प्रो. विजयानंद तिवारी को जसम की ओर से श्रद्धांजलि
जन संस्कृति मंच साहित्यकार प्रो. विजयानंद तिवारी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है और उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि देता है।
श्री विजयानंद तिवारी बक्सर में रहते थे। बिहार में जब नवजनवादी सांस्कृतिक मोर्चा का निर्माण हुआ था, उस वक्त वे इसके साथ जुड़े थे। तब भोजपुर-बक्सर के भूमिगत वामपंथी आंदोलन से भी उनका संपर्क था। महान कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग के निधन पर उन्होंने लिखा था- मत कहो अध्यक्ष माओ ना रहा, ये सब उसी के आगमन की हो रही तैयारियां हैं, यादें महज यादें नहीं चिंगारियां हैं।
नवजनवादी सांस्कृतिक मोर्चा के बाद जब जन संस्कृति मंच बना, तब भी उसकी बैठकों और आयोजनों में आते-जाते रहे। कविता, कहानी लेखन के अतिरिक्त रंगकर्म से भी उनका जुड़ाव था। जनभाषा की ताकत को वे बखूबी समझते थे। वे 'जगरम'नामक भोजपुरी पत्रिका प्रकाशित करते थे, जिसके कुछ महत्वपूर्ण विशेषांक भी निकले, जिनमें श्रमगीत विशेषांक काफी चर्चित रहा। 'खोलकदास का चिट्ठा'नाम से उनकी एक किताब भी प्रकाशित हुई थी। अपने समकालीन विजेंद्र अनिल और सुरेश कांटक की तरह उन्होंने भी साहित्य को राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन का माध्यम समझा। जिस तरह विजेंद्र अनिल ने लेखक कलाकार मंच और प्रेमचंद अध्ययन केंद्र का गठन किया, सुरेश कांटक ने कबीर कला मंच बनाया, उसी तरह उन्होंने परिवर्तन सांस्कृतिक मंच का गठन किया था।
श्री विजयानंद तिवारी अंग्रेजी के शिक्षक थे। अंग्रेजी पत्र-पत्रिकाओं में लिखते भी थे। अभी भी स्वस्थ दिखते थे। चंद रोज पहले ही एक मुलाकात में उन्होंने जगरम को फिर से निकालने की बात की थी। लेकिन 16 जुलाई की सुबह अचानक हृदयाघात से उनका निधन हो गया। जसम उनके शोक-संतप्त परिजनों के प्रति अपनी संवेदना जाहिर करता है।
शोक व्यक्त करने वालों में जसम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आलोचक रामनिहाल गुंजन, राष्ट्रीय सहसचिव कवि जितेंद्र कुमार, जसम बिहार के राज्य अध्यक्ष कथाकार सुरेश कांटक, राज्य सचिव सुधीर सुमन, राज्य सहसचिव सुमन कुमार सिंह, कवि सुनील चैधरी, राज्य कार्यकारिणी सदस्य प्रशांत, डाॅ. विंदेश्वरी, निर्मल नयन, कृष्ण कुमार निर्मोही, कवि अरविंद अनुराग, शमशाद, चित्रकार राकेश दिवाकर, रंगकर्मी अरुण प्रसाद, सूर्यप्रकाश आदि प्रमुख हैं। जनपथ पत्रिका के संपादक अनंत कुमार सिंह, कवि सुनील श्रीवास्तव और आशुतोष पांडेय ने भी श्री विजयानंद तिवारी को श्रद्धांजलि दी है।
-सुमन कुमार सिंह, सहसचिव, जन संस्कृति मंच, बिहार