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तीन समाचार चैनलों को केंद्र सरकार के नोटिस पर बीईए की भावना आहत हुई है। उसने बयान जारी कर के इसकी निंदा की है। बीईए यानी समाचार चैनलों के संपादकों का संगठन। याद करें कि इसी बीईए में कोयले से दगाये सुभाष चंद्रा के मैनेजर और हिसार सहवासी सुधीर चौधरी कोषाध्यक्ष हुआ करते थे। जब तुर्कमान गेट पर एक महिला शिक्षक को पीटने वाला मामला घटा था जिसके जिम्मेदार सुधीर चौधरी ही थे, तब उन्हें बीईए का कोषाध्यक्ष बनाए रखा गया था। कोयला घोटाला में रिश्वतखोरी का स्टिंग सामने आने के बाद इन्हें आइआइएमसी यानी भारतीय जनसंचार संस्थान के अलुमनाइ संघ का अध्यक्ष नामित किया गया। जब हल्ला मचा तो इन्हें चुना नहीं गया, लेकिन इनकी जगह कथित यौन दुराचार और यूएनआइ घोटाले में लिप्त मुकेश कौशिक को बैठा दिया गया।
तब तक हालांकि मीडिया के एक बड़े चेहरे पुण्य प्रसून वाजपेयी चौधरी का बचाव कर के अपनी नैतिक ज़मीन खो चुके थे। उन्होंने ज़ी न्यूज़ के प्राइम टाइम पर चौधरी की गिरफ्तारी को ''इमरजेंसी'' बता दिया। यह बात अलग है कि इसके बाद वे आज तक चले गए।
आज केंद्र सरकार से नोटिस मिलने पर जब ऐसे चेहरे, ऐसे संगठन उसका विरोध करते हैं और इसे पत्रकारिता का आपातकाल बताते हैं, तो मुझे हंसी क्यों न आए? आप एक दलाल की गिरफ्तारी को भी इमरजेंसी बताएंगे, केंद्र के डंडे को भी। आप एक दलाल को कोषाध्यक्ष बनाएंगे और नोटिस का विरोध करेंगे। यह जानते हुए कि आने वाली सत्ता फासिस्ट है, आप उसे लाने के लिए जान लड़ा देंगे। इन बड़े लोगों के कितने मुंह हैं भाई? मुंह के अलावा ये लोग और कहां-कहां से बोलते हैं? ये लोग जैसा बोये हैं, वैसा ही काट रहे हैं। महाभोज आपने छका था, उलटी भी आप ही करिए। हमारा हाज़मा तो दरुस्त है।