भारतीय वामपंथियों की असल समस्या वैचारिक और निजी दोनों तरह की है। वे समझते हैं, पूरी दुनिया और समाज को सिर्फ वही सही ढंग से समझ रहे हैं, जबकि अवाम के बड़े हिस्से को लगता है, वे अक्सर गलतियां करते रहते हैं। पहले वामपंथी यह तो तय कर लें कि वो किसके साथ हैं और किसके नुमायंदे हैं। दलित-पिछड़ों और उत्पीड़ितों का बड़ा तबका अब भी उनसे दूर क्यों है? उनकी अगुवाई पर भरोसा क्यों नहीं करता? बेहद समझदार और अपेक्षाकृत ईमानदार लोगों की मौजूदगी के बावजूद वामपंथी दलों में राजनीतिक गतिशीलता का अभाव क्यों है?
मेरा निवेदनः
सहमत।हां,उर्मिलेश भाई,हम भी इस सवाल का जवाब चाहते हैं।
कामरेड महासचिव हमें इस बारे में कुछ बतायें तो हम कृतार्त होंगे।आखिर वे तो हिंदी समझते और बोलते भी खूब हैं।
पलाश विश्वास