यह बात केवल विधानसभा चुनाव की नहीं है। वर्ष 1990 के बाद से बिहार में गैर सवर्णों का राज है। यह पहली बार हुआ है कि सवर्ण सत्ता संघर्ष के मुख्य मुकाबले में हैं। इस स्थान को हासिल करने के लिए उन्होंने इस बार दलित मांझी को अपना हथियार बनाया है। देखना दिलचस्प होगा कि बिहार के दलित भाजपाई सवर्णों को अपना वोट देंगे या फ़िर वे अपनी अस्मिता को बचायेंगे। वैसे कहना गलत नहीं होगा कि मुकाबला सचमुच बहुत दिलचस्प हो गया है। आगामी विधानसभा चुनाव परिणाम यह साबित करेगा कि दलितों के लिए ब्राह्म्ण महत्वपूर्ण हैं या फ़िर गैर ब्राह्म्ण। वहीं ब्राह्म्ण जिनके कारण आज भी देश के बहुसंख्यक वंचित और शोषित हैं।
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