराशंकर को क्सालिक मानते हैं और उनके सामंती मूल्यों पर चर्चा से उन्हें आपत्ति हैं।कर्मेंदु एक जमाने में हिंदी के सशक्त प्रतिबद्ध कथाकार माने जाते रहे हैं।इधर के उनके मंतव्यों को देख लें तो समझ में आ जायेगा कि कैसे हमारे तमाम प्रिय लोगों का पक्ष प्रतिपक्ष बदल गया है।मानुषी का स्त्रीपक्ष भी बदल गया है।हम साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इस कायाकल्प की बात कर रहे थे।

मीडिया के केसरियाकरण पर आम सहमति के बावजूद साहित्य और संस्कृति के केशरिया आधार,गढ़ों,किलों और मठों पर कोई विमर्श क्यों नहीं है,मेरा मुद्दा दरअसल यही है।अपवादों की हम चर्चा नहीं कर रहे,राजनीतिक धर्मनिरपेक्षता की बात बी हम नहीं कर रहे।समता,न्याय और सामाजिक यथार्थ की कसौटी पर जनपक्षधर साहित्य की बात हम कर रहे हैं।हमारे लिए शाखा या संघ संस्थानों से जुड़ाव भी कोई कसौटी नहीं है।मनुस्मृति बहाली के सवाल पर साहित्य में संघ परिवार के एजंडा के मुताबिक साहित्य सांस्कृतिक अखिल भारतीय परिदृश्य के अलावा हम इस उपमाद्वीप के जिओ सोशियो इकानामिक पोलिटिक्स के नजरिये से हमेशा अपनी बात रखते आये हैं।

असहमति हो सकती है।आप हमारे तर्कों को सिरे से खारिज कर सकते हैं।इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हम सम्मान करते हैं।हिंदुत्ववादियों के गाली गलौज का भी हम खास बुरा नहीं मानते।जगदीश्वर जी शायद मुझे कोलकाता में होने की वजह से थोड़ा बहुत जानते हैं,जिनके फेसबुक मतव्य पर हमने मंतव्य किया है औय यह मंतव्य कोई शोध पत्र नहीं है कि संदर्भ प्रसंग सहित प्रमाण फेसबुक पर पेश किया जाये।

जनविजय जी ने कह दिया कि मैंने तारा बाबू या गुरुदत्त को पढ़ा ही नहीं है।यानी उनके मुताबिक मैं अपढ़ और लापरहवा दोनों हूं।हम पलटकर यह नहीं कहेंगे कि उ्नहोंने ताराशंकर को पढ़ा नहीं है।विद्वतजन हम जैसे लोगों को अपढ़,अछूत और अयोग्य मानते हैं।जीवन में इसका नतीजा हमें हमेशा भुगतना पढ़ा है।मेरे लिखे का हिंदी जगत या बंग्ला या इंग्लिश इलिट भद्रलोक समुदाय ने कोई नोटिस नहीं लिया है और मुझे अफसोस नहीं है।

चूंकि यह बहस पब्लिक डोमैन पर हो रही है तो मुझे जनविजय जी के इस मंतव्य पर थोड़ा स्पष्टीकरण देना है।कर्मेंदु शिशिर ने यह नहीं लिखा है कि मैंने ताराबाबू को नहीं पढ़ा है,तो इस पर मुझे कुछ नहीं कहना है।जगदीश्वर जी असहमत हैं।

जनविजयजी जिस तरह हिंदी वालों का जन्मदिन याद रखते हैं,इससे लगता है कि वे हिंदी वालों को बहुत खूब जानते हैं।मैं चूंक नोटिस लेने लायक नहीं हूं ,वे मुझे नहीं जानते होंगे और जाहिर है कि मुझे कभी पढ़ा भी नहीं होगा।क्योंकि प्रिंट में मुझे कोई छापता भी नहीं है और न मैं पुस्तकें छपवाने में यकीन रखता हूं,तो यह उनका दोष भी नहीं है।

मैंने थोड़ बहुत पढ़ाई बचपन से लेकर अब तक की है।जनविजय जी को मालूम होना चाहिए कि बंगाली परिवारों में सत्तर के दशक तक रवींद्र नजरुल माइकेल विद्यासागर शरत ताराशंकर का पाठ अनिवार्य दिनचर्या रही है।सत्तर के दशक तक हमने भक्तिभाव से वह सारा साहित्यआत्मसात किया है बंगाली संस्कृति के मुताबिक।यह मेरा कृत्तित्व नहीं है।सामुदायिक,सामाजिक जीवन का अभ्यास है।बाकी सत्तर के दशक में जीवन दृष्टि सिरे से बदल जाने से वह भक्तिभाव नहीं है जो रामचरित मानस,गीता भागवत, पुराण,उपनिषद पाठ का होता है।

यही मेरा अपराध है।

जनविजय जी,क्लासिक साहित्य जनपक्षधर होता तो हिंदी में अज्ञेय से बड़ा जनपक्षधर कोई नहीं होता।मुक्तिबोध ने कहा है कि सरल होने का मतलब जनता का साहित्य नहीं होता।कबीर दास की रचनाओं को हम सरल नहीं कह सकते क्योंकि उसका दर्शन बेहद जटिल है।लेकिन उनका पक्ष जनता का पक्ष है,यह कहने में दिक्कत नहीं है।रामचरित रचने वाले गोस्वामी तुलसी दास का रामायण क्लासिक लोकसाहित्य है लेकिन उनका मर्यादा पुरुषोत्तम हिंदू राष्ट्र का अधिनायक और मनुस्मृति अनुसासन लागू करने वाला है।उनका राम स्त्री विरोधी है।इस सच का सामना करने का मतलब यह कतई नही है कि हम संतों के सामंत विरोधी आंदोलन को खारिज कर रहे हैं।

बहुत कुछ महत्वपूर्ण और क्लासिक लिखा जा रहा है।हमारे समय के दौरान उदय प्रकाश और संजीव ने बहुत कुछ रचा है।संजीव के रचनास्रोतों और उनकी पृष्ठभूमि से मैं परिचित हूं और उदयप्रकाश की रचनाओं की खूब सराहना होने के बावजूद मैंने उसे जनपक्षधर नहीं बताया है।इसी के साथ संजीव को बी मैंने बदलाव का साहित्यकार नहीं माना है।

बांग्ला में अस्सी के दशक के बाद जो कोलकाता केंद्रित साहित्य लिखा जा रहा है,उसके मुकबले हमने हमेशा बांग्लादेश के जनपद केंद्रित या असम,त्रिपुरा,बिहार में लिखे जा रहे बांग्ला साहित्य को बेहतर माना है।इसलिए सुनील गंगोपाध्याय समूह के लेखकों और कवियों के पक्ष में मैं कभी नहीं रहा हूं।

बांग्ला में माणिक बंद्योपाध्याय,महाश्वेता या नवारुण दा को भद्रलोक समाज क्लासिक नहीं मानता और वह ताराशंकर के बाद सीधे सुनील संप्रदाय का महिमामंन करता है जैसे आज भी धर्मवीर भारती अज्ञेय के वंशज हिंदी में मठों के मालिकान हैं।

सत्तर के दशक में हिंदी, बांग्ला,मराठी,पंजाबी साहित्य का जो जनप्रतिबद्ध कृषि क्रांति समर्थक धारा है,वह मुक्तबाजार में किसतरह कारपोरेटमीडिया की तर्ज पर कारपोरेट हिंदुत्व के मूल्यों के अबाध पूंजी प्रवाह में तब्दील है,मेरी मुख्य चिंता इस सांस्कृतिक सामाजिक कायाक्लप की है,जिसकी राजनीतिक अभिव्यक्ति निरंकुश रंगभेदी मनुस्मृति सत्ता है और जिसका धारक वाहक संघ परिवार है।

जरुरी नहीं है कि साहित्य और संस्कृति की यह धारा सीधे तौर पर गुरु गोलवलर और सावरकर विचारधारा से प्रेरित है।सरकारी खरीद,सरकारी अनुदान और पाठ्यक्रम के मुताबिक प्रकाशन तंत्र की वजह से हिंदी में राजबाषा होने की वजह से भारतीय भाषाओं में सबसे ज्यादा पूंजी खपने की वजह से एक अदृश्य सर्वशक्तिमान सवर्ण जातिवादी माफिया तंत्र हैं,जिसमें प्रकाशक,आलोचक और संपादक वर्ग समाहित है।पाठ्यक्रम में किताबों की खरीद तय करने वाले प्राध्यापकों का एक शक्तिशाली तबका भी हिंदी पर कंडली मारे हुए है।लघु पत्रिका आंदोलन के अवसान के बाद इसलिए सरकारी पूंजी से हिंदी में केसरियाकरण या केसरिया कायाकल्प निःशब्द रक्तहीन क्रांति है और इस सच का सामना विद्वतजन करना  नहीं चाहते।

जगदीश्वरजी ने संघ की विचारधारा से जुड़ी रचनाधर्मिता पर सवाल उठाया है,क्लासिक साहित्य पर नहीं।लोकसाहित्य और लोकसंस्कृति के मुताबिक गोस्वामी तुलसीदास बेजोड़ हैं,लेकिन उनका राम स्त्रीविरोधी,अनार्यसभ्यताविरोधी,द्रविड़ विरोध,अस्पृश्यता का समर्थक और हिंदू राष्ट्र की नस्ली विचारधारा का मूल स्रोत है,यह लिखने से आप कहेंगे कि हमने रामायण भी  है


संघी विचारधारा और एजंडे के लिए काम करनेवाले शाखाओं में निक्कर पहनकर प्रशिक्षित हों,यह जरुरी नहीं।आयातित हाइब्रिड जल जगंल जमीन से कटी प्रजाति के साहित्यकार बुद्धि्जीवी शाखाओं में गये बिना ही मुक्तबाजारी हिंदुत्व एजंडे के तहत साहित्य संस्कृति पर सवर्ण एकाधिकार वर्चस्व बनाये हुए हैं।ये लोग ही संघ परिवार के केसरिया अश्वमेध के गुप्त, घातक सिपाहसालार हैं। जो राजनेताओं से ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि ये ब्रेनवाशिंग रंगरेज हैं।



जनविजय जी,आप हमें साहित्य का आदमी नहीं मानते।आपको मालूम होना चाहिए कि मैंने ताराशंकर बंद्योपाध्याय का लिखा हर उपन्यास पढ़ा है और उन पर बनी फिल्में भीि देखी हैं।मैने बहुत पहले अंग्रेजी में एक लेख तारासंकर के रचनासमग्र पर लिखा था,human documentation of hatred:

http://palashbiswaslive.blogspot.in/2008/07/human-documentation-of-hatred.html

ताराशंकर की रचनाएं बंगाल में जमींदार तबके के संकट और औद्योगीकरण की वजह से उत्पादन प्रणाली में जमींदारी और जातिव्यवस्था के टूटन के विरुद्ध है।उनके सबसे मशहूर उपन्यास गणदेवता का चंडीमंडप का चौपाल मनुस्मृति व्यवस्था को बनाये रखने की कथा है क्योंकि जाति अनुशासन तोड़कर गांव के लोग शहरो में जाकर अपना पेशा बदल रहे थे।सत्यजीत राय की फिल्म जलसाघर आपने देखी होगी,जिसमें जमींदारी के पतन का विषाद मुख्यथीम है।गौरतलब है कि बंगाल में स्वराज आंदोलन जमींदारों के पतन और स्थाई बंदोबस्त के टूटने के कारण शुरु हुआ क्योंकि तब तक बंगाल में आदिवासी किसान विद्रोहों और मतुआ आंदोलन की वजह से बहुजन आईंदोलन सवर्ण वर्चस्व को तोड़ने लगा था और तीनों अंतरिम सरकारें गैर सवर्ण दलित मुस्लिम नेतृत्व में थी।

भाषा,शिल्प के मुताबिक ताराशंकर मेरे भी प्रिय कथाकार हैं।उनकी रचनाओं में चरित्रों और परिस्थितियों का जो ब्यौरेवार विश्लेषण चित्रण है,उसका मुकाबला भारतीय साहित्य मे शायद किसी के साथ नहीं हो सकता।बंगाल में सामाजिक यथार्थ उपन्यास में उन्होने ही सबसे पहले पेश किया है।उनकी रचनाएं क्लासिक है,इसमें कोई दो राय नहीं है।

हम उनके पक्ष की बात कर रहे हैं।वे गांधीवादी थे और गांधी की तरह वर्ण व्यवस्था के कट्टर समर्थक थे।उनका मानवतावाद मनुस्मृति का मानवतावाद है जो रामकृष्ण मिशन का मानवता वाद है जो भारत सेवाश्रम से हिंदुत्व से अलग है।

कहने को दर्शन नर नारायण है और आचरण अस्पृश्यता है।

रामकृष्ण मिशन के मानवतावादी हिंदुत्व और कांग्रेस की नर्म हिंदुत्व की राजनीति एक सी है,जिसे किसी भी सूरत में गुरु गोलवलकर या सावरकर की विचारधारा से जोड़ा नहीं जा सकता।यहीं उदार दर्शनीय मानवतावाद और नर्म सनातन हिंदुत्व मनुस्मृति व्यवस्था के लिए संजीवनी है,जो बंगाल के नवजागरण और ब्रह्मसमाजे के बाद रामकृष्ण और विवेकानंद के स्रवेश्वरवाद की वजह से सहनीय हो गया है।इसलिए बंगाल में वैज्ञानिक ब्राह्मणतंत्र के एकाधिकार वर्चस्व के खिलाफ बहुजनों में किसा तरह का कोई विद्रोह आजादी के बाद नहीं हुआ है।यह उत्तरभारत और दक्षिण भाऱत के दलित उत्पीड़न की प्रतिक्रिया में हो रहे दलित आंदोलन के समूचे परिप्रेक्ष्य को बंगाल में अप्रासंगिक बना देता है क्योंकि इस उदार मानवता वाद की वजह से अस्पृश्यता और बेदभाव के अन्याय और असमता के तंत्र पर किसी की नजर जाती नहीं है।यह दलित उत्पीड़न से ज्यादा खतरनाक स्थिति है।

हम आज हिंदुत्व के पुनरूत्थान के लिए गुरु गोलवलकर और सावरकर की तुलना में कांग्रेस की वंशवादी,जमींदारी,रियासती,ब्राह्मणवादी हिंदुत्व को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं।कांग्रेस की यह विचारधारा सबसे ज्यादा बारतीय साहित्य में ताराशंकर के रचनाकर्म में अभिव्यक्त हुई है।जिसका महिमामंडन करने में हिंदी के विद्वतजन भी पीछे नहीं है।यह हिंदुत्वकरण की वैज्ञानिक पद्धति है।जिसकी ज़ड़ें बंगाल में हैं।

यह सच है कि माणिक बंद्योपाध्याय के पुतुल नाचेर इतिकथा और पद्मा नदीर मांझी में अंत्यज जीवन के ब्यौरे की तुलना में ताराशंकर के देहात,जनपद और अंत्यज जीवन के ब्यौरे ज्यादा प्रामाणिक हैं।

इसीतरह महाश्वेता देवी के उपन्यासों की आदिवासी दुनिया के मुकाबले ताराशंकर के आदिवासी ज्यादा असल लगते हैं।लेकिन माणिक और महाश्वेता दोनों सामंती और साम्राज्यवादी मूिल्यों के विरुद्ध थे और किसान आदिवासियों के संघर्ष की कथा तो ताराशंकर के उपन्यासों में है ही नहीं।

ताराशंकर के रचनासमग्र में  सबकुछ जमींदारी प्रथा की शोकगाथा है या मनुस्मृति अनुशासन टूटने का विलाप है।

इसी तरह शरत हर हाल में स्त्री अस्मिता का पक्षधर है लेकिन उनका हर नायक ब्राह्मण है और वे ब्रह्म समाज के कट्टर विरोधी भी थे।इसके विपरीत  किसानों , आदिवासियों के सामाजिक जीवन संघर्ष के साथ उनका साहित्य नहीं है।

इसी वजह से हम उन्हें रवींद्र नाथ और प्रेमचंद के साथ नहीं रखते हैं।

कवि ताराशंकर का  बेहद लोकप्रिय उपन्यास है,जिसपर फिल्म भी बनी है।कवि जाति से डोम है।कवि नायक हैं।लोकसंस्कृति कविगान की पृष्ठभूमि में लिखे इस उपन्यास की पंक्ति दर पंक्ति दर सारी कथा भद्रलोक सवर्ण दृष्टि से है और दलितों ,अछूतों की जीवनशैली के प्रति अटूट घृणा है।

इसीतरह हांसुली बांकेर उपकथा और नागिनी कन्यार काहिनी में वे आदिवासी जीवन का सघन ब्यौरे पेश करते हैं।लेकिन औद्योगीकरण,शहरीकरण और उत्पादन प्रणाली में बदलाव की वजह से आदिवासियों की मुख्यधारा से जुड़ने के वे खिलाफ हैं और उनके पक्षधर हैं।वहां टोटेम आधारित जीवनपद्धति और परंपरागत पेशा में बने रहने पर सारा जोर है।

मजा यह है कि ताराशंकर का समूचा रचना संसार राढ़ बांग्ला की लाल माटी में रचा बसा है और जनपद का इतना प्रामाणिक साहित्य भारतीय भाषाओं में दुर्लभ है,जिसे क्लासिक माना जाता है।हिंदी के लोग भी उन्हें क्लासिक मानते हैं।वे लोग अंग्रेजी के वेसेक्स क्षेत्र केंद्रित उपन्यासों को क्लासिक मानते हैं।लेकिल शैलेश मटियानी या फणीश्वरनाथ रेणु या शानी उनके लिए सिर्फ आंचलिक उपन्यासकार हैं।यह दोहरा मानदंड बी अजब गजब का है।

क्लासिक साहित्य जनपक्षधर हो,यह कोई जरुरी नहीं है।

पूंजीवाद और मुक्तबाजार के पक्ष में क्लासिक साहित्य लिखा गया है।

जार्ज बर्नार्ड शा का एप्पल कार्ट तो सीधे तौर पर लोकतंत्र के खिलाफ राजतंत्र के पक्ष में लिखा गया नाटक है और वे भी क्लासिक हैं।शोलोखोव भी क्लासिक हैं और बोरिस पास्तरनाक भी क्लासिक है।हम गोर्की,दास्तावस्की या तालस्ताय की श्रेणी में शोलोखोव और पास्तरनाक को कहां रखेंगे,काफ्का या यूगो के मुकाबले कामू को कहां रखेंगे,मुद्दा यही है।

अज्ञेय की भाषा अद्भुत है,लेकिन उन्हें हम प्रेमचंद की श्रेणी में नहीं रखते या मुक्तिबोध के समकक्ष नहीं समझते।मोहन राकेश राजेंद्र यादव कमलेश्वर को क्या हम प्रेमचंद के साथ खड़ा पाते हैं,सवाल यही है।

सामाजिक यथार्थ के उपन्यासकार माणिक बंद्योपाध्याय या महाश्वेता देवी की रचनाओं के मुकाबले ताराशंकर ज्यादा पठनीय हैं,ज्यादा शास्त्रीय है,लेकिन वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति के विरुद्ध उनके आरोग्य निकेतन का विमर्श प्रतिगामी है,यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है।

साठ के दशक में हमने गुरुदत्त के तमाम उपन्यास पढ़े हैं।भारत विभाजन की कथा से

लेकर आर्यसमाज की विचारधारा पर केंद्रित उपन्यास और कम्युनिस्ट,गांधी नेहरु विरोधी उपन्यास भी।

इसी तरह नरेंद्र कोहली और आचार्य चतुरसेन को भी हमने खूब पढ़ा है।

कोहली और चतुरसेन की रचनाएं साहित्यिक दृष्टि से ज्यादा समृद्ध थीं और आम जनता पर उसका कोई खास असर नहीं रहा है।गुरुदत्त लेकिन काफी असरदार थे।

क्योंकि आर्यसमाज की हिंदुत्व के पुनरूत्थान में वही भूमिका है जो बंगाल में रामकृष्ण मिशन की है या यूपी में पतंजलि योगाभ्यास की है।

उत्तर भारत के शहरों मे संघ परिवार की शाखा प्रशाखा का विस्तार सरस्वती सिशु मंदिर के साथ साथ आर्यसमाज आंदोलन के साथ हुआ है।गुरुदत्त के तमाम उपन्यासों में गांधी नेहरु की विचारधारा और कम्युनिस्टों के उग्र विरोध के साथ भारत विभा्जन से लिए मुसलमानों और गांधी को जिम्मेदार ठहराया गया है।जो साहित्य में भले ही उपेक्षित रहा हो,लेकिन हिंदी के हिंदुत्ववादी,आर्यसमाजी पाठकों में उसका असर अमिट है।शरणार्थी परिवार से होनेकी वजह से जूनियर कक्षाओं में ये उपन्यास पढ़ते हुए  हम भी कापी विचलित रहे हैं।

आपको शायद हैरत होगी कि हम पिछले चार दशकों से हिंदी,बांग्ला और दूसरी भारतीयभाषाओं के साहित्य का अध्ययन करता रहा हूं।अंग्रेजी साहित्य का विद्यार्थी होने के बावजूद मैंने रूसी,फ्रांसीसी और यूरोपीय भाषाओं का साहित्य ज्यादा पढ़ा है।


मीडिया की तरह साहित्य और संस्कृति के केसरियाकरण जो हो रहा है,अध्यापक प्राध्यापक केंद्रित साहित्य और विमर्श का जो मनुस्मृति बोध है,वह आरएसएस की विचारधारा के मुताबिक है।

मैंने बंगाल के अलावा बांग्लादेश के साहित्य पर भी लगातार अध्ययन किया है ,जो जनपद केंद्रित हैं,बोलियों में लिखा गया है।

हर किसी को आलोचकों,संपादकों और प्रकाशकों के हितों के मुताबिक या खेमाबंदी के तहत महान कह देने वाला मैं नहीं हूं।हालांकि आप सही है कि मेरे लिखे पर आप जैसे विद्वतजन कोई महत्व देना जरुरी नहीं समझते।


प्रांजय को हटाने के पीछे अडानीवाला केस तो बहना है,असल वजह तेल की धार है पलाश विश्वास

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प्रांजय को हटाने के पीछे अडानीवाला केस तो बहना है,असल वजह तेल की धार है
पलाश विश्वास
भड़ासी यशवंत के सौजन्नय से खबर यह है कि एक बड़ी खबर ईपीडब्ल्यू (इकनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली) से आ रही है। कुछ महीनों पहले इस मैग्जीन के संपादक बनाए गए जाने माने पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। माना जा रहा है कि अडानी ग्रुप केे गड़बड़ घोटाले से जुड़ी एक बड़ी खबर छापे जाने और इस खबर पर अडानी ग्रुप द्वारा नोटिस भेजे जाने को लेकर परंजॉय के साथ EPW के प्रबंधन का मतभेद चल रहा था।

समझा जाता है कि प्रबंधन के दबाव में न झुकते हुए परंजॉय गुहा ठाकुरता ने संपादक पद से त्यागपत्र दे दिया। इस घटनाक्रम को कारपोरेट घराने और केंद्र सरकार द्वारा मिलकर EPW प्रबंधन पर बनाए गए दबाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। सच कहने सच लिखने वाले पत्रकारों पर हाल के वर्षों में प्रबंधन का काफी दबाव पड़ता रहा है जिसके फलस्वरूप ऐसे पत्रकारों को इस्तीफा देने को बाध्य होना पड़ा है।

यशवंत ने हाल में घोषणा की है कि भड़ास बंद करने जा रहे हैं।इस खबर के खुलासे से जाहिर है कि वे अपनी आदत से बाज नहीं आयेंगे और मालिकान का सरदर्द बने रहेंगे।प्रांजय को हटाये जाने का अफसोस है।प्रभाष जोशी जब किनारे कर दिये गये और प्रतिबद्ध पत्रकारों का गला जिसतरह काटे जाने का सिलसिला चला है,इसमें नया कुछ नहीं है।बहरहाल यशवंत के जरुरी भड़ासीपन के जारी रहने की उम्मीज जगने से मुझे खुशी है।

 नब्वे दशक की शुरुआत में भी पत्र पत्रिकाओं में संपाद सर्वसर्वा हुआ करते थे।आर्थिक सुधारों में शायद सबसे बड़ा सुधार यही है कि संपादक अब विलुप्त प्रजाति है।बिना रीढ़ की संपादकी निभाने वाले बाजीगरों की बात अलग है,लेकिन प्रबंधन का हिस्सा बनने के सिवाय अभिव्यक्ति की कोई आजादी संपादक को भी नहीं है।

1970 में आठवीं में ही तराई टाइम्स से लिखने की शुरुआत करने के बाद आज 2017 में भी हम जैसे बूढ़े रिटायर पत्रकार की कोई पहचान,इज्जत ,औकात नहीं है क्योंकि संपादकीय स्वतंत्रता खत्म हो जाने के बाद पत्रकारिता की साख ही सिरे से खत्म है।

ईपीडब्लू के गौरवशाली इतिहास और भारतीय पत्रकारिता में उसकी अहम भूमिका के मद्देनजर उसके संपादक के ऐसे हश्र के बाद मिशन के लिए पत्रकारिता करने का इरादा रखने वाले लोग दोबारा सोचें।पत्रकार के अलावा कुछ भी बनें तो कूकूरगति से मुक्ति मिलेगी।

प्रांजय हिंदी में ईपीडब्लू निकालने की तैयारी कर रहे थे।इस सिलसिले में उनसे संवाद भी हुआ है।उनकी पुस्तक गैस वार अत्यंत महत्वपूर्ण शोध है और भारत के राष्ट्रीय संसाधनों की खुली लूट की अर्थव्यवस्था को समझने के लिए यह पुस्तक जरुरी है।

मैंने थोड़ा बहुत कांटेंटशेयर करने की कोशिश की थी,जिसके तुरंत बाद वह सारा का सारा रोक दिया गया।इस पुस्तक का सर्कुलेशन भी रोक दिया गया है।

जाहिर है कि मामला सिर्फ अडानी का केस नहीं है,इसमें तेल की धार का भी कुछ असर हो नहो,जरुर है।यही तेल की धार देश की निरंकुस सत्ता है।

मुश्किल यह है कि प्रबुद्ध जनों को सच का सामना करने से डर लगता है और वे अपने सुविधाजनक राजनीतिक समीकरण के मुताबिक सच को देखते समझते और समझाते हुए झूठ के ही कारोबार में लगे हैं।
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No Parliamentary relief for Darjeeling Hills and Indian politics shows unprecedented apathy against the Himalayan region and its people under serious threat of greater calamity! Palash Biswas

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No Parliamentary relief for Darjeeling Hills and Indian politics shows unprecedented apathy against the Himalayan region and its people under serious threat of greater calamity!
Palash Biswas

No end of violence in Darjeeling Hills.Protesters torch police vehicle, set govt buildings on fire!No Parliamentary relief for Darjeeling Hills and Indian politics shows unprecedented apathy against the Himalayan region and its people under serious threat of greater calamity!
According to police reports, century-old community hall and a TMC party office in the Darjeeling hills were set ablaze by pro-Gorkhaland supporters earlier in the day as the indefinite shutdown for a separate state entered its 35th day.
Parliament session is not going to help the common people of Darjeeling.Mamata Banerjee wrote about her concern on chicken corridor which connects Assam and Northeast with rest of India.Mamata as well as Mahbooba Mufti have spoken a lot about Chinese hand in Kashmir and Darjeeling hills.
Meanwhile,Netaji Mulayam Singh Yadav declared rather quite unexpectedly that China is the enemy of India,not Pakistan.
Sikkim stand off is still heralding greater challeng to India`s security,unity and integrity while the entire Himalayan range has become quite volatile.It is reported in media that Bhutan has demanded via diplomatic channels that India and China ,both should remove ther armies frmom Dokalm.It is not official however.But it seems taht bilateral border issue between China and Bhutan has ironically become the bone of contention to create major calamity in the Himalayan region accross the border.
On the other hand ,Darjeeling burns have no impact in power circles in New Delhi as well as Kolkata even if human rights are killed,the game should contnue.
ABP Anand reports:
দার্জিলিং: অশান্তির বিরাম নেই পাহাড়ে। লেগেই আছে ভাঙচুর, আগুন। ফের পুড়িয়ে দেওয়া হল পুলিশের গাড়ি। হামলা চলল কার্শিয়ঙের শতাব্দী প্রাচীন কমিউনিটি হলে। প্রতিটি ক্ষেত্রেই মোর্চার বিরুদ্ধে অভিযোগ উঠলেও, তা অস্বীকার করেছে মোর্চা। ২১ জুলাই পাহাড়ে ধিক্কার দিবসের ডাক নারী মোর্চার।
একদিকে, বনধে অনড় মোর্চা। অন্যদিকে, পাহাড় জুড়ে অশান্তির আগুন। সব মিলিয়ে বিপর্যস্ত পাহাড়বাসীর জনজীবন। মঙ্গলবারের ধুন্ধুমারের পর পরিস্থিতি বদলাল না বুধবারও। মঙ্গলবার গভীর রাতে দার্জিলিংয়ের জজবাজারে তৃণমূলের পার্টি অফিস ভাঙচুরের পর আগুন লাগিয়ে দেওয়া হয়। আর বুধবার সকালে, ওই জায়গায় পোড়ানো হয় পুলিশের গাড়ি।
অশান্তি চলেছে পাহাড়ের অন্য অংশেও। মঙ্গলবার গভীর রাতে কার্শিয়ঙের শতাব্দীপ্রাচীন, রাজ রাজেশ্বরী কমিউনিটি হলে আগুন লাগিয়ে দেওয়া হয়। দমকলের ২টি ইঞ্জিন ঘটনাস্থলে পৌঁছনোর আগেই পুড়ে ছাই হয়ে যায় গোটা কমিউনিটি হলটি।
ওই একই সময় কার্শিয়ঙেই, রাজ্য সরকারের একটি ট্যুরিস্ট লজের রান্নাঘরে আগুন লাগানো হয়। শুধু তাই নয়, রাতের অন্ধকারে দুষ্কৃতীরা আগুন লাগায়, কালিম্পঙের আলগারার কাগ এলাকার পঞ্চায়েত অফিসে!
এদিন সকালে পোখরিয়াবঙ্গে পুলিশের সঙ্গে গোর্খাল্যান্ড আন্দোলনকারীদের সংঘর্ষ বাঁধে! প্রতিটি ক্ষেত্রেই মোর্চার বিরুদ্ধে অশান্তি পাকানোর অভিযোগ উঠলেও, তা উড়িয়ে দিয়েছে তারা। গোর্খা জনমুক্তি মোর্চার কেন্দ্রীয় কমিটির সদস্য সুষমা রাইয়ের দাবি, পাহাড়ে আগুন, অশন্তির নেপথ্যে মোর্চার হাত নেই, সরকারের ব্যাপার, কারা করছে দেখুক।
এই প্রেক্ষাপটে দলীয় সমর্থকদের মৃত্যুর প্রতিবাদে এদিন দার্জিলিঙে মিছিল করে নারী মোর্চা। চকবাজারে একটি সমাবেশ করা হয়। আগামী ২১ জুলাই, কলকাতায় যখন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় শহিদ সমাবেশ করবেন, তখন পাহাড়ে ধিক্কার দিবস পালন করবে নারী মোর্চা। সুষমা রাই বলেন, পাহাড়ে অশান্তি ৯ জন আন্দোলনকারী মারা গেছে, যার জন্য ২১ তারিখ নারী মোর্চার তরফে ধিক্কার দিবস পালন করা হবে। মৃত্যুর কারণ খুঁজতে সিবিআই চাই। মমতার শহিদ দিবস পালনের অধিকার নেই।
কী হবে পাহাড়ের ভবিষ্যত? কবেই বা শান্তি ফিরবে? এখন সেই প্রশ্নগুলিই ঘোরাফেরা করছে সাধারণ পাহাড়বাসীর মনে।

साहित्य और कला माध्यमों का माफिया मीडिया तो क्या राजनीति के माफिया का बाप है। --पलाश विश्वास

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सबसे बड़ा सच यही है मीडिया तो झूठन है,जिसे पेट खराब हो सकता है,लेकिन दिलों और दिमाग को बिगाड़ने में साहित्य और कला माध्यम निर्णायक है और वहां बी संघ परिवार का वर्चस्व है।संघ परिवार के लोग ही धर्निरपेक्ष प्रगतिशील भाषा और वर्तनी में आम जनता के केसरियाकरण का अभियान चलाये हुए हैं।
साहित्य और कला माध्यमों का माफिया मीडिया तो क्या राजनीति के माफिया का बाप है।

--पलाश विश्वास
समय की चुनौतियों के लिए सच का सामना अनिवार्य है।आम जनता को उनकी आस्था की वजह से मूर्ख और पिछड़ा कहने वाले विद्वतजनों को मानना होगा कि हिंदुत्व की इस सुनामी के लिए राजनीति से कहीं ज्यादा जिम्मेदार भारतीय साहित्य और विभिनिन कलामाध्यम हैं।राजनीति की जड़ें वहीं हैं।भारत में हिंदुत्व की राजनीति में गोलवलकर और सावरकर की बात तो हम करते है,लेकिन बंकिम के महिमामंडन से चूकते नहीं है।गोलवलकर,सावरकर,हिंदू महासभा और संघ परिवार से बहुत पहले ईस्ट इंडिया कंपनी के राज के पक्ष में बंकिम ने आदिवासी किसान बहुजनों के विरोध में जिस हिंदुत्व का आवाहन किया,वही रंगभेदी दिंतुत्व की राजनीति और सत्ता का आधार है।
ताराशंकर बंद्योपाध्याय जमींदारों और राजा रजवाड़ों के सामंती वर्चस्व के वर्णव्यवस्था समर्थक कांग्रेसी नर्म हिंदुत्व के साहित्य के सर्जक है।
अब यह कहना कि बंकिम और विवेकानंद संघ परिवार के न हो जायें तो हमें अपने पाले में बंकिम और विवेकानंद चाहिए और हम उन्हें धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील हिंदुत्व का आइकन बना दें या ताराशंकर जैसे साहित्यकार को हम संघ के पाले में जाने न दें।
जो जनविरोधी उपभोक्तावादी जनपद और जड़ों से कटा साहित्य है,उसका महिमामंडन करने से हालात नहीं बदलेंगे।अगर हालत बदलने हैं तो प्रतिरोध की परंपरा की पहचान जरुरी है और उसे मजबूत करना,आगे बढ़ाना अनिवार्य है।
हिंदी के महामहिम लोग अपने गिरेबां में पहले झांककर देखे कि हमने प्रेमचंद और मुक्तिबोध की परंपरा को कितना मजबूत किया है।
संघ परिवार साहित्यऔर कला माध्यमों में कहीं नहीं है और सिर्प केसरिया मीडियाआज के हालात के लिए जिम्मेदार है,कम से कम मैं यह नहीं मानता।अभी तो ताराशंकर और बंकिम की चर्चा की है,आगे मौका पड़ा तो बाकी महामहिमों के सच की चीरफाड़ और उससे कहीं ज्यादा समकालीनों के मौकापरस्त सुविधावादी  साहित्य का पोस्टमार्टम भी कर दूंगा।
उतना अपढ़ भी नहीं हूं।मेरे पास कोई मंच नहीं है।इसलिए यह न समझें कि कहीं मेरी बात नहीं पहुंचेगी।सच के पैर बहुत लंबे होते हैं।
सबसे बड़ा सच यही है मीडिया तो झूठन है,जिसे पेट खराब हो सकता है,लेकिन दिलों और दिमाग को बिगाड़ने में साहित्य और कला माध्यम निर्णायक है और वहां बी संघ परिवार का वर्चस्व है।संघ परिवार के लोग ही धर्निरपेक्ष प्रगतिशील भाषा और वर्तनी में आम जनता के केसरियाकरण का अभियान चलाये हुए हैं।
साहित्य और कला माध्यमों का माफिया मीडिया तो क्या राजनीति के माफिया का बाप है।

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