-- अभी-अभी पत्रकारों के समूह के साथ नेपाल से वापस लौटा रिक्टर पैमाने पर 7.9 पर आए विनाशकारी भूकंप के करीब दो माह गुजर जाने के बावजूद उसकी त्रासदी आज भी जारी है। एक अनुमान के अनुसार इस भूकंप में दस हजार से ज्यादा लोग मारे गए तथा इससे कई गुना ज्यादा घायल हुए। 25 अप्रैल के बाद नेपाल में भूकंप के करीब 300 झटके लग चुके हैं। अगर आप कार से गोरखपुर से नेपाल चले तो काठमांडू पहुंचने में करीब दस घंटे लग जाते हैं। परंतु भूकंप ने सड़कों तथा पुलों की ऐसी हालत कर दी है कि पंद्रह बीस घंटे आराम से लग जाते है।
भूकंप के बाद काठमांडू ऐसा दिखाई देता है कि मानो आप युद्धग्रस्त काबुल या बेरूत पहुंच गए हैं। शहर की साठ प्रतिशत इमारतें आंशिक रूप से या पूर्णत: क्षतिग्रत हो गई है। जो बच गई हैं वे रहने योग्य नहीं रह गई हैं। अनेक नेपाली मित्रों ने बताया कि माओवादी हिंसा तथा राजतंत्र की समाप्ति के बाद नेपाल का पर्यटन उद्योग का काफी विकास हुआ। फलस्वरूप बड़ी-बड़ी इमारतें तथा कॉम्पलेक्स बिना इस बात की परवाह किए बनने लगे कि सारे हिमालय का क्षेत्र अस्थिर है और पहले भी यहां बड़े भूकंप आ चुके हैं तथा भविष्य में आने की संभावना बनी रहती है। पुरानी इमारतों की कमजोर नींव पर बिना किसी जांच पड़ताल के कई-कई मंजिली इमारतें बना दी गई। ऐसी स्थिति में कोई बड़ा भूकंप तबाही ला सकता था और ऐसा ही हुआ।
आज नेपाल में चीन तथा भारत भारी पैमाने पर पूंजी निवेश कर रहे है। चीन से नेपाल तक रेलमार्ग बिछाने की एक महत्त्वाकांक्षी योजना पर कार्य चल रहा है। यह रेलमार्ग दुर्गम पहाड़ों से सैकड़ों सुरंगों से होकर गुजरेगा। यहां तक कि एवरेस्ट क्षेत्र के इलाके से भी आ जाएगा। अगर यह परियोजना संपूर्ण होती है तो यह इंजीनियरिंग का एक बड़ा चमत्कार होगा। परंतु अब नेपाल के एक बड़े तबके ने इस परियोजना के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया है। क्योंकि इस परियोजना में पर्यावरण पर पड़ने वाले दबाव पर ध्यान नहीं दिया गया। नेपाल में उर्जा की भारी कमी को देखते हुए विदेशी सहयोग से कई बड़े-बड़े बांधों को बनाने तथा उससे उर्जा उत्पादन करने की योजना है। पहाड़ों पर बड़े बांध भूकंप की संभावना को बढ़ाते हैं तथा भूकंप आने पर भारी तबाही भी मचाते हैं। नेपाल में भारी मात्रा में जल संसाधन है। छोटी-छोटी परियोजनाएं बनाकर झरनों के पानी का उपयोग करके भारी मात्रा में उर्जा का उत्पादन हो सकता है तथा पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है। परंतु भारत की तरह नेपाल में भी बड़े बांधों की समर्थक लाबी बहुत मजबूत है तथा उसमें उनके निजी हित भी निहित है। पुराने समय में पहाड़ों पर पगोड़ा शैली के घर तथा मंदिर बनाए जाते थे जिससे भूकंप आने पर इमारतों के प्रत्येक हिस्से पर समान रूप से आते थे तथा घर गिरने से बच जाते थे। इस विनाशकारी भूकंप में पशुपतिनाथ मंदिर के बच जाने का यही कारण है। पश्चिमी शैली की बहुमंजिली इमारतें पहाड़ों पर खतरनाक सिद्ध होती हैं तथा भूकंप आने पर यह ताश के पत्तों की तरह ढह जाती है। नेपाल में यही हुआ।
नेपाल एक ऐसा देश है जो कभी किसी देश का उपनिवेश नहीं बना, करीब पचास लाख नेपाली भारत सहित विश्व के अनेक देशों में रोजगार के लिए निवास करते हैं। इसके बावजूद नेपाल में एक तरह की देशज राष्ट्रीयता उनकी भाषा, संस्कृति तथा रीति -रिवाजों में दिखाई देती हैै। भूकंप ने नेपाल को आर्थिक रूप से कई दशक पीछे छोड़ दिया। आम नेपाली तथा वहां के कई राजनीतिक समूह यह महसूस करते थे कि सहायता के नाम पर भारत-चीन के बीच नेपाल पर वर्चस्व की लड़ाई चल रही है। इसलिए नेपाल को सारे देशों के राहत कर्मियों को वापस लौटने को कहना पड़ा। यद्यपि विदेशी राहतकर्मियों के वापस लौटने पर नेपाल की समस्या घटी नहीं बढ़ी हैं, वर्षा का मौसम आ गया है और हजारों लोग अभी भी खुले में रह रहे हैं। नेपाली सरकार के अनुसार 25 लाख लोगों को तुरंत सहायता की जरूरत है। नेपाल में तीन महीने वर्षा के दिनों को छोड़कर सारे वर्ष भारी पैमाने पर भारतीय तथा विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं। भूकंप के बाद पर्यटकों ने नेपाल से मुंह मोड़़ लिया है। रत्नापार्क स्थित एक होटल का मैनेजर बता रहा था कि होटल में साल भर की एडवांस बुकिंग हो जाती है परंतु आज होटल खाली पड़ा हुआ है। लोग अपनी बुकिंग केंसिल करवा रहे हैं। काठमांडू तथा भक्तपुर में प्राचीन विरासतों को भूकंप से भारी क्षति पहुंची है। पुराना राजमहल परिसर जिसमें नेपाली शिल्प कला के नमूनों के अनेक मंदिर तथा आठ मंजिला लकड़ी का राजमहल मौजूद है। जिसे यूनोस्को ने विश्व विरासत घोषित किया है। भूकंप ने इस इलाके को भारी क्षति पहुंचाई है। इसका पुर्ननिर्माण काफी कठिन लगता है। सर्दियों के मौसम में भी विदेशी पर्यटकों के आने की संभावना काफी कम है। इससे होटल तथा पर्यटन व्यवसाय में लगे लोगों में भारी बेरोजगारी फैली है।
भूकंप के बाद नेपाल में सबसे बड़ा खतरा मानव तस्करी का है। नौकरी के लालच में काफी कम उम्र की लड़कियों तथा लड़को को भारत सहित अरब देशो तक में बेचने की घटनाएं पहले भी होती रहती थी। नेपाल में माओवादी गृह युद्ध तथा उसके बाद भूकंप की विनाशकारी त्रासदी के कारण अनाथे हुए बच्चों तथा बच्चियों को बहला-फुसला कर सीमा पार कर बेचने की घटनाएं बहुत तेज हो गई हैं। इस संबंध में नेपाल के सामाजिक कार्यकर्ताओ ने बताया कि भारतीय सीमाओं विशेष रूप से सोनौली तथा रक्सौल में भारी चौकसी रखने के बावजूद भारत तथा नेपाल के बीच सैकड़ों किमी खुली सीमा है जो खेतों से होकर गुजरती है इसलिए वहां पूर्ण निगरानी संभव नहीं है।
पिछले दिनों काठमांडू में नेपाल सहायता समूह की बैठक में भारतीय विदेश मंत्री ने नेपाल के पुनर्निर्माण के लिए एक अरब डालर देने की घोषणा की है। चीन, नार्वे तथा अमेरिका सहित अन्य देशों ने भी सहयोग की पेशकश की।
नेपाल में अपने इतिहास में अनेक गृह युद्ध तथा प्राकृतिक आपदाओं को झेला है। यह दुनिया के सबसे गरीब मुल्कों में से एक है। यहां मानव विकास दर बहुत कम है। भूकंप की त्रासदी बहुत बड़ी है परंतु बिना किसी विदेशी हस्ताक्षेप के नेपाली जनता तथा समाज इस आपदा पर भी उसी प्रकार विजय प्राप्त कर लेगा जैसा उसने 250 वर्ष पुरानी राजशाही को उखाड़ कर किया था। इससे आगे के पेजों को देखने लिये क्लिक करें NotNul.com