नैकडोर यानि नेशनल काॅन्फेडेरेशन आॅफ दलित आदिवासी आॅर्गेनाइजेशन्स द्वारा अखिल भारतीय मजदूर यूनियन का निर्माण और उसकी बिहार से शुरुआत की घोषणा.
आठ अगस्त को बिहार की राजधानी पटना में हजारों की संख्या में सम्पूर्ण बिहार से आये मनरेगा मजदूरों की मौजूदगी में नेशनल काॅन्फेडेरेशन आॅफ दलित आदिवासी आॅर्गेनाइजेशन्स (नैकडोर) ने मनरेगा मजदूरों के शोषण, पंचायतों द्वारा काम देने में कोताही, मनरेगा प्रसाशन में नीचे से ऊपर तक व्याप्त भ्रष्टाचार और गरीब मजदूरों की मजदूरी की हकमारी के खिलाफ अखिल भारतीय मनरेगा मजदूर यूनियन के गठन और उसकी शुरुआत की घोषणा की. अखिल भारतीय मनरेगा मजदूरों के इस पहले अखिल भारतीय मनरेगा मजदूर सम्मलेन को बिहार के अखिल भारतीय मनरेगा मजदूर नेताओं सहित नैक्डोर के विभिन्न प्रदेशों के प्रदेश अध्यक्षों ने भी संबोधित किया. सम्मलेन को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय मनरेगा मजदूर यूनियन और नैक्डोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती ने मजदूरों का आवाहन किया की वह डॉ आंबेडकर के मजदूरों के सम्बन्ध में दिए गए आदेश का हमेशा ध्यान रखें और न्याय और सम्मानपूर्ण मजदूरी के अलावा देश और राज्य की सत्ता पर अपने विधायकों, सांसदों और मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनाने का सपना और हौसला रखें.
सम्मलेन को नेशनल अलायंस फॉर लेबर राईट के राष्ट्रीय संयोजक राजेश उपाध्याय, पूर्व मंत्री संजय पासवान, पैक्स की आरती वर्मा, नैक्डोर के विभिन्न प्रदेशों के अध्यक्ष जैसे हरियाणा सुरेश टांक, ओडिशा के अशोक मालिक, झारखण्ड के लल्लन प्रसाद, बिहार के गणेश गौतम, बुंदेलखंड से सुषमा वर्मा, उत्तर प्रदेश से अमरनाथ, पश्चिम बंगाल से गौर गोपाल, जन सम्मान मोर्चे की पिंकी पंचाल, राष्ट्रीय दलित महिला आन्दोलन की महासचिव और नैक्डोर के महिला मोर्चे की संयोजिका सुमेधा बौद्ध सहित नैक्डोर के मनरेगा के संघर्ष के अनेकों सिपाहियों ने अपने संघर्ष और उसकी जीत को सबके सामने रखा.
ज्ञातव्य है कि नैक्डोर सन 2004 से ही रोज़गार गारंटी के कानून की लड़ाई लड़ने में आगे रहा है. नैक्डोर के तत्वावधान में सन 2004 में दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में 4 - 6 दिसंबर 2004 को आयोजित तीन दिवसीय रैली में कानून बनाने की मांग की गयी थी, जिसके 10 दिन बाद सरकार ने कैबिनेट में मनरेगा बनाने का प्रस्ताव पारित किया था. नैक्डोर ने उत्तर प्रदेश में सन 2006 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश में मनरेगा लागू करने का विरोध कर रहे थे, तो नैक्डोर ने बाईस जिलों में 4 रोज़गार अधिकार यात्राएं निकाली थीं और लखनऊ में एक भारी रैली कर मुख्यमंत्री को इसे लागू करने के लिए बाध्य किया था.
पिछले कुछ समय से सरकारें जान बूझ कर मनरेगा के तहत काम देने से चोरी कर रही हैं और इसमें मिलने वाला रोज़गार लगातार कम हो रहा है. दलितों और आदिवासियों और खेतिहर मजदूरों के हिसाब से यह एक बहुत ही जरूरी कानून और अधिकार है जिसने दशकों से खेत मजदूरों की मजदूरी में किसानों को वृद्धि करने के लिया बाध्य किया है. नैक्डोर मानता है की मनरेगा की सफलता भारत की इकॉनमी और उसकी ग्रोथ के लिए जरूरी है. | |
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