प्यारे प्रधानमंत्री जी, आपके भाषण से भभूत तक – पीएम को पाती
सेवा में,
प्रिय विदेश , परिधान, प्रधान-सेवक, प्रधान मंत्री,
भारतीय जनता पार्टी, आर एस एस, भारत सरकार,
इंदरप्रस्थ दिल्ली।
विषय – आपके भाषण से भरोसे, जाति से जेल, सेवा से सरकार और भाषा से भभूत तक के सम्बंध में
महोदय,
आपको प्रधानमंत्री कहना चाहता हूं तो थोड़ा लम्बा हो जाता है, पीएम कहता हूं तो बहुत ही छोटा लगता है फिर प्राइम मिनिस्टर कहता हूं, तो आप की अंग्रेज़ी याद आती है। किसी ने कहा कि आप विदेश मंत्री के तौर पर ज़्यादा सहज महसूस करते हैं, तो फिर किसी ने बताया कि आप ख़ुद को प्रधान सेवक बताते हैं लेकिन फिर मुझे याद आया कि विदेश मंत्री तो सुषमा स्वराज हैं…कम से कम ललित मोदी वाले मामले के बाद तो यह स्पष्ट ही और प्रधान सेवक आप हो नहीं सकते हैं, क्योंकि इस देश के लगभग एक तिहाई लोग तन नहीं ढंक पाते हैं, और जितने मूल्य का आपका एक कुर्ता होता है, उतने में इस देश के 5 गरीब परिवारों का एक महीने का घर चलता है। इसलिए सिर्फ महोदय लिख कर काम चला लेता हूं, वैसे भी आपको क्या फ़र्क पड़ता है कि आपको क्या कहा जा रहा है…2002 से लेकर आज तक न जाने क्या-क्या कहा गया आपको कभी फ़र्क़ पड़ा क्या? हां, कहने वालों को ही पड़ता रहा और अभी भी पड़ रहा है।
ख़ैर महोदय, आपका आज का गया वाला भाषण (गया शहर है, क्रिया न समझें) सुना। देखने का समय नहीं था, सो सुनता रहा और आपकी आवाज़ में वैसे भी जो नशा है…वो और कहां है…इसको सुनकर ही मैं समझ सका कि आखिर क्यों गुजरात को ड्राई स्टेट घोषित करना पड़ा, भई जहां पहले ही आपकी आवाज़ गूंज रही हो, वहां और नशा कर के लोगों का न जाने क्या हाल होता? लेकिन बात गुजरात की क्यों की जाए, भले ही वहां किसान आत्महत्या कर रहे हों, भले ही आदिवासियों और किसानों की ज़मीनों का ज़बरन अधिग्रहण हो रहा हो, भले ही गरीबी और कुपोषण की स्थिति खराब हो, भले ही अपराध वहां बढ़ जाए, भले ही गुजरात पर सकल ऋण में भयंकर बढ़ोत्तरी हो गई हो और भले ही वहां पर सूखा पड़ रहा हो, आपसे क्या मतलब? भई अब कोई आप थोड़े ही गुजरात के प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री हैं…आप से क्या मतलब आप तो भारत के प्रधानमंत्री हैं और जब 2014 में मुहम्मद बिन कासिम, पाकिस्तान से भारत पर हमला करने आया था, तो सीमा पर स्थित मध्य प्रदेश में आपने ही तो वीरता से उससे लोहा लेकर, उसे वापिस अपने वतन कश्मीर लौटने पर मजबूर कर दिया था। इस तथ्य को लेकर आप मेरे इतिहास के ज्ञान पर अंगुली न उठाएं, क्योंकि मैंने भी कभी आपके इतिहास के ज्ञान पर…ख़ैर जाने दीजिए, आप भी न…
लेकिन महोदय आपकी सरकार होते हुए भी पाकिस्तान की इतनी हिम्मत हो गई है कि अपने देश में हुए व्यापमं घोटाले के गवाहों और आरोपियों को मध्य प्रदेश में घुस कर मार रहा है और आप सेना को पाकिस्तान पर हमला करने का आदेश भी नहीं दे रहे हैं। यही नहीं, आपने गुजरात-मुंबई और मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी आतंकवादी याक़ूब को फांसी तो दिलवा दी, लेकिन सिर्फ एक फांसी से ये आतंकवाद कैसे ख़त्म होगा? इसके लिए तो और भी कड़ा कदम उठाना ही होगा, हालांकि हम जानते हैं कि इसका कड़ा जवाब देने के लिए आप ने कश्मीर में पीडीपी से गठजोड़ किया है और पंजाब में भी आप खालिस्तान के समर्थकों के साथ हैं, ज़ाहिर है देश की एकता और सम्प्रभुता के लिए यह एक बड़ा कदम है। लेकिन विपक्ष आपको चैन से काम ही नहीं कर दे रहा है, बार-बार ललित मोदी का मुद्दा उठा रहा है, उसे यह समझ ही नहीं आता कि यह तो मुद्दा ही 'विदेश'मंत्रालय का है, इससे देश का क्या सरोकार? पर आप जिस चतुराई से ऐसे मूर्खतापूर्ण सवालों को चुप रह कर टाल जाते हैं, बिल्कुल ठीक करते हैं। काश, आपकी ही तरह मनमोहन सिंह भी मौन साधना जानते होते, तो आज कांग्रेस के 45 सांसद ही न रह जाते।
लेकिन फिर आज आपका भाषण सुना, वही, जो गया में दिया 'गया'…सुन कर ऐसा आह्लाद हुआ कि आप सामने होते तो आपको गले लगा लेता, हां, ठीक वैसे ही जैसे आप ने ओबामा, रामविलास पासवान, पप्पू यादव और तो और नवाज शरीफ को भी गले लगा लिया था। आप ने आज जिस तरह से तमाम विकास के सरकारी आंकड़ों, दरों और दस्तावेजों के उलट बिहार को बीमारू राज्य बताया है, मुझे बिल्कुल गुजरात की याद आ गई। वहां भी बिल्कुल ऐसे ही तथ्य और आंकड़े हुआ करते थे, लेकिन ये होता है अनुभव…और गुजरात के अनुभव के कारण ही आप तुरंत समझ गए कि बिहार के आंकड़े भी फ़र्जी ही हैं। लेकिन सबसे तीखा हमला और अपने अनुभव का प्रमाण आपने तब दिया, जब मंच पर मौजूद अमित शाह, के सामने आपने लालू प्रसाद यादव के जेल से लौटने पर, बताया कि किस प्रकार जंगलराज पार्ट 2 में तबाही हो जाएगी…क्योंकि जेल से लौटा आदमी और बड़ा अपराधी हो चुका होता है…ज़ाहिर है अमित शाह जी भी मंच पर ही थे, और जेल से लौटे आदमी के साथ काम करने का अनुभव भी आपके पास नीतिश कुमार से तो ज़्यादा ही है, वो तो अब लालू जी के साथ चुनाव लड़ रहे हैं, आप लोग तो दो हंसों की जोड़ी…माफ कीजिएगा करीबी दोस्त, सखा और एक ही पार्टी के दो फेफड़े हैं। अब आप लोगों से बेहतर जंगलराज और जेल के साझा असर को कौन जान सकता है?
लेकिन सिर्फ अनुभव ही नहीं, मुझे आपकी साफगोई भी बड़ी प्यारी लगी, आपने जिस तरह से लोगों को ये समझाया कि राज्य में बीजेपी की सरकार नहीं होगी, तो केंद्र उनकी मदद नहीं करेगा, देश के लोकतंत्र के इतिहास में ईमानदारी की क्रांतिकारी घटना है। फिर अनुभव तो आपको इसका भी है, दिल्ली में जिस तरह से आप वहां के लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार से मौज लेकर, लोकतंत्र का सम्मान कर रहे हैं, इसको कौन नहीं जानता। मुझे लगता है कि जहां सच नहीं है, वहां लोकतंत्र कैसा? और फिर पहला लोकतंत्र तो देश के पीएम का ही बनता है, नागरिक वगैरह तो अपना लेते रहेंगे लोकतंत्र…वैसे भी सबके पास अपना-अपना लोकतंत्र तो है ही…कार वाला, स्कूटर वाले पर अपना लोकतंत्र चला लेता है, स्कूटर वाला साइकिल वाले पर…और पैदल वाले सड़क पर बैठे भिखारी, चाय वाले नहीं तो घर जा कर पत्नी पर लोकतंत्र की आज़माइश कर ही लेता है। लोग सड़क पर कहीं भी थूक सकते हैं, मूत सकते हैं और गाली-गलौज कर सकते हैं…अब इससे ज़्यादा लोकतंत्र किसी को क्यों चाहिए होगा भाई? बल्कि अब तो ये लोकतंत्र सोशल मीडिया पर भी आपके समर्थकों ने हासिल कर ही लिया है…और फिर जो हासिल न किया, वह लोकतंत्र कैसा? प्याज़ महंगा है, तो टमाटर में लोकतंत्र ढूंढो…नहीं तो नमक रोटी में ढूंढो…अपना-अपना लोकतंत्र होना ही चाहिए…डीपेंडिंग अपॉन इंडीविजुएल…सबका साथ-सबका विकास…
इसके अलावा मैं तो आपकी सरकार के बीफ़ बैन के फैसले से भी बहुत खुश था…मुझे तो एक पल के लिए इतना आह्लाद हुआ कि ओह, कई बड़े नेता जैन समुदाय से आते हैं, तो पूरे मांसाहार पर ही रोक लग जाएगी…लेकिन फिर मुझे याद आया कि भई, फिर सब लोग शाकाहारी हो जाएंगे तो सब्ज़ियां महंगी नहीं हो जाएंगी? मैं हैरान था कि कैसे आप ने सिर्फ बीफ़ पर रोक लगा कर लेकिन पोर्क से लेकर मटन-चिकेन-मछली तक सब बिकने दे कर, न केवल पशुओं के प्रति दया का प्रदर्शन किया बल्कि सब्ज़ियों की कीमत भी बढ़ने से रोक ली…यही नहीं, अब देश बीफ के एक्सपोर्ट में नम्बर वन हो गया है, अगर सब यहीं खा लिया जाता, तो फिर एक्सपोर्ट कैसे किया जाता?
फिर आप ने जब पोर्न पर रोक लगाई तो मुझे लगा कि अब इस देश की मुक्ति का रास्ता खुलेगा…इसके पहले गजेंद्र चौहान की फिल्में कोई इसलिए नहीं देखता क्योंकि उनके पास पोर्न उपलब्ध था, लेकिन पोर्न पर बैन लगने के बाद मजबूरी में पोर्न के शौकीनों को उनकी पुरानी फिल्में देखनी पड़ती और तब ही तो वो जान पाते न कि आखिर क्यों गजेंद्र चौहान को एफटीआईआई का अध्यक्ष चुना गया। लेकिन ये देश के युवा भी न…वामपंथियों के बहकावे में आ गए हैं, इनको असली चीज़ ही देखनी है…सॉफ्ट पोर्न नहीं चाहिए…अब ये आज़ादी क्या होती है? बताइए इतनी आज़ादी ही होती, तो युधिष्ठिर को सॉफ्ट पोर्न करना पड़ता… कहीं अच्छी फिल्में कर के, थोड़ा नाम कमा के चुनाव जीतने-जिताने लायक नहीं हो जाते क्या? और चुनाव जीतने-जिताने लायक होते, तो चोर दरवाज़े से एफटीआईआई में भेजना पड़ता?
प्रधानमंत्री जी, मैं आपका मन की बात वाला कार्यक्रम भी नियमित सुनता हूं, आपसे व्यक्तिगत तौर पर मिल कर यह बताना चाहता था कि उसे सुन कर न केवल मेरा इतिहास का ज्ञान, चरम पर चला गया है…बल्कि मेरा पुराना माइग्रेन और अनिद्रा की बीमारी भी ठीक हो गए हैं। आपके इस रेडियो कार्यक्रम की अद्भुत चिकित्सा शक्ति का भान मुझे तब हुआ, जब इसे सुन कर सुबह 11 बजे भी मुझे तेज़ नींद आ गई और मैं इसे सुनते-सुनते ही सो गया…फिर मैंने इसकी ऑनलाइन रेकॉर्डिंग को रात को सोने के ठीक पहले सुनना शुरु किया और आप यकीन मानिए, 'मेरे प्यारे देशवासियों'के बाद आपने क्या कहा, मुझे याद भी नहीं रहा…और फिर उसके बाद से, मैं आपके कार्यक्रम की रेकॉर्डिंग को नींद की दवा की तरह, तब तक इस्तेमाल करता हूं, जब तक कि आप बाज़ार में नई गोली लांच नहीं कर देते हैं। मैं इतनी गहरी नींद सोता हूं कि अब मज़ा ही आ जाता है…यही नहीं मेरे घर के पास का चंदू, जो दिन भर मजदूरी के बाद लगभग रोज़ भूखा या एक-दो रोटी खा कर ही सोता है, वह भी मुझसे अपने मोबाइल में आपकी रेकॉर्डिंग ले गया है। कह रहा था, "खाली पेट नींद तो आती नहीं, ये सुनता हूं तो ट्रांस में चला जाता हूं"सुना है कि विदर्भ में भी आपके कार्यक्रम की रेकॉर्डिंग की मांग बढ़ गई है। लेकिन कुछ बेवकूफ हैं, जिनको आप से ये शिकायत है कि आप फलां बात पर कार्यक्रम में नहीं बोले…अरे कौन सुनता ही है कार्यक्रम को मीडिया वालों के अलावा…वैसे भी ये मीडिया वाले, इन्हें आपकी हर बात से दिक्कत है…
ख़ैर आज आपके भाषण के बाद मैं सिर्फ आपको ही गले नहीं लगाना चाहता हूं, मैं उस शख्स को भी गले लगाना चाहता हूं जो 2013 में लोकसभा चुनाव प्रचार से आज तक आपके भाषण लिख रहा है। मुझे यक़ीन है कि ये भाषण एक ही शख्स लिख रहा है, क्योंकि प्रत्याशी से प्रधानमंत्री बनने तक, आपके भाषणों की शैली, स्तर और ज्ञान में कोई अंतर नहीं आया है। आज भी आप भाषण देनें खड़े होते हैं, और धारा प्रवाह बोलते जाते हैं, तो बस तक्षशिला भारत में आ ही जाता है। कोई बात नहीं आप की सरकार रही, तो आप हमला कर के ले ही आएंगे…बस अपने भाषण लिखने वाले शख्स से कहिएगा कि वह इतिहास और तथ्य को लेकर उड़ने वाले मज़ाक से आहत न हो…उसे पता नहीं, वह इतिहास बदल रहा है…इतिहास गढ़ रहा है…नया इतिहास लिख रहा है, ये कोई मामूली काम नहीं है…और इसीलिए ये आपकी सरकार का, आरएसएस का और आपके भाषणों के लेखक का स्तुत्य योगदान है, जो देश को फिर से सतयुग में ले जाएगा…मुझे विश्वास है कि आप तब भी राजा रहेंगे और हम सब आपकी प्रजा…फूलहिं फलहिं विटप विधि नाना टाइप देश में सब कुछ सतयुग टाइप फील होगा…मैं आप में और आपकी क्षमताओं में पूरा विश्वास रखते हुए आज 1526 में देश से मुगलों को भगा कर, यहां राष्ट्रवादी लोकतांत्रिक सरकार स्थापित करने की शपथ खाता हूं…ठीक वैसे ही जैसे महात्मा गांधी मे अमरीका को ब्रिटेन से आज़ाद करवाया था…चलिए सब मिल कर नया इतिहास लिखते हैं…
बाकी क्या है, इस बार विदेश जाइएगा, तो एक डियो की बोतल एक्स्ट्रा ले आइएगा।
आपका,
एक अदना सा इतिहास का शोधार्थी
प्रशंसक
फैन
दीवाना
'भक्त'
Mayank Saxena
मयंक सक्सेना
लेखक ने पत्रकारिता की शुरुआत रेडियो से की, फिर टीवी में आए। एक दशक से सक्रिय, तमाम पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। एक्टिविस्ट राइटर हैं और अब नौकरी को प्रणाम कर के, स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।
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