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..... गर्ल्स होस्टल्स का 10 बजिया आतंक .........
देश भर में जितने विश्वविद्यालयों में महिला छात्रावास हैं उसमें लगभग यह पाबंदी आज भी है. लगभग सभी महिला छात्रावास में महिलाएं ही अधीक्षक(वार्डेन) भी हैं. और अधिकांश महिला वार्डेन या तो स्त्री-आंदोलन की समर्थक हैं या उसमें उनकी सहभागिता रही है. इतनी समानताओं के बावजूद किसी वार्डेन ने कैम्पस के अंदर 10 बजे के इस कारवासीय नियम का विरोध नहीं किया है, यह अपने आप में आश्चर्य से कम नहीं. इसी विषय पर मेरी आने वाली लंबी कविता जिसका शीर्षक है--- 'पिंजड़े की क्रांतिकारी मालकिन' आप सभी के सामने संभवतः 31 अगस्त 2015 को शाम 5 बजे होने वाले काव्य-गोष्टी में प्रस्तुत किया जाएगा, जिसमें कई युवा और प्रौढ़ कवि अपनी गंभीर कविताओं का पाठ करने वाले हैं। .....
'कैसे झर रहे हैं तुम्हारी देह से आदरणीय-अतीत-क्रान्ति
जैसे किसी ऐय्याश चित्रकार ने किसी दीवार से चिपकाकर
खींच दिये हों तुम्हारे सारे वस्त्र, ताकि तुम बिक सको....
कितना सुशील छद्म है इस पिंजड़े में
हम होती हुई स्त्री का, हो चुके से ठगा जाना".....
.......................................... जरूर आइये ......