बंगाल में गुजरात माडल की धूम
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
नमोसुनामी रचना में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भी बड़ा हाथ है।इसकी कायदे से चर्चा लेकिन हुई नहीं है। याद करें कि मनमोहन सिंह की सरकार ने खुदरा बाजार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की घोषणा कर दी तो कैसे ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस केंद्र सरकार से अलग हो गयी।मनमोहन जो दूसरे चरण के आर्थिक सुधार में लगे थे,वे आखिरकार राजनीतिक बाध्यताओं की वजह से फेल हो गये और अपने सबसे वफादार भारतीय प्रधानमंत्री के खिलाफ नीतिगत विकलांगता का आरोप लगाकर अमेरिका ने निषिद्ध नमो विकल्प अपना लिया बाकी कवायद विशुद्ध कारपोरेट है।
अब यह साफ है कि स्मार्ट सिटी दरअसल प्राद्योगिकी महासेज हैं और केंद्र की केसरिया सरकार सेज पुनर्जीवित करने के अलावा औद्योगिक गलियारों हीरक, बुलेट चतुर्भुज,स्मार्ट सिटी के अलावा निर्माण विनिर्माण के बहाने सेज संस्कृति का नया दौर शुरु करने जा रही है।अदाणी महासेज को हरीझंडी इस नये दौर का प्रस्थानबिंदू कहा जा सकता है तो बजट में केसरिया कारपोरेट सरकार ने सौ स्मार्ट सिटीज का ऐलान भी कर दिया है।
मजे की बात तो यह है कि सेजविरोधी आंदोलन से वामासुरमर्दिनी बनने वाली बंगाल की मुकख्यमंत्री इन सौ में से कम से कम दस सेज स्मार्ट सिटी बंगाल में बनवाने के लिए केंद्र सरकार के साथ सौदेबाजी कर रही है।
बंगाल सरकार नये कोलकाता के न्यू टाउन,कोलकाता विस्तार के बारुईपुर, विधान राय के ख्वाबों के नये कोलकाता कल्याणी और यहीं नहीं,बंगाली संस्कृति के सबसे बड़े आइकन कविगुरु रवीन्दनाथ टैगोर की कर्म भूमि बौलपुर शांतिनिकेतन को भी सेज स्मार्ट सिटी में तब्दील करने को तत्पर है।
गौरतलब है कि आसनसोल दुर्गापुर के मध्य अंडाल विमान नगरी भी पीपीपी माडल है।इसके अलावा आसनसोल में भी एक पीपीपी एअर पोर्ट बनाने की योजना है।
तय है कि जीेएसटी और डायरेक्ट टैक्स कोड लागू करने में भी दीदी मोदी के साथ होंगी।दीदी ने खुशी खुशी ऐलान भी कर दिया है कि जीएसटी मुद्दे पर केंद्र और राज्यों की बैठक बहुत जल्द होने वाली है।
टाटा को बंगाल से खदेड़ने वाली दीदी नमो महाराज की तरह रिलायंस के प्रति खास मेहरबान हैं और बंगाल में स्पेक्ट्रम साम्राज्य स्थापित करने का एकाधिकार भी रिलायंस को मिला है।
इसके अलावा बाकी बचने वाले खून के प्लाज्मा को रिलायंस को बेचने का फैसला भी हो चुका है और इस प्लाज्मा से रिलायंस बेहद कम लागत पर बेशकीमती दवाइयां बनायेगा।
कोलकाता और हल्दिया बंदरगाहों में माल निकासी बंदोबस्त का निजीकरण हो गया है।
विडंबना यह है कि आर्थिक सुधारों का दूसरा चरण जिस ममता दीदी के कारण रुक गया,उनके बंगाल में अब गुजरात माडल की धूम है।शिक्षा और चिकित्सा समेत सेवा क्षेत्र में निजीकरण की धूम है।शिक्षा क्षेत्र में तो अराजकता की इंतहा है।
कारखानों की जमीन हथियाने में सत्ता दल के ट्रेड यूनियन नेताओं की मारामारी भी गौरतलब है।कम से कम दो कारखानों श्याम शेल और गगन इस्पात की जमीन हथियाने का ताजा आरोप तृणमूल के खिलाफ है।जिसे मुख्यमंत्री मामूली घटना बता रही हैं।
दीदी के जमाने से ही रेलवे का निजीकरण का खेल चालू हुआ और तमाम विकास योजनाओं में दीदी ने पीपीपी माडल अपनाया।पीपीपी गुजरात माडल और देशी विदेशी पूंजी से उन्हें खास परहेज नहीं है।खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का विरोध जिन कारणों से दीदी करती रही, वे कारण भाजपाई ऐतराज से अलग नहीं है।
बाकी डिजिटल नागरिकता के खिलाफ जिहाद का ऐलान करने के बावजूद आधार कार्ड बनवाने के लिए चुनाव मध्ये उनकी चुस्ती हैरतअंगेज है तो निजीकरण और विनिवेश के खिलाफ उनका जिहादी तेवर अभी दिखा नहीं है।
दरअसल केंद्र के जनहितकारी कदम विनिवेश और प्रत्य़क्ष विदेशी निवेश के अलावा कुछ भी नहीं है।जिनका वे समर्थन करती रहेंगी।
जमीन अधिग्रहण का वे विरोध जरुर कर रही हैं क्योंकि यह उनकी राजनीतिक बाध्यता है खुल्लम खुल्ला मोदी के साथ खड़ा न हो पाने की तरह।आखिरकार नंदीग्राम और सिंगुर के भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदलन के जरिये ही आज वे सत्ता में हैं।
मोदी की विजयगाथा में कारपोरेट योगदान जितना है,दीदी के परिवर्तन में वह योगदान उससे ज्यादा न भी हो,बहुत कम भी नहीं है.देशी विदेशी मुक्त बाजार समर्तक तमाम ताकते वामदलों के खिलाफ दीदी के साथ लामबंद हो गयी थीं, इसलिए मुक्त बाजार और आर्थिक सुधारों के खिलाफ दीदी के खड़े हो जाने की प्रत्याशा सिरे से गलत है।
यही केंद्र में मोदी सरकार से सहयोग का दीदी का प्रस्थानबिंदू है।
जुबानी विरोध के बावजूद औद्योगिकरण के बहाने अंधाधुंध शहरीकरण,बिल्डर प्रोमोटर राज और पूंजी के राजमार्ग पर अंधी दौड़ की वाम विरासत बंगाल में खत्म हुई नहीं है।तमाम परियोजनाें पीपीपी माडल के तहत हैं।
बंगाल के वित्तमंत्री मदन मित्र ने केंद्र के साथ राज्यों के परिवहनमंत्रियों की बैठक में गैरजरुरी परिवहनकर्मियों को तत्काल वीआरएस देने की सिफारिश कर दी है तो दीदी के ही सूचनाविभाग में ठेके पर नियुक्तियां हो रही हैं।
कलकारखानों को खोलने के वायदे के साथ सत्ता में आयी मां माटी की सरकार के जमाने में अबतक दर्जनों कारखानों के गेट तालाबंद हो गये हैं और श्रमिकों के हित में नई सकार कुछ नहीं कर पा रही है।
शालीामार पेंट्स में काम बंद होना ताजा उदाहरण है जिसके सारे कर्मचारियों का स्थानांतरण नासिक कर दिया गया है।
दूसरी ओर, कल कारखानों की जमीन पर जो बहुमंजिली आवासीय परिसर,शापिंग माल, एजुकेशन और हास्पीटल हब बन रहे हैं,उसमें सत्तादल समर्थित सिंडिकेट की मस्त भूमिका है और इसी को लेकर सत्तादल में मूसल पर्व भी जारी है।
चाय बागानों में मृत्यु जुलूस का सिलसिला बंद नहीं हुआ है तो जूट उद्योग को पुनर्जीवित करने की कोई पहल भी नहीं हुई है।
ठेके की खेती बंगाल में दीदी के माने में शुरु हो गयी है खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बिना ही।जबकि जीएम बीजों को लेकर दीदी को कोई खास ऐतराज नहीं है।
अब हावड़ा के बर्न स्टैंडर्ट कारखाना के एकसौ चालीस कर्मचारियों की छंटनी के खिलाफ भारत के मृत मैनचेस्टर में बवंडर मचा हुआ है।राज्य सरकार खुदै छंटनी कर रही है तो निजी पूंजी को रोकने का सवाल ही नहीं उठता।
दीदी की राजनीतिक बाध्यता है कि वे अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीतिक बाध्यता की वजह से केसरिया चोला फिलहाल पहन नहीं सकती।लेकिन ट्राई संशोधन बिल पास कराने के बाद केसरिया सरकार के जनहितकारी कदमों के समर्थन के मामले में दीदी ने बाकी सारे क्षत्रपों को पीछे छोड़ दिया।
बंगाल में जो राजनीतिक संघर्ष का माहौल है,उसमें सत्तादल के मुकाबले में भाजपा ही भाजपा है।
वाम दलों में नेतृत्व संकट है और खिसकते जनाधार के बीच कामरेड भी अब केसरिया होने लगे हैं।
कांग्रेस में तो लगभग भेड़ धंसान है।
तृणमूल कांग्रेस के असंतुष्ट कैडर नेता भी भारी पैमाने पर भाजपा में शामिल हो रहे हैं जैसा वीरभूम में देखने को मिला है।
अगले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर दीदी के लिए भाजपा के खिलाफ चुनावी तेवर अपनाकर बंगाल में ध्रूवीकरण का माहौल बनाये रखना मजबूरी है।
जैसा कि यूपीए जमाने में हुआ,प्रदेश कांग्रेस के साथ दीदी की कभी बनी नहीं,लेकिन केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व के साथ खासकर गांधी नेहरु परिवार के साथ उनका बहनापा जारी रहा गठबंधन तोड़ने से पहले तक।
लगता है कि दीदी ने पुराना नूस्खा अपना लिया है और केंद्र में अलग और राज्य में अलग नीति है।केंद्र में सहयोग और राज्य में वोटबैंक साधने के लिए भाजपा के खिलाफ जिहाद।
यह कोई मौलिक आविस्कार भी नहीं है।
वामदलों ने दशकों तक ऐसा ही किया है।कांग्रेस के खिलाप बंगाल में युद्धघोषणाके मध्य धर्मनिरपेक्षता की आड़ में केंद्र की जनविरोधी सरकार के हर कदम पर साथ साथ दिखे हैं वामपंथी और इसी वजह से वे ग्लोबीकरण और मुक्तबाजार का विरोध बंगाल,केरल और त्रिपुरा की सत्ता की लालच में कभी नहीं कर सकें।
बाकी क्षत्रपों का भी केंद्र और राज्य में सुर अलग अलग है।
राज्यों की अर्थव्यवस्था केंद्र सरकार की मेहरबानी पर निर्भर है।
केंद्र की मदद के बिना राज्य में राजाकाज असंभव है और इन क्षत्रपों के खिलाफ केंद्र की ओर से केंद्रीय एजंसियों का खूब इस्तेमाल होता रहा है।
इसे सभी जानते हैं और ब्यौरा देने की जरुरत भी नहीं है।
बंगाल में शारदा घोटाल में जैसे सांसदों,मंत्रियों ,विधायकों और पार्टी नेताओं के साथ सात कटघरे में खड़ी हैं दीदी,दिल्ली की केसरिया सरकार के साथ बहुत पंगा लेने की हालत में वे नहीं हैं।