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“दान का चर्चा घर-घर पहुंचे,लूट की दौलत छुपी रहे, क्या मिलिए ऐसे लोगों से,जिनकी फितरत छुपी रहे, नकली चेहरा सामने आये,असली सूरत छुपी रहे”

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सुषमा जी भाजपा के "चाल,चरित्र और चेहरे"की सच्ची एवं वास्तविक प्रतिनिधि हैं.दरअसल यही असली भाजपाई चेहरा है,जिसके बाहरी आवरण पर सादगी का लेप है,जो स्वयंभू तरीके से ईमानदार भी है और इस स्वघोषित ईमानदारी की पूरी ठसक भी उसमें मौजूद है.अपनी निगाह में वे सबसे बड़े राष्ट्रभक्त भी हैं और इस नाते कौन राष्ट्रभक्त है,कौन नहीं,ये सर्टिफिकेट बांटने का अधिकार भी वे स्वयं के पास आरक्षित समझते हैं.
लेकिन इस ऊपरी परत की कलई जब-जब उतरती है तो जो सुषमा स्वराज प्रकट होती हैं,वो न तो सादगी की प्रतिमूर्ति हैं,न ईमानदारी की,वह तो आन्ध्र प्रदेश के कुख्यात रेड्डी बंधुओं की संरक्षक है.याद कीजिये जब बेल्लारी में सोनिया गांधी के खिलाफ वे चुनाव लड़ने उतरीं.उनका यह अंदाज किसी को भी भा सकने वाला था कि परिवारवाद की राजनीति को चुनौती देने के लिए वे मैदान में उतरीं.लेकिन इस लड़ाई से उन्होंने अर्जित किये वो कुख्यात रेड्डी बन्धु,जो इतने बड़े खनन माफिया हैं कि उन्होंने आंध्र प्रदेश और कर्नाटक की सीमा ही खोद डाली.ममतामयी दिखने वाली सुषमा जी की ममता इन माफिया बंधुओं पर बरसी और वे इन माफिया बंधुओं की "माँ"हो गयीं.यही भाजपाई "चाल,चरित्र और चेहरा"है जो निकलता तो परिवारवाद की राजनीति को चुनौती देने है,लेकिन अपने लिए माफिया बंधुओं का एक नया परिवार जुगाड़ लाता है.
भाजपा का यही असली रंग है कि मंत्री बनते हुए शपथ तो शुद्ध,परिष्कृत हिंदी मे ये कानून और संविधान की लेते हैं.लेकिन जब मानवता दर्शाने की बारी आती है तो मानवता,उनकी एक कानून के भगोड़े पर बरसती है. तहलका घोटाले में एक लाख रूपया रिश्वत लेते हुए पकडे जाने के बावजूद,कारगिल युद्ध में ताबूतों में कमीशन खाने के बावजूद,येदियुरप्पा और रेड्डी बंधुओं के भ्रष्टाचार के बावजूद वे ईमानदारी के सबसे बड़े झंडाबरदार हैं.ललित मोदी जैसे कानून के भगौड़ों की मदद करने के बावजूद उनके राष्ट्रवाद पर लेश मात्र भी आंच नहीं आती.
इनसे कहिये कि आप भ्रष्टाचार कर रहे हैं तो गिनाने लगेंगे कि पिछले कांग्रसी राज में कितना भ्रष्टाचार हुआ !अरे महाराज,पिछले राज में भ्रष्टाचार न हुआ होता तो जनता,उन्हें उखाड़ क्यूँ फेंकती ?इसलिए जनता ने उन्हें धूल चटा दी.पर आप ये बताओ हुजूर कि जो यह नारा था कि "बहुत हुई जनता भ्रष्टाचार से लाचार,अबकी बार ......",उसका मतलब क्या ये था कि- बहुत हुई जनता कांग्रेसी भ्रष्टाचार से लाचार,अब देखो भाजपाई भ्रष्टाचार की बहार ?
इस दोमुंहे "चाल,चरित्र और चेहरे"पर वह पुराना हिंदी फ़िल्मी गीत सटीक बैठता है कि-
"दान का चर्चा घर-घर पहुंचे,लूट की दौलत छुपी रहे,
क्या मिलिए ऐसे लोगों से,जिनकी फितरत छुपी रहे,
नकली चेहरा सामने आये,असली सूरत छुपी रहे"




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