वह व्यापम जिसके कारण १९३९ में महात्मागांधी दुखी होकर कांग्रेस को ही दफना देने की सोचने लगे थे (1937 में कांग्रेस की प्रथम प्रान्तीय सरकारों में खुले भ्रष्टाचार को देखते हुए गांधी ने कहा था कि वे कांग्रेस सरकारों में व्याप्त अंधाधुंध भ्रष्टाचार की अपेक्षा पूरी कांग्रेस को शानदार ढंग से दफनाने के लिए किसी हद तक जाने के को तैयार हैं(I would go to the length of giving the whole congress a decent burial, rather than put up with the corruption that is rampant."- Mahatma Gandhi May1939). )
संयुक्त प्रान्त आगरा और अवध या वर्तमान उत्तरप्रदेश+ उत्तराखंड. १८९६ से १८९८ तक की प्रशासनिक आख्याएँ. देखना चाहें तो नैनीताल में जिला पंचायत के कार्यालय के पास स्थित क्षेत्रीय अभिलेखागार में देख सकते हैं. राजभवन के निर्माण की अनुमानित लागत थी २ लाख ९७ हजार रु. कार्य सम्पन्न हो गया २लाख ७० हजार में २७ हजार सरकार के खजाने में वापस. जिलाधिकारी कार्यालय के भवन की लागत ३९००० रु आंकी गयी थी पर यह भी आगणन से कम में बन गया और बची हुई धनराशि सरकारी खजाने में. क्या आजाद भारत में इस अनहोनी की कल्पना की जा सकती है क्या? १८८० के लगभग कोटाबाग क्षेत्र में नहर बनी. चूने के गारे और नदी के पत्थरों से. २ मील तक यह नहर आज भी भूमिगत हो कर बहती है. एक भी पत्थर आज तक हिला नहीं है. १९८० में पतलिया के निकट एक कल्वर्ट पर बैठे हम पाँच अध्यापकों ने ठहाका क्या लगाया, २ माह पहले बना कल्वर्ट ढह गया. १९६१ में प्रवक्ता पद पर नियुक्ति के लिए शिक्षा मंत्री से जुगत भिड़ाई. निदेशक महोदय( सी, एम.एन.चक) ने मंत्री जी को उत्तर दिया कि नियम से बाहर नियुक्ति सम्भव नहीं है. १९८८ में मेरी पुत्री ( सदा उच्च प्रथम श्रेणी और बी.ए. एम.ए. में विवि. में प्रथम स्थान) ने सहायता प्राप्त इंटर कालेज में प्रवक्ता इतिहास पद के लिए आवेदन किया. साक्षात्कार भी हुआ. पर चयन नहीं. बाद में पता चला कि तब न्यूनतम रेट३५००० था. नैट और पी-एच.डी करने और गैर सरकारी महाविद्यालय में ८वर्ष से अधिक के शिक्षण अनुभव के बाद कुमाऊँ अपने वि.वि. (कुमाऊँ विवि.) में उपाचार्य पद के लिए आवेदन किया. पता चला कि वी.सी. वर्थवाल जी ने नियमों को ताक पर रखकर किसी आका को खुश करने के लिए यह पद संविदा के अन्तर्गत काम कर रहे किसी पात्र को उपहार में दे दिया.
मेरा एक संबन्धी को जो निरंतर तीसरी श्रेणी में उत्तीर्ण होता रहा, संयोगवश इस लक्ष्मी पुराण को समझ गया. बस क्या था, फिर उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, न केवल दो डिग्रियाँ प्रथमश्रेणी में झटक लीं, उच्च्तर राजकीय पद भी प्राप्त किया और अपने पाल्यों को भी अच्छे पदों पर नियुक्त करवा दिया. जब मेरी पुत्री का माध्यमिक शिक्षा आयोग से चयन नहीं हुआ, तो उसने कहा यदि उसे मालूम होता तो वह औरों से सस्ते में चयन करवा देता. भाई साहब आजादी अकेली नहीं आयी, अपने साथ अपने बडे भाई व्यापम को भी लेकर आयी है. वह व्यापम जिसके कारण १९३९ में महात्मागांधी दुखी होकर कांग्रेस को ही दफना देने की सोचने लगे थे (1937 में कांग्रेस की प्रथम प्रान्तीय सरकारों में खुले भ्रष्टाचार को देखते हुए गांधी ने कहा था कि वे कांग्रेस सरकारों में व्याप्त अंधाधुंध भ्रष्टाचार की अपेक्षा पूरी कांग्रेस को शानदार ढंग से दफनाने के लिए किसी हद तक जाने के को तैयार हैं(I would go to the length of giving the whole congress a decent burial, rather than put up with the corruption that is rampant."- Mahatma Gandhi May1939). )
मेरा एक संबन्धी को जो निरंतर तीसरी श्रेणी में उत्तीर्ण होता रहा, संयोगवश इस लक्ष्मी पुराण को समझ गया. बस क्या था, फिर उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, न केवल दो डिग्रियाँ प्रथमश्रेणी में झटक लीं, उच्च्तर राजकीय पद भी प्राप्त किया और अपने पाल्यों को भी अच्छे पदों पर नियुक्त करवा दिया. जब मेरी पुत्री का माध्यमिक शिक्षा आयोग से चयन नहीं हुआ, तो उसने कहा यदि उसे मालूम होता तो वह औरों से सस्ते में चयन करवा देता. भाई साहब आजादी अकेली नहीं आयी, अपने साथ अपने बडे भाई व्यापम को भी लेकर आयी है. वह व्यापम जिसके कारण १९३९ में महात्मागांधी दुखी होकर कांग्रेस को ही दफना देने की सोचने लगे थे (1937 में कांग्रेस की प्रथम प्रान्तीय सरकारों में खुले भ्रष्टाचार को देखते हुए गांधी ने कहा था कि वे कांग्रेस सरकारों में व्याप्त अंधाधुंध भ्रष्टाचार की अपेक्षा पूरी कांग्रेस को शानदार ढंग से दफनाने के लिए किसी हद तक जाने के को तैयार हैं(I would go to the length of giving the whole congress a decent burial, rather than put up with the corruption that is rampant."- Mahatma Gandhi May1939). )