जनादेश के अपहरण की युक्तियां
Author: राजेश कुमार Edition : September 2015
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Author: राजेश कुमार Edition : September 2015
विचार
"साठ हजार करोड़ दूं कि ज्यादा दूं… सत्तर हजार करोड़ दूं कि ज्यादा दूं… अस्सी हजार करोड़ दूं कि ज्यादा दूं… नब्बे हजार करोड़ दूं कि ज्यादा दूं … पचानवे हजार करोड़ दूं कि ज्यादा दूं … चलिए एक लाख पच्चीस हजार करोड़!"
- भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का आरा, बिहार, की जनसभा में 18 अगस्त 2015 को दिए भाषण का अंश।
एक लाख पच्चीस हजार करोड – एक! एक लाख पच्चीस हजार करोड़ – दो!! एक लाख पच्चीस हजार करोड़ – तीन!!!… यह प्रधानमंत्री ने नहीं कहा था। बरबस ही पुरानी फिल्मों के नीलामी के कई दृश्य याद आ गए थे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी याद आए होंगे और उनके नए-नए साथी राजद के नेता लालू प्रसाद यादव को भी। नीतीश और लालू प्रसाद ने कहा भी कि ऐन चुनाव के मौके पर प्रधानमंत्री दरअसल बिहार की और बिहार के मतदाताओं की बोली लगा रहे हैं।
प्रधानमंत्री को नीलामी के फिल्मी दृश्य दोहराने की जरुरत भी नहीं थी, वह पहले ही अपनी घोषणा को प्रहसन में बदल चुके थे। लोकसभा चुनावों के दौरान अपनी ताबड़तोड़ रैलियों में भी उन्होंने कई वादे, कई घोषणाएं की थीं – अब जैसे कि यही कि केंद्र में उनकी सरकार बनी तो वह विदेशों में जमा देश का काला धन वापस लाएगी और हर भारतीय के बैंक खाते में 15-20 लाख रुपए जमा कर दिए जाएंगे। उनकी सरकार बनी और करीब साल भर तक इस वादे ने तब तक उनका पीछा किया, जब तक उनके गुजरात के दिनों से दांया हाथ बने और भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने यह नहीं कह दिया कि वह तो बस एक चुनावी जुमला था। लेकिन 18 अगस्त को प्रधानमंत्री ने अपने सिपहसालार को यह मौका भी नहीं दिया – खुद ही घोषणा की और खुद घोषणा के अपने अंदाज से ही उसे प्रहसन में भी बदल दिया। प्रहसन इसलिए भी कि प्रधानमंत्री अपने अंदाज से बता रहे थे कि वह सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत से बंधी किसी सरकार के सर्वोच्च नेता नहीं, बल्कि किसी मध्यकालीन बादशाह से कम नहीं हैं। किसी राज्य या वहां की जनता को कुछ देने का मामला किसी सरकारी प्रक्रिया का मुंहताज नहीं है और इसलिए पूर्व-निर्धारित नहीं है, बल्कि सब कुछ ठीक उसी क्षण उस सभा स्थल पर मंच से बरसती उनकी दयानतदारी और पंडाल से पुकार लगाती जनता की इच्छा या उसकी संतुष्टि पर निर्भर है, खासकर तब जबकि दो-ढ़ाई महीने में ही वे लोग सूबे में पांच साल के लिए उनका और उनकी पार्टी का भाग्य तय करने जा रहे हों। इससे आगे के पेजों को देखने लिये क्लिक करें NotNul.com