एक लघु यात्रा, दो टिप्पणियाँ....
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8-9 जुलाई को कौसानी में था. लक्ष्मी आश्रम में सरला बहन की 33वीं पुण्यतिथि थी. इस बार बहुत कम लोग थे. मगर वहाँ उपस्थित होकर अच्छा लगा. कौसानी में तो बच्चे भी उनके बारे में जानते ही हैं. अल्मोड़ा में एक नवयुवक से पूछा तो उसे भी हल्की सी जानकारी थी ही. वैसे आज के नौजवानों को सरला बहन के बारे क्यों जानना चाहिये ? उन्हें बड़ी कम्पनियों में जॉब चाहिये, महानगरों की जिंदगी चाहिये और सोशल मीडिया. वैसे जो जानना चाहें, उन्हें शायद गूगल सर्च करते हुए कुछ मिल जाये.
अगली सुबह पत्नी के आग्रह पर उनके साथ कोट भ्रामरी के मंदिर चला गया. गाड़ी से नीचे उतरा तो देखा कि एक दानवाकार ढाँचे ने देवी के मंदिर को ढँक दिया है. आस्था के नाम पर भी पैसे वाला आदमी अपना गुरूर दिखाने से नहीं चूकता. उसे इसी में संतोष है कि वह लाखों लोगों की आस्था को अपने अंगूठे से दबा दे !
इसी में चालीस-पैंतालीस साल पुराना एक वाकया याद आया. बिड़ला जी अपने पैसे से बद्रीनाथ धाम का पुनर्निर्माण करना चाहते थे. गढ़वाल के लोगों को लगा कि बिड़ला जी मन्दिर में अपना विशिष्ट ठप्पा लगा कर उसके पुरातन स्वरुप को नष्ट कर देंगे. वे चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में विरोध करने उठ खड़े हुए. अल्मोड़ा से शमशेर सिंह बिष्ट जैसे नौजवान भी पहुँचे. अन्ततः वह योजना रुक गयी.
आज तो सरकार ही चाहेगी कि मंदिर पीपीपी मोड में बने, धर्म में विदेशी निवेश हो !
बहरहाल मंदिर के पुजारी मोहन चन्द्र तिवारी खुश थे कि बलि प्रथा रुक गयी...
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8-9 जुलाई को कौसानी में था. लक्ष्मी आश्रम में सरला बहन की 33वीं पुण्यतिथि थी. इस बार बहुत कम लोग थे. मगर वहाँ उपस्थित होकर अच्छा लगा. कौसानी में तो बच्चे भी उनके बारे में जानते ही हैं. अल्मोड़ा में एक नवयुवक से पूछा तो उसे भी हल्की सी जानकारी थी ही. वैसे आज के नौजवानों को सरला बहन के बारे क्यों जानना चाहिये ? उन्हें बड़ी कम्पनियों में जॉब चाहिये, महानगरों की जिंदगी चाहिये और सोशल मीडिया. वैसे जो जानना चाहें, उन्हें शायद गूगल सर्च करते हुए कुछ मिल जाये.
अगली सुबह पत्नी के आग्रह पर उनके साथ कोट भ्रामरी के मंदिर चला गया. गाड़ी से नीचे उतरा तो देखा कि एक दानवाकार ढाँचे ने देवी के मंदिर को ढँक दिया है. आस्था के नाम पर भी पैसे वाला आदमी अपना गुरूर दिखाने से नहीं चूकता. उसे इसी में संतोष है कि वह लाखों लोगों की आस्था को अपने अंगूठे से दबा दे !
इसी में चालीस-पैंतालीस साल पुराना एक वाकया याद आया. बिड़ला जी अपने पैसे से बद्रीनाथ धाम का पुनर्निर्माण करना चाहते थे. गढ़वाल के लोगों को लगा कि बिड़ला जी मन्दिर में अपना विशिष्ट ठप्पा लगा कर उसके पुरातन स्वरुप को नष्ट कर देंगे. वे चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में विरोध करने उठ खड़े हुए. अल्मोड़ा से शमशेर सिंह बिष्ट जैसे नौजवान भी पहुँचे. अन्ततः वह योजना रुक गयी.
आज तो सरकार ही चाहेगी कि मंदिर पीपीपी मोड में बने, धर्म में विदेशी निवेश हो !
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