Quantcast
Channel: My story Troubled Galaxy Destroyed dreams
Viewing all articles
Browse latest Browse all 6050

नेपाल में गायः पवित्र जीव से राष्ट्रीय पशु तक

Next: कुछ भी करो,हमारे इंसानियत वतन बचाने की कोई जुगत करो। कहीं किसी को खबर है नहीं।खबरनवीस भी कोई नहीं। चौबीसों घंटे खबरों का जो फतवा है,नफरत का जो तूफां है खड़ा,वह केसरिया मीडिया का आंखो देखा हाल है।मुल्क बंट रहा है किसी को न खबर है और न परवाह है। सूअरबाडा़ खामोश है तो रंग बिरंगे नगाड़े खामोश है।सूअर बाडा़ में हांका कोई लगायें,ऐसा कोई शख्स कहीं नहीं है।नौटंकी चालू आहे। पलाश विश्वास
$
0
0

नेपाल में गायः पवित्र जीव से राष्ट्रीय पशु तक

Posted by Reyaz-ul-haque on 7/29/2015 12:55:00 PM

पत्रकार विष्णु शर्मा नेपाल के मौजूदा सियासी और समाजी हालात पर लेखों की एक शृंखला लिख रहे हैं. पेश है उसकी पहली कड़ी, जिसमें वे गाय को नेपाल का राष्ट्रीय पशु मानने के संदर्भ से शुरू करके, संविधान बनने की कवायद में निहित प्रतिक्रियावादी राजनीति की पड़ताल कर रहे हैं. 
नेपाल के नए संविधान में भी गाय को राष्ट्र पशु स्वीकार किया गया है। अब एक 'गणतंत्र', 'धर्मनिर्पेक्ष', 'समाजवाद उन्मुख', 'बहुजातीय', 'बहुभाषिक', 'बहुधार्मिक', 'बहुसांस्कृतिक'तथा 'भौगोलिक विविधायुक्त'देश की मां गाय होगी जो दूध देगी और पंचगव्य से रोगों का निदान होगा। अब नेपाली जनता बिना किसी धार्मिक दबाव के कानूनी तौर पर गाय पर गर्व कर सकेगी। इसके साथ गौ हत्या के आरोपियों को मौत की सजा देने की धर्मनिरपेक्ष मांग का विकल्प खुला रहेगा। अभी गौ हत्या की अधिकतम सजा 12 वर्ष है। एक अध्ययन के अनुसार गौ हत्या के मामले में सारे आरोपी जनजाति, पिछड़ी मानी जाने वाली हिन्दू जातियां या अल्पसंख्यक समुदाय से हैं।

वैसे 1962 से ही नेपाल का राष्ट्रीय जानवार गाय है। और गाय इसलिए है कि 1962 के संविधान में ही पहली बार नेपाल को राजसी हिन्दू राष्ट्र के रूप में परिभाषित किया गया था। इससे पहले नेपाल में गाय एक पवित्र जानवर था। अधुनिक नेपाली राष्ट्रवाद का जन्म भी इसी समय शुरू हुआ। राजा महेन्द्र ने हिन्दू धर्म को नेपाली राष्ट्रवाद का रूप दिया और गैर हिन्दू आबादी का जबरन हिन्दूकरण करना शुरू किया। राजा महेन्द्र ने 'एक देश, एक वेष, एक भाषा'नेपाल की तमाम राष्ट्रीयताओं पर लागू किया। यह अनायास नहीं है कि नेपाली इतिहास के ठीक इसी बिन्दु पर नास्तिक माने जाने वाले कम्युनिष्ट दल नेपाली राजनीति के रंगमंच पर स्थापित होना शुरू हुए। 

नेपाल के संदर्भ में गाय का सवाल मात्र एक जानवर का सवाल नहीं है बल्कि यह इतिहास के उस कालखण्ड से जुड़ा है जब वर्तमान नेपाली भू-क्षेत्र में हिन्दू रियासतें स्थापित होना शुरू हुईं। भारत में इस्लामिक सत्ताओं के विस्तार और बढ़ते प्रभाव ने हिन्दू राजाओं को पहाड़ों की और ढकेल दिया। इन लोगों ने पहाड़ों में कई छोटे छोटे राज्यों की स्थापना की। बाद में गोरखा राज्य के राजा पृथ्वीनारायण शाह ने इन्हीं राज्यों का 'एकीकरण'करके आधुनिक नेपाल राज्य का निर्माण किया। गोरखा नाम संस्कृत शब्द गौरक्षा से आया है। इसलिए जब गाय को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का राष्ट्रीय पशु माना जाता है तो तमाम भलमनसाहत के बावजूद हिन्दू राष्ट्र के प्रवेश का चोर दरवाजा खुला रह जाता है।

यह दलील दी जा सकती है कि नेपाली राजनीति को भारतीय ढांचे में रख कर नहीं देखना चाहिए या इसका अध्ययन भारतीय संवेदना के साथ नहीं होना चाहिए। यह भी कहा जा सकता है कि शायद नेपाल के लोगों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता। यह सच है कि नेपाल के लोग गाय के सवाल पर वैसी बहस नहीं कर रहे हैं जैसी बहस भारतीय संविधान के निर्माण के वक्त हो रही थी। भारत की संविधान सभा में बहस करते वक्त डॉ आम्बेडकर कहते हैं कि हम पिछले सात दिनों से इस (गाय) पर बहस कर रहे हैं। नेपाल की संविधान सभा ने एक मिनट भी इस पर चर्चा हुई हो ऐसा प्रमाण नहीं मिलता। 

लेकिन जरूरी बात इस बात की जांच करना है कि नेपाल के संविधान निर्माता गाय को कैसे देखते हैं। जब वो गाय को राष्ट्रीय पशु कहते हैं तो गाय के कौन से गुणों को चिह्नित करते हैं। बेशक कृषि प्रधान देश में गाय एक उपयोगी पशु है। लेकिन गाय की उपयोगिता सिर्फ दूध, बैल पैदा करने और गोबर देने में नहीं है। गाय स्वस्थ मांस का भी महत्वपूर्ण स्रोत है। यहीं वह पेंच है जिसकी पड़ताल किए बिना गाय को संविधान को चरने के लिए नहीं छोड़ा जाना चाहिए था।

इन्टरनेट पर उपलब्ध नेपाली पाठ्यक्रम की पाठ्य पुस्तकों में गाय पर सामग्री का अध्ययन करने से संविधान और नीति निर्माताओं की जिस मानसिक स्थिति का संकेत मिलता वो वाकई देश के धर्मनिरपेक्ष भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। पाठ्यक्रम में जो सामग्री है उसके अनुसार गाय राष्ट्रीय पशु है क्योंकि वह दूध देती है और हिन्दूओं के लिए पूज्य है। यदि पाठ्यक्रम यह भी संदेश होता कि गाय के दूध के साथ उसका मांस भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत है तो भी शायद गाय का विरोध नहीं करना पड़ता। गाय और हिंदू धर्म का गहरा संबंध है। एक तरह से ये दोनों शब्द एक दूसरे के पूरक हैं। डॉ आम्बेडकर ने गौ मांस खाने वाले और न खाने वालों को छूत और अछूत की विभाजन रेखा माना है।

राष्ट्रीय प्रतीक क्या है? किसी पशु, पक्षी या चिह्न को राष्ट्रीय घोषित करने के क्या मायने होता है? इन सवालों के कई जवाब हो सकते हैं लेकिन सबसे तार्किक जवाब यही लगता है कि राष्ट्रीय प्रतीक या चिह्न राष्ट्र के इतिहास और संस्कृति के वे चिह्न होते हैं और इनका चुनाव करते समय लोग यह तय करते हैं कि वे राष्ट्र को किस संस्कृति और इतिहास के किस हिस्से से जोड़ कर देखना चाहते हैं। राष्ट्रीय प्रतीकों का चुनाव समावेश और बहिष्कार की एक साथ होने वाली प्रक्रिया हैं। और ठीक इन्ही बिन्दु पर देश का चरित्र स्पष्ट होता है। नेपाल में गाय को इस तरह समझना आज की आवश्यकता है। 

इसके साथ यदि नेपाल को उसके इतिहास और दक्षिण एशिया के संदर्भ से अलग करके देखा जा सकता तो भी गाय कोई बहुत गंभीर बहस को पैदा नहीं करती। लेकिन अफसोस कि नेपाल को दक्षिण एशिया और उसके इतिहास के साथ ही समझा जा सकता है। इसलिए यहां गाय एक राष्ट्रीय पशु से बढ़कर एक राष्ट्रीय चुनौती है जिसने अक्सर राष्ट्रीय आपदा को जन्म दिया है।

जैसा कि उपर कहा गया है भारतीय संविधान के निर्माताओं ने भी गाय पर लंबी बहस की। संविधान सभा में गौ हत्या पर निरपेक्ष (ब्लैंकेट) प्रतिबंध लगाने की मांग भी हुई लेकिन डॉ आम्बेडकर ने इस प्रतिबंध के पक्ष में धार्मिक आस्था वाली दलील को अस्वीकार कर आर्थिक दलीलों को स्वीकार किया और संशोधन में यह रखा गया कि राज्य उपयोगी जानवरों की हत्या पर रोक लगाने का प्रयास करेगा। इस तरह संविधान निर्माताओं ने एक बड़ी आबादी को राहत दिलाई।

द किंग एण्ड काउः ऑन ए क्रूशियल सिंबल ऑफ हिन्दूआईजेशन इन नेपाल में एक्सिल माईकल्स लिखते हैं कि नेपाल में गाय का प्रयोग कतिपय राष्ट्रीय समूहों और दुर्गम क्षेत्रों के एकीकरण और उन पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए किया गया। वे इसी निबंध में लिखते है कि शाह राजाओं और राणाओं ने नेपाल राज्य की विचारधारा को गौ हत्या पर प्रतिबंध से जोड़ कर देखा। 1854 के मुल्की ऐन अथवा सिविल कोड में कहा गया है कि, 'कलयुग में यही एक मात्र राज्य है जहां गाय, स्त्री और ब्राह्मण की हत्या नहीं हो सकती।'

1939 में जब तत्कालीन राणा प्रधान मंत्री महाराजा जुद्धा शमशेर ने कलकत्ता का भ्रमण किया तो तमाम भारतीय समाचार पत्रों ने उन की यह कह कर प्रशंसा की कि वे एक ऐसे देश के प्रतिनिधि हैं जो हिन्दू राष्ट्र का प्रतीक है। हिन्दू आउटलुक नाम की पत्रिका में छपे एक लेख में जुद्धा शमेशर की प्रशंसा करते हुए लेखक ने लिखा है, 'एक पवित्र हिन्दू की तरह महाराजा महान गौ पूजक हैं'।

उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में गाय को इस आसानी से राष्ट्रीय पशु स्वीकार कर लेना चिंतनीय होने के साथ निंदनीय भी है। एक धर्मनिरपेक्ष राज्य किसी ऐसे जानवर को राष्ट्रीय पशु की मान्यता कैसे दे सकता है जिसके हवाले से नेपाली की बहुसंख्य जनता का उत्पीड़न किया जाता रहा है। गाय का राष्ट्रीय पशु हो जाना नेपाल को आज ठीक उसी बिन्दु पर खड़ा कर दे रहा है जहां से असंख्य विद्रोहों का सूत्रपात हुआ था।

(जारी)


--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

Viewing all articles
Browse latest Browse all 6050

Trending Articles