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https://www.youtube.com/watch?v=riBIpzxI8qU ऋत्विक घटक की बगावत,उनका सामाजिक यथार्थ और उनकी फिल्म सुवर्णरेखा! Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya https://www.youtube.com/watch?v=jeiGPWYIOqs ऋत्विक घटक ने ब्राह्मण गिरोह के उन्हीं चेहरो को तभी बेनकाब कर दिया था,यही उनका अपराध है।यही भारत विभाजन की त्रासदी है जो दलितों,पिछड़ों,आदिवसियों और भारतीय स्त्री की त्रासदी है जो बागदी बउ की कथा जितनी है,जितनी सीता की त्रासदी ,उतनी ही लाल नील विभाजित भारतीयजनता की आत्मकथा भी है। फासीवाद हारा नहीं है अभी और न जश्न का मौका है।आगे फिर मंडल बनाम कमंडल महाभारत है।फिर फिर भारत विभाजन है। प्रकृति,सभ्यता और मनुष्यता की खातिर निर्णायक लड़ाई है और इसीलिए लाल नील जनता की एकता अनिवार्य है।ऋत्विक अनिवार्य। https://youtu.be/riBIpzxI8qU Subarna Rekha,Blasphemy against ideology by Ritwik Ghatak,the Golden Line and the Ati Dalit Bagdi Bou and death of Sita in a brothel! Palash Biswas

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ऋत्विक घटक की बगावत,उनका सामाजिक यथार्थ और उनकी फिल्म सुवर्णरेखा!

Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya


ऋत्विक घटक ने ब्राह्मण गिरोह के उन्हीं चेहरो को तभी बेनकाब कर दिया था,यही उनका अपराध है।यही भारत विभाजन की त्रासदी है जो दलितों,पिछड़ों,आदिवसियों और भारतीय स्त्री की त्रासदी है जो बागदी बउ की कथा जितनी है,जितनी सीता की त्रासदी ,उतनी ही लाल नील विभाजित भारतीयजनता की आत्मकथा भी है।


फासीवाद हारा नहीं है अभी और न जश्न का मौका है।आगे फिर मंडल बनाम कमंडल महाभारत है।फिर फिर भारत विभाजन है।


प्रकृति,सभ्यता और मनुष्यता की खातिर निर्णायक लड़ाई है और इसीलिए लाल नील जनता की एकता अनिवार्य है।ऋत्विक अनिवार्य।


Subarna Rekha,Blasphemy against ideology by Ritwik Ghatak,the Golden Line and the Ati Dalit Bagdi Bou and death of Sita in a brothel!

Palash Biswas

ऋत्विक घटक ने ब्राह्मण गिरोह के उन्हीं चेहरो को तभी बेनकाब कर दिया था,यही उनका अपराध है।यही भारत विभाजन की त्रासदी है जो दलितों,पिछड़ों,आदिवसियों और भारतीय स्त्री की त्रासदी है जो बागदी बउ की कथा जितनी है,जितनी सीता की त्रासदी ,उतनी ही लाल नील विभाजित भारतीयजनता की आत्मकथा भी है।


फासीवाद हारा नहीं है अभी और न जश्न का मौका है।आगे फिर मंडल बनाम कमंडल महाभारत है।फिर फिर भारत विभाजन है।


प्रकृति,सभ्यता और मनुष्यता की खातिर निर्णायक लड़ाई है और इसीलिए लाल नील जनता की एकता अनिवार्य है।ऋत्विक अनिवार्य।


इसीलिए कोमल गांधार के बाद सुवर्ण रेखा पर मेरा आज का यह प्रवचन।जो देखें सुनें,उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो और टूटें गुलामी की जंजीरें,टूटें कैदगाहों,कब्रो की दीवारें।जय हो।


Subarnarekha

Directed by

Written by

Ritwik Ghatak(screenplay, story),

Starring

Music by

Cinematography

Dilip Rajan Mukherjee

Edited by

Ramesh Joshi

Release dates

1 October 1965

Running time

143 min.

Language


यह त्रासदी भारत विभाजन की है, जो जारी है।यह कथा मनुस्मृति राज की है।


यह कथा अति दलित बाग्दी बउ की है,जिसके बेटे अभिराम से सुवर्णरेखा किनारे पली बढ़ी ब्राह्मण कन्या सीता का प्रेम हुआ और उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करने वाले ब्राह्मण भाई ने इस रिश्ते को ठुकराकर उसका विवाह अन्यत्र कर देने का आत्मघाती फैसला किया।


उस भाई ईश्वर और बहन सीता,विभाजन पीड़ित अनाथ भाई बहन के रिश्ते की यह त्रासदी है जो अछूत प्रेमी के साथ भाई का घर छोड़कर कोलकाता की गंदी बस्ती में घर बसाती तो है पर वह घर बस ड्राइवर बने प्रेमी पति की एक दुर्घटना में उसकी बस से कुचलकर एक लड़की के मारे जाने की वजह से गुस्साई जनता के हाथों हत्या होजाने के बाद उजड़ जाता है।


शरणार्थी अछूत को व्याही ब्राह्मण कन्या सीता को जिंदा रहने के लिए यौनक्रम का विकल्प अपनाना होता है।


चकले में दाखिले के बाद  सीता का पहला खरीददार उसका सगा भाई, वह बहन से जुदा शोकसंतप्त अकेला सगा भाई शराबी निकलता है तो वह आत्महत्या कर लेती है।


यह ब्राह्मण कन्या सीता और अतिदलित स्त्री ,जिसको शरणार्थी बस्ती में उसीतरह जगह नहीं मिलती जैसे पूर्वी बंगाल से आये करोड़ों दलितों और अति दलितों को नहीं मिली,शरणार्थी आंदोलन और कामरेड बिरादरी ने उनका सामाजिक बहस्कार ही नहीं किया, उन्हें बंगाल के इतिहास भूगोल से निस्कासित निर्वासित कर दिया।


उनसे मातृभाषा छीन ली।छीन लिया आरक्षण,राजनीतिक प्रतिनिधित्व, जिनका पुनर्वास दरअसल अभी तक हुआ नहीं है और केसरिया सत्ता ने उनकी जमीन और नागरिकता छीनने का चाकचौबंद इतजाम कर दिया।


कोमल गांधार में इप्टा पर राजनैतिक नेतृत्व के खिलाफ ऋत्विक की बगावत के बाद ही उन्हें पार्टी और इप्टा से निस्कासित कर दिया तो सुवर्णरेखा के दलित विमर्श को उनका धर्मांतरण जैसा अपराध मान लिया गया जैसे कि वे विचाराधारा के धर्मविरोधी जिहादी करार दिये गये।


यह त्रासदी ऋत्विक की जितनी है,उससे कम हमारी नहीं है।


यह त्रासदी भारत के सर्वहारा वर्ग,मेहनतकश आम जनता और बहुजनसमाज का भी है,जिनके वर्गीय ध्रूवीकरण के लिए जाति व्यव्स्था को खत्म करने के बजाय मनुस्मृति शासन के तहत सत्ता में भागेदारी ही बहुजन समाज की तरह भारतीय वामपंथ की विचारधारा हो गयी।


इसीलिए न सर्वहारा,मेहनतकशों,किसानों की दुनिया में ,और न बदलाव और प्रतिरोध की लड़ाई में उनकी कोई भूमिका बन पायी है और भारत में सत्ता की राजनीति में भी वह हाशिये पर है।


इसीलिए बंगाल और केरल में में भी केसरियाकरण का सिलसिला है।वामपंथ असहाय विकलांग है।


वामपंथ के विश्वासघात की वजह से ही बदलाव के लड़ाके माओवादी हैं तो बहुजन समाज ,बहुसंख्य जनता केसरिया बजरंगी फौजे हैं।


यह अपराध फसीवाद का जितना है,वामपंथी नेतृत्व के ब्राह्मण गिरोह का उससे कुछ भी कम नहीं है।


बिहार में मजहबी सियासत बेशक हार गयी।लेकिन सियासती मजहब हारा नहीं है।क्योंकि जाति न सिर्फ अटूट है,पिछड़ों के ओबीसी महागठबंधन से मंडल कमंडल गृहयुद्ध अब घनघोर हैं।


हिंदुत्व के दुश्मन विदेशी ताकतें नहीं हैं और न गैरमजहब के लोग हैं।हिंदू समाज लाखों धड़ों में बंटा हुआ है और उस बंटवारे को रोज रोज हर चुनाव में नये नये जाति समीकरण से हिंदुत्व के नाम तेज किया जा रहा है।दंगा फसाद कयामती फिजां के इस सियासती मजहब को समझने के लिए,आत्मध्वंस को समझने के लिए ऋत्विक घटक की भारत विभाजन पर बनी तीनों फिल्में अवश्य देखनी चाहिए।


हम कोमल गांधार का विश्लेषण कर चुके हैं।यह फिल्म समीक्षा नहीं है।फिल्म के जरिये समामाजिक यथार्थ की चीरफाड़ है,जो ऋत्विक घटक हमें सिखा गये हैं,जो सामाजिक यथार्थ का उनका व्याकरण और सौंदर्यशास्त्र है।


KOMAL GANDHAR!Forget not Ritwik , his musicality, melodrama,sound design to understand Partition!


हम अछुत रवींद्र के दलित विमर्श पर बात कर चुके हैं।उनके व्रात्य मंत्रहीन जातिहार रवींद्रसंगीत के सामाजिक यथार्थ और सरहदों के आर पार उसके मार्फत स्त्री मुक्ति की भी हम चर्चा कर चुके हैं।रवींद्र के दलित विमर्श की जैसे कोई चर्चा नहीं हुई है वैसे ही ऋत्विक घटक के दलित विमर्श पर हमारा ध्यान नहीं गया।


মন্ত্রহীণ,ব্রাত্য,জাতিহারা রবীন্দ্র,রবীন্দ্র সঙ্গীত! Tagore liberated Woman in Music!


अछूत रवींद्रनाथ का दलित विमर्श!Out caste Tagore Poetry is all about Universal Brotherhood !



नवारुण दा ने हर्बर्ट,फैताड़ु बोम्बाचाक और कांगाल मालसाट उपन्यासों के जरिये अंधाधुंध शहरीकरण के मुक्त बाजार में रोजी रोटी से बेदखल इन अछूतों के महानगरों में अंडर क्लास सर्वहारा में तब्दील होने की कथा बांचकर ऋत्विक की दृष्टि की निरंतरता बनाये रखी है।लेकिन इन चीजों को समझने की हमारी दृष्टि अभी बनी नहीं है क्योंकि हम जाति अंध है।

Why do I quote Nabarun Bhattacharya so often? এই মৃত্যু উপত্যকা আমার দেশ নয়!


धर्म हमारा पाखंड है।


धर्म हमारा अंधियारा कारोबार है।


धर्म मनुस्मृति अर्थशास्त्र है तो मजहबी सियासत सियासती मजहब की कयामती फिजां और फासीवादी राजकाज का चरमोत्कर्ष है क्योंकि हम हजारों जातियों में बंटे हुए लोग हैं और कुल मिलाकर जाति हमारा वजूद है और लोकतांत्रिक सहिष्णु बहुलतावादी सनातन हिदुत्व को हम मिथकीय महाभारत और धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद में तब्दील करके आत्मध्वंस पर आमादा हैं और जाति समीकरणों में कैद है हमारा लोकतंत्र।


जब हम आस्था की बात करते हैं तो वह यात्रा न तो भारतीय इतिहास,भारतीय परंपरा,लोक रिवाज,साझे चूल्हे या भारतीय संस्कृति या देशी उत्पादन प्रणाली या उत्पादन संबंधों या रोजगार और आजीविका और लोक,रीति रिवाज,उत्सव मेले के नैसर्गिक स्रोत प्रकृति और पर्यावरण के साथ शुरु होती हैं।


जिन वेदों और उपनिषदों से विश्वभर में हिंदुत्व की बेजोड़ सभ्यता बतौर पहचान है,हम भूल रहे हैं,वह मुक्त बाजार की उपज नही हैं और न ही वह उपभोक्तावादी अनैतिक भ्रष्ट मुनाफाखोर सुखीलाला  संसार या बिररिंची बाबा का नरसंहारी सुधार है।


वह हमारी आरण्यक सभ्यता थी,जहां हमारे पुरखों ने वैदिकी साहित्य रचा और उस धर्म में जाति व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी और न उनके महाकाव्यों से अवतरित भगवान और तैंतीस करोड़ देव देवी न थे और न उनपर रचे गये रंगबिरंगे पुराण थे,जिसे वैदिकी बताया जा रहा है और जो इस्लामी शासन के अंत अंत तक रचे गये।इसे बारत का जो इतिहास बताने से अगाते नहीं हैं,उनसे मूर्ख कोई दूसरा शख्स नहीं है।


विश्वभर में सभ्यता का विकास शरणार्थियों के जरिये हुए।


आइंस्टीन भी शरणार्थी थे।


अमेरिकाओं और आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैड जो विकसित देश है,वह भी यूरोप के आपराधिक तत्वों को कालापानी की सजा की नतीजा है।


इंग्लैंड की भाषा और सभ्यता मूलनिवासियों की नहीं है।एंगेलो सैक्सन जर्मन मूल की है।


यूरोप और दुनियाभर में सभ्यता,दर्शन,कला, साहित्य औरसंस्कृति का विकास जो हुआ,वह नवजागरण का नतीजा है,जो यूनान और इटली से दुनियाभर में सौ साल के धर्मयुद्ध का नतीजा है।


भारत  में सभ्यता,संस्कृति और धर्म के विकास को रवींद्रनाथ ने भारततीर्थ कविता में बहुत बेहतरीन तरीके से परिभाषित किया है,जो सहिष्णुता और बहुलता की हमारी सभ्यता,संस्कृति और विरासत है।


वैदिकी धर्म के अनुयायी प्राकृतिक शक्तियों के उपासक थे।कोणार्क का सूर्यमंदिर और बिना पुरोहित उत्तर भारत की छठ पूजा और त्रिपुरा में आदिवासियों और गैरआदिवासियों का साझा फसल का जश्न गड़िया उत्सव इसका नतीजा है।


हमारे सारे पर्व त्योहार कृषि आजीविका और लहलहाती फसलों की खुशबू हैं,जो हमारा लोक है तो हमारा देसज अर्थशास्त्र,साझा चूल्हा और हमारी उत्पादन प्रणाली है।


वैदिकी धर्म में कोई मिथकीय देवदेवियां नहीं है और न ही मूर्ति पूजा  का धर्मोन्मादी बवंडर है।


भारत में विभिन्न नस्लों आर्य,अनार्य,द्रंविड़,शक हुण मुगल पठान, अहम, मग,निग्रोइड,मंगलाइड ,आस्ट्रेलाइड समुदाओं के बीच खूनखराबा कम नहीं हुआ।लेकिन सहिष्णुता,बहुलता और विविधता की साझा कोख से जनमा भारतवर्ष।


विविधता का विलय भारततीर्थ।


हम उन्हीं तत्वों की हत्या और कत्लेआम कर रहे हैं जो भारत को भारत बनाते हैं और हिंदुत्व को सभ्यता की विरासत भी बनाते हैं।


फिर हम बजरंगी  अंध राष्ट्रवादी खुद को धार्मिक भी बताते हैं और देशभ्क्त को और जो हमसे असहमत है,उन्हें राष्ट्रद्रोही, माोवादी, हिंदूविरोधी वगैरह वगैरह कहने से पहले तनिको नहीं सोचते कि हम हिंदुत्व का सर्वनाश कर रहे हैं और भारत वर्ष का विनाश।


आरण्यक वह वैदिकी धर्म और सभ्यता,उसकी आजीविका निर्भर वर्ण व्यवस्थाजब वर्ण वर्चस्व और वर्णभेद बनकर असमता और अन्याय का पर्याय बना तो गौतम बुद्ध ने विश्वभर में पहले रक्तहीन जन अभ्युत्थान का नेतृत्व किया और भारत बौद्धमय बना।हम पंचशील के इस इतिहास,परंपरा को बदल नहीं सकते।


बौद्धमय इतिहास के अवसान के लिए वैदिकी धर्म का अवसान भी हो गया और मनुस्मृति हमारी नियति हो गयी।मनुस्मृति के तहत जाति हमारा वजूद हो गया और हम जब भी बोलते हैं,हमारी जाति बोलती है।यह हमारी अर्थव्यवस्था है।


बाबासाहोब डा.भीमराव अंबेडकर,महात्मा ज्योति बा फूले,हरिचांद ठाकुर, बशेश्वर, संत तुकाराम,गुरु नानक,चैतन्य महाप्रभू,  बीरसा मुडा,रानी दुर्गावती,टांट्या भील, सिधो कान्हों आयुश, अय्यंकाली, पेरियार और नारायण स्वामी,गुरुचांद ठाकुर,सूर तुलसी कबीर रसखान मीरा जयदेव दादु गाडगे बाबा पीर फकीर बाउल तमाम हमारे पुरखे इसी मनुस्मृति स्थाई बंदोबस्त को खत्म करके समता और न्याय की लड़ाई लड़ते रहे थे।


हम उलट इसके हिंदुत्व को नर्क में तब्दील करते हुए जाति के चुनावी समीकरण के तहत धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के तहत हजारों साल पहले,सदियों पहले  खत्म तमाम विवाद नये सिरे से शुुरु करके हिंद राष्ट्र में तब्दील होने के एजंडा के साथ साथ इतिहास, परंपरा, धर्म, सहिष्णुता, बहुलता, समाजाजिक तानाबाना,अमन चैन,भाईचारा,मुहबब्त का कत्ल करते हुए,लोकतंत्र और संविधान की हत्या करते हुए आत्मध्वंसी दस दिगंत सर्वनाश का आवाहन कर रहे हैं जाति युद्ध के महाभारत रचते हुए दरअसल हम भारत और हिंदू धर्म दोनों की हत्या कर रहे हैं।


जमींदारियों और रियासतों के वंशज सिर्फ राजकाज के धारक वाहक नहीं हैं।वे भी धर्म कर्म के भी ठेकेदार हैं।


वही लोग हमारे विचारधाराओं,आदोलनों,कला संस्कृति साहित्य, माध्यमों और विधाओं के भी मसीहा,देव देवियां हैं।


बाबासाहेब ने कहा कि भारत में साम्यवाद से अच्छी कोई बात नहीं है।लेकिन साम्यवाद भी ब्राह्मणों के कब्जे में है।


तेलतुंबड़े ने उस ब्राह्मण गिरोह की चर्चा कि तो वे चेहरे अब बेनकाब हैं।सरेबाजार नंगे।जिनका जनमजात ब्राह्मण जाति से कोई ललेना देना नहीं हैं,जिनके खिलाफ बहुजनों की फर्जी लड़ाई।


ऋत्विक घटक ने ब्राह्मण गिरोह के उन्हीं चेहरों को तभी बेनकाब कर दिया था,यही उनका अपराध है।


यही भारत विभाजन की त्रासदी है जो दलितों,पिछड़ों,आदिवसियों और भारतीय स्त्री की त्रासदी है जो बागदी बउ की कथा जितनी है,जितनी सीता की त्रासदी ,उतनी ही लाल नील विभाजित भारतीय जनता की आत्मकथा भी है।


लाल नीली सर्वहारा बहुजन जनता में एका नहीं हो,यही हिंदुत्व का असली एजंडा है धर्म कर्म के बहाने ताकि मनुस्मृति राजकाज जारी रहे।


Tonnes of Paper had been inked to focus on Cahrulata, Japanese Bou,Biraj Bahu,Kagojer Bou,etc!But we could not discuss the Ati Dalit Bagdi Bou,untouchable and the love story of the son of the Ati dalit Bgadi Bou,Abhiram and Sita,a Brahamin refugee girl who eloped as caste system could not allow the inter caste marriage even in sixties!Indian Communist Movement and Indian Peole`s theatre had to do nothing with caste,the Indian social realism.Tagore,the BRATYA,MANTRAHEEN,JATIHARA Nobel laureate addressed untouchability in Chandalika, land grab in Dui Bigha Jami,wrote about the plight of untouchable Indian peasantry in his letters from Russia and supported socialist model of development,though ideologically he was a Gandhian,not a communist.

The greatest artist,the revolutionary filmmaker Ritwik Ghatak somehow managed to finish three feature films from which a trilogy is strikingly different and then he was a communist, an activist engaged with IPTA,from which he had been expelled and excluded from Bhadralok Bengal as the Brahaminical hegemony treated Subarnarekha as blasphemy against ideology.


We have to discus Ritwik and Subarnarekha just because,we may not celebrate just because Religious Polarization and caste equations launched afresh by institutional fascism lost the elections in Bihar and the dominant caste alliance of OBC brotherhood won  resultant in so many beefs on Ginnie Bir Rinchi Baba`s Titanic Menu.We not celebrate the GOHAARA Mandate,the lost Arab Spring all on the name of Save Cow.Biharies seem not that BURBAK neither those who voted against fascism could be deported to Pakistan! Not enough! Be aware,it is Mandal Versus Kamandal,the civil war the riot arson bloodshed scenario looming large around as the holocaust of Partition continues.We might not recover from the mythical Greek Tragedy either!


বাংলা নিরুত্তাপ তবু রেপ সুনামির শেষ দেখবে ভারত,যারা গৌরিকীকরণ ফ্যাসিবাদের বিরুদ্ধে দাঁড়ানোর মেরুদন্ড হারিয়েছেন,ইতিহাসের আস্তাকুঁড়েতেও জায়গা হবেনা শিরোনামে যারা, সেই সব বিদ্বতজনদের!

बलात्कार सुनामी का तो हुई गयो काम तमाम!

सरेबाजार भयो नंगे,अब तो रोको दंगे!

धर्म पर भारी जाति,सारे समीकरण फेल हुई रहे  हिंदुत्व के !


बिहार में करारी हार,फिर नीतीशे कुमार!

आगे यूपी,बंगाल,उत्तराखंड वगैरह वगैरह बाकी है!

हिंदुत्व,इंसानियत और मुल्क के लिए भलाई इसी में हैं,जाति कर दो खत्म और खत्म करो दंगे!


KUMAR ( STUDIOMAHUA )9304550100 LYRICS BY SHAKTI BABUA

https://www.youtube.com/watch?v=E0ANGYr-100


Ritwik was also the victim of partition as our people had been and it is easier for me as a son of a refugee sharing the eternal eyewitness account,the first person version of the overwhelming tragedy and it impact the continuous partition and the continuous demography adjustment and readjustment, degeneration, unprecedented violence,conflict and riots,religious polarization killing the legacy of tolerance and pluralism as a common human being.I am not an expert but I am speaking human to address contemporary time!


हिंदुओं की बात करते हैं,हिंदू हितों पर तूफां खड़ा करते हैं।देहात और खेत खलिहान को कब्रिस्तान बनाकर गायों को गोशाला से,खेती को आजीविका से बेदखल करके डीजीटल रोबोटिक देश बनाने वालों को हिंदू हितों की परवाह कितनी है,हम विबाजन पीड़ित पूर्वी बंगाल के देशभर में बिखरे बेनागरिक बना दिये गये लोग इस हिदुत्व के शिकार हैं तो देख लें हिंदुओं के कत्लेआम का नजारा भी।जिस कश्मीर को देस से अलग करके हिंदू राष्ट्र बनाने की तैयारी है,जिस कश्मीर की आग से पूरे महादेश को आग के हवाले कर देने की तैयारी है,वहां मुसलमानों के साथ साथ हिंदू भी दमन और उत्पीड़न,सैन्यतंत्र के वैसे ही शिकार है जैसे सलवा जुड़ुम में मरने वाले आदिवासी  तो मारने वाले भी आदिवासी।


मुकम्मल मनुस्मृति राजकाज है हिंदुत्व या इस्लाम के नाम सरहदों के आर पार।बांग्लादेश में सर कलम हैं तो सर कलम हैं हिंदुस्तान में भी।मधेशी और आदिवासी खड़े हैं अपनों के ही खिलाफ नेपाल में तो श्रीलंका में,म्यांमार में कत्लेआम हैं।पाकिस्तान आतंकी हमलों से खुदै तबाह है और बौद्ध म्यांमार में रोहंगा मुसलमानों की कयामत है।अफगानिस्तान में तालिबान हैं।तो हिंदुस्तान हिंदू तालिबान का।


I would discuss the first film Meghe Dhaka which represents his original breakthrough into rhythmic sound design to merge with the vocal scenario!


Rather I have to discuss Subarnalata the last of the trilogy which was treated rather as blasphemy!He was excluded after he made Komal Gandhar exposing the internal conflict in ideology inherent with IPTA which was finally exposed with a logical conclusion,the partition of Indian Communist movement along with disintegration of IPTA in 1964 and Subarnalata released in 1965.


Ritwik broke the myth of Sita who died in a brothel and made a protagonist of an Ati Dalit refugee woman Bagdi Bou.The exclusion was complete because Indian Communist movement never addressed caste or untouchability,the root base of class caste identity division and polarization.I have to discuss it because our comrades still fail to include the SC,ST,OBC and tribal proletariates for class polarization to end the class caste race hegemony!


We have to pay for this historical blunder which was pointed out by Baba Saheb BR Ambedkar while he never did oppose communism as ideology but he branded Indian Communist leadership as Brahaminical.


Recently the most efficient leader from Kisan Sabha Rezzak Ali Molla had been expelled from the party just because he demanded representation of every community in Party leadership.


Because SC,ST,OBC and tribals deserted Indian Communist forces and the followers of Dr BR Ambedkar despise most communism,the become the forces of reactionary fascism in India.The crisis would be intensified more as caste identity and caste alliance defeated the religious nationalism.The Caste War would intensify,I am afraid.


The revolutionary artist from IPTA dealt with caste in Subarnorekha.


Madhavi Mukherjee who played Charulata in Satyajit Ray film Charulata which is said to be frame to frame perfect only Indian film.She was introduced by Mrinal Sen in Baishe Shraban and she again played the key role in Subranarekha.


Ritwik Ghatak was born in 1925 in Dhaka, then a part of India, but in 1947, after the independence and partition of India, it became a part of East Pakistan and now it is the capital of Bangladesh (after the partition of Pakistan in 1972). Ghatak moved to Baharampur and then to Calcutta in the early fifties.


Rwitwik Ghatak made three films on Partition.Meghe Dhaka tara (The Cloud-Capped Star) in 1960,Komal Gandhar (E-Flat) in 1961(The Golden Line) and Subarnalata in 1962.He had been excluded from Communist Party,IPTA and virtually for Bengal.These films not only dals the degeneration,disorder idividual and social,the plight of refugees,Indian People`s Theatre Movement and the conflict within,the real impact of the phenomenon of transfer of power,transfer of population along with partition itself,it spans though the most creative period of his life,the revolutionary artist himself who triggered alternative cinema and his musicality,rooted into Indian folk and cultural heritage,day today suffering of the masses,sound design,frame to frame aesthetics of social realism! I have discussed these points on my video talk on Komal Gandhar which had been treated as his deviation from ideology.


Subarnarekha (film)

From Wikipedia, the free encyclopedia

Subarnarekha (Bengali: সুবর্ণরেখা Subarṇarēkhā) is an IndianBengali filmdirected by Ritwik Ghatak.[1] It was produced in 1962 but was not released until 1965. It was part of the trilogy, Meghe Dhaka Tara (1960), Komal Gandhar (1961), and Subarnarekha (1962), all dealing with the aftermath of the Partition of India in 1947 and the refugees coping with it.[2]

In a critics' poll of all-time greatest films conducted by Asian film magazineCinemaya in 1998, Subarnarekha was ranked at #11 on the list.[3]

Contents

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Plot summary[edit]

The film tells the story of Ishwar Chakraborty (Abhi Bhattacharya), a Hindurefugee from East Pakistan after the 1947 partition of India. He goes to West Bengal with his little sister Sita (Indrani Chakrabarty) where he tries to start a new life. In a refugee camp, they see the abduction of a low-caste woman. He gets a job at a factory in the province, near the river Subarnarekha.

After completing his study when Abhiram is asked to go to Germany for his studies, he (Satindra Bhattacharya) and Sita (Madhabi Mukherjee) discover that they are in love. But at this moment, Ishwar's fear of prejudice emerges, as he does not want his sister, a Brahmin, to marry a lower caste boy. During Sita's wedding with another man, the girl and Abhiram elope and go to Calcutta. Ishwar is angry and heartbroken.

Sita and Abhiram live in the slums of Calcutta and try to make ends meet. They have a little son (Sriman Ashok Bhattacharya). One day, Abhiram gets a new job as a bus driver, but this leads to tragedy: when he accidentally hits and kills a little girl, he is lynched by the crowd. In her desperate situation, Sita is forced to think about taking up prostitution.

In the meantime, Ishwar is living a lonely and sad life in the province. When his old time friend Haraprasad (Bijon Bhattacharya) comes to visit him, they decide to go to Calcutta on a binge-drinking tour. They finally end up in a brothel, both completely drunk. When Ishwar staggers into one of the bedchambers, he is faced... with his own sister, whose first "client" he should become. Sita immediately recognizes him and rather cuts her own throat than submit to incest. She dies. When Ishwar realizes what has happened, he breaks down.


At the end of the film, the now completely broken Ishwar meets Sita's little son, who is now his closest relative. He brightens up and decides to take the little boy into his house.

Cast[edit]

  • Abhi Bhattacharya as Iswar Chakraborty

  • Bijon Bhattacharya as Haraprasad

  • Indrani Chakraborty as Little Sita

  • Gita Dey as Koushalya (Bagdi Bou)

  • Mater Tarun as Little Abhiram

  • Ranen Roy Choudhury as Baul

  • Abanish Bandopadhyay as Hari Babu

  • Radha Govinda Ghosh as Manager

  • Ritwik Ghatak as Music Teacher

  • Satindra Bhattacharya as Abhiram

  • Jahor Roy as Mukherjee (Foreman)

  • Umanath Bhattacharya as Akhil Babu

  • Sita Mukhopadhyay as Kajal Didi

  • Pitambar as Rambilas

Crew[edit]

  • Story: Ritwik Ghatak, Radheshyam Jhunjhunwala

  • Screenplay: Ritwik Ghatak

  • Cinematography: Dilip Rajan Mukherjee

  • Editing: Ramesh Joshi

  • Sound: Satyen Chatterjee

  • Art Direction: Rabi Chatterjee

Soundtracks[edit]

  • Aaj dhaner khete roudro chhayay...

  • Ali, dekh bhor bhai... kahan jage...

  • Aaj ki ananda, aaj ki ananda, jhulat jhulane Shyamchanda...

  • Mor dukhuya ka se kahun... aaj'

  • Khelan aaye... kuhar phuhar


The HFA explained: Involved from an early age in politics and in theater, Ghatak was a member of the Indian Communist Party and regarded Brecht and Eisenstein as his artistic heroes. Consequently, Ghatak's films wed his activism with rich cultural content, fashioning popular forms – melodrama, songs, dances – into appropriate vehicles for radical political expression. His films are almost all veiled autobiography. Ghatak came of age during the convulsions of the 1940s – World War II, the terrible "man-made famine" of 1944, the communal violence that came with independence, and especially the partition of Bengal, which obsessed him all his life. His subjects are almost invariably chosen from among the uprooted and the dispossessed: parentless children, homeless families, disoriented refugees, and the petit bourgeoisie, economically broken by their exile. Yet, as in the fatal vision of Robert Bresson, there is a glimmer of hope in even the darkest moments.


Since his death at age fifty in 1976, Ritwik Ghatak has come to be regarded as one of the greatest figures in postwar Indian cinema for his brilliant and abrasive films, which certainly rank among the most revolutionary achievements in contemporary Indian art.


A brilliant eccentric and heavy drinker, Ghatak completed only eight features before his premature death. The HFA offers Ghatak's last five as proof of his genius, films which include three heartbreaking melodramas built around the partitioning of Bengal to form Pakistan out of what had been northeastern India. These films – The Cloud-Capped Star, The Golden Line and E-Flat– are together sometimes referred to as Ghatak's "partition trilogy."

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Would they now say that defence veterans are also Anti National!Anti Hindu!Send Them to Pakistan? Modi has to gear for economic cleansing afresh as India incs push hard for reforms lest Mandate might be subjected to withdrawal after Bihar Defeat! Protesting against govt’s OROP provisions, defence veterans to start returning medals! The government had on Saturday formally notified the OROP scheme for the over 24 lakh ex-servicemen and six lakh war widows in the country, which was rejected by the protesting ex-servicemen. https://www.youtube.com/watch?v=riBIpzxI8qU Palash Biswas

Previous: https://www.youtube.com/watch?v=riBIpzxI8qU ऋत्विक घटक की बगावत,उनका सामाजिक यथार्थ और उनकी फिल्म सुवर्णरेखा! Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya https://www.youtube.com/watch?v=jeiGPWYIOqs ऋत्विक घटक ने ब्राह्मण गिरोह के उन्हीं चेहरो को तभी बेनकाब कर दिया था,यही उनका अपराध है।यही भारत विभाजन की त्रासदी है जो दलितों,पिछड़ों,आदिवसियों और भारतीय स्त्री की त्रासदी है जो बागदी बउ की कथा जितनी है,जितनी सीता की त्रासदी ,उतनी ही लाल नील विभाजित भारतीयजनता की आत्मकथा भी है। फासीवाद हारा नहीं है अभी और न जश्न का मौका है।आगे फिर मंडल बनाम कमंडल महाभारत है।फिर फिर भारत विभाजन है। प्रकृति,सभ्यता और मनुष्यता की खातिर निर्णायक लड़ाई है और इसीलिए लाल नील जनता की एकता अनिवार्य है।ऋत्विक अनिवार्य। https://youtu.be/riBIpzxI8qU Subarna Rekha,Blasphemy against ideology by Ritwik Ghatak,the Golden Line and the Ati Dalit Bagdi Bou and death of Sita in a brothel! Palash Biswas
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Would they now say that 


defence veterans are also


Anti National!Anti 


Hindu!Send Them to 


Pakistan?


Modi has to gear for economic cleansing afresh as India incs push hard for reforms lest  Mandate might be subjected to withdrawal after Bihar Defeat!


Protesting against govt's OROP provisions, 


defence veterans to start returning medals!


The government had on Saturday formally notified the OROP scheme for the over 24 lakh ex-servicemen and six lakh war widows in the country, which was rejected by the protesting ex-servicemen.



Palash Biswas

Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya

https://www.youtube.com/watch?v=jeiGPWYIOqs

KOMAL GANDHAR!Forget not Ritwik , his musicality, melodrama,sound design to understand Partition!

Last evening only Anand Teltumbede hoped that it is an opportunity for RSS Governance to correct itself.We were discussing the aftermath of Bihar Mandate,Anand was in Hyderabad the.He has returned Kharagpur today.I told Anand,No Chance because they are determined to accomplish the agenda of self destruction and they would never understand the impact of the hatred campaign!It is selfi selfish Bir Rinchi Baba clan which has no Deoras,no Guru Golwalkar,No Atal,no Advani or even Rajju Bhaiya to behave wise and democrat!


We already know that the government had on Saturday formally notified the OROP scheme for the over 24 lakh ex-servicemen and six lakh war widows in the country, which was rejected by the protesting ex-servicemen.


We also know that at least a section of defence veterans are not happy with this award and they have to express their grievances and the governance of fascism has no space for hearing for the President of India!Where do they,even if they dedicated their life to protect the unity and integrity of Indian Nation,pardon not Hindutva,even then they have no space for hearing.Thus, Protesting against govt's OROP provisions, defence veterans to start returning medals!


As Ananda struck the accurate diagnose very well that the shameless have not to be ashamed.They ignored and defamed,launched an unprecedented hate campaign against not only tolerance and pluralism, communities and working class belonging to different identities associated with  economy and production system and nature,humanity itself,the conscience of humanity worldwide,the writers, poets, artists, historians, sociologists,filmmakers and even the most important icons of free market economy!

Well,then how  do we expect that they would be ashamed to brand these defence veterans Anti National and Anti Hindu,engaged in conspiracy against growth and development?


At least I would not be surprised at all.I have not discussed latest updates with Anand as yet.


As Shatrughan Sinha meets Nitish, Lalu, BJP leader compares him with dog!It is the linguistics of Hindutva!


Jitan Manjhi blames RSS, Amit Shah for Bihar debacle!

Former chief minister and HAM president Jitan Ram Manjhi on Monday blamed RSS chief Mohan Bhagwat and BJP president Amit Shah for the debacle of the BJP-led alliance in Bihar.


Then,BJP president Amit Shah today met RSS chief Mohan Bhagwat, a day after the party crashed to a humiliating defeat in the Bihar assembly elections which had prompted a section of the party to blame Bhagwat's quota comments as one of the reasons for the unexpected debacle!


Your quota remark had no impact on Bihar verdict: Shah tells Bhagwat



We might not celebrate the mandate in Bihar! Just because the caste alliance of religious polarization had to eat dust and OBC grand alliance won!

It has to be followed by yet another holocaust because Mandal versus Kamandal Mahabharat,the picture to enacted in UP and elsewhere Abhi Baki Hai.Rather we should understand the phenomenon of partition and the holocaust which continue against humanity and nature as we boast of democracy and growth!


The most revolutionary Artist from this geopolitics, an excellent filmmaker full of musicality,original sound design and vocal scenario,addressed this problem with scientific vision and aesthetics of social realism and created new grammar in his three films made in 1960,1961 and 1962.I have discussed Komal Gandhar, the master piece for which he had been expelled and excluded and the last one,Subarnarekha which deals with Manusmriti caste and class rule and it has been treated as blasphemy!


The Mandate Ginnie Titanic Baba won for business friendly governance is on stake!

Look! Here you are!

Biocon CMD Kiran Mazumdar Shaw said that the Modi government should now focus on its economic agenda and hoped the Opposition would also extend a helping hand.

Pledging its support to big-ticket investments in Bihar following the Nitish Kumar-led Grand Alliance's thumping victory, India Inc on Sunday sought a renewed focus by the Modi government at Centre on economic reforms.

Biocon CMD Kiran Mazumdar Shaw said that the Modi government should now focus on its economic agenda and hoped the Opposition would also extend a helping hand.

"With Bihar elections behind us, Modi govt can now give undivided attention to the economic agenda... Hope Opposition aligns with the government and the electorate," she tweeted.

She further said the Congress also "needs course correction. Vitriolic rhetoric and opposing economic Bills is alienating the party from the electorate".

Congratulating Chief Minister Nitish Kumar and his Grand Alliance on an impressive victory, Assocham said the industry looks forward to "a new beginning" in the State, which needs a renewed vigour for economic development.

It further said that with elections now out of the way, "the industry expects the Centre and the state to work together to pursue certain economic reforms like the Goods and Services tax so that the Indian economy is able to achieve higher growth for the benefit of all citizens".

In a statement, CII too committed to working with the new government in furthering the State's development agenda.

"Our best wishes go to the incoming government, and I am sure the new government will dedicate itself to fulfilling the aspirations of the masses by leading Bihar to a new era of industrial development, economic growth and prosperity," said CII president Sumit Mazumder.

The chamber suggested that the new government leverage the PPP model, including FDI participation, to boost delivery of services and improve efficiency.

British financial services major Barclays said Indian financial markets were cautious ahead of the election results, and a result against the BJP should lead to market weakness.

"We feel that today's results — the BJP's big defeat — could be a material sentiment dampener in Monday's early trade as this might be perceived as an additional stumbling block to the central government's reform agenda," it said in a release.

The industry chambers said the focus will be on agri and food processing, infrastructure, manufacturing and MSMEs, ICT and e-governance, tourism, healthcare, education and skill development, and power and energy.

Assocham said, "The Indian industry would be ever willing to work with the new government in Bihar for ensuring that it receives the kind of investments and attention of big time projects and industrial projects that the state deserves".

On the results, the Confederation of All India Traders (CAIT) said, "Absence of any mechanism to take down the line various landmark initiatives and policies including Mudra Bank Yojna, Skill India, Digital India and Make in India campaign of Prime Minister Narendra Modi could be one of the causes."

The CAIT added: "Undoubtedly, no connect with beneficiaries of all these innovative schemes played a major role in debacle of NDA in Bihar polls. If transformed in true letter and spirit, NDA could have come out with flying colours in polls."

CAIT national president B.C. Bhartia and secretary-general Praveen Khandelwal hoped that serious introspection will be made by the central government on implementing these schemes.

Engineering Export Promotion Council India chairman T.S. Bhasin felt that Bihar can be a global hub for engineering export items of interest to small and medium enterprises.


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Why East Bengal Refugees are Discriminated and Hated!

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Why East Bengal Refugees are Discriminated 

and Hated?

Subarna Rekha,Blasphemy against ideology by Ritwik Ghatak,the Golden Line and the Ati Dalit Bagdi Bou and death of Sita in a brothel! Palash Biswas


Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya

Palash Biswas

(Blogged on 

WEDNESDAY, SEPTEMBER 06, 2006

in reference to the original reform,mother of all reforms,the Citizenship Amendment Act )

More than twenty million East bengal refugees coming over to India in different dates and phases since 1947 partition and riots over there, awaiting citizenship and rehabilitation, reservation, right to learn mother language and even minimum human and civil rights in different states of India.


 Meanwhile, the original citizenship Act of 1955 has been changed by a new act called Dual citizenship Act enacted last year with the objectives: preventing grant of Indian Citizenship to illegal migrants; grant of dual citizenship to foreigners of Indian origin and mandatory registration with issue of National identity card for all citizens of India.


This new Act declares the government stand to deport all illegal migrants.This anti refugee Act was passed in the parliament with general consensus. The SC/St MPs from Bengal also supported the bill bowing to respective party whip. . 


The new act has abolished the right of citizenship by birth. Any person who has crossed the border after 18th July 1948 without valid passport and visa is considered illegal migrants. The East Bengal refugees, even rehabilitated in fifties, have not been granted citizenship as have been the refugees coming from West Punjab.


 The Bengali leadership never demanded citizenship for the refugees. BJP leaders and CPIM leaders in bengal speak in the same language about the Bengali refugees. Thirteen lac names have been deleted in Bengal in the last assembly elections as the concerned persons could not prove their Indian nationality. 


The situation is very grave as it is seen in the pilot project of national identity card in Murshidabad district in West Bengal. More than ninety percent of the population could not present the required documents to prove their citizenship.


 Elsewhere in the country, refugees and even the Indian Bengali citizens in non Bengali states staying for employment are being deported. Rehabilitated in fifties, the Dandakaranya refugees in Orissa have been served the notice to leave India.


 In Orissa the registration of new born babies in the refugee families are being denied birth certificates. East Bengal refugees have been discriminated and victimized as ninety percent of them belongs to scheduled castes . 


In Chhattisgargh itself twenty two of total twenty six lac Bengali refugees belong to Namashudra caste. It is the same story elsewhere ,more or less. Other prominent refugee caste is the dalit Paundra, Pods, who are considered as par as the Namashudras.


 We have to know the social equation of erstwhile Bengal to understand the Bengali leadership behaviour. 


It is well known that Indian Dalit movement is rooted in East Bengal as well well as in Maharashtra. Namoshudra leader Jogendra Nath Mandal led the Dalit movement in Bengal. Mandal was responsible to send Ambedkar.


 Thus, Hindu Dalit majority areas like Jassore, Faridpur, Barishal and Khulna were included in Pakistan which destroyed the Dalit movement base in India. 


The Dalit refugees had been scattered all over in India with an objective to annihilate the main dalit foce like Namashudra and Paundras. 


Specific lower castes, or 'Scheduled Castes' (as they were known in British Indian official parlance), who lived in the border areas between East Pakistan (now Bangladesh) and the West Bengal state of the Union of India. They maintained since the early twentieth century their distance from high caste Hindus and their politics and, often in alliance with Muslims, opposed them actively.


The Namasudras who were earlier known as Chandals (a term derived from the Sanskrit chandala, a representative term for the untouchables) lived mainly in the Eastern districts of Bengal. According to the census of 1901, more than 75 percent of the Namasudra population lived in the districts of Bakerganj, Faridpur, Dhaka, Mymensingh, Jessore and Khulna. 


Moreover, it has also been pointed out in several studies that a contiguous region comprising northeastern Bakerganj, southern Faridpur and the adjoining Narail, Magura, Khulna and Bagerhat districts contained more than half of this caste population.


 It was the Matuya leader Harichand Thakur who led the movement to abolish the foul noun for the dalits and the British Governmet prohibited calling anyone Chandal.


 The Chandals became Namashudra.But the independence with partition of Bengal which ultimately came in the midnight of 14-15 August 1947 did not help the Scheduled Caste masses, as they feared.


 The caste Hindu ruling class captured the state power replacing British. 


Many prominent groups like the Namasudras and the Rajbansis lost their territorial anchorage and, contrary to their hopes and in spite of their pleas, most of the Namasudra-inhabited areas in Bakarganj, Faridpur, Jessore and Khulna, like the Rajbansi areas of Dinajpur and Rangpur, went to East Pakistan, instead of West Bengal. 


The post-partition violence, as F.C. Bourne, the last British Governor of East Bengal reported in 1950, left many of them with "nothing beyond their lives and the clothes they stand up in". This compelled many of them to migrate as refugees to India, where being uprooted from their traditional homeland they had to begin once again their struggle for existence.


 The national leaders like Jawahar Lal Nehru, Dr Rajendra Prasad , Sardar Patel and others assured the partition victims every possible assistance and rehabilitation.


The two most important communities which dominated Scheduled Caste politics in colonial Bengal were the Namasudras and the Rajbansis. 


The Namasudras, earlier known as the Chandals of Bengal, lived mainly in the eastern districts of Dacca, Bakarganj, Faridpur, Mymensingh, Jessore and Khulna. When these districts were ceded to East Pakistan, the inhabitants were forced to migrate across the new international boundary to the state of West Bengal in India. 


At the same time, a section of the Kochs of northern Bengal, living in the districts of Rangpur, Dinajpur, Jalpaiguri and the Princely state of Cooch Behar, came to be known as the Rajbansis from the late nineteenth century.


 Of those districts, Rangpur and parts of Dinajpur went to East Pakistan, while the rest remained in West Bengal. 


In other words, so far as the Namasudras and the Rajbansis were concerned, the international political boundary that came into existence in 1947 did not correspond by any means to ethnic boundaries, and resulted in the uprooting of these two groups of people from their territorial anchorage.


 Incidentally, according to the 1901 Census, the Rajbansis and the Namasudras were the second and third largest Hindu castes respectively in the colonial province of Bengal.Both of these two groups were considered untouchables among the Hindus of Bengal.


 Although untouchability per se was not as limiting a problem in this as in other parts of India, the Namasudras and the Rajbansis suffered from a number of disabilities, which created a considerable social distance between them and the high caste Bengalis who dominated Hindu society.


 Hence, when as a result of land reclaimations in eastern and northern Bengal in the late nineteenth century, these two groups of people both experienced some amount of vertical social mobility, they proposed creating their own distinctive community identities. 


As the Hindu nationalists began to invoke a glorious Hindu past as an inspiration for nation building, these people at the bottom of the social hierarchy began to look at the present as an improvement over the darker past. 


They regarded British rule as a good thing, seeing it as having overthrown the codes of Manu and establishing equality in an otherwise hierarchical society. 


The nationalist movement, therefore, appeared to them to be an attempt to put the clock back - an endeavour by the higher castes to restore their slipping grip over society.


 In 1906, a Namasudra resolution stated very clearly that "simply owing to the dislike and hatred of the Brahmins, the Vaidyas and the Kayasthas, this vast Namasudra community has remained backward; this community has, therefore, not the least sympathy with them and their agitation ...". 


In 1918 the Namasudras and the Rajbansis in a joint meeting demanded unequivocally the principle of "communal representation" to prevent "the oligarchy of a handful of limited castes". And when this was finally granted in the Communal Award of 1932, the leaders of both these communities greeted it as "a political advantage unprecedented and unparalleled in the constitutional history of India".


 But Gandhi, anxious to maintain the political homogeneity of the Hindu community, stood in their way. When Ambedkar finally succumbed to his moral pressure to sign the Poona Pact, the Rajbansi and Namasudra leaders condemned it as "Dr Ambedkar's political blunder"; for, by taking away the privilege of a separate electorate, it "ultimately led ... to the political death of millions of people at the hands of the so-called caste Hindus". 


Sometimes this alienation took the form of violent confrontation, particularly as the Namasudra peasants got involved in bazaar looting, house breaking and, in alliance with the Muslims, socially boycotting the high caste Hindus. In the case of the Rajbansis, passivity was the more dominant form of expression of their alienation, although from time to time they too participated in shop looting and no-rent campaigns against their high caste zamindars.


It should be noted that in undivided Bengal, the Zamidars belonged to Brahmin and kayasth communities whereas the peasants were muslims and dalits.


 Thus ,the dalit Muslim alliance was a normal and scientific result of economic political tension in Bengal. It further resulted in the rise of Muslim League politics in Bengal as it was considered as the best expression of revolt by Muslim peasants against caste Hindu Zamindars. 


The dalit peasant communities like Namashudra, Rajbanshi and Paundras saw nothing wrong in it. 


Since the early years of the twentieth century both the Namasudras and the Rajbangshis sent requests to the colonial bureaucracy to bring them under the orbit of preferential treatment. 


Apart from extending preferential treatment to them in matters of education and employment, sympathies were also sought from the colonial bureaucracy over matters related to political participation. 


While the position of the Namasudra and Rajbangshi elite in the local bodies showed signs of improvement, their representation in the provincial legislature was still negligible. But more importantly, in order to gain special political privileges, the lower caste elite consciously advocated an anti-Congress and pro-British stance. 


At the same time, the lower caste elite, particularly the Namasudras who had actively opposed the swadeshi movement of the Congress, favoured a blatantly separatist line in the wake of the constitutional proposals of the 1910s and 1920s seeking greater devolution of power among various Indian groups. 


Almost immediately after the Mont-Ford proposals, the Rajbangshi and Namasudra elite pressed for greater representation for depressed communities in Bengal. As a result of these demands, the Reform Act of 1919 provided for the nomination of one representative of the depressed classes to the Bengal Legislature.


The peasants of these Bengali Dalit castes refrained from participating in Congress-led mass political agitations like the Non-Co-operation, Civil Disobedience and Quit India movements, led by Gandhi, because they were under the hegemony of the caste Hindu leaders. And then, finally, in the election of 1937 both Namasudra and Rajbansi voters rejected the Congress and the Hindu Sabha candidates and elected their own caste leaders in all the Scheduled Caste reserved constituencies.


 The process of alienation seemingly came to a conclusion with Dr B.R. Ambedkar forming the All India Scheduled Caste Federation in 1942 and declaring that "the Scheduled Castes are distinct and separate from the Hindus ...". 


The following year, its Bengal branch was started by a few enthusiastic Namasudra and Rajbansi leaders, their avowed political goal being to establish "the separate political identity" of the Scheduled Castes.


After the election of 1937, when the leaders of the Namasudra and Muslim communities were coming to a political adjustment and the first coalition ministry under Fazlul Huq had started functioning smoothly, their followers in the eastern Bengal countryside got involved in a series of violent riots in Faridpur, Mymensingh and Jessore between February and April 1938. 


Though rioting had been entirely due to local initiative of the peasants of the two communities over such issues as disputes over cattle or demarcation of land, the Hindu Sabha decided to take up the issues and make them items for a propaganda campaign. In an organised way rumours were spread, particularly in Jessore, that temples had been desecrated and images broken and an Assistant Secretary of the organisation was sent to the troubled area to conduct an enquiry on the spot. Religious emotions were thus fermented in a conflict which initially had nothing to do with religion.


At a meeting at Agra in March 1946, Ambedkar had announced his support for the League demand, "Muslims are fighting for their legitimate rights and they are bound to achieve Pakistan". About a month later, in a press interview, he justified his demand for separate villages for the Scheduled Castes. This would not amount, he thought, to an encroachment on the rights of any other party.


 There were large areas of cultivable waste land lying untenanted in the country which could be set aside for the settlement of the Scheduled Castes. 


The echoes of this demand could be heard from distant places.


 In the Central Provinces some of the Scheduled Castes started talking vaguely about a 'Dalistan'; and in northern Bengal a few Rajbansis, supported by the Scheduled Caste Federation leader Jogendranath Mandal, raised the demand for 'Rajasthan' or a separate Rajbansi Kshatriya homeland. But the majority of the Scheduled Castes in Bengal, the Rajbansis included, seemed to be on the exactly opposite pole. Their responses to the partition issue clearly show that they had completely identified themselves with Hindu sentiments and apprehensions on this matter.


In Bengal Eaton shows that those from whom. Muslim converts were largely drawn—Rajbansis, Pods, Chandals, Kuchs, etc .Significantly, there was hardly any major social movement in Bengal between the tenth and the fifteenth century aimed at the elevation of the Antyaja jatis in the Hindu social scale. 


Only in 19th century, Harichand Thakur and Guruchand Thakur of Orakandi changed the scenerio with Matuya Dharama denying Brahminical Hindu religion.Matuya Hindu religious community, founded by Sri Sri harichand thakur of Gopalganj.


 The word 'matuya' means to be absorbed or remain absorbed in meditation, specifically to be absorbed in the meditation of the divine.


The Matuya sect is monotheist. It is not committed to Vedic rituals, and singing hymns in praise of the deity is their way of prayer and meditation. They believe that salvation lies in faith and devotion. Their ultimate objective is to attain truth through this kind of meditation and worship. They believe that love is the only way to God. 


Under the influence of certain liberal religious sects, a sense of self-respect developed among the Namasudras. In fact, these liberal as well as radical sects under the leadership of charismatic gurus like Keshab Pagal or Sahalal Pir challenged the hierarchic Hindu caste system and preached a simple gospel based on devotion (bhakti) and spiritual emotionalism (bhava). 


In 1872-73, the Namasudras under the leadership of Dwarkanath Mandal, tried to bolster their self-esteem by undertaking a social and economic boycott of the upper castes. The failure of this movement led to the establishment of the Matua sect - an organised religious sect under the influence of Sri Harichand Thakur and his son Sri Guru Chand Thakur.

The namashudras joined the Matuya Dharam. Which Was a social reform movement altogether. Harichand and Guruchand Thakur emphasised on education. Guruchand Thakur established thousands of eductional institutions. The Matuya have no distinctions of caste, creed, or class. They believe that everyone is a child of God. 


The Matuya believe that male and female are equal. They discourage early marriage. Widow remarriage is allowed. They refer to their religious teachers as 'gonsai;' both men and women can be gonsai. The community observes Wednesday as the day of communal worship.


 The gathering, which is called 'Hari Sabha' (the meeting of Hari), is an occasion for the Matuya to sing kirtan in praise of Hari till they almost fall senseless. musical instruments such as jaydanka, kansa, conch, shinga, accompany the kirtan. The gonsai, garlanded with karanga (coconut shell) and carrying chhota, sticks about twenty inches long, and red flags with white patches, lead the singing.


In fact, there was hardly any case of social mobility among them, and for the great majority of the population comprising essentially the lower castes, the major sources of social mobility remained inaccessible. 


Prolonged pursuit of a particular occupation for generations in the absence of alternative job opportunities naturally gave rise to strict social conventions, which in the traditional context were overlaid with rituals. Some details relating to the lower castes in Bengal can be highlighted.


 Lower Caste Movements efforts to obliterate the social backwardness of some groups or communities in the society. Bengali society throughout the nineteenth and twentieth centuries remained broadly divided into the Hindu and Muslim communities.


 In that sense, the inner divisions of the Hindu society tended to be perfunctory. 


Thus, the social scenario in Bengal betrayed features quite different from those in Central India and some parts of the Deccan, where the Muslim population was relatively small as a result of which the anti-Brahmin movements thrived there.


The forms of discrimination against the untouchables in Bengal differed from that in Maharastra or South India. 


In Bengal, caste rigidities were never strong enough to keep the untouchable population in a state of perpetual servitude. In this context, the types of discrimination faced by depressed or scheduled caste leaders like jogendranath mandal were not the same as those experienced by Ambedkar in Maharastra.


In Bengal ,the list of scheduled castes included not only the 'untouchables' but also several Ajalchal castes ritually ranked a step above them. 


The colonial bureaucracy enlisted communities under the Scheduled Caste grouping not much in accordance to their ritual status, but more in terms of their economic status. 


Therefore, it has been argued that since the intensity of untouchability was relatively weak in Bengal, compared to some other regions of India, movements such as those demanding right of entry to temples could never become a major plank in the movement for the removal of untouchability. 


Therefore lower caste protest did not always demand the complete removal of untouchability. Scholars like Masayuki Usuda have argued that these movements took the form of joint efforts in which socially backward castes too participated. 


The problems of untouchability and those of social ostracism were reflected in the antagonisms that prevailed between the indigent Chhotoloks (low born) and the rich Bhadraloks (men enjoying a higher status by virtue of their ritual ranking, education and other virtues) in the society. At times movements among the Bengali untouchables assumed class connotations.


However, such movements need to be analysed in two different ways.


 In the first place, such movements are sometimes considered as manifestations of protest against a dominant system of social organisation that sanctioned disabilities and inflicted deprivation on certain subordinate groups. On the other hand such movements, it has been argued, could be interpreted as expressions of ambitions or aspirations that sought accommodation and positional readjustments within the existing system of distribution of power and prestige.


 It would be worthwhile to argue that within such 'untouchable' social groups, different levels of social consciousness and different forms of political action emerged, which inevitably were incorporated within a single movement.


In Bengal, due to their socio-economic backwardness, some of the lower or 'untouchable' castes developed worldviews that were fundamentally different from that of the nationalists and this led to their alienation from mainstream politics. However within the same social movement of such ritually 'inferior' castes, there could be a convergence of different tendencies - some protestant and some accommodating. 


In fact, as a result of such tendencies, lower caste social protest in spite of the immense possibilities of initiating some fundamental changes in society or polity, fell far short of the cherished goals.


The Pala documents also provide some information about the untouchable castes, which were outside the frontiers of Hindu society. In the list containing the names of the beneficiaries of landgrants in the Pala copperplates, high governments officials were immediately followed by Brahmans, who in turn were followed by various peasant communities. 


In fact, there was no reference either to the Ksatriyas or the Vaishyas. But, beyond such social groupings there were several other groups who were referred to as Medh, Andhra and Chandalas. 


The Chandalas were considered to be the lowest of all the social groupings. Social commentators like Bhabadeva Bhatta have referred to them as an AntyajaJati. In several charya songs information about several other low castes such as Doms or Dombs, Chandalas, Shabaras and Kapalikas have also been found. In some medieval texts it has been pointed out that contact of Brahmans with such lower castes was forbidden.



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What is politics?

here you are!


While investors and analysts do not expect the government to abandon its reforms agenda completely after the Bihar debacle, the government will also have to address the stress in rural India. Later next year, West Bengal, Kerala and Assam head for polls.


Means appeasement only!Appease the Vote Bank!Hit the Bull`s eye!RSS missed the target very very wide as Our Comrades miss it countrywide!

They would just change the Game!


However it remains WWF!NOORANI KUSHTI.KHulla Khel Farrukhabadi!Manusmriti Rule sustained!

It would be yet so many Mahabharat and so many Kurukshetra!The Civil War continues.The Mandal V/S Kamandal War to continue as CASTE INTACT.


Politicians or the entire caste class united Hegemony not concerned with the plight of Humanity at all!Nor the Mandate has any relevance whatsoever to the economy or production system captured by foreign capital or foreign interest.Rather the leader being proved to be so frail with 56 inch chest that it would help the concerned parties to have their final say as we,the people lose sovereignty,freedom and democracy!


Whatever might be the mandate,the political scenario, ratings or it might be global trends destablize the indices and the market as well,consensus remains intact to push hard reforms.In fact,Bihar debacle would rather intesify the economic reforms as demanded and business friendly governance and united opposition have to comply with directives of foreign capital and foreign investment as Free Market is our religion,not Hindutva as claimed and hyped so much so!

In politics ,divided they stand,but they stay united rock solid to guillotine, the money spinning machine!

The political class behaves reconciliation!

Disinvestment!

Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya

Nothing changed!

Nothing to be changed at all!

It is Chhat,the Sun God worship time which is the last sign of the religion our ancient  fore fore fore fathers and mothers practiced.The forces of Nature had been the incarnation of our faith.We opted for idols and marketing agents very late.No marketing agent,no purohit intervenes Chhat!


But it had been an Unprecedented Dhanteras and it has to be very loud Puja of Kali or Laxmi wishing wealth and safety!


Those who celebrate Chhat,they have to surrender to tantra mantra yantra and Tabiz!idol worshipping!

We claim to be Hindu but we speak caste and caste only.It is politics.Proved more than enough.You may not name one hundred castes who have the share in power but we have more than SIX thousand castes.


NDA fielded 46 Bhumihars in Bihar and lost the election.Lalu ensured  that NO Bhumihar should get the ticket.He becomes the King Maker and every Yadav candidate walks cake to win on his ticket!


We might not celebrate this mandate which is claimed to be yet another historic turnaround as the Total Revolution in 1977 had been described and suddenly we had to invent that we have the children of neoliberal in the helms and we remain predestined in our day to day plight and flight!


It is again Diwali full of sound bombs.No crakers from pakistan have the echoes in Idia,however!


It is Business in full bloom and the retailers must die!Industrialization means indiscriminate urbanization and infinite displacement without rehabilitation whatsoever.It is the growth saga!It is inclusion and SAMARASTA devoid of justice,equality,tolerance and pluralism.It is the monopolistic aggression aginst the people>

After Bihar debacle, Arun Jaitley says government will push ahead with reform. Finance Minister Arun Jaitley's statement that the government will push ahead with much-needed reforms soothed investor concerns.


Here you are!

In politics ,divided they stand,but they stay united rock solid to guillotine, the money spinning machine!The political class behaves reconciliation!


Thus,Pledging its support to big-ticket investments in Bihar following the Nitish Kumar-led Grand Alliance's thumping victory, India Inc on Sunday sought a renewed focus by the Modi government at Centre on economic reforms!It turns to be theme song!Super Duper Diwali Bumper!


Thus,Politicians or the entire caste class united Hegemony not concerned with the plight of Humanity at all!Nor the Mandate has any relevance whatsoever to the economy or production system captured by foreign capital or foreign interest.Rather the leader being proved to be so frail with 56 inch chest that it would help the concerned parties to have their final say as we,the people lose sovereignty,freedom and democracy!


Whatever might be the mandate,the political scenario, ratings or it might be global trends destablize the indices and the market as well,consensus remains intact to push hard reforms.In fact,Bihar debacle would rather intesify the economic reforms as demanded and business friendly governance and united opposition have to comply with directives of foreign capital and foreign investment as Free Market is our religion,not Hindutva as claimed and hyped so much so!


Just look at the screaming headline,After Bihar debacle, Arun Jaitley says government will push ahead with reform

It is largely business as usual for markets after the BJP's drubbing in the Bihar assembly elections. After falling as low as 2.31% from Friday's close, the markets clawed back to close the day 0.5% down. In fact other Asian markets such as Hong Kong and Korea saw sharper falls.


Finance Minister Arun Jaitley's statement that the government will push ahead with much-needed reforms soothed investor concerns. In any case, a derailing of BJP's Bihar hopes do not change things politically at the Centre. While the government retains its majority in the lower house, even a big win in Bihar might not have led to a large increase in Rajya Sabha seats in the immediate future. Only five of the 16 Rajya Sabha members come up for re-election in 2016 and another 6 in April 2018.


"The loss may complicate politics for the Central government, but we don't expect major implications on the economic front," said Thomas Rookmaaker, Director in Fitch Ratings' Asia-Pacific Sovereigns team. While the Bihar debacle for the BJP might not change anybody's growth outlook forecasts, it does open up questions about whether the government will accelerate reforms especially when the global growth outlook is also dim.


"Reforms will continue to be calibrated at a pace that takes everyone along, especially after the Bihar poll result, although this may disappoint some segments of the markets," said a note from Bank of America Merrill Lynch. The complication for the NDA will arise from opposition parties placing hurdles in legislative agenda. This has already been seen in cases such as the land acquisition bill and the goods and services tax regime.


"The government may have to rely on…cooperative federalism (something which the Prime Minister has championed anyway) and political management to reinvigorate legislation at the central level," said a note from Kotak Institutional Equities. That will get all the more tougher as an opposition, encouraged by this set back for the Central ruling party, increases its attack on the BJP and disrupts Parliament. Still, while a slower pace of rollout may be expected for the big ticket reforms, as Fitch's Rookmaaker points out, "the government has gradually rolled out a large number of initiatives and there is no indication it would now change course." The recent bailout package for discoms is a case in point.

For markets, which have discounted the loss, the next set of triggers would come from a host of factors such as corporate earnings, lending rate cuts and externals events such as the US Federal Reserve's decision to hike interest rates.


Finance Minister Arun Jaitley's statement that the government will push ahead with much-needed reforms soothed investor concerns.

- See more at: http://indianexpress.com/article/explained/after-bihar-debacle-arun-jaitley-says-govt-will-push-ahead-with-reform/#sthash.36jT0poh.dpuf

It tells the story.It is stronger caste alliance that won the civil war aginst the blind religious polarization on imported BEEF BAN Arabian Spring window!



Nov 10 2015 : The Economic Times (Bangalore) reports:

Here's Why FM May Be Right in Saying Bihar Won't Derail Reforms







There is concern that reforms may slow down after National Democratic Alliance's defeat in Bihar, as an emboldened Opposition stalls lawmaking. Finance Minister Arun Jaitley says that will not be the case. Here's why:

http://epaperbeta.timesofindia.com/Article.aspx?eid=31815&articlexml=Heres-Why-FM-May-Be-Right-in-Saying-10112015022037










However,Nov 10 2015 : The Economic Times (Bangalore) reports:

It is Market's 3rd Worst Samvat in a Decade







The Indian equity market has lost 2.18% (Sensex) in rupee terms and 6.44% (MSCI India) in dollar terms this Samvat, which ends on Tuesday. This will be the third-worst performance of the Indian market in the past 10 Samvats and the fourth in 15 years as the hype and hope created on the back of Narendra Modi's victory did not get translated into reality. In the past, Sensex fell 18%, 52% and 4% in 2011, 2008 and 2002, respectively.Slow earnings revival, fading hopes of big-bang reforms and high volatility in the global equity markets had a bearing on the Indian market in the past one year, according to analysts. Global investment guru Jim Rogers, in an interview to Mint a few weeks ago, said he's sold off his shares in Indian companies as the Modi government has been all talk and no action; and the Indian market lacks any new drivers to propel it.


HARD TIMES

The Bihar elections will test just how much India can reform itself

Deep N Mukherjee

November 09, 2015 Quartz India

Kumar has an economic mandate too.(AP Photo/Aftab Alam Siddiqui)

Nitish Kumar, the leader of Grand Alliance that won 178 of the 243 seats of Bihar state assembly, has been the chief minister of the state since 2005. Kumar had also been a part of the Bharatiya Janata Party (BJP)-led alliance National Democratic Alliance (NDA). But he quit the NDA in June 2013 to ultimately become its nemesis.

The man he so soundly defeated, Narendra Modi, was catapulted into prime ministership, with much recognition of his four terms as the chief minister of Gujarat. Kumar, though, never found such accolades from markets and the media. Yet, for the five-year period between 2005 and 2009, the 11.03% growth rate in the state gross domestic product (GDP) of Bihar was the second best in India—just after Gujarat's at 11.05%.

In June 2009, Bihar's capital city of Patna was adjudged by the World Bank as the second best city to do business in India after Delhi. But it largely went unnoticed by the media, but it seems the citizens of Bihar remembered all these positive changes, which is why they gave Kumar such a massive mandate.

So, while most of the observers and leaders of the winning alliance claim it to be a victory over social intolerance, this mandate could also be one for the continuation of growth that Bihar exhibited since Kumar took over.

A litmus test for reforms

When the winter session of the parliament starts, over a dozen critical bills would be put up for consideration in the parliament. Among these critical bills, the most apolitical ones include the Real Estate Regulatory Authority Bill and the Bankruptcy Code. The Goods and Service Tax (GST) Bill, Land Acquisition Act, Coal and Mines Bill and amendments to labour laws may also be reintroduced but these appear less likely to be passed. If the reform agenda is to remain a credible part of the India growth story, at least the apolitical bills should ideally be discussed and hopefully passed by the parliament.

However, if the opposition parties feel that their protests against the Modi government are bearing fruits—or if Modi's growth agenda is itself weakened by dissidents within the BJP—then winter session risks collapse. Then, one may have to rethink whether India can at all reform itself in a calibrated way by generating political consensus.

The 'P' word and sentiment

The successful passage of the apolitical bills in the winter session will keep the "India story" intact, at least in the short to medium term. Then, the focus may shift to the annual budget in February 2016. If a plausible budget is delivered, investors will continue to hang onto the Indian growth story.

But if the winter session fails to pass any of the major bills, the expectations from the budget will be so high that it will almost certainly fail to meet them. That could then lead us to the spectre of "policy paralysis," which haunted the last years of the previous government, and sapped the economy of its vitality.

A policy logjam will also have an impact on Indian equities, which have been stable since the Modi government came to power.

The current rupee strength owes a lot to the US dollar investment in the Indian equity market. A sell-off, thus, would actually weaken the Indian rupee. In turn, this will prevent the Reserve Bank of India from bringing down the interest rate and the situation of 2013 may repeat itself. This potential policy and monetary paralysis may reduce India's economic growth which has been higher than the sagging emerging markets, thus far.

Eventually, it all depends on the winter session, and the maturity of India's political class.

We welcome your ideas at ideas.india@qz.com.

http://qz.com/544406/policy-paralysis-will-the-bihar-debacle-turn-modis-bjp-into-a-upa-ii/










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Imported Arabian BEEF Spring to continue as the Mahabharat of Mandal kamandal continues.Hence I post the Beef History! In the Vedas there are references to various kinds of sacrifice in which cows were killed and its flesh was eaten. This practise continued in the post-Vedic period, up to the pre-Mauryan period! Subarna Rekha,Blasphemy against ideology by Ritwik Ghatak,the Golden Line and the Ati Dalit Bagdi Bou and death of Sita in a brothel! Palash Biswas https://www.youtube.com/watch?v=riBIpzxI8qU Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya https://www.youtube.com/watch? v=jeiGPWYIOqs Palash Biswas

Next: संपूर्ण एफडीआई राज! भारत विदेशी पूंजी के हवाले! बिहारे नीतीशे कुमार जनादेश का बजरंगी जवाब! दिवाली पर युधिष्ठिर अवतार में नंगे बिरंची बाबा ने बिहार जनादेश के बाद जुए में देश भी हार गये! हमका भी हउ चाहि! द्रोपदी का चीरहरण और हम तमाशबीन आत्मध्वंशी कुरुवंश! बिहार का जनादेश काफी नहीं है बेलगाम अश्वमेधी सांढ़ों और घड़ो को लगाम सकने के लिए।हम बार बार कहि रहे हैं। उनके इस अधर्म अपकर्म धतकरम की तुलना यौनकर्म से भी नहीं कर सकते क्योंकि वे भी खून पसीने की कमाई खाते हैं,हराम के अंधियारे के अरबों अरबों कालाधन का खजाना नहीं है समाज से बहिस्कृत,पितृसत्ता के शिकार और उत्पीड़ितों का। विडंबना है कि किसी के साथ भी सत्ता के लिए हमबिस्तर होने वालों के लटके झटके और बड़बोले वैचारिक नैतिक धार्मिक बोल वे ही हैं जो यौनकर्म के लक्षण हैं,राजकाज,राजनय और राजनीति के नहीं।अधर्म है यह अपराधकर्म,राष्ट्रद्रोह! विदेशी पूंजी उनकी मुहब्बत है,बेगानी शादी में बाराती मजे में हैं,आम लोग अब्दुल्ला दीवाना! पलाश विश्वास
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Imported Arabian BEEF Spring to continue as the Mahabharat of Mandal kamandal continues.Hence I post the Beef History!

In the Vedas there are references to various kinds of sacrifice in which cows were killed and its flesh was eaten. This practise continued in the post-Vedic period, up to the pre-Mauryan period!

Subarna Rekha,Blasphemy against ideology by Ritwik Ghatak,the Golden Line and the Ati Dalit Bagdi Bou and death of Sita in a brothel! Palash Biswas


Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya


Palash Biswas

Hi Anand

 Thanks good piece of article. Forwarding to others.

Thanks and regards,

Shabana.

On Mon, Nov 9, 2015 at 11:52 PM, pradeep mandhyan<pradeep.b.mandhyan@gmail.com> wrote:







 |  2-minute read |   07-10-2015
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There is copious evidence that the Vedic Aryans sacrificed cows and ate beef. In the Vedas there are references to various kinds of sacrifice in which cows were killed and its flesh was eaten. This practise continued in the post-Vedic period, up to the pre-Mauryan period. Gradually, from the Mauryan period onwards references to cow killing begin to figure less in our sources. The Brahmins, who were the main proponents of the sacrifices, now began to discourage and even disapprove of the killing of the cow. Their disapproval was linked with the idea of Kaliyuga, which is first enunciated in the Mahabharata and the early Puranic texts belonging to the post-Mauryan and Gupta period.

The Brahmin law givers now began to argue that certain old practises had to be given up in the Kaliyuga and one of them is the practise of killing a cow. Their discouragement and disapproval of the practise is clear from the dharmashastric injunction that a cow killer is an untouchable. Cow killing was given up and beef gradually disappeared from the Brahminical food menu; it now became part of the food culture of the untouchable castes whose number increased over time.

During the medieval period, with the advent of Islam, cow became an emotive cultural symbol of the Brahmanical social order and there were occasional tensions between Muslims and non-Muslims; two instances of confrontation between them in the 17th and 18th centuries are well documented. Cow became a more emotive cultural symbol with the rise of the Maratha kingdom and Shivaji, who is considered to be the saviour of Brahmins and cows. This animal became a mark of Hindu identity mainly during this time.

The Sikh Kuka/ Namdhari Movement in late 19th century used cow as symbol for mobilising Hindus and Sikhs against the British who had allowed cow slaughter in the Punjab. In 1882, Dayanand Saraswati founded the Gow Rakshini Sabha (Cow Protection Society) and was successful in mobilising a wide variety of people under this symbol, which was mainly directed against the Muslims. From then onwards, cow has become an important factor in India's communal politics.

So cow killing, associated with many Vedic sacrifices, tended to lose its importance over time. In the post-Mauryan and Gupta periods and subsequent centuries, the Brahminical injunctions clearly discourage and disapprove of cow slaughter. In the medieval period, we see it emerging as an emotive symbol and in the 19th century, it became a mark of Hindu identity. The aggressive projection of Hindu identity has significantly influenced politics in India during the 20th century. With its increased belligerence now, it is playing a vicious role in contemporary politics.

(As told to Ursila Ali.)


On Mon, Nov 9, 2015 at 11:45 PM, pradeep mandhyan<pradeep.b.mandhyan@gmail.com> wrote:
Hi Anand
as usual incisive enlightening and bold.
Thanks
Pradeep

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संपूर्ण एफडीआई राज! भारत विदेशी पूंजी के हवाले! बिहारे नीतीशे कुमार जनादेश का बजरंगी जवाब! दिवाली पर युधिष्ठिर अवतार में नंगे बिरंची बाबा ने बिहार जनादेश के बाद जुए में देश भी हार गये! हमका भी हउ चाहि! द्रोपदी का चीरहरण और हम तमाशबीन आत्मध्वंशी कुरुवंश! बिहार का जनादेश काफी नहीं है बेलगाम अश्वमेधी सांढ़ों और घड़ो को लगाम सकने के लिए।हम बार बार कहि रहे हैं। उनके इस अधर्म अपकर्म धतकरम की तुलना यौनकर्म से भी नहीं कर सकते क्योंकि वे भी खून पसीने की कमाई खाते हैं,हराम के अंधियारे के अरबों अरबों कालाधन का खजाना नहीं है समाज से बहिस्कृत,पितृसत्ता के शिकार और उत्पीड़ितों का। विडंबना है कि किसी के साथ भी सत्ता के लिए हमबिस्तर होने वालों के लटके झटके और बड़बोले वैचारिक नैतिक धार्मिक बोल वे ही हैं जो यौनकर्म के लक्षण हैं,राजकाज,राजनय और राजनीति के नहीं।अधर्म है यह अपराधकर्म,राष्ट्रद्रोह! विदेशी पूंजी उनकी मुहब्बत है,बेगानी शादी में बाराती मजे में हैं,आम लोग अब्दुल्ला दीवाना! पलाश विश्वास

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संपूर्ण एफडीआई राज!

भारत विदेशी पूंजी के हवाले!

बिहारे नीतीशे कुमार जनादेश का बजरंगी जवाब!

दिवाली पर युधिष्ठिर अवतार में नंगे बिरंची बाबा ने बिहार जनादेश के बाद जुए में देश भी हार गये!

हमका भी हउ चाहि!

द्रोपदी का चीरहरण और हम तमाशबीन आत्मध्वंशी कुरुवंश!

बिहार का जनादेश काफी नहीं है बेलगाम अश्वमेधी सांढ़ों और घड़ो को लगाम सकने के लिए।हम बार बार कहि रहे हैं।


उनके इस अधर्म अपकर्म धतकरम की तुलना यौनकर्म से भी नहीं कर सकते क्योंकि वे भी खून पसीने की कमाई खाते हैं,हराम के अंधियारे के अरबों अरबों कालाधन का खजाना नहीं है समाज से बहिस्कृत,पितृसत्ता के शिकार और उत्पीड़ितों का।


विडंबना है कि किसी के साथ भी सत्ता के लिए हमबिस्तर होने वालों के लटके झटके और बड़बोले वैचारिक नैतिक धार्मिक बोल वे ही हैं जो यौनकर्म के लक्षण हैं,राजकाज,राजनय और राजनीति के नहीं।अधर्म है यह अपराधकर्म,राष्ट्रद्रोह!


विदेशी पूंजी उनकी मुहब्बत है,बेगानी शादी में बाराती मजे में हैं,आम लोग अब्दुल्ला दीवाना!


पलाश विश्वास

बिहार के जनमत से खोयी जनता की आस्था की परवाह नहीं बजरंगी फासिज्म को।परवाह है डांवाडोल सेनसेक्स और निफ्टी की और चालमचोल निवेशकों की अटल आस्था की।जिस मूडीज की रेटिंग को खारिज कर दिया,राजन की सलाह नहीं मानी,शौरी,नारायणमूर्ति,किरण मजुमदार की चेतावनी की परवाह नहीं की,बिहार में धूल चाटने के बाद मुक्तबाजारे के उम महा राजमार्ग पर सरेआम खड़े हैं नंगे बिरंची बाबा।


का पटाखा बाजे घना घना.पाकिस्तान मा न फट हो।फटल बाड़न ई हिंदुस्तानवां की सरजमीं मां।के बिहार का धमाका का गजबे तोड़ निकारे रहिस बिरंची बाबा के सरकार ने डिफेंस, ब्रॉडकास्टिंग, प्राइवेट बैंकिंग, एग्रीकल्चर, प्लांटेशन, माइनिंग, सिविल एविएशन, कंस्ट्रक्शन डेवलपमेंट, सिंगल ब्रांड रिटेल, कैश एंड कैरी होलसेल और मैन्युफैक्चरिंग समेत 15 सेक्टरों में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ा दी है। सरकार ने ड्यूटी फ्री शॉपिंग पर एफडीआई के नियमों में भी ढील दी है।



लज्जाय मुख ढेके जाये।बांग्ला में मुहावरा यह है।भोजपुरी में का होई,बतावा राउर,हम जानत नाहीं।

राष्ट्र को कोई चेहरा होता,तो वह शर्म का चेहरा होता।


यही है कटकटेला अंधियारे का तेजबत्तीवाला सौदागर,ख्वाब नहीं वह मुल्क और इसानियत का सौदा कर रहा खुल्लेआम और हम दीवाली के पटाखों की गूंज में वंदे मातरम भी कहना भूल रहे हैं।

जय हो।जय जय जय हो भारत भाग्यविधाता बिररंची बाबाऍ


बिहार में हार के बाद निवेशकों और मुक्त बाजार की आस्था खोकर भीतरघात और विद्रोह से डरे हुए देश के छप्पन इंच छाती के गामा पहलवाने ने मुक्त बाजार और विदेशी पूंजी के हवाले कर दिया देश और खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा से ठीक पहले मोदी सरकार ने इंडस्ट्री को दिवाली का तोहफा दे दिया है।


आतिशबाजी खूब कीजिये कि सारा देश अब आगजनी के हवाले हैं और मंडल कमंडल कुरुक्षेत्र में हिंदू धरम का सत्यानाश है और भारतवर्ष का विनाश है कि फासिज्म की केसरिया सरकार ने एफडीआई नियमों को आसान करने का फैसला लिया है जिसमें एफडीआई प्रस्ताव की लिमिट को 3,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 5,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। हरिकथा विकास अनंत।


बिहार का जनादेश काफी नहीं है बेलगाम अश्वमेधी सांढ़ों और घड़ो को लगाम सकने के लिए।


जनादेश से बेपरवाह है नस्ली नरसंहार संस्कृति का झंडेवरदार फासिज्म का यह राजकाज।


राजनीतिकवर्ग है रंगबिरंगा शासक वर्ग मनुस्मति अनुशासन के विदेशी हितों से बंधा।


विदेशी पूंजी का गुलाम भारतीय उपनिवेश यह अब मुकम्मल गैस चैंबर है।यातना शिविर अनंत।चीखों पर भी सख्त पहरा है।लबों पर तलवारे चल रही हैं और जंजीरें गुलामी की चीख भी नहीं सकतीं।


आक्सीजन के सारे रास्ते बंद कर दिये गये हैं और धुंआ धुंआ आसमां है।फिजां कयामत है।जमीन पर दावानल है।नदियां खून से लबाबलब हैं जैसे तानाशाह खुदै खून से तरबतर व्हाइट हाउस के रंग रोगन मानसून के बावजूदसफिर धुलाने जा रहि हैं।


इसी धुलाई पर कुर्बानोकुर्बान हैं अंध भगत बिरादरी,खाप पंचायतें और तामाम अस्मिताएं,जातियों का सरदार सरदारिनें।


अमेरिका में ही तमामो नरसंहार की धुलाई का सबसे झख सफेद साबुन चिकिया मुफ्ते पोस्तो पोश्तो मिलेला।तो धकाधक पेलो ह सुधार क्रियाकर्म के परलोक सुधार जाये आउर हिंदुत्व को बने ग्लोबवा,ससुरे गैरहिंदू कोई न बच पावै।जयहो अमेरिका।जयजय।


इस नर्क से रिहाई के रास्ते हम बतावै रहे हैं अपने रोजाना परबचन मा।देख लीज्यों,मंकी बातों की तरह उतना बेमतब भी नइखे।


हम हवा हवाई नहीं हैं।जड़ों से गोबर पानी कीचड़ से सने बोल रहे हैं और हमउ कोई किसी नरसंहार के युध अपराधी नइखे जिन्हें बेइल पर रिहाई मिलल अमेरिकवा मा।


इनसे त ललुआ भौते भौते बैहतर,अमेरिका रिहाई वास्ते न जात रहे।मोक्ष चाहि त हस्तक्षेप बांचे रहो आउर हउ चाहि त गोता लगावैके चाहि बिरंची बाबा के खूनवा के समंदर मा।


उनके इस अधर्म अपकर्म धतकरम की तुलना यौनकर्म से भी नहीं कर सकते क्योंकि वे भी खून पसीने की कमाई खाते हैं,हराम के अंधियारे के अरबों अरबों कालाधन का खजाना नहीं है समाज से बहिस्कृत,पितृसत्ता के शिकार और उत्पीड़ितों का।


विडंबना है कि किसी के साथ भी सत्ता के लिए हमबिस्तर होने वालों के लटके झटके और बड़बोले वैचारिक नैतिक धार्मिक बोल वे ही हैं जो यौनकर्म के लक्षण हैं,राजकाज,राजनय और राजनीति के नहीं।


फिर इंद्रप्रस्थ में अर्श से फर्श पर गिरे नंगई के चक्रवर्ती महाराज बिरंची बाबा,टाइटैनिक महाराज और महाजिन्न एकमुश्त युधिष्ठिर मुद्दा में है और उन्हें सच के बदले झूठ पर झूठ की गोलंदाजी करने का हम हमने दिया है मजहबी सियासत के मुक्तबाजारी बजरंगी जुनून में विकास के करिश्माई डिजिटल इंडिया के झांसे में आकर।


फिर इंद्रप्रस्थ में दिवाली पर द्रोपदी का चीरहरण हुआ है और अबकी दफा कोई भगवान बचाने को,अधर्म का नाश करने अवतरितभी नहीं हुआ।वह द्रोपदी देश की स्वतंत्रता,देश की संप्रभुता,मनुष्यता और प्रकृति है समन्वित बहुलता,सहिष्णुता कि अब अनंत बेदखली आर्थिक विकास है और अर्थव्यवस्था एफडीआई है।


बिहार जनादेश की परवाह इतनी कि संस्थागत बजरंगी मुक्तबाजारी फासिज्म के राजकाज में हमारी दिवाली एफडीआई हो गयी।भारतीय मेहनतकशों और किसानों के साथ साथ रिटेल कारोबारियों,देश की सुरक्षा,सूचना और जनमत,माध्यम विधा, संस्कृति,स्वास्थ्य,परिवहन,आवास,परिवहन,उड़ान,बिजलीपानी,

भोजन,राशन पानी,रेलवे,बैंकिंग,डाक तार,संचार,प्रतिरक्षा,रोटी और रोजगार,आजीविका,जल जंगल जमीन,नागरिकता,नागरिक और मानवाधिकार सब कुछ एक मुसशत् नीलाम कर दिया।नीलाम हो गये उद्योग धंधे।कल कारखाने,उत्पादन प्रणाली।


उसी बिहार में फेर नीतीशे कुमार जनादेश के बाद रेलवे ने बिहार के  ही सारण जिले के मरहोवरा में डीजल लोकोमोटिव फैक्ट्री लगाने के लिए अमेरिकी कंपनी जीई ग्लोबल को चुन लिया है। ये रेलवे में पहला विदेशी निवेश होगा। इस फैक्ट्री से दस साल में 1000 इंजन बनाए जाने का लक्ष्य है।


मरहोवरा प्रोजेक्ट फाइनेंशियल दिक्कतों से लटका था। अब टेंडर प्रोसेस के जरिए जीई को ये प्रोजेक्ट दिया गया है। जिसमें 26 फीसदी हिस्सेदारी रेलवे की होगी। मरहोवरा में अगले 3 साल में उत्पादन शुरू हो जाएगा। शुरुआत में नई टेक्नोलॉजी से बने इंजन इंपोर्ट किए जाएंगे।



मुक्मल फूलझड़ी बहार होई के अब 5,000 करोड़ रुपये तक के एफडीआई प्रस्तावों को एफआईपीबी की मंजूरी लेना जरूरी नहीं होगा। साथ ही जहां एफडीआई पहले से 100 फीसदी तक है वहां नियमों को और आसान किए जाएगा। मंजूरी की प्रक्रिया तेज की जाएगी और कुछ सेक्टरों में ऑटोमेटिक अप्रूवल का दायरा बढ़ाया जाएगा। सभी एफडीआई नियमों की एक किताब बनेगी।



बिल्डर माफिया सिंडिकेटो की वसंत बहार ह कि जलवायु बदलि गयो कि कड़ाके की सर्दी दूर भागे और सीमेंट के जगल में लू और शीत लहर भी एअर कंडीशन टाइल स्टाइल चाहि जैसन के धरतेरसवा मा पेलल रहिस। के सरकार ने कंस्ट्रक्शन सेक्टर में 5 साल के भीतर एफडीआई लाने की शर्त हटा ली गई है। कंस्ट्रक्शन सेक्टर में 5 साल के बाद भी एफडीआई लाना मुमकिन होगा। एनआरआई निवेश में भी एफडीआई नियम आसान कर दिए गए हैं। डिफेंस सेक्टर में ऑटोमैटिक रूट के जरिए 49 फीसदी के एफडीआई निवेश की छूट का ऐलान किया गया है।


सबसे तेज खबरिया चैनल जो हिले से जितावेक के खबारे बहुमत हासिलों के बाद चलावै रहि,उनर खातिर एफडीआी मोहत्सव है त अब चीखों नइखे बेमतलब के मजीछिया उजीठिया जाहि के पिछवाड़े पे लात लगाइके जबभी भगावै एफडीआई याद करना के ब्रॉडकास्टिंग सेक्टर के तहत गैर-खबरिया चैनल में ऑटोमैटिक रूट के जरिए 100 फीसदी एफडीआई निवेश की छूट का ऐलान किया गया है। वहीं ब्रॉडकास्ट सेक्टर में एफआईपीबी के जरिए 49 फीसदी एफडीआई निवेशक की छूट का ऐलान किया गया है। एफएम रेडियो और न्यूज चैनल में 49 फीसदी एफडीआई पर एफआईपीबी की मंजूरी जरूरी होगी। डीटीएच और केबल नेटवर्क में 100 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दी गई है।


वंसतो बाहर हर सेक्टर मा ह।जनता के वास्ते का मिलल ना मिलल,बुझावेक ना चाहि।रबर और कॉफी सेक्टर में 100 फीसदी एफडीआई निवेश की छूट का ऐलान किया गया है। एयरलाइंस ग्राउंड हैंडलिंग में 100 फीसदी एफआईडी को मंजूरी दी गई है। रीजनल एयरलाइंस में 49 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दी गई है। एनआरआई निवेश में भी एफडीआई नियम आसान किए गए हैं।



हम बार बार कह रहे हैं कि यह हिंदुत्व नहीं है।


हिंदुत्व किसी भी सूरत में राष्ट्रद्रोह नहीं हो सकता।


जननी जन्मभूमि के लिए बलिदान देना इस महादेश का धर्म और परंपरा है।


मिथकों के मिथ्या  की बलात्कार सुनामी से मनुस्मृति बहाल करने वाले वैदिकी ज्ञान विज्ञान और इतिहास का हवाला देकर खुल्लमखुल्ला राष्ट्रद्रोह कर रहे हैं और हम जात पांत मजहब में बंटे हिंदुस्तानी मजहबी सियासत सियासती मजहब के मंडल कमंडल महाभारत में तमाशबीन कुरुवंश हैं या इस ओर या उस ओर,गृहयुद्ध घनघोर।



हिंदू धर्म का सर्वनाश है यह तो भारत वर्,का सर्वात्मक विनाश है यह।


हम तिलिस्म में फंसे कंबंधों के सिवाय कुछ भी नहीं हैं।


न जान हैं।न हाथ पांव हैं।न चेहरा है।न कोई वजूद।


दिलोदिमाग हैं ही नहीं।


विवेक के स्वर हमारी समझ से बाहर है क्योकि हम थ्री जी फोर जी फाइव जी आनलाइन क्लोन और रोबोट है और बजरंगी फौजे हैं जो सिर्फ अपनी जात जानते हैं और जात की भाषा बोलते हैं।


हम इंसान होते तो इस कायनात की बरकतों,रहमतों और नियामतों को खत्म करने के इस आत्मघाती राजसूय अश्वमेध के सांढ़ों और घोड़ों की फौजों के खिलाफ देशभर में लामबंद होते।नको नको।


कभीकभार नींद से जागकर हम अंगड़ाई तब लेते हैं कुंभकर्ण की तरह जब हजारों लाखों ढोल नगाड़े हमें पुचकारते हुए उठाते हैं फिर एकबार जनादेश पैदा करने के लिए।


वोट देकर गर्भपात की तरह हम खलास।खबर भी नहीं होती कि वह जनादेश हमारे लिए जहर का प्याला कब और कैसे बन गया और हम सुकरात भी नहीं हैं।सो एफडीआई बहार आने दो के गाय बचाओ अरब वसंत झूठो बजरंगी नफरत तूफां का मतलब यहींच।


जातियों और मजहबी सियासत सियासती मजहब के मसीहा,सिपाहसालार,मनसबदार सूबेदार,तमाम राम से बने हनुमान और हिंदुत्व के इस नर्क के तमाम देव देवियां हमारी आस्था से पल छिन पल छिन बलात्कार कर रहे हैं और हम कुरुवंश की तरह द्रोपदी का चारहरण देख रहे हैं कि हमका भी हउ चाहि।


फिर इंद्रप्रस्थ में जब सारा देश दिवाली मना रहा है,जब गोरक्षा दंगाफसाद के आयातित अरब वसंत से निजात मिलने की खुशफहमी में पाकिस्तान में न सही,हिंदुस्तान की सरजमीं पर बिहार के प्रलयंकर जनादेश से बलात्कार सुनामी के अंत की गूंज में राकेट छू'रहे हैं,आगजनी के बदले आतिशबाजी हो रही है,सहिष्णुता और बहुलता,परंपरा और विरासत के दिये जल रहे हैं तो फिजां पिर कयामत है।


इसी बीच सेनाओं के बुजुर्ग भी साहित्यकारों, कलाकारों, फिल्मकारों, इतिहासकारों,समाजशास्त्रियों,वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों की तर्ज पर फासिज्म के इस राजकाज के खिलाफ अपनी चीखें दर्ज कराने लगे हैं।


वे भी अपना अपना मेडल वापस करने लगे हैं।


अब देखना है कि हमारी सरहदों की रक्षा में सारा जीवन बलिदान करते रहने वालों के बजरंगी ब्रिगेड किस जुबान में राष्ट्रविरोधी और हिंदू विरोधी करार देकर पाकिस्तान जाने का फतवा जारी करते हैं।


हमने सुबह अंग्रेजी में लिखाः

Imported Arabian BEEF Spring to continue as the Mahabharat of Mandal kamandal continues.Hence I post the Beef History!


In the Vedas there are references to various kinds of sacrifice in which cows were killed and its flesh was eaten. This practise continued in the post-Vedic period, up to the pre-Mauryan period!


Subarna Rekha,Blasphemy against ideology by Ritwik Ghatak,the Golden Line and the Ati Dalit Bagdi Bou and death of Sita in a brothel! Palash Biswas


https://www.youtube.com/watch?v=riBIpzxI8qU



Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya


 

https://www.youtube.com/watch?


v=jeiGPWYIOqs

हमने सुबह लिखाः

Super Duper Hit Dhanteras in CHHAT scenario and Caste Speaks Diwali!

BIHAR MANDATE:It is stronger caste alliance that won the civil war against the blind religious polarization on imported BEEF BAN Arabian Spring window!


Bihar Debacle Rather to intensify reforms, Privatization and Disinvestment!

Super Duper Hit Dhanteras in CHHAT scenario and Caste Speaks Diwali!


What is politics?

here you are!


While investors and analysts do not expect the government to abandon its reforms agenda completely after the Bihar debacle, the government will also have to address the stress in rural India. Later next year, West Bengal, Kerala and Assam head for polls.


Means appeasement only!Appease the Vote Bank!Hit the Bull`s eye!RSS missed the target very very wide as Our Comrades miss it countrywide!

They would just change the Game!


However it remains WWF!NOORANI KUSHTI.KHulla Khel Farrukhabadi!Manusmriti Rule sustained!

It would be yet so many Mahabharat and so many Kurukshetra!The Civil War continues.The Mandal V/S Kamandal War to continue as CASTE INTACT.


Politicians or the entire caste class united Hegemony not concerned with the plight of Humanity at all!Nor the Mandate has any relevance whatsoever to the economy or production system captured by foreign capital or foreign interest.Rather the leader being proved to be so frail with 56 inch chest that it would help the concerned parties to have their final say as we,the people lose sovereignty,freedom and democracy!


Whatever might be the mandate,the political scenario, ratings or it might be global trends destablize the indices and the market as well,consensus remains intact to push hard reforms.In fact,Bihar debacle would rather intesify the economic reforms as demanded and business friendly governance and united opposition have to comply with directives of foreign capital and foreign investment as Free Market is our religion,not Hindutva as claimed and hyped so much so!

In politics ,divided they stand,but they stay united rock solid to guillotine, the money spinning machine!

The political class behaves reconciliation!

Nothing changed!

Nothing to be changed at all!

It is Chhat,the Sun God worship time which is the last sign of the religion our ancient  fore fore fore fathers and mothers practiced.The forces of Nature had been the incarnation of our faith.We opted for idols and marketing agents very late.No marketing agent,no purohit intervenes Chhat!


But it had been an Unprecedented Dhanteras and it has to be very loud Puja of Kali or Laxmi wishing wealth and safety!


Those who celebrate Chhat,they have to surrender to tantra mantra yantra and Tabiz!idol worshipping!

We claim to be Hindu but we speak caste and caste only.It is politics.Proved more than enough.You may not name one hundred castes who have the share in power but we have more than SIX thousand castes.


NDA fielded 46 Bhumihars in Bihar and lost the election.Lalu ensured  that NO Bhumihar should get the ticket.He becomes the King Maker and every Yadav candidate walks cake to win on his ticket!


We might not celebrate this mandate which is claimed to be yet another historic turnaround as the Total Revolution in 1977 had been described and suddenly we had to invent that we have the children of neoliberal in the helms and we remain predestined in our day to day plight and flight!


It is again Diwali full of sound bombs.No crakers from pakistan have the echoes in Idia,however!


It is Business in full bloom and the retailers must die!Industrialization means indiscriminate urbanization and infinite displacement without rehabilitation whatsoever.It is the growth saga!It is inclusion and SAMARASTA devoid of justice,equality,tolerance and pluralism.It is the monopolistic aggression aginst the people>

After Bihar debacle, Arun Jaitley says government will push ahead with reform. Finance Minister Arun Jaitley's statement that the government will push ahead with much-needed reforms soothed investor concerns.


Here you are!

In politics ,divided they stand,but they stay united rock solid to guillotine, the money spinning machine!The political class behaves reconciliation!


Thus,Pledging its support to big-ticket investments in Bihar following the Nitish Kumar-led Grand Alliance's thumping victory, India Inc on Sunday sought a renewed focus by the Modi government at Centre on economic reforms!It turns to be theme song!Super Duper Diwali Bumper!


Thus,Politicians or the entire caste class united Hegemony not concerned with the plight of Humanity at all!Nor the Mandate has any relevance whatsoever to the economy or production system captured by foreign capital or foreign interest.Rather the leader being proved to be so frail with 56 inch chest that it would help the concerned parties to have their final say as we,the people lose sovereignty,freedom and democracy!


Whatever might be the mandate,the political scenario, ratings or it might be global trends destablize the indices and the market as well,consensus remains intact to push hard reforms.In fact,Bihar debacle would rather intesify the economic reforms as demanded and business friendly governance and united opposition have to comply with directives of foreign capital and foreign investment as Free Market is our religion,not Hindutva as claimed and hyped so much so!


Just look at the screaming headline,After Bihar debacle, Arun Jaitley says government will push ahead with reform

It is largely business as usual for markets after theBJP's drubbing in the Bihar assembly elections. After falling as low as 2.31% from Friday's close, the markets clawed back to close the day 0.5% down. In fact other Asian markets such as Hong Kong and Korea saw sharper falls.


Finance Minister Arun Jaitley's statement that the government will push ahead with much-needed reforms soothed investor concerns. In any case, a derailing of BJP's Bihar hopes do not change things politically at the Centre. While the government retains its majority in the lower house, even a big win in Bihar might not have led to a large increase in Rajya Sabha seats in the immediate future. Only five of the 16 Rajya Sabha members come up for re-election in 2016 and another 6 in April 2018.





इसी बीच नोबेल पुरस्कृत अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने दीवाली के मौके पर बिछे शतरंज की बाजी पर देश को बेच देने के इस राष्ट्रद्रोह के खिलाफ कड़ी चेतावनी जारी की हैः


Amartya Sen -Modi must rein in the pro capitalist right wing hyenas

The Nobel laureate says India is not an intolerant country but a few radical groups are dragging its name through the mud.

Modi must rein in the pro capitalist right wing hyenas

EXCLUSIVE: Amartya Sen on the Hindu right and India under NDA

By Ruhi Khan In London

The Nobel laureate says India is not an intolerant country but a few radical groups are dragging its name through the mud.

Economist and Nobel laureate Amartya Sen spoke to Mumbai Mirror about a wide array of subjects, ranging from the atmosphere of intolerance prevalent in India, an inflamed section of the citizenry, a Hindu right that blindly invokes the Vedas, his disillusionment with Narendra Modi, and why the Prime Minister should be welcomed to the UK.

Professor Sen was at the London School of Economics on Friday to discuss his new book The Country of First Boys with the economist and academician Lord Nicholas Stern, following which he spoke to this correspondent.

Edited excerpts from the interview follow.

Do you think India is turning into an intolerant country?

There are elements of intolerance in India which is very regrettable. I won't say the country is turning intolerant. There is a small group of very activist minority of the Hindutva movement which are involved in that. The bulk of the population is not intolerant and I don't think India is an intolerant country in any way.

What do you think the real issue is?

It's easy to inflame the population into violence by playing up one identity. So it's not just an issue of intolerance. It's also about…the glory of India is that we have different communities, cultures and we have lived together in this multi-cultural, multi-religious and multi lingual society for many, many years. So we must not just be concerned that there is not enough tolerance but that there should be more celebration of the Indian pluralist society. You see the problem is on one side not recognising the threat (human rights violations) and on the other side making it look irresistible.

You have always said that if in a democracy you are unhappy with the government, then you should express your opinions. Is there room for dissent in India?

Certainly there is room for dissent. I often favour China for education and healthcare, which are completely neglected areas in India. But one of the ways India is better is that you can still express dissenting opinion to the government. Is it easier now than before? I don't think so. I think it's the opposite. But the attacks that come don't always come from the government; it comes from a docile and very loyal social media. I have experienced that myself. When I have said something that they don't approve of, I get ten thousand emails by next morning.

What would you say to them?

The problem with Hindu extremists is that they invoke the Vedas in everything without having any knowledge about them. I cannot find a more sophisticated argument for the agnostic in the Vedas.

If you tell the Hindutva activists that, they will say that I am insulting it. The Vedas show that the ability to do good things is independent of religion. They are extremely interesting texts but the Hindu extremists recite it without knowing what it says… (Laughs)

Perhaps they should be put in a room with you for a debate on the Vedas…

(Laughs) I would love to have a debate with them on the Vedas any day…

Prime Minister Narendra Modi will be in the UK in less than a week. There is raging debate whether he should be welcome.

Yes he must. He is the elected prime minister of the country so he should be welcomed. Politeness requires that. And respect to India requires that. But this doesn't mean he must not be questioned on his policies.

How do you think India is doing under his watch?

I'm not his great fan. I voted against him. Has he done better than I expected? I don't think he has. Hindu extremists believe Modi is a reincarnation of God. I was about to sue on the grounds of blasphemy. God has to die first to be reincarnated and as a good Hindu I was totally offended. So I wanted to sue but I didn't know what the courts would say to that.

I did not expect Modi to correct the path of the previous government, which was pretty bad. The idea was that some kind of business incentive would make it all up but that I think is a very bad theory.

I didn't expect the RSS to understand multiple identities. But I also didn't expect it to take such a naked form as it has.

Four people have died for eating beef and others have been victimised. He has made the academia field completely at the mercy of the administration. I believe India needs more reform. And until he reins in the pro capitalist right wing hyenas, it's very difficult thing to give him high marks.

Modi must rein in the pro capitalist right wing hyenas




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हमारे गुरुजी भी आगे महाभारत की चेतावनी दे रहे हैं और बता रहे हैं पतन और अवसान की कथा।

Previous: संपूर्ण एफडीआई राज! भारत विदेशी पूंजी के हवाले! बिहारे नीतीशे कुमार जनादेश का बजरंगी जवाब! दिवाली पर युधिष्ठिर अवतार में नंगे बिरंची बाबा ने बिहार जनादेश के बाद जुए में देश भी हार गये! हमका भी हउ चाहि! द्रोपदी का चीरहरण और हम तमाशबीन आत्मध्वंशी कुरुवंश! बिहार का जनादेश काफी नहीं है बेलगाम अश्वमेधी सांढ़ों और घड़ो को लगाम सकने के लिए।हम बार बार कहि रहे हैं। उनके इस अधर्म अपकर्म धतकरम की तुलना यौनकर्म से भी नहीं कर सकते क्योंकि वे भी खून पसीने की कमाई खाते हैं,हराम के अंधियारे के अरबों अरबों कालाधन का खजाना नहीं है समाज से बहिस्कृत,पितृसत्ता के शिकार और उत्पीड़ितों का। विडंबना है कि किसी के साथ भी सत्ता के लिए हमबिस्तर होने वालों के लटके झटके और बड़बोले वैचारिक नैतिक धार्मिक बोल वे ही हैं जो यौनकर्म के लक्षण हैं,राजकाज,राजनय और राजनीति के नहीं।अधर्म है यह अपराधकर्म,राष्ट्रद्रोह! विदेशी पूंजी उनकी मुहब्बत है,बेगानी शादी में बाराती मजे में हैं,आम लोग अब्दुल्ला दीवाना! पलाश विश्वास
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हमारे गुरुजी भी आगे महाभारत की चेतावनी दे रहे हैं और बता रहे हैं पतन और अवसान की कथा।
पलाश विश्वास
जिस गरुग्रंथ साहिब को हम सर्वोच्च मानते रहे हैं,उस गुरु पर्व का अवसान ही यह अंधियारा है।

मुक्त बाजार में जो चकाचौध महातिलिस्म हुआ करे हैं।

हमारे गुरुजी हमारे मार्गदर्शक रहे हैं और उनके मार्गदर्शन का सिलसिला थम नहीं है।


सिखों के लिेए गुरुग्रंथ साहिब सर्वोच्च है.जहां ईश्वर, देवताओंअपदेवताओं,देवियों की,अपदेवियों की कोई सत्ता नहीं होती।

सारे संस्कार गुरुग्रंथ साहिब के सामने संपन्न होते हैं।

पंजाब में और पाकिस्तान में छूटे पंजाब में भी न सिर्फ बोली बल्की संस्कृति,रीति रिवाज एक हैं और आपरेसन ब्लू स्टार ध्रूवीकरण से पहले तक पंजाब में हिंदुओं और सिखों के लिए गुरुग्रंथ साहिब स्रवोच्च रहा है।

आपरेशन ब्लू स्टार ने इस गुरुपर्व का अवसान कर दिया है।

आज की पीढ़ी के लिए गुरु दुर्लभ हैं तो हम जैसे बूढ़ों के गुरु अब भी हमें ठोंक ठोंककर सही दिशा बता रहे हैं।

मुझे बाकी किसी चीज की इस दुनिया में परवाह नहीं है सिवाय इसके कि हमारे गुरुजी के सत्य वचन से कहीं हमारा विचलन न हो जाये।नैनीताल में मेरे साथी मुझे वास मैदान लौटने को न कहें।

बिहार के केसरिया बलात्कार सुनामी के खिलाफ जिस अशनिसंकेत का जिक्र हम बार बार कर रहे हैं हमारे गुरुजी तारा चंद्र त्रिपाठी ने उसका खुलासा साफ साफ किया है।
TaraChandra Tripathi

-- मेरे भाजपाई मित्रों की नजर में मोदी की वर्तमान हालत चक्रव्यूह में फँसे अभिमन्यु की सी हो गयी है. पर वे नहीं समझते कि यह चक्रव्यूह उसके सिपहसालारों ने ही रचा है. केवल अठ्ठारह महीने में ही उसकी ढपोरशंखी नौटंकी और हिन्दू उग्रवाद ने उसकी वैश्विक हालत पतली कर दी है. बिहार में जो हुआ है, वह अस्थिरता, अराजकता और लालू के शरणागत नितीश के भारी सरदर्द का एक और अध्याय है. 
मोदी कभी नामांकित भड़्कीले परिधान धारण करने के कारण उपहास के पात्र बने तो कभी अमरीका में बसे भारतीय उद्योग कर्मियों से अपने तथाकथित उत्तम कार्य का प्रमाणपत्र प्राप्त करने में. जनता का इतना विश्वास प्राप्त करने के बाद भी वे आचरण के मामले में खरे नहीं उतरे. एम्स के ईमानदार सतर्कता अधिकारी संजीव चतुर्वेदी ने जिस भारी घोटाले को खोला था, उस घोटाले के तथाकथित आरोपी के संरक्षक जे.पी. नड्ढा को स्वास्थ्य मंत्री बना दिया. अल्प शिक्षित महिला इस देश की शिक्षा मंग्त्री बना दी गयी.उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रतिगामी शक्तियों को लादा जाने लगा. स्वतन्त्र चेता लोगों के मारे जाने, अपमानित किये जाने की बढ़्ती हुई घटनाओं पर मौन उनकी सह्मति का संकेत बन गया.
मोदी महाराज अपने सिपहसालारों और विदेशों में मोदी-मोदी-मोदी- के प्रायोजन को छोड़ कर सर्वधर्म समभाव के साथ जनता के वास्तविक हित का काम करें, नहीं तो आपकी लुटिया तो डूबेगी ही, देश की भी लुटिया डूब जायेगी. क्योंकि अटलबिहारी के बाद राष्ट्र नेताओं के स्तर का कोई कोई नेता दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रहा है. 
नितीशे ने कुछ झलक दिखाई थी पर अब वह भी लालू नाग की कुंडली में फँस गया है


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हिंदू तालिबान का पुनरुत्थान है, हिंदुत्व का नहीं।अभी अभी हारे हैं और केसरिया इतिहास बनाने वाले अब टीपू की हत्या पर आमादा हैं। पलाश विश्वास

Next: आज से पूर्व सैनिक अपने अवार्ड्स और मेडल्स वापस करने जा रहे हैं. ये अवार्डस और मेडल्स भी किसी सरकार ने नहीं बल्कि देश ने दिए थे. साहित्यकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों के अवार्ड वापस करने से ज़्यादा सैनिकों की अवार्ड वापसी से दुनिया में हमारी बदनामी होने वाली है. संभावना है कि कल अनुपम खेर इस अवार्ड वापसी के खिलाफ भी अपने "उन्हीं"साथियों के साथ राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकालेंगे. संभावित प्रश्न जो भाजपा के खैर ख़्वाह इन सैनिकों से पूछ सकते हैं- - आपने तब अपने मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब पाकिस्तानियों ने कारगिल में घुसकर कब्ज़ा कर लिया था? - आपने तब मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब पाकिस्तान की फौजों ने भारतीय सैनिकों के सर कलम कर दिए थे? - आपने तब मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब आतंकवादी समुद्री सीमा से मुंबई में घुस आये थे? - आपने तब अपने अवार्ड्स क्यों नहीं लौटाए जब संसद पर आतंकवादियों का हमला हुआ था? - आपने तब अपने अवार्ड्स क्यों नहीं लौटाए जब मोदी ने कश्मीर में सेना पर ज़्यादती का आरोप लगाने वाले मुफ़्ती मुहम्मद सईद से हाथ मिलाया और साझा सरकार बनाई थी? इसके अलावा भी ये बहुत सारे नए नए सवाल गढ़ने में
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 हिंदू तालिबान का पुनरुत्थान है, हिंदुत्व का नहीं।अभी अभी हारे हैं और केसरिया इतिहास बनाने वाले अब टीपू की हत्या पर आमादा हैं। 

पलाश विश्वास

गोशाला कहीं नहीं है।खेती तबाह कर दी है।कारोबार खत्म कर दिया गया है।उद्योग धंधे,उत्पादन प्रणाली और अर्थव्यवस्था विदेशी पूंजी के हवाले।अर्थव्यवस्था से दिवाली तक ,धर्म कर्म सबकुछ एब एफडीआई है।


बजरंगी मुक्त बाजार  के धर्नेमोन्मादी खुल्ला खेल फर्ऱूखाबादी ने  गाय को बेदखल कर दिया क्योंकि उनके ही अश्वमेध राजसूय से खेती खत्म हैं और किसान आत्महत्या कर रहे हैं।खेत खलिहान बचे नहीं है तो गाय को कौन पूछनेवाला है।

गांवो में तो अब गोबर या गोमूत्र मिलता नहीं है और महानगरों ,शहरी सीमेंट के जंगल में यूरिया कीटनाशक मिला जहर का खुल्ला कारोबार है दूध दही के नाम पर।

ब्रांडिंग है।बंद होगी तो पिर लेदेकर चालू हो जायेगी।
पेय और फास्टफूड का जहरीला फलता फूलता कारोबार और नियंत्रण उदाहरण है।

गोरक्षा अगर  धर्म है तो हमें धर्मभ्रषट किया है इसी राष्ट्रद्रोह ने।गैरमजहबी लोगों के किलाफ मजहबी सियासत तो दरअसल हिंदू ग्लोब के एजंडा के मुताबिक आइसिस की तर्ज पर हिंदू तालिबान का पुनरुत्थान है,हिंदुत्व का नहीं।

गोशाला कहीं बचा भी है कि नहीं।

 उन्ही बेदखल गायों के नाम अरब वसंत का आयात भारत में और गोमांस को लेकर धारिमक ध्रूवीकरण की बेशर्म कोशिश में पूरा देस आग के हवाले।

अभी अभी हारे हैं और केसरिया इतिहास बनाने वाले अब टीपू की हत्या पर आमादा हैं।

हमारे भाई मशहूर पत्रकार दिलीप मंडल ने दो टुक टिप्पणी की है अपने वाल पर।

साझा कर रहा हूं:

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पगला गए हैं जी। टीपू सुल्तान को छेड़ रहे हैं। एक बात बताऊँ। मुझे जीवन में चार टीपू मिले। एक तो मेरे मोहल्ले का है और फिर कॉलेज और फिर पड़ोस में। फिर अखिलेश यादव से मिलना हुआ, जिनका घर का नाम टीपू है। सारे टीपू संयोग से हिंदू मिले। यह नाम बहादुर बच्चों का रखा जाता है, या इस उम्मीद में कि नाम के असर से बच्चा बहादुर बनेगा। टीपू नाम का भारत में अच्छा असर है।

संघ वाले बहुत बडी गलती कर रहे हैं।

अंग्रेजों के खिलाफ सबसे बहादुराना लड़ाई लड़ने वाले शख़्स पर सवाल उठा रहे हैं। टीपू ने ऐसे किसी भी शासक को नहीं बख़्शा जो अंग्रेजों का साथ दे रहे थे। संयोग से उनमें कुछ हिंदू शासक भी थे। यह हिदू बनाम मुसलमान का मामला है ही नहीं।

पब्लिक ने टीपू को सही माना। तभी तो लोग अपने बच्चों का नाम टीपू रखते हैं।

संघियों को कुछ समझ में नहीं आता। मूर्ख कहीं के। यह तो सोच लेते महाराज, कि टीपू सुल्तान का महामंत्री हिंदू था।



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आज से पूर्व सैनिक अपने अवार्ड्स और मेडल्स वापस करने जा रहे हैं. ये अवार्डस और मेडल्स भी किसी सरकार ने नहीं बल्कि देश ने दिए थे. साहित्यकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों के अवार्ड वापस करने से ज़्यादा सैनिकों की अवार्ड वापसी से दुनिया में हमारी बदनामी होने वाली है. संभावना है कि कल अनुपम खेर इस अवार्ड वापसी के खिलाफ भी अपने "उन्हीं"साथियों के साथ राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकालेंगे. संभावित प्रश्न जो भाजपा के खैर ख़्वाह इन सैनिकों से पूछ सकते हैं- - आपने तब अपने मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब पाकिस्तानियों ने कारगिल में घुसकर कब्ज़ा कर लिया था? - आपने तब मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब पाकिस्तान की फौजों ने भारतीय सैनिकों के सर कलम कर दिए थे? - आपने तब मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब आतंकवादी समुद्री सीमा से मुंबई में घुस आये थे? - आपने तब अपने अवार्ड्स क्यों नहीं लौटाए जब संसद पर आतंकवादियों का हमला हुआ था? - आपने तब अपने अवार्ड्स क्यों नहीं लौटाए जब मोदी ने कश्मीर में सेना पर ज़्यादती का आरोप लगाने वाले मुफ़्ती मुहम्मद सईद से हाथ मिलाया और साझा सरकार बनाई थी? इसके अलावा भी ये बहुत सारे नए नए सवाल गढ़ने में

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जो लोग इस खुशफहमी में हैं कि अवार्ड वापसी सिर्फ बिहार चुनाव के लिए ही थी उनके लिए खबर है कि आज से पूर्व सैनिक अपने अवार्ड्स और मेडल्स वापस करने जा रहे हैं. ये अवार्डस और मेडल्स भी किसी सरकार ने नहीं बल्कि देश ने दिए थे. साहित्यकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों के अवार्ड वापस करने से ज़्यादा सैनिकों की अवार्ड वापसी से दुनिया में हमारी बदनामी होने वाली है. संभावना है कि कल अनुपम खेर इस अवार्ड वापसी के खिलाफ भी अपने "उन्हीं" साथियों के साथ राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकालेंगे. संभावित प्रश्न जो भाजपा के खैर ख़्वाह इन सैनिकों से पूछ सकते हैं-
- आपने तब अपने मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब पाकिस्तानियों ने कारगिल में घुसकर कब्ज़ा कर लिया था?
- आपने तब मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब पाकिस्तान की फौजों ने भारतीय सैनिकों के सर कलम कर दिए थे?
- आपने तब मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब आतंकवादी समुद्री सीमा से मुंबई में घुस आये थे?
- आपने तब अपने अवार्ड्स क्यों नहीं लौटाए जब संसद पर आतंकवादियों का हमला हुआ था?
- आपने तब अपने अवार्ड्स क्यों नहीं लौटाए जब मोदी ने कश्मीर में सेना पर ज़्यादती का आरोप लगाने वाले मुफ़्ती मुहम्मद सईद से हाथ मिलाया और साझा सरकार बनाई थी? 
इसके अलावा भी ये बहुत सारे नए नए सवाल गढ़ने में माहिर हैं. इंतज़ार कीजिये.… 
-व्हाट्सऐप सेवा॥ 😂😂😂😂😂
‪#‎OROP‬

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Comments
दुर्गाप्रसाद अग्रवाल
दुर्गाप्रसाद अग्रवाल और इस बात को कोई कैसे भूल सकता है कि जब साहित्यकार/कलाकार अपने सम्मान लौटा रहे थे तो सरकार के (या दल विशेष के) हिमायती उछल उछल कर कह रहे थे कि ये पुरस्कार/सम्मान तो जोड़-तोड़ या चापलूसी से मिले हैं इसलिए लौटाये जा रहे हैं! अगर कोई सैनिक अपनी वीरता के दम पर अर्जित सम्मान लौटाता तो कोई बात भी थी!
Like · Reply · 5 · 12 hrs
Sanjaya Kumar Singh
Sanjaya Kumar Singh भक्त कह रहे थे कि सेना में अवार्ड भक्ति से नहीं मिलते हैं इसलिए वे नहीं लौटा रहे हैं। अब देखें क्या कहते हैं। प्रेरित तो उन्हीं लोगों ने किया है।
Like · Reply · 3 · 12 hrs
Laxminarayan Sharma
Laxminarayan Sharma शुरुआत भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन के ऊदोरान की जब सेना से सेवा निवृत हुए सैकड़ों जरनलों कर्नलों के पार्टी ज्वाइनिंग की फिर सैनिक पार्टी के साथ जातिवाद मे सेना के कारिंदों का प्राक्टय हुआ। जब देश की संपत्तियों व जन जिवन की सुरक्षा की शपथ लेने वाले सेना के कुछ लोग पूर्व अफसर बसे रेल बिजली सडकों सहित सम्पत्तियां क्षति ग्रस्त की। आगज़नी व खूनखराबे के शाक्ष्य बने । 
अब मजा आगया राजनीति की काली करतूतों का।
Like · Reply · 1 · 11 hrs · Edited
Mohammed Anwar Khan
Mohammed Anwar Khan But they will not accept
Like · Reply · 2 · 11 hrs
Surinder Rattu
Surinder Rattu सरकार की चूलें हिल रही हैं, और वह चैन की बंसी बजा रही है ......................दुखद है यह सब | सरकार लोगों की मन की बात समझो |
Like · Reply · 1 · 11 hrs
Krishan Kumar Purohit
Krishan Kumar Purohit यह अवार्ड वापसी OROP को लेकर है।
Like · Reply · 2 · 11 hrs
Surendra Grover
Surendra Grover पहली पंक्ति में साफ लिखा है कि सरकार के हिमायतियों में यह गलतफहमी थी कि बिहार चुनावों को देखते हुए साहित्यकार सम्मान लौटा रहे हैं.. सबके अपने अपने मुद्दे हैं..
Like · Reply · 2 · 10 hrs
Krishan Kumar Purohit
Krishan Kumar Purohit जी, है तो अवार्ड वापसी। साहित्यकारों ने विरोध की नई राह जो दिखा दी। लेकिन किसानों के पास तो अवार्ड भी नहीं। वे बेचारे कैसे विरोध करेंगें ! देश की 99 फीसदी जनता के पास कोई अवार्ड नहीं है, उनकी कौन सुनेगा ?
Like · Reply · 8 · 10 hrs · Edited
Surendra Grover
Surendra Grover सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी कर दी है कि किसानों की समस्याओं के प्रति सरकार गम्भीर नहीं है..
Like · Reply · 2 · 10 hrs
Anil Chaurasia
Anil Chaurasia जनविरोधी सरकारों को जवाब
देने के लिए निश्चय ही कुछ और प्रतिरोध के औज़ार खोजने होंगे . यह दौर अब थमने वाला नहीं है ......
Like · Reply · 2 · 7 hrs
Vijayjjn Jangid
Vijayjjn Jangid उनका अलग मामला है साहेब
Like · Reply · 6 hrs

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Returning awards to protest was started by Tagore

Previous: आज से पूर्व सैनिक अपने अवार्ड्स और मेडल्स वापस करने जा रहे हैं. ये अवार्डस और मेडल्स भी किसी सरकार ने नहीं बल्कि देश ने दिए थे. साहित्यकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों के अवार्ड वापस करने से ज़्यादा सैनिकों की अवार्ड वापसी से दुनिया में हमारी बदनामी होने वाली है. संभावना है कि कल अनुपम खेर इस अवार्ड वापसी के खिलाफ भी अपने "उन्हीं"साथियों के साथ राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकालेंगे. संभावित प्रश्न जो भाजपा के खैर ख़्वाह इन सैनिकों से पूछ सकते हैं- - आपने तब अपने मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब पाकिस्तानियों ने कारगिल में घुसकर कब्ज़ा कर लिया था? - आपने तब मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब पाकिस्तान की फौजों ने भारतीय सैनिकों के सर कलम कर दिए थे? - आपने तब मेडल्स क्यों नहीं लौटाए जब आतंकवादी समुद्री सीमा से मुंबई में घुस आये थे? - आपने तब अपने अवार्ड्स क्यों नहीं लौटाए जब संसद पर आतंकवादियों का हमला हुआ था? - आपने तब अपने अवार्ड्स क्यों नहीं लौटाए जब मोदी ने कश्मीर में सेना पर ज़्यादती का आरोप लगाने वाले मुफ़्ती मुहम्मद सईद से हाथ मिलाया और साझा सरकार बनाई थी? इसके अलावा भी ये बहुत सारे नए नए सवाल गढ़ने में
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अछूत रवींद्रनाथ का दलित विमर्श!Out caste Tagore Poetry is all about Universal Brotherhood ! 


Returning awards to protest was started by Tagore


মন্ত্রহীণ,ব্রাত্য,জাতিহারা রবীন্দ্র,রবীন্দ্র সঙ্গীত! Tagore liberated Woman in Music! 

Kejriwal reduced to MAHISHASUR calls for overhaul as Rape Tsunami continues 

Kejriwal,Please resolve the problems of Safai employees as Indian Democracy has no ears ! 




"Has there been any apology from either the RSS or the BJP for the 2002 communal genocide in Gujarat," he asked. 
  • Sitaram Yechury"RSS has to answer why it did not join the national struggle for freedom?" he asked

Taking a swipe at  for alleging that the Left was behind the return of awards by scholars and others over "growing intolerance," CPI(M)leader Sitaram Yechury on Thursday thanked Union Minister Venkaiah Naidu for bracketing the Left with stalwarts likeRabindranath Tagore who had started such a form ofprotest. Responding to Naidu's charges the ongoing protests were a joint  by Congress and Left-leaning intellectuals, he said "the return of State awards as a form of  is nothing new. During the course of the freedom struggle this has happened on many an occasion.

"Recollect that Gurudev Rabindranath Tagore returned his knighthood in protest against the atrocities of the British colonial rule in . … We are thankful to Shri Venkaiah Naidu Garu for bracketing the most exalted and enlightened Indian minds with the CPI(M)."In the same vein, Yechury said "when it comes to saying that in the past why did 'so and so' not protest and why protests are taking place now, the RSS has to answer why it did not join the national struggle for freedom? "Even Nanaji Deshmukh, a respected RSS leader, has asked in his book why the RSS had not participated in the freedom movement as an organisation? Yechury said the British Home record, on the basis of intelligence reports telegraphed to  by the Bombay Police department, had noted that the Sangh has "scrupulously" remained within the law. "Has the RSS ever answered why they cooperated with the British during the course of the freedom struggle," he asked, adding that Sardar Patel ordered the ban on the RSS saying "the cult of violence spearheaded by the Sangh" that had claimed many lives including that of Mahatma Gandhi.Yechury said "till date the RSS has not retracted or apologised for their Guru Madhav Sadhashiv Golwalkar's observation that we should learn from the methods used by Hitlerite fascism and that  should 'learn and profit' from this." "Has there been any apology from either the RSS or the BJP for the 2002 communalgenocide in Gujarat," he asked. The CPI(M) General Secretary said the hallmark of the current intolerance was the violent attacks that are being unleashed all across the country. Yechury said while the issue was being raised in Parliament from the first session since Narendra Modi  took office, "till date, forget any action, no assurance (to check such assaults) has been forthcoming from the Prime Minister." http://www.dnaindia.com/india/report-returning-awards-to-protest-was-started-by-tagore-sitaram-yechury-2142470

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NIGHT 1 AM....AT PRESS

Next: अमेरिका से सावधान पुनश्च तीन नी कर दी हमरी नीलामी।परमाणु दायबद्धता खत्म और सांसदों की चांदनी। लोकतंत्र के हमाम में सारे के सारे नंगे। वसंत के वज्र निनाद अब जन आकांक्षा कारपोरेट युद्ध, विश्वासघात और जनसंहार की संस्कृति के विरुद्ध। गिरदा की अंत्येष्टि के साथ नैनीताल, उत्तराखंड के सक्रिय प्रतिरोध का युग क्या समाप्त होगा? पलाश विश्वास Monday, August 23, 2010

अमेरिका से सावधान पुनश्च तीन नी कर दी हमरी नीलामी।परमाणु दायबद्धता खत्म और सांसदों की चांदनी। लोकतंत्र के हमाम में सारे के सारे नंगे। वसंत के वज्र निनाद अब जन आकांक्षा कारपोरेट युद्ध, विश्वासघात और जनसंहार की संस्कृति के विरुद्ध। गिरदा की अंत्येष्टि के साथ नैनीताल, उत्तराखंड के सक्रिय प्रतिरोध का युग क्या समाप्त होगा? पलाश विश्वास Monday, August 23, 2010

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अमेरिका से सावधान पुनश्च तीन

नी कर दी हमरी नीलामी।परमाणु दायबद्धता खत्म और सांसदों की चांदनी। लोकतंत्र के हमाम में सारे के सारे नंगे। वसंत के वज्र निनाद अब जन आकांक्षा कारपोरेट युद्ध, विश्वासघात और जनसंहार की संस्कृति के विरुद्ध। गिरदा की अंत्येष्टि के साथ नैनीताल, उत्तराखंड के सक्रिय प्रतिरोध का युग क्या समाप्त होगा?

पलाश विश्वास

Monday, August 23, 2010

http://basantipurtimes.blogspot.in/2010/08/blog-post_23.html


दुनिया में काम करने के लिए आदमी को अपने ही भीतर मरना पड़ता है. आदमी इस दुनिया में सिर्फ़ ख़ुश होने नहीं आया है. वह ऐसे ही ईमानदार बनने को भी नहीं आया है. वह पूरी मानवता के लिए महान चीज़ें बनाने के लिए आया है. वह उदारता प्राप्त करने को आया है. वह उस बेहूदगी को पार करने आया है जिस में ज़्यादातर लोगों का अस्तित्व घिसटता रहता है.


(विन्सेन्ट वान गॉग की जीवनी 'लस्ट फ़ॉर लाइफ़' से)

लोकगायक गिर्दा का देहावसान



उत्तराखण्ड के विख्यात क्रान्तिधर्मी लोकगायक गिर्दा का कुछ क्षण पहले देहावसान हो गया.

उनके अथक रचनाकर्म को हमारा सलाम और उनके परिजनों, मित्रों को गहरी सहानुभूति.

दुःख की इस घड़ी में इस से अधिक क्या कहा जा सकता है, 
http://kabaadkhaana.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html

परमाणु जवाबदेही बिल में बदलावों को हरी झंडी

डी-डब्लू वर्ल्ड - ‎२०-०८-२०१०‎
कैबिनेट ने परमाणु जवाबदेही विधेयक में संशोधनों को मंजूरी दे दी है जिसका मकसद परमाणुबिजली के 150 अरब डॉलर के भारतीय बाजार को दुनिया की कंपनियों के लिए खोलना है. शनिवार को यह बिल संसद में पेश हो सकता है. बुधवार को एक संसदीय पैनल ने विधेयक में कुछ बदलावों की सिफारिश की. इनमें हादसे की स्थिति में मुआवजे को तीन गुना करना और निजी कंपनियों की जवाबदेही बढ़ाना शामिल है. नाम जाहिर न करने की शर्त पर एक कैबिनेट मंत्री ने कहा, "पैनल ने ...

भारत ने की ओबामा को तोहफा देने की तैयारी

दैनिक भास्कर - ‎२०-०८-२०१०‎
नई दिल्ली. कैबिनेट ने आज न्यूक्लिर लायबिलिटी बिल या परमाणु जवाबदेही विधेयक को मंजूरी दे दी है। न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल से विपक्ष की आपत्तियों के बाद अब 'एंड' शब्द हटा दिया गया है। संसद के मॉनसून सत्र में अब कुछ ही दिन बाकी हैं। ऐसे में सरकार इसे जल्द से जल्द पास कराना चाहेगी। मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने कहा है कि जब यह विधेयक संसद में पेश होगा तब पार्टी बिल का अंतिम ड्राफ्ट देखकर ही कोई प्रतिक्रिया देगी। ...

  1. परमाणु जवाबदेही बिल के लिए समाचार

  2. परमाणु जवाबदेही बिल पर नया बखेड़ा‎ - 10 घंटे पहले

  3. परमाणु जवाबदेही बिल को लेकर केंद्र सरकार एक बार फिर मुश्किल में आ गई है. मुख्य विपक्षी दल बीजेपी और वामपंथी पार्टियों ने बिल में किए गए सरकार के संशोधनों को नकार दिया है. ...

  4. डी-डब्लू वर्ल्ड - 3 संबंधित आलेख »


  5. परमाणु जवाबदेही बिल में बदलावों को ...

  6. 20 अगस्त 2010 ... कैबिनेट ने परमाणु जवाबदेही विधेयक में संशोधनों को मंजूरी दे दी है जिसका मकसद परमाणु बिजली के 150 अरब डॉलर के भारतीय बाजार को दुनिया की कंपनियों के लिए खोलना है.

  7. www.dw-world.de/dw/article/0,,5927731,00.html - संचित प्रति

  8. परमाणु जवाबदेही बिल पर नया बखेड़ा ...

  9. 23 अगस्त 2010 ... परमाणु जवाबदेही बिल को लेकर केंद्र सरकार एक बार फिर मुश्किल में आ गई है. मुख्य विपक्षी दल बीजेपी और वामपंथी पार्टियों ने बिल में किए गए सरकार के संशोधनों को नकार दिया ...

  10. www.dw-world.de/dw/article/0,,5934507,00.html

  11. विगत 24 घंटे से अधिक परिणाम प्राप्त करें

  12. परमाणु जवाबदेही बिल पर नोट से पल्ला ...

  13. 19 जून 2010 ... केंद्र सरकार परमाणु जवाबदेही बिल पर स्थाई समिति की बैठक में वितरित एक नोट से शुक्रवार को खुद को.

  14. www.bhaskar.com/.../nat-nuclear-accountability-bill-1073632.html - संचित प्रति

  15. परमाणु बिल की राह में विपक्ष का ...

  16. परमाणु जवाबदेही बिल के मसौदे में 18 संशोधन करने के बावजूद इसकी राह में नई बाधाएं खड़ी हो गई हैं। भाजपा ने आरोप लगाया है कि सरकार ने उस मसौदे में थोड़ा बदलाव किया है जिस पर उसके ...

  17. www.bhaskar.com/.../NAT-left-not-haapy-with-nuclear-liability-bill-in-its-present-form-1284474.html

  18. www.bhaskar.com से और अधिक परिणामों को दिखाएँ

  19. विगत 24 घंटे से अधिक परिणाम प्राप्त करें

  20. 125 करोड़ का राहत पैकेज,Hindi news channel,Top Ten ...

  21. 17 अगस्त 2010 ... संसद में कल परमाणु जवाबदेही बिल पेश किए जाने की उम्मीद है। इस बिल को सरकार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत दौरे से पहले पास कराना चाहती है। बिल को पास करने की ...

  22. www.p7news.com/HindiNews_desh_5930 - संचित प्रति

  23. परमाणु जवाबदेही बिल पर नया बखेड़ा ...

  24. परमाणु जवाबदेही बिल पर नया बखेड़ाडी-डब्लू वर्ल्डपरमाणु जवाबदेही बिल को लेकर केंद्र सरकार एक बार फिर मुश्किल में आ गई है. मुख्य विपक्षी दल बीजेपी और वामप...

  25. news.social-bookmarking.net/.../83212 - संयुक्त राज्य अमेरिका - संचित प्रति

  26. BBC Hindi - भारत - परमाणु दायित्व रिपोर्ट ...

  27. 18 अगस्त 2010 ... इसके पहले विपक्षी दलों ने इस बात पर चिंता जताई थी कि इस विधेयक के क़ानून बनने के बाद परमाणु दुर्घटना होने की स्थिति में विदेशी कंपनियां आसानी से अपनी जवाबदेही से बच ...

  28. www.bbc.co.uk/.../100818_nuke_liability_pa.shtml - संचित प्रति - iGoogle में जोड़ें

  29. विवाद बनेगा बिल संशोधन

  30. 22 अगस्त 2010 ... परमाणु जवाबदेही बिल में किया गया ताजा संशोधन के कारण बिल पर नया विवाद उठ खड़ा हो सकता है। ताजा संशोधन के तहत किए गए प्रावधानों को किसी दुर्घटना की स्थिति में आपरेटर ...

  31. www.peoplessamachar.co.in/index.php?option=com...id...

  32. विगत 24 घंटे से अधिक परिणाम प्राप्त करें

  33. परमाणु बिल पर भाजपा ने हाथ खींचे!

  34. 23 अगस्त 2010 ... उन्होंने कहा कि अगर परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को जवाबदेही के दायरे में नहीं लाया गया तो वामपंथी पार्टियां ... इससे पहले केबिनेट ने बिल के 18 प्रस्तावों को मंजूरी दे दी थी। ...

  35. www.mauryatv.com/index.php?option=com...view...

  36. विगत 24 घंटे से अधिक परिणाम प्राप्त करें

  37. परमाणु बिल के राह में विपक्ष का दखल ...

  38. नई दिल्ली: परमाणु जवाबदेही बिल के मसौदे में 18 संशोधन करने के बावजूद समस्याएं बनी हुई हैं. भाजपा और वामपंथी दलों का कहना है कि वे मौजूदा स्वरूप में बिल का विरोध करेंगे. ...

  39. c24news.com/?p=22852

  40. विगत 24 घंटे से अधिक परिणाम प्राप्त करें

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  41. इसके लिए अनुवादित अंग्रेज़ी परिणाम देखें:

  42. परमाणु जवाबदेही बिल (Nuclear Accountability Bill)




नी कर दी हमरी नीलामी। उत्तराखंड में चार दशकों से गूंजता वह लोक स्वर अब स्मृतिभर है।

जब सबकुछ बिकाऊ है। खुल्ला खेल फर्रूखाबादी अमेरिकी युद्ध बाजार का उपनिवेश है। इंडिया सेल पर है। कामयाबी का मतलब बिकाऊ होना है। तो ऐसे में गिराबल्लभ जैसे अराजक विद्रोही लोक कवि का होना अनहोनी के सिवाय क्या है। बिकने के लिए अब भी बचे रहे लोगों को आजादी मिल गयी कि पुन४विचार कर लें कि आखिर विचारधारा और दृष्टि से क्या हासिल होने वाला है।

गिरदा और उनके कुख्यात हुड़के की थाप अब किसी की नींद में खलल की वजह नहीं होंगी यकीनन। अंत्येष्टि संपन्न हो गयी सखा दाज्यू के घर में बरसों से रह रहे गिराबल्ल्भ के आशियाने के कुछेक मील दूर भवाली नैनीताल मार्ग पर पहाड़ के ठलान पर स्थित श्मशान घाट पर। सविता के बार बार कोंचते रहने के कारण, यह जानते हुए कि कोई फोन उछाने की हालत में न होगा और मुझसे भी कुछ सांत्वना का वाक्य बंध बन नहीं पायेगा, मुझे दोस्तों से सम्पर्क साधने की कोशिश करनी पड़ी और मजा देखिये कि सत्तर के दसक में हमारी कारगुजारियों से परेशान प्रोफेसर बटरोदी ने ही फोन उठाया। रूंधते हुए बोले कि एक युग का अवसान हो गया। फिर कहा कि नीचे टावर नहीं है। वे सड़क तक पहुंच चुके थे। बोले कि तूहीन और प्रेम फूट फूट कर रो रहे थे। तूहीन बीसेक साल का गिरदा का बेटा। इसी साल हमारे डीएसबी से बीकाम पास। प्रेम उर्फ पेमा, उनका दत्तक पुत, जिसकी शादी हो गयी।

बटरोही ने कहा कि सारे दोस्त जमा हो गये। पर वीरेनदा नहीं आ पाये। शमशेर वहां है। चनौंदा से मोहन भी नहीं आ पाया। नवीन जोशी जरूर लखनऊ से आ गया है। रात को राजीव लोचन साह मिले फोन पर। कुछ बोलने की हालत में न थे। मुझे उनके बिलखने की आवाज आ रही थी। हरुआ दाढ़ी और पवन राकेश, शेखर पाछक और उमा भाभी, सखा दाज से लेकर नैनी झाल के गर्भ से फूटती रुलाई का ज्वालामुखी ने जैसे घेर रखा है मेरा वजूद।

सविता को भारी शिकायत है कि मैंने लिखना छोड़ दिया है। वह कंप्यूटर पर नहीं बैछती और ब्लागिंग को बेमतलब बताती है। पिताजी की मौत से पहले तक उनकी प्रतिबद्धता को नाकामी और अराजकता मानने वाली सविता को अच्छी तरह मालूम है कि तारा चंद्र त्रिपाठी ने हमें भविष्य के लिए तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर हम पर तो असली असर गिरदा का ही है। गिरदा का तेवर और दृष्टि के कारण ही समझौते हमसे हो नहीं पाता। हम उस गिरदा के तिलस्म में कैद है जो कि कलक्टर पर भी थूक सकता था। शेखर के साथ, नैनीताल समाचार यीम के साथ रात रात भर, दिन दिन भर अक्षर अक्षर के लिए मर मिटने को तैयार गिराबल्लभ ही पत्रकारिता में हमारे गुरु हैं, प्रभाष जोशी या रघुवीर सहाय नहीं।

राजीव ने कहा कि स्त्र दसक के उस समय को याद करो। क्या क्या याद करूं। रजूली मालूशाही की चरम रोमांटिकता, जागर के संवाद, हुड़के की थाप, नगाड़े खामोश हैं, अंधेर नगरी चौपट राज, बाढ़, भूस्खलन. चिपको, नशा नहीं रोजगार दो, वसंत का वज्रनिनाद, आपातकाल का विरोध,भूकंप, पंतनगर गोलीकांड, युगमंच से लेकर संगीत नाटक  विगाग के कार्यालय, तल्ली के डाट, मल्ली बाजार , नैनीताल क्लब के पास नन्हे पेमा के साथ गिरदा, मुहब्बत के लिए बेताब गिरदा, अशोक जलपान गृह में दरबार, एक लिहाफ में सारे क्रांतिकारी, छलड़ी, हरेला, सुरा और शराब, बनारस और कोलकाता में गिरदा- किसे छोड़ूं किसे याद करूं। सविता की कुछेक मुलाकाते हुईं थीं। आखिरी बार वसीयत में डबिंग के लिए आए थे तब। पहली बार हमारी शादी के बाद जब नैनीताल गये थे तब। मेरठ में रहते हुए एक बार केलाखान के उनके नये ठिकाने और हीरा भाभी से उसका मुलाकात। तूहीन तब तीनेक साल का था। टुसु पांच साल का। पिताजी के निधन पर जब सारे दोस्त और डीएसबी के प्राध्यापक प्राध्यापिकाए गिरदा राजीव शेखर मोहन की अगुवाई में घर आए थे, तब सविता वहां नहीं थी। लेकिन अस्पलाल में गिरदा के भरती होने की खबर के बाद से उसकी बेचैनी एक मिनट के लिए खतम न हुई होगी। अपने कालेज जीवन का सबसे ज्यादा वक्त अपन सहपाठियों, मित्रों के बजाय हमसे कमसकम पन्द्रह साल बड़े गिरदा के साथ हमने बिताये। पल पल साथ रहे। फिर पहाड़ में कभी कोई घटना हुई क्या , जिसमें गिरदा हाजिर न रहा हो।

गिरदा का तेवर बेहद आक्रामक था। उसे साधने वाले महज दो या तीन लोग थे। हरुआ दाढ़ी, पवन राकेश और शेखर पाठक। मेरी तो गिरदा से बात बात पर ठन जाती थी। हम दोनों तन जाते थे। आखिर बाच का रास्ता शेखर ही निकालते थे। चंद्रेश शास्त्री की गिरदा काफी इज्जत करते थे। बटरोही से तकराते थे और नवीन जोशी से बेहद प्यार करते थे। वीरेन डंगवाल, आनन्द स्वरुप वर्मा और शमशेर सिंह बिष्ट, विपिन त्रिपाठी, निर्मल जोशी, जहूर और पीसी तिवाड़ी सारे के सारे गिरदा के तेवर में निष्णात।

आंदोलन, प्रतिरोध, कला, साहित्य और नाटक को लोककला लोकगीत लोकभाषा की सख्त जमीन पर खड़े होकर वज्र समान ताकत देना गिरदा की ही सीख थी। इसलिए बाजारू साहित्य और कला की हम मुरीद नहीं हैं। कुछ भी करते हुए, लिखते हुए, हर वक्त डर बना रहता जवाबदेही का। जितन आत्मीय थे, जितने संपर्कप्रवीण, उतने ही कठोर हो सकते थे गिरदा। जवाबतलब में वे एकदम बेरहम थे। नौकरी आधे वक्त पर ठोड़ दी। घर छोड़ दिया। पुश्तैनी जायदाद छोड़ दी। जनेऊ संस्कृते ले हमेशा नफरत करते रहे। किसी की परवाह नहीं की। साहित्य हो, या राजनीति, फिल्म हो या कला, गीत , संगीत , नृत्यया आंदोलन, जनपक्षधरता उनका निर्णायक कसौटा थी। जिस पर खरा न उतरने पर वे विश्व विजेता को भी खारिज कर देते थे। चिपको के दौरान उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी के नेता थे शमशेर। पर सारथी थे गिरदा ही। वे ही तय करते थे दिशा।

नैनीताल क्लब अग्नकांड से पहले वनों की नीलामी के खिलाफ मोहन और मैंने गिरफ्तारी नहीं दी। मुझे तब गिरफ्तारी देने, धरना , प्रदर्शन के कानून तोड़ो गांधीवादी तौर तरीके एकदम नापसंद थे। इस पर तुर्रा यह कि नैनीताल क्लब के ?फूंके जाने तक, पुलिस के गोली चलाने तक मेरी चिंता शरणार्थियों और तराई  तक सीमाबद्ध थी। पहाड़ और पर्यावरण हमारे सरोकार में नहीं थे। ज्यादातर छात्रों के । पर उस दिन के उस गांधीवादी विद्रोह, जिसके नायक गिरदा ही थे, हम सबको पर्यावरण कार्यकर्ता बना गया। रातोंरात हम पहाड़ी हो गये। नैनीताल क्लब फूंक दिया गया था। जबरद्सत छात्र विद्रोह के कारण शाम तक सारे साथी छूट गये थे। रात को मालरोड पर शराब में चूर गिरदा से टकराया तो ढिमरी ब्लाक का उल्लेख करते हुए गिरदा ने सिरफ इतना कहा कि तुम्हारे पिताजी लने तो अपने लोगों के लिए कमीज उतार दी थी, तुम क्या उतारोगे। आज तक यह चुनौती ब्रह्मदैत्य की तरह, बेताल की तरह मुझ पर हावी है। णैं इस चुनौती की गिरफ्त से शायद क भी मुक्त हो पाऊं। गिरदा हमारे लिए मरे ही नहीं हैं। वे हमारे  सपनों में, हमारे यादों में, हमारे सरोकारों में हमेशा एक चुनौती बनकर , हुड़के की जबरदस्त थाप बनकर, वसंत का वज्रनिनाद बनकर आते रहेंगे।

जन संस्कृति, सौंदर्यबोध, बिम्ब संयोजन, वर्ग चेतना, विचारधार का पाछ तो हम लोग गिरदा से पहले से ही लेते रहे हैं, उस रात महज एक सवाल से गिरदा हमेशा के लिए मेरी पहचान, मेला अवस्थान और मेरा नजरिया तय कर गये। राष्ट्रीयता और पहचान के मुद्दे झारखंड आने से पहले गिरदा ने साफ कर दिये थे। पर बाढ़ और भूस्खलन के दरम्यान आंधी पानी, अंधेरा की परवाह किये बिना जंगल जंगल, पगडंडी पगडंडी , शिखर शिखर, घाटोयों से लेकर घाटियों तक बेखटके भटकने का जब्जा गिरदा ने ही तय किया। इसलिए १९७८ में गंगोत्री बाढ़ हो, या मणिपुर नगोलैंड या मध्य भारत का वधस्थल, दंडकारणय हो या महानगर का जंगल, हमें डर नहीं लगता। हम गिरदा केसा थ मिलने के बाद जानते थे मस्ती से जूझते जाने , लड़ते जाने, बिना समझौते तेवर के सा जीने का ना म आत्म हत्या के विरुद्ध विद्रोह है।

परमाणु जनदायित्व विधेयक में सरकार ने फिर कुछ ताजा संशोधन किए हैं। इससे विवाद बढ़ सकता है। दरअसल, ताजा संशोधनों को परमाणु हादसा होने की हालत में सप्लायर की जवाबदेही कम करने वाला माना जा सकता है। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार को 18 सिफारिशों को स्वीकृति दी थी। इनमें से एक सिफारिश के अनुसार, ऑपरेटर क्षतिपूर्ति का दावा तभी कर सकता है, जब संयंत्र में हादसा जानबूझकर किया गया हो।

संशोधित उपबंध 17 के मुताबिक, परमाणु हादसे की क्षतिपूर्ति का भुगतान धारा छह के अनुरूप होगा। इसके बाद की जिम्मेदारी परमाणु प्रतिष्ठान के ऑपरेटर की होगी। क्षतिपूर्ति का अधिकार निम्नलिखित आधार पर होगा-
(क) यह अधिकार करार में लिखित हो।

(ख) परमाणु हादसा आपूर्तिकर्ता या उसके कर्मचारी ने किया हो, यह 'इरादतन' एटमी खतरा पहुंचाने के लिए किया गया हो, खराब मानकों वाली सामग्री की आपूर्ति, खराब उपकरण या सेवाओं अथवा साम्रगी से हुआ हो, उपकरण या सेवाओं के आपूर्तिकर्ता की गंभीर लापरवाही की वजह से हुआ हो।

(ग) परमाणु हादसा एटमी क्षति पहुंचाने के 'इरादे' से किसी व्यक्ति के चूक या गड़बड़ी से हुआ हो।
विशेषज्ञों की मानें तो नए विवाद की जड़ उपबंध ख और ग में परमाणु हादसे के संबंध में 'इरादा' शब्द है। इससे आपूर्तिकर्ता जिम्मेदारी से बच निकलने में कामयाब हो सकता है, क्योंकि ऐसी दुर्घनाओं में किसी का 'इरादा' साबित करना बेहद मुश्किल होगा।

इस संशोधन के अलावा यह विधेयक 17 अन्य संशोधनों के साथ 25 अगस्त को लोकसभा में पेश किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि न तो मूल विधेयक और न ही स्थायी संसदीय समिति की सिफारिश में इस तरह के संशोधनों का जिक्र था।

सरकार ने इसी सप्ताह धारा 17 के उपबंध क और ख के बीच 'और' शब्द के इस्तेमाल को लेकर हुए विवाद के बाद ऐसा किया था। दरअसल, भाजपा और वामदलों ने कहा था कि 'और' शब्द के इस्तेमाल से हादसा होने की हालत में आपूर्तिकर्ता की जिम्मेदारी कम हो जाती है। इसके बाद सरकार ने 'और' शब्द को निकाल दिया, लेकिन धारा 17 में 'इरादे' शब्द को जोड़ दिया।

भाकपा नेता डी राजा ने कहा कि इससे आपूर्तिकर्ता की जिम्मेदारी बेहद कम हो जाती है। उन्होंने कहा, 'मैं नहीं जानता कि वे क्या कह रहे हैं। आपदा, आपदा होती है। कौन भला कबूलेगा कि उसने यह जानबूझकर किया है। यह बेतुका है।' उन्होंने कहा कि जब संसद में विधेयक पेश किया जाएगा, तब हम इस पर अपनी रणनीति तय करेंगे।

परमाणु दायित्‍व विधेयक-2010 पर विचार करने वाली संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि परमाणु प्रतिष्‍ठान में किसी हादसे के लिए संबंधित कंपनी को ही जिम्‍मेदार ठहराए जाने की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए और इसके लिए हर्जाने की रकम 500 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 1500 करोड़ रुपये की जानी चाहिए। विज्ञान व तकनीक मंत्रालय से जुड़ी स्‍थायी संसदीय समिति की यह रिपोर्ट बुधवार को संसद के दोनों सदनों में रखी गई। समिति ने विधेयक में मुआवजे का दावा किए जाने के लिए मियाद 10 साल से बढ़ा कर 20 साल किए जाने का प्रस्‍ताव शामिल करने की भी सिफारिश की है।
समिति की रिपोर्ट पेश किए जाने के दौरान दोनों सदनों में हंगामा हुआ। लोकसभा में राजद प्रमुख लालू यादव और सपा अध्‍यक्ष मुलायम सिंह यादव ने आरोप लगाया कि सरकार ने भाजपा के साथ समझौता कर लिया है। उनका दावा था कि इसके तहत गुजरात में मुख्‍यमंत्री नरेंद्र मोदी और सोहराबुद्दीन मुठभेड़ कांड में फंसे मोदी के करीबी अमित शाह को सीबीआई जांच में फायदा पहुंचाया जाएगा। बदले में भाजपा संसद में परमाणु जवाबदेही विधेयक का समर्थन करेगी। राज्‍यसभा में रिपोर्ट रखे जाने के दौरान वामपंथी सांसदों ने जोरदार हंगामा किया।

परमाणु दायित्व विधेयक-2010 क्या है?

परमाणु दायित्व विधेयक -2010 ऐसा क़ानून बनाने का रास्ता है जिससे किसी भी असैन्य परमाणु संयंत्र में दुर्घटना होने की स्थिति में संयंत्र के संचालक का उत्तरदायित्व तय किया जा सके. इस क़ानून के ज़रिए दुर्घटना से प्रभावित लोगों को क्षतिपूर्ति या मुआवज़ा मिल सकेगा। सरकार ने 500 करोड़ रुपये का मुआवजा प्रस्‍तावित किया है। विधेयक के विरोधी इसे काफी कम और परमाणु कारोबारियों के हित में बता रहे हैं।

अमरीका और भारत के बीच अक्तूबर 2008 में असैन्य परमाणु समझौता पूरा हुआ। इस समझौते को ऐतिहासिक कहा गया था क्योंकि इससे परमाणु तकनीक के आदान-प्रदान में भारत का तीन दशक से चला आ रहा कूटनीतिक वनवास ख़त्म होना था। इस समझौते के बाद अमरीका और अन्य परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों से भारत को तकनीक और परमाणु सामग्री की आपूर्ति तब शुरु हो सकेगी जब वह परमाणु दायित्व विधेयक के ज़रिए एक क़ानून बना लेगा।

कैसे होगी क्षतिपूर्ति?

इस विधेयक के मसौदे में प्रावधान किया गया है कि क्षतिपूर्ति या मुआवज़े के दावों के भुगतान के लिए परमाणु क्षति दावा आयोग का गठन किया जाएगा। विशेष क्षेत्रों के लिए एक या अधिक दावा आयुक्तों की नियुक्ति की जा सकती है। इन दावा आयुक्तों के पास दीवानी अदालतों के अधिकार होंगे।

क्या है विवाद?

इस विधेयक पर विपक्षी दलों ने कई आपत्तियाँ दर्ज की थीं जिसके बाद इसे सरकार ने टाल दिया था और इसे संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया था। समिति की सिफ़ारिशें आ जाने के बाद अब विपक्षी दलों से चर्चा के आधार पर सरकार विधेयक में आवश्यक प्रावधान करेगी। कहा जा रहा है कि सरकार ने मुख्‍य विपक्षी पार्टी भाजपा को इस बारे में राजी कर लिया है।

एक विवाद मुआवज़े की राशि को लेकर था। पहले संचालक को अधिकतम 500 करोड़ रुपयों का मुआवज़ा देने का प्रावधान था, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की आपत्ति के बाद सरकार ने इसे तीन गुना करके 1500 करोड़ रुपए करने को मंज़ूरी दे दी है। कहा गया है कि सरकार ने कहा है कि वह समय-समय पर इस राशि की समीक्षा करेगी और इस तरह से मुआवज़े की कोई अधिकतम सीमा स्थायी रूप से तय नहीं होगी।

दूसरा विवाद मुआवज़े के लिए दावा करने की समय सीमा को लेकर था. अब सरकार ने दावा करने की समय सीमा को 10 वर्षों से बढ़ाकर 20 वर्ष करने का निर्णय लिया है।

तीसरा विवाद असैन्य परमाणु क्षेत्र में निजी कंपनियों को प्रवेश देने को लेकर था। कहा जा रहा है कि सरकार ने अब यह मान लिया है कि फ़िलहाल असैन्य परमाणु क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए नहीं खोला जाएगा और सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ही इस क्षेत्र में कार्य करेंगे।

विवाद का चौथा विषय परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को परिवहन के दौरान या इसके बाद होने वाली दुर्घटनाओं को लिए जवाबदेह ठहराने को लेकर है। विधेयक का जो प्रारूप है वह आपूर्तिकर्ताओं को जवाबदेह नहीं ठहराता।

आख़िरी विवाद का विषय अंतरराष्ट्रीय संधि, कन्वेंशन फॉर सप्लीमेंटरी कंपनसेशन (सीएससी) पर हस्ताक्षर करने को लेकर है। यूपीए सरकार ने अमरीका को पहले ही यह आश्वासन दे दिया है कि वह इस संधि पर हस्ताक्षर करेगा लेकिन वामपंथी दल इसका विरोध कर रहे हैं।

क्या है सीएमसी पर हस्ताक्षर करने का मतलब

सीएमसी एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिस पर हस्ताक्षर करने का मतलब यह होगा कि किसी भी दुर्घटना की स्थिति में दावाकर्ता सिर्फ़ अपने देश में मुआवज़े का मुक़दमा कर सकेगा। यानी किसी दुर्घटना की स्थिति में दावाकर्ता को किसी अन्य देश की अदालत में जाने का अधिकार नहीं होगा।

वैसे यह संधि थोड़ी विवादास्पद है, क्योंकि इसमें जो प्रावधान हैं, उसकी कोई कानूनी अनिवार्यता नहीं है। सीएसई पर वर्ष 1997 में हस्ताक्षर हुए हैं लेकिन दस साल से भी अधिक समय बीत जाने के बाद इस पर अब तक अमल नहीं हो पाया है।

क्या-क्या हैं प्रावधान?

राजनीतिक दलों से हुई चर्चा और संसद की स्थाई समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर सरकार अब मौजूदा विधेयक में संशोधन करेगी। इसके बाद संशोधित विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंज़ूरी दी जाएगी फिर इसे संसद में मंज़ूरी के लिए पेश किया जाएगा।

इसलिए यह कहना फ़िलहाल कठिन होगा कि वास्तव में विधेयक में सरकार क्या-क्या प्रावधान करती है लेकिन माना जा रहा है कि सरकार ने जिन बिंदुओं पर समझौते की हामी भरी है वह सब नए प्रारूप में शामिल होंगे।

कब तक होगा?

असैन्य परमाणु समझौते के तहत परमाणु तकनीक और सामग्री मिलना तभी शुरू हो सकेगा जब परमाणु दायित्‍व विधेयक पारित होकर क़ानून बन जाएगा। इसलिए सरकार इसे जल्‍दी ही पारित कराना चाहेगी, लेकिन विपक्षी दबाव के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है। अब भाजपा के सकारात्‍मक रुख को देखते हुए उम्‍मीद है कि सरकार की मंशा पूरी होगी। सरकार नवंबर से पहले इसे क़ानून का रूप देना चाहती ताकि जब अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत के दौरे पर आएं तो भारत पूरी तरह से तैयार रहे।

परमाणु जवाबदेही बिल के मसौदे में 18 संशोधन करने के बावजूद इसकी राह में नई बाधाएं खड़ी हो गई हैं। भाजपा ने आरोप लगाया है कि सरकार ने उस मसौदे में थोड़ा बदलाव किया है जिस पर उसके और सरकार के बीच सहमति बनी थी।

परमाणु जवाबदेही बिल पर नया बखेड़ा

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उधर, वामदलों ने दो-टूक कहा है कि वे आपूर्तिकर्ता के दायित्व को कम करने की किसी भी कोशिश को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह बिल संभवत: बुधवार को संसद में पेश किया जाएगा। इस पर खासा हंगामा मचने के आसार हैं। भाजपा और वामदलों को एक संशोधन विशेष को लेकर आशंका है कि इससे परमाणु हादसे की स्थिति में आपूर्तिकर्ता विदेशी कंपनी को संरक्षण मिलेगा।

धारा 17 की शब्दावली पर विवाद :सारा विवाद धारा 17 की शब्दावली को लेकर चल रहा है। यह धारा आपूर्तिकर्ता विदेशी कंपनी के दायित्व से जुड़ी है। संशोधित मसौदे के मुताबिक परमाणु संयंत्र का संचालक आपूर्तिकर्ता से मुआवजा तब मांग सकेगा, जब-

(ए) उसके ऐसे अधिकार का उल्लेख सौदे में लिखित रूप से हो,
(बी) परमाणु दुर्घटना घटिया या खराब उपकरणों की आपूर्ति की वजह से हुई हो,
(सी) परमाणु दुर्घटना किसी व्यक्ति की मंशा या चूक के कारण हुई हो।

पिछले हफ्ते पहले दोनों उपबंधों को जोड़ने वाले 'और' शब्द को हटा दिया गया था। अब भाजपा का आरोप है कि सरकार ने भाषा में बदलाव करके 'मंशा' शब्द को जोड़ दिया है। कहीं नहीं था 'मंशा' शब्द : खास बात यह है कि न तो बिल के मूल मसौदे और न ही संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों में 'मंशा' शब्द का कहीं उल्लेख था।

पीएम को बिल आसानी से पास होने का भरोसा
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भरोसा है कि परमाणु जवाबदेही बिल के शब्दों को लेकर भाजपा से कोई टकराव नहीं होगा। उन्होंने अपने सिपहसालारों को यह सुनिश्चित करने को कहा कि यह बिल संसद में आसानी से पारित हो। सूत्रों के मुताबिक, सरकार बिल से उन सभी शब्दों को वापस ले लेगी जिन पर भाजपा को एतराज है।

प्रधानमंत्री का मानना है कि जब सरकार भाजपा के 17 सुझावों को स्वीकार कर चुकी है तो आपूर्तिकर्ता के दयित्व से जुड़े एक अन्य सुझाव को मंजूर करने में कोई हर्ज नहीं है। दुनियाभर में सिर्फ चार आपूर्तिकर्ता हैं। इनमें से दो पहले से भारत में काम कर रहे हैं। इसलिए ऐसा कुछ नहीं है जो बिल पारित होने में बाधक बने।


वामदल इन संशोधनों पर सहमत नहीं हो सकते। मंशा शब्द जोड़ना हास्यास्पद और अतार्किक है। कोई आपूर्तिकर्ता यह नहीं मानेगा कि हादसा जानबूझकर हुआ है।-डी राजा, भाकपा नेता

प्रथम दृष्ट्या ऐसा लगता है कि सरकार ने सहमति वाले मसौदे में बदलाव किया है। अब जो शब्दावली जोड़ी गई है, उससे आपूर्तिकर्ता का दायित्व काफी हद तक खत्म कर दिया गया है। हम नए तथ्यों का अध्ययन कर रहे हैं। इसके बाद रुख तय करेंगे।-अरुण जेटली, राज्यसभा में विपक्ष के नेता

इस मसले पर सरकार खुले दिमाग से काम रही है। व्यापक आम सहमति बनाने के पूरे प्रयास किए गए हैं।-मनीष तिवारी, कांग्रेस प्रवक्ता

    
Source: BBC Hindi   |   Last Updated 16:00(18/08/10)
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विनोद वर्मा

बीबीसी संवाददाता, दिल्ली




    




परमाणु दायित्व विधेयक-2010 क्या है?

परमाणु दायित्व विधेयक -2010 ऐसा क़ानून बनाने का रास्ता है जिससे किसी भी असैन्य परमाणु संयंत्र में दुर्घटना होने की स्थिति में संयंत्र के संचालक का उत्तरदायित्व तय किया जा सके. इस क़ानून के ज़रिए दुर्घटना से प्रभावित लोगों को क्षतिपूर्ति या मुआवज़ा मिल सकेगा.

अमरीका और भारत के बीच अक्तूबर 2008 में असैन्य परमाणु समझौता पूरा हुआ. इस समझौते को ऐतिहासिक कहा गया था क्योंकि इससे परमाणु तकनीक के आदान-प्रदान में भारत का तीन दशक से चला आ रहा कूटनीतिक वनवास ख़त्म होना था.

इस समझौते के बाद अमरीका और अन्य परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों से भारत को तकनीक और परमाणु सामग्री की आपूर्ति तब शुरु हो सकेगी जब वह परमाणु दायित्व विधेयक के ज़रिए एक क़ानून बना लेगा.


कैसे होगी क्षतिपूर्ति?

इस विधेयक के आरंभिक प्रारुप में प्रावधान किया गया है कि क्षतिपूर्ति या मुआवज़े के दावों के भुगतान के लिए परमाणु क्षति दावा आयोग का गठन किया जाएगा. विशेष क्षेत्रों के लिए एक या अधिक दावा आयुक्तों की नियुक्ति की जा सकती है.

इन दावा आयुक्तों के पास दीवानी अदालतों के अधिकार होंगे.


क्या है विवाद?

इस विधेयक पर विपक्षी दलों ने कई आपत्तियाँ दर्ज की थीं जिसके बाद इसे सरकार ने टाल दिया था और इसे संसद की स्थाई समिति को भेज दिया गया था. अब स्थाई समिति ने अपनी सिफ़ारिशें संसद को दे दी हैं.

इसके आधार पर और विपक्षी दलों से हुई चर्चा के आधार पर सरकार विधेयक में आवश्यक प्रावधान करेगी.

    
एक विवाद मुआवज़े की राशि को लेकर था. पहले इसके लिए विधेयक में संचालक को अधिकतम 500 करोड़ रुपयों का मुआवज़ा देने का प्रावधान था लेकिन भारतीय जनता पार्टी की आपत्ति के बाद सरकार ने इसे तीन गुना करके 1500 करोड़ रुपए करने को मंज़ूरी दे दी है. कहा गया है कि सरकार ने कहा है कि वह समय समय पर इस राशि की समीक्षा करेगी और इस तरह से मुआवज़े की कोई अधिकतम सीमा स्थाई रुप से तय नहीं होगी.

दूसरा विवाद मुआवज़े के लिए दावा करने की समय सीमा को लेकर था. अब सरकार ने दावा करने की समय सीमा को 10 वर्षों से बढ़ाकर 20 वर्ष करने का निर्णय लिया है.

तीसरा विवाद असैन्य परमाणु क्षेत्र में निजी कंपनियों को प्रवेश देने को लेकर था. कहा जा रहा है कि सरकार ने अब यह मान लिया है कि फ़िलहाल असैन्य परमाणु क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए नहीं खोला जाएगा और सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ही इस क्षेत्र में कार्य करेंगे.

विवाद का चौथा विषय परमाणु आपूर्तिकर्ताओं को परिवहन के दौरान या इसके बाद होने वाली दुर्घटनाओं को लिए जवाबदेह ठहराने को लेकर है. विधेयक का जो प्रारूप है वह आपूर्तिकर्ताओं को जवाबदेह नहीं ठहराता.

आख़िरी विवाद का विषय अंतरराष्ट्रीय संधि, कन्वेंशन फॉर सप्लीमेंटरी कंपनसेशन (सीएससी) पर हस्ताक्षर करने को लेकर है. यूपीए सरकार ने अमरीका को पहले ही यह आश्वासन दे दिया है कि वह इस संधि पर हस्ताक्षर करेगा लेकिन वामपंथी दल इसका विरोध कर रहे हैं.

क्या है सीएमसी पर हस्ताक्षर करने का मतलब

सीएमसी एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिस पर हस्ताक्षर करने का मतलब यह होगा कि किसी भी दुर्घटना की स्थिति में दावाकर्ता सिर्फ़ अपने देश में मुआवज़े का मुक़दमा कर सकेगा. यानी किसी दुर्घटना की स्थिति में दावाकर्ता को किसी अन्य देश की अदालत में जाने का अधिकार नहीं होगा.

वैसे यह संधि थोड़ी विवादास्पद है, क्योंकि इसमें जो प्रावधान हैं, उसकी कोई कानूनी अनिवार्यता नहीं है. उल्लेखनीय है कि सीएसई पर वर्ष 1997 में हस्ताक्षर हुए हैं लेकिन दस साल से भी अधिक समय बीत जाने के बाद इस पर अब तक अमल नहीं हो पाया है.


क्या-क्या हैं प्रावधान?

    
राजनीतिक दलों से हुई चर्चा और संसद की स्थाई समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर सरकार अब मौजूदा विधेयक में संशोधन करेगी. इसके बाद संशोधित विधेयक को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंज़ूरी दी जाएगी फिर इसे संसद में मंज़ूरी के लिए पेश किया जाएगा.

इसलिए यह कहना फ़िलहाल कठिन होगा कि वास्तव में विधेयक में सरकार क्या-क्या प्रावधान करती है लेकिन माना जा रहा है कि सरकार ने जिन बिंदुओं पर समझौते की हामी भरी है वह सब नए प्रारूप में शामिल होंगे.


क्या इसकी कोई समय सीमा है?

यह भारत का अंदरूनी मामला है कि वह परमाणु दायित्व विधेयक को कब संसद से पारित करता है और कब इसे क़ानून का रुप दिया जा सकेगा. लेकिन यह तय है कि असैन्य परमाणु समझौते के तहत परमाणु तकनीक और सामग्री मिलना तभी शुरु हो सकेगा जब यह क़ानून लागू हो जाएगा.

लेकिन ऐसा दिखता है कि भारत सरकार नवंबर से पहले इसे क़ानून का रुप देना चाहती ताकि जब अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत के दौरे पर आएँ तो भारत पूरी तरह से तैयार रहे.
http://www.bhaskar.com/article/NAT-nuclearliability-qna-vv-1269951.html?PRV=

सांसदों के भत्ते में 10 हजार रुपये का इजाफा                
आज तक ब्‍यूरो | नई दिल्‍ली, 23 अगस्त 2010 | अपडेटेड: 12:49 IST
सांसदों के वेतन को लेकर चल रहा विवाद सुलझ गया है. कैबिनेट ने सांसदों के भत्ते में और दस हजार रुपए की बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी है.
इससे पहले कैबिनेट ने सांसदों का वेतन करीब तीन गुना बढ़ाने को अपनी मंजूरी दे दी थी, लेकिन इसे कम बताते हुए लालू-मुलायम की अगुवाई में लोकसभा में सांसदों ने जोरदार हंगामा किया था. सोमवार को कैबिनेट की बैठक में सांसदों का भत्ता दस हजार रुपया बढ़ाने का फैसला किया गया.  संसदीय क्षेत्र भत्ता और दफ्तर खर्च भत्ता 5-5 हजार रुपये बढ़ाया गया है.
पिछले दिनों लालू-मुलायम के हंगामे की आवाज केंद्र सरकार के कानों तक पहुंच ही गई. लालू-मुलायम समेत कई सांसदों ने आवाज उठाई थी कि उनकी तनख्वाह तिगुनी करने पर जो मुहर लगाई गई है, वो नाकाफी है. सरकार ने उनकी मांगों पर विचार करने के लिए कैबिनेट की बैठक बुलाई.
दरअसल, कैबिनेट ने सांसदों की तनख्वाह तीन गुना कर दी थी, लेकिन जनता के प्रतिनिधियों को तिगुने वेतन पर भी संतोष नहीं हुआ. उन्हें ये नहीं भा रहा है कि उनकी बेसिक सैलरी 16 हज़ार से बढ़कर 50 हज़ार हो गई है. दैनिक भत्ता 1 हज़ार से बढ़कर 2 हज़ार हो गया.
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सांसदों के भत्ते में दस हज़ार की बढ़ोतरी

सुशीला सिंह
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
वेतन में तीन गुने से भी ज्यादा बढ़ोतरी के बावजूद कुछ सांसद ख़ुश नहीं हैं.
भारत में सांसदो का भत्ता 10,000 रुपए और बढ़ा.
वेतन वृद्धि की मांग को लेकर अड़े सांसदो को शांत करने की कोशिश करते हुए सोमवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सांसदों के भत्तों में 10 हज़ार रुपए और बढ़ाने को मंजूरी दे दी है.
सोमवार की सुबह प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में ये फैसला लिया गया.
अब सांसदो को चुनाव क्षेत्र भत्ता और दफ़्तर ख़र्च के लिए प्रति महीने पांच-पांच हज़ार रुपए अतिरिक्त दिए जाएगे.
इन रुपयों पर कर में भी छुट दी गई हैं.

वामदलों की नाराज़गी

वामदलों का कहना है कि जिस तरीक़े से वेतन वृद्धि की गई है हम उसके ख़िलाफ़ है.
सीपीएम पोलित ब्युरो के सदस्य और राज्यसभा सांसद सीताराम यचुरी का कहना है कि ''एक ऐसी प्रणाली होनी चाहिए जिसमें सांसद शामिल न हों बल्कि वेतन आयोग में एक नियम जोड़ा जाना चाहिए जो सांसदों का वेतन तय करे.''
यचुरी ने कहा कि जब संसद में ये प्रस्ताव लाया जाएगा तो सीपीएम इसका समर्थन नहीं करेगा और न ही वे बहस में शामिल होंगें.''
दरअसल शुक्रवार को ही कैंद्रीय मंत्रिमंडल ने सांसदों का वेतन तीन गुना बढ़ाया था जिसके मुताबिक़ अब हर सांसद का वेतन 16 हज़ार से बढ़कर 50 हज़ार रुपए प्रति माह हो जाएगा.
लेकिन इस बढ़ोत्तरी पर भारतीय जनता पार्टी के साथ साथ राष्ट्रीय जनता दल,बहुजन समाज पार्टी,समाजवादी पार्टी जनता दल (युनाइटेड),शिवसेना और अकाली दल के सांसदो ने नाराज़गी ज़ाहिर की थी.

नया तरीक़ा अपनाने की वकालत

भागलपुर से सांसद और बीजेपी के प्रवक्ता शहनवाज़ हुसैन का कहना है कि सांसदों का वेतन सम्मानजनक होना चाहिए लेकिन हम ये हमेशा से कहते आए है कि एक ऐसा तरीक़ा बनाया जाना चाहिए ताकि सांसद अपना वेतन ख़ुद न निर्धारित करें.
शाहनवाज़ ने कहा कि कैबिनेट ने भत्ता तो बढ़ाया है लेकिन अगर हम घर से मदद न ले तो संसदीय क्षेत्र के लिए ख़र्च पूरा नहीं पड़ता, जैसे दूसरे मूलकों में एक संस्था सांसदों का वेतन तय करती है वैसे ही भारत के सांसदों के लिए भी किया जाना चाहिए.
संयुक्त संसदीय समिति ने ये प्रस्ताव दिया था कि की सांसदों का वेतन 16 हज़ार रुपए से बढा़कर 80 हज़ार कर दिया जाए लेकिन कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को नामंजूर कर 50 हज़ार रुपए प्रति माह करने का फ़ैसला किया था.
सांसदों को दफ़्तर के लिए और चुनाव क्षेत्र के लिए प्रति माह 20-20 हज़ार रुपए भत्ता मिलता था जिसे बढ़ाकर 40-40 हज़ार कर दिया गया था लेकिन अब कैबिनेट के ताज़ा फ़ैसले के बाद अब ये 45-45 हज़ार हो गया हैं.
शुक्रवार को इस मुद्दे पर संसद में बीजेपी,सपा,आरजेडी,बसपा और जेडी(यु) के सांसदों ने काफ़ी हंगामा किया था और सांसदों का अपमान बंद करो के नारे भी लगाए थे.
भारत के सांसदों के नए वेतन की तुलना में अमरीका में सांसदों का वेतन 13 गुना , कनाडा में 11 गुना और ब्रिटेन में आठ गुना ज़्यादा है.
जानकारों के मुताबिक़ ये विवाद अंतहीन बहस का विषय है.
जंहा एक तबक़ा ये कह रहा है कि वेतन के साथ साथ सांसदों को मिलने वाली सुविधाओं को भी देखा जाना चाहिए तो दूसरा पक्ष वेतन पर ज़ोर देता है.
बहरहाल एक सवाल ये भी है कि वेतन राजनीति के लिए है या फिर जन सेवा के लिए.

   

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सांसदों के वेतन में 10 हजार का और इजाफा

खास खबर - ‎12 घंटे पहले‎
नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सोमवार को सांसदों के वेतन-भत्तों में और इजाफा कर दिया है। कैबिनेट ने सांसदों के वेतन में दस हजार रूपए और संसदीय क्षेत्र एवं दफ्तर खर्च भत्ते में दस-दस हजार रूपए और बढ़ाने का फैसला किया है। गौरतलब है कि कैबिनेट में पिछले सप्ताह सांसदों का वेतन 16 हजार रूपए प्रतिमाह से बढ़ाकर 50 हजार रूपए करने का फैसला किया था, लेकिन लालू-मुलायम के क़डे विरोध और लोकसभा में भारी हंगामे के बाद वित्त मंत्री ...

बढ़े वेतन से नाखुश सांसदों का हंगामा

डी-डब्लू वर्ल्ड - ‎२०-०८-२०१०‎
भारत सरकार ने सांसदों का वेतन 16 हजार रुपये से बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दिया है. लेकिन विपक्षी सांसदों की मांग है कि इसे 80 हजार रुपये किया जाए. इस मुद्दे पर शुक्रवार को लोकसभा में खासा हंगामा हुआ. सांसदों की वेतन वृद्धि के मुद्दे पर जब सदन में "सांसदों का अपमान बंद करो" और "संसदीय समिति की रिपोर्ट को लागू करो" जैसे नारे गूंजने लगे तो स्पीकर मीरा कुमार को सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी. समाजवादी पार्टी, बीएसपी, जेडी (यू), ...

वेतन 16से50 हजार हुआ, भत्ते भी बढ़े, फ़िर भी सांसद नाखुश

प्रभात खबर - ‎२०-०८-२०१०‎
नयी दिल्ली: सांसदों के वेतन में तीन गुना वृद्धि (तीन सौ फीसदी) को केंद्रीय कैबिनेट ने शुक्रवार को मंजूरी दे दी. सांसदों के वेतन अब 16 हजार रुपये से बढ़ कर 50 हजार रुपये हो जायेंगे. इसके अलावा अन्य भत्तों को भी दोगुना कर दिया गया है. सांसदों की पेंशन भी आठ हजार रुपये से बढ़ा कर 20 हजार रुपये कर दी गयी है. जो सांसद पांच साल से ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं, उन्हें पांच साल के बाद अतिरिक्त कार्यकाल के लिए पेंशन के तौर पर हर साल ...

नाखुश सांसदों ने किया हंगामा, कहा और बढ़े वेतन

प्रभात खबर - ‎२०-०८-२०१०‎
नयी दिल्लीः सांसदों का वेतन तीन गुना बढ़ाए जाने के कैबिनेट के फ़ैसले से असंतुंष्ट सपा, बसपा, राजद और जदयू के सदस्यों ने इसे संसदीय समिति की सिफ़ारिशों के अनुरूप करने की मांग को लेकर लोकसभा में आज भारी हंगामा किया जिसके कारण सदन की बैठक कुछ देर के लिए स्थगित कर दी गई. सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होने पर लालू और मुलायम सिंह ने सांसदों के वेतन बढ़ाये जाने के बारे में कैबिनेट के फ़ैसले का विषय उठाया. उन्होंने कैबिनेट के फ़ैसले का ...

सांसदों का वेतन और बढ़ा सकती है सरकार !

प्रभात खबर - ‎२२-०८-२०१०‎
नयी दिल्ली : कैबिनेट द्वारा मंजूर की गयी प्रस्तावित बढोत्तरी से नाखुश सांसदों के एक वर्ग को संतुष्ट करने के लिये सरकार संसद सदस्यों के वेतन और भत्ते में बीस से तीस हजार तक का और इजाफ़ा करने पर सहमत हो सकती है. इस मुद्दे पर कल वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के साथ भाजपा, राजद, सपा और जद (यू) नेताओं ने मुलाकात की. इसी के बाद से सांसदों के वेतन-भत्तों में और भी बढोत्तरी हो सकने की बात विपक्षी खेमे में की जा रही है. विपक्ष के सूत्रों ...

सांसदों की वेतन वृद्धि

प्रभात खबर - ‎२२-०८-२०१०‎
भारत की तुलना किन अर्थो में आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, सिंगापुर और संयुक्त राज्य अमेरीका से की जा सकती है? क्या इन देशों में भारत की तरह गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी, बेरोजगारी और कुपोषण है? जिन देशों के सांसदों का वेतन भारत के सांसदों के वेतन से कई गुणा अधिक है वे देश पिछड़े और अविकसित नहीं हैं. भारत में राजनीति का पेशा और व्यवसाय बनना नव उदारवादी अर्थव्यवस्था के दौर में अधिक हुआ है. ...

लालच और निर्लज्जता का दुखद अध्याय

दैनिक भास्कर - ‎२२-०८-२०१०‎
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक सप्ताह पहले जो संयम दिखाया था, उसे तोड़ते हुए सांसदों के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी के विधेयक को मंजूरी दे दी। लेकिन वेतन में तिगुनी और भत्तों में दोगुनी बढ़ोतरी भी हमारे सासंदों को संतुष्ट नहीं कर सकी। इसे और ज्यादा बढ़ाने के लिए उन्होंने संसद के भीतर व बाहर जैसा हंगामा किया, वह हमारी राजनीति में लालच और निर्लज्जता का एक और दुखद अध्याय है। किसी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी ग्रहण कर ली, किसी ने ...

200फीसदी से ज्यादा का इजाफा, फिर भी नाखुश है सांसद

दैनिक भास्कर - ‎२१-०८-२०१०‎
सरकार ने सांसदों के वेतन में 200 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी का फैसला लिया है। अब इनका मूल वेतन 16 हजार रुपये स बढ़ा कर 50 हजार रुपये कर दिया गया है। इसके अलावा करीब लाख रुपये की सुविधाएं अलग से। इसके वावजूद ये खुश नहीं नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में शुक्रवार को सुबह हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय का फैसला लिया गया। इससे पहले की मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला टाल दिया गया था। ...

3 गुना बढ़ोतरी पर भी नाखुश

Business standard Hindi - ‎२०-०८-२०१०‎
केंद्रीय कैबिनेट द्वारा सांसदों के वेतन वृद्धि को मंजूरी दिए जाने के बाद अब सभी सांसदों की मासिक आमदनी बढ़कर 1.02 लाख रुपये हो गई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आज सुबह हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस बारे में गठित सांसदों की समिति की सिफारिशों पर विचार करने के बाद उनका मूल वेतन 16 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपये प्रति महीना करने को मंजूरी दे दी है। हालांकि समिति ने सांसदों के मूल वेतन में पांच गुना बढ़ोतरी कर ...




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नक्सलियों के निशाने पर चिदंबरम सहित 22 नेता

खास खबर - ‎11 घंटे पहले‎
नई दिल्ली। नक्सलियों के निशाने पर केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम सहित 22 प्रमुख नेता हैं। इनमें गृह सचिव जीके पिल्लई सबसे ऊपर हैं। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक नक्सलियों ने यह एलान किया है कि जो नक्सली कैडर चिदंबरम और पिल्लई पर हमला करेगा, उन्हें भारी इनाम दिया जाएगा। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन, उ़डीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक समेत भाजपा के कुछ ब़डे नेता भी इस ...

नक्सलियों के निशाने पर चिदंबरम सहित 22 नेता

आज तक - ‎12 घंटे पहले‎
देश के बड़े राजनेता नक्सलियों के टार्गेट पर हैं. खुफिया एजेंसी के सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम और गृह सचिव जी के पिल्लई मुख्य तौर पर निशाने पर हैं. यह भी एलान किया गया है कि जो नक्सली केडर चिदंबरम और पिल्लई पर हमला करेगा उन्हें भारी इनाम दिया जाएगा. इसके अलावा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन, उड़ीसा के मुख्यंत्री नवीन पटनायक समेत बीजेपी के कुछ बड़े नेता भी इस ...

मनमोहन और कई बड़े नेता नक्सलियों के निशाने पर

मेरी खबर.कोम - ‎14 घंटे पहले‎
नई दिल्ली: सीआरपीएफ और आम जनता के बाद अब नक्सलियों की नजर देश के प्रधानंमंत्री मनमोहन सिंह और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, केन्द्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल पर है। सुत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नक्सलियों ने एक बैठक की है। इस बैठक में नक्सलियों ने अपने आगे की रणनीति बनाई। इसके साथ ही उन्होंने बैठक में दो दर्जन वीआईपी व बड़े अधिकारियों की लिस्ट बनाई जो उनके निशाने पर हैं। ...

चिदंबरम, 22 नेता नक्सली हिट लिस्ट में

SamayLive - ‎14 घंटे पहले‎
चिदंबरम के अलावा 22 अन्य बड़े नेताओं पर भी नक्सली ख़तरा मंडरा रहा है। नेताओं पर नक्सली ख़तरे का खुलासा आईबी ने किया है। इंटेलिजेंस ब्यूरो का कहना है कि चिदंबरम और पिल्लई के अलावा रमन सिंह और नवीन पटनायक नक्सलियों के निशाने पर हैं। इनके अलावा बीजेपी की कुछ वरिष्ठ नेता भी नक्सलियों की हिट लिस्ट में हैं। नेताओं के अलावा नक्सलियों ने डीआईजी स्तर से ऊपर के कई अधिकारियों को भी अपना निशाना बनाया है। ख़बर है कि 15 अगस्त के बाद...

नक्सलियों के निशाने पर चिदंबरम और रमन सिंह !

Patrika.com - ‎15 घंटे पहले‎
नई दिल्ली। नक्सलियों के निशाने पर देश के कई बड़े नेता व अधिकारी हैं। इनमें गृह मंत्री पी.चिदंबरम, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, केन्द्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक हाल ही में नक्सलियों की एक बैठक हुई। इसमें दो दर्जन वीआईपी व बड़े अधिकारियों की लिस्ट बनाई गई । इसमें नक्सलियों के बड़े नेताओं ने तय किया कि आजाद की मौत का बदला लेने के लिए बड़े नेताओं व अधिकारियों की ...

उमर ने घाटी में शांति की दुआ माँगी

वेबदुनिया हिंदी - ‎43 मिनट पहले‎
PTI जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला ने पिता फारूक अब्दुला और अन्य परिजनों के साथ सोमवार को यहाँ विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की मजार पर जियारत कर घाटी में शीघ्र अमन-चैन होने की मन्नत माँगी। उमर अब्दुला ने दरगाह परिसर में मन्नत का धागा भी बाँधा। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री अब्दुला ने पिता फारूक अब्दुल्ला और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ तीसरे प्रहर कड़े सुरक्षा प्रबंध के बीच गरीब ...

उमर अब्दुल्ला ने घाटी में अमन चैन की मन्नत मांगी

खास खबर - ‎4 घंटे पहले‎
अजमेर। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पिता फारूक अब्दुल्ला और अन्य परिजनों के साथ आज यहां सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की मजार पर जियारत कर घाटी में शीघ्र अमन चैन होने की मन्नत मांगी। उमर ने दरगाह परिसर में मन्नत का धागा भी बांधा। सूत्रों के अनुसार जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पिता फारूक अब्दुल्ला और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ तीसरे पहर गरीब नवाज की मजार पर देश में अमन चैन और ...

अजमेर में जियारत करेंगे उमर अब्दुल्ला

खास खबर - ‎9 घंटे पहले‎
जयपुर। अजमेर स्थित सूफी संत ख्याजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दगाह में जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अपने पूरे परिवार के साथ सोमवार को जियारत कर दुआ मांगेगे। पुलिस सूत्रों ने बताया कि उमर अब्दुल्ला परिवार सहित अपनी निजी यात्रा पर कल जयपुर पहुंचे थे। अब्दुल्ला की जयपुर और अजमेर यात्रा को देखते हुए सुरक्षा के कडे़ इन्तजाम किए गए हैं।

अजमेर में जियारत कर दुंआ मांगेगे उमर

प्रभात खबर - ‎13 घंटे पहले‎
जयपुर: जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला अपने परिवार के साथ आज अजमेर स्थित विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में जियारत कर दुंआ मांगेगे. पुलिस सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि उमर अब्दुल्ला परिवार समेत अपनी निजी यात्रा पर कल जयपुर पहुंचे थे. अब्दुल्ला की जयपुर और अजमेर यात्रा को देखते हुए सुरक्षा के कड़े प्रबंध किये गये हैं.

फारूक अब्दुला ने दरगाह में जियारत की

Patrika.com - ‎5 घंटे पहले‎
अजमेर। केन्द्रीय अक्षय ऊर्जा मंत्री फारूक अब्दुल्ला एवं जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आज सूफी संत हजरत मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की जियारत की। फारूक अब्दुल्ला एवं उमर अब्दुल्ला दोपहर करीब तीन बजे सूफी संत की दरगाह पहुंचे और उन्होंने दरगाह में अकीदत के फूल पेश कर जियारत की। अब्दुल्ला परिवार को खादिम मोईन ने जियारत कराई। इस अवसर पर अंजुमन समिति की ओर से अब्दुल्ला परिवार का तवरर्ख किया गया। ...

उमर अब्दुल्ला आज अजमेर में

दैनिक भास्कर - ‎19 घंटे पहले‎
अजमेर. जम्मू व कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सोमवार को दरगाह जियारत करेंगे। उनकी अजमेर यात्रा को देखते हुए जिला प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए हैं। खुफिया महकमे पहुंचे कार्यक्रम के मुताबिक उमर अब्दुल्ला सुबह करीब 9.30 बजे जयपुर रवाना होकर सड़क मार्ग से अजमेर आएंगे। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महकमे की ओर से एक टीम उमर अब्दुल्ला के लिए गठित कर दी गई है। पुलिस को भी सुरक्षा के विशेष इंतजाम के लिए कहा है। माना जा रहा है कि ...
सोमवार,23 अगस्त, 2010 को 09:41 तक के समाचार
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क्यों न बढ़े सांसदों का वेतन

    
Source: Jitendra Kumar   |   Last Updated 09:43(23/08/10)
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इससे पहले
         

    
                        
सांसदों के वेतन बढ़ाए जाने को लेकर पिछले कई दिनों से चल रहा विवाद अब भी जारी है और जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, उससे लगता है कि यह आगे भी जारी रहेगा। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह गतिरोध है क्यों? दूसरी बात, इसे कौन लोग सबसे ज्यादा तूल दे रहे हैं? क्या जो बातें मीडिया में आ रही हैं, वे पूरी तरह संतुलित हैं या एकतरफा हैं? साथ ही, सांसदों के वेतन बढ़ने से सबसे ज्यादा चिंतित कौन हैं और हैं तो क्यों?

लोग यह तर्क देते हैं कि जब देश में इतनी गरीबी है, तो किस आधार पर गरीबों के इन प्रतिनिधियों को इतनी मोटी तनख्वाह दी जानी चाहिए। सांसदों की तनख्वाह बढ़ाए जाने के खिलाफ तर्क देने वालों का तो यहां तक कहना है कि यह गरीब देश की जनता का अपमान है। अगर दोनों बातों को एक साथ रखकर देखें, तो ये तर्क काफी महत्वपूर्ण लगते हैं, लेकिन तर्क देने वाले लोगों के ऊपर नजर डालें तो उनकी करनी और कथनी, दोनों ही अटपटी लगती है।

सांसदों की तनख्वाह न बढ़ाने की हिमायत करने वाले अधिकांशत: वे लोग हैं जो कहीं विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं, नौकरशाह हैं या फिर वे पत्रकार हैं जो किसी न किसी अखबार या समाचार चैनल में बड़े ओहदे पर काम करते हैं। कॉलेज, विश्वविद्यालय या सरकारी महकमे में काम करने वालों की तनख्वाह पहले ही केंद्र सरकार ने छठे वेतन आयोग की सिफारिश लगाकर कई गुना बढ़ा दी है।

जो पत्रकार किसी न्यूज चैनल या अखबार में बड़े ओहदे पर काम करते हैं, उनकी भी तनख्वाह न्यूनतम 50 हजार रुपए प्रतिमाह है। फिर ऐसे लोगों द्वारा इस तरह के तर्क का क्या मतलब है। और तो और, प्रधानमंत्री के एक पूर्व मीडिया सलाहकार और वर्तमान में एक अखबार के संपादक ने तो एक टीवी चैनल पर यहां तक कहा कि सांसदों की वेतन वृद्धि लोकतंत्र का अपमान है। सबसे मजेदार बात यह है कि इसी सलाहकार के समय छठे वेतन आयोग की सिफारिश लागू की गई थी और आज वह खुद भारी वार्षिक वेतन पर काम कर रहे हैं!

खैर, जो लोग यह तर्क देते हैं कि जब देश की 78 फीसदी जनता 20 रुपए रोजाना से कम पर जिंदगी जी रही है तो उसके प्रतिनिधियों की तनख्वाह इतनी क्यों होनी चाहिए, क्या सचमुच उन्हें यह पता नहीं है कि ये सांसद किसी भी रूप में उनके प्रतिनिधि नहीं हैं जिनके नाम पर उनकी तनख्वाह बढ़ाए जाने का विरोध किया जा रहा है।

अगर 1991 से संसद में हुई बहस को देखा जाए, तो इस बात के प्रमाण मिलेंगे कि गिने-चुने सांसदों औऱ अवसरों को छोड़कर कभी भी हाशिए के 78 फीसदी लोगों के हित की बात नहीं उठी है। जिन मजदूरों की बात हालिया दिनों में भारतीय संसद में उठी है, वे गुड़गांव के हीरो होंडा के 'मजदूर' थे जिनकी 2005 में पुलिस ने बर्बरता से पिटाई की थी।

हमें यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि वास्तव में वे हीरो होंडा के व्हाइट कॉलर 'मजदूर' थे, जो किसी भी परिस्थिति में देश के 78 फीसदी मजदूरों में शामिल नहीं हैं। इसलिए जो लोग सोचते हैं कि सांसद अवाम की बहुसंख्य जनता के प्रतिनिधि हैं, वे जान-बूझ कर लाचार और मजबूर लोगों को गुमराह कर रहे हैं।

फिर भी, जिस परिस्थिति में सांसद काम करते हैं, उनकी तनख्वाह में बढ़ोतरी जरूरी है। अजरुन सेनगुप्ता ने यूपीए के पहले कार्यकाल की शुरुआत में ही कहा था कि देश के 78 फीसदी लोग 20 रुपए प्रतिदिन पर जिंदगी बसर कर रहे हैं। फिर भी केंद्र सरकार ने देश के तीन फीसदी सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह में बेतहाशा वृद्धि कर दी थी, जिसके दबाव में सभी राज्य सरकारों को छठे वेतन आयोग की सिफारिश माननी पड़ी, जबकि उस दिन भी देश के 78 फीसदी गरीबों के बेहतरी के लिए काम किए जाने की जरूरत थी। लेकिन उस दिन देश के मध्य वर्ग ने इस वेतन बढ़ोतरी का जोरदार स्वागत किया था।

जो लोग सांसदों की वेतन वृद्धि के खिलाफ तर्क देते हैं, क्या उनके पास इस बात का कोई जवाब है कि इन सांसदों को पांच साल में कम से कम एक बार तो जनता के बीच जाना ही पड़ता है जिससे वे दोबारा चुने जाने की बात कर सकें। सांसदों के घर पर उनके चाहने या ना चाहने के बावजूद क्षेत्र की जनता पहुंच ही जाती है जिनके लिए सांसद को दरवाजा खोलना ही पड़ता है।

लेकिन क्या उनके मन में कभी देश के उन नौकरशाहों के लिए यह सवाल उठता है, जिनकी इतनी मोटी पगार के बाद भी कोई जवाबदेही नहीं है। जो लोग कहते हैं कि उन्हें इतनी महत्वपूर्ण जगहों पर इतना बड़ा घर मिला है, वे भूल जाते हैं कि यह बना ही सांसदों के लिए था। और वैसे भी सांसदों के वेतन में पिछले आठ वर्षो से कोई इजाफा नहीं हुआ है।

कुल मिलाकर सांसदों के वेतन का विरोध करने वाले मध्यवर्गीय लोग दरअसल अपने ही भाई-बंधुओं के खिलाफ हैं क्योंकि वर्षो के अनुभव तो यही बताते हैं कि संसद में आम लोगों की बात होनी बंद हो गई है। 
http://www.bhaskar.com/article/NAT-why-pay-of-mps-should-not-be-hiked-1286788.html

जनकवि "गिरदा" नहीं रहे, हमने उनको संजोया ही नहीं

         
22 August 2010 5 Comments
              
♦ विनीत कुमार
जनकवि गिरदा नहीं रहे। बीमारी के बाद उनका हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल में निधन हो गया। वे 65 वर्ष के थे। डॉक्टरों के मुताबिक उनकी आंतों में छेद हो गया था, जिसकी वजह से इंफेक्शन फैल गया। वे लंबे समय से दिल की बीमारी से भी पीड़ित थे। गिरदा का जन्म अल्मोड़ा ज़िले के गांव ज्योली हौलबाग में 1945 में हुआ था। वे जनता के हर आंदोलन में साथ रहे। चाहे वो जंगल बचाने का आंदोलन हो या नशा नहीं, रोजगार दो आंदोलन। उत्तराखंड निर्माण के आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभायी। अपने विनीत ने उन पर कुछ लिखा है, जो हम यहां आपको पढ़ा रहे हैं : मॉडरेटर

पहाड़ी फिल्‍म दाएं या बाएं का दृश्‍य। गिरदा के साथ हैं युवा अभिनेता दीपक डोबरियाल

जेएनयू के प्रोफेसर और अपने मित्र पुष्‍पेश पंत के साथ गिरदा

गीतकार गायक नरेंद्र सिंह नेगी और शेखर पाठक के साथ जन गीतकार गिरदा

इस अलसायी और मेरे लिए लंबे समय से ह्रासमेंट में धकेलती आयी दुपहरी में अविनाश ने जैसे ही बताया कि गिरदा नहीं रहे तो सोने-सोने को होने आयी आंखों में बरबस आंसू आ गये। अविनाश ने उनकी उन तस्वीरों की ताकीद की, जिसे कि हमने दून रीडिंग्स के दौरान देहरादून में लिये थे। हमें एकबारगी अपनी गलती का एहसास हुआ कि हम क्यों एक ऐसे फोटो पत्रकार साथी के भरोसे रह गये, जिन्होंने हमें इस बिना पर ज्यादा तस्वीरें नहीं लेने दी कि वो सब दे देंगे और उन्‍होंने जो भी तस्वीरें लीं, उसे आज तक भेजी नहीं। हम गिरदा की तस्वीरें खोजने की पूरी कोशिश में जुटे हैं।
गिरदा के बारे में न तो हमें बहुत अधिक जानकारी है और न ही वो जो अब तक गाते आये हैं, उसकी कोई गहरी समझ। कविता और गीत के प्रति एक नकारात्मक रवैया शुरू से रहा है, इसलिए इसकी जानकारी मं शुरू से बाधा आती रही है। सुबह के विमर्श और तीन घंटे के लिए मसूरी से लौटने के बाद पेट में हायली रिच खाना गया तो न तो कुछ और सुनने की इच्छा हो रही थी और न ही कुछ कहने की। हम कुर्सी में धंसकर सोना चाहते थे, बैठना नहीं। तभी गिरदा दूसरे सत्र में मंच पर होते हैं। ये वो सत्र रहा, जिसमें गिरदा सहित बाकी लोगों ने उत्तराखंड के लोगों के दर्द को गाकर या कविता की शक्ल में हमसे साझा किया। गिरदा ने जब गाना शुरू किया, तो लगातार भीतर से आत्मग्लानि का बोध होता रहा। दो तरह की पनीर, करीब 80-90 रुपये किलो के चावल, रायता और तमाम रईसजादों का खाना खाकर जब हम जंगली साग रांधने (पकाने) की बात गिरदा के स्वर में सुनने लगे तो ऐसा होना स्वाभाविक ही था। गिरदा के गीत सुनकर हमें उबकाई आने लगी। हमारा जिगरा इतना बड़ा तो नहीं कि लोगों के दर्द को सुनकर अपना सुख और प्लेजर को लात मार दें लेकिन उस समय जो खाया था, उसकी उबकाई हो जाती और फिर गिरदा को सुनता, तब उन गीतों के साथ न्याय हो पाता।
गिरदा के गाने की जो आवाज थी, वो इतनी बारीक लेकिन दूर तक जानेवाली। इतनी दूर जानेवाली कि देहरादून, मसूरी की पहाड़ि‍यों में जो वीकएंड, हनीमून मनाने आते हैं, गरीबी और भूखमरी पर विमर्श करने आते हैं, कॉर्पोरेट की टेंशन लेकर यहां चिल्ल होने आते हैं, उन सबके कलेजे में नश्तर की तरह चुभती चली जाए। वो अपने गीतों में हद तक लोगों के बेशर्म होने का एहसास भरते। गिरदा को सुनने से तिल-तिलकर मरते हुए गीतकार के सामने से गुजरने का एहसास होता, जिसका हर अंतरा, हर मुखड़ा सुनने के बाद कब्र और नजदीक होती जाती। मफल्ड ड्रम की हर बीट जैसे मुर्दे को कब्र के नजदीक ले जाती है। उनको सुनने से ऐसा लगता था कि दूर कोई पहाड़ की तलहटी में ऐसा शख्स गा रहा है, जिसके पेट तीर से छलनी हो और गले में खून जमा हुआ है।
डेढ़ से दो घंटे के सेशन में गिरदा को सुनकर हम सचमुच पागल हो गये थे। छूटते ही हमने तय किया कि उनके कुछ गीतों की हम अलग से रिकार्डिंग करेंगे। लोग उनकी सीडी, कैसेट निकालने की बात कर रहे थे लेकिन उसमें उलझनें जानकर हमने तय किया था कि कुछ नहीं तो रिकार्ड करके यूट्यूब पर डाल देंगे। मैं तब अकेले गिरदा के पास गया और कहा कि ऐसा कुछ करना चाहते हैं। वो बच्चे की तरह खुश हो गये। साथ में अविनाश ने भी ऐसा करने में बहुत उत्साह दिखाया। लेकिन हम दिल्ली आते-आते तक ऐसा नही कर सके। उस रात डिनर में गिरदा अपनी मौज में थे। हिमांशु शेखर, पुष्पेश पंत और दिल्ली से गये तमाम साहित्यकारों के बीच वो उफान पर थे… सब तरह से। लेकिन हम उनका कोई भी गीत रिकार्ड न कर पाये।
देहरादून के होटल में देर रात हमने उनके लिए सिर्फ इतना लिखा – गिरदा ने हमें पागल कर दिया
तीन घंटे की थकान लेकर जब हम वापस होटल अकेता के सेमिनार हॉल में दाखिल हुए, तब गिरदा ने अपना जादू-जाल फैलाना शुरू ही किया था। गिरदा अपने गानों में उत्तराखंड के भूले-बिसरे चेहरों और यादों को फिर से अपनी आवाज के जरिये सामने लाते हैं। वो जब भी गाते हैं, उनकी आवाज पहाड़ी जीवन के संघर्षों को दर्शाती है। इन्होंने फैज की कई कविताओं का अनुवाद भी किया है। गिरदा ने जब हमें सुनाया कि चूल्हा गर्म हुआ है, साग के पकने की गंध चारों ओर फैल रही है और आसमान में चांद कांसे की थाली की तरह टंगा है, तो बाबा नागार्जुन आंखों के आगे नाचने लग गये। यकीन मानिए आप गिरदा को सुनेंगे तो पागल हो जाएंगे। मैं दिल्ली आते ही उनके गाये गीतों का ऑडियो लोड करता हूं।
लेकिन, हम उस दिन से लेकर आज दिन तक कोई ऑडियो अपलोड नहीं कर पाये। जब अब तक नहीं किया तो क्या कर पाएंगे? सोचता हूं तो लगता है कि हम गिरदा के कुछ गाने अगर रिकार्ड करते तो क्या खर्चा जाता। गिरदा तो हमसे लगातार बस बीड़ी मिलती रहने की शर्त पर गाने को तैयार थे।(विनीत कुमार। युवा और तीक्ष्‍ण मीडिया विश्‍लेषक। ओजस्‍वी वक्‍ता। दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय से शोध। मशहूर ब्‍लॉग राइटर। कई राष्‍ट्रीय सेमिनारों में हिस्‍सेदारी, राष्‍ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन। ताना बाना और टीवी प्‍लस नाम के दो ब्‍लॉग। उनसेvineetdu@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
विनीत कुमार की बाकी पोस्‍ट पढ़ें : mohallalive.com/tag/vineet-kumar
http://mohallalive.com/2010/08/22/peoples-poet-girda-died/

र उसे नैनीताल रवाना किया था. तब उसने सदा की तरह नेह से गले लगाते हुए उसने कहा था- 'मैं बिल्कुल ठीक हूं. मेरी बिल्कुल चिन्ता मत करना. ओके, फिर मिलेंगे'.

अब कभी मिलना नहीं हो पाएगा. हालांकि उससे जुदा होना भी कैसे हो पाएगा? वह यहीं रहेगा हम सबके बीच, गाता- मुस्कराता हुआ. उसकी ज्यादा फिक्र करने पर वह कहता भी था- ''...क्या हो रहा है मुझे. और मान लो कुछ हो भी गया तो मैं यहीं रहूंगा. तुम लोग रखोगे मुझे जिन्दा, तुम सब इत्ते सारे लोग.''

सन् 1943 में अल्मोड़ा के ज्योली ग्राम में जन्मे गिरीश तिवारी को स्कूली शिक्षा ने जितना भी पढऩा- लिखना सिखाया हो, सत्य यह है कि समाज ही उसके असली विश्वविद्यालय बने.

उत्तराखण्ड का समाज और लोक, पीलीभीत-पूरनपुर की तराई का शोषित कृषक समाज, लखनऊ की छोटी-सी नौकरी के साथ होटल-ढाबे-रिक्शे वालों की दुनिया से लेकर अमीनाबाद के झण्डे वाले पार्क में इकन्नी-दुअन्नी की किताबों से सीखी गई उर्दू और फिर फैज, साहिर, गालिब जैसे शायरों के रचना संसार में गहरे डूबना, गीत एवं नाट्य प्रभाग की नौकरी करते हुए चारुचन्द्र पाण्डे, मोहन उप्रेती, लेनिन पंत, बृजेन्द्र लाल साह की संगत में उत्तराखण्ड के लोक साहित्य के मोती चुनना और उससे नई-नई गीत लडिय़ां पिरोना, कभी यह मान बैठना कि इस ससुरी क्रूर व्यवस्था को नक्सलवाद के रास्ते ही ध्वस्त कर नई शोषण मुक्त व्यवस्था रची जा सकती है, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के भूमिगत क्रांतिकारी साथियों से तार जोड़ लेना... रंगमंच को सम्प्रेषण और समाज परिवर्तन का महत्वपूर्ण औजार मानकर उसमें विविध प्रयोग करना, फिर-फिर

शुरुआती दौर में काली शेरवानी, करीने से खत बनी दाढ़ी और टोपी पहन कर वह प्रसिद्ध गीतकार नीरज के साथ कवि- सम्मेलनों का लोकप्रिय चेहरा भी हुआ करता था. लेकिन समाज के विश्वविद्यालयों में निरन्तर मंथन और शोधरत गिर्दा को अभिव्यक्ति का असली ताकतवर माध्यम लोकगीत-संगीत में ही मिला और एक लम्बा दौर अराजक, लुका-छिपी लगभग अघोरी रूप में जीने के बाद उसने लोक संस्कृति में ही संतोष और त्राण पाया. तभी वह तनिक सांसारिक हुआ, उसने शादी की और हमें वह हीरा भाभी मिली जिन्होंने गिर्दा की एेसी सेवा की कि गिरते स्वास्थ्य के बावजूद गिर्दा अपने मोर्चों पर लगातार सक्रिय रहे. गिर्दा के जाने पर हमें अपने सन्नाटे की चिन्ता है, लेकिन आज हीरा भाभी के खालीपन का क्या हिसाब!

हमारी पीढ़ी के लिए गिर्दा बड़े भाई से ज्यादा एक करीबी दोस्त थे लेकिन असल में वे सम्पूर्ण हिन्दी समाज के लिए त्रिलोचन और बाबा नागार्जुन की परम्परा के जन साहित्य नायक थे. जून 19६5 में लगी इमरजेंसी के विरोध में और फिर जनता राज की अराजकता पर वे 'अंधा युग' और 'थैंक्यू मिस्टर ग्लाड का अत्यन्त प्रयोगधर्मी मंचन करते थे तो लोकवीर गाथा 'अजुवा-बफौल' के नाट्य रूपांतरण 'पहाड़ खामोश हैं' और धनुष यज्ञ के मंचन से सीधे इन्दिरा गांधी को चुनौती देने लगते थे. कबीर की उलटबांसियों की पुनर्रचना करके वे इस व्यवस्था की सीवन उधेड़ते नजर आते तो उत्तराखण्ड के सुरा-शराब विरोधी आन्दोलन में लोक होलियों की तर्ज पर 'दिल्ली में बैठी वह नार' को सीधी चुनौती ठोकते नजर आते थे.

वन आन्दोलन और सुरा-शराब विरोधी आन्दोलन के दौर में उन्होंने फैज अहमद फैज की क्रांतिकारी रचनाओं का न केवल हिन्दी में सरलीकरण किया, बल्कि उनका लोक बोलियों में रूपान्तरण करके उन्हें लोकधुनों में बांधकर जनगीत बना डाला. उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में तो उनका आन्दोलकारी- रचनाकार अपने सर्वोत्तम और ऊर्जस्वित रूप में सामने आया. जब यूपी की मुलायम सरकार उत्तराखण्ड आन्दोलन के दमन पर उतारू थी, देखते ही गोली मारने का आदेश था तो 'गिर्दा' रोज एक छन्द हिन्दी और कुमाऊंनी में रचते थे जिसे 'नैनीताल समाचार' के हस्तलिखित न्यूज बुलेटिन के वाचन के बाद नैनीताल के बस अड्डे पर गाया जाता था. इन छन्दों ने उत्तराखण्ड में छाए दमन और आतंक के सन्नाटे को तोड़ डाला था. ये छन्द 'उत्तराखण्ड काव्य के नाम से खूब चर्चित हुए और जगह-जगह गाए गए.

उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के बाद उनका रचनाकार और भी सचेत होकर लगातार सक्रिय और संघर्षरत रहा. हर आन्दोलन पर वे अपने गीतों के साथ सबसे आगे मोर्चे पर डट जाते थे. नदी बचाओ आन्दोलन हो या कोई भी मोर्चा, गिर्दा के बिना जैसे फौज सजती ही नहीं थी.

अब गिर्दा सशरीर हमारे बीच नहीं रहे. अपनी विस्तृत फलक वाली विविध रचनाओं और अपने साथियों-प्रशंसकों की विशाल भीड़ में गिर्दा जीवित रहेंगे. लेकिन यह तय है कि उसके बिना चीजें पहले जैसी नहीं होंगी. उत्तराखण्ड की लोक चेतना और सांस्कृतिक प्रतिरोध के नित नए और रचनात्मक तेवर अब नहीं दिखेंगे. हां, जन-संघर्षों के मोर्चे पर 'गिर्दा' के गीत हमेशा गाए जाएंगे, ये गीत हमें जगाएंगे, लेकिन हुड़के पर थाप देकर, गले की पूरी ताकत लगाने के बावजूद सुर साधकर, हवा में हाथ उछालकर और झूम-झूम कर जनता का जोश जगाते गिर्दा अब वहां नहीं होंगे.

लेखक नवीन जोशी दैनिक हिंदुस्तान, लखनऊ के वरिष्ठ स्थानीय संपादक हैं. उनका यह लिखा दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित हो चुका है. वहीं से साभार लेकर इसे यहां प्रकाशित किया गया है.

http://www.bhadas4media.com/article-comment/6260-girda-death.html
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गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा'

बाबा हम तुम्हें बहुत याद करते हैं

बाबा हम तुम्हें बहुत याद करते हैं

By गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' on July 14, 2010

इस साल इत्तफाक ऐसा हुआ कि एक ओर 35 साल पहले का 25 जून 1975, इमर्जेंसी वाला दिन याद आ रहा था तो दूसरी ओर 26 जून, ज्येष्ठ पूर्णिमा बाबा नागार्जुन का जन्मदिन। वह भी शताब्दी वर्ष। इस पर इन सब बातों को खचोरने के लिये बनारस से प्रो. वाचस्पति का फोन। तो जाहिर है [...]

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साल का एहतेराम

साल का एहतेराम

By गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' on January 9, 2010

  वक्त का सिलसिला यों ही चलता रहा और करता रहा बागियों  को सलाम ! यों  गुजरता रहा रात-दिन जुल्म से हर बगावत से पाता नया इक मुकाम। अपने–अपने समय के मेरे बागियो इस समय का तुम्हारे समय को सलाम ! हर बगावत ने जो भी नया कुछ रचा- गीत, नग्मा, रुबाई, गजल को सलाम [...]

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इस बार : गिर्दा

By गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' on February 15, 2009

होली 2008 में उत्तराखंड निकाय चुनावों की मारामार से गुजर रहा था। तब हमने होलियाना अभिव्यक्ति दी – मेरि बारी, मेरि बारी, मेरी बारी, अलिबेर होलिनैकि रङतै न्यारी काटी में मूताणा का लै काम नि ए जो, भोट माङण हुँणी भै ठाड़ी।। अलिबेर….. फिर 1 सितम्बर, ऐन खटीमा काण्डा 1994 का दिन, 5 सितम्बर और [...]

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'बलिया' नाम जलधार

By गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' on August 15, 2008

(इस गीत की प्रेरणा-नाल और तर्ज बहुप्रचलित पारम्परिक होली-'नदी यमुना के तीर कदम चढ़ि कान्हा बजै गयो बाँसुरिया' से सीधे-सीधे जुड़ी है।) नदी वार, तट पार चलो रे करें यात्रा नदियों की। हाँ! करें यात्रा नदियों की। कहाँ से उपजी कहाँ समाई कहाँ भई जलधार चलो रे करें यात्रा नदियों की। 'ताल' से उपजी, 'गौला' [...]

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होली-2008 : मेरि बारी, मेरि बारी, मेरि बारी,

By गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' on April 14, 2008

मेरि बारी, मेरि बारी, मेरि बारी, हाई रे! अलिबेर होलिनै रंगतै न्यारी। हाई रे! अलिबेर यो देखौ मजेदारी।। धो-धो कै तो सीट जरनल भै छौ, धो-धो कै ठाड़ हूँणै ऐ बारी। हाई रे! अलिबेर होलिनै रंगतै न्यारी।। फिर बीस बरसै की छुट्टी भै कूँनी, फिरी काँ आली हमरी बारी। हाई रे! अलिबेर होलिनै रंगतै न्यारी।। [...]

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है किसका अधिकार नदी पर

By गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' on January 16, 2008

(धुन-नदी जमुना के तीर कदम चढ़ी) चलो नदी तट वार चलो रे चलो नदी तट पार चलो रे,करें यात्रा नदियों की नदी वार तट पार चलो रे,करें यात्रा नदियों की इन नदियों के अगल-बगल ही जीवन का विस्तार,चलो रे करें यात्रा नदियों की आज इन्हीं नदियों के ऊपर पड़ी है मारामार, चलो रे करें यात्रा [...]

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मेरि कोसि हरै गे कोसि

By गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' on December 31, 2007

जोड़ – आम-बुबु सुणूँ छी गदगदानी ऊँ छी रामनङर पुजूँ छी कौशिकै की कूँ छी पिनाथ बै ऊँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि। कौशिकै की कूँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।। क्या रोपै लगूँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि। क्या स्यारा छजूँ छी मेरि कोसि हरै गे कोसि।। घट-कुला रिङू छी मेरि [...]

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इस व्योपारी को प्यास बहुत है

By गिरीश तिवाड़ी 'गिर्दा' on December 31, 2007

एक तरफ बर्बाद बस्तियाँ – एक तरफ हो तुम। एक तरफ डूबती कश्तियाँ – एक तरफ हो तुम। एक तरफ हैं सूखी नदियाँ – एक तरफ हो तुम। एक तरफ है प्यासी दुनियाँ – एक तरफ हो तुम। अजी वाह ! क्या बात तुम्हारी, तुम तो पानी के व्योपारी, खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी, बिछी हुई [...]

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Knock! Knock!Knock!. नी करी दी हालो हमरी निलामी, नी करी दी हालो हमरो हलाल। https://youtu.be/UiAP7vFfe-c वैदिकी हिंसा के बावजूद अब भी हमारी बिरादरी आदिवासी मूलनिवासी भूगोल जिंदा है। राष्ट्रद्रोही मजहबी फासिस्ट राजकाज है, फिरभी नर्क नहीं बनेगा यह देश! Garm Hawa,the scorching winds of insecurity inflicts Humanity and Nature yet again! https://www.youtube.com/watch?v=QZTvF_1AN8A पलाश विश्वास

Previous: अमेरिका से सावधान पुनश्च तीन नी कर दी हमरी नीलामी।परमाणु दायबद्धता खत्म और सांसदों की चांदनी। लोकतंत्र के हमाम में सारे के सारे नंगे। वसंत के वज्र निनाद अब जन आकांक्षा कारपोरेट युद्ध, विश्वासघात और जनसंहार की संस्कृति के विरुद्ध। गिरदा की अंत्येष्टि के साथ नैनीताल, उत्तराखंड के सक्रिय प्रतिरोध का युग क्या समाप्त होगा? पलाश विश्वास Monday, August 23, 2010
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Knock! Knock!Knock!. नी करी दी हालो हमरी निलामी, नी करी दी हालो हमरो हलाल।

https://youtu.be/UiAP7vFfe-c


वैदिकी हिंसा के बावजूद अब भी हमारी बिरादरी आदिवासी मूलनिवासी भूगोल जिंदा है।


राष्ट्रद्रोही मजहबी फासिस्ट राजकाज है, फिरभी नर्क नहीं बनेगा यह देश!

Garm Hawa,the scorching winds of insecurity inflicts Humanity and Nature yet again! https://www.youtube.com/watch?v=QZTvF_1AN8A



पलाश विश्वास

Knock! Knock!Knock!. नीकरी दीहालो हमरीनिलामी, नीकरी दीहालो हमरो हलाल।

सिंहद्वार पर दस्तक भारी,जाग सकै तो जाग म्हारा देश!

https://www.youtube.com/watch?v=WE9-K-LisTQ

Myar Himaalaa Poem by Girish Tiwari -Girda in Pauri Jugalbandi


Faith, here's an equivocator, that could

  swear in both the scales against either scale, who com-

  mitted treason enough for God's sake, yet could

  not equivocate to heaven. O, come in, equivocator.


But this place is too

  cold for hell.

यह भारत तीर्थ है,संपूर्ण निजीकरण,संपूर्ण विनिवेश,संपूर्ण एफडीआई राज,संपूर्ण विध्वस के नरसंहार कार्निवाल के जरिये हिमालय में एटमी धमाके करके,समुंदरों को आग के हवाले करके इस भारत तीर्थ कोहुंदुत्व और एकाधिकारवादी नस्ली मनुस्मृति नर्क नहीं बना सकते राष्ट्रद्रोही बजरंगी!यह अभी हड़प्पा मोहंजोदोड़ो की सभ्यता है।


वैदिकी हिंसा के बावजूद अब भी हमारी बिरादरी आदिवासी मूलनिवासी भूगोल जिंदा है।


राष्ट्रद्रोही मजहबी फासिस्ट राजकाज है ,फिरभी नर्क नहीं बनेगा यह देश।

It is treason all round!It is knock knock knock within!

সব্বে সত্তা আভেরা হোন্তু।

সব্বে সত্তা ওব্বপজ্জা হোন্তু।

সব্বে সত্তা আনিঘা হোন্তু ।

সব্বে সত্তা সুখি আত্তান পরিহরন্তু ।

आज हिमाल तुमन कैं धत्यूंछो, जागो-जागो हो मेरो लाल/नी कर करी दी हालो हमरी निलामी, नी कर करी दी हालो हमरो हलाल। (आज हिमालय तुम्हें पुकार रहा है, जागो-जागो ओ मेरे लाल/नहीं होने दो हमारी नीलामी, नहीं होने दो हमारा हलाल)!


तमसोमाज्योतिर्गमय!तूफां खड़ा करना हमारा मकसद नहीं है,हालात ये कायमत के मंजर बदलने चाहिए!



সম্রাট অশোক মহামতি গোতমা বুদ্ধের ৮৪ হাজার দেশনার স্মারক হিসেবে সারা পৃথিবীর নানা দেশে ৮৪ হাজার শিক্ষাকেন্দ্র, চৈত্যভুমি, স্তুপ, চিকিৎসালয়, পান্থশালা, জলাধার প্রভৃতি তৈরি করে জীবের কল্যাণে উৎসর্গ করেন। নগর, গিরি, কানন, বিহার, চৈত্যভুমি প্রভৃতিকে দীপের শিখায় প্রজ্বলিত করে তোলা হয়। সম্রাট অশোক নিজে পাটলী পুত্রের অশোকারাম বিহারে ৮৪ হাজার প্রদীপ জ্বালিয়ে সমতামূলক ন্যায়যুগের সূচনা করেন। মহাভিক্ষুদের কন্ঠে উচ্চারিত হয় এক চিরন্তন মঙ্গল বার্তাঃ সব্বে সত্তা সুখিতা হোন্তু।

दुनिया में काम करने के लिए आदमी को अपने ही भीतर मरना पड़ता है. आदमी इस दुनिया में सिर्फ़ ख़ुश होने नहीं आया है. वह ऐसे ही ईमानदार बनने को भी नहीं आया है. वह पूरी मानवता के लिए महान चीज़ें बनाने के लिए आया है. वह उदारता प्राप्त करने को आया है. वह उस बेहूदगी को पार करने आया है जिस में ज़्यादातर लोगों का अस्तित्व घिसटता रहता है.


(विन्सेन्ट वान गॉग की जीवनी'लस्ट फ़ॉर लाइफ़'से)


The Brahaminical Hegemony Racket behaves Anti National!Anti Hindu.Thus,Total FDI Raj invoked on the eve of Diwali!Thus,at the eve of Diwali it is knock knock knock within!

Happy Diwali India!Happy Diwali Humanity.It has nothing to do with Bajrangi plotics of religion or religion of politics so much so hyped Manusmriti Agenda of Hindutva,to make globe the peripherry of Indian Barhaminical hegemony.Rathe celebrate Diwali as the Carnival of Light against the business friendly darkness,the governance of fascism,the Rape Tsunami!Pl incarnate the Sun God,personified as Female Chhat Maiya,to end the Patriarchal Racist Hegemony of One Percent in the best interest of Nature and Humanity!O God Sun,unleash all your solar storms to destroy this infinite regime of darkness!


यह हमारा भारत तीर्थ है।धर्म के नाम राष्ट्रद्रोह के बावजूद हिंदुत्व के इस नर्क के खिलाफ आत्मा की आवाजें गूंज रही हैं दसो दिशाओं में।आज से देश के रक्षक,भारत की एकता और अखंडता के रक्षक,मातृभूमि के असल बच्चे,डिफेंस वेटेरन्स देश की ओर से उनके सम्मान में दिये गये मेडेल वापस कर रहे हैं।हमारे गुरुजी तारा चंद्र त्रिपाठी ने फासीवाद हारा नहीं,हस्तक्षेप का यह लिंक शेयर करते हुए फिर साफ साफ चेताया है आगे महाभारत है। गोरक्षा बीफगेट के आयातित अरब वसंत नाकाम हो गया तो फिर नया तूफां रचदिया गया है और अबकी दफा अंग्रेजी फौटों के लोहे के चने चबाने के लिए भारतमाता के असली बेटे टीपू सुल्तान को हिंदू विरोधी राष्ट्रद्रोही कहा जा रहा है।


It is treason all round!It is knock knock knock within!


हिंदू तालिबान का पुनरुत्थान है, हिंदुत्व का नहीं।अभी अभी हारे हैं और केसरिया इतिहास बनाने वाले अब टीपू की हत्या पर आमादा हैं। उग्रवादी गुट यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम यानी उल्फा के शीर्ष नेता अनूप चेतिया को बांग्लादेश सरकार ने भारत को सौंप दिया है। भारत, बांग्‍लादेश से चेतिया की काफी समय से कस्‍टडी मांग रहा था, लेकिन पड़ोसी देश इससे स्‍वीकार नहीं कर रहा था, लेकिन चेतिया को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत हस्तक्षेप और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के सक्रिय रूप से जुड़ने के चलते भारत को सौंपा गया है।बांग्लादेश ने चेतिया को शरण देने से इंकार किया है।


It is treason all round!It is knock knock knock within!


हाल यह है कि बिहार में बीजेपी की दुर्गति पर वरिष्ठ नेताओंने जहां मंगलवार को साझा बयान जारी कर नाराजगी जाहिर की और इस बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की कार्यशैली पर सवाल उठाए, वहीं अब पार्टी ने आध‍िकारिक बयान जारी कर पीएम और शाह का बचाव किया है। बीजेपी ने अपने बयान में कहा कि वह बिहार चुनाव में हुई हार पर मंथन कर चुकी है और पार्टी सीनियर नेताओं के सुझाव का स्वागत करती है।

It is treason all round!It is knock knock knock within!

भाजपा ने अपने बयान मेंलिखा है कि पार्टी सोमवार को संसदीय बोर्ड में बिहारचुनाव के नतीजों और हार परगहन चर्चा कर चुकी है। बयान मेंआगे लिखा गया है, 'पार्टी इस हार से उबरने के लिए दूसरे मंचों और वरिष्ठ नेताओंसे भी बात करेगी। आपको बता दें कि बिहार मेंभाजपा कीहार परपार्टी के वरिष्ठ नेतालाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा और शांता कुमार कीचौकड़ी ने गत मंगलवार शाम को तीखा हमला किया। चारों नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह कीकार्यशैली परगंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा कि वो जो जीत का श्रेय लेने वाले थे..


बिहार चुनाव में हार के बाद भाजपा में अंदरुनी कलह खुल कर सामने आ गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने हार पर आत्म मंथन करने पर जोर दिया और कहा कि दिल्ली की हार से पार्टी ने कोई सबक नहीं सीखा। वहीं भाजपा नेता नितिन गडकरी ने कहा कि बिहार चुनाव में हार के लिए पीएम मोदी और अमित शाह जिम्मेदार नहीं है। उन्होंने कहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं से मिलकर बनी है किसी एक व्यक्ति से नहीं, हार या जीत सामूहिक तौर से होती है, उसके लिए किसी एक शख्स या लोगों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।गडकरी ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को अध्यक्ष पद से हटाए जाने की संभावना से इंकार किया ...


इस हिंदुस्तान की सरजमीं पर गांधी की फिर फिर हत्या कर रहे ,रोज रोज कत्लेआम को अंजाम देने वाले मनुष्यता के युद्ध अपराधी मजहबी सियासत के आतंकवादियों,उग्रवादियों को छुट्टा सांढ़ों और अश्वेमेधी घोडो़ं के साथ बलात्कार सुनामी का सृजन करने वाले कटकटेला अंधियारे के अरबपति सत्तावर्ग के चरमपंथी उग्रवादी बजरंगियों को तो बारत ही शरण दे रहा है और संस्थागत फासिज्म के मुख्यालय से रक्तबीज की फसल है तो कोई मां काली ही उनसे हमारा यह भारत तीर्थ की रक्षा कर सकती है,ऐसी अंध भक्ति हिंदू धर्म का सर्वनाश और भारतवर्ष के विनाश का कारण है।


कुलबर्गी,पनेसर ,दाभोलकर तो क्या फिर फिर हत्या से अविराम बहते बापू के खून से जिन हत्यारों की प्यास नहीं बूझी,उनकी नरसंहार संस्कृति हिंदुत्व हरगिज नहीं है।


समता और न्याय का जो संविधान बाबासाहेब ने रचा,उसकी प्रस्तावना में दरअसल हिंदुत्व के साथ साथ समता और न्याय,पंचशील का उद्घोष है और रोज रोज उसकी हत्या सत्तावर्ग का रोजनामचा है।


यही जनादेश है?


गोशाला कहीं नहीं है।खेती तबाह कर दी है।कारोबार खत्म कर दिया गया है।उद्योग धंधे,उत्पादन प्रणाली और अर्थव्यवस्था विदेशी पूंजी के हवाले।अर्थव्यवस्था से दिवाली तक ,धर्म कर्म सबकुछ एब एफडीआई है।


जिस गुरुग्रंथ साहिब को हम सर्वोच्च मानते रहे हैं,उस गुरु पर्व का अवसान ही यह अंधियारा है।


मुक्त बाजार में जो चकाचौंध महातिलिस्म हुआ करे हैं।


हमारे गुरुजी हमारे मार्गदर्शक रहे हैं और उनके मार्गदर्शन का सिलसिला थम नहीं है।


सिखों के लिेए गुरुग्रंथ साहिब सर्वोच्च है.जहां ईश्वर, देवताओं अपदेवताओं,देवियों की,अपदेवियों की कोई सत्ता नहीं होती।


सारे संस्कार गुरुग्रंथ साहिब के सामने संपन्न होते हैं।


पंजाब में और पाकिस्तान में छूटे पंजाब में भी न सिर्फ बोली बल्की संस्कृति,रीति रिवाज एक हैं और आपरेसन ब्लू स्टार ध्रूवीकरण से पहले तक पंजाब में हिंदुओं और सिखों के लिए गुरुग्रंथ साहिब सर्वोच्च रहा है।


आपरेशन ब्लू स्टार ने इस गुरुपर्व का अवसान कर दिया है।


आज की पीढ़ी के लिए गुरु दुर्लभ हैं तो हम जैसे बूढ़ों के गुरु अब भी हमें ठोंक ठोंककर सही दिशा बता रहे हैं।


मुझे बाकी किसी चीज की इस दुनिया में परवाह नहीं है सिवाय इसके कि हमारे गुरुजी के सत्य वचन से कहीं हमारा विचलन न हो जाये।नैनीताल में मेरे साथी मुझे वास मैदान लौटने को न कहें।


बिहार के केसरिया बलात्कार सुनामी के खिलाफ जिस अशनिसंकेत का जिक्र हम बार बार कर रहे हैं हमारे गुरुजी तारा चंद्र त्रिपाठी ने उसका खुलासा साफ साफ किया है।



बजरंगी मुक्त बाजार  के धर्नेमोन्मादी खुल्ला खेल फर्ऱूखाबादी ने  गाय को बेदखल कर दिया क्योंकि उनके ही अश्वमेध राजसूय से खेती खत्म हैं और किसान आत्महत्या कर रहे हैं।खेत खलिहान बचे नहीं है तो गाय को कौन पूछनेवाला है।


गांवो में तो अब गोबर या गोमूत्र मिलता नहीं है और महानगरों ,शहरी सीमेंट के जंगल में यूरिया कीटनाशक मिला जहर का खुल्ला कारोबार है दूध दही के नाम पर।अनाज और सब्जियों के बाद अब पेयजल भी जहर है।सारा देश मधुमेह का कारोबार है।


ब्रांडिंग है।बंद होगी तो पिर ले देकर चालू हो जायेगी।

पेय और फास्टफूड का जहरीला फलता फूलता कारोबार और नियंत्रण उदाहरण है।


गोरक्षा अगर  धर्म है तो हमें धर्मभ्रष्ट किया है इसी राष्ट्रद्रोह ने।गैरमजहबी लोगों के खि्लाफ मजहबी सियासत तो दरअसल हिंदू ग्लोब के एजंडा के मुताबिक आइसिस की तर्ज पर हिंदू तालिबान का पुनरुत्थान है,हिंदुत्व का नहीं।


गोशाला कहीं बचा भी है कि नहीं।


उन्ही बेदखल गायों के नाम अरब वसंत का आयात भारत में और गोमांस को लेकर धार्मिक ध्रूवीकरण की बेशर्म कोशिश में पूरा देश आग के हवाले।अब दुनिया आग के हवाले करने की फिराक में हैंं।


अभी अभी हारे हैं और केसरिया इतिहास बनाने वाले अब टीपू की हत्या पर आमादा हैं।



गिर्दा का यह मशहूर गीत उनके आशावाद की ऊंचाइयों की एक अदद मिसाल था कि- ओ जैंता, इक दिन न त आलौ/ऊ दिन य दुनी में/ जै दिन कठुली रात ब्याली/प फटेंल, क कंडेल/ हमनी होला ऊ दिन/हमले ऊ दिन होला/ओ जैंता, इक दिन न त आलौ….।भावार्थ यह कि इस दुनिया में ऐसा दिन ज़रुर आयेगा जब अंधेरी रात विदा होगी और नया सवेरा दस्तक देगा। तब हम भले ही न होंगे लेकिन इक दिन तो ऐसा आयेगा।


संपूर्ण एफडीआई राज!

भारत विदेशी पूंजी के हवाले!

बिहारे नीतीशे कुमार जनादेश का बजरंगी जवाब!

दिवाली पर युधिष्ठिर अवतार में नंगे बिरंची बाबा ने बिहार जनादेश के बाद जुए में देश भी हार गये!

हमका भी हउ चाहि!

द्रोपदी का चीरहरण और हम तमाशबीन आत्मध्वंशी कुरुवंश!

बिहार का जनादेश काफी नहीं है बेलगाम अश्वमेधी सांढ़ों और घड़ो को लगाम सकने के लिए।हम बार बार कहि रहे हैं।


उनके इस अधर्म अपकर्म धतकरम की तुलना यौनकर्म से भी नहीं कर सकते क्योंकि वे भी खून पसीने की कमाई खाते हैं,हराम के अंधियारे के अरबों अरबों कालाधन का खजाना नहीं है समाज से बहिस्कृत,पितृसत्ता के शिकार और उत्पीड़ितों का।


विडंबना है कि किसी के साथ भी सत्ता के लिए हमबिस्तर होने वालों के लटके झटके और बड़बोले वैचारिक नैतिक धार्मिक बोल वे ही हैं जो यौनकर्म के लक्षण हैं,राजकाज,राजनय और राजनीति के नहीं।अधर्म है यह अपराधकर्म,राष्ट्रद्रोह!


विदेशी पूंजी उनकी मुहब्बत है,बेगानी शादी में बाराती मजे में हैं,आम लोग अब्दुल्ला दीवाना!

लंदन से खबर है मीडिया की। बिहार विधानसभा चुनावों में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को मिली करारी हार पर वैश्विक मीडिया ने कहा कि यह मोदी के लिए सबसे अहम घरेलू झटका है और यह दिखाता है कि वोट हासिल करने की उनकी क्षमता अब कम होती जा रही है । ब्रिटिश अखबार 'दि गार्जियन'ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बिहार चुनाव जीतने में बीजेपी की नाकामी को इस संकेत के तौर पर देखा जा रहा है कि वोटरों पर मोदी की अपील अब कम होनी शुरू हो गई है।

अखबार ने कहा कि भारत की सत्ताधारी पार्टी ने एक प्रांतीय चुनाव में हार मान ली है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र की वोट हासिल करने की क्षमता और उनकी राजनीतिक रणनीति की परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा था। अखबार ने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब मोदी इस हफ्ते ब्रिटेन की यात्रा पर जाने वाले हैं।

'दि गार्जियन'ने लिखा कि बिहार में बीजेपी की हार मोदी के लिए सबसे अहम घरेलू झटका है क्योंकि पिछले साल उभरती आर्थिक ताकत में हुए एक आम चुनाव में उन्हें शानदार जीत मिली थी। अपने चुनाव प्रचार में तेज विकास, आधुनिकीकरण एवं अवसर प्रदान करने के साथ-साथ रूढीवादी सांस्कृतिक एवं सामाजिक मूल्यों के संरक्षण का वादा कर उन्होंने जीत हासिल की थी। अखबार ने कहा कि पिछले साल के चुनाव के दौरान मोदी ने अर्थव्यस्था को नई उंचाइयों तक ले जाने के जो भी वादे किए थे वे अब तक पूरे नहीं हुए हैं ।

बीबीसी ने लिखा कि मोदी को पिछले साल के राष्ट्रीय चुनावों में एक शानदार जीत मिली थी, लेकिन यह चुनाव उनके आर्थिक कार्यक्रमों पर एक रायशुमारी के तौर पर देखा जा रहा था। यह हार एक बड़ा झटका है। पाकिस्तान के बड़े अखबार 'डॉन'ने कहा कि खानपान की आदतों पर भारत की पारंपरिक सहनशीलता की कीमत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गाय पर राजनीति के खिलाफ बिहार चुनाव के नतीजे आए हैं। इसने उनके संकीर्ण राष्ट्रवाद के खिलाफ विपक्षी एकता के एजेंडा को तय कर दिया है।

'दि न्यूज'ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बिहार में बीजेपी की हार प्रधानमंत्री के लिए बड़ा झटका है जिन्होंने अपने प्रचार में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 'दि न्यूयॉर्क टाइम्स'ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को आज उस वक्त करारा झटका लगा जब जनसंख्या के मामले में भारत के तीसरे सबसे बडे राज्य बिहार के वोटरों ने विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को खारिज कर दिया।


बिहार चुनाव के नतीजों पर विदेशी मीडिया ने मोदी पर ऐसे बोला हमला!

ब्रिटिश अखबार 'दि गार्जियन'ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बिहार चुनाव जीतने में बीजेपी की नाकामी को इस संकेत के तौर पर देखा जा रहा है कि वोटरों पर मोदी की अपील अब कम होनी शुरू हो गई है।

#Bihar assembly Election 2015#BJP Declines#global media


Palash Biswas

MACBETH

Act 2, Scene 3

Porter

 1   Here's a knocking indeed! If a man were

 2  porter of Hell Gate, he should have old turning the

 3   key. (Knock.) Knock, knock, knock! Who's there,

 4  i' the name of Beelzebub? Here's a farmer, that hang'd

 5  himself on th' expectation of plenty. Come in time!

 6  Have napkins enow about you; here you'll sweat for't.

 7   (Knock.) Knock, knock! Who's there, in the other

 8   devil's name? Faith, here's an equivocator, that could

 9  swear in both the scales against either scale, who com-

10   mitted treason enough for God's sake, yet could

11   not equivocate to heaven. O, come in, equivocator.

12   (Knock.) Knock, knock, knock! Who's there? Faith,

13  here's an English tailor come hither, for stealing

14   out of a French hose: come in, tailor; here you may

15  roast your goose. (Knock.) Knock, knock! Never

16   at quiet! What are you? But this place is too

17   cold for hell. I'll devil-porter it no further: I had

18   thought to have let in some of all professions that go

19   the primrose way to the everlasting bonfire. (Knock.)

20  Anon, anon! [Opens the gate.] I pray you, remember

21   the porter.


ORIGINAL TEXT

MODERN TEXT



Enter a PORTER. Knocking within

A sound of knocking from offstage. A

PORTER

A porter is a doorkeeper.

PORTER, who is obviously drunk, enters.


PORTER

Here's a knocking indeed! If a man were porter of hell-gate, he should have old turning the key.

PORTER

This is a lot of knocking! Come to think of it, if a man were in charge of opening the gates of hell to let people in, he would have to turn the key a lot.


Knock within

A sound of knocking from offstage.


Knock, knock, knock! Who's there, i' th' name of Beelzebub? Here's a farmer that hanged himself on the expectation of plenty. Come in time, have napkins enough about you, here you'll sweat for 't.

Knock, knock, knock! (pretending he's the gatekeeper in hell) Who's there, in the devil's name? Maybe it's a farmer who killed himself because grain was cheap.(talking to the imaginary farmer) You're here just in time! I hope you brought some handkerchiefs; you're going to sweat a lot here.


Knock within

A sound of knocking from offstage.


Knock, knock! Who's there, in th' other devil's name? Faith, here's an equivocator that could swear in both the scales against either scale, who committed treason enough for God's sake, yet could not equivocate to heaven. O, come in, equivocator.

Knock, knock! Who's there, in the other devil's name? Maybe it's some slick, two-faced con man who lied under oath. But he found out that you can't lie to God, and now he's going to hell for perjury. Come on in, con man.


Knock within

A sound of knocking from offstage.

5

Knock, knock, knock! Who's there? Faith, here's an English tailor come hither for stealing out of a French hose. Come in, tailor. Here you may roast your goose.

Knock, knock, knock! Who's there? Maybe it's an English tailor who liked to skimp on the fabric for people's clothes. But now that tight pants are in fashion he can't get away with it. Come on in, tailor. You can heat your iron up in here.


Knock within

A sound of knocking from offstage.

Summary: Act 2, scene 3

A porter stumbles through the hallway to answer the knocking, grumbling comically about the noise and mocking whoever is on the other side of the door. He compares himself to a porter at the gates of hell and asks, "Who's there, i' th' name of Beelzebub?" (2.3.3). Macduff and Lennox enter, and Macduff complains about the porter's slow response to his knock. The porter says that he was up late carousing and rambles on humorously about the effects of alcohol, which he says provokes red noses, sleepiness, and urination. He adds that drink also "provokes and unprovokes" lechery—it inclines one to be lustful but takes away the ability to have sex (2.3.27). Macbeth enters, and Macduff asks him if the king is awake, saying that Duncan asked to see him early that morning. In short, clipped sentences, Macbeth says that Duncan is still asleep. He offers to take Macduff to the king. As Macduff enters the king's chamber, Lennox describes the storms that raged the previous night, asserting that he cannot remember anything like it in all his years. With a cry of "O horror, horror, horror!" Macduff comes running from the room, shouting that the king has been murdered (2.3.59). Macbeth and Lennox rush in to look, while Lady Macbeth appears and expresses her horror that such a deed could be done under her roof. General chaos ensues as the other nobles and their servants come streaming in. As Macbeth and Lennox emerge from the bedroom, Malcolm and Donalbain arrive on the scene. They are told that their father has been killed, most likely by his chamberlains, who were found with bloody daggers. Macbeth declares that in his rage he has killed the chamberlains.









Happy Diwali India!Happy Diwali Humanity.It has nothing to do with Bajrangi plotics of religion or religion of politics so much so hyped Manusmriti Agenda of Hindutva,to make globe the peripherry of Indian Barhaminical hegemony.Rathe celebrate Diwali as the Carnival of Light against the business friendly darkness,the governance of fascism,the Rape Tsunami!Pl incarnate the Sun God,personified as Female Chhat Maiya,to end the Patriarchal Racist Hegemony of One Percent in the best interest of Nature and Humanity!O God Sun,unleash all your solar storms to destroy this infinite regime of darkness!


দীপদানোৎসব সর্বোসত্তার মঙ্গলোৎসবঃ

Saradindu Uddipan

দীপদানোৎসব একটি প্রচলিত প্রাচীন ভারতীয় অসুর উৎসব। আদীভারতীয় জনপুঞ্জের মধ্যে এই উৎসব এক সার্বজনীন মঙ্গলোৎসব হিসেবে পালিত হত। সর্বোসত্তার মঙ্গলপূর্ণ সহাবস্থানই এই পরবের মূল বার্তা। এখনো পৃথিবীর আদিভাষার জনক কোলভাষী সাঁওতাল সমাজের মধ্যে এটি "সহরায়"পরব হিসেবে পালিত হয়। এই সময় চৈত্যভূমি(স্তুপ, থান), কুলি এবং ঘর-দোর থেকে সমস্ত আবর্জনা সরিয়ে, ঘরের দেয়ালে দেয়ালে বিচিত্র আলপনা দিয়ে সাজিয়ে তোলা হয়। কুড়মি সমাজের মধ্যে এই পরবকে বলা হয় "বাদনা পরব"। বাদনা পরব আসলে অসুর রাজা শিব এবং কৃষ্ণের "গোবর্ধন"বা গো-বন্দনা পূজার অংশ।

হরপ্পা ও মহেঞ্জোদড়ো সভ্যতায় প্রাপ্ত নানা প্রকার পোড়া মাটির শিল থেকেও এই গো-বন্দনার বহু নিদর্শন পাওয়া যায়। পুরাণাদি ব্রাহ্মন্যবাদি শাস্ত্রে অসুর তেহার হিসাবে এই উৎসবের উল্লেখ রয়েছে।

প্রাচীন ভারতীয় বর্ষপুঞ্জি মতে কার্ত্তিক মাসের ঘনঘোর অমাবস্যায় কালরাত্রির অবসান ঘটে। বৌদ্ধশাস্ত্র মতে এই ঘনঘোর অন্ধকার অজ্ঞানতার প্রতীক। তাই তাকে দূর করার জন্য জ্ঞানশিখা প্রজ্বলিত করে আর একটি মঙ্গলময় কালচক্কযানের বন্দনা করা হয়।

সম্রাট অশোক মহামতি গোতমা বুদ্ধের ৮৪ হাজার দেশনার স্মারক হিসেবে সারা পৃথিবীর নানা দেশে ৮৪ হাজার শিক্ষাকেন্দ্র, চৈত্যভুমি, স্তুপ, চিকিৎসালয়, পান্থশালা, জলাধার প্রভৃতি তৈরি করে জীবের কল্যাণে উৎসর্গ করেন। নগর, গিরি, কানন, বিহার, চৈত্যভুমি প্রভৃতিকে দীপের শিখায় প্রজ্বলিত করে তোলা হয়। সম্রাট অশোক নিজে পাটলী পুত্রের অশোকারাম বিহারে ৮৪ হাজার প্রদীপ জ্বালিয়ে সমতামূলক ন্যায়যুগের সূচনা করেন। মহাভিক্ষুদের কন্ঠে উচ্চারিত হয় এক চিরন্তন মঙ্গল বার্তাঃ সব্বে সত্তা সুখিতা হোন্তু।

সব্বে সত্তা আভেরা হোন্তু।

সব্বে সত্তা ওব্বপজ্জা হোন্তু।

সব্বে সত্তা আনিঘা হোন্তু ।

সব্বে সত্তা সুখি আত্তান পরিহরন্তু ।


बिहार चुनाव हार के बाद मोदी सरकार का बड़ा फैसला, मीडिया में 26 कीजगह 49 फीसदी होगा विदेशी निवेश!


FDI के लिए भारत में खुले 15 आसान दरवाजे, बनी उदार नीति

भाजपा में हार पर ब्लास्ट हुआ 'बुजुर्ग-बम', मोदी-शाह पर निशाना



In Her Verses, Mamata Banerjee Condemns Intolerance!



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'Why the assault on rationalist tradition in the subcontinent?' Film Screenings and a conversation

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Dear friends,

People's Film Collective welcomes you to our upcoming film screenings and discussions onNovember 14 and December 6 to probe the question of assault on the rationalist tradition in the subcontinent, that has taken a brutal and bloody turn of late yet again.

We dedicate the screenings to martyrs Narendra Dabholkar, Comrade Govind Pansare, M. M. Kalburgi, Mohammad Akhlaq, Rajib Haider, Avijit Roy, Ananta Bijoy Das, Washiqur Rahman, Niloy Neel, Faisal Arefin Dipon.

We attach below the Bangla poster for Nov 14th, and the English poster for the screenings ofNov 14th and Dec 6th combined.

Hope to see a lot of you there!


People's Film Collective presents

Cinema of Resistance | Monthly Screenings

______


14 November (Saturday) | Muktangan (Rashbehari) | 6 pm

YOU CAN DESTROY THE BODY
A short film by Anand Patwardhan
on the rationalist and materialist tradition, pluralism and egalitarian values in the subcontinent and the world


KORAN SANTAN (KORANKINDER)
A film by Shaheen Dill-Riaz
on the religious orthodox indoctrination of children and young boys in Bangladesh


"The Assault on Rationalist Tradition in the Subcontinent"
Day 1: Bangladesh 

A conversation with Prof. Rajarshi Dasgupta
Center for Political Studies, Jawaharlal Nehru University

______

Organized by

People's Film Collective


ENTRY FREE

peoplesfilmcollective@gmail.com | +91-9163736863








Synopses

YOU CAN DESTROY THE BODY

In August 2013 while on his morning walk, the rationalist crusader Narendra Dabholkar was gunned down by men on motorcycles. In February 2015, the popular CPI mass leader, Comrade Govind Pansare, was shot dead in an identical manner. Both had been threatened by Hindu fundamentalists. In both cases no arrests have been made. This song commemorates those who throughout history, fought and paid with their lives, for reason. The song was composed by Sachin Mali who is in jail awaiting trial under the draconian Unlawful Activities Prevention Act (UAPA). It is sung by his partner Sheetal Sathe who faces the same charges but is out on bail.



KORAN SANTAN (KORANKINDER)


At least two years, twelve hours every day, memorizing over 6000 verses from Koran–that is what small kids have to do in Hifz-Khana. Many parents send their children very willingly to this special department of a madrasa, the Islamic orthodox school. The film approaches very carefully this unique religious practice, which is contradictory to the imaginings of a jaunty and easy-going childhood. The filmmaker shows the anxieties and afflictions that motivate the parents to decide on these schools. But can the children vouch for the anxieties of their parents? With this question, Dill-Riaz starts a journey through his homeland Bangladesh, a country that is now riven between religious stringency and secular ideals.




Zindabad!
People's Film Collective & Cinema of Resistance Kolkata
Organizing team

Contact Us
P: +91-9163736863
FB: facebook.com/KolkataPeoplesFilmFestival

ABOUT US: We organize an annual film festival, called the Kolkata People's Film Festival, in the third week of January. Throughout the year, we organize monthly film screenings in Kolkata and also travel in Kolkata and its neighbouring districts to screen films and hold discussions/dialogues on invitation from non-funded like-minded groups, unions and organizations. We are particularly interested in screening among workers, women, children and young adults, civil society groups and folks in general who are allies of people's movements.

To organize a show in your locality please write to peoplesfilmcollective@gmail.com, or call us at 9163736863. We will get back to you.

To join our initiative as an activist, please contact us in the manner above, or simply turn up at one of our screenings for a face-to-face chat!

Cinema of Resistance - Kolkata


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Gujarat Citizen’s write to President of India against Intolerance

Next: जान आफत में तो माफी भी मांग ली गिरीश कर्नाड ने! टीपू विरोधियों के निशाने पर अब ज्ञानपीठ अवार्डी नाटककार और अभिनेता गिरीश कर्नाड हैं।उन्हें जान की धमकी दी गयी और उनने कुलबर्गी, दाभोलकर,हुसैन या पनसरे बनने का विकल्प चुनने के बजाय सीधे माफी मांंग ली। इस सर्वव्यापी केसरिया सुनामी में कोई सृजनधर्मी कलाकार इतना अकेला,इतना असहाय,चक्रव्यूह में इतना निःशस्त्र होगा,हम जैसे तुच्छ प्राणी की समझ में नहीं आ रही है यह बात। पलाश विश्वास
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Gujarat Citizen's write to President of India against Intolerance

New Delhi.

GUJARAT CITIZEN'S STATEMENT 

AGAINST INTOLERANCE

His excellency,

We, the concerned citizens of Gujarat, stand by the artists, scientists,, academicians, intellectuals who oppose the atmosphere of intolerance, hatred and fear; and return their awards. We feel that this is the time when the civil society should rise and resist what is going on in the country. Intolerance as well as communal and caste hatred have been in the country since long. But after the rise of Mr. Narendra Modi and RSS, intolerance, violence and hatred have become the instruments of power and have been politically and deliberately encouraged. The cold blooded murder of the intellectuals, two in Maharashtra and one in Karnataka is its glaring example.

The fanatical propagation of cow slaughter and killing people in the name of so-called holy cow, the horrible incident of Dadri and burning of Dalits in Haryana have become incidents in the country with the reason that atmosphere of fear and insecurity has increased throughout the country. There are direct attacks on freedom of speech and expression. Still worse, these violent incidents are supported by the member of ruling party and silence of the Prime Minister show that present  is committed to this ideology.

Arrogant defense like statement of Mr.  that Mr. Narendra Modi has become the object of great intolerance is ridiculous because the non violent opposition to intolerant Modi cannot be considered as intolerance towards Modi. We believe that these acts of violence, hatred and intolerance pose a great threat to democratic, secular, pluralistic  which is the very foundation of our constitution. All these incidents are proof of a conscious movement towards fascism based upon racial pride, violence, hatred and intolerance. These anti democratic forces seem to be determined to convert  into a theocratic state where all minorities and non believers have to live at the mercy of majority. This is also violating the fundamental duty of every citizen to develop the scientific temper, humanism and spirit of inquiry and reform.

Prime Mister Mr. Modi in his foreign tour once pronounced that now people feel proud to be an Indian. But the reality is just the opposite. The recent incidents show that people rather feel ashamed. The Sangh Parivar and the government want to take the country into the ancient age. In Gujarat also, the atmosphere of Fear, Hatred and Intolerance prevails. Freedom of Expression and Right to  are denied. The protestors of Dholera SIR have to approach the High Court for their Protest March & Sedition Act is used for Political Vendetta in the State.

Under the circumstances, we request you to intervene and maintain the democratic and secular fabric of our country.

We also appeal sane, liberal and progressive members of the civil society to stand up and resist the direct attacks on basic principles of Constitution.

N.B. WE REQUEST YOU TO GIVE AN APPOINTMENT DURING YOUR VISIT TO GUJARAT (AHMEDABAD) ON 1ST OF DECEMBER.

Yours Sincerely,

We are

PRAKASH N. SHAH(President, PUCL, Gujarat) M. 9879919421 

GIRISH PATEL(Well known advocate)

MALLIKA SARABHAI(Danseuse and activist)

PROF. ROHIT SHUKLA(President, Gujarat, AISEC)

INDUKUMAR JANI(Editor, 'Naya Marg')

PROF. DINESH SHUKLA

DWARIKANATH RATH(Secretary, M.S.D.)

  1. RAGHU RANGARAJAN(Scientist         )

PROF. GHANSHYAM SHAH(Social Scientist)

GAUTAM THAKER(General Secretary, Gujarat, PUCL)

  1. FRANCIS PARMAR

URVISH KOTHARI(Journalist)

FATHER CEDRIC PRAKASH(Director, PRASHANT)

SAGAR RABARI(Secretary, Gujarat Khedut Samaj)

PROF. BHARAT MEHTA(Reader, M.S. University)

PROF. BABUBHAI DESAI

PANKTI JOG(RTI Activist)

MANISHI JANI(Gujarati Writers' Association)

SAROOP DHRUV(Writer)

PROF. SANJAY BHAVE

HIREN GANDHI(Director, 'Darshan'         )

SVATI JOSHI(Retired Professor, Delhi University)

DHIRU MISTRY(Artist)

VINAY MAHAJAN(Artist, 'Loknaad'         )

CHARUL BHARWADA(Artist, 'Loknaad')

MEENAKSHI JOSHI(Activist)

RAJANI DAVE('Gujarat Sarvoday Mandal')

PROF. KUNTAL MEHTA

DILIP CHANDULAL(Activist)

PROF. DHAVAL MEHTA       

HARINESH PANDYA('Janpath')

MANJULA PRADEEP('Navsarjan')

RANJANBEN DESAI(Citizen)

NAYANABEN SHAH(Citizen)

HANSABEN SHAH(Citizen)

NILA ANIL BHATT(Citizen)

PROF. VIPIN H. SHAH

MAHENDRA JETHMALANI('Patheya'      )

BHARATSINH JHALA('CRANTI')

SADHANABEN PANDYA(Citizen)

PERSIS GINWALLA('JAAG')

MEHUL DEVKALA(Artist)

  1. HANIF LAKDAWALA('Sanchetna')
  2. JHARNA PATHAK(Economist)

PRAVIN PANDYA(Writer        )

BEENA MACWAN(Activist)

ARIF MIRZA(Citizen)

JOHN. DSOUZA(Citizen)

PROF. MANGALABEN MEHTA

ISHWAR PRAJAPATI(Activist )

ASHOK SHRIMALI(Activist)

  1. ILABEN JOSHI

MAHESH PANDYA(Editor, Paryavaran Mitra)

PROF. HEMANTKUMAR SHAH

  1. NIVYA PATEL

RAVJI SONDARVA(Cinematographer)

REKHA MAHIDA(Citizen)

  1. DAMINI SHAH

KANJI PATEL(Litterateur)

  1. SUBHASH JOSHI(Social Scientist)

YASHWANT MEHTA(Writer)

PROF. KANU KHADADIYA   

MAHADEV VIDROHI(Sarvodaya Seva Sangh)

 

GUJARAT CITIZEN'S STATEMENT  AGAINST INTOLERANCE

Contact: Narmad Meghani Library,

Opp. Natraj Railway Crossing,

Meethakhali, Ellisbridge,

Ahmedabad-380006.

Ph. No. (079) 26579962.

10 November 2015

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जान आफत में तो माफी भी मांग ली गिरीश कर्नाड ने! टीपू विरोधियों के निशाने पर अब ज्ञानपीठ अवार्डी नाटककार और अभिनेता गिरीश कर्नाड हैं।उन्हें जान की धमकी दी गयी और उनने कुलबर्गी, दाभोलकर,हुसैन या पनसरे बनने का विकल्प चुनने के बजाय सीधे माफी मांंग ली। इस सर्वव्यापी केसरिया सुनामी में कोई सृजनधर्मी कलाकार इतना अकेला,इतना असहाय,चक्रव्यूह में इतना निःशस्त्र होगा,हम जैसे तुच्छ प्राणी की समझ में नहीं आ रही है यह बात। पलाश विश्वास

Next: मनुस्मृति का नस्ली नरसंहारी, यह राजकाज सिर्फ जमींदारियों और रियासतों के मालिकान के वंशजों के वर्चस्व के लिए! बनियों की सरकार किसानों के बाद खुदरा कारोबार के सफाये में लगी और एफडीआई से बिजनेस और इंडस्ट्री का भी सत्यानाश,क्योंकि मुनाफावसूली सिर्फ महाजिन्न के मालिकान करेंगे! मारे जायेंगे आम लोग, अल्पसंख्यक, दलित,पिछड़े,आदिवासी बहुजन गैरहिंदू तो मारे जायेंगे आम सवर्ण भी! न ब्राह्मण बचेंगे,न राजपूत और भूमिहार! जो बजरंगी मौत की दस्तक से अब्दुल्ला दीवाना है! Knock! Knock!Knock!. नी करी दी हालो हमरी निलामी, नी करी दी हालो हमरो हलाल। https://youtu.be/UiAP7vFfe-c
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जान आफत में तो माफी भी मांग ली गिरीश कर्नाड ने!

टीपू विरोधियों के निशाने पर अब ज्ञानपीठ अवार्डी नाटककार और अभिनेता गिरीश कर्नाड हैं।उन्हें जान की धमकी दी गयी और उनने कुलबर्गी, दाभोलकर,हुसैन या पनसरे बनने का विकल्प चुनने के बजाय सीधे माफी मांंग ली।


इस सर्वव्यापी केसरिया सुनामी में कोई सृजनधर्मी कलाकार इतना अकेला,इतना असहाय,चक्रव्यूह में इतना निःशस्त्र होगा,हम जैसे तुच्छ प्राणी की समझ में नहीं आ रही है यह बात।


Knock! Knock!Knock!. नी करी दी हालो हमरी निलामी, नी करी दी हालो हमरो हलाल।

https://youtu.be/UiAP7vFfe-c


पलाश विश्वास

हैरतअंगेज है।टीपू सुल्‍तान की जयंती मनाने के कर्नाटक सरकार के फैसले को लेकर जारी विरोध थमने को नाम नहीं ले रहा है। राज्‍य की कांग्रेस सरकार को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि उसका यह निर्णय इस कदर विवाद का केंद्रबिंदु बन जाएगा। इस मसले को लेकर राजधानी बेंगलुरू में विरोध प्रदर्शन जारी है।टीपू विरोधियों के निशाने पर अब ज्ञानपीठ अवार्डी नाटककार और अभिनेता गिरीश कर्नाड हैं।उन्हें जान की धमकी दी गयी और उनने कुलबर्गी,दाभोलकर,हुसैन या पनसरे बनने का विकल्प चुनने के बजाय सीधे माफी मांंग ली।


जी हां,टीपू जयंती पर दिए गए विवादित बयान के एक दिन बाद ही वरिष्ठ अभिनेता, लेखक और साहित्यकार गिरीश कर्नाडने माफीमांग ली है। मंगलवार को गिरीश ने कहा था कि बेंगलुरु इंटरनैशनल एयरपोर्ट का नाम विजयनगर साम्राज्य के शासक रहे केंपेगौड़ा के बजाय टीपू सुल्तान के नाम पर रखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि केंपेगौड़ा टीपू की तरह फ्रीडम फाइटर नहीं थे। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता गिरीश के बेंगलुरु में जेपी नगर स्थित घर से जारी एक बयान में कहा गया है कि उन्होंने जो भी कहा वह उनका व्यक्तिगत विचार था और उन्होंने किसी दुर्भावना के तहत ये बातें नहीं कही थीं।


फिर विवाद बढ़ता देखकर कर्नाड ने 'डैमेज कंट्रोल' की कोशिश की है। उन्‍होंने कहा कि , 'यदि मेरी टिप्‍पणी से कोई आहत हुआ हो तो मैं माफीमांगता हूं।' केमपेगौड़ा विजयनगर साम्राज्य के तहत जागीरदार थे, जिन्होंने 1537 में बेंगलुरू की स्थापना की थी। विहिप नेता बोले, कर्नाड सिद्धारमैया के आदमी विहिप के राज्‍य सचिव बासवराज, कर्नाड के बयान को लेकर सर्वाधिक मुखर हैं। वे टाउन हाल में इस मसले पर हुए विरोध प्रदर्शन का हिस्‍सा रहे हैं। उन्‍होंने कहा, 'केम्‍पेगौड़ा इस शहर के संस्‍थापक थे। हम गिरीश कर्नाडके बयान की आलोचना करते हैं। वे लेखकर नहीं है, केवल मुख्‍यमंत्री सिद्धारमैया के आदमी हैं।'


इस सर्वव्यापी केसरिया सुनामी में कोई सृजनधर्मी कलाकार इतना अकेला,इतना असहाय,चक्रव्यूह में इतना निःशस्त्र होगा,हम जैसे तुच्छ प्राणी की समझ में नहीं आ रही है यह बात।



ऋत्विक घटक ने पुणे फिल्म इंस्टीच्यूट में जिन छात्रों को तैयार किया,अपनी टीम के जनि तकनीशियनों को ग्रूम किया,वे ही बाद में समांतर सिनेमा के चेहरे बने।कुमार साहनी और मणि कौल उदाहरण हैं।1960 में मेघे ढाका तारा,1961 में कोमल गांधार और 1962 में सुवर्णरेखा बनाने वाले ऋत्विक घटक इप्टा के कार्यकर्ता थे,जिन्हें कोमल गांधार के बाद भद्रलोक समाज ने तड़ी पार कर दिया और मरने से पहले 1976 तक उनने कुल आठ फीचर फिल्में बनायीं।


Subarna Rekha,Blasphemy against ideology by Ritwik Ghatak,the Golden Line and the Ati Dalit Bagdi Bou and death of Sita in a brothel! Palash Biswas


Subarnarekha - Bengali Full Movie - Ritwik Ghatak's Film - Abhi Bhattacharya | Madhabi Mukhopadhya

ऋत्विक घटक ने  इंदिरा गांधी के खुल्ला समर्थन के बाद भी सत्ता की मदद लेकर फिल्में नहीं बनायीं।उनकी जुक्ति तक्को गप्पो और तितास एकटि नदी के लिए भारतसे मदद नहीं मिली लेकिन उनने फिल्म बनाने के लिए कोई सौदा या समझौते किये हों,इसके सबूत मिलना मुश्किल है,हमारे पास हैं नहीं,जिनके पास हों साझा करें।

https://youtu.be/PVSAo0CXCQo


KOMAL GANDHAR!Forget not Ritwik Ghatak and his musicality, melodrama,sound design,frames to understand Partition of India!


सिनेमा क्रांति और समांतर सिनेमा के तमामो क्रांतिकारी राज्य या केंद्र सरकार के तमाम निगमों के पैसे से फिल्में बनाते रहे हैं।


सत्यजीत राय की बहुचर्चित फिल्म पथेर पांचाली बंगाल के तत्कालीन मुख्यंत्री विधान चंद्र राय पर बनी।


भारत की खोज से लेकर फिल्म डिवीजन और दरदर्शन के लिए बनी फिल्में और ज्योति बसु पर बनी फिल्म तमाम उदाहरण हैं इस क्राति की।तमाम आदरणियों की क्रांति सत्तापोषित है और सन्नाटा बुनकर अपनी खाल और रोजी रोटी बचाने के सिवाय उनके पास चारा कोई दूसरा नहीं है जैसे दो टुक शब्दों में बड़ी ईमानदारी से कमल हसन ने कह दिया कि यह रोजी,रोटी,धंधे का मामला है।


Is intolerance killing Humanity and Nature all about Nationalism?Never!,Mr Kamal Hassan? 

https://www.youtube.com/watch?v=7OhKSEBJsBc

बंगाल में सिनेमा में हलचल नहीं है कि पिछले तीन साल से शारदा फर्जीवाड़ा के कारण बांग्ला के फिल्मकार पसीने से तरबतर है।गौतम घोष की देखा विवादित चिटफंड कंपनी रोजवैली के पैसे से बनी।चिटफंड और सरकारी पैसे से क्रांति पेलने वाले फिल्मकार की कोई आवाज नहीं हो सकती,हम जानते हैं।


इसीलिए यह भी खूब बूझ रहे हैं कि 36 फिल्मकारों के राष्ट्रीय पुरस्कार वापस कर देने के बावजूत तमाम समांतर क्रांतिधर्मी फिल्मकारों के चेहरों पर सन्नाटा क्यों बुना हुआ है और वे राष्ट्र के विवेक के मुकाबले अखंड निरपेक्षता का मंत्र जाप क्यों कर रहे हैं।


हम शुरु से मानते रहे हैं कि पहल तो हमारे तमाम आदर्शों को करनी चाहिए।लेकिन महश्वेता देवी ने जुबान नहीं खोली और हमारे सबसे प्रिय फिल्मकार श्याम बेनेगल और गिरीश कर्नाड चुप रहे हैं।बेनेगल ने तो सिरे से एवार्ड लौटाने के विरोध में थे,लेकिन अनुपम केर की तरह वे सीधे राजपथ पर केसरिया सुनामी का हिस्सा नहीं बने,गनीमत है।


गिरीश कर्नाड मौनीबाबा बने हुए थे।ये वे गिरीश कर्नाड हैं,जो फिल्म और रंगकर्म के साथ साथ कन्नड़ साहित्य का राष्ट्रीय्ंतरराष्ट्रीय चेहरा हैं और हम सत्तर के दशक से उनकी रोशनी से सराबोर होते रहे हैं।हमें उम्मीद थी वे कभी न कभी बोलेंगे।बाकी लोगों से बी ऐसी उम्मीद थी।


आखिरकार बिहार में नीतीशे कुमार जनमत के बाद वे बोले भी तो अंजाम और और हैरतअंगेज।हमत तो उनको मिली जान की धमकी की निंदा करने के मूड में लिखने चले थे और अपडेट देखा तो यह क्या,कि उनने माफी भी मांग ली।


मीडिया के मुताबिकः

कर्नाटक सरकार ने 10 नवंबर को टीपू सुल्तान की जयंती मनाने का ऐलान क्या किया, उसके बाद बवाल खड़ा हो गया। हिंदूवादी संगठनों के विरोध के बाद शुरू हुआ विवाद अब थमने का नाम नहीं ले रहा है। आज जहां पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित नाटककार और अभिनेता गिरीश कर्नाड को कलबुर्गी की तरह जान से मारने की धमकी मिली, तो वहीं मैसूर-कोडागू से बीजेपी सांसद प्रताप सिम्हा को एक फेसबुक पेज के जरिए जान से मारने की धमकी दी गई।


सांसद ने इसकी शिकायत पुलिस में की है। 'टीपू सुल्तान' के नाम से बने फेसबुक पेज पर प्रताप के लिए धमकी भरा पोस्ट डाला गया, जिसमें सांसद प्रताप सिम्हा की फोटो डालकर कन्नड़ भाषा में लिखा है, 'अगर तुमने ऐंटी मुस्लिम बयान देकर राजनीति करना जारी रखा, तो तुम्हारा भी वही अंजाम (मौत) होगा।'


इस फेसबुक पोस्ट में दो दिन पहले हिंसा में मरे वीएचपी नेता कुटप्पा की फोटो के साथ सांसद प्रताप सिम्हा की फोटो भी लगाई गई है। इस पोस्ट पर सिम्हा ने भी कॉमेंट किया और लिखा कि वीएचपी नेता कुटप्पा की मौत अपने आप नहीं हुई थी, राज्य सरकार मामले की जांच कर रही है।

पोस्ट के टाइटल में लिखा है, 'प्रताप अपना हश्र ऐसा (कुटप्पा जैसा) नहीं चाहते होंगे।' पुलिस कमिश्नर बी. दयानंद ने भी सांसद की ओर से धमकी मिलने की मौखिक शिकायत किए जाने की पुष्टि की है। धमकी के बाद सांसद के घर के आस-पास सुरक्षा बढ़ा दी गई है। सांसद गुरुवार को लिखित कंप्लेंट दर्ज करवा सकते हैं।


वहीं, गिरीश कर्नाड को कलबुर्गी की तरह जान से मारने की धमकी मिली है। कर्नाड को धमकी दी गई है कि उनका भी वही हाल होगा, जो कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी का हुआ था। कलबुर्गी की अगस्त में हत्या कर दी गई थी।


किसी अज्ञात चंद्रा नाम के एक व्यक्ति ने ट्वीट कर यह धमकी दी है। हालांकि इस व्यक्ति ने अपना ट्वीट हटा लिया था। धमकी के बाद बुधवार को बेंगलुरु में एक बयान जारी कर कर्नाड ने कहा कि उन्होंने जो भी कहा, वह उनकी निजी राय थी। उन्होंने कहा कि इसके पीछे कोई दुर्भावना नहीं थी। अगर किसी को पीड़ा पहुंचती है तो मैं माफी मांगता हूं।


गिरीश कर्नाड के खिलाफ भाजपाइयों ने बुधवार को कर्नाटक में जगह-जगह प्रदर्शन किया। कर्नाड ने मंगलवार को बेंगलुरु में कहा था कि 18वीं सदी के मैसूर के शासक टीपू सुल्तान अगर हिंदू होते तो उन्हें मराठा शासक छत्रपति शिवाजी के समान दर्जा मिलता।

कर्नाड ने कहा था कि अगर टीपू सुल्तान हिंदू होते तो उनका भी कद मराठा शासक छत्रपति शिवाजी की तरह होता। कर्नाड ने मांग की थी कि बेंगलुरु के इंटरनेशनल एयरपोर्ट का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर रखा जाए। फिलहाल इस एयरपोर्ट का नाम विजयनगर के शासक रहे केंपेगौड़ा के नाम पर है। गिरीश कर्नाड ने यह तर्क दिया था कि केंपेगौड़ा टीपू सुल्तान की तरह फ्रीडम फाइटर नहीं थे। केंपेगौड़ा विजयनगर साम्राज्य के तहत जागीरदार थे जिन्होंने 1537 में बेंगलुरु की स्थापना की थी।

  

गौरतलब है कि कर्नाटक सरकार 18वीं सदी में मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान की 265वीं जयंती मना रही है। भाजपा से जुड़े संगठन आरएसएस-वीएचपी इसका विरोध कर रहे हैं। टीपू को आरएसएस ने सबसे असहिष्णु शासक करार दिया है। विरोध में आरएसएस और तमाम हिंदू संगठन कर्नाटक में प्रदर्शन कर रहे हैं।



एनडीटीवी की यह खबर भी पढ़ लेंः

टीपू सुल्‍तान विवाद: कर्नाड के बयान से विरोधी खफा, मशहूर एक्‍टर ने की माफी की पेशकश


बेंगलुरू: टीपू सुल्‍तान की जयंती मनाने के कर्नाटक सरकार के फैसले को लेकर जारी विरोध थमने को नाम नहीं ले रहा है। राज्‍य की कांग्रेस सरकार को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि उसका यह निर्णय इस कदर विवाद का केंद्रबिंदु बन जाएगा। इस मसले को लेकर राजधानी बेंगलुरू में विरोध प्रदर्शन जारी है। टीपू विरोधियों के निशाने पर अब ज्ञानपीठ अवार्डी नाटककार और अभिनेता गिरीश कर्नाड हैं।


एयरपोर्ट के नामकरण संबंधी बयान से नाराज

दरअसल, गिरीश कर्नाड की ओर से की गई टीपू सुल्‍तान की प्रशंसा विरोधियों को रास नहीं आ रही। बेंगलुरू एयरपोर्ट का नामकरण केमपेगौड़ा के बजाय टीपू पर करने का कर्नाड का सुझाव भी दक्षिणपंथियों को पसंद नहीं आ रहा है।  वे कर्नाड के विरोध में उतर आए हैं। हालांकि विवाद को बढ़ता देखकर कर्नाड ने 'डैमेज कंट्रोल' की कोशिश शुरू कर दी है। उन्‍होंने कहा कि , 'यदि मेरी टिप्‍पणी से कोई आहत हु हो तो मैं माफी मांगता हूं। ऐसा करके (बयान देकर) आखिर मुझे क्‍या हासिल होगा।' केमपेगौड़ा विजयनगर साम्राज्य के तहत जागीरदार थे, जिन्होंने 1537 में बेंगलुरू की स्थापना की थी।


विहिप नेता बोले, कर्नाड सिद्धारमैया के आदमी

विहिप के राज्‍य सचिव बासवराज, कर्नाड के बयान को लेकर सर्वाधिक मुखर हैं। वे टाउन हाल में इस मसले पर हुए विरोध प्रदर्शन का हिस्‍सा रहे हैं। उन्‍होंने कहा, 'केम्‍पेगौड़ा इस शहर के संस्‍थापक थे। हम गिरीश कर्नाड के बयान की आलोचना करते हैं। वे लेखकर नहीं है, केवल मुख्‍यमंत्री सिद्धारमैया के आदमी हैं।'


विहिप कार्यकर्ता की मौत से गुस्‍सा भड़का

दरअसल इस मुद्दे पर भाजपा के कोडागु  बंद के दौरान हुए हुए प्रदर्शन में एक विहिप कार्यकर्ता की मौत ने विरोधियों के गुस्‍से को और बढ़ा दिया है। पुलिस का कहना है कि कार्यकर्ता की मौत महज एक हादसा थी और लाठीचार्ज से बचने के लिए भागने के दौरान गिरना इस मौत का कारण था।


भाजपा कर रही सीबीआई या न्‍यायिक जांच की मांग

दूसरी ओर, भाजपा इस मसले पर पुलिस को क्‍लीनचिट देने को तैयार नहीं है। भाजपा नेता और राज्‍य के पूर्व गृह मंत्री आर. अशोक ने एनडीटीवी से कहा, 'सौ फीसदी यह हत्‍या है। उन्‍होंने यह किया है। यह पूरी तरह सामुदायिक झड़प और सरकार की नाकामी थी। सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे। यह सोचा-समझा मर्डर है। भाजपा मामले की सीबीआई या न्‍यायिक जांच की मांग कर रही है।'


न्‍यायिक जांच को तैयार नहीं सीएम

हालांकि सीएम सिद्धारमैया ने ऐसी किसी भी जांच से इनकार किया है। उन्‍होंने कहा, 'न्‍यायिक जांच की कोई जरूरत नहीं है। मैं पहले ही मैसूर के रीनजनल कमिश्‍नर को मामले की जांच के आदेश दे चुका हूं। सांप्रदायिक झड़प में मारे जाने वाले किसी भी शख्‍स के परिजनों को पांच लाख रुपए का आदेश है। टीपू सुल्‍तान देशभक्‍त और स्‍वतंत्रता सेनानाी थे। वे धर्मनिरपेक्ष व्‍यक्ति थे। इसलिए हम उनकी जयंती मना रहे हैं।'

http://khabar.ndtv.com/news/india/karnataka-simmers-over-tipu-sultan-row-girish-karnad-offers-apology-1242639



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मनुस्मृति का नस्ली नरसंहारी, यह राजकाज सिर्फ जमींदारियों और रियासतों के मालिकान के वंशजों के वर्चस्व के लिए! बनियों की सरकार किसानों के बाद खुदरा कारोबार के सफाये में लगी और एफडीआई से बिजनेस और इंडस्ट्री का भी सत्यानाश,क्योंकि मुनाफावसूली सिर्फ महाजिन्न के मालिकान करेंगे! मारे जायेंगे आम लोग, अल्पसंख्यक, दलित,पिछड़े,आदिवासी बहुजन गैरहिंदू तो मारे जायेंगे आम सवर्ण भी! न ब्राह्मण बचेंगे,न राजपूत और भूमिहार! जो बजरंगी मौत की दस्तक से अब्दुल्ला दीवाना है! Knock! Knock!Knock!. नी करी दी हालो हमरी निलामी, नी करी दी हालो हमरो हलाल। https://youtu.be/UiAP7vFfe-c

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मनुस्मृति का नस्ली नरसंहारी, यह राजकाज सिर्फ जमींदारियों और रियासतों के मालिकान के वंशजों के वर्चस्व के लिए!

बनियों की सरकार किसानों के बाद खुदरा कारोबार के सफाये में लगी और एफडीआई से बिजनेस और इंडस्ट्री का भी सत्यानाश,क्योंकि मुनाफावसूली सिर्फ महाजिन्न के मालिकान करेंगे!

मारे जायेंगे आम लोग, अल्पसंख्यक, दलित,पिछड़े,आदिवासी बहुजन गैरहिंदू तो मारे जायेंगे आम सवर्ण भी!


न ब्राह्मण बचेंगे,न राजपूत और भूमिहार!

जो बजरंगी मौत की दस्तक से अब्दुल्ला दीवाना है!

Knock! Knock!Knock!. नी करी दी हालो हमरी निलामी, नी करी दी हालो हमरो हलाल।

https://youtu.be/UiAP7vFfe-c

पलाश विश्वास


केशरिया इतिहास तो जंतर मंतर में बन ही गया जब सरहदों पर जान की बाजी लगाकर देश की एकता और अखंडता की रक्षा करने वाले वफादार फौजी राष्ट्र की ओर से दिये पदक मनुस्मृति की तर्ज पर जलाने लगे।


अंध राष्ट्रवाद की सियासती मजहब और मजहबी सियासत की फौजों को न शर्म आयी और न शर्मिंदा है बिहार में नीतीशे कुमार जनादेश के बाद एकमुश्त देश में उद्योग कारोबार, बेसिक जरुरतों और सेवाओं,बिजली पानी,शिक्षा चिकित्स,खुदरा कारोबार, मीडिया, संचार,परिवहन,निर्मान विनिर्माण,उड़ान और समुद्रपथ से लेकर रक्षा तक विदेशी पूंजी के हवाले करने वाले नवउदारवाद के कल्कि अवतार को।न स्वदेश और हिंदुत्व के पतंग उड़ाने वालों को शर्म है।


जनादेश की किसे परवाह है?

जनादेश की औकात क्या है?

जबकि नागरिक गुलाम हैं?


जनादेश कुल मिलाकर धार्मिक ध्रूवीकरण या जाति समीकरण की फसल है।उस जनादेश के एटीएम,सत्तादल के खजाने,सत्ता के पैकेज और पुरस्कार,हैसियत की मलाई का हिस्सा कितने फीसद लोगों को मिलता है,कितनों में बंटती हैं जागीरें और कितने लोग सिपाहसालार,सूबेदार,मनसबदार,कोतवाल वगैरह बन पाते हैं और इसकी उत्पादन और विकास दरें क्या हैं।


हिंदुओं की छह हजार जातियों समेत भारत भर के तामम मजहबों,नस्लों,गैरहिंदुओं और आदिवासियों का हाल हकीकत मालूम करें तो कुल मिलाकर सौ जातियां भी नहीं,गैरहिंदुओं के और आदिवासियों के दस दस समुदाय भी नहीं हैं जो कायदे से दिवाली ईद करम ओनम वगैरह वगैरह मनाने की हैसियत में हैं और जिनके बच्चों को रोजगार मिलता है।


आरक्षण और कोटा पर भी मजबूत जातियों की रंगदारी चलती हैं।ऐसी जातियां सौ भी नहीं होंगी।


गौर करें,जातियां सिर्फ शूद्रों और अछूतों की होती हैं।

बाकी वर्ण हैं तीन।


छह हजार जातियों में से कृपया उन जातियों की सूची जारी करें जिन्हें आरक्षण और कोटे का लाभ मिलता है।आदिवासियों में किन्हें यह लाभ मिला है,यह भी बता दें।1991 के बाद क्या मिला।


दरअसल हम,भारतीय नागरिक जाति धर्म की पहचान से वे मूक हैं तो वधिर भी हैं और अंधे भी।


इसीलिए हम इस देश को मृत्यु उपत्यका बनाने वालों की फौजों में स्वयंसेवक हैं।


हाल यह है कि एकदफा कोई चुनाव जीत कर सिंहासन पर बैठ गया तो बाकी देश उनके बाप दादों की जमींदारी है,जलाकर खाक कर दें या उठा उठाकर बेच दें।


देश बेचना का लाइसेंस दरअसल जनादेश है।


केंद्र में तो किसी तरह सत्ता हासिल होनी चाहिए बाकी फिर लोकतंत्र नौटंकी है।नगाड़े ढोल बजते रहेंगे और गाना बजाना खूब होगा।


फिर होगा वहीं, जो राम रचि राखा।सरकार अल्पमत में हो या बहुमत में,सूबों में एक के बाद एक जनादेश खिलाफ हो,तो भी ससारे के सारे सांढ़ और सारे के सारे अश्वमेधी घोड़े बेलगाम हैं।


हमारी आंखों में पट्टी बंधी हुई है और सियासती मजहब या मजहबी सियासत के संस्थागत फासीवाद के मुक्यालय के तिलिस्मों,चक्रव्यूहों और  सोने के पिंजड़ों में फंसे हुए समझ रहे हैंकि सबकुछ ठीकठाक है।


नुकसान की भरपाई के लिए जो चेहरे बगावत के तेवर में हैं,वे ही चेहरे कल तक कहर बरपाते रहे हैं और आज के कयामती नजारे के वे ही सबसे महान कलाकार हैं।रचनाकार हैं।कयामत उनकी भाषा है।कयामत का यह मंजर उनका व्याकरण,सौदर्यबोध है।


युद्ध अपराध उनका भी कम नहीं है,जो मार्गदर्शक हैं ,राजधर्म बता रहे हैं।हम सन सैंतालीस से राजधर्म का यह अखंड पाठ भक्तिभाव से सुन रहे हैं और दसों दिशाओं में कयामत की बहार है।


खून की नदियां बहने लगी हैं फलक फाड़कर और हिमालय समुंदर तलक,महाअरण्यबी आग के हवाले हैं।ज्वालामुकी दहकने लगे हैं और सारे जलस्रोत बंधे हुए रेडियोएक्टिव हैं।


सन सैंतालीस से रघुकुल रीति यह चली आ रही है।


हम सारे लोग अपनी  अपनी जात के नाम,अपने अपने धर्म के नाम,अपनी अपनी भाषा और क्षेत्र के नाम आपस में दंगा फसाद का बवंडर को लोकतंत्र मानकर यह नर्क जी रहे हैं और जमींदारियां, रियासतें सही सलामत हैं।


बंटवारे के बावजूद उनका कुछ भी बंटा नहीं है और हमें फिर फिर बंटवारे का,दागा फसाद का शिकार बनाया जा रहा है।बंटवारा जारी।


उनका कोई कहीं दंगा फसाद,राजनीतिक हिंसा में मारा नहीं जाता।मारने वाले भी हमारे लोग हैं और मरने वाले भी हमीं।


केंद्र और राज्यों में दरअसल धर्म और राजनीति,धर्मनरपेक्षता और प्रगति ,वाम और दक्षिण के नाम धर्म और राजनीति पर वंश वर्चस्व कायम है।वंश वर्चस्व ही मनुस्मृति अर्थव्यवस्था है,जिसके अनुशासन के तहत कर्फल हमारीनियति ,हमारी जाति है।


रीढ़ हममें होती नहीं दरअसल,न होते हैं दिलोदिमाग जो गुलामों के हो ही नहीं सकते क्योंकि हम टुकड़ों पर पलते हुए नर्क जीने के अब्यस्त हैं और हर सूरत में नर्क को मजबूती देते रहना हमारा धर्म कर्म है और हमारी जिंदगी वहीं है।


नियति के खिलाफ मोर्चा लगाना औकात नहीं है हमारी और नियति मौत बनकर मुंह बाएं खड़ी हैं।


हमने कल दिवाली के मौके पर आनंद तेलतुंबड़े से गपशप के दौरान बंगाल के उन सौ परिवारों के नाम गिना दिये,जो जीवन के हर क्षेत्र में सुप्रीमो सुप्रीम हैं।


हम तो जातपांत और धर्म के नाम पर मरे जा रहे हैं।


वे आपसी मुबहब्बत कायम रखकर कायदे कानून का बेखौफ इस्तेमाल करते हुए  लोकतंत्र के हर संस्थान पर काबिज बिना भेदभाव हमारे हाथ पांव दिलोदिमाग और सर कलम कर रहे हैं।


हम किसी का नाम नहीं लेंगे।


आप बहुत आसानी से अपने अपने सूबों में वंश वर्चस्व का नजारा देख लीजिये।उनके खानदान की सेहत में हम पानदान हुए जा रहे हैं तो थूकदान भी हमीं है और अब तो मुक्तबाजार में कमोड और कंडोम दुनो आम लोग।


निनानब्वे फीसद जनता का कंडोम कमोड इस्तेमाल करके चतुर सुजान अरबेअरबपति हैं।वे ही हुक्मरान हैं मजहबी।


थोड़ा बहुत अपनी जात बिरादरी का कल्याण वे कर देते हैं।बाकीर फिर वही कमोड मुक्त बाजार का।कुलो किस्सा यहींच।बाहुबलि और धनबल सिर्फ उन्हीं जातियों के हैं,और जमींदारी भी उन्हींकी।


रियासतें भी उन्हीं की। जाति से,धर्म से बाकी लोगों का कोई भला नहीं होता।लेकिन वे जाति धर्म के नाम लड़ मर रहे हैं।


बहुजनों की क्या कहें वे तो अपने दूल्हे की बेमिसाल बारात में अब्दुल्ला दीवाना हैं।


ताकतवर जातियों को भी होश नहीं है कि उनकी क्या गत बन रही है।कुछ चुनिंदे लोग हर सूबे में,पूरे देश में सियासत,कारोबार,उद्योग धंधे से लेकर कला साहित्य संस्कृति तक काबिज हैं और गौर करें,वे सारे के सारे जमींदार रियासती घरानों के ही वंशज हैं ।


आरक्षण कोटा के खिलाफ लामबंद सवर्णों का क्या मिला है,अपना अपना हिसाब जोड़ लीजिये।


मसलन भूमिहार सबसे तेज समझे जाते हैं बिहार में,पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो कर्नाटक में वोकालिंगा हैं।तमिलनाडु में अयप्पा और अयंगर हैं।तो पंजाब में खत्री हैं।


हमने धनबाद में आवाज से पत्रकारिता शुरु की तो हमारे संपादक मालिक ब्रह्मदेव सिंह भूमिहार थे,जिनने हमें सबसे पहले संपादकीय लिखना सिखाया।उनका कहना था कि संपादकीय असल है बाकी तो आपेआप आ जाता है।वे पत्रकारिता में हमारे पहले गुरु थे।


हम पहाड़ों से मैदान में निकले,तो चतुर सुजान बिहार के भूमिहारों से हमारी दोस्ती हुई और हम हमेशा उनकी कुशाग्र बुद्धि के कायल रहे हैं।अब इन्हीं भूमिहारों की उनकी जनसंख्या के प्रतिशत के मुकाबले बहुते जियादा छियालीस टिकट बांट दिये केसरिया सियासत ने।


एको नहीं जिता पाये।लुलआ ने अपने सारे यादव जीता लिये।वहीं हाल पिछले लोकसभा चुनावों में समाजवादी सारे उम्मीदवार खेत रहने के बाद मुलायम अखिलेश कुनबे के सारे उम्मीदवार जीत गये।इस करिश्मे का समीकरण भी बांचे।


मजबूत सवर्ण जातियों की भी भूमिहारों,खत्रियों,त्यागियों और देश की दूसरी मजबूत सवर्ण जातियों की गत किसी से छुपी नहीं है।



राजपूतों और ठाकुरों का वजूद तो अब उनकी मूंछें हैं और मूंछों की लड़ाई में मशगुल उनने वीपी या अर्जुन सिंह का साथ ही नहीं दिया,जो दरअसल उन्हें इस वंश वर्चस्व के एकाधिकार को बचाने चले थे।मूंछों ने अपने सिपाहसालारों का काम तमाम कर दिया।


अजब गजब मनुस्मृति राज है कि भूमिहार राजपूत और ब्राह्मण कोई सेहतमंद नहीं है और वर्ल्ड ब्राह्मण आर्गेनाइजेशन डंके की चोट पर केसरिया इतिहास बनाने चला है और कोई ब्राह्मण खुलकर इसके खिलाफ आवाज नहीं उठा रहा है।राजपूत,भूमिहार,त्यागी चुप।तो खामोश हैं अंबेडकर अनुयायी अपने रंग बिरंगे मसाहाओं समेत और बहुजन समाज की नीली क्रांति को भी परवाह नहीं है।


मुक्तबाजार ने केसरिया अंध धर्मराष्ट्र के जिहादी एजंडे केतहत भारत को उपनिवेश बना दिया और हम आजादी के लड़ाकों की फिर फिर हत्या पर आमादा हैं।


ताजा शिकार मैसूर के टीपू सुल्तान हैं।जिनने अंग्रेजों को जितनी बार धूल चटायी,उतनी बार नेपोलियन औरहिचलर अंग्रेजी फौजों को शिकस्त नहीं दे पाया।


मजा यह है कि बिहार में धूल चाटने के बाद नये सिरे से धार्मिक ध्रूवीकरण फिर तेज है।अरबिया गोमांस वसंतोत्सव जारी है।


अजब गजब राजधर्म और अजब गजब चिंतन मंथन और उससे बी गजबे हैं मार्गदर्शन।भौंके बहुते हैं,काटो भी।दांत तो नइखे।


अब बताइये, ब्राह्मणों का पेट पुरोहिती से कितना चलता है और उनका जनेउ उन्हें कितनी रोजी रोची देती है जबकि उनके जात के सिपाहसालार मनसबदार ब्राह्मण गिरोह के राजकाज और मनुस्मृति अनुशासन के नाम पर यहमुक्तबाजार का तिलिस्म है।


बताइये कि कौन कौन ब्राह्मण इतना तेज धरे हैं कि पापियों को जनेउ पर हाथ रखे या जनेउ तोड़कर पापियों को भस्म कर दें।तनिको वे मनुष्यता कि युद्धअपराधियों को भस्म करके देखें या फिर चाणक्य की तरह किसी चंद्रगुप्त का राज्याबिषेक करें अडाणी अंबानी के इस साम्राज्य में तो समझ लें कि वे ब्राह्मण हैं।


कृपया ब्राह्मण भी अपने बच्चों के सर पर हाथ रखकर सोचें नये सिरे से कि अंधियारे के सिवाय उनके हाथ क्या लगा।


सारा पाप उन्हींके मत्थे मढ़कर जैसे गांधी को भारत विभाजन का अपराधी बना दिया,गरियाने के लिए सारे लोग बाह्मणों को गरिया रहे हैं और आम ब्राह्णण के घर रोजी रोटी का जुगाड़ कोई नहीं है।


हजारों साल के मनुस्मृति शासन बहाल हो जाने के बाद सारी सत्ता नवब्राह्मणों के हाथों में हैं जिनका कोई विरोध कर नहीं रहा और ब्राह्णण भी सारा पाप अपने माथे ढोते हुए केसरिया सुनामी से उम्मीद बांधे हैं।


सबसे बुरा हाल संघ परिवार के सबसेवफादार सिपाहियों बनियों की है।देश में खेती विदेशी पूंजी और हितों के हवालेकरने वाली केसरिया सत्ता अब उनके पेट काटने पर आमादा है।


खुदरा कारोबार का कबाडा़ है।


सारा कारोबार अब इंटरनेट के हवाले है।


हाट बाजार और दुकाने बंद होने को है।


ई कामर्स में जो एफडीआई बेलगाम है ,उससे ही एक ही साल में बनियों के पेट पर लात मारकर नेट पर दुकान चलाने वालों का कारोबार दिन दूना रात चौगुना है औरबनिया नई पीढ़ी गायत्री मंत्र जाप का रिंगटोन लगाकर जयश्री राम के बदले नमो नमो करने वाली है और कारोबार काम धंधा ठप होने की वजह से उनके लिए मक्खी मारने के बजाये यही बेहतर धंधा है।चाहे तो अरबपति बाबाओं की भभूति लगा लें या कपालभाति योगाभ्यास कर लें।



हर हाल में फायदा गुजरात,महाराष्ट्र और राजस्थान, दिल्ली, कोलकाता की नई जमींदारियों को होना हैं,जिनने राजपूतों और ठाकुरों का बाजा बजाकर उन्हें जमींदारी और रियासत से बेदखल कर दिया हर बार किसी न किसी को सिपासालर बनाकर सिर्फ उनकी मूंछों का ख्याल रखा है।



ताजा खबर यह है कि बिरंची बाबा एफडीआई बाबा महाजिन्न को प्रोटोकाल तोड़कर असहिष्णुता और नफरत के सैलाब के लिए मृत ब्रिटिश राज की सलामी देने के मुहूर्त पर उस राज के सबसे बड़े दुश्मन,नेपोलियन के बराबर दुश्मन की गांधी की तर्ज पर फिर हत्या कर देने के पवित्र हिंदुत्व मुहूर्त पर भारत के दो सौ के करीब लेखकों ने गुलामी की अटूट पंरपरा और मानसिकता का उचित निर्वाह करते हुए ब्रिटेन  के प्रधानमंत्री  डेविड कैमरुन से भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए गुहार लगायी है।


जो लोग अपनी लड़ाई खुदै लड़ नहीं सकते,उनकी नियति यही है।हमारी अभिव्यक्ति का सवाल है,हमारे वजूद का सवाल है और इसके लिए हम भारतीय संप्रभू नागरिक गुहार उस ब्रिटेन से लगा रहे हैं,जो कल तक हिंदुस्तान की सरजमीं पर राज करता रहा है।


क्या हम उसी राज के लिए वैसे ही मर मिटना चाहते हैं जो दरअसल बजरंगी एजंडा मुक्तबाजार का है,जिन्हें स्वतंत्रता, लोकतंत्र, संप्रभूता के मूल्य इसलिए भी समझ में नहीं आते कि हिंदुत्व का झंडा बुलंद करते हुए धर्म और जाति के नाम पर जमींदारों और रियासतदारों के वंशजों का वर्चस्व बहाल रखने के लिए अपने ही खून से लहूलुहान हैं?

तनिको डरियो भी!

आनलाइन कारोबार और मार्केट का जलवा बहार बी देखते रहे जयश्रीम नमो नमो हांका लगाते हुए!


ऑनलाइन मार्केट में अलीबाबा का धमाल, 10 घंटे में की 500 अरब की सेल









चीन की दिग्गज ऑनलाइन कंपनी अलीबाबा ने 'सिंगल्स डे सेल' के पहले 10 घंटे में करीब 500 अरब रुपये की सेल करने का दावा किया है जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। अलीबाबा की वेबसाइट पर उल्लेख किया गया है कि इस सेल का प्रमोशन आधी रात को शुरू हुआ था और सुबह के 9.52 बजे तक इसका ग्रॉस मर्चेंडाइज वॉल्यूम करीब 500 अरब रुपए को पहुंच गया। एक बयान में अलीबाबा के चीफ एक्जिक्युटिव ऑफिसर डैनियल जांग ने कहा कि इस साल 11 नवंबर को सारी दुनिया चीन के कंजप्शन की पावर देखेगी। इंटरनेट विश्लेषण फर्म कॉमस्कोर के मुताबिक इसके मुकाबले संयुक्त राज्य में साइबर मंडे के माध्यम से थैंक्सगिविंग से पांच ...


Indian Express reports:

Ahead of PM Modi's UK visit, 200 writers urge David Cameron to help 'safeguard freedom of expression in India'

"Over the past month, at least 40 Indian novelists, poets and playwrights have returned the prize awarded to them by the Sahitya Akademi, the National Academy of Letters, to protest against these attacks," the letter to PM David Cameron reads.

- See more at: http://indianexpress.com/article/india/india-news-india/ahead-of-modis-uk-visit-200-authors-urge-cameron-to-safeguard-freedom-expression-in-india/#sthash.W7PQ81h8.dpuf


दैनिक जागरण की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

करोड़ों का कारोबारकर गए आनलाइनविक्रेता

दैनिक जागरण-08/11/2015

जासं, इलाहाबाद : इस बार की दीपावली आम लोगों के लिए इंटरनेट ने खास बना दी। लोगों ने इंटरनेट के जरिए खूब आनलाइनशॉपिंग का लुत्फ उठाया। एक अनुमान के मुताबिक ऑनलाइन कंपनियों ने सिर्फ इलाहाबाद में ही पांच करोड़ काकारोबार ...


  1. नवभारत टाइम्स की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  2. फ्लिपकार्ट के होलसेल रेवेन्यू में तिगुनी बढ़ोतरी

  3. नवभारत टाइम्स-13 घंटे पहले

  4. फ्लिपकार्ट इंडिया का वित्त वर्ष 2015 में रेवेन्यू तिगुना बढ़ गया है। भारत की दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट, फ्लिपकार्ट इंडिया के नाम से होलसेल काकारोबारकरता है। फ्लिपकार्ट की होलसेल में इतना बड़ा ग्रोथ इस बात को ...

  5. दिवाळी रा पगेलागणा भी हुआ ऑनलाइन

  6. Rajasthan Patrika-09/11/2015

  7. इसने ग्रीटिंग कार्ड का कारोबारकम कर दिया है। एक जमाना था जब हर तरह की बधाई के लिए ग्रीटिंग कार्ड ... ग्रीटिंग काड्र्स का चलन खत्म सा हो गया है। अब गिने-चुने लोग व कारोबारीही बड़ी संख्या में ग्रीटिंग कार्ड खरीदते हैं। इस खबर पर ...

  8. ऑनलाइन मंगाइए पटाखे, डिस्काउंट और ऑफर्स का ...

  9. मनी भास्कर-09/11/2015

  10. कंपनी पटाखों के 500 रुपए से 5000 रुपए तक के पटाखों के गिफ्ट बॉक्स बेच रही है। कंपनी फुलझड़ी, चकरी, अनार, फ्लॉवर पॉट, रॉकेट और स्काईशॉट बेच रही है। कंपनी इस कारोबारमें साल 2002 से है। अगली स्लाइड में पढ़े, बढ़ रहा है ऑनलाइन पटाखे ...

  11. दैनिक जागरण की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  12. दैनिक जागरण

  13. भास्कर संवाददाता | अंबिकापुर

  14. दैनिक भास्कर-09/11/2015

  15. शहर में इस साल अलंकार इलेक्ट्रानिक्स, अंबर इलेक्ट्रानिक्स सहित अन्य संस्थानों से एक लाख से ज्यादा कीमत के कई एंड्रायड एलईडी टेलीविजन बिके।आनलाइनखरीदी के बावजूद इलेक्ट्रानिक्स, मोबाइल व कम्प्यूटर के कारोबारमें 5 करोड़ ...

  16. दैनिक जागरण की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  17. धनवर्षा से बौराया बाजार, भारी खरीददारी

  18. दैनिक जागरण-09/11/2015

  19. आनलाइनबाजार के बढ़ते कदम ने भी लोगों के बाजार में जाकर खरीदारी करने के शौक को नहीं दबा पाया, धनतेरस पर जमकर बाजार में धनवर्षा ... इलेक्ट्रॉनिक्स आइटमों में करीब 20 करोड़ से 30 करोड़ रुपये से अधिक कारोबारहोने का अनुमान है।

  20. धनतेरस पर 15 करोड़ का कारोबार

  21. अमर उजाला-09/11/2015

  22. विस्तृत रूप से एक्सप्लोर करें (379 और लेख)

  23. दैनिक जागरण की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  24. ऑनलाइन बाजार की हो गई दिवाली

  25. दैनिक जागरण-08/11/2015

  26. विशेषज्ञ अनुज अग्रवाल के अनुसार भारत में सालाना दो अरब का आनलाइन कारोबारहोता है और यह ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। बरेली की बात करें तो पिछले एक साल में तीस फीसद तक ऑनलाइन खरीदारी का ग्राफ बढ़ा है। अगर युवाओं की बात करें तो ...

  27. गेहूं व्यापार मुहूर्त के बाद चमकेगा

  28. दैनिक भास्कर-10/11/2015

  29. दीपावली मुहूर्त से गेहूं का कारोबारचमकेगा। वर्तमान में ... सोयाबीन वायदा डिब्बा, मुहूर्त दीपावली की शाम 6.30 बजे : आनलाइनट्रेडिंग वायदा डिब्बे में मुहूर्त के सौदे बुधवार की शाम 6 बजे से 8.30 बजे तक होने की खबर है। सोमवार को ...

  30. महंगाई की मार से नीरस रहा धनतेरस

  31. Divya Himachal-09/11/2015

  32. प्रदेश व्यापार मंडल के प्रधान सुमेश शर्मा का कहना है कि धनतेरस पर प्रदेश में 60 करोड़ का कारोबारहुआ है जो बीते वर्ष के मुकाबले कम है। कारोबारमें मंदी मार के चलते कारोबारीनिराश हैं।आनलाइनशॉपिंग कारोबारपर भारी प्रदेश ...

  33. Dainiktribune की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  34. धनतेरस पर गुलज़ार रहे धातु नगरी के बाज़ार

  35. Dainiktribune-09/11/2015

  36. स्टील, एल्युमिनियम, कांसा, पीतल, तांबा आदि के बर्तन बिके। कारोबारीनवीन कुमार, राजीव कुमार का कहना था, वैसे तो हर सामान बिकता है, लेकिन ज्यादातर लोगों ने रोज़मर्रा इस्तेमाल वाली आइटमें जैसे बाल्टी, टब, परात, गिलास, कुकर, ...


  1. Nai Dunia की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  2. Nai Dunia

  3. 'चीन के 40 फीसदी से अधिक आनलाइनउत्पाद नकली'

  4. Live हिन्दुस्तान-03/11/2015

  5. रपट में वाणिज्य मंत्रालय के हवाले से कहा गया कि देश का आनलाइनखुदराकारोबारसालाना 40 प्रतिशत बढ़कर पिछले साल 2,800 अरब युआन (442 अरब डॉलर) का हो गया। इस दौरान नकली उत्पादों का विनिर्माण और बिक्री इस क्षेत्र के लिए प्रमुख ...

  6. चीन में ऑनलाइन खरीदे गए 40 फीसदी प्रोडक्ट घटिया

  7. Nai Dunia-03/11/2015

  8. विस्तृत रूप से एक्सप्लोर करें (18 और लेख)

  9. देशबन्धु की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  10. देशबन्धु

  11. व्यापार मेले में 18 लाख से अधिक लोगों के आने की ...

  12. प्रभात खबर-09/11/2015

  13. कारोबारीआगंतुक मेले के टिकट आनलाइनभी खरीद सकते हैं. उन्होंने कहा कि अगले साल से सभी तरह के टिकटें आनलाइनभी उपलब्ध होंगे. इस साल का मेला 'मेक इन इंडिया' पर आधारित है. वरिष्ठ नागरिकों व विकलांगों के लिए 19 से 27 नवंबर के ...

  14. ABP News की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  15. ABP News

  16. भारत में स्मार्ट शहर उद्यमियों को धन उपलब्ध ...

  17. Zee News हिन्दी-06/11/2015

  18. मुंबई: प्रौद्योगिकी कंपनी माइक्रोसाफ्ट के प्रमुख सत्य नाडेला का कहना है कि कंपनी भारत के स्मार्ट शहरों में नयी पीढ़ी के सैकड़ों उद्यमियों को धन उपलब्ध कराएगी। वह देश में, विशेषकर आनलाइनखुदरा कारोबार (ईकामर्स) क्षेत्र में ...

  19. आज तक की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  20. अब ऑनलाइन खरीदें कार और बाइक

  21. आज तक-05/11/2015

  22. उन्होंने उम्मीद जताई है कि आटोमोबाइल सेग्मेंट के लिए उनके प्लेटफार्म के जरिए होने वाला कारोबारअगले दो साल में लगभग 13000 करोड़ रुपये हो जाएगा. स्नैपडील मोटर्स वेब, मोबाइल और एप प्लेटफार्म के जरिए उपलब्ध होगा. गौरतलब है कि ...

  23. खुशखबरीः अब बंपर छूट के साथ खरीद सकेंगे बाइक और ...

  24. Rajasthan Patrika-04/11/2015

  25. विस्तृत रूप से एक्सप्लोर करें (17 और लेख)

  26. नवभारत टाइम्स की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  27. ऑनलाइन सट्टा कारोबारमें 2 दर्जन गिरफ्तार

  28. नवभारत टाइम्स-20/10/2015

  29. पुलिस उपाधीक्षक (नगर) चक्रपाणि त्रिपाठी के अनुसार, ऑनलाइन सट्टे के इसकारोबारसे जुड़े लोग अपने ग्राहकों को आश्वस्त करने के लिए बकायदा चयनित किए गए नम्बर की रसीद भी दिया करते थे। पुलिस को मौके से ऐसी कई रसीदें भी मिली हैं।

  30. मथुरा में ऑनलाइन सट्टे का कारोबारकरते 2 दर्जन ...

  31. Samachar Jagat-20/10/2015

  32. विस्तृत रूप से एक्सप्लोर करें (5 और लेख)

  33. दैनिक जागरण की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  34. दैनिक जागरण

  35. देश भर में कैमिस्‍टों की हड़ताल : ऑनलाइन दवा ...

  36. एनडीटीवी खबर-14/10/2015

  37. ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ कैमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स दिल्ली के जंतर-मंतर पर दवा कारोबारियोंकी भीड़ तो जुटाने में कामयाब रहा, लेकिन बाजार पर उसका असर नहीं दिखा। कुछेक जगहों को छोड़कर दवा के दुकानदारों ने दुकानें खुली ...

  38. एसटीएफ ने 2 माह में पकड़े कई इनामी अपराधी

  39. Dainiktribune-08/11/2015

  40. उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क (एसटीएफ) ने पिछले दो महीने में कई दुर्दान्त और इनामी अपराधियों, मादक पदार्थों केकारोबारऔर लूट की घटनाओं में शामिल कुख्यात लोगों को पकड़ने में सफलता पायी है। प्रमुख सचिव (गृह) देबाशीष ...

  41. दैनिक जागरण की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  42. सहारनपुर में पूरी तरह बंद रहा दवा कारोबार

  43. दैनिक जागरण-14/10/2015

  44. उनका कहना है कि दवा के आनलाइन कारोबारसे युवाओं में नशे की लत बढ़ेगी। वहीं लाखों केमिस्ट व उनके सहयोगी बेरोजगार हो जाएंगे। अखिलेश मित्तल, जेबी ¨सह ने भी अपने विचार व्यक्त किये। नगर विधायक राजीव गुंबर ने दवा व्यापारियों ...

  45. दीवाली ऑनलाइन डील वाली

  46. Dainiktribune-07/11/2015

  47. लोगों की जेब से पैसा निकालने की चाबी ऑनलाइन कारोबारियोंके हाथ लग गई है। पिछले कुछ सालों से ट्रेंड देखने को मिल रहा है कि बाजार की कमान रिटेल व्यापार के हाथों से फिसल कर ऑनलाइनकारोबारियोंके हाथों में जा रही है।


  1. दैनिक जागरण की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  2. चन्दौसी में बंद रहा दवा का कारोबार

  3. दैनिक जागरण-14/10/2015

  4. चन्दौसी। आनलाइनफार्मेसी के विरोध में दवा विक्रेता व निर्माता सड़क पर उतर आये। कारोबारबंद रखने के साथ अखिल भारतीय युवा उद्योग व्यापार मंडल के युवा जिलाध्यक्ष आशुतोष मिश्र के नेतृत्व में फव्वारा चौक परआनलाइनफार्मेसी ...

  5. अमर उजाला की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  6. जूता कारोबारीके खाते से 48 हजार की आनलाइनशॉपिंग

  7. अमर उजाला-29/10/2015

  8. शहर के एक जूता कारोबारीसाइबर क्रिमिनल का शिकार बन गए। शातिर ठगों ने उनके खाते से 48 हजार रुपये की आनलाइनशॉपिंग कर ली। कारोबारीने बैंक में शिकायत की तो बैंक अधिकारियों ने उन्हें पुलिस के पास जाने की सलाह दी। गुरुवार ...

  9. आज तक की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  10. हाईटेक होंगे काशी के पुरोहित

  11. आज तक-18/10/2015

  12. काशी स्थित सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय 'पंडिताई कारोबार' में नोडल एजेंसी के तौर पर काम करेगा. यहां के करियर एंड गाइडेंस सेल की प्रभारी विनिता सिंह की भूमिका कोआर्डिनेटर की होगी. कंपनी ने एक पोर्टल तैयार किया है.

  13. दैनिक जागरण की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  14. आज बंद रहेंगे मेडिकल स्टोर, नड्डा ने कहा- नहीं ...

  15. दैनिक जागरण-13/10/2015

  16. इस संबंध में मंत्रालय के संयुक्त सचिव केएल शर्मा से जब 'दैनिक जागरण' ने पूछा तो उन्होंने जरूर स्पष्ट किया कि आनलाइनदवा कारोबारपूरी तरह से गैर कानूनी है। सरकार की ओर से इस पर कार्रवाई करने या इसके गैर कानूनी होने के बारे में ...

  17. ऑनलाइन बिक्री के विरोध में देश भर के 8 लाख ...

  18. गहरा-नवभारत टाइम्स-14/10/2015

  19. विस्तृत रूप से एक्सप्लोर करें (56 और लेख)

  20. Jansatta की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  21. ऑनलाइन रिटेलरों की दिवाली से मॉलों में मंदी

  22. Jansatta-30/10/2015

  23. इसमें कहा गया है कि खुदरा कारोबारियोंऔर सलाहकारों का मानना है कि आर्थिक मंदी, कमजोर राजस्व ढांचा, बिना खरीदे लौट जाने वालों की संख्या में बढ़ोतरी तथा विशिष्टता वाले मॉलों की संख्या में कमी से मॉलों का आकर्षण ...

  24. आल स्टार्स लीग : एक बार फिर आमने सामने होंगे ...

  25. Dainiktribune-06/11/2015

  26. वे न्यूयार्क के समयानुसार कारोबारीदिन की शुरूआत में करीब 9.30 बजे ओपनिंग बेल बजाएंगे। क्रिकेट आल स्टार्स लीग का उद्घाटन कार्यक्रम शनिवार को सिटी फील्ड में होगा और इसका दूसरा मैच 11 नवंबर को ह्यूसटन में होगा तथा 14 नवंबर ...

  27. Dainiktribune की आनलाइन कारोबार के लिए कहानी चित्र

  28. बैंकों के जरिये काला कारोबार

  29. Dainiktribune-20/10/2015

  30. बैंक ऑफ बड़ौदा की दिल्ली स्थित अशोक विहार शाखा पर फर्जी आयात के भुगतान के नाम पर लगभग 6,000 करोड़ रुपये के धनशोधन का आरोप लगा है। सीबीआई के मुताबिक इस काले धन को 59 खाताधारक कंपनियों की मदद से हांगकांग हस्तांतरित किया ...

  31. बंद नहीं होगा foodpanda, CEO सौरभ कोचर ने दिए बेबाक ...

  32. दैनिक भास्कर-28/10/2015

  33. 2012 में लॉन्च हुए Online& Mobile App बेस्ड फूड सर्विस foodpanda को लेकर कई दिनों से खबरों का बाजार गर्म था और लोग समझ रहे थे ... कमिशन बेस्ड रेवेन्यू मॉडल पर आधारित इस कारोबारमें ग्राहकों के लिए फूड डिलिवरी सर्विस फ्री मिलती है।

  34. ऑनलाइन खरीदारी कम, कपड़ा बाजार पर ज्यादा भरोसा

  35. दैनिक भास्कर-04/11/2015

  36. इसे देखते हुए कारोबारियोंने ब्रांडेड और नॉन ब्रांडेड कंपनियों के अलग-अलग रेंज में सिले हुए कपड़े मंगाए हैं। बेहतर खरीदारी की बदौलत इस दीपावली पर कपड़ा बाजार में करीब दो करोड़ रुपए काकारोबारहाेने की उम्मीद कारोबारियोंने ...



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