मुल्क रिलायंस अदाणी का,हुकुम उनका और हुकूमत भी उनकी! नामालूम कि कब यादें सिरे से गुमशुदा हो जायें! कत्लेआम के लिए सियासत काफी है ,दोस्तों। रब को हत्यारा और हत्यारे को रब क्यों बनाते हो ? गुजरात में जो हो रहा है और बाकी देश में जो होने वाला है। धर्म और जाति के नाम जो फिर बंटवारा बेइंतहा है। पहचान के नर्क में जो मुल्क मुल्क दम तोड़ रहा है। रंगा सियार का रंग भी उतरने लगा है। पलाश विश्वास
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