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साल भर पहले "अच्छे दिन"का सपना देखने वाले लोग आज मा. अटल बिहारी वाजपेयी की यह कविता गुनगुना रहें होंगे... =============== चौराहे पर लुटता चीर प्यादे से पिट गया वजीर चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊँ मैं? राह कौन सी जाऊँ मैं?
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