बंगाल में मोदी का विजय रथ थाम लेने का करिश्माई टोटका,लेकिन केशरिया लहर जोरों पर
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
वसंत पंचमी के अगले दिन कोलकाता में भाजपाई प्रधानमंत्रित्व के महाबलि दावेदार नरेंद्र मोदी की ब्रिगेड रैली है।31 जनवरी को सत्तादल तृणमूल कांग्रेस की रैली में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिल्ली दखल की अपील करते हुए साफ कर ही दिया कि वे कम से कम भाजपा के साथ किसी कीमत पर खड़ी नहीं होंगी।जाहिर है कि भाजपा नेतृत्व को यह संदेश पहुंच ही गया है और भाजपी अब राज्य में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए एढ़ी चोटी का जोर लगाने लगी है।
अब पांच फरवरी को मोदी की रैली में भीड़ चाहे सत्तादल या वामपक्ष के मुकाबले कम ही जुटे,लेकिन बंगाल में हिंदुत्व की लहर तेजी से बनने लगी है। माकपा ने पहले ही कामरेडों को बंगाल में धर्म कर्म की अनुमति दे दी है तो सत्तादल हर धर्म के पुरोहितों के मुताबिक आयोजनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही है।
अब लोग यह कहने भी लगे हैं खुलकर कि कांग्रेस को हटाकर भाजपा को लाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। इसे आप विशुद्ध राजनीतिक समीकरण कह सकते हैं।
लेकिन केशरिया लहर से इंकार किया नहीं जा सकता।कोलकाता पुस्तक मेले में पहलीबार सरस्वती पूजा के आयोजन को इस बदलते हुए माहौल का संकेत माना जा सकता है।
भाजपा की बात छोड़ें,वामपंथी नेता कार्यकर्ताओं को भी अपने हिंदुत्व का सबूद पेश करना पड़ रहा है। कभी सरस्वती वंदना को लेकर बवाल करने वाले लोग कोलकाता के सबसे बड़े सांस्कृतिक उत्सव पुस्तक मेला में भी सरस्वती पूजा का आयोजन करने लगे हैं।
निर्माणाधीन नमोमय भारत की प्रक्रिया ंबगाल में भीतर ही भीतर जोर पकड़ने लगी है। सर्वेक्षणों में लगातार भाजपा मतों में इजाफा दीख रहा है जो सत्तादल और विपक्ष के लिए तीसरे पक्ष की चुनौती के मद्देनजर सरदर्द का सबब बन गया है।
भाजपा भले ही सीटों के लिहाज से कोई दावा अभी करने की हालत में नहीं है, दीदी से सुलह के आसार टूटने पर बंगाल के सभी सीटों पर अगर भाजपा के उम्मीदवार खड़े हो गये ,तो मजबूत से मजबूत उम्मीदवार की किस्मत बन बिगड़ सकती है।
तृणमूल माकपा विभाजन में कांग्रेस का वजूद भी उसके गढ़ों में खतरे में हैं।
करीब करीब सभी सीटों में मतों का अंतर बहुत कम होता है और वाम शासन के दौरान भी मतों का अंतर चार पांच फीसद से ज्यादा नहीं होता था।अब जैसे कि भाजपा मतों का प्रतिशत दोगुणा तक हो जाने की संभावना प्रबल है तो कहना मुश्किल है कि किसको मनुकसान कितना होगा।
हिंदुत्व की चादर ओढ़े बिना बहुसंख्यकों के वोटों पर कब्जा बंगाल में भी अब मुश्किल दीख रहा है। इसी को समझते हुए माकपा ने विचारधारा को तिलांजलि देकर कर्मकांडी बन जाने का विकल्प चुनाव रणभेरी बजने से काफी पहले अपना लिया है तो सत्तादल के सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं है।
दोनों पक्ष प्रकाश्य में बंगाल में मोदी का असर न होने का दावा करते तो हैं लेकिन यह भी भूलना नहीं चाहिए कि वाम शासन के दौरान ही दमदम जैसे लालकिले में दो दो बार केशरिया झंडा लहराया।
अब ठीक से कोई यह दावा कर भी नही ंसकता कि मतों का प्रतिशत दोगुणा हो जाने के बावजूद बंगाल में केशरिया झंडा लापता क्यों रहेगा।
बहरहाल कोलकाता पुस्तक मेले में मोदी की ब्रिगेड रैली की पूर्वसंध्या पर बाकायदा मंडप सजाकर पुस्तमेला आयोजक गिल्ड ,जो कि पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में है,की ओर से सरस्वती वंदनाका आयोजन है।यही नहीं,पुस्तकप्रेमियों को पुस्तकों के साथ वसंत पंचमी पर मुफ्त मां सरस्वती का प्रसाद बांटने की तैयारी भी जोरों पर है।
यह भी कहा जा रहा है कि वसंत पंचमी को नहीं, बल्कि नरेंद्र मोदी की ब्रिगेड रैली के ही दिन यानी पांच फरवरी को ही पुस्तक मेले में सरस्वती पूजा होगी। कुछ लोग तो यह भी बता रहे हैं कि हो सकता है कि बंगाल में मोदी का विजय रथ थाम लेने का ही यह कोई करिश्माई टोटका हो।