इतिहास पर उनका हर सुवचन हास्यास्पद है।अर्थशास्त्र पर उनके सारे तथ्य गलत हैं। विदेशनीति पर उनकी सिंहदहाड़ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक। चीन के खिलाफ जो मोर्चा उन्होंने खोल दिया है,वह न केवल नेहरु की ऐतिहासिक भूल की आत्मघाती पुनरावृत्ति है,बल्कि वाजपेयी की राजनयिक उपलब्धियों का गुड़ गोबर हैं।
पलाश विश्वास
Navbharat Times Online
राजनाथ सिंह दिल्ली में मिले मुस्लिम वोटरों से। कहा सॉरी... अगर हमसे कोई गलती हुई है तो माफ करें
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आदरणीय ईश मिश्र का जवाब आया है।उनका आभार।
उन्होंने लिखा हैः
उदितराज अपने रामराजी दिनों से ही एक धुर अवसरवादी और सत्ता लोलुप किस्म का व्यक्ति रहा है. जेयनयू में देवीप्रसाद त्रिपाठी का झोला ढोते हुए सीपीयम का झंडाबरदार था.1983 में त्रिपाठी के पतित होकर इंदिरा-ब्रिगेड में शामिल होने के उनके ज्सायातर चेले उधर-उधर भागना शुरू हो गये थे क्रेयोंकि वे राजनीतिक समझ से नहीं निजी संबंधों के आधार पर सीपीयम में थे. पिछले महीने अलीगढ़ एक सेमिनार में मुलाकात हुई और उसने मुझे दिल्ली तक अपनी लंबी गाड़ी में दिल्ली तक लिफ्ट दिया रास्ते में अपने एक समर्थक के घर गया. अपने समर्थकों को साथ उसा व्यवहार ऐसा था जैसे अंग्रेज हिंदुस्तानी कर्मचारियों के साथ करतो थे, बताया कि मायावती अपने पार्टी कार्यकताओं कोे नौकर-चाकर समझती है, मैंने मजाक किया कि इसीलिए तुम भी वैसा कर रहे हो तो बोला नहीं ये लोग श्रद्धा मे सम्मान करते हैं. पता नहीं किससे सुरक्षा के लिए उसे दो बंदूकधारी सुरक्षाकर्मी मिले हैं. रास्ते भर ड्रािवर और सुरक्षाकर्मियों को ऐसे डांटते आया जैसे वह सामंत हों और वे सब उसके नौकर. मुझे उसके भगवामय होने पर आश्चर्य नहीं हुआ. अलीगढ़ से दिल्ली तक मेरी दलित पक्षधरता की तारीफ करते हुए मुझे अपनी पार्टी में आने का प्रलोभन देता रहा. खैर, मैं तो एक साधारण जनपक्षीय शिक्षक हूंऔर मेरा काम अपनी सीमित शक्ति से जनवादी जनचेतना के प्रचार-प्रसार में योगदान करना है, बहुजन सत्ता के इन दलालों को खुद सबक सिखाएगा. इतिहास गवाह है कि संघ-परिवार एक दैत्याकार घड़ियाल है जो इन दलितवादियों को मनुवादी एजेंडे के निवाले में निगल जायेगा. हम वास्तविक वामपंथियों की औकात मोदी के फासीवादी अभियान को रोक पाने की नबीं है, इसलिए फिलहाल, जैसा पलाश जी ने कहा हमें केजरीवाल की बधिया बिखेरने से बचना चाहिए, यद्यपि वह भी कारपोरेटी राजनीति का ही पक्षधर है किंतु फिलहाल उसने मोदियाये गिरोह में बेचैनी पैदा कर दी है. आगे देखा जायेगा. वक्त पार्टियों से बाहर के वामपंथियों के लिए आतममंथन और संगठित होने का है. पलाश भाई, आप इतना और इतना अच्छा लिखते हैं.
संघ परिवार ने अपने लौह पुरुष लाल कृष्ण आडवाणी,देश की इसवक्त की शायद सबसे बेहतरीन वक्ता सुषमा स्वराज,तीक्ष्ण दिमाग अरुण जेटली जैसे दिग्गजों को ठुकराकर नरेंद्र मोदी की तर्ज पर जिस अदूरदर्शी व्यक्ति को भारत के भावी प्रधानमंत्री बतौर पेश किया है,वह देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के संवेदनशील मुद्दों में ऐसे उलझ रहा है,जिसकी मिसाल नहीं है।
उनका इतिहासबोध ऐसा कि कक्षा दो तीन में पढ़ने वाले बच्चों कोभी अवाक हो जाना पड़े।
उनकी वाक्शैली ऐसी कि प्रवचऩ फेल।संवाद के बजाय जैसे वे सामने के हर शख्स को डांट डपट कर एक ही सुर में रटंति मुद्रा में सबक सिखा रहे हों।
उनकी रैलियों के नाम ऐसे जैसे देशभर में राजसूय यज्ञ चल रहा हो और दसों दिशाओं में उनके अश्वमेध के घोड़े दौड़ रहे हों और हवा में तलवारें भांजते हुए खुली चुनौती दे रहे हों कि जिसने मां का दूध पिया हो मैदान में आकर दो दो हाथ आजमा लें।
जनादेश मांगने का अंदाजा उनका ऐसा,जैसे अपने इलाके का मस्तान हप्तावसूली पर निकला हो।इतना आक्रामक।इतना अलोकतांत्रिक।प्रतिपक्ष के प्रति न्यूनतम सम्मानभाव भी नहीं।
वे गुजरात का महिमामंडन करते हुए क्षेत्रीय अस्मिताओं का खुला असम्मान कर रहे हैं देशभर में,आजतक प्रधानमंत्रित्व के दावेदार किसी नेता ने ऐसा किया हो,साठ के दशक से मुझे याद नहीं है।हमने नेहरु,लोहिया और अंबेडकर को साक्षात नहीं देखा है और न सरदार पटेल को।
राजनीति का पहला सबक विनम्रता है।राजनेता बाहुबलि नहीं होता।गणतंत्र में उसकी हैसियत जनसेवक की होती है।
कांग्रेसी नेताों की बात तो छोड़ ही दें,आम तौर पर देशबर में लोग यह मानते हैं कि विचारधारा और धर्म कर्म चाहे जो हो संघी लोग बेहद विनम्र,संवाद कुशल और मीठे होते हैं।
संघ के प्रचारक से प्रधानमंत्रित्व के स्तर तक उन्नीत व्यक्ति में संघ परिवार के आम प्रचारक के बुनियादी गुण सिरे से गायब हैं।
अर्थशास्त्र का अभ्यास किये बिना अर्थशास्त्र पर जिस अंदाज में गुजरात माडल के दम पर वे बोलते हैं.ऐसी कुचेष्टा शायद सपने में भी वाजपेयी,आडवाणी,जेटली,राजनाथ और सुषमा स्वराज करें।
संघ परिवार का अपना राजनीतिक,सामाजिक,सांस्कृतिक,आर्थिक दर्शन हैं,हममें से बहुत लोग उस केशरिया दर्शन के कठोर निर्मम आलोचक हैं।लेकिन गणतंत्र में पक्ष प्रतिपक्ष को अपना घोषणापत्र,विजन,दर्शन और परिकल्पनाएं पेश करने का पूरा अधिकार है।
लेकिन तथ्यों से तोड़ मरोढ़ करने की इजाजत किसी गंभीर राजनेता को होती नहीं है। खासकर जो राष्ट्रीय नेतृत्व के दावेदार हों।
बाकी देश को गुजरात बनना चाहिए या नहीं,देश तय करेगा,लेकिन तथ्यों को तोड़ने मरोढ़ने की जो दक्षता मोदी दिखा रहे हैं,वह हैरतअंगेज हैं।
इतिहास पर उनका हर सुवचन हास्यास्पद है।अर्थशास्त्र पर उनके सारे तथ्य गलत हैं। विदेशनीति पर उनकी सिंहदहाड़ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक।
चीन के खिलाफ जो मोर्चा उन्होंने खोल दिया है,वह न केवल नेहरु की ऐतिहासिक भूल की आत्मघाती पुनरावृत्ति है,बल्कि वाजपेयी की राजनयिक उपलब्धियों का गुड़ गोबर हैं।
स्मरणीय है कि भारतीय संविधान का मसविदा बाबासाहेब अंबेडकर ने जरुर तैयार किया है,लेकिन उसको अंतिम रुप देने में सभी पक्षों का सक्रिय योगदान रहा है।सहमति और असहमति के मध्य भारतीय लोक गणराज्य का निर्माण हुआ।तो केशरिया विमर्श की अभिव्यक्ति के हक को हम खारिज नहीं कर सकते।
लेकिन भारतीय संविधान में घृणा अभियान की कोई गुंजाइश नहीं है।अपने समरसता के राष्ट्रीय दर्शन के बावजूद संघ परिवार की राजनीति का मुख्य हथियार असंवैधानिक अमानवीय हिंसा सर्वस्व घृणा ही है।मगर संघ परिवार के राष्ट्रीय नेता इस घृणा कारोबार के विपरीत उदार आचरण करते दीखते रहे हैं।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी जी की तुलना तो आज के संघी राजनेताों से की ही नहीं जा सकती,जो संघ और पार्टी के नेता बाद में थे,भारतीय नेता पहले,बल्कि संघ की आक्रामक केशरिया राजनीति का श्रेय जिन लालकृष्ण आडवाणी जी की है,वे भी अत्यंत संवाद कुशल, व्यवहारिक और संसदीय राजनेता हैं।
खास बात तो यह है कि संवेदनशील मुद्दों पर संघी नेताओं के मत भले बाकी देश से अलग रहे हों ,उन्होंने तथ्यों से खिलवाड़ करने की बाजीगरी से हमेशा बचने की कोशिश की है।
मसलन कश्मीर के मामले में, सशस्त्र सैन्य विसेषाधिकार कानून के बारे में संघ का पक्ष धर्मनिरपेक्ष भारत के प्रतिकूल हैं।वे धारा 370 का विरोध करते रहे हैं। श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु भी इसी विरोध के मध्य हुई। लेकिन कश्मीर या पूर्वोत्तर की संवेदनशील परिस्थितियों का विस्तार देशभर में करने की उनकी रणनीति शायद नहीं थी।
संघ परिवार का इंतजारी प्रधानमंत्री तो पूरे देश को या तो गुजरात का कुरुक्षेत्र बनाना चाहते हैं या फिर कश्मीर का कारगिल।
हम संघ परिवार के प्रबल विरोधी हैं।
हम जानते हैं कि धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का स्थायी भाव घृणासर्वस्व नस्ली सांप्रदायिक हिंसा है तो उसका सौंदर्यबोध अविराम युद्धोन्माद है।ऐसा युद्दोन्माद जिसमें भरपूर राजनीतिक हित हों,लेकिन राष्ट्रहित तनिक भी नहीं।
हम जनादेश निर्माण में हस्तक्षेप करने की हालत में कतई नहीं हैं लेकिन हम यह कभी नहीं चाहेंगे कि हिटलर जैसा कोई युद्धोन्मादी देश की बागडोर संभाले।गणतंत्र में अगर जनादेश उनके पक्ष में हो तो हम उस युद्धोन्मादी सत्ता के खिलाफ लड़ेगे।यकीनन लड़ेगे साथी।लोकतांत्रिक तरीके से लड़ेंगे।लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करते हुए जनादेश का सम्मान करते हुए लड़ेंगे साथी।
लेकिन उस संधिकाल से पहले यह बेहद जरुरी है कि स्वंभू राष्ट्रहितरक्षक संघ परिवार तनिक अपनी अंतरात्मा से कुछ जरूरी सवाल पूछ ही लें।हमें जवाब देने की जरुरत नहीं है।हम तो उनके महामहिमों से लेकर छुटभैय्यों की तुलना में नितांत साधारण प्रजाजन हैं,नागरिक भी नहीं पूरी तरह।लेकिन हर संघी अपनी अंतरात्मा से पूछें कि वे कितने पक्के राष्ट्रभक्त हैं।
स्वस्थ गणतंत्र के लिए बुनियादी मसला यही है कि नैतिकता की दुहाई देने वाला संघ परिवार अनैतिक कैसे है।
हम तो सिरे से नास्तिक हैं,लेकिन स्वस्थ गणतंत्र के लिए बुनियादी मसला यही है कि धर्मराष्ट्र के सिपाहसालार इतने धर्मविरोधी कैसे हैं।
राष्ट्रवादी संघपरिवार के प्रधानमंत्रित्व का चेहरा इतना राष्ट्रद्रोही कैसे है कि वे अरुणाचल में पूर्वोत्तर के राज्यों में गिने चुने संसदीयक्षेत्रों में कमल खिलाने की गरज से अटल बिहारी की गौरवशाली राजनय को तिलांजलि देकर नेहरु की तर्ज पर बाकायदा चीन के खिलाफ युद्धघोषणा कर आये।
अगर नमोमय भारत बन ही गया और परमाणु वटन उन्हींके हाथ में रहे तो कहां कब वे परमाणु बटन ही दाब दें, इसकी गारंटी तो शायद अब संघ परिवार भी नहीं ले सकता। पाकिस्तान के साथ ही नहीं, चीन समेत बाकी देशों के प्रति उनका यह युद्धोन्मादी रवैय्या भारत देश के लिए कितना सुखकर होगा,इसमें हमारा घनघोर संदेह है।
हमने इंतजारी प्रधानमंत्री की अरुणाचल यात्रा पर हिंदी में अबतक नहीं लिखा,लेकिन उसी दिन अंग्रेजी में लिखा था,क्योंक तत्काल पूर्वोत्तर को संबोधित करना फौरी कार्यभार था।उसका अनुवाद पेश करना जरुरी नहीं है,लेकिन हमारा आशय समझने के लिए वह प्रसंग संदर्भित है,उसके कुछ अंश पेश कर रहे हैं,पूरा पाठपढ़ने के लिए कृपया मेरा ब्लाग देख लें।
Please do not make a Kashmir in the North east,Mr Prime Minister in waiting!
We should welcome that Prime Ministerial candidate Narendra Modi condemned the recent attacks on students of the North East.But he kept silence on Armed Forces Special Power Act in attempt to harvest lotus in the excluded geography of the nation subjected to military repression and racial apartheid.
Modi opened his eye floodgates to sympathize with the killed young student in New Delhi,but he failed to express his support to Irom Sharmila.
May be,I might be wrong. I have no prejudice or pride.
I just failed to listen whether Mr Modi did say anything about Irom Sharmila`s prolonged hunger strike demanding to end the AFSPA rule in the North east.
I have doubts about the fertility potential of Hindutva despite the blooming lotus hype projected by media round the clock.
In Arunachal,his speech as the most potential prime ministerial candidate,perhaps as the next prime minister disappointed.His tone and text are exclusive in nature.
It has very serious security implications in the context of Indo Sino border dispute and in reference to non Hindu demography of the tribal mongoloid North East.
However,Narendra Modi tried his best to extend Gujarat to North East marketing his well branded hate campaign of high equity value provoking North Eastern sentiments.
It is very very dangerous.
It proves that the Hindutva brigade is not least concerned with the North East people and their fight against Delhi`s Military rule.
North East seems to be yet another Kashmir for the Shafron agenda which wants a complete geography without caring for either the history or the demography.It is Hindutva point of view n Kashmir reflected in Modi unilateral hate campaign in the North East.
It is blessing that the Hindutva failed to have any major impact in the North East despite its omnipresence in the largest state Assam under constant turmoil.
I am unaware of the fact whether Mr Modi did ever had any stand on NorthEast subjected to racial apartheid or military rule.
We,however,know Modi`s Sanghi policies on Kashmir.
For me, Modi seems to replicate Kashmir in the North East.
I am least concerned who would be the next prime minister as it would make no difference whatsoever as the polity is unofficially captured by bipolar Hindutva Politics with the reign always remaining in the hands of the ruling monopolistic hegemony.
Unless the system is not changed,no change is possible.
While our best of friends and activists countrywide joined Kejriwal Brigade and Mr Kejriwal has clarified that he in not against capitalism.
The total revolution seems to be aborted midway as the AAP thinks tanks have been indulged in wooing the foreign investors.
I feel quite disappointed for my respected dear friends whom I refrain to criticize as I know very well that we have to fight against the military rule, repression, displacement, destruction all round and economic ethnic cleansing just after the elections.
My wife Sabita had stopped to see TV news while Chandrashekhar was the prime minister just because of his socialist hypocricy.
I am afraid that provided Modi becomes the next prime minister we have to skip all fragments and forms of corporate media.Modi campaign has been transformed in an omnipotent hate campaign to provoke blind religious nationalism and we may not bear with.
Just go through the content and rethink about your option.
http://antahasthal.blogspot.in/2014/02/please-do-not-make-kashmir-in-north.html
बहरहाल चीन ने बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के 'विस्तारवादी सोच' वाले बयान को खारिज करते हुए कहा कि उसने किसी की एक इंच भी जमीन हड़पने के लिए कभी हमला नहीं किया।चीन को अरुमाचल का मसला नये सिरे से उठाने का अवसर दे दिया मोदी ने।
क्या संघपरिवार ने संवेदनशील सीमाक्षेत्र में भारत चीन सीमा विवाद को चुनावी मुद्दा बनाने की रणनीति बनायी है,यह सवाल पूछा जाना चाहिए।
चीन से संबंध सुधारने की अटल बिहारी वाजपेयी की निरंतर कोशिशों के परिमामस्वरुप आज 1962 के नेहरु के हिमालयी भूल से जो युद्ध हुआ,वह अतीत बन गया है,क्या संघ परिवार ने उस अतीत को दोहराने का ठेका नरेंद्र मोदी को दिया है,यक्षप्रश्न यही है।
हर राष्टभक्त को यह सवाल करना ही चाहिए कि संवेदनशील राष्ट्रीयसुरक्षा के मुद्दों को सत्ता संघर्ष का मुद्दा बनने देना चाहिए या नहीं।इससे पहले ऐसी मारत गलती किसी संघी नेता ने भी की हो तो हमें मालूम नहीं।
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने मोदी की टिप्पणी पर सवालों का जवाब देते हुए कहा, 'आपने चीन द्वारा विस्तारवादी नीति अपनाने का जिक्र किया है। मेरा मानना है कि आप सभी देख सकते हैं कि चीन ने दूसरे देश की एक भी इंच जमीन पर कब्जा करने के लिए कभी कोई युद्ध नहीं छेड़ा है।' उन्होंने कहा कि हम हमेशा कहते रहे हैं कि हम शांतिपूर्ण विकास पथ के जरिए वास्तविक कार्रवाई करते हैं और हम अच्छा पड़ोसी होने तथा सहयोगी संबंध के प्रति प्रतिबद्ध हैं।
उन्होंने 1962 के बाद चीन-भारत सीमा पर कोई बड़ा संघर्ष नहीं होने का जिक्र करते हुए कहा, 'सीमा से सटे इलाके में बरसों से कोई सशस्त्र संघर्ष नहीं हुआ है। इसलिए इस बारे में पुख्ता सबूत है कि वहां शांति बरकरार रखने में हम सक्षम हैं। यह द्विपक्षीय संबंध को आगे बढ़ाने के लिए बहुत अच्छी चीज है।'
हुआ ने कहा, 'यह न सिर्फ दो लोगों के लिए, बल्कि समूचे क्षेत्र के लिए अच्छा है। हम अपने भारतीय समकक्ष के साथ काम करने की उम्मीद करते हैं।'
गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी ने शनिवार को अरुणाचल प्रदेश के पासीघाट में एक रैली में कहा था कि चीन को अपनी 'विस्तारवादी सोच' रोकनी चाहिए।
हुआ ने मोदी की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा, 'सीमा के पूर्वी सेक्टर पर हमारा रुख साफ है। हम अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छा पड़ोसी और मैत्री संबंध विकसित करना चाहते हैं।' साथ ही हम वार्ता एवं परामर्श के जरिए प्रासंगिक विवादों और मतभेदों का हल करना चाहते हैं।
गौरतलब है कि चीन अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा होने का दावा करता है और यह दोनों देशों के बीच 4,000 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर विवाद का हिस्सा है। हुआ ने कहा कि फिलहाल चीन और भारत द्विपक्षीय संबंधों में अच्छी गति बनाए हुए हैं।
भारत के इंतजारी प्रधानमंत्री न केवल पूरे देश को गुजरात बनाना चाहते हैं,बलिक वे इस देश के हर हिस्से को कश्मीर विवाद में तब्दील करने का खतरनाक खेल खेल रहे हैं।
देश का जो होगा,वह होगा। हम मानते हैं कि भारत लोक गणराज्य है और जनादेश के तहत निर्वाचित सरकार को सत्ता सौंपने की जो स्वस्थ एकमात्र परंपरा है,उसका निर्वाह होना ही चाहिए।अतीत में 1977 में शंगियों ने केंद्र में गैरकांग्रेसवाद की आड़ में सत्ता संभाला है और अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में राजग गठबंधन ने भी पांच साल तक सत्ता की बागडोर संभाली है। राज्यों में संघी सरकारें इफरात हैं।सत्ता में जाने के बाद तो वाजपेयी को राजकाज के धर्म का निर्वाह ही करना पड़ा।
छुट्टा के बजाय बंधा हुआ सांढ़ कम खतरनाक होता है।सत्ता की जिम्मेदारियां संघ परिवार को खुल्ला खेल खेलने से रोक भी सकती हैं।
फिर लोकतंत्र में सभी विचारों का स्वागत होना चाहिए।
चेयरमैन माओ भी सहस्र पुष्प खिलने के पक्ष में थे।धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद पर कोई अकेली भाजपा का एकाधिकार नहीं है।
गुजरात नरसंहार के बरअक्श हमारे सामने सिख नरसंहार की मिसाल भी है।
लेकिन इतिहास साक्ष्य देगा और यकीनन देगा कि भले ही अमेरिका ने मोदी के प्रधानमंत्रित्व का अनुमोदन कर दिया है,भले ही कारपोरेट आवारा और दोस्ताना पूंजी दोनों नमोमयबारत निर्माण के लिए एढ़ी चोटी का जोर लगा रही हो,चाहे बाजार की सारी शक्तियां संघ परिवार के हिंदूराष्ट्र के पक्ष में लामबंद हो और मीडिया अति सक्रिय होकर रुक रुक कर हिमपात की तर्ज पर एक के बाद एक सर्वेक्षण प्रस्तुत करके मोदी के प्रधानमंत्रित्व की नींव ठोंक रहा हो,संघ परिवार ने देश का अहित किया हो या नहीं,अपने पांव कुल्हाड़ी जरुर मार ली है।
संघ परिवार के इतिहास में इतना अगंभीर,इतना बड़बोला,राष्ट्रीय सुरक्षा के संवेदनशील मुद्दों के प्रति इतने खिलंदड़ और आंतरिक सुरक्षा के मामले में इतने अगंभीर नेतृत्व की कोई दूसरी मिसाल हों तो खोजकर शोधपूर्वक हमें जरुर इत्तला दें।
हम गोवलकर जी की सोच के साथ असहमत रहे हैं।
हम सावरकर को राष्ट्रनिर्माता नहीं मानते।
हम श्यामा प्रसाद मुखर्जी के तीव्र आलोचक हैं।
हम दीनदयाल उपाध्याय के पथ को भारत का पथ नहीं मानते।
हम वाजपेयी जी के नरम उदार हिंदुत्व को कांग्रेसी धर्मनिरपेक्ष हिंदुत्व से कम खतरनाक नहीं मानते।
हम लालकृष्ण आडवाणी की मंडल जवाबी कमंडलयात्रा और नतीजतन बाबरी विध्वंस के लिए आजीवन कठघरे में खड़ा करते रहेंगे।
लेकिन इन नेताओं ने राष्ट्र हितों का ख्याल नहीं रखा हो,ऐसा अभियोग नहीं कर सकते।सांप्रदायिक राजनीति इन्होंने खूब की है।
सन बयालीस में वाजपेयी जी की भूमिका को लेकर विवाद है।लेकिन स्वतंत्र भारत में राष्ट्रनेता बतौर उन्होंने कोई गैर जिम्मेदार भूमिका निभायी हो,ऐसा आरोप अनर्गल ही होगा।
कुल मिलाकर राष्ट्रद्रोह का संघपरिवार में निजी विचलन और अपवादों के अलावा कोई राष्ट्रीय चरित्र नहीं रहा है।
इसी प्रसंग में स्मरणीय है कि बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भारतीयसैन्य हस्तक्षेप से पहले विश्व समुदाय में इसके पक्ष में समर्थन जुटाने की जिम्मेदारी श्रीमती इंदिरा गांधी ने आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को सौंपा था।
हिंद महासागर में सातवें नौसैनिक बेड़े की मौजूदगी के बावजूद अमेरिका के शिकंजे से बांग्लादेश की स्वतंत्रता के सखुशल प्रसव के लिए जितनी बड़े कलेजे का परिचय दिया इंदिरा गांधी ने,आर्थिक नतीजों से बेपरवाह रहने के लिए अशोक मित्र जैसे अर्थशास्त्रियों ने जो भरोसा दिलाया,युद्धक्षेत्र में तीन दिन में पाक सेना को आत्मसमर्पण के लिए बंगाल में नक्सलवादी चुनौती से निपट रही भारतीय सेना ने जो उपलब्धि हासिल की है,उससे कम वजनदार नहीं है अटल बिहारी वाजयेयी जी की राजनय।
अगर हम जैसे अपढ़ को आप इजाजत दें तो हम कहना चाहेंगे कि संजोग से अब भी जीवित और संघी हिंदू राष्ट्र में अप्रासंगिक बन गये माननीय अटल बिहारी वाजयपेयी जी ने भारतीय राजनय को जिस स्तर तक पहुंचाया,वहां से भारतीय राजनय की शवयात्रा ही निकली है।
मेरे दिवंगत पिताजी का वाजपेयी जी से आजीवन मधुर संबंध रहा है और उनकी राय वाजयपेयी जी के बारे में बदली कभी नहीं बदली।राजनीति में वाजपेयी के नेतृत्व को मैं शायद सौ में से दस नंबर भी न दूं,लेकिन बतौर भारत के राजनयिक प्रतिनिधि और इस देश के सबको लेकर चल सकने वाले प्रधानमंत्री बतौर हम वाजपेयी जी की भूमिका ऐतिहासिक मानते हैं।
अब वाजपेयी को भूलकर,लौहपुरुष रामरथी आडवानी को किनारे करके और सुषमा स्वराज की अनदेखी करके संघ परिवार भारत देश पर कैसा गैर जिम्मेदार प्रधानमंत्री थोंपने के लिए एढ़ी चोटी का जोर लगा रहा है,बाकी देश इस पर सिलसिलेवार विचार करें,इससे पहले नमोमय भारत निर्माण उत्सव मना रहे संघी इस पर सिलसिलेवार विचार कर ले तो वह राष्ट्र के लिए मंगलमय तो होगा ही और संघ की प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए अनिवार्य भी।
प्रतिक्रिया के लिए,फेसबुक वाल पर प्रासंगिक मंतव्य के लिए आभार
Jagbir Shorot If a country wants to be a powerful state than it has to act like one. War is the extension of political thought.
Palash Biswas North east is nort east and not kashmir and China did not share any borders with India ever. It was only that Nehru committed the folly of legalising the Tibet occupation by China. If India has a strong defence and the will of the politician then this too can be revoked. We have till date no long term planning in defense . China great wall was built in a over 12 centuries, but the idea stayed. As far as economics is concerned the world has shown that he has done wonders with the state. |
lagta ha yeh koi pakistani hindu ID banakar FACEBOOK par ha |
Abhay Kulshrestha He is just an actor and not able to understant or address any serious issue.
4:17am Feb 25 |
jaji jisane banai vahi jati tod sakkta hai tumhare kahnese jati nahi tutegi our netao ko gali dena band karo .unnone jitana samaj ke liye diya hai usase 1%bhi agar samaj ko de sako to aap unse bhhi bade ho.....ye yad rakhana jai bhi....
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Adm Burnwalदेश द्रोहियों का षड्यंत्र जो आपके होश उड़ा दे " on YouTube -https://www.youtube.com/watch?v=W13RlGtysa8..."आतंकवाद पर सवाल किया तो स्टूडियो छोड़कर भागे केजरीवाल" on YouTube -https://www.youtube.com/watch?v=lq-Bv0Ur514... Watch "Congress Party 'grand plan' with AAP explained Kejriwal fans please watch" on YouTube - https://www.youtube.com/watch?v=omQ3-EoHnSQ…
Gopikanta Ghosh Opportunism to extreme
Ketan Bhardwaj Chor Logo Sai Ky Ghabrana
Vidya Bhushan Rawat
The master-key to destroy Ambedkarism is the politics of ambition and negligence of most marginalised and minorities among the Dalit Bahujans. A politically non political movement as well as cultural renaissance is the only answer. Why blame one particular individual when there is a long history of such opportunistic alliances with Hindutva.
AAP wants to separate Kashmir from India
Aam Aadmi Party is hell bent on separating Kashmir from India. This party contains people who are anti-nationals including Kejriwal. Please watch this video ...
Pramod Ranjan
कंवल भारती कांग्रेस में, उदित राज भाजपा में। यह सूचना यह भी बताती है कि बहुजनों के क्षेत्रीय दल अपने योग्य लोगों को जगह देने में असफल हुए हैं। इन दलों में विचारधारा और सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर भारी पाखंड चल रहा है।
उदित राज को मेरे शुभाकामनाएं। मुझे उम्मीद है कि वे जहां भी रहेंगे, बुद्ध की शिक्षाओं को याद रखेंगे।
Arun Kumar Patel DALIT KA KA BUDH SE KOYI MATLAB NAHI HAI, SIRF OBC KO MURKH BANANE ME USE KARTE HAI
Harinarayan Thakurकुर्सी के आगे सारी विचारधाराएँ धरी की धरी रह जाती है.
Shri Kant But what makes it politically naive and indivudually oppourtunistic hence deplorable is that it is not an alliance on equal footings but an assimilation without political conditions or say . Assimilation of small fish in the tummy of big fish.
Venkat Sharma Very correct ,common understand about dr ambedkar is he iz the only emancipater of dalit alone.
Shamshad Elahee Shamsरोजी रोटी का सबको हक़ है ....चाहे कोई नीला हो लाल हो या पीला ..
Shri Kant Shams ji mujhe lagta hai lekin roti haq se khani chahiye begairatise nahi .
Chaman Lal
रामराज ने 'एक व्यक्ति' बतौर फुले-अम्बेडकरी विचारों की जमीन में 'उदित' होने का भरसक प्रयास किया लेकिन वह रामराज की गुलामी की दलदल से अपने मनो-मस्तिस्क को निकलने में कामयाब नहीं हो पाए ! - उनकी इस व्यक्तिगत असफलता पर हमें दुःख है ! 'राम' उनको शांति प्रदान करे !
साधू! साधू! साधू!
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Manoj Motghare, Parmjit Lal Bhangu, Gautam Rs and 14 others like this.
Manoj Motghareआखिर उदित राज वापस रामराज बन गया सत्ता पाने के लिए विचार को छोड़ने वोलोकी हश्र क्या होता है समाज को मालूम है
2 hours ago· Like· 2
Manoj Motghareराम दास से रामराज का सफ़र बाद में राम का विलाश तक
Dhammamitra Khoobraj Bauddh ram ne kbhi kisi ko shanti pradan ki hai chamanlalji,qyon bechare ko bad-dua de rahe ho.
Faisal Anurag
मित्तल जिंदल अम्बानी और टाटा के लिए आदिवासिओं के ज़मीन लूट और खनिज लूट का रास्ता झारखण्ड में खोलने वाले जयादातर नेताओं को भाजपा और कांग्रेस सहित अधिकांश क्षेत्रीय दल लोक सभा में उम्मीदवार बना रहे हैं. पिछले लोक सभा और इस बार के राज्यसभा में इनके उम्मीदवार जीत चुके है. मामला यह है कि खजाना खोलो और वोट लो और आदिवासिओं मूलावासिओं को ज़मीन और संस्कृति से बेदखल करो के मकसद से यह होगा और इसे लोग रोकेंगें या नहीं . यह चुनाव चुनौती है प्राकृतिक संसांधन पर स्वशासन के लिए संघर्षरत समूहों के लिए. इन्हें परास्त किये बिना झारखंड में सामजिक और आर्थिक इन्साफ हासिल नहीं किया जा सकता.
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Surendra Grover, Pushya Mitra, Neh Indwar and 31 others like this.
Vinod Bhaskarमेरी शुभकामनाएँ. हृदय से मैं उनके साथ हूं.
Harishankar Shahiबिलकुल लड़ना होगा, लेकिन प्रचार माध्यम से फैलाए जा रहे नशे से दूर रहते हुए.... राजनीति को अपना कैरियर विकल्प बनाना होगा..
7 hours ago· Like· 1
YS Gill Jan vikalp kaise banega? Sirf AAP ki bhasha aap jaisi hai. Pata nahin kab sabhi achche lok ekjut hotkar en lootaron ke khilaaf jang chedenge...
Bharat Doshi Aadivasi jage to hi
Ashok Dusadh
बेचारे ! उदित राज जी उनकी तो ड्यूटी लग गयी है मायावती और बीएसपी की आलोचना करना है ! पासवान जी लगता है थोड़ी शर्म हया बचा रखी है पूरा भाजपाई नहीं हुये है उदित राज जी की तरह ?
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Bamcef Bihar, Musafir D. Baitha, Salman Rizvi and 49 others like this.
Yashwant Singh Paswan Ji kabhi nahi ho payenge Bhaajpaayi
Dara Singh Dohareyकम से कम उ.प्र. की खटीक ब्रादरी के कुछ लोग जो बहुजन सोच रखते हैं, BSP के विरुद्ध नहीं जायेगें और सियार का रंग भी साफ हो गया, कुल मिलाकर सियार का रंग उतरने से बीएसपी फायदा जरूर होगा ।
Dara Singh Dohareyहमारे मित्र जो उ.प्र. की दलित राजनीति को उतना गहराई न समझते हों, उनको अपडेट करना चाहता हू कि जिस जाति ये व्यक्ति है उन लोगों का दलित राजनीति में कोई योगदान नहीं रहा, एक्का दुक्का को छोड़कर ।
रजक एकता जन चेतनाये वही सुबह शाम जय भीम बोलने वाले लोग हैं !! मैने तो पहले ही कहा था की अंबेडकर जी को दिल मे रख कर उनके आदर्शों को पूरा करो !! जय भीम बोल कर बदलने वाले गद्दार अभी बहुत से है पैसे के आगे भीम क्या !! राम भी पानी भरते हैं ये अब आपको दिख रहा होगा!!!
Vidya Bhushan Rawat shared The Times of India's photo.
The country will be truly democratised when we get rid of heroworshiping and destroy this celebrity culture.
Digest this: #RajyaSabha MPs Sachin Tendulkar and actress Rekha have spent "zero" rupee on development in their respective adopted areas in the last 2 years.
More details here: http://timesofindia.indiatimes.com/india/Sachin-Tendulkar-Rekha-spent-nothing-from-MP-development-fund/articleshow/30953274.cms?utm_source=facebook.com&utm_medium=referral
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Sudesh M Raghu, Sanjay Gajbhiye, Ajay Kumar and 17 others like this.
Noni Teron agree.....
Bankim Samaddar But on a lighter vein I would love to meet Rekha
9 hours ago· Like· 1
Ashok Kumar Sharma She looks ugly and over made up in real life. She is good only in photographs.
Raju Charles Please stop looking at the mirror!
Satya Narayan
बहस : अक्टूबर क्रांति और हिंदी का बौद्धिक विमर्श
Author: समयांतर डैस्क Edition : January 2014
फेस बुक पर, जो सामान्यत: छिछली बहसों, चरित्रहनन और अराजक अभिव्यक्तियों के साथ ही सघन आत्मप्रदर्शन व आत्ममुग्धा का सबसे बड़ा मंच है—इस बात की ताकीद यह बहस भी काफी हद तक करती है—पर कभी-कभी महत्त्वपूर्ण बहसें भी हो जाती हैं। कथाकार उदय प्रकाश और युवा एक्टिविस्ट व चिंतक कविता कृष्ण पल्लवी के बीच हुई यह बहस उन्हीं अपवादों में से है जो यहां कुछ संपादित रूप में दी जा रही है। बहस अधूरी ही है, अगर आगे बढ़ती तो कई और महत्त्वपूर्ण बातें उभरतीं पर उदय प्रकाश ऐसे मोड़ पर जब कि बहस ने गंभीर रुख ले लिया था, बिना कारण बताए अचानक चुप हो गए हैं। आशा करनी चाहिए वह बहस में जल्दी ही फिर लौटेंगे। फिलहाल हमारी हरचंद कोशिश रही है कि बहस का कोई भी महत्त्वपूर्ण अंश न हटे। स्थानाभाव के बावजूद इसे इतने विस्तार दे प्रकाशित किया जा रहा है। —संपादक
http://www.samayantar.com/facebook-debate-on-august-kranti-and-on-various-things/
बहस : अक्टूबर क्रांति और हिंदी का बौद्धिक विमर्श
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Amalendu Upadhyaya
स्वागत
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Jayantibhai Manani with Obcntpartyof India and 19 others
दोष न सपा का, न बसपा का, न भाजपा का, न कोंग्रेस का, न अपना दल का, जनता दल, न डीएमके, न शोषित समाज दल का है या न साम्यवादी दल का है. दोष सिर्फ ओबीसी समुदाय के पढेलिखे ओबीसी का है.
पढालिखा ओबीसी अगर अपने संवैधानिक अधिकारों से जानकार बनकर यादव, कुर्मी, लोधी, कुशवाहा, सैनी, प्रजापति, पाल, अंसारी, तेली, तम्बोली, विश्वकर्मा, लोहार, सोनार ये सब व्यवसायिक भेद भूल जाए और पक्षीय भेद भूलकर एकजुट होकर ओबीसी बन जाये तो लोकतंत्र में 54% ओबीसी के संवैधानिक अधिकारों को लागु करने से कोई रोक सकता है क्या?
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Sugan Chand Singaria, Shoshit Samaj Dal, Mukti Nayak Mulnivasi and 59 others like this.
Jayprakash Lodhiइसी तरह से होता रहेगा तो जाति समाज का विकाश नहीँ होगा ।
Drhira Alawa Jays u r right sir ji
Lal Chandra Yadav True
Ambalal Chauhan Hello Frnds !
FB Daily........25/2/2014
1.Sale/Buying of political ppl started on large scale in Gujarat & Bihar ! Money bags r open !...See More
Avinash Das
गंदी सियासतों ने बर्बाद जिंदगी की
जिसको बनाया रहबर उसने ही रहजनी की
सबकी नजर में बस मैं एक वोट लाजमी हूं
मैं आम आदमी हूं मैं आम आदमी हूं
#TahirFaraz ViA Pankaj Shukla
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Ashutosh Singh and 43 others like this.
Pankaj Shuklaये ताहिर फराज़ की ग़ज़ल है, भाई।
Avinash DasPankaj Sir, Corrected
Nilakshi Singh
दलित आंदोलन का लक्ष्य है जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सभी का समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना. अगर देश के कई राज्यों में सालों से सत्ता संचालन करने वाले दल में दलितों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है तो क्या समस्या है ?
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Shoshit Samaj Dal, Parmit Chhasiya, DrChandrashekhar Jadhav and 50 others like this.
Mahendra Yadavदलितों ने यूपी ही नहीं, बाकी देश मे भी उदितराज को स्वीकार नहीं किया..., तो ऐसे में अब वे किसी भी दल में जाएं, आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे उदित को भाजपा में भी महत्व बनाए रखना है तो दलित मुद्दे उठाते ही रहने होंगे....और ऐसा करते हैं तो अच्छा ही है। बसपाई तो चाहते हैं कि मायावती के अनुचरों के अलावा, सारे दलित नेता आत्महत्या कर लें, पर आत्महत्या के लिए हर कोई तैयार नहीं होता।
Mahendra Yadavउदित के नेतृत्व में कौन सा दलित आंदोलन चल रहा था, जिसके भटकने की चिंता जताई जा रही है...कोई था क्या उस आंदोलन में...नहीं..तो फिर चिंता क्यों...।चिंता वैसी हालत में होनी चाहिए, अगर बसपा का कोई नेता तकरीबन पूरी पार्टी लेकर कांग्रेस, बीजेपी या अन्य दल में मिल जाए और बसपा के अस्तित्व पर खतरा हो जाए....। यहां वैसी स्थिति नहीं है...वैसी स्थिति बीपी मौर्य के कांग्रेस में जाने से हुई थी...
Pankaj Kumarक्या इसी प्रतिनिधित्व के लिए उदितराज ने भाजपा ज्वाइन की?
रजक एकता जन चेतनाउदितराज की भाजपा से चुनावी तालमेल को लेकर निन्दा हो रही है ......................अवसरवादिता, विचारधारा से समझौता, सत्ता के लिए नैतिकता को ताक पर रख दिया है ...........................क्या यह सब निन्दा अकेले उदितराज की ही होनी चाहिए भाजपा की नहीं ?
Samta Sainik Dal
जवाहरलाल नेहरू युनिवरसिटी के प्रोफेसर एवं दलित चिंतक माननीय विवेक कुमारजी अभी ९ बजे एन.डी.टी.वी. के वैचारिक बहस में भाग ले रहे है.. यह बहस उदित राज और पासवान के बीजेपी प्रवेश के लेकर है.. कृपया सभी बहुजन साथियों से विनंती है की वे इस बहस को जरूर देखे.. जयभीम.
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Satya Narayan
आर्थिक संकट के भँवर में भयंकर रूप से फँसा पूँजीवाद अधिक से अधिक ग़ैर-जनवादी, दमनकारी और तानाशाहाना होता जा रहा है। सबप्राइम संकट से लेकर सार्वभौम ऋण संकट तक जिस तरह से दुनिया के तमाम देशों की पूँजीवादी सत्ताओं ने खुले तौर पर वित्तीय इज़ारेदार पूँजीपति वर्ग को बचाने के लिए प्रत्यक्ष हस्तक्षेप किया है, और जनता पर होने वाले सामाजिक सार्वजनिक ख़र्चों में कटौती करके लालच, लोभ और मुनाफ़े की हवस के चलते तबाह होने वाले बैंकों और वित्तीय संस्थानों को बचाया है, उससे उनकी पक्षधरता एकदम साफ़ हो गयी है। यूनान, पुर्तगाल, स्पेन से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस तक में सरकार की पूँजी-परस्त नीतियों के खि़लाफ़ छात्र-युवा और मज़दूर सड़कों पर उतर रहे हैं। मध्य-पूर्व में मौजूदा उथल-पुथल के लिए ऐतिहासिक सन्दर्भ तैयार करने का काम पूँजीवाद के असाध्य संकट ने ही किया है, क्योंकि उसने साम्राज्यवाद पर अरब देशों के तेल व प्राकृतिक गैस संसाधनों पर वर्चस्व स्थापित करने का दबाव बढ़ा दिया है। साम्राज्यवाद का बढ़ता दबाव देशी पतित बुर्जुआ सत्ताओं, नग्न दमन और ग़रीबी, बेरोज़गारी और महँगाई के खि़लाफ़ जनता के असन्तोष के साथ मिलकर अरब देशों में एक विस्फ़ोटक स्थिति पैदा कर रहा है। भारत और चीन जैसे देशों में कोई देशव्यापी उभार जैसी स्थिति तो नहीं है लेकिन मज़दूरों के आन्दोलनों की बारम्बारता बढ़ रही है। स्पष्ट है कि 20वीं सदी की क्रान्तिकारी समाजवादी सत्ताओं के पतन के बाद शुरू हुए हताशा, निराशा, अन्धकार और मिथ्या विकल्पहीनता के लम्बे दौर के बाद हम एक बेहद जटिल, दुरूह और दीर्घकालिक संक्रमणकाल की शुरुआत में प्रवेश कर रहे हैं। ऐसे में, बहुत से गहन-गम्भीर सवालों का जवाब देना आज देश की क्रान्तिकारी ताक़तों और परिवर्तनकामी छात्रों-युवाओं और मज़दूरों का कार्यभार बन जाता है। उसके बिना हम सिर्फ स्वतःस्फूर्त पूँजीवाद-विरोधी जनउभारों का जश्न मनाकर आगे नहीं बढ़ सकते। आज जो सबसे बड़ा सवाल हमारे सामने खड़ा है वह है बीसवीं सदी के समाजवाद के प्रयोगों की सफलताओं-असफलताओं के एक सुसंगत विवेचन का सवाल।
http://ahwanmag.com/archives/561
विकल्प की राह खोजते लोग और नये विकल्प की समस्याएँ
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The Economic Times
Politicians' new punching bag - media!
NBA objects to "unverified" and "highly defamatory" charges levelled against news channels by AAP leader Arvind Kejriwal and comments by Home Minister Sushilkumar Shinde threatening to "crush" the electronic media.
What do you think about politicians' recent attacks on media? Is this an attempt to start a genuine debate or is it just the election season or something else? Share your views and read more at: http://ow.ly/tYtqR
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Chandra Shekhar Joshi
रामविलास पासवान के खिलाफ सीबीआई जांच संभव- भाजपा में पासवान के जाने पर कांग्रेस की घेराबंदी http://www.himalayauk.org/
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Bijay Nand Dobhal, Narain Singh Rawat and 3 others like this.
Bijay Nand Dobhalक्या ? तोता फिर से पिंजरें मैं कैद हो गया ? जोशी जी --- मंत्री हरक सिंह रावत भी आजकल शराब पीकर उत्पात मचा रहा है ? इसके लिए भी तोता कुछ करेगा ?
BBC Hindi
छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में एक निलंबित पुलिस अधिकारी और उनकी पत्नी की मौत की न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं. मौत के हालातों के बारे में सरकार और पुलिस के अलग-अलग बयान हैं. http://bbc.in/1liHgIl
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Subhash Gautam
जन संस्कृति मंच
किताब पर हमले के खिलाफ एकजुट हों ...
दिनांक २१ फरवरी के दिन दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पाण्डेय की पुस्तकों के लोकार्पण के बाद वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेई के साथ उनके संवाद के दौरान कुछेक साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा व्यवधान डालने और हल्ला हंगामा खड़ा करने की हम घोर निंदा करते हैं. संवाद और बहस मुबाहसे से घबराए ये तत्व वास्तव में लोगों की आलोचनात्मक चेतना से डरते हैं और जोर-ज़बरदस्ती से अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाने में ही खुद को सुरक्षित समझते है .इन तत्वों के पास किसी भी साहित्यिक विमर्श को समझने की न सलाहियत है और न नीयत, उसमें लोकतांत्रिक हस्तक्षेप तो दूर की बात है .
पुस्तक मेले के ही दौरान पेंगुइन द्वारा वेंडी डोनिगर की पुस्तक की प्रतियां बाज़ार से हटा लिए जाने के विरोधस्वरूप १६ फरवरी के दिन आयोजित उक्त पुस्तक के पाठ के आयोजन के दौरान भी खुद को 'हिन्दू सेना' का सदस्य बताने वाले तत्वों ने व्यवधान डाला. इनमें से शायद ही किसी प्रदर्शनकारी ने डोनिगर की साढ़े छः सौ पृष्ठों की पुस्तक का मुंह भी देखा हो .शासन -प्रशासन की जिन एजेंसियों पर दायित्व है कि वे अभिव्यक्ति की आज़ादी के मौलिक अधिकार की रक्षा करें, उन्हें बगैर किसी दबाव में आए यह सुनिश्चित करना होगा. लेखक और बुद्धिजीवी ऐसे तत्वों के आगे न तो खामोश रहेंगे और न ही अभिव्यक्ति की आज़ादी के दमन को बर्दाश्त करेंगे.
प्रणय कृष्ण
महासचिव, जन संस्कृति मंच
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Jagadishwar Chaturvedi, Anita Bharti, Pramod Ranjan and 20 others like this.
Salman Arshad poori siddat se ham in tatwon ki majjamat karte hain, lanat in kayron par
2 hours ago· Like· 1
Anil Kumarहमारा दावा है हिन्दू सेना में बहुजन समाज के लोग ही होंगें। हाँ नेता कोई और होगा जो वहां नहीं होगा