एक बार फिर राजनीतिक आकाओं के हाथों होने वाली प्रशासनिक आपदा के घटित होने की आहट राज्य में सुनाई देने लगी है.उत्तराखंड के मुख्य सचिव एन.रविशंकर सेवानिवृत्त होने वाले हैं.प्रशासनिक आपदा रविशंकर के सेवानिवृत्त होने से नहीं घटित होगी.प्रशासनिक आपदा तो तब इस राज्य की जनता पर बरपेगी,जबकि उनके स्थान पर पदारूढ़ होने वालों में जिनका नाम सबसे आगे बताया जा रहा है,वो राकेश शर्मा मुख्य सचिव बना दिए जायेंगे.
जैसे उत्तराखंड में कतिपय राजनेता ऐसे हैं कि राज्य में कोई विवाद हो,उनका नाम जरुर उसमें आएगा,वैसे ही राकेश शर्मा भी वो अफसर हैं कि प्रशासनिक गड़बड़ी या अन्य किसी घपले-घोटाले की बात हो तो बिना राकेश शर्मा के जिक्र के बात पूरी होती ही नहीं है.कहीं घपला तो राकेश शर्मा,हाई प्रोफाइल हत्याकांड तो राकेश शर्मा,बडबोलापन तो राकेश शर्मा.लेकिन इतने सब के बावजूद कांग्रेस हो या भाजपा,सबके आँखों के तारे,राकेश शर्मा.
राकेश शर्मा पर आरोप है कि सिडकुल के तहत जिन जमीनों पर उद्योग लगने थे,उन्होंने सांठ-गांठ करके कौड़ियों के मोल,वह जमीन बिल्डरों की थाली में परोस दी.इसे 500 करोड़ का सिडकुल घोटाला बताते हुए स्वतंत्र पत्रकार Deepak Azad ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय,नैनीताल में जनहित याचिका दायर की हुई है.जिस व्यक्ति के खिलाफ इतने गंभीर आरोपों के साथ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका लंबित हो,ऐसे व्यक्ति को राज्य के सर्वोच्च प्रशासनिक पद पर बैठाने की सोच,यह दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि हमारे प्रशासन तंत्र में पारदर्शिता, नैतिकता,आदि-आदि केवल खोखले शब्द मात्र हैं.फर्ज कीजिये कि सत्ताधीशों का लाडला होने के चलते शर्मा जी की मुख्य सचिव बनने की आकांक्षा पूरी हो जाए.इसी बीच उच्च न्यायालय में उनके खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सरकार से जवाब माँगा जाए.ऐसे में क्या मुख्य सचिव राकेश शर्मा,जनहित याचिका में आरोपी बनाये गए राकेश शर्मा के खिलाफ उत्तराखंड शासन की ओर से गवाही,शपथ पत्र,दस्तावेज आदि, प्रस्तुत करेंगे?उनके मुख्य सचिव होते ही क्या उक्त प्रकरण से जुड़े सबूतों और दस्तावेजों का साबुत रहना मुमकिन हो पायेगा?ऐसे में प्रश्न यह भी है कि क्या मुख्यमंत्री हरीश रावत उक्त प्रकरण की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं?यदि समझते-बूझते वे राकेश शर्मा को मुख्य सचिव बनाने का इरादे कर रहे हैं तो वे राकेश शर्मा को राज्य की सर्वोच्च प्रशासनिक कुर्सी पर बैठाना चाहते हैं या कि राकेश शर्मा पर लगे तमाम आरोपों से शर्मा के बच निकलने का रास्ता सुगम और निष्कंटक बनाना चाहते हैं?
शराब माफिया पोंटी चड्डा की हत्या भाजपा शासनकाल में उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष बनाए गए सुखदेव सिंह नामधारी द्वारा की गयी.इस हत्याकांड के दौरान हत्यास्थल पर उत्तराखंड के एक नौकरशाह के मौजूद होने की ख़बरें भी सामने आई.बाद में यह सोशल मीडिया पर ही काफी प्रचारित हुआ कि पोंटी चड्डा हत्याकांड के समय मौका-ए-वारदात पर मौजूद नौकरशाह कोई और नहीं राकेश शर्मा थे. तमाम चर्चाओं के बाद भी सामने आकर राकेश शर्मा ने कभी नहीं कहा कि वे मौके पर मौजूद नहीं थे.इसलिए यह माना ही जाएगा कि वे या तो मौके पर मौजूद थे या वे ऐसी बदनामी को भी अपनी उपलब्धि समझते हैं.शराब के कारोबार का अपराध से गहरा ताल्लुक है.सो अपराध से नाभिनालबद्ध इस धंधे में वर्चस्व के लिए एक अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति,दूसरे की हत्या कर देता है.पर यह समझ से परे है कि एक आई.ए.एस.अफसर इस आपराधिक घटना के मौके पर मौजूद क्यूँ था !
2013 में उत्तराखंड ने भीषण प्राकृतिक आपदा की मार झेली.उस समय के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और पूरे शासन तंत्र का रवैया,आपदा से निपटने के प्रति बेहद अगंभीर और संवेदनहीन था.जब इस रुख की आलोचना हुई तो यह कहने वाले राकेश शर्मा ही थे कि सीमा पर लड़ने सेनापति नहीं,सिपाही ही जाते हैं.अब उस आपदा में घोटाले की बातें आर.टी.आई. और सी.ए.जी. की रिपोर्ट के हवाले से सामने आ रही हैं.गंभीरता से जांच हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा कि उक्त घोटाले की आंच भी राकेश शर्मा तक पहुंचे.
कांग्रेस-भाजपा एक दूसरे पर भ्रष्टाचारी होने का आरोप लगाते रहते हैं.दोनों ही के नाम अपने-अपने कार्यकाल में पर्याप्त भ्रष्ट कारनामे अंजाम देने का कीर्तिमान भी दर्ज है.भ्रष्टाचार पर एक दूसरे पर मौखिक हमलों के अलावा भाजपा और कांग्रेस में यह भी साम्यता है कि नौकरशाही और उसके भ्रष्टाचार पर दोनों कभी मुंह नहीं खोलते.एक सामनता यह भी है कि राकेश शर्मा जैसे विवादित अफसर,भाजपा-कांग्रेस दोनों की ही आँख के तारे रहे हैं.
यह सही है कि राकेश शर्मा अभी अपर मुख्य सचिव ही हैं.अभी उनके पदनाम के आगे से 'अपर'का पुछल्ला हटा नहीं है.लेकिन जिस तरह से अखबारों में चर्चा है,उसे देख कर यह आशंका बलवती हो उठती है कि कहीं हरीश रावत की कृपा शर्मा पर ही बरस गयी तो ?वैसे राकेश शर्मा के हक़ में निर्णय लेने से पहले हरीश रावत को यह तो स्पष्ट करना ही चाहिए कि इस एक साल में राकेश शर्मा में ऐसी क्या खासियत आ गयी है,जो उनमें एक साल पहले नहीं थी,जब हरीश रावत ने उनपर, एन.रविशंकर को तरजीह थी.हालांकि यदि राकेश शर्मा पर हरीश रावत की कृपा बरसती है तो यह कोई पहला मौका नहीं होगा कि जब जमीन से जुड़े नेता होने का दम भरने वाले हरीश रावत,जमीनों के गडबडझाले में लिप्त अफसरों पर मेहरबानी करेंगे.मार्च 2014 में मुख्यमंत्री बनने के एक महीने के भीतर ही हरीश रावत ने सैकड़ों करोड़ रुपये की सरकारी जमीनों को खुर्द-बुर्द करने के आरोपी अधिकारियो- एन॰एस॰नग्नयाल और बी॰एस॰चलाल को बहाल कर दिया. सैकड़ों करोड़ रुपये के जमीन घोटाले के आरोपी उक्त दोनों अधिकारियों के खिलाफ कार्मिक विभाग द्वारा भी दंडात्मक कार्यवाही की अनुशंसा के बावजूद उन्हें एस॰डी॰एम॰ और एम॰एन॰ए॰ के पदों पर पोस्टिंग दी गयी.इसी तरह सरकारी जमीन कब्जाने और पेड़ कटवाने के आरोपी बी.एस.सिद्धू ,मुख्यमंत्री हरीश रावत की कृपा से उत्तराखंड पुलिस के महानिदेशक पद पर काबिज हैं.इसी सीरीज में राकेश शर्मा का नाम भी जुड़ जाए तो आश्चर्य कैसा ?
राकेश शर्मा यदि हरीश रावत की कृपा पाने में कामयाब हो जाते हैं तो उत्तराखंड देश का बिरला ही राज्य होगा,जिसके मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक के खिलाफ जमीन खुर्द-बुर्द करने सम्बन्धी आरोपों में अदालतों में मुकदमें चल रहे होंगे ! देश में राजनीति के अपराधीकरण पर बहस चल रही है और उत्तराखंड में जमीनी नेता बताये जाने वाले हरीश रावत प्रशासनिक मशीनरी के सर्वोच्च पदों पर आपराधिक कृत्यों के आरोपियों की तैनाती की दिशा में बढ़ रहे हैं.जमीन के मुकदमों के आरोपी अफसरों के सर्वोच्च पदों पर बैठने से जाहिरा तौर पर अपराध की ही जमीन मजबूत होगी और राज्य को लेकर देखे गए तमाम सपने इस मिट्टी में मिल जायेंगे.इसलिए जमीन के मामले के आरोपी को मुख्य सचिव बनाने की कोशिश का विरोध जमीनी नेता को जमीन सुंघाने की हद तक करना होगा.
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