नौकरी से निकाले जाने के बाद स्थानीय संपादक प्रदीप उर्फ मोनू रैकवार की भूख से मौत
चंदा करके पत्रकारों ने किया अंतिम संस्कार :
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[B]बैतूल से रामकिशोर पंवार की रिपोर्ट....[/B]
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मध्यप्रदेश के आदिवासी बहल बैतूल जिला मुख्यालय पर एक पत्रकार ने नौकरी से निकाले जाने के बाद अवसाद की स्थिति में शराब पीने और संसाधन न होने से भूख के कारण दम तोड़ दिया। ये पत्रकार बैतूल में एक उद्योगपति द्वारा संचालित दैनिक अखबार में स्थानीय संपादक के रूप में कार्यरत थे और उनका नाम अखबार के प्रिंटलाइन में भी जाता था। पत्रकार का नाम प्रदीप उर्फ मोनू रैकवार है। भूख से मौत की खबर के बाद जिले के पत्रकारों ने जब पत्रकार प्रदीप उर्फ मोनू के घर के हालात को देखा तो चंदा करके पत्रकार का अंतिम संस्कार कराया।
प्रदीप उर्फ मोनू रैकवार के पिता जिला केन्द्रीय सहकारी बैंक में कार्यरत थे। पिता की मृत्यु के बाद प्रदीप उर्फ मोनू रैकवार ने उनके स्थान पर अनुकम्पा नौकरी के लिए काफी प्रयास किया और दर-दर भटके। सौतेली मां द्वारा लगाई गई आपित्त के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिली। पिता की नौकरी से वंचित पत्रकार प्रदीप उर्फ मोनू रैकवार ने परिवार के भरण पोषण के लिए और समाज में कायम विभेद को खत्म करने के लिए पत्रकारिता को माध्यम बनाया। उन्होंने दैनिक प्रादेशिक 'जनमत बैतूल'ज्वाइन किया। पर उन्हें नौकरी से कुछ दिनों पूर्व समाचार पत्र संस्थान के कर्ताधर्ताओं ने निकाल दिया। बताया जाता है कि प्रदीप उर्फ मोनू रैकवार का संचालक मण्डल के एक सदस्य से खबर को लेकर नोक- झोक हो गई थी। इसी के बाद उन्हें नौकरी से निकाला गया।
प्रदीप ऊर्फ मोनू रैकवार ने नई नौकरी खोजने की काफी कोशिश की पर सफलता न मिली। जब नौकरी नहीं मिली और घर में अभाव व तकरार बढ़ने लगा तो उनकी पत्नी अपनी छोटी-सी बेटी को लेकर मायके चली गई। हालात बेहद खराब होते देख प्रदीप उर्फ मोनू रैकवार शराब पीने लगे। घर में अनाज का एक दाना भी नहीं था। भूख और प्यास की अधिकता के कारण उन्होंने दम तोड़ दिया।
बताया जाता है कि प्रदीप उर्फ मोनू ने आज सुबह पड़ोसी से पीने के लिए पानी मांगा। वे पानी का एक घूंट भी नहीं पी पाए थे। उनकी मौत हो गई थी। मोनू रैकवार की मौत की खबर पूरे शहर में फैल गई। जिला मुख्यायल के पत्रकार उनके परिवार की खबर लेने पहुंचे। जब देखा कि परिजनों के पास अंतिम संस्कर के लिए पचास रुपये भी नहीं हैैं तो पत्रकारों ने आपस में चंदा किया। अंतिम संस्कार के लिए एक दूसरे से आर्थिक सहयोग चंदा के रूप में लिया और पोस्टमार्टम करवाये जाने के बाद देर रात्रि अंतिम संस्कार किया।
बैतूल जिले के इतिहास में पहली बार किसी पत्रकार के घर में एक दाना भी अनाज का नहीं मिला और उसकी भूख की वजह से मौत हो गई। पत्रकार प्रदीप की मौत के बाद संबंधित समाचार पत्र और जिला जन सम्पर्क कार्यालय ने प्रदीप को पत्रकार मानने से इनकार कर दिया। इससे उत्तेजित पत्रकारों ने उक्त समाचार पत्र में प्रदीप की प्रकाशित बाइलाइन खबरें और पिंट लाइन में छपे नाम के प्रमाण प्रस्तुत किए। फिर भी अखबार प्रबंधन की ओर से जिला जन सम्पर्क कार्यालय एवं जिला प्रशासन को गुमराह करने का प्रयास किया गया। कहा गया कि प्रदीप को एक सप्ताह पूर्व नौकरी से निकाला जा चुका है। तब पत्रकारों ने कहा कि संस्थान से निकाले जाने पर पूर्व सूचना देने या कारण बताओ नोटिस देने व तीन माह की सेलरी देने का प्रमाण अखबार पेश करे तो अखबार प्रबंधन बैकफुट पर चला गया।
भूख से एक स्थानीय संपादक की मौत का मामला अब तूल पकड़ने लगा है। जिले में कार्यरत पत्रकार संगठन आइसना, एमपी वर्कींग जर्नलिस्ट यूनियन, बैतूल मीडिया सेंटर सोसायटी, राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा, आई एफ डब्लयू जे, मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संगठन से जुड़े पत्रकारों ने पूरे मामले की जानकारी भोपाल से लेकर दिल्ली तक दी तो पूरा मामला गरमाने लगा। जिले के पत्रकारों ने जिला कलैक्टर बैतूल को मृतक पत्रकार की बेवा पत्नी को मुख्यमंत्री आर्थिक सहायता से एक लाख रुपये की सहायता देने की मांग कर ज्ञापन दिया। पत्रकारों ने सीपीआर राकेश श्रीवास्तव से भी चर्चा की तथा पूरे मामले की जानकारी दी। चुनाव आचार संहिता हटने के बाद मृतक पत्रकार की पत्नी को आर्थिक सहायता दिलवाने का आश्वासन मिला।
इधर पत्रकारों ने आपस में चंदा एकत्र कर मृतक की पत्नी को अंतिम संस्कार के बाद के क्रियाकर्म के लिए 11 हजार रुपये की राशी एकत्र कर भेंट की। बैतूल जिले में पूर्व विधायक के परिजनों द्वारा संचालित दैनिक समाचार पत्र के स्थानीय संपादक मोनू रैकवार की मौत के कारणों के पीछे संस्थान की भूमिका की पत्रकार संगठनों ने भी जांच की मांग की है। इस संदर्भ में सभी पत्रकार संगठनों ने अपने-अपने स्तर पर मांग पत्र राज्य सरकार को भिजवाने शुरू कर दिये है।
बैतूल जिले में पत्रकारो के भी दो रूप देखने को मिले। कुछ टीवी चैनलों एवं बड़े बैनरों के वे पत्रकार जो पूर्व विधायक एवं उद्योगपति से उपकृत होते चले आ रहे थे, उनके द्वारा पत्रकार की मौत को शराब पीने से हुई सामान्य मौत बता कर पूरे मामले को दबाने का प्रयास किया। गांव में किसी गरीब की भूख से होने वाली मौत पर बवाल मचाने वाले टीवी चैनलों के पत्रकारों ने अपने ही पत्रकार साथी की भूख एवं नौकरी से निकाले जाने के बाद सदमे में शराब पीने के चलते हुई मौत के समाचार को कवरेज तक करने से परहेज रखी।
इधर सत्ता पक्ष एवं विपक्ष कांग्रेस ने भी पूर्व विधायक के द्वारा संचालित कपंनी से निकलने वाले दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार एवं स्थानीय संपादक मोनू रैकवार के मामले में चुप्पी साध ली। पूरे दिन एक्जिट पोल में अपनी संभावित जीत पर जिले के पत्रकारों का आभार मानने वाली जिले की आदिवासी महिला सासंद श्रीमती ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे ने भी मृतक पत्रकार के घर जाने की कोशिश नहीं की।