14 सितंबर 2015
आहारऔरविचारपरप्रतिबंधकेबीचपिसतीआज़ादी
असहिष्णुताकभी सामाजिकजीवनकेकिसीएकक्षेत्रमेंसीमित नहींरहती बल्किविभिन्नक्षेत्रोंमेंसमानांतर रूपसेफैलतीहै।महाराष्ट्रमेंसत्तामेंबैठीभाजपाकेबहुमतवालीसरकारनेकुछमहीनोंपहलेबीफबेचनेऔरखानेपरप्रतिबंधलगायाथा।इसफैसलेनेमांस उद्योगसेजुड़ेकामगारोंकेसामनेरोजगारकासंकटपैदाकरदिया।मुंबईकेसबसेबड़ेदेवनारबूचड़खानेकेकामगारबेरोजगारीकीमारसेछटपटारहेहैं।
इसकेबादमहाराष्ट्रसरकारकाएकऔरफरमानआयाकिसरकारयाजनप्रतिनिधिकीआलोचना,देशद्रोहसमझाजाएगा।यहअभिव्यक्तिकीआज़ादी, असहमतिकेस्वरऔरबुनियादीलोकतांत्रिकअधिकारोंपरपूरीतरहअंकुशलगानेकीकोशिशहै।इससेपहलेमहाराष्ट्रमेंअंधविश्वासकोचुनौतीऔरवैज्ञानिकदृष्टिकोणकोबढ़ावादेनेवालेदोप्रमुखबुद्धिजीवीऔरविचारकडॉ. नरेंद्रदाभोलकरऔरकामरेडगोविंदपंसारे (जोएकराजनैतिककार्यकर्ताभीथे) कीहत्याएंहोचुकीहैं।पड़ोसकेकर्नाटकमेंहम्पीकीकन्नड़यूनिवर्सिटीकेपूर्वकुलपतिऔरप्रख्यातविद्वान डॉक्टर कलबुर्गीकोभीमौतकेघाटउताराजाचुकाहै।
इसीबीच, मीराभयंदरम्युनिसिपलकॉरपोरेशननेआठदिनोंकेजैनपर्वपर्यूषणकेदौरानअंडावमछलीकोछोड़कर,मांसाहारीखानेपरप्रतिबंधलगानेकाफैसलाकियाहै।मुंबईकॉरपोरेशनकेतहतआनेवालेमुंबईकेइलाकोंमेंयहप्रतिबंधचारदिनरहेगा।इसफैसलेकेपीछेभाजपाकीअहमभूमिकाहै।देशऔरमहाराष्ट्रमेंसांप्रदायिकराजनीतिकेउभारकेसाथ-साथप्रतिबंधवालेदिनोंकीसंख्याबढ़तीगईहै।पहले 60 केदशकमें पर्यूषण केदौरानमांसाहारीखानेपरएकदिनकाप्रतिबंधरहता थाजो 90 केदशकमेंबढ़करदोदिनका होगया।अबमुंबईमेंयहचारदिनऔरमीरारोड-भयंदरइलाकेमेंआठदिनोंकाहै।दिलचस्पबातयहहैकिअंड़ाऔरमछली, जिन्हें भी जैननहींखाते, कट्टरपंथियोंकेकोपसेबरीहैं। ये कट्टरपंथी अपनीभावनाएंदूसरोंपरथोपनेकोहीअपनासबसेबड़ाधर्मसमझतेहैं।क्याअगलाप्रतिबंधहमलहसुनऔरप्याजपरलगानेजारहेहैं? इनसेभीतोजैनसमुदायकेलोगपरहेजकरतेहैं।
वैसेयहपूरादेशहीप्रभावशालीताकतोंकीखानपानसेजुड़ेरूढ़िवादकाशिकाररहाहै।मुंबईमेंऐसीहाउसिंगसोसाइटीहैंजहांमांसाहारीलोगोंकोरहनेकीअनुमतिनहींहै।गुजरातकेअहमदाबादमेंतोएकबड़ीदिलचस्पचीजनजरआई।मैंएकदोस्तकेयहांठहराथाजोकिराएके मकान मेंरहतेथे।अचानक,एकसुबहजबहमचायपीरहेथे, मकान-मालिकआयाऔरसीधेकिचनमेंघुसगया।कुछदेरबादवहवहांसेचलागया।मैंहैरानरहगया।मेरेमित्रनेमुझेसमझायाकियहऔचककिचननिरीक्षणथा, यहदेखनेकेलिएकिकहींनॉन-वेजतोखायायापकायानहींजारहाहै।आपकोमालूमहोगाकि खाड़ीकेकईदेशोंमें, जहांइस्लामकेनामपरशेखतानाशाही चलाते हैं, रमजान केदिनोंमें एकतरहकाफूड-कर्फ्यूलगजाताहै।गैर मुसलमानों या उन मुसलमानों जो रोज़े नहीं रखते के लिए खाना जुटाना मुश्किल हो जाता है। लेकिनविविधतावालेसमाजमेंकिससमुदायकीभावनाओंकादबदबाकायमरहेगा, यहएकजटिलप्रश्नहै।मिसालकेतौरपरभारतमेंरमजानकेदौरानशराबपरपाबंदीनहींहै।
हमारेजैसेविविधतावालेसमाजमेंखानपानकीआदतोंकोकैसेनियंत्रितकियाजासकताहै? पहलेभीकईराजाअल्पसंख्यकोंकीभावनाओंकाआदरकरतेथे।जबजैनप्रतिनिधियोंनेअकबरसेगुहारलगाईतोकुछसमयकेलिएमांसाहारीभोजनपरप्रतिबंधलगायागयाथा।बाबरनेतोअपनीवसीयतमेंबेटेहुमायूंकोयहनिर्देशदियाथाकिहिंदूभावनाओंकाख्यालरखतेहुएगौवधकीइजाजतन दीजाए।जाहिरहै, हर धर्मकीबुनियादीसीखयहीहोतीहैकिसमाजमेंदूसरेलोगोंकीभावनाओंकाआदरकियाजाए।लेकिनक्यायेबातेंधर्मोंकोमाननेवालेलोगअपनेजीवनमेंउतारपातेहैं? अपनीपसंद-नापसंददूसरोंपरथोपनातोसामाजिकदबंगईकाप्रतीकहै।सांप्रदायिकपार्टियांअपनेवोटबैंकको बचाने औरसामाजिक-राजनैतिकएजेंडेको लागू करने के लिए यहमानकरचलतीहैंकिउन्हेंऐसाकरनेसेकोईनहींरोकसकता।
एकलोकतांत्रिकसमाजकिसतरहसेचलनाचाहिए, एकस्तरपरयहकाफीपेचीदासवालहै।होनातोयहचाहिएकिलोगएक-दूसरेकीभावनाओंकासम्मानकरें।इसतरहकीपाबंदियांअपनीमर्जीसे लागूहोनीचाहिए।यहीतोमहात्मागांधीनेबार-बारहमकोसिखाया।चाहेधार्मिकप्रथाहोयाखानपानकीआदत, उनकीराहस्पष्टथी।बगैरदूसरोंपरथोपे, अपनीराहचलोक्योंकिअपनेविचारदूसरोंपरथोपना,आलादर्जेकीहिंसाहै।गौमांससेवनकेबारेमेंगांधीनेलिखाहै, मेरामाननाहैकिअगरमुस्लिमचाहतेहैंतोउन्हें गौवधकीपूरीआज़ादीहोनीचाहिएबशर्तेसाफ-सफाईकापूराध्यानरखाजाएऔरइसप्रकारकिपड़ोसीहिंदुओंकीभावनाओंकोआघातनपहुंचे।मुस्लिमोंकीगौवधकीस्वतंत्रताकोपूरीतरहस्वीकारकरना,सांप्रदायिकसद्भावकेलिएअपरिहार्यहैऔर यहीगायकोबचानेकाएकमात्ररास्ताहै।
अरुणाचलप्रदेशसेकेरलऔरपंजाबसेगुजराततक, हमारेदेशमेंखानपानकीविविधऔरसमृद्धपरंपराहै।संप्रदायवादऔरहिंदूधर्मकेनामपरराजनीतिकेउभारकेसाथहीअसहिष्णुता बढ़ रही है।मांसबिक्रीपररोकलगानेवालाजैननेतृत्वकायहवर्गभाजपाकेकरीबहै।हमारेसामाजिक-सांस्कृतिकजीवनकेसभीक्षेत्रोंकेलिएभाजपाकेपासएकएजेंडाहै।बीफपरप्रतिबंध,विभाजनकारीराजनीतिकोधारदेनेकीएकसोची-समझीसाजिशहै, जिससेसमुदायोंकेबीचधुव्रीकरणतेजहोताहै।सन 1946 मेंबनी वी. शांतारामकीफिल्मपड़ोसीयादकीजिए।दोहिंदू-मुस्लिमपड़ोसीएक-दूसरेकीभावनाओंकासम्मान करतेहैं।पुरानेसमयकेऐसेतमामकिस्से-कहानियांहैंजबसमुदायोंकेबीचसौहार्दथा एक-दूसरेकीरस्मों-रिवाजोंको मनाया जाता था न कि सिर्फ बर्दाश्तकिया जाता था। हरेकस्तरइसीसम्मिश्रणनेहमेंविविधतापूर्णऔरबहुलतावादीविरासतदीहै।देशमेंविविधताकाजश्नमनानेकीसंस्कृतिऐसीहीबनी।
लेकिनप्रतिबंधसेजुड़ेमुद्देअबखाड़ीदेशोंमेंइस्लामिकऔरभारतमेंहिंदुत्वपहचानकीराजनीतिकाअनिवार्यअंगबनगएहैं।दुखदहैकिहमारालोकतांत्रिकसमाजइसमेंजकड़ताचलाजारहाहै।पिछलेएकसालसेयहदमघोंटूरवैयाहमारीलोकतांत्रिकआज़ादीकीबेड़ियाँबनताजारहाहै।यहआगेबढ़नेकेबजायपीछेलौटनेकीतरहहै। क्या हम एक ऐसा देश बनना चाहते हैं जहाँधर्मकेनामपरआज़ादीकोदफनकियाजाताहै। (लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)