Quantcast
Channel: My story Troubled Galaxy Destroyed dreams
Viewing all articles
Browse latest Browse all 6050

तोहरा नियर दुनिया में केहू ना हमार बा:जनकवि भोला की कुछ रचनाएँ,भोजपुरी रचनाएं और उनका हिंदी अनुवाद

$
0
0

जनकवि भोला की कुछ रचनाएँ


भोजपुरी रचनाएं और उनका हिंदी अनुवाद 

1-तोहरा नियर दुनिया में केहू ना हमार बा

तोहरा नियर दुनिया में केहू ना हमार बा
देखला प अंखिया से लउकत संसार बा
मनवा के आस विश्वास मिलल तोहरा से
जिनिगी के जानि जवन खास मिलल तोहरा से
तोहरे से जुड़ल हमार जिनिगी के तार बा
देखला प अंखिया से लउकत संसार बा
हेने आव नाया एगो दुनिया बसाईं जा
जिनिगी के बाग आव फिर से खिलाईं जा
देखिए के तोहरा के मिलल आधार बा
देखला प अंखिया से लउकत संसार बा
दहशत में पड़ल बिया दुनिया ई सउंसे
लह-लह लहकत बिया दुनिया ई सउंसे
छोड़िं जा दुनिया आव लागत ई आसार बा

(आप सब के जैसा दुनिया में कोई और हमारा नहीं है
आंख से देखने से सारा संसार दिखता है
मन को आशा और विश्वास आप ही से मिला है
जिंदगी को खास जान आप ही से मिला है
आप ही से मेरी जिंदगी का तार जुड़ा है
आंख से देखने से सारा संसार दिखता है
इधर आइए एक नई दुनिया बसाई जाए
जिंदगी के बाग को फिर से खिलाया जाए
आपको देखके ही मुझे आधार मिला है
आंख से देखने से सारा संसार दिखता है
यह सारी दुनिया दहशत में पड़ी हुई है
यह दुनिया लह-लह लहक रही है 
इस दुनिया को छोड़के आइए, यही आसार लग रहा है)

2-जान जाई त जाई

जान जाई त जाई, ना छूटी कभी
बा लड़ाई ई लामा, ना टूटी कभी
रात-दिन ई करम हम त करबे करब
आई त आई, ना रुकी कभी
बा दरद राग-रागिन के, गइबे करब
दुख आई त आई, ना झूठी कभी
साथ साथी के हमरा ई जबसे मिलल
नेह के ई लहरिया, ना सूखी कभी

5सितंबर, 87 समकालीन जनमत में प्रकाशित

(जान जानी है तो जाए, पर नहीं छूटेगी कभी
यह लड़ाई तो तो लंबी है, नहीं टूटेगी कभी
रात-दिन यह कर्म तो हम करेंगे ही करेंगे
आना होगा तो आएगा ही, नहीं रुकेगा कभी
यह दर्द है राग-रागिनी का, जिसे गाऊंगा ही
साथी का यह साथ मुझे जबसे मिला है
स्नेह की यह लता तो कभी सूखेगी नहीं) 

3-आज पूछता गरीबवा

कवन हउवे देवी-देवता, कौन ह मलिकवा
बतावे केहू हो, आज पूछता गरीबवा
बढ़वा में डूबनी, सुखड़वा में सुखइनी
जड़वा के रतिया कलप के हम बितइनी
करी केकरा पर भरोसा, पूछी हम तरीकवा 
बतावे केहू हो, आज पूछता गरीबवा
जाति धरम के हम कुछहूं न जननी
साथी करम के करनवा बतवनी
ना रोजी, ना रोटी, न रहे के मकनवा
बतावे केहू हो आज पूछता गरीबवा
माटी, पत्थर, धातु और कागज पर देखनी
दिहनी बहुते कुछुवो न पवनी
इ लोरवा, इ लहूवा से बूझल पियसवा
बतावे केहू हो आज पूछता गरीबवा।

( कौन है देवी-देवता और कौन है मालिक
कोई बताए, आज यह गरीब पूछ रहा है।
बाढ़ में डूबे, सुखाड़ में सुखाए
जाड़ों की रातें कलप के बिताए
करें किस पर भरोसा, पूछें हम तरीका
कोई बताए, आज यह गरीब पूछ रहा है।
जाति-धरम को हमने कुछ नहीं जाना
साथी कर्म के कारणों को बताए
न रोजी है, न रोटी और न रहने का मकान
कोई बताए, आज यह गरीब पूछ रहा है।
मिट्टी, पत्थर, धातु और कागज पर देखे
उसे दिए बहुत, पर कुछ भी नहीं पाए
आंसू और खून से अपनी प्यास बुझाए
कोई बताए, आज यह गरीब पूछ रहा है।)

4. जन-संगीत
हम चहनी, चाहींला, चाहत बानी
कबहूं तहरे ही खातिर मरत बानी
तोहरे पिरितिया के याद में जिनिगिया
निंदवा में अइतू सुनइती हम गीतिया
कहां चल जालू निंदवा में खोजत बानी
कबहूं....
दिन रात के बाड़ू हो तू ही दरपनवा
जवरे पिरितिया के गाइला हो गनवा
काहे जनबू ना जान जनावत बानी
कबहूं....
ना देखती कउनो हम कबो सपनवा
शहीदन के हउवे ई प्यारा जहनवा
अब कउनो ना डर बा जानत बानी
कबहूं तहरे ही खातिर मरत बानी
(हमने चाहा, चाहता हूं, चाह रहा हूं
हमेशा तुम्हारे लिए ही मरता हूं
तुम्हारी प्रीत की याद में है जिंदगी
नींद में आती तो गीत सुनाता
साथ में प्रीत के गाने गाता
क्यों नहीं जानोगी जान, बता रहा हूं
हमेशा तुम्हारे लिए ही मरता हूं
नहीं देखता कभी सिर्फ कोई स्वप्न
शहीदों का है यह प्यारा जहान
अब कोेई डर नहीं यह जानता हूं
हमेशा तुम्हारे लिए ही मरता हूं)


5. जनवाद के आवाज
आवऽता दहाड़ते 
जनवाद के आवाज
ना चलल बा ना चली
सामंती ई राज
जन-जन के त्याग शक्ति
ना करी अब कउनो भक्ति
घर गांव जवार के नारा बा
जाति ना साथिये दुलारा बा
ना रही कनहूं हत्यारा
जन जीवने बा प्यारा
बस इहे बा नारा, इहे बा नारा
सभे बा प्यारा, प्यारा, प्यारा।


(आ रही है दहाड़
जनवाद की आवाज की 
नहीं चला है न चलेगा 
यह  राज सामंती
जन जन की त्याग शक्ति 
नहीं करेगी अब कोई भक्ति
घर जवार गांव का नारा है
जाति नहीं साथी ही दुलारा है
नहीं रहूंगा कहीं हत्यारा
जन जीवन है प्यारा
बस यही है नारा, यही है नारा
हर कोई है प्यारा, प्यारा, प्यारा )


हिंदी कवितायेँ  

लहू किसका
सोचता था,
मुझे फिर से सोचना पड़ रहा है
कारण,
मेरे समक्ष मौत जो खड़ी है,
दिन रात सदा भूख के रूप में
जिसे चाहता हूं खत्म करना
हर राह चुनी नाकामयाब रहा
मिली है आजादी संघर्ष कर रहा हूं
एक सोच है यही 
कविता कर रहा हूं
बह रहा है आज लहू किसका
यही प्रश्न कर रहा हूं

आओ, बात करें
बात ज्ञान और विज्ञान की करें
बात जमीं और आसमान की करें
बात मजदूर किसान की करें
और की नहीं बात मात्र इंसान की करें
न हिंदू न इसाई मुसलमान की करें
जाति-धर्म नहीं बात इंसान की करें
बात रोटी और बेटी के अरमान की करें
बात साथी सम्मान की करें
आओ बात ज्ञान विज्ञान की करें

आदमी 
मैं आदमी हूं
भर दिन मेहनत करता हूं
देखने मेें जिंदा लाश हूं 
लेकिन.....
मैं लाश नहीं हूं
मैं हूं दुनिया का भाग्य विधाता
जिसके कंधों पर टिकी हैं
दैत्याकार मशीन
खदान, खेत, खलिहान
जी हां, मैं वहीं आदमी हूं
जिसके बूते चलती है
ये सारी दुनिया
जिसे बूते बैठे हैं
ऊंची कुर्सी पर 
कुछ लोग
जो पहचानते नहीं
इस आदमी को
समझते नहीं
इस आदमी को
नहीं, नहीं,
ऐसा हरगिज नहीं 
मैं होने दूंगा
अपनी पहचान मिटने नहीं दूंगा
क्योंकि 
मैं आदमी हूं
हां, हां,
मैं वही आदमी हूं।

आखिर कौन है दोषी?
जब से होश हुआ तब से लड़ रहा हूं
कारण सबसे कह रहा हूं
यह सारी मुफलिसी बेबसी की देन है।
सुनो समझो तुम्हारे अरमानों को अपने साथ देख रहा हूं
साफ है दिल जिसका, उसी के पीछे लगा हत्यारा देख रहा हूं
आॅफिसरों और नेताओं में लूटखसोट का रोजगार देख रहा हूं
जनवितरण प्रणाली से जल रहा बाजार देख रहा हूं
गंदगी में गंदगी से रोग बढ़ते हाल देख रहा हूं
कुछ घर में रोगियों को दवा के बिना मरते बेबस लाचार देख रहा हूं
कुछ ही शिक्षा के रहते, बेशुमार बेरोजगार देख रहा हूं
कर्ज पर कर्ज से दबी जिंदगी सरेआम देख रहा हूं
चलचित्र के द्वारा सेक्स का प्रचार देख रहा हूं
पास पड़ोस में बढ़ते लुच्चे-लफंगों की कतार देख रहा हूं
तिलक दहेज की ज्वाला में 
बहनों को जिंदा जलाते-मारते घर से निकालते अखबार देख रहा हूं
बिजली के पोल तार अधिकारी और कर्मचारी के रहते
घर गांव शहर में अंधकार देख रहा हूं
कब कौन मरेगा उनके इशारे पर 
लाश को छिपाते अखबार देख रहा हूं
कान में तेल डालकर बैठी राज्य और केंद्र सरकार देख रहा हूं
कब तक साधेगी खामोशी जनता, उनके बीच मचा हाहाकार देख रहा हूं
अब नहीं बचेगी जान भ्रष्ट नेताओं और आॅफिसरों की 
जनता के हाथ में न्याय की तलवार देख रहा हूं
अभी नजर नहीं आ रहा है, लेकिन बम और बारूद के धुएं को तैयार देख रहा हूँ

हम लड़ रहे हैं
हम लड़ रहे हैं
हम किनसे लड़ रहे हैं?
हम लड़ रहे हैं
सामंती समाज से
रूढि़वादी समाज से
पूंजीवादी समाज से
अंधविश्वासी समाज से
आखिर क्यों ल़ड़ रहे हैं इनसे?
समता लाने के लिए
समाजवादी व्यवस्था लाने के लिए
पूंजीवाद के सत्यानाश के लिए
सांप्रदायिकता को समूल नष्ट करने के लिए
ब्राह्मणवाद को उखाड़ फेंकने के लिए
अंधविश्वास को दूर भगाने के लिए
क्योंकि-
इसी से गरीबी मिटेगी,
गरीबों को मान-सम्मान मिलेगा,
अब तक ये जो सिर झुका कर चलते थे
सिर उठाकर चलेंगे
इसी क्रांति से 
अमन, चैन, शांति मिलेगी
सापेक्ष चेतना जगेगी
इसी चेतना के जगने से होगी क्रांति। 
क्रांति का मतलब गुणात्मक, मात्रात्मक नहीं।
मात्रात्मक यानी पानी का भाप, भाप का पानी, 
अर्थात पूंजीवादी सरकार का आना-जाना
फिर फिर वापस आना
गुणात्मक-
जैसे दूध का दही बनना
फिर कोई उपाय नहीं 
दही का फिर से दूध बनना
अर्थात् पूंजीवादी सामंतवादी आतंकवादी सरकार का जाना 
समाजवादी सरकार का आना।
अब तक के आंदोलन से 
ऊपरी परिवर्तन होते रहे
अंतर्वस्तु नहीं बदली
अब गुणात्मक क्रांति होगी
अंतर्वस्तु भी बदलेगी
परिणाम
अब धरती पर पूंजीपति नहीं रहेगा
न जंगल में शेर रहेगा
न शेर वाला कोई विचार रहेगा
गरीबों की सरकार रहेगी
हम रहेंगे, हमारी जय-जयकार रहेगी
हमारा अब यही नारा रहेगा 
न कोई हत्यारा रहेगा
न सामंती पाड़ा रहेगा
क्योंकि,
हम बढ़ रहे हैं, बढ़ रहे हैं...


Viewing all articles
Browse latest Browse all 6050

Trending Articles