ऐसे समाज और इंसानों को धिक्कार!!!
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कल सोशल साइट्स पर खबर मिली कि बिहार के लक्खीसराय जनपद के गाँव खररा में दलित मन्नू तांती को दबंगों ने अपने मजदूरी के पैसे मांगने पर जिन्दा गेहूँ निकालने वाले थ्रेसर में कूटपीस दिया। इस रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना को मीडिया ने कोई तवज्जो नहीं दी।इतनी बेरहमी और जघन्य तरीके से की गयी नृशंस हत्या पर मीडिया की चुप्पी शर्मनाक है। जिस मीडिया ने हेमामालिनी की गाड़ी से हुई दुर्घटना को जितनी हाइप दी उसका सौवाँ भाग भी इस जघन्य और अमानवीय घटना को नहीं दी। यही नहीं फेसबुक पर भी इक्कादुक्का लोगों ने इस घटना पर प्रतिक्रिया दी यह भी शर्मनाक ही है।
हम कैसे अमानवीय असभ्य और बर्बर समाज में रह रहे हैं? दलित होने के कारण कितने जंगली व्यवहार को सहन कर रहे हैं यह हम दलित ही जानते हैं, जहाँ अपने मजदूरी के पैसे मांगने पर जिन्दा थ्रेसर में ठूँस दिया जाता हो या गोली मार दी जाती हो, उस समाज की असभ्यता के आचरण को सहन करना इंसान के बस की बात नहीं है। यह भी अमानवीय है क्योंकि कोई भी इंसान किसी ऐसे अन्याय को सहन नहीं कर सकता। यह केवल दलित ही हैं जो सहन कर रहे हैं इसका एकमात्र कारण है इंसान होने का एहसास न होना क्योंकि एक हमारे जैसा ही हाड़मांस का इंसान हमें इंसान से कमतर जीवन जीने को बाध्य करता है जबकि वह हमसे ज्यादा मेहनत नहीं कर सकता। अगर दलित ठान ले कि मैं सामने वाले को एक ही बार में ढेर कर दूंगा तो कोई आँख उठाकर नहीं देख सकता,मगर अफसोस हम बात करने की बजाय गिड़गिड़ाते हैं। इसी कारण दुष्टों का दुस्साहस बढ़ जाता है और वह रोंद देते हैं, कुचल देते हैं।
इस जघन्य हत्याकांड पर सरकार तो कानूनी खानापूर्ति कर लेगी मगर #समाज कैसे कलंक को छुड़ा पायेगा?क्या दलित को समाज में मजदूरी नहीं मांगनी चाहिए? क्या उसका और उसके बच्चों का पेट नहीं है? क्या उस वक्त समाज में उस दलित को बचा सकने वाले इंसान नहीं थे क्या तमाशबीन थे सभी? सिर्फ उसके हत्यारे ही नहीं बल्कि ऐसे जघन्य हत्याकांड के तमाशबीन भी हत्यारे ही हैं जो मूकदर्शक बने रहते हैं।क्या उन तमाशबीनों का दिल ऐसे हत्याकांडों पर इंसानियत के लिए नहीं धड़कता? अगर नहीं!!तो फिर वह इंसान कहलाने के लायक नहीं हैं।#धिक्कार है ऐसे समाज को और धिक्कार ऐसे इंसानों को जो इंसानियत के लिए नहीं धड़कते।----भास्कर----
On behalf of
Dalits Media Watch Team
(An initiative of "Peoples Media Advocacy & Resource Centre-PMARC")