मुलायम सिंह यादव जी, क्या ये यूपी सरकार सिर्फ यादवों की है?
- Monday, 29 June 2015 13:46
- Written by आजाद खालिद
इससे भी दिलचस्प बात ये है कि शहर में हमेशा की तरह एक खास दरबार में दरोगा की मांग पर इस केस की सुनवाई हुई..... और पिता के अपमान के घूंट पी रहे बेचारे नेता जी को इसी पर सबर करना पड़ गया, कि जब लखनऊ में किसी ने नहीं सुना.... और जिलाध्यक्ष तक लाचार था.... यहां तो चलो दरोगा जी ने हाथ तो मिला लिया। चर्चा हुई कि ....जैसी पार्टी वैसा नेता.... और जैसा नेता वैसा ही सलूक। बहरहाल इस बात की चर्चा करके किसी को अपमानित करना या किसी के खिलाफ गलत सोच को बढ़ावा नहीं देना है। हर शहर की तरह, गाजियाबाद में भी चाहे मुलायम सिंह यादव के नाम पर या शिवपाल जी के.... या फिर आज़म ख़ान के नाम पर कुछ स्वंयभू दरबार गठित कर दिये गये हैं। कुछ लोग रिश्तेदार बताए जाते हैं....कुछ पार्टनर तो कुछ खासमखास....सबूत के तौर महीना दो चार में एक आध बार कोई न नेता जी लाव लश्कर के साथ इस दरबार के स्वामी के यहां पधारते रहते हैं....जहां मशीनरी और सरकारी अमले की हाथ जोड़कर हाज़िरी लगाना मजबूरी बन जाती है....और यहीं से दरबार शहर में स्थापित होने की राहें खुल जाती हैं.... जहां न सिर्फ सरकारी मशीनरी लेकर डीएम एसएसपी तक हाजिरी बजाने में शान समझते हैं बल्कि शहर के इसी तरह के मामलों में अपने ही अंदाज़ से फैसले सुनाए जाते रहे हैं। चाहे बीजेपी के एक नेता की पगड़ी एसएसपी के हाथों उछाले जाने का मामला हो या फिर व्यापारी नेता को बंद कराने और छुड़ावाने का खेल। मामले की गूंज दरबार के दीवाने खास से बाहर सुनी तक नहीं गई।
इस बार विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलने की एक वजह मुलायम सिंह यादव या उनकी टीम के जादू से ज्यादा पिछली सरकार की करतूत से जनता का त्रस्त होना भी माना गया था। लेकिन हाल ही जिस ढंग से उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार में सरकारी मशीनरी के कारनामे उजागर हो रहे हैं उससे लगने यही लगा है पांच साल होने का जो बी समय बचा है वो जनता के लिए राहत भरा नहीं रहेगा। हाल ही में एक पत्रकार की जलने से हुई मौत के मामले में आरोपी मंत्री और दरोगा के खिलाफ जांच कराने के बजाए, मरने वाले पत्रकार को 30 लाख रुपए और परिवार के दो लोगों को नौकरी पेश कर दी गई। सवाल यह उठता है कि अगर कुछ गलत नहीं हुआ था तो इतना मुआवजा क्यों और अगर कुछ गलत हुआ था तो दोषियों के कार्रवाई से परहेज़ क्यों। इससे तो यही लगता है कि ये सरकार न अपने उस नेता के साथ है जिसके पिता को थाने में बेइज्जत किया न किसी पत्रकार की मौत के मामले पर दोषियों की तलाश करेगी।
इसी सबके बीच दो ही दिन पहले एक ऐसा मामला सामने आया जिसने ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि आख़िर सरकार है किसकी और किसके साथ। एक गरीब मुस्लिम परिवार की नाबालिग लड़की दूसरे समुदाय के किसी शख्स के हाथों बेचे जाने की सूचना पर रात को क्षेत्र की जनता गाजियाबाद के विजय थाने में शिकायत लेकर गई। बाद में उसी क्षेत्र में रहने वाले एक पत्रकार भी जा पहुंचे। आरोप है कि उस वक्त दरोगा पूरे मुस्लिम समाज को गरिया रहे थे और कुद को मुलायम सिंह यादव और बलराम यादव के परिवार का बता कर ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। लेकिन इसी बीच जब एसओ साहब को लगा कि वहां मौजूद पत्रकार उनकी बहादुरी के कारनामों को रिकार्ड कर रहा है तो उन्होने न सिर्फ के साथ मारपीट कर डाली बल्कि पत्रकार का कैमरा तक छीन लिया। पत्रकार तौसीफ हाशमी ने मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति सहित मानवाधिकार आयोग तक को अपने शिकायती पत्र में कई ऐसे गंभीर आरोप लगाए हैं जिनसे इतना तो साफ हो जाता है कि उत्तर प्रदेश में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है।
ये वही उत्तर प्रदेश सरकार है जिसने आते ही पिछली सरकार पर पत्रकारों और जनता के उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। और वादा किया था कि पिछली सरकार के कार्यकाल में जितने फर्जी मामले दर्ज हुए उनको समाप्त किया जाएगा। लेकिन जनाब अखिलेश जी आप पिछली सरकार के कितने मामलों को समाप्त कर चुके हैं उनका तो सबूत जनता और हमारे पास मौजूद है ही। मगर आपसे फिलहाल यही गुज़ारिश है कि अपनी सरकार के बचे खुचे कार्यकाल में जनता को नये मामलों से तो बचा लीजिए। माना कि सरकार यादव परिवार के हाथों में है तो स्वाभाविक है कि हर थाना हर बड़ी पोस्ट पर यादव इंपोर्ट किये जाऐंगे ही। मगर इस सभी यादव अधिकारियों को इतना तो समझा दो कि सरकार बनाने में यादवों की वोट का प्रतिशत कितना था। अगर यही हाल रहा और दूसरे समाज के लोग इस बार नेता को सबक सिखाने पर उतर आए तो अगले विधानसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत की तरह पूर्ण सफाया भी नामुमकिन नहीं है।
लेखक आज़ाद ख़ालिद टीवी पत्रकार हैं, सहारा समय, इंडिया टी, वॉयस ऑफ इंडिया, इंडिया न्यूज़ और कई चैनलों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं.
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