कोलाहल होने दो।
चलना बिना किसी नेतृत्व, बिना किसी झण्डे, बिना किसी संगठन
दुनिया को शरीक होने का निमंत्रण
20 सितम्बर को कोलकाता में अलग अलग काॅलेजों के एक
लाख से ज्यादा छात्र बारिश में गाने गाते हुये सड़कों पर एकत्र
हो कर कई घण्टे चले।
एक बुजुर्ग कवि का कहना है कि कोलकता शहर को उन्होंने ऐसा कभी नहीं देखा।
ये चलना बिना किसी
नेतृत्व, बिना किसी झण्डे, बिना किसी संगठन की अगुआई के था।
''हौक.हौक.हौक हौकौलोराॅब'' - कोलाहल होने दो। जब
कई एक साथ बोलते हैं, उस भव्यता का रूप है कोलाहल। चुप्पी
और बोल के द्वन्द् को ये कोलाहल भेद देता है। ये कोलाहल
आनन्ददायक है, साथ ही अबूझ भी। एक के टैन्शन में कुछ ने
शामिल हो कर, कुछ के टैन्शन में लाख ने शरीक हो कर पूरे शहर
को, इन्टरनेट में करोड़ों को, और दुनिया.भर के सौ देशों में लोगों
को इस कोलाहल में खींच लिया।
''आमरा शैबई बोहिरागौतो''
- हम सब बाहरी हैं - के बिल्ले लगा कर छात्रों ने दुनिया को
अपने साथ शरीक होने का निमंत्राण दिया। अन्दर.बाहर के
विभाजन की भाषाओं को तहस.नहस कर दिया।
28 अगस्त कोलकाता की जादवपुर युनिवर्सिटी के
''विश्वविद्यालय उत्सव''का आखिरी दिन था। शाम को एक
छात्रा और उसके मित्र को अकेले में पा कर कुछ अन्य छात्रों ने
उनके साथ हिंसा की - डराया.धमकाया, मारपीट की, छात्रा
को जबरन हाॅस्टल के कमरे में ले गये और शारीरिक बदतमीजी
की। छात्रा ने अगले दिन उप कुलपति को शिकायत की और
पुलिस में एफ.आई. आर. दर्ज करवाई। वाइस चान्सलर बोला की
जांँच समिति बनाने में 15 दिन लगेंगे और बेहतर होगा कि इस
दौरान वह यूनिवर्सिंटी नहीं आयैं
छात्रा के साथ सहपाठी आये। सहपाठियों ने कहा कि जाँच
समिति तत्काल बनाई जाये और कार्यस्थल पर महिलाओं की
सुरक्षा के लिये जो दिशा निर्देश हैं उन्हें विश्वविद्यालय में लागू
किया जाये
इनके साथ और भी छात्रा जुड़ते गये। उप कुलपति के
कार्यालय के बाहर बैठ गये - फिल्में देखने.दिखाने लगे,
गाना गाने लगे, नये गीतों की रचना करने लगे, दीवiरों पे चित्र
बनाने लगे और ''कोलाहल होने दो''का गाना फैल गया। यह गीत
कुछ साल पहले बांग्लादेश के एक गायक ने रचा और गाया था।
16 सितम्बर की रात तक इस गीत को घूमते हुये 150 घण्टे
हो गये थे। उप कुलपति ने कमाण्डो पुलिस को बुलाया, लाइट
औफ करवाई और बेरहमी से छात्रों को पिटवाया।
अगले दिन छात्रा गिटार, वायलिन और माउथ ओरगन
बजाते हुये थाने के बाहर बैठ गये। पुलिस कंट्रोल रूम का नम्बर
उन्होंने इन्टरनेट द्वारा विश्वभर में फैला दिया। जगह जगह से
लोग पुलिस कंट्रोल रूम को फोन करने लगे।
एक रेडियो जाॅकी ने एक दो फोन की बातचीत एफ एम रेडियो
पर भी प्रसारित कर दी।
पुलिस हैरान। अगले दिन जब पुलिस युनिवर्सिटी गई तब
बिना हथियार थी। 20 सितम्बर को एक लाख छात्र सड़कों पर
चले तब भी पुलिस ने हथियार साथ रखने से परहेज किया।
जादवपुर के छात्रों का ये कोलाहल कई और विश्वविद्यालयों
में उठ रहा है। कोलाहल को बढने दो।
as narrated in Faridabad Majdoor Samachar of this Month
चलना बिना किसी नेतृत्व, बिना किसी झण्डे, बिना किसी संगठन
दुनिया को शरीक होने का निमंत्रण
20 सितम्बर को कोलकाता में अलग अलग काॅलेजों के एक
लाख से ज्यादा छात्र बारिश में गाने गाते हुये सड़कों पर एकत्र
हो कर कई घण्टे चले।
एक बुजुर्ग कवि का कहना है कि कोलकता शहर को उन्होंने ऐसा कभी नहीं देखा।
ये चलना बिना किसी
नेतृत्व, बिना किसी झण्डे, बिना किसी संगठन की अगुआई के था।
''हौक.हौक.हौक हौकौलोराॅब'' - कोलाहल होने दो। जब
कई एक साथ बोलते हैं, उस भव्यता का रूप है कोलाहल। चुप्पी
और बोल के द्वन्द् को ये कोलाहल भेद देता है। ये कोलाहल
आनन्ददायक है, साथ ही अबूझ भी। एक के टैन्शन में कुछ ने
शामिल हो कर, कुछ के टैन्शन में लाख ने शरीक हो कर पूरे शहर
को, इन्टरनेट में करोड़ों को, और दुनिया.भर के सौ देशों में लोगों
को इस कोलाहल में खींच लिया।
''आमरा शैबई बोहिरागौतो''
- हम सब बाहरी हैं - के बिल्ले लगा कर छात्रों ने दुनिया को
अपने साथ शरीक होने का निमंत्राण दिया। अन्दर.बाहर के
विभाजन की भाषाओं को तहस.नहस कर दिया।
28 अगस्त कोलकाता की जादवपुर युनिवर्सिटी के
''विश्वविद्यालय उत्सव''का आखिरी दिन था। शाम को एक
छात्रा और उसके मित्र को अकेले में पा कर कुछ अन्य छात्रों ने
उनके साथ हिंसा की - डराया.धमकाया, मारपीट की, छात्रा
को जबरन हाॅस्टल के कमरे में ले गये और शारीरिक बदतमीजी
की। छात्रा ने अगले दिन उप कुलपति को शिकायत की और
पुलिस में एफ.आई. आर. दर्ज करवाई। वाइस चान्सलर बोला की
जांँच समिति बनाने में 15 दिन लगेंगे और बेहतर होगा कि इस
दौरान वह यूनिवर्सिंटी नहीं आयैं
छात्रा के साथ सहपाठी आये। सहपाठियों ने कहा कि जाँच
समिति तत्काल बनाई जाये और कार्यस्थल पर महिलाओं की
सुरक्षा के लिये जो दिशा निर्देश हैं उन्हें विश्वविद्यालय में लागू
किया जाये
इनके साथ और भी छात्रा जुड़ते गये। उप कुलपति के
कार्यालय के बाहर बैठ गये - फिल्में देखने.दिखाने लगे,
गाना गाने लगे, नये गीतों की रचना करने लगे, दीवiरों पे चित्र
बनाने लगे और ''कोलाहल होने दो''का गाना फैल गया। यह गीत
कुछ साल पहले बांग्लादेश के एक गायक ने रचा और गाया था।
16 सितम्बर की रात तक इस गीत को घूमते हुये 150 घण्टे
हो गये थे। उप कुलपति ने कमाण्डो पुलिस को बुलाया, लाइट
औफ करवाई और बेरहमी से छात्रों को पिटवाया।
अगले दिन छात्रा गिटार, वायलिन और माउथ ओरगन
बजाते हुये थाने के बाहर बैठ गये। पुलिस कंट्रोल रूम का नम्बर
उन्होंने इन्टरनेट द्वारा विश्वभर में फैला दिया। जगह जगह से
लोग पुलिस कंट्रोल रूम को फोन करने लगे।
एक रेडियो जाॅकी ने एक दो फोन की बातचीत एफ एम रेडियो
पर भी प्रसारित कर दी।
पुलिस हैरान। अगले दिन जब पुलिस युनिवर्सिटी गई तब
बिना हथियार थी। 20 सितम्बर को एक लाख छात्र सड़कों पर
चले तब भी पुलिस ने हथियार साथ रखने से परहेज किया।
जादवपुर के छात्रों का ये कोलाहल कई और विश्वविद्यालयों
में उठ रहा है। कोलाहल को बढने दो।
as narrated in Faridabad Majdoor Samachar of this Month
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