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रणवीर सेना और बिहार के अखबार बिहार के पत्रकारों की सामाजिक पृष्ठभूमि का असर 'समाचारों’ की पक्षधरता पर स्पष्ट रूप से दिखलाई देता है।

Previous: कुल तीन दिन पहले जब भारतीय वैज्ञानिकों ने इंग्लैंड के पांच उपग्रह अंतरिक्ष में प्रेक्षेपित करके विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धि प्राप्त की थी, आज उड़ीसा के आदिवासी अंचल से आने वाली इस खबर ने कलेजा चीर दिया. अंधविश्वास से ग्रस्त समाज ने एक ही परिवार के छः लोगों की गला काट कर हत्या कर दी, पिछले एक वर्ष में अंधविश्वासी-कर्मकांडों के चलते २४८ लोगों की हत्याएं इस प्रदेश में हो चुकी हैं. क्या वैज्ञानिक उपलब्धियां आख़िरी आदमी के जीवन में कभी प्रकाश ला पाएंगी ? इण्डिया और भारत का भेद क्या कभी मिट सकेगा ?
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ब्रह्मेश्‍वर मुखिया की हत्या के बाद दलित लेखक कंवल भारती ने लिखा था, ''मुखिया दलितों का हत्यारा था और हत्यारे की हत्या पर दलितों को कोई दुख नहीं है। जिस व्यक्ति ने दलित मजदूरों के दमन के लिए रणवीर सेना बनायी हो, उनकी बस्ती पर धावा बोलकर उन्हें गोलियों से भून दिया हो, दुधमुंही बच्ची को हवा में उछाल कर उसे बंदूक से उड़ा दिया हो और गर्भवती स्त्री का पेट फाड़कर भ्रूण को तलवार से काट डाला हो, उस दरिन्दे की हत्या पर कोई दरिन्दा ही शोक मना सकता है।''

उसी मुखिया की हत्या का तीसरा 'शहादत दिवस'पटना में उसके पुत्र इंद्रभूषण सिंह ने गत 1 जून को मानाया। इस आयोजन को बिहार के मीडिया ने मुखिया के महिमामंडन के एक और मौके के रूप में लिया। 'दैनिक जागरण'को छोड़कर सभी हिंदी अखबारों ने इस आयोजन को 'ब्रह्मेश्वर मुखिया जी'का 'शहादत दिवस'दिवस कहा। महज इस शब्दावली के अंतर से आप समझ सकते हैं कि बिहार में खबर बनाने वाले लोगों की पक्षधरता क्या है।

समय हो तो पढिए यह लेख :

बिहार के पत्रकारों की सामाजिक पृष्ठभूमि का असर 'समाचारों'की पक्षधरता पर स्पष्ट रूप से दिखलाई देता है। बिहार के अखाबार और समाचार चैनल प्राय: हर उस शक्ति के विरुद्ध खड़े होते हैं, जो इन तबकों की आवा...

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