लक्खे एक आदिवासी लड़की है
लक्खे छत्तीसगढ़ के एड्समेट्टा गाँव मे रहती थी
लक्खे की तेरह साल की उम्र मे लखमा से शादी हुई
पुलिस वाले इनाम और के लालच मे आदिवासियों को जेल मे डालते रहते हैं
लक्खे जंगल मे लकडियाँ लेने गयी थी
पुलिस पार्टी उधर से गुज़र रही थी
पुलिस वाले लक्खे को पकड़ कर थाने ले गए
लक्खे को थाने मे बहुत बुरी तरह मारा
उसके बाद लक्खे को जेल मे डाल दिया गया
लक्खे पर पुलिस ने नक्सलवादी होने के चार फर्ज़ी मामले बनाए
तीन मामलों मे लक्खे को अदालत ने निर्दोष घोषित कर के बरी कर दिया है
लेकिन इस सब मे दस साल गुज़र गए
लक्खे अभी भी जगदलपुर जेल मे बंद है
शुरू के कुछ साल तक तो लक्खे को उम्मीद थी
कि मैं जेल से जल्द ही निकल कर घर चली जाऊंगी
जेल मे आने के चार साल तक लक्खे का पति जेल मे लक्खे से मिलने आता रहा
लेकिन चार साल बाद लक्खे ने अपने पति लखमा से जेल की सलाखों के पीछे से कहा
लखमा अब शायद मैं कभी भी बाहर ना निकल सकूं
जा तू किसी दूसरी लड़की से शादी कर ले
जेल से अपने पति के वापिस जाने के बाद
उस रात लक्खे बहुत रोई
सोनी सोरी भी तब जेल मे ही थी
लक्खे का रोना सुन कर
जेल मे दूसरी महिलाओं को लगा शायद लक्खे के परिवार मे किसी की मौत हो गयी है
इसलिए लक्खे रो रही है
लेकिन असल मे उस रात लक्खे के सपनों और उम्मीदों की मौत हुई थी
लक्खे अभी भी जगदलपुर जेल मे है
पूरी उम्मीद है लक्खे आख़िरी मुकदमे मे भी बरी हो जायेगी
लेकिन लक्खे के जीवन के इतने साल कौन वापिस देगा ?
लक्खे के सपनों की मौत भारत के लोकतंत्र की मौत नहीं है क्या ?