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वीरेन डंगवाल की कविता पर बातचीत और कविता आवृत्ति के आनंद के लिए 4 सितम्बर को शाम 5 बजे गांधी शांति प्रतिष्ठान, आई टी ओ के नजदीक

Next: हम खेत सींचेंगे अपनों के खून से। अपनी अपनी शहादत से सीचेंगे खेत हम तमाम। खेत फिर जागेंगे। 'आएंगे उजले दिन जरुर ..'कह दो बेखौफ,मुहब्बत है अगर दिल कहीं धड़कता है! नफरत की सुनामियों से क्या डरना! फिजां जब कयामत है तो मुहब्बत का मजा कुछ और है! जो नफरत की आग में खाक करने पर तुले हैं कायनात और इंसानियत भी! अब उन्हें करारा मुंहतोड़ जबाव देने का वक्त इससे बेहतर नहीं कोई! रेत की तरह फिसल रहा है वक्त, दोस्तों! सिंहद्वार पर दस्तक फिर मूसलाधार! बिजलियां गिर रही हैं धुआंधार! जिगर है तो जान है,जान है तो रीढ़ है! किसी कलबुर्गी का खून बेकार बहता रहे,सिंचाई खेतों के वास्ते इससे बेमजा बात और नहीं है।हम खेत सींचेंगे अपनों के खून से। अपनी अपनी शहादत से सीचेंगे खेत हम तमाम।खेत फिर जांगेगे। तन कर खड़ा होकर बता दो कि मुहब्बत क्या चीज है! पलाश विश्वास
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Sanjay Joshi

वीरेन डंगवाल की कविता पर बातचीत और कविता आवृत्ति के आनंद के लिए 
4 सितम्बर को शाम 5 बजे गांधी शांति प्रतिष्ठान, आई टी ओ के नजदीक


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