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मुझे रह-रह कर लगता रहा है कि यह देश अद्भुत है। इस अद्भुत देश में ''राधे मां'' नाम की एक अद्भुत महिला के कथित कानूनी अपराध को मीडिया ने जिस तरह से एस्थेटिक्स के सवाल में तब्दील कर डाला है, वह भी अद्भुत है। एक महिला के पहनावे, सजावे, रहन-सहन, नाचने-गाने और बोलने-बतियाने पर लोग खुलेआम मौज ले रहे हैं। तकरीबन सभी हिंदी चैनलों ने फोन पर इस महिला और किसी व्यक्ति के बीच जिस बातचीत को प्रसारित किया है, उसमें स्पष्टत: यौन-संकेत शामिल हैं। अद्भुत बात है कि 'लेने' और 'देने' पर केंद्रित यह सुदीर्घ फोन-संवाद चैनलों ने न सिर्फ सुनाया, बल्कि लिखकर भी चलाया है।
सबसे ज्यादा अद्भुत इस देश के स्त्रीप्रेमी लोग हैं जिन्हें सोमनाथ भारती की ''सुंदर महिला'' वाली टिप्पणी तो सेक्सिस्ट समझ में आती है, लेकिन जो ''राधे मां'' पर चुप हैं। जिस देश में सैकड़ों की संख्या में महाकुंभ में एक साथ उछलते, कूदते, तलवारें भांजते और नहाते नंगेपुंगे नागा बागाओं को धर्म-अध्यात्म का वाहक माना जाता है, वहां कोई स्त्री अगर धर्म के नाम पर खूबसूरत ठगी कर रही है तो आपको बुरा क्यों लग रहा है भाई? नंगा बाबा चलेगा लेकिन मिनी पहनने वाली बाबी नहीं? क्यों भई? क्या इस स्त्री के साथ हो रहे सार्वजनिक मज़ाक पर स्त्रीवादी सिर्फ इसलिए चुप हैं कि कहीं उन्हें अगंभीर न करार दे दिया जाए? और क्या वजह है?