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आइए, आपको गड़बड़ लोगों के चेहरे पहचानने का एक आसान नुस्खा बताता हूं। कल दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक पुरुषोत्तम लेखक-प्रशासनिक का साठवां जन्मदिवस मनाया गया। तस्वीरें यहीं कहीं तैर रही हैं। खोजिए, मिल जाएंगी। सबसे पहले उसमे उन लोगों को देखिए जो जंतर-मंतर पर प्रो. कलबुर्गी की हत्या के विरोध में हुए जुटान में नहीं आए थे जबकि यहां सेल्फी में दांत चियार रहे हैं। ये लोग सबसे खतरनाक नहीं हैं।
उसके बाद उन लोगों को पहचानिए जो यहां भी हैं और वहां भी थे। खासकर उन्हें जो बहुत एक आदमी के साठा होने पर इतने आश्वस्त दिख रहे हैं। अब उन्हें विशेष रूप से पहचानिए जो मंच पर पुरुषोत्तम का अभिनंदन करने बैठे हैं। ये लोग कहीं ज्यादा खतरनाक हैं लेकिन सबसे खतरनाक नहीं।
अब आप इनमें से उन्हें पहचानिए जो वीरेन डंगवाल पर हुए जीपीएफ के प्रोग्राम में मंच पर थे, जंतर-मंतर पर भी अगली कतार में थे और यहां भी मंच पर हैं। ये वही लोग हैं जो उदय प्रकाश के साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाने पर न केवल चुप हैं बल्कि खुद अगड़म-सगड़म पुरस्कार लेने में व्यस्त हैं। ये लोग सबसे खतरनाक हैं।
कन्नड़-मराठी के लोग जब सत्तर पार जाकर भी अपनी असहमति के एवज में गोली खा रहे हों, ऐसे में हिंदी का एक आदमी साठ का होकर किस पर अहसान कर रहा है? आप एक ही हफ्ते में किसी के मरने का शोक भी मनाएंगे और बर्थडे भी... ई ना चोलबे। मुझे ''अग्निसाक्षी'' की याद आ रही है। हिंदी में तत्काल एक नाना पाटेकर मांगता।