Big Demonstration against land acquistion, forest rights and labor rights, Robertsganj 30th June 2015 वनाधिकार, भूमि एवं श्रम अधिकार के सवाल पर विशाल जनविरोध प्रदर्शन 30 जून 2015 हाईडिल मैदान, राबर्ट्सगंज सोनभद्र-उ0प्र0, sonbhadra UP 30th June 2015
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All India Union of Forest Working People(AIUFWP)
Dear all,
After having a successful rally against land acquisition in Lucknow, UP on 12 June where around 5000 people participated in scorching heat, a list of programme was prepared to continue the struggle. In the first one it was decided that mass action programme should be organized where the struggle against land acquisition is going on. Hence on 30th June all the organization and forums like "Land Rights Movement", " All India People's Forum" (AIPF) and many other independent trade unions and left parties affiliated unions and peasant organization have decided to organize a one day dharna and rally in Robertsganj, Sonbhdra, UP. It is the place where on Ambedkar Jyanti police fired at tribals who were opposing the controversial Kanhar dam project where illegal land acquisition is taking place. The killing of journalist Jagendra Singh has been highlighted by media but the police firing on Aklu chero tribal who was shot at his chest finds no mention in the press. We request all of u to participate in this programme. Hindi programme is also attached.
In solidarity
Roma
AIUFWP
भू-अधिग्रहण अध्यादेश रद्द करो भू-अधिकार, श्रमाधिकार एवं वनाधिकार लागू करो
भू-अधिग्रहण के लिए लोगों का दमन बन्द करो
वनाधिकार, भूमि एवं श्रम अधिकार के सवाल पर
विशाल जनविरोध प्रदर्शन
30 जून 2015
हाईडिल मैदान, राबर्ट्सगंज सोनभद्र-उ0प्र0
साथियोे!
31 मई 2015 को केन्द्र की एन.डी.ए सरकार ने देशभर में हो रहे भरपूर विरोध के बावज़ूद तीसरी बार भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को फिर से ज़ारी कर दिया है। इससे पूर्व इस अध्यादेश को दिनांक 31 दिसम्बर 2014 को व 3 अप्रैल को भी जारी किया गया था। देशभर के खेतीहर व गरीब किसान, दलित आदिवासी तबकों और भूमि अधिकार के सवाल पर लड़ रहे जनसंगठनों, ट्रेड यूनियनों, किसान संगठनों, सामाजिक संस्थाओं व आम लोगों में इसके खिलाफ संसद मार्ग पर दो बार व संसद में भी विपक्षी सदस्यों ने इस अध्यादेश का भारी विरोध किया।
संसद के नियमानुसार अध्यादेश जारी होने के बाद इसे कानून के रूप में बदलने के लिये संसद के दोनों सदनों लोकसभा व राज्यसभा में विधेयक पारित कराना ज़रूरी होता है। संसद में भी भारी विरोध के चलते यह विधेयक पारित नहीं हो पाया। इसी लिये सरकार को तीन बार अध्यादेश जारी करने की ज़रूरत पड़ी। दोनों बार ही प्रस्तावित विधेयक लेाकसभा में पारित हो गया था, लेकिन पहली बार राज्य सभा में पारित नहीं हो पाया और दूसरी बार तो राज्य सभा में विरोध के चलते पेश ही नहीं किया गया। इस बीच संसद में अध्यादेश का विरोध कर रहे दलों के साथ जनांदोलनों का एक तालमेल बन गया, जिसके कारण इसे वे राज्यसभा में पेश नहीं कर पाए और सरकार को मजबूरन इस प्रस्तावित कानून को संयुक्त संसदीय समिति को गठित कर विचार के लिए रखना पड़ा। यह सरकार के लिए एक कदम पीछे हटना था। संसदीय समिति को जुलाई माह में संसदीय सत्र मे अपना सुझाव देना है और तब इस प्रस्तावित विधेयक पर दोनों सदनों में चर्चा होगी और यह तय होगा कि यह विधेयक पारित होगा या नहीं। ज्ञात रहे कि मोदी सरकार के पास लोकसभा में भारी बहुमत है, लेकिन राज्य सभा में उनके पास बहुमत नहीं है। सवाल यह है कि जब सरकार ने प्रस्तावित विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति में भेज दिया था, तो फिर तीसरी बार अध्यादेश ज़ारी करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? साफ ज़ाहिर है कि सरकार को संसदीय प्रणाली में भरोसा नहीं है, इसलिए वह बार-बार अध्यादेश ज़ारी कर रही है। इस से यही साबित होता है कि सरकार ज़मीनों को हड़पने पर तुली हुई है। यह सूट-बूट और रंग बिरंगी बंडियों की मोदी सरकार बड़ी-बड़ी कम्पनियों के हाथ देश की ज़मीनें व सम्पदा को सौंपने के लिए ज़रूरत से ज्यादा बैचेन है। केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा तमाम जनपक्षीय कानून जैसे श्रम कानून, बाल अधिकार, महिला की सुरक्षा के, नरेगा, सूचना के अधिकार के कानूनों में बदलाव ला कर प्राप्त सुरक्षा कवच को हटाया जा रहा है। लगभग सभी विपक्षी पार्टियां ऐसे कानून का न केवल विरोध कर रही हैं, बल्कि जनसंगठनों के समूह ''भूमि अधिकार आंदोलन''के साथ भी तालमेल बना रही हैं। साथ ही कई श्रमिक संगठन एवं वाम दलों द्वारा गठित ''आल इंडि़या पीपुल्स फोरम''भी केन्द्र सरकार की जनविरोधी व मज़दूर विरोधी नीतियों के लिए पूर्ण रूप से केन्द्र सरकार का विरोध कर रहा है।
कमोबेश यही स्थिति उन राज्यों में बनी हुई है जहां एन0डी0ए की सरकार भी नहीं है, जैसे उ0प्र0, तेलंगाना, असम, उड़ीसा आदि में ज़मीनी स्तर पर सरकारी मशीनरी जबरन भूमि अधिग्रहण में लगी हुई है। ज़्यादहतर राज्यों में अभी भी वनविभाग वनाश्रित समुदायों को विस्थापित करने में लगा हुआ है, सिंचाई विभाग बांधों के नाम से कृषि एवं ग्रामसभा की भूमि को गैरकानूनी रूप से छीन कर लोगों को जबरन विस्थापित कर रहा है, औद्योगिक गलियारों, रोड व ढांचागत निर्माण के नाम से लोक निर्माण विभाग शहरी और गांव की ज़मीनें बेधड़क हड़प रहे हैं। सरकार चाहे किसी की भी हो सरकारी मशीनरी एक ही बात जानती है, कि विकास के नाम पर सारी भूमि कम्पनियों और ठेकेदारों के हाथ में दे दो। राज्य सरकारें चाहे कांग्रेस, सपा, अन्ना डी.एम.के, बी.जे.डी या टी.आर.एस की हो सबकी चाल मोदी चाल ही है। क्योंकि इस काम में अफसरों, बड़े बड़े कांट्रेक्टरों, सीमेंट व लोहा कम्पनियों, बड़े-बड़े मशीन बनाने वाले उद्योगों की चांदी ही चांदी है। इन सारे चक्करों में फंस कर आम जनता बेहाल होती जा रही है। इसलिए आज जो संसद में विरोध चल रहा है, वो कब तक चलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है। उ0प्र0 में मुख्यमंत्री ने स्पष्ट रूप से यह ऐलान किया कि प्रदेश में कोई भी भूमि जबरन नहीं ली जाएगी। लेकिन बावजूद इसके अधिकारीगण, कद्दावर मंत्रीगण जमीन अध्रिगहण के सारे हथकंडे अपना रहे हंै, चाहे गोली क्यों न चलाई जाए। जिसकी सबसे बड़ी ताज़ा मिसाल सोनभद्र में बन रहे कनहर बांध में जबरन भूमि अधिग्रहण के विरोध में चल रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान 14 अप्रैल 2015 को अम्बेडकर जयंती के दिन आंदोलनकारियों पर सीधे गोली चलाने की घटना में मिलती है। यही नहीं इसके बाद 18 अप्रैल को एक बार फिर सुब्ह निकलते ही जब लोग आधी नींद में थे, पुलिस ने स्थानीय गुंडों माफियाओं की मदद लेकर एक बार फिर सैकड़ों राउंड गोली बारी की व बिना किसी महिला पुलिस के महिलाओं, बुजु़र्गों, नौजवानों पर खुला लाठी चार्ज किया, निशाना साध कर सरों पर सीधे वार किये गये जिसमें सैकड़ों लोग घायल हुए। जिसमें आदिवासी नेता अकलू चेरो के सीने पर पुलिस द्वारा निशाना साध कर गोली चलाई गई, गोली सीने के आर-पार निकल जाने के कारण अकलू चेरो की जान तो बच गई, लेकिन इरादा हत्या का ही था। उ0प्र0 के एक कद्दावर मंत्री ने आंदोलनकारियों को अब अराजक तत्व बताया है, ठीक उसी तरह जिस तरह केन्द्रीय सरकार ने दिल्ली विधान सभा के अधिकारों के लिए लड़ रही दिल्ली सरकार को अराजकतावादी बताया है। विदित हो कि यह सब खेल सत्ता के इशारे पर पुलिस प्रशासन द्वारा उस 2300 करोड़ रुपये के लालच में किया गया, जो कि बाॅध के निर्माण के लिये आना है। वहीं वनक्षेत्रों में वनाधिकार कानून को लागू नहीं किया जा रहा, वनाश्रित समुदाय वनविभाग एवं पुलिस विभाग दोनों द्वारा फर्जी मुकदमें किए जा रहे हैं और आंदोलनकारियों को जेलों में ठूसा जा रहा है। दलित आदिवासी महिलाओं पर दमन और उत्पीड़न बादस्तूर ज़ारी है। बलात्कारी कलवंत अग्रवाल, हत्यारा कोतवाल कपिल यादव, अवैध खनन हादसे के आरोपी, नरेगा के 2000 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोपी पूर्व जिलाधिकारी पनधारी यादव, कनहर गोलीकांड में पुलिस प्रशासन का साथ देने वाले पूर्व विधायक एवं मौजूदा विधायक सब खुले घूम रहे हैं। उनपर किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं है। वहीं जनपद चन्दौली में दलित आदिवासियों पर दबंगों का खुला उत्पीड़न, मिर्जापुर में आदिवासीयों की भूमि को कम्पनियों व पूर्व सपा सांसद द्वारा हड़पने की साजिश पर किसी प्रकार की लगाम नहीं है। यह साफ-तौर पर ज़ाहिर हो रहा है, कि केन्द्र एवं राज्य सरकार इन जनविरोधी नीतियों को लागू कर देश के काश्तकारों, मज़दूरों, भूमिहीन किसानों, दलित आदिवासी व ग़रीब महिलाओं को गु़लामी की तरफ धकेलने की कोशिश कर रही है, जिसका राजनीतिक परिणाम काफी गम्भीर होगा। लेकिन हमें अपने जनवादी और जुझारू आंदोलन को पूरे देश में चला कर सरकारों को चुनौती देने का काम करना है।
भूमि अधिकार आंदोलन देश के तमाम जनसंगठनों का साझा मंच है और जो केन्द्रीय स्तर पर इस अध्यादेश के खिलाफ संघर्षरत है और इस साझा मंच के बैनर तले दिल्ली में दो बड़ी रैलियां की गई हैं। तमाम विपक्षी सांसदों के साथ वार्ता भी की गई, जिसका सीधा असर संसद की बहस में दिखाई दिया। यह आंदोलन इसके साथ-साथ राज्य की स्थिति के बारे में भी जागरूक है। वहीं ''आल इंडि़या पीपुल्स फोरम''द्वारा भी देश में 100 दिन का अभियान चला कर मोदी सरकार एवं राज्य सरकार की जनविरोधी नीतियों के बारे में हर जिले पर विरोध प्रर्दशन आयोजित कर रहा है। इसलिए यह साझा आंदोलन हर राज्य के मुख्यालय और क्षेत्रों में और संगठनों के साथ मिलकर विरोध प्रर्दशन के कार्यक्रम चला रहा है, ताकि आम जनता जागरूक हो और राज्य सरकार भी सचेत हो। राज्य सरकारों को भी अपनी जनता के प्रति प्रतिबद्धता भी जाहिर करना ज़रूरी है। केन्द्र में तो अध्यादेश का विरोध करें और क्षेत्र में भूमि हड़प कार्यक्रम चलाकर कुछ और करें ऐसा नहीं चल सकता। इसलिए भूमि अधिकार आंदोलन एवं ए0आई0पी0एफ उ0प्र0 के जनपद सोनभद्र के जिला मुख्यालय राबर्ट्स गंज में 30 जून 2015 को एक दिवसीय धरने का आयोजन करने जा रहा है। जिसमें कैमूर क्षेत्र बिहार, झारखण्ड छत्तीसगढ़, बुंदेलखंड के हज़ारों लोग शामिल होंगे व देश के तमाम जनसंगठन भी शामिल होंगे। यह कार्यक्रम रार्बट्सगंज के हाईडिल मैदान से सुबह 11 बजे शुरू होगा और शहर में जुलूस निकालकर सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध करेगा।
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां, रूई की तरहा उड़ जायेंगे
हम महक़ूमों के पाॅव तले ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हक़म के सर ऊपर, जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
हम देखेंगे, लाजि़म है कि हम भी देखेंगे -''फै़ज़''
भूमि अधिकार आंदोलन, अखिल भारतीय लोक मंच ;।प्च्थ्द्ध, अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन ;।प्न्थ्ॅच्द्ध, न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव ;छज्न्प्द्ध ,कैमूरक्षेत्र महिला मज़दूर किसान संघर्ष समिति, कन्हर बचाओ आंदोलन, कैमूरक्षेत्र संघर्ष मोर्चा, पाठा दलित भूमि अधिकार मंच, थारू आदिवासी एवं तराई क्षेत्र महिला मज़दूर किसान मंच, बिरसा मुंडा भू-अधिकार मंच खारा रीवा म0प्र0
Ms. Roma ( Adv)
Dy. Gen Sec, All India Union of Forest Working People(AIUFWP) /
Secretary, New Trade Union Initiative (NTUI)
Coordinator, Human Rights Law Center
c/o Sh. Vinod Kesari, Near Sarita Printing Press,
Tagore Nagar
Robertsganj,
District Sonbhadra 231216
Uttar Pradesh
Tel : 91-9415233583,
Email : romasnb@gmail.com
http://jansangarsh.blogspot.com
Delhi off - C/o NTUI, B-137, Dayanand Colony, Lajpat Nr. Phase 4, NewDelhi - 110024, Ph - 011-26214538
Coordinator, Human Rights Law Center
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Tagore Nagar
Robertsganj,
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Dy. Gen Sec, All India Union of Forest Working People(AIUFWP) /
Secretary, New Trade Union Initiative (NTUI)
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Robertsganj,
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District Sonbhadra 231216
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