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अवतार सिंह ‘पाश’ की दो कविताएँ

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अवतार सिंह 'पाश'की दो कविताएँ

 

अपनी असुरक्षा से

यदि देश की सुरक्षा यही होती है

कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाये

आँख की पुतली में 'हाँ'के सिवाय कोई भी शब्द

अश्लील हो

और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे

तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है

 

हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज़

जिसमें उमस नहीं होती

आदमी बरसते मेंह की गूँज की तरह गलियों में बहता है

गेहूँ की बालियों की तरह खेतों में झूमता है

और आसमान की विशालता को अर्थ देता है

 

हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम

हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा

हम तो देश को समझे थे क़ुर्बानी-सी वफ़ा

लेकिन 'गर देश

आत्मा की बेगार का कोई कारखाना है

'गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है

तो हमें उससे ख़तरा है

 

'गर देश का अमन ऐसा होता है

कि कर्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह

टूटता रहे अस्तित्व हमारा

और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे

कीमतों की बेशर्म हँसी

कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो

तो हमें अमन से ख़तरा है

 

'गर देश की सुरक्षा ऐसी होती है

कि हर हड़ताल को कुचलकर अमन को रंग चढ़ेगा

कि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगी

कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा

अक़्ल, हुक़्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी

मेहनत, राजमहलों के दर पर बुहारी ही बनेगी

तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।

goyaplain

कातिल

 

यह भी सिद्ध हो चुका है कि

इंसानी शक्ल सिर्फ चमचे-जैसी ही नहीं होती

बल्कि दोनों तलवारें पकड़े लाल आंखोंवाली

कुछ मूर्तियां भी मोम की होती हैं

जिन्हें हल्का-सा सेंक देकर भी कोई

जैसे सांचे में चाहे ढाल सकता है

 

लेकिन गद्दारी की सजा तो सिर्फ एक ही होती है

 

मैं रोने वाला नहीं, कवि हूं

किस तरह चुप रह सकता हूं

मैं कब मुकरता हूं कि मैं कत्ल नहीं करता

मैं कातिल हूं उनका जो इंसानियत को कत्ल करते हैं

हक को कत्ल करते हैं

सच को कत्ल करते हैं

देखो, इंजीनियरो! डॉक्टरो! अध्यापको!

अपने छिले हुए घुटनों को देखो

जो कुछ सफेद या नीली दहलीजों पर

टेकने से छिले हैं

अपने चेहरे की ओर देखो

जो केवल एक याचना का बिंब है

हर छिमाही दफ़्तरों में रोटी के लिए

गिड़गिड़ाता बिंब!

हम भिखारियों की कोई सुधरी हुई किस्म हैं

लेकिन फिर भी हर दर से हमें दुत्कार दिया जाता है

अपनी ही नजरों को अपनी आंखों से मिलाओ

और देखो, क्या यह सामना कर सकती हैं?

मुझे देशद्रोही भी कहा जा सकता है

लेकिन मैं सच कहता हूं, यह देश अभी मेरा नहीं है

यहां के जवानों या किसानों का नहीं है

यह तो केवल कुछ ही 'आदमियों'का है

और हम अभी आदमी नहीं हैं, बड़े निरीह पशु हैं

हमारे जिस्म में जोंकों ने नहीं

पालतू मगरमच्छों ने गहरे दांत गड़ाए हैं

उठो, अपने घर के धुओं!

खाली चूल्हों की ओर देखकर उठो

उठो काम करनेवाले मजदूरो, उठो!

खेमों पर लाल झंडे लहराकर

बैठने से कुछ न होगा

इन्हें अपने रक्त की रंगत दो

(हड़तालें तो मोर्चे के लिए सिर्फ कसरत होती हैं)

उठो मेरे बच्चो, विद्यार्थियो, जवानो, उठो!

देखो मैं अभी मरा नहीं हूं

यह एक अलग बात है कि मुझे और मेरे एक बच्चे को

जो आपका भी भाई था

हक के एवज में एक जरनैली सड़क के किनारे

गोलियों के पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है

आपने भी यह 'बड़ी भारी

पुलिस मुठभेड़'पढ़ी होगी

और आपने देखा है कि राजनीतिक दल

दूर-दूर से मरियल कुत्ते की तरह

पल दो पल न्यायिक जांच के लिए भौंके

और यहां का कानून सिक्के का है

जो सिर्फ आग से ही ढल सकता है

भौंकने से नहीं

क्यों झिझकते हो, आओ उठें…

मेरी ओर देखो, मैं अभी जिंदा हूं

लहरों की तरह बढ़ें

इन मगरमच्छों के दांत तोड़ डालें

लौट जाएं

फिर उठें, और जो इन मगरमच्छों की रक्षा करता है

हुक्म देने के लिए

उस पिलपिले चेहरे का मुंह खुलने से पहले

उसमें बन्दूक की नाली ठोंक दें।

 
 

मज़दूर बिगुलअक्‍टूबर  2013

 


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