हम क्या करें !
राजेश त्रिपाठी
(जनसत्ता कोलकाता में हमारे पूर्व सहकर्मी)
आदमी आदमी का बन गया दुश्मन,
हाथों में फूल नहीं आ गये खंजर।।
सियासत का जहर इनसान को बांट रहा है,
भाई भाई को किस कदर काट रहा है।।
हालात बद से बदतर हो रहे क्या करें,
आइए अब मुल्क की बरबादी पे मातम करें।।
इक जमाना था गिरे को उठाते थे लोग।
किसी के घर गमी हो , मिलके मनाते थे सोग।।
क्या वक्त था, कितने आला प्यारे थे लोग।
हाय क्या वक्त है कितने बेरहम आवारे हैं लोग।।
ले लुकाठी गर कोई अपना ही घर फूंका करे।
आइए मिलके उसकी नादानी का मातम करें।।
भाईचारा औ मोहब्बत अब तो कहानी हो गयी।
नशे की अंधी सुरंग में अब जवानी खो गयी।।
सुदामा की बांह थामे वो किशन अब हैं कहां।
गरीब, मजलूम सांसत से सिसकते हैं यहां।।
हालात ऐसे हैं तो इस पर और हम क्या करें।
आइए वक्त की इस मार का हम मातम करें।।
गांधी का नाम तो मोहब्बत का नाम था।
सत्य, अहिंसा प्रेम ही जिसका पैगाम था।।
वो गया तो हिंदोस्तां क्या से क्या हो गया।
विश्वगुरु, शांतिदूत का स्वत्व जैसे खो गया।।
इस आलमे तबाही में भला क्या सरगम करे।
जो खो गया हम उसको बिसूरें, मातम करें।।
कभी इस देश के बाशिंदे सभी हिंदोस्तानी थे।
साथ थे, मिले हाथ थे मोहब्बत की कहानी थे।।
अब तो आदमी की धर्म से हो रही पहचान है।
जाने कितने फिरकों में बंटा गया हिंदोस्तान है।।
सियासी जमातों ने जो किया उस पर हम क्या करें।
आइए इऩ जख्मों को भरें, न सिर्फ हम मातम करें।।
मानाकि मुल्क के लिए सियासत भी जरूरी है।
पर यह इसे बांटे ऐसी क्या कोई मजबूरी है।।
हर कौम मे सौहार्द्र हो, सब मिल कर काम करें।
हर इक का दर्द बांटनेवाला हो ऐसा कुछ राम करें।।
मुल्क में अमनो अमान फिर से मकाम करे।
तब भ़ला किस बात का हम मातम करें।।
उम्मीद पर दुनिया टिकी, हमको भी यह आस है।
जुल्म ज्यादा चलता नहीं, साक्षी इतिहास है।।
फिर अमन, भाईचारे के फूल खिलेंगे बगिया में।
फिर हिंदोस्तान की यही पहचान होगी दुनिया में।।
हर वर्ग, हर धर्म के लोग जहां गलबहियां करें।
भला उस मुल्क में कोई किस बात का मातम करे।
आमीन कहते हैं हम, आप भी सुम्मामीन करें।
प्रेम का यह देश हो उम्मीद ऐसी हम सब करें।।