इधर दिल्ली का मौसम तो खराब चल ही रहा है यहां की हवा भी कुछ ज्यादा ही खराब हो चुकी है। हम नहीं विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बहुत प्रदूषण हो गया है। लोग बेचैन हैं, हम भी बेचैन हैं। ऐसे में कोई कब कहां भड़ास निकाल दे, क्या कोई गारंटी है। जैसे इधर इस खबर से साहित्यिक हल्कों में खासी बेचैनी है कि दैनिक जनसत्ता में बदलाव हो रहा है। सुना आभासी जगत में मसला बहुत भासित है। वहीं से एक पाठक ने हमें भी कृपा पूर्वक यह टिप्पणी भेजी है:
"जनसत्ता से ओम थानवी अवकाश ले रहे हैं हमारे लिए सूनापन हो जाएगा। हमारे सम्मान की लड़ाई लड़ने वाले थानवी जी का वह योद्धा रूप मैं कैसे भूल पाउंगी जब हम अपने समर्थन के लिए चारों ओर देख रहे थे । राजेन्द्र यादव स्त्री विमर्श के पुरोधा, हमारी आवाज दबाने के लिए हंस में लगातार संपादकीय लिख रहे थे , उस भारी समय में जनसत्ता ने हमारी आवाज को जगह दी थी । थानवी जी ने खुद लिखा और मुझे अपनी बात कहने का भरपूर मौक ा दिया कॉलम के जरिए! सलाम ,बहादुर संपादक ! ÓÓ
यह टिप्पणी है जानी-मानी कथाकार मैत्रेयी पुष्पा की जो इन दिनों दिल्ली की हिंदी अकादेमी की उपाध्यक्ष बना दी गई हैं। पर हमारा भी मानना है कि जिस तरह से उन्होंने ओम थानवी के दिए कॉलम के अलावा अपने उपन्यासों के जरिए भी स्त्रियों के हक की लड़ाई लड़ी है, उन्हें आप सरकार ने कम से कम दिल्ली के महिला आयोग का अध्यक्ष इस बार तो बना ही देना चाहिए था। इससे स्त्रियों के संघर्ष में तेजी आती और हम जैसे पति कुछ डर कर रहते।
– दरबारी लाल इससे आगे के पेजों को देखने लिये क्लिक करें NotNul.com