कहीं आलोचना की हर आवाज़ को कुचलने के लिये संविधान-विरोधी सरकारी फ़रमान जारी किये जा रहे हैं, महत्वपूर्ण संस्थानों और प्रतिष्ठानों पर अपने नालायक समर्थकों को बिठाया जा रहा है, मूर्खतापूर्ण प्रलाप के साथ वैज्ञानिक उपलब्धियों को नकारा जा रहा है, देश के शीर्षस्थ नेता वैकल्पिक प्रतिमानों के साथ उदारवादी धर्मनिरपेक्ष आधार का भीतरघात कर रहे हैं ...
और चुने हुए बुद्धिजीवियों की हत्या की जा रही है.
ये सभी एक सोची-समझी साज़िश, एक समूची रणनीति के अंग हैं.
हमारे संघर्ष में इन्हें आपस में जोड़कर देखना होगा.