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कभी खंजर बदले, कभी कातिल, हालात नहीं बदलते

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कभी खंजर बदले, कभी कातिल, हालात नहीं बदलते
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उत्तर प्रदेश में सत्ता के रथ पर सवार मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आधी
यात्रा पूरी कर चुके हैं, उनके द्वारा अब तक किये कार्यों की अब समीक्षा
की जा सकती है। अब उनके निर्णयों और नीतियों की तुलना बसपा सरकार की
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के निर्णयों और नीतियों से की जा सकती है।
शराब कारोबार को लेकर अखिलेश यादव और मायावती की नीतियों की तुलना करें,
तो लगता है कि खंजर और कातिल ही बदले हैं, हालात नहीं।
उत्तर प्रदेश की जमीन शराब का कारोबार करने के लिए बेहद उपजाऊ मानी जाती
रही है। 1990 के दशक में तो शराब कारोबारी उत्तर प्रदेश में पूरी तरह
हावी हो गये थे। हालात इतने बदतर हो गये थे कि शराब माफियाओं ने
शासन-प्रशासन से अलग अपना एक तंत्र स्थापित कर लिया था, जिसे अघोषित रूप
से सब कुछ करने की आज़ादी थी। माफियाओं के सशस्त्र गुर्गे आम आदमी के घरों
में घुस कर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों से बदतमीजी ही नहीं करते थे,
बल्कि किसी को भी हिरासत में लेकर पुलिस को सौंप देते थे और पुलिस
अधीनस्थ की तरह उनके आदेश का पालन करते हुए मुकदमा लिख कर किसी को भी जेल
भेज देती थी।
माफिया राज में आर्थिक हानि के साथ जनहानि भी होती ही रहती थी, पर
माफियाओं से कोई सवाल करने वाला तक नहीं था। उस वक्त लगता ही नहीं था कि
उत्तर प्रदेश कभी शराब माफियाओं के चंगुल से मुक्त भी हो सकेगा, ऐसे
माहौल में 28 अक्टूबर 2000 को उत्तर प्रदेश के राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री
बने, तो उन्होंने अपने मात्र 1 वर्ष, 131 दिन के अल्प कार्यकाल में ही
शराब माफियाओं की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी। सिंडिकेट को पूरी तरह तबाह कर
दिया और कड़े नियमों के साथ एक नई शराब नीति बनाई, जिससे सरकार को भी अधिक
आर्थिक लाभ होने लगा।
राजनाथ सिंह की बनाई नीति के तहत लॉटरी पद्धति चलती रही, उनके बाद 8
मार्च 2002 से 3 मई 2002 तक राष्ट्रपति शासन रहा, इसके बाद 3 मई 2002 से
29 अगस्त 2003 तक मायावती मुख्यमंत्री रहीं और फिर बसपा को तोड़ने के बाद
29 अगस्त 2003 को मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बन गये, जो 13 मई 2007 तक
रहे, इस बीच माफियाओं के मनोबल में उतार-चढ़ाव तो आते रहे, लेकिन शराब
नीति न बदलने के कारण माफिया पुनः हावी नहीं हो सके, लेकिन 13 मई 2007 को
मायावती पूर्ण बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता में लौटीं, तो फिर
उन्होंने माफियाओं को छूट देनी शुरू कर दी। मायावती ने राजनाथ सिंह
द्वारा बनाई गई शराब नीति पूरी तरह पलट दी और माफियाओं के दबाव में कई
बार शराब नीति बदली। मायावती के खुले आशीर्वाद के कारण गुरप्रीत सिंह
चड्ढा उर्फ पोंटी चड्ढा सबसे बड़े शराब माफिया के रूप में उभर कर सामने
आया और समूचे उत्तर प्रदेश में कुछ ही समय में छा गया।
मायावती के शासन काल में हजारों करोड़ के गोलमाल का खुलासा भी हुआ। जनहित
याचिका के रूप में प्रकरण सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा, लेकिन मायावती के
खुले संरक्षण और पोंटी चड्ढा के शातिर दिमाग के चलते वित्तीय वर्ष समाप्त
होने के कारण याचिका स्वतः निरर्थक हो गई।
मेसर्स ब्लू वॉटर इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड का 5 जून, 2007 को मात्र
10 लाख रुपए की लागत से पंजीकरण कराया गया था। पंजीकरण प्रमाण पत्र
रजिस्ट्रार मनमोहन जुनेजा ने जारी किया था, जिसमें कंपनी का मुख्यालय
जालंधर स्थित मकान संख्या- 15, मॉडर्न कालोनी में दर्शाया गया था।
स्थापना के मात्र एक माह बाद 7 जुलाई, 2007 से मेसर्स ब्लू वॉटर
इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड आबकारी कर वसूलने का काम करने लगी। धांधली
का क्रम और भी आगे बढ़ा। ब्लू वाटर इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड के
विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका पड़ने के बाद रायल ब्रेवरिजेज लिमिटेड
नाम की एक और संस्था सामने आई। इस कंपनी का पंजीकरण कंपनी 5 जून 2007 को
कंपनीज एक्ट 1956 के तहत जालंधर और लुधियाना के पते पर हुआ था।
ब्लू वॉटर इंडस्ट्रीज को उत्तर प्रदेश में आबकारी कर वसूलने का ठेका 7
जुलाई, 2007 को मिला और 10 जुलाई, 2007 को ही कंपनी बोर्ड ने विशेष
प्रस्ताव पारित कर के कंपनी का पंजीकृत कार्यालय मकान नं. 15, मॉडर्न
कालोनी, जालंधर, पंजाब से बदलकर मकान नंबर- 972 फेस- 3 बी- 2 मोहाली,
पंजाब कर दिया। जनवरी, 2009 को कंपनी बोर्ड ने विशेष प्रस्ताव पारित कर
के कंपनी का नाम ब्लू वॉटर प्राइवेट लिमिटेड से बदलकर रायल बेवरिजेज
प्राइवेट लिमिटेड कर दिया। इसके बाद पुन: इसके पंजीकृत कार्यालय का पता
बदलकर 62- 1, भाई रणधीर सिंह नगर, लुधियाना, पंजाब कर दिया गया। यह सब
सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका से बचने के लिए किया गया, ताकि कोर्ट
वादी ब्लू वॉटर इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड का पता ही खोजता रहे और पूरा
प्रकरण जहाँ का तहां दब जाये और हुआ भी वैसा ही।
जनहित याचिका में पहले ही वित्त वर्ष में 4000 करोड़ रुपए के आबकारी
राजस्व घोटाले का आरोप लगाया गया था। उस वक्त मेरठ व बरेली जोन का थोक व
फुटकर व्यवसाय पोंटी चड्ढा की कंपनियों के पास था। प्रदेश भर के देसी और
विदेशी शराब के थोक व्यापार पर भी पोंटी चड्ढा ग्रुप का ही कब्जा था।
मायावती शासन में 30 जून, 2007 को नई नीति घोषित की गई, जिसके चलते बिना
किसी टेंडर के प्रदेश के चार हजार करोड़ रुपए के सरकारी राजस्व की वसूली
का ठेका भी ब्लू वाटर इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड को दे दिया, जबकि इस
कंपनी का रजिस्ट्रेशन जालंधर, पंजाब में 5 जून, 2007 को ही पंजाब, हिमाचल
प्रदेश एवं चंडीगढ़ के कंपनी रजिस्ट्रार के समक्ष हुआ। मायावती सरकार का
अनुभवहीन कंपनी को ठेका देने का आशय मेसर्स ब्लू वॉटर इंडस्ट्रीज
प्राइवेट लिमिटेड को लाभ पहुंचाने का ही था।
बसपा सरकार ने 11 फरवरी, 2009 को नई आबकारी नीति बनाते हुए पूरे प्रदेश
को दो भागों में बांट दिया था। आगरा, वाराणसी व लखनऊ जोन में देसी शराब,
विदेशी शराब व बीयर की फुटकर दुकानों व मॉडल शॉप का व्यवस्थापन लॉटरी
पद्धति से बरकरार रखा, जबकि बरेली सहित मेरठ जोन को विशिष्ट जोन घोषित
करते हुए इसके व्यवस्थापन का दायित्व एक बार फिर उत्तर प्रदेश सहकारी
चीनी मिल संघ लखनऊ को सौंप दिया। सरकार ने 12 फरवरी 2009 को मेरठ जोन को
विशिष्ट जोन बना दिया, जिसमें मेरठ प्रभार, सहारनपुर प्रभार, मुरादाबाद
प्रभार व बरेली प्रभार के तहत कुल 17 जिलों को सम्मिलित किया गया। नई
आबकारी नीति लागू होने के बाद उप्र सहकारी चीनी मिल संघ ने शराब माफिया
पोंटी चड्ढा की नामी-बेनामी कंपनियों को हैंडलिंग एजेंट बनाकर विदेशी और
देसी मदिरा का थोक व्यापार सौंप दिया।
मायावती शराब कारोबारी गुरप्रीत सिंह चड्ढा उर्फ पोंटी चड्ढा पर पूरी तरह
मेहरबान थीं, जिससे यूपी में शराब के कारोबार पर पोंटी चड्ढा का एकछत्र
राज्य स्थापित हो गया था, उसके इशारे पर नीति बदल जाती थी। पोंटी ने
राजनाथ की बनाई लॉटरी नीति ही नहीं बदलवाई, बल्कि नवीनीकरण की परंपरा भी
शुरू करायी। वर्ष 2012 में विधानसभा चुनाव से पहले ही पोंटी को बसपा की
सत्ता में वापसी न होने का अहसास हो गया, तो उसने एक साल के शराब लाइसेंस
के नवीनीकरण की अवधि बढ़वा कर दो साल करा ली थी।
मायावती के संरक्षण के चलते पोंटी की बिना मर्जी के शराब का कोई भी
ब्रांड यूपी में मार्केटिंग नहीं कर सकता था। यूपी में उन्हीं शराब
कंपनियों का ब्रांड बिका, जिसने अपने ब्रांड की मार्जिन मनी के साथ कमीशन
भी पोंटी को दी, जिन कंपनियों ने मार्जिन मनी के साथ कमीशन देने से मना
किया, वो बंदी की कगार पर चली गई, अथवा बिक गई। जो ब्रांड सब से अधिक
बिकते थे, वे बाजार से गायब ही हो गये। पोंटी के कहर के चलते कई लोगों ने
अपनी फैक्ट्री युनाइटेड ब्रेवरीज के मालिक विजय माल्या को बेच दी, लेकिन
शुरू में पोंटी और विजय माल्या की बात नहीं बनी, तो पोंटी ने विजय माल्या
की कंपनियों की शराब की सप्लाई बंद करने का सिग्नल दे दिया, जिससे डरे
विजय माल्या को भी पोंटी चड्ढा के साथ समझौता करना पड़ा। सिगराम के
ब्रांड उत्तर प्रदेश में बिकते रहे, क्योंकि इस कंपनी ने शुरुआत में ही
पोंटी के सामने हथियार डाल दिए थे। अपनी झोली भरने को पोंटी ने हर तरह का
दबाव बनाया। नियम-कानून बदलवाये भी और खुल कर तोड़े भी।
अखिलेश यादव 15 मार्च 2012 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तो
अधिकांश लोगों को यही आशा थी कि मायावती शासन की शराब नीति को बदल कर
अखिलेश यादव पोंटी चड्ढा ग्रुप का आधिपत्य समाप्त कर देंगे, लेकिन पोंटी
चड्ढा ग्रुप ने जिस तरह माया राज के समय प्रदेश की आबकारी नीति को अपनी
सोच के अनुसार लागू कराया, उसे ही अब अखिलेश सरकार आगे बढ़ा रही है।
हालांकि 17 नबंवर 2012 को पैसे की भूख ने ही पोंटी चड्ढा को मिटा दिया,
लेकिन मौत के बाद भी शराब कारोबार पर पोंटी चड्ढा का राज कायम है। उसकी
कंपनियों का उत्तर प्रदेश के शराब कारोबार पर कब्जा ही नहीं है, बल्कि
उसकी बनाई नीतियों के आधार पर ही सब कुछ चल रहा है। हालांकि पोंटी की
हत्या के बाद शराब सिंडिकेट ने एक बार फिर सिर उठाने का प्रयास किया था,
लेकिन ऐसी सभी आशंकाओं को अखिलेश सरकार ने खारिज कर दिया। अखिलेश सरकार
को भी पोंटी ग्रुप पर पूरा भरोसा है। एक-दूसरे का साथ पाकर सरकार और
पोंटी ग्रुप दोनों खुश नजर आ रहे हैं।
ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ पोंटी ग्रुप को ही लाभ हुआ हो। प्रदेश के शराब
व्यवसाय पर पोंटी ग्रुप के कब्जे से पहले तक आबकारी से सरकार को लगभग
3500 करोड़ रुपयों राजस्व मिलता था, लेकिन पोंटी के शराब व्यवसाय में आते
ही आबकारी राजस्व 20000 करोड़ रुपये से ऊपर तक पहुँच गया। पहले आबकारी
नीति में एकमुश्त लाइसेंस फीस देने की भी शर्त लागू नहीं थी। दस फीसदी
लाईसेंस शुल्क जमा करने के बाद प्रत्येक तीसरे महीने शुल्क की अदायगी
होती थी। इस नियम को पोंटी ने बदलवाया और आबकारी नीतियों में बड़ा बदलाव
कराने के बाद केंद्रीय कृत करा लिया, इस नीति के चलते ही उसका एकछत्र राज
स्थापित हुआ। पोंटी चड्ढा के शातिर दिमाग का ही कमाल कहा जायेगा कि तमाम
शराब माफियाओं को किनारे कर वह अकेला माफिया बन गया।
अखिलेश सरकार ने पहली बार इसी वर्ष 2014 में आबकारी नीति की समीक्षा की।
उन्होंने कोई बड़ा परिवर्तन नहीं किया और मायावती द्वारा लागू नियमों को
ही आगे बढ़ा दिया। दो सालों के लिए शराब के दामों में बढ़ोतरी करते हुए
अपनी नई नीति को लागू कर दिया। फिलहाल प्रदेश के शराब व्यवसाय पर मृतक
पोंटी की कंपनियों का ही राज चल रहा है। दुकानें मनमाने तरीके से खोली
हुई हैं। धार्मिक स्थल, गंगा किनारे, अस्पताल के पास, स्कूल के पास, घनी
बस्ती में और राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे दुकान नहीं खोली जा सकती है,
पर इसमें से एक भी नियम का पालन नहीं किया जा रहा है। दुकान खुलने और बंद
होने के समय का पालन तो कभी नहीं किया जाता, जिसे शासन-प्रशासन गलती भी
नहीं मानता। शराब खुलेआम ओवर रेट बिक रही है। बिना होलो ग्राम के बिक रही
है। सरकार की अनुमति के बिना बाहरी राज्यों की शराब भी सरकारी दुकानों से
बेची जा रही है और सब से महत्वपूर्ण बात यह कि पोंटी ग्रुप की कंपनियों
के गुर्गे उत्तर प्रदेश में एक बार फिर पुलिस व आबकारी विभाग की टीम की
तरह छापा मारने लगे हैं, जो समूचे सिस्टम पर हावी होने का सटीक प्रमाण
है।
खैर, बात भ्रष्टाचार और आरोप-प्रत्यारोपों की नहीं, बल्कि नैतिकता की है।
पोंटी को आगे बढ़ाने वाली पूर्व मुख्यमंत्री मायावती अगर, गलत कही जा सकती
हैं, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी जवाब देने ही होंगे। मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव प्रदेश के विकास में पोंटी ग्रुप के साथ को जरूरी मानते हैं,
तो इस एक तर्क से मायावती पर लगे सभी आरोप स्वतः निरस्त हो जाने चाहिए।


बी.पी. गौतम
स्वतंत्र पत्रकार
8979019871

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