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::: मीडिया को कठघरे में खड़ा कर रही है आरोपियों की सरकार :::::

Previous: Ramisera (Rami Paddy Fields): A Garhwali Folk Story about Strong Willed Woman (Folk Tales /Community from Garhwal Series-114) Collected by Bhishma Kukreti (Narrated by Shri Jagdish Prasad Shukla of Ramjiwale Ganv, Udaipur, Pauri Garhwal) (This story was told by a person belongs Udaipur Patti near Haridwar and story events happened in Mathyali village, Badalpur, near Ramganga far away from Ramjiwale Ganv. Therefore, there would be differences in story version of Ramisera.) There was a beautiful widow living in Mathiyali village of Badalpur (Pauri Garhwal) region. Her name was Rami and she lost her husband before delivering her girl child. Rami had a girl child of three months old. The Padhan or village chief was attracted to her beauty and wanted to make his mistress. He offered his desire to her many times and every times Rami refused his sinful idea. Now, village chief started harassing Rami through his Padhan position. She was strong character woman and did not bend before harassme
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::: मीडिया को कठघरे में खड़ा कर रही है आरोपियों की सरकार :::::

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को लगता है कि उनके मंत्रियों को
फंसाया जा रहा है, साथ ही कहना है कि सरकार पर दबाव बनाये रखने के लिए
विरोधी दलों के नेता आये दिन मंत्रियों के त्याग पत्र मांगते रहते हैं।
आरोप यह भी है कि समाजवादी पार्टी पर मीडिया हमलावर रहता है। समाजवादी
पार्टी के नेताओं की इस दलील का आशय यह है कि उनकी सरकार में सब कुछ ठीक
है एवं सभी मंत्री संवैधानिक दायरे में रह कर ही कार्य कर रहे हैं,
जिन्हें सिर्फ बदनाम किया जा रहा है, लेकिन यह स्पष्ट होना शेष है कि
समाजवादी पार्टी के नेता डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखित संविधान के
दायरे में रहने की बात करते हैं, या समाजवादी पार्टी का कोई और संविधान
है?
खैर, उत्तर प्रदेश की कुछ बड़ी और कुछ ताजा घटनाओं की बात करते हैं।
प्रतापगढ़ जिले में सीओ हत्या कांड हुआ, जिसमें कैबिनेट मंत्री रघुराज
प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का नाम आया, तो इसमें विरोधियों और मीडिया का
क्या षड्यंत्र था? घटना के बाद विरोधियों का हमला बोलना स्वाभाविक है और
घटना के संबंध में मीडिया ने अपने कर्तव्य का निर्वहन किया। किसी का कोई
षड्यंत्र नहीं था, इसी तरह गोंडा में सीएमओ अपहरण कांड हुआ, जिसका आरोप
राज्यमंत्री विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह पर लगा, इस कांड में भी
विरोधियों और मीडिया का क्या षड्यंत्र था?, इस घटना के बाद भी विरोधियों
और मीडिया ने अपनी भूमिका का ही निर्वहन किया। जघन्य आरोपों से घिरे
मुख्यमंत्री ने मंत्रियों को हटा दिया और जांच के बाद निर्दोष पाये जाने
पर दोनों को पुनः मंत्री बना दिया, इस पर मीडिया ने कोई सवाल नहीं उठाया।
समाजवादी पार्टी के नेता बदायूं जिले के कटरा सआदतगंज में पेड़ पर लटकाई
गईं चचेरी बहनों के प्रकरण में मीडिया को कोसना नहीं भूलते। इस जघन्यतम
वारदात में मीडिया कहां गलत है? दो लड़कियाँ पेड़ पर लटकी मिलीं और उनके
परिजनों ने तीन सगे भाइयों सहित दो सिपाहियों पर यौन शोषण और हत्या का
आरोप लगाया, जिसे मीडिया ने अक्षरशः लिखा और दिखाया, इसके बाद मुकदमे की
प्रगति, नेताओं का आना और उनके बयान प्रकाशित किये। लड़कियों को पेड़ पर
टांगने, उन्हें मारने और गलत लोगों को नामजद करने में मीडिया का क्या हाथ
है? मीडिया ने सिर्फ रिपोर्टिंग ही की, लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को
नहीं पता था कि उन्हें क्या करना है। गृह सचिव निलंबित किया, लेकिन जिले
के अफसरों पर कार्रवाई नहीं की। मीडिया ने सवाल किया, तो प्रभारी डीएम का
कार्यभार संभालने वाले सीडीओ को निलंबित कर दिया, लेकिन प्रभारी एसएसपी
की जगह छुट्टी पर गये एसएसपी को निलंबित किया। बड़े-बड़े अफसरों पर
कार्रवाई कर दी गई, लेकिन संबंधित थाने के एसओ को निलंबित तक नहीं किया।
जिन अफसरों के विरुद्ध कार्रवाई हुई, वे सब गैर यादव थे और एसओ यादव, इस
पर सरकार स्वतः ही कठघरे में खड़ी हो गई। पूरे प्रकरण में शुरू से अंत तक
प्रदेश सरकार ने दबाव में गलत निर्णय ही लिए। मीडिया और न्यायालय का दबाव
न होता, तो सरकार सीबीआई जाँच के आदेश नहीं देती और इस प्रकरण में सीबीआई
जाँच न हुई होती, तो गवाह और सुबूत के आधार पर नामजद आरोपियों को
न्यायालय में निश्चित रूप से फांसी की सजा होती। सीबीआई जांच में सभी
नामजद निर्दोष पाये गये हैं, उन्हें बचाने का श्रेय सिर्फ मीडिया और
न्यायालय को ही जाता है।
अब ताजा घटनाओं की बात करते हैं। हाल ही में राज्यमंत्री विनोद सिंह उर्फ
पंडित सिंह पर एक युवा को फोन पर गाली देने का आरोप लगा। राज्यसभा सदस्य
डॉ. चन्द्रपाल सिंह यादव पर तहसीलदार को धमकाने का आरोप लगा, इन दोनों
घटनाओं में विरोधी दलों का क्या षड्यंत्र हो सकता है और मीडिया को खबरें
क्यूं नहीं प्रकाशित करनी चाहिए? अगर, मीडिया मंत्रियों, विधायकों और सपा
नेताओं के दबंगई की घटनाओं को छाप रहा है, तो वह सरकार या सपा विरोधी
नहीं हो जाता। सपा को यह नहीं भूलना चाहिए कि विपक्ष में होने पर यही
मीडिया उनकी ढाल अक्सर बनता रहा है।
समाजवादी पार्टी के नेता अपनी पार्टी के नेताओं और मंत्रियों के आचरण पर
भी एक नजर डालें। रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया, विनोद सिंह उर्फ
पंडित सिंह ही नहीं, बल्कि मनोज पारस, गायत्री प्रजापति, महबूब अली,
अंबिका चौधरी, शिवप्रताप यादव, आजम खां, कैलाश चौरसिया, तोताराम और
राममूर्ति वर्मा आदि का आचरण ऐसा रहा है, जिसके चलते यह लोग विवादों में
रहे हैं और सरकार की मुश्किलें बढ़ाते रहे हैं, इनमें से ऐसा कोई नहीं है,
जिसे विरोधियों ने फंसाया हो और मीडिया ने बेवजह तूल दिया हो, यह लोग कुछ
न कुछ ऐसा करते रहे हैं, जिससे यह लोग मीडिया की नजर में आये। सरकार में
तमाम ऐसे मंत्री अभी भी हैं, जिन पर किसी तरह का कोई आरोप नहीं लगा है,
उनकी छवि पर मीडिया कभी कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता।
शाहजहाँपुर निवासी पत्रकार जगेन्द्र हत्या कांड में पुलिस-प्रशासन और
सरकार की भूमिका की बात करते हैं, तो शाहजहांपुर का स्थानीय प्रशासन शुरू
से ही माफियाओं और सत्ताधारियों के दबाव में रहा है। जगेन्द्र ने एक तेल
माफिया के विरुद्ध खबरें लिख दीं, तो तेल माफिया ने जगेन्द्र के विरुद्ध
रंगदारी का मुकदमा दर्ज करा दिया। हालांकि बाद में पुलिस ने जगेन्द्र को
निर्दोष करार दे दिया, लेकिन उसी माफिया ने जगेन्द्र के विरुद्ध
शाहजहांपुर में पुलिस की ओर से बड़े-बड़े होर्डिंग लगवा दिए, जिस पर
जगेन्द्र धरने पर बैठ गये, तो पुलिस-प्रशासन ने होर्डिंग हटवा दिए, पर
होर्डिंग लगवाने वाले तेल माफिया के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की। इसके बाद
जगेन्द्र ने राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा के कारनामों का खुलासा किया, तो
राममूर्ति वर्मा के कहने से ही एक व्यक्ति की तहरीर पर जगेन्द्र के
विरुद्ध पुलिस ने फर्जी मुकदमा दर्ज कर लिया, इस मुकदमे की सही विवेचना
कराने के लिए जगेन्द्र पुलिस विभाग के तमाम बड़े अफसरों के कार्यालयों में
चक्कर लगा चुके थे, लेकिन राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा के दखल के चलते
जगेन्द्र को कहीं से मदद नहीं मिली, इस बीच एक आंगनवाड़ी कार्यकत्री ने
राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा और उनके साथियों पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा
दिया, तो जगेन्द्र ने इस प्रकरण पर भी लिखना शुरू कर दिया और खुद को
फर्जी फंसाने से व्यथित जगेन्द्र गवाह भी बन गये, इसके बाद राज्यमंत्री
राममूर्ति वर्मा के दबाव में ही पुलिस जगेन्द्र को भूखे भेड़िये की तरह
खोजने लगी। पुलिस ताबड़तोड़ छापे मारने लगी, जिससे जगेन्द्र किसी तरह बचते
रहे और इधर-उधर छिपते रहे। जगेन्द्र की स्थिति एक बड़े अपराधी जैसी बना
दी, जो स्वयं को पुलिस से बचाता घूम रहा था। एक जून को जगेन्द्र अपने
आवास विकास कालौनी में स्थित घर पर थे, तभी मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने
छापा मार दिया, जिसके बाद जगेन्द्र के जलने की घटना हुई और 8 जून को लखनऊ
में उपचार के दौरान जगेन्द्र ने दम तोड़ दिया। मृत्यु से पूर्व जगेन्द्र
ने स्वयं बयान दिया कि उन्हें पुलिस ने पेट्रोल डाल कर जला दिया। पुलिस
का कहना है कि जगेन्द्र ने स्वयं आग लगाई।
जगेन्द्र के बयान की बात करें, तो बयान मजिस्ट्रेट ने भी दर्ज किया है।
मृत्यु पूर्व दिए गये बयान को कोई नहीं झुठला सकता। साक्ष्य संबंधी धारा-
32 (1) के अंतर्गत दर्ज किये गये मृतक के बयान को न्यायालय भी सच मानता
है, तो जगेन्द्र के बयान को सरकार कैसे झुठला सकती है? पुलिस की बात सही
मान लें, तो सवाल यह है कि जगेन्द्र को आत्म हत्या करने के लिए मजबूर किस
ने किया? आत्म हत्या करने वाले हालात किसने उत्पन्न किये? जाहिर है कि
राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा और स्थानीय पुलिस ने जगेन्द्र के अंदर इतना
बड़ा डर पैदा कर दिया कि उसे जिंदगी की तुलना में मर जाना आसान लगा, लेकिन
पुलिस के तर्क में दम नहीं है, क्योंकि जगेन्द्र ने अपनी फेसबुक वॉल पर
22 मई को लिखा था कि राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा उसकी हत्या का षड्यंत्र
रच रहे हैं और उसकी हत्या हो सकती। क्या जगेन्द्र को 22 मई को पता था कि
1 जून को पुलिस उसके घर पर छापा मारेगी, तो वह आत्म हत्या करेगा?, ऐसी
कल्पना करना भी मूर्खता पूर्ण बात ही कही जायेगी। प्रथम दृष्टया
राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा और पुलिस कर्मी दोषी ही नजर आ रहे हैं,
इसलिए सरकार को प्रथम दिन ही सभी दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करा देनी
चाहिए थी। राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा को मंत्रिमंडल से निकाल देना
चाहिए था। इसके अलावा जगेन्द्र की मृत्यु सहज नहीं है। हत्या हो, अथवा
आत्म हत्या, दोनों ही हालातों में राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा और पुलिस
वाले दोषी ही हैं, इसलिए मृतक आश्रितों का अधिकार है कि उन्हें आर्थिक
सहायता दी जाये, लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया। सरकार का जांच के बाद
कार्रवाई करने का तर्क तब माना जाता, जब सरकार सीबीआई जाँच की संस्तुति
कर देती, लेकिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल
यादव का बयान आया कि मुकदमा लिखने से कोई दोषी नहीं हो जाता, इसके अलावा
पार्टी ने पूर्व विधायक देवेन्द्र कुमार सिंह के विरुद्ध यह कहते हुए
कार्रवाई कर दी कि उन्होंने राममूर्ति वर्मा के विरुद्ध साजिश रची।
समाजवादी पार्टी की इस सोच पर सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि जब वो पहले
से ही साजिश मान बैठी है, तो उसकी सरकार निष्पक्ष जांच कैसे करा पायेगी?
जगेन्द्र हत्या कांड को लेकर उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में जनहित याचिका
भी दायर हो चुकी है, जिस पर सोमवार को सुनवाई होगी। अब तक की भूमिका
देखते हुए सरकार से ज्यादा अब न्यायालय पर ही विश्वास है, जहां दोषी बच
नहीं पायेंगे। कुल मिला कर न्याय के लिए संघर्ष लंबा भी चल सकता है,
इसलिए सवाल उठता है कि ऐसा कब तक चलेगा? देश हर आम आदमी के साथ खड़ा नहीं
होता। उन्हें न्याय कौन दिलायेगा? आम आदमी को न्याय दिलाने के साथ
भयमुक्त वातावरण देना सरकार का प्रथम दायित्व होना चाहिए। हर प्रकरण में
विरोधियों पर आरोप लगा देना और मीडिया को कठघरे में खड़ा कर देने से काम
नहीं चलेगा। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को समझना होगा कि अब जनता पचास, साठ
और सत्तर के दशक की सोच वाली नहीं है। अब जनता जागरूक हो गई। इक्कीसवीं
सदी के युवाओं के हाथ में अब कंप्यूटर, लैपटॉप, पैड और स्मार्ट फोन है,
जो इंटरनेट के सहारे विश्व से जुड़े हुए हैं। युवा अब सब समझते हैं, वे
बिना तर्क के कुछ भी स्वीकार नहीं करते। प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था
को लेकर तर्क से नहीं, बल्कि कानून का राज स्थापित करने से ही काम चलेगा
और यह निश्चित है कि जब तक थानेदार को तैनात करने का अधिकार विधायकों और
मंत्रियों के पास रहेगा, तब तक प्रदेश में कानून व्यवस्था नहीं सुधरने
वाली, क्योंकि थानेदार कानून के प्रति नहीं, बल्कि विधायक और मंत्री के
प्रति वफादार रहता है। जिला हरदोई के थाना हरियावां का ताजा प्रकरण
उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है। थानेदार राधेश्याम गुप्ता के सिर पर
राज्यमंत्री नितिन अग्रवाल का हाथ है, जिससे वो कभी सांसद का अपमान कर
देते हैं, तो कभी पत्रकार को फोन पर हड़का देते हैं और कभी यौन शोषण की
शिकार महिला को अपमानित कर देते हैं, इतना सब होने के बावजूद एसएसपी उसे
हटा नहीं सकते, क्योंकि मंत्री जी आड़े आ जायेंगे, ऐसे ही शाहजहाँपुर में
कोतवाल श्री प्रकाश राय को एसएसपी का डर होता, तो वो जगेन्द्र का शोषण
नहीं कर पाते, इसलिए अखिलेश जी, आईपीएस अफसरों के अधिकार बहाल कीजिये,
कानून व्यवस्था स्वतः सुधर जायेगी।

बी. पी. गौतम
स्वतंत्र पत्रकार
8979019871

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