वीटो खत्म,राजन साहेब,आप तो गये काम से!
क्यों भइये,बाबासाहब के नाम रोना क्यों,जबकि हमने उनके संविधान खत्म होने दिया और अब रिजर्व बैक का काम भी तमाम!
पलाश विश्वास
राजन साहब,मरी आवाज आप तक पहुंच रही है तो गुजारिश है कि अब पहेलियां बूझने की तकलीफ हरगिज न करें कि फासिज्म के राजकाज में अब रिजर्व बैंक की कोई भूमिका है नहीं,हो भी तो रिजर्व बैंक के गवर्नर नाम के मैनेजर की सेवाओं की भारतीय महाजनी औपनिवेशिक सामंती सैन्य अर्थव्यवस्था को कोई जरुरत हैं नहीं।
शुक्र मनाइये कि फासिज्म के राजकाज से आपको बार बार रेट में कटौती के आदेश अब फिर नहीं मिलेंगे।बाजार को जैसी और जितनी कटौती पुरकश मुनाफावसूली के लिए जरुरी होगी,वैसा बाजार के लोग खुद ही कर लेंगे और इसके लिए बगुला विशेषज्ञों की समिति बनने वाली है जिसमें जाहिर है कि सरकारी आदमी कोई रहेगा नहीं और आप होंगे तो बी आपकी चलेगी नहीं।
योजना आयोग का खात्मा जैसे हो गया वैसे ही हूबहू भारतीय रिजर्व बैंक का अवसान है।इमारत चाहे बनी रहे,बंक भी शायद वही हो,लेकिन मौद्रिक बंदोबस्त और भारतीय बैंकिंग से भारतीयरिजर्व बैंक का नाता हमेशा हमेशा के लिए खत्म होने वाला है।वह भी आपही के कार्यकाल में।
जैसे बैंकिंग अधिनियम में संशोधन के जरिये सरकारी क्षेत्र के बैंकों में शेयर रखने की हदबंदी खत्म करके उन्हें आजाद कर दिया गया है और हर सरकारी बैंक का प्रबंधन निजी हाथों में है वैसे ही रिजर्व बैंक के सारे सत्ताइस महकमे निजी क्षेत्र के सेवकों के हवाले हैं और आपके उच्च विचारों से हम अबतक अनजान हैं।
मीडिया की खबर यह है कि सरकार ने नीतिगत दर के निर्धारण में रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के निर्णय पर केंद्रीय बैंक प्रमुख के 'वीटो' के अधिकार को वापस लेने का प्रस्ताव किया है। इस प्रस्ताव से रिजर्व बैंक प्रमुख की शक्तियां कम हो सकती हैं।
वित्त मंत्रालय ने भारतीय वित्तीय संहिता (आईएफसी) के संशोधित मसौदे को जारी किया है। इसमें यह प्रस्ताव किया गया है कि शक्तिशाली समिति में सरकार के चार प्रतिनिधि होंगे और दूसरी तरफ केंद्रीय बैंक के 'चेयरपर्सन' समेत केवल तीन लोग होंगे।
संहिता के मसौदे में 'रिजर्व बैंक के चेयरपर्सन' का उल्लेख है, न कि गवर्नर का। फिलहाल रिजर्व बैंक के प्रमुख गवर्नर हैं। वित्तीय क्षेत्र में बड़े सुधार के इरादे से लाए जा रहे आईएफसी में मौद्रिक नीति समिति का प्रस्ताव किया गया है, जिसके पास प्रमुख नीतिगत दर के बारे में निर्णय का अधिकार होगा और खुदरा मुद्रास्फीति पर उसकी निगाह होगी तथा खुदरा मुद्रास्फीति वार्षिक लक्ष्य सरकार हर तीन साल में केंद्रीय बैंक के परामर्श से तय करेगी।
मसौदे में कहा गया है, प्रत्येक वित्त वर्ष के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के संदर्भ में वार्षिक मुद्रास्फीति लक्ष्य का निर्धारण केंद्र सरकार रिजर्व बैंक के परामर्श से तीन-तीन साल में करेगी। इस मसौदे पर लोगों से 8 अगस्त तक टिप्पणी मांगी गई है।
गले गले तक विदेशी कर्ज,व्याज,मुनाफावसूली और टैक्स होलीडे के एफडीआई बजट और सरकारी चुनाव खर्च के अलावा वित्तीय नीति तो कोई होती नहीं कारपोरेट वकीलों के प्रबंधन में,मौद्रिक कवायद जो मुनाफावसूली और बुलरन के लिए होती है,वह रेटिंग अब राजन साहेब का वीटो नहीं है।
वद दिन भी दूर नहीं,जब बारत मुकम्मल अमेरिका होगा,रिजर्व बैंक नहीं,कोई और नोट छाप रहा होगा और बैंकिंग पूरी की पूरी विदेशी होगा।रिजर्व बैंक का जैसे काम तमाम हुआ,बैंकिग अधिनियम में पास बेहिसाब शेयरों के दम बाकी बैंक भी उसी तरह झटके से विदेशी हो जायेंगे।
दिवालिया होगी तो आम जनता,बाकी रईस तो देनदारी और करज से नजात पाने के लिए शौकिया दिवालिया हो जाते हैं और चियारिनों का जलवा फरेब निकाह कर लेते हैं।
यह बहुत बड़ा मसला है हमारे लिए क्योंकि इस तिलिस्म का सारा कारोबार,सारी आर्थिक गतिविधियों के तार और समावेशी विकास से लेकर समता और सामाजिक न्याय के सारेमसले भारतीय रिजर्व बैंक से जुड़े हैं,जिसकी कुल अवधारणा लोकल्याणकारी राज्य की रुह है।
जो हो रहा है वह दरअसल संपूर्ण निजीकरण,संपूर्ण विनिवेश,संपूर्ण विनियंत्र और संपूर्ण विनियमन के जरिये हमारा सबकुछ बाजार के हवाले करने का पुख्ता इंतजाम है और इस मुद्दे पर नगाड़े सारे रंग बेरंग खामोश है और बाकी नौटंकी चालू आहे।
सुबह सुबह इकोनामिक टाइ्म्स में वह खबर पढ़ ली,जिसकी चेतावनी सरकारी बैंकों के श्रमिक कर्मचारी नेताओं,अफसरों और आम कर्मचारियों से पिछले कमसकम दस साल से हम देते रहे हैं।
इकोनामिक टाइम्स ने लिखा हैः
BIGGER ROLE FOR GOVT IN FIN ARCHITECTURE - RBI Governor may Lose Veto Power On Rates
As per revised IFC draft, govt to name majority members of powerful monetary policy panel
The central bank governor will not have a veto over interest rates and the government will have the power to appoint a majority of the members of the monetary policy committee, according to a revised draft of the proposed Indian Financial Code (IFC) that will replace multiple laws governing the financial sector.
These proposals, particularly the move to dilute the absolute powers the Reserve Bank governor currently enjoys in setting benchmark rates, may set the stage for another round of friction between the finance ministry and the central bank.
The revised draft also lays down a framework for inflation-targetting under which the central bank and government will together set the target.
The revised draft is based on the recommendations of the Financial Sector Legislative Reforms Council (FSLRC), headed by former Supreme Court judge BN Srikrishna.
As per the latest version, the government will have the right to appoint four of the seven members of the monetary policy committee (MPC).
http://epaperbeta.timesofindia.com/index.aspx?eid=31817&dt=20150724
होता मैं अगर हातिम मियां तो बूत में जान डाल देता और फिर बाबासाहेब से पूछते कि किन नाचीजों के लिए आपने अपनी जिंदगी लगा दी जिन्हें अपने वजूद से भी दगा करने की आदत है।
बहरहाल हातिम ताई महज एक कहानी यमन के राजकुमार हातिम की है, जिसमें वे सात सवालों के जवाब खोजने एक सफर में निकल जाते हैं। अंतिम सवाल के जवाब मिलने के बाद एक युद्ध होता है जिसमें हातिम जीत जाता है और कहानी खत्म हो जाती है।
हमारी तो किसी एक सवाल के मुखातिब होने की औकात नहीं है।जंग क्या खाक लड़ेंगे हम।
हम जो कर सकते हैं वही करते रहेंगे और कर भी रहे हैं वहीं कि बाबासाहेब के नाम रोयेंगे और बाबा साहेब का किया धरा सबकुछ तबाह होते देख भी लेंगे।
बहरहाल जाति उन्मूलन की एडजंडे की बात हम नहीं कर रहे हैं और न बाबासाहेब के समता और सामाजिक न्याय पर कुछ अर्ज कर रहे हैं।भारतीय रिजर्व बैंक बना ही नहीं होता अगर बाबासाहेब प्राब्लम आफ रुपी न लिखते और उस पर जांच आयोग बैठाकर ब्रिटिश हुकूमत ने रिजर्व बैंक की नींव न डाली होती।यह रिजर्व बैंक भी मानता है और हमारे लोगों को मालूम नहीं है।
हम न जाने कितनी पुश्तें और अछूत पिछड़े बने रहने को बेताब हैं और हकीकत से मुंह चुराते रहेंगे सिर्फ जूठन खाते रहकर मलाई में डुबकी लगाने की ख्वाहिशें पालकर।
इतिहास और भूगोल के बदलते नजारें देखने की आंखें कब होंगी हमारे पास न जाने।
फिर हम वही गधों की बिरादरी हैं,बाबासाहेब की मेहरबानी से तनिको कुर्सी पर जमने की आदत हुई है और पुरखों तरह फचेहाल नहीं हैं,सूट बूटचाई के शौकीन हैं और देसी बोल नहीं सुहाते चुंकि जुबान अंग्रेजी टर्राती है।
बाकी हम वही गधों की बिरादरी हैं जो मलमलकर केसरिया मेंहदी चाहे जहां जहां लगा लें केसरिया अश्वमेध के घोड़े हर्गिज न होंगे क्योंकि विशुद्ध आर्यरक्त से देश के बहुजनों का कोई रिश्ता कभी नहीं रहा है और राजकाज मुकम्मल मनुस्मृति शासन है हिंदू राष्ट्र में।
हमें माफ करें कि बिन अर्थशास्त्री हुए हम आर्थिक मसलों पर लगातार अपने लोगों को आगाह करते रहे है क्योंकि राजकाज, राजनय और राजनीति का कुल मसला आर्थिक है और मनुस्मृति भी कोई धर्मशास्त्र नहीं है,मुकम्मल अर्थशास्त्र है।
ग्लोबीकरण,उदारीकरण और निजीकरण का कुल मतलब भी बहुजनों, जो हमारे लिए समूचा उत्पादक वर्ग है,जिसे बाबासाहेब वंचित कहा करते थे और उन्हीं के हक हकूक तय करने में बाबासाहेब ने जिंदगी खपा दी,उन्हीं बहुजनों का सिरे से सफाया है।जो फिर हिंदू राष्ट्र पैदल सेना है।
गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक (अंग्रेज़ी: Reserve Bank of India) भारतका केन्द्रीय बैंकहै। यह भारतके सभी बैंकों का संचालक है। रिजर्व बैक भारत की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करता है।
इसकी स्थापना १ अप्रैल सन १९३५ को रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ऐक्ट १९३४के अनुसार हुई। प्रारम्भ में इसका केन्द्रीय कार्यालय कोलकातामें था जो सन १९३७ मेंमुम्बईआ गया। पहले यह एक निजी बैंक था किन्तु सन १९४९ से यह भारत सरकार का उपक्रम बन गया है। डा॰ रघुराम राजनभारतीय रिजर्व बैंक के वर्तमान गवर्नर हैं, जिन्होंने ४ सितम्बर २०१३ को पदभार ग्रहण किया।
पूरे भारत में रिज़र्व बैंक के कुल 22 क्षेत्रीय कार्यालय हैं जिनमें से अधिकांश राज्यों की राजधानियों में स्थित हैं।
भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल 1935 को हुई थी।
रिज़र्व बैंक का केन्द्रीय कार्यालय प्रारम्भ में कलकत्तामें स्थापित किया गया था जिसे 1937 में स्थायी रूप से बम्बईमें स्थानान्तरित कर दिया गया। केन्द्रीय कार्यालय वह कार्यालय है जहाँ गवर्नर बैठते हैं और नीतियाँ निर्धारित की जाती हैं।
यद्यपि ब्रिटिश राजके दौरान प्रारम्भ में यह निजी स्वामित्व वाला बैंक हुआ करता था परन्तु स्वतन्त्र भारतमें सन् 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। उसके बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।
भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रस्तावना में बैंकके मूल कार्य इस प्रकार वर्णित किये गये हैं :
"बैंक नोटों के निर्गम को नियन्त्रित करना, भारत में मौद्रिक स्थायित्व प्राप्त करने की दृष्टि से प्रारक्षित निधि रखना और सामान्यत: देश के हित में मुद्रा व ऋण प्रणाली परिचालित करना।"
मौद्रिक नीति तैयार करना, उसका कार्यान्वयन और निगरानी करना।
वित्तीय प्रणाली का विनियमन और पर्यवेक्षण करना।
विदेशी मुद्रा का प्रबन्धन करना।
मुद्रा जारी करना, उसका विनिमय करना और परिचालन योग्य न रहने पर उन्हें नष्ट करना।
सरकार का बैंकर और बैंकों का बैंकर के रूप में काम करना।
साख नियन्त्रित करना।
मुद्रा के लेन देन को नियंत्रित करना
समिति में ताकतवर होगी सरकार
वित्तीय संहिता को फिर से तैयार कर रहे पैनल ने मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के बारे में अपने सुझावों में बदलाव किया है। इसके ढांचे में बदलाव से अब केंद्र सरकार का पलड़ा भारी हो गया है। नए प्रस्ताव के मुताबिक एमपीसी में 7 सदस्य होंगे, जिनमें से 4 की नियुक्ति सरकार करेगी। अब रिजर्व बैंक के गवर्नर के हाथ से वीटो अधिकार ले लिया गया है। समिति बहुमत के आधार पर फैसले करेगी और वह गवर्नर को मानना पड़ेगा। इस समिति को महंगाई दर के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नीतिगत दरों के बारे में फैसला करना है।
बहरहाल गुरुवार को वित्त मंत्रालय की ओर से भारतीय वित्तीय संहिता (आईएफसी) के पुनरीक्षित मसौदे में दिए गए सुझाव के मुताबिक समिति की अध्यक्षता रिजर्व बैंक के गवर्नर करेंगे। वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी) की ओर से दिए गए सुझाव के मुताबिक सरकार की ओर से चुने गए 4 सदस्य रिजर्व बैंक और सरकार के बीच खींचतान पैदा कर सकते हैं। यह सुझाव ऊर्जित पटेल समिति की सिफारिशों से भी मेल नहीं खाता, जो चाहती थी कि एमपीसी में 5 सदस्य हों, जिनमें से 3 केंद्रीय बैंक से लिए जाएं।
पुनरीक्षित मसौदे में सलाह दी गई है, 'रिजर्व बैंक को निश्चित रूप से एक मौद्रिक नीति समिति बनानी चाहिए, जो महंगाई दर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नीतिगत दरें दय करे।'
रिजर्व बैंक के गवर्नर के चेयरमैन होने और 4 सदस्य सरकार की ओर से नियुक्त किए जाने के अलावा समिति में एक सदस्य रिजर्व बैंक बोर्ड से, एक रिजर्व बैंक का कर्मचारी होगा। बोर्ड के कार्यकारी सदस्य की नियुक्ति रिजर्व बैंक बोर्ड की ओर से की जाएगी, जबकि कर्मचारी का चयन रिजर्व बैंक का गवर्नर करेगा।
पटेल समिति के सुझाव रिजर्व बैंक के पक्ष में थे। उसके सुझावों के मुताबिक रिजर्व बैंक का गवर्नर समिति का चेयरमैन होगा। जबकि एमपीसी का उप चेयरमैन मौद्रिक नीति का प्रभारी डिप्टी गवर्नर होगा। इसके अलावा मौद्रिक नीति का प्रभारी कार्यकारी निदेशक इसका सदस्य होगा। इसमें दो सदस्य बाहर से रखे जाने का सुझाव था, जिसके बारे में विशेषज्ञता, मौद्रिक अर्थव्यवस्था में अनुभव, व्यापक अर्थव्यवस्था, केंद्रीय बैंकिंग, वित्तीय बाजार, सार्वजनिक वित्त और संबंधित क्षेत्रों के अनुभव को देखते हुए चेयरमैन और उप चेयरमैन को फैसला करना था। पुनरीक्षित मसौदे के मुताबिक एमपीसी की बैठक में फैसले बहुमत के आधार पर होंगे।
इस मामले में भी पहले के मसौदे में बदलाव किया गया है, जिसमें कहा गया था कि रिजर्व बैंक का गवर्नर को एमपीसी के किसी भी फैसले के ऊपर फैसला करने की शक्ति होगी। पुनरीक्षित मसौदे के मुताबिक अगर किसी मामले में बराबर मत पड़ते हैं, तब रिजर्व बैंक के गवर्नर को दूसरा मत देने का अधिकार होगा। मौद्रिक समिति के फैसले रिजर्व बैंक के गवर्नर के लिए बाध्यकारी होंगे। हर सदस्य को एक बयान लिखना होगा, जिसमें प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में मतदान करने की वजह होगी। इसके पहले रिजर्व बैंंक और वित्त मंत्रालय के बी सहमति बनी थी कि एक मौद्रिक नीति ढांचा तैयार किया जाएगा, जिसमें उतार चढ़ाव वाले महंगाई दर को लक्षित किया जाएगा। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर लक्ष्य जनवरी 2016 तक 6 प्रतिशत से नीचे और 2016-17 में 4 प्रतिशत से नीचे रखा गया है।
http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=105940