"शंखनादों से सुबह सहमी है
आर्तनादों से शाम
अमन के नाम पर कफ़न किसने उढ़ाया ?
एक सहमी सी सुबह से मैंने पूछ था ये सच
शाम होते शहर शोकाकुल सा नज़र आया
सच की दुनिया अब अखबारों को अखरती है
झूठ का झंडा उठाये दूरदर्शन दौड़ आया
सुना है गिद्ध की नज़रें हमारे गाँव पर हैं
सुना है चहकती चिड़िया आज चिंतित है
सुना है गाय का बच्चा अपनी मां के दूध से वंचित है
सुना है यहाँ कलियाँ सूख जाती हैं नागफनीयाँ सिंचित हैं
सुना है फूल तोड़े जा रहे हैं मुर्दों पे चढाने को
सुना है कांटे तो खुश हैं पर राहें रक्तरंजित हैं
सुना है शब्द सहमे हैं साँसें थम गयी हैं
सुना है न्याय की देवी की आँखें बंद हैं
सुना है सत्य की श्मशान संसद बन चुकी है
सुना है मां की ममता खिलौनों की दुकानों से डरती है
सुना है एक मछली प्यासी हो कर पानी में ही मरती है
सुना है प्यार भी भी बिकने लगा है अब दुकानों पर
सुना है सड़क सहमी हैं रिश्ते भी कलंकित हैं अब मकानों पर
सुना है मां न बनने का सामान अब बिकने लगा है दुकानों पर
सुना है अब शहर में सड़कें चौड़ी और दिल संकरे हो रहे हैं
सुना है संत सकते में हैं और शातिर शोर करते हैं
सुना है कातिलों ने अब खंजर पर अहिंसा लिख लिया है
सुना है कोई पूतना अब डेरी चलाने जा रही है
सुना है सभ्यता बैठी है ज्वालामुखी के मुहाने पर
सुना है मोहनजोदाड़ो बह आया है गंगा के दहानो तक
सुना है हर कोलंबस अपनी भूल पर पछता रहा है
सुना है इस खुदा का प्यार कम पर खौफ ज्यादा है
सुना है आदमी अब आदमी के खून का प्यासा है
अमन के नाम पर कफ़न किसने उढ़ाया ?
एक सहमी सी सुबह से मैंने पूछ था ये सच
शाम होते शहर शोकाकुल सा नज़र आया
घर पे आया सबको हंसाया
छत पे जाके अपने आंसू पोंछ आया
आवाज़ देकर फलक से मुझे किसने बुलाया
भूकंप से काँपे घर की देहरी पर दिया किसने जलाया
शंखनादों से सुबह सहमी है
आर्तनादों से शाम
अमन के नाम पर कफ़न किसने उढ़ाया ?
एक सहमी सी सुबह से मैंने पूछ था ये सच
शाम होते शहर शोकाकुल सा नज़र आया
आवाज़ देकर फलक से मुझे किसने बुलाया
भूकंप से काँपे घर की देहरी पर दिया किसने जलाया. " -----राजीव चतुर्वेदी
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