बंगाल सरकार के शहरीकरण नई नीति ऐलान में प्रोमोटर राज निरंकुश,पीपीपी गुजरात माडल के लिए यह पहल बेदखली के लिए
सिंगुर आंदोलन की वजह से नैनो कारखाना गुजरात स्थानांतरति करने के बाद बंगाल में फिर रतन टाटा की वापसी के मौके पर फिर नया विवाद
एक्सकैलिबर स्टीवेंस
सिंगुर की अधिग्रहित जमीन अभी टाटा मोटर्स ने नहीं छोड़ी है और बार बार वे दोहराते रहे हैं कि बंगाल में निवेश करना और सिंगुर में प्रोजेक्ट चालू करना उनका मकसद है। बंगाल में मां माटी मानुष सरकार की ओर से नये शहरीकरण नीति के तहत पुराने मकान तोड़कर नये निर्माण पर सौ फीसद छूट के अलावा ग्रीन आवासीय परिसरों के लिए भी टैक्स में छूट का ऐलान किया गया है।वामपक्ष के मुताबिक यह निरंकुश प्रोमोटर राज का प्रारंभ है।जबकि बंगाल के पौर व शहरीकरण मंत्री का दावा है कि नई शहरीकर नीति के नतीजतन गुंडाराज और सिंडिकेटराज खत्म होगा।गौरतलब है कि बंगाल में शहरी इलाकों में वाम अवाम निरपेक्ष गुंडाराज और सिंडिकेटराज शहरी संस्कति है सत्ता की।
दरअसल यह शहरीकरण नई नीति कुछ और नहीं है।यह नंदीग्राम सिंगुर मोड से निकलने की मां माटी मानुष सरकार की जान बचाओ कवायद है।इस सिलसिले में जनवरी में ही बिजनेस स्टैंडर्ड में एक रपट छप चुकी थी,जो इस आलेख के साथ नत्थी भी है।भूमि अधिग्रहण का विरोध मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भारी मजबूरी है क्योंकि सिंगुर नंदीग्राम भूमि आंदोलन बजरिये दीदी का ताजा यह स्टेटस है। लेकिन तीन साल बीत गये और जिन बाजारी तत्वों ने वाम अवसान के जरिये दीदी को सत्ता में पहुंचाया है,उनके सब्र का बांध टूटने लगा है।बंगाल में केसरिया प्रलय के मखोमुखी हैं दीदी और जो पूंजी अबतक दीदी से उम्माद करी रही थी,उसे नरेंद्र मोदी के स्थायित्म में दांव लगाना माफिक नजर आ रहा है।
बंगाल में औद्योगीकरण और कारोबार की बदहाली के आलम में कोई बदलाव लेकिन इन तीन सालों में आया नहीं है। निवेशकों के यक्ष प्रश्न जमीन अधिग्रहण पर फोकस है।पीपीपी गुजराती माडल भी राज्य सरकार की धूम अधिग्रहण नीति के कारण भी बेमतलब है क्योंकि बिना जमीन निवेश के लिए देशी विदेशी कंपनियां कतई तैयार नहीं है।जिन्होंने निवेश किया वे मैदान छोड़कर भागने लगे हैं और बाकी लोग श्रमिक अशांति का माहौर बनाकर एक के बाद एक इकाइयां बंद करते जा रहे हैं।इंतजार की इंतहा हो गयी और विधानसभा चुनावों की भारी चुनौती है।
बाजार को खुश करने केलिए दीदी ने बिना भूमि अधिग्रहण नीति में तब्दील किये शहरीकरण नई नीति के जरिये सांप मारने की कोशिश की है।
दरअसल वाम जनमाने में और बाकी देश में भी कांग्रेस भाजपा और दूसरी सरकारों के नवउदारवादी जमाने में औद्योगीकीकरण कहीं हुआ नही है।औद्योगीकरणके नाम पर,विकास के नाम पर उत्पादन प्रणाली को ध्वस्त करने वाली शहरीकरण सुनामी है,जिसके आधारस्तंभ हैं सेज,महासेज,स्वर्णिम चतुर्भुज,औद्योगिक गलियारा, स्मार्ट सिटी,एक्सप्रेसवे,बुलेट ट्रेन,बुलेट हीरक चतुर्भुज जो दरहकीकत शहर बसाने के लिए देहात भारत के साथ साथ,जल जंगल जमीन आजीविका के साथ साथ शहरी गरीबों के साथ साथ मध्यवर्ग और उच्चमध्यवर्ग के सफाये जरिये अरबपति तबके का कार्निवाल है और दरअसल गुजराती पीपीपी विकास माडल है।
दीदी नये शहरीकरण नीति के मारफत दरअसल गुजराती पीपीपी माडल की बुलेट ट्रेन का ट्रैक ही बा रही हैं बंगाल में।वे शांतिनिकेतन को भी स्मार्ट शहर बनाना चाहतीं हैं और नया कोलकाता और कल्याणी समेत दस स्मार्ट सिटी के लिए केंद्र सरकार के साथ उनकी सौदेबाजी है।
वैसे भी महानगरों और उपनगरों की क्या कहें,बाकी शहरों में भी पुश्तैनी मकान अब सारे के सारे बेदखल हो रहे हैं और वहां प्रोमोटरों की बहुमंजिली इमारतें बन रही हैं।
मां माटी मानुष सरकार की नई शहरीकरण नीति के तहत पुराने मकानों को संकटग्रसत् साबित करके गिराने के बाद वहां नये निर्माण पर शत प्रतिशत टैक्स छूट है।ग्रीन हाउसिंग नई इंफ्रा कंपनियों का फंडा है पर्यावरण के सत्यानाश के लिए।अब इस शहरीकरण नीति के तहत आवासीय परिसर में झीलें ,स्वीमिंग पुल इत्यादि डालते ही प्रामोटरों को टैक्स,रजिस्ट्रेशन फीस और म्युटेशन में भी भारी छूट मिलने वाली है।
शापिंग माल,निजी अस्पताल,नालेज इकोनामी के लिए भी इफरात छूट का ऐलान है।इसके अलावा रेलवे और मेट्रो लाइनों के आसपास निर्माण की शर्तों में भी ढील दी गयी है।
कृपया इसी आलोक में टाटा बंगाल विवाद का मजा लें।
प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा ने अपने बारे में की गई पश्चिम बंगाल के वित्तमंत्री अमित मित्रा की टिप्पणियों पर पलटवार करते हुए कहा कि उनका गुस्सा गैरजरूरी है। राज्य में औद्योगीकरण की कमी के बारे में रतन टाटा की टिप्पणी पर मित्रा ने आज सुबह कहा था कि लगता है कि टाटा 'भ्रांतिग्रस्त' हो गए हैं।
टाटा ने कहा कि उन्होंने पश्चिम बंगाल में औद्योगिक विकास के बारे में कभी बात नहीं की, बल्कि हवाई अड्डे से राजरहाट होकर शहर में आने की अपनी यात्रा के दौरान जो कुछ देखा उसके आधार पर ही कल कुछ टिप्पणियां की थीं।
टाटा ने ट्विटर पर लिखा, 'कल की मेरी टिप्पणियां हवाई अड्डे से राजरहाट होकर मौर्या तक की यात्रा से जुड़ी थीं। मैंने बहुत सा आवासीय व वाणिज्यिक विकास देखा, लेकिन मुझे औद्योगिक विकास नजर नहीं आया।' उन्होंने कहा, 'मैंने राज्य के औद्योगिक विकास के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की। इसलिए मित्रा की टिप्पणियां हैरान करने वाली हैं।'
मित्रा की टिप्पणियों पर नाराजगी दिखाते हुए टाटा ने कहा 'मित्रा को शायद लगता है कि 'मेरा दिमाग गड़बड़ा गया है'। मुझे खुशी होगी अगर वे मुझे बता सकें कि राजरहाट से गुजरते हुए मैं किस औद्योगिक गतिविधि को नहीं देख सका। अगर वे ऐसा नहीं कर पाते हैं तो मुझे यही निष्कर्ष निकालना पड़ेगा कि वे बहुत कल्पनाशील हैं।'
इससे पहले भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम में मित्रा ने कहा, 'टाटा अब बूढ़े हो चुके हैं और भ्रम से ग्रस्त हो गए हैं। मै नहीं जानता कि वह जो कुछ हो रहा है उसे क्यों नहीं समझ पा रहे।' वहीं टाटा संस के मानद अध्यक्ष रतन टाटा ने कल टिप्पणी की थी, 'पश्चिम बंगाल में औद्योगिक विकास के कोई संकेत नहीं नजर आ रहे हैं।' टाटा ने यह टिप्पणी इंडियन चैंबर ऑफ कामर्स के महिला अध्ययन समूह की बैठक में की थी।
'নতুন নগরোন্নয়ন নীতির ফলে গুন্ডারাজ, সিন্ডিকেটরাজ বন্ধ হবে'– বুধবার মহাকরণে এ কথা জানালেন পুর ও নগরোন্নয়ন মন্ত্রী ফিরহাদ হাকিম৷ তিনি বলেন, 'যে-সব ভাড়াটিয়া ৫০ বছর ধরে আছেন, তাঁদের কোনও ভাবে উচ্ছেদ করে দেওয়া যাবে না৷ তাঁদের পুনর্বাসন দিয়ে বাড়ি সংস্কার করতে হবে৷ যাতে মালিক এবং ভাড়াটিয়া উভয়পক্ষই লাভবান হন৷ এই নীতির ফলে সিন্ডিকেটরাজ বন্ধ হবে৷ পরিবেশ-বান্ধব আবাসন গড়ার ওপরে আমরা জোর দিচ্ছি৷ কোনও সমস্যা হলে আইন-শৃঙ্খলার বিষয়টি দেখবে রাজ্য৷'তিনি জানান, যে অংশে ভাড়াটিয়া রয়েছে, বাড়ি নকশায় তা চিহ্নিত করে দিতে হবে মালিককে৷ রাজ্যের নগরোন্নয়ন নীতিতে যেমন কর্মসংস্হান বাড়বে, তেমন রাজ্যের চেহারাটাই পাল্টে যাবে, মম্তব্য মন্ত্রীর৷ তিনি বলেন, যেভাবে আবহাওয়ার পরিবর্তন ও গতিপ্রকৃতি বদলের জন্য তাপমাত্রা বাড়ছে পৃথিবীর৷ বাড়ছে অসুখ৷ তাই আমরা পরিবেশ-বান্ধব আবাসন প্রকল্পের ওপর জোর দিয়েছি৷ তাতে সবুজের পরিমাণ বাড়বে৷ আবাসনও হবে৷ পাশাপাশি ডেঙ্গু, ম্যালেরিয়ার মতো রোগভোগের হাত থেকে বাঁচবেন মানুষ৷ এ ছাড়া হাসপাতাল, শপিং কমপ্লে', শপিং মল-এর ক্ষেত্রে গাড়ি রাখার জন্য বিশেষ সুযোগ-সুবিধা দেওয়া হবে৷ রাজ্যের মেট্রো রেল প্রকল্পগুলি থেকে ৫০০ মিটারের মধ্যে অথবা ১৫-২৪ মিটার চওড়া রাস্তার পাশে বাড়ি তৈরির জন্য ১৫ থেকে ২০ শতাংশ 'ফ্লোর এরিয়া রেশিও' (এফ এ আরগ্গ ছাড় দেওয়া হবে৷ এর পাশাপাশি তিনি বলেন, 'কর আদায়ের ক্ষেত্রে স্বচ্ছতার ওপরও বিশেষ জোর দেওয়া হয়েছে৷ 'হেরিটেজ'ভবনগুলিকে রক্ষণাবেক্ষণে জোর দেওয়া হয়েছে৷
নতুন উপনগরী তৈরির ক্ষেত্রেও সুযোগ-সুবিধা দেওয়া হবে৷ যেমন রঘুনাথপুর, দুর্গাপুর, ডানকুনি, কল্যাণী গড়ে উঠবে নতুন উপনগরী৷
टाटा समूह ने भारत के सबसे मूल्यवान ब्रांड के तौर पर अपनी पहचान बरकरार रखी है। 21 अरब डॉलर के साथ टाटा समूह भारत का सबसे कीमती ब्रांड बना रहा जबकि भारत के शीर्ष 100 ब्रांड की कुल संपत्ति 92.6 अरब डॉलर आंकी गई। एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) 4.1 अरब डालर के ब्रांड मूल्य के साथ दूसरे नंबर पर रही जबकि भारतीय स्टेट बैंक 4 अरब डॉलर, भारती एयरटेल 3.8 अरब डॉलर और रिलायंस इंडस्ट्रीज का 3.5 अरब डॉलर ब्रांड मूल्य आंका गया।
टाटा समूह का ब्रांड मूल्य पिछले एक साल में 3 अरब डॉलर बढ़ गया। सलाहकर कंपनी ब्रांड फाइनेंस इंडिया के सालाना अध्ययन के अनुसार टाटा समूह की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विविधीकरण की रणनीति और अग्रणी कंपनी टीसीएस की सतत वृद्धि से समूह का ब्रांड मूल्य बढ़ा है। इसमें कहा गया है, 'टाटा समूह की कुछ कंपनियों का प्रदर्शन उम्मीद के अनुरूप नहीं होने के बावजूद हाल ही में समूह द्वारा अगले तीन साल के दौरान 35 अरब डॉलर की निवेश योजना की घोषणा से ब्रांड को फायदा पहुंचेगा और टाटा समूह के चेयरमैन साइरस मिस्त्री को दुनिया की सबसे पसंदीदा 25 ब्रांड़ों में शामिल रखने के लक्ष्य को हासिल करेगा।'
ब्रांड फाइनेंस इंडिया की 100 भारतीय ब्रांडों की आज जारी सूची में शीर्ष 50 कंपनियों का ब्रांड मूल्य 2013 की तुलना में 10 प्रतिशत बढ़ गया। इसमें टाटा, गोदरेज, एचसीएल और एल एण्ड टी आगे रहीं। अध्ययन के अनुसार बैंकिंग कंपनियों का प्रदर्शन इस मामले में खराब रहा। ज्यादातर बैंकिंग ब्रांड या तो स्थिर रहे या फिर उनका ब्रांड मूल्य घटा है। कमजोर संचालन और कर्ज देनदारी पर नियंत्रण नहीं रहने की वजह से ऐसा हुआ।
14 जनवरी को बिजनेस स्टैंडर्ट की यह खबर पढ़ें तो बंगाल में शहरीकरण नीति की पृष्ठभूमि साप नजर आयेगीः
भूमि आवंटन के लिए नीलामी की प्रक्रिया से रियल एस्टेट कारोबारियों को मदद न मिलने और नए विकास कार्यों के लिए जमीन की भारी कमी को देखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए नई नीति लाने की तैयारी में है। यह नीति उस जमीन के लिए लागू होगी, जिसका मालिकाना निजी भूमि मालिकों या समूह के स्वामित्व में होगा।
बहरहाल सूत्रों ने बताया कि सरकार शहरी भूमि सीलिंग ऐक्ट को खत्म करने पर विचार नहीं कर रही है, जिससे डेवलपरों को निराशा हो सकती है। यह रियल एस्टेट कारोबारियोंं की ओर से एक प्रमुख मांग है। राज्य के लिए नई शहरीकरण नीति तैयार करने के लिए गठित कार्यबल को की गई सिफारिशों में रियल एस्टेट कारोबारियों ने हाउसिंग परियोजनाओं में 25 प्रतिशत एलआईजी फ्लैट सुरक्षित रखने के मामलों में शहरी भूमि सीलिंग ऐक्ट खत्म किए जाने की मांग की थी।
हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार ने सरकारी जमीन के लिए नई भूमि नीति पेश की थी। इसके मुताबिक सरकारी जमीन के वाणिज्यिक इस्तेमाल के आवंटन में नीलामी की प्रक्रिया अपनाई जानी है, जबकि पहले इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया अपनाई जाती थी। इस नीति के तहत कम आय वर्ग (एलआईजी) या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए बनाए जाने वाले मकान की जमीन को बीली की प्रक्रिया से बाहर रखा गया है।
बहरहाल रियल एस्टेट कारोबारियोंं को इससे ज्यादा लाभ नहीं हुआ। डेवलपरों का कहना है कि एक तरफ जहां सरकार रियल एस्टेट क्षेत्र के विकास के लिए ज्यादा जमीन देना चाहती है, जबकि उसके पास जमीन कम है, वहींं दूसरी ओर बोली की प्रक्रिया से भूमि की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी। कॉनफेडरेशन आफ रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (क्रेडाई) के पूर्व अध्यक्ष और शहर के रियल एस्टेट कारोबारी संतोष रुंगटा ने कहा, 'हाउसिंग क्षेत्र की मांग पूरी करने के लिए सरकार के मालिकाना वाली पर्याप्त भूमि नहीं है। ऐसे में नई भूमि नीति डेवलपरों के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि नई शहरीकरण नीति में इस समस्या का समाधान होगा। हमने इस सिलसिले में पहले ही अपनी मांग रख दी है।Ó
पश्चिम बंगाल में नए टाउनशिप के विकास में सबसे बड़ी समस्या शहरी भूमि (सीलिंग एवं नियमन) अधिनियम (यूएलसीए) 1976 है। इस अधिनियम के मुताबिक कोलकाता जैसे ए श्रेणी के शहरों में खाली भूमि की सीलिंग सीमा 7.5 कट्ठा या करीब 500 वर्गमीटर है। पश्चिम बंगाल देश के उन कुछ राज्यों में शामिल है, जहां यूएलसीए जैसा कानून है।
यूएलसीए को हटाने की मांग पहली बार गोदरेज प्रॉपर्टीज के चेयरमैन आदि गोदरेज ने उठाई थी, जब मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ममता बनर्जी कारोबारियों से मिली थीं। सुरेका समूह के प्रबंध निदेशक प्रदीप सुरेका ने कहा, 'पश्चिम बंगाल में भूमि संबंधी मसलों को हल करने में नई भूमि नीति समस्याओं का समाधान नहीं कर सकी। हम आने वाली शहरीकरण नीति को लेकर आशान्वित हैं।Ó
http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=67955
'নতুন নগরোন্নয়ন নীতির ফলে গুন্ডারাজ, সিন্ডিকেটরাজ বন্ধ হবে'– বুধবার মহাকরণে এ কথা জানালেন পুর ও নগরোন্নয়ন মন্ত্রী ফিরহাদ হাকিম৷ তিনি বলেন, 'যে-সব ভাড়াটিয়া ৫০ বছর ধরে আছেন, তাঁদের কোনও ভাবে উচ্ছেদ করে দেওয়া যাবে না৷ তাঁদের পুনর্বাসন দিয়ে বাড়ি সংস্কার করতে হবে৷ যাতে মালিক এবং ভাড়াটিয়া উভয়পক্ষই লাভবান হন৷ এই নীতির ফলে সিন্ডিকেটরাজ বন্ধ হবে৷ পরিবেশ-বান্ধব আবাসন গড়ার ওপরে আমরা জোর দিচ্ছি৷ কোনও সমস্যা হলে আইন-শৃঙ্খলার বিষয়টি দেখবে রাজ্য৷'তিনি জানান, যে অংশে ভাড়াটিয়া রয়েছে, বাড়ি নকশায় তা চিহ্নিত করে দিতে হবে মালিককে৷ রাজ্যের নগরোন্নয়ন নীতিতে যেমন কর্মসংস্হান বাড়বে, তেমন রাজ্যের চেহারাটাই পাল্টে যাবে, মম্তব্য মন্ত্রীর৷ তিনি বলেন, যেভাবে আবহাওয়ার পরিবর্তন ও গতিপ্রকৃতি বদলের জন্য তাপমাত্রা বাড়ছে পৃথিবীর৷ বাড়ছে অসুখ৷ তাই আমরা পরিবেশ-বান্ধব আবাসন প্রকল্পের ওপর জোর দিয়েছি৷ তাতে সবুজের পরিমাণ বাড়বে৷ আবাসনও হবে৷ পাশাপাশি ডেঙ্গু, ম্যালেরিয়ার মতো রোগভোগের হাত থেকে বাঁচবেন মানুষ৷ এ ছাড়া হাসপাতাল, শপিং কমপ্লে', শপিং মল-এর ক্ষেত্রে গাড়ি রাখার জন্য বিশেষ সুযোগ-সুবিধা দেওয়া হবে৷ রাজ্যের মেট্রো রেল প্রকল্পগুলি থেকে ৫০০ মিটারের মধ্যে অথবা ১৫-২৪ মিটার চওড়া রাস্তার পাশে বাড়ি তৈরির জন্য ১৫ থেকে ২০ শতাংশ 'ফ্লোর এরিয়া রেশিও' (এফ এ আরগ্গ ছাড় দেওয়া হবে৷ এর পাশাপাশি তিনি বলেন, 'কর আদায়ের ক্ষেত্রে স্বচ্ছতার ওপরও বিশেষ জোর দেওয়া হয়েছে৷ 'হেরিটেজ'ভবনগুলিকে রক্ষণাবেক্ষণে জোর দেওয়া হয়েছে৷
নতুন উপনগরী তৈরির ক্ষেত্রেও সুযোগ-সুবিধা দেওয়া হবে৷ যেমন রঘুনাথপুর, দুর্গাপুর, ডানকুনি, কল্যাণী গড়ে উঠবে নতুন উপনগরী৷
আজকালের প্রতিবেদন: রাজ্যের শিল্পায়নকে কটাক্ষ করলেন টাটা গোষ্ঠীর প্রাক্তন চেয়ারম্যান রতন টাটা৷ বুধবার কলকাতায় এক বণিকসভার অনুষ্ঠানে অংশগ্রহণকারীদের প্রশ্নের জবাবে তিনি বলেন, দু'বছর পর কলকাতায় এলাম৷ রাজারহাট থেকে কলকাতায় আসার সময় দু'ধারে অনেক কিছু দেখলাম৷ যদিও এখনও ওই এলাকাটিকে অনেকটা পল্লী-অঞ্চলের মতো দেখতে লাগল৷ এবং আবারও এ রাজ্যে শিল্পোন্নয়ন, কাজকর্ম বৃদ্ধির লক্ষণ দেখতে পেলাম না৷ তৃণমূলের আন্দোলনে সিঙ্গুর থেকে ন্যানো গাড়ি প্রকল্প সরিয়ে নিয়ে যাওয়া প্রসঙ্গে এক প্রশ্নের জবাবে তিনি বলেন, ওই ঘটনা হতাশাজনক৷ তাঁর মতে, আগেও বলেছিলাম মাথায় বন্দুক ঠেকানো হলেও মাথা সরাব না৷ কিন্তু এক্ষেত্রে ট্রিগার টিপে দেওয়া হয়েছিল৷ প্রকল্প সরিয়ে নিতে বাধ্য হয়েছিলাম৷ ওই পরিস্হিতিতে প্রকল্প সরানোর সিদ্ধাম্ত ছিল৷ গুজরাটে জমির ব্যবস্হা করে দেওয়ার জন্য সেখানকার তৎকালীন মুখ্যমন্ত্রী, বর্তমান প্রধানমন্ত্রী নরেন্দ্র মোদিকে ধন্যবাদ জানিয়েছেন রতন টাটা৷ যেহেতু সেই মুহূর্তে বিকল্প জমি ছিল না৷ নরেন্দ্র মোদির কাছে কৃতজ্ঞ, তিনি সানন্দে প্রকল্পের জন্য জমির ব্যবস্হা করে দিয়েছিলেন৷ তাঁর বক্তব্য, সরকারের উচিত শিল্পায়নের পথ সহজতর করা৷ এই প্রক্রিয়ায় বাধা দেওয়া নয়৷
আজকালের প্রতিবেদন: শহর ও শহরতলিতে নতুন বাড়ি তৈরি এবং পুরনো বাড়ি সংস্কারের ক্ষেত্রে বেশ কিছু সুযোগ-সুবিধা দিতে চলেছে রাজ্য সরকার৷ এমনকি নতুন নগরী, বাণিজ্যিক কমপ্লেক্স তৈরির ক্ষেত্রে জমি-সহ বিভিন্ন ছাড় দেওয়া হবে বলে রাজ্য সরকার সিদ্ধাম্ত নিয়েছে৷ রাজ্যে প্রথম নতুন নগরোন্নয়ন নীতিতে এই সমস্ত সুযোগ-সুবিধা রয়েছে বলে মঙ্গলবার জানান অর্থমন্ত্রী অমিত মিত্র এবং পুর ও নগরোন্নয়নমন্ত্রী ফিরহাদ হাকিম৷ এদিন এই নগরোন্নয়ন নীতি শিল্প ও পরিকাঠামো বিষয়ক মন্ত্রিসভার সাব-কমিটি থেকে অনুমোদিত হয়৷ কমিটির চেয়ারম্যান মুখ্যমন্ত্রী মমতা ব্যানার্জির সবুজ সঙ্কেত দেওয়ায় নতুন পশ্চিমবঙ্গ নগরোন্নয়ন নীতি কিছুদিনের মধ্যে কার্যকর করা হবে বলে জানিয়েছেন দপ্তরের মন্ত্রী ফিরহাদ হাকিম৷ সাংবাদিকদের তিনি জানান, এই নীতির ফলে সাধারণ মানুষের যেমন সুবিধা হবে, তেমনি রাজ্যে শিল্প ও তথ্যপ্রযুক্তি ক্ষেত্রে বিনিয়োগও বাড়বে৷ বাড়ির মালিক এবং ভাড়াটে দু'পক্ষেরই বাসস্হানের সমস্যা মিটবে৷ তেমনি নিজের বাড়িতে ব্যবসা করার ক্ষেত্রেও আইনি বৈধতা মিলবে৷ কর্মসংস্হানের সুযোগ বাড়বে৷ বাড়ির কর-কাঠামোর পুনর্মূল্যায়নের সিদ্ধাম্ত নেওয়ায় পুরনো বাড়িতে কর ছাড়ের সুবিধা পাওয়া যাবে৷ নতুন বাড়ি করার ক্ষেত্রে নকশা অনুমোদনের জন্য 'একজানালা'পদ্ধতি চালু করার সিদ্ধাম্ত নেওয়ায় সাধারণ মানুষের হেনস্হা কমবে৷ নতুন নগরোন্নয়ন নীতিতে উল্লেখযোগ্য বিষয়গুলি হল: প্ত আংশিক বা পুরো ভাড়াটে ভর্তি বাড়ি যদি ৫০ বছরের পুরনো হয়, সেক্ষেত্রে বাড়ির মালিক বসবাসের জায়গা বাড়াতে চাইলে ১০০ শতাংশ বাড়াতে পারবেন৷ অর্থাৎ কারও যদি এরকম দোতলা বাড়ি থাকে এবং তাহলে বাড়ির মালিক আরও দু'তলা বাড়াতে পারবেন৷ তবে তার জন্য পুরসভা থেকে অনুমতি নিতে হবে৷ দিতে হবে নির্দিষ্ট পরিমাণ ফি৷
প্ত যেসব বাড়ি পুরসভা 'বিপজ্জনক'বলে ঘোষণা করেছে, সেসব বাড়ি যদি মালিক নতুন করে সংস্কার করতে চান, তাহলে ১০০ শতাংশ বাড়ির এলাকা বাড়াতে পারবে৷ যদি সেই বাড়িতে ভাড়াটে থাকে তবে ভাড়াটেরা যে পরিমাণ জায়গা নিয়ে বসবাস করেন, নতুন বাড়ি তৈরি বা সংস্কারের পরও ওই বাড়িতে তাকে একই পরিমাণ জায়গা দিতে হবে৷
প্ত পরিবেশ-বান্ধব বাড়ি বা গ্রিন বিল্ডিং করলে তারা বাড়ির বর্তমান জায়গা ১০ শতাংশ বাড়াতে পারবেন৷
প্ত যাঁরা বড় আবাসন, বাণিজ্যিক কেন্দ্র, হাসপাতাল, তথ্যপ্রযুক্তি কেন্দ্র তৈরি করতে চান তাঁরা যদি সঠিক নিয়ম মানে তাহলে তাঁদের ১৫ শতাংশ বাড়তি এলাকা বাড়ানোর অনুমতি দেওয়া হবে৷ তবে সেক্ষেত্রে পুর পরিষেবা অর্থাৎ পানীয় জল, নিকাশি ব্যবস্হা, রাস্তা যেন ঠিকঠাক থাকে৷
প্ত মেট্রো রেল করিডরের ৫০০ মিটারের মধ্যে অথবা ১৫-২৪ মিটার চওড়া রাস্তার পাশে বাড়ি যাঁদের, তাঁরাও ১৫ শতাংশ বাড়ির পরিসর বাড়াতে পারবেন৷ ২৪ মিটারের বেশি চওড়া রাস্তার ধারে বাড়ি হলে ২০ শতাংশ বাড়ির পরিসর বাড়াতে পারবেন৷
প্ত নতুন নগরী, পরিবহণ কেন্দ্র, লজিস্টিক হাব, টার্মিনাল তৈরি করার ক্ষেত্রে ভূমি ও ভূমিসংস্কারের আইনে ১৪ (ওয়াই) ধারা অনুযায়ী জমির ঊধর্বসীমায় ছাড় পাওয়া যাবে৷
প্ত কলকাতা পুরসভা-সহ পুরসভা অথবা পুরসভা এলাকায় নিজের বাড়িতে প্রতিবেশীদের অসুবিধা না করে কেউ যদি কোনও ব্যবসা করেন, তাহলে সেই ব্যবসার আইনি বৈধতা দেবে রাজ্য সরকার৷ তবে এক্ষেত্রে কিছু শর্ত মানতে হবে৷ প্রধান শর্ত হল, নিজের বাড়ির ৪৫ শতাংশ অংশের মধ্যে ব্যবসা করতে হবে৷ কলকাতা পুরসভা, নিউ টাউন, বিধাননগর এলাকায় এ ধরনের ব্যবসা করেন, কিন্তু ট্রেড লাইসেন্স পান না, তাঁদের এই সমস্যা থেকে মুক্তি দিতে এই সিদ্ধাম্ত নিয়েছে নগরোন্নয়ন দপ্তর৷
প্ত নতুন বাড়ি তৈরি করতে গেলে নকশার অনুমোদন পেতে মাসের পর মাস পুরসভায় সাধারণ মানুষকে ছুটোছুটি করতে হয়৷ শুধু পুরসভা নয়, দমকল, পরিবেশ-সহ বিভিন্ন দপ্তরে ছুটোছুটি করতে হয়৷ এই সমস্যা দূর করতে এবং দ্রুত নকশা অনুমোদন দেওয়ার জন্য অনলাইন 'এক জানালা'নীতি নিতে চলেছে নগরোন্নয়ন দপ্তর৷ এই সিদ্ধাম্ত কার্যকরী হলে বাড়ির নকশার অনুমোদন পেতে অনলাইনে দরখাস্ত করলেই চলবে৷ কোথাও যেতে হবে না৷
প্ত যেসব আবাসনে কমিউনিটি হল, খেলার মাঠ, সুইমিং পুল, পার্ক-সহ বিভিন্ন সুযোগ-সুবিধা রয়েছে, সেসব আবাসনের কর-কাঠামো পুর্নমূল্যায়ন করা হবে৷ আর যে সমস্ত বাড়িটে ভাড়াটে সমস্যা বা আইনি জটিলতা রয়েছে, পুরনো সেসব বাড়িগুলির কর কমানোর সিদ্ধাম্ত নিয়েছে নগরোন্নয়ন দপ্তর৷
রাজ্য সরকারের এই সিদ্ধাম্তের সরকারি বিজ্ঞপ্তি এখনও জারি করা হয়নি৷ সরকারি বিজ্ঞপ্তি প্রকাশ হওয়ার পর বড় পুরসভা বা পুরসভার ক্ষেত্রে ৬ মাস এবং ছোট পুরসভার ক্ষেত্রে ১ বছর সময় দেওয়া হবে এই নীতি কাযর্কর করার জন্য৷ এই সুযোগ-সুবিধা পেতে গেলে কোন ক্ষেত্রে কী ধরনের আর্থিক ব্যয়ভার নিতে হবে তা অর্থ দপ্তর থেকে বিজ্ঞপ্তি প্রকাশ করে জানিয়ে দেওয়া হবে বলে জানিয়েছেন অর্থমন্ত্রী অমিত মিত্র ও পুর ও নগরোন্নয়নমন্ত্রী ফিরহাদ হাকিম৷
ঊর্ধ্বসীমার জগদ্দল নড়বে না জমিতে, তাই ছাড় ঘুরপথেই
নিজস্ব সংবাদদাতা
সোজা আঙুলে ঘি ওঠানো হবে না, তাই সচেতন ভাবেই আঙুল বাঁকিয়ে সমস্যা সমাধানের চেষ্টা। রাজ্য সরকারের নতুন নগরোন্নয়ন নীতি সম্পর্কে এমনই ব্যাখ্যা শোনা যাচ্ছে প্রশাসন এবং নগর-স্থপতিদের একাংশের কাছ থেকে। মঙ্গলবার নগরায়ণ সংক্রান্ত নতুন নীতি ঘোষণা করে পুরনো বাড়ি ভেঙে নতুন বহুতল তৈরির ক্ষেত্রে ১০০ শতাংশ এফএআর (ফ্লোর এরিয়া রেশিও) ছাড় দেওয়ার কথা বলেছে সরকার।
০৭ অগস্ট, ২০১৪
ABP
রাজ্যে শিল্পে অগ্রগতি হয়নি-র জবাবে, রতন টাটার মতিভ্রম হয়েছে বলে কটাক্ষ অমিতের
Last Updated: Thursday, August 7, 2014 - 12:28
কলকাতা: রতন টাটার মতিভ্রম হয়েছে। তাই এই ধরনের কথা বলছেন। এমন মন্তব্য করলেন রাজ্যের শিল্পমন্ত্রী অমিত মিত্র। শিল্পমন্ত্রীর দাবি গতবছরই ওনার নিজের কোম্পানিই রাজ্যে বড় টাকা লগ্নি করার করার আর্জি জানিয়েছে। সেই খবর কেন রতন টাটার কাছে নেই তা নিয়ে বিস্ময় প্রকাশ করেছেন শিল্পমন্ত্রী। সঙ্গে শিল্পমন্ত্রী অমিত মিত্র রাজ্যের শিল্পে অগ্রগতির নানা দাবি করেন।
শিল্পে পশ্চিমবঙ্গের অগ্রগতির কোনও চিহ্ন দেখতে পাননি। গতকাল দু-বছর পর কলকাতায় এসে মন্তব্য করেন রতন টাটা। লেডিজ স্টাডি গ্রুপের একটি অনুষ্ঠানে যোগ দিতে এদিন কলকাতায় এসেছিলেন টাটা গোষ্ঠীর প্রাক্তন চেয়ারম্যান।
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লেডিজ স্টাডি গ্রুপের একটি অনুষ্ঠানে যোগ দিতে বুধবার কলকাতায় এসেছিলেন টাটা গোষ্ঠীর এমিরেটাস চেয়ারম্যান। সেখানেই রাজ্যের শিল্পোদ্যোগ নিয়ে উদ্বেগের সুর শোনা যায় তাঁর গলায়।
মুখ্যমন্ত্রী যখন দাবি করছেন পশ্চিমবঙ্গ শিল্পে এক নম্বর হবে, তখন রাজ্যে পা দিয়ে শিল্পোদ্যোগের কোনও চিহ্নই কিন্তু দেখতে পেলেন না রতন টাটা। বুধবার কলকাতার লেডিজ স্টাডি গ্রুপ আয়োজিত এক আলোচনাসভায় উপস্থিত হয়েছিলেন টাটা গোষ্ঠীর এমিরেটাস চেয়ারম্যন। তাঁর উদ্দেশে প্রশ্ন ছিল, এরাজ্যে পরিবর্তনের কোনও ছবি তাঁর চোখে পড়ল কিনা। জবাবে রতন টাটা বলেন, নতুন বাড়ি ঘর তৈরি হওয়া বা কিছু ব্যবসায়িক তত্পরতা নজরে এলেও শিল্পে অগ্রগতির কোনও চিহ্ন নেই।
সিঙ্গুর ছাড়তে হয়েছিল বাধ্য হয়েই। তবে সানন্দে যাওয়ার সিদ্ধান্ত সঠিক ছিল। কলকাতায় এসে সিঙ্গুর প্রসঙ্গে আরও একবার একথা বললেন রতন টাটা। ছ-বছর পরেও তাঁর গলায় শোনা গিয়েছে একই ক্ষোভের সুর।তেসরা
অক্টোবর, দু হাজার আট
বিক্ষোভ, তৃণমূল পতাকা, মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় আন্দোলনে। তার জেরে টাটার ন্যানো কারখানা সিঙ্গুর ছেড়ে পারি দিল গুজরাতের সানন্দে।
ছ-বছর আগের স্মৃতি ফের উসকে ফিরে এল সিঙ্গুর প্রসঙ্গ। বুধবার রতন টাটা কলকাতায় এসে আরও একবার বুঝিয়ে দিলেন, চোট পুরনো হলেও তার ক্ষত আজও তাজা। কাঁটার মতো বিঁধে রয়েছে ন্যানো প্রকল্পের সিঙ্গুর ছাড়ার ঘটনা।
উপায় ছিল না। তাই রাজ্য ছাড়তে হয়েছিল। স্পষ্ট করে দিয়েছেন টাটা গোষ্ঠীর প্রাক্তন চেয়ারম্যান। তবে এর জেরে ক্ষতি হয়েছে তাঁর স্বপ্নের একলাখি গাড়ি প্রকল্পের। সেই ক্ষোভ এদিন উগরে দেন রতন টাটা। রাজ্যের শিল্পায়নে গতি আনতে দিনরাত এক করছেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। বিশেষজ্ঞ মহলের মতে, এই অবস্থায় সিঙ্গুর ইস্যু ফের উসকে দিয়ে রাজ্য সরকারের অস্বস্তি কয়েকগুণ বাড়িয়ে দিলেন রতন টাটা।
রাজ্যে শিল্পের শোচনীয় ছবিটা বদলাতে তবে সরকারের ভুমিকা কি হওয়া উচিত ? সেই পরামর্শটাও দেন টাটা গোষ্ঠীর এমিরেটাস চেয়ারম্যন।
গত তিন বছরে একের পর এক শিল্পসম্মেলন করেও বিনিয়োগকারীদের নজর পশ্চিমবঙ্গের দিকে ঘোরাতে পারেনি রাজ্য সরকার। উল্টে বন্ধ হয়েছে একের পর এক পুরনো কারখানা। এরমাঝেই শিল্প নিয়ে সরকারের অস্বস্তি আরও বাড়িয়েছে শাসক দলের বিরুদ্ধে তোলাবাজির অভিযোগ। কোথাও তোলা না পাওয়ায় মালিককে খুনের হুমকি কোথাও আবার ঠিকাদারকে পিটিয়ে মারার অভিযোগ, প্রায় সর্বত্রই কাঠগড়ায় কোনও না কোনও তৃণমূল নেতা। যদিও সেই সব অভিযোগই খারিজ করে একুশে জুলাইয়ের সমাবেশে মুখ্যমন্ত্রী দাবি করেছেন, পশ্চিমবঙ্গ শিল্পে একনম্বর হবে। এবারে রাজ্যের শিল্প পরিস্থিতি নিয়ে রতন টাটার মন্তব্য মুখ্যমন্ত্রীর দাবি নিয়েই প্রশ্ন তুলে দিল বলে মনে করছে বণিকমহলের একাংশ।
http://zeenews.india.com/bengali/kolkata/amit-says-ratan-tatas-brain-not-working_119458.html
ঊর্ধ্বসীমার জগদ্দল নড়বে না জমিতে, তাই ছাড় ঘুরপথেই
www.anandabazar.com/.../westbengal-government-gives-exemption-in-fl...
মঙ্গলবার নগরায়ণ সংক্রান্ত নতুন নীতিঘোষণা করে পুরনো বাড়ি ভেঙে নতুন বহুতল তৈরির ক্ষেত্রে ১০০ শতাংশ এফএআর (ফ্লোর এরিয়া রেশিও) ছাড় দেওয়ার কথা বলেছে সরকার। জমির ঊর্ধ্বসীমা আইন ... প্রশাসনের একাংশ স্বীকার করছেন কলকাতা-সহ রাজ্যের বিভিন্ন পুর এলাকায় জমির ঊর্ধ্বসীমা বজায় রাখাই যে পরিকল্পিত নগরায়ণেরমূল সমস্যা, সেটা সরকার ভালই বোঝে। এ থেকে বেরোনোর সোজা
নয়া নগরায়ন নীতিতে মদত প্রোমোটারদেরই,
পুরানো বাড়ি ভেঙে নির্মাণও করা যাবে সহজে
নিজস্ব প্রতিনিধি
কলকাতা, ৫ই আগস্ট— নগরায়নের নামে রাজ্যে প্রোমোটারি ব্যবসাকে ব্যাপক ছাড় দেওয়ার সিদ্ধান্ত নিল মমতা ব্যানার্জির সরকার। মঙ্গলবার নবান্নে রাজ্যের নয়া 'নগরায়ন নীতি'ঘোষণা করেন অর্থ ও শিল্প দপ্তরের মন্ত্রী অমিত মিত্র। সাংবাদিক সম্মেলনে উপস্থিত ছিলেন পৌর ও নগরয়োন্নন মন্ত্রী ফিরহাদ হাকিম।
দ্রুত নগরায়নের জন্য কোনো পরিকল্পিত উপনগরী গড়ার পরিকল্পনা নেই। বরং নাগরিক চাহিদার সঙ্গে পাল্লা দিতে রাজ্য সরকারের একমাত্র ভরসা প্রোমোটিং। এমনিতেই তৃণমূল সরকারের আমলে রাজ্যে গত তিন বছরে কোনো শিল্প আসেনি। শিল্পে শাসকদলের তোলাবাজি এখন এমন পর্যায়ে গেছে রাজ্য থেকে শিল্প হয় চলে যাচ্ছে নয়তো কারখানায় তালা ঝুলিয়ে দিচ্ছে শিল্প মালিকরা। এই পরিস্থিতিতে তলানিতে পৌঁছেছে রাজ্যের রাজস্ব আদায়ও।
মঙ্গলবার মুখ্যমন্ত্রী মমতা ব্যানার্জির উপস্থিতিতে বৈঠকে বসে পরিকাঠামো উন্নয়ন সংক্রান্ত মন্ত্রিসভার স্ট্যান্ডিং কমিটি। এই সভা থেকেই চূড়ান্ত ছাড়পত্র পেল রাজ্যের নয়া নগরায়ন নীতি।
নয়া নগরায়ন নীতিতে কী বলা হয়েছে?
এক কথায়, কলকাতা ও অন্যান্য কর্পোরেশন ও পৌরসভা এলাকায় প্রোমোটিং করার জন্য রাজ্য সরকার ব্যাপক ছাড় দেওয়ার উদ্যোগ নিচ্ছে। একইসঙ্গে ছাড়ের সুবিধা দিয়ে বেশ কিছু ক্ষেত্রে কর আদায় করে রাজস্ব আদায় করার পরিকল্পনা নিয়েছে রাজ্য সরকার।
নবান্ন থেকে নগরায়নের নয়া নীতি ঘোষণা করে এদিন অর্থমন্ত্রী প্রোমোটিং-এর কাজে বেশ কিছু পদক্ষেপের কথা ঘোষণা করেন। নয়া নীতিতে বলা হয়েছে, 'গ্রিন বিল্ডিং'গড়তে চাইলে অতিরিক্ত ১০শতাংশ ফ্লোর এরিয়া রেসিও (এফ এ পি) বাড়ানোর অনুমতি দেওয়া হবে। দ্বিতীয় প্রস্তাবে উল্লেখ করা হয়েছে, কলকাতাসহ গোটা রাজ্যে ৫০বছরের পুরানো বাড়ি বা বিপজ্জনক চিহ্নিত বাড়িতে প্রোমোটিং করার জন্য ব্যাপক ছাড় দিতে চলেছে রাজ্য সরকার। পুরানো বাড়িতে প্রোমোটিং করার জন্য ১০০শতাংশ 'এফ এ পি'ছাড় দেওয়ার কথা এদিন ঘোষণা করেন অমিত মিত্র। অর্থমন্ত্রীর ঘোষণা, ''পুরানো বাড়িতে যদি পুরোপুরি বা আংশিক ভাড়াটিয়া থাকলে ভাড়াটিয়ার সম্মতি নিয়ে বাড়ির মালিক প্রোমোটারের হাতে বাড়ি তুলে দিতে পারেন। নয়া নির্মাণে ১০০শতাংশ ফ্লোর এরিয়া রেসিও-তে ছাড় দেওয়া হবে।''ভাড়াটিয়া চাইলে পুরানো বাড়িতে তিনি যত স্কোয়ার ফুট জায়গায় ছিলেন নয়া নির্মাণে তাঁকে ততটাই জায়গা দেওয়ার কথা অবশ্য জানানো হয়েছে নয়া নীতিতে। কিন্তু প্রশ্ন উঠছে রাজ্যে নয়া নীতির। কলকাতা ও হাওড়ার মতো কর্পোরেশন এলাকায় পুরানো বাড়ি ভেঙে প্রোমোটিং করার কাজে বিস্তর ঝামেলা পোহাতে হয় প্রোমোটার ও রিয়েল এস্টেট সংস্থাগুলিকে। নয়া ব্যবস্থায় লোভনীয় ছাড় দিয়ে রাজ্য সরকার পুরানো বাড়ি শহর থেকে উধাও করে দিয়ে প্রোমোটিং করার রাস্তা খুলে দেওয়ার ব্যবস্থা করে দিলো। দ্বিতীয় প্রস্তাব উল্লেখ করার সঙ্গে সঙ্গেই সাংবাদিক সম্মেলনে উপস্থিত নগরোন্নয়ন মন্ত্রী ফিরহাদ হাকিম জানিয়ে দেন, ''কলকাতার বড়বাজার এলাকায় প্রায় পুারনো বাড়িতে অগ্নিকাণ্ড ঘটছে। নয়া ব্যবস্থায় এইসব এলাকায় নির্মাণে কোনো অসুবিধা হবে না।''
নয়া নগরায়ন নীতির তৃতীয় প্রস্তাবে উল্লেখ করা হয়েছে, কলকাতায় মেট্রো রেল পরিষেবা এলাকার ৫০০মিটারের মধ্যে নির্মাণ করতে চাইলে রাজ্য সরকার অতিরিক্ত ১৫শতাংশ ফ্লোর এরিয়া রেসিও-তে ছাড় দেওয়া হবে। মেট্রো রেল করিডোরের মধ্যে ১৫থেকে ২৪মিটার রাস্তা থাকলে এফ এ পি-তে অতিরিক্ত ১৫শতাংশ ছাড় দেওয়া হবে। ওই রাস্তা ২৪মিটারের বেশি হলে ফ্লোর এরিয়া রেসিও-তে অতিরিক্ত ২০শতাংশ ছাড় দেবে রাজ্য সরকার। নগরায়ণের নয়া নীতিতে টাউনশিপ, লজিস্টিক হাব, টার্মিনাল গড়তে চাইলে জমির উর্ধ্বসীমা আইন (১৪ওয়াই) প্রযোজ্য হবে না।
কলকাতা, হাওড়াসহ রাজ্যের অন্যান্য পৌরসভা এলাকায় আবাসনের মধ্যে ৪৫শতাংশ এলাকায় ক্ষতিকারক হবে না এমন ব্যবসা করার অনুমতি দিচ্ছে রাজ্য সরকার। এরজন্য অবশ্য কর দিয়ে ছাড়পত্র আদায় করার কথা বলা হয়েছে। 'মাস-হাউসিং', আই টি হাব, হাসপাতাল, মেগা বাণিজ্য কেন্দ্র নির্মাণ করলে ফ্লোর এরিয়া রেসিও-তে অতিরিক্ত ১৫শতাংশ ছাড় মিলবে।
নয়া নীতি দ্রুত যাতে বাস্তবায়িত করা যায় তারজন্য বাড়ির নকশা অনুমোদনে এক জানালা ব্যবস্থার কথা এদিন ঘোষণা করেন অর্থমন্ত্রী। অনলাইন রেজিস্ট্রিশেনের পরিকাঠামো গড়ছে রাজ্য। অমিত মিত্রের বক্তব্য, ''ফায়ার, পরিবেশসহ বিভিন্ন দপ্তরের ছাড়পত্র নেওয়ার জন্য দেরি যাতে না হয় তারজন্য নতুন ব্যবস্থা করা হচ্ছে।''
নয়া নগরায়ন নীতি ঘোষণার পাশাপাশি কর আদায়ের কথাও এদিন জানান অর্থমন্ত্রী। রাজ্যের অর্থ দপ্তর এই কর আদায় করবে।
গোটা দেশে গত ১০বছরে নগরায়ণ বেড়েছে ২৭শতাংশ হারে। এরাজ্যে সেই অগ্রগতির হার ছিল ৩১শতাংশ। বামফ্রন্ট সরকারের আমলে নগরায়নের জন্য পরিকল্পিত নীতি গ্রহণ করা হয়েছিল। গড়া হয়েছে রাজারহাটে নয়া উপনগরী। ডানকুনি, ডোমজুড়, বারুইপুরে নয়া উপনগরী গড়ার পরিকল্পনা ছিল পূর্বতন সরকারের। কিন্তু এখন এরাজ্যে নগরায়নের নামে শহরকে তুলে দেওয়া হচ্ছে প্রোমোটিং-এর কাজে।
- See more at: http://ganashakti.com/bengali/news_details.php?newsid=58814#sthash.ubCJAftN.dpuf
নগরায়ণের নয়া নীতিতে ভূমিকম্পের সিঁদুরে মেঘ
নিজস্ব সংবাদদাতা
কলকাতা, ৭ অগস্ট, ২০১৪, ০৩:৩৫:৪১
শুধু পরিবেশ দূষণই নয়, রাজ্যের নতুন নগরায়ণ-নীতি বিপর্যয় ডেকে আনতে পারে বলেও ভূবিজ্ঞানী ও ভূকম্প গবেষকদের একাংশের আশঙ্কা। তাঁরা বলছেন, কলকাতায় উঁচু বহুতল গড়ার ক্ষেত্রে সতর্কতামূলক ব্যবস্থা নিতে হবে। না-হলে সামান্য ভূমিকম্পেই সেগুলি তাসের ঘরের মতো ভেঙে পড়বে।
কেন্দ্রীয় সরকারের ভূবিজ্ঞান মন্ত্রকের সঙ্গে জোট বেঁধে কলকাতা ও তার আশপাশে ৪০০ বর্গকিলোমিটার ব্যাসার্ধ জুড়ে ভূকম্পপ্রবণ এলাকাগুলি চিহ্নিত করেছে খড়্গপুর আইআইটি। ওই সব এলাকায় মাটির নীচে কী ধরনের পাত রয়েছে, কোন এলাকার মাটির চরিত্র কেমন এ সব খতিয়ে দেখছেন তাঁরা। ভূমিকম্প হলে কোথায় ভূস্তর কাঁপতে পারে, তা খুঁজে বার করে মহানগরীর কোথায় কেমন বাড়ি হতে পারে, সেটাও সমীক্ষা করে দেখছেন আইআইটি-র গবেষকেরা।
ওই গবেষকদলের প্রধান বিজ্ঞানী শঙ্করকুমার নাথ বুধবার জানান, মহানগরীর কোন এলাকায় কী ধরনের বাড়ি তৈরি করা যাবে, কোথায় কী কী সতর্কতামূলক ব্যবস্থা নিতে হবে এবং নির্মাণে কী কী সামগ্রী ব্যবহার করা যাবে— এ সব নিয়েই সমীক্ষা করেছেন তাঁরা। কলকাতার জন্য ইতিমধ্যেই তৈরি করে ফেলেছেন একটি ভূকম্প-মানচিত্রও। "ওই সমীক্ষা থেকে পরিষ্কার, নির্দিষ্ট এলাকার জন্য নির্দিষ্ট সতর্কতা-বিধি না মেনে বহুতল গড়লে তা কলকাতায় বিপর্যয় ডেকে আনতে পারে।"—মন্তব্য শঙ্করবাবুর। কেন?
খড়্গপুর আইআইটি-র ওই বিজ্ঞানীর ব্যাখ্যা, সামান্য কম্পনে দুটো বাড়ি একে অন্যের সঙ্গে ধাক্কা খাবে কি না, তা নির্ভর করে ওই এলাকার ভূস্তরের উপরে। কারণ, ভূস্তরে সব সময়ে কম্পন চলছে। তাই বিভিন্ন বহুতলও কাঁপছে। কিন্তু দু'টি কম্পনের মাত্রা আলাদা। যদি ভূস্তর ও বহুতল, দু'টোর দুলুনির মাত্রাই এক হয়ে যায়, তা হলে অতি অল্প মাত্রার ভূকম্পেই (রিখটার স্কেলে ৩-৪) পেল্লায় মাপের বহুতল ভেঙে পড়তে পারে। যেমন, ১২তলা বাড়ি হলে সাধারণত তার কম্পাঙ্ক হয় ১.২ হার্জ। ওই এলাকার ভূস্তরের দোলার ছন্দও যদি ওই একই মাত্রায় হয়, তবে রিখটার স্কেলে ৩-৪ মাত্রার ভূমিকম্পেও ওই বহুতল তাসের ঘরের মতো ভেঙে পড়তে পারে।
জিওলজিক্যাল সার্ভে অব ইন্ডিয়া-র অবসরপ্রাপ্ত বিজ্ঞানী জ্ঞানরঞ্জন কয়ালও বলেন, "কলকাতার সব জায়গায় ভূস্তরের অবস্থা এক নয়। ভূস্তরের অবস্থা বুঝে বাড়ি তৈরির নীতি তৈরি করতে হবে রাজ্য সরকারকে। না হলে সমূহ বিপদ।"
ভূবিজ্ঞানীরা বলছেন, এই বিজ্ঞানকে অস্বীকার করা যাবে না। সে ক্ষেত্রে নতুন নগরায়ণ-নীতি তৈরির করার ক্ষেত্রে ভূকম্প-বিশারদ ইঞ্জিনিয়ারদের সঙ্গে কথা বলা জরুরি। তা না-হলে ভূকম্পের সময়ে বড় বিপদের মুখে পড়তে পারে মহানগর। কিন্তু কলকাতা কিংবা তার পার্শ্ববর্তী এলাকায় ভূমিকম্পের আশঙ্কা কতটা?
ভূবিজ্ঞানীদের সমীক্ষা অনুযায়ী, কলকাতা-সহ গোটা দক্ষিণবঙ্গ কিন্তু মাঝারি মাত্রার ভূমিকম্পের শিকার হতেই পারে (রিখটার স্কেলে ৫-৬.৯)। খড়্গপুর আইআইটি-র এক ভূবিজ্ঞানী জানিয়েছেন, বঙ্গোপসাগরের উপকূলবর্তী এলাকায় (অবিভক্ত বাংলা) মাটির সাড়ে চার থেকে পাঁচ কিলোমিটার নীচে একটি খাত (ইয়োসিন হিঞ্জ) রয়েছে। সেই খাত থেকে মাঝেমধ্যেই কম্পন তৈরি হচ্ছে। ইতিমধ্যেই ওই খাতের বিভিন্ন অংশ থেকে ৫.৪, ৫.৬ মাত্রার কয়েকটি ভূমিকম্প সৃষ্টি হয়েছে। "সেখান থেকে সর্বোচ্চ ৬.৮ তীব্রতার ভূমিকম্প তৈরি হতে পারে।"— মন্তব্য ওই বিজ্ঞানীর।
তবে ওই মাত্রার ভূমিকম্প কবে হবে, তার উৎসকেন্দ্র ঠিক কোথায় হবে, সে ব্যাপারে পূর্বাভাস দেওয়া সম্ভব নয় বলে জানান খড়্গপুরের ভূবিজ্ঞানীরা। তাঁদের ব্যাখ্যা, যে ভাবে যত্রতত্র মাটির নীচ থেকে জল তুলে নেওয়া হচ্ছে এবং জলাভূমি ভরাট করে ফেলা হচ্ছে, তাতে কলকাতায় ভূস্তরের ভারসাম্য নষ্ট হচ্ছে। তাই মাঝারি মানের কোনও ভূমিকম্পই (উৎসকেন্দ্র কলকাতার কাছাকাছি হলে) মহানগরীর বিপদ ঘটাতে পারে।
শুধু কলকাতা নয়, উত্তরবঙ্গের শিলিগুড়িতেও যেখানে-সেখানে বহুতল গড়া বিপর্যয় ডেকে আনতে পারে। ২০১১ সালের সিকিমের ভূকম্পের পরে তার ইঙ্গিতও মিলেছে বলে ভূবিজ্ঞানীদের দাবি। তাঁরা বলছেন, ২০১১ সালের ১৮ সেপ্টেম্বর সিকিমে ৬.৯ মাত্রার ভূকম্প হয়েছিল। তার প্রভাবে শিলিগুড়িতে মাটি ফেটে গিয়েছিল। সেতুতেও ফাটল ধরেছিল। ওই ভূকম্পের পরে সিকিম ও উত্তরবঙ্গে সমীক্ষা করেছিল শঙ্করবাবুর নেতৃত্বাধীন খড়্গপুর আইআইটি-র একটি দল। শঙ্করবাবু বলেন, "শিলিগুড়ির এই পরিস্থিতির কথা আমরা রাজ্য সরকারকে তখনই জানিয়েছিলাম।"
কোন কোন শিল্প উন্নয়ন প্রকল্প আমার নজর এড়িয়ে গিয়েছে, সেগুলি দেখাতে পারলে খুশি হব, টুইটারে অমিতের কটাক্ষের জবাব রতন টাটার
ওয়েব ডেস্ক, এবিপি আনন্দ
Thursday, 07 August 2014 08:23 PM
নয়াদিল্লি: অমিত মিত্রের আক্রমণের জবাবে টুইটারে মুখ খুললেন রতন টাটা।বললেন, তিনি গতকাল কখনই পশ্চিমবঙ্গের সামগ্রিক শিল্পোন্নয়ন নিয়ে কোনও কথা বলেননি, দমদম বিমানবন্দর থেকে রাজারহাট হয়ে কলকাতা শহরে যাওয়ার পথে রাস্তায় যা দেখেছেন, তার ভিত্তিতেই কিছু মন্তব্য করেছেন।
টাটা মোটরসের প্রাক্তন কর্ণধারের গতকালের বক্তব্যে আলোড়নের মধ্যেই তাঁর 'মতিভ্রম হয়েছে'বলে আজ তাঁকে কটাক্ষ করেন পশ্চিমবঙ্গের অর্থমন্ত্রী অমিত মিত্র।রতন টাটা রাজ্যের শিল্পের হাল নিয়ে ঠিকঠাক খবর পাচ্ছেন না বলেও মন্তব্য করেন তিনি। এর কয়েক ঘণ্টার মধ্যেই মাইক্রোব্লগিং সাইট টুইটারে রতন টাটা বলেন, আমার গতকালের মন্তব্যে এয়ারপোর্ট থেকে রাজারহাট হয়ে মৌর্যে যাওয়ার উল্লেখ রয়েছে। বেশ কিছু আবাসন, বাণিজ্যিক কাজকর্ম আমার চোখে পড়েছে।কিন্তু শিল্প সংক্রান্ত কাজকর্ম তেমন দেখিনি।।রাজ্যের শিল্পোন্নয়ন সম্পর্কে আমি কোনও মন্তব্য করিনি, তাই শ্রী মিত্রের মন্তব্য আমার কাছে বিস্ময়কর ঠেকছে। ওনার এত রাগত হওয়ার কারণ দেখছি না।
অমিত মিত্রের এদিনের শ্লেষাত্মক মন্তব্যে তিনি যে অখুশি, তা বুঝিয়ে দিয়ে টুইটারে রতন টাটা আরও বলেছেন, শ্রী মিত্র হয়ত মনে করেন, আমার মতিভ্রম হয়েছে।তবে রাজারহাট দিয়ে যাওয়ার সময় কোন কোন শিল্প উন্নয়ন প্রকল্প আমার নজর এড়িয়ে গিয়েছে, সেগুলি উনি যদি আমাকে দেখাতে পারেন, তাহলে আমি খুশি হব।আর যদি না পারেন, তাহলে আমাকে এই সিদ্ধান্তে আসতে হবে যে ওনার কল্পনা শক্তি খুবই উর্বর!
গতকাল ইন্ডিয়ান চেম্বার অব কমার্সের লেডিস স্টাডি গ্রুপের এক অনুষ্ঠানে রতন টাটা কোন পরিস্থিতিতে সিঙ্গুর থেকে ন্যানো প্রকল্প সানন্দে সরিয়ে নিয়ে যেতে হয়েছিল, সেকথা উল্লেখ করে তাঁর মন্তব্যে বুঝিয়ে দেন, গাড়ি প্রকল্প গুটিয়ে ফেলার পর তাঁর আগের অবস্থান একটুও বদলায়নি।তিনি বলেন, সিঙ্গুর-পর্বে জমি অধিগ্রহণ নিয়ে বিক্ষোভের জেরে সেদিন বলেছিলাম, হয় ট্রিগার টিপুন, নয় বন্দুক সরান৷ সেই অবস্থান থেকে আজও সরছি না!
গতকালের অনুষ্ঠানে রতন টাটাকে প্রশ্ন করা হয়, অতীতে তাঁকে কী ধরনের কঠিন পরিস্থিতির মুখোমুখি হতে হয়েছে৷ উত্তর দিতে গিয়ে দু'টি ঘটনার উল্লেখ করেন রতন টাটা৷ তার মধ্যে অন্যতম সিঙ্গুর৷ টাটা গোষ্ঠীর এমিরেটাস চেয়ারম্যান বলেন, সিঙ্গুর জীবনের সবথেকে কঠিন সিদ্ধান্ত৷ চরম প্রতিকূল পরিস্থিতির মধ্যে ন্যানো প্রকল্প সরিয়ে নিয়ে যাওয়া ছাড়া উপায় ছিল না৷ সিঙ্গুর থেকে ন্যানো প্রকল্প সরানোয় বিশ্বব্যাপী নেতিবাচক প্রভাব পড়েছে বলেও আক্ষেপ প্রকাশ করেন রতন টাটা৷ সিঙ্গুর নিয়ে তাঁর মন্তব্যের প্রেক্ষিতে শিল্পমহলের একাংশের ধারণা, সাইরাস মিস্ত্রি টাটা গোষ্ঠীর চেয়ারম্যান হওয়ার পর আদালতের বাইরে সিঙ্গুর সমস্যার সমাধানের সম্ভাবনা নিয়ে যে জল্পনা তৈরি হয়েছিল, রতন টাটা তাতে কার্যত জল ঢেলে দিলেন৷
এই প্রেক্ষাপটে আজ রতন টাটাকে নজিরবিহীন আক্রমণ করেন অমিত মিত্র, ফিরহাদ হাকিম, মদন মিত্ররা।সবার প্রথমে অমিত মিত্র সিআইআই আয়োজিত এক সেমিনারের ফাঁকে অমিত মিত্র বলেন, রতন টাটার বয়স হয়েছে, মতিভ্রম হয়েছে।ওনার।রাজ্যে যা হচ্ছে, সেটা উনি কেন বুঝতে পারছেন না, জানি না।অমিত মিত্রের দাবি, ।টাটা গোষ্ঠীর সংস্থা টিসিএস এখানে বাড়তি ২০ হাজার কাজের ব্যবস্থা করছে।অনিল আম্বানি, ইমামি গোষ্ঠী উভয়েই রাজ্যে সিমেন্ট প্ল্যান্ট গড়ছে।সম্প্রতি টাটাদের আরেকটি সংস্থা টাটা মেটালিক্স রাজ্যে তাদের বর্তমান ইউনিটের সম্প্রসারণ ঘটাতে চেয়ে চিঠি দিয়েছে সরকারকে।তাহলে উনি কি প্রকৃত তথ্য সম্পর্কে ওয়াকিবহাল নন কেন? তাঁর নিজের দফতর তাঁকে ঠিকমত ব্রিফ করেনি?।
তারপরই রতন টাটাকে তাঁর আরও কটাক্ষ, ওনার প্লেন চালানোর শখ, সেটাই চালান উনি।
অমিত মিত্রের পাশাপাশি পুরমন্ত্রী ফিরহাদ হাকিমের কটাক্ষ, ওনার মাথা খারাপ হয়ে গিয়েছে! ওনার সার্টিফিকেটের দরকার নেই।
ABP Ananad
রাজ্যে শিল্প চোখে পড়ছে না: রতন টাটা
তৃণমূলের জঙ্গি আন্দোলনের জেরে ছ'বছর আগে সিঙ্গুর থেকে ন্যানো কারখানা গুটিয়ে গুজরাতের সানন্দে চলে গিয়েছিলেন তিনি। নিতান্ত অনিচ্ছায়। এত দিন পরেও সেই ক্ষত যে শুকোয়নি, বুধবার কলকাতায় এসে সে কথা বুঝিয়ে দিলেন টাটা গোষ্ঠীর প্রাক্তন কর্ণধার ও বর্তমান এমেরিটাস চেয়ারম্যান রতন টাটা। ক্ষত তাঁর মনে। ক্ষত ন্যানো প্রকল্পেও। সিঙ্গুর ঘিরে অনিশ্চয়তার জেরে ভাবমূর্তির ক্ষতি সামলে উঠতে পারেনি একলাখি ছোট গাড়ি। কার্যত তার স্বপ্নভঙ্গ হয়েছে।
নিজস্ব সংবাদদাতা
০৭ অগস্ট, ২০১৪
কেন্দ্র সহায়, তবুও কারখানা হয়নি রাজ্যে
আর্থিক বঞ্চনার অভিযোগ নিয়ে কেন্দ্রের বিরুদ্ধে প্রায় নিত্য সরব রাজ্য। অথচ বুধবার রাজ্যের মন্ত্রীর উপস্থিতিতেই কেন্দ্রীয় বাণিজ্য মন্ত্রকের অধীনস্থ সংস্থার কর্তা দাবি করলেন, আদপে কেন্দ্রের সহায়তা নিয়েই উঠতে পারে না পশ্চিমবঙ্গ। যেখানে সেই টাকা নিয়ে নিয়মিত খরচ করতে পারায় ওই খাতে ফি বছর বরাদ্দ বাড়িয়ে নেয় গুজরাত, মহারাষ্ট্রের মতো রাজ্যগুলি।
নিজস্ব সংবাদদাতা
০৭ অগস্ট, ২০১৪
এক মাস বন্ধ পেট্রোকেম, ধুঁকছে প্লাস্টিক শিল্পও
নিজস্ব সংবাদদাতা
হলদিয়া পেট্রোকেমিক্যালসের দরজা বন্ধে দমবন্ধ দশা রাজ্যের প্লাস্টিক শিল্পেরও। আজ প্রায় এক মাস কারখানা বন্ধ পেট্রোকেমের। তাই সমস্যা কাটিয়ে ঘুরে দাঁড়ানো ক্রমশ কঠিন হয়ে পড়ছে তার পক্ষে। কিন্তু সেই সঙ্গে আতান্তরে রাজ্যের প্লাস্টিক শিল্পও। পেট্রোকেমের তৈরি কাঁচামাল ব্যবহার করে বালতি থেকে শুরু করে পেনের রিফিল বহু জিনিস তৈরি করে যারা।
০৬ অগস্ট, ২০১৪
শর্তসাপেক্ষে বাটা উপনগরী প্রকল্পে অনুমতি রাজ্যের
নিজস্ব সংবাদদাতা
০৬ অগস্ট, ২০১৪
জঙ্গপানা বাগানে ইউনিয়ন শর্ত না-মানলে রফা নয় কর্তৃপক্ষের
নিজস্ব সংবাদদাতা
০৫ অগস্ট, ২০১৪
শ্রমিক সংগঠনের শীর্ষে মন্ত্রীদের বসা নিয়ে রাজ্যের মত চাইল কেন্দ্র
প্রভাত ঘোষ
কোনও কারখানা বা শিল্প সংস্থার শ্রমিক সংগঠনের মাথায় মন্ত্রীদের বসা নিয়ে রাজ্যের মতামত চাইল কেন্দ্রীয় শ্রম মন্ত্রক। বহিরাগত কারও সংগঠনের পদাধিকারী হওয়া উচিত কিনা, জানতে চাওয়া হয়েছে তা-ও। যার কারণ গত ১১ অক্টোবর মাদ্রাজ হাইকোর্টের দেওয়া রায়। যেখানে কর্মী সংগঠনের কোনও পদে মন্ত্রী বা বহিরাগতদের বসার উপর নিষেধাজ্ঞা জারি করা হয়েছে।
০২ অগস্ট, ২০১৪
গুন্ডারাজ বন্ধ হবে নতুন আবাসন নীতিতে: ফিরহাদ
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शहरीकरण का विस्फोट
शहरीकरण का विस्फोट
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मीडिया फॉर राईट्स
113 शहरों द्वारा गंगा और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में हर रोज डेढ़ अरब लीटर अपशिष्ट गंदा पानी छोड़ा जाता है। ऐसे में बेतरतीब ढंगी शहरों का यह देश किसी भी ऐसी महामारी के चपेट में आ सकता है, जिसके लिये हम खुद जिम्मेदार होंगे। हम उस स्थिति में कभी नहीं आ सकेंगे जब शहरों द्वारा पैदा किये गये अरबों टन कचरे का उपचार करके उसे ठिकाने लगा सकें। यह कचरा पानी, जमीन, पेड़ और इंसानी स्वास्थ्य, सबको बीमार बना देगा।
डिण्डोरी जिले के हरिराम बैगा को एक बार बंगलुरू जाने का मौका मिल गया। हरिराम ने जब बंगलुरू के हवाई अड्डे की ओर जाने वाली चमचमाती और दूधिया रोशनी से नहाई हुई सड़क देखी तब उसने कहा कि, तो इसीलिए अपने गाँव के लोग शहर की ओर दौड़-दौड़कर आ रहे हैं। फिर इस बैगा आदिवासी ने कहा कि ऐसी सड़कों को इतनी बिजली यहां कैसे मिल जाती है, हमारे गाँव के घरों में तो एक बल्ब भी नहीं जल पाता? वास्तव में जब शहरीकरण एक जज्बा बनकर हमारी बहस में आता है तो विकास का सबसे बड़ा लक्ष्य यही बन जाता है कि इस देश को शहरों को देश बना दो! और एक आम इंसान जब शहर की कल्पना करता है तो उसके सामने चकाचौंध कर देने वाली बसाहट होती है, आधुनिकता का भव्य प्रदर्शन होता है। अभावों में रहकर जिंदगी के एक-एक हिस्से को जोड़कर संवरने की जद्दोजहद करने वाला गाँव में रहने वाला हरिराम यह मानने लगता है कि शहर यानी आसानी से उपलब्ध पानी, कदम-कदम पर इलाज और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की सुविधायें! परन्तु उन झुग्गी बस्तियों को देखकर वह दुविधा में पड़ गये कि वैसा उजाला और सुविधायें शहर की इस आधी आबादी को क्यों नही मिली! ऐसा भेदभाव तो गाँव में भी नही होता है। यदि वह युवा हुआ तो वह मानेगा कि शहर माने रोजगार के चारों तरफ बिखरे हुये अवसर। कुल मिलाकर शहरीकरण एक काल्पनिक दुनिया तो नहीं है न!
किस कीमत पर शहरीकरण!
आज जब हम इस विषय पर चर्चा करते हैं तो वह थोड़ी ही देर में बहस में तब्दील हो जाती है। हम या तो शहरीकरण के पक्ष में खड़े होते हैं या फिर इसी पूरी तरह से खिलाफत करते हैं। यह बहस जायज है। जायज इसलिये क्योंकि हम जानना चाहते हैं कि हमारे देश में जो शहरीकरण हो रहा है, कहीं वह गांवों की बदहाली और वहां सिमटती जा रही जिंदगी का परिणाम तो नहीं है! हमारे मन में यह भी ख्याल आता है कि कहीं इसके पीछे कोई आर्थिक राजनीति तो नहीं छिपी हुई है। हम आंकलन करना चाहते हैं कि बदहाली, बीमारी, बेरोजगारी और असुरक्षा जैसे सवालों के जवाब क्या बेतरतीब ढंग से हो रहे शहरीकरण में मिलने वाले हैं? पूरी दुनिया की तरह ही भारत में भी शहरीकरण को आधुनिक विकास से पैदा हुई सोच नहीं माना जा सकता है। आज की परिस्थितियों पर पहल करने से पहले हमें इसका ऐतिहासिक पहलू जान लेना बहुत जरूरी है। मानव सभ्यता के जब से प्रमाण मिलते हैं तभी से शहरों के निशान भी मिलते हैं। सुनियोजित और सुव्यवस्थित शहरीकरण की परम्परा भारत को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में दुनिया के दूसरे देशों से एक अलग पहचान दिलाती है।
दुनिया में पांच हजार साल पहले की हिंदू घाटी की सभ्यता में शहरी बसाहट की शुरूआत के प्रमाण भारत में ही देखें गये। इसके बाद मध्यकाल में भी सत्ता व्यवस्थाओं के उत्थान और पतन के फलस्वरूप शहरों की स्थापना की एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया सी नजर आती है। कई मर्तबा इसे एक सांस्कृतिक व्यवहार के साथ भी जोड़कर देखा जाता रहा है। परिभाषा के स्तर पर व्यापार, उद्योग, राज्य और सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक व्यवस्था को चलाने के लिये शहरों के वजूद को अनिवार्य माना गया है। आधुनिक भारत में शहरीकरण का तेज दौर 18वीं सदी में तब देखा गया जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में आई। उसने व्यापार-उत्पादन के लिये बंदरगाहों का निर्माण किया और उन बंदरगाहों के आसपास शहर बसाये या उनका विकास किया। एक नजरिये से भारत की गांवों के संसाधनों को लूटकर ले जाने के लिये शहरों को जरिया बनाया गया।
इसके बाद हमारे लिये बीसवीं सदी बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। 1901 से 2001 की अवधि में यहां कुल शहरों की संख्या 1827 से बढ़कर 5161 (वर्ष 2001 में) हो गई। शहर तो बढ़े परन्तु यह बात भी साफ तौर पर उभरकर आती है भारत में छोटे शहरों से ज्यादा बड़े शहरों का विकास हुआ है। वर्ष 1901 में एक लाख की जनसंख्या वाले केवल 24 शहर थे जो वर्ष 2001 में बढ़कर 393 हो गये जबकि 5 से 10 हजार की जनसंख्या वाले शहरों की संख्या 744 से बढ़कर महज 888 हो पाई। यानी संसाधन और विकास बड़े नगरों के आसपास केन्द्रित हुआ। बड़े शहरों में रहने वाली जनसंख्या का प्रतिशत 26 से बढ़कर अब 68 हो गया है और छोटे शहरों में आबादी का अनुपात कम हुआ है। शहरीकरण का यह परिदृश्य बताता है कि कहीं न कहीं गांवों की बदहाली ने इसके लिये उर्वरक का काम किया है। वर्ष 1921 में भारत में 685665 गाँव थे और गांधी जी कहते थे कि हमारा देश 7 लाख गणराज्यों का देश है और वर्ष 2001 की जनगणना बताती है कि अब महज 593731 गाँव ही देश में आबाद हैं। कहां गये ये 92 हजार गाँव मतलब यह है 28 गाँवों की कीमत पर एक शहर खड़ा हुआ। मौजूदा दशक में ही 7863 गाँव शहरों की सीमा में शामिल कर दिए गए। आज भारत के शहरों में लगभग 34 करोड़ लोग रहते हैं और यह संख्या अगले 20 वर्षों में बढ़कर 59 करोड़ हो जायेगी।
आज शहरी जीवन के 2 घंटे हर रोज ट्रैफिक के नाम होते हैं। वर्तमान स्थिति में भारत में एक किलोमीटर सड़क पर 170 वाहनों का घनत्व है, जो सड़कों पर जाम की स्थिति बनाता है। अगले 20 वर्षों में जाम का समय दो गुना हो जाने वाला है क्योंकि निजी परिवहन साधनों को भारत में ज्यादा विस्तार दिया गया। जिससे सार्वजनिक परिवहन सेवायें बेहद कमजोर हो गई। आज 70 प्रतिशत शहरी परिवहन निजी साधनों से होता है जिसे आधा करने की जरूरत है। कार्बन उत्सर्जन, दुर्घटनायें और तनाव भी यातायात की अव्यवस्था के बड़े परिणाम है।
बुनियादी जरूरतों का बुनियादी संकट
इस तथ्य को महज नकारात्मक कहकर हमें नकारना नहीं चाहिए कि देश-समाज ज्वालामुखी सरीखे विस्फोट की संभावना के मुहाने पर आ बैठा है। भारत के चार राज्यों (बिहार, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड) के 36 शहर हर रोज डेढ़ अरब लीटर अपशिष्ट मैला पानी बिना उपचार के गंगा के बेसिन में छोड़ते हैं। इतना ही नहीं भोपाल का 24 करोड़ लीटर मैला अपषिष्ट पानी खुला छोड़ दिया जाता है जो शहर की शान भोज तालाब में जाकर भी मिला है, तो इन्दौर का 12 करोड़ लीटर गंदा पानी खान और शिप्रा नदी से जा मिलता है। मध्यप्रदेश के बड़े शहर हर रोज 124.8 करोड़ लीटर मैला और गंदा पानी पैदा करते हैं परन्तु राज्य में ऐसे पानी को उपचार करने की क्षमता महज 18.6 करोड़ लीटर पानी की है। राजस्थान 138 करोड़ लीटर सीवेज उत्पादन के बदले केवल 5.4 करोड़ लीटर पानी का उपचार करने की क्षमता रखता है। छत्तीसगढ़ 35 करोड़ लीटर गंदा पानी पैदा करता है पर महज 6.9 करोड़ लीटर का उपचार करता है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की शहरों में पानी की स्थिति पर जारी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 908 शहर हर रोज 3.80 अरब लीटर मैला पानी पैदा करते हैं और इसमें से 2.80 अरब लीटर मैला अपशिष्ट बिना उपचार के शेष गंदा पानी खुले मैदानों और नदियों (जैसे गंगा, नर्मदा, क्षिप्रा, चंबल आदि) में मिलने के लिये छोड़ दिया जाता है। 113 शहरों द्वारा गंगा और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में हर रोज डेढ़ अरब लीटर अपशिष्ट गंदा पानी छोड़ा जाता है। ऐसे में बेतरतीब ढंगी शहरों का यह देश किसी भी ऐसी महामारी के चपेट में आ सकता है, जिसके लिये हम खुद जिम्मेदार होंगे। हम उस स्थिति में कभी नहीं आ सकेंगे जब शहरों द्वारा पैदा किये गये अरबों टन कचरे का उपचार करके उसे ठिकाने लगा सकें। यह कचरा पानी, जमीन, पेड़ और इंसानी स्वास्थ्य, सबको बीमार बना देगा। प्रोफेसर सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक 25.7 प्रतिशत शहरी गरीबी की रेखा के नीचे हैं। ये एक व्यक्ति पर 19 रूपये प्रतिदिन से भी कम खर्च करके जीवनयापन करते हैं। आज जबकि शहरों में अपनी छत का सुख हासिल करना बुनियादी जरूरत है, इन परिवारों के लिए आवास का आधार मिलना एक दूर का ख्वाब है।
जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना के तहत झुग्गीवासियों और गरीब परिवारों को घर देने की प्रक्रिया जरूर शुरू की गई है पर इसमें एक व्यक्ति के खाते में महज 30 से 40 वर्गफिट की सतह ही आ रही है। भोपाल में इस योजना के अनुभव बताते हैं कि निर्माण तो पूरी तरह से गुणवत्ताहीन हैं और असुरक्षित भी। मौजूदा स्थिति में जबकि महज 2.7 प्रतिशत नगर पालिकायें ही 100 लीटर प्रतिव्यक्ति या उससे अधिक पानी उपलब्ध करा पा रही हैं और 28 प्रतिशत नगरीय क्षेत्र में जनता को 50 लीटर से कम पानी उपलब्ध है। यानी जकारिया समिति द्वारा तय मापदण्डों को लागू नहीं किया जा पा रहा है इसके एवज में पानी का निजीकरण कर दिया गया है जिससे शहरी गरीबों के लिये संकट गहरा रहा है। बात अब केवल पानी की खरीदी-बिक्री का ही नहीं है बल्कि पानी की तेजी से होती कमी के संदर्भ में पानी हासिल करने की है, जिसके बारे में शहरीकरण की नीतियाँ चुप हैं। वर्ष 2008 में भारत के शहरों में पानी के लिए 1738 झगड़े हुये जिनमें 19 लोग मारे गये, वर्ष 2009 में इनकी संख्या 1903 पहुंच गई।
वर्ष 2007 में 83 बिलियन लीटर पानी की जरूरत थी पर महज 56 बिलियन लीटर पानी की आपूर्ति हो पा रही थी यानि 27 बिलियन लीटर पानी की कमी थी। वर्ष 2030 में जरूरत होगी 189 बिलियन लीटर पानी की और उपलब्ध होगा केवल 95 बिलियन लीटर। यानी कमी 27 बिलियन लीटर से बढ़कर 96 बिलियन लीटर हो जायेगी। इसी तरह वर्ष 2007 में हर रोज 66 बिलियन लीटर गंदे पानी के उपचार की जरूरत के विरूद्ध केवल 13 बिलियन लीटर पानी का उपचार हो पा रहा था। वर्ष 2030 में हम 42 बिलियन लीटर पानी का उपचार करने की क्षमता रखेंगे पर गंदे पानी का उत्पादन 151 बिलियन लीटर हो जायेगा। हर साल अभी 51 मिलियन टन कचरा हर साल पैदा होता है, कचरे की यह पैदावार 2030 में बढ़कर 377 मिलियन टन हो जायेगी। यही कमी सड़क और रेल यातायात के मामले में भी जमकर बढ़ने वाली है। आवास व्यवस्था के बारे में उभरकर आये निष्कर्ष और ज्यादा गंभीर हैं। आज जरूरत 3 करोड़ घरों की है पर केवल 50 लाख घर ही बन पायेंगे। यह अंतर 2030 के शहरों में खूब बढ़ने वाला है। तब 5 करोड़ घर चाहिये होंगे और बन पायेंगे केवल 1.20 करोड़।
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